पर्यटन की अपनी ही खुशबू है. आप को रेल में जगह मिले या नहीं, होटल कैसा है, इन सब की फिक्र नहीं रहती. घूमने का जनून जिसे होता है वह दूरदूर तक निकल आता है. मेरे पास मुंबई का शराफत बैठा था. वह वहां इंजीनियर है. सुंदर पत्नी और 2 बच्चे उस के साथ थे. सभी बहुत खुश थे.
मैं ने पूछा, ‘‘कहांकहां घूम आए?’’
वह बोला, ‘‘अजमेर से माउंट आबू निकल गए थे, वहां से उदयपुर गए और फिर वहां से यहां आ गए.’’
‘‘क्या अच्छा लगा?’’
‘‘माउंट आबू सुंदर है, ठंडा भी है, पर उदयपुर बहुत सुंदर है.’’
‘‘उदयपुर में ऐसा क्या है?’’
वह बोला, ‘‘यह कहना कठिन है, पर है बहुत सुंदर.’’
‘‘हम तो बाद में भी आएंगे,’’ उस के दोनों बच्चे एकसाथ बोले.
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ट्रेन आने में देर थी, ये लोग उदयपुर से चेतक ऐक्सप्रैस से जयपुर आ गए थे. यह शहर राजस्थान की राजधानी है. मैं इसी राज्य के जैसलमेर का रहने वाला हूं. हम लोग वेटिंगरूम में अपनीअपनी गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे. पास में ही रफीक भाई बैठे थे. वे जौनपुर के रहने वाले हैं. अपनी छोटी लड़की के साथ हैंडीक्राफ्ट का सामान खरीदने यहां आए थे. लगभग 20 लोगों का उन का ग्रुप है. उन की गाड़ी जोधपुर से आती है, उन का टिकट वेटिंग में है. वह कन्फर्म होगा या नहीं, यह पता करने के लिए वे परेशान थे. चार्ट बहुत दूर लगा हुआ था, वहां जाना और उसे पढ़ना रफीक के लिए कठिन है, भाषा की दिक्कत है. रेलवे के अधिकारी यही जानते हैं कि जनता की भाषा अंगरेजी हो गई है, जबकि कंप्यूटर पर हिंदी के फौंट भी हैं. पर जैसी सरकार की इच्छा, वही सर्वोपरि है.
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