Download App

लखनऊ का घंटाघर पार्क बना दिल्ली का शाहीनबाग

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर टकराव आमने सामने है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जहां एक तरफ केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह 21 जनवरी को रामकथा पार्क में समाजिक संगठनों की एक बड़ी सभा करने जा रहे हैं वही लखनऊ के चैक इलाके घंटाघर पर सीएए और एनआरसी के विरोध में धरना चल रहा है. इसमें बड़ी संख्या में महिलायें और बच्चे हिस्सा ले रहे हैं. यह एक तरह से दिल्ली के शाहीनबाग जैसा धरना चल रहा है. आन्दोलन करने वाले पार्क में धरना दे रहे हैं. जिला प्रशासन ने शहर में धारा 144 लगाकर धरने को खत्म कराने का प्रयास किया. धरना देने वालों और उनका समर्थन करने वालों को अलग अलग तरह से रोकने का काम भी किया जा रहा है इसके बाद भी धरना जारी है.

रात में धरना देने वालों के कंबल और रस्सी की वैरीकेंटिग हटाने का काम पुलिस ने किया. ‘कंबल चोर पुलिस’ सोशल मीडिया पर बुरी तरह से वायरल हो गया. ट्विटर पर यह टौप ट्रेंड पर पहुंच गया. इसके बाद पुलिस को थोड़ा संयम से काम लेना पड़ा. कई लोग तबीयत खराब होने के बाद भी धरना देने में लगे रहे. रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब एक माह से जेल में बंद थे. वहां से छूटते ही वापस धरने पर बैठ गये. वह कह रहे है कि इस कानून संवैधानिक ढंग से विरोध जारी रहेगा.

ये भी पढ़ें- धर्म और राजनीति किस के लिए होगा राममंदिर ?

चैक घंटाघर के इलाके में प्रदर्शन करने वाली महिलाओं ने अपने चारो तरफ सुरक्षा की नजर से रस्सी का घेरा बना लिया था. जिससे बाहरी कोई उसमें प्रवेश ना कर सके. पुलिस ने जबरन इस रस्सी को हटा दिया. इसके बाद महिलाओं ने खुद से ही एक घेरा बना लिया. पुलिस ने धरने को तोड़ने के लिये सोशल मीडिया पर आने वाली खबरों को रोकने का काम किया. कुछ लोगों को भडकाऊ पोस्ट डालने के लिये मुकदमा भी दर्ज किया गया. इसके बाद भी धरना देने वाला का हौसला टूट नहीं रहा है. पुलिस प्रदर्शन करने वालो के नाम पते नोट करने के बहाने उनको डरा रही है.

पुलिस प्रशासन का कहना है कि शहर में तमाम समारोह के कारण धारा 144 लगी है. ऐसे में धरना पूरी तरह से अवैध है. पुलिस के लिये सबसे बड़ी चुनौती 21 जनवरी को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रैली है. एक तरफ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थन में वह लोगों को समझाने का प्रयास करेगे. दूसरी तरफ चैक घंटा घर में इस कानून के विरोध में प्रदर्शन चैक घटा धर में चलने वाला धरना है. लोगों की तादाद के हिसाब से दोनों में कोई मुकाबला नहीं है. एक तरफ सत्ता प्रायोजित रैली है दूसरी तरफ लोगों का विरोध. भाजपा इसको विरोधी दलों की राजनीति कह रही पर विरोध का यह स्वर देश और समाज के लिये की आपसी दूरी को बढ़ाने वाला है. पुलिस के दबाव में भले ही स्वर धीमा हो और विरोध प्रदर्शन कमजोर दिख रहा हो पर सत्ता के लिये यह चुनौती है.

ये भी पढ़ें- AAP ने मनोज तिवारी से कहा, ‘तुम से न हो पाएगा’

19 दिसम्बर को नागरिकता कानून के विरोध में धरना प्रदर्शन जिस तरह से कानून विरोधी हो गया उससे सबक लेते प्रदशर्नकारियों ने चैक के घंटाघर पर प्रदर्शन के दौरान एतिहात बरत रहे हैं. अब पुलिस इनके साहस और सहनशीलता को तोड़ने का प्रयास कर रही है.

शक्ति-अस्तित्व के एहसास की में आएगा लीप, अपने अस्तित्व से अनजान, हीर बढ़ा रही है नई उम्मीदों की ओर कदम

कलर्स के शो, ‘शक्ति-अस्तित्व के एहसास की ‘ में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती सौम्या की कहानी में जल्द नया अध्याय जुड़ने वाला है. जहाँ किन्नर होने के कारण सौम्या का पूरा बचपन पिता की नफरत में बीता तो वहीं शादी के बाद भी ससुराल वालों की नफरत को झेलना पड़ा. इन सब कठिनाइयों के बीच, उसका सबसे बड़ा सहारा बना उसका पति हरमन.  उसने अपने संघर्ष और नेक इरादों से उसने ना सिर्फ अपने पति का समर्थन जीता, बल्कि दुनिया की नजरों में अपना अस्तित्व कायम किया. सौम्या की ही तरह, हीर भी एक किन्नर है और शुरू होने जा रहा है कहानी का एक नया अध्याय. आइए आपको बताते हैं क्या है हीर की कहानी…

सौम्या की तरह किन्नर है हीर

हरमन और माही की बेटी है हीर, जिसे सौम्या ने हमेशा अपनी बेटी की तरह माना है. हीर भी सौम्या की ही तरह किन्नर है, जिसे दुनिया की नजरों से बचाने की सौम्या और प्रीतो ने कसम खायी है. यही कारण है कि हीर को प्रीतो की निगरानी और भरोसे पर छोड़कर, सौम्या ने उससे दूर जाने का फैसला किया. ये कठोर निर्णय सौम्या के लिए भी आसान नही था, लेकिन हीर को किन्नरों की दुनिया से दूर रखना ज्यादा जरूरी था.

heer

अपने अस्तित्व से अनजान है हीर

heer-in-show

सौम्या की तरह, हीर एक बेहद खूबसूरत और प्यारी लड़की है, पर स्वभाव से बिल्कुल अपने पिता हरमन की तरह है. हीर अब बड़ी हो गई है, लेकिन उसे अपने किन्नर होने का एहसास नही है. हर आम लड़की की तरह वो भी अपने सपनों के राजकुमार से मिलने की ख्वाहिश में जीती है.

 

View this post on Instagram

 

Miliye #Heer se aur dekhiye uski kahani ka har roop 20 Jan se raat 8 baje sirf #Shakti par! @jigyasa_07 Anytime on @voot

A post shared by Colors TV (@colorstv) on

हीर को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है प्रीतो

हीर के सपनों से अलग प्रीतो चाहती है कि हीर अपना भविष्य बनाने पर ध्यान दे ताकि जब उसे अपने अस्तित्व का पता चले तो वो इस सच का डटकर सामना कर सके. इस वजह से प्रीतो, हीर के नजदीक किसी लड़के की परछाई तक नही पड़ने देती, यहाँ तक की फोन, टीवी और इंटरनेट से भी दूर ही रखा जाता है हीर को. लेकिन हीर की जिद है, अपने सपनों के राजकुमार से मिलने की और एक नई लव स्टोरी लिखने की.

क्या हीर की जिद, उसे अपने राजकुमार से मिला पाएगी? क्या प्रीतो, हीर को अपने तरीके से जिंदगी जीने पर मजबूर कर सकेगी? क्या होगा जब हीर को होगा अपनी असलियत का एहसास? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए देखिए, शक्ति- अस्तित्व के एहसास की, सोमवार से शुक्रवार, रात 8 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी: परदे के पीछे सबकी ऐसे नकल उतारता है परम

ऐसे बनाएं अपने माता-पिता से रिश्ते मजबूत

माता-पिता के साथ हर किसी का रिश्ता अटूट होता है जिसे चाहकर भी कोई तोड़ नहीं सकता है. लेकिन आज के जमाने में बच्चे माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूलते जा रहे हैं. बहुत से ऐसे कारण होते हैं जिसकी वजह से आपका रिश्ता आपके माता-पिता के साथ बिगड़ जाता है. अगर आपका रिश्ता आपके माता-पिता से अच्छा नहीं है और आप उस रिश्ते में सुधार लाना चाह रहे हैं तो आपको उसके लिए कुछ ऐसा करना होगा. आइए बताते  हैं.

उनकी भावनाओं को समझें – आप हमेशा कोशिश करें कि अपने माता-पिता के नजरियों को समझें ताकि आप उन्हें वो खुशी दें पाएं जिसके वो हकदार हैं. आपको बहुत सारी बातों के साथ समझौता करना पड़ेगा ताकि आप अपने रिश्ते में सुधार ला सकें.

