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नोरा फतेही के दिलबर सॉन्ग को मिले 100 करोड़ व्यूज, फैंस ने ऐसा मनाया जश्न

नोरा फतेही का नाम आते ही सबेक जुबां पर सबसे पहला गाना आता है ‘दिलबर’ अगर आप भी उनमें से एक हैं जिन्हें यह गाना पसंद आता है तो आपके लिए एक खुश  खबरी है कि नोरा फतेही का यह गाना एक बिलियन का आकांडा छू लिया है.

इसके साथ ही नोरा फतेही पहली अफ्रीकी महिला कलाकार बन गई है. जिनके सॉन्ग को लोग इतना ज्यादा पसंद कर रहे हैं.  साल 2018 में फिल्म सत्यमेव जयते का यह सॉन्ग सुपरहिट  था. नोरा ने इस गाने के बारे में जिक्र करते हुए कहा था कि इस गाने ने साल 2018 में मेरे कैरियर के लिए सही था, इसके बाद मुझे और भी ज्यादा गाने मिलने शुरू हो गए.

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इसे देखते हुए टीसीरीज ने नोरा को अपने ऑफिस बुलाया था, जहां नोरा फतेही को सरप्राइज दिया बुलाकर , हालांकि जब नोरा फतेही को बुलाया तो उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उन्हें इसलिए बुलाया जा रहा है.

नोरा जब नीचे आई तो सबसे पहले उनका स्वागत बच्चों ने दिलबर सॉन्ग कर डांस करके किया , फिर केक काटा गया. इस दौरान नोरा फतेही फ्लोरल ड्रेस में नजर आ रही थी. नोरा इस लुक में बेहद ही ज्यादा क्यूट नजर आ रही थी.

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नोरा के साथ बच्चे भी नजर आ रहे हैं. जिसे देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नोरा को कितनी ज्यादा खुशी मिली होगी इस गाने के व्यूज के बारे में जानकर.

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वहीं सरप्राइज पाकर नोरा ने सभी लोगों का शुक्रिया अदा भी किया. नोरा का यह लुक देखकर सभी फैंस खुशी से बधाइया देनी शुरू कर दिए हैं.

सैफ अली खान ने बेटे के जन्मदिन पर लगवाई कोरोना वैक्सीन, वायरल हुई तस्वीर

इन दिनों देश में बड़े स्तर पर कोरोना वैक्सिन का प्रोग्राम हर जगह चल रहा है. लोग इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते नजर आ रहे हैं. हाल ही में शतीश शाह , अल्का याग्निक और राकेश रौशन ने वैक्सिन लिया है. अब इस लिस्ट में सैफ अली खान का नाम भी शामिल हो गया है.

खबर है कि शुक्रवार को सैफ अली खान ने भी कोरोना वैक्सिन का डोज लिया है. इसकी तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. जिसमें दिखाया जा रहा है कि सैफ अली खान कोरोना वैक्सिन सेंटर से बाहर आते नजर आ रहे हैं.

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साथ ही बाहर आकर वह कार में बैठकर चले जाते हैं. जिसके बाद उनकी तस्वीर लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और उसमें कैप्शन लिखा जा रहा है कि सैफ अली खान ने कोरोना का वैक्सिन लिया.

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वहीं कुछ लोगों का कहना है कि शुक्रवार को सैफ अली खान के बेटे इब्रहिम खान का जन्मदिन था , इस खास मौके पर उन्होंने वैक्सिन लगवाई है. कुछ दिनों पहले सैफ अली खान और करीना कपूर का दूसरा बेटा हुआ है.जिसके बाद तैमूर बड़े भाई बन गए हैं.

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अगर सैफ अली खान के वर्कफ्रंट की बात करें तो वह कई फिल्मों में नजर आने वाले हैं. जिसमें से सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. साउथ कि फिल्म आदिपुरुष, जिसमें वह प्रभाष के साथ नजर आने वाले हैं. इसके अलावा सैफ अली खान भूत पुलिस में भी नजर आने वाले हैं.

Womens Day Special: बैसाखी-भाग 1

सुबह बाहर के पौधों में पानी देने  और घास पर बिखरे पत्तों को  उठाने के रोज के नियम के बाद मैं ने अखबार उठा कर सुर्खियां पढ़नी शुरू की ही थीं कि ‘छनाक…’ बरतन गिरने की आवाज सुन मैं चौंक पड़ी,

यह क्या?

‘‘रोजरोज तुम्हारे ताने सुनतेसुनते मैं पागल हो जाऊंगा…’’ मैं असमंजस में पड़ गई, अखबार पढ़ूं या पड़ोस का यह संवाद…परंतु पड़ोस का संवाद सुनने के अलावा कोई चारा न था, आवाज बहुत तेज जो थी. अखबार पढ़ना संभव न था.

पड़ोस से आती यह आवाज मेरे लिए नई नहीं थी. 6 महीने पहले आए मेरे किराएदार नवविवाहित तो नहीं पर मुश्किल से 4 वर्ष हुए थे शादी को, ढाई वर्ष का बेटा. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते थे. जिस दिन बच्चे को संभालने वाली आया छुट्टी मारती, वह भी बिना बताए तो यह कार्यक्रम शुरू हो जाता था.

‘‘म…म्मी, आप रोओ मत,’’ कहता हुआ मोनू उन का बेटा, खुद भी सुबक रहा था.

‘‘कैसे न रोऊं, बेटा…’’ रीना रोतेरोते कह रही थी.

‘‘कह तो रहा हूं, ऐसे ताने सुनतेसुनते तंग आ गया हूं,’’ रोहित भी चिल्ला कर बोला, ‘‘ऐसा ही है तो पीछा छोड़ो, तुम भी खुश मैं भी खुश.’’

आगे क्या होगा, मुझे पता था क्योंकि यह सीरियल थोड़ेबहुत परिवर्तन के साथ हर 10-15 दिन में दोहराया जाता था. अब रोतेरोते रीना अपनी मां को फोन करेगी, वे 2 लंच बौक्स ले कर तुरंत आएंगी. उन्हें देख कर रोहित तेजी से अपनी कार ले कर निकल जाएगा, लंच बौक्स भी छोड़ जाएगा. रीना अपनी मां के गले लग कर थोड़ी सांत्वना पा कर स्कूल के लिए भागेगी और मां पूरे दिन मोनू की रखवाली कर शाम को वापस जाएंगी.

2-3 दिन बाद तनाव के बादल छंटेंगे और फिर स्थिति सामान्य होगी.

सोचतेसोचते मैं चाय बनाने के लिए रसोई की ओर बढ़ी. चाय बना कर अपनी कपप्लेट ले कर ज्यों ही मैं बालकनी की ओर बढ़ी, सामने से रीना की मम्मी को आता देख मैं मुसकरा उठी. मेरा अंदाजा शतप्रतिशत सच निकला. इतना सच

तो शायद कोई भविष्यवक्ता भी नहीं बता सकता.

सुहावने मौसम का सुख उठातेउठाते मैं चाय की चुसकियां ले रही थी. हवा बहुत सुहावनी थी. गेट खुलने की आवाज सुन कर मेरी दृष्टि गेट पर पड़ी, रोहित की कार जा रही थी. 15-20 मिनट बाद रीना भी जाएगी. उन्हें देखतेदेखते अचानक मैं उस पल को याद करने लगी जब ये लोग हमारे घर आए थे.

‘आंटी नमस्ते, अखबार में विज्ञापन पढ़ा था कि आप अपने घर के 2 कमरे किराए पर उठाने की सोच रही हैं?’

रोहित, रीना व मोनू उस दिन मेरे दरवाजे पर खड़े थे और रीना ने बहुत मासूमियत से यह सवाल पूछा था. उसे देख कर मुझे अपनी बेटी की याद आ गई जो अपने परिवार के साथ अमेरिका में थी और साल में मुश्किल से एक बार आ पाती थी. थोड़ीबहुत पूछताछ के बाद मैं ने उन्हें ‘हां’ कर दी. बातचीत से पता चला कि रोहित एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर है और रीना विवाह से पहले से एक गर्ल्स पब्लिक स्कूल में पढ़ाती है और वह किसी भी हालत में नौकरी नहीं छोड़ सकती क्योंकि घर पर उस का मन नहीं लगता.

‘पर बेटा, बच्चा, इसे किस के भरोसे छोड़ती हो?’

‘आंटी, फुलटाइम आया रख लूंगी, पिछले घर पर तो पूरा सैट हो गया था, परंतु वहां के मकानमालिक को अपने छोटे बेटे के विवाह के लिए घर की जरूरत थी, इसलिए छोड़ना पड़ा. यहां भी 1-2 दिन में कुछ न कुछ हो जाएगा,’ रीना उतावली हो कर बोली.

 

Crime Story : कलेजे की कील

सौजन्या- मनोहर कहानियां

बेटे की शादी में दहेज न मिलने की जो कील कमल राय के मन में चुभी थी, उसे निकालने के लिए उसे 3 साल इंतजार करना पड़ा. उस ने अपनी संतुष्टि के लिए कील तो निकाल दी, लेकिन…  बिहार के मधुबनी जिले की गौरीगंज तालुका के गांव लालापुर के रहने वाले 50 वर्षीय सुधीर ठाकुर करीब 22-23 साल पहले मुंबई के उपनगर अंधेरी में आ बसे थे. उन्होंने यहीं कामधंधा शुरू कर दिया था. परिवार गांव में रहता था, जिस में उन की पत्नी के अलावा एक जवान बेटी नंदिनी और 2 बेटे थे.

अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा वह गांव परिवार भेज दिया करते थे. परिवार खुशहाल था. गांव में मानसम्मान की कमी नहीं थी. उन के मानसम्मान को धक्का तब लगा जब उन की बेटी नंदिनी ने गांव के ही एक अलग बिरादरी के लड़के से लव मैरिज कर ली और मुंबई आ कर रहने लगी. घरपरिवार की इज्जत के मद्देनजर उन्होंने अपना पूरा परिवार मुंबई बुला लिया था.

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यह सच है कि वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है. विवाह भले ही अंतरजातीय हो, अगर बेटी सुखी हो तो परिवार उस का बड़े से बड़ा गुनाह माफ कर देता है. नंदिनी के साथ भी यही हुआ. परिवार ने उसे माफ कर गले लगा लिया. जबतब उस से फोन पर बात होने लगी.

यह सिलसिला 2 सालों से चलता आ रहा था. लेकिन फिर अचानक नंदिनी का फोन आना बंद हो गया. 7 दिनों तक लगातार फोन करने के बाद भी जब नंदिनी से उन का संपर्क नहीं हो पाया तो पूरा परिवार किसी अनहोनी के डर से परेशान हो उठा.

नंदिनी ने अपने ससुराल वालों के विरुद्ध जा कर पंकज राय से अंतरजातीय विवाह किया था. जिस की वजह से वह अपने ससुर के दिल में जगह नहीं बना पाई थी. यह बात पूरे परिवार को मालूम थी. नंदिनी के ससुर कमल राय उसी गांव के रहने वाले थे, जिस गांव की नंदिनी थी. वह अपने पूरे परिवार के साथ मुंबई में कांदिवली (पूर्व) के भाजीपाड़ा मार्केट पोयसर में रहते थे और कांदिवली (पश्चिम) से डोखरा खरीद कर मुंबई के कई इलाकों की दुकानों में सप्लाई करते थे.

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बेटा पंकज राय कांदिवली की ही ड्राईफ्रूट्स की एक दुकान पर सेल्समैन था. कुल मिला कर परिवार की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी. 11 दिसंबर, 2020 को करीब 10 बजे सुधीर ठाकुर ने कांदिवली, समतानगर पुलिस थाने आ कर थानाप्रभारी राजू कसबे से मुलाकात की. उन्होंने उन्हें अपनी बेटी नंदिनी के बारे में सारी बातें बता कर उस की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी. उन्होंने नंदिनी के ससुराल वालों पर संदेह जाहिर किया.

सुधीर ने बताया कि उन की बेटी नंदिनी का 4 दिसंबर, 2020 से फोन बंद है. तब से वह उस से लगातार संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उन्हें उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही है. जब मैं नंदिनी की ससुराल गया तो पता चला उस की ससुराल के सभी लोग गांव गए हैं. घर में ताला लटक रहा है.

जब आसपास के लोगों से पूछताछ की तो उन्हें नंदिनी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. बेटी कहां है, किस स्थिति में है, आप उस का पता लगा कर मेरी मदद करें.

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नंदिनी की संदिग्ध गुमशुदगी का मामला दर्ज होते ही राजू कसबे ने इस की जानकारी थानाप्रभारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों डीसीपी डा. स्वामी, एसीपी जाधव को देने के बाद जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रविंद्र पडवल को सौंप दी. साथ ही उन के सहयोग के लिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सीधाराम मेहेत्रे, विजय ससकर, एसआई खर्डे, कांस्टेबल किरन सालुके और पाटने की एक टीम भी बना दी.

चूंकि मामला संदेहपूर्ण था, इसलिए इंसपेक्टर रविंद्र पडवल ने अपने सहायकों के साथ तेजी से जांच शुरू कर दी. उन्होंने नंदिनी के ससुराल वालों को बिहार से बुला कर पूछताछ शुरू की. नंदिनी के ससुर कमल राय ने नंदिनी की गुमशुदगी के बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि वह तो नंदिनी को सकुशल घर पर छोड़ कर गांव गए थे.

वह कहां चली गई, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. वैसे भी वह एक कैरेक्टरलैस लड़की थी, उस का चालचलन ठीक नहीं था. अपने किसी यार के साथ भाग गई होगी.

हालांकि नंदिनी का ससुर कमल राय अपने आप को नंदिनी के विषय में पाकसाफ बता रहा था, लेकिन इंसपेक्टर रविंद्र पडवल और उन के सहायकों को उस के कथन पर विश्वास नहीं था. नंदिनी के मामले की जांच की कोई और रूपरेखा तैयार कर के वह उस की तह में जाने की कोशिश करते, उस के पहले ही उन्हें जो जानकारी मिली उस से उन की सोच बदल गई.

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24 दिसंबर, 2020 को लगभग 8 बजे पुलिस कंट्रोलरूम से जो खबर प्रसारित हुई, उसे समतानगर पुलिस थाना पुलिस ने भी सुना. मुंबई उपनगर मलाड मालोनी थाने की पुलिस को मलाड अक्सा बीच समुद्र के किनारे एक युवती की लाश मिली थी, जिसे एक सफेद चादर में लपेटने के बाद बोरी में भर कर किसी नाले में फेंका गया था, जो बह कर समुद्र के किनारे पहुंच गई थी.

शव बुरी तरह से सड़ गया था. उम्र और हुलिया कुछ वैसा ही था, जैसा कि नंदिनी की शिकायत में दर्ज था. मलाड अक्सा बीच पिकनिक पौइंट है. वहां सुबहसुबह घूमने गए किसी व्यक्ति ने इस मामले की जानकारी मलाड मलोनी पुलिस थाने को दे दी थी, जिस समय मलोनी पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची, तब तक वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. पुलिस ने उन्हें हटा कर जांच शुरू कर दी.

शव की स्थिति देख कर पुलिस जांच टीम और वरिष्ठ अधिकारियों को यकीन हो गया था कि उस महिला का शव कई दिनों से पानी में पड़े होने की वजह से बुरी तरह विकृत हो गया है, जिस की शिनाख्त करना मुश्किल था. शव कहीं दूर से बह कर आया था.

मलाड मलोनी पुलिस ने आवश्यक काररवाई करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भेज दिया. शव के पास कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती और जांच को कोई दिशा मिलती.

पुलिस के पास इस मामले को सुलझाने का एक ही रास्ता था, जिसे पुलिस हमेशा अपनाती है, उन्होंने भी वही किया. यह खबर पुलिस कंट्रोलरूम से वायरलैस द्वारा शहर के सभी थानों में प्रसारित करा दी और यह जानने की कोशिश की कि पिछले हफ्ते मृतका की किसी पुलिस थाने में गुमशुदगी तो दर्ज नहीं हुई है.

इस से मलाड़ मलोनी पुलिस की समस्याओं का हल तो निकला ही नंदिनी की गुमशुदगी का रहस्य भी खुल गया. सूचना मिलते ही समता नगर पुलिस थाने की जांच टीम मलाड़ मलोनी पुलिस थाने के अधिकारियों से संपर्क कर नंदिनी के पिता को शव की पहचान के लिए मलाड़ मलोनी पुलिस थाने ले गए, जहां से उन्हें बोरीवली के भगवती अस्पताल ले जाया गया.

अस्पताल में नंदिनी के पिता शव को देख कर अपनी छाती पीटपीट कर रोने लगे. साथ गई पुलिस टीम ने राहत की सांस ली और मामले की जांच तेजी से शुरू कर दी. अभी तक जहां नंदिनी का ससुर कमल राय सिर्फ संदेह के घेरे में था, अब जांच के रडार पर आ गया. इसलिए बिना किसी विलंब के समतानगर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने दोनों पुलिस थानों के अधिकारियों को इस मामले की जांच समानांतर रूप से करने का आदेश दिया. दहेजलोभी ससुर की करतूत अब तक नंदिनी की हत्या से अनजान बने उस के ससुर कमल राय पर जब पुलिस का शिकंजा कसा तो उस ने घुटने टेक दिए. पुलिस के सवालों की बौछार के आगे बचने का कोई रास्ता न पा कर उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए नंदिनी हत्याकांड और उस में शामिल अपने दोनों साथियों के नाम बता दिए.

55 वर्षीय कमल राय का अपने गांव और अपने समाज में अहम स्थान था, काफी इज्जत और मानसम्मान था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटा पंकज राय था. पंकज राय उन की एकलौती संतान था, जिसे उन का पूरा परिवार प्यार करता था.

क्योंकि बिहार में अच्छे घरों के लड़कों की शादी के लिए अच्छी मांग होती है. शादी में उन्हें लड़की वालों की तरफ से काफी मानसम्मान और लाखों रुपए का दानदहेज भी दिया जाता है. मगर कमल राय का यह सपना पूरा नहीं हुआ. उन के बेटे पंकज राय ने नंदिनी ठाकुर से लवमैरिज कर कमल राय के सारे सपने तोड़ दिए.

22 वर्षीय नंदिनी ठाकुर देखने में स्वस्थ और सुंदर थी, सौम्य स्वभाव की. उस का परिवार उसी गांव में रहता था, जिस गांव में कमल राय का परिवार रहता था. ब्राह्मण होने के नाते उस के परिवार की भी गांव में खूब इज्जत थी.

23 वर्षीय पंकज राय भरीपूरी कदकाठी का युवक होने के साथसाथ तेजतर्रार और महत्त्वाकांक्षी युवक था. नंदिनी और पंकज की दोस्ती उस समय शुरू हुई थी, जब दोनों पढ़ते थे, स्कूल साथसाथ जाते और आते थे. मौका मिलने पर दोनों साथ खेलतेकूदते थे.

पढ़ाई में एक साल सीनियर होने के नाते पंकज नंदिनी की मदद किया करता था. कभी पंकज तो कभी नंदिनी अपनी पढ़ाई को ले कर एकदूसरे के घर भी आयाजाया करते थे. दोनों कम उम्र थे, इसलिए उन के घर आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी और न इस पर किसी को कोई ऐतराज था.

लेकिन जैसेजैसे उन की उम्र बढ़ी, वैसेवैसे  उन की सोच में बदलाव आने लगा था. उन का मन पढ़ाईलिखाई में कम प्यारमोहब्बत की तरफ अधिक खिंचने लगा. नतीजा यह हुआ कि यह बात कमल राय तक पहुंच गई. उस ने बेटे को मुंबई बुला कर नौकरी पर लगा दिया.

पंकज के मुंबई जाने के बाद नंदिनी भी पढ़ाई छोड़ कर घर बैठ गई और घर के कामों में मां का हाथ बंटाने लगा. लेकिन इस के बावजूद पंकज और नंदिनी के दिलों की नजदीकियां कम नहीं हुईं.

दोनों का इश्क मोबाइल के जरिए फलताफूलता और जवान होता रहा. दोनों एकदूसरे के दिल में कुछ इस तरह उतर गए थे कि एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था.

जब यह बात उन के परिवार वालों तक पहुंची तो उन्होंने इस पर ऐतराज जताया.

