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Hindu : गाली तो देते ही हैं लेकिन जाति पूछ कर तो गोली सनातनी भी मारते हैं

Hindu : सरकार ने जातिगत जनगणना कराए जाने का ऐलान कर पहलगाम हमले की नाकामी पर भले ही फौरी तौर पर पानी फेरने में कामयाबी हासिल कर ली हो लेकिन जाति की राजनीति से दूर भी एक कड़वा सच और आतंक सदियों से मुंह बाए सामने खड़ा है जिसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता. अगर वह मजहबी जूनून था तो यह भी तो धार्मिक उन्माद ही है वह भी तथाकथित अपनों द्वारा. वही अपने जो जाति जान कर ही पानी पिलाने न पिलाने का फैसला लेते हैं.

बात 14 अप्रैल आम्बेडकर जयंती के दिन की है. पूरे देशभर के दलितों की तरह उत्तर प्रदेश के एटा के दलित भी आम्बेडकर जयंती पूरे दिल से और धूमधाम से मना रहे थे. एटा में इस दिन सुबह से ही जोश का माहौल था आम्बेडकर की शोभा यात्रा निकाले जाने की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. पर किसी को एहसास या अंदाजा नहीं था कि जल्द ही यहां भी मौत के आतंक का तांडव होने वाला है.

दलित तबके का नौजवान 35 साला अनिल कुमार जलेसर के पेट्रोल पंप के नजदीक जनता क्लिनिक के मैडिकल स्टोर पर बैठा हुआ था कि तभी उसे दिनेश यादव नाम के नौजवान ने गोली मार दी. खून से लथपथ हो गए अनिल को भीड़ ने उठाया और इलाज के लिए अस्पताल ले गई. खबर एटा से होती हुई उत्तर प्रदेश में जंगल की आग की तरह फैली. देखतेदेखते गुस्साए दलित समुदाय की भीड़ ने हंगामा मचाया, दिनेश की दुकान में तोड़फोड़ की और फिर जलेसर में हाईवे जाम कर दिया. पुलिस आई मामला दर्ज हुआ और आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया गया.

झगड़ा दुकान के विवाद का था जिस की अहमियत मालिक के लिए किसी सरहद से कम नहीं होती. वहां भी गोलीबारी आम हैं और देशभर में आए दिन जमीन जायदाद के झगड़ों को ले कर भी गोलियां चलती रहती हैं. देश के भीतर फैले इस आतंक को कोई संजीदगी से नहीं लेता फिर एटा में तो दलित तबके के युवक पर गोली चली थी जिन को धर्म ग्रंथों के मुताबिक शूद्र, गुलाम, मवेशी नीच वगैरह कहना दबंगों का हक है.

सवर्णों के संविधान मनुस्मृति में जगहजगह हिदायत दी गई है कि शूद्र को मारना और बेइज्जत करना गुनाह नहीं बल्कि ऐसा न करना लगभग गुनाह जैसा है. ऐसा सवर्ण समुदाय की मानसिकता से आए दिन जाहिर होता रहता है.

रामायण का शम्बूक वध इस की मिसाल है जिस का सर तलवार से महज इसलिए काट डाला गया था कि वह शूद्र हो कर भी धर्मकर्म कर रहा था. महाभारत में कर्ण का वध भी जातिगत भेदभाव का ही उदाहरण है. ऐसे किस्सों कहानियों से धर्म ग्रंथ भरे पड़े हैं जिन्हें ले कर कोफ्त इस बात पर होती है कि आज भी यह मानसिकता कायम है. लोकतंत्र में शिक्षा का अधिकार होने के बाद भी दलित दलित ही हैं.

दलितों पर सवर्ण अत्याचार बेहद आम हैं. रोज सैकड़ों दलितों को तरहतरह से प्रताड़ित किया जाता है जिस में खास बातें हैं कि दलितों को मंदिरों में दाखिल मत होने दो और अगर दाखिल हों तो उन्हें तबियत से कूटो. उन्हें कुए से या नदी से पानी मत भरने दो, उन से दोचार हाथ दूर ही रहो क्योंकि उन से सटने से धर्म भृष्ट हो जाता है.

देहातों में नाइयों को सख्त हिदायत दबंग यह देते रहते हैं कि दलित की हजामत बनाई तो फिर समझ लेना, पिछले कुछ सालों से प्रताड़ना की तौरतरीकों में एक नया रिवाज यह शामिल हो गया है कि दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठ कर बारात मत निकालने दो क्योंकि इस रिवाज पर सिर्फ दबंगों का हक है. कई जगहों पर तो दलितों के ऊपर पेशाब करने और पिलाने की अमानवीय घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं.

आगरा के इस ताजे मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. लेकिन उस से पहले पहलगाम हमले पर गौर करें तो दलितों का सीधे तौर पर उस से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन सवर्णों और कट्टर हिंदुओं का है. 22 अप्रैल के आतंकी हमले के कोई चार घंटे बाद ही मीडिया और सोशल मीडिया चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था कि उन्होंने नाम नहीं पूछा और न ही जाति पूछी बस धर्म पूछ कर हिंदुओं को गोली मारी. इस बात में दम तभी होता जब आतंकियों ने जाति भी पूछी होती और दलितों को मुसलमानों की तरह जीवनदान दे दिया होता.

इस का मतलब और संदेशा भी आईने की तरह साफ था कि मुसलमानों ने हिंदुओं को मारा. जातपात की बात तो फिजूल है अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा दलितों को बराबर से साथ बैठाला जाता है. कोई उन्हीं जाति की बिना पर नहीं सताता, किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता. कोई उन की औरतों का बलात्कार नहीं करता वगैरहवगैरह.

अब ऐसा कहने वाले शूरवीर भगवा धर्मरक्षक क्या बता पाएंगे कि एटा के अनिल कुमार का गुनाह उस की जाति नहीं तो और क्या था. विवाद कुछ भी हो अगर उस की जगह कोई ब्राम्हण ठाकुर या वैश्य होता तो क्या दिनेश की हिम्मत इतनी आसानी से फायर कर देने की होती. जवाब है, नहीं होती.

रही पहलगाम हमले में जाति न पूछने की बात तो वह सौ फीसदी सही है कोई विदेशी जाति पूछ कर हिंसा या अत्याचार नहीं करता हां धर्म के चलते जरूर हिंसा और आतंक रोजरोज होते हैं. पाकिस्तान शायद इतना भी नहीं करता क्योंकि देश के बंटवारे से पहले से दलित और मुसलिम समुदाय एकदूसरे के बेहद करीब रहे हैं. ये दोनों ही सवर्ण हिंदुओं की नफरत के पात्र बनते रहे हैं.

हर कोई जानता समझता है कि अभी या कभी भी दलितों के पास इतना पैसा नहीं रहा कि वे मौजमस्ती करने घूमनेफिरने पहलगाम जाएं. यह बात आतंकी जानते थे या नहीं इस के कोई माने नहीं क्योंकि उन का मकसद मजहब के नाम पर इंसानी खून बहाना था जिस से कश्मीर में दहशत फैले. इस के लिए उन्हें किसी की जाति पूछने की जरूरत नहीं थी.

और जरूरत जिन लोगों को थी उन्होंने 22 अप्रैल की रात से ही वायरल पोस्टों के जरिए यह नेरैटिव गढ़ना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन वाले जातिगत नफरत फैलाते हैं. भाजपा और हिंदूवादी संगठन तो इस कोशिश में लगे हैं कि जातिवाद न फैले जब कि हकीकत इस के एकदम उलट है कि ऊंची जाति वाले जिन के ये संगठन हैं वे नहीं चाहते कि शूद्र करार दिए गए एससीएसटी ओबीसी वाले किसी भी लेबल पर उन की बराबरी करें.

दबंगों को दलितों की खुशी कितनी खटकती है इस की एक बानगी बीती 17 अप्रैल को आगरा के एत्मादपुर में देखने में आई थी. हुआ सिर्फ इतना था कि एक दलित दूल्हा उन की तरह घोड़ी पर बैठ कर बारात ले जा रहा था. दुल्हन लाने की खुशी दूल्हे सहित सभी बारातियों में थी लिहाजा वे डीजे की धुन पर नाचतेगाते जा रहे थे.

इन में कुछ भजननुमा गाने यानी पैरोडी आम्बेडकर का गुणगान करती हुई भी थीं. बारात जैसे ही रात साढ़े नौ बजे जनवासे कृष्णा मैरिज होम पहुंची तो दबंगों ने आतंक पहलगाम सरीखा ही बरपाया आइए देखें इस दिन राजपूत जाति के ठाकुरों ने क्याक्या और कैसेकैसे जुल्म दलितों पर ढाए कहने की जरूरत है कि जाति की बिना पर ही ढाए –

– सब से पहले बारात पर हमला बोला.

– दलित बारातियों को डंडों लाठी और तलवारों से पीटा और घायल किया गया.

– बारातियों को जाति सूचक गालियां दी गईं.

– दूल्हे को फिल्मी स्टाइल में कालर पकड़ कर नीचे जमीन पर पटका गया.

– फिर उस पर धारदार हथियार से हमला कर उसे जख्मी किया गया.

– इसी दरम्यान उस के गले में पड़ी सोने की चैन भी दबंगों की भीड़ में से किसी ने उड़ा ली.

– जब मुकम्मल दहशत मच गई और बच्चे व औरतें चीखतेचिल्लाते घबरा कर इधरउधर भागने लगे तो बारातियों को जानवरों की तरह दौड़ादौड़ा कर मारने का लुत्फ उठाया जाने लगा.

– कुछ बारातियों के सर इस हमले में फट गए.

– दलित औरतों के साथ छेड़खानी भी की गई.

– गौतम बुद्ध और भीमराव आम्बेडकर की तस्वीरों को कुचला गया.

– घटना की खबर मिलते ही पुलिस घटना स्थल पर आ गई.

– इन दबंगों के हौसले इतने बुलंद थे कि इन्होंने पुलिस की मौजूदगी में भी कहर बरपाना जारी रखा

शायद ही क्या तय है इन ऊंची जाति वाले रसूखदार दबंगों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज न होती अगर भीम आर्मी के कार्यकर्त्ता जत्थे की शक्ल में थाने पहुंच कर पुलिस पर दबाव न बनाते. जैसेतैसे सादे ढंग से मैरिज होम के बजाय घर से शादी हुई. खौफजदा दूल्हा दबंगो की मंशा के मुताबिक पैदल ही जनवासे तक पहुंचा. लड़की वाले भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं के साथ इधरउधर छिपे बारातियों को घर लाए, घायलों को अस्पताल पहुंचाया. लेकिन खाना किसी को नसीब नहीं हुआ क्योंकि इस हमले में रात बहुत हो गई थी. वैसे भी तमाम दलित वर और वधु पक्ष वाले दोनों दबंगों की खासी मार खा चुके थे.

दलितों की रात की सुबह कब होगी यह तो भगवान कहीं हो तो वह जाने लेकिन दबंगों ने इन के हिस्से के सूरज और रौशनी को अपनी मुट्ठी में सदियों से कैद कर रखा है. चूंकि योगी राज में दलितों पर अत्याचार हद से ज्यादा हो रहे हैं इसलिए बसपा प्रमुख मायावती ने सड़कों पर आ कर आंदोलन का ऐलान कर दिया है. यह और बात है कि दलित तबका अब उन पर भरोसा नहीं करता. क्योंकि वह बेहतर जानता है कि आज अगर भाजपा सत्ता में है तो उस की एक बड़ी वजह मायावती का मनुवादी ताकतों से हाथ मिला लेना है. जिस के तहत पिछले 4 चुनावों में बड़े पैमाने पर दलित वोट भाजपा में शिफ्ट कराने का खेल वे खेल चुकी हैं.

बात अकेले उत्तर प्रदेश की नहीं है बल्कि पूरे देश में दलित अत्याचार और प्रताड़ना शबाब पर हैं. मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के गांव लीलदा में 27 अप्रैल को एक दलित युवक जगदीश जाटव का शव दबंगों जो यहां रावत समाज की शक्ल में आए ने उस का दाह संस्कार ही श्मशान जो इन दिनों सरकारी जमीन पर हैं में नहीं होने दिया.

लीलदा में भी हिंसा हुई पथराव हुआ पुलिस आई फिर राजनीति हुई. लेकिन हल किसी के पास नहीं क्योंकि दबंग इसे समस्या ही नहीं मानते. जगदीश के अंतिम संस्कार में दबंगों के रोल पर राज्य अनुसूचित आयोग के सदस्य रहे प्रदीप अहिरवार दो टूक कहते हैं कि प्रदेश में ऊंचे पदों पर मनुवादी अफसर बैठे हैं. इसलिए दलितों पर तरहतरह के जुल्मोसितम बढ़ रहे हैं, इन मनुवादी अफसरों को सरकार की सरपरस्ती मिली हुई है.

जब आगरा के दलित दूल्हे की दुर्दशा दबंग कर रहे थे उसी वक्त में आरएसएस मुखिया मोहन भागवत अपना पुराना राग अलाप रहे थे कि हिंदू समाज से जातिगत भेदभाव खत्म होना चाहिए. इस के लिए एक मंदिर, एक कुआं और एक शमशान घाट होना चाहिए. इस बात को लीलदा गांव के रावतों ने ठेंगा बता कर साबित कर दिया कि इन फिजूल के उपदेशों पर सवर्ण अमल नहीं करेंगे. जिन से जीतेजी नफरत करते हैं उन से मरने के बाद भी कोई हमदर्दी सवर्ण भला क्यों रखेंगे.

बात सही भी है क्योंकि मोहन भागवत कोई 10 साल से जातिगत एकता की बात कर रहे हैं लेकिन उस का असर हर बार उल्टा होता है कि दलितों पर अत्याचार और बढ़ जाते हैं इस के पीछे के खेल को समझना किसी के लिए आसान नहीं है.

बीती 21 अप्रैल को एटा के ही जैथरा थाने में दर्ज हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक लव कुमार और गोरेलाल यादव नाम के युवकों ने एक नाबालिग दलित लड़की के साथ न केवल लंबे समय दुष्कर्म किया बल्कि उस का वीडियो बना कर उसे ब्लैकमेल भी करते रहे. देश में रोज कहींकहीं कोई दलित लड़की दबंगों की हवस का शिकार हो रही होती है लेकिन सामाजिक एकता और समरसता के पैरोकार मोहन भागवत जैसे हिंदुत्व के ठेकेदार जाने क्यों दलित औरतों की आबरू पर खामोश रह जाते हैं.

पहलगाम हमले के बाद सरकार को शक्ति दिखाने का मशवरा देने वाले मोहन भागवत को देशभर में फैली और दलितों पर कहर ढा रही इस सवर्ण सनातनी शक्ति पर अंकुश लगाने कुछ कहने की हिम्मत पड़ेगी ऐसा लगता नहीं क्योंकि हिंदुत्व का मकसद और मंशा दोनों दलितों को पिछड़ा और बदतर बनाए रखने के हैं.

हाल तो यह है कि आईएएस के इम्तिहान में जब प्रयागराज की होनहार युवती शक्ति दुबे ने टौप किया तो सोशल मीडिया पर एक पोस्ट खूब वायरल हुई जिस में लिखा था, यह है ब्राम्हणों का तेज अरे कहां मर गए सब आरक्षण जीवी. दलितों को आरक्षण की सहूलियत पर भी अपमानित करने वाली इस पोस्ट को ब्राम्हणों एकता मंच नाम के संगठन ने बनाया और वायरल किया था.

जान कर हैरानी होती है कि हाल के दिनों में जिन दलितों पर जानबूझ कर ज्यादा निशाना साधा गया उन में से अधिकतर पढ़ेलिखे युवा थे. एटा का अनिल कुमार बीफार्मा और बीएससी पास था. मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के लीलदा गांव का जगदीश जाटव बैंगलुरू की एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर था जिस की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी.

सवर्णों के दिल में कितनी हमदर्दी और भाईचारा दलितों के लिए है यह हिंदू समाज और धर्म के ठेकेदारों को इस और ऐसे हजारों मामलों से देखनो को मिलता है. जिन का मकसद यह है कि दलित उन की गुलामी ढोते रहें वे पढ़लिख कर जागरूक न बने देश की तरक्की में योगदान न दें.

हाल तो यह है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में भी जातिगत अपमान इतना होता है कि रोहित वेमुला जैसे होनहार छात्र आत्महत्या करने मजबूर हो जाते हैं. इस समस्या को हाल ही के एक रिसर्च पेपर में उजागर किया गया है. इस शोध का शीर्षक है जाति अस्मिता और चुनौतियों की सरचना तिरस्कार पूर्वाग्रह और भारतीय विश्वविद्यालयों में सामाजिक प्रतिनिधित्व. दिलचस्प बात यह भी है कि इसे अमेरिका और ब्रिटेन की नामी यूनिवर्सिटीज के विशेषज्ञों ने तैयार किया है.

इस शोध पत्र में आमतौर वही बातें हैं जिन्हें हर कोई जानता है मसलन आरक्षित श्रेणी के छात्रों को उन की जाति की पहचान से ताल्लुक रखते तानों का सामना करना पड़ता है. इस का उन के स्वाभिमान कल्याण और शैक्षिक प्रदेशन पर बुरा असर पड़ता है.

लेकिन नाकाबिले बर्दाश्त बात एससी एसटी और ओबीसी की छात्राओं से यह सवाल पूछा जाना है कि तुम कोटे से आई हो कोठे से. इन तबके के छात्रों को बकासुर और कुंभकर्ण जैसे पौराणिक संबोधनों से तो बेइज्जत किया जाता है लेकिन उन्हें सरकारी दामाद, भिखारी, हरामजादा, सूअर कह कर भी ताने मारे जाते हैं.

पहलगाम के हमलावर अगर मजहबी जूनून में थे तो दलितों को रोजरोज जीतेजी मार देने वाले सनातनधर्मी भी धार्मिक उन्माद में ही होते हैं. उन से तो हमारी सेना निबट सकती है लेकिन इन का क्या.

