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जूनियर, सीनियर और सैंडविच : मोनिका ऑफिस जानें से पहले किस बात पर नाराज थी

सोनिका सुबह औफिस के लिए तैयार हो गई तो मैं ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटी, आराम से नाश्ता कर लो, गुस्सा नहीं करते, मन शांत रखो वरना औफिस में सारा दिन अपना खून जलाती रहोगी. मैनेजर कुछ कहती है तो चुपचाप सुन लिया करो, बहस मत किया करो. वह तुम्हारी सीनियर है. उसे तुम से ज्यादा अनुभव तो होगा ही. क्यों रोज अपना मूड खराब कर के निकलती हो?’’

‘‘आप को क्या पता, मौम, बस मुझे और्डर दे कर इधरउधर घूमती रहती है. फिर कभी कहती है, यह अभी तक नहीं किया, इतनी देर से क्या कर रही हो? जैसे हम जूनियर्स उस के गुलाम हैं. हुंह, मैं किसी दिन छोड़ दूंगी सब कामवाम, तब उसे फिर से किसी जूनियर को सारा काम सिखाना पड़ेगा.’’

‘‘नहीं, सोनू, मैनेजर्स अपने जूनियर्स के दुश्मन थोड़े ही होते हैं. नए बच्चों को काम सिखाने में उन्हें थोड़ा तो स्ट्रिक्ट होना ही पड़ता है. तुम्हें तो औफिस में सब पर गुस्सा आता है. टीमवर्क से काम चलता है, बेटा.’’

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‘‘मौम, इस मामले में आप मुझे कुछ न कहो तो अच्छा है. मैं जानती हूं आप को किस ने सिखा कर भेजा है. वे भी सीनियर हैं, मैनेजर हैं न, वे क्या जानें किसी जूनियर का दर्द.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो, सोनू, वे तुम्हारे पापा हैं.’’

‘‘मुझे तो अब वे एक सीनियर मैनेजर ही लगते हैं. मैं जा रही हूं, बाय,’’ वह नाश्ता बीच में ही छोड़ कर खड़ी हो गई तो मैं ने कहा, ‘‘सोनू, नाश्ता तो खत्म करो.’’

‘‘मैनेजर साहब को खिला देना, उन्हें तो जाने की जल्दी भी नहीं होगी. मुझे जाना है वरना मेरी मैनेजर, उफ्फ, अब बाय,’’ कह कर सोनू चली गई.

मैं प्लेट में उस का छोड़ा हुआ नाश्ता रसोई में रखने चली गई. इतने में आलोक तैयार हो कर आए, डायनिंग टेबल पर बैठते हुए बोले, ‘‘तनु, सोनू कहां है, गई क्या?’’

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‘‘हां, अभी निकली है.’’

‘‘अरे, आज उस ने मुझे बाय भी नहीं कहा.

मैं चुप, गंभीर रही तो आलोक फिर बोले, ‘‘क्या हुआ, फिर उस का मूड खराब था क्या?’’

‘‘हां.’’

‘‘वही सीनियर के लिए गुस्सा?’’

‘‘हां,’’ मैं जानती थी अब उन के कौन से डायलौग आने वाले हैं और वही हुआ.

‘‘तनु, उसे प्यार से समझाओ, सीनियर के साथ बदतमीजी अच्छी बात नहीं है. वे जूनियर्स की भलाई के लिए ही टोकते हैं, उन्हें गाइड करते हैं. सोनू जरूर औफिस में भी लापरवाही करती होगी. घर में भी तो कहां वह कोई काम करना चाहती है. वह लापरवाह तो है ही. इन जूनियर्स को झेलना आसान काम नहीं होता. मुझ से तो वह आजकल ठीक से बात ही नहीं करती है. उसे प्यार से समझाओ कि काम में मन लगाए. लड़कियां औफिस में गौसिप करती हैं,’’ बातें करतेकरते आलोक ने नाश्ता खत्म किया. मैं भी उन के साथ ही नाश्ता कर रही थी. चुपचाप उन की बातें सुन रही थी. आलोक ने अपना टिफिन, बैग और कार की चाबी उठाई और औफिस के लिए निकल गए. मैं ‘क्या करूं, इन बापबेटी का’ की स्थिति में अपना सिर पकड़े थोड़ी देर के लिए सोफे पर ही पसर गई.

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आजकल कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं, लगता ही नहीं कि घर में एक पिता है, एक बेटी है. अब तो हर समय यही महसूस होता है कि घर में एक सीनियर है, एक जूनियर है और एक सैंडविच है, मतलब मैं. दोनों के बीच पिसती हूं आजकल. अपनी स्थिति पर कभी गुस्सा आता है, कभी हंसी आ जाती है. वैसे, दोनों की प्रतिक्रियाएं देखसुन कर हंसी ही ज्यादा आती है.

आलोक दवाओं की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नैशनल सेल्स मैनेजर हैं. उन्हें नौकरी करते 28 साल हो रहे हैं. हमारी इकलौती बेटी सोनिका एक बड़ी कंपनी में सीए की अपनी आर्टिकलशिप कर रही है. वह अपने औफिस में सब से जूनियर है. एक तो ठाणे से लोकल ट्रेन की भीड़ में दादर आनेजाने में उसे थकान होती है, ऊपर से पता नहीं क्यों वह अपनी टीम से नाराज सी रहती है. उस की शिकायतें कुछ इस तरह की होती हैं, ‘मेरी मैनेजर शिवानी को खुशामद पसंद है. मैं यह सब नहीं करूंगी. मुझ से कोई कितना भी काम सारा दिन करवा ले पर मैं झूठी तारीफें नहीं करूंगी किसी की. शिवानी अपने हिसाब से करती है हर काम. उस का घर तो 20 मिनट की दूरी पर है, कार से आतीजाती है. मुझे आनेजाने में सब से ज्यादा टाइम लगता है. यह भी नहीं सोचता कोई, रात 8 बजे तक बिठाए रखते हैं मुझे. खुद सब निकल जाते हैं साढ़े 5-6 बजे तक. सारा दिन नहीं बताएगा कोई पर शाम होते ही सारा काम याद आता है सब को.’

शुरूशुरू में सोनिका ने जब ये बातें बतानी शुरू कीं घर में, आलोक ने समझाना शुरू किया, ‘‘अगर मैनेजर अपनी तारीफ से खुश होती है तो क्या बुराई है इस में. सब को अपनी तारीफ अच्छी लगती है, खासतौर पर लेडीज को. अगर इस से वह खुश रहती है तो 1-2 शब्द तुम भी कह दिया करो, क्या फर्क पड़ता है और आनेजाने में तुम्हें जो परेशानी होती है उस से किसी सीनियर को क्या मतलब. काम तो करना ही है न, मुंबई में तो इस परेशानी की आदत पड़ ही जाती है धीरेधीरे. और हो सकता है शाम को ही कुछ अर्जेंट काम आता हो. तुम्हारी कंपनी के कई क्लाइंट विदेशों में भी तो हैं.’’

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बस, यह कहना आलोक का, फिर सोनू की गर्जना, ‘‘पापा, इस बारे में अब मुझे आप से कोई बात ही नहीं करनी है, लगता है अपने पापा से नहीं किसी सीनियर से बात कर रही हूं.’’

मैं दोनों के बीच सैंडविच बनी कभी आलोक का, कभी सोनिका का मुंह ताकती रह जाती. कुछ महीनों पहले आलोक का औफिस पवई से यहीं ठाणे शिफ्ट हो गया है. अब उन्हें आराम हो गया है. कार से जाने में 10 मिनट ही लगते हैं. जबकि सोनू डेढ़ घंटे में औफिस पहुंचती है. आनेजाने में रोज उसे 3 घंटे लगते ही हैं. रात साढे़ 10 बजे तक आती है, बहुत ही थकी हुई, खराब मूड में. शनिवार, रविवार दोनों की छुट्टी रहती है. आजकल मैं हर समय किसी बड़ी बहस को रोकने की कोशिश में लगी रहती हूं. पति और बेटी दोनों अपनी जगह ठीक लगते हैं. दोनों का अपनाअपना नजरिया है हर बात को देखने का. पर दोनों ही चाहते हैं मैं उसी की हां में हां मिलाऊं.

एक दिन आलोक शनिवार को रात के 11 बजे तक लैपटौप पर काम कर रहे थे. सोनू कुछ हलकेफुलके मूड में थी. उस ने छेड़ा, ‘‘आज एक सीनियर रात तक काम कर रहा है? किसी जूनियर को बोल कर आराम करो न.’’

आलोक को उस के सीनियर पुराण पर हंसी आ गई, कहने लगे, ‘‘देख लो, कितनी मेहनत करनी पड़ती है मैनेजर को, सोमवार को एक मीटिंग है, उस की तैयारी कर रहा हूं बैठ कर.’’

‘‘हुंह,’’ कह कर सोनू ने सिर को एक झटका दिया. मुझे हंसी आ गई. सोनू खुद भी हंस पड़ी. शनिवार की रात थी, अगले दिन छुट्टी थी, इसलिए सोनू अच्छे मूड में थी वरना संडे की शाम से उस का मूड खराब होना शुरू हो जाता है. पता नहीं कहां क्या बात है जो वह अपने सीनियर्स से खुश नहीं है. उस के मन में सब के लिए बहुत गुस्सा भरा है.

मैं बहुत देर से ये सब बातें सोच रही थी. अचानक डोरबैल बजी. मेड आई तो मैं घर के कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन रात को 11 बजे आई सोनू. मैं ने उसे पुचकारा, ‘‘आ गई बेटा, बहुत देर हो गई आज, मेरी बच्ची थक गई होगी.’’

उस ने इशारे से पूछा, ‘‘पापा कहां हैं?’’

‘‘सो गए हैं,’’ मैं ने धीरे से बताया.

वह बड़बड़ाई, ‘देखा, कैसे टाइम से सो पाते हैं सीनियर्स.’

मुझे हंसी आ गई. उस का बड़बड़ाना जारी था, ‘ऐसे ही घर जा कर शिवानी, मिस्टर गौतम, सब सो रहे होंगे.’

मैं ने उस के सिर पर हाथ रखा, ‘‘सुबह भी गुस्से में निकलती हो, शांत रहो, बेटा.’’

वह चिढ़ गई, ‘‘क्या शांत रहूं, आप को क्या पता औफिस में क्या पौलिटिक्स चलती है.’’

मैं चुप रही तो वह मुझ से चिपट गई, ‘‘मौम, आई हेट माई सीनियर्स.’’

‘‘अच्छा, चलो अब मुंहहाथ धो लो.’’

अगले दिन सुबह ही हंगामा मचा था घर में, आलोक और सोनू दोनों ही तैयार हो रहे थे जाने के लिए. मैं दोनों का टिफिन पैक कर नाश्ता डायनिंग टेबल पर रख रही थी. आलोक का मोबाइल बजा. आलोक की गुस्से से भरी आवाज पूरे घर में फैल गई, ‘‘काम तो करना पडे़गा. सेल्स की क्लोजिंग का टाइम है और तुम्हें छुट्टी चाहिए. इस समय कोई छुट्टी नहीं मिलेगी. इस बार टारगेट पूरा नहीं किया तो इस्तीफा ले कर आना मीटिंग में. इन्सैंटिव की बात करना याद रहता है, काम का क्या होगा. मैं करूंगा तुम्हारा काम?’’

अचानक सोनिका पर नजर पड़ी मेरी, वह अपनी कमर पर हाथ रखे आलोक को घूरती हुई तन कर खड़ी थी. मुझे मन ही मन हंसी आ गई. आलोक के फोन रखते ही सोनिका शुरू हो गई, ‘‘पापा, आप किस से बात कर रहे थे?’’

‘‘एक नया लड़का है. महीने का आखिर है, हमारी सेल्स क्लोजिंग का टाइम है और जनाब को छुट्टी चाहिए. पिछले महीने भी गायब हो गया था. पक्का कामचोर है.’’

‘‘पापा, आप ऐसे बात नहीं कर सकते किसी जूनियर से, कितना खराब तरीका था बात करने का.’’

‘‘तुम चुप रहो, सोनू. मेरा मूड बहुत खराब है,’’ आलोक ने थोड़ा सख्ती से कहा.

‘‘मैं जा रही हूं, मौम.’’

‘‘अरे, नाश्ता?’’

‘‘नो, आई एम गोइंग. आई हेट मैनेजर्स.’’

आलोक भी तन कर खड़े हो गए, ‘‘ये आजकल के बच्चे, बस मोटी तनख्वाह चाहिए, कोई काम न कहे इन से,’’ आलोक ने खड़ेखड़े जूस के कुछ घूंट पिए और औफिस के लिए निकल गए. एक सीनियर, एक जूनियर, दोनों जा चुके थे और अब, बस मैं थी दोनों के बीच बनी सैंडविच. दोनों के सोचने के ढंग का जायजा लेते हुए मैं ने मन ही मन मुसकराते हुए अपना चाय का कप होंठों से लगा लिया.

जंतरमंतर : सिराज में अचानक बदलाव देखकर लोगों को क्या लगा -भाग 2

“अरे नहीं, मैं सीरियस हूं. अच्छा शाम में मेरे साथ औफिस चलना, तो खुद देख लेना,” सिराज ने उठते हुए कहा और किसी होटल से खाना और्डर करने लगा.

‘पागल हो गया है ये,’ मैं ने दबी दबी हंसी के साथ आबिद के कान में कहा तो वह भी खीखी करने लगा. फिर शाम में हम उस के साथ उस के औफिस गए. वहां सचमुच में बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे जिस में सिराज एक तांत्रिक के रूप में नज़र आ रहा था. और तो और, वहां बहुत से लोग भी जमा थे. ये सब देख कर हम तो दंग ही रह गए.

फिर सिराज ने तांत्रिकों वाला वेश बनाया और अपना आसन ग्रहण किया. अपने एक चेले को बुला कर उस ने अपने पहले ‘कस्टमर’ को अंदर भेजने को कहा. एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अंदर आया. अंदर आते ही उस ने सिराज बाबा का हाथ चूम कर अपनी आंखों पर लगाया और सामने बैठ गया.

“हां, बोलो इरफ़ान, कुछ फायदा हुआ या नहीं,” सिराज ने अपनी आवाज़ को थोड़ा भारी बनाते हुए उस आदमी से पूछा. “बाबा, इस बार तो आप की तावीज़ ने कमाल ही कर दिया. इस बार शेयर बाजार में मुझे पूरे एक लाख रुपयों का फायदा हुआ,” इरफ़ान ने एक बार फिर बाबा का हाथ चूम लिया और अपनी आंखों पर लगा लिया.

“बहुत अच्छे. इस जुमेरात को 3 लोगों को खाना खिला देना. ध्यान रहे, खाना उन को सूरज डूबने के ठीक 18 मिनट बाद ही कराना है. थोड़ा भी आगेपीछे नहीं, वरना नुकसान उठाना पड़ सकता है,” सिराज ने इरफ़ान को हिदायत देते हुए कहा और एक तावीज़ उस को दे दिया.

“जैसा आप कहें बाबा. यह एक छोटा सा नज़राना मेरी तरफ से,” इरफ़ान ने अपनी जेब से सौ रुपए के नोटों की एक गड्डी निकाली और सिराज के क़दमों में रख दी और सिर झुकाए बाहर चला गया. एक झटके में 10 हज़ार रुपयों की कमाई देख हमारा तो मुंह खुला रह गया, जबकि सिराज ने अपनी बायीं आंख दबा कर हमें अपने दांत दिखाए.

“यह क्या मामला है भाई. तुम क्या शेयर बाजार एक्सपर्ट बन गए हो,” आबिद ने धीमी आवाज़ में पूछा. “अरे कोई एक्सपर्ट नहीं हूं. पिछले 4 महीनों से इस को शेयर बाजार में घाटा हो रहा था. कभी न कभी तो फायदा होता ही. वह इस बार हो गया,” सिराज ने हंसते हुए कहा. “और 4 बार से आ कर इस ने तुम्हारे दांत नहीं तोड़े,” मैं ने हंसते हुए कहा.

“मैं उस को हर बार एक तावीज़ देता हूं और साथ में कोई ऐसी शर्त रख देता हूं जो पूरी करनी थोड़ी मुश्किल हो. फिर उस में कोई कमी निकाल कर अगला तावीज़ दे देता हूं. जैसे इस बार इस को मैं ने बोला, ठीक 18 मिनट बाद खाना खिलाना. अगर इस को घाटा हुआ तो मैं बोल दूंगा तुम ने ज़रूर 1-2 मिनट आगेपीछे कर दिया होगा. और फिर इस को अगली तावीज़ दे

दूंगा,” सिराज ने गुलाबजामुन मुंह में डालते हुए कहा. “और जब इस के पास पैसे ख़त्म हो जाएंगे, तो फिर?” आबिद ने पूछा. “तो मेरे पास कौन सी भक्तों की कमी है. बाहर देखो, कितने बैठे हैं इंतज़ार में. 10 में से 2-4 लोगों के काम तो खुद भी हो ही जाते हैं, फिर वे दस और लोगों को ले आते हैं,” सिराज ने दांत दिखाते हुए कहा.

“आज के ज़माने में कोई इतना बेवक़ूफ़ कैसे हो सकता है,” मैं ने अपना सिर अविश्वास से हिलाते हुए कहा. मुझे तो फिर भी बात कुछ जम नहीं रही थी. “अच्छा रुको, अगले भक्त से मिलते हैं,” सिराज ने मुझे मिठाई का डब्बा देते हुए कहा. उस के पास जो भी आता, कुछ न कुछ खानेपीने का सामान लाता रहता.

इस बार एक आदमी और एक औरत अंदर आए. आते ही आदमी ने सिराज के हाथ चूम कर अपनी आंखों से लगा लिए. शायद बाहर बैठे उस के चेले लोगों को ये सब करने को कहते होंगे. “आइएआइए, क्या परेशानी है आप को?” सिराज ने गंभीर आवाज़ में पूछा.

“बाबा, मेरा नाम सुरेश है और यह मेरी पत्नी कजरी. हमारी शादी को 5 साल हो गए, लेकिन अभी तक हमारी कोई संतान नहीं है. हम कई मंदिरों व दरगाहों पर भी गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बड़ी उम्मीद ले कर आप के पास आए हैं.” उस आदमी ने बड़ी दयनीय सी आवाज़ में कहा.

रिलीज से पहले विवादों में फंसी आलिया भट्ट की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ जानें पूरा मामला

मुंबई  कांग्रेस के विधायक अमीन पटेल ने फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ पर आपत्ति जताते हुए नाम बदलने की मांग की है. और दावा करते हुए कहा है कि इससे शहर का नाम खराब होगा. इस फिल्म में आलिया भट्ट गंगूबाई की भूमिका अदा कर रही हैं.

एक समय ऐसा था कि गंगूबाई 1960 के दशक के दौरान की सबसे शक्तिशाली मैडम थी. वह विधानसभा को संबोधित करते हुए कहती हैं कि कमाठीपुरा इलाका अब बदल गया है कि पटेल मुंबई के दक्षिण मुंबादेवी इलाके क्षेत्र के विधायक है. विधायक ने कहा कि अब इस क्षेत्र में बहुत बदलाव आ गया है.

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पहले इस इलाके में बहुत कुछ अलग था लेकिन इस समय में बहुत ज्यादा बदलाव आ गया है. अब यहां पर बहुत ज्यादा बदलाव आ गया है. लोगों के रहन-सहन में बदलाव आ गया है. आगे उन्होंने कहा कि फिल्म का नाम बदलना चाहिए.

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इस फिल्म के रिलीज से पहले ही इस फिल्म पर संकट के बादल मडराने लगे हैं. बता दें कि इस फिल्म का प्रर्दशन 20  जुलाई को होगा.

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बता दें कि गंगूबाई गुजरात के कठियावाड़ की निवासी थी, जिस वजह से इस फिल्म का नाम गंगूबाई काठियावाडी रखा गया है. वह मात्र 16 साल की उम्र में अपने पिता के अकाउंटेट के साथ प्यार में पड़ गई थी, और वह अपने घर को छोड़कर मुंबई भाग गई थी, जिसके बाद से इस फिल्म का नाम गंगूबाई काठियावाड़ा पड़ा.

एक समय मुंबई में ऐसा था जब गंगूबाई का सिक्का चलता था, पूरे मुंबई के अंदर , जिसे ध्यान में रखते हुए फिल्म की कहानी को लिखा गया है.

शादी के बंधन में बंधी जेपी दत्ता की बेटी, देखें खूबसूरत फोटोज

बॉलीवुड के दिग्गज निर्देशक जेपी दत्ता की बेटी प्रिया दत्ता शादी के बंधन में बंध गई हैं. बता दें कि निधी की शादी असिस्टेंट डॉयरक्टर रह चुके बिनॉय गांधी के साथ हुई है. इस खूबसूरत वेडिंग की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. फैंस भी इस तस्वीर को देखऩे के बाद उ्न्हें खूब सारी बधाईयां दे रहे हैं.

दुल्हन बनी निधी शादी के जोड़े में बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं तो वहीं बिनॉय भी उनके साथ जच रहे हैं. शादी की तस्वीर में आप देख सकते हैं कि दुल्हन बनी निधी अपनी मां के साथ ट्विनिंग करती नजर आ रही है.

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बता दें कि निधी और उनकी मां ने लगभग एक जैसे ही कपड़े पहने हुए थे. दोनों मां बेटी बेहद ज्यादा प्यारी लग रही हैं.वहीं जेपी दत्ता हमेशा की तरह सिंपल अंदाज में नजर आएं.

अगर शादी के वैन्यू की बात करें तो यह पिंकसिटी के रामबाग पैलेस को चुना गया था.बता दें कि निधी का दुल्हन वाला जोड़े को मशहूर डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने डिजाइन किया था. वहीं बता दें कि मनीष मल्होत्रा ने शादी में भी शिरकत की थी.

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इस लिस्ट में अनु मलिक से लेकर अर्जुन रामपाल तक का नाम शामिल है. सभी सितारे इस शादी का हिस्सा बनकर इस शादी की खूबसूरती में चांद लगा दी थी.

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वहीं अर्जुन रामपाल अपनी ग्रर्लफ्रेंड और बेटे के साथ इस शादी में पहुंचे, बता दें कि अर्जुन राम पाल अपने बेटे के साथ हंसते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसमें दोनों बाप बेटे क्यूट लग रहे हैं.

वहीं निधि की मेहंदी की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. जिसमे निधि ने पिंक यलो कलर का ड्रेस पहना हुआ है. किसी परी से कम नहीं लग रही हैं. निधि अपनी इस खूबसूरत सी एंटायर में. निधि कि इस वेडिंग कि तस्वीर को सोशल मीडिया पर लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

चैन की नींद

लेखिका-अल्का पांडे

Womens Day Special: चैन की नींद-भाग 3

लेखिका-अल्का पांडे

‘इस बात पर इतनी परेशान क्यों हो, मना कर दो. वैसे मुझे लगता है कि तुम कुछ ज्यादा हीएक दिन स्कूल के बाद मानस ने उसे रोक कर कहा, ‘आज तो तुम को मेरे साथ कौफी़ पीने चलना ही होगा.’

निती ने कहा, ‘कोई जबरदस्ती है, मुझे तुम्हारे साथ कौफी पीने नहीं जाना है.’मानस ने कहा, ‘तुम्हें चलना तो पड़ेगा, मेरे फ्रैंड्स ने मुझे चैलेंज किया है कि मैं तुम्हारे साथ कौफी पीने जा कर दिखाऊं.’

‘यह तुम्हारी प्रौब्लम है, मैं क्यों जाऊं?’ कहते हुए वह आगे बढ़ने लगी तो मानस ने उस का हाथ पकड़ लिया. निती को गुस्सा आ गया, उस ने उसे एक झापड़ मार दिया. उस समय स्कूल के और छात्रछात्राएं भी थे. उन के सामने झापड़ खा कर मानस बौखला गया. उस ने धमकी दी, ‘मैं तुम को छोडूंगा नहीं.’

निती आगे बढ़ गई. दूसरे दिन क्लास में जब संजय सर मैथ्स पढ़ा कर बाहर निकले तो क्लास के सब छात्रछात्राएं झुंड बना कर मोबाइल पर वीडियो देखने लगे. निती ने आ कर कहा, ‘तुम लोग क्या देख रहे हो, हम को भी दिखाओ.’

इस पर कुछ छात्र मुंह दबा कर हंसने लगे, कुछ वहां से हट गए. निती को कुछ समझ न आया. उस ने प्रिया के हाथ से मोबाइल ले कर देखा. उस पर उस ने जो देखा, उसे देख कर स्तब्ध रह गई. उसी की गंदीगंदी वीडियो थीं.  वह समझ गई कि यह मानस ने ही उस के झापड़ का बदला लेने के लिए उस का झूठा, अश्लील वीडियो बना कर वौयरल किया है. पर वह तो वहां था ही नही, शायद आज स्कूल ही नहीं आया था. निती के मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया. वह किसी तरह घर आई, तो बदहवास सी अपने कमरे में गई. उस ने आवेश में अपना बस्ता उठा कर फेंक दिया. उस की दृष्टि के सामने अपना वह अश्लील वीडियो तैर रहा था. वह लज्जा से पानपानी हुई जा रही थी. अब वह कैसे किसी से आंख मिलाएगी. सब उस के बारे में क्या सोचेंगे. उस के कहने से कोई मानेगा क्या कि यह वीडियो झूठा है. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. तभी उसे  चाकू रखा दिख गया. उस ने उठा लिया अपनी हाथ की नस काटने के लिए. वह नहीं जी सकती इतना अपमान ले कर. पर इस से पूर्व कि वह अपनी नस काटती, पता नहीं कैसे मम्मा आ गईं. उस की मनोदशा से अनभिज्ञ  उन्होंने कहा, ‘अरे, यह कमरे का क्या हाल बना रखा है तुम ने? इतनी बड़ी हो गई हो पर कभी सामान ठीक से नहीं रखती.’

सुनते ही निती को पता नहीं क्या हुआ, उस ने अपनी नस काटने के बजाय मम्मा पर उसी चाकू से लगातार वार पर वार कर दिए. निशा इस हमले के लिए तैयार न थी, सो, संभल भी न पाई और गिर पड़ी. निती पागलों की तरह मम्मा पर वार करती रही और चिल्लाती रही, ‘सब तुम्हारी वजह से हुआ है, सब तुम्हारी वजह से हुआ.’   जब उसे होश आया तब तक मम्मा इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थीं. अब उसे सुध आई कि उस ने क्या कर डाला. निती मम्मा से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी.

उपन्यास की अंतिम पंक्तियां पढ़तेपढ़ते कविता को  अनायास ही अपनी वर्षों पुरानी छात्रा नितारा की याद आ गई. उस की मां की भी तो हत्या हुई थी. कुछ दबे शब्दों में यह अफवाह उड़ी थी कि नितारा ने ही अपनी मम्मा को मार दिया. पर इस पर भला कौन विश्वास करता. नितारा जैसी शांत लड़की ऐसा क्यों करती. हां, अपनी मम्मा की मौत के बाद नितारा ने वह स्कूल अवश्य छोड़ दिया था. ज्ञात हुआ था कि वह कहीं बाहर पढ़ने चली गई थी.

कविता की प्रिय छात्रा थी नितारा. मेधावी पर हमेशा चुप, अपने में गुमसुम रहने वाली नितारा के प्रति न जाने क्यों कविता को विशेष स्नेह उमड़ता था. उसे नितारा को देख कर सदा यह अनुभव होता था कि इस के अंदर बहुतकुछ है जो यह कहना चाहती है. इसीलिए वह उस पर विशेष स्नेह रखती थी और उस से स्कूल के बाद अकसर ही बात कर लिया करती थी. पर समय की रेत में नितारा की स्मृति कहीं दब गई थी जो फिर से उभर आई.

इस उपन्यास की नायिका निती की बहुत बातें नितारा की ही कहानी लग रही थीं. क्या पता यह कहानी उसी की हो? नहींनहीं, यह तो मात्र संयोग है. सोच कर कविता ने अपनी सोच को पिटारे में बंद कर दिया. पर उस की सोच ढीठ बच्चे की तरह मना करने पर भी बारबार पिटारे से बाहर झांकने लगती. कविता चाह कर भी इस उपन्यास की नायिका निती और नितारा के जीवन की समानता को मात्र संयोग मान कर हवा में उड़ा नहीं पा रही थी. इस उपन्यास ने कविता की नींद उड़ा दी.  आखिरकार उस ने निश्चय कर लिया नंदना से संपर्क करने का. उस ने पुस्तक उलटपलट का देखा तो उसे नंदना का मोबाइल नंबर मिल गया. उस ने कौल किया तो उधर से आवाज आई, “जी, मैं नंदना बोल रही हूं.”

कविता ने कहा, ‘‘तुम नितारा हो न?’’ ‘‘आप कविता मैम हैं न?’’ ‘‘मतलब, तुम नितारा ही हो. उपन्यास तुम्हारी अपनी कहानी है न?’’ ‘‘जी मैम.’’ ‘‘तो तुम ने ही मुझे भेजा था.’’

‘‘जी मैम.’’ ‘‘तो क्या तुम ने ही मम्मा को…?’’ ‘‘जी मैम.’’ ‘‘तो अब तुम कहां हो और मुझे यह उपन्यास क्यों भेजा?’’ कुछ देर चुप रह कर नंदना बोली, “मैम, मैं अपने अतीत से पीछा नहीं छुड़ा पा रही हूं.”

‘‘उस दिन मैं ने न जाने किस जुनून में मम्मा पर वार कर दिया था. वह तो मम्मा के पीछेपीछे ही गाड़ी पार्क कर के पापा भी आ गए. उन्होंने जब यह देखा तो उन्होंने मुझे संभाला और साक्ष्य मिटा दिए. कुछ पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव, कुछ मेरी कम आयु और पापा के सक्षम वकीलों के कारण केस का निर्णय मेरे पक्ष में हुआ. मुझे संशय के आधार पर छोड़ दिया गया. मैम, पापा ने मुझे अमेरिका भेज दिया. अब मेरा नाम नंदना है और यहां कोई मेरा अतीत नहीं जानता.’’

‘‘तो तुम उस अतीत को फिर से क्यों जीवित कर रही हो?’’ ‘‘ मैम, मेरे मन में वह अतीत मरा ही कहां, मैं आज तक यह बोझ ले कर जी रही हूं. मैं एक क्षण भी नहीं भूल पाती कि मैं अपराधिन हूं.’’ ‘‘मैम, एक आप ही हैं जो मुझे समझती थीं. आप उस समय एक माह की छुट्टी पर न होतीं तो मैं आप को अपनी समस्या बताती. मुझे विश्वास है, आप कोई न कोई राह निकाल लेतीं और वह सब न होता.’’

‘‘पर, अब तुम मुझ से क्या चाहती हो?’’  ‘‘मैं उस अतीत से छुटकारा चाहती हूं, पश्चात्ताप करना चाहती हूं. मैं ने उपन्यास लिख कर अपना अपराध स्वीकारा कि शायद अब मुझे चैन मिले, पर फिर भी नहीं मिला. मुझे आज भी विश्वास है कि आप ही मुझे राह दिखा सकती हैं.’’

कविता को नितारा पर दया आई, उस ने कहा, ‘‘दुनिया में बहुत नितारा हैं, उन्हें ढूंढो और जो तुम ने नहीं पाया, वह उन को दो. नितारा को तो जीतेजी मरना पड़ा  पर अब किसी और नितारा को मर कर नंदना का जन्म न लेना पड़े.’’

आज नंदना की कौल के बाद कविता को विश्वास हो गया कि अब वह चैन की नींद सोती है.

 

दुनिया गोल है : रीनू अपनी मां से क्या शिकायत कर रही थी

‘‘हैलो…मां, कैसी हो?’’

‘‘अरे कुछ न पूछ बेटी, 4 दिनों से कांताबाई नहीं आ रही है. काम करकर के कमर टेढ़ी हो गई है. घुटनों का दर्द भी उभर आया है.’’

‘‘जितना जरूरी है उतना ही किया करो, मां.’’

‘‘उतना ही करती हूं, बेटी. खैर, छोड़, तू तो ठीक है?’’

‘‘हां मां. परसों विभा मौसी की पोती की मंगनी थी, शगुन में खूब अच्छा सोने का सैट आया है. मौसी ने भी बहुत अच्छा लेनादेना किया है. 2 दिनों से बारिश का मौसम हो रहा है. सोच रही हूं आज दालबाटी बना लूं.’’

‘‘भैया से बात हुई? उन का आने का कोई प्रोग्राम है?’’

‘‘हां, पिछले हफ्ते फोन आया था. अभी तो नहीं आ रहे.’’

‘‘रीनू से बात होती होगी, कैसी है वह? मैं तो सोचती ही रह जाती हूं कि उस से बात करूंगी पर फिर तुझ से ही समाचार मिल जाते हैं.’’

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‘‘वह ठीक है, मां? अच्छा अब फोन रखती हूं, कालेज के लिए तैयार होना है.’’ मां से हमेशा मेरी इसी तरह की बातें होती हैं. ज्यादातर वक्त तो वे ही बोलती हैं क्योंकि मेरे पास तो बताने के लिए कुछ होता नहीं है. पहले फोन बंद करते वक्त अकसर मेरे दिमाग में यही बात उठती थी कि मां की दुनिया कितनी छोटी है. खानापीना, लेनदेन, बाई, रिश्तेदार और पड़ोसी बस, इन्हीं के इर्दगिर्द उन की दुनिया घूमती रहती है. देश में कितना कुछ हो रहा है. कितने स्ंिटग औपरेशन हो रहे है, चुनावों में कैसीकैसी पैंतरेबाजी चल रही हैं, घरेलू हिंसा, यौनशोषण कितना बढ़ गया है, इन सब से उन्हें कोई सरोकार नहीं है. जबकि यहां पत्रपत्रिकाएं, जर्नल्स सबकुछ पढ़ कर हर वक्त खुद को अपडेट रखना पड़ता है. एक तो मेरा विषय राजनीति विज्ञान है जिस में विद्यार्थियों को हर समय नवीनतम तथ्य उपलब्ध करवाने होते हैं, दूसरे, बुद्धिजीवियों की मीटिंग में कब किस विषय पर बहस छिड़ जाए, इस वजह से भी खुद को हमेशा अपडेट रखना पड़ता है और जब इंसान बड़े मुद्दों में उलझ जाता है तो बाकी सबकुछ उसे तुच्छ, नगण्य लगने लगता है.

मैं मां की बातों को भुला कर फिर से अपनी दुनिया में खो जाती. रीनू से बात किए वाकई काफी वक्त बीत गया है. वह भी तो अपने काम में बहुत व्यस्त रहती है. दूसरे, अमेरिका और इंडिया में टाइमिंग का इतना अंतर है कि जब मैं फ्री होती हूं, बात करने का मूड होता है तब वह सो रही होती है या किसी जरूरी काम में फंसी होती है. पर आज रात मैं उस से जरूर बात करूंगी, उस की छुट्टी भी है. यही सोच कर मैं ने उस दिन उसे रात में स्काइप पर कौल किया था. काफी दिनों बाद बेटी की सूरत देखते ही मैं द्रवित हो उठी थी, ‘कितनी दुबली हो गई है तू? चेहरा भीकैसा पीलापीला नजर आ रहा है? तबीयत तो ठीक है तेरी?’

‘हां मौम, मैं बिलकुल ठीक हूं, एक प्रोजैक्ट में बिजी हूं. रही दुबला होने की बात, तो हर इंडियन मां को अपनी संतान हमेशा कमजोर ही नजर आती है. नानी भी तो जब भी आप से मिलती हैं, अरे बिट्टी, तू कितनी कमजोर हो गई है, कह कर लिपटा लेती हैं आप को. फिर नसीहतें आरंभ, दूध पिया कर, बादाम खाया कर…’

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‘अच्छा छोड़ वह सब. यह वैक्यूमक्लीनर की आवाज आ रही है? मेड काम कर रही है?’ मेरी नजरें अब रीनू से हट कर उस के इर्दगिर्द दौड़ने लगी थीं.

‘यहां कहां मेड मौम? सबकुछ खुद ही करना पड़ता है. रोजर, मेरा रूममेट सफाई कर रहा है.’

‘क्या? तू एक लड़के के साथ रह रही है? कब से?’ मेरी चीख निकल गई थी. ‘कम औन मौम. आप इतना ओवररिऐक्ट क्यों कर रही हैं. यहां यह सब आम है. यही कोई 6-7 महीनों से हम साथ हैं.’ ‘साथ मतलब क्या? रीनू, हमारे लिए यह सब आम नहीं है. हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार इन सब की अनुमति नहीं देते. तुम्हारे नानानानी और दादादादी को ये सब पता चला तो तूफान उठ खड़ा होगा.’

‘फिलहाल तो आप बिना बात तूफान खड़ा कर रही हैं मौम, यह तो शुक्र है वैक्यूमक्लीनर की आवाज में रोजर कुछ सुन नहीं पा रहा है वरना उसे कितना बुरा लगता.’ ‘तुम्हें रोजर को बुरा लगने की फिक्र है और मुझ पर जो बीत रही है उस की जरा भी परवा नहीं?’

‘मौम प्लीज, आप बिना वजह बात का बतंगड़ बना रही हैं. मैं ने आप को बताया न, यहां ये सब आम बात है. दरअसल, आप की दुनिया बहुत छोटी है. इंसान चांद पर घर बसाने की सोच रहा है और आप की सोच अभी तक हमारा परिवार, हमारे संस्कार इन्हीं पर टिकी हुई है. एक बार अपनी दुनिया से बाहर निकल कर जरा बाहर की दुनिया देखिए, खुद ब खुद समझ जाएंगी. रोजर इधर ही आ रहा है मौम. बेहतर होगा हम इस टौपिक को यहीं समाप्त कर दें.’ ‘सिर्फ टौपिक ही क्यों, सबकुछ समाप्त कर दो.’ गुस्से में मैं ने संपर्कविच्छेद कर दिया था. मेरे गुस्से से न केवल स्टूडैंट्स बल्कि घर वाले भी खौफ खाते हैं. यह तापमापी के पारे की तरह पल में चढ़ता है तो समझानेबुझाने या क्षमायाचना करने पर पल में उतर भी जाता है. देर तक उस के शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे थे. मैं ने सिर झटक दिया था, मानो ऐसा कर के मैं सबकुछ एक झटके में दिमाग से बाहर फेंक दूंगी और सोने का प्रयास करने लगी थी. बहुत दिनों तक मेरा न रीनू से बात करने का मन हुआ था, न मां से. यह सोच कर दुख भी होता कि मैं रीनू का गुस्सा मां पर क्यों निकाल रही हूं. फिर मैं ने मां से बात की थी पर रीनू की बात  गोल कर गई थी. मांबाबा को आजकल वैसे भी कम सुनाई देने लगा है, इसलिए भी मैं उन्हें बताने से हिचक रही थी. पता नहीं, आधीअधूरी बात सुन कर वे जाने क्या मतलब निकाल लें जबकि मामला इतना गंभीर हो ही न? सासससुर देशाटन पर गए हुए थे.

चलो, एक तरह से अच्छा ही है. वे लौटेंगे, तब तक तो शायद वेणु भी लौट आएं. फिर वे अपनेआप संभाल लेंगे. वेणु की कमी मुझे इस वक्त बेहतर खटक रही थी. काश, वे इस वक्त मुझे संभालते, समझाते मेरे पास होते. वेणु और मेरी लवमैरिज थी. साथसाथ पढ़ते प्रेम के अंकुर फूटे और जल्द ही प्यार का पौधा पल्लवित हो उठा था. दक्षिण भारतीय वेणु आगे जा कर आर्मी में चले गए और मैं एक कालेज में शिक्षिका हो गई. हम दोनों जानते थे कि हमारे कट्टरपंथी परिवार इस बेमेल विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगे, इसलिए हम ने कोर्टमैरिज कर ली थी. जब वेणु मुझे दुलहन के जोड़े में अपने घर ले गए तो थोड़ी नाराजगी दिखाने के बाद वे लोग जल्दी ही मान गए थे. और फिर दक्षिण भारतीय तरीके से हमारा विवाह संपन्न हुआ था. पर मेरे मांबाबा को यह बात बेहद नागवार गुजरी थी. वे शादी में शरीक नहीं हुए थे. मैं उन से गुस्सा थी लेकिन वेणु ने हिम्मत नहीं हारी, मनाने के प्रयास जारी रखे. आखिर रीनू के जन्म के बाद मांबाबा पिघले और उन्होंने हमें दिल से अपना लिया. उस वक्त मैं बच्चों की तरह किलक उठी थी. मां से लिपट कर ढेरों फरमाइशें कर डाली थीं. तब से वेणु और रीनू उन के लिए मुझ से भी बढ़ कर हो गए थे. ऐसी शिकायत कर के मैं अकसर उन से बच्चों की भांति रूठ जाया करती थी. और सभी इसे मेरी जलन कह कर खूब आनंद उठाते थे. वेणु को नौर्थईस्ट में पोस्ंिटग मिली तो मैं रीनू को ले कर उन के साथ रहने आ गई थी. पर छोटी सी बच्ची के साथ उस असुरक्षित इलाके में रहना हर वक्त खतरे से खेलते रहना था. रीनू का खयाल कर के मैं हमेशा के लिए अपने सासससुर के पास रहने आ गई थी. मैं ने वापस कालेज में पढ़ाना आरंभ कर दिया था.

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वेणु छुट्टियों में आते रहते थे. जिंदगी एक बंधेबंधाए ढर्रे पर चलने लगी थी. रीनू पढ़ने के लिए विदेश चली गई और फिर वहीं अच्छी सी नौकरी भी करने लग गई. दिल तो बहुत रोया पर बदलते जमाने और उस की खुशी का खयाल कर मन को समझा लिया. पर अब, अब तो पानी सिर से ऊपर बढ़ गया है. इधर, कुछ समय से वेणु की पोस्ंिटग भी काफी सीनियर पोजीशन पर हिमालय की तराई वाले इलाके में हो गई थी. वहां पड़ोसी देश से छिटपुट लड़ाई चल रही थी और आएदिन छोटीबड़ी मुठभेड़ की खबरें आती रहती थीं. मुझे हर वक्त सिर पर तलवार  लटकती प्रतीत होती थी, जाने कब कैसा अप्रिय समाचार आ जाए. वेणु की बहुत दिनों से कोई खबर न थी. पर यह अच्छी बात थी क्योंकि सेना में ऐसा माना जाता है कि जब तक किसी के बारे में कोई खबर न मिले, समझ लेना चाहिए सब सकु शल है. मैं भी यही सोच कर वेणु के सकुशल लौट आने का इंतजार कर रही थी. वेणु की यादों के साथ रीनू के दिए घाव ताजा हो गए थे. जीवनसाथी तो मैं ने भी अपनी मनमरजी से चुना था. पर उस के साथ रही तो शादी के बाद ही थी. लेकिन यहां तो बिलकुल ही उलट मामला है. फिर मैं ने और वेणु ने शादी के बाद भी सब को मनाने के प्रयास जारी रखे थे. सब की घुड़कियां, धमकियां झेलीं, ताने सुने पर आखिर सब को मना कर रहे. और इस जैनरेशन को देखो, पता है मां गुस्सा है, नाराज है पर मानमनौवल का एक फोन तक नहीं. काश, वेणु यहां होते. खैर, बहुत इंतजार के बाद एक दिन रीनू का फोन आया था. पर बस, औपचारिक वार्त्तालाप-आप कैसी हैं? दादादादी कब आएंगे? पापा ठीक होंगे. और फोन रख दिया था. ऐंठ में मैं ने भी कुछ नहीं कहासुना.

हमारे फोनकौल्स न केवल सीमित बल्कि बेहद औपचारिक भी हो गए थे. मां जरूर थोड़े दिनों में फोन कर मेरे हाल जानती रहतीं. वेणु और सासससुर की अनुपस्थिति ने उन्हें मेरे प्रति ज्यादा चिंतित बना दिया था. वे मुझे धीरज और विश्वास देने का प्रयास करतीं. उन का आग्रह था, मैं अकेली न रहूं और उन के पास रहने चली जाऊं. मैं ने उन से कहा कि मैं तो छुट्टियों में हमेशा ही आती हूं. अभी सासससुर भी नहीं हैं तो वे मेरे पास आ जाएं. पर उन्होंने इतनी लंबी यात्रा करने में असमर्थता जता कर मेरा प्रस्ताव सिरे से खारिज कर दिया. उन के अनुसार, वे छुट्टियों में मेरा इंतजार करेंगी और मैं थोड़ी लंबी छुट्टियां प्लान कर सकूं तो अच्छा होगा.

‘कोई खास वजह, मां?’

‘अरे नहीं, खास क्या होगी? बस ऐसे ही तेरे साथ रहने को दिल कर रहा था. क्या पता कितना जीना और शेष है? अब तबीयत ठीक नहीं रहती. तेरे भैयाभाभी को भी इसी दौरान रहने को बुला लिया है. सब साथ रहेंगे, खाएंगे, पीएंगे तो अच्छा लगेगा.’ पहली बार मां की दुनिया अलग नहीं, थोड़ी अपनी सी महसूस हुई. उन का दर्द अपना दर्द लगा. ‘हां मां, ज्यादा छुट्टियां ले कर आने का प्रयास करूंगी. कांता बाई से मुझे भी मालिश करवानी है. आजकल मुझे भी आर्थ्राइटिस की प्रौब्लम हो गई है. आप के हाथ की मक्का की रोटी और सरसों का साग खाने का भी बहुत मन हो रहा है. गोभी, गाजर वाला अचार भी डाल कर रखना मां.’ प्रत्युत्तर में उधर चुप्पी छाई रही तो मैं समझ गई कि भावनाओं के आवेग ने हमेशा की तरह मां का गला अवरुद्ध कर दिया है.

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‘जल्द मिलते हैं, मां’, मां की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं ने तुरंत फोन रख दिया था. अगले सप्ताह एक लंबी छुट्टी अरेंज कर जल्दी ही उन्हें अपने आने की सूचना भी दे दी. स्टेशन पर मांबाबा दोनों को मुझे लेने आया देख मैं हैरत में पड़ गई थी क्योंकि उन के गिरते स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने उन्हें सख्त हिदायत दे रखी थी कि वे कभी भी मुझे लेनेछोड़ने आने की औपचारिकता में नहीं पड़ेंगे. बेमन से ही सही, वे मेरी हिदायत की पालना करते भी थे. पर आज अचानक…वो भी दोनों…जरा सा भी कुछ असामान्य देख इंसान का दिमाग हमेशा उलटी ही दिशा में सोचने लगता है. मेरे शक की सूई भी उलटी ही दिशा में घूमने लगी. अवश्य ही वेणु को ले कर कोई बुरी खबर है. मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘वेणु की कोई खबर, बेटी? ठीक है न वह?’

मैं ने राहत की सांस ली, ‘आप को तो मालूम ही है मां, कोई खबर नहीं, मतलब सब कुशल ही होगा.’

‘एक बहुत अच्छी खबर है. मैं एक प्यारे से गुड्डे की परनानी और तू नानी बन गई है.’ मां की नजरें मेरे चेहरे पर जमी थीं, जहां एक के बाद एक रंग आजा रहे थे. मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी, मां किस की बात कर रही हैं.

‘हमारी रीनू ने 2 दिन पहले एक बेटे को जन्म दिया है. वह यहीं है घर पर, हमारे पास.’

‘क्या?’ आश्चर्य से मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था. ‘उस ने तुझे यह तो बता ही दिया था कि वह रोजर नाम के किसी लड़के के साथ रह रही थी.’

‘हां, पर यह सब नहीं बताया था.’

‘उस की हिम्मत ही नहीं पड़ी बेटी, तेरे गुस्से से वह घबरा गई थी. फिर उसे यह भी खयाल था कि तू अभी बिलकुल अकेली रह रही है. वेणु भी इतने खतरनाक मोरचे पर तैनात हैं तो तू वैसे ही बहुत परेशान होगी.’

‘पर मां, उसे मुझे तो बताना था,’ मेरी आंखों के सम्मुख उस का पीला, दुबला चेहरा घूम गया.

‘वह तुझे बताना चाहती थी पर तभी सब गड़बड़ा गया. रोजर इतनी जल्दी बच्चे के लिए तैयार नहीं था. वह अबौर्शन करवाना चाहता था पर रीनू उस के लिए तैयार नहीं हुई. विवाद बढ़ा और रोजर घर छोड़ कर चला गया.’

‘ओह,’ मैं ने सिर थाम लिया. ‘रीनू बहुत हताश और परेशान हो गई थी पर तुझे और दुखी नहीं करना चाहती थी. इसलिए सारा गम अकेले ही पीती रही. एक दिन उस की बहुत याद आ रही थी तो उस का हालचाल जानने के लिए मैं ने ऐसे ही उसे फोन कर दिया. मैं फोन पर ही उसे दुलार रही थी कि सहानुभूति पा कर वह फूट पड़ी और सब उगल दिया. ‘हम ने उसे भरोसा दिलाया कि तुझे नहीं बताएंगे पर वह तुरंत हमारे पास इंडिया आ जाए और यहीं बच्चे को जन्म दे. उस ने हमारी बात मानी और आ गई. कल उसे अस्पताल से घर ले आए हैं. अभी तेरे भैयाभाभी उस के पास हैं. तेरे आने की खबर से वह काफी बेचैन है. तुम दोनों आमनेसामने हो, इस से पहले तुम दोनों को सबकुछ बता देना आवश्यक था.

‘उम्र और अनुभव ने हमें बहुतकुछ सिखा दिया है बेटी. हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएं, अपनी अगली और पिछली पीढि़यों से हमारा टकराव स्वाभाविक है. ऐसे हर टकराव का मुकाबला हमें संयम और विश्वास से करना होगा. अपने बच्चों के साथ यदि हम ही खड़े नहीं होंगे तो औरों को उंगलियां उठाने का मौका मिलना स्वाभाविक है. हम अलगअलग पीढि़यों की दुनिया कितनी भी अलगअलग क्यों न हो, आ कर मिलती तो एक ही जगह है क्योंकि यह दुनिया गोल है. हम घूमफिर कर फिर वहीं आ खड़े होते हैं जहां से कभी आगे बढ़े थे. यह समय गुस्सा करने का नहीं, समझदारी से काम लेने का है. ‘आज की तारीख में हमारे लिए सब से बड़ी खुशी की बात यह है कि हमारी बेटी हमारे पास सकुशल है और उस के साथसाथ यह बच्चा भी अब हमारी जिम्मेदारी है. रीनू का आत्मविश्वास लौटा लाने के लिए उसे यह विश्वास दिलाना बेहद जरूरी है.’

घर आ चुका था. मैं ने भाग कर पहले रीनू को, फिर नन्हे से नाती को सीने से लगा लिया. रीनू आश्वस्त हुई, फिर खुलने लगी, ‘इस की आंखें बिलकुल पापा जैसी हैं न मौम…मौम, मुझे आप के हाथ का पायसम और उत्तपम खाना है,’ वह बच्चों की तरह किलक रही थी. ‘नानू, नानी, मौम आप सब को एक बात बतानी थी. कल रात दिल नहीं माना तो मैं ने रोजर को गुड्डू का फोटो भेज दिया, उस का जवाब आया है. वह शर्मिंदा है, जल्द आएगा.’ मां मुझे देख कर मुसकरा रही थीं.

Womens Day Special: चैन की नींद-भाग 2

लेखिका-अल्का पांडे

मम्मा ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘बेटी, वह तुम्हारी गुड़िया बहुत पुरानी और गंदी हो गई थी. तुम इसी का नाम चिंकी रख लो. देखो, इस की तो नीली आंखें हैं, इस की फ्रौक भी कितनी सुंदर है पर निती ने उसे हाथ भी नहीं लगाया. वह चिंकी की ही रट लगाए रही. उस दिन निती रोतेरोते ही सो गई.

अजेय ने निशा से कहा, ‘तुम को निती की गुड़िया फेंकने से पहले उस से पूछ लेना चाहिए था.’ निशा ने कहा, ‘वह इतनी गंदी और पुरानी हो गई थी, इसीलिए फेंक दी. मैं ने सोचा था कि निती नई व इतनी सुंदर गुड़िया देख कर खुश हो जाएगी. मुझे क्या पता था कि वह इतनी नाराज हो जाएगी. वैसे भी आजकल कुछ ज्यादा ही जिद्दी होती जा रही है.’

निशा और अजेय के लिए चिंकी भले ही एक निर्जीव गुड़िया थी पर निती की के लिए उस की सब से आत्मीय साथी खो गई थी. वह उसे भूल नहीं पा रही थी. धीरेधीरे उस ने चिंकी के वापस आने की आस छोड़ दी. जैसे-जैसे वह बड़ी हो रही थी, घर पर अपने कमरे में ही रहने लगी थी. एक दिन निती एकांत में बैठी कुछ बड़बड़ा रही थी. निशा ने देखा तो उस से पूछा, ‘यह अकेले में क्या बड़बड़ा रही थी निती?’

निती मम्मा को देख कर चुप हो गई. निशा ने अजेय से कहा, ‘निती दिनप्रतिदिन अंतर्मुखी होती जा रही है. आज मैं ने देखा अपने कमरे में बैठी पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थी.’

अजेय ने कहा, ‘तुम उस को थोड़ा समय दिया करो. मुझे तो लगता है कि उसे अकेलापन लगता है.’ ‘मतलब, तुम्हारे हिसाब से मैं उस का ध्यान नहीं रखती.’अजेय ने कहा, ‘मेरा मतलब यह नहीं है. पर वह बड़ी हो रही है, हम को ध्यान रखना चाहिए.’

‘मैं उस की जरूरत का सारा सामान तो उस के कहने से पहले ही उस के लिए ला देती हूं. मुझे विश्वास है कि उस के पास जितने कपड़े, मोबाइल, घड़ी वगैरह हैं, उस की किसी भी दोस्त के पास नहीं हैं.’

‘मैं तुम्हारी समस्या समझता हूं. मुझे पता है निशा, तुम कितनी बिजी रहती हो. आखिर हम दोनों जो भी कर रहे हैं निती के लिए ही तो कर रहे हैं न? पर वह अभी बच्ची है, समझती नहीं. जब बड़ी होगी तब समझेगी कि हम ने उस के लिए क्या किया.’

निशा ने कहा, ‘चलो, आज हम तीनों कहीं घूमने चलते हैं, निती का मूड बदल जाएगा.’ अजेय ने निती को बुला कर कहा, ‘ निती बेटी, चलो आज हम लोग पिकनिक पर चलते हैं.’ निती ने प्रफुल्लित हो कर कहा, ‘सच पापा, आप और मम्मा दोनों लोग मेरे साथ चलेंगे, वाऊ, मजा आएगा.’

निती तुरंत तैयार हो कर, खेलने के लिए रैकेट शटल कौक ले कर अपने कमरे से बाहर आई. उस ने देखा, मम्मा साड़ी पहन कर तैयार हैं. उस ने कहा, ‘मम्मा, आप पिकनिक पर साड़ी पहन कर चलेंगी? फिर तो आप खेल चुकीं बैडमिंटन मेरे साथ.’

निशा ने कहा, ‘नो माई बेबी, मेरे औफिस से फोन आ गया, मुझे अभी जाना होगा. हम लोग अगले संडे को चलेंगे,’ निती के उत्साह का गुब्बारा फुस्स हो गया. उस ने सोच लिया था कि अब वह अगले संडे भी पिकनिक पर नहीं जाएगी. उसे जाना ही नहीं है इन लोगों के साथ…

एक दिन पापा ने पुकारा, ‘निती…’निती अपने कमरे से आ कर बोली, ‘पापा, आप ने मुझे बुलाया?’ ‘तुम ने बताया नहीं, तुम नैशनल बैडमिंटन टीम में खेलने के लिए चुनी गई हो.’

‘मैं भूल गई होऊंगी,’ निती ने लापरवाही से कहा. तभी निशा भी आ गई. अजेय ने कहा, ‘देखो, हमारी निती नैशनल लैवल की टीम में चुनी गई है और पेपर में इस का नाम निकला है.’

निशा ने खुश हो कर कहा, ‘अरे वाह, हमारी बेटी तो लाखों में एक है, क्या पढ़ाई, क्या स्पोर्ट्स और क्या आर्ट.’ अजेय ने गर्व से कहा, ‘आखिर बेटी किस की है, बोलो बेटी. इसी बात पर  क्या ईनाम  लोगी? तुम जो मांगो मिलेगा.’

निशा ने भी हंसते हुए कहा, ‘बेटी पापा बड़ी मुश्किल से देते हैं, मांग लो जो लेना हो तुम को.’पर निती ने निर्लिप्त भाव से कहा, ‘आप ने पहले ही सबकुछ दे दिया है और मैं क्या मांगूं.’

निशा ने कहा, ‘हमारी बेटी तो अभी से संन्यासिन बन गई है. न तो इसे पहनने का शौक है, न सजने का. मैं इस के लिए देशविदेश से कितनी ड्रैसेस लाती हूं पर सब अलमारी में वैसे ही पड़ी रहती हैं.’

निती अपने कमरे में चली गई. वह मम्मा को बताना चाहती थी कि उसे ड्रैसेस नहीं चाहिए, उसे मम्मा से बात करने का मन होता है, पापा के साथ कहीं लौंगड्राइव पर जाने का मन होता है. पर वह जानती है वे दोनों कितने व्यस्त हैं. उन के पास समय नहीं है, इसीलिए वह कुछ नहीं कहती. वह तो यह भी नहीं बताती कि  मानस उसे रोज तंग करता है. उसे पता है, मम्मा उस की किसी बात को गंभीरता से लेती ही नहीं. एक बार उस ने उन्हें बताना चाहा था, ‘मम्मा, मुझे मानस बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’

‘वह मानस… पर वह तो तेरे साथ बचपन से पढ़ा है.’‘हां, लेकिन बचपन की बात और है. अब वह जब देखो कौफी पीने चलने को कहता है.’ ‘अरे, तो क्या हुआ, तुम्हारा पुराना फ्रैंड है, चली जाओ उस के साथ.’ ‘पर मेरा मन नहीं करता,’ निती ने कहा.

Womens Day Special: चैन की नींद-भाग 1

लेखिका-अल्का पांडे

‘‘हैलो मैम, मैं नंदना बोल रही हूं, कैसी हैं आप?’’  ‘‘हुम्म, इतने दिनों बाद याद किया, लगता है  मुझे भूल गई हो,”  कविता ने उलाहना दी.

‘‘क्या करें मैम, समय ही नहीं मिलता. कभी मिनी को कुछ पूछना होता है, कभी नीपा को अपनी बात बतानी होती है, तो कभी सारा को मेरे साथ खेलना होता है,’’ नंदना के स्वर में शिकायत कम ख़ुशी ज्यादा झलक रही थी.

तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘मम्मी, मेरी बात सुनो.’’ और नंदना ने कहा, ‘‘मैम, मैं बाद में बात करती हूं.” और कौल काट दी. नंदना का प्रफुल्लित स्वर सुन कर ही कविता एक सुखद आश्वस्ति के साथ अतीत के पन्नों में उलझ गई…

दूर क्षितिज में डूबते सूरज को देखते हुए बालकनी में चाय पीना कविता के दिन का सब से सुखद व निजी क्षण होता था. उस समय वह अकसर घर में अकेली होती थी. डूबता रवि अपने साथ कविता की पूरी थकान को भी डुबो देता था. चाय पीतेपीते अचानक ही उसे एक दिन पहले डाक से आई पुस्तक की याद आ गई और  पुस्तक को देखने की उत्सुकता में उस ने क्षितिज को निहारने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया. पता नहीं किस ने भेजी है, उस ने तो मंगाई नहीं थी, सोचते हुए कविता ने पैकेट खोला तो एक उपन्यास था, जिस के आवरण पर घुटनों में सिर रखे लड़की का रेखाचित्र बना था. शीर्षक था ‘किस से कहूं.’ लेखिका का नाम था नंदना. कविता सोचने लगी, यह उपन्यास मुझे किस ने और क्यों भेजा है? कहीं गलती से तो मेरे पास नहीं आ गया? पर लिफाफे पर पता और नाम तो मेरा ही है.

कविता ने अपनी स्मृति पर जोर डाला पर उसे नंदना नाम की कोई परिचित  ध्यान में नहीं आई. उस ने उपन्यास को उलटपलट कर देखा, फिर सोचा, चलो देखते हैं, आखिर है क्या इस उपन्यास में.’ कविता ने उपन्यास पढ़ना शरू किया तो पढ़ती ही चली गई थी…..

नन्ही निती स्कूल से लौट कर दौड़ती हुई अंदर आती है, ‘मम्मा देखिए, क्लास में फर्स्ट आई हूं.’  ‘अच्छा, वैरी गुड,’ मम्मा ने उसे प्यार से गले लगाया  और  रानी आंटी को उसे चौकलेट वाला दूध देने का निर्देश दे कर स्वयं तैयार होने लगीं.  निती बताना चाहती थी कि मैम ने उस की कितनी तारीफ की और जब वह स्टेज पर आई तो सारे बच्चों ने ताली बजाई तो उसे कितना अच्छा लगा, पर मम्मा तो बाथरूम में चली गईं.

निती अभी दूध पी ही रही थी कि मम्मा ने आ कर कहा, ‘निती, मम्मा औफिस जा रही है, शाम को मिलते हैं.’ निती ठुनकी, ‘मम्मा प्लीज, आज औफिस मत जाइए.’ ‘बेटी, मम्मा की मीटिंग है, औफिस तो जाना जरूरी है.’

‘अच्छा, रानी आंटी तुम्हारे लिए टीवी लगा देंगी, आज तुम अपनी मनपसंद कार्टून फिल्म देख लेना, फिर सो जाना.’ मम्मा ने रानी से कहा, ‘बेबी को आज कार्टून फिल्म देख लेने देना, फिर सुला देना. जब उठे तो उस का होमवर्क करवा देना,’

निती ने गुस्से में दूध का गिलास फेंक दिया. रानी ने कहा, ‘मम्मा तो गईं, अब गुस्सा दिखाने से क्या फायदा?’ निती चुपचाप जा कर कमरे में लेट गई. उस ने टीवी नहीं देखा.

शाम को मम्मा व पापा आए, तो पापा ने उसे प्यार करते हुए कहा, ‘आज हम को पता चला है कि मेरी बेटी क्लास में फर्स्ट आई है. देखो, मैं उस के लिए वीडियो गेम ले कर आया हूं.’ ‘और मम्मा अपनी बेटी के लिए उस की मनपसंद आइसक्रीम लाई हैं,’ मम्मा ने कहा.

निती नए गेम में मगन हो गई. रात में सोते समय अचानक उसे अपनी स्कूल वाली बात याद आई. उस का मन किया कि मम्मा को बताए, इसीलिए उठ कर वह मम्मा के कमरे में गई. मम्मा लैपटौप पर कुछ काम कर रही थीं और पापा मोबाइल पर किसी से बात कर रहे थे. मम्मा ने कहा, ‘अरे, हमारी बेटी सोई नहीं अभी तक?’

‘मम्मा, मुझे आप से बात करनी है,’’ निती ने उन की गोद में चढ़ते हुए कहा. मम्मा ने कहा, ‘बेटी 10 बज गए हैं, सुबह तुम को स्कूल भी जाना है न? जाओ, सो जाओ. नहीं तो नींद पूरी नहीं होगी.’ ‘मुझे नहीं सोना है.’ ‘निती, डोन्ट बी बैड गर्ल. जाओ, सो जाओ,’ कहते हुए मम्मा उसे गोद में उठा कर बिस्तर पर सुला आईं.

यह तो रोज की ही बात हो गई थी. उसे कितनी बातें मम्मापापा को बतानी होतीं पर उन के पास समय ही न होता. धीरेधीरे निती ने मम्मापापा से कुछ कहना छोड़ दिया. उस ने अपनी एक गुड़िया को अपनी दोस्त बना लिया. अब उसे जो भी बात बतानी होती, अपनी गुड़िया से करती. उस ने गुड़िया का नाम चिंकी रखा था. वह स्कूल से आ कर रोज चिंकी को स्कूल की सारी बातें बताती. कभी कहती, ‘पता है चिंकी, मेरे क्लास में जो तनुज पढ़ता है, बहुत गंदा है. जब मैं खेलती हूं न, तो मुझे वह धक्का दे देता है. मेरी पैंसिल भी चुरा लेता है. तुम उस से कभी बात मत करना.’

फिर चिंकी का सिर स्वयं ही हिलाती, मानो चिंकी ने कहा हो नहीं. कभी कहती, ‘चिंकी, तुम मेरी बैस्ट फ्रैंड हो. स्कूल में मायरा भी मेरी फ्रैंड है पर वह कभी मेरे साथ खेलती है तो कभी मुझे छोड़ कर सामी के साथ खेलने लगती है. पर तुम तो केवल मेरे साथ रहती हो, मेरी सारी बातें सुनती हो. आय लव यू.’ और निती उसे अपने वक्ष से लगा लेती.

वह रात को सोती तो चिंकी के साथ, अपना होमवर्क करती तो चिंकी को पास बैठा कर. रात में उस की नींद खुलती तो सब से पहले उसे टटोल कर अपने हृदय से चिपका लेती. एक दिन निती स्कूल से लौटी तो अपने कमरे में नित्य की तरह वह चिंकी को लेने गई. पर उसे चिंकी मिली ही नहीं. उस ने बहुत ढूंढा, फिर दौड़ कर रानी आंटी के पास गई, ‘रानी आंटी, मेरी चिंकी नहीं मिल रही, क्या आप ने उसे देखा है?’

‘नहीं बेबी, मैं तो तुम्हारे कमरे में गई ही नहीं.’ चिंकी ने मम्मा को मोबाइल पर कौल किया, ‘मम्मा, मेरी चिंकी कहीं खो गई है.’ मम्मा ने कहा, ‘बेटी, अभी मैं मीटिंग में हूं. शाम को आ कर बात करेंगे.’

निती के लिए पूरा दिन व्यतीत करना दूभर हो गया. शाम को मम्मा के आते ही वह  दौड़ कर गई और आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘मम्मा, मेरी चिंकी पता नहीं कहां चली गई.’ मम्मा ने उसे एक सुंदर सी नई गुड़िया देते हुए कहा, ‘अरे, देखो मैं तुम्हारे लिए उस से भी सुंदर गुड़िया ले आई हूं.’ ’

निती ने उस गुड़िया को उठा कर दूर फेंक दिया और मचल कर बोली, ‘मुझे मेरी चिंकी चाहिए, यह नहीं चाहिए.’

तिरस्कार : 14 दिन क्वारंटाइन रहने के बाद रामलालजी के अंदर क्या परिवर्तन आया

रामलालजी सेवानिवृत अध्यापक थे. सुबह  10 बजे तक वे एकदम स्वस्थ लग रहे थे . शाम के सात बजतेबजते उन्हें तेज बुखार के साथसाथ वे सारे लक्षण दिखाई देने लगे, जो एक कोरोना पौजीटिव मरीज में दिखाई देते हैं.

यह देखकर परिवार के सदस्य खौफजदा हो गए. परिवार के सभी सदस्यों के चेहरों पर इस महामारी का डर साफ झलक रहा था. उन्होंने रामलालजी की चारपाई घर के एक पुराने बाहरी कमरे में डाल दी, जिस में उन के पालतू कुत्ते का बसेरा था. रामलालजी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क के किनारे से उठा कर लाए थे और उसे उन्होंने अपने बच्चे की तरह बड़े लाड़ से पाल कर बड़ा किया तथा उस का नाम ब्रूनो रखा.

इस कमरे में अब रामलालजी, उन की चारपाई और उन का प्यारा ब्रूनो रहता था. दोनों बेटेबहुओं ने उन से दूरी बना ली और बच्चों को भी उन के आसपास न जाने के निर्देश दे दिए थे.

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उन्होंने सरकार द्वारा जारी किए गए कोरोना हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर के सूचना दे दी. खबर महल्ले भर में फैल चुकी थी, लेकिन उन के आसपास या रिश्तेदार मिलने कोई नहीं आया. साड़ी के पल्ले से मुंह लपेटे हुए,  हाथ में छड़ी लिए पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आईं और रामलालजी की पत्नी से बोली,  “अरे, कोई इस के पास दूर से खाना भी सरका दो, अस्पताल वाले तो इसे भूखे ही ले जाएँगे उठा कर.”

अब सवाल उठता था कि उन को खाना देने के लिए कौन जाएगा. बहुओं ने तो खाना अपनी सास को पकड़ा दिया. अब रामलालजी की पत्नी के हाथ थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूंटे से बाँध दिए हों.

इतना देख कर वह पड़ोसिन बूढ़ी अम्मा बोलीं, “अरी, तेरा तो पति है तू भी…  मुंह बाँध के चली जा और उसे दूर से थाली सरका दे, वह अपने आप उठा कर खा लेगा.” सारा बातचीत रामलालजी चुपचाप सुन रहे थे , उन की आँखें नम थीं और काँपते होंठों से  उन्होंने कहा, “कोई मेरे पास न आए तो बेहतर है , मुझे भूख भी नहीं है.”

इसी बीच एम्बुलेंस आ गई और रामलालजी को एम्बुलेंस में बैठने के लिए कह दिया. रामलालजी ने घर के दरवाजे पर आ कर एक बार पलट कर अपने घर की तरफ देखा. उन के पोतीपोते पहली मंजिल से खिड़की से मास्क लगाए दादाजी को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सिर पर पल्लू रखे उन की दोनों बहुएं दिखाई दीं. ग्राउंड फ्लोर पर दोनों बेटे काफी दूरी बना कर अपनी मां के साथ खड़े थे.

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विचारों का तूफान रामलालजी के अंदर उमड़घुमड़ रहा था.  उन की पोती ने दादाजी की तरफ हाथ हिलाते हुए बाय कहा. एक क्षण को उन्हें लगा, ‘जिंदगी ने  अलविदा कह दिया.’

रामलालजी की आँखें डबडबा गईं. उन्होंने बैठ कर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जा कर बैठ गए. उन की पत्नी ने तुरंत पानी से  भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उडेल दी, जिसे चूम कर रामलालजी एम्बुलेंस में बैठे थे.

इसे तिरस्कार कहें या मजबूरी , लेकिन इस दृश्य को  देख कर उन का स्वामिभक्त ब्रूनो भी रो पड़ा और एम्बुलेंस के पीछेपीछे हो लिया, जो रामलालजी को अस्पताल ले कर जा रही थी.

रामलालजी को अस्पताल में 14 दिन के लिए क्वारन्टीन में रखा गया. उन के सभी टेस्ट नोर्मल थे. उन्हें डॉक्टरों ने पूर्णतः स्वस्थ घोषित कर के छुट्टी दे दी थी. जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उन को अस्पताल के गेट पर उन का कुत्ता ब्रूनो उन का इंतजार करते दिखाई दिया. दोनों एक दूसरे से लिपट गए. एक की आँखों से गंगा तो दूसरे की आँखों से यमुना बहे जा रही थी.

जब तक उन के बेटों की विदेशी कर  उन्हें लेने पहुँचती तब तक वे अपने कुत्ते को ले कर किसी दूसरी दिशा की तरफ निकल चुके थे.

उस के बाद वे कभी दिखाई नहीं दिए. आज उन के फोटो के साथ उन की  गुमशुदगी की खबर  छपी है. अखबार में लिखा है कि  सूचना देने वाले को 40 हजार रुपए का नकद इनाम दिया जाएगा .

’40 हजार रुपए’ हां, पढ़ कर  ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उन की, जिस को वे परिवार के ऊपर हँसतेगाते उड़ा दिया करते थे.

एक बार रामलालजी की जगह स्वयं को खड़ा करो और कल्पना करो कि इस कहानी के किरादार आप हो.आपका सारा अहंकार और सब मोहमाया खत्म हो जाएगी. इसलिए मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन करता हूं कुछ पुण्य कीजिए, गरीब, भूखे और लचारों की सहायता कीजिए. जीवन में कुछ नहीं है, कोई अपना नहीं है जब तक स्वार्थ है तभी तक सब आप के हैं.जीवन एक सफ़र है और मौत उस की मंजिल है. यही सत्य है.

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