मगर इस का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. जैसेजैसे समय बीतता रहा, वैसेवैसे उन का प्यार और परिपक्व होता रहा. मौका देख कर कमल राय ने जब पंकज को समझाया तो उस ने बिना किसी डर के अपने मन की बात पिता से कह दी कि वह नंदिनी से प्यार करता है और उसी से शादी करेगा.

‘‘लेकिन यह संभव नहीं है.’’ पिता कमल राय ने गंभीर हो कर कहा.

‘‘क्यों पापा, आखिरी नंदिनी में क्या बुराई है. अच्छीखासी होने के साथसाथ सुंदर है. वह भी मुझे उतना ही प्यार करती है जितना कि मैं. अगर मेरी शादी उस से नहीं हुई तो मैं किसी और से शादी नहीं करूंगा.’’

पंकज अटल रहा अपने फैसले पर पंकज के इस फैसले से कमल राय को लाखों के दहेज का ख्वाब टूटता नजर आया. उस ने बेटे को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘प्यार तो तुम्हें वह लड़की भी करेगी जिसे मैं ने पसंद किया है. लड़की भी सुंदर सभ्य है. उस से शादी करोगे तो मानसम्मान तो बढ़ेगा ही, साथ में अच्छाखासा दानदहेज भी मिलेगा. समझे.’’

‘‘कुछ भी हो, मुझे नंदिनी पसंद है. मैं उसी से शादी करूंगा.’’ पंकज ने साफसाफ पिता का विरोध किया.

उस की बात सुन कर कमल राय गुस्से में बोले, ‘‘यह ठीक नहीं है. वह हमारे गांव के ब्राह्मण की बेटी है. उस से तुम शादी करोगे तो हमारी और उस की समाज में क्या इज्जत रहेगी? बदनामी होगी अलग से. इसलिए तुम्हें उस लड़की को भूलना होगा.’’

यही बात नंदिनी के परिवार वालों ने भी उस से कही और उसे समझाया. लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. और अपने परिवार वालों के खिलाफ जा कर दोनों ने 2017 में लवमैरिज कर ली. अब नंदिनी पंकज राय बन कर पंकज के परिवार में शामिल हो गई. शादी के बाद पंकज नंदिनी को मुंबई ले आया था.

समय के साथ नंदिनी के परिवार वालों ने उसे माफ कर के अपना लिया. पंकज ने भी अपने परिवार वालों को मना लिया था. मगर पंकज के पिता कमल ने उन्हें माफ नहीं किया था. उस के मन में प्रतिष्ठा को लेकर जो कील चुभी थी, वह उसे निकाल फेंकने का मौका खोज रहा था.

और यह मौका उसे 3 साल बाद मिला. लौकडाउन में जब पंकज अपनी मां को ले कर छठ पूजा में बिहार गया तो चाहते हुए भी वह नंदिनी को अपने साथ नहीं ले जा सका. उस ने नंदिनी को अपने पिता के पास छोड़ दिया, ताकि उसे खाने वगैरह की परेशानी न हो.

खुद को घर में अकेला देख कमल राय ने नंदिनी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. इस फैसले में उस ने अपने दोस्तों कृष्णा सिंह और प्रदीप गुप्ता को डेढ़ लाख रुपए का

लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया. कृष्णा और प्रदीप पेशे से आटो ड्राइवर थे औरउस के दोस्त.

कृष्णा सिंह और प्रदीप गुप्ता उसी बस्ती में रहते थे, जिस में कमल राय रहता था. कमल राय उन के आटो से अकसर अपना माल कस्टमरों तक पहुंचाता था. दोनों को अपनी योजना में शामिल करने के लिए कमल ने कृष्णा सिंह को 68 हजार रुपए काम होने के पहले दे दिए. बाकी काम होने पर देने का वादा किया.

4 दिसंबर, 2020 की रात कमल राय ने मौका देख कर पहले से ही उस रूम का लौक खराब कर दिया, जिस में नंदिनी सोती थी. उस के बाद कमल राय ने अपने दोनों दोस्तों के साथ रात 12 बजे तकिए से नंदिनी का मुंह दबा कर उस की हत्या कर दी और बोरी व चादर में लपेट कर उस के शव को आटो से ले जा कर भाजी वाड़व के नाले में फेंक आए. नंदिनी के शव को ठिकाने लगाने के बाद कमल और प्रदीप गुप्ता अपनेअपने गांव चले गए.

कमल राय के बयान और निशानदेही पर प्रदीप गुप्ता को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले से तो कृष्णा सिंह को उस के घर पोयसर मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया.

उन से विस्तार से पूछताछ करने केबाद उन का अपराध भादंवि की धारा 302, 201, 34, 120बी के अंतर्गत दर्ज कर किया गया. आगे की जांच के लिए उन्हें मलाड़ मलोनी पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

खेल : अनामिका से शादी करने के वादे को निभा पाया विकास?

अनामिका कुरसी पर बैठी थी और अपने पैर सामने बैड पर रखे हुए थे. बैड पर विकास बेसुध, अर्द्धनग्न अवस्था में सोया था. उस के चेहरे पर सुकून दिखाई दे रहा था. अनामिका सोच के भंवर में डूबी थी. उस के चेहरे पर खामोशी थी मगर मन में विचारों का कोलाहल था. वह बारबार अपनेआप से सवाल करती, ‘रात को जो कुछ हुआ क्या वह सही था? क्या विकास अपने वादे पर कायम रह कर उस से शादी करेगा?’ अनामिका एक मध्यवर्गीय परिवार से थी. बचपन से ही वह एक टौप की मौडल बनने का सपना देखती थी, जिस के लिए घर वालों से विद्रोह कर के वह मुंबई चली आई थी. उस के अप्रतिम सौंदर्य की वजह से शीघ्र ही उसे काम भी मिलने लगा था. छात्र जीवन से ले कर मौडलिंग के सफर तक उस के सामने कई बार शारीरिक संबंध बनाने के प्रस्ताव आए थे मगर उस ने खुद को बचाए रखा था. लेकिन कल रात हालात ही कुछ ऐसे बन गए थे कि न वह विकास को रोक पाई न खुद को.

विकास एक जानामाना क्रिकेटर था. कुछ ही महीने पहले उस की अनामिका से मुलाकात हुई थी. कुछ ही मुलाकातों में वे एकदूसरे को चाहने लगे थे. विकास ने भी अन्य युवकों की तरह उस के सम्मुख यौन संबंध बनाने का प्रस्ताव रखा मगर अनामिका ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया था. उस ने कहा था, ‘विकास, जब तुम मेरे पति बनोगे तभी तुम्हें यह अधिकार मिल पाएगा. मैं एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं और मेरे संस्कार मुझे विवाहपूर्व ये सब करने से रोकते हैं.’

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इस बात पर विकास हंस पड़ता था. कहता, ‘ओह अनु, कौन सी सदी की हो तुम? आजकल यह कौमन है, लाइफ ऐंजौय करो.’ दकियानूस विचारधारा से बाहर निकलो. ‘अगर मैं दकियानूस हूं तो वही सही, मगर तुम ऐसी बातें करोगे तो मुझे तुम्हारे बारे में फिर से सोचना पड़ेगा,’ वह कहती. ‘अच्छा बाबा, सौरी…’ विकास कान पकड़ कर कहता और बात वहीं खत्म हो जाती, लेकिन कल रात सारी सीमाएं टूट गईं. विकास की जिद के सामने वह हार गई थी.

दरअसल, कल दिन में विकास की टीम का विदेशी टीम से मैच हुआ था. जब विकास की टीम पिछड़ रही थी, तब विकास पिच पर आया. वह शतकों का बादशाह था. उस के चौकेछक्के देखने लायक होते थे. पहली ही बौल पर उस ने बल्ला घुमाया और गेंद बाउंड्री पार करती दिखी, मगर यह क्या? बाउंड्री पर तैनात विरोधी टीम के खिलाड़ी ने हवा में उछल कर कैच पकड़ लिया. पूरे मैदान में सन्नाटा छा गया. विकास को इस का गहरा आघात लगा और वह वहीं गिर पड़ा. अनामिका उसे अपने घर ले आई. विकास पूरे रास्ते बिलकुल खामोश रहा. उस के चेहरे पर गहरा तनाव था. घर आ कर अनामिका ने विकास को सोफे पर बैठाया और प्यार से अपने हाथों से पानी पिलाया.

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अचानक विकास ने अनामिका की गोद में सिर रख दिया और फूटफूट कर रोने लगा. ‘यह क्या हो गया अनामिका… मेरा नाम… मेरा कैरियर सब बरबाद हो गया.’ वह रोते हुए बड़बड़ा रहा था.

‘हिम्मत रखो विकास, अभी जिंदगी खत्म नहीं हुई. तुम्हें अपने को साबित करने के बहुत से मौके मिलेंगे. यह तो खेल है, इस में कभीकभी ऐसा हो जाता है,’ वह विकास के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कह रही थी. ‘मुझे अपने आंचल में छिपा लो अनु, मुझे टूटने से बचा लो,’ कहते हुए वह बच्चों की तरह अनामिका से लिपट गया. ‘विकास, हिम्मत रखो और अपनेआप को संभालो.’ वह बोली.

‘आई नीड यू अनु, आई नीड यू. बस, एक बार मुझे अपना बना लो,’ वह रोते हुए कहता जा रहा था. अनामिका ने हलका सा प्रतिरोध भी किया. मगर विकास ने उस के समूचे शरीर पर चुंबनों की बौछार कर दी. अंतत: अनामिका के भीतर भी भावनाओं का तीव्र तूफान उठा जो सारी सीमाएं तोड़ कर सारे तटबंध पार कर गया. इस के बाद विकास गहरी नींद में सो गया.

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‘‘गुड मौर्निंग…’’ विकास की आवाज से अनामिका की तंद्रा टूटी.

‘‘उठ गए तुम… चाय लोगे या कौफी?’’ वह बोली.

‘‘कौफी…’’

जब तक अनामिका कौफी बना कर लाई, तब तक विकास अनामिका के ब्रश से ही पेस्ट कर चुका था.

‘‘थैंक्यू अनु…’’ विकास ने कहा.

‘‘किस बात के लिए?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘मुझे डिप्रैशन से बाहर निकालने के लिए,’’ वह बोला.

‘‘लेकिन अब तुम मुझे डिप्रैशन में मत डाल देना. कहीं तुम यह कह दो कि तुम मुझ से शादी नहीं करोगे?’’

वह जोर से हंस पड़ा, ‘‘डोंट वरी अनु… शादी तो मैं तुम से ही करूंगा, मगर पहले थोड़ा कमा लूं, वैल सैटल्ड हो जाऊं. फिर हम शादी कर के दुनिया के किसी एक कोने में बस जाएंगे.’’अनामिका के चेहरे पर मुसकान आ गई. वह मन ही मन आश्वस्त भी हो गई. इस के बाद अगले मैचों में विकास का प्रदर्शन सुधरता चला गया. मैच के बाद अब विकास रोजाना सीधा अनामिका के पास आता और उस के शरीर से खेलता. अनामिका भी अब आपत्ति न करती, क्योंकि आखिर विकास की खुशी ही तो उस के लिए सबकुछ थी. इस के बाद अनामिका भी अपनी मौडलिंग में व्यस्त हो गई. एक दिन अनामिका को कुछ आशंका हुई और उस ने टैस्ट करवाया तो पाया कि वह गर्भवती है. विकास इन दिनों विदेश में था. अनामिका ने कई बार उस से संपर्क साधने का प्रयास किया मगर बात नहीं हो पाई. एक दिन जब वह स्वदेश आ कर अनामिका के पास आया तो अनामिका ने कौफी बनाई और उस के सामने आ कर बैठ गई, ‘‘बहुत व्यस्त हो आजकल?’’ वह बोली. ‘‘हां, हम लोगों को भी बड़ीबड़ी कंपनियां मौडल बनाने पर तुली हैं. क्रिकेट और मौडलिंग से फुरसत ही नहीं मिलती.’’

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‘‘हां, मैं ने कई बार बात करने की कोशिश की थी मगर फोन मिला ही नहीं.’’ ‘‘क्यों? क्या कोई खास बात थी?’’

‘‘हम शादी कब करेंगे विकास?’’

‘‘मैं ने तुम्हें बताया न, थोड़ा और कमा लूं.’’

‘‘करोड़ों तो कमा चुके हो विकास, अब और कितना कमाओगे? और मैं कहां तुम्हारे कमाने में रोड़ा बनती हूं?’’

‘‘लेकिन मैं इतना कमाना चाहता हूं जितना इंडिया के किसी क्रिकेटर ने न कमाया हो.’’

‘‘आई एम प्रैग्नैंट विकास,’’ वह रोंआसी हो कर बोली.

‘‘तो दिक्कत क्या है ऐबौर्शन करा लो,’’ वह लापरवाही से बोला.

अनामिका स्तब्ध रह गई.

‘‘देखो अनामिका, 4-5 साल तक तो शादी के बारे में सोचना भी मत. अभी से मैं इस झंझट में नहीं फंसना चाहता.’’

‘‘और जिस झंझट में तुम मुझे फंसा कर जा रहे हो उस का क्या होगा?’’

‘‘उस का इलाज तो मैं ने तुम्हें बता ही दिया है.’’

अनामिका गहरी उलझन में फंस गई थी. इस के बाद एक महीने तक विकास नहीं आया. अनामिका ने उसे कई बार फोन भी किया मगर उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एक दिन उसे समाचारपत्र से पता चला कि विकास इसी शहर में एक होटल में ठहरा है. वह सीधी होटल चली गई. इस बीच वह निर्णय ले चुकी थी कि बच्चे को गिराना ही पड़ेगा मगर वह एक बार विकास से मिल कर उसे बताना जरूरी समझती थी. रिसैप्शन पर विकास का रूम नंबर पूछ कर वह थर्ड फ्लोर पर चली आई. दरवाजा खुला ही था. अनामिका ने 2-3 बार दरवाजा खटखटाया मगर कोई आवाज नहीं आई तो उस ने दरवाजा धकेला, दरवाजा खुल गया. वह अंदर चली आई, लेकिन अंदर का दृश्य देख कर वह हक्कीबक्की रह गई. विकास एक विदेशी युवती के साथ हमबिस्तर हुआ पड़ा था. दोनों के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. उसे देख कर दोनों घबरा गए. युवती ने जल्दी से कपड़े पहने, विकास ने भी ऐसा ही किया. अनामिका वहां रुकी नहीं, वह तेजी से नीचे उतरी. अभी वह मेन गेट तक भी नहीं पहुंची थी कि विकास दौड़ता हुआ वहां पहुंच गया और बोला, ‘‘मेरी बात सुनो अनामिका, बहुत सी युवतियां मुझ पर जान छिड़कती हैं और मेरे एक इशारे पर बिस्तर तक आ जाती हैं. अच्छा हुआ जो तुम्हें खुद ही पता चल गया. अगर तुम मुझ से शादी के सपने देख रही हो तो भूल जाओ, मैं…’’

विकास की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनामिका का हाथ उठा और जोरदार तमाचा विकास के गाल पर पड़ा. इस जबरदस्त तमाचे की आवाज पूरे हौल में गूंज उठी. अनामिका तेज कदमों से चली गई और विकास अपने हाथ से गाल सहलाता वहीं खड़ा रहा. टूट कर बिखर गई अनामिका. कितनी बड़ी बेवकूफ थी वह. विकास अधिकांश युवतियों को पैसे के बल पर हासिल करता था, कइयों को अपने स्टेटस और पहुंच के बल पर हासिल करता था, लेकिन अनामिका पर जब कोई दांव नहीं चला तो उस ने उसे भावनाओं के बल पर पा लिया था. अनामिका को अपना होश तक नहीं रहा था. वह कई दिन तक यों ही गुमसुम रही. अंतत: उस ने एक निर्णय लिया कि वह इस बच्चे को जन्म देगी ताकि अपनी भूल को याद रख सके. समय गुजरता रहा. अनामिका ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया. अब वह बच्ची ही उस की दुनिया थी. उम्र के साथसाथ अनामिका के पास मौडलिंग के औफर कम आने लगे. ऐसे में जब पैसे की दिक्कत होने लगी तो बहुत पहले की हुई बीएड की डिग्री काम आई. उस ने एक अच्छे स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली.

एक दिन कौल बैल बजी. दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. 8 वर्ष का लंबा समय बीत चुका था. वह सहसा उसे पहचान नहीं पाई. जब पहचाना तो बेरुखी से बोली, ‘‘कहिए…’’ ‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ वह फीका सा मुसकराया. अनामिका ने एक क्षण सोचा फिर दरवाजा खोल दिया. वह भीतर आ कर सोफे पर बैठ गया, ‘‘मुझे माफ कर दो अनु…’’ वह गिड़गिड़ाया.‘‘आगे बोलो…’’ अनामिका के स्वर में अब भी बेरुखी थी.‘‘मैं बहुत डिप्रैशन में हूं अनु, मुझे इंडियन टीम से निकाल दिया गया है.’’

‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘मुझे एक बार अपने सीने से लगा लो अनु, मुझे एक सच्चे सहारे की जरूरत है.’’

‘‘तुम ने मुझे कमोड समझ रखा है क्या मिस्टर विकास, जब चाहो अपनी नाकामी की गंदगी मेरे भीतर छोड़ कर टैंशन फ्री हो जाओ. तुम होगे बहुत बड़े आदमी, लेकिन किसी औरत के आत्मसम्मान से बड़े नहीं हो सकते,’’ वह क्रोध से चिल्लाई.

तभी उस की बेटी तन्वी ने भीतर प्रवेश किया. उस के हाथ में स्कूल बैग था. वह आते ही बोली, ‘‘मम्मी…’’ और अनामिका से लिपट गई.

‘‘यह बच्ची कौन है…’’ विकास चौंक कर बोला.

‘‘यह मेरी बेटी है…’’ अनामिका का सिर गर्व से तना था.

‘‘मतलब इस का पिता…?’’

‘‘इस का बाप मर चुका है.’’

‘‘तुम झूठ बोल रही हो. 7-8 साल पहले तक तुम्हारी जिंदगी में मेरे सिवा कोई मर्द नहीं था. यह मेरी बेटी है.’’

‘‘गैटआउट…’’ अनामिका के स्वर में जैसे जहर भरा था.

‘‘एक बार मेरी बच्ची को मुझे अपने सीने से लगाने दो. यकीन मानो हम शादी कर लेंगे,’’ वह बच्ची को छूने का प्रयास करते हुए बोला.

‘‘डोंट टच, ऐंड गैटआउट औफ माई हाउस,’’ वह चिंघाड़ी. विकास कुछ क्षण वहीं बैठा रहा, फिर भरे हुए कदमों से उठ कर बाहर चला गया. अनामिका ने पीछे से धड़ाम से दरवाजा बंद कर लिया. फिर वह दरवाजे से टेक लगा कर रो पड़ी. तभी तन्वी आ कर उस से लिपट गई. अनामिका ने तन्वी को कस कर सीने से लगाया और उस के चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी.

इच्छा मृत्यु : लहना सिंह ने अमेरिका में क्या खास देखा

‘‘मि. सिंह, क्या आप कुछ घंटे के लिए अपनी कार मुझे दे सकते हैं?’’ डेनियल डिपो ने संकोच भरे स्वर में कहा.

लहना सिंह ने हिसाबकिताब के रजिस्टर से अपना सिर उठाया और पढ़ने का चश्मा उतार कर सामने देखा. उस का स्थायी ग्राहक डेनियल डिपो, जो एक नीग्रो था, सामने खड़ा था.

उस के चेहरे पर याचना और संकोच के मिलजुले भाव थे. उस ने एक सस्ता ओवर कोट और हैट पहना हुआ था.

‘‘ओह, मि. डिपो, हाउ आर यू? क्या परेशानी है?’’ लहना सिंह ने आत्मीयता से पूछा.

‘‘आज ट्यूब बंद है. रेललाइन की मरम्मत चल रही है. मुझे परिवार सहित न्यूयार्क के बड़े अस्पताल अपने छोटे भाई को देखने जाना है. यहां का बस अड्डा दूर है. कैब (टैक्सी) का भाड़ा काफी महंगा पड़ता है. अगर आप की कार खाली हो तो…’’ डेनियल के स्वर में संकोच स्पष्ट झलक रहा था.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, हमें आज कहीं नहीं जाना है. आप शौक से ले जाइए,’’ कहते हुए लहना सिंह ने कार की चाबी डेनियल को थमा दी.

‘‘थैंक्यू, थैंक्यू, मि. सिंह,’’ आभार व्यक्त करता डेनियल चाबी ले कर ग्रोसरी स्टोर के एक तरफ खड़ी कार की ओर बढ़ चला.

लहना सिंह को न्यूयार्क के एक उपनगर में किराने की बड़ी दुकान, जिसे ग्रोसरी स्टोर कहा जाता था, चलाते हुए 20 वर्ष से भी ज्यादा समय हो चुका था. उस ने शुरुआत छोटी सी दुकान के तौर पर की थी पर धीरेधीरे वह दुकान बड़े ग्रोसरी स्टोर में बदल गई थी.

भारत की तरह अमेरिका के महानगरों, शहरों और कसबों के आसपास निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय बस्तियां भी बसी हुई थीं. इन बस्तियों में रहने वाले परिवारों की जरूरतें भी आम भारतीय परिवारों जैसी ही थीं.

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इन बस्तियों और परिवारों में रहने वालों की मानसिकता को समझने के बाद लहना सिंह को अपना व्यापार चलाने में थोड़ा समय ही लगा था.

आरंभ में उस की यह धारणा थी कि अमेरिका जैसे विकसित देश में महंगा और बढि़या खानेपीने का सामान ही बिक सकता था. मगर इस उपनगर में बसने के बाद उस की यह सोच बदल गई थी.

सस्ते और मोटे अनाज, सस्ते खाद्य तेल, साबुन, शैंपू, झाड़ू और अन्य सस्ते सामान की मांग यहां भी भारत के समान ही थी.

जिस तरह भारत का आम आदमी बड़े और महंगे डिपार्टमेंटल स्टोरों में कदम रखने से कतराता था लगभग वही स्थिति यहां के आम निम्नवर्गीय लोगों की भी थी.

भारत के बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों में जैसे आम आदमी को उधार सामान मिलना संभव नहीं था, वैसे ही हालात आम अमेरिकी के लिए अमेरिका में भी थे. अमेरिका का निम्न बस्ती में बसने वाला परिवार चाहे श्वेत हो या अश्वेत, उधार सामान देने वाले दुकानदार को ही प्राथमिकता देता है.

लहना सिंह ने इस मानसिकता को समझ लिया और उस ने धीरेधीरे निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों में संपर्क बनाने शुरू किए. शुरुआत में थोड़े समय की थोड़ी रकम की उधार, फिर थोड़ी बड़ी उधार दे अपनी दुकान अच्छी जमा ली थी.

उस के ग्राहकों में अब श्वेत अमेरिकियों की तुलना में अश्वेत अमेरिकी, जिन्हें आम भाषा में ‘निगर’ कहा जाता है, थोड़े ज्यादा थे. दरअसल, इस उपनगर के करीब नीग्रो की बस्तियां ज्यादा थीं.

शुरुआत में लहना सिंह को इस उपनगर में दुकान खोलने में डर लगा था. कारण, उस के दिमाग में यह धारणा बनी कि नीग्रो उत्पाती और लुटेरे होते हैं. उन का काम ही बस लूटपाट करना है मगर बाद में यह धारणा अपनेआप बदल गई.

उस के साथी दुकानदारों, जिन में ज्यादातर उसी के समान सिख थे, ने उस को बताया था कि बदअमनी, लूटपाट, जबरन धन वसूली की घटनाएं अमेरिकी इन निम्नवर्ग वाले लोगों की बस्तियों की तुलना में अमेरिकी शहरों या महानगरों में ज्यादा थीं और भारत

के अनेक प्रदेशों, जैसे बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश के कसबों में और भी ज्यादा थीं.

इन निगर कहे जाने वाले काले अमेरिकियों से मैत्रीसंबंध बनाने में लहना सिंह और अन्य एशियाई दुकानदारों व व्यापारियों को कोई ज्यादा समय नहीं लगा और दूसरी कोई दिक्कत भी पेश न आई.

जिस तरह किसी खूंखार पशु या जानवर को उस के अनुकूल व्यवहार और आहार दे कर वश में किया जा सकता है उसी तरह इन उत्पाती समझे जाने वाले काले हब्शियों को समयसमय पर सामान और डालर उधार दे कर और कभीकभार उन के साथ खानापीना खा कर लहना सिंह ने दोस्ताना संबंध बना लिए थे.

वह बेखौफ उन की बस्तियों में जा कर घूमफिर आता था, सामान दे आता था और उगाही कर आता था.

शाम को डेनियल उस की कार वापस करने आया. वह चाबी थमाते बारबार आभार व्यक्त करता थैंक्यू

मि. सिंह, थैंक्यू मि. सिंह बोल रहा था.

‘‘कोई बात नहीं मि. डेनियल, बहुत मामूली बात है.’’

‘‘मि. सिंह, मैं ने कार की टंकी में गैस भरवा दी है.’’

‘‘उस की क्या जरूरत थी. मामूली खर्च की बात है.’’

‘‘ओ.के. मि. सिंह, अब मैं चलूंगा.’’

‘‘एक कप कौफी तो पीजिए, भाई कैसा है आप का?’’

डेनियल की आंखें नम हो गईं. वह आर्द्र स्वर में बोला, ‘‘मि. सिंह, हम से उस की तकलीफ नहीं सही जाती है. वह बारबार जहर का इंजेक्शन लगाने को कहता है. डाक्टर बिना सरकारी आदेश के ऐसा करने में असमर्थता जताता है.’’

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लहना सिंह ने आत्मीयता के साथ डेनियल का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठाते हुए कौफी का कप पकड़ा दिया. डेनियल इस स्नेह स्पर्श से और भी नम हो उठा. वह चुपचाप कौफी पीने लगा.

डेनियल का छोटा भाई किसी जानलेवा लाइलाज बीमारी से ग्रस्त सरकारी अस्पताल में भरती था. इलाज के सभी प्रयास निष्फल रहे थे. अब उस की इच्छा मृत्यु यानी दया मृत्यु की याचिका अमेरिका के राष्ट्रपति के पास विचाराधीन थी.

कौफी समाप्त कर डेनियल उठा और धन्यवाद कह कर जाने लगा. लहना सिंह ने उस को ढाढ़स बंधाते हुए कहा, ‘‘मि. डेनियल, मैं कल आप के यहां आऊंगा.’’

अगले दिन लहना सिंह अपने लड़के को स्टोर संभालने को कह कर निगर बस्ती की तरफ चल पड़ा. आम भारतीय कसबों की तरह छोटी, संकरी, कच्चीपक्की गलियों से बनी यह बस्ती एक तरह की स्लम ही थी.

निगर बस्ती में मकानों की छतें ऊंचीनीची थीं. गलियों में कपड़े सूखने के लिए तारों पर लटके थे. कई जगह गलियों में पानी जमा था. ढाबेनुमा दुकान के बाहर खड़ेखड़े लोग खापी रहे थे. मांस खाने के बाद हड्डियां यहांवहां बिखरी पड़ी थीं.

एक पबनुमा दुकान के बाहर बीयर का मग थामे नौजवान लड़के- लड़कियां बीयर पी रहे थे. उन में हंसीमजाक हो रहा था. कोई वायलिन बजा रहा था, कोई माउथआरगन से धुनें निकाल रहा था.

अमेरिका की इन निम्न बस्तियों में छेड़छाड़ की घटनाएं कम सुनने में आतीं. कारण, लड़केलड़कियों का खुला मेलजोल होना, डेटिंग पर जाना आम बात थी.

भारत और अमेरिका के निम्न- मध्यवर्गीय लोगों में एक बात एक जैसी थी कि आदमी आदमी के करीब था. भारत में भी जैसेजैसे व्यक्ति पैसे वाला होता है वैसेवैसे वह आम आदमी से दूर होता जाता है.

स्वयं में सिमटने की प्रवृत्ति पाश्चात्य और अमेरिकी देशों में अमीरी बढ़ने के कई दशक पहले बढ़ चुकी थी. वही प्रवृत्ति अब भारत के नवधनाढ्य वर्ग में बढ़ रही है.

लहना सिंह का परिवार भारत में आम और निम्नवर्गीय लोेगों के लिए दुकानदारी करता था अब अमेरिका में भी वह इन्हीं तबकों का दुकानदार था.

अमेरिका आने पर लहना सिंह कई महीने न्यूयार्क में कैब यानी टैक्सी चलाता रहा. सप्ताहांत में छुट्टी बिताने पबों, बारों, डिस्कोथैकों में जाता था, जहां उच्च वर्ग के लोग आते थे. उन के चेहरों पर बनावटी मुसकराहट, बनावटी हंसी, झलकती थी. बदन से बदन सटा कर नाचने वाले कितने एकदूसरे के समीप थे यह सभी जानते थे.

उन की तुलना में ये गरीब तबके के लोग खुल कर हंसते और एकदूसरे के समीप थे. दुखसुख में साथ देते थे.

डेनियल उस का इंतजार कर रहा था. उस के यहां लहना सिंह आमतौर पर आताजाता था. किराने का सामान साइकिल की टोकरी या कैरियर पर रख कर थमा जाता था. नियत तारीख पर भुगतान ले जाता था. ऐसा उस बस्ती के अनेक घरों के साथ था.

डेनियल की पत्नी ने लहना सिंह का अभिवादन किया. फिर सभी कौफी पीने लगे. घर का माहौल थोड़ी उदासी भरा था. संवेदना के स्वर हर जगह समान रूप से अपने सुरों का प्रभाव छोड़ते ही हैं.

इधरउधर की सामान्य बातों के बाद लहना सिंह ने डेनियल से उस के छोटे भाई के बाबत पूछा.

‘‘राष्ट्रपति के पास विचाराधीन पड़ी मर्सी किलिंग पेटिशन का फैसला दोचार दिन में होने की संभावना है,’’ डेनियल ने गम भरे स्वर में कहा.

‘‘क्या इस के बिना कोई और रास्ता नहीं है?’’

‘‘निरंतर तकलीफ झेलते, तिलतिल कर मरने के बजाय अगर उसे एकबारगी मुक्ति दिला दी जाए तो क्या अच्छा नहीं है?’’

डेनियल के चेहरे से पीड़ा साफ झलक रही थी.

लहना सिंह भी अवसाद से भर उठा. कहां तो हर कोई मृत्यु से बचने की कोशिश करता था. कहां अब मृत्यु की इच्छा करते मार दिए जाने की दरख्वास्त लगा कर मौत का इंतजार कर रहा था.

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‘‘आप अस्पताल कब जाओगे?’’

‘‘रोज ही जाता हूं. आज बड़े लड़के को भेजा है.’’

‘‘भाई का खानापीना?’’

‘‘क्या खा सकता है वह? ट्यूब नली द्वारा उसे तरल भोजन दिया जाता है. सब सरकारी खाना होता है. हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते, न कोई दवा दे सकते हैं, न कोई खुराक.’’

‘‘कल मैं भी चलूंगा.’’

अगले दिन लहना सिंह और डेनियल भूमिगत रेल, जिसे भारत में मेट्रो और अमेरिका व इंगलैंड में ट्यूब कहा जाता है, के द्वारा सरकारी अस्पताल पहुंचे.

एक बड़े बेड पर आक्सीजन मास्क नाक और आधे चेहरे पर चढ़ाए डेनियल का छोटा भाई लेटा था. उस की आंखें अधखुली थीं. उस के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव साफ दिखाई पड़ रहे थे.

भाई ने भाई को देखा. दोनों ही लाचार थे. बड़ा छोटे को बचाना चाहते हुए भी बचा नहीं पा रहा था. छोटा उसे ज्यादा समय परेशानी नहीं देना चाहता था. संवेदना अपनेआप को खामोश रास्ते से व्यक्त कर रही थी.

अवसाद से भरा लहना सिंह डेनियल का कंधा थपथपा लौट आया था.

2 दिन बाद, राष्ट्रपति द्वारा दयामृत्यु की याचिका स्वीकार कर ली गई थी. आज जहर के इंजेक्शन द्वारा मृत्युदान दिया जाना था.

सगेसंबंधी, मित्र, पड़ोसी, लहना सिंह और अनेक समाचारपत्रों के संवाददाता डैथ चेंबर के शीशे से अंदर झांक रहे थे.

जहर का इंजेक्शन देने को नियुक्त डाक्टर का चेहरा भी अवसाद भरा था. उसे जल्लाद की भूमिका निभानी थी. डाक्टर का काम किसी की जान बचाना होता है, जान लेना नहीं. मगर कर्तव्य कर्तव्य था.

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डाक्टर ने एकबारगी बाहर की तरफ देखा फिर सिरिंज बांह में पिरो कर उस में भरा द्रव्य शरीर में दाखिल कर दिया. मरने की इच्छा करने वाली आंखें धीरेधीरे बंद होती गईं. सर्वत्र खामोशी छा गई थी.

ताबूत को कब्र में उतार उस पर मिट्टी समतल कर एक पत्थर लगा दिया गया था. फूलों के गुलदस्ते कब्र पर चढ़ा सभी भारी मन से कब्रिस्तान से बाहर आ रहे थे.

Womens Day Special: बैसाखी-भाग 3

‘‘कुछ नहीं. कुछ भी तो नहीं,’ झेंपते हुए मैं ने कहा और नमकदानी उठाने लगी. ‘असल में रीना की मम्मी आई थीं और उन्हें देख कर मुझे लगा कि कहीं रीना का परिवार न टूट जाए, मोनू का क्या होगा?’’ कहते हुए जब मैं ने अपने पति की ओर देखा तो उन का चेहरा बहुत शांत था. धीरेधीरे पूरी बात सुन कर वह बहुत गंभीर स्वर में बोले, ‘‘किसी के घर के अंदर क्या हो रहा है उस को तब तक जानने की कोशिश मत करो, जब तक वह स्वयं तुम्हें न बताए और एक कहावत याद रखना कि जब तक कोई मांगे नहीं सलाह व नमक मत दो वरना संबंधों व मुंह का जायका बिगड़ जाता है.’’

अपने पति की दोटूक राय मेरी समझ में आ गई और मैं ने फैसला किया कि अपने को इस मामले से दूर रखूंगी. इस बात से मुझे गहन शांति मिली और मैं भी आराम करने चली गई. फिर रीना के यहां क्या हुआ, मैं ने जानने की कोशिश नहीं की.

‘7 बज गए, अभी तक तुलसी नहीं आई.’ अपनेआप से बड़बड़ाते हुए मैं रसोई तक जा कर लौट आई, पूरा सिंक बरतनों से भरा हुआ था. ‘खुद साफ करूं कि और इंतजार करूं…’ की दुविधा बनी हुई थी. फिर सोचा, ‘अच्छा, साढ़े 7 तक देख लूं.’ सच है दूसरे के अधीन रहने में टैंशन तो झेलनी पड़ेगी पर सवा 7 पर ही तुलसी देवी के दर्शन हो गए. मैं क्रोध करने की स्थिति में तो थी नहीं, इसलिए जबरन मुसकराते हुए ही कहा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘क्या बताऊं भाभीजी, बेटी के ससुराल गई थी, उसे छोड़ने गई और बस 2 घंटे रुक कर ही वापसी की बस पकड़ी. तब जा कर सब से पहले आप के घर आई हूं. और कहीं नहीं जाऊंगी क्योंकि भूख के मारे थकान और सिरदर्द भी है…’’

‘‘अरे, चाय बना दूं क्या?’’ मैं ने पसीजते हुए पूछा.

‘‘चाय के साथ 1-2 रोटी भी अगर हों तो दे दीजिए. पता है भाभीजी, मुझे मालूम था कि आप के घर रोटी जरूर मिल जाएगी क्योंकि आप खाना खुद जो बनाती हो, तो 1-2 रोटी ज्यादा ही बनाती होंगी. वरना आजकल तो घरों में खाना बनाने वाली बाई भी पहले ही पूछ लेती हैं कि कितनी रोटी खाओगे? मुझे तो बड़ा अजीब लगता है. मान लो बाद में और

1 रोटी खाने का जी करने लगे तो? अरे, ऐसे कहीं होता है. मनुहार कर के खिलाने से ही खाना अंग लगता है.’’

अपनी बाई के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुझे हंसी आने लगी पर बातबात में कितनी गहरी बात उस अनपढ़ औरत ने कह दी. खाने से पहले गिन कर रोटी बनाने की जो प्रथा अब चल पड़ी है उस से कभीकभी स्थिति कितनी हास्यास्पद हो जाती है, यह स्वयं मैं अपने न जाने कितने रिश्तेदारों के घर में देख चुकी हूं परंतु तुलसी से यह बात मैं कैसे कहती. इसलिए बात टालने के लिए मैं ने कहा, ‘‘पर यह तो बता कि तू बेटी के यहां इतनी कम देर क्यों रुकी? वहीं से खा कर क्यों नहीं चली?’’

‘‘खा कर?’’ रोटीचाय खातेखाते तुलसी आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगी, ‘‘बेटी के घर? अरे, हम तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते. पराई के घर कौन खाएगा.’’

मैं निरुत्तर हो गई और फिर वही होने लगा जो मैं नहीं चाह रही थी. मेरे सामने रीना, उस की मम्मी तथा आज की घटना चलचित्र की भांति घूमने लगी. यह सच है कि इस रिवाज से अनेक दिक्कतें आई होंगी परंतु आज मुझे इस रिवाज का महत्त्व भी समझ में आने लगा कि बेटी के घर में जितना कम रुकोगे उतना ही उस के घर में हस्तक्षेप कम होगा. परिणामस्वरूप उसे नए परिवार व परिवेश में सामंजस्य बैठाने में सुविधा होगी, पारिवारिक नींव सुदृढ़ व मजबूत होगी जो उस के लिए ही लाभप्रद होगी. इसलिए पूरा नहीं तो मध्यम मार्ग निकाल कर इस रिवाज का पालन करने से कम से कम परिवार टूटने से तो बचेंगे.

उफ, फिर वही दूसरे के चक्कर में अपना चिंतन शुरू हो गया. अपनेआप पर झुंझलाती हुई मैं तुलसी के साथसाथ रसोई से बाहर आ कर मुख्यद्वार बंद करने के लिए बढ़ गई.

दिन गुजरते रहे और रीना का परिवार इसी प्रकार के घटनाक्रम के साथ हमारे पड़ोस को आबाद किए रहा. हम और वे दोनों ही इस सब के आदी हो ही रहे थे कि अचानक एक दिन जब कौलबैल बजी तो दरवाजा खोलने पर मैं चौंक पड़ी क्योंकि आज घंटी बजाने वाला रोहित था.

‘‘रोहित…तुम? अंदर आओ, बेटा. कहो, कैसे आना हुआ?’’

मेरी बोली में स्वाभाविक रूप से प्यार व अपनत्व का भाव आ गया क्योंकि हमेशा से ही मेरी सहानुभूति रोहित के साथ थी, सब के होते हुए भी वह बेचारा मुझे ‘अकेला’ ही लगता था. मेरे सवाल के जवाब में रोहित की आंखें भर आईं. लगता था कि जैसे शायद उसे मुझ में अपनी ‘मां’ महसूस होने लगी. समय की नाजुकता को महसूस कर मैं पानी लेने दौड़ी.

‘‘क्या हो गया, बेटा?’’ पानी देते हुए मैं ने बड़े संकोच से पूछा. अपने पतिदेव की सलाह मुझे याद थी और उसे मानने में ही भलाई थी.

पानी पी कर रोहित थोड़ा संभला और बोला, ‘‘आंटी, आज मुझे फैसला लेना है कि रीना के साथ रहना है या नहीं?’’

‘‘क्या कहा?’’ मैं बुरी तरह आशंकित होते हुए बोली.

‘‘रीना का प्रमोशन हो गया है. वह हैडमिस्ट्रैस बन गई है पर उसे स्कूल में ही रहना होगा क्योंकि बोर्डिंग के बच्चों को भी उसे ही देखना होगा. उस का वेतन भी बढ़ गया है और अन्य सुविधाएं भी मिलेंगी. आंटी, मैं भी बहुत खुश हूं रीना की तरक्की से किंतु यह जानते हुए भी कि स्कूल मैनेजमैंट मुझे वहां रहने की अनुमति नहीं देगा, रीना ने ‘हां’ कह दिया है. मोनू मेरे पास रहेगा और रीना की मम्मी दिन में मोनू को संभालेंगी, बाकी मुझे संभालना है,’’ रोहित भर्राए गले से बोला.

‘‘पर बेटा, तुम ऐसे बच्चे को कैसे संभाल लोगे और कब तक?’’ मैं आक्रोश भरे स्वर में बोली.

‘‘उस का कहना है कि वह मैनेजमैंट को राजी कर लेगी. क्या मैं नहीं जानता कि गर्ल्स कालेज का मैनेजमैंट मेरे कारण अपने नियमों को कभी नहीं बदलेगा. आंटी, रीना अपनी तरक्की के लिए कुछ भी कर सकती है. वह मोनू के 5 वर्ष का होने तक ऐसे ही मुझे बहलाती रहेगी और फिर उसे होस्टल में डाल कर मेरी तरफ मुड़ कर भी नहीं देखेगी. इसीलिए मैं ने भी फैसला ले लिया है कि मैं अब और उस का साथ नहीं दूंगा. वह अपनी मम्मी के बलबूते पर ऐसा कदम उठा रही है तो उन्हें ही अब पूरी तरह जिम्मेदारी को उठाने दीजिए. आज तक मैं ने मोनू के कारण सबकुछ सहा, पर अब नहीं. बिना बाप के भी तो बच्चे पलते हैं न,’’ कहते हुए रोहित की आंखें आंसुओं से भर आईं और चेहरे पर विद्रोह का भाव आ गया.

‘‘अरे बेटा, ऐसा मत करो,’’ कहते हुए मेरी आंखें भी नम हो गईं परंतु मैं अपने आग्रह में खोखलापन महसूस कर रही थी क्योंकि रोहित की जगह कोई भी स्वाभिमानी पुरुष ऐसा ही कदम उठाता.

‘‘तुम्हारे मातापिता नहीं आ सकते? उन के आने से तुम्हें भी अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए मुझे एक आशा की किरण दिखाई दी.

‘‘हैं, सब हैं पर मैं उन से क्या कहूं? एक ही शहर में हम अलगअलग क्यों रह रहे हैं. अगर ऐसा ही था तो विवाह क्यों किया? मां का स्थान पिता से ऊपर है क्योंकि बच्चे को मां बेहतर तरीके से पाल सकती है, यह बात रीना क्यों नहीं सोचती? रीना विवाह से पहले से नौकरी कर रही है और मुझे कोई एतराज नहीं था इसीलिए विवाह किया. किंतु मोनू की उपेक्षा नहीं सही जाती. मैं ने भी सहयोग देने का भरसक प्रयास किया किंतु रीना की मम्मी के सामने मेरा किया हुआ रीना को नजर ही नहीं आता और अब वही मां रीना को सही रास्ता दिखाने की जगह उलटा उस के गलत निर्णय में साथ दे रही है. मैं तो सब सह लेता परंतु मोनू की दुर्गति मैं नहीं देख सकता इसलिए मैं अपना ट्रांसफर करवा कर जा रहा हूं,’’ कहतेकहते रोहित का चेहरा अत्यंत कठोर हो गया, ‘‘मैं आप को यह बताने आया था कि एक हफ्ते में हम घर खाली कर देंगे.’’

रोहित खड़ा हो गया और मैं निढाल सी उसे जाते हुए देखती रही. मेरा मन वेदना से भर आया और मन किया कि रोहित को रोक लूं पर ऐसा कर न सकी.

घर खाली हो गया और मेरे पड़ोस में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया.

‘‘अब थोड़ा देखभाल कर घर किराए पर देंगे वरना पड़ोस के वातावरण का प्रभाव अपने ऊपर भी पड़ता ही है,’’ कहते हुए मेरे पति ने मुझे पहले सतर्क कर दिया और इसी कारण बिना किराएदार के ही 6-7 महीने निकल गए. मैं ने भी अब धीरेधीरे रीना और रोहित के बारे में सोचना बंद कर दिया.

हमारी शादी की सालगिरह पड़ी तो मैं ने और मेरे पति ने ‘फन मौल’ में लंच व पिक्चर का प्रोग्राम बनाया.

‘‘चलो, स्पैंसर का भी चक्कर लगा लें, क्या पता कुछ नई चीज देखने को मिले,’’ कहते हुए मैं अपने पति को स्पैंसर की ओर ले गई. अंदर मैं ने नए प्रोडक्ट्स पर नजर डालनी शुरू की कि अचानक देखा कि सेल्समैन एक बच्चे को बुरी तरह डांट रहा है और पास ही एक महिला उन दोनों के बीचबचाव की मुद्रा में खड़ी है. जिज्ञासु स्वभाव होने के कारण मैं उधर ही बढ़ चली. मुझे पता था कि मेरे पति भी मजबूरी में मेरे पीछेपीछे आ रहे होंगे. पास जा कर देखा तो एक सुखद आश्चर्य से मैं चिल्लाई, ‘‘अरे मोनू?’’

‘‘तब तक महिला ने भी पलट कर देखा. उस के चेहरे पर, मुझे देख कर अत्यंत राहत व खुशी का भाव आया, वे मोनू की नानी यानी रीना की मम्मी थीं.

‘‘देखिए, भाभीजी, मोनू से जरा कैचप की शीशी क्या फूट गई इन्होंने तमाशा मचा दिया, जबकि मैं कह रही हूं कि मैं पेमैंट कर दूंगी.’’

‘‘अरे पेमैंट तो आप करेंगी ही पर आप अपने बच्चे की करतूत देख कर उसे टोकने के बजाय ऐसे दुलार कर रही हैं मानो उस ने कोई तारीफ का काम किया हो. मैं ने रोका तो बदतमीजी कर रहा है,’’ सेल्समैन ने अत्यंत गुस्से से कहा.

अपमान से रीना की मम्मी की आंखों में आंसू आ गए पर अपनेआप को नियंत्रण कर उन्होंने सेल्समैन से माफी मांगते हुए मोनू को काउंटर की ओर घसीटना प्रारंभ कर दिया. अडि़यल मोनू उन की कलाई पर काटने लगा. यही होना था, मातापिता से अलग हुआ बच्चा अपना विद्रोह कहीं तो निकालेगा, मैं अपनेआप को रोक न सकी और बोल ही पड़ी, ‘‘रीना बिलकुल नहीं आ पाती क्या?’’

‘‘अरे भाभीजी, इतनी जिम्मेदारी की नौकरी कर रही है, बारबार कैसे आएगी, हमारा तो दामाद बिलकुल खोटा और गैरजिम्मेदार निकला,’’ कहतेकहते उन की आवाज में अत्यंत रोष का भाव आ गया.

‘‘आप ने उस को जिम्मेदारी उठाने का अवसर ही कहां दिया? जबजब रीना को जरूरत पड़ी आप ने अपने सहारे की ‘बैसाखी’ पकड़ा दी तो वह बेचारा सहारा कैसे बन पाता?’’ कहतेकहते मैं ने रोहित से हुआ पूरा वार्त्तालाप रीना की मम्मी को सुना दिया, ‘‘अरे, वह बेचारा तो सबकुछ करने को तैयार था पर आप ने उन दोनों को एकदूसरे को समझने कहां दिया? याद रखिएगा बहनजी, आप रीना को सहारा नहीं दे रहीं वरन बैसाखी पकड़ा कर उसे हमेशा के लिए अपाहिज बना रही हैं, जिस की वजह से मोनू का व्यक्तित्व कुंठित हो जाएगा.’’

रीना की मम्मी के चेहरे पर पश्चात्ताप के स्पष्ट भाव देख मेरे मन को यह तसल्ली मिली कि अब अवश्य ही ये अपनी बेटी के घर को जोड़ने का प्रयास करेंगी और मैं तो यही चाहूंगी कि उन का यह प्रयास अवश्य सफल हो ताकि कैरियर बनाने की अंधी दौड़  को छोड़ रीना, रोहित व मोनू के जीवन में आया खालीपन दूर करने का प्रयास करे.

‘‘अब चलो,’’ मेरे पति ने मुसकराते हुए, शांत स्वर में कहा, ‘‘आज तुम्हारी सलाह से यदि यह परिवार जुड़ जाता है तो मैं भी यही कहूंगा कि कभीकभी बिना मांगे ही सही, सही सलाह दे दिया करो.’’

Womens Day Special: बैसाखी-भाग 2

अब तक रोहित हमारे वार्त्तालाप में भाग नहीं ले रहा था परंतु इस विषय पर वह चुप न रह सका.

‘आंटी, मैं तो कहता हूं कि नौकरी की ऐसी क्या जरूरत है? मां के बिना मोनू भी आएदिन बीमार हो जाता है. कभी आया नहीं आती तो घर में बिना बात के तनाव हो जाता है कि कौन छुट्टी ले.’

‘मेरी मम्मी संभाल लेती हैं. फिर क्यों मेरी नौकरी के पीछे पड़े हो,’ रीना चिढ़ कर बोली.

मैं इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थी पर मकान देने के लिए ‘हां’ कह चुकी थी, इसलिए विषय बदलना ही उचित समझा, वैसे भी यह उन का निजी मामला था. अत: उस दिन तो यह बात आईगई हो गई, किंतु मुझे ऐसी उम्मीद भी नहीं थी कि किराएदार के रूप में मुझे हर 10-15 दिन में इस सीरियल का ऐसा एपिसोड देखना पड़ेगा जो हर बार रिपीट टैलीकास्ट होता था.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ घंटी की आवाज सुन कर मैं विचारतंद्रा से बाहर आई, कौन हो सकता है? रीना की मम्मी…परंतु यह तो इस सीरियल के किसी एपिसोड में नहीं घटा था यानी इस से पहले तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था. इस से पहले तो रीना के जाने के बाद उस की मम्मी मोनू को ‘प्ले स्कूल’ में छोड़ कर घर को व्यवस्थित करतीं. मोनू को ले कर आतीं. शाम तक मोनू का मन बहलातीं और रीना के आने के बाद उसे चाय पिला कर, रात को सब्जियां बना कर अपने घर चली जातीं.

रोहित के आने के बाद के शीतयुद्ध का आभास भी मुझे हो जाता था क्योंकि यदाकदा चुनिंदा वाक्य, वह भी ठंडी आवाज में ही सुनाई पड़ते. पर आज, देखती हूं कौन आया है? अपनेआप से कहती हुई मैं दरवाजे की ओर बढ़ी. मैजिक आई से देखा तो रीना की मम्मी ही खड़ी थीं. दरवाजा खोला.

‘‘नमस्ते बहनजी, मैं रीना की मम्मी, आप के पड़ोस से.’’

‘‘जी, जानती हूं,’’ रोकतेरोकते भी मेरे मुंह से निकल गया और फिर अंदर ही अंदर थोड़ी शर्मिंदगी सी होने लगी कि कहीं इन्हें यह पता न लग जाए कि इन की बेटी के घर में होने वाले ‘महाभारत’ की मैं एक ऐसी मूक श्रोता हूं जो अब इतनी अभ्यस्त हो चुकी हूं कि आप का आगमन कब होगा, यह भी बिना बताए जान लेती हूं, ‘‘नहीं, असल में रीना ने बताया था कि कभीकभी आप को मोनू की वजह से आना पड़ता है,’’ मैं ने बात संभालते हुए कहा.

‘‘जी बहनजी, क्या बताऊं,’’ अंदर आते हुए वे बोलीं.

‘‘अच्छा, आप पहले बैठिए, कहिए तो चाय बनाऊं.’’

‘‘दरअसल, गैस खत्म हो गई है, सिलेंडर बदलने लगी तो देखा कि खाली है. इधर, बेचारी रीना स्कूल के वार्षिक समारोह में दिनरात व्यस्त थी तो उस के ध्यान से उतर गया होगा, अकेली जान क्याक्या करे?’’

‘‘अकेली कहां है, परिवार है पति है, ससुराल भी होगी?’’

‘‘वह तो है पर घर की जिम्मेदारी तो पूरी उसी के कंधों पर है न, रोहित तो बस औफिस से मतलब रखता है. घर से तो जैसे उस का कोई वास्ता ही नहीं है.’’

मैं चुप हो गई और रसोई की ओर बढ़ी. गैस पर चाय का पानी चढ़ा कर, स्टोर से गैस का सिलेंडर खिसका कर निकाला. आवाज सुन कर ‘मम्मीजी’ आगे आईं और धीरेधीरे सिलेंडर खिसका कर बाहर ले जाने लगीं.

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. चाय रहने दीजिए, मैं खुद बना लूंगी क्योंकि और भी बहुत से काम करने हैं.’’

मुझे भी कोई विशेष आपत्ति न हुई और मैं दरवाजा बंद कर लंच बनाने की तैयारी करने लगी. मेरे पति ने अवकाशप्राप्त करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में काम करना प्रारंभ कर दिया था और वे लंच पर 1 घंटे के लिए आते थे. आज रीना की मम्मी की बातों ने मुझे गहन सोच में डाल दिया था परंतु मन न होते हुए भी कुछ तो बनाना ही था. सोचतेसोचते अनायास ही मैं लगभग 35 वर्ष पीछे चली गई जब मेरा विवाह तय हुआ था, ससुराल भी उसी शहर में थी, मेरे मायके में हमारा संयुक्त परिवार था…

‘अपने घर की बातें कभी बाहर मत बताना,’ दादी ने मुझे पहला सबक सिखाया, ‘जब तक बहुत जरूरी न हो, हमें भी नहीं, क्योंकि लड़की को भी धान की पौध की तरह एक जमीन से दूसरी जमीन पर रोपा जाता है परंतु अगर उसे जमने का मौका न दो, बारबार उस की जड़ कुरेद कर देखो कि जमी या नहीं तो क्या वह पनपेगी? नया घर, नया वातावरण तुम्हें समझने में समय लगेगा पर अच्छा यही होगा कि तुम स्वयं समझो और स्वयं ही सामंजस्य बैठाओ वरना हमेशा तुम्हें ‘बैसाखी’ रूपी सहारे की जरूरत पड़ेगी और तुम्हारे वैवाहिक जीवन की नींव हमेशा कच्ची ही रहेगी.’

सच कहूं तो उस समय दादी की सीख सुन कर मेरी आंखों में आंसू आ गए, लगा, जैसे मैं उन के लिए एकदम पराई हूं तभी तो ऐसी बात कह रही हैं, पर धीरेधीरे वही सीख मेरे सफल वैवाहिक जीवन का आधार बनी.

मेरे वैवाहिक जीवन में परीक्षा की कई घडि़यां आईं. मैं ने भी नौकरी की परंतु किसी और के भरोसे नहीं वरन अपने व अपने पति के सम्मिलित प्रयास से कठिनाइयों का सामना किया. पति का वेतन हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त था. इसलिए मैं ने पहली प्राथमिकता परिवार को दी और छोटी बेटी के 6 वर्ष पूरे होने पर ही नौकरी की. मैं जानती थी कि मैं ने जैसी नौकरी की, मैं उस से कहीं ऊंचे पद पर पहुंच सकती थी, परंतु अपनी परवरिश व प्रयास से अपने बच्चों को ऊंचे पद पर देख कर कहीं ज्यादा हार्दिक खुशी व संतोष मिला. मैं ने अपनी शिक्षा का पूरा उपयोग अपने बच्चों को शिक्षित करने में किया और कभी भी उन के लिए ट्यूशन का सहारा नहीं लिया.

घंटी बजी और मैं समझ गई कि मेरे पति आ गए हैं. अनमने भाव से मैं ने खाना परोसना शुरू किया. मेरे पति को अकेले खाना पसंद न था. इधरउधर की बातचीत करते हुए हम लोग इकट्ठे भोजन करते और अब मैं अपने रिटायरमैंट के बाद खाना खुद ही बनाती थी ताकि सेहत व उम्र के अनुसार ही चिकनाई व मसालों का प्रयोग करूं और समय भी कट जाए, अभी मैं ने पहला कौर खाया ही था कि चौंक कर अपने पति की ओर देखा. वे मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. क्योंकि मैं ने दाल में नमक डाला ही नहीं था. मजाकिया लहजे में बोले, ‘‘आज तुम खोईखोई सी हो, बताओ क्या बात है?’’

 

किसानों के गुस्से के निशाने

किसानों के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए कृषि कानून ऐसे ही नहीं बनाए गए हैं. वे गहरी व दूरगामी सोच का परिणाम हैं, जैसे इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी को मिले चार्टर के समय किया गया था और जैसे वहां के अमीरों व राजा ने कीमती पैसा उस क्षेत्र में लगाया था जिस के बार में सिर्फ सूई की नोंक के बराबर ज्ञान था.

भारतीय जनता पार्टी का थिंकटैंक आजकल देशी और विदेशी पढ़े ऊंची जातियों के एमबीओं से भरा है जो जानते हैं कि व्यापार किस पैटर्न पर चलता है. उन्हें दिख रहा है कि शहरों में उत्पादकता अब नहीं बढ़ रही. शहरी व्यापारी वर्ग बेहद आलसी, धर्मभीरु, रूढ़िवादी है और उस के बलबूते आर्थिक विकास संभव ही नहीं है. विकास तो गांवों में हो सकता है जहां ह्यूमन लेबर आज भी खाली है और उसे नए प्रयोग करने की भी आदत है जिसे जुगाड़ कहते हैं.

इस वर्ग को सस्ते में खरीदने के लिए जरूरी है कि इसे मुहताज बना दो, कंगाल कर दो. देश की बहुत सी भंगी जातियों ने मानवमल साफ करने का काम मुगलों के बसाए शहरों में करने को हामी भरी क्योंकि सामाजिक व्यवस्था ऐसी बनाई गई कि वे जहां थे, भूखे मर रहे थे. उन्हें शहरों में सिर पर मल ढोने को तैयार होना पड़ा.

अब किसानों की यही हालत की जा रही है. वर्तमान सरकार की चाहत है कि किसान के पास न खेत बचें, न जो फसल है उस को बेचने की जगह. वह खरीदार की कम कीमत पर बेचे और उन को बेचे जिन के पास हजारोंलाखों टन अनाज गोदामों में भरा पड़ा है. भोपाल के गोलघर जैसे अनाज भंडार की तर्ज पर आज अडानी, अंबानी और दूसरी कंपनियां सारे देश में बना रही हैं क्योंकि इस में किसानों को मजबूर बना कर बेहद मोटी कमाई के अवसर हैं. सैंसेक्स और निफ्टी में उछालों का कारण यही है. विदेशी पैसे वालों को मालूम है कि अब विशुद्ध भारतीय ईस्ट इंडिया कंपनी का राज है और शायद 200-250 साल यह चले भी. भारत पूंजी निवेश के लिए अच्छा स्थल है. एक अरब लगाओ, 100 अरब पाओ जनता को भूखानंगा रख कर.

नैस्ले, ब्रिटानिया, डाबर, पेप्सिको, रिलायंस रिटेल, जुबिलैंट फूड, केएफसी कंपनियां गांवों से खोज और उन के यहां ही मंहगा ब्रैंडेड माल बेचने की रेस में कूद पड़ी हैं. ये सब विदेशी पैसे पर कूद रही हैं. इन का हिंदुत्व केवल नारों तक है. हिंदुत्व की आड़ में, देशभक्ति की आड़ में देशी कही जाने वाली कंपनियों में मोटर पैसा विदेशी लगा हुआ है, वहीं की तकनीक है, वहीं की मशीनें हैं, वहीं के कंप्यूटर सौफ्टवेयर हैं.

इन कंपनियों ने सरकार को मजबूर किया है कि वह गांवगांव तक सडक़ें ले जाए, बससेवा ले जाए, मार्केट बनाए. इन्हें गांवों की हालत सुधारने में कोई रुचि नहीं है. इन्हें गांवों में समाज सुधारों की चिंता नहीं है. गांवों में स्कूल नहीं चाहतीं ये, कालेज तो दूर की बात है. ये टिकटौक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप ज्ञान बेच कर मेहनती मजदूरों को धर्म का असली नशा पिलाने की इच्छुक हैं. सरकार के कदम व इस सब से देश आत्मनिर्भर नहीं बनेगा बल्कि विदेशी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ेगी.

टैक्स के पैसे से नहरें बनाने को कहा जा रहा है, पुल बनाने को कहा जा रहा है ताकि व्यापार चमके, कच्चा माल खरीदने में आसानी हो और गांवों में विदेशी ब्रैंड बेचे जा सकें. गांवों को चूसने की तैयारी में देश के धन्ना सेठ, धन्ना मंदिरवादी और धन्ना सत्ताधारी एकसाथ हैं. देश एक है. जो आपत्ति करे, सत्य बताए, पोल खोले वह विशुद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी का दोषी है और नंद कुमार की तरह फांसी पर देशद्रोह के आरोप में चढ़ेगा.

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