Bollywood : बौक्स औफिस पर न धर्म व जाति चला, न देशभक्ति चला

Bollywood : अप्रैल माह के चौथे सप्ताह यानी कि 25 अप्रैल को प्रदर्शित ‘फुले’ और ‘ग्राउंड जीरो’ फिल्मों को जिस तरह से दर्शकों ने ठुकराया है, उस से एक बात साफ हो जाती है कि अब भारत बदल चुका है. यह ‘नया भारत’ है. इस नए भारत की जनता को धर्म, जाति या देशभक्ति का झुनझुना पकड़ा कर फुसलाया या मूर्ख नहीं बनाया जा सकता. दूसरी बात यह भी साफ हो गई कि अब दर्शक फिल्मकारों की अपनी फिल्म के रिलीज से पहले पैदा की जाने वाली कंट्रोवर्सी के झांसे में आने से रहा.

दलित वर्ग के मसीहा कहे जाने वाले महात्मा ज्योति राव फुले और उन की पत्नी सावित्री फुले के जीवन पर फिल्मकार अनंत नारायण महादेवन ने फिल्म ‘फुले’ का निर्माण किया, जिसे 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिराव फुले की जन्म जयंती के दिन रिलीज किया जाना था, मगर अचानक इस फिल्म की रिलीज टाल कर 25 अप्रैल कर दी गई और फिल्मकार ने बयान जारी किया कि पुणे, महाराष्ट् के ब्राम्हण संगठनों के विरोध और सैंसर बोर्ड की आपत्ति के चलते फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज नही हो पा रही है. उस के बाद सोशल मीडिया और यूट्यूब पर फिल्म ‘फुले’ को ले कर जबरदस्त विवाद पैदा किया गया.

12 अप्रैल को पुणे से हिंदू ब्राम्हण संगठन’ के अध्यक्ष दवे ने कुछ टीवी चैनलों से बातचीत करते हुए कहा -‘‘हम ने फिल्म ‘फुले’ के रिलीज का विरोध नहीं किया. हम ने सिर्फ फिल्म निर्माता से मांग की थी कि वह फिल्म में ब्राम्हणों के योगदान को भी दिखाएं.’’ लेकिन पूरे 15 दिन तक अनंत नारायण महादेवन तमाम चैनलों व सोशल मीडिया पर बरसाती आंसू बहाते हुए फिल्म को ले कर विवाद को गर्म हवा देते रहे.

सैंसर बोर्ड द्वारा जिन दृश्यों को काटने की बात की जा रही थी, वह सभी दृश्य फिल्म में मौजूद हैं. इस तरह की गलत कंट्रोवर्सी पैदा कर निर्माता को कुछ नहीं मिला, फिल्म ‘फुले’ को नुकसान ही हुआ. और समाज में वैमनस्यता पैदा करने का ही प्रयास किया गया. इतना ही नहीं यह बात भी साबित हो गई कि आम जनता समझदार है, और अनुराग कश्यप जैसे लोगों द्वारा विवादास्पद बयानों पर वह यकीन नहीं करते.

सच तो यह है कि फिल्म ‘फुले’ जिस तरह से बनी है, उस तरह की फिल्मो को सिर्फ सरकारी पुरस्कार मिलते हैं, दर्शक नहीं. 25 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘फुले’ ने पूरे 7 दिन के अंदर केवल दो करोड़ रूपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र किए. इन में से निर्माता की जेब में कुछ नहीं आएगा, बल्कि निर्माता को थिएटर ओनरों को अपनी जेब से कुछ धन राशि देनी है.

इस फिल्म के निर्देशक अनंत नारायण महादेवन को भी पता था कि इस तरह के विषयों पर बनी फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते. दूसरी बात अभिनेता प्रतीक गांधी को लोग केवल ओटीटी पर देखना पसंद करते हैं, उन्हें सिनेमा की टिकट खरीद कर देखना कोई नहीं चाहता. प्रतीक गांधी की अभी तक कमर्शियल वैल्यू नहीं बनी है और प्रतीक गांधी हवा में तैरते रहते हैं. वह खुद अपने आप को देश का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता मानते हैं, मगर कमर्शियल फिल्म का दर्शक ऐसा नहीं मानता.

फिल्म ‘फुले’ में दिखाया गया कि ज्योति राव फुले के पास 35 एकड़ जमीन है. वह अंग्रेजों के साथ मिल कर काम कर रहे हैं, इस वजह से ज्योति राव फुले के प्रति लोगों की कोई हमदर्दी नहीं उपजती. वह फिल्म में व्यवसायी ज्यादा नजर आते हैं. ब्राम्हणों की जमीन पर उन की मदद से स्कूल खोल देना या ब्राम्हणों से पैसे ले कर किताब लिख देना समाज सुधार नहीं कहलाता.

25 अप्रैल को ही रिलीज हुई इमरान हाशमी की फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ महा डिजास्टार साबित हुई. 50 करोड़ रूपए की लागत वाली इस फिल्म ने 7 दिन में केवल 7 करोड़ रुपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र किए. इस में से निर्माता की जेब में जाएंगे महज ढाई करोड़ रूपए. फिल्म की शूटिंग के दौरान पूरी यूनिट के चाय पीने और भोजन का ही बिल ढाई करोड़ रुपए हो गया होगा.

पहले सप्ताह के बौक्स औफिस आंकड़ें के आधार पर कहा जा सकता है कि फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ का लाइफटाइम कलैक्शन महज 10 करोड़ रुपए ही रहेगा. फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ की इस दुर्गति के लिए इस के निर्देशक और अभिनेता इमरान हाशमी सिरे से जिम्मेदार हैं. कहानी कश्मीर में तैनात रहे बीएसएफ औफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे के जीवन की है, जिन्होंने 2003 में आतंकवादी गाजी बाबा को मौत की नींद सुलाया था.

अब बीएसएफ औफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे के किरदार में इमरान हाशमी कहीं से फिट नहीं बैठते. इमरान हाशमी की ईमेज एक बेहतरीन अभिनेता की बजाय ‘सीरियल किसर’ की ही रही है. फिल्म के निर्देशक तेजस प्रभा विजय देउस्कर की 15 साल में दो मराठी व एक हिंदी के बाद ‘ग्राउंड जीरो’ चौथी और हिंदी में दूसरी फिल्म है. उन की अबतक एक भी फिल्म सफल नहीं रही है, मगर तेजस प्रभा विजय देउस्कर को अहम है कि उन से बेहतर फिल्म कोई बना नहीं सकता. वह फिल्म के रिलीज से पहले फिल्म के प्रमोशन के लिए सिटी टूर करने में बिजी थे. उन के पास पत्रकारों से बात करने का वक्त नहीं था. लेकिन फिल्म के फ्लौप होने के चार दिन बाद उन्हें पत्रकारों की याद आने लगी. फिल्म निर्देशक तेजस प्रभा विजय देउस्कर को गंभीरता से सोचना चाहिए कि अगर उन से ज्यादा बेहतरीन फिल्म कोई बना नहीं सकता, तो फिर क्या वजह रही कि 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ और 25 अप्रैल को ‘ग्राउंड जीरो’ रिलीज हुई,फिर भी लोगों ने इसे नहीं देखा. फिल्मकार भूल गए कि आजकल लोग अपनी गाढ़ी कमाई को बेफजूल खर्च नहीं करते.

अप्रैल माह के चौथे सप्ताह यानी कि 25 अप्रैल को ही राज कुमार संतोषी निर्देशित व आमीर खान के अभिनय से सजी 1994 में रिलीज हो चुकी फिल्म ‘अंदाज अपनाअपना’ को ‘रीरिलीज’ किया गया.

1994 में भी यह फिल्म बुरी तरह से फ्लौप हुई थी. रीरिलीज होने पर 7 दिन में इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर केवल एक करोड़ रूपए ही एकत्र किए. अब फिल्मकारों को कौन समझाए कि काठ की हांडी बारबार नहीं चढ़ती.

 

 

Hindi Kahani : तुम्हारी बेटी नेहा – क्या तलाक होने के बाद पुरुष अच्छा पति नहीं बन सकता?

Hindi Kahani : सुबह किचन की खटरपटर से आंख खुली तो देखा, मेरी बेटी नेहा नाश्ता बना रही थी. मैं ने उसे मीठी झिड़की देते हुए कहा, “तूने मुझे उठाया क्यों नहीं, जा, बाकी का काम मैं करती हूं, तू औफिस के लिए तैयार हो जा.”

“मैं ने सोचा, आज अच्छा सा नाश्ता बना कर आप को सरप्राइज़ देती हूं. आप हमेशा चिंता  करती हैं न कि मैं खाना बनाने में रुचि नहीं लेती, तो ससुराल वालों को कैसे खुश रखूंगी…?”

“नहीं रे, मैं जानती हूं कि मेरी बेटी सिर पर पड़ेगा तो सब कर लेगी. वह कभी ससुराल वालों को शिकायत का मौका नहीं देगी,” गर्व से मैं ने यह कहा. फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बेटा, तुझे औफिस जाने में अभी एक घंटा बाकी है, मैं भी थोड़ा सा काम निबटा कर तैयार हो जाती हूं, तू मुझे निशा आंटी के घर पर छोड़ देना, ठीक है?”

मैं ने उस को मना करने का मौका ही नहीं दिया. वह मेरी बात सुन कर मुसकरा दी और बोली, “अच्छा वही, जो परसों पापा के साथ आप को मौल में मिली थीं. आप की बचपन की सहेली, जिन के बारे में बातें बताने में आप ने रात में बहुत देर तक मुझे और पापा को जगाए रखा था. अब समझी, इसीलिए इतना मस्का लगाया जा रहा था. अब आप को ले कर तो जाना ही पड़ेगा क्योंकि मैं जानती हूं कि मेरी ममा कुछ मामलों में कभी समझौता नहीं करतीं.”

“हां रे, उस से मिलने के बाद उस के बदले रंगरूप को देख कर उस के बारे में जानने के लिए बेचैन हूं.”

कार में बैठ कर नेहा ने निशा से उस का पता पूछा. उस का घर उस के औफिस के रास्ते में ही था. नेहा ने चैन की सांस ली कि वह औफिस के लिए लेट नहीं होगी.

निशा अपने घर के दरवाज़े पर ही मेरी प्रतीक्षा कर रही थी. नेहा ने बाहर से ही विदा लेनी चाही तो निशा ने उस से कहा, ”नहीं, पहली बार घर आई है, थोड़ी देर तो रुकना ही पड़ेगा, अपनी प्यारी सहेली की बेटी को जीभर कर देख तो लूं.” और उस का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई. ड्राइंगरूम के अंदर घुसते ही मेरी निगाह दीवार पर लगी दिवाकर की माला पहने हुए बड़ी सी फोटो पर पड़ी, जैसे कि वह निशा की सूनी मांग की गवाही दे रही हो.

फोटो की ओर उंगली इंगित करते हुए सहसा मैं सकते की हालत में बोल पड़ी, “यह कब और कैसे हुआ?”

“मां…मां…” की आवाज़ लगाते हुए निशा के बेटे दिनेश के कमरे में प्रवेश करने के साथ ही मेरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया. वह अचानक हमें देख कर अचकचा कर झेंप गया.

मेरे पैर छूते हुए उस ने नेहा की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए अचंभित हो कर बोला, “अरे, नेहा, तुम, यहां कैसे?”

वह फिर मेरी तरफ झेंपते हुए देख कर बोला, ”आंटी, यह आप की…?”

“मेरी बेटी है, तुम इसे कैसे जानते हो?” मैं ने उस की बात बीच में ही काटते हुए कहा.

“अरे मां, यह मेरे ही औफ़िस में काम करता है. मुझे पता ही नहीं था कि यह निशा आंटी का बेटा है. व्हाट अ को- इंसिडेंस!” इस बार नेहा के जवाब देने की बारी थी.

“तुम्हें औफ़िस जाना है तो मेरी ही गाड़ी से चलो, लौटते में यहीं आ कर आंटी को अपने

साथ ले जाना,” उन के इस अप्रत्याशित, अनौपचारिक वार्त्तालाप को मैं ने और निशा ने अवाक हो कर मुसकरा कर देखते हुए, उन को जाने की मूक स्वीकृति दे दी.

उन दोनों के जाने के बाद मैं बोली, “ऐसे चमत्कार की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे बच्चे भी एकदूसरे को जानते हैं. ऐसा तो फिल्मों में ही देखा है. खैर, अब तू अपनी

सुना, तूने मुझे पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया? मैं ने इधर कुछ सालों से तुझे फ़ेसबुक पर

भी कितना ढूंढा, लेकिन सब व्यर्थ.”

वह मेरी उत्तेजना को शांत करते हुए बोली, “बैठ तो, मैं तुझे सब बताती हूं.

थोड़ी देर के लिए वह कुछ सोच में पड़ गई, जैसे समझ न पा रही हो कि वह कहां से बातों का सिलसिला शुरू करे. फिर अपने को थोड़ा संयत करते हुए बोली, “जयपुर में ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद तू तो दिल्ली चली गई, दिवाकर पिता के व्यवसाय में लग गया और मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का कार्य करने लगी.

“एक दिन अचानक मेरा एक पत्र दिवाकर के पिता के हाथ लग गया. उन्होंने उस से पूछताछ की तो उस ने मेरे बारे में उन्हें सबकुछ सचसच बता दिया. उस ने यह भी बता दिया कि वह मुझ से विवाह करना चाहता है, लेकिन मुझ से मिलने के बाद उस के मातापिता ने मुझ से विवाह की अनुमति देने से साफ़ इनकार कर दिया. मेरा साधारण सा घर और साधारण शक्लसूरत वाली मैं, दोनों ही उन के उच्चस्तरीय रहनसहन से मेल नहीं खा रहे थे. उन का कहना था कि वे बिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे? उन के लिए बेटे के सुख से अधिक महत्त्वपूर्ण बिरादरी थी. लेकिन दिवाकर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुआ तो इकलौते बेटे को खोने के डर से उन्होंने विवाह की स्वीकृति दे दी.

विवाह तो हो गया, लेकिन उन्होंने मुझे कभी मन से स्वीकार नहीं किया. मैं ने हर तरीके से उन को खुश रखने की कोशिश की. लेकिन उन की कल्पना में बसी बहू का स्थान मैं कभी नहीं ले सकी.

विवाह के 2 साल के अंदर मेरी गोद में दिनेश आ गया. अभी हम उस का पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाए थे कि अचानक दिवाकर की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई.” यह सुनते ही मैं सकते में आ गई.

“ओह, इतनी जल्दी… यह तो बहुत बुरा हुआ,” मैं आंखें चौड़ी कर के हतप्रभ उस की ओर देख रही थी.

इतना बता कर निशा थोड़ी देर के लिए मौन हो गई, जैसे वह अतीत में पहुंच गई हो.

उस की आंखों में आंसू छलछला आए. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस को क्या कह कर सांत्वना दूं. मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में न थी.

उस ने तटस्थ हो कर आगे बताया, “उस के बाद तो मेरे सासससुर ने मुझे यह कह कर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया कि मेरा मनहूस साया पड़ने के कारण ही उन के बेटे की असमय मृत्यु हो गई है. मेरा ससुराल में रहना दूभर हो गया था, इसलिए मैं अपने मातापिता के पास लौट गई.

“मैं ने फिर से स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. मेरे मातापिता ने इकलौती संतान होने के कारण, मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी. दिवाकर की कमी की भरपाई करने के लिए भी उन्होंने मेरा दूसरा विवाह करने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं ने उन को अच्छी तरह समझा दिया कि दिवाकर का स्थान मेरे जीवन में कभी कोई नहीं ले सकता. अंत में उन को मेरे इस इरादे से समझौता करना ही पड़ा.

मेरे मातापिता मेरे दुख से अंदर ही अंदर घुल कर एक के बाद एक इस संसार से विदा हो गए. उस समय दिनेश की उम्र 14 वर्ष थी.

“समय बीतता गया और दिनेश की पिलानी से इंजीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद बेंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी लग गई. दिनेश की नौकरी लगने के बाद मैं भी जयपुर छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए बेंगलुरु चली गई.”

थोड़ी देर के लिए उस की वाणी पर विराम लग गया था. मैं ने कहा, “मुझे अफ़सोस है कि मैं ने तुम्हारे घाव हरे कर दिए.”

“नहीं रे, तुझ से अपना दुख बांट कर तो मेरा मन हलका हो रहा है. अब तू ही बता इतना कुछ झेलते हुए, तुझे मैं कैसे पत्र लिखती. लेकिन यह सच है कि मैं तुझे कभी नहीं भूली,” उस ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

“तभी तो कुदरत ने हमें दोबारा मिला दिया,” मैं ने वातावरण को हलका करने के लिए कहा.

“थक गई होगी मेरी रामकहानी सुनतेसुनते, मैं चाय बना कर लाती हूं,” कह कर वह उठ कर चली गई.

चाय पीतेपीते मैं ने बातों का सिलसिला ज़ारी रखते हुए पूछा, “लेकिन बेंगलुरु से यहां पूना कब और क्यों आई?”

“इस के पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है,” इतना बोलने के बाद क्षणभर के लिए वह चुप हो गई.

मैं अवाक सोच में पड़ गई कि अब पता नहीं वह और कौन से जीवन के दुखद राज़ खोलेगी. उस के चेहरे के भावों से यह तो ज्ञात हो ही रहा था कि उस का यह अनुभव भी सुखद नहीं होगा.

उस ने कहना शुरू किया, “दिनेश की अच्छी कंपनी में नौकरी लगने के बाद मैं उस के विवाह के सपने देखने लग गई थी. उस के विवाह के बारे में मैं सोचूं, इस के पहले ही उस ने बताया कि वह अपनी एक सहकर्मी को मेरी बहू बनाना चाहता है. मेरा मन खुशी से फूला नहीं समाया कि इस से अच्छा और क्या है कि मेरे बेटे ने स्वयं ही लड़की ढूंढ ली है. एक दिन वह नीरू को औफिस से अपने साथ ही मुझ से मिलाने ले आया.

“वह शक्लसूरत से प्यारी थी, पढ़ीलिखी थी और फिर मेरे बेटे को पसंद थी. सो, मुझे कुछ सोचने की आवश्यकता ही नहीं लगी.

“विवाह के बाद धीरेधीरे बहू की तुनकमिजाजी, हर बात में बहस करना, अपनी बात मनवा कर छोड़ना, छोटीछोटी बातों पर रूठ कर अपने मायके जा कर बैठ जाना… मुझे और दिनेश को अखरने लगा. मैं ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि विवाह एक समझौता होता है. लेकिन वह मेरी बात अनसुनी कर देती थी. उस की मां ने उस को कभी समझाने की कोशिश नहीं की. अंत में वही हुआ जिस की मैं ने कल्पना नहीं की थी, तलाक…

“उस के बाद हमारा मन बेंगलुरु में नहीं लगा. दिनेश ने यहां दूसरी नौकरी ढूंढ ली और 6

महीने पहले हम यहां आ गए. मैं न अच्छी बहू बन सकी और न अच्छी सास,” उस ने

एक सांस में सबकुछ कह दिया, गहरी उदासी उस के चेहरे से झलकने लगी.”

उस को सहज करने और हिम्मत देने के लिए मैं ने कहा, “अरे, ऐसा क्यों सोचती है? गलत लोगों से रिश्ता होने के कारण अपनेआप को कम मत आंक. यह तो उन लोगों की बेवकूफी है कि उन्होंने तेरी कद्र नहीं की. उसे एक दुर्घटना समझ कर भूल जा.

“दिवाकर और अपने मातापिता के जाने के बाद मैं अपने को बहुत अकेला महसूस कर रही थी, लेकिन अब तुझ से मिलने के बाद यह एहसास कम हो गया है. अब तू अपने तथा अपने परिवार के बारे में भी तो कुछ बता?” उस ने थोड़ा तटस्थ हो कर उत्सुकता से पूछा.

प्रत्युत्तर में मैं ने बताया, “मेरा तो जीवन सीधासपाट है. मेरे 2 बच्चे हैं. बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस गया है. एक बेटी और पति हैं, उन से तो तू मिल ही चुकी है.”

मुझे निशा के घर आए कई घंटे हो गए थे. हम ने जीभर कर पुरानी यादों के समुद्र में गोते लगाए. निशा ने कहा कि आज पता नहीं कितने वर्षों बाद उसे हंसी आई है. अचानक नेहा के कार के हौर्न की आवाज़ बाहर से सुनाई दी तो मैं घर लौटने के लिए खड़ी हो गई. निशा ने खाना खा कर जाने का मुझ से बहुत आग्रह किया. लेकिन मैं ने  फिर कभी कह कर उस से जाने की अनुमति मांगी. 2 दिनों बाद ही रविवार था. निशा को अपने बेटे के साथ अपने घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित कर के मैं ने विदा ली.

रविवार शाम को निशा अपने बेटे के साथ हमारे घर आ गई. आने के बाद वह बारबार कह रही थी कि मुझ से मिलने के बाद वह बेहद खुश है. इधर मेरा भी यही हाल था. खाते हुए उसे इस बात की बहुत खुशी हुई कि इतने सालों में भी मैं उस की पसंद को नहीं भूली हूं. खाना खाने के बाद बहुत देर तक बैठ कर बातें होती रहीं, कब रात के 11 बज गए, पता ही न चला.

इस के बाद आएदिन हम लोग एकदूसरे के घर जाने लगे थे. अकसर नेहा मुझे निशा के घर छोडती हुई दिनेश के साथ औफ़िस चली जाती और लौटते समय मुझे लेती हुई घर आ जाती.

समय अपनी रफ़्तार से बीत रहा था. समय में बदलाव के अनुसार मैं ने एक दिन नेहा से पूछा, ”बेटा समय से सभी काम होने चाहिए. मैं चाहती हूं कि तू अगले महीने 25 वर्ष की हो जाएगी. अब तेरी शादी होनी चाहिए. तुझे कोई पसंद है तो बता दे, नहीं तो मैं कोशिश करूं.”

वह जैसे इसी मौके की ताक में ही थी. बिना किसी भूमिका के सपाट स्वर में बोली, “ममा, मैं और दिनेश आपस में शादी करना चाहते हैं.”

मैं अचानक इस अप्रत्याशित बात को सुन कर हतप्रभ रह गई. थोड़ी देर तो मैं अवाक रह कर सोच में पड़ गई, फिर चिल्ला कर बोली, “तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है, तुझे पता है न, कि वह तलाकशुदा है. फिर बिरादरी वाले क्या कहेंगे, यह भी तूने सोचा है? मेरी तो नाक ही कट जाएगी. तेरे विवाह के लिए मैं ने पता नहीं कितने सपने देखे हैं. ऐसी तुझ में क्या कमी है कि ऐसे लड़के से तू शादी करेगी?”

“तो क्या हुआ मां, तलाक होने के बाद कोई पुरुष भविष्य में क्या अच्छा पति नहीं बन सकता? इस में उस की कोई गलती नहीं है. यह उस के समय की विडंबना ही समझो. उस ने मुझ से कोई बात छिपाई नहीं. मुझे तो वह पहले ही बहुत पसंद था, लेकिन जब पता लगा कि उस की

मां आप की बचपन की सखी हैं, तो मुझे अपने रिश्ते पर गर्व होने लगा और क्या गारंटी है कि अविवाहित लड़के के साथ मैं खुश ही रहूंगी?”

मैं ने अपने पति को बुलाकर नेहा को समझाने की बात कही, तो मेरे पति सारी स्थिति समझ कर बोले, ”समय बहुत बदल गया है, नेहा पढ़ीलिखी लड़की है. इस को अपनी पसंद का जीवनसाथी ढूंढने का पूरा अधिकार है. जानापहचाना परिवार है. लड़का भी अच्छी पोस्ट पर काम कर रहा है. जब उस के तलाकशुदा होने से नेहा को कोई एतराज़ नहीं, तो हमें क्यों है?”

मैं ने अमेरिका फोन कर के अपने बेटेबहू से भी सलाह ली, तो उन्होंने भी कहा कि जब नेहा राजी है, तो उन को भी कोई आपत्ति क्यों होगी. सब के तर्क के सामने मेरे लिए सोचने को कुछ बचा ही नहीं था. मैं ने फिर इस संबंध में गहराई से मनन किया तो मुझे भी लगा कि आजकल समय इतना बदल गया है कि अनजान परिवार में रिश्ता करना भी ठीक नहीं है. निशा को तो मैं बचपन से जानती हूं, इसलिए नेहा की पसंद पर मुहर लगा देना ही ठीक है.

अगले दिन मैं अपने पति के साथ बिना देर किए निशा के घर पहुंच गई. हमें अचानक आया देख कर वह अचंभित हो कर बोली, “अरे, आप लोग, अचानक कैसे?”

उस की बात पूरी भी नहीं हुई कि मैं बोली, “बात ही कुछ ऐसी है कि हम रुक नहीं पाए. हम अपनी बेटी को तुम्हें सौंपना चाहते हैं,” मैं ने बिना किसी भूमिका के एक सांस में बोल दिया, जैसे मुझे पूरा विश्वास था कि निशा इस रिश्ते के लिए एकदम तैयार हो जाएगी.

और वही हुआ. इस अप्रत्याशित प्रस्ताव की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह खुश हो कर बोली, “मेरे लिए इस से अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है. लेकिन नेहा को पता है न कि दिनेश… उस से तो पूछो?”

उस के कहने से ही तो हम यह प्रस्ताव ले कर यहां आए हैं. दिनेश और नेहा दोनों ही एकदूसरे को चाहते हैं. बस, तुम्हारी स्वीकृति मिलनी बाकी थी. और हर्षातिरेक में हम दोनों सखियां एकदूसरे से लिपट गईं. मैं ने हंसते हुए कहा, “निशा, तुझे याद है हम ने आपस में कई बार कहा था कि हम अपने बच्चों की शादी आपस में कर के एकदूसरे से रिश्तेदारी जोड़ लेंगे. हमारा इतने सालों बाद मिलना केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि कुदरत की ही सुनियोजित योजना है, कहते हैं जोड़े ऊपर से बन कर आते हैं. अच्छा, अब यह बता, दहेज़ में तुझे क्या चाहिए?”

“तुम्हारी प्यारी सी बेटी नेहा,” निशा के इतना कहते ही हम सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

Social Story : सैयद साहब की हवेली – आदिल ने क्यों और किसके लिए खोदी कब्र ?

Social Story : गांव हालांकि छोटा था, लेकिन थोड़ीबहुत तरक्की कर रहा था. पहले 70-100 मकान थे, पर अब गांव के बाहर भी घर बनने लगे थे. सरकारी जमीन पर भी, जहां ढोरमवेशी चराए जाने के लिए जगह छोड़ी गई थी, निचली जाति के लोगों ने उस पर कब्जे कर लिए थे. झोंपड़ों के मकड़जाल की यह खबर हवेली तक भी पहुंच गई. हवेली में सैयद फैयाज मियां हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे और उन के पैरों को हज्जाम घासी मियां सहला रहे थे. उन्होंने ही धीमी रफ्तार से पूरे गांव की सब खबरें सुनानी शुरू कर दी थीं. गांव में मुसलिमों के एक दर्जन से कम घर थे, लेकिन बड़ी हवेली सैयद साहब की ही थी. सब से ज्यादा जमीन, नौकरचाकर भी उन्हीं की हवेली में थे.

1-2 भिश्ती और पिंजारों के परिवार के लोग भी उन की खिदमत के लिए आ कर बस गए थे. पूरे गांव में उन की मालगुजारी होने से दबदबा भी बहुत था, लेकिन कोई उन के गांव में आ कर बस जाए और उन्हें खबर भी न करे या बस जाने की इजाजत लेने की जहमत भी न उठाए, यह कैसे हो सकता था. जब इतनी जमीन, इतनी बड़ी हवेली और इतने लोग थे, तो कुछ पहलवान भी थे, जो पहलवान कम गुंडे ज्यादा थे. उन का पलनारहना भी लाजिमी था. जैसे कोई भी बस्ती कहीं भी बस जाए बिना चाहे, बिना बुलाए दोचार कुत्ते आ ही जाते हैं, उसी तरह ये गुंडे भी हवेली के टुकड़ों पर पल रहे थे. कोई आता तो लट्ठ ले कर उसे अंदर लाते थे और कभीकभी कुटाई भी कर देते थे. थाने से ले कर साहब लोगों तक सैयद साहब की खूब पकड़ थी. सैयद साहब का एक बाड़ा था, जहां उन के जन्नतनशीं हो चुके रिश्तेदार कयामत के इंतजार में कब्र में पड़े थे. उसी बाड़े से लगा एक और कब्रिस्तान था, जो 7-10 घरों के भिश्ती मेहतरों के लिए था.

जब हज्जाम मियां ने गांव में बस रहे झोंपड़ों की जानकारी दी, तो सैयद साहब के माथे पर बल पड़ गए थे. वे जानते थे कि ये छोटी जाति के लोग आने वाले वक्त में गांव के बाशिंदे बन कर वोट बैंक को बिगाड़ देंगे. आज की तारीख में तो सरपंच से ले कर विधायक तक हवेली में सलाम करने आते हैं, उस के बाद जीतहार तय होती है. तकरीबन 200-250 वोट एकतरफा पड़ते हैं, फिर आसपास के गांवों में उन के पाले हुए गुंडे सब संभाल लेते हैं. पूरा गांव ही नहीं, आसपास के गांव वाले भी जानते थे कि सैयद साहब से दुश्मनी लेना यानी हुक्कापानी बंद. फिर किसी दूसरे गांव में किसी ने पनाह दे भी दी, तो समझो कि उस बंदे की खैर नहीं. सैयद साहब की थोड़ी उम्र भी हो चली थी. दाढ़ी के बाल पकने लगे थे, लेकिन उमंगें आज भी जवान थीं. उन की 2 बेटियां, एक बेटा भी था, जो धीरेधीरे जवानी में कदम रख रहे थे.

बेटे में भी सारे गुण अपने अब्बा के ही थे. नौकरों से बदतमीजी से बात करना, स्कूल न जाना, दिनभर आवारागर्दी करना और तालाब पर मछली मारने के लिए घंटों बैठे रहना. पूरे गांव के लोग उसे सलाम करते थे. वह भी अपने साथ 3-4 लड़कों को रखता था, लेकिन उस ने कभी भी गांव की किसी लड़की की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा. इस का मतलब यह नहीं था कि उस की उमंगें कम थीं. जोकुछ वह सोचता, खानदान की इज्जत की खातिर सपने में पूरी कर लेता था. इसी छोटी बस्ती में हसन कुम्हार ने आ कर झोंपड़ा तान लिया था. एक तो मुसलिम, ऊपर से बड़ी हवेली सैयद की. बस, इसी वजह से उस के आसपास के लोग उस से डर कर रहते थे. वह भी न जाने कौन सी जगह से आ कर बस गया था, लेकिन सलाम करने वह हवेली नहीं पहुंचा था.

हज्जाम मियां ने उस की शिकायत भी कर दी थी. सैयद साहब ने सोचा, ‘अपनी जाति वाले से शुरू करें, तो यकीनन दूसरे हिंदू तो डर ही जाएंगे.’ उन का पहलवान हसन मियां को बुला लाया. हसन मियां दुबलापतला चुंगी दाढ़ी वाला था, लेकिन साथ में जो उस का बेटा आया था, वह गबरू जवान था. सलाम कर के हसन मियां वहां बड़े ही अदब से खड़े हो गए. सैयद साहब दीवान पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे. 1-2 पहलवान लट्ठ लिए खड़े थे. हसन मियां इंतजार कर रहा था कि सैयद साहब कुछ सवाल करें, लेकिन सैयद साहब तो अपने में मगन हो कर कुछ गुनगुना रहे थे. थोड़ी देर बाद हसन मियां ने कहा, ‘‘हुजूर, इजाजत हो, तो मैं चला जाऊं?’’

सैयद साहब चौंके, फिर कह उठे, ‘‘अरे हां… क्यों रे, क्या नाम है तेरा?’’

‘‘हसन.’’

‘‘और… यह कौन है?’’

‘‘हुजूर, मेरा बेटा है.’’

‘‘काम क्या करते हो?’’

‘‘हुजूर, मिट्टी का काम है.’’

‘‘मतलब.’’

‘‘हुजूर, पहले जिस गांव में था, वहां कब्रें खोदता था, लेकिन कुछ कमाई कम थी, इस वजह से काम बदल लिया.’’

‘‘अब क्या करते हो’’

‘‘हुजूर, अब मिट्टी के बरतन बनाने का काम करता हूं.’’

‘‘और यह तेरा बेटा क्या करता है?’’

‘‘हुजूर, मदद करता है.’’

‘‘गूंगा है?’’

‘‘नहीं हुजूर… सैयद साहब के हाथ चूम कर आओ बेटा.’’ हसन मियां का बेटा आगे बढ़ा और बड़े अदब से हाथ को सिरमाथे लगा कर हाथ चूम कर खड़ा हो गया.

‘‘यहां बसने से पहले तुम इजाजत लेने क्यों नहीं आए?’’

‘‘हुजूर, सोचा था कि झोंपड़ा तन जाए, तब पूरे खानदान के साथ सलाम करने आते, लेकिन आप का बुलावा तो पहले ही आ गया,’’ बहुत ही नरमी से हसन मियां जवाब दे रहा था. वह जानता था कि एक बात भी जबान से कुछ फिसली तो सैयद साहब और उन के पले कुत्ते उन्हें छोड़ेंगे नहीं, फिर इस गांव को छोड़ कर कहीं और जगह ढूंढ़नी होगी.

‘‘क्यों रे, यहां कुछ काम करेगा?’’

‘‘कैसा काम?’’

‘‘यहां भी मुसलिम रहते हैं… कोई गमी हो गई, तो कब्र खोद देगा?’’

‘‘क्यों नहीं हुजूर.’’

‘‘कितने रुपए लेता है?’’

‘‘हुजूर, महंगाई है… सोचसमझ कर दिलवा देना.’’

‘‘चल, ठीक है, 2 सौ रुपए मिलेंगे… मंजूर है?’’

‘‘आप का दिया सिरआंखों पर.’’

‘‘तो खयाल रखना कि आज के बाद गांव में किसी के यहां गमी हुई, तो तुझे खबर मिल जाएगी. तू और तेरा यह लड़का कब्र खोदने का काम करेगा. कोई दिक्कत तो नहीं है?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ हसन मियां ने खुश होने का ढोंग किया. दरअसल, हसन की बीवी और उस के इस बेटे को कब्र खोदने का काम बिलकुल पसंद नहीं था. बीवी चाहती थी कि उन का बेटा आदिल पढ़लिख कर इस गंदे काम से पार हो जाए. आदिल भी जानता था कि उन के घर का दानापानी मरने वालों से ही चलता है. एकदो मर गए, तो 3-4 सौ रुपए मिल जाते थे, वरना एकएक हफ्ता निकल जाता था. बड़ी अजीब सी दलदली, गंदी जिंदगी हो गई थी. उधर कब्र खोदने के काम को छोड़ने का मन बना कर इस गांव में आए और यहां भी सैयद साहब यह काम करवाने पर तुले हैं, लेकिन डर के मारे उस ने कुछ कहा नहीं. सैयद साहब ने जाने का इशारा किया, तो वे सलाम कर के लौट गए.

अगले कुछ दिनों में हवेली में छोटी जाति के तमाम लोगों का बुलावा हो गया. सब अपनी दुम टांगों में दबा कर आए और ‘जो आने वाले वक्त में मालिक कहेंगे’. इस बात पर सहमत हो गए. किसी की हिम्मत नहीं थी कि इतनी बड़ी हवेली के खिलाफ कुछ कहें या दिल में सोचें. अभी हसन मियां सो कर भी नहीं उठे थे कि हवेली से खबर आ गई कि कब्र खोदने के लिए बुलाया है. हसन मियां की तबीयत ठीक नहीं थी. उस ने आदिल से कहा, ‘‘इस काम को निबटा कर आ जाए.’’ आदिल बगैर इच्छा के कंधे पर गमछा रख कर चला गया. हवेली का पूरा माहौल गमगीन था. सैयद साहब की बेटी कमरे में रो रही थी. बेटा बहुत उदास बैठा था. सैयद साहब कमरे से बाहर आए और पहलवान को इशारा किया. वह आदिल को बाड़े से लगे कब्रिस्तान में ले गया, जहां दूसरी मुसलमान जाति के लोगों को दफन किया जाता था. एक जगह देख कर पहलवान ने कहा, ‘‘यहीं कब्र खोद लो. कम से कम 2 फुट चौड़ी और 5 फुट गहरी.’’

‘‘जनाब, कोई बच्चा खत्म हो गया क्या?’’ आदिल ने बहुत अदब से पूछा.

‘‘जितना कहा है, उतना सुन लो.’’

आदिल कब्र खोदने लगा. पूरी कब्र खोद कर उस ने माथे का पसीना पोंछा ही था कि तभी हज्जाम मियां आए और उसे बुला कर हवेली में ले गए और एक ओर पड़ी कुत्ते की लाश को बता कर कहा, ‘‘इसे उठा कर दफन कर आओ.’’

‘‘इस कुत्ते की लाश को?’’ हैरत से आदिल ने पूछा. उस को जवाब मिलता, उस के पहले  ही एक पहलवान ने आदिल की कमर पर एक लात रसीद कर दी.

‘‘सैयद साहब की औलाद थी वह और तू उसे जानवर कहता है.’’ आदिल झुका, उस जानवर तक हाथ बढ़ाया, फिर उस ने कहा, ‘‘लेकिन, यह काम हमारा नहीं है…’’ उस की बात खत्म भी नहीं हुई थी कि एक लात उस के पुट्ठे पर पड़ी और आदिल कुत्ते पर जा गिरा. ‘वह कुत्ता था. जानवर था, मर गया था. उसे कोई भी एहसास नहीं था, इसलिए वह धूप में पड़ा था. लेकिन मैं तो जिंदा हूं. मुझे तो लातों का दर्द, बेइज्जती का एहसास हो रहा है. ‘‘अगर मैं जिंदा हूं, तो मुझे जिंदा होने का सुबूत देना होगा,’ यह सोच कर आदिल बेदिली से उठा. उस ने देखा कि कमरे के बाहर दीवान पर सैयद साहब बैठ गए थे. उस ने बड़े दरवाजे पर नजर डाली. वह खुला हुआ था. उस ने  हिम्मत बटोरी और एक पल में ही दौड़ कर बाहर भाग गया.

पहलवान और सैयद साहब भौंचक्के रह गए थे कि आखिर हो क्या गया?

आदिल अपने झोंपड़े में नहीं गया. वह जानता था कि उसे पकड़ लिया जाएगा. वह दूसरी दिशा में भाग खड़ा हुआ था. पहलवान हसन मियां के घर पहुंचे. आदिल तो मिला नहीं. वे हसन मियां को पकड़ लाए. उसे भी 2-3 लातें मारीं और उस ने मरे जानवर को उठा कर कब्र में दफन किया. तबीयत भी ठीक नहीं थी. घर आ कर बिस्तर पर लेट गया. आदिल जब घर लौटा, तो अब्बा की हालत उस से छिपी नहीं रही. आदिल ने मुट्ठी भींची और पुलिस थाने चला गया. थाना शहर के पास था. आदिल अपनी चोटों के साथ, धूल सने कपड़ों के साथ थाने में पहुंचा. वहां रिपोर्ट लिखने वाला कोई सिपाही बैठा था. उसी की बगल में कोई न्यूज रिपोर्टर भी बैठ कर चाय पी रहा था. आदिल ने रोते हुए सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘मेरे अब्बा को मारा, उन से मरा जानवर उठवाया, दफन करवाया, एक रुपया भी मेहनताना नहीं दिया, बेइज्जती अलग से की.’’

न्यूज रिपोर्टर एक अच्छी स्टोरी के चक्कर में था. उस ने भी सैयद साहब की हवेली के बहुत से किस्से सुन रखे थे. उस ने रिपोर्ट लिखने वाले सिपाही से कहा, ‘‘यार, यह देश की नौजवान पीढ़ी है. इसे इंसाफ मिलना चाहिए.’’

‘‘यार, तुम संभाल लेना,’’ सिपाही झिझकते हुए बोला.

‘‘आप चिंता मत करो, लेकिन इस की रिपोर्ट लिख लो.’’

उस ने रजिस्टर उठाया, उस की बात को लिखा, फिर एफआईआर काटी और एक पुलिस वाले को भेज कर उस का मैडिकल करने भेज दिया. देखते ही देखते लोकल चैनल पर सैयद साहब की हवेली, मारपीट, उन की हिंसा के जोरदार किस्से टुकड़ोंटुकड़ों में बयां होने लगे. सैयद साहब को भी खबर लग गई. उन का पारा सातवें आसमान पर था. एक मजदूर की औलाद की इतनी हिम्मत? तुरंत हसन मियां को बुलाने पहलवान भेज दिए. हसन मियां को 2 पहलवान पकड़ कर ले आए. उसे भी उड़तीउड़ती खबर लग गई थी कि आदिल ने मामला गड़बड़ कर दिया है. जब हवेली में वह हाजिर हुआ, रात हो गई थी. सुबह की बेइज्जती का दर्द दिल पर से अभी पूरी तरह से हटा नहीं था.

‘‘हसन, तू जानता है कि तुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘हुजूर,’’ घबराते हुए इतना ही मुंह से निकला.

‘‘तेरी औलाद ने हमारी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है.’’

‘‘हुजूर…’’

‘‘उसे अभी बुला और अपनी रिपोर्ट वापस लेने को कह. समझा कि नहीं?’’ सैयद साहब ने चीख कर कहा. पूरी हवेली उन की आवाज से कांप गई थी. हसन मियां भी ठान कर आया था कि वह तो मजदूर है, कहीं भी कमाखा लेगा. उस ने कहा, ‘‘हुजूर, बेटा तो अभी तक लौटा नहीं है.’’

‘‘कहां है वह?’’

‘‘शहर में ही है.’’

‘‘जा कर ले आ, वरना इस गांव में रह नहीं पाएगा,’’ सैयद साहब ने गुस्से से कांपते हुए कहा.

हसन मियां ने कहा, ‘‘हुजूर, रातभर की बात है, सुबह हम गांव छोड़ देंगे.’’

‘‘मुंह चलाता है…’’ सैयद साहब चीखे. उसी के साथ 2-3 लातघूंसे हसन मियां के मुंह पर पड़ गए. वह गिर पड़ा. रोते हुए वह बाहर आया. वह अपने झोंपड़े की ओर बढ़ा, तो देखा कि सैयद साहब के गुंडे उस के झोंपड़े को आग लगा रहे थे. सैयद साहब एक ओर जीप में बैठे थे. आदिल की अम्मी झोंपड़े के बाहर खड़ी रो रही थी. तभी एक मोटरसाइकिल पर आदिल उस रिपोर्टर के साथ आया. उस ने अपने कैमरे से सब शूट करना शुरू कर दिया. सैयद साहब भी उस शूट में दिखाई दे रहे थे. तुरंत वह न्यूज भी दिखाई जाने लगी. सुबह पुलिस आदिल की अम्मी, अब्बू को ले गई. रिपोर्ट लिखवाई और दोपहर होतेहोते हवेली में पुलिस अंदर घुस गई. पूरे गांव में हल्ला मच गया था. दोपहर में पुलिस पहलवानों और सैयद साहब को पकड़ कर ले गई. आदिल गांव में आया. अब्बा के साथ अपना झोंपड़ा दोबारा बनाया और मेहनतमजदूरी में जुट गया. बड़ेबड़े वकीलों ने सैयद साहब की जमानत कराई. पूरे एक महीने तक जेल में रह कर वे वापस लौटे. सैयद साहब के चेहरे की रौनक चली गई थी. बापदादाओं की इज्जत पर पानी फिर गया था. हसन मियां को भी मालूम पड़ गया था कि सैयद साहब आ गए हैं. अब तो उन्हें बहुत होशियारी से रहना होगा. सैयद साहब को बेइज्जती का ऐसा धक्का लगा कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया और पूरा एक महीना भी नहीं गुजरा कि इस दुनिया से चले गए. जैसे ही हसन मियां को मालूम हुआ, वह आदिल के साथ ईमानदारी के साथ कब्र खोदने जा पहुंचा. कब्र खोदतेखोदते आदिल ने अपने अब्बा को देखा, तो अब्बा ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या बात हुई?’’

‘‘अब्बा, जो कुछ हुआ, उस पर किसी का जोर नहीं है, लेकिन एक बात तो है…’’

‘‘क्या?’’

‘‘कोई कितना भी बड़ा आदमी मरे, कब्र तो मजदूर ही खोदता है. देखो न, हम ने सैयद साहब की कब्र खोद दी.’’ हसन मियां फटी आंखों से आदिल का चेहरा देख रहा था.

Best Hindi Story : दिल हथेली पर – अमित और मेनका क्या सोच रहे थे

Best Hindi Story : अमित और मेनका चुपचाप बैठे हुए कुछ सोच रहे थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. तभी कालबेल बजी. मेनका ने दरवाजा खोला. सामने नरेन को देख चेहरे पर मुसकराहट लाते हुए वह बोली, ‘‘अरे जीजाजी आप… आइए.’’

‘‘नमस्कार. मैं इधर से जा रहा था तो सोचा कि आज आप लोगों से मिलता चलूं,’’ नरेन ने कमरे में आते हुए कहा. अमित ने कहा, ‘‘आओ नरेन, कैसे हो? अल्पना कैसी है?’’

नरेन ने उन दोनों के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम दोनों तो ठीक हैं, पर मैं देख रहा हूं कि आप किसी उलझन में हैं.’’ ‘‘ठीक कहते हो तुम…’’ अमित बोला, ‘‘तुम तो जानते ही हो नरेन कि मेनका मां बनने वाली है. दिल्ली से बहन कुसुम को आना था, पर आज ही उस का फोन आया कि उस को पीलिया हो गया है. वह आ नहीं सकेगी. सोच रहे हैं कि किसी नर्स का इंतजाम कर लें.’’

‘‘नर्स क्यों? हमें भूल गए हो क्या? आप जब कहेंगे अल्पना अपनी दीदी की सेवा में आ जाएगी,’’ नरेन ने कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा,’’ मेनका बोली.

अमित को अपनी शादी की एक घटना याद हो आई. 4 साल पहले किसी शादी में एक खूबसूरत लड़की उस से हंसहंस कर बहुत मजाक कर रही थी. वह सभी लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. अमित की नजर भी बारबार उस लड़की पर चली जाती थी. पता चला कि वह अल्पना है, मेनका की मौसेरी बहन.

अब अमित ने अल्पना के आने के बारे में सुना तो वह बहुत खुश हुआ. मेनका को ठीक समय पर बच्चा हुआ. नर्सिंग होम में उस ने एक बेटे को जन्म दिया.

4 दिन बाद मेनका को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई. शाम को नरेन घर आया तो परेशान व चिंतित सा था. उसे देखते ही अमित ने पूछा, ‘‘क्या बात है नरेन, कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

‘‘हां, मुझे मुंबई जाना पड़ेगा.’’ ‘‘क्यों?’’

‘‘बौस ने हैड औफिस के कई सारे जरूरी काम बता दिए हैं.’’ ‘‘वहां कितने दिन लग जाएंगे?’’

‘‘10 दिन. आज ही सीट रिजर्व करा कर आ रहा हूं. 2 दिन बाद जाना है. अब अल्पना यहीं अपनी दीदी की सेवा में रहेगी,’’ नरेन ने कहा. मेनका बोल उठी, ‘‘अल्पना मेरी पूरी सेवा कर रही है. यह देखने में जितनी खूबसूरत है, इस के काम तो इस से भी ज्यादा खूबसूरत हैं.’’

‘‘बस दीदी, बस. इतनी तारीफ न करो कि खुशी के मारे मेरे हाथपैर ही फूल जाएं और मैं कुछ भी काम न कर सकूं,’’ कह कर अल्पना हंस दी. 2 दिन बाद नरेन मुंबई चला गया.

अगले दिन शाम को अमित दफ्तर से घर लौटा तो अल्पना सोफे पर बैठी कुछ सोच रही थी. मेनका दूसरे कमरे में थी. अमित ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो अल्पना?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ अल्पना ने कहा. ‘‘मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या?’’ ‘‘नरेन के मुंबई जाने से तुम्हारा मन नहीं लग रहा?है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. वे जिस कंपनी में काम करते हैं, वहां बाहर जाना होता रहता है.’’ ‘‘जैसे साली आधी घरवाली होती है वैसे ही जीजा भी आधा घरवाला होता है. मैं हूं न. मुझ से काम नहीं चलेगा क्या?’’ अमित ने अल्पना की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘अगर जीजाओं से काम चल जाता तो सालियां शादी ही क्यों करतीं?’’ कहते हुए अल्पना हंस दी. 5-6 दिन इसी तरह हंसीमजाक में बीत गए. एक रात अमित बिस्तर पर बैठा हुआ अपने मोबाइल फोन पर टाइमपास कर रहा था. जब आंखें थकने लगीं तो वह बिस्तर पर लेट गया.

तभी अमित ने आंगन में अल्पना को बाथरूम की तरफ जाते देखा. वह मन ही मन बहुत खुश हुआ. जब अल्पना लौटी तो अमित ने धीरे से पुकारा.

अल्पना ने कमरे में आते ही पूछा, ‘‘अभी तक आप सोए नहीं जीजाजी?’’ ‘‘नींद ही नहीं आ रही है. मेनका सो गई है क्या?’’

‘‘और क्या वे भी आप की तरह करवटें बदलेंगी?’’ ‘‘मुझे नींद क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मन में होगा कुछ.’’ ‘‘बता दूं मन की बात?’’

‘‘बताओ या रहने दो, पर अभी आप को एक महीना और करवटें बदलनी पड़ेंगी.’’ ‘‘बैठो न जरा,’’ कहते हुए अमित ने अल्पना की कलाई पकड़ ली.

‘‘छोडि़ए, दीदी जाग रही हैं.’’ अमित ने घबरा कर एकदम कलाई छोड़ दी.

‘‘डर गए न? डरपोक कहीं के,’’ मुसकराते हुए अल्पना चली गई. सुबह दफ्तर जाने से पहले अमित मेनका के पास बैठा हुआ कुछ बातें कर रहा था. मुन्ना बराबर में सो रहा था.

तभी अल्पना कमरे में आई और अमित की ओर देखते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बहुत बेशर्म हैं.’’ यह सुनते ही अमित के चेहरे का रंग उड़ गया. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्यों?’’

‘‘आप ने अभी तक मुन्ने के आने की खुशी में दावत तो क्या, मुंह भी मीठा नहीं कराया.’’ अमित ने राहत की सांस ली. वह बोला, ‘‘सौरी, आज आप की यह शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’

शाम को अमित दफ्तर से लौटा तो उस के हाथ में मिठाई का डब्बा था. वह सीधा रसोई में पहुंचा. अल्पना सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी. अमित ने डब्बा खोल कर अल्पना के सामने करते हुए कहा, ‘‘लो साली साहिबा, मुंह मीठा करो और अपनी शिकायत दूर करो.’’

मिठाई का एक टुकड़ा उठा कर खाते हुए अल्पना ने कहा, ‘‘मिठाई अच्छी है, लेकिन इस मिठाई से यह न समझ लेना कि साली की दावत हो गई है.’’ ‘‘नहीं अल्पना, बिलकुल नहीं. दावत चाहे जैसी और कभी भी ले सकती हो. कहो तो आज ही चलें किसी होटल में. एक कमरा भी बुक करा लूंगा. दावत तो सारी रात चलेगी न.’’

‘‘दावत देना चाहते हो या वसूलना चाहते हो?’’ कह कर अल्पना हंस पड़ी. अमित से कोई जवाब न बन पड़ा. वह चुपचाप देखता रह गया.

एक सुबह अमित देर तक सो रहा था. कमरे में घुसते ही अल्पना ने कहा, ‘‘उठिए साहब, 8 बज गए हैं. आज छुट्टी है क्या?’’ ‘‘रात 2 बजे तक तो मुझे नींद ही नहीं आई.’’

‘‘दीदी को याद करते रहे थे क्या?’’ ‘‘मेनका को नहीं तुम्हें. अल्पना, रातभर मैं तुम्हारे साथ सपने में पता नहीं कहांकहां घूमता रहा.’’

‘‘उठो… ये बातें फिर कभी कर लेना. फिर कहोगे दफ्तर जाने में देर हो रही है.’’ ‘‘अच्छा यह बताओ कि नरेन की वापसी कब तक है?’’

‘‘कह रहे थे कि काम बढ़ गया है. शायद 4-5 दिन और लग जाएं. अभी कुछ पक्का नहीं है. वे कह रहे थे कि हवाईजहाज से दिल्ली तक पहुंच जाऊंगा, उस के बाद टे्रन से यहां तक आ जाऊंगा.’’ ‘‘अल्पना, तुम मुझे बहुत तड़पा रही हो. मेरे गले लग कर किसी रात को यह तड़प दूर कर दो न.’’

‘‘बसबस जीजाजी, रात की बातें रात को कर लेना. अब उठो और दफ्तर जाने की तैयारी करो. मैं नाश्ता तैयार कर रही हूं,’’ अल्पना ने कहा और रसोई की ओर चली गई. एक शाम दफ्तर से लौटते समय अमित ने नींद की गोलियां खरीद लीं. आज की रात वह किसी बहाने से मेनका को 2 गोलियां खिला देगा. अल्पना को भी पता नहीं चलने देगा. जब मेनका गहरी नींद में सो जाएगी तो वह अल्पना को अपनी बना लेगा.

अमित खुश हो कर घर पहुंचा तो देखा कि अल्पना मेनका के पास बैठी हुई थी. ‘‘अभी नरेन का फोन आया है. वह ट्रेन से आ रहा है. ट्रेन एक घंटे बाद स्टेशन पर पहुंच जाएगी. उस का मोबाइल फोन दिल्ली स्टेशन पर कहीं गिर गया. उस ने किसी और के मोबाइल फोन से यह बताया है. तुम उसे लाने स्टेशन चले जाना. वह मेन गेट के बाहर मिलेगा,’’ मेनका ने कहा.

अमित को जरा भी अच्छा नहीं लगा कि नरेन आ रहा है. आज की रात तो वह अल्पना को अपनी बनाने जा रहा था. उसे लगा कि नरेन नहीं बल्कि उस के रास्ते का पत्थर आ रहा है. अमित ने अल्पना की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ठीक?है, मैं नरेन को लेने स्टेशन चला जाऊंगा. वैसे, तुम्हारे मन में लड्डू फूट रहे होंगे कि इतने दिनों बाद साजन घर लौट रहे हैं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ अल्पना बोली. ‘‘पर, नरेन को कल फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘कह रहे थे कि अचानक पहुंच कर सरप्राइज देंगे,’’ अल्पना ने कहा. अमित उदास मन से स्टेशन पहुंचा. नरेन को देख वह जबरदस्ती मुसकराया और मोटरसाइकिल पर बिठा कर चल दिया.

रास्ते में नरेन मुंबई की बातें बता रहा था, पर अमित केवल ‘हांहूं’ कर रहा था. उस का मूड खराब हो चुका था. भीड़ भरे बाजार में एक शराबी बीच सड़क पर नाच रहा था. वह अमित की मोटरसाइकिल से टकराताटकराता बचा. अमित ने मोटरसाइकिल रोक दी और शराबी के साथ झगड़ने लगा.

शराबी ने अमित पर हाथ उठाना चाहा तो नरेन ने उसे एक थप्पड़ मार दिया. शराबी ने जेब से चाकू निकाला और नरेन पर वार किया. नरेन बच तो गया, पर चाकू से उस का हाथ थोड़ा जख्मी हो गया. यह देख कर वह शराबी वहां से भाग निकला.

पास ही के एक नर्सिंग होम से मरहमपट्टी करा कर लौटते हुए अमित ने नरेन से कहा, ‘‘मेरी वजह से तुम्हें यह चोट लग गई है.’’ नरेन बोला, ‘‘कोई बात नहीं भाई साहब. मैं आप को अपना बड़ा भाई मानता हूं. मैं तो उन लोगों में से हूं जो किसी को अपना बना कर जान दे देते हैं. उन की पीठ में छुरा नहीं घोंपते.

‘‘शरीर के घाव तो भर जाते हैं भाई साहब, पर दिल के घाव हमेशा रिसते रहते हैं.’’ नरेन की यह बात सुन कर अमित सन्न रह गया. वह तो हवस की गहरी खाई में गिरने के लिए आंखें मूंदे चला जा रहा था. नरेन का हक छीनने जा रहा था. उस से धोखा करने जा रहा था. उस का मन पछतावे से भर उठा.

दोनों घर पहुंचे तो नरेन के हाथ में पट्टी देख कर मेनका व अल्पना दोनों घबरा गईं. अमित ने पूरी घटना बता दी. कुछ देर बाद अमित रसोई में चला गया. अल्पना खाना बना रही थी.

नरेन मेनका के पास बैठा बात कर रहा था. अमित को देखते ही अल्पना ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप तो बातोंबातों में फिसल ही गए. क्या सारे मर्द आप की तरह होते हैं?’’

‘‘क्या मतलब…?’’ ‘‘लगता है दिल हथेली पर लिए घूमते हो कि कोई मिले तो उसे दे दिया जाए. आप को तो दफ्तर में कोई भी बेवकूफ बना सकती है. हो सकता है कि कोई बना भी रही हो.

‘‘आप ने तो मेरे हंसीमजाक को कुछ और ही समझ लिया. इस रिश्ते में तो मजाक चलता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि… अब आप यह बताइए कि मैं आप को जीजाजी कहूं या मजनूं?’’ ‘‘अल्पना, तुम मेनका से कुछ मत कहना,’’ अमित ने कहा.

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी पर आप तो बहुत डरपोक हैं,’’ कह कर अल्पना मुसकरा उठी. अमित चुपचाप रसोईघर से बाहर निकल गया.

Family Story : पीयूषा – क्या विधवा मिताली की गृहस्थी दोबारा बस पाई?

Family Story : रविवार का दिन था. छुट्टी होने के कारण मैं इतमीनान से अपने कमरे में अखबार पढ़ रहा था, तो अचानक चाचाजी पर नजर पड़ी. वे सामने उदास व शांत खड़े हुए थे. मैं ने बैठने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘क्या बात है चाचाजी, परेशान से लग रहे हैं? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं ठीक हूं बेटा, तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ बैठने के बाद चाचाजी ने धीरे से कहा. मैं ने अखबार एक ओर रखते हुए कहा, ‘‘तो कहिए न चाचाजी.’’ लेकिन चाचाजी शांत ही बैठे रहे. मैं ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘क्या बात है चाचाजी? जो दिल में है बेझिझक कह दीजिए. आप का कथन मेरे लिए आदेश है,’’ चाचाजी की चुप्पी दरअसल मेरी बैचेनी बढ़ा रही थी. ‘‘बेटा पवन, तू ने कभी भी मेरी बात नहीं टाली है. आज भी इसी उम्मीद से तेरे पास आया हूं. तेरी चाची का और मेरा विचार है कि तू मिताली से शादी कर ले. उसे सहारा दे दे. बेचारी कम उम्र में विधवा हो गई है और दुनिया में एकदम अकेली है. मायके में उस का कोई नहीं है. हम बूढ़ाबूढ़ी का क्या भरोसा, तब वह अकेली कहां जाएगी…,’’ चाचाजी ने धीरेधीरे अपनी बात रखी. उन की आंखें सजल हो उठी थीं, गला भर आया था. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा चाचाजी की बातें सुन रहा था और क्या कहूं समझ नहीं पा रहा था. मेरे समक्ष एक ओर चाचाचाची का निर्णय था, तो दूसरी ओर मेरा प्यार जो पनप चुका था. मुझे लग रहा था कि यह बात सच है कि जीवनपथ का अगला मोड़ क्या और कैसा होगा कोई नहीं जानता. आज जीवनपथ का ऐसा मोड़ मेरे समक्ष आ खड़ा हुआ था, जिस में मुझे अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य एवं अपने प्यार में से किसी एक का चुनाव करना था.

मेरे जीवनपथ का प्रथम पड़ाव बचपन शुरू में काफी खुशहाल था. मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान हूं. पापा बैंक में मैनेजर थे और मां कुशल गृहिणी. चूंकि पापा घर के बड़े बेटे थे और मां अच्छे स्वभाव की महिला थीं, इसलिए मेरी वृद्धा दादी हमारे साथ ही रहती थीं. मुझे मांबाप के साथ दादी का भी भरपूर स्नेहप्यार मिलता रहा. पटना के सब से अच्छे स्कूल में मेरा दाखिला करवाया गया था. पढ़ाई में मेरी विशेष दिलचस्पी थी और शुरू से ही मैं मेधावी रहा, इसलिए अच्छे अंक लाता था. पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद, गायन आदि में भी मेरी विशेष रुचि थी. मुझे मांपापा का पूरा प्रोत्साहन मिलता रहा, इसलिए सभी क्षेत्रों में अच्छा कर मैं परिवार एवं स्कूल की आंखों का तारा बना रहा. मेरे जीवनपथ में अचानक ही अत्यंत कठिन और पथरीला मोड़ आ खड़ा हुआ. मैं उस समय कक्षा 8 में पढ़ता था. मांपापा का अचानक रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. मेरे पास इस दुख को सहने की न तो बुद्धि थी न ही हिम्मत. मैं हताश और हारा हुआ सा सिर्फ रोता रहता था. उस कठिन समय में दादी ने मुझे ढाढ़स बंधाया और अपने छोटे बेटे यानी मेरे चाचाजी के घर मुझे ले आईं. मैं चाचा चाची के साथ जमशेदपुर में रहने लगा. उन का इकलौता बेटा पीयूष था. वह मुझ से 2 साल छोटा था. चाचाजी ने उसी के स्कूल में मेरा नाम लिखवा दिया. मैं वहां भी अच्छे अंकों से पास होने लगा.

चाचाचाची मेरी रहने, खानेपीने, पढ़नेलिखने आदि सभी व्यवस्था देखते, लेकिन मेरे और पीयूष के प्रति उन के व्यवहार में थोड़ा फर्क रहता. जैसे चाची मुझ से नजरें बचा कर पीयूष को कुछ स्पैशल खाने को देतीं. लेकिन पीयूष मेरे लाख मना करने पर भी उसे मुझ से शेयर करता. मैं चाचाचाची के सारे भेदभाव नजरअंदाज कर तहे दिल से उन का आभार मानता कि उन्होंने मुझ बेसहारा को सहारा तो दिया ही अच्छे स्कूल में मेरा नाम भी लिखवाया. मेरी दादी जब तक रहीं मुझ पर विशेष ध्यान देती रहीं, किंतु वे मांपापा के आकस्मिक निधन से अंदर तक टूट चुकी थीं. उन के जाने के 2 वर्ष बाद वे भी चल बसीं. चाचाचाची पीयूष की उच्च शिक्षा हेतु अकसर चर्चा करते किंतु मेरे संबंध में ऐसी कोई जिज्ञासा नहीं व्यक्त करते. मैं ने 12वीं की परीक्षा उच्च अंकों से पास की. फिर बी.कौम. करने के बाद बैंक परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर मैं सरकारी बैंक में पी.ओ. बन गया. इत्तफाक से मेरी नियुक्ति जमशेदपुर में ही हुई, तो मैं चाचाचाची के साथ ही रहा. वैसे भी मेरी दिली इच्छा यही थी कि मैं चाचाचाची के साथ रह कर उन्हें सहयोग दूं क्योंकि दोनों को ही बढ़ती उम्र के साथसाथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी होने लगी थीं.

पीयूष ने बैंगलुरु से एम.बी.ए. किया. वहीं उस का एक मल्टीनैशनल कंपनी में सिलैक्शन हो गया. हम सभी उस की खुशी से खुश थे. उसे जल्दी ही अपनी जूनियर मिताली से प्यार हो गया, तो चाचाचाची ने उस की पसंद को सहर्ष स्वीकार करते हुए धूमधाम से उस का विवाह कर दिया. शादी के बाद पीयूष और मिताली बैंगलुरु लौट गए. पीयूष की शादी के बाद मेरा मन कुछ ज्यादा ही खालीपन महसूस करने लगा. उसी दौरान कविता ने कब इस में जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला. कविता मेरी ही बस से आतीजाती थी. सुंदर, सुशील, सभ्य कविता विशाल हृदय मालूम होती, क्योंकि हमेशा ही सब की सहायता हेतु तत्पर दिखाई देती. कभी किसी अंधे को सड़क पार करवाती, तो कभी किसी बच्चे की सहायता करती. बस में वृद्ध या गर्भवती महिला को तुरंत अपनी सीट औफर कर देती. मुझे उस की ये सब बातें बहुत अच्छी लगती थीं, क्योंकि वे मेरे स्वभाव से मेल खाती थीं. हम दोनों में छोटीछोटी बातें होने लगीं. धीरेधीरे हम एकदूसरे के लिए जगह रख, साथ ही जानेआने लगे. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता. मैं उस के प्रति आकर्षण महसूस करता किंतु चाह कर भी उस के सामने व्यक्त नहीं कर पाता. उस की दशा भी मेरे समान ही महसूस होती, क्योंकि उस की आंखों में चाहत, समर्पण दिखाई देता. किंतु शर्मोहया का बंधन उसे भी जकड़े हुए था.

मैं अपने विवाह हेतु चाची से चर्चा करना चाहता किंतु झिझक महसूस होती. कई बार पीयूष की मदद लेने का विचार आता किंतु वह अपनी नौकरी एवं गृहस्थी में ऐसा व्यस्त और मस्त था कि उस से चर्चा करने का अवसर ही नहीं मिल पाता. इस के अलावा उस का हमारे पास आना भी बहुत कम एवं सीमित समय के लिए हो पाता. उस दौरान मेरा संकोची स्वभाव कुछ व्यक्त नहीं कर पाता. मिताली के गर्भवती होने पर चाची उसे लंबी छुट्टी दिलवा कर अपने साथ ले आईं. 5 माह का गर्भ हो चुका था. चाची बड़ी लगन एवं जिम्मेदारी से उस की देखभाल करतीं, तो नए मेहमान के आगमन की खुशी से घर में हर समय त्योहार जैसा माहौल बना रहता. मैं अपने संकोची स्वभाव के कारण मिताली से थोड़ा दूरदूर ही रहता. हम दोनों में कभीकभी ही कुछ बात होती. जीवन अपनी गति से चल रहा था कि अचानक पीयूष का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. घर में मानो कुहराम मच गया. चाचाचाची का रोरो कर बुरा हाल था. मिताली तो पत्थर की मूर्ति सी बन गई. एकदम शांत, गमगीन. मैं स्वयं के साथसाथ सभी को संभालने की असफल कोशिश में लगा रहता. मिताली को समझाते हुए कहता कि मिताली कम से कम बच्चे के बारे में तो सोचो उस पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, तो वह आंसू पोंछते हुए सुबकने लगती. पीयूष के जाने बाद हम सभी का जीवन रंगहीन, उमंगहीन हो गया था. हम सभी यंत्रवत अपनाअपना काम करते और एकदूसरे से नजरें चुराते हुए मालूम होते.

जीवनयात्रा की टेढ़ीमेढ़ी डगर मेरे मनमस्तिष्क में हलचल मचा रही थी. चाचाजी मिताली से विवाह करने की बात पर मेरा जवाब सुनना चाह रहे थे. वे मेरी सहमति की आस लगाए बैठे थे और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा गुजरा कल आज मिताली के साथ में मेरे समक्ष आ खड़ा हुआ है. कल जब मैं अपने मातापिता से बिछुड़ कर चाचाचाची के समक्ष सहारे की उम्मीद लिए आ खड़ा हुआ था, यदि उस समय उन्होंने सहारा नहीं दिया होता तो मेरा जाने क्या होता. सत्य है इतिहास स्वयं को दोहराता है. वैसे चाचाजी यदि मेरी जान भी मांग लेते तो बिना सोचेविचारे मैं सहर्ष दे देता, किंतु चाचाजी ने मिताली से विवाह का प्रस्ताव रख मुझे असमंजस में डाल दिया था. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘चाचाजी, मिताली को मैं ने हमेशा अपनी छोटी बहन माना है. ऐसे में भला मैं उस से शादी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘बेटा, तुम निराश करोगे तो हम कहां जाएंगे,’’ कहते हुए चाचाजी रो पड़े. मैं ने उन्हें संभालते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, स्वयं को संभालिए. यों निराश होने से समस्या का समाधान कैसे निकलेगा? मैं नहीं जानता था कि आप लोग मिताली के पुनर्विवाह हेतु विचार कर रहे हैं. दरअसल, मेरा मित्र पंकज अपने विधुर भैया प्रसुन्न के लिए मुझ से मिताली का हाथ मांग रहा था, किंतु मैं उस के प्रस्ताव पर उस पर बिफर पड़ा था कि अभी बेचारी पीयूष के गम से उबर भी नहीं पाई है, उस का बच्चा मिताली के गर्भ में है, ऐसे में उस से मैं कहीं और शादी करने के लिए कैसे बोल सकता हूं. ‘‘उस ने मुझे समझाते हुए कहा था कि दोस्त गंभीरता से विचार कर. जो हुआ बहुत बुरा हुआ किंतु वह हो चुका है, तो अब उस से निकलने का उपाय सोचना होगा. मेरी भाभी बेटे के जन्म के साथ चल बसीं. आज बेटा डेढ़ वर्ष का हो गया है. मेरी मां बेटे प्रखर का पालनपोषण करती हैं किंतु वे बूढ़ी और बीमार हैं. भैया दूसरी शादी के लिए इसलिए इनकार कर देते हैं कि अगर उन की दूसरी पत्नी उन के जान से प्यारे प्रखर के साथ बुरा व्यवहार करेगी तो वे बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. वही सिचुएशन मिताली के समक्ष भी आ खड़ी हुई है. लेकिन वह बेचारी जिंदगी किस सहारे निकालेगी?

‘‘उस ने मुझे विस्तार से समझाते हुए कहा कि देख दोस्त मेरे भैया और मिताली दोनों संयोगवश अपने जीवनसाथियों से बिछुड़ आधेअधूरे रह गए हैं. हम दोनों को मिला कर उन के जीवन को सरस एवं सफल बनाएं, यही सर्वथा उचित होगा. मैं ने बहुत चिंतनमनन के बाद तेरे समक्ष यह प्रस्ताव रखा है. दोनों एकदूसरे के बच्चे को अपना कर जीवनसाथी बन जाएं, इसी में दोनों का सुख है. जो घटित हुआ उसे तो बदला नहीं जा सकता, किंतु उन का भविष्य तो अवश्य सुधारा जा सकता है. ‘‘गंभीरता से विचार करने पर मुझे भी पंकज का प्रस्ताव उचित लगा, किंतु आप लोगों से इस के बारे में चर्चा करने का साहस मुझ में न था. आज आप ने चर्चा की तो कहने का साहस जुटा पाया.’’ चाचाजी मेरी बातें शांति से सुन रहे थे और समझ भी रहे थे, क्योंकि अब वे संतुष्ट नजर आ रहे थे. चाचीजी जो अब तक परदे की ओट से हमारी बातें सुन रही थीं, लपक कर हमारे सामने आ खड़ी हुईं और अधीरता से बोलीं, ‘‘बेटा, कैसे हैं पंकज के भैया? क्या करते हैं? उम्र क्या है उन की और क्या तू उन से मिला है? वगैरहवगैरह.’’

मैं ने उन को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘चाचीजी, पहले आप इतमीनान से बैठिए. मैं सब बताता हूं. बड़े नेक और संस्कारवान इनसान हैं. सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और मेरी ही उम्र के होंगे, क्योंकि पंकज से 2 साल ही बड़े हैं. पंकज मुझ से लगभग 2 साल ही छोटा है. वैसे आप लोग पहले उन से मिल लीजिए, उस के बाद निर्णय लीजिएगा. मैं तो मिताली को देख कर चिंतित हो जाता हूं. समझ नहीं पाता हूं कि वह इस बात के लिए तैयार होगी या नहीं. अभी बेहद गुमसुम व गमगीन रहती है.’’

‘‘बेटा, तू चिंता न कर. उसे विवाह के लिए हम सभी को प्रोत्साहित करना होगा. विवाह होने से वह स्वयं को सुरक्षित महसूस करेगी जिस का प्रभाव गर्भ पर भी सकारात्मक पड़ेगा. बेटा, वह अभी स्वयं को अकेली एवं असुरक्षित महसूस करती होगी. एक औरत होने के नाते मैं उस की भावनाएं समझ सकती हूं. यदि उसे सहारा मिल जाएगा तब उसे दुनिया और जीवन प्रकाशवान लगने लगेगा. हम सब के सहयोग और प्रोत्साहन से वह सामान्य जीवन के प्रति अग्रसर हो जाएगी,’’ चाची ने समझाते हुए कहा. फिर चाची 2 मिनट बाद बोलीं, ‘‘बेटा पवन मिताली की शादी के बाद हम तेरी शादी भी कर देना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है चाची, लेकिन अभी हमें सिर्फ मिताली के संबंध में ही सोचना चाहिए. कच्ची उम्र में बड़ी विपदा उस पर आ पड़ी है.’’ ‘‘हां बेटा, बहुत दुख लगता है उसे यों मूर्त बना देख कर, लेकिन तेरी जिम्मेदारी भी पूरी कर देना चाहती हूं. कोई नजर में हो तो बता देना,’’ कहते हुए चाची ने स्नेह से मेरा सिर सहला दिया. मैं कविता को याद कर अहिस्ता से मुसकरा दिया. प्रसुन्न भैया के साथ मिताली की शादी कर दी गई. उन के प्यार, संरक्षण एवं हम सभी के स्नेह, सहयोग एवं प्रोत्साहन से मिताली ने स्वयं को संभाल लिया. समय से उस ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, तो हम सभी को सारा संसार गुलजार महसूस होने लगा. सब से बड़ी बात तो यह हुई कि अब मिताली खुश रहने लगी. बच्ची के नामकरण हेतु घर में चर्चा होने लगी, तो मैं ने कहा, ‘‘प्रसुन्न भैया, आप ने बेटे का नाम प्रखर बहुत प्यारा एवं सारगर्भित रखा है. उसी तरह बेटी का नाम भी आप ही बताएं.’’

प्रसुन्न भैया 2 पल सोच कर मुसकराते हुए बोले, ‘‘मेरी बेटी का नाम होगा पीयूषा, जो है तो पीयूष की निशानी किंतु दुनिया उसे मेरी निशानी के रूप में पहचानेगी.’’ फिर प्यार से उन्होंने मिताली की ओर देखा. मिताली उन्हें आदर और प्यार से देखने लगी मानों कह रही हो कि आप को पा कर मैं धन्य हो गई.

Hindi Story : हादसा – क्या हुआ था नेमा के साथ?

Hindi Story : नेमा का कलेजा उन की हालत देखदेख कर बैठा जा रहा था. सोचने लगी, ‘पता नहीं कुदरत को क्या मंजूर है.’ वे दफ्तर से घर आते तो जैसे उन के बदन में जान ही न होती. पैर लड़खड़ा रहे होते, थकान और ऊब चेहरे पर हमेशा बढ़ी रहने वाली दाढ़ी की तरह छाई रहती. आंखें बुझी हुई, पलकें बोझिल, चेहरा उदास और चिंताग्रस्त. सीधे आ कर खाट पकड़ लेते. उठने और हाथमुंह धोने को कहती तो जैसे उन्हें बहुत कष्ट होता. कठिनाई से ही बिस्तर से उठ पाते.

नेमा चाय ला कर देती तो चुपचाप ले लेते. कांपती उंगलियों में प्याला हिलता रहता. डर लगता, कहीं वह हाथ से न छूट जाए और वे जल न जाएं. लंबी सांसें लेते हुए खाट पर लेटे घंटों छत ताकते रहते. शरीर पूरी तरह शिथिल और टूटा हुआ. कोई बात पूछती तो अंटशंट उत्तर दे देते. कुछ कहना चाहते तो जबान लड़खड़ाने लगती.

हादसे से अब तक उबर तो नेमा भी नहीं पाई थी लेकिन उस ने किसी तरह कलेजे पर पत्थर रख लिया था. कलपते मन को समझा लिया था, खासकर तब, जब उस ने पति को बुरी तरह उखड़ते और टूटते देखा तो वह सहसा डर ही गई. अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कहीं की न रहेगी. सब खेल ही बिगड़ जाएगा. पीछे 2 लड़कियां हैं, उन का क्या होगा?

अगर वह खुद ज्यादा पढ़ीलिखी होती तो शायद कुछ हौसला बना रहता. इन के दोस्तों से मिन्नतें कर के कहीं छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेती और घरगृहस्थी किसी तरह खींच ले जाती. पर आजकल हाईस्कूल पास को कौन पढ़ालिखा मानता है. जब तक बड़ीबड़ी डिगरियां न हों, कौन पूछता है.

‘‘क्या बात है?’’ नेमा ने उन के पास जमीन पर बैठते हुए पूछा.

वे अजीब सी, खालीखाली नजरों से नेमा के चेहरे को ताकते रहे, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहे हों कि यह कौन है और इस ने क्या पूछा है.

‘‘कुछ नहीं,’’ हमेशा की तरह उन का एक ही जवाब था.

‘‘फिर इस तरह क्यों दफ्तर से आ कर पड़ गए?’’ नेमा उन्हें धीरेधीरे कुरेदती, जिस से कि वे कुछ खुलें, उन का जी कुछ हलका हो. कुछ अपनी कहें, कुछ उस की सुनें.

‘‘नेमा, तुम्हें नहीं लगता कि अब जीना बिलकुल व्यर्थ है? किस लिए जीएं? क्यों जीएं? क्या मतलब रह गया है अब जिंदगी में?’’ ताबड़तोड़ तमाम सवाल पूछ लिए.

‘‘क्यों?’’ भीतर का हाहाकार नेमा ने बड़ी कठिनाई से अपने सीने में दबाया.

‘‘हमारे साथ बहुत बुरा हो चुका है. इस से बुरा और किसी के साथ क्या होगा और फिर इस हादसे के बाद जीने का

क्या अर्थ?’’

‘‘क्या तुम से ज्यादा बुरा दुनिया में कभी किसी के साथ नहीं घटा और न आगे घटेगा? क्या सब तुम्हारी तरह जिंदगी से हार मान लेते हैं? इंदिराजी का जवान बेटा हवाई दुर्घटना में मारा गया, क्या वह उन के जीवन की भीषण दुर्घटना नहीं थी? हत्यारों ने इंदिराजी की हत्या कर दी थी, क्या राजीव गांधी के लिए यह सब से बड़ी दुर्घटना नहीं थी? और खुद राजीव गांधी का इस तरह मारा जाना क्या सोनिया के जीवन की सब से बड़ी दुर्घटना नहीं है? इन दुर्घटनाओं के बाद भी क्या वे लोग जीवित नहीं रहे?’’

‘‘हम ने किसी का क्या बिगाड़ा था नेमा, जो कुदरत ने हमारे साथ यह छल किया?’’

‘‘जब तुम्हें पहली बार पता चला था, लड़का अपने मैडिकल कालेज में साथ पढ़ने वाली किसी धनी घर की सुंदर लड़की के पीछे दीवाना हो गया है तो तुम्हें लड़के को रोकना चाहिए था. अगर तुम डांट कर उसे रोकते तो मजाल थी कि वह उस रास्ते पर आगे कदम बढ़ाता.’’

काफी देर तक वे चुप बैठे रहे, जैसे कुछ सोच रहे हों. फिर कहीं बहुत पीछे छूट गए अतीत से उबरते हुए हंसने का प्रयास करने लगे, ‘‘जानती हो नेमा, मैं ने बेटे को ऐसा करने से क्यों नहीं रोका? हर बाप अपनी अधूरी आकांक्षाएं अपने बेटे के माध्यम से पूरी करना चाहता है. मैं जब विश्वविद्यालय में पढ़ता था तो हमारी कक्षा में भी एक लड़की पढ़ती थी, उमेरा बानू सफी. वह मुसलमान थी. एकदम कश्मीरी सेब जैसी और गोलमटोल. शायद उस से सुंदर लड़की संसार में कोई हो ही नहीं सकती थी, कम से कम मुझे तो यही लगता था उन दिनों.

‘‘वह नजरभर हमारी तरफ एक बार देख ले, इस के लिए भी हम लोग तरहतरह की हरकतें कक्षा में किया करते थे, लेकिन कितनी कठोरहृदया थी वह. जालिम ने कभी अपनी सीप सी निगाहें उठा कर मेरी ओर नहीं देखा.

‘‘आखिर मैं एक दिन उस के रास्ते में ही अड़ गया. वह कतरा कर निकलने को हुई, लेकिन मैं ने तो ठान रखा था, उस से टकरा ही गया. तब उस ने कुपित नजरों से मेरी ओर पहली बार ताका, ‘मैं आप को शरीफ लड़का मानती थी, आज पता चला कि आप भी कक्षा के छिछोरों की तरह ही हैं.’

‘‘मैं धीरे से बोला था, ‘माफ करना, बानू, आज के बाद तुम्हें मुझ से कोई शिकायत नहीं होगी. माफ कर दो इस बार.’

‘‘वह बिना कुछ कहे, हलके से मुसकरा कर आगे चली गई. मैं ठगा सा वहीं खड़ा रह गया. कक्षा में उस दिन से सारी हरकतें करनी बंद कर दीं. शरीफ बना रहा. परीक्षा में अंतिम पेपर के वक्त मैं ने उस से पूछा था, ‘बानू, अब…?’

‘‘‘अब क्या… अलविदा. मैं अब यहां पढ़ने नहीं आऊंगी. मुझे यहां का माहौल अच्छा नहीं लगा.’

‘‘‘मैं भी नहीं?’ मैं ने हकला कर पूछा था.

‘‘‘मेरे मातापिता बहुत कट्टर खयालों के हैं. वे अपनी बेटी को जहर दे कर मार देंगे या कुएं में धकेल देंगे, परंतु दूसरे धर्म, जाति के लड़के को नहीं सौंपेंगे. इसलिए यह सब सोचना बेकार है,’ सिर झुका कर कुछ पल खड़ी रही, ‘मुझे दुख है…मन से मैं भी आप से जुड़ गई थी, परंतु…’

‘‘उस का मन से जुड़ने का स्वीकार करना ही मुझे अरसे तक जिंदा बनाए रहा. मुझे कितना अच्छा लगता रहा, यह सोचसोच कर कि कक्षा की नहीं बल्कि दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की ने

भी मुझे मन से पसंद किया. मिल नहीं पाई, परंतु…’’

‘‘इसलिए लड़के को भी नहीं रोका?’’

‘‘कैसे रोकता? खबर मिलने पर जब कालेज गया और उस लड़की को देखा तो मैं अपनी उमेरा बानू सफी की शक्ल को उस लड़की के चेहरे में ताकता रह गया. मुझे रहरह कर लगा कि यह तो वही है, परंतु वह मुसलमान नहीं थी, हिंदू ही थी और उस के मातापिता भी उतने ही कट्टर थे. नतीजा हुआ, उन्होंने लड़के को धमकाया कि लड़की का पीछा छोड़ दो वरना जान से हाथ धो बैठोगे. मांबाप के डाक्टर बनाने के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे.

‘‘लड़के ने उन की बात को वैसे ही लिया जैसे हिंदी फिल्म में हीरो लेता है. लड़की राजी हो गई थी इसलिए हौसला बढ़ गया था कि अंत में सफलता मिलेगी. परंतु उन जालिमों ने 20 हजार रुपए दे कर 1 गुंडा पीछे लगा दिया और उस ने एक शाम सिनेमा से लौटते समय उसे चाकू घोंप दिया. मैडिकल कालेज तक नहीं आ पाया मेरा बेटा. रास्ते में ही दम तोड़ दिया उस ने. सबकुछ खत्म हो गया, नेमा. वह मैडिकल की अंतिम कक्षा में था, 6 महीने बाद ही वह डाक्टर बन कर निकल आता, परंतु…’’ उन का स्वर लड़खड़ा गया, आवाज डूब गई और पलकें नम हो उठीं.

नेमा ने अपने चेहरे को पल्लू से ढक लिया और देर तक पास बैठी सिसकती रही.

जाने क्यों, बेटा क्या गया, उन्हें लगता, वे ही खत्म हो गए हैं. बेटे के साथ जुड़ी उन की सारी तमन्नाएं, भविष्य की सारी कल्पनाएं, सारे सपने ही उन से छीन लिए गए हैं. अब सिर्फ अंधकार रह गया है, ठाठें मारता अंधकार का अतल समुद्र, जिस में वे बेकार जीने की उम्मीद में हाथपांव मार रहे हैं. उन्हें नहीं लगता, अब वे उस सागर को पार कर पाएंगे और उन्हें कोई किनारा मिल पाएगा.

जिंदगी जैसे पूरी तरह हाथ से फिसल चुकी है. निराशा के गहन गर्त में वे समा चुके हैं और अब उस से उबर सकना असंभव है. दफ्तर जाते हैं, सिर झुकाए चुपचाप काम करते रहते हैं. न वे किसी से बोलते हैं न कोई उन से बोलता है. सब के मन में उन को ले कर एक सहानुभूति है. यहां तक कि गलतियां कर जाते हैं तो अफसर तक उन पर नहीं बिगड़ते. दूसरे को बुला कर उन की गलतियां सुधारने को कह देते हैं.

जबरदस्त निराशा उन के भीतर घर कर गई है. जीवन का मोह छूट गया है. किसी काम में उन की रुचि नहीं रह गई है. पहले वे बहुत लगन से काम करते थे. अफसर उन के काम के बहुत प्रशंसक थे. वही लिहाज अब तक चला आ रहा था.

रात को सोते हैं तो हर वक्त डरावने सपने आते रहते हैं. नींद बीचबीच में चीख निकलने के कारण खुल जाती है. नेमा और दोनों लड़कियां उन की चीख से डर कर जाग जाती हैं और उन के बिस्तर के पास आ उन्हें झिंझोड़ने लगती हैं, ‘‘क्या हुआ, पिताजी? कोई बुरा सपना देखा क्या?’’

‘‘बुरा…?’’ वे घबरा कर उखड़ी आवाज में कहते हैं, ‘‘क्या इन स्थितियों

में कोई अच्छे सपने भी देख सकता है, बेटी?’’

नींद ठीक से नहीं आती. कभी सुबह बहुत जल्दी आंख खुल जाती है, कभी बहुत देर तक सोते रहते हैं. बेवजह, दफ्तर जाने से इनकार कर देते हैं और चुपचाप सारा दिन खाट पर पड़े छत ताकते रहते हैं. भूख नहीं लगती. बमुश्किल एकदो रोटियां खाते हैं. मिठाई बहुत पसंद थी उन्हें. अब कोई मिठाई रख दो, उस की तरफ देखते तक नहीं.

वजन घटता जा रहा है. सूख कर कांटा होते जा रहे हैं. मृत्यु या आत्महत्या के विचार हर वक्त उन के दिल में उठते रहते हैं. रेल की पटरी पर जा लेटें या पुल से नदी में छलांग लगा लें? किसी ट्रक से टकरा जाएं या दफ्तर की बहुमंजिली इमारत से नीचे छलांग लगा दें.

घर से सुबह दफ्तर को निकलते हैं और दफ्तर नहीं पहुंचते. 11-12 बजे दफ्तर से किसी न किसी साथी का पड़ोस में फोन आता है कि आज दफ्तर नहीं आएंगे क्या?

सुन कर नेमा आशंकाओं से घिर कर घबरा उठती है कि कहीं सचमुच ही…

तब वह अपनी बेटियों के साथ उन्हें खोजने निकल पड़ती है. वह कभी किसी पार्क में बैंच पर सूनीसूनी आंखों से आसमान ताकते बैठे मिलते हैं या किसी पुल पर या रेलवे लाइन के नजदीक. दहशत से मांबेटियां रोने लगती हैं. पर उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती.

कभीकभी वे दफ्तर से घर को निकलते हैं और घर नहीं पहुंचते. रास्ते में ही कहीं थक कर बैठ जाते हैं और वहीं घंटों बैठे रहते हैं. अपने आसपास के यातायात से बिलकुल बेखबर और तटस्थ. उन्हें खयाल ही नहीं रहता कि उन्हें घर जाना है. वे अब किसी एक विषय पर अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर पाते. घर हो या दफ्तर, कहीं कोई निर्णय नहीं ले पाते. घर में निर्णय के लिए वे नेमा पर सब छोड़ देते हैं और दफ्तर में अपने साथियों पर. जो फैसला वे कर दें, उसे चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं.

कोई हंसीमजाक करने की कोशिश करता तो चिढ़ जाते, अकारण दुखी हो जाते और उन की आंखें डबडबा आतीं. लोग फिर उन से कुछ कहने का साहस न करते. हर वक्त वे सिरदर्द की कोई न कोई गोली लेते रहते और सिर के किसी न किसी हिस्से को हर वक्त दबाते रहते, जैसे उस हिस्से में कहीं उन्हें दर्द अनुभव हो रहा हो.

अफसर भी उन्हें परिचित डाक्टर को दिखा चुके हैं. नेमा भी कई डाक्टरों को दिखा चुकी है और उन के साथी भी.

हर डाक्टर की एक ही राय है कि उन्हें कोई शारीरिक रोग नहीं है. जीवन से ऊब गए हैं. जीवन का मोह नहीं रह गया. नैराश्य और विषाद से ग्रस्त हो गए हैं. उबरने का एक ही रास्ता है, किसी तरह जिंदगी में रुचि लेने लगें, अपनी पत्नी और बच्चों में रमने लगें, ठीक हो जाएंगे. जिंदगी से यह बेजारी खत्म होनी जरूरी है.

लेकिन यह सब हो कैसे? यह न नेमा की समझ में आता है न उन के हितैषियों की समझ में.

एक दिन ऐसे ही विषाद से घिरे वे   चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़े थे,

जब उन की छोटी बेटी ने चहकते हुए अचानक उन से लिपटते हुए कहा, ‘‘लो पिताजी, मैं अब भैया की जगह डाक्टर बन कर आप को दिखाऊंगी. देखिए, मैडिकल प्रवेश परीक्षा का यह परिणाम. मेरा रोल नंबर छपा है. मुझे मैडिकल में दाखिला मिल गया. बोलिए, पढ़ाएंगे न हमें उसी तरह, जैसे भैया को पढ़ा रहे थे? मानेंगे अपना बेटा मुझे?’’

नेमा दौड़ी हुई रसोई से बाहर आई और भौचक सी उन की ओर ताकती रही. उसे लगा, जैसे उन के चुसे हुए पीले चेहरे पर कहीं जिंदगी की लकीरें उभरने लगी हैं. उन की आंखों के बुझे दीए एकाएक ही जैसे फिर जगमगाने लगे हैं और चेहरा धीरेधीरे सिमटी, सहमी अवस्था से उबर कर खिलने लगा है.

उन्हें जैसे बेटी पर भरोसा नहीं होता. संशय के बावजूद वे बेटी को बांहों में समेट कर चूमने लगते हैं और उन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगते हैं.

Love Story : दिव्या आर्यन – जब दो अनजानी राहों में मिले धोखा खा चुके हमराही

Love Story : ‘पता नहीं बस और गाड़ियों में रात में भी एसी क्यों चलाया जाता है, माना कि गरमी से नज़ात पाने के लिए एसी का चलाया जाना ज़रूरी है पर तब क्यों जब ज्यादा गरमी न हो,’ बस की खिड़की से बाहर देखती हुई दिव्या सोच रही थी. मन नहीं माना तो उस ने खिड़की को ज़रा सा खिसका भर दिया, एक हवा का झोंका आया और दिव्या की ज़ुल्फों से अठखेलियाँ करते हुए गुज़र गया.

कोई टोक न दे, इसलिए धीरे से खिड़की को वापस बंद कर दिया दिव्या ने. दिव्या जो आज अपने कसबे लालपुर से शहर को जा रही थी. वहां उसे कुछ दिन रुकना था. उस ने शहर के एक होटल में एक सिंगल रूम की बुकिंग पहले से ही करा रखी थी.

चर्रचर्र की आवाज़ के साथ बस रुकी. दिव्या ने बाहर की ओर देखा तो पाया कि पुलिसचेक है. शायद स्वतंत्रता दिवस करीब है, इसीलिए पुलिस वाले हर बस को रोक कर गहन तलाशी करते हैं. हरेक व्यक्ति की तलाशी और आईडी चेक होती है. पुलिस की चेकिंग के बाद बस आगे बढ़ी.

अब भी आधा सफर बाकी था. ‘अब तो लगता है मुझे पहुंचने में काफी रात हो जाएगी. तब, बसस्टैंड से होटल तक जाने में परेशानी होगी,’ दिव्या सोच रही थी.

ऐसा हुआ भी.

बस को शहर पहुंचने में काफी रात हो गई. दिव्या ने अपना सामान उठाया और किसी रिकशे या कैब वाले को देखने लगी. कई औटो रिकशे वाले खड़े थे पर उन में से कुछ ने होटल तक जाने से मना कर दिया तो कुछ औटो में ही सो रहे थे जबकि कुछ में ड्राइवर थे ही नहीं.

परेशान हो उठी दिव्या, ‘अगर कोई सवारी नहीं मिली तो मैं होटल कैसे जाऊंगी और बाकी की रात यहां कैसे बिताऊंगी!’

तभी उस की नज़र कोने में खड़े एक औटो पर पड़ी. दिव्या उस की तरफ गई तो देखा कि ड्राइवर उस के अंदर बैठबैठे हुआ सो रहा है.

“ए औटो वाले, खाली हो, होटल रीगल तक चलोगे?” दिव्या का स्वर पता नहीं क्यों तेज़ हो गया था. उस की आवाज़ सुन कर वह उठ गया और इधरउधर देखने लगा.

“ज…जी, वह आखिरी बस आ गई क्या? मैं ज़रा सो गया था. हां, बताइए मैडम, कहां जाना है?”

“होटल रीगल जाना है मुझे,” दिव्या बोली थी.

“हां जी, बैठिए,” कह कर उस ने औटो स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया.

“होटल रीगल यहां से कितनी दूर होगा?” दिव्या ने पूछा

“वह मैडम, कुछ नहीं तो 16 किलोमीटर तो पड़ ही जाएगा. बात ऐसी है न मैडम, कि यह बसस्टैंड शहर के काफी बाहर और सुनसान जगह पर बनवा दिया गया है, इसीलिए यहां से हर चीज़ दूर पड़ती है. पर, आप घबराइए मत, हम अभी पहुंचाए देते हैं,” औटो वाले ने जवाब दिया.

औटो वाले का चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उस के कान में एक चेन में पिरोया हुआ कोई बुंदा पहना हुआ था, जो बारबार बाहर की चमक पड़ने पर रोशनी बिखेर देता था. उस चमक से बारबार दिव्या का ध्यान औटो वाले के कानों पर चला जाता.

अचानक से औटो के अंदर रोशनी सी भर गई. औटो वाले और दिव्या दोनों का ध्यान उस रोशनी पर गया. 4 लड़के थे जो अपनी बाइक की हेडलाइट को जानबूझ कर औटो के अंदर तक पंहुचा रहे थे .

इन को भी कहीं जाना होगा, ऐसा सोच कर दिव्या ने अपना ध्यान वहां से हटा लिया पर औटो वाले की आंखें लगातार पीछे आने वाली बाइकों पर थीं और वह उन लोगों की नीयत भांप चुका था.

अचानक से औटो वाले ने अपनी गति बढ़ा दी जितनी बढ़ा सकता था और औटो को मुख्य सड़क से हटा कर किसी और सड़क पर चलाने लगा.

“क्या हुआ, यह तुम इतनी तेज़ क्यों चला रहे हो और औटो को किस दिशा में ले जा रहे हो? बात क्या है आखिर?” दिव्या ने कई सवाल दाग दिए.

“जी, कुछ नहीं मैडम, आप डरिए नहीं. दरअसल, इस शहर में कुछ भेड़िए इंसानी भेष में रोज़ रात को लड़कियों का मांस नोचने के लिए निकल पड़ते हैं और आज इन लोगों ने आप को अकेले देख लिया है. पर आप घबराइए नहीं, मैं इन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दूंगा,” आंखों को रास्ते और साइड मिरर पर जमाए हुए औटो वाला बोल रहा था.

पीछे आती हुई बाइकों ने अपनी गति और बढ़ा दी और वे औटो के बराबर में आने लगे .

औटो वाले ने अचानक औटो को एक दिशा में लहरा दिया और औटो के लहराने से बाइक वाला संभल नहीं पाया और बाइक कंट्रोल से बाहर हो गई. और वह लहराता हुआ गिर गया.

अपने साथी को गिरा देख कर दूसरा गुस्से में भर गया और बाइक चलाते हुए अंदर बैठी दिव्या के बराबर हाथ पहुंचाया. तुरंत ही दिव्या ने अपने साथ में लाए हुए लेडीज़ छाते का एक ज़ोरदार वार उस के हेलमेट पर कर दिया. इस अप्रत्याशित वार से वह भी बाइक समेत गिर गया. अपने 2 साथियों के चोटिल होने के बाद बाकी के दोनों सवारों का हौसला टूट गया उन दोनों ने पीछे आना छोड़ कर अपनी बाइकों को मोड़ लिया.

उन गुंडों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में औटो मुख्य सड़क से भटक कर पास में छोटी सड़क पर चलने लगा था और औटोवाला ड्राइवर बगैर इस बात का ध्यान करे औटो भगाता जा रहा था. और अब जब उसे इस बात का भान हुआ तब तक औटो शहर के किसी दूसरे हिस्से में आ गया था. वहां चारों और घुप्प अंधेरा था. बस, जितनी दूर औटो की रोशनी जाती उतना ही रास्ता दिखाई दे रहा था.

औटो चला जा रहा था. तभी अचानक औटो से खटाक की आवाज़ आई और औटो रुक गया. औटो ड्राइवर को जितनी तकनीक मालूम थी वह सबकुछ अपना लिया. पर कुछ न हो सका .

“मैडम, अफ़सोस की बात है, हम शहर के किसी बाहरी हिस्से में आ गए हैं और वापसी का कोई उपाय नहीं है. अब हमें रात यही कहीं काटनी होगी.”

“क्या मतलब, यहां कहां और कैसे?”

“अब क्या करें मैडम, मजबूरी है,” औटोवाला युवक बोला, फिर कहने लगा, “वह सामने आसमान में ऊंचाई पर एक लाल बल्ब चमक रहा है, वहां चलते हैं. ज़रूर वहां हमे सिर छिपाने लायक जगह मिल जाएगी.” अपनी उंगली दिखाते हुए उस ने कहा और एक झटके से दिव्या का बैग उठा लिया और तेज़ी से चल पड़ा.

उस का अंदाज़ा सही था. यह एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत थी, जिस के एक हिस्से में कुछ मज़दूर सो रहे थे और बाकी की इमारत खाली थी. दोनों चलते हुए ऊपर वाले फ्लोर पर पहुंचे और एक कोने में सामान रख दिया.

यह सब दिव्या को बड़ा अजीब लग रहा था और वह यह भी सोच रही थी, एक अजनबी के साथ वह इतनी देर से है, फिर भी उसे कोई असुरक्षा का भाव क्यों नहीं आ रहा है?

“इधर आ जाइए, हवा अच्छी आ रही है,” युवक ने बालकनी में आवाज़ देते हुए कहा.

“वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?” अचानक से दिव्या ने पूछा.

“ज जी, मेरा नाम आर्यन है,” युवक ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया.

” भाई वाह, क्या नाम है, वैरी गुड़,” दिव्या ने अपने पर्स में रखे हुए बिस्कुट निकाल कर आर्यन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

“जी मैडम, बात ऐसी है कि मेरी मां शाहरुख खान की बहुत बड़ी फैन थी और जब ‘मोहब्बतें’ फिल्म रिलीज़ हुई न, तब मैं उस के पेट में था और तभी उस ने सोच लिया था कि अगर बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम आर्यन रखेगी.”

आर्यन की सरल बातें सुन कर बिना मुसकराए न रह सकी दिव्या. पानी पीते हुए घड़ी पर निगाह डाली तो अभी रात का 2 बज रहा था. अभी तो पूरी रात यहीं काटनी है, इस गरज से दिव्या ने बातचीत जारी रखी.

“दिखने में तो खूबसूरत लगते हो और पढ़े लिखे भी. फिर, यह औटो चलाने की जगह कोई नौकरी क्यों नहीं करते?” दिव्या ने पूछा.

“मैडम, मैं ने एमए किया है वह भी इंग्लिश में. पर आजकल इस पढ़ाई से कुछ नहीं होता. या तो बहुत बड़ी डिग्री हो या फिर किसी की सिफारिश. और अपने पास दोनों ही नहीं. मरता क्या न करता, इसलिए औटो लाने लगा.

“ऊं…मोहब्बतें… तो कुछ अपनी मोहब्बत के बारे में भी बताओ. किसी लड़की से प्यारव्यार भी हुआ है या फिर…?” दिव्या ने पूछा.

उस की इस बात पर पहले तो आर्यन कुछ शरमा सा गया, फिर उस की आंखों में गुस्सा उत्तर आया, बोला, “हां मैडम, मुझे भी प्यार हुआ तो था पर अफ़सोस कि लड़की ने धोखा दे दिया…एक दिन मैं औटो ले कर घर वापस जा रहा था. तभी सड़क के किनारे मैं ने देखा कि एक लड़का पड़ा हुआ है. उस के सिर से खून बह रहा है और भीड़ मोबाइल से वीडियो बना रही है. कोई उस लड़के को अस्पताल ले कर नहीं जा रहा. उस लड़के के साथ एक बदहवास सी लड़की भी थी. मुझे उन दोनों पर दया आई और इंसानियत के नाते मैं ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया. “अस्पताल में उस लड़के को जब खून की ज़रूरत पड़ी तो उस लड़की ने मुझ से मदद मांगी. मुझ से कहा कि वह लड़का उस का भाई है और खून का इंतज़ाम करना है.

“मैं क्या करता, मैं ने अपना खून उस लड़के को दिया और उस की जान बचाई. उस लड़की ने मुझे शुक्रिया कहा और बदले में मेरे को अपने घर का पता व अपना मोबाइल नंबर दिया, साथ ही मेरा नंबर लिया भी. और फिर रोज़ सुबह ही उस लड़की का व्हाट्सऐप्प पर मैसेज आता और चैटिंग भी करती. वह मुझ से पूछती कि वह उसे कैसी लगती है. और इसी तरह की कई दूसरी बातें भी पूछती थी.

“एक दिन मेरे मोबाइल पर उसी लड़की का फोन आया और उस ने मुझे अपने घर पर बुलाया. मैं उस से मिलने के लिए आतुर था, इसलिए तैयार हो कर उस के घर पहुंच गया. पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा था कि वह लड़की मुझ से प्यार करने लगी है, इसलिए मैं उस के लिए एक लाल गुलाब भी ले कर गया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उस ने मेरा खूब स्वागत भी किया. उस के घर में सिर्फ उस की मां ही रहती थी पर उस दिन वह कहीं गई हुई थी.

“जब मैं ने उस लड़की से पूछा कि उस का वह भाई कहां है तो उस ने बताया कि वह भी मां के साथ ही कहीं गया है. अकेलापन देख कर मैं ने उस लड़की को शादी का प्रस्ताव दे डाला.

“अभी तक उस लड़की ने मेरा नाम नहीं पूछा था. नाम पूछने पर जब मैं ने उसे अपना नाम आर्यन डिसूजा बताया तब उस ने मेरे ईसाई होने पर सवाल खड़ा कर दिया और निराश हो कर कहने लगी, ‘मुझे भूल जाओ. मैं शादी तुम से नहीं कर सकती क्योंकि मेरी मां और पापा कट्टर हिंदू हैं, वे किसी गैरधर्म वाले लड़के से मेरी शादी नहीं करेंगे.’ हालांकि उस के भाई को खून देने को ले कर किसी को कोई एतराज नहीं था पर शादी की बात आते ही जातिधर्म सब आ गया. बस मैडम, मेरी पहली और आखिरी कहानी यही थी,” यह कह कर आर्यन चुप हो गया.

“काफी अजीब कहानी है तुम्हारे प्यार की. पर है बहुत ही इमोशनल और नई सी. इस पर कोई फिल्म वाला एक फिल्म बना सकता है,” दिव्या ने हंसते हुए कहा.

“हां जी, हो सकता है. पर आप ने कुछ अपने बारे में नहीं बताया, मसलन आप के मांबाप?” आर्यन भी दिव्या की प्रेमकथा ही जानना चाहता था, पर वह बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए मांबाप का नाम ले लिया.

“मेरे बाप एक फार्मा कंपनी में काम करते थे. उन का सेल्स का काम था, तो अकसर घर के बाहर रहते. घर में सबकुछ था, ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं. जब वे घर आते तो हम सब को खूब समय और तोहफे भी देते…” कहतेकहते चुप हो गई दिव्या.

“जी, और आप की मां?”

“मां, अब उस के बारे में क्या बताऊं. उस का पेट हर तरह से भरा हुआ था- रुपए से, पैसे से. पर कुछ औरतों को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए रोज़ एक नया मर्द चाहिए होता है न, कुछ ऐसी ही थी मेरी मां. वह कहीं भी जाती तो अपने लिए गुर्गा तलाश ही लेती और उसे अपना फोन नंबर दे देती. और जब वह आदमी घर तक आ जाता तो मुझे किसी बहाने से घर के बाहर भेज देती और उस आदमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाती.

“धीरेधीरे उस की बेशर्मी इतनी बढ़ गई थी कि वह मेरे सामने ही किसी भी गैरमर्द के साथ प्रेम की अठखेलियां करने लगती. उस की ये हरकतें पापा को पता चलीं, तो उन्होंने तुरंत ही उसे तलाक़ दे दिया और मुझे मां के पास ही छोड़ दिया. तलाक़ के बाद मां को सम्भल जाना चाहिए था, पर वह और भी निरंकुश हो गई. “अब तो आदमी आते और घर पर ही पड़े रहते, बल्कि आदमी लोग शिफ्टों में आने लगे थे और मेरी मां जीभर सेक्स का मज़ा लेती थी. मां की हरकतें देख कर मैं ने अपने घर की छत पर जा कर आत्महत्या करने की कोशिश की, पर तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के ने अपनी जान पर खेलते हुए मेरी जान बचाई.

“मुझे किसी का सहारा चाहिए था. मैं उस लड़के के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई. मैं सिसकियों में बंध सी गई थी.

उस लड़के ने मुझे ऐसे वक्त में सहारा दिया कि मुझे उस से प्यार हो जाना स्वाभाविक ही था. प्यार तो उस को भी मुझ से हो गया था पर हमारी शादी के बीच मेरी मां का दुष्चरित्र आ गया और उस लड़के ने मुझ से साफ कह दिया कि उस के मांबाप किसी ऐसी लड़की से उस की शादी नहीं कराना चाहते जिस की तलाकशुदा मां कई मर्दों से सम्बन्ध रखती हो,” इतना कह कर चुप हो गई थी दिव्या.

दोनों चुप थे. रात का सन्नाटा भी बखूबी उन का साथ दे रहा था. हवा आआ कर अब भी कभीकभी दिव्या की ज़ुल्फों को उड़ा दे रही थी, जिन्हें वह परेशान हो कर बारबार संभालती थी.

“पर मैडम, मेरी कहानी कुछ नई लग सकती है आप को पर आप की कहानी में तो दर्द के अलावा कुछ नहीं है” पास में बैठे हुए आर्यन ने कहा.

प्रतिउत्तर में कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ एक छोटी सी सिसकी ही आई जिसे चाह कर भी दिव्या छिपा न सकी थी.

“क्या तुम रो रही हो?” आर्यन ने पूछा.

बिना कोई उत्तर दिए ही आर्यन के सीने से लिपट गई दिव्या…रोती रही…शायद बचपन से ले कर अब तक कोई कंधा नहीं नसीब हुआ था उसे जिस पर वह सिर रख सके. रोती रही वह जब तक उस का मन हलका नहीं हो गया.

और आर्यन ने भी अपनी मज़बूत बांहों का घेरा दिव्या के गिर्द डाल दिया था. और दिव्या के माथे पर चुम्बन अंकित कर दिया. वह खामोश इमारत अब उन के मिलन की गवाह बन रही थी.

सूरज की पहली किरण फूटी पर वे दोनों अब भी किसी लता की तरह एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

तभी दूर से एक दुग्ध वाहन आता हुआ दिखाई दिया. दिव्या ने आर्यन का हाथ पकड़ा और आर्यन ने बैग उठाया और दोनों ने दौड़ कर उस वाहन में लिफ्ट मांगी.

“हम कहां जा रहे हैं …और मेरा औटो तो वहीं रह गया मैडम,” आर्यन ने पूछा.

“अगर तुम्हें कोई और काम मिले तो क्या तुम करोगे ?” दिव्या ने आर्यन की आंखों में झांकते हुए कहा.

“हां मैडम, क्यों नहीं करूंगा.”

“पर हो सकता है तुम्हें उम्रभर मेरा साथ देना पड़े?”

“हां, पर तुम्हें साथ देना होगा तो ही करूंगा मैडम.”

“मैडम नहीं, दिव्या नाम है मेरा,” दिव्या ने कहा.

बदले में आर्यन सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

शहर आ गया था. दोनों पूछतेपाछते होटल रीगल पहुंच गए.

रिसेप्शन पर जा कर दिव्या ने मैनेजर से कहा, “जी, मैं ने अपने लिए एक सिंगल बैडरूम बुक कराया था. मुझे आने में देर हो गई. पर, अब मुझे सिंगल नहीं बल्कि डबल बैडरूम चाहिए.”

“जी मैडम, किस नाम से रूम बुक था?” मैनेजर ने पूछा.

“मेरा कमरा दिव्या नाम से बुक था. पर अब आप रजिस्टर में मेरे पति आर्यन डिसूजा और दिव्या डिसूजा का नाम लिख सकते हैं,” दिव्या ने आर्यन की तरफ देखते हुए कहा.

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

Romantic Story : बेइज्जती – रसिया के जिस्म को देख पागल हुआ अजीत

Romantic Story : करिश्मा और रसिया भैरव गांव से शहर के एक कालेज में साथसाथ पढ़ने जाती थीं. साथसाथ रहने से उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन का एकदूसरे के घरों में आनाजाना भी शुरू हो गया था.

करिश्मा के छोटे भाई अजीत ने रसिया को पहली बार देखा, तो उस की खूबसूरती को देखता रह गया. रसिया के कसे हुए उभार, सांचे में ढला बदन और रस भरे गुलाबी होंठ मदहोश करने वाले थे.

रसिया ने एक दिन महसूस किया कि कोई लड़का छिपछिप कर उसे देखता है. उस ने करिश्मा से पूछा, ‘‘वह लड़का कौन है, जो मुझे घूरता है?’’

‘‘वह…’’ कह कर करिश्मा हंसी और बोली, ‘‘वह तो मेरा छोटा भाई अजीत है. तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हें कोई भी देखता रह जाए…

‘‘ठहरो, मैं उसे बुलाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अजीत को पुकारा, जो दूसरे कमरे में खड़ा सब सुन रहा था.

‘‘आता हूं…’’ कहते हुए अजीत करिश्मा और रसिया के सामने ऐसा भोला बन कर आया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

करिश्मा ने बनावटी गुस्सा करते हुए पूछा, ‘‘अजीत, तुम मेरी सहेली रसिया को घूरघूर कर देखते हो क्या?’’

‘‘घूरघूर कर तो नहीं, पर मैं जानने की कोशिश जरूर करता हूं कि ये कौन हैं, जो अकसर तुम से मिलने आया करती हैं,’’ अजीत ने कहा.

‘‘यह बात तो तुम मुझ से भी पूछ सकते थे. लो, अभी बता देती हूं. यह मेरी सहेली रसिया है.’’

‘‘रसिया… बड़ा प्यारा नाम है,’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा, तो करिश्मा ने रसिया से अपने भाई का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रसिया, यह मेरा छोटा भाई अजीत है. इसे अच्छी तरह पहचान लो, फिर न कहना कि तुम्हें घूर रहा था.’’

‘‘ओ हो अजीत… मैं हूं रसिया. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगे?’’ रसिया ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…’’ कहते हुए अजीत ने जोश के साथ अपना हाथ उस की ओर बढ़ाया.

रसिया ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अजीत, तुम से मिल कर खुशी हुई. वैसे, तुम करते क्या हो?’’

‘‘मैं कालेज में पढ़ता हूं. जल्दी पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करूंगा, ताकि अपनी बहन की शादी कर सकूं.’’

रसिया जोर से हंस पड़ी. उस के हंसने से उस के उभार कांपने लगे. यह देख कर अजीत के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

तभी रसिया ने कहा, ‘‘वाह अजीत, वाह, तुम तो जरूरत से ज्यादा समझदार हो गए हो. सिर्फ बहन की शादी करने का इरादा है या अपनी भी शादी करोगे?’’

‘‘अपनी भी शादी कर लूंगा, अगर तुम्हारी जैसी खूबसूरत लड़की मिली तो…’’ कहते हुए अजीत वहां से चला गया.

रात में जब अजीत अपने बिस्तर पर लेटा, तो रसिया के खयालों में खोने लगा. उसे बारबार रसिया के दोनों उभार कांपते दिखाई दे रहे थे. वह सिहर उठा.

2 दिन बाद अजीत रसिया से फिर अपने घर पर मिला. हंसीहंसी में रसिया ने उस से कह दिया, ‘‘अजीत, तुम मुझे बहुत प्यारे और अच्छे लगते हो.’’

अजीत को ऐसा लगा, मानो रसिया उस की ओर खिंच रही है. अजीत बोला, ‘‘रसिया, तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम मुझ से शादी करोगी?’’

यह सुन कर रसिया को हैरानी हुई. उस ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘तुम ने मेरे कहने का गलत मतलब लगाया है. तुम नहीं जानते कि मैं निचली जाति की हूं? ऐसा खयाल भी अपने मन में मत लाना. तुम्हारा समाज मुझे नफरत की निगाह से देखेगा. वेसे भी तुम मुझ से उम्र में बहुत छोटे हो. करिश्मा के नाते मैं भी तुम्हें अपना भाई समझने लगी थी.’’

अजीत कुछ नहीं बोला और बात आईगई हो गई. समय तेजी से आगे बढ़ता गया. एक दिन करिश्मा ने अपने जन्मदिन पर अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया. काफी चहलपहल में देर रात हो गई, तो रसिया घबराने लगी. उसे अपने घर जाना था. उस ने करिश्मा से कहा, ‘‘अजीत से कह दो कि वह मुझे मेरे घर छोड़ दे.’’

करिश्मा ने अजीत को पुकार कर कहा, ‘‘अजीत, जरा इधर आना. तुम रसिया को अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर तक छोड़ आओ. आसमान में बादल घिर आए हैं. तेज बारिश हो सकती है.’’

‘‘इन से कह दो कि रात को यहीं रुक जाएं,’’ अजीत ने सुझाया.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मेरे घर वाले परेशान होंगे. अगर तुम नहीं चल सकते, तो मैं अकेले ही चली जाऊंगी,’’ रसिया ने कहा.

‘‘नहीं, मैं आप को छोड़ दूंगा,’’ कह कर अजीत ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली, तभी हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. कुछ फासला पार करने पर तूफानी हवा के साथ खूब तेज बारिश और ओले गिरने लगे. ठंड भी बढ़ गई थी.

रसिया ने कहा, ‘‘अजीत, तेज बारिश हो रही है. क्यों न हम लोग कुछ देर के लिए किसी महफूज जगह पर रुक कर बारिश के बंद होने का इंतजार कर लें?’’

‘‘तुम्हारा कहना सही है रसिया. आगे कोई जगह मिल जाएगी, तो जरूर रुकेंगे.’’

बिजली की चमक में अजीत को एक सुनसान झोंपड़ी दिखाई दी. अजीत ने वहां पहुंच कर मोटरसाइकिल रोकी और दोनों झोंपड़ी के अंदर चले गए.

अजीत की नजर रसिया के भीगे कपड़ों पर पड़ी. वह एक पतली साड़ी पहन कर सजधज कर करिश्मा के जन्मदिन की पार्टी में गई थी. उसे क्या मालूम था कि ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा. पानी से भीगी साड़ी में उस का अंगअंग दिखाई दे रहा था.

रसिया का भीगा बदन अजीत को बेसब्र कर रहा था. वह बारबार सोचता कि ऐसे समय में रसिया उस की बांहों में समा जाए, तो उस के जिस्म में गरमी भर जाए,

कांपती हुई रसिया ने अजीत से कुछ कहना चाहा, लेकिन उस की जबान नहीं खुल सकी. लेकिन ठंड इतनी बढ़ गई थी कि उस से रहा नहीं गया. वह बोली, ‘‘भाई अजीत, मुझे बहुत ठंड लग रही है. कुछ देर मुझे अपने बदन से चिपका लो, ताकि थोड़ी गरमी मिल जाए.’’

‘‘क्यों नहीं, भाई का फर्ज है ऐसी हालत में मदद करना,’’ कह कर अजीत ने रसिया को अपनी बांहों में जकड़ लिया. धीरेधीरे वह रसिया की पीठ को सहलाने लगा. रसिया को राहत मिली.

लेकिन अब अजीत के हाथ फिसलतेफिसलते रसिया के उभारों पर पड़ने लगे और उस ने समझा कि रसिया को एतराज नहीं है. तभी उस ने उस के उभारों को दबाना शुरू किया, तो रसिया ने अजीत की नीयत को भांप लिया.

रसिया उस से अलग होते हुए बोली, ‘‘अजीत, ऐसे नाजुक समय में क्या तुम करिश्मा के साथ भी ऐसी ही हरकत करते? तुम्हें शर्म नही आई?’’ कहते हुए रसिया ने अजीत के गाल पर कस कर चांटा मारा.

यह देख कर अजीत तिलमिला उठा. उस ने भी उसी तरह चांटा मारना चाहा, पर कुछ सोच कर रुक गया.

उस ने रसिया की पीठ सहलाते हुए जो सपने देखे थे, वे उस के वहम थे. रसिया उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. जल्दबाजी में उस ने सारा खेल ही खत्म कर दिया. अगर रसिया ने उस की शिकायत करिश्मा से कर दी, तो गड़बड़ हो जाएगी.

अजीत झट से शर्मिंदगी दिखाते हुए बोला, ‘‘रसिया, मुझे माफ कर दो. मेरी शिकायत करिश्मा से मत करना.’’

‘‘ठीक है, नहीं करूंगी, लेकिन इस शर्त पर कि तुम यह सब बिलकुल भूल जाओगे,’’ रसिया ने कहा.

‘‘जरूरजरूर. दोबारा मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं ने समझा था कि दूसरी निचली जाति की लड़कियों की तरह शायद तुम भी कहीं दिलफेंक न हो.’’

‘‘तुम्हारे जैसे बड़े लोग ही हम निचली जाति की लड़कियों से गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. सभी लड़कियां कमजोर नहीं होतीं. अब यहां रुकना ठीक नहीं है. बारिश भी कम हो गई है. अब हमें चलना चाहिए,’’ रसिया ने कहा.

दोनों मोटरसाइकिल से रसिया के घर पहुंचे. रसिया ने बारिश बंद होने तक अजीत को रोकना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका.

उस दिन के बाद से अजीत अपने गाल पर हाथ फेरता, तो गुस्से में उस के रोंगटे खड़े हो जाते.

अजीत रसिया के चांटे को याद करता और तड़प उठता. सोचता कि रसिया ने चांटा मार कर उस की जो बेइज्जती की है, वह उसे जिंदगीभर भूल नहीं सकता. उस चांटे का जवाब वह जरूर देगा.

उस दिन करिश्मा के यहां खूब चहलपहल थी, क्योंकि उस की सगाई होने वाली थी. उस की सहेलियां नाचनेगाने में मस्त थीं. रसिया भी उस जश्न में शामिल थी, क्योंकि वह करिश्मा की खास सहेली जो थी. वह खूब सजधज  कर आई थी.

अजीत भी लड़कियों के साथ नाचने लगा. उस की नजर जब रसिया से टकराई, तो दोनों मुसकरा दिए. अजीत ने उसी समय मौके का फायदा उठाना चाहा.

अजीत ने झूमते हुए आगे बढ़ कर रसिया की कमर में हाथ डाला और अपनी बांहों में कस लिया. फिर उस के गालों को ऐसे चूमा कि उस के दांतों के निशान रसिया के गालों पर पड़ गए.

यह देख रसिया तिलमिला उठी और धक्का दे कर उस की बांहों से अलग हो गई.

रसिया ने उस के गाल पर कई चांटे रसीद कर दिए. जश्न में खलबली मच गई. पहले तो लोग समझ ही नहीं पाए कि माजरा क्या है, लेकिन तुरंत रसिया की कठोर आवाज गूंजी, ‘‘अजीत, तुम ने आज इस भरी महफिल में केवल मेरा ही नहीं, बल्कि अपनी बहन औेर सगेसंबंधियों की बेइज्जती की है. मैं तुम पर थूकती हूं.

‘‘मैं सोचती थी कि शायद तुम उस दिन के चांटे को भूल गए हो, पर मुझे ऐसा लगता है कि तुम यही हरकतें अपनी बहन करिश्मा के साथ भी करते होगे.

‘‘अगर मैं जानती कि तुम्हारे दिल में बहनों की इसी तरह इज्जत होती है, तो यहां कभी न आती. ’’

रसिया ने करिश्मा के पास जा कर उस रात की घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि अजीत ने उस से भविष्य में ऐसा न होने के लिए माफी भी मांगी थी.

करिश्मा का सिर शर्म से झुक गया. उस की आखों से आंसू गिर पड़े.

करिश्मा की दूसरी सहेलियों ने भी अजीत की थूथू की और वहां से बिना कुछ खाए रसिया के साथ वापस चली गईं.

नासमझ अजीत ने रसिया को जलील नहीं किया था, बल्कि अपने परिवार की बेइज्जती की थी.

Physical Relation : 4 साल पहले एक रिश्तेदार ने धोखे से संबंध बनाए

Physical Relation : मैं अब 21 वर्षीया कालेज स्टूडैंट हूं. इस बात के बाद से मैं इतना डर गई कि शायद फिर कभी किसी से संबंध नहीं बना पाऊंगी. शादी हुई तो पति को सबकुछ पता चल जाएगा, इस डर को दूर करने में आप मेरी कुछ मदद कीजिए.

जवाब : आप ने जो बताया, वह एक बहुत गंभीर और भावनात्मक अनुभव है. सब से पहले तो यह समझ लें कि उस घटना में आप की कोई गलती नहीं थी. धोखे से कोई आप के साथ गलत करे तो उस का बोझ आप को नहीं उठाना चाहिए. आप उस डर को अपने अंदर समाए हुए हैं, जो स्वाभाविक है, क्योंकि ऐसा अनुभव किसी को भी परेशान कर सकता है. ऐसे में सैक्स या रिश्तों से डर लगना सामान्य है.

आप को लगता है कि आप भविष्य में अपने पति से शारीरिक संबंध नहीं बना पाएंगी और वह सबकुछ जान जाएगा. यह डर इसलिए भी है क्योंकि आप उस घटना को अपनी गलती या शर्मिंदगी मान रही हैं, जो सच नहीं है. उस अनुभव ने शायद आप के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाई है, जिस से आप को लगता है कि आप आगे कभी किसी के साथ सहज नहीं हो पाएंगी. खुद को दोष न दें. जो हुआ, वह आप की मरजी के खिलाफ था.

क्या आप के पास कोई करीबी दोस्त, बहन या कोई ऐसा इंसान है जिस पर आप भरोसा कर सकती हैं? उस घटना को किसी के साथ साझा करने से आप के मन का बोझ हलका होगा. अगर सहज न हों तो एक काउंसलर या थेरैपिस्ट से बात करें. वे गोपनीयता रखते हैं और आप को ट्रौमा से उबरने में मदद कर सकते हैं.

अभी आप 21 साल की हैं और शादी में वक्त है. अपने लिए समय लें. छोटीछोटी चीजों से शुरू करें, जैसे दोस्तों के साथ घूमना, अपनी पसंद की चीजें करना ताकि आप का आत्मविश्वास लौटे. शारीरिक संबंधों को समझें सैक्स कोई मजबूरी नहीं है. यह 2 लोगों के बीच प्यार और सहमति का हिस्सा होता है. अगर भविष्य में आप की शादी होती है तो आप अपने पति से खुल कर बात कर सकती हैं. एक समझदार साथी आप की भावनाओं का सम्मान करेगा. आप को अभी से यह मान लेने की जरूरत नहीं कि आप कभी संबंध नहीं बना पाएंगी.

आप बहुत मजबूत हैं. आप ने उस रिश्तेदार से संबंध तोड़ लिया और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रही हैं, यह आप की ताकत दिखाता है. यह डर आप की पूरी जिंदगी को परिभाषित नहीं करेगा. आप अपने भविष्य को खुशहाल बना सकती हैं. बस, खुद पर भरोसा रखें और एकएक कदम आगे बढ़ें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

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