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साली की चाल में जीजा हलाल

4जून, 2019 की सुबह 8 बजे रेखा कानपुर के थाना बर्रा पहुंची तो उस के पति प्रेमप्रकाश की मोटरसाइकिल थाना परिसर में खड़ी थी. मोटरसाइकिल देख कर उस का माथा ठनका. वह मन ही मन बुदबुदाने लगी, ‘लगता है, प्रेम ने रात में शराब पी कर किसी से झगड़ा किया होगा और पुलिस ने उसे हवालात में डाल दिया होगा.’

लेकिन प्रेम न तो हवालात में था और न ही रिपोर्टिंग रूम में. पता लगाने के लिए वह सीधे थानाप्रभारी के कक्ष में पहुंच गई. सुबहसुबह एक औरत को बदहवास हालत में देख कर थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रेखा है. मैं बर्रा के नरपत नगर जरौली फेस-1 में रहती हूं. मेरा पति प्रेमप्रकाश मीट कारोबारी है. कल सुबह वह दुकान पर गया था, उस के बाद घर वापस नहीं आया. थाने में उस की मोटरसाइकिल तो खड़ी है, पर प्रेम का कुछ पता नहीं चल पा रहा.’’

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थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव रेखा पर एक नजर डाल कर बोले, ‘‘यह मोटरसाइकिल बीती रात गश्त के दौरान जे ब्लौक तिराहे से बरामद हुई है. नशे की हालत में तुम्हारे पति ने मोटरसाइकिल खड़ी कर दी होगी और किसी दोस्त के घर पड़ा होगा. घबराओ नहीं, वह आ जाएगा.’’

रेखा इस तसल्ली के साथ घर लौट आई कि उस के पति ने किसी से झगड़ा नहीं किया और थाने में बंद नहीं है.

इधर 5 जून को मौर्निंग वाक पर जाने वाले कुछ लोगों ने पिरौली पुल के पास सड़क किनारे गड्ढे में जूट का एक बोरा पड़ा देखा. बोरे का मुंह खुला था और दुर्गंध आ रही थी. बोरे के आसपास कुत्ते घूम रहे थे. बोरे में लाश की आशंका के मद्देनजर सुबोध तिवारी नाम के एक व्यक्ति ने अपने मोबाइल फोन से थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने तिवारी की सूचना के बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ पिरौली पुल पहुंच गए. वहां सड़क किनारे भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर वह उस जगह पहुंचे जहां बोरा पड़ा था. पुलिसकर्मियों की मदद से उन्होंने बोरे से शव बाहर निकाला.

शव एक जवान आदमी का था, जिस के गरदन और पैर साइकिल ट्यूब से बंधे थे. सिर पर चोट का निशान था. मृतक की उम्र करीब 40 साल थी. शरीर से वह हृष्टपुष्ट था. शव को पहले प्लास्टिक की बोरी में लपेटा गया था, फिर उसे जूट के बोरे में भर दिया गया था. जामातलाशी में उस के पास से ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो सके.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर आ गए. एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. पुलिस अधिकारियों ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां से साक्ष्य जुटाए.

सड़क किनारे भीड़ जमा थी. लोग शव को देखते और नाक पर रूमाल रख कर हट जाते. कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पा रहा था. उसी समय थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव को रेखा नाम की उस महिला की याद आई, जिस का पति रात को घर नहीं आया था, जिस की मोटरसाइकिल थाना परिसर में खड़ी थी.

उन्होंने उस का नामपता नोट कर लिया था. अतुल ने उस महिला के संबंध में पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया और उस के घर जा पहुंचे.

रेखा उस समय घर पर ही थी. पासपड़ोस की कुछ महिलाएं तथा घर वाले भी मौजूद थे. पुलिस जीप देख कर रेखा को लगा कि शायद उस के पति का पता लग गया है.

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थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव जीप से उतर कर रेखा के पास पहुंचे. उन्होंने कहा, ‘‘रेखा, पिरौली पुल के पास सड़क किनारे बोरे में बंद हमें एक लाश मिली है. अभी तक उस की शिनाख्त नहीं हुई है. मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ चल कर उसे देख लो.’’

अनहोनी की आशंका से रेखा घबरा गई. फिर 2-3 महिलाओं के साथ वह जीप में बैठ गई. उस के घर वाले भी पिरौली पुल की ओर रवाना हो गए. 10 मिनट में पुलिस जीप पिरौली पुल के पास पहुंच गई.

रेखा जीप से उतर कर लाश के पास पहुंची. उस ने लाश देखी तो चीख पड़ी. लाश उस के पति प्रेमप्रकाश की ही थी. इस के बाद तो कोहराम मच गया. बेहाल रेखा को साथ आई महिलाएं संभालने में लग गईं. एसपी रवीना त्यागी ने भी रेखा को सांत्वना दी, साथ ही आश्वासन भी दिया कि उस के पति के कातिल जल्दी ही पकड़ लिए जाएंगे. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

रेखा बेहाल थी. उस की आंखों में आंसू थम नहीं रहे थे. इस हालत में पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ करना उचित नहीं समझा. शाम को जब वह कुछ सामान्य हुई तब एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने उसे थाना बर्रा बुलवा लिया. उन्होंने बड़े भावुक अंदाज में उस से पूछताछ शुरू की. उन्होंने पूछा, ‘‘रेखा, तुम्हारे पति की हत्या किस ने और क्यों की, इस बारे में कुछ बता सकती हो?’’

‘‘मैडमजी, मेरे पति की हत्या संजू, विपुल और उस के साथी अजय ने की है. संजू मीट का कारोबारी है और विपुल उस का नौकर है, जबकि अजय उस का दोस्त है. व्यापारिक प्रतिद्वंदिता में इन लोगों ने शराब पिला कर प्रेम को मार डाला और शव को बोरे में भर कर फेंक आए.’’

रेखा के बयान के आधार पर एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने संजू, अजय और विपुल को थाना बर्रा बुलवा लिया. थाने में उन्होंने तीनों से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने हत्या की बात से इनकार किया.

संजू ने साथ खानेपीने, नशे में लड़नेझगड़ने तथा व्यापारिक प्रतिद्वंदिता की बात तो स्वीकार की, लेकिन हत्या करने से साफ इनकार कर दिया. सख्ती से पूछताछ करने के बाद भी जब उन्होंने जुर्म नहीं कबूला तो रवीना त्यागी को लगा कि ये लोग कातिल नहीं हैं. उन्होंने उन तीनों को थाने से घर भेज दिया.

मृतक की पत्नी रेखा के अनुसार मृतक के पास मोबाइल था, जो अभी तक बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी ने प्रेमप्रकाश के कातिलों को पकड़ने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर टावर डाटा डंप कराया तो प्रेमप्रकाश की आखिरी लोकेशन 3 जून की सुबह 11 बज कर 5 मिनट पर बर्रा 8 हाईटेंशन लाइन के पास मिली. उस के बाद उस का फोन बंद हो गया था.

थानाप्रभारी ने रेखा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बर्रा 8 में उस के जेठ ज्वाला प्रसाद का साढ़ू रामप्रकाश अपनी पत्नी रामकली के साथ रहता है. उस का 9 साल का एक बेटा भी है. इस जानकारी पर अतुल श्रीवास्तव बर्रा 8 स्थित रामप्रकाश के घर पहुंचे तो वहां ताला लटक रहा था.

रामप्रकाश पर शक गहराया तो पुलिस ने उस की तलाश तेज कर दी. थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने ताबड़तोड़ छापे मार कर रामप्रकाश के कई रिश्तेदारों को उठा लिया. उन में से जिन के पास रामप्रकाश का मोबाइल नंबर था, उन से बात करने को कहा. लेकिन रामप्रकाश ने कोई काल रिसीव ही नहीं की.

लेकिन एक खास रिश्तेदार से उस ने बात की और बताया कि वह महाराजपुर के संदलपुर गांव में है. यह जानकारी प्राप्त होते ही थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव संदलपुर गांव पहुंच गए और वहां से उन्होंने रामप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया.

उसे थाना बर्रा लाया गया. थाने पर जब उस से उस की पत्नी रामकली के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि रामकली उस की बहन चंदा के घर नौरंगाबाद में है. उस के साथ उस का बेटा भी है. यह पता चलते ही अतुल श्रीवास्तव ने नौरंगाबाद से रामकली को हिरासत में ले लिया.

थानाप्रभारी ने रामप्रकाश तथा उस की पत्नी रामकली से थाने में प्रेमप्रकाश की हत्या के बारे में पूछताछ की. पूछताछ में दोनों ने इस बात से इनकार किया कि प्रेमप्रकाश की हत्या में उन का कोई हाथ है. जब दोनों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की गई तो रामकली टूट गई.

उस के टूटते ही रामप्रकाश ने भी हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. रामकली ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड, जिसे उस ने घर में छिपा दिया था, बरामद करा दी. रामप्रकाश ने अपने घर से मृतक का मोबाइल फोन बरामद करा दिया, जिसे उस ने तोड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया था. पुलिस ने दोनों चीजें बरामद कर लीं.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने प्रेमप्रकाश हत्याकांड के कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को दी. रवीना त्यागी ने आननफानन में अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर के घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि अभियुक्तों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने मृतक की पत्नी रेखा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रामप्रकाश और उस की पत्नी रामकली के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच में साली की चाल में जीजा के हलाल होने की घटना प्रकाश में आई.

बर्रा कानपुर शहर का एक विशाल आबादी वाला क्षेत्र है. बड़ा क्षेत्र होने के कारण इसे 8 भागों में बांटा गया है. इसी बर्रा भाग 7 के जरौली फेस-1 के अंतर्गत नरपत नगर मोहल्ला पड़ता है. प्रेमप्रकाश अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रवि व पंकज तथा 2 बेटियां सोनम और पूनम थीं.

प्रेमप्रकाश मीट का व्यापारी था. घर से कुछ दूरी पर पारकर रोड पर उस की दुकान थी. प्रेमप्रकाश अपनी दुकान तो चलाता ही था, साथ ही छोटे दुकानदारों को भी मीट की सप्लाई करता था. इस के अलावा होटलों में भी वह मीट सप्लाई करता था. मीट व्यापार में प्रेमप्रकाश को अच्छी कमाई होती थी. क्षेत्र में वह प्रेम मीट वाला के नाम से जाना जाता था.

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प्रेमप्रकाश कमाता तो अच्छा था, लेकिन उस में कुछ कमियां भी थीं. वह शराब व शबाब का शौकीन था. अपनी आधी कमाई वह शराब और अय्याशी में ही खर्च कर देता था. बाकी बची कमाई से घर का खर्च चलता था. पति की इस कमजोरी से रेखा वाकिफ थी.

जब वह शराब पी कर आता तो रेखा उसे समझाती, लेकिन वह कहता, ‘‘रेखा, जिस तरह तुम मेरी संगिनी हो, उसी तरह यह लाल परी भी मेरी संगिनी है. शाम ढलते ही यह मुझे सताने लगती है, तब मैं बेबस हो जाता हूं.’’

रेखा ने पति को लाख समझाया, पर जब समझातेसमझाते थक गई तो उस ने उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया. वह केवल घर और बच्चों की परवरिश में लगी रहती. बच्चे जब बड़े हुए तो वह प्रेम के साथ दुकान चलाने का गुर सीखने लगे और बेटियां मां के घरेलू काम में हाथ बंटाने लगीं.

प्रेमप्रकाश के बड़े भाई का नाम ज्वाला प्रसाद था. वह उस के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. ज्वाला प्रसाद की पत्नी का नाम शिवकली था. प्रेमप्रकाश शराबी और अय्याश था, इसलिए वह प्रेमप्रकाश को पसंद नहीं करता था. दरअसल, प्रेमप्रकाश व शिवकली का रिश्ता देवरभाभी का था. इस नाते वह शिवकली से हंसीमजाक, छेड़छाड़ कर लेता था. लेकिन ज्वाला को यह सब पसंद नहीं था. उस ने प्रेमप्रकाश के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

शिवकली की तरह उस की बहन रामकली भी खूबसूरत थी. वह बर्रा-8 निवासी रामप्रकाश से ब्याही थी. रामकली रामप्रकाश की 5वीं पत्नी थी. उस की पहली पत्नी मीरा बर्रा में ही रहती थी. दूसरी और तीसरी पत्नी ने उस का साथ यह कह कर छोड़ दिया था कि वह उम्र में बड़ा है.

चौथी पत्नी सरोज को वह बिहार के दरभंगा से लाया था. लेकिन प्रताड़ना से परेशान हो कर वह भाग गई थी. इस के बाद ही वह रामकली को ब्याह कर लाया था. शादी के 2 साल बाद रामकली एक बच्चे की मां बन गई थी.

एक रोज सीटीआई चौराहा स्थित गुलाब सिंह के शराब ठेके पर बड़े ही नाटकीय ढंग से प्रेमप्रकाश और रामप्रकाश की मुलाकात हुई. उस रोज ठेके पर दोनों शराब पीने आए थे. शराब पीतेपीते बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों का रिश्ता साढ़ू भाई का निकला. इस के बाद तो शराब का नशा दोगुना हो गया. उस रोज खानेपीने का पैसा प्रेमप्रकाश ने ही चुकता किया. यद्यपि रामप्रकाश मना करता रहा.

रामप्रकाश और प्रेमप्रकाश दोनों ही पक्के शराबी थे. उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई. रिश्ते ने उन की दोस्ती और गहरी कर दी. पहले दोनों शराब ठेके पर पीते थे, लेकिन अब उन की महफिल रामप्रकाश के घर जमने लगी.

घर आतेजाते प्रेमप्रकाश की नजर रामप्रकाश की खूबसूरत बीवी रामकली पर पड़ी, जो रिश्ते में उस की साली लगती थी. साली का शबाब पाने के लिए प्रेमप्रकाश जोड़जुगत बैठाने लगा.

जब भी प्रेमप्रकाश का मन रामप्रकाश के घर जाने का होता, वह उसे मोबाइल से सूचना देता और फिर शाम ढलते ही मीट की थैली और शराब की बोतल ले कर रामप्रकाश के घर पहुंच जाता. रामकली मीट पकाती और वे दोनों शराब की महफिल सजाते.

कभीकभी तो रामकली ही दोनों को पैग बना कर देती. इस दौरान प्रेमप्रकाश की निगाहें रामकली पर ही टिकी रहतीं. वह उस से शरारत भी कर बैठता था.

चूंकि प्रेमप्रकाश और रामकली का रिश्ता जीजासाली का था. इस नाते प्रेमप्रकाश रामकली से हंसीमजाक और छेड़छाड़ करने लगा. कभी एकांत मिलता तो वह उसे बांहों में भी भर लेता और गालों पर चुंबन जड़ देता.

जीजा की इस हरकत पर रामकली तुनक जाती. प्रेमप्रकाश तब उसे यह कह कर मना लेता कि साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. रामकली का मूड फिर भी ठीक न होता तो वह उसे हजार 5 सौ रुपए दे कर मना लेता.

प्रेमप्रकाश की पत्नी रेखा 4 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस का रंगरूप भी सांवला था और स्वभाव से वह कर्कश थी. जबकि साली रामकली रसीली थी. उस का रंग गोरा और शरीर मांसल था. रामकली के आगे रेखा फीकी थी, इसलिए प्रेमप्रकाश उस पर लट्टू था और उसे हर हाल में अपना बनाना चाहता था.

दूसरी तरफ रामकली भी अपने पति रामप्रकाश से खुश नहीं थी. 4 बीवियों को भोगने वाले रामप्रकाश में अब वह पौरुष नहीं रहा था, जिस की रामकली कामना करती थी. इसलिए जब रिश्ते में जीजा प्रेमप्रकाश ने उस से छेड़छाड़ शुरू की तो उसे भी अच्छा लगने लगा और वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी.

एक शाम प्रेमप्रकाश रामकली के घर पहुंचा तो वह बनसंवर कर सब्जी लेने सब्जी मंडी जाने वाली थी. प्रेमप्रकाश ने एक नजर इधरउधर डाल कर पूछा, ‘‘भाईसाहब नजर नहीं आ रहे. क्या वह कहीं बाहर गए हैं?’’

‘‘नहीं, बाहर तो नहीं गए हैं, लेकिन जाते समय कह गए थे कि देर रात तक आएंगे.’’

रामकली की बात सुन कर प्रेमप्रकाश की बांछें खिल उठीं. उस ने लपक कर घर का दरवाजा बंद किया, फिर साली को बांहों में भर कर बिस्तर पर जा पहुंचा. रामकली ने कुछ देर बनावटी विरोध किया, फिर खुद ही उस का सहयोग करने लगी.

जीजासाली का अवैध रिश्ता कायम हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. पहले प्रेमप्रकाश, रामप्रकाश की मौजूदगी में ही घर आता था, लेकिन अब वह वक्तबेवक्त और उस की गैरहाजिरी में भी आने लगा.

दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे की बांहों में समा जाते. जीजासाली के अवैध रिश्तों की भनक रामप्रकाश को भले ही न लगी, लेकिन पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. जीजासाली की रासलीला के चर्चे पासपड़ोस की महिलाएं करने लगीं.

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रामप्रकाश किराए पर ई-रिक्शा चलाता था. 8-10 घंटे में वह जो भी कमाता था, उस से उस के परिवार का खर्च चलता था. कभीकभी कुछ पैसे पत्नी को भी दे देता था. रामप्रकाश पत्नी पर भरोसा करता था, जबकि रामकली उस के भरोसे को तोड़ रही थी. आखिर एक दिन सच सामने आ ही गया.

उस दिन सुबहसुबह रामकली और पड़ोसन के बीच गली में कूड़ा फेंकने को ले कर तूतू मैंमैं होने लगी. लड़तेझगड़ते दोनों एकदूसरे के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगीं.

रामकली ने पड़ोसन को बदचलन कहा तो उस का पारा चढ़ गया, ‘‘अरी जा, बड़ी सतीसावित्री बनती है. मेरा मुंह मत खुलवा, पति के काम पर जाते ही जीजा की बांहों में समा जाती है. खुद बदलचन है और मुझे कह रही है.’’

दोनों महिलाओं का वाकयुद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था. संयोग से तभी रामप्रकाश आ गया. उस ने अपनी पत्नी रामकली और पड़ोसन को झगड़ते देखा तो रामकली को ही डांटा, ‘‘आपस में झगड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती. चलो, घर के अंदर जाओ.’’

रामकली बड़बड़ाती, पैर पटकती घर के अंदर चली गई. इस के बाद रामप्रकाश पड़ोसन से मुखातिब हुआ, ‘‘रामकली तो अनपढ़, गंवार औरत है लेकिन तुम तो पढ़ीलिखी हो. गली में सरेआम ये तमाशा करना अच्छी बात है क्या?’’

पड़ोसन का गुस्सा काबू के बाहर था. वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘भाईसाहब, आप रामकली को सीधा समझते हैं, जबकि वह सीधेपन की आड़ में आप को बेवकूफ बना कर गुलछर्रे उड़ाती है.’’

रामप्रकाश की खोपड़ी सांयसांय करने लगी. उसे लगा कि पड़ोसन के सीने में जरूर कोई संगीन राज दफन है, जो गुस्से में बाहर आने को बेताब है. अत: उस ने पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं, साफसाफ कहिए.’’

‘‘भाईसाहब, मैं आप से कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन आप जब जानना ही चाहते हैं तो सुनिए. दरअसल आप की बीवी रामकली ने मोहल्ले में गंदगी फैला रखी है. आप की गैरमौजूदगी में प्रेमप्रकाश नाम का एक आदमी, जिसे रामकली अपना जीजा बताती है, आ जाता है. उस के आते ही दरवाजा अंदर से बंद हो जाता है. फिर आप के आने से कुछ देर पहले ही दरवाजा खुलता है और वह चला जाता है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता है, यह पूरी गली को मालूम है.’’

रामप्रकाश सन्नाटे में आ गया. उस की गैरमौजूदगी में रामकली ऐसा भी कुछ कर सकती है, वह सोच भी नहीं सकता था. अपमानबोध तथा शर्म से रामप्रकाश का सिर झुक गया. वह बुझी सी आवाज में बोला, ‘‘बहुत अच्छा किया आप ने जो सारी बातें मेरी जानकारी में ला दीं.’’

रामप्रकाश की जानकारी में ऐसा बहुत कम हुआ था, जब प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आया हो. प्रेमप्रकाश उसे फोन कर के पहले पूछ लेता था कि वह घर में है या नहीं.

उस के बाद ही वह आता था. जबकि उस महिला ने बताया कि प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आता है. उस के आते ही रामकली दरवाजा बंद कर लेती है.

इस के बाद रामप्रकाश अपने घर में दाखिल हुआ और रामकली को सीधे सवालों के निशाने पर ले लिया, ‘‘सुना तुम ने, पड़ोसन तुम्हारे बारे में क्या कह रही थी?’’

‘‘हां, उस की भी बात सुनी और तुम्हारी भी सुन ली.’’ रामकली पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘बड़े शरम की बात है कि वो कलमुंही मुझ पर इलजाम लगाती रही और तुम चुपचाप सुनते रहे. तुम्हें तो उस समय उस का मुंह नोंच लेना चाहिए था.’’

रामप्रकाश के सब्र का पैमाना छलक गया. वह दांत किटकिटाते हुए बोला, ‘‘रामकली, यह बताओ तुम पहले से झूठी और बेशर्म थी या मेरे घर आ कर हो गई?’’

रामकली की घबराहट चेहरे पर तैरने लगी. वह बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम सच पर परदा डालने की कोशिश मत करो. बताओ, तुम्हारा और प्रेमप्रकाश का चक्कर कब से चल रहा है?’’

रामकली पति के सवालों का जवाब देने के बजाए खुद को सही साबित करने के लिए इधरउधर की बातें करती रही.

पति का गुस्सा देख कर रामकली समझ गई कि अगर उस ने सच नहीं बताया तो रामप्रकाश पीटपीट कर उस की जान ले लेगा. अत: उस ने जमीन पर बैठ कर हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘अब बस करो, मैं सब बता देती हूं.’’

इस के बाद रामकली का मुंह खुला. उस ने सच्चाई तो बताई लेकिन अपनी चाल का पेंच फंसा दिया. उस ने प्रेमप्रकाश से नाजायज रिश्ता तो मान लिया लेकिन आरोप उसी पर मढ़ दिया कि वह उसे जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार बनाता है. उस ने इसलिए मुंह बंद रखा कि उन दोनों की दोस्ती न टूटे.

रामकली ने अपनी चाल से पति का गुस्सा तो ठंडा कर दिया, लेकिन उस के मन में डर बैठ गया. उस ने जीजा प्रेमप्रकाश को सारी जानकारी दे कर पति की गैरमौजूदगी में आने से मना कर दिया. इधर रामप्रकाश ने साढ़ू प्रेमप्रकाश को भी आड़ेहाथों लिया और पत्नी से नाजायज रिश्ता बनाने को धिक्कारा.

लगभग 6 महीने तक दोनों में तनातनी के साथ बोलचाल बंद रही, इस के बाद प्रेमप्रकाश द्वारा गलती के लिए क्षमा मांगने और भविष्य में फिर गलती न करने की शर्त पर रामप्रकाश ने उसे माफ कर दिया. रामप्रकाश ने यह भी शर्त रखी कि वह जब भी घर आएगा, उस की मौजूदगी में ही आएगा.

अब प्रेमप्रकाश जब भी साली के घर आता, उस के पति रामप्रकाश की मौजूदगी में ही आता. प्रेमप्रकाश के आने पर रामकली उस से दूरियां बनाए रखती ताकि पति को उस पर शक न हो.

रामप्रकाश और प्रेमप्रकाश की महफिल जमती. नशे में नोकझोंक भी होती. उस के बाद प्रेमप्रकाश अपने घर चला जाता. प्रेमप्रकाश के जाने के बाद रामप्रकाश नशे में रामकली को खूब गालियां बकता और इलजाम लगाता कि नशे के बहाने वह उसी से मिलने आता है.

3 जून, 2019 की सुबह 8 बजे प्रेमप्रकाश अपने बेटों रवि और पंकज के साथ अपनी मीट की दुकान पर पहुंचा और दुकान खोल कर बिक्री करने लगा. लगभग 10 बजे किसी बात को ले कर उस का पड़ोसी दुकानदार संजू से झगड़ा हो गया.

मूड खराब होने पर उस ने दुकान चलाने की जिम्मेदारी दोनों बेटों पर छोड़ी और मोटरसाइकिल ले कर कहीं चला गया. रास्ते में उस ने साढ़ू रामप्रकाश से फोन पर बात की तो वह घर पर ही था.

प्रेमप्रकाश ने लगभग 11 बजे बर्रा-8 स्थित शराब ठेके से बोतल खरीदी और साली रामकली के घर पहुंच गया. घर पर रामप्रकाश व उस का पड़ोसी दोस्त रमेश यादव मौजूद थे. कुछ देर तीनों आपस में हंसीमजाक, बातचीत करते रहे. फिर तीनों की शराब पार्टी शुरू हुई. कई पैग गले से नीचे उतारने के बाद रामप्रकाश बोला, ‘‘साढ़ू भाई, अभी मजा नहीं आया.’’

रमेश ने भी उस की हां में हां मिलाई. इस के बाद प्रेमप्रकाश पर्स से 5 सौ का नोट निकाल कर बोला, ‘‘जाओ, ले कर आओ.’’

रामप्रकाश रमेश को साथ ले कर प्रेमप्रकाश की मोटरसाइकिल से शराब खरीदने चला गया. उस के जाते ही प्रेमप्रकाश साली को बांहों में भर कर बोला, ‘‘कब से तुम से मिलने को तड़प रहा हूं. आज अच्छा मौका है, मेरी इच्छा पूरी कर दो.’’

‘‘नहीं, वह आ गए और तुम्हारे साथ देख लिया तो मारमार कर मेरी जान ही ले लेंगे. अनुज भी घर में है. वह अपने बाप को सब बता देगा.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, अनुज को मैं पैसा दे कर समोसे खाने भेज दूंगा और भाईसाहब को आने में समय लगेगा.’’

इस के बाद प्रेमप्रकाश ने 10 रुपए दे कर अनुज को समोसा खाने घर से बाहर भेज दिया. फिर वह साली रामकली को कमरे में ले गया और शारीरिक सुख भोगने लगा. दोनों को कई माह के बाद मौका मिला था, सो असीम आनंद की अनुभूति कर रहे थे. इस आनंद में दोनों भूल गए कि घर का दरवाजा खुला है.

कुछ देर बाद रामप्रकाश शराब ले कर लौटा तो उस ने पत्नी रामकली और प्रेमप्रकाश को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. फिर क्या था, वह रामकली पर टूट पड़ा और अर्धनग्न अवस्था में ही पीटने लगा.

2-4 लातघूंसे खाने के बाद रामकली ने फिर वही चाल चली और बोली, ‘‘मुझे क्यों पीट रहे हो, इस वहशी को पीटो जो मुझे जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार बना रहा था. मैं ने तो इसे बहुत समझाया, लेकिन यह वहशी नहीं माना.’’

यह सुनते ही रामप्रकाश प्रेमप्रकाश से उलझ गया और दोनों में मारपीट होने लगी. झगड़ा बढ़ता देख पड़ोसी रमेश यादव अपने घर चला गया. उस के बाद रामकली ने मुख्य दरवाजा बंद कर दिया और दोनों में बीचबचाव करने लगी. लेकिन उन दोनों पर नशा हावी था. उन का झगड़ा बंद नहीं हुआ.

जब उस के पति पर प्रेमप्रकाश भारी पड़ने लगा तो खुद को पाकसाफ साबित करने के लिए रामकली लोहे की रौड उठा लाई और पीछे से प्रेमप्रकाश के सिर पर वार कर दिया. इस वार से प्रेमप्रकाश मूर्छित हो कर जमीन पर गिर गया. उसी समय रामप्रकाश उस की छाती पर सवार हो गया और उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

हत्या करने के बाद दोनों को लाश ठिकाने लगाने की चिंता हुई. इस के लिए दोनों ने मृत प्रेमप्रकाश के पैर तोड़मरोड़ कर साइकिल ट्यूब से गले से बांध दिए. शव को उन्होंने पहले प्लास्टिक बोरी में, फिर जूट के बोरे में भर कर मुंह बंद कर दिया.

रामप्रकाश ने रात में लाश को ई-रिक्शा पर लादा और सुनसान इलाके पिरौली पुल के पास सड़क किनारे फेंक आया. इस के बाद दोनों ने फर्श पर पडे़ खून के धब्बों को साफ किया. मृतक के मोबाइल को तोड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया और रौड घर में छिपा दी. इस के बाद दोनों घर में ताला लगा कर फरार हो गए.

इधर रवि और पंकज शाम तक दुकान पर बैठे रहे, फिर दुकान बंद कर घर पहुंचे और मां को बताया कि पिताजी का संजू से झगड़ा हुआ था. उस के बाद वह कहीं चले गए और वापस नहीं आए. रेखा रात भर पति के वापस आने का इंतजार करती रही. सुबह वह थाना बर्रा पहुंची तो वहां पति की मोटरसाइकिल खड़ी थी, लेकिन पति नहीं था. दूसरे रोज रामप्रकाश की लाश मिल गई थी.

9 जून, 2019 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्तों रामप्रकाश तथा रामकली को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य – मनोहर कहानी

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पति-पत्नी के अटूट रिश्ते में पड़ गई है गहरी फूट

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अब तक आपने देखा कि गुणवंत और कीर्तिदा, राजा को रानी से शादी खत्म करने के लिए कहते हैं, जिसे राजा बिना मर्जी के हाँ कर देता है. दूसरी तरफ वृंदा, रानी से कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार राजा से मिलने के लिए कहती है.

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राजा-रानी की होती है एक मुलाकात

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माँ के कहने पर रानी, राजा को मिलने के लिए मैसेज करती है, और राजा भी मान जाता है. जहाँ दोनों को उनकी पहली मुलाकात की पुरानी बातें याद आ जाती हैं. वहीं राजा के बैग से तलाक के पेपर गिर जाते हैं, जिससे रानी को ये गलतफहमी हो जाती है कि राजा तलाक लेने का मन बना चुका है, और हस्ताक्षर के लिए उससे मिलने आया है. रानी इसी गलतफहमी के कारण तलाक के पेपर पर हस्ताक्षर कर देती है और वहाँ से निकल जाती है, जिससे राजा हैरान रह जाता है.

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उत्तरायण के सपनों में खो जाएंगे राजा-रानी

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आज के एपिसोड़ में आप देखेंगे कि उत्तरायण यानी मकर सक्रांतिके दिन राजा-रानी बाजार में एक दूसरे से टकराएंगे, और सपनों की दुनिया में खो जाएंगे. शादी के बाद का पहला त्योहार मनाने का उत्साह दोनों के चेहरे पर नजर आएगा. दोनों एक दूसरे के साथ प्यार भरे पलों को संजोते हुए नजर आएंगे. लेकिन कीर्तिदा आकर, दोनों को इस सपनों की दुनिया से बाहर ले आएगी. दूसरी ओर, गुणवंत और कीर्तिदा, राजा-रानी के तलाक के सपने देखते नजर आएंगे, और इसी सपने को सच करने के लिए, कीर्तिदा, राजा से मकर सक्रांति (उत्तरायण) के मौके पर रानी को तलाक देकर अपनी जिंदगी की नई शुरूआत करने के लिए कहेगी.

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अब देखना ये है कि क्या इस मकर सक्रांति (उत्तरायण) राजा अपने और रानी के शादी के रिश्ते को खत्म कर देगा? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

दिये से रंगों तक : भाग 3

वह बोली, ‘‘बच्चे को पालने के लिए दिल में प्रेम चाहिए, दिमाग के किताबी ज्ञान से कुछ नहीं होता है.’’ ‘‘छाया, खुद को इतना परेशान मत कर. सुबह तरुण आ रहे हैं. तुम मुझ से एक वादा करो, वीकैंड में तुम मेरे साथ बैडमिंटन जरूर खेलोगी.’’ उस की आंखों ने मुझ से वादा किया और अगले दिन वह अपने घर चली गई. जब साहिल को मैं ने उस के बारे में बताया तो साहिल बोले, ‘‘शैली, तुम छाया से कुछ मत पूछना. वह आज भी सदमे में है जिस दिन वह खुद बात करे उस दिन उसे समझाना.’’ रविवार की शाम छाया क्लब आई तो बोली, ‘‘आज खेलना नहीं है. चलो न, बातें करते हैं.’’

हम वहीं सीढि़यों पर बैठ गए. छाया ने सीधे ही मुझ से सवाल किया, ‘‘क्या साहिल यह सब जानते हैं? तुम ने उन्हें यह सब कब बताया?’’

‘‘शादी से पहले यह सब साहिल को मां ने बताया था. साहिल ने मुझे हमारे किसी रिश्तेदार के घर देखा था. जब साहिल अपने मातापिता के साथ आए तो उन की मां ने कहा, ‘हमें तो शैली पसंद है. आप चाहें, तो हम अभी बात पक्की कर लेते हैं.’’’

‘‘मां तैयार थीं इस के लिए. मां ने कहा, ‘पहले मैं साहिल से अकेले में बात करना चाहती हूं.’

‘‘मां साहिल को अपनेसाथ अंदर कमरे में ले गईं और उन्होंने मेरे साथ जो हुआ उन्हें सब बताया. फिर बोलीं, ‘बेटा, शादी करो या न करो पर यह बात अपने तक ही रखना. वरना हमारी बेटी की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

‘‘उस दिन साहिल ने मां के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘मां, मेरी शिक्षा बेकार है, यदि मैं उस दर्द को नहीं समझ पाया. मुझे शैली से ही शादी करनी है. यह बात मेरे अलावा किसी और तक कभी नहीं जाएगी.’

‘‘साहिल मुझ से मिलने कमरे में आए. कमरे का माहौल बहुत गमगीन हो गया था. वे, बस, इतना ही कह पाए, ‘शैली, मेरा हाथ थाम कर आज से जिंदगी शुरू करना, पीछे कुछ था ही नहीं. इसलिए कभी मुड़ कर मत देखना.’’’

मेरी बात पूरी हुई और छाया बोल पड़ी, ‘‘यही तो बात है, तरुण कुछ नहीं जानते हैं. उन से सबकुछ छिपा कर शादी तो करनी पड़ी पर मेरा अपराधबोध मुझे कचोटता है.’’

‘‘पर अब देर हो चुकी है, छाया.’’ यदि तरुण ने साथ रहने से मना कर दिया तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, अपनी रिसर्च के लिए, एक जिंदगी भी कम है. मैं फिर से उसी में जुट जाऊंगी. शैली, आज बताती हूं उस दिन क्या हुआ था.’’

उस ने बहुत सहजता से कहना शुरू किया, ‘‘मैं बौटनी में रिसर्चस्कौलर थी. सब से ज्यादा फैलोशिप भी मुझे ही मिलती थी. विपिन राय, जो नंबर दो पर था, मुझ से बहुत चिढ़ता था. वह शादीशुदा था.

‘‘मुझ से पीछे रहने के अपमान का बदला उस ने मुझे चोट पहुंचा कर लिया. एक दिन उस ने मुझे फोन किया, ‘कुछ जरूरी काम है.’

‘‘छुट्टी का दिन था. वह अकेला मेरा इंतजार कर रहा था. जब मैं वहां पहुंची तो अकेलेपन का फायदा उठा कर उस ने मुझे बहुत मारा, गालियां दीं और कहा, ‘आज के बाद तू उस लैब में नहीं आ पाएगी. यहां आने की सोच भी तेरे ख्वाब में नहीं आएगी. मेरे खिलाफ पुलिस केस करने की गलती मत करना. 10 साल कोर्ट के चक्कर लगाएगी, फिर भी हो सकता है मैं यह साबित कर दूं कि तूने मेरा बलात्कार किया है.’

‘‘वह दरिंदा जीत गया. मेरे परिवार की नजर में मेरी इज्जत चली गई थी. 2 महीने के अंदर तरुण से मेरी शादी हो गई.

‘‘वह दिन, पिता की नफरत, मां का मुझ से ज्यादा समाज और छोटी बहन की चिंता करना मुझे आज तक रुलाता है. घाव पर मरहम लगाने वाला कोई तो चाहिए. यहां तो घाव नासूर बन गया जो आज तक…’’

आज हम दोनों की आंखों में आंसू नहीं थे. शैली उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘चलो, घर चलते हैं, तरुण को आज सबकुछ बताना है.’’

मुझे छाया की चिंता हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘तरुण का जवाब जो भी हो, मैं और साहिल अब तुम्हारा परिवार हैं. तुम तरुण को अपनी बात बताने से पहले मेरे और साहिल के बारे में बता देना. तुम चाहो तो साहिल भी…’’

‘‘तू चिंता मत कर. जो भी होगा उस का सामना करने की हिम्मत है मुझ में.’’

मैं घर तो आ गई पर मेरा मन बहुत बेचैन था. सुबह भी उस का फोन नहीं आया. साहिल काम पर चला गया. मैं घर में अकेली बैठी छाया के फोन का इंतजार करने लगी. दीवाली के अगले दिन शुरू हुआ दोस्ती का यह सफर 5 महीने का रास्ता तय कर चुका था. क्या होगा? कहीं मेरे कारण छाया हमेशा के लिए अकेली न हो जाए. वह चाहे जो कहे, अब तनहा जीना आसान नहीं होगा.

उसे भी तरुण के साथ की आदत पड़ चुकी थी. शाम के 5 बज गए. फोन की घंटी बजी. देखा, तरुण का फोन है. मैं ने डरते हुए फोन उठाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो, शैली, तुम्हारा बहुतबहुत शुक्रिया.’’ उस के बाद छाया से जो बात हुई उस का एक शब्द भी याद नहीं. वैसे भी, अब शब्दों का कोई महत्त्व नहीं था. एक खुशी का एहसास. लगा मेरा पूरा शरीर रोशनी से भर गया हो.

मेरे कमजोर पलों में मेरा साथ मेरे परिवार व साहिल ने दिया था. आज किसी को मैं ने हिम्मत दी और वह भी जिंदगी की दौड़ में जीत गया. छाया की जीत का एहसास मेरे लिए कुछ ऐसा था जैसे मां को अपने बच्चे की जीत के लिए होता है. अगले दिन छाया और तरुण 2 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहे हैं. जाते समय तरुण ने साहिल से कहा, ‘‘साहिल, मंगलवार को होली की पार्टी का इंतजाम कर लेना, पार्टी हमारे घर पर होगी.’’

साहिल ने कहा, ‘‘तुम थके हुए आओगे, पार्टी हमारे घर पर रख लेते हैं. मैं और शैली सारा इंतजाम कर लेंगे.’’

छाया ने कहा, ‘‘नहीं साहिल, इस बार पार्टी हमारे घर होने दो. दीपक की रोशनी से उस रात तुम्हारा घर जगमगाया था, इस बार रंगों को हमारे घरआंगन में छिटकने दो.’’

होली की पार्टी से घर लौटते समय मेरे और साहिल के मोबाइल पर एक संदेश आया, ‘शैली, तुम्हारे मातापिता जैसा साहस और प्रेम हर मातापिता में हो तो तुम जैसी बेटियां न जाने कितनी छाया को अंधेरों से खींच लाएंगी. और हर दर्दभरे दिल को अपना साहिल मिल ही जाएगा…’

दिये से रंगों तक : भाग 2

तरुण ने आज एकसाथ 2 अच्छी खबरें दीं. पहली, मुझे एक क्लब की सदस्यता तरुण ने दिलवा दी जहां मेरे दोनों शौक पूरे हो जाएंगे. दूसरी, तो इस से भी बड़ी थी, तरुण 2 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहे हैं तो छाया हमारे साथ रहना चाहती है. अगले दिन, तरुण को साहिल ने एयरपोर्ट छोड़ा और छाया हमारे साथ घर आ गई. घर आते ही मैं ने छाया से पूछा, ‘‘कौफी के साथ पौपकौर्न लोगी या भेल?’’

उस ने बच्चों की तरह कहा, ‘‘दोनों.’’ उस का ऐसे बोलना मुझे बहुत अच्छा लगा. वह बोली, ‘‘रुको, मैं भी आती हूं, मिल कर बनाएंगे.’’

साहिल अपने औफिस के काम में व्यस्त थे. वे जानते थे स्वयं को हमें व्यस्त दिखाना ही सही होगा. छाया और मेरे हाथ में कौफी थी. मैं ने टीवी चला दिया. पर मैं जानती थी यहां चलना तो कुछ और ही है. बात मैं ने शुरू की, ‘‘क्या हुआ था?’’

‘‘पहले तुम बोलो, शैली, मुझ में बोलने की हिम्मत शायद तुम्हारे बाद ही आ पाए.’’ अपनी दोस्त को उस अंधेरे से बाहर निकालने के लिए मुझे उस गहरी खाई में फिर से जाना पड़ेगा. मन पक्का किया और मैं ने बताना शुरू किया, ‘‘उस शाम मैं हमेशा की तरह बैडमिंटन खेल कर ड्रैसिंगरूम में गई. वहां से मुझे पूल में जाना था. सबकुछ शायद पहले से ही सैट था. 2 लड़के बाहर घूम रहे थे, जिन को देख कर मैं ने अनदेखा कर दिया.

मैं रुक कर आगे बोली, ‘‘अंदर एक लड़का था जिसे ड्रैसिंगरूम में देख कर मैं चौंक गई. ‘महिलाओं के चेंजिंगरूम में लड़का कैसे?’ यह खयाल आया. मुझे देखते ही उस ने मेरे पास आ कर मुझे छूना चाहा. मैं बहुत घबरा गई, जोर से चिल्लाई और बाहर निकलने के लिए मुड़ी. उस जानवर ने मेरे मुंह में कपड़ा डाल दिया. बहुत छीनाझपटी हुई.

‘‘मैं घसीटतेघसीटते दरवाजे तक आ भी गई. काश, उस दिन दरवाजा खुल गया होता, जो बाहर से बंद था. एक को मारपीट कर मैं शायद भाग जाती मगर वक्त और इंसानियत सब शायद दरवाजे के बाहर ही छूट गए थे. बाहर वाले भी बारीबारी से अंदर आए. मेरे शरीर में संघर्ष की ताकत व होश सबकुछ खत्म हो गया था. उसी बेहोशी की हालत और रात के अंधेरे में वे मुझे मेरे घर के बाहर फेंक गए.

‘‘उन दर्दनाक पलों को मैं फिर से भुगत रही हूं किसी को जीना सिखाने के लिए. मम्मीपापा रात तक मेरे घर न आने पर और फोन बंद होने पर बहुत परेशान थे. वे दोनों मुझे ढूंढ़ने बाहर निकले तो देखा घर के दरवाजे पर मैं बेहोश पड़ी थी.

‘‘मुझे देख कर मां भी बेहोश हो गईं. 3 दिनों तक डाक्टर आंटी हमारे घर में रहीं.’’

वे 3 जानवर जिन को मैं जानती ही नहीं थी, उन्हें ढूंढ़ना, मीडिया को मसाले के साथ सबकुछ परोसना मेरे भविष्य को बरबाद करने जैसा ही था. मम्मीपापा और आंटी ने निर्णय लिया कि सबकुछ भुला कर जीना ही बेहतर है.

‘‘मगर इतना सब होने के बाद जीना इतना आसान भी नहीं, उन दर्दनाक यादों से खुद को अलग करना बहुत मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं.’’ कहते हुए मैं ने अपने आंसू पोंछे. छाया भी आंसुओं से भीग चुकी थी.

सामने देखा दरवाजे पर साहिल खड़े थे. हमें देखते हुए बोले, ‘‘अब सो जाओ, रात के 3 बज रहे हैं. सुबह काम पर जाना है.’’ उन्होंने कमरे की लाइट व टीवी बंद कर दिया.

सोतेसोते छाया बोली, ‘‘इतना समझदार पति, शैली, तुम्हारे पति की जितनी तारीफ की जाए, कम है.’’

‘‘छाया, तरुण भी बहुत अच्छे हैं. बस, इतना याद रखना कि यदि तुम उस सब से बाहर नहीं निकली तो जिंदगी का अतीत वर्तमान को भी काला कर देगा. तरुण महीने में 10 दिन बाहर रहते हैं. बहुत लोगों से मिलते भी होंगे. दोस्ती और प्रेम के बीच एक महीन सी दीवार ही होती है. पता नहीं कब वह दीवार टूट जाए, उस से पहले अपनी पीठ से अतीत की लाश को फेंक देना.’’

सुबह नींद खुली 9 बजे किचन की खटपट की आवाज से. छाया, हम तीनों के लिए नाश्ता बना रही थी और साहिल वहीं बैठे उस से बातें कर रहे थे. छाया मुझे सहज और खुश लगी. हम तीनों अपने काम पर चले गए. रात का खाना हम दोनों ने मिल कर बनाया. खाना खा कर कमरे में आते ही छाया बोली, ‘‘इस सब के बाद तुम्हारे मातापिता ने क्या कहा?’’ ‘‘मैं ने बोला तो था मां बेहोश हो गई थीं. एक दिन मैं पलंग पर सो रही थी, पापा भी मेरे पास बैठे थे. मां कुरसी पर बैठी मेरे बाल सहला रही थीं कि अचानक मैं रोने लगी और मेरे मुंह से निकला, ‘मैं मैली हो गई, सचमुच मेरी इज्जत चली गई.’ ‘‘सुन कर मां को जैसे करंट लगा, ‘शरीर को अपमानित करने के लिए किसी ने तुम पर जुल्म और ज्यादती की, उस को तुम अपना गुनाह कैसे मान सकती हो? तुम पर जुल्म हुआ वह भी अनजाने में, धोखे से. औरत के मन और शरीर को तारतार करने वाले किस जालिम ने अपने गुनाह को औरत की इज्जत से जोड़ा? हम आज भी इन शब्दों को अपने पैरों की बेडि़यां बना कर जी रहे हैं.’ मां बोलतेबोलते खड़ी हो गईं. वे गुस्से से कांप रही थीं और रो रही थीं.

‘‘पापा की आंखों में भी आंसू थे. वे बोले, ‘बेटा, तुम हमारी बहादुर बेटी हो, शरीर के घाव तो भर जाएंगे पर उन को अपने मन में जगह मत देना. हम दोनों की जिंदगी और खुशी तेरे ही दिल में रहती है.’’’ कहतेकहते मेरी आंखों में भी आंसू आ गए. न जाने कितनी बार हम तीनों साथसाथ रोए थे. मैं ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘2 महीने के लिए मैं मौसी के पास गई थी. जब वापस आई तो पापा के साथ खेलने भी जाती थी. धीरेधीरे सब सामान्य हो गया.’’ गुस्से और नफरत से छाया बोली, ‘‘मेरी तो मां ने ही कहा था, यह क्या कर आई? खानदान के नाम पर कलंक. खुद की नहीं, छोटी की भी सोचो. यह रोनाधोना बंद करो. चुपचाप काम पर जाना शुरू करो. किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है. तब से आज तक मेरे घाव खुले ही हैं और टीसते हैं. उन्हें भरने वाला कोई नहीं मिला. तरुण से भी यह सब छिपा कर शादी हुई जो मुझे बहुत ग्लानि से भर देती है. क्या करती, मां के आगे कुछ नहीं बोल पाई.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पिता तो कालेज में प्रोफैसर हैं. उन की प्रतिक्रिया कैसी थी?’’

‘‘‘यह अपवित्र हो गई है,’ पापा ने मेरे सामने मां को डांटते हुए कहा, ‘इस से कह देना, आज के बाद मंदिर में हाथ न लगाए.’’’

घर पर बनाएं बेसनी पनीर सब्जी

बेसनी पनीर सब्जी काफी स्वादिष्ट रेसिपी है. इसे बनाना भी बेहद आसान है. ये पनीर और बेसन के मिश्रण से बनता है. तो आइए जानते है इसकी रेसिपी.

सामग्री

– 3/4 कप  बेसन

– 1 इंच अदरक

– 3 लहसुन

– 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच नमक

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा

– 1 छोटा चम्मच रिफाइंड औयल

ग्रेवी के लिए

– 1/2 कप प्याज का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 1/2 चम्मच हलदी पाउडर

– 2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च

– 1 छोटा चम्मच कश्मीरी मिर्च पाउडर

– 1/4 कप टोमैटो प्यूरी

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

– नमक स्वादानुसार

– 2 चम्मच रिफाइंड औयल ग्रेवी भूनने के लिए

– धनियापत्ती सजावट के लिए.

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विधि

– बेसन को तीन कप पानी में घोल लें.

– अदरक लहसुन को पीस कर हल्दी के साथ बेसन में मिला दें.

– एक नौनस्टिक कड़ाही में एक बड़ा चम्मच तेल गरम कर के जीरा चटकाएं फिर उस में बेसन का घोल और नमक डाल दें.

– लगातार चलाते हुए मीडियम गैस पर मिश्रण के इकट्ठे होने तक घोटें.

– जब मिश्रण कड़ाही छोड़ने लगे तो चिकनाई लगी थाली में फैला दें.

– ठंडा होने पर मनचाहे टुकड़े काट लें. एक बड़े चम्मच तेल में सभी टुकड़ों को सौटे करें. ग्रेवी बनाने के लिए बचे तेल में प्याज व अदरक लहसुन पेस्ट भूनें.

– मसाला की सभी सामग्री डाल कर 2 चम्मच पानी डाल कर पुन: तेल निकलने तक मसाला भूनें.

– इस में बेसनी पनीर व 2 कप पानी डालें.

– यदि सब्जी गाढ़ी लगे तो थोड़ा और डाल दें.

– 2 उबाल आने के बाद सब्जी ढक दें.

– 10 मिनट बाद पुन: गरम करें. सर्विंग बाउल में पलटें और ऊपर से गरममसाला व हरा धनिया बुरक कर सर्व करें.

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दिये से रंगों तक : भाग 1

हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति साहिल का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर दीवाली के दूसरे दिन घर में ही पार्टी रख ली. अपने और साहिल के औफिस के कुछ दोस्तों को घर पर बुलाया था. दीवाली के अगले दिन जब मैं शाम को दिये और फूलों से घर सजा रही थी तो साहिल बोले, ‘‘शैली, कितने दिये लगाओगी? घर सुंदर लग रहा है. तुम सुबह से काम कर रही हो, थक जाओगी. अभी तुम्हें तैयार भी तो होना है.’’

मैं ने साहिल की तरफ  प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों, तुम भी तो मेरे साथ बराबरी से काम कर रहे हो. बस,

10 मिनट और, फिर तैयार होते हैं.’’ हम तैयार हुए कि दोस्तों का आना शुरू हो गया. पहली बार घर में इतनी चहलपहल अच्छी लग रही थी. जब टेबल पर सूप, समोसे, पकौड़े रखे तो सब खुश हो कर बोले, ‘‘वाह, चेन्नई में ये सब खाने को मिल जाए तो बहुत मजा आ जाता है.’’ फिर दौर चला बातों का, मिठाइयों का और नाचगाने का. सब ने पार्टी को खूब एंजौय किया.

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पार्टी में हमारे साथ थे साहिल के बौस और उन की पत्नी छाया. रात के 2 बजे पार्टी खत्म हुई. सभी दोस्तों ने हमें इस पार्टी के लिए धन्यवाद दिया. दिनभर की थकान के बाद भी आंखों में नींद नहीं थी. मैं और साहिल बालकनी में बैठ गए बातें करने के लिए. खामोश रात और रंगीन जुगनुओं की चमक से चमकता शहर बहुत सुंदर लग रहा था. ‘‘साहिल, एक बात गौर की तुम ने कि तुम्हारे बौस की बीवी कितनी चुप थीं. न तो वे खाना खाते समय कुछ बोलीं और न खेलते समय. ऐसा लग रहा था जैसे एक मशीन की तरह सबकुछ कर रही हैं. वे सुंदर तो थीं पर खुश नहीं लग रही थीं.’’

‘‘तुम भी न शैली, यार वे बौस की बीवी हैं. इतनी उछलकूद नहीं मचाएंगी. बड़े लोग जूनियर सहकर्मियों से एक दूरी बना कर चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारे बौस तो बड़े जिंदादिल हैं. तुम ने देखा नहीं, वे डांस के समय अपनी बीवी को बड़े प्यार से देख रहे थे. पर मैडम का ध्यान उन की तरफ नहीं था.’’

साहिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम मेरे साथ डांस कर रही थीं पर तुम्हारी नजर…तुम उन को इतने गौर से क्यों देख रही थीं?’’

साहिल के मजाक से अनजान मैं ने कहा, ‘‘साहिल, मुझे कुछ टूटा सा लग रहा है.’’

‘‘छोड़ो शैली, यदि तुम सही हो, तो भी हमें क्या करना?’’

अपनी धुन में मैं कह गई, ‘‘नहीं साहिल, इसे नहीं छोड़ पाऊंगी. अब मुझे याद आया, छाया कालेज में मेरे साथ थी. वह मुझे बहुत पहचानी सी लग रही थी.’’

साहिल को मनाते हुए मैं ने आगे कहा, ‘‘मुझे छाया से दोस्ती करनी है.’’

‘‘यार, बौस से दोस्ती बढ़ाने का एक ही मतलब होता है, चमचागीरी. छोड़ दो उस गुमसुम सी छाया को.’’

‘‘प्लीज, बस एक बार मिलवा दो. मैं वादा करती हूं, अगली बार छाया खुद मुझ से मिलना चाहेगी.’’

‘‘तुम अपनी बात मनवाना जानती हो. चलो, देखते हैं. सुबह के 4 बज गए हैं. उठो, सुबह औफिस भी जाना है.’’

अगले शनिवार जब साहिल औफिस से आया तो बोला, ‘‘मैडम, आप का काम हो गया. बौस तैयार हो गए हैं. रविवार को पहले फिल्म और फिर डिनर, ठीक है.’’ ‘‘ठीक नहीं, सुपर प्लान है. साहिल तुम बहुत अच्छे हो.’’

साहिल ने मुसकरा कर मेरा हाथ थाम लिया, बोला, ‘‘मैं जानता हूं असली खिलाड़ी कभी हारते नहीं.’’ दुख का एक पल मेरे अंदर आया, पर मैं ने उसे झटक कर दूर किया और साहिल के लिए चाय बनाने चली गई. मैं शादी से पहले हमेशा बैडमिंटन खेलने की शौकीन रही हूं. खेल के बाद तैराकी मुझे बहुत सुकून देती है. सूरत में तो वीकैंड में क्लब में जाती थी. यहां चेन्नई में ऐसी जगह अभी तक मिल नहीं पाई. अधिकतर क्लबों की मैंबरशिप बहुत महंगी है. अभी तो मुझे रविवार का इंतजार था. रविवार की शाम हम चारों मिले. आज मैं ने मिलते ही सब से पहले छाया को याद दिलाया, ‘‘आप को याद नहीं, हम एक ही कालेज में पढ़े हैं. उस दिन मुझे आप का चेहरा बहुत पहचाना सा लग रहा था. फिर बाद में याद आया.’’

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छाया ने खुश होते हुए कहा, ‘‘जब पुराने दोस्त मिल गए हैं तो ‘आप’ नहीं शैली, ‘तुम’ ही अच्छा लगेगा.’’

हम साथ में हंस दिए. जब तरुण ने ये सब सुना तो बोले, ‘‘शैली, आप छाया से दोस्ती कर ही लो. उस का भी मन लग जाएगा यहां.’’ साहिल मेरी ओर देख कर मुसकरा पड़े, उन की निगाहों ने कहा, ‘जीत गई न तुम.’

सिनेमाहौल में मैं और छाया पासपास बैठे थे. एक समय आया जब स्क्रीन पर बलात्कार का सीन चल रहा था. नायिका चीखचिल्ला रही थी, रो रही थी, भाग रही थी, उस जगह से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ रही थी. उस सीन ने मुझे दहला दिया. साहिल ने मेरे हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लिया था. अचानक मेरी निगाह छाया की तरफ गई, उस ने कस कर आंखें बंद की हुई थीं. बस, यही बात थी जो मुझे छाया के करीब लाई थी. इसीलिए मैं उस से दोस्ती करना चाहती थी.

फिल्म के मध्यांतर में खाने के लिए स्नैक्स ‘हम दोनों ही लाएंगे’ कह कर मैं छाया को अपने साथ बाहर ले आई. एक कोने में जा कर हम खड़े हुए, मैं ने उस से कहा, ‘‘जिस सीन को देख कर तुम ने आंखें बंद की थीं, उस काले, घिनौने वक्त से मैं भी गुजर चुकी हूं. बस, फर्क इतना है तुम उस वक्त अकेली थी और साहिल ने अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ थामा था. मैं ने उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया था.’’ छाया की आंखें भय से फैल गईं. वह बोली, ‘‘क्या बोल रही हो? तुम्हें देख कर तो कोई सपने में भी नहीं सोच सकता है कि तुम दर्द के उस दरिया से निकल कर आई हो.’’

‘‘दर्द के दरिया को पार कर मैं भी आई हूं, छाया. पर उस के पानी से मेरे कपड़े आज भीगे नहीं हैं. तुम आज भी भीगी हो और कांप रही हो.’’

हम दोनों भूल चुके थे कि हम कहां खड़े हैं और क्या लेने आए हैं. हमारे सामने साहिल खड़ा था. हाथ में स्नैक्स की ट्रे लिए. वह जानता था उस समय यहां क्या बात हो रही है. वह सिर्फ इतना बोला, ‘‘चलो, फिल्म शुरू हो गई है.’’

तांकझांक तो बुरी आदत है पर क्या करूं, आज तो मैं ने भी वही किया. देख कर अच्छा लगा, छाया तरुण का हाथ थामें बैठी थी. इस से ज्यादा ध्यान देना तो ठीक नहीं था. मैं ने अपना ध्यान फिल्म में लगा दिया.

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फिल्म खत्म होने के बाद रेस्तरां में खाना खाते समय तरुण बोले, ‘‘साहिल, औफिस के बाहर, सर और आप कुछ नहीं चलेगा. यहां हम भी दोस्त हैं छाया और शैली की तरह.’’

बायफ्रेंड संग दोबारा सात फेरे लेने जा रही हैं काम्या पंजाबी

छोटे पर्दे की मशहूर एक्ट्रेस  काम्या पंजाबी  जल्द ही दोबारा शादी के बंधन में बंधने जा रही है.  जी हां, वह अपने बायफ्रेंड के साथ शादी करने जा रही है. काम्या ने खुद यह बात अपने फैंस से शेयर की थी कि वह अपनी जिंदगी के उस पड़ाव पर पहुंच चुकी हैं जहां से वह किसी के साथ दोबारा अपना घर बसाने के लिए तैयार हैं. आए दिन अपने बायफ्रेंड शलभ डांग की वजह से सुर्खियों में बनी रहती हैं.

आपको बता दें, काम्या पंजाबी ने शादी का कार्ड फैंस के साथ शेयर किया है. जी हां सही सुना आपने. काम्या पंजाबी ने एक वेडिंग कार्ड की वीडियो शेयर की है. शादी का कार्ड सामने आने के बाद अब इतना तो तय हो चुका है कि, टीवी की यह एक्ट्रेस जल्द ही दुल्हन बनने के लिए तैयार है.

काम्या की शादी 10 फरवरी को है. काम्या के घर शादी की तैयारियां जोरो-शोरों से चल रही हैं और उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी शादी के कार्ड का एक बूमरैंग वीडियो भी शेयर किया है, जो वायरल हो रहा है और इसे फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

बता दें कि काम्या पंजाबी की ये दूसरी शादी है. काम्या की पहली शादी बिजनेसमैन बंटी नेगी से हुई थी. लेकिन ये शादी लंबे समय तक नहीं चल सकी और दोनों ने एक-दूसरे से अलग होने का फैसला ले लिया. दोनों ने रजामंदी से तलाक ले लिया. काम्या की पहली शादी से उनकी एक बेटी है.

खुद को बचाने के लिए जवाब देना ही पड़ता है : रिचा चड्ढा

पिछले साढ़े सात वर्ष से हर फिल्म में अलग तरह के किरदार निभाने के साथ हर मुद्दे पर बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखने वाली अभिनेत्री रिचा चड्डा निंरतर आगे बढ़ती जा रही है.इन दिनों वह अश्विनी अय्यर निर्देशित फिल्म ‘‘पंगा’’ को लेकर उत्साहित हैं, जिसमें उनका स्पेशल अपियरेंस है.

प्रस्तुत है रिचा चड्ढा से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंशः

2008 से 2020 यानी कि 12 साल के अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

-लेकिन मैं अपने कैरियर की शुरूआत 2012 से मानती हूं. 2008 में मैं दिल्ली में ही रहती थी. जब मैं कालेज में पढ़ रही थी, तभी मुझे दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘‘ओए लक्की..’’ मिल गयी. मैंने यह फिल्म की और मुंबई आयी, पर मुझे लगा कि फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कुछ होने वाला नही है, तो मैं वापस दिल्ली लौट गयी थी. पर दिल्ली में रहते हुए मैं थिएटर या एड फिल्म जरुर कर लेती थी. लेकिन जब मैं अनुराग कश्यप की फिल्म ‘‘गैंग आफ वासेपुर’  के लिए 2011-2012 के आस पास मुंबई आयी, तो लगा कि इतने बड़े निर्देशक ने मुझे मौका दिया, इसके मायने हैं कि मैं कुछ कर सकती हूं. 2012 से अब तक मैंने बहुