3अक्तूबर, 2019 को राजस्थान के धौलपुर जिले में दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान पार्वती नदी में उतरे 10 लोगों की मौत हो गई. इस से पहले 4 सितंबर को गुजरात के अरावली जिले में गणेश मूर्ति विसर्जन के समय 6 लोगों की अकस्मात मृत्यु हो गई थी. वहीं 13 सितंबर को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में खटलापुरा घाट पर गणेश विजर्सन के दौरान 12 लोगों की मौत हो गई. यह तो बानगीभर है. हर वर्ष इस तरह की घटनाएं घटती हैं और लोग अपनी गलती से बेवजह मौत के मुंह में समा जाते हैं.

लोगों की जान जाने के साथसाथ प्रतिमाओं के विसर्जन से नदियों में प्रदूषण का खतरा लगातार बढ़ रहा है. हालांकि इस बार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने नदियों में मूर्ति विसर्जन करने पर रोक लगाने के साथसाथ जुर्माने का भी आदेश दिया था पर आस्था के आगे लोग सुनते कहां हैं. कहींकहीं सख्ती की गई तो इस बार लोग मूर्ति विसर्जन नदियों पर नहीं कर पाए, पर ऐसा सब जगह नहीं हुआ.

यह कोरा सच है कि धर्म व आस्था के नाम पर उत्सव कर के न केवल नदियों के जल को प्रदूषित कर जहरीला किया जा रहा है बल्कि जलीय जीवों की जान भी खतरे में डाली जा रही है.

आडंबरों की ही देन है कि देश की कई नदियों का जल प्रदूषित होने के साथ उन की तलहटी तक जहरीली हो गई है. धर्म के ठेकेदारों के मुनाफे वाले चक्र से संचालित आस्था के आडंबर में लोगों के उल झने से देश के हर कोने में छोटीबड़ी नदियां मानवजनित प्रदूषण से छटपटा रही हैं. नदियों के संरक्षण के शोर और नियमकानून के बीच उन के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है. एक तरह से नदियों को प्रदूषण फैलाने व पाप धोने का जैसे रजिस्टर्ड केंद्र बना दिया गया है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...