पहले आप प्रतिक्रिया दें- आप अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्ते में सुधार लाना चाहते हैं तो आपको पहले उनसे बात करने की जरूरत है. इस बात का इंतजार बिल्कुल भी नहीं करें कि पहले वे आएं और आपसे बात करें. क्योंकि यह आपका फर्ज है कि आप अपने माता-पिता को बताएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं या आपको उनकी कितनी फिक्र है.

ये भी पढ़ें- टूटे हुए रिश्ते में ऐसे जगाएं प्यार

माता- पिता की बातों का इज्जत करें–  आप अपने माता-पिता की किसी बात से सहमत नहीं भी होते हैं तो आपको कभी उन्हें इस बात का पता नहीं चलने देना चाहिए. ऐसा करने से शायद आप उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं जिससे आपके रिश्ते में सुधार आने के बजाय आपका रिश्ता बिगड़ सकता है. इसलिए आपको हमेशा उनके हर बात और फैसले की इज्जत करनी चाहिए.

उनकी सराहना करें – माता-पिता द्वारा की गई हर एक बात को आपको सराहने की जरूरत है. हर खुशी या दुख में आपके माता-पिता आपके साथ खड़ें रहें. आपको हमेशा इस बात का एहसास होना चाहिए कि जो भी आपके माता-पिता ने आपके लिए किया है उसे शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है. अपने रिश्ते में सुधार लाने के लिए आपको अपने माता-पिता को इस बात का एहसास दिलाने कि जरूरत है आप उनके हर काम को सराहते हैं.

ये भी पढ़ें- क्या इन्फैचुएशन प्यार नहीं है?

कैसे बनाएं आलू कुर्मा, जानें यहां

यह रेसिपी आलू से बनती है, आलू कुर्मा एक बेहतरीन रेसिपी है. इसकी ग्रेवी भूने हुए काजू, मसाले और दही से तैयार की जाती है. आप इसे लंच या डिनर के लिए बना सकते हैं.

सामग्री

8 मीडियम आलू

20 ग्राम लहसुन पेस्ट

3 ग्राम लाल मिर्च पाउडर

6 ग्राम धनिया पाउडर

125 ग्राम दही

10 ग्राम अदरक पेस्ट

90 ग्राम देसी घी

4 हरी इलाइची

1 टी स्पून हरी इलाइची पाउडर

1.5 ग्राम कालीमिर्च पाउडर

एक चुटकी जायफल पाउडर

1 टी स्पून नींबू का रस

3 टेबल स्पून डेयरी क्रीम

20 ग्राम हरा धनिया

स्वादानुसार नमक

ये भी पढ़ें- घर पर बनाएं ढोकला

बनाने की वि​धि

आलूओं को धोकर, छील लें और आधा काट लें.

इन्हें फ्राई करने के लिए एक पैन में तेल गर्म करें और जब आलू सूख जाएं तो इन्हें गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई करें.

दही का मिश्रण बनाने के लिए सभी सामग्री को एक साथ मिला लें और एक तरफ कर दें.

एक पैन में देसी घी डालकर मीडियम आंच पर रख दें, इसमें हरी इलाइची डालें और इसका रंग बदलने चलाएं.

अब इसमें कटा हुआ प्याज डालें और गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई करें और इसमें एक कप पानी डालें और इसे लगातार चलाते रहे ताकि इसका पानी सूख जाए और तेल अलग हो जाए.

इसमें दही का मिश्रण डालें, इसे चलाएं और तेल अलग होने तक इसे भूनें.

इसके बाद इसमें काजू का पेस्ट डाले और लगातार भूनें.

अब इसमें आलू डालें, इसी के साथ नमक, एक कप पानी, इलाइची, कालीमिर्च और जायफल पाउडर डालें और ढककर धीमी आंच पर 4 से 5 मिनट तक पक पकाएं या फिर जब आलू पानी सोख न लें.

अब इसमें नींबू का रस डालकर एक मिनट के लिए पकाएं, इसमें क्रीम डालकर आंच से हटा लें.

बाउल में निकाल और हरे धनिये से गार्निश करके सर्व करें.

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं पालक पकौड़े

 

मटर की अच्छी पैदावार और बीज का उत्पादन

सत्य प्रकाश, धीरज कटियार और प्रदीप कुमार सैनी

मटर का स्थान शीतकालीन सब्जियों में प्रमुख है. इस का इस्तेमाल आमतौर पर हरी फली की सब्जी के तौर पर जाना जाता है, वहीं साबुत मटर और दाल के लिए भी किया जाता है. मटर की खेती सब्जी और दाल के लिए उगाई जाती है.

मटर दाल की जरूरत की भरपाई के लिए पीले मटर का उत्पादन करना बहुत जरूरी है. इस का प्रयोग दाल, बेसन व छोले के रूप में अधिक किया जाता है.

आजकल मटर की डब्बाबंदी भी काफी लोकप्रिय है. इस में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, रेशा, पोटैशियम व विटामिन पाया जाता है. देशभर में इस की खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है.

ये भी पढ़ें- कम खर्चे में तैयार होती नाडेप खाद

जलवायु

मटर की फसल के लिए नम व ठंडी जलवायु की जरूरत होती है, इसलिए हमारे देश में ज्यादातर जगहों पर मटर की फसल रबी सीजन में उगाई जाती है. बीज अंकुरण के लिए औसत तापमान 22 डिगरी सैल्सियस और अच्छी बढ़वार व विकास के लिए 10-18 डिगरी सैल्सियस की जरूरत होती है.

अगर फलियों के बनने के समय गरम या शुष्क मौसम हो जाए तो मटर के गुणों व उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. उन सभी जगहों पर जहां सालाना बारिश60-80 सैंटीमीटर तक होती है, मटर की फसल कामयाबी से उगाई जा सकती है. मटर के बढ़ोतरी के दौरान ज्यादा बारिश का होना बहुत ही नुकसानदायक होता है.

भूमि

इस की सफल खेती के लिए उचित जल निकास वाली, जीवांश पदार्थ मिट्टी सही मानी जाती है, जिस का पीएच मान 6-7.5 हो, तो ज्यादा सही होती है.

मटियार दोमट और दोमट मिट्टी मटर की खेती के लिए अति उत्तम है. बलुई दोमट मिट्टी में भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर मटर की खेती अच्छी तरह से की जा सकती है, वहीं कछार की जमीन में पानी सूख जाने के बाद मटर की खेती करने योग्य नहीं होती है.

प्रजातियां

फील्ड मटर : इस वर्ग की किस्मों का इस्तेमाल साबुत मटर, दाल के अलावा दाना व चारा के लिए किया जाता है. इन किस्मों में प्रमुख रूप से रचना, स्वर्ण रेखा, अपर्णा, हंस, जेपी-885, विकास, शुभ्रा, पारस, अंबिका वगैरह हैं.

गार्डन मटर : इस वर्ग की किस्मों का इस्तेमाल सब्जियों के लिए किया जाता है.

ये भी पढ़ें- केले के पौधों से करें रेशा उत्पादन

तैयार होने वाली किस्में

आर्केल : यह यूरोपियन अगेती किस्म है. इस के दाने मीठे होते हैं. इस में बोआई के 55-65 दिन बाद फलियां तोड़ने योग्य हो जाती हैं. इस की फलियां 8-10 सैंटीमीटर लंबी एकसमान होती हैं. हरी फलियों की 70-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है.

बोनविले : यह जाति अमेरिका से लाई गई है. यह मध्यम समय में तैयार होने वाली प्रजाति है. इस की फलियां बोआई के 80-85 दिन बाद तोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं. इस की फलियों की औसत पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हासिल होती है.

अर्लीबैजर : यह किस्म संयुक्तराज्य अमेरिका से लाई गई है. यह अगेती किस्म है. बोआई के 65-70 दिन बाद इस की फलियां तोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं. हरी फलियों की औसत उपज 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

अर्ली दिसंबर : यह जाति टा.19 व अर्लीबैजर के संस्करण से तैयार की गई है. यह किस्म 55-60 दिन में तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है. हरी फलियों की औसत उपज 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

असौजी : यह एक अगेती बौनी किस्म है. इस की फलियां बोआई के 55-65 दिन बाद तोड़ी जा सकती हैं. इस की फलियां गहरे हरे रंग की 5-6 सैंटीमीटर लंबी व दोनों सिरे से नुकीली होती हैं. प्रत्येक फली में 5-6 दाने होते हैं. हरी फलियों की औसत उपज 90-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

पंत उपहार : इस किस्म की बोआई 25 अक्तूबर से 15 नवंबर तक की जाती है और इस की फलियां बोआई से 65-75 दिन बाद तोड़ी जा सकती हैं.

जवाहर मटर : इस किस्म की फलियां बोआई से 65-75 दिन बाद तोड़ी जा सकती हैं. यह मध्यम किस्म है. फलियों की औसत लंबाई 7-8 सैंटीमीटर तक होती है और प्रत्येक फली में 5-8 बीज होते हैं. फलियों में दाने ठोस रूप में भरे होते हैं. हरी फलियों की औसत पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

मध्यम किस्में

टी-9 : इस किस्म की फलियां 65 दिन में तोड़ने लायक हो जाती हैं. यह मध्यम किस्म है.  फसल की अवधि 120 दिन है. पौधों का रंग गहरा हरा, फूल सफेद व बीज झुर्रीदार व हलका हरापन लिए हुए सफेद होते हैं. फलियों की औसत पैदावार 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

टी-56 : यह भी मध्यम अवधि की किस्म है. पौधे हलके हरे, सफेद बीज झुर्रीदार होते हैं. हरी फलियां 75 दिन में तोड़ सकते हैं. औसत उपज प्रति हेक्टेयर 80-90 क्विंटल हरी फलियां मिल जाती हैं.

एनपी-29 : यह भी अगेती किस्म है. फलियों को 75-80 दिन बाद तोड़ सकते हैं. इस की फसल अवधि 100-110 दिन है. हरी फलियों की औसत पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पछेती यानी देरी से तैयार होने वाली किस्में

ये किस्में बोने के तकरीबन 100-110 दिन बाद पहली तुड़ाई करने योग्य हो जाती हैं. जैसे- आजाद मटर-2, जवाहर मटर-2 वगैरह.

बीजों का चुनाव : मटर के अच्छे उत्पादन के लिए आधार बीज व प्रामाणित बीज बोआई के लिए उपयोग में लाना चाहिए.

बीज दर : अगेती किस्मों के लिए 100 किलोग्राम व मध्यम व पछेती किस्मों के लिए 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगता है. बीज हमेशा प्रमाणित व उपचारित कर के बोना चाहिए. बीज को बोने से पहले नीम का तेल या गौमूत्र या मिट्टी के तेल से उपचारित कर लेना चाहिए.

बीज और अंतरण : अकसर मटर शुद्ध फसल या मिश्रित फसल के रूप में ली जाती है. इस की बोआई हल के पीछे कूंड़ों में या

सीड ड्रिल द्वारा की जाती है. बोआई के समय 30-45 सैंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति की दूरी रखें और 10-15 सैंटीमीटर पौध से पौध की दूरी रखें. साथ ही, 5-7 सैंटीमीटर की गहराई पर बोएं.

ये भी पढ़ें- ऐसे करें उड़द दाल की खेती

बोने का समय

उत्तर भारत में दाल वाली मटर की बोआई का उचित समय 15-30 अक्तूबर तक है, वहीं दूसरी ओर फलियों वाली सब्जी के लिए बोआई 20 अक्तूबर से ले कर 15 नवंबर तक करना लाभदायक है.

खाद एवं उर्वरक

मटर की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए 1 एकड़ जमीन में 10-15 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद और नीम की खली को खेत में समान रूप से बिखेर कर जुताई के समय मिला देना चाहिए. ट्राईकोडर्मा 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के अनुपात से खेत में मिलाना चाहिए. लेकिन याद रहे कि खेत में जरूरी नमी हो.

बोआई के 15-20 दिन बाद वर्मिवाश का अच्छी तरह से छिड़काव करें, ताकि पौधा तरबतर हो जाए. निराई के बाद जीवामृत घोल का छिड़काव कर दें.

जब फसल फूल पर हो या समय हो रहा हो तो एमिनो एसिड व पोटैशियम होमोनेट की मात्रा स्प्रे द्वारा देनी चाहिए. 15 दिनबाद एमिनो एसिड पोटैशियम होमोनेट फोल्विक एसिड को मिला कर छिड़क देना चाहिए.

नमी बनी रहे, इस का ध्यान रखें. अगर कैमिकल खाद का इस्तेमाल करते हैं, तो गोबर या कंपोस्ट खाद (10-15 टन प्रति हेक्टेयर) खेत की तैयारी के समय दें.

चूंकि यह दलहनी फसल है, इसलिए इस की जड़ें नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करती हैं. यही वजह है कि फसल में कम नाइट्रोजन देने की जरूरत पड़ती है.

कैमिकल खाद के रूप में 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फास्फोरस और 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर बीज बोआई के समय ही कतारों में दिया जाना चाहिए.

यदि किसान उर्वरकों की इस मात्रा को यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट औफ पोटाश के माध्यम से देना चाहता है, तो एक बोरी यूरिया, 5 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट व डेढ़ बोरी म्यूरेट औफ पोटाश प्रति हेक्टेयर सही रहता है.

सिंचाई

मटर की देशी व उन्नतशील जातियों में 2 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. सर्दियों में बारिश हो जाने पर दूसरी सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती.

पहली सिंचाई फूल निकलते समय बोने के 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई जरूरत पड़ने पर फली बनते समय बीज बोने के 60 दिन बाद करें. साधारणतया मटर को कम पानी की जरूरत होती है. सिंचाई हमेशा हलकी करनी चाहिए.

खरपतवार

मटर की फसल के प्रमुख खरपतवार हैं- बथुआ, गजरी, चटरीमटरी, सैजी, अंकारी. इन सभी खरपतवारों को निराईगुड़ाई कर के फसल से बाहर निकाला जा सकता है.

फसल बोने के 35-40 दिन तक फसल को खरपतवारों से बचाना जरूरी है. बोने के 30-35 दिन बाद जरूरत के मुताबिक 1 या 2 निराई करनी चाहिए.

कीट नियंत्रण

तनाछेदक : यह काले रंग की मक्खी होती है. इस की गिडारें फसल की शुरुआती अवस्था में छेद कर अंदर से खाती हैं. इस से पौधे सूख जाते हैं.

रोकथाम : 10 लिटर गौमूत्र रखना चाहिए. इस में 2.5 किलोग्राम नीम की पत्ती को छोड़ कर इसे 15 दिनों तक गौमूत्र में सड़ने दें. 15 दिन बाद इस गौमूत्र को छान लें, फिर छिड़काव करें.

फलीछेदक : देर से बोई गई फसल में इस कीट का हमला ज्यादा होता है. इस कीट की सूंडि़यां फली में छेद कर अंदर तक घुस जाती हैं और दानों को खाती रहती हैं.

रोकथाम : मदार की 5 किलोग्राम पत्ती 15 लिटर गौमूत्र में उबालें. 7.5 लिटर मात्रा बाकी रहने पर छान लें, फिर फसल में तरबतर कर छिड़काव करें.

माहू : इस कीट का प्रकोप जनवरी माह के बाद अकसर होता है.

रोकथाम : 10 लिटर गौमूत्र रखना चाहिए. इस में ढाई किलोग्राम नीम की पत्ती को छोड़ कर इसे 15 दिनों तक गौमूत्र में सड़ने दें. 15 दिन बाद इस गौमूत्र को छान लें, फिर छिड़काव करें.

ये भी पढ़ें- ऐसे करें मेहंदी की खेती

रोग नियंत्रण

उकठा : इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधों की पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती हैं और पूरा पौधा सूख जाता है. यह बीजजनित रोग है. इस रोग में फलियां बनती नहीं हैं.

रोकथाम : जिस खेत में एक बार मटर में इस बीमारी का प्रकोप हुआ हो, उस खेत में 3-4  साल तक यह फसल नहीं बोनी चाहिए. तंबाकू की 2.5 किलोग्राम पत्तियां, 2.5 किलोग्राम आक या आंकड़ा और 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों  को 10 लिटर गौमूत्र में उबालें और 5 लिटर मात्रा बाकी रहने पर छान लें, फिर फसल में अच्छी तरह छिड़काव करें.

झुलसा (आल्टरनेरिया ब्लाइट ) : इस का प्रकोप भी पत्तियों पर होता है. सब से पहले नीचे की पत्तियों पर किनारे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं.

रोकथाम : मदार की 5 किलोग्राम पत्ती 15 लिटर गौमूत्र में उबालें. 7.5 लिटर मात्रा बाकी रहने पर छान लें, फिर फसल में तरबतर छिड़काव करें.

उपज

हरी फलियों की पैदावार 80-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है. फलियां तोड़ने के बाद कुल 150 क्विंटल तक हरा चारा मिल जाता है.

ऐसे दूर करें तनाव

तनाव आज के आधुनिक समय का एक हिस्सा बनता जा रहा है. तनाव बहुत ज्यादा मैंटल या इमोशनल प्रैशर की फीलिंग है. जब आप इस प्रैशर से निबट नहीं पाते, यह प्रैशर तनाव बन जाता है. स्ट्रैस या तनाव कहींकहीं मोटिवेशनल फैक्टर का भी काम करता है. पर यह भी ध्यान देने की बात है कि तनाव सिर्फ किसी मुश्किल स्थिति की बात नहीं है, इस का आप के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यदि आप लगातार तनाव में रहते हैं तो इस की कीमत आप के शरीर और मस्तिष्क को चुकानी पड़ती है.

स्ट्रैस लैवल का बढ़ना सीधेसीधे माइग्रेन, मोटापा जैसी कई शारीरिक बीमारियों का कारण बन जाता है. कभीकभी हार्टअटैक भी हो सकता है. तनाव दूर करने की यहां आसान सी टिप्स दी जा रही हैं जिन्हें आजमा कर आप तनाव को दूर कर स्वस्थ व खुश रहे सकते हैं. तो आइए, जानते हैं-

जब हम तनाव में होते हैं, अपने आसपास बहुत सी नकारात्मकता फैला लेते हैं. हमें यह पता भी नहीं कि यह हमें कितना नुकसान पहुंचा रही है. कई काम ऐसे होते हैं जो उतने जरूरी नहीं होते कि तभी निबटाए जाएं. सो, वे काम हाथ में लें जो उस समय ज्यादा जरूरी हैं. अपने काम को एक और्डर में और समय पर करना सीखें, तनाव महसूस नहीं होगा.

हम लगभग रोज ही न्यूजपेपर्स में या औनलाइन मैडिटेशन और ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज के महत्त्व के बारे में पढ़ते हैं. पर इस के लिए टाइम निकालना मुश्किल लगता है. यदि आप अपना स्ट्रैस लैवल कम करना चाहते हैं तो ब्रीदिंग पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. जब आप ब्रश कर रहे हों, ट्रैफिक में फंसे हों, 5 सैकंड्स के लिए सांस लें, 5 सैकंड्स होल्ड करें, 5 सैकंड्स में सांस छोड़ दें. यह टिप आजमा कर देखें.

ये भी पढ़ें- विवाहित महिलाओं में भी मौत का कारण बनता असुरक्षित गर्भपात

अपने दिमाग को शांत रखने के लिए छोटीछोटी चीजें करें. काम के बीच छोटेछोटे ब्रेक लें. डार्क चौकलेट खाएं. मजेदार आर्टिकल पढ़ें. ये चीजें तनाव कम करने में आश्चर्यजनक रूप से काम करती हैं.

ऐसा म्यूजिक सुनें जो आप के मूड को ठीक कर देता हो. प्लेलिस्ट बनाएं. म्यूजिक का आनंद लेते रहें. शावर लेते हुए, ब्रैकफास्ट के समय या सफर करते हुए अपनी पसंद का गाना सुनें. इस से आप का दिमाग तुरंत शांत होगा और तनाव से आप बहुत दूर रह सकते हैं.

अपनी सीमाएं जानें, उतना ही काम हाथ में लें जितना आप कर सकते हों. वरना आप तनाव में आ सकते हैं. मल्टीटास्ंिकग का आइडिया आप को हीरो जैसी फीलिंग तो दे सकता है पर यह जानना भी बहुत जरूरी है कि एक पौइंट पर आप कितना काम बिना तनाव में आए कर सकते हैं.

ऐक्सरसाइज से एनर्जी और कार्यक्षमता बढ़ती है. स्ट्रैस जल्दी कम करने का यह सब से आसान तरीका है. ऐक्सरसाइज के बाद दिमाग एंडोर्फिन्स रिलीज करता है. वौकिंग, स्विमिंग, बाइकिंग, वेट लिफ्ंिटग मूड सुधारने के लिए बहुत लाभदायक हैं, सो ऐक्सरसाइज जरूर करें.

अच्छी नींद लें. यदि आप की नींद पूरी नहीं होती है, आप का दिमाग ठीक तरह से काम नहीं कर सकता और फिर छोटी से छोटी प्रौब्लम भी आप को बहुत बड़ी लगेगी जिस से फिर आप तनाव के घेरे में आ जाएंगे. अध्ययन के अनुसार, व्यक्ति को 8 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए. इस का एक साइकिल होता है. कम सोने से स्ट्रैस बढ़ता है और तनाव ज्यादा रहने पर नींद आने में परेशानी होती है. इसलिए समय पर सोएं. नींद पूरी करना जरूरी है.

पौजिटिव रहें. जब भी अपने शरीर में तनाव महसूस हो, आंख बंद करें, अच्छी और पौजिटिव बातें सोचें, अपने दिमाग में शांतिपूर्ण जगह की कल्पना करें और अपने जीवन की उन सिंपल चीजों को याद करें जिन्होंने आप को खुशियां दीं. तनाव होने पर यह आसान नहीं होगा पर जीवन के प्रति पौजिटिव सोच रखना असंभव भी नहीं है.

ये भी पढ़ें- सेहत के लिए सोने पर सुहागा है अंकुरित दाल

स्वस्थ खाने की आदत डालें. विटामिन बी से युक्त डाइट लें. जैसे, पालक, ब्रोकली, दालें, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं. ओमेगा थ्री फैटी एसिड्स, जिंक तनाव दूर करने में बहुत मदद करते हैं.

कभीकभी खुद को औरों से डिस्कनैक्ट भी कर लें क्योंकि आज के जमाने में एकदूसरे से सोशल मीडिया पर जुड़े रहने में काफी समय जाता है. मस्तिष्क को आराम देने के लिए कभीकभी स्विचऔफ मोड में भी चले जाएं. फोन, टीवी, कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद करें. बाहर निकलें. नेचर के साथ कुछ समय बिताएं. शांत जगह का आनंद लें और अपने मस्तिष्क को फिरकाम करने के लिए अच्छी पौजिटिव एनर्जी दें.

स्ट्रैस कम करने के लिए कभी भी ड्रग्स, अलकोहल का सहारा न लें.

साफसुथरी जगह मन शांत रहता है. साफसफाई का ध्यान रखें. थोड़ी मेहनत करनी होगी, रोज 10-15 मिनट अपने सामान को व्यवस्थित करने में जरूर लगाएं.

अपने घर में ही आप को स्ट्रैस कम करने के तरीके मिल जाएंगे जिन से आप का तनाव तुरंत कम होगा. घर में किसी प्रियजन को गले लगाएं, फिजिकल टच आप के तनाव को दूर करेगा. जब आप किसी के गले लगते हैं, औक्सीटोसिन रिलीज होता है. इस का संबंध प्रसन्नता और तनाव कम होने से है. औक्सीटोसिन स्ट्रैस हार्मोन नोरएपिनफ्राइयन कम करता है और शरीर को रिलैक्स करता है.

अपनेआप से सकारात्मक, आशावादी बातें करें. इस से आप अपनी भावनाओं को मैनेज कर  पाएंगे.

अपने आसपास सपोर्टिव लोग रखें, कोई फैमिली मैंबर या कोई दोस्त ऐसा हो जिस से आप अपने मन की बात शेयर कर सकें. इस से आप को सोशल सपोर्ट मिलेगा.

ये भी पढ़ें- कड़वे स्वाद वाले करेला में है कई औषधीय गुण

हंसने से स्ट्रैस कम होता है. डाक्टर पैच एडम्स के अनुसार, ह्यूमर बीमारी और सर्जरी की रिकवरी में हैल्पफुल है. स्ट्रैस महसूस हो रहा हो, तो हंसनेहंसाने वाले लोगों से मिलें.

संस्कृति का सच और अश्लीलता पर हल्ला

 अधिकतर भारतीय जानते ही नहीं कि संस्कृति है क्या. जिसे वे अपनी संस्कृति बता रहे हैं, क्या वह उन की है? पश्चिम की नग्नता क्या उन की संस्कृति थी? आज है, तो यही दर्शाता है कि उन्होंने अपनी जनता को कूपमंडूकता से बाहर निकाला है, जो भारतीयों को आज भी नसीब नहीं हुआ, तभी तो पश्चिम की संस्कृति को अपसंस्कृति नाम देते हैं.

संस्कृति एक व्यापक शब्द है जिस से आदमी के रहनसहन, बोलने, बात करने का तरीका, यानी हमारी पूरी दिनचर्या प्रभावित रहती है. जो लोग टीवी सीरियलों को हमारी संस्कृति के विपरीत बताते हैं, क्या उन्हें अपनी संस्कृति का पता है? शायद नहीं. क्योंकि हमारी अपनी कोई संस्कृति है ही नहीं.

हम जिसे अपनी संस्कृति मानते हैं, वह बाहर से आई है. बोलने, बात करने, पढ़नेओढ़ने, खानेपीने, यहां तक कि ‘सौरी’, ‘थैंक्यू’ जैसे शब्दों का प्रयोग करने तक की हमें तमीज नहीं थी. आज भी सड़कों पर गाड़ी से बरसाती पानी के छींटे मारने में हमें संकोच नहीं होता. लाइन तोड़ कर टिकट खरीदने में हम अपनी शान सम झते हैं. ट्रेनों में मूंगफली के छिलके फेंक कर गंदा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हम भेड़ हैं. भेड़ की कोई संस्कृति नहीं होती. गड़रिया जिधर धकेलता है, हम उधर ही भागते हैं.

पढ़ालिखा तबका, जो अपने को अंगरेज की औलाद सम झता है, वह भी सिर्फ दिखावे कि लिए ‘थैंक्यू’ या ‘सौरी’ बोलता है. जरा सोचिए, अंगरेजों के आने से पहले, क्या हम किसी को थैंक्यू बोलते थे?  क्या सौरी कहना या अपनी गलती मानना हम अपनी शान के खिलाफ नहीं सम झते थे? आज भी सौरी महज औपचारिकता है वरना अपटूडेट होने के बाद भी अंदर से हम अभद्र ही हैं.

ये भी पढ़ें- मूर्ति विसर्जन आडंबर से दूषित नदियां

ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, लालकिला, चारमीनार, जीटी रोड, भारतीयों की देन नहीं हैं, जिन्हें हम अपनी संस्कृति से जोड़ कर सीना चौड़ा करते हैं. आश्चर्य होता है तब, जब हम अपनी गुलामी को ‘ग्लोरीफाई’ करते हैं. वजह साफ है, हमारे पास अपना ऐसा कुछ नहीं है जिसे दुनिया के सामने रखा जा सके. यही वजह है जो हम गुलामी की विरासत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जोड़ते हैं.

हमारे पास था क्या? पंडेपुजारियों के बनाए जातपांत, गोत्र, बेसिरपैर का वास्तुशास्त्र, योग, जिस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं. महज गोत्र के नाम पर हत्या करनी हो तो रक्त की अलग परिभाषा गढ़ते हैं.

सच तो यह है कि हम जिस पत्तल में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं. न किया होता, तो गुलामी का दंश न  झेलते. विभीषण हो या कृष्ण, अपनी मातृभूमि व प्रतिबद्धता के खिलाफ काम किया, जो हमारे प्रेरणास्रोत व सम्मानित विभूतियां हैं. यही हमारी संस्कृति है. भ्रष्टाचार, जो हमारी संस्कृति का हिस्सा है, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के जरिए कारगिल के सैनिकों की विधवाओं का हक मारने में भी हमारी आत्मा नहीं धिक्कारती. जबकि चौबीस घंटे आत्मापरमात्मा में जीते हैं. लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. जो जहां है वहीं लूटखसोट में लगा हुआ है. इस में सब लगे हुए हैं. नेता, अधिकारी यहां तक कि आम आदमी भी इस में लिप्त है. इन में कुछ ईमानदार हो सकते हैं पर उस से कुछ नहीं होने वाला.

मानवीय कमजोरी के इस मूल में हमारे वे धार्मिक प्रसंग हैं जो कथाओं के जरिए हम बचपन से सुनते आए हैं. राक्षसों को अमृत न मिले, इस के लिए विष्णुजी ने स्त्री का रूप धरा, जो न केवल पक्षपातपूर्ण था बल्कि भ्रष्ट आचरण का नमूना भी था. यह एक प्रकार का धोखा था. चाणक्य के समय में भी अपराध था. एक ही भ्रष्ट आचरण के लिए ब्राह्मणों को कम ‘पण’ (सिक्का) तथा शूद्रों को ज्यादा ‘पण’ देने का प्रावधान था जो पक्षपात का ज्वलंत उदाहरण है. यह आज भी बदस्तूर कायम है. आज एक अरबपति भी टैक्सों की चोरी करता है. गरीबों का हक मारता है.

जिस अश्लीलता को हम अपसंस्कृति मानते हैं वही हमारी सांस्कृतिक विरासत है. खजुराहो हो या कोणार्क क्या साबित करता है? मनुस्मृति में वंश चलाने के लिए नियोग विधि से देवर के साथ संतानोत्पति करने का प्रावधान है. भीष्म अपने कामांध पिता शांतनु के लिए आजीवन अविवाहित रहने का फैसला लेते हैं. कृष्ण की 16 हजार रानियों पर कोई आपत्ति नहीं करता.

ये भी पढ़ें- मातृसत्तात्मक समाज : जहां पुरुष प्रधान नहीं

ऐसी है हमारी संस्कृति

देवदासी प्रथा खुलेआम वेश्यावृत्ति की मिसाल है. मत्स्य पुराण में कहा गया है कि गैरब्राह्मण स्त्री को चाहिए कि ब्राह्मण को संतुष्ट होने तक भोजन कराए और हर रविवार को उस ब्राह्मण को संभोग हेतु अपना शरीर अर्पित करे. कृष्ण अर्जुन को अपनी बहन सुभद्रा को  भगा ले जाने के लिए प्रेरित करते हैं. नगरवधू प्रथा हमारे राजाओं की देन थी जिस का मकसद था मनोरंजन व सहवास. निश्चय ही इस की प्रेरणा इंद्र देवता से मिली होगी. औरतों (अप्सरा) को नचाना व भोगना इन्हीं की देन है, जो हमारी संसकृति का हिस्सा है. शिवलिंग पूजा को किस श्रेणी में रखा जाए?

संक्षेप में कह कह सकते हैं कि व्यर्थ ही हम अपने को पश्चिम से श्रेष्ठ सम झते हैं. कभी जादूटोना, मदारीसंपेरा,  झाड़फूंक के रूप में ही हमें जाना जाता था. डायन प्रथा आज भी मौजूद है. ज्योतिषशास्त्र, जिस ने इस देश की लुटिया डुबोई, आज भी डुबो रही है. जादूटोना,  झाड़फूंक, शक्ति के लिए बेकुसूर जानवरों को बलि देने की कुप्रथा, सती प्रथा, बालविवाह, विधवा प्रथा जिस में वेश्या बनना तो मंजूर था पर पुनर्विवाह नहीं.

एक तरफ जीवनमरण ऊपर वाले के हाथ में मानते हैं, दूसरी तरफ विधवा को अपने पति की मौत का जिम्मेदार मानते हैं. खानेपीने के लिए छप्पन भोग महज कागजों पर, वरना न मुगल आते न हिंदुस्तानी जानते कि तंदूरी रोटी होती क्या है. स्थापत्य कला की बारीकी मुगलों की देन है. संगीत के अनेक वाद्ययंत्र पश्चिम एशिया से आए. चिकन कला पश्चिम एशिया से आई.

अंगरेज आए तो उन्होंने दाढ़ी व बाल काटना सिखाया. पतलूनकोट पहनना सिखाया. कांटाचम्मच उन्हीं की देन है. हायहैलो उन्होंने ही सिखाया. हाथ मिलाना उन्हीं से सीखा.

जिस गालीगलौज को हम अपनी संस्कृति के खिलाफ सम झते हैं, दरअसल, वही हमारी संस्कृति का शुद्ध पत्र है. बंद दीवारों के बीच शौच करना अंगरेजों ने ही सिखाया. हम तो खेतों में जानवरों की तरह बैठते थे. आज भी देश की काफी आबादी खेतों या रेलवे की पटरी के किनारे इत्मीनान से हमारी समृद्ध संस्कृति की विरासत को दर्शाती है. तथाकथित सभ्य सम झने वाले भारतीय जब ट्रेनों के एसी डब्बे में सफर करते हैं, तो इन्हें देख कर नाकभौं सिकोड़ते हैं, जबकि कभी इस जगह पर उन का अतीत था.

गोपाष्टमी को गाय पूजते हैं. रोजाना सूई कोंच कर दूध दुहते, न ग्वाले को खयाल आता है, न खरीद कर पीने वालों को कि गाय हमारी माता है. जानवर ही मानें पर पूजने का पाखंड तो न करें. जान बचानी हो तो खून का ए-बी देखते हैं, पर जब महिलाएं पुत्र के दीर्घायु के लिए सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं. क्या इस से शिशु मृत्युदर में कमी आई? आज भी यह दूसरे देशों की तुलना में भारत में सब से ज्यादा है. क्या अब भी हमें अपनी श्रेष्ठ संस्कृति पर गर्व करने के लिए कुछ बचा है?  झूठ, बेईमानी, भ्रष्टाचार, कपट, ईर्ष्या, भाईभतीजावाद ही हमारी पहचान है. बेहतर होगा इन से निबटें.

ये भी पढ़ें- शेखपुरा की डीएम इनायत खान 

बिना शादी प्रग्नेंट होने पर इस एक्ट्रेस पर उठे थे कई सवाल

बौलीवुड एक्ट्रेस कल्कि केकलां अपनी निजी जिंदगी को लेकर इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाई हुई  हैं. दरअसल कल्कि ने पिछले साल अपनी प्रग्नेंसी के बारे में ऐलान किया था. वो अपने बायफ्रेंड के के बच्चे को जन्म देने वाली हैं. उन्होंने अभी तक शादी नहीं की है. इसलिए उनके उनके इस फैसले पर कई सवाल भी किए गए.

बौलीवुड इंडस्ट्री में बिना शादी के मां बनना में कोई नयी बात नहीं है लेकिन इसमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. हाल ही में कल्कि ने इस सवाल का अपने बेबाक अंदाज में जवाब दिया हैं. आपको बता दें, कल्कि करीना कपूर के चैट शो ‘इश्क एफ एम’ में गईं थीं. इस शो में उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़े हर पहलू पर खुलकर बात की. उन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी से लेकर बायफ्रेंड और एक्स पति अनुराग कश्यप पर भी बात की.

ये भी पढ़ें- अपनी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल संग वरुण धवन लेंगे सात फेरे

शो के दौरान करीना ने उनसे पूछा कि बिना शादी के मां बनने पर उन पर कई सवाल उठे हैं, उसका सामना कैसे किया. इस पर कल्कि ने हंसते हुए कहा- ‘मेरे पास एक सुपर पावर है कि मैं अपना फोन बेद कर देती हूं और काफी समय तक सोशल मीडिया से दूर रहती हूं. मैं अपने पोस्ट पर कमेंट्स नहीं पढ़ती हूं’.

कल्कि ने एक्स पति को लेकर भी बातें की. कल्कि ने कहा कि वो और अनुराग कश्यप अच्छे दोस्त हैं. उन्होंने ये भी कहा, ‘ऐसा कई बार होता है कि आप किसी से प्यार करते हो लेकिन उसके साथ रहना मुश्किल हो जाता है’.  कल्कि ने अपने पर्सनल लाइफ से जुड़े हर सवालों का बेबाकी से जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- ‘बंकर’ : नेक इरादे, मगर मकसद से परे

जानें, राष्ट्रीय आपराधिक रिकार्ड ब्यूरो

बाल अपराध – रिपोर्ट कहती हैं कि 2018 में 1 लाख 40 हजार से ज्यादा अपराध हुए हैं. अगर इसे प्रतिदिन के हिसाब से देखे 388 अपराध हर दिन हुए है जो कि बहुत अफसोस जनक है .

CRY ( Child Right and You) NRCB की रिपोर्ट पर अपने अध्ययन में कहती हैं कि बाल अपराध में सबसे ज्यादा मामले अपहरण और जोर ज़बरदस्ती के है जो पिछले साल की तुलना में लगभग 16% बढ़े हैं.  वही पास्को ( Protection of child from Sexual Offences) के अंतर्गत दूसरे सबसे ज्यादा अपराध 39,827 मामलें दर्ज हुए हैं जिसमें 9312 केस रेप के दर्ज हुए हैं.

पौलिसी रिसर्च की डायरेक्टर प्रीति मेहरा का कहना है कि “जहां एक तरफ बाल अपराध की संख्या में वृद्धि हुई है वही दूसरी इन मामलों में रिपोर्ट का दर्ज होना ये दर्शाता है कि खुद लोग और सरकार इन आपराधिक मामलों में सचेत हुई है.”

ये भी पढ़ें- धर्म की कैद में स्त्रियां

बाल अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार का नाम सबसे ऊपर है जहां 51% अपराध होते हैं और इन सभी प्रदेशों में उत्तर प्रदेश का नाम सबसे ऊपर आता है.

महिला अपराध – NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक हर 15 मिनट में एक रेप का मामला देश में दर्ज हो रहा है. 2018 में लगभग 34,000 रेप के मामले सामने आए, पिछले वर्ष की तुलना में अपराध में वृद्धि हुई है.

महिला अपराध में बढ़ोतरी की एक वजह पुलिस और कानून का सख्त न होना भी है. जैसा कि पिछले साल कुलदीप सिंह सेंगर का रेप केस सामने आने पर पुलिस ने पीड़ित के ही परिवार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

किसानों की आत्महत्याएं.. रिपोर्ट के मुताबिक 10,349 किसानों ने आत्महत्या की है.. फसल खराब होने, बढ़ते कर्ज या अन्य कारणों के चलते

साम्प्रदायिक/ जातीय दंगे – पिछले कुछ महीनों में प्रोटेस्ट और उस दौरान हिंसा भी सामने आ रही है जो कि एक गलत शुरुआत है.  जातीय और साम्प्रदायिक दंगे पिछले वर्ष की तुलना में कम दर्ज हुए हैं.

मेट्रो शहरों में अपराध में बढ़ोतरी – रिपोर्ट के मुताबिक मेट्रो शहरों में अपराध के मामलों में दिल्ली सबसे ऊपर है जहां दिल्ली में 29.6 प्रतिशत है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और विशेष व स्थानीय कानून (एसएलएल) शामिल हैं.

ये भी पढ़ें- नागरिकता के हवनकुंड में विकास की आहुति

NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक साल दर साल अपराध, हिंसा में बढ़ोतरी ही हो रही है. सरकार को इस पर अध्ययन कर अपराध के कारण और रोकथाम के उपाय को लागू की जरूरत है और साथ ही पुलिस प्रशासन को आपराधिक मामलों में सचेत रहने और संवेदनशील होने की जरूरत है.. ताकि हर अपराध record हो सकें और FastTrack कोर्ट के माध्यम से एक समय सीमा के अंदर न्याय मिलने से कहीं न कहीं अपराध में कमी आएगी. 2012 का दिल्ली का सबसे क्रूरतम अपराध गैंगरेप पर अब 7 साल बाद फांसी की सजा तय की गई.  न्याय में विलंब और अपराध को छुपाया/दबाया जाना भी अपराध होने की वजह है. हम सबको अपराधी का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए भले ही वो किसी भी परिवार या तबके से आता है.. राजनीति में भी आपराधिक व्यक्तियों का बहिष्कार जरूरी है.. वोट देते समय जांच पड़ताल जरूर करनी चाहिए ताकि अपराधी को भी अपराध करते समय सामाजिक बहिष्कार का डर सताये.

धर्म और राजनीति किस के लिए होगा राममंदिर ?

साल 2020 में जो चीजें राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रमुखता से दिखेंगी, अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण उन में सब से ऊपर होगा. वहां दुनिया का सब से बड़ा महंगा और आलीशान मंदिर बनाने की तैयारियां परवान चढ़ रही हैं. अयोध्या में जमीन के दाम दस गुना तक बढ़ गए हैं. देशभर के साधुसंत वहां डेरा डाले पड़े हैं. सुबह से पूजापाठ और यज्ञहवन वगैरह का जो सिलसिला शुरू होता है, वह देररात तक चलता रहता है. कुल जमा अयोध्या में वैदिक कालीन माहौल है.

नए साल के पहले दिन अयोध्या में खासी गहमागहमी थी. इस दिन एक लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु यहां पहुंचे थे. इस दिन अयोध्या में राम को 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया गया था जिसे खासतौर से वहां धूनी रमाए पड़े साधुसंतों ने चटखारे ले कर खाया. अब जायकेदार पकवानों का यह लुत्फ उन्हें जिंदगीभर मुफ्त में मिलना तय हो गया है.

9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आने के पहले ही से मंदिर निर्माण सामग्री अयोध्या पहुंचाई जा रही थी. अब हजारों मजदूर और कारीगर काम में जुटे हैं. अयोध्या से बाहर लखनऊ और दिल्ली में सूचियां बन रही हैं कि अदालत के आदेश के मुताबिक सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट में कौनकौन होगा. इस बाबत पंडेपुजारियों में खुलेआम लठ भी चल चुके हैं, गालीगलौज का भोज भी संपन्न हो चुका है.

ये भी पढ़ें-  सेक्स में नीरसता क्यों

भगवान राम को चढ़ावा चढ़ाने के लिए कहां से क्या लाया जाएगा, श्रेष्ठि वर्ग यह तय करने में जुटा है. राम को भोग लगाने के लिए बिहार के गांव मोकरी से गोविंद भोग चावल मंगाया जाएगा, जो सब से ज्यादा सुगंधित होता है. हलचल अयोध्या के आसपास के गांवों में भी है जिसे देख लगता है कि राममंदिर केवल सवर्णों के लिए होगा. पिछड़े और दलितों को, हालांकि, यहां आने से घोषित तौर पर रोका नहीं जाएगा लेकिन ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि जिस से वे खुद ही यहां आने से हिचकिचाएं.

सूर्यवंशियों की पगड़ी

अयोध्या के आसपास के कोई 105 गांवों में इन दिनों सार्वजनिक सभाएं आयोजित कर उन में पगडि़यां बांटी जा रही हैं. ये पगडि़यां सिर्फ सूर्यवंशी क्षत्रियों के लिए हैं, जिन के बारे में अप्रत्याशित कहानी फैलाई गई है कि उन्होंने 500 साल पहले प्रतिज्ञा की थी कि जब तक राममंदिर फिर से नहीं बन जाता तब तक वे सिर पर पगड़ी नहीं बांधेंगे, छाते से सिर नहीं ढकेंगे और चमड़े के जूते नहीं पहनेंगे. गौरतलब है कि अयोध्या और उस से सटे बस्ती जिले के सूर्यवंशी भी खुद को राम का वंशज मानते हैं.

जैसे ही 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला रामलला विराजमान के पक्ष में आया, इन क्षत्रियों में खुशी की लहर दौड़ गई और समारोहपूर्वक डेढ़ लाख लोगों को पगडि़यां व साफे बांटे जाने लगे. सूर्यवंशी चमड़े के जूतेचप्पल पहनने लगे और अब मंदिर निर्माण की तैयारियों में यथासंभव सहयोग दे रहे हैं. एक तरह से इन्होंने अचानक ही राम और अयोध्या पर अपनी दावेदारी ठोक दी है.

यह दावेदारी कोई अप्रत्याशित या अस्वाभाविक नहीं है, बल्कि इस बात का संकेत है कि देश के लाखों मंदिर सवर्णों के होते ही हैं फिर राममंदिर की तो बात ही निराली है. अयोध्या में पंडेपुजारियों के जमावड़े का मत भी यह है कि राम भगवान के आसपास उन के अलावा अगर कोई फटक सकता है तो वे क्षत्रिय हैं जो उन के परंपरागत यजमान हैं.

यजमान संपन्न वैश्य और दीगर जातियों के सवर्ण भी होंगे जो इफरात से चढ़ावा अयोध्या में दे सकते हैं. वे द्वितीय प्राथमिकता के तहत रामलला के दर्शन के अधिकारी होंगे. लेकिन पिछड़ों और दलितों के बारे में साफ दिख रहा है कि उन्हें अयोध्या आने से रोका तो नहीं जाएगा लेकिन वहां यह एहसास उन्हें हो जाएगा और नहीं होगा तो करा दिया जाएगा कि मर्यादा पुरुषोत्तम का यह मंदिर तुम्हारे लिए नहीं है. तुम लोग अपनी जाति के देवीदेवता पूजो जो वेदपुराणों के निर्देशानुसार तुम्हें सदियों पहले ही पकड़ा दिए गए थे. कुछ नए देवीदेवता गढ़ लिए गए हैं और हर जाति को वर्णव्यवस्था में अपने स्तर के अनुसार दे दिए गए हैं.

जाति के अलावा यह बात आर्थिक आधार पर भी हर कहीं साफसाफ दिखती है कि बड़े भव्य ब्रैंडेड मंदिर पैसे वालों के लिए ही होते हैं. गरीबों के लिए गलीकूचों में इफरात से हनुमान, शनि, काली और भैरों व अनजान देवों, देवियों और माताओं वगैरह के मंदिर हैं. इन में ऊंची जाति वाले कभी नहीं जाते. हां, दक्षिणा तगड़ी मिले तो पंडेपुजारी पूजापाठ कराने के लिए एहसान करते हुए चले जाते हैं. वैसे भी, इन गरीब दलितों ने सवर्णों के बराबर दिखने के लिए अपनी ही जातियों के पंडेपुजारी पैदा भी कर रखे हैं.

ये भी पढ़ें- बैंक और कर्ज संबंधी बातें

इन्होंने उठाई थी पालकी

सूर्यवंशी क्षत्रियों की पगड़ी और जूतों की आड़ में राममंदिर पर दावेदारी के काफी पहले 28 नवंबर, 2018 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान अलवर की एक रैली में साफसाफ यह कहते फसाद खड़ा कर चुके थे कि हनुमान दलित थे. यानी, जो सेवक है वह दलित है और सवर्णों की सेवा व दासता दलितों का कर्त्तव्य व धर्म है.

जन्मना क्षत्रिय और कर्मना ब्राह्मण आदित्यनाथ के बयान पर उतना ही बवाल मचा था जितना कि वे और उन के पीछे के पैरोकार चाहते थे. तब जगहजगह दलित युवाओं ने हनुमान मंदिरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था. लेकिन, जैसा कि कट्टर हिंदूवादी चाहते थे, बाद में मान भी लिया गया कि वे भी हनुमान की तरह दलित हैं.

इसी तरह ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने भी राममंदिर पर कब्जा कर लिया है. इस के पीछे कई अहम वजहें हैं. इन में से खास है जातिवाद और वर्णव्यवस्था को बनाए रखना, जो मौजूदा भाजपा सरकार और उस के पितृ संगठन आरएसएस का घोषित एजेंडा भी है. इन की मंशा यह है कि ब्राह्मण, पुजारी और पंडे पूजापाठ कर मलाई चाटते रहें जबकि क्षत्रिय वर्ग हमेशा की तरह इस मुगालते में रहे कि वह यजमान होने के नाते जातिगत रूप से बाकी के 2 वर्णों से श्रेष्ठ है. यानी, वह ब्राह्मणों का मोहरा बने रहने को तैयार है.

यह टोटका बेकार भी नहीं गया है इन दिनों अयोध्या की दान पेटी हर 15 दिन में खुल रही है जिस के नोट उगलने की तादाद भी हैरतअंगेज तरीके से बढ़ती जा रही है. हालफिलहाल हर पखवाड़े

8 लाख रुपए के लगभग दान राशि निकाल रही है जिस के रामनवमी आतेआते 1 करोड़ से भी ज्यादा होने का अंदाजा है क्योंकि तब तक ट्रस्ट बन चुका होगा और मंदिर निर्माण का काम शबाब पर होगा. इस की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. राममंदिर परिसर यानी श्री रामलला विराजमान शहर का क्षेत्रफल 67 एकड़ से बढ़ा कर 100 एकड़ करने की कवायद भी लगभग पूरी होने को है.

राममंदिर आंदोलन का इतिहास बताता है कि यह पूरी तरह सवर्णों की अगुआई में ही हुआ है. 80 के दशक से इस आंदोलन ने जो आग पकड़ी थी उस में अग्रणी नाम आरएसएस प्रमुख बाला साहब देवरस, विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल, रज्जू भैया, के सुदर्शन और मोहन भागवत के ही थे. आरएसएस के मौजूदा मुखिया मोहन भागवत हैं. इन के अलावा महंत अवैद्यनाथ, रामचंद्र परमहंस दास, विश्वेशतीर्थ और वासुदेवानंद जैसे नामी संतों ने भी बढ़चढ़ कर राममंदिर आंदोलन को हवा दी थी.

लेकिन मंदिर अभियान में सभी की भागीदारी दिखे, इस बाबत पिछड़े वर्ग के महत्त्वाकांक्षी नेताओं उमा भारती, गोपीनाथ मुंडे, कल्याण सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी को भी इस में शामिल किया गया था. तब नरेंद्र मोदी आज जितने बड़े नाम या व्यक्तित्व नहीं थे. पिछड़े वर्ग की आक्रामक हिंदूवादी तेवरों वाली साध्वी ऋतंभरा ने भी ‘एक धक्का और दो, बाबरी मसजिद तोड़ दो’ और ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहां बनाएंगे’ जैसे भड़काऊ नारों से देश सिर पर उठा लिया था.

ये भी पढ़ें- धर्म की कैद में स्त्रियां

देखा जाए तो यह, दरअसल, वैदिक कालीन वर्णव्यवस्था का लोकतांत्रिक संस्करण था, जिस में नेतृत्व ऊंची जाति वाले करते हैं. वैश्यों और शूद्रों का काम बाकी काम संभालना होता है. ये वे वर्ग हैं जिन्हें धर्म, राम और हिंदुत्व के नाम पर लड़ने को उकसाया जाता है और फिर धार्मिक हिंसा में मरने छोड़ दिया जाता है. इस के बाद भी राममंदिर पर इन का कोई अधिकार नहीं होता.

प्रसंगवश यह उल्लेख यहां जरूरी है कि भाजपाई राजनीति के लिए पिछड़े और दलित आरएसएस ने मंदिर आंदोलन के जरिए ही जोड़े थे. ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली धर्म संसद में गुपचुप ऐसे षड्यंत्रकारी फैसले होते हैं. मसलन, 9 नवंबर, 1989 को जब अयोध्या में विवादित स्थल के पास राममंदिर का शिलान्यास होना था तब बिहार के एक दलित कामेश्वर चौपाल को पहली ईंट रखने का सौभाग्य प्रदान किया गया था. तब मकसद यह जताना था कि यह आंदोलन केवल सवर्ण हिंदुओं का नहीं है.

लेकिन, अब यह सब सवर्ण हिंदुओं का ही है और दलितपिछड़ों की हालफिलहाल कोई सुध नहीं ले रहा है. लेकिन संभावना इस बात की ज्यादा है कि आरएसएस और धर्म संसद दलित पिछड़ों को एकदम नजरअंदाज नहीं करेंगे. ये वर्ग तो इस बात से ही खुश हो जाने वाले हैं कि उन के वर्ग से भी किसी को प्रस्तावित ट्रस्ट में नुमाइंदगी मिल जाए. एकाध पिछड़ों को जगह मिल भी सकती है. लेकिन दबदबा ब्राह्मणों का रहेगा, यह बात साफसाफ दिख रही है.

अब होगा यह कि राममंदिर की भव्यता के तले दलितपिछड़ों की हीनता हमेशा की तरह दब कर रह जाएगी. उन्हें सीधे धकियाया नहीं जाएगा, लेकिन हालात ऐसे कर दिए जाएंगे कि वे खुद ही अयोध्या के राम दरबार का रुख न करें. महंगे मौल्स में, फाइवस्टार होटलों में और सिनेप्लैक्स में मैलाकुचैला गरीब धोखे से भी चला जाए तो उस से अपनी हीन मानसिकता उस से छिपाए नहीं छिपती और वह अपने वर्ग के दूसरे लोगों को इन जगहों पर जाने के नुकसान गिनाता व बताता रहता है.

पंडेपुजारियों का दबदबा

ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब देश के किसी कोने से यह खबर न आती हो कि दलित को मंदिर में प्रवेश से रोका न गया हो और न मानने पर माराकूटा भी न गया हो, दलित दूल्हे को मूर्ति के दर्शन न करने दिए गए हों. ऐसी खबरें आम हैं. ये हादसे और झड़पें इस बात का नवीनीकरण कर जाते हैं कि विष्णु अवतार के मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर वैदिक काल से ही रोक है. इधर दलित भी जिद पर अड़े रहते हैं कि पिट लें, जूते खा लें लेकिन मंदिर में जरूर जाएंगे. मानो इस से उन के पाप, जो उन्होंने किए ही नहीं होते, वाकई में धुल जाएंगे और ऊंची जाति वाले उन्हें भैयाभैया कहते गले से लगा लेंगे.

पंडेपुजारियों की निगाह में दलित दलित ही है फिर चाहे वह राष्ट्रपति ही क्यों न हो. आम दलितों की बात तो छोडि़ए, खुद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी मंदिर जाने पर प्रताडि़त, तिरस्कृत और अपमानित किए जा चुके हैं. मार्च 2018 में वे पुरी के नामी जगन्नाथ मंदिर में पत्नी सविता कोविंद के साथ गए थे, तो वहां के सेवादारों ने उन से भी बदसुलूकी करते उन्हें गर्भगृह में नहीं जाने दिया था. सविता के साथ जानबूझ कर धक्कामुक्की भी की गई थी और दोनों के रास्ते में रोड़े अटकाए गए थे.

इस पर राष्ट्रपति भवन के अधिकारियों ने, दिखावे का ही सही, कड़ा एतराज जताते जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) को कलैक्टर पुरी अरविंद अग्रवाल के जरिए पत्र लिखा था. लेकिन मामले पर जल्द ही लीपापोती कर दी गई थी. इस से साबित यह हुआ था कि मंदिरों में दादागीरी तो पंडों की ही चलेगी. उन की नजर में सर्वोच्च संवैधानिक पद की भी कोई अहमियत नहीं है क्योंकि उस पर दलित समुदाय का व्यक्ति बैठा है.

इसी तरह 17 सितंबर, 2019 को भाजपा सांसद ए नारायणस्वामी को कर्नाटक के टुमकुरु जिले के  पारामनाहल्ली के गोल्लकाहट्टी स्थित एक मंदिर में नहीं जाने दिया गया था. यादव जाति के नारायणस्वामी दलित नहीं बल्कि पिछड़े समुदाय से आते हैं जिन्हें टुमकुरु में दलित माना जाता है. चित्रदुर्ग लोकसभा क्षेत्र के ये सांसद महोदय भी अपना सा मुंह ले कर रह गए थे.

ये भी पढ़ें- शादी में ज्यादा खर्च से बचना है तो अपनाएं ये 5 तरीके

जिस देश में दलित राष्ट्रपति, मंत्री और सांसद तक मंदिर में न घुसने दिए जाते हों वहां आम दलित की हालत क्या होती होगी, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

अयोध्या में यह सब नहीं होगा, इस की शायद ही कोई गारंटी ले. मुमकिन है, वहां यह सब अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाए. मकसद हमेशा की तरह यह जताना होगा कि तुम लोग अपने देवीदेवताओं के मंदिरों में जाओ. बड़े मंदिरों में आने से वे अपवित्र हो जाते हैं, इसलिए उन्हें गंगाजल से धोना पड़ता है.

हिंदू धर्म का यह वीभत्स सच कभी किसी सुबूत का मुहताज नहीं रहा कि बड़े मंदिर सिर्फ ऊंची जाति वालों के लिए हैं. सदियों से चली आ रही मान्य हिंदू परंपरा को तोड़ने की कोशिश दलितों के मसीहा भीमराव अंबेडकर ने की थी. 2 मार्च, 1930 को नासिक के कालाराम मंदिर में उन्होंने एक ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था, जिस का मकसद हिंदू दलितों को मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाना था. इस सत्याग्रह में कोई 15 हजार दलित शामिल हुए थे.

5 वर्षों से भी ज्यादा चले इस सत्याग्रह के दौरान भीमराव अंबेडकर ने तुक की एक बात यह कही थी कि हिंदू इस बात पर भी विचार करें कि क्या मंदिर प्रवेश हिंदू समाज में दलितों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने का अंतिम उद्देश्य है या उन के उत्थान की दिशा में यह पहला कदम है? यदि यह पहला कदम है तो अंतिम लक्ष्य क्या है? दलितों का अंतिम लक्ष्य सत्ता में भागीदारी होना चाहिए.

अफसोस तो इस बात का है कि दलितों को सत्ता में थोड़ीबहुत भागीदारी तो आरक्षण के चलते मिली लेकिन उन की आर्थिक, सामाजिक और दूसरी किसी हैसियत में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है.

राममंदिर से भी भला सवर्णों का ही होना है. दलित तो वहां भी हमेशा की तरह मजदूरी करता नजर आ रहा है और यही काम वर्णव्यवस्था में उसे सौंपा गया है.

अफसोस तो इस बात का भी है कि भाजपा राज में कोई रोजगार और अर्थव्यवस्था सुधारने की बात या पहल नहीं कर रहा. कहीं बड़ी फैक्ट्रियां नहीं बन रहीं, पुलसड़कें, अस्पताल और स्कूल नहीं बन रहे, लेकिन मंदिर इफरात से बन रहे हैं. दिनोंदिन वीभत्स होते इन हालात को देख यही कहा जा सकता है कि भगवान कहीं होता हो तो वही भला करे. नहीं तो, नीचे वाले तो अपनी मनमानी पर उतारू हो ही आए हैं.

श्री रामलला शहर के ढांचागत विकास के लिए पैसा केंद्र सरकार देगी यह कितने अरब या खरब होगा यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है लेकिन यह साफ दिख रहा है कि सरकार कोई कंजूसी या कमी इस में नहीं रखेगी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई आर्थिक सीमा निर्धारित नहीं की गई है. अब सरकार आम जनता के खूनपसीने के पैसे से भव्य मंदिर बनवाएगी तो किसी को यह पूछने का हक भी नहीं होगा कि किस हक से और किस के लिए यह अथाह धनराशि मंदिर में जाया की जा रही है और इस से जो रिटर्न मिलेगा उस पर किस का हक होगा और क्या वह सरकारी खजाने में जाम किया जाएगा. दूसरी तरफ रामलला ट्रस्ट भी मंदिर निर्माण के लिए आम लोगों से पैसा जुटाने की बात कह चुका है यानी लूट दोहरी होगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें