Hindu : सरकार ने जातिगत जनगणना कराए जाने का ऐलान कर पहलगाम हमले की नाकामी पर भले ही फौरी तौर पर पानी फेरने में कामयाबी हासिल कर ली हो लेकिन जाति की राजनीति से दूर भी एक कड़वा सच और आतंक सदियों से मुंह बाए सामने खड़ा है जिसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता. अगर वह मजहबी जूनून था तो यह भी तो धार्मिक उन्माद ही है वह भी तथाकथित अपनों द्वारा. वही अपने जो जाति जान कर ही पानी पिलाने न पिलाने का फैसला लेते हैं.
बात 14 अप्रैल आम्बेडकर जयंती के दिन की है. पूरे देशभर के दलितों की तरह उत्तर प्रदेश के एटा के दलित भी आम्बेडकर जयंती पूरे दिल से और धूमधाम से मना रहे थे. एटा में इस दिन सुबह से ही जोश का माहौल था आम्बेडकर की शोभा यात्रा निकाले जाने की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. पर किसी को एहसास या अंदाजा नहीं था कि जल्द ही यहां भी मौत के आतंक का तांडव होने वाला है.
दलित तबके का नौजवान 35 साला अनिल कुमार जलेसर के पेट्रोल पंप के नजदीक जनता क्लिनिक के मैडिकल स्टोर पर बैठा हुआ था कि तभी उसे दिनेश यादव नाम के नौजवान ने गोली मार दी. खून से लथपथ हो गए अनिल को भीड़ ने उठाया और इलाज के लिए अस्पताल ले गई. खबर एटा से होती हुई उत्तर प्रदेश में जंगल की आग की तरह फैली. देखतेदेखते गुस्साए दलित समुदाय की भीड़ ने हंगामा मचाया, दिनेश की दुकान में तोड़फोड़ की और फिर जलेसर में हाईवे जाम कर दिया. पुलिस आई मामला दर्ज हुआ और आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया गया.
झगड़ा दुकान के विवाद का था जिस की अहमियत मालिक के लिए किसी सरहद से कम नहीं होती. वहां भी गोलीबारी आम हैं और देशभर में आए दिन जमीन जायदाद के झगड़ों को ले कर भी गोलियां चलती रहती हैं. देश के भीतर फैले इस आतंक को कोई संजीदगी से नहीं लेता फिर एटा में तो दलित तबके के युवक पर गोली चली थी जिन को धर्म ग्रंथों के मुताबिक शूद्र, गुलाम, मवेशी नीच वगैरह कहना दबंगों का हक है.
सवर्णों के संविधान मनुस्मृति में जगहजगह हिदायत दी गई है कि शूद्र को मारना और बेइज्जत करना गुनाह नहीं बल्कि ऐसा न करना लगभग गुनाह जैसा है. ऐसा सवर्ण समुदाय की मानसिकता से आए दिन जाहिर होता रहता है.
रामायण का शम्बूक वध इस की मिसाल है जिस का सर तलवार से महज इसलिए काट डाला गया था कि वह शूद्र हो कर भी धर्मकर्म कर रहा था. महाभारत में कर्ण का वध भी जातिगत भेदभाव का ही उदाहरण है. ऐसे किस्सों कहानियों से धर्म ग्रंथ भरे पड़े हैं जिन्हें ले कर कोफ्त इस बात पर होती है कि आज भी यह मानसिकता कायम है. लोकतंत्र में शिक्षा का अधिकार होने के बाद भी दलित दलित ही हैं.
दलितों पर सवर्ण अत्याचार बेहद आम हैं. रोज सैकड़ों दलितों को तरहतरह से प्रताड़ित किया जाता है जिस में खास बातें हैं कि दलितों को मंदिरों में दाखिल मत होने दो और अगर दाखिल हों तो उन्हें तबियत से कूटो. उन्हें कुए से या नदी से पानी मत भरने दो, उन से दोचार हाथ दूर ही रहो क्योंकि उन से सटने से धर्म भृष्ट हो जाता है.
देहातों में नाइयों को सख्त हिदायत दबंग यह देते रहते हैं कि दलित की हजामत बनाई तो फिर समझ लेना, पिछले कुछ सालों से प्रताड़ना की तौरतरीकों में एक नया रिवाज यह शामिल हो गया है कि दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठ कर बारात मत निकालने दो क्योंकि इस रिवाज पर सिर्फ दबंगों का हक है. कई जगहों पर तो दलितों के ऊपर पेशाब करने और पिलाने की अमानवीय घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं.
आगरा के इस ताजे मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. लेकिन उस से पहले पहलगाम हमले पर गौर करें तो दलितों का सीधे तौर पर उस से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन सवर्णों और कट्टर हिंदुओं का है. 22 अप्रैल के आतंकी हमले के कोई चार घंटे बाद ही मीडिया और सोशल मीडिया चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था कि उन्होंने नाम नहीं पूछा और न ही जाति पूछी बस धर्म पूछ कर हिंदुओं को गोली मारी. इस बात में दम तभी होता जब आतंकियों ने जाति भी पूछी होती और दलितों को मुसलमानों की तरह जीवनदान दे दिया होता.
इस का मतलब और संदेशा भी आईने की तरह साफ था कि मुसलमानों ने हिंदुओं को मारा. जातपात की बात तो फिजूल है अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा दलितों को बराबर से साथ बैठाला जाता है. कोई उन्हीं जाति की बिना पर नहीं सताता, किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता. कोई उन की औरतों का बलात्कार नहीं करता वगैरहवगैरह.
अब ऐसा कहने वाले शूरवीर भगवा धर्मरक्षक क्या बता पाएंगे कि एटा के अनिल कुमार का गुनाह उस की जाति नहीं तो और क्या था. विवाद कुछ भी हो अगर उस की जगह कोई ब्राम्हण ठाकुर या वैश्य होता तो क्या दिनेश की हिम्मत इतनी आसानी से फायर कर देने की होती. जवाब है, नहीं होती.
रही पहलगाम हमले में जाति न पूछने की बात तो वह सौ फीसदी सही है कोई विदेशी जाति पूछ कर हिंसा या अत्याचार नहीं करता हां धर्म के चलते जरूर हिंसा और आतंक रोजरोज होते हैं. पाकिस्तान शायद इतना भी नहीं करता क्योंकि देश के बंटवारे से पहले से दलित और मुसलिम समुदाय एकदूसरे के बेहद करीब रहे हैं. ये दोनों ही सवर्ण हिंदुओं की नफरत के पात्र बनते रहे हैं.
हर कोई जानता समझता है कि अभी या कभी भी दलितों के पास इतना पैसा नहीं रहा कि वे मौजमस्ती करने घूमनेफिरने पहलगाम जाएं. यह बात आतंकी जानते थे या नहीं इस के कोई माने नहीं क्योंकि उन का मकसद मजहब के नाम पर इंसानी खून बहाना था जिस से कश्मीर में दहशत फैले. इस के लिए उन्हें किसी की जाति पूछने की जरूरत नहीं थी.
और जरूरत जिन लोगों को थी उन्होंने 22 अप्रैल की रात से ही वायरल पोस्टों के जरिए यह नेरैटिव गढ़ना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन वाले जातिगत नफरत फैलाते हैं. भाजपा और हिंदूवादी संगठन तो इस कोशिश में लगे हैं कि जातिवाद न फैले जब कि हकीकत इस के एकदम उलट है कि ऊंची जाति वाले जिन के ये संगठन हैं वे नहीं चाहते कि शूद्र करार दिए गए एससीएसटी ओबीसी वाले किसी भी लेबल पर उन की बराबरी करें.
दबंगों को दलितों की खुशी कितनी खटकती है इस की एक बानगी बीती 17 अप्रैल को आगरा के एत्मादपुर में देखने में आई थी. हुआ सिर्फ इतना था कि एक दलित दूल्हा उन की तरह घोड़ी पर बैठ कर बारात ले जा रहा था. दुल्हन लाने की खुशी दूल्हे सहित सभी बारातियों में थी लिहाजा वे डीजे की धुन पर नाचतेगाते जा रहे थे.
इन में कुछ भजननुमा गाने यानी पैरोडी आम्बेडकर का गुणगान करती हुई भी थीं. बारात जैसे ही रात साढ़े नौ बजे जनवासे कृष्णा मैरिज होम पहुंची तो दबंगों ने आतंक पहलगाम सरीखा ही बरपाया आइए देखें इस दिन राजपूत जाति के ठाकुरों ने क्याक्या और कैसेकैसे जुल्म दलितों पर ढाए कहने की जरूरत है कि जाति की बिना पर ही ढाए –
– सब से पहले बारात पर हमला बोला.
– दलित बारातियों को डंडों लाठी और तलवारों से पीटा और घायल किया गया.
– बारातियों को जाति सूचक गालियां दी गईं.
– दूल्हे को फिल्मी स्टाइल में कालर पकड़ कर नीचे जमीन पर पटका गया.
– फिर उस पर धारदार हथियार से हमला कर उसे जख्मी किया गया.
– इसी दरम्यान उस के गले में पड़ी सोने की चैन भी दबंगों की भीड़ में से किसी ने उड़ा ली.
– जब मुकम्मल दहशत मच गई और बच्चे व औरतें चीखतेचिल्लाते घबरा कर इधरउधर भागने लगे तो बारातियों को जानवरों की तरह दौड़ादौड़ा कर मारने का लुत्फ उठाया जाने लगा.
– कुछ बारातियों के सर इस हमले में फट गए.
– दलित औरतों के साथ छेड़खानी भी की गई.
– गौतम बुद्ध और भीमराव आम्बेडकर की तस्वीरों को कुचला गया.
– घटना की खबर मिलते ही पुलिस घटना स्थल पर आ गई.
– इन दबंगों के हौसले इतने बुलंद थे कि इन्होंने पुलिस की मौजूदगी में भी कहर बरपाना जारी रखा
शायद ही क्या तय है इन ऊंची जाति वाले रसूखदार दबंगों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज न होती अगर भीम आर्मी के कार्यकर्त्ता जत्थे की शक्ल में थाने पहुंच कर पुलिस पर दबाव न बनाते. जैसेतैसे सादे ढंग से मैरिज होम के बजाय घर से शादी हुई. खौफजदा दूल्हा दबंगो की मंशा के मुताबिक पैदल ही जनवासे तक पहुंचा. लड़की वाले भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं के साथ इधरउधर छिपे बारातियों को घर लाए, घायलों को अस्पताल पहुंचाया. लेकिन खाना किसी को नसीब नहीं हुआ क्योंकि इस हमले में रात बहुत हो गई थी. वैसे भी तमाम दलित वर और वधु पक्ष वाले दोनों दबंगों की खासी मार खा चुके थे.
दलितों की रात की सुबह कब होगी यह तो भगवान कहीं हो तो वह जाने लेकिन दबंगों ने इन के हिस्से के सूरज और रौशनी को अपनी मुट्ठी में सदियों से कैद कर रखा है. चूंकि योगी राज में दलितों पर अत्याचार हद से ज्यादा हो रहे हैं इसलिए बसपा प्रमुख मायावती ने सड़कों पर आ कर आंदोलन का ऐलान कर दिया है. यह और बात है कि दलित तबका अब उन पर भरोसा नहीं करता. क्योंकि वह बेहतर जानता है कि आज अगर भाजपा सत्ता में है तो उस की एक बड़ी वजह मायावती का मनुवादी ताकतों से हाथ मिला लेना है. जिस के तहत पिछले 4 चुनावों में बड़े पैमाने पर दलित वोट भाजपा में शिफ्ट कराने का खेल वे खेल चुकी हैं.
बात अकेले उत्तर प्रदेश की नहीं है बल्कि पूरे देश में दलित अत्याचार और प्रताड़ना शबाब पर हैं. मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के गांव लीलदा में 27 अप्रैल को एक दलित युवक जगदीश जाटव का शव दबंगों जो यहां रावत समाज की शक्ल में आए ने उस का दाह संस्कार ही श्मशान जो इन दिनों सरकारी जमीन पर हैं में नहीं होने दिया.
लीलदा में भी हिंसा हुई पथराव हुआ पुलिस आई फिर राजनीति हुई. लेकिन हल किसी के पास नहीं क्योंकि दबंग इसे समस्या ही नहीं मानते. जगदीश के अंतिम संस्कार में दबंगों के रोल पर राज्य अनुसूचित आयोग के सदस्य रहे प्रदीप अहिरवार दो टूक कहते हैं कि प्रदेश में ऊंचे पदों पर मनुवादी अफसर बैठे हैं. इसलिए दलितों पर तरहतरह के जुल्मोसितम बढ़ रहे हैं, इन मनुवादी अफसरों को सरकार की सरपरस्ती मिली हुई है.
जब आगरा के दलित दूल्हे की दुर्दशा दबंग कर रहे थे उसी वक्त में आरएसएस मुखिया मोहन भागवत अपना पुराना राग अलाप रहे थे कि हिंदू समाज से जातिगत भेदभाव खत्म होना चाहिए. इस के लिए एक मंदिर, एक कुआं और एक शमशान घाट होना चाहिए. इस बात को लीलदा गांव के रावतों ने ठेंगा बता कर साबित कर दिया कि इन फिजूल के उपदेशों पर सवर्ण अमल नहीं करेंगे. जिन से जीतेजी नफरत करते हैं उन से मरने के बाद भी कोई हमदर्दी सवर्ण भला क्यों रखेंगे.
बात सही भी है क्योंकि मोहन भागवत कोई 10 साल से जातिगत एकता की बात कर रहे हैं लेकिन उस का असर हर बार उल्टा होता है कि दलितों पर अत्याचार और बढ़ जाते हैं इस के पीछे के खेल को समझना किसी के लिए आसान नहीं है.
बीती 21 अप्रैल को एटा के ही जैथरा थाने में दर्ज हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक लव कुमार और गोरेलाल यादव नाम के युवकों ने एक नाबालिग दलित लड़की के साथ न केवल लंबे समय दुष्कर्म किया बल्कि उस का वीडियो बना कर उसे ब्लैकमेल भी करते रहे. देश में रोज कहींकहीं कोई दलित लड़की दबंगों की हवस का शिकार हो रही होती है लेकिन सामाजिक एकता और समरसता के पैरोकार मोहन भागवत जैसे हिंदुत्व के ठेकेदार जाने क्यों दलित औरतों की आबरू पर खामोश रह जाते हैं.
पहलगाम हमले के बाद सरकार को शक्ति दिखाने का मशवरा देने वाले मोहन भागवत को देशभर में फैली और दलितों पर कहर ढा रही इस सवर्ण सनातनी शक्ति पर अंकुश लगाने कुछ कहने की हिम्मत पड़ेगी ऐसा लगता नहीं क्योंकि हिंदुत्व का मकसद और मंशा दोनों दलितों को पिछड़ा और बदतर बनाए रखने के हैं.
हाल तो यह है कि आईएएस के इम्तिहान में जब प्रयागराज की होनहार युवती शक्ति दुबे ने टौप किया तो सोशल मीडिया पर एक पोस्ट खूब वायरल हुई जिस में लिखा था, यह है ब्राम्हणों का तेज अरे कहां मर गए सब आरक्षण जीवी. दलितों को आरक्षण की सहूलियत पर भी अपमानित करने वाली इस पोस्ट को ब्राम्हणों एकता मंच नाम के संगठन ने बनाया और वायरल किया था.
जान कर हैरानी होती है कि हाल के दिनों में जिन दलितों पर जानबूझ कर ज्यादा निशाना साधा गया उन में से अधिकतर पढ़ेलिखे युवा थे. एटा का अनिल कुमार बीफार्मा और बीएससी पास था. मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के लीलदा गांव का जगदीश जाटव बैंगलुरू की एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर था जिस की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी.
सवर्णों के दिल में कितनी हमदर्दी और भाईचारा दलितों के लिए है यह हिंदू समाज और धर्म के ठेकेदारों को इस और ऐसे हजारों मामलों से देखनो को मिलता है. जिन का मकसद यह है कि दलित उन की गुलामी ढोते रहें वे पढ़लिख कर जागरूक न बने देश की तरक्की में योगदान न दें.
हाल तो यह है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में भी जातिगत अपमान इतना होता है कि रोहित वेमुला जैसे होनहार छात्र आत्महत्या करने मजबूर हो जाते हैं. इस समस्या को हाल ही के एक रिसर्च पेपर में उजागर किया गया है. इस शोध का शीर्षक है जाति अस्मिता और चुनौतियों की सरचना तिरस्कार पूर्वाग्रह और भारतीय विश्वविद्यालयों में सामाजिक प्रतिनिधित्व. दिलचस्प बात यह भी है कि इसे अमेरिका और ब्रिटेन की नामी यूनिवर्सिटीज के विशेषज्ञों ने तैयार किया है.
इस शोध पत्र में आमतौर वही बातें हैं जिन्हें हर कोई जानता है मसलन आरक्षित श्रेणी के छात्रों को उन की जाति की पहचान से ताल्लुक रखते तानों का सामना करना पड़ता है. इस का उन के स्वाभिमान कल्याण और शैक्षिक प्रदेशन पर बुरा असर पड़ता है.
लेकिन नाकाबिले बर्दाश्त बात एससी एसटी और ओबीसी की छात्राओं से यह सवाल पूछा जाना है कि तुम कोटे से आई हो कोठे से. इन तबके के छात्रों को बकासुर और कुंभकर्ण जैसे पौराणिक संबोधनों से तो बेइज्जत किया जाता है लेकिन उन्हें सरकारी दामाद, भिखारी, हरामजादा, सूअर कह कर भी ताने मारे जाते हैं.
पहलगाम के हमलावर अगर मजहबी जूनून में थे तो दलितों को रोजरोज जीतेजी मार देने वाले सनातनधर्मी भी धार्मिक उन्माद में ही होते हैं. उन से तो हमारी सेना निबट सकती है लेकिन इन का क्या.