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उन्नत तकनीक अपनाकर उत्पादन लागत करें कम

लेखक-अरुण कुमार एवं डा. आरएस सेंगर

गांव में आज भी कृषि ही आजीविका का मुख्य साधन है. लगातार हो रहे अनुसंधान और नई किस्मों के आने से कृषि के स्तर में विकास हुआ है, लेकिन अब किसानों को खाद, बीज, दवाओं, कृषि औजारों, पानी, बिजली आदि पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है. खेती आज किसान के लिए घाटे का सौदा होती जा रही है, इसलिए इस पर खास ध्यान देने की जरूरत है. भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस को मुनाफे में बदलने की जरूरत है. भारत में कृषि पर सब्सिडी 10 फीसदी से भी कम है. अमेरिका व दूसरे देशों में कृषि सब्सिडी भारत के बजाय ज्यादा है.

वहां उन्नत तकनीक के चलते उत्पादन लागत भी कम आती है. यही वजह है कि विदेशी वस्तुएं भारतीय वस्तुओं की अपेक्षा काफी सस्ती होती हैं. अप्रैल, 2005 से विश्व व्यापार संगठन की संधि पूरी तरह से लागू होने से पूरे विश्व की कृषि एक बड़ी मंडी का रूप धारण कर चुकी है. वहीं वर्तमान सरकार ने भी किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कई कदम उठाए हैं. उन का लाभ भी किसानों को मिल रहा है. ऐसी स्थिति में किसानों के लिए जरूरी है कि वे अंतर्राष्ट्रीय कृषि प्रतिस्पर्धा में कम लागत से ज्यादा उत्पादन ले कर उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करें,

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जिस से विश्व बाजार में अच्छा मूल्य मिल सके और उन की साख भी बनी रहे. यहां बताई जा रही विविध तकनीकों को अपना कर किसान अधिक उपज ले सकते हैं, जिस से उन की लागत कम आएगी और मुनाफा बढ़ेगा. मिट्टी की जांच कराएं खेती करने से पहले खेत की मिट्टी की प्रयोगशाला में जांच जरूर करानी चाहिए. मिटी की रिपोर्ट के आधार पर ही फसलों का चुनाव करें और मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों की जरूरत के आधार पर खाद व पोषक तत्त्व डालें. सही जानकारी होने से खर्च में कमी आएगी और मिट्टी में सुधार होगा, जिस से उत्पादन अच्छा हासिल होगा.

प्रमाणित बीजों का करें प्रयोग बीजों की पारंपरिक विधि को छोड़ कर किसान प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें. बीज को 2 से 3 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें. इस से कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है. नर्सरी डालने से पहले नर्सरी का उपचार जरूर कर लें, क्योंकि ज्यादातर बीमारियां और कीड़े नर्सरी से फैलते हैं. पौधे लगाते समय यह ध्यान रखें कि वे रोगी न हों और उपचारित कर के ही पौधों की रोपाई करें. यदि नर्सरी अच्छी होगी, तो यकीनन फसल भी अच्छी होगी. समय पर करें बोआई किसी भी फसल की सही समय पर बोआई बहुत जरूरी है.

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यदि किसी वजह से बोआई में देरी हो जाए, तो फसल उत्पादन पर खर्चा तो उतना ही आता है, लेकिन पैदावार जरूर कम हो जाती है. गेहूं की देरी से बोआई करने पर 4 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति बीघा की दर से पैदावार में कमी देखी गई है. अगेती और पछेती किस्मों का भी ध्यान रखना चाहिए.

वर्षा न होने पर यदि बोआई में देरी हो जाए, तो पछेती किस्मों को लगा कर पूरा फायदा लिया जा सकता है. सहयोगी फसलें उगाएं एक ही खेत में एक से ज्यादा फसलें उगाने की पुरानी परंपरा है, जैसे गेहूं और चना एकसाथ उगाना. मुख्य फसल की 2 पंक्तियों के बीच में जल्दी पकने और बढ़ने वाली फसलें बोई जा सकती हैं. स्तंभ आकार औषधि पौधे, जो बड़े हैं, उन के नीचे बेल वाली जैसे करेला आदि की फसलें लगा सकते हैं. छाया की जरूरत वाली फसलें अदरक, सफेद मूसली, अश्वगंधा, हलदी आदि लगा कर अधिकतम भूमि का प्रयोग कर के उत्पाद की गुणवत्ता के साथसाथ शुद्ध लाभ बढ़ाया जा सकता है. किसी कारणवश एक फसल खराब भी हो जाए, तो उस के नुकसान की भरपाई दूसरी फसल की उपज से हो जाती है, इसलिए जहां तक संभव हो, सहफसली खेती पर ध्यान देना चाहिए.

आजकल किसान गन्ने के साथ सहफसली खेती ले कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. फसल चक्र में दलहनी फसलों को करें शामिल लगातार धान, गेहूं और आलू की खेती करने से भूमि की उर्वराशक्ति कमजोर हो जाती है, इसलिए फसल चक्र में दाल वाली फसलें शामिल करने से प्रति बीघा 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन खाद की वृद्धि के साथसाथ भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है, इसलिए फसल चक्र को जरूर अपनाना चाहिए. पौधों की उचित संख्या लगाएं खेत में पौधों की संख्या का उपज पर सीधा असर पड़ता है. बीज की उचित मात्रा और सही गहराई पर बोने से उपज में बढ़ोतरी होती है. छिटकवां विधि से बिजाई न कर के लाइनों में बिजाई करनी चाहिए.

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इस से खरपतवार निकालने में आसानी रहती है और यदि पौधों की संख्या अधिक हो, तो उन की छंटाई कर के अधिक उपज ली जा सकती है. संतुलित मात्रा में करें खाद का प्रयोग किसान जरूरत से ज्यादा खाद डालते हैं, इस से पैसे का नुकसान होने के साथसाथ कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है. अधिकतर किसान सही जानकारी की कमी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित मात्रा में प्रयोग न कर के एक ही खाद डाल देते हैं. वैज्ञानिकों की सिफारिश के अनुसार खाद डालने के समय मात्रा और विधि का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. बोआई से पहले बीज को बायोफर्टिलाइजर्स से उपचारित कर के नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का फसल जरूरत की संस्तुति के आधार पर प्रयोग किया जा सकता है. इस के अलावा लोहा, जिंक और मैग्नीशियम आदि सूक्ष्म तत्त्वों का जरूरत के हिसाब से प्रयोग करें, जिस से बीमारी और कीड़े कम लगते हैं. इस से कम खर्च में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है. पानी का करें उचित प्रयोग वर्षा के पानी को इकट्ठा कर के किसान सिंचाई के लिए प्रयोग कर सकते हैं. गहरी जुताई और मेंड़बंदी से खेत में पानी रोका जा सकता है.

कम पानी चाहने वाली किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए. वर्षा के पानी को इकट्ठा न कर पाने की कमी में 50 से 60 फीसदी पानी बेकार चला जाता है. इस से भूमि बंजर और खेती के लिए बेकार हो जाती है. आधुनिक सिंचाई के तरीकों में फव्वारा और ड्रिप सिंचाई का फसल और जमीन के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए, इस से पानी की बचत होती है और फसल को उस की जरूरत के मुताबिक पानी मिल जाता है. कंपोस्ट गोबर और हरी खाद का करें प्रयोग खेतों में घासपात के अवशेषों से कंपोस्ट तैयार की जा सकती है. गोबर की खाद में 0.5 फीसदी नाइट्रोजन, 0.25 फीसदी फास्फोरस और 0.5 फीसदी पोटाश की मात्रा होती है, साथ ही, भूमि की भौतिक दशा में भी सुधार होता है. साल में एक बार हरी खाद का प्रयोग करने से आगामी फसल में एकतिहाई खाद कम डालनी पड़ती है. गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल में 2 से 3 किलोग्राम प्रति बीघा हरी खाद को बो दें और 40 से 50 दिन बाद उस की जुताई कर के अगली फसल उगाएं.

फसल विविधीकरण और समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाएं परंपरागत फसलों से जहां कम आमदनी होती है, वहीं सब्जी, फलों, मसालों, औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती कर के अधिक आमदनी ली जा सकती हैं. खेती के अतिरिक्त अन्य काम जैसे-पिगरी, पोल्ट्री, मधुमक्खीपालन, रेशम कीटपालन, मछलीपालन, मशरूम उत्पादन एकदूसरे के पूरक हैं. इन में अतिरिक्त आमदनी होगी और उत्पादन लागत में कमी होगी. वैज्ञानिक तरीके अपना कर कम लागत में अधिक पैदावार ली जा सकती है. अधिक उत्पादन की लालसा में किसी के वैज्ञानिक दौर में कृषक अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशक, खरपतवारनाशक और हार्मोंस का प्रयोग कर के प्रदूषण और उत्पादन की गुणवत्ता के साथसाथ अपने पैसा का भी नाश करते हैं. कृषि के बदलते परिवेश में जरूरी है कि ऐसी टिकाऊ खेती करें, जिस में उपलब्ध सीमित संसाधनों का कम लागत में प्रयोग कर के उत्तम गुणवत्ता वाला अधिक उत्पादन हो और अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर हमारी पकड़ मजबूत हो.

इन बातों को ध्यान में रख कर यदि हम खेतीकिसानी करेंगे, तो निश्चित रूप से हमें उत्पादन अच्छा प्राप्त होगा और बाजार में उस की कीमत भी अच्छी मिलेगी. इस के अलावा किसानों को कार्बनिक खेती पर यानी प्राकृतिक खेती पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उस से कम लागत में अच्छा मुनाफा मिल जाता है. इस के लिए वर्मी कंपोस्ट और नीम या मूंगफली आदि की खली के प्रयोग से मिट्टी में जीवाणुओं की वृद्धि होती है. प्राकृतिक पदार्थों में गोमूत्र, नीम, धतूरा और तंबाकू का प्रयोग करें. कीड़ों व बीमारियों का समन्वित प्रबंधन रासायनिक दवाओं से करने पर उत्पाद का दाम कम मिलता है, इसलिए कार्बनिक दवाओं का ही प्रयोग करें. कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम के लिए कर्षण क्रियाओं की भौतिक और जैविक विधियों का प्रयोग करना चाहिए. गरमियों में खेत की गहरी जुताई करें और प्रतिरोधी प्रजातियां ही लगाएं. जीवाणुओं और प्राकृतिक भक्षक कीटों का प्रयोग करें. ट्रैप का प्रयोग कर के कीड़ों को एकत्रित कर नष्ट किया जा सकता है. इस से लागत भी कम आएगी और उत्पाद की कीमत भी अच्छी मिलेगी.

पश्चिम बंगाल चुनाव : मोदी VS ममता

चुनावी बेला में बंगाल की धरती पर आजकल ‘जय श्री राम’ के नारे खूब लग रहे हैं. हर तरफ भगवा झंडे लहरा रहे हैं. इन दिनों शायद ही कोई दिन होता हो जब प्रदेश में भाजपा की कोई चुनावी रैली या सभा नहीं होती है. भाजपा के बड़े दिग्गज बंगाल में डेरा जमा कर बैठे हैं. केंद्र के बड़े-बड़े नेता और दूसरे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगातार यहाँ का दौरा कर रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री मंच से ‘सोनार बांग्ला’ बनाने के वादे करते सुने जा रहे हैं. नरेंद्र मोदी कहते हैं बंगाल में “आसोल परिबोर्तन’ होगा. दीदी की सत्ता हथियाने के लिए खूब हथकंडे अपनाये जा रहे हैं.

सरकार को घेरने और परेशान करने के लिए सीबीआई और ईडी का भी भरपूर इस्तेमाल हो रहा है. भाजपा की ओर बंगाल के ब्राह्मण, बनिए, कायस्थ का काफी रुझान है. इनका भरपूर समर्थन भी भाजपा को मिल सकता है. ये तीनों जातियां धर्म की दुकानदारी की साझेदार हैं, मगर बंगाल में बड़ी संख्या ओबीसी, दलित और मुसलामानों की भी है, उनके वोट आखिर भाजपा की झोली में क्यों जाएंगे? फिर वह तबका जो पढ़ा लिखा है, राजनितिक समझ रखता है, युवा है, शिक्षित मगर बेरोज़गार है, जिसके लिए भाजपा के पास ना कोई योजना है ना कोई वादा है, वो भाला भाजपा को वोट क्यों देगा?

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पश्चिम बंगाल में महिला वोटरों को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, जो ममता को अपनी शक्ति के रूप में देखती हैं. ममता सरकार ने प्रदेश की लड़कियों को साक्षर और स्वाबलंबी बनाने के लिए कई योजनाएं भी चलाई हैं, जिनमें कन्याश्री और सौबुज साथी योजनाओं को खूब प्रशंसा मिली है. सौबुज साथी योजना के तहत ममता सरकार ने नौवीं से बारहवीं कक्षा तक छात्र – छात्राओं को मुफ्त साइकिलें दी हैं ताकि उनका स्कूल ना छूटे और वे स्वाबलंबी हों . ऐसे में विधानसभा चुनाव में ये देखना खासा दिलचस्प रहेगा कि बंगाल की जनता भाजपा के मंदिर, पूजा, आरती और ब्राह्मणों के सशक्तिकरण वाला सोनार बांग्ला बनाएगी या प्रदेश के युवाओं और महिलाओं के साक्षर और सशक्त होने को महत्त्व देगी.

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की बिसात पर अन्य राजनितिक पार्टियों या गठबंधनों से कहीं ज़्यादा चर्चा तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की है. वे एक दूसरे के आमने सामने हैं और एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन कर हुंकार भर रहे  हैं. कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों का जोश और शोर कुछ ख़ास नहीं है. इनसे भाजपा को कोई ख़ास नुकसान होता भी नहीं दिख रहा है. लेकिन दस साल से सत्ता पर काबिज़ दीदी को हराना भाजपा के हिन्दू राष्ट्र के प्रसार के लिए बहुत ज़रूरी है. यही वजह है कि ममता सरकार को घेरने और बिखेरने की नित नयी चालों के साथ भाजपा तृणमूल के दिग्गज नेताओं को भी तोड़ने-जोड़ने में व्यस्त है. बीते तीन माह में ममता के कई ‘करीबी’ भाजपा की गोद में जा बैठे हैं, इससे ममता की पेशानी पर कुछ बल ज़रूर पड़े हैं, लेकिन इससे उन्हें वफादारी और वफादारों की पहचान भी खूब हो रही है. बकौल ममता – अच्छी बात है कि आधे अधूरे मन से पार्टी में बने रह कर भविष्य में पार्टी को नुकसान पहुचाएं इससे बेहतर है कि पहले ही अलग हो जाएँ. अवसरवादियों की जरूरत तृणमूल को नहीं है फिर चाहे वो शुभेंदु अधिकारी हों या मनीरूल इस्लाम, गदाधर हाजरा हों या निमाई दास अथवा मोहम्मद आसिफ इकबाल.

उत्साहित भाजपा  
भाजपा को लग रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में अपनी सीटों की संख्या में नौ गुना और मत प्रतिशत में चार गुना इजाफा करने के बाद ‘बैटल ऑफ़ बंगाल’ उनके लिए आसान है और वह आराम से ममता बनर्जी के किले को ढहा देगी. उल्लेखनीय है कि 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भाजपा को राज्य में 42 में से केवल दो सीटें मिली थीं, मगर 2019 में उसके सांसदों की संख्या बढ़कर 18 हो गयी और वोट प्रतिशत भी 10 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया. लेकिन सवाल यह है कि भाजपा ने लोकसभा में जो जादू दिखाया, क्या विधानसभा चुनाव में वह कायम रहेगा?

जानकारों की मानें तो अमूमन पार्टी का वोट शेयर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बराबर नहीं रहता है. ये ज़्यादातर बराबर तब रहते हैं जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव छह महीने के अंतराल में हों. विधानसभा चुनाव में वोटों का बंटवारा भी लोकसभा के चुनाव के मुकाबले कम होता है. वर्ष 2019 के चुनाव में बंगाल में भाजपा को दलित वोट 59 फीसदी मिला था जबकि ममता को 30 फीसदी ही मिला. पश्चिम बंगाल की कुल आबादी में 17 फीसदी दलित हैं. इसके अलावा भाजपा को अपर कास्ट, ओबीसी और दूसरे सभी समुदाय में तृणमूल के मुक़ाबले थोड़ा वोट ज़्यादा मिला.

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ममता के साथ मुसलमान सबसे ज़्यादा जुड़े और उनका एकतरफ़ा वोट तृणमूल को ही गया, जो ममता की जीत के पीछे बड़ी वजह रहा. मगर इस बार ममता के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए असद्दुदीन ओवैसी भी आ गए हैं और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी भी. पश्चिम बंगाल के 30 फीसदी मुसलमान निश्चित ही तीन तरफ बंट जाएंगे, इसको लेकर भाजपा खासी उत्साहित है और उसका सारा फोकस बाकी बचे 70 फीसदी वोटरों पर है, जिनको लुभाने का वो कोई मौक़ा नहीं छोड़ रही है.

हालांकि ये 70 फ़ीसदी वोटर एकतरफा वोट नहीं करते. इसमें आदिवासी, दलित, ओबीसी सब आते हैं. वोट करने के पीछे उनकी अपनी पसंद, विचारधारा, दिक्क़तें और वजहें हैं. ये भी ज़रूरी नहीं है कि लोकसभा के लिए जिन्होंने भाजपा को वोट दिया वो विधानसभा के लिए भी उसी को वोट दे. बात जब घर की आती है तो फैसले बदल भी जाते हैं. विधानसभा चुनाव आते ही जनता रोज़गार, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ के सवालों को मथने लगती है. ‘अपने’ और ‘बाहरी’ का भेद भी करने लगती है.

अब गृहमंत्री अमित शाह भले पश्चिम बंगाल पहुंच कर मंच से ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाएं और उपस्थित जनता से भी हाथ उठा कर लगाने को कहें, लेकिन जैसा कि तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा कहती हैं, ‘हमें ‘जय श्रीराम’ से दिक़्क़त नहीं है, लेकिन हम क्या बोलेंगे और कैसे अपने धर्म को फ़ॉलो करेंगें, ये हमारा निजी मामला है. हमें आपका (भाजपा का) स्लोगन नहीं बोलना है, हम अपना स्लोगन कहेंगे.’ तो कुछ यही सोच बंगाल के आम मानुस की भी है. परम्परागत रूप से दुर्गा और सरस्वती की उपासना करने वाला अचानक श्रीराम में दिलचस्पी क्यों लेने लगेगा?

महिलाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते

पश्चिम बंगाल में महिला वोटरों का रुझान दीदी की तरफ दिख रहा है. दीदी में उनको शक्ति नज़र आती है. बंगाल में महिलाओं के बीच उनकी लोकप्रियता काफी है. ममता ने भी भाजपा के ‘जय श्रीराम’ के जवाब में ‘दुर्गा’ को खड़ा करके ये दिखाने की कोशिश की है कि उत्तर भारतीयों की पुरुष प्रधान मानसिकता बंगाल में नहीं चलेगी. बंगाल में महिलाओं को बराबरी का दर्जा हासिल है. यहाँ बंगाली औरत की अपने घर-परिवार में धमक रहती है. दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा उनके लिए महान उत्सव हैं जब वह नखशिख तक सजती हैं, सात दिन की पूजा में सत्तर प्रकार के पोशाक धारण करती हैं. इस परम्परा और अधिकार को कोई बाहरी आ कर नहीं छीन सकता है. ममता बंगाली महिलाओं की मानसिकता को बखूबी समझती हैं और इसलिए उन्होंने ‘धर्म’ के साथ-साथ ‘महिला-पुरुष’ नैरेटिव को भी ‘दुर्गा’ नैरेटिव के साथ साधने की कोशिश की है.

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पश्चिम बंगाल में महिला वोटरों की तादाद तकरीबन 49 फीसदी हैं जिनके लिए ममता ने काम भी किया है. ममता ने साइकिल योजना और स्वास्थ्य योजना के जरिए महिलाओं में अपने दबदबे को बरकरार रखने की कोशिश की है. देश में आज वो अकेली महिला मुख्यमंत्री हैं और सीधे मोदी-शाह को चुनौती देने जा रही हैं. लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने 40 फीसदी महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था. इस विधानसभा में भी उन्होंने 294 सीट पर 50 महिलाओं को टिकट दिया है.

मतुआ सम्प्रदाय का महत्व
पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ संप्रदाय काफ़ी अहम है, जो किसी भी राजनितिक पार्टी का भविष्य तय करता है. बंगाल में मतुआ संप्रदाय को मानने वालों की संख्या तकरीबन 3 करोड़ है. मतुआ सम्प्रदाय अभी तक ममता को सपोर्ट करता आया था. मतुआ माता बीनापाणि देवी यानी मतुआ माता की ममता बनर्जी से साल 2010 में नजदीकियां बढ़ी. इसी साल मतुआ माता ने ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक भी घोषित किया. इसे मतुआ संप्रदाय का ममता बनर्जी को राजनीतिक समर्थन माना गया. इसका फायदा भी तृणमूल कांग्रेस को मिला और वह 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज हुईं.

बीनापाणि देवी और उनकी राजनीतिक ताकत ममता के साथ लम्बे समय तक बनी रही. उल्लेखनीय है कि 2019 की लोकसभा चुनाव के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में चुनावी अभियान शुरू किया तो सबसे पहले मतुआ संप्रदाय के 100 साल पुराने मठ में बोरो मां का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे. इसके बाद से इस परिवार का रुझान भाजपा की ओर होना शुरू हुआ. 5 मार्च 2019 को बीनापाणि देवी के निधन के बाद परिवार में राजनीतिक बंटवारा खुलकर दिखने लगा और उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने भाजपा का दामन थाम लिया और 2019 में मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को भी भाजपा ने बनगांव से टिकट दिया, जिसके बाद वह सांसद बन गए.

कहते हैं मतुआ सम्प्रदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आकर पश्चिम बंगाल में बसे हैं. मतुआ संप्रदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में समाज सुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने की थी. उनका जन्म एक गरीब और अछूत नामशूद्र परिवार में हुआ था. मतुआ महासंघ की मान्यता ‘स्वम दर्शन’ की रही है जिसका रास्ता हरिचंद्र ठाकुर ने दिखाया. इस संप्रदाय के लोग हरिचंद्र ठाकुर को ही भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं और श्री श्री हरिचंद्र ठाकुर कहते हैं. मतुआ संप्रदाय हिन्दू धर्म को मान्यता देता है लेकिन ऊंच-नीच और भेदभाव के बगैर. जबकि भाजपा मनुवादी सोच के तहत हिन्दू को भी ऊंच-नीच, सवर्ण-अछूत जैसे खांचों में बांटती है. पर मतुआ समाज के आगे बड़ा मुद्दा नागरिकता पाने का भी है.

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मतुआ सम्प्रदाय में बहुतेरों के पास भारतीय नागरिकता नहीं है और भाजपा सीएए-एनआरसी का कानून ले आई है जो मुस्लिमों को छोड़कर बाकियों को नागरिकता देने की बात कहता है. ऐसे में भाजपा की तरफ मतुआ समुदाय का झुकाव स्वाभाविक है. मतुआ संप्रदाय के लिए नागरिक संशोधन कानून (सीएए) बड़ा मसला है. पूर्वी पाकिस्तान से आकर पश्चिम बंगाल में बसे मतुआ संप्रदाय के लोगों को इस कानून के तहत नागरिकता मिल जाएगी. पश्चिम बंगाल में ऐसे लोग बड़ी संख्या में है जो एनआरसी के डर के साए में हैं. भाजपा एनआरसी का डर खत्म करने के लिए ही नागरिक संशोधन कानून लाई है और इसे चुनाव में बड़ा मुद्दा भी बना रही है. कुछ दिन पहले ही भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा भी था कि जल्दी ही नागरिकता संशोधन कानून लागू हो जाएगा, इसकी तैयारी की जा रही है.

भाजपा भी आदिवासी और अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय के लोगों पर फोकस कर अपना मिशन-200 पूरा करना चाहती है. बंगाल दौरे पर गृहमंत्री अमित शाह का मतुआ समुदाय के घर पहुंच कर ज़मीन पर बैठ कर पत्तल में लंच करना काफी कुछ कह जाता है. गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी क़रीब 1.84 करोड़ है और इसमें 50 फ़ीसदी मतुआ संप्रदाय के लोग हैं जो चुनाव के वक़्त हर राजनितिक पार्टी के लिए काफी अहम् हो जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, प. बंगाल में मतुआ संप्रदाय के पास करीब 3 करोड़ का वोटबैंक है. नामशूद्र समाज के लोग भी मतुआ संप्रदाय को मानते हैं. नामशूद्र के अलावा दूसरे दलित समाज के लोग भी मतुआ संप्रदाय से जुड़े हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए अनुसूचित जाति का बड़ा वोट हासिल करने के लिए मतुआ संप्रदाय को साधना ज़रूरी है.

मुसलामानों पर नज़र  
पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुसलमान बहुत बड़ा फैक्टर है. राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 30 फ़ीसद है और 70-100 सीटों पर उनका एकतरफ़ा वोट जीत और हार तय कर सकता है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को नज़रअंदाज़ करके सत्ता की चाशनी चाटना नामुमकिन है. मुस्लिम समाज यहाँ करीब 100 से 110 सीटों पर नतीजों को प्रभावित करता है. यही वजह है कि हर राजनितिक पार्टी मुसलमानों को लुभाने के लिए चुग्गा डालने में लगी है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बार 42 मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में उतारे हैं. वहीँ एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी बंगाल की जमीन पर उतरते ही सीधे  फुरफरा शरीफ की दरगाह पर सजदा करने पहुंचे क्योंकि चुनाव में फुरफुरा शरीफ की खास भूमिका रहती है.

फुरफुरा शरीफ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के जंगीपारा विकासखंड में स्थित एक गांव का नाम है. इस गांव में स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी की दरगाह बंगाली मुसलमानों में काफी लोकप्रिय है. कहा जाता है कि मुसलामानों के लिए अजमेर शरीफ के बाद फुरफुरा शरीफ ही दूसरी सबसे पवित्र दरगाह है. यहां पर हजरत अबु बकर सिद्दीकी के साथ ही उनके पांच बेटों की मज़ारें हैं, जहाँ सालाना उर्स में बड़ी संख्या में बंगाली और उर्दू भाषी मुसलमानों की भीड़ जुटती है.

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वहीँ फुरफुरा शरीफ दरगाह की देखरेख की जिम्मेदारी निभाने वाले पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी हैं जो इस बार चुनाव मैदान में ममता और ओवैसी दोनों को चुनौती देंगे. अब्बास सिद्दीकी अपने नाम के साथ पीरजादा लगाते हैं. पीरजादा फारसी शब्द है, जिसका मतलब होता है मुस्लिम धर्मगुरु की संतान. अब्बास सिद्दीकी का परिवार फुरफुरा शरीफ स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी और उनके पांच बेटों की मज़ारों की देखरेख करता आया है और वर्तमान में इसके कर्ता-धर्ता अब्बास सिद्दीकी हैं. पीरजादा अब्बास सिद्दीकी अब तक एक मजहबी शख्सियत थे, ऐसा नहीं था कि उनका राजनीति से वास्ता नहीं था, 34 वर्षीय अब्बास सिद्दीकी की कभी ममता बनर्जी से घनी छनती थी.

जब ममता के संघर्ष के दिन थे और वह सिंगुर और नंदीग्राम में आंदोलन कर रही थीं तब फुरफुरा शरीफ के पीरजादा परिवार ने ममता का खुला समर्थन किया था. तब वहां कई मुसलमान किसानों की भी जमीन सरकारी अधिग्रहण में जा रही थी, जो ममता के आंदोलन के कारण बच सकी थी. जब तक अब्बास सिद्दीकी मौलाना के रोल में रहे तब तक ममता से उनकी खूब पटी और उनके इशारे पर मुस्लिम वोट का खूब फायदा ममता को मिला, मगर अब्बास की राजनितिक इच्छाएं जागृत होते ही ममता से उनकी राहें जुदा हो गयीं.  अपनी ऊंची महत्वाकांक्षाओं के चलते अब्बास सिद्दीकी ने ममता का साथ छोड़ कर कांग्रेस और लेफ्ट के साथ याराना गाँठ लिया. अब उनकी पार्टी ‘इंडियन सेक्यूलर फ्रंट’ बंगाल के मुसलामानों को साधने में जी-जान से जुटी है.

बंगाल के मुसलमानों के बीच युवा अब्बास सिद्दीकी का अपना फैन बेस है. अपने उत्तेजक भाषण, मजहबी तकरीरों की वजह से वह सोशल मीडिया के वर्चुअल स्पेस से लेकर हकीकत के जलसों में भी काफी भीड़ खींचते हैं. उनके कई वीडियो फेसबुक, ट्विटर पर अलग-अलग  संदर्भों में खूब वायरल हुए हैं.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुसलमान बहुत बड़ा फैक्टर है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 30 फ़ीसद है. सीटों के लिहाज़ से बात करें तो लगभग 70-100 सीटों पर उनका एकतरफ़ा वोट जीत और हार तय कर सकता है. यही वजह है कि पूरे देश में एनआरसी और सीएए का राग अलापने वाली भाजपा भी पश्चिम बंगाल में इस मुद्दे पर चुप मार जाती है, ये जानते हुए भी कि मुसलमान उसके खेमे में झाँकने नहीं आएगा.

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गौरतलब है कि कांग्रेस और लेफ़्ट का गठबंधन पश्चिम बंगाल में पहले ही हो चुका है. इस बार उनके साथ फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी भी हैं. राजनीति में सीधे तौर पर अब्बास की पहली बार एंट्री हुई है. पिछले सप्ताह तीनों पार्टियों ने संयुक्त रूप से एक रैली की थी, जिसके बाद कांग्रेस में इस गठबंधन के बाद कुछ बग़ावती सुर भी सुनाई दिए थे. रैली में अब्बास सिद्दीक़ी के व्यवहार को देखकर लेफ्ट पार्टी के स्थानीय नेताओं में भी इस गठबंधन को लेकर थोड़ी असहजता देखने को मिली थी. पिछले चुनाव में ममता बैनर्जी का साथ देने वाले अब्बास सिद्दीकी ने असदुद्दीन ओवैसी को नाउम्मीद कर कांग्रेस और लेफ्ट से हाथ तो मिला लिया है लेकिन वो कितना फायदा पहुंचा पाते हैं इसका खुलासा 2 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद ही होगा.

दूसरी तरफ़ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी बिहार में पांच सीटों पर खाता खोलने के बाद बड़ी उम्मीद लेकर बंगाल के चुनावी मैदान में उतरे हैं. राजनितिक जानकारों की मानें तो ओवैसी और सिद्दीक़ी दोनों बिल्कुल अलग भूमिका में हैं. ओवैसी का पश्चिम बंगाल में कोई दख़ल नहीं है. ना तो उनकी भाषा बंगाली मुसलमानों जैसी है और ना ही बंगाल के बारे में उनको ज़्यादा पता है, ना ही वो वहाँ के रहने वाले हैं. ऐसे में सोचने वाली बात है कि बंगाली मुसलमान उनको वोट क्यों देंगे?

जबकि पीरजादा अब्बास सिद्दीकी का मामला अलग है. बंगाली मुसलमान का उन पर विश्वास है लेकिन उनका कुछ दख़ल हुगली ज़िले की सीटों पर ही है, जहाँ से वो ताल्लुक़ रखते हैं. उसके बाहर उनका कोई प्रभुत्व नहीं है. उनकी महत्वाकांक्षा भी बहुत बड़ी हैं. उन्होंने कांग्रेस और लेफ्ट से हाथ तो मिला लिया है मगर सीटों के बंटवारे में वह हिस्सा भी बड़ा ही चाहेंगे.लिहाज़ा आने वाले दिनों में सीटों के बंटवारे को लेकर मामला फंस सकता है. इसलिए ओवैसी और सिद्दीक़ी को एक नहीं कहा जा सकता क्योंकि दोनों का प्रभाव का स्तर अलग है. ओवौसी और सिद्दीक़ी के बीच के इस अंतर को कांग्रेस और लेफ़्ट भी समझते हैं और शायद इसलिए उन्होंने फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के अब्बास सिद्दीक़ी के साथ गठबंधन किया है ताकि थोड़े बहुत मुस्लिम वोट उनकी झोली में आ सकें.

वहीँ ममता बनर्जी कहती हैं कि उनको अपने मुस्लिम मतदाताओं पर पूरा भरोसा है. उन्हें यकीन है कि जो मुस्लिम मतदाता उनके साथ पहले से जुड़े हुए हैं वो उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. इस भरोसे को कायम रखने के लिए ही ममता ने 42 मुस्लिम चेहरे चुनाव मैदान में उतारे हैं. लेकिन अब्बास और ओवैसी कुछ मुस्लिम वोट तो ज़रूर खींच ले जाएंगे. ऐसे में कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों पर हक़ जमाने के चलते मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

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पश्चिम बंगाल की त्रिकोणीय बिसात को देखते हुए जानकार कहते हैं कि बंगाली मानुस ममता में ही ज़्यादा विश्वास रखता है. भाजपा के बवाल से भले तृणमूल कांग्रेस कुछ चुनौती का सामना कर रही है, मगर ममता ने जिस तरह हर तबके को ध्यान में रख कर उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, वह टीएमसी के लिए काफी आशा जगाती है. शुक्रवार को अपना लकी डे मानने वाली ममता बनर्जी ने फिलहाल जो 291 कैंडिडेट के नाम जारी किए हैं उनमें 50 महिलाएं, 42 मुस्लिम, 79 एससी, 17 एसटी और 103 सामान्य वर्ग के उम्मीदवार हैं. लिस्ट में 100 ऐसे चेहरे हैं, जिन्हें पहली बार मौका दिया जा रहा है. कई सीटों पर फेरबदल किया गया है.

ममता बनर्जी का कहना है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस किसी के साथ समझौता नहीं करने वाली है. जमीनी स्तर पर साफ़ छवि और भ्रष्टाचार मुक्त चेहरे को महत्व दिया जा रहा है. लिस्ट में कई स्टार उम्मीदवार भी हैं. कम से कम 100 उम्मीदवार 50 साल से कम उम्र के हैं. इनमें से तीस उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी उम्र 40 साल से भी कम है. 80 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को ममता ने टिकट नहीं दिया है. वहीँ 24 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे गए हैं. नंदीग्राम से खुद ममता बनर्जी टीएमसी छोड़ भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ चुनाव में उतरेंगी. नंदीग्राम को शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है. अगर वो यहाँ से हारे तो भाजपा की काफी छीछालेदर होगी. इस सीट पर मुकाबला काफी रोचक होने वाला है.

गौरतलब है कि ममता बनर्जी पिछले 10 साल से बंगाल पर राज कर रहीं हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ अपने मुस्लिम मतदाता को साधे रखने की चुनौती उनके सामने है. उन्हें इस बात का बखूबी अंदाज़ा है कि लेफ्ट गठबंधन अब्बास सिद्दीक़ी के सहारे और भाजपा ओवौसी के सहारे टीएमसी के मुसलमान वोटर में सेंधमारी की कोशिश में जुटी है.

पश्चिम बंगाल में इस बार 8 फेज में वोटिंग होगी. 294 सीटों वाली विधानसभा के लिए वोटिंग 27 मार्च (30 सीट), 1 अप्रैल (30 सीट), 6 अप्रैल (31 सीट), 10 अप्रैल (44 सीट), 17 अप्रैल (45 सीट), 22 अप्रैल (43 सीट), 26 अप्रैल (36 सीट), 29 अप्रैल (35 सीट) को होनी है. काउंटिंग 2 मई को की जाएगी.

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‘सौबूज साथी’ के ज़रिये महिला सशक्तिकरण का सन्देश   

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड में पश्चिम बंगाल की झांकी में बंगाली बालाओं को साड़ी पहन साइकिल पर सवार होकर स्कूल जाते दिखाया गया था. झांकी के माध्यम से यह बताने की कोशिश हुई कि महिला सशक्तिकरण और महिला साक्षरता के प्रति ममता सरकार कितनी प्रतिबद्ध है. झांकी की थीम में दुर्गा, टैगोर, सुभाष चंद्र बोस भी हो सकते थे, लेकिन ममता सरकार ने इनमें से कुछ भी नहीं चुना. खुद एक ‘फाइटर वुमन’ के तौर पर पहचान बनाने वाली ममता मानती हैं कि औरत के विकास से ही देश का विकास संभव है. उनकी थीम का नाम था ‘सौबूज साथी’.

सौबूज का अर्थ होता है हरा रंग, तृणमूल कांग्रेस का रंग भी हरा है और मुस्लिम सम्प्रदाय का भी प्रिय रंग हरा ही है. रंग से काफी कुछ साधा जा सकता है. जैसे भगवा रंग बहुत कुछ कह जाता है, बहुत कुछ समझा जाता है. भगवा जहाँ उत्तेजना, जोश और कट्टरता का आह्वान करता प्रतीत होता है, वहीँ हरा रंग प्रकृति, सौम्यता और शीतलता का एहसास कराता है. आने वाले दो माह में बंगाल की जनता देश को बता देगी कि दोनों रंगों में से उसका पसंदीदा रंग कौन सा है.

खैर, पश्चिम बंगाल में चुनावी सरगर्मी चरम पर है, ऐसे में ममता सरकार द्वारा ‘सौबूज साथी’ को झांकी के विषय के रूप में लिए जाने का ख़ास मकसद था इस योजना के बारे में पूरे राष्ट्र को बताना. ये बताना कि शिक्षा के माध्यम से छात्र-छात्राओं का सशक्तिकरण ममता सरकार कैसे कर रही है. उल्लेखनीय बात यह है कि राज्य सरकार की ‘कन्याश्री’ योजना के बाद  ‘सौबूज साथी’ योजना को विश्व भर से प्रशंसा मिली है.

‘सौबूज साथी’ को वर्ल्ड समिट ऑन द इन्फॉर्मेशन सोसाइटी (डब्ल्यूएसआईएस) द्वारा भी सम्मानित किया गया है. ‘सौबूज साथी’ योजना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दिमाग की उपज है. इस योजना के तहत गरीबों लोगों के साथ-साथ राज्य द्वारा संचालित, राज्य द्वारा प्रायोजित और राज्य द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों और मदरसों में कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को मुफ्त साइकिल दी जाती है. योजना का उद्देश्य स्कूल छोड़ने वालों की संख्या को कम करना और यह सुनिश्चित करना है कि छात्र और खासतौर पर छात्राएं कम से कम 12वीं कक्षा तक की शिक्षा अवश्य प्राप्त करें.

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अब तक एक करोड़ से ज़्यादा साइकिलें इस योजना के तहत बांटी जा चुकी हैं. इस योजना का उद्देश्य लड़कियों को स्वतंत्र और स्वाबलंबी बनाना भी है. इससे बंगाली लड़कियों में काफी आत्मविश्वास पैदा हुआ है. किसी अन्य राज्य में लड़कियों को सशक्त करने की ऐसी पहल शायद ही हुई हो. मनुवादी विचारधारा में रचीबसी भाजपा तो लड़कियों को घर और धर्म के चक्रव्यूह से कभी निकलने ही नहीं देना चाहती है. मनुस्मृति महिलाओं के सशक्तिकरण का कोई सन्देश नहीं देती. वह तो स्त्री को हमेशा निगरानी में रखने की बात कहती है.

किसान आन्दोलन का महिला दिवस

लेखक-रोहित और शाहनवाज

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पूरी दुनिया में महिलाओं के संघर्ष का प्रतीक है. इस दिन को महिलाओं के लिए ऐतिहासिक माना जाता है. यह दिन सिर्फ ट्विटर, फेसबुक या इन्स्टा पर स्वीट स्टोरीज शेयर करने का नहीं बल्कि उस राजनीतिक जीत का मसला है जिस ने महिलाओं को पंख दिए, आजादी का स्वाद चखाया और फिर पितृसत्तात्मक समाज में अपने हक के अधिकारों के लिए लड़ने की सीख दी.

आज से 102 साल पहले अमेरिका के शिकागो से शुरू हुआ बुनकर महिलाओं का आन्दोलन जब शिकागो की सड़कों पर चलने लगा तो मर्दवादी अहंकार में डूबी सत्ता इसे बर्दाश्त नहीं कर पाई. जाहिर है उस दौरान सत्ता की जरुर यह सोच थी कि ‘मर्दों के नीचे वाली यह औरतें आवाज बुलंद कर चीख कैसे सकती हैं? एक तो सब से निचले दर्जे की मजदूर और ऊपर से महिला?’ जिस कारण राज्य ने इस आन्दोलन का बुरी तरह दमन करने की कोशिश की. महिलाओं के इस विरोध के चलते अमेरिका की उस समय की सोशलिस्ट पार्टी ने अगले साल 1909 में पहला महिला दिवस मनाने का फैसला किया. जिस ने महिलाओं के निरंतर चलने वाले संघर्ष का रास्ता खोल दिया. जिस के बाद यह दिन का नाम इतिहास के पन्नों में पूरी दुनिया के लिए महिलाओं के संघर्ष के रूप में दर्ज किया गया.

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दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर किसान आन्दोलन को 100 दिनों से अधिक हो चुके हैं. सरकार के अड़ियल रवय्ये और भारी नजरंदाजी के बावजूद किसानों का हौसला और जज्बा अभी भी कायम है. हजारों की संख्या में किसान अभी भी दिल्ली की सीमाओं में 3 नए विवादित कानूनों को वापस करवाने की मांग को ले कर इकठ्ठा हैं. इस आंदोलित संख्या में ना सिर्फ पुरुष हैं बल्कि एक बड़ी संख्या महिलाओं की भी हैं जो ना सिर्फ पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं बल्कि नेतृत्व भी दे रही हैं. यही महिलाएं हैं जो विश्व की महिलाओं से जुड़ कर सही मायनों में ‘महिला दिवस’ को साकार कर तमाम बोर्डरों पर महिला दिवस मना रही हैं.

भारत में महिला दिवस की जरुरत और किसान आन्दोलन में इस दिन के महत्व को ले कर ‘सरिता’ टीम किसानों के धरनास्थलों पर गई. जहां इस मौके के लिए आई कई महिलाओं से बात की गई. इन्ही में से एक जसबीर कौर नथ, जो इस समय किसान आन्दोलन को नेतृत्व कर रही हैं उन्होंने इस ख़ास मौके पर ‘सरिता’ पत्रिका से बात की. उन्होंने कहा, “आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ऐसा दिन बन गया है जिस पर सरकार झूठी चिंता जाहिर करने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों रूपए बहा देती है. दिल्ली के बोर्डरों पर इतने दिनों से हजारों महिलाएं बैठी हैं लेकिन सरकार उन की बात सुन ने को राजी नहीं. यह सरकार ‘महिला सरकार’ की बात करती थी. लेकिन इन की अधिकतर नीतियाँ महिला विरोधी रहती हैं. आज इस दिन को मनाने का सही उद्देश्य है कि अपने हम अपने बीते संघर्षों से प्रेरणा लेते हुए महिलाओं के लिए बेहतर समाज बनाने के लिए संकल्प करें, और आज किसान आन्दोलन में हम इस दिन के माध्यम से यही संकल्प करेंगे.

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जसबीर कौर क्लारा जेटकिन और रोजा लैक्जमबर्ग को अपनी प्रेरणा मानती हैं. उन का मानना है कि यह वह अंतर्राष्ट्रीय नेता थीं जिन्होंने इस दिन को सार्थक बनाया. पूरी दुनिया में महिलाओं को उन के बुनियादी हक़ मिले इसलिए इन महिला नेताओं ने यह दिन महिलाओं को समर्पित किया.

पिछले 103 दिनों से लगातार टिकरी बौर्डर पर बैंठी 65 वर्षीय किसान नेता जसबीर कौर नथ मनसा जिले के मनसा शहर से आती हैं. वह पिछले 35 सालों से सामाजिक मुद्दों को ले कर एक्टिव रही हैं. जसबीर कौर का पूरा परिवार भारत के उन गिनेचुने लोगों में से एक होगा जो कई वर्षों से किसानों और दबेकुचले तबके की बुनियादी आवाजों को उठाने के लिए समर्पित है.

मंच से जसबीर का टेंट टिकरी बौर्डर पर मेट्रो पुल के पिल्लर 783 के करीब है. जसबीर की उपयोगिता टिकरी पर हमेशा मुख्य मंच के नजदीक ही होती है. टिकरी जैसी महत्वपूर्ण जगह में उन के कद और काबिलियत को इसी तौर पर समझा जा सकता है कि उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से मंच के संचालन, क्राउड मैनेजमेंट और फंड इकठ्ठा करने की मुख्य जिम्मेदारी सोंपी गई है. यह अपनेआप में दिलचस्प है कि वह ऐसी मां भी हैं जिन्होंने अपनी बेटी को अपने साथ संघर्ष का साथी बनाया. उन की बेटी नवकिरण नथ वही आन्दोलनकारी है जिस ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर ट्राली टाइम्स न्यूज़पेपर (पहला किसान अखबार) की स्थापना की.

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जसबीर कौर ‘सरिता’ पत्रिका के माध्यम से कहती हैं, “जब हम आन्दोलन में होते हैं तो प्रगतिशील आन्दोलन से जुड़ा हुआ कोई भी संघर्ष जो हिस्टोरिक होता है वह दुनिया में सभी संघर्षरत लोगों के लिए जरुरी होता है. महिला दिवस का भी किसान आन्दोलन के लिए महत्व है. यह दोनों आन्दोलन संघर्षों की मिसाल है. इसलिए इन इन का सेलिब्रेशन जरुरी है.”

महिलाओं के इसी जज्बे को समझने के लिए सरिता टीम ने सिंघु बौर्डर की यात्रा की. सिंघु बौर्डर वह पहली जगह है जहां किसानों का हुजूम लाठी’डंडे खाते हुए दिल्ली के लिए पहुंचा था. यहीं से देश के आम लोगों की नजर किसानों के मुददे पर पड़ी और यह जगह पुरे किसान आन्दोलन का केंद्रीय स्पोट भी बना.

ऐसे ही हमारी मुलाक़ात मंच से सोनीपत की तरफ करीब 2 किलोमीटर आगे बैठीं राजकौर (28) से हुई. राजकौर पटियाला के गुरथल गांव से आती हैं. वह सिंघु बोर्डर पर रेगुलरली आतीजाती हैं लेकिन इस बार वह महिला दिवस को ले कर 1 मार्च से ही लगातार बनी हुई हैं. स्वभाव से आत्मविश्वासी दिखती राजकौर कहती हैं, “हमारे गांव में कमेटियां बनी हुई हैं जो देखती है कि किस दिन किस को धरने पर जाना है. यह कमिटी पिंडों में लोकल लेवल पर प्रोग्राम को भी आयोजित करती हैं. इस समय गांव में फसल का बहुत काम है. इसलिए इसे देखते हुए कमिटी ने बोर्डर पर शिफ्ट लगाईं हैं. इस की खासियात यह है कि पिंडों में महिलाएं आपस में बैठ कर राजनेतिक बातें करती हैं, और सहीगलत पर सोचविचार करने लगी हैं.”

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वहीँ 70 साल की हरदीप अपनी उम्र के कारण तकलीफ में रहती हैं. हरदीप कौर भी पटियाला जिला से आई हैं. वह यहां 3 बार आ चुकी हैं. पैरों में भारी दर्द होता है डाक्टरों ने लम्बी यात्रा करने से मना किया है लेकिन वह फिर भी यहां यहां ट्राली से हिचकौले खाते हुए पहुंची हैं. उन का मानना है कि आन्दोलन में आना उन की नैतिक जिम्मेदारी है, अगर वह यहां नहीं आई तो खुद से नजर में गुनाहगार हो जाएगी..

हरदीप को महिला दिवस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन वह कहती हैं, “इस आन्दोलन ने महिलाओं को हिम्मत दी है, उन का आत्मविश्वास बढ़ाया है. जो महिलाएं पहले घर पर झाड़ूकटका कर रही थी वह यहां आ कर नारे लगा रही हैं, भाषण दे रही हैं. जो औरतें पहले ट्रेक्टर छूती भी नहीं थी वह ट्रेक्टर चला रही हैं.. खुद दूर अपने पिंडों से ड्राइव कर के आती हैं.”

इस बात को जसबीर कौर ने खुल कर बताया. जसबीर कहती हैं, “हमारी सोसाइटी पुरुष प्रधान है जिस में वे समझते हैं कि खाना पकाना, कपड़े धोना, झाड़ूकटका करना औरतों का काम है. आज 3 महीने से ऊपर हो गए हैं. (हंसते हुए) जो भी हो आज मर्द यहां अपने झूठे बर्तन कपड़े धो रहे हैं, खुद के लिए खाना बना रहे हैं, अपनी जगहों पर झाड़ू लगाते हैं. इन कामों को ले कर एक जिम्मेदारी का एहसास सभी को हुआ है.”

वह आगे कहती हैं, “पहले जो मर्द कहते थे कि रोटी बनाने में कौन सी बड़ी बात है अब उन्हें यहां समझ आ रहा है कि 5 लोगों की रोटी बनाना कितना समय खाऊ और थकाऊ काम है. भले इस से महिलापुरुष में बराबरी नहीं आएगी लेकिन आने वाले समय में महिलाओं की मुक्ति के लिए यह एक पड़ाव का काम जरूर करेगा.”

जसबीर का कहना है कि महिला दिवस को किसान आन्दोलन में मनाया जाना इस बात की मिसाल है कि हमारी मांग और हमारी सोच किस वंचित समाज के लिए है. जसबीर कहती हैं, “यह बहुत बड़ा सवाल है कि औरतों को किसान नहीं समझा जाता. इस में दिक्कत यह है कि अधिकतर किसान औरतों के नाम पर जमीन नहीं है. वह या तो पिता के नाम पर होती है, भाई या पति के नाम पर, या फिर बेटे के नाम पर होती है. यह भेदभाव नहीं है क्या? हां, हसबेंड की अगर डेथ होती है तब घरों में जमीन को पत्नी के नाम की जाती है. देखा जाए तो औरतें खुद को किसान परिवार की तो मानती हैं लेकिन खुद को किसान नहीं बतातीं. जब की खेतों में महिलाओं का योगदान पुरुष से किसी भी हिसाब से कम नहीं है. चाहे दूध के लिए पशुओं को देखना हो, खेत में फसल काटनी हो, नरमा चुगना हो, फसल इकठ्ठा करनी हो, रुपाईबाई करनी हो. यहां तक कि घर का खाना बनाना, खाना खेत में भेजना, घर की देखरेख यह सब भी तो जुड़ा ही हुआ है.”

आन्दोलन से महिलाओं के जीवन पर बदलाव को ले कर हरदीप कौर कहती हैं, “यहां आ कर जब बाकी महिलाओं से बात होती है तो एक दुसरे के बारे में जानने को मिलता है. एकदूसरे के दुःखदर्द सुनने को मिलते हैं. मंच पर चढ़ने का सहस मिलता है. (मुस्कराते हुए) पहले लगता था कि हरियाणा की औरतें परदे में ज्यादा रहती हैं लेकिन वे तो हाथ पकड़ कर मंच में खींच देती हैं. वहां लोकगीत गाते हैं तो हम भी एकदुसरे में जानने लगते हैं.”

बातचीत के दौरान सिंघु पर बैठीं हरदीप की उंगली बड़ी सीधी तरीके से सरकार की नीतियों की तरफ इशारा कर रही करती हैं. वह बहुत कड़क मिजाज में कहती हैं, “हमारे बुजुर्गों ने बहुत मुश्किल से जायदातें बनाई हैं. जो (मोदी) हड़पने को करता है. हम नहीं हड़पने देंगे. बुजुर्गों ने मुश्किल से कमा कर बनाया है हम ने गंवाना थोड़े है. उन के लिए कैर (संभाल) के रखना है अपने लिए, अपनी अगली पीढ़ी के लिए. यह पीढियां बचाने की लड़ाई है.”

इतने में उन के पिंड से आई उन की हमउम्र सहेलियां महिलाएं खिलखिला कर हंसती हैं और कहती हैं, “कोरोना झूट बनाया है मोदी ने. कोई कोरोना नहीं है. इतने दिन से यहां रहे कहां है कोरोना?” फिर थोड़ा सोचती हैं फिर कहती हैं, “हम यहां से तब तक नहीं जाएंगे जब तक यह तीन काले कानून वापस नहीं हो जाते.” अधिकतर दादियां भले हिंदी ठीक से नहीं बोल समझ पाती हों, लेकिन जो हम समझ पाए वह एक यह कि “हम बिना कानून वापस कराए नहीं जाएंगे.”

एक बात तय है कि इस पुरे किसान आन्दोलन में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण रहा है, बिना महिलाओं के सहयोग के इतने लम्बे समय से चले आ रहे किसान आन्दोलन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. महिलाएं ना सिर्फ अपने खेतखलिहानों में जरुरी काम संभाल रही हैं साथ ही आन्दोलन में भागिदाई निभा कर पितृसत्ता समाज पर भी प्रहार कर रही हैं. कृषि कानूनों पर यहां आ रही महिलाएं अपनी मजबूत राय रखती हैं और जब तक सरकार द्वारा कानून निरस्त नहीं किए जाते तब तक घर वापस न आने के अपने फैसले पर अडिग रहती हैं. इस आन्दोलन ने कई महिला नेताओं को जन्म दिया है जिस की आज देश को सब से ज्यादा जरुरत है. जसबीर का मानना है कि जिस तरह से 8 मार्च को सरकार ने महिलाओं की आवाज दाबाने की असफल कोशिश की जिस के बाद यह दिन इतिहास में दर्ज हुआ, ठीक उसी तरह 18 जनवरी किसानों ने ‘किसान दिवस’ के तौर पर समर्पित किया, जिस आन्दोलन को सरकार भी दबाने की असफल कोशिश कर रही है. यह दिन भी आने वाले समय में पूरी दुनिया में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया जाएगा.

महिलाएं कहीं भी महसूस करें असुरक्षित, मिलाएं 112-यूपी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशन में नारी सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम ‘मिशन शक्ति’ के तहत 17 अक्टूबर 2020 से 28 फरवरी 2021 तक 1,21,509 महिलाओं को सहायता पहुंचाई गयी. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए मिशन शक्ति कार्यक्रम शुरु किया गया है. वर्ष भर में 112-यूपी ने घरेलू हिंसा में 3,27,833 पीड़ित महिलाओं तक मदद पहुँचाने का कार्य किया है.

महिलाओं को सुरक्षा का भाव
महिलाओं में सुरक्षा का भाव उत्पन्न करने के लिए पूरे प्रदेश 300 महिला पीआरवी 112-यूपी की ओर से संचालित की जा रही हैं.

मिशन शक्ति के तहत विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रदेश भर की महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान करना 112-यूपी का मुख्य उद्देश्य है. रात्रि में अकेली महिला को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए महिला स्कार्ट की सुविधा शुरू की गयी है. गाँव हो या शहर कोई भी महिला रात्रि 10 बजे से सुबह 6 बजे तक इस सुविधा का लाभ ले सकती है. एक वर्ष में 518 महिलाओं ने इस सुविधा का लाभ उठाया है.

बुजुर्गों की मदद
बुज़ुगों में सामाजिक सुरक्षा का भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से ‘सवेरा’ योजना के तहत 1,70,296 महिलाओं का पंजीकरण किया गया है. महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए 112-यूपी द्वारा जिलों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. प्रदेश भर में 112-यूपी की 4500 पीआरवी रात-दिन प्रदेश में आम जनमानस की सुरक्षा के लिए तत्पर हैं.

घरेलू हिंसा पर अंकुश लगाने की पहल
मिशन शक्ति के तहत घरेलू हिंसा पर अंकुश लगाने और महिलाओं को त्वरित सहायता उपलब्ध के लिए 112-यूपी द्वारा प्रदेश भर में 300 महिला पीआरवी चलाई जा रही हैं. इस पीआरवी पर महिला पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है, ताकि पीड़ित महिला बेझिझक अपनी बात महिला पुलिस कर्मियों को बता सके. घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं को 112 की तरफ से ‘प्रबल प्रतिक्रिया’ दी जाती है.

1090 व 181 के साथ एकीकरण
मिशन शक्ति का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने के साथ-साथ उनको स्वावलंबी बनाना भी है. प्रदेश के किसी भी कोने से अगर कोई महिला पुलिस की मदद लेने के लिए 1090 पर कॉल करती है तो उसकी कॉल 112-यूपी पर स्थानांतरित कर दी जाती है. इसी तरह स्वरोजगार के लिए किसी तरह की मदद चाहने वाली महिलाओं की कॉल को 112 से 181 स्थानांतरित की जाती है. विभिन्न सरकारी हेल्प लाइनों से एकीकरण के बाद 112-यूपी के कार्य का दायरा भी बढ़ गया है.

सिंगर हर्षदीप कौर ने शेयर की बेटे की फोटो, फैंस से की ये अपील

पॉप्युलर सिंगर हर्षदीप कौर हाल ही में मां बनी हैं. इन्होंने 3 मार्च को अपने पहले बच्चे का सस्वागत इस दुनिया में किया है. हर्षदीप कौर ने अपने पतिक साथ- साथअपने बेटे की तस्वीर भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाला है.

फोटो शेयर करते हुए हर्षदीप कौर ने अपने सभी फैंस को शुभकामनाएं और आशीर्वाद देने के लिए कहा है. बता दें कि इस दौरान हर्षदीप नीले रंग का फ्लोरल गाउन पहनी हुई हैं. जिसमें वह बला की खूबसूरत लग रही हैं.

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वहीं उनके पति ने लाल रंग की शर्ट के साथ मैंचिर पगड़ी पहनी हुई हैं. जिसमें वह बेहद ज्यादा खूबसूरत लग रहे हैं. फोटो में दोनों अपने बेटे को पालने में लिए खड़े हैं. जिसे चारों तरफ नीले और लाल रंग के गुब्बारे से सजाया गया है.

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बेटे को गोद में लिए हर्षदीप के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान नजर आ रही है. हर्षदीप ने फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि हम तीनों की तरफ से आप सभी का दिल से धन्यवाद. पिछले कुछ दिनों मे बहुत सी चीजे बदल गई.

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इस खबर के बाद से हमारे परिवार में बहुत सारी खुशियां आई हैं, हमें आप सभी के प्यार और आशीर्वाद की जरुरत है. हर्षदीप कौर को सिंगिग की दुनिया का सूफी कहा जाता है. इन्होंने सिंगिग में अपना नाम अच्छा बनाया है.

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हर्षदीप कौर सिंगग के अलावा कई रियलिटी शो में जज भी बन चुकी हैं.

एसिड अटैक की धमकी देने वालों को शहनाज गिल का करारा जवाब, कहां- मैं किसी से डरती नहीं

बिग बॉस एक ऐसा शो है जिसके कंटेस्टेंट को समय नहीं लगता है फेमस होने में, बिग बॉस के हर सीजन में कोई न कोई सितारा ऐसा होता है जिसे फैंस से खूब सारा प्यारा मिलता हैं. इस लिस्ट में शहनाज गिल का नाम भी शामिल है. शहनाज गिल  को भी अपने फैंस से खूब सारा प्यार मिला है.

उनका फैन फॉलोविंग भी काफी ज्यादा है. फैंस के साथ- साथ शहनाज गिल को हेटर्स का भी सामना समय -समय पर करना पड़ता है. वह कई बार ऐसे लोगों के गुस्से का शिकार हो जाती हैं. जो उन्हें गलत- गलत धमकियां देते रहते हैं.

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हाल ही में शहनाज गिल को एक हेटर्स ने एसिड अटैक की धमकी दी है. जिसके बाद माहौल पहले से ज्यादा गर्म हो गया है. लेकिन पंंजाब की शेरनी खुद को कहने वाली शहनजा गिल उनकी धमकियों से बिल्कुल भी नहीं डरी उन्होंने कहा कि मुझे किसी से कोई डर नहीं लगता है. यहीं नहीं शहनाज ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मुझे किसी से डर नहीं लगता.

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बता दें कि बिग बॉस में आने के बाद से लेकर अब तक शहनाज गिल की फैन फॉलोविंग में कोई कमी नहीं आई है. शहनाज गिल इन दिनों सिद्धार्थ शुक्ला के साथ कई म्यूजिक वीडियो में नजर आ चुकी हैं. शहनाज गिल के इस वीडियो में दर्शकों से उन्हें खूब सारा प्यार भी मिल रहा है.

शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला को लेकर कुछ वक्त पहले खबर यह आ रही थी, जल्द शहनाज गिल सिद्धार्थ शुक्ला के साथ शादी के बंधन में बंधने वाली हैं. हालांकि शहनजा गिल ने अभी इस विषय पर खुलकर बात नहीं किया है. शहनाज अपने काम को लेकर बहुत ज्यादा व्यस्त नजर आती हैं.

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शहनाज खुद को पंजाबी की कैटरीना कैफ भी कहती हैं. जिससे लोग  शहनाज गिल को खूब ज्यादा पसंद करते हैं.

चूजे : सभी अपने- अपने शहर की तारीफ क्यों कर रहे थे

पर्यटन की अपनी ही खुशबू है. आप को रेल में जगह मिले या नहीं, होटल कैसा है, इन सब की फिक्र नहीं रहती. घूमने का जनून जिसे होता है वह दूरदूर तक निकल आता है. मेरे पास मुंबई का शराफत बैठा था. वह वहां इंजीनियर है. सुंदर पत्नी और 2 बच्चे उस के साथ थे. सभी बहुत खुश थे.

मैं ने पूछा, ‘‘कहांकहां घूम आए?’’

वह बोला, ‘‘अजमेर से माउंट आबू निकल गए थे, वहां से उदयपुर गए और फिर वहां से यहां आ गए.’’

‘‘क्या अच्छा लगा?’’

‘‘माउंट आबू सुंदर है, ठंडा भी है, पर उदयपुर बहुत सुंदर है.’’

‘‘उदयपुर में ऐसा क्या है?’’

वह बोला, ‘‘यह कहना कठिन है, पर है बहुत सुंदर.’’

‘‘हम तो बाद में भी आएंगे,’’ उस के दोनों बच्चे एकसाथ बोले.

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ट्रेन आने में देर थी, ये लोग उदयपुर से चेतक ऐक्सप्रैस से जयपुर आ गए थे. यह शहर राजस्थान की राजधानी है. मैं इसी राज्य के जैसलमेर का रहने वाला हूं. हम लोग वेटिंगरूम में अपनीअपनी गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे. पास में ही रफीक भाई बैठे थे. वे जौनपुर के रहने वाले हैं. अपनी छोटी लड़की के साथ हैंडीक्राफ्ट का सामान खरीदने यहां आए थे. लगभग 20 लोगों का उन का ग्रुप है. उन की गाड़ी जोधपुर से आती है, उन का टिकट वेटिंग में है. वह कन्फर्म होगा या नहीं, यह पता करने के लिए वे परेशान थे. चार्ट बहुत दूर लगा हुआ था, वहां जाना और उसे पढ़ना रफीक के लिए कठिन है, भाषा की दिक्कत है. रेलवे के अधिकारी यही जानते हैं कि जनता की भाषा अंगरेजी हो गई है, जबकि कंप्यूटर पर हिंदी के फौंट भी हैं. पर जैसी सरकार की इच्छा, वही सर्वोपरि है.

हम ने रफीक भाई से जानना चाहा, ‘‘जौनपुर तो बनारस के पास है?’’

‘‘हां, हम लोग बनारस होते हुए ही आए हैं.’’

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एसी वेटिंगरूम में मैं उन्हें पा कर कुछ चकित था. सच, मानो मेरी मध्यवर्गीय सोच कुछ आशंकित थी. इतनी दूर से ये आए हैं, एसी का टिकट ले कर चलना क्या आसान है? पर मैं कुछ कह पाता कि शराफत बोल उठे, ‘‘अजमेर में इस बार लोग बहुत दूरदूर से आए.’’

‘‘हां, पर अजमेर में इंतजाम तो पहले से अच्छा हो गया है.’’

‘‘इंतजाम तो पहले जैसा ही है, जगह की कमी है और जायरीन बढ़ते जा रहे हैं.’’

‘‘हम तो जयपुर से ही बड़ी गाड़ी ले कर हो आए थे. वैसे जयपुर ज्यादा रुकना हुआ. सामान भी खरीदा, घूमे भी खूब. गरमी तो है, बच्चों को छुट्टियां अभी ही मिलती हैं.’’

‘‘जयपुर में क्या अच्छा लगा?’’

‘‘जयपुर शहर खूबसूरत है. आमेर का किला सुंदर है. यहां के बाजार अच्छे हैं, नकली जेवरात बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘रफीक भाई, आप का जौनपुर तो ऐतिहासिक है?’’ मैं ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘हां, आप कभी आइए, बहुत बड़ी मसजिद है, वह बहुत पुराना शहर है.’’

‘‘वहां भी सरकार ने विकास तो किया ही होगा?’’

‘‘विकास? आम आदमी की रग यहां हाथ रखते ही गरम हो जाती है. रोज कुआं खोदते हैं, रोज पानी पीते हैं.’’

‘‘वहां तो हैंडलूम का जोर था?’’

‘‘अब नहीं है. ब्यूटीपार्लर, मोबाइल शौप और दारू की दुकानें, ये नए बिजनैस हैं, तेजी से बढ़ भी रहे हैं.’’

‘‘आप…’’

‘‘पहले करघे थे, सब बंद हो गए हैं, आप के राज्य के सांगानेर से हम माल ले जाते हैं. सांगानेर में माल गुजरात की मिलों से आता है. हैंडीक्राफ्ट अभी आप के यहां है, हमारे यहां अतीत की बात हो गई है. एक नया बिजनैस हमारे यहां चला है, वह तेजी से फैल भी रहा है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘चिकन का.’’

‘‘चिकन, जो कपड़े पर होता है, कुरते तो लखनऊ से आते हैं.’’

‘‘वह नहीं, जनाब. चिकन, क्या आप नहीं खाते?’’

‘‘चिकन?’’ मुझे हंसी आ गई, ‘‘क्या आप का होटल है?’’

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‘‘नहीं, जनाब. हम चूजे खरीद कर लाते हैं, उन्हें मुरगा बनाते हैं, उन्हें बेचते हैं, यह बिजनैस चल पड़ा है. कोलकाता तक हमारे मुरगे जाते हैं. बहुत बढि़या बिजनैस चला है.’’

‘‘कैसे?’’ मेरी सोच उस तरफ बढ़ गई थी. शराफत भी अपनी कुरसी बदल कर उधर आ गया था.

‘‘साहब, पंजाब, हरियाणा में इस का बिजनैस चलता है, वहां औटोमेटिक प्लांट हैं, सब काम मशीन से होता है. वहां से चूजे आ जाते हैं. हमें नहीं जाना पड़ता. और्डर लेने वाले हमारे पास आ जाते हैं. हम हैचरी में चूजों को पालते हैं. चूजा 30 से 40 दिन बाद मुरगा बन जाता है. हमारे यहां हेचरी का प्लांट होता है. इस के भी इंजीनियर हैं. पूरी टैक्नोलौजी है.

‘‘शहर से बाहर कभी हैंडलूम के करघे होते थे. आज वहां चिकन फैक्टरियां हैं. हम सब बहुत वजन का हैल्दी चिकन बनाते हैं. हमारे यहां पानी बहुत है, एक बड़ा सा कमरा होता है. वहां पानी पाइप लाइन के जरिए पहुंचाया जाता है. एकएक बूंद पानी टपकता है. नीचे दाना रखा होता है. दाना गोरखपुर से आता है. तापक्रम एकसा रखा जाता है. चूजे दाना खाखा कर मुरगा बन जाते हैं. 30 से 40 दिन के बाद चूजा मुरगा बन कर बिकने को भेजा जाता है. यह बहुत बड़ा बिजनैस है.’’

‘‘लाभ?’’

‘‘हां साहब, सब ऊपर वाले की मेहरबानी है. पहले 1 फैक्टरी थी. अब 4 हो गई हैं. यह चौबीसों घंटे का काम है. स्टाफ रहता है. हमारे यहां शहर के बाहर सड़क के किनारे इसी के प्लांट लग गए हैं.’’

‘‘चूजे पंजाब से आते हैं?’’

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‘‘हां.

‘‘तो चूजे तो हिंदू होंगे? क्या हिंदू लोग यह व्यापार करते हैं?’’

‘‘हां, चूजे तो चूजे हैं, उन की क्या जात?’’ रफीक भाई हंसे, ‘‘आप जात

मत पूछना.’’

‘‘धर्म क्या? आप को पता है, गरीब की कोई जात नहीं होती. दो रोटी मिल जाएं, वही करम है, वही धरम है. चूजों का धर्म तो मुरगा बनना है.’’

‘‘और मुरगे को कटना है. चिकन बनना है,’’ रफीक भाई ने बात को संभाला, ‘‘सभी खाते हैं. आप को बताऊं, आजकल सब्जियां महंगी हैं. एक मुरगा 100 से 200 रुपए में हमारे यहां से चला जाता है.’’

‘‘आप को इस बिजनैस को करने में कोई दिक्कत होती है?’’

‘‘नहीं. जो चूजे लाते हैं वे और्डर ले जाते हैं. चिकन वाले आते हैं वे चिकन ले जाते हैं और और्डर दे जाते हैं. बस, यही तकनीक है. चूजों के ऐक्सपर्ट भी आते हैं. वे चूजों को देखते हैं, उन का वजन भी लिया जाता है.’’

‘‘ये चूजे लड़ते नहीं हैं?’’ सवाल शराफत की लड़की ने उठाया था.

‘‘नहीं बेटे, मुरगे बनतेबनते जब तक इन की आदत बदले, हम इन्हें हेचरी से बाहर निकाल लेते हैं.’’

‘‘पर, कभी बीमारी फैल जाए तो?’’

‘‘हां, इस के भी डाक्टर हैं. जो चूजे देते हैं उन के यहां आप जाइए, देखिए, अंडों को कैसे रखा जाता है? वहां बहुत साफसफाई रहती है. हम लोग देख कर आए थे. अब तो हरियाणा में भी यह काम चल रहा है.’’

‘‘अच्छा, यह तो एक धार्मिक सद्भाव है. अंडा मुरगी ने दिया, हिंदू ने चूजा बनाया, आप ने मुरगा बनाया, सब ने मिल कर खाया.’’

‘‘पर आप तो खाते नहीं?’’ रफीक भाई ने टोका.

‘‘मेरी बात मानिए, इन चूजों को कलगी वाला मुरगा मत बनाइए, लड़लड़ कर शहरी लोगों की नींद खराब कर देंगे,’’ मैं ने कहा और फिर पूछा, ‘‘नई सरकार जो आई है, क्या इस से कुछ उम्मीद है?’’

‘‘नहीं. क्योंकि उस ने तो अभी तक इसे उद्योग ही नहीं माना. हमारा बिजनैस जो फलफूल रहा है, उस में जनता का योगदान है.’’

यह बात दूसरी है कि आप के राजस्थान में कोचिंग उद्योग चल पड़ा है. औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम यानी रीको की जमीनें, जहां कभी उद्योगधंधे चल रहे थे, वहां खूब कोचिंग संस्थान चल रहे हैं.’’

‘‘मैं भी अपने बच्चे को दाखिला दिलाने आया था. लाख रुपया लग गया. आप की सरकार अच्छी है, यहां कोचिंग भी उद्योग बन गया है. हमारे यहां पुरानी सरकार का तो काफी समय खाली जमीनों पर हाथी की मूर्तियां लगाने में ही चला गया.’’

‘‘तो नई सरकार, अच्छी होगी, यह तो चिकन खाती है.’’

‘‘खाती तो पुरानी वाली भी थी. आप ने तो चिकन का स्वाद लिया ही नहीं, एक बार इस का स्वाद मुंह लग गया, तो फिर इस की आदत छूटती नहीं. चिकन और घूस यानी रिश्वत खाने की आदत लगने के बाद छूटती नहीं. जानते हैं, हम जब सरकारी दफ्तर जाते हैं, लोग कहते हैं मुरगा आया है.

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‘‘मुरगा तो धर्मनिरपेक्ष है, आप बुरा मत मानना, साहब. हमारे यहां ब्राह्मण सब से बड़े चिकन के ग्राहक हैं. अब आप ही देखिए, एक बार जो मनरेगा में काम करने जाता है उसे वहां बगैर काम के ही पैसे मिलते हैं, फिर वह हमारे यहां काम के लायक नहीं रहता. आप आइए, देखिए, वह अपने घर का काम भी नहीं कर पाता. नतीजतन, इस बार फसल को भी नुकसान पहुंचा है. मोबाइल और शराब ये ही दोनों चीजें विकास का पैमाना हैं. हम अपने बच्चों को इन बीमारियों से बचा लें, हमें यही चिंता रहती है.’’

‘‘हां, तभी तो सभी हमें चूजे से मुरगा बनाए चले जा रहे हैं,’’ पास बैठे शरीफ भाई अचानक बोल पड़े, ‘‘चूजे, मुरगा, फिर चिकन, उन का पेट भरता नहीं, कितना खाएंगे? पता नहीं, इतना चिकन तो अंगरेजों ने भी नहीं खाया था. लगता है कि हमारे यहां के लोगों का पेट बहुत बड़ा है.’’

‘‘इंसान का पेट, मुरगा क्या, हाथी हजम कर जाए, फिर भी डकार न आए. आजादी के बाद खाने की भूख बहुत बढ़ गई है,’’ मैं ने भी भारतीयों की नब्ज का बखान किया.

‘‘हमारे शहर के 1 भ्रष्टचारी का पेट देखा है?’’ पीछे से आवाज आई.

‘‘पर राजधानी में अब पचासों ऐसे नए भ्रष्टाचारी आ गए हैं. इन के पेट में, सागर भी समा जाए. सुना है, स्पैक्ट्रम की आकाश में मिल्कियत होती है, कोयला धरती की, वह सब भी हजम हो गया, हम तो गरीब नागरिक हैं,’’ रफीक भाई सामान समेटते हुए बोले.

फिर थोड़ा रुक कर वे बोले, ‘‘हुजूर, आप तो पढ़ेलिखे हैं, पर कम से कम शरीफ भाई की बात पर सोचें कि हम कब तक दानापानी की चाह में चूजे से चिकन ही बनते रहेंगे?’’

सामने टीवी स्क्रीन पर टे्रन आने का समय हो गया था. रफीक भाई दुआसलाम कर अपनी बेटी का हाथ पकड़े बनारस वाली टे्रन की तरफ बढ़ गए.

मैं रिलेशनशिप में कमिटेड नहीं होना चाहता, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी दोस्त और मैं एकदूसरे से काफी ओपनली बात किया करते थे जिस के चलते हम ने एकदूसरे से सैक्सटिंग कर ली और उस के बाद किस भी. हालांकि, उसे फिर से किस करने का मन तो है लेकिन मैं कमिटेड नहीं होना चाहता. मैं सोच रहा हूं कि उस के साथ कुछ दिन रिलेशनशिप में आ जाऊं जिस से कुछ दिन बाद ब्रेकअप हो भी गया तो कोई नहीं, कम से कम हम दोस्त तो रहेंगे ही. उस के मन में मेरे लिए फीलिंग्स हैं जो बीच में आ रही हैं. क्या मुझे उस से रिलेशनशिप के लिए पूछना चाहिए ?

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जवाब

आप की सोच इस सिचुएशन में सरासर ?गलत है. आप इस बात से तो वाकिफ होंगे ही कि फीलिंग्स हर्ट होती हैं तो व्यक्ति को दुख होता है, दर्द और तकलीफ होती है. आप अपनी दोस्त को हर्ट करने की बात कर रहे हैं और उस की फीलिंग्स की रिस्पैक्ट ही नहीं कर रहे, यह कितनी गलत बात है, यह रियलाइज कर रहे हैं आप? आप का उसे किस करने का मन है और यकीनन उस का भी होगा, लेकिन आप उस के लिए कुछ फील नहीं करते और वह करती है. आज नहीं तो कल आप दोनों अलग हो जाएंगे, दोस्ती खत्म हो जाएगी और उस का दिल टूट जाएगा.

अपनी दोस्ती को पहले जैसा नहीं, तो बचाए रखने के लिए ही सही, किस से आगे न बढ़ें. एकतरफा फीलिंग्स के साथ फ्रैंड्स विद बेनिफिट्स भी नहीं हो सकता. बेहतर है आप अपना ‘लस्ट’ कहीं और डाइवर्ट कर दें.

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रिश्ते बनाना तो बहुत आसान होता है लेकिन उन्हें संभालना मुश्किल होता है. एक अच्छे रिश्ते का मतलब केवल फूल देना और अच्छी जगह पर डिनर करना नहीं होता है. वैसे तो बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें करने से आपके रिश्ते खराब हो सकते हैं लेकिन ऐसी कुछ गलतियां है जो आपको एक सीरियस रिलेशनशिप में भूल कर भी नहीं करनी चाहिए. अगर आप अपने रिश्ते के बौन्ड को और मजबूत बनाना चाहते हैं तो इन 5 गलतियों से जरूर बचे.

1. रोमांस में कमी

एक समय पर आप संतुष्ट हो जाते हैं और भूल जाते है कि रिश्ते में प्यार और रोमांस भी जरुरी है. ऐसा माना जाता है की प्यार दिखाया नहीं समझा जाता है. अगर आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं तो वो इंसान खुद ही आपके प्यार को समझेगा मगर कभी-कभी अगर अपने प्यार को जाहिर कर देंगे तो इससे आपके साथी को एक अलग खुशी मिलेगी. आपके लिए जरुरी है कि रिश्ते में रोमांस को बनाएं रखें और इसे बरकरार रखने के लिये एफर्ट डालें. कभी-कभी प्यार जताकर अपने साथी को खास महसूस कराया जा सकता है.

2. परफेक्ट पार्टनर की उम्मीद…

इस दुनिया में कोई इंसान बिल्कुल परफेक्ट नहीं होता है इसलिए इसकी उम्मीद करना बेवजह है. हर चीज में अपने साथी को टोकते रहना और उसकी गलतियां निकालना सही नहीं है. अगर उनसे कोई गलती हो जाए तो उन्हें डांटने के बजाय समझाये. बार-बार उनकी गलती को गिनवाने से उनका आत्म-विश्वास कम होगा. बेहतर होगा कि आप अपनी उम्मीदें जरुरत से ज्यादा ना रखें. अगर कोई गलती भी हो जाए तो उसे दूसरों के सामने ना गिनाएं बल्कि उन्हें आपस में निपटा लें, उन्हें सुधारने का तरीका बताएं ताकि दोबारा उनसे वही गलती न हो जाए.

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3. आमना-सामना करने से बचना…

बहुत बार हम सोचते हैं कि किसी भी झगड़े को खत्म करने के लिए उसके बारे में बात ही ना की जाए. बिना बात किए आपके सारे झगड़े खत्म नहीं होंगे बल्कि और ज्यादा बढ़ जाएंगे. अगर आप-दोनों के बीच लड़ाई हो तो उसका सामना करें. आमना-सामना करने से आप अपने बीच की प्रॉब्लेम को दूर कर पाएंगे. इन झगड़ों को अपने साथी को बताने के बजाय दूसरों को बताने की गलती ना करें. ऐसा करने से लोगों के सामने आपका ही मजाक बनेगा. कोई आपके प्रोब्लेम का हल नहीं निकालेगा बल्कि आपको और निराश ही करेगा. कोशिश करें कि आप एक-दूसरे से आराम से बैठकर बात करें और अपने प्रोब्लम का हल खुद निकाले.

4. ज्यादा बांधकर न रखें…

अपने रिश्ते को थोड़ा स्पेस दें. ज्यादा दखल देना भी अच्छा नहीं होता है. जब आप प्यार में होते हैं तो आप चाहते हैं कि सभी चीजें साथ में करें लेकिन रिश्ते की शुरुआत में ही ऐसा ठीक लगता है. जैसे आप आगे बढ़ते हैं तो ज्यादा साथ रहना भी आपके रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकता है. हर इंसान की अपनी एक लाइफ होती है और थोड़ा निजीं समय आपके रिश्ते को बेहतर बना सकता है.

5. खुद को या साथी को बदलने की कोशिश...

कभी भी अपने पार्टनर को खुश करने के लिए खुद को नहीं बदले या फिर अपनी खुशी के लिये साथी को बदलने की कोशिश ना करें. अगर आप प्यार में हैं तो आप जैसे हैं उन्हें वैसे ही अच्छे लगेंगे और आपको भी उन्हें ऐसे ही पसंद करना चाहिए. अगर कोई आपको बदलना चाहता है तो उन्हें आपसे ज्यादा दिखावे से प्यार है. प्यार करने का मतलब एक-दूसरे की हर छोटी-बड़ी चीजों से प्यार करना होता है. हर तरह से एक-दूसरे को समझना होता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

Crime Story: बेहाल प्रेमी

सौजन्या- मनोहर कहानियां

आकाश से शादी हो जाने के बाद भी प्रीति अपने प्रेमी संजू मंसूरी को भुला नहीं पाई थी. आकाश को जब सच्चाई पता लगी तो उस ने प्रीति को तलाक देने की धमकी दी. तलाक की इस धमकी ने प्रीति के भाई गुड्डू को ऐसा कातिल बना दिया कि…

‘‘संजू, मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि तुम ने मुझ पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया है, जो मेरा किसी

भी काम में मन नहीं लगता. अब तो तुम्हारे बिना न दिन को चैन आता है और न रातों को नींद.’’ प्रीति ने प्रेमी संजू से कहा.

‘‘यह कोई जादू नहीं है बल्कि इसी को प्यार कहते हैं. सच कहूं, प्रीति ऐसा ही तो हाल मेरा है. तुम सामने होती हो तो सब कुछ सतरंगी सा लगता है और तुम से जुदा होते ही चारों ओर वीरानी नजर आती है.

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‘‘प्रीति, कभीकभी तो मैं यह सोच कर ही डरता हूं कि कहीं हमारे प्यार को किसी की नजर न लग जाए. क्योंकि मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता.’’ प्रीति का हाथ अपने हाथों में लेते हुए संजू बोला.

‘‘संजू, जुदाई की सोचते ही मेरी तो रूह कांप जाती है. मैं यही सोच कर परेशान हूं कि कहीं मेरे घरवालों को हम दोनों के प्यार के बारे में पता चल गया तो उन का मेरे प्रति व्यवहार कैसा होगा. क्योंकि हम दोनों नदी के दो किनारों की तरह हैं, जो कभी आपस में मिल नहीं सकते. बताओ, ऐसे में हमारे प्यार को मंजिल कैसे मिलेगी?’’ कहते हुए प्रीति के चेहरे पर गंभीरता छा गई.

वह एक पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी एक बात मानोगे, संजू? क्यों न हम यहां से कहीं दूर जा कर अपने प्यार की नई दुनिया बसा लें, जहां हमें किसी का डर न हो. जब हम एकदूजे के हो जाएंगे तो किसी में इतनी ताकत नहीं होगी कि हमें अलग कर पाए.’’

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प्रीति ने कहा तो संजू भी सोच में डूब गया. उसे भी लगा कि प्रीति की सोच अपनी जगह ठीक है. प्यार के एक नहीं, लाखों दुश्मन होते हैं. वैसे भी प्रीति ने उस से जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया है. उसे अपना बनाने के लिए अगर हिम्मत कर के यह कदम उठा भी ले तो कौन सी बुराई है. ईरिक्शा चालक 35 वर्षीय संजू मंसूरी जिला शाहजहांपुर के सिधौली थाना के गांव रामपुर में रहता था. उस के पिता का नाम शेर मोहम्मद था और मां का रजिया. पिता खेतीकिसानी करते थे. संजू की 2 बड़ी बहनें थीं और एक छोटा भाई इस्लामुद्दीन. दोनों बहनों का निकाह हो चुका था. इसी गांव में रामविलास परिवार सहित रहता था. परिवार में पत्नी सुधा, एक बेटा गुड्डू और 2 बेटियां प्रिया और प्रीति थीं. रामविलास खेती

करता था, जिस की आय से घर का खर्च चलता था.प्रिया का विवाह हो चुका था. प्रीति अभी अविवाहित थी. स्वभाव से वह काफी चंचल थी. घर के कामों में उस का मन नहीं रमता था. प्रीति हमेशा बनठन कर रहती और टीवी से चिपकी रहती थी.

मां की डांट के बावजूद प्रीति टीवी पर आने वाली फिल्में देखे बगैर नहीं रहती थी. प्रीति पर फिल्मों और फिल्मी गानों का इतना प्रभाव पड़ा कि वह खुद को फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

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चूंकि फिल्मों में प्यारमोहब्बत को महिमामंडित किया जाता है, इसलिए प्रीति को भी ऐसे युवक की तलाश थी, जो फिल्मी हीरो की तरह उस के सामने प्यारमोहब्बत का प्रस्ताव रखे. उसे चाहे और उसे सराहे. उस के हुस्न की तारीफ करे और उस की याद में तड़पे.

दूसरी ओर संजू अधिक पढ़लिख नहीं सका था, लेकिन वह अपने पहनावे से पढ़ालिखा और हैंडसम युवक नजर आता था. अपने शरीर पर वह विशेष ध्यान देता था. हमेशा आधुनिक फैशनेबल कपड़े पहनता था. संजू को भी पागलपन की हद तक फिल्में देखने का शौक था. उस का बात करने और चलने का स्टाइल भी फिल्मी था.

संजू अपनी उम्र के उस मोड़ पर था, जहां आशिकी स्वभाव में अपने आप आ कर शामिल हो जाती है. लव स्टोरी वाली फिल्में देखदेख कर संजू का मिजाज भी आशिकाना हो गया था. वह मोहल्ले की लड़कियों पर अकसर नजर रखने की कोशिश किया करता था. लेकिन कोई लड़की उस की तरफ आकर्षित नहीं हुई थी.

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संजू की दोस्ती रामविलास के बेटे गुड्डू से थी. इस वजह से उस का उस के घर आनाजाना था. आनेजाने में उस की मुलाकात गुड्डू की बहन प्रीति से हो जाती थी.

प्रीति की सुंदरता संजू के मन को भा गई. बारबार आनेजाने से उन के बीच बातचीत भी होने लगी. प्रीति संजू की निगाहों को भांप कर उस के दिल का हाल जान चुकी थी. उसे संजू पसंद था, इसलिए वह भी संजू से बात करने में गुरेज नहीं करती थी.

दोनों एक ही शौक के शिकार थे. उन के बीच अधिक बातचीत फिल्मों को ले कर ही होती थी. दोनों एकदूसरे के साथ काफी समय बिताते थे. इस के लिए वे घर के बाहर भी मिलते थे. क्योंकि घर में एक साथ बैठ कर ज्यादा देर तक बात नहीं कर सकते थे.

समय के साथसाथ दोनों को एकदूसरे का संग खूब भाने लगा. दोनों साथ में मोबाइल पर रोमांटिक मूवी भी देखते. फिर फिल्म के कलाकारों की नकल करते हुए दोनों उन के डायलौग बोलते और उसी अंदाज में एकदूसरे के पास आ कर बांहों में भर कर आंखों में आंखें डाल कर उसी तरह बात करते जैसे कलाकार फिल्म में करते थे. इस से दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आते चले गए.

दोनों दिल की धड़कनों की आवाज और सांसों की सरगम को भी बखूबी महसूस करते थे. ये नजदीकियां दोनों को अच्छी लगने लगी थीं. जब वे नजदीक होते तो अलग होने की बात दिमाग में लाने ही नहीं देते थे. लेकिन मजबूर हो कर उन को एकदूसरे से अलग होना ही पड़ता. फिल्मी कलाकारों के लव सीन की एक्टिंग करतेकरते वे दोनों भी एकदूसरे से प्यार कर बैठे. अब बस इजहार करना बाकी था.

एक दिन लव सीन की एक्टिंग करतेकरते संजू ने प्रीति को अपनी बांहों में लिया तो फिल्म के डायलौग न बोल कर उस ने अपने दिल की बात कहनी शुरू कर दी, ‘‘प्रीति, देखता तो मैं तुम्हें बचपन से आया हूं. लेकिन जब से हम एक्टिंग के जरिए एकदूसरे के नजदीक आए हैं, जब से मैं ने तुम्हें बेहद करीब से देखा तब से ये नजरें तुम्हारे सिवा कुछ और देखना ही नहीं चाहतीं.

‘‘तुम्हारी झील सी आंखों की गहराइयों में डूब कर तुम्हारे दिल का हाल जाना तो यही लगा कि तुम्हारा दिल भी मेरे पास आना चाहता है. इस बात की गवाही तुम्हारे दिल की धड़कनें देती हैं. मैं तो तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं. मुझे अपने प्यार पर भी पूरा भरोसा है कि वह भी मुझे बेइंतहा चाहता है, बस देर है तो उसे तुम्हारे द्वारा जुबां से कुबूल करने की.’’

प्रीति तो जैसे उस के पे्रम से सराबोर हो गई और उस की आंखों में देखती हुई फिल्मी स्टाइल में बेसाख्ता बोली, ‘‘कुबूल है…कुबूल है…कुबूल है मेरे महबूब.’’

यह सुनते ही संजू की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने प्रीति को अपने सीने से लगा लिया और बोल उठा, ‘‘आई लव यू…आई लव यू प्रीति.’’

उस के प्यार भरे शब्द प्रीति के कानों में रस घोल रहे थे. उसे मीठा सा सुखद एहसास हुआ तो उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और संजू के कंधे पर अपना सिर रख दिया. काफी देर तक दोनों उसी स्थिति में रहे. उस के बाद जब अलग हुए तो उन के चेहरे खिले हुए थे.

इस के बाद तो प्रीति और संजू की तूफानी मोहब्बत बड़ी तेजी के साथ अपनी बुलंदियों की तरफ बढ़ने लगी. दोनों रोज ज्यादा से ज्यादा वह एकदूसरे के पास रहने की कोशिश करते. कभी घर पर, कभी खेत पर. इस चक्कर में संजू अपने काम से जी चुराने लगा था.

उसे घर में रोज डांट पड़ती थी. लेकिन संजू पर तो प्रीति की मोहब्बत का भूत सवार था. वह प्रीति के लिए हर किसी से बगावत करने को तैयार था.

दरअसल ग्रामीण परिवेश में प्यारमोहब्बत के मामले अधिक दिनों तक छिप नहीं पाते. प्रीति और संजू की मोहब्बत के साथ भी यही हुआ. उन दोनों की अपनी दीवानगी की वजह से पूरा गांव इस प्रेम प्रकरण के बारे में जान गया था.

उधर उन दोनों प्रेमियों की हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हें एकदूसरे को देखे बिना करार नहीं आता था. लोगों को पता लग जाने के बाद दोनों हर समय चोरीछिपे की मुलाकातों का जुगाड़ बैठाने की जुगत में लगे रहते थे. गांव के बाहर एक खंडहरनुमा मकान उन की मिलनस्थली बन गया था. इसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

एक दिन गांव के बिरादरी के कुछ लोगों ने प्रीति के पिता रामविलास को बताया कि उस की लड़की गलत रास्ते पर जा रही है. यह सुन कर रामविलास आगबबूला हो उठा. उस ने अपनी पत्नी सुधा को हड़काया कि वह प्रीति को खेतों और बाजार में न जाने दे.

इसी दौरान सुधा ने अपनी आंखों से एक ऐसा नजारा देखा, जिसे देखने के बाद उस ने प्रीति की खूब पिटाई की. दरअसल, संजू प्रीति के घर के सामने से निकल रहा था तो प्रीति दरवाजे पर खड़ी थी. संजू को देख प्रीति उसे बारबार फ्लाइंग किस देने लगी.

संजू उस किस को अपने हाथ में लेने का प्रयत्न कर रहा था. यह सब सुधा ने अपनी आंखों से देख लिया था. यह सब देख सुधा ने प्रीति की पिटाई की. इस दृश्य को देखने के बाद सुधा ने पति रामविलास से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि वह अपनी लाडली के हाथ पीले कर दें, वरना किसी दिन वह इस परिवार की नाक कटवा देगी.

रामविलास इस मामले में गंभीर हो गया. उस ने उसी रोज से प्रीति के लिए बिरादरी में कोई लड़का ढूंढना शुरू कर दिया. अंतत: उस की मेहनत रंग लाई. उसे शाहजहांपुर के ही जसनपुर गांव निवासी रामवीर का बेटा आकाश प्रीति के लिए उपयुक्त लगा. वह खेती करता था.

आकाश देखने में सुंदर और अच्छी कदकाठी का था और खेती भी अच्छीखासी थी. सब कुछ देखजान कर रामविलास ने रिश्ते की बात चलाई तो जल्द ही बात बन गई. प्रीति ने विरोध करना चाहा, लेकिन पिता का गुस्सा देख कर वह कुछ न कर पाई. उसे धमकी भी मिली थी कि अगर वह शादी के लिए तैयार न हुई तो वह उसे जिंदा मार देंगे. प्रीति बेबस हो गई.

वह तो संजू के साथ भाग जाने की सोच रही थी, लेकिन पिता को संबंधों का पता चलने के बाद मारने की धमकी देने पर वह कुछ न कर पाई.

एक साल पहले प्रीति का विवाह आकाश से हो गया. वह मायके से ससुराल आ गई. यहां आ कर वह किसी तरह संजू को भूलने की कोशिश करने लगी, लेकिन वह जितना उसे भूलने की कोशिश करती, उतना ही वह ज्यादा उसे याद आता. आकाश ने उसे अपनी तरफ से भरपूर प्यार दिया, उस का खयाल रखा.

दूसरी ओर संजू अपने आप को प्रीति से दूर होने के बाद संभाल नहीं पा रहा था. रहरह कर उठतेबैठते उस के खयालों में प्रीति ही छाई रहती थी. जब बरदाश्त की हद पार हुई तो वह एक दिन प्रीति की ससुराल पहुंच गया. प्रीति उस की हिम्मत देख कर चौंक गई. लेकिन काफी अरसे बाद उसे देख कर उस के दिल को सुकून भी पहुंचा. उस से मिलने के बाद फोन पर बात करने की बात कह कर वापस आ गया.

इस के बाद उन दोनों की चोरीछिपे फोन पर बातें होने लगीं. जब भी प्रीति मायके आती तो संजू के साथ खूब समय बिताती.एक दिन आकाश ने अपनी पत्नी प्रीति को संजू से बातें करते पकड़ लिया. आकाश ने प्रीति को जम कर पीटा. उस के बाद वह प्रीति पर नजर रखने लगा.

16 नवंबर, 2020 की रात संजू ने खाना खाया. उस के बाद वह घर से निकल गया. वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उसे तलाशा गया लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. 17 नवंबर की सुबह फिर संजू की तलाश शुरू हुई तो गांव के बाहर सेठपाल के खेत में पराली के ढेर के पास संजू की चप्पलें पड़ी मिलीं.

पराली हटाने पर उस के नीचे संजू की लाश मिली. लाश मिलते ही कोहराम मच गया. घरवाले वहां पहुंच कर रोनेपीटने लगे. संजू के भाई इस्लामुद्दीन को गांव के लोगों से पता चला कि रात में उन लोगों ने संजू को गुड्डू के साथ जाते देखा था.

संजू की लाश मिलने पर गुड्डू वहां नहीं पहुंचा, न ही वह घर पर था, इसलिए पूरा शक गुड्डू  पर गया.

स्थानीय सिधौली थाने की पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई. थाने के इंसपेक्टर जगनारायण पांडेय सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मृतक के गले पर गहरे निशान थे.  शरीर पर और किसी प्रकार के निशान नहीं थे. संभवत: गला दबा कर हत्या की गई थी. इस के बाद इंसपेक्टर पांडेय ने इस्लामुद्दीन से आवश्यक पूछताछ की.

इसी बीच एसपी (ग्रामीण) अपर्णा गौतम भी मौके पर पहुंच गईं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण कर के पूछताछ की फिर आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चली गईं. चूंकि मामला 2 संप्रदायों से जुड़ा था. इस वजह से उपजे तनाव को देखते हुए गांव में पीएसी तैनात कर दी गई. लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेजने के बाद इंसपेक्टर जगनारायण पांडेय इस्लामुद्दीन को साथ ले कर थाने आ गए.

इस्लामुद्दीन की तहरीर पर इंसपेक्टर पांडेय ने गुड्डू, सेठपाल, विमल, अंगद और एक अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 147/302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस्लामुद्दीन ने इन लोगों पर संजू के मोबाइल और 80 हजार रुपए के लालच में हत्या करने का आरोप लगाया था.

21 नवंबर, 2020 को सुबह 10 बजे इंसपेक्टर पांडेय ने गुड्डू और उस के बहनोई आकाश को नियामतपुर मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से संजू का वीवो कंपनी का मोबाइल फोन भी बरामद हो गया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह बता दी.

उन्होंने बताया कि प्रीति संजू से बात करना बंद नहीं कर रही थी. इस वजह से आकाश और उस के बीच विवाद हो जाता था. आकाश अपनी पत्नी की चरित्रहीनता बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

इसी साल भैयादूज पर वह प्रीति को ले कर उस के मायके आया. प्रीति के भाई गुड्डू से कहा कि उस की बहन प्रीति का चरित्र ठीक नहीं है. उस के संजू से अवैध संबंध हैं. अब वह प्रीति को अपने साथ नहीं रखेगा, उस से तलाक ले लेगा. इस पर गुड्डू ने उसे समझाया कि ऐसा कुछ करने की जरूरत ही नहीं पडे़गी. हम लोग संजू को ही ठिकाने लगा देते हैं. आकाश ने भी आवेश में उस की हां में हां मिला दी.

16 नवंबर की शाम को संजू खाना खा कर घर से निकला तो उसे निकलता देख गुड्डू उस के पास आ गया और बातोंबातों में उसे गांव के बाहर सेठपाल के खेत पर ले गया. वहां आकाश पहले से मौजूद था.

दोनों ने मिल कर संजू को दबोच लिया और हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. गुड्डू ने संजू की पैंट की जेब से उस का मोबाइल निकाल लिया. फिर संजू की लाश को पराली के ढेर में दबा दिया.

लेकिन दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों हत्याभियुक्तों

को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

पश्चिम बंगाल चुनाव : मुसलमानों पर नजर  

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को नज़रअंदाज़ करके सत्ता की चाशनी चाटना नामुमकिन है. मुस्लिम वोट बैंक यहाँ बड़ा फैक्टर है, जो करीब 100 से 110 सीटों पर नतीजों को प्रभावित करता है. यही वजह है कि हर राजनितिक पार्टी मुसलमानों को लुभाने के लिए चुग्गा डालने में लगी है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बार 42 मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में उतारे हैं. वहीँ एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी बंगाल की जमीन पर उतरते ही सीधे  फुरफरा शरीफ की दरगाह पर सजदा करने पहुंचे क्योंकि चुनाव में फुरफुरा शरीफ की खास भूमिका रहती है.

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फुरफुरा शरीफ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के जंगीपारा विकासखंड में स्थित एक गांव का नाम है. इस गांव में स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी की दरगाह बंगाली मुसलमानों में काफी लोकप्रिय है. कहा जाता है कि मुसलामानों के लिए अजमेर शरीफ के बाद फुरफुरा शरीफ ही दूसरी सबसे पवित्र दरगाह है. यहां पर हजरत अबु बकर सिद्दीकी के साथ ही उनके पांच बेटों की मज़ारें हैं, जहाँ सालाना उर्स में बड़ी संख्या में बंगाली और उर्दू भाषी मुसलमानों की भीड़ जुटती है.

वहीँ फुरफुरा शरीफ दरगाह की देखरेख की जिम्मेदारी निभाने वाले पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी हैं जो इस बार चुनाव मैदान में ममता और ओवैसी दोनों को चुनौती देंगे. अब्बास सिद्दीकी अपने नाम के साथ पीरजादा लगाते हैं. पीरजादा फारसी शब्द है, जिसका मतलब होता है मुस्लिम धर्मगुरु की संतान. अब्बास सिद्दीकी का परिवार फुरफुरा शरीफ स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी और उनके पांच बेटों की मज़ारों की देखरेख करता आया है और वर्तमान में इसके कर्ता-धर्ता अब्बास सिद्दीकी हैं. पीरजादा अब्बास सिद्दीकी अब तक एक मजहबी शख्सियत थे, ऐसा नहीं था कि उनका राजनीति से वास्ता नहीं था, 34 वर्षीय अब्बास सिद्दीकी की कभी ममता बनर्जी से घनी छनती थी.

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जब ममता के संघर्ष के दिन थे और वह सिंगुर और नंदीग्राम में आंदोलन कर रही थीं तब फुरफुरा शरीफ के पीरजादा परिवार ने ममता का खुला समर्थन किया था. तब वहां कई मुसलमान किसानों की भी जमीन सरकारी अधिग्रहण में जा रही थी, जो ममता के आंदोलन के कारण बच सकी थी. जब तक अब्बास सिद्दीकी मौलाना के रोल में रहे तब तक ममता से उनकी खूब पटी और उनके इशारे पर मुस्लिम वोट का खूब फायदा ममता को मिला, मगर अब्बास की राजनितिक इच्छाएं जागृत होते ही ममता से उनकी राहें जुदा हो गयीं.  अपनी ऊंची महत्वाकांक्षाओं के चलते अब्बास सिद्दीकी ने ममता का साथ छोड़ कर कांग्रेस और लेफ्ट के साथ याराना गाँठ लिया. अब उनकी पार्टी ‘इंडियन सेक्यूलर फ्रंट’ बंगाल के मुसलामानों को साधने में जी-जान से जुटी है.

बंगाल के मुसलमानों के बीच युवा अब्बास सिद्दीकी का अपना फैन बेस है. अपने उत्तेजक भाषण, मजहबी तकरीरों की वजह से वह सोशल मीडिया के वर्चुअल स्पेस से लेकर हकीकत के जलसों में भी काफी भीड़ खींचते हैं. उनके कई वीडियो फेसबुक, ट्विटर पर अलग-अलग  संदर्भों में खूब वायरल हुए हैं.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुसलमान बहुत बड़ा फैक्टर है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 30 फ़ीसद है. सीटों के लिहाज़ से बात करें तो लगभग 70-100 सीटों पर उनका एकतरफ़ा वोट जीत और हार तय कर सकता है. यही वजह है कि पूरे देश में एनआरसी और सीएए का राग अलापने वाली भाजपा भी पश्चिम बंगाल में इस मुद्दे पर चुप मार जाती है, ये जानते हुए भी कि मुसलमान उसके खेमे में झाँकने नहीं आएगा.

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गौरतलब है कि कांग्रेस और लेफ़्ट का गठबंधन पश्चिम बंगाल में पहले ही हो चुका है. इस बार उनके साथ फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी भी हैं. राजनीति में सीधे तौर पर अब्बास की पहली बार एंट्री हुई है. पिछले सप्ताह तीनों पार्टियों ने संयुक्त रूप से एक रैली की थी, जिसके बाद कांग्रेस में इस गठबंधन के बाद कुछ बग़ावती सुर भी सुनाई दिए थे. रैली में अब्बास सिद्दीक़ी के व्यवहार को देखकर लेफ्ट पार्टी के स्थानीय नेताओं में भी इस गठबंधन को लेकर थोड़ी असहजता देखने को मिली थी. पिछले चुनाव में ममता बैनर्जी का साथ देने वाले अब्बास सिद्दीकी ने असदुद्दीन ओवैसी को नाउम्मीद कर कांग्रेस और लेफ्ट से हाथ तो मिला लिया है लेकिन वो कितना फायदा पहुंचा पाते हैं इसका खुलासा 2 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद ही होगा.

दूसरी तरफ़ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी बिहार में पांच सीटों पर खाता खोलने के बाद बड़ी उम्मीद लेकर बंगाल के चुनावी मैदान में उतरे हैं. राजनितिक जानकारों की मानें तो ओवैसी और सिद्दीक़ी दोनों बिल्कुल अलग भूमिका में हैं. ओवैसी का पश्चिम बंगाल में कोई दख़ल नहीं है. ना तो उनकी भाषा बंगाली मुसलमानों जैसी है और ना ही बंगाल के बारे में उनको ज़्यादा पता है, ना ही वो वहाँ के रहने वाले हैं. ऐसे में सोचने वाली बात है कि बंगाली मुसलमान उनको वोट क्यों देंगे?

जबकि पीरजादा अब्बास सिद्दीकी का मामला अलग है. बंगाली मुसलमान का उन पर विश्वास है लेकिन उनका कुछ दख़ल हुगली ज़िले की सीटों पर ही है, जहाँ से वो ताल्लुक़ रखते हैं. उसके बाहर उनका कोई प्रभुत्व नहीं है. उनकी महत्वाकांक्षा भी बहुत बड़ी हैं. उन्होंने कांग्रेस और लेफ्ट से हाथ तो मिला लिया है मगर सीटों के बंटवारे में वह हिस्सा भी बड़ा ही चाहेंगे.लिहाज़ा आने वाले दिनों में सीटों के बंटवारे को लेकर मामला फंस सकता है. इसलिए ओवैसी और सिद्दीक़ी को एक नहीं कहा जा सकता क्योंकि दोनों का प्रभाव का स्तर अलग है. ओवौसी और सिद्दीक़ी के बीच के इस अंतर को कांग्रेस और लेफ़्ट भी समझते हैं और शायद इसलिए उन्होंने फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के अब्बास सिद्दीक़ी के साथ गठबंधन किया है ताकि थोड़े बहुत मुस्लिम वोट उनकी झोली में आ सकें.

वहीँ ममता बनर्जी कहती हैं कि उनको अपने मुस्लिम मतदाताओं पर पूरा भरोसा है. उन्हें यकीन है कि जो मुस्लिम मतदाता उनके साथ पहले से जुड़े हुए हैं वो उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. इस भरोसे को कायम रखने के लिए ही ममता ने 42 मुस्लिम चेहरे चुनाव मैदान में उतारे हैं. लेकिन अब्बास और ओवैसी कुछ मुस्लिम वोट तो ज़रूर खींच ले जाएंगे. ऐसे में कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों पर हक़ जमाने के चलते मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

पश्चिम बंगाल की त्रिकोणीय बिसात को देखते हुए जानकार कहते हैं कि बंगाली मानुस ममता में ही ज़्यादा विश्वास रखता है. भाजपा के बवाल से भले तृणमूल कांग्रेस कुछ चुनौती का सामना कर रही है, मगर ममता ने जिस तरह हर तबके को ध्यान में रख कर उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, वह टीएमसी के लिए काफी आशा जगाती है. शुक्रवार को अपना लकी डे मानने वाली ममता बनर्जी ने फिलहाल जो 291 कैंडिडेट के नाम जारी किए हैं उनमें 50 महिलाएं, 42 मुस्लिम, 79 एससी, 17 एसटी और 103 सामान्य वर्ग के उम्मीदवार हैं. लिस्ट में 100 ऐसे चेहरे हैं, जिन्हें पहली बार मौका दिया जा रहा है. कई सीटों पर फेरबदल किया गया है. ममता बनर्जी का कहना है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस किसी के साथ समझौता नहीं करने वाली है. जमीनी स्तर पर साफ़ छवि और भ्रष्टाचार मुक्त चेहरे को महत्व दिया जा रहा है. लिस्ट में कई स्टार उम्मीदवार भी हैं. कम से कम 100 उम्मीदवार 50 साल से कम उम्र के हैं. इनमें से तीस उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी उम्र 40 साल से भी कम है. 80 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को ममता ने टिकट नहीं दिया है. वहीँ 24 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे गए हैं. नंदीग्राम से खुद ममता बनर्जी टीएमसी छोड़ भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ चुनाव में उतरेंगी. नंदीग्राम को शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है. अगर वो यहाँ से हारे तो भाजपा की काफी छीछालेदर होगी. इस सीट पर मुकाबला काफी रोचक होने वाला है. 9 मार्च को ममता नंदीग्राम जाएंगी और 10 मार्च को हल्दिया में नामांकन दाखिल करेंगी. 7 मार्च को ममता पदयात्रा पर निकलेंगी और उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रैली के लिए पहुंच रहे हैं.

गौरतलब है कि ममता बनर्जी पिछले 10 साल से बंगाल पर राज कर रहीं हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ अपने मुस्लिम मतदाता को साधे रखने की चुनौती उनके सामने है. उन्हें इस बात का बखूबी अंदाज़ा है कि लेफ्ट गठबंधन अब्बास सिद्दीक़ी के सहारे और भाजपा ओवौसी के सहारे टीएमसी के मुसलमान वोटर में सेंधमारी की कोशिश में जुटी है.

पश्चिम बंगाल में इस बार 8 फेज में वोटिंग होगी. 294 सीटों वाली विधानसभा के लिए वोटिंग 27 मार्च (30 सीट), 1 अप्रैल (30 सीट), 6 अप्रैल (31 सीट), 10 अप्रैल (44 सीट), 17 अप्रैल (45 सीट), 22 अप्रैल (43 सीट), 26 अप्रैल (36 सीट), 29 अप्रैल (35 सीट) को होनी है. काउंटिंग 2 मई को की जाएगी.

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