चुनावी बेला में बंगाल की धरती पर आजकल 'जय श्री राम' के नारे खूब लग रहे हैं. हर तरफ भगवा झंडे लहरा रहे हैं. इन दिनों शायद ही कोई दिन होता हो जब प्रदेश में भाजपा की कोई चुनावी रैली या सभा नहीं होती है. भाजपा के बड़े दिग्गज बंगाल में डेरा जमा कर बैठे हैं. केंद्र के बड़े-बड़े नेता और दूसरे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगातार यहाँ का दौरा कर रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री मंच से 'सोनार बांग्ला' बनाने के वादे करते सुने जा रहे हैं. नरेंद्र मोदी कहते हैं बंगाल में "आसोल परिबोर्तन' होगा. दीदी की सत्ता हथियाने के लिए खूब हथकंडे अपनाये जा रहे हैं.

सरकार को घेरने और परेशान करने के लिए सीबीआई और ईडी का भी भरपूर इस्तेमाल हो रहा है. भाजपा की ओर बंगाल के ब्राह्मण, बनिए, कायस्थ का काफी रुझान है. इनका भरपूर समर्थन भी भाजपा को मिल सकता है. ये तीनों जातियां धर्म की दुकानदारी की साझेदार हैं, मगर बंगाल में बड़ी संख्या ओबीसी, दलित और मुसलामानों की भी है, उनके वोट आखिर भाजपा की झोली में क्यों जाएंगे? फिर वह तबका जो पढ़ा लिखा है, राजनितिक समझ रखता है, युवा है, शिक्षित मगर बेरोज़गार है, जिसके लिए भाजपा के पास ना कोई योजना है ना कोई वादा है, वो भाला भाजपा को वोट क्यों देगा?

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पश्चिम बंगाल में महिला वोटरों को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, जो ममता को अपनी शक्ति के रूप में देखती हैं. ममता सरकार ने प्रदेश की लड़कियों को साक्षर और स्वाबलंबी बनाने के लिए कई योजनाएं भी चलाई हैं, जिनमें कन्याश्री और सौबुज साथी योजनाओं को खूब प्रशंसा मिली है. सौबुज साथी योजना के तहत ममता सरकार ने नौवीं से बारहवीं कक्षा तक छात्र - छात्राओं को मुफ्त साइकिलें दी हैं ताकि उनका स्कूल ना छूटे और वे स्वाबलंबी हों . ऐसे में विधानसभा चुनाव में ये देखना खासा दिलचस्प रहेगा कि बंगाल की जनता भाजपा के मंदिर, पूजा, आरती और ब्राह्मणों के सशक्तिकरण वाला सोनार बांग्ला बनाएगी या प्रदेश के युवाओं और महिलाओं के साक्षर और सशक्त होने को महत्त्व देगी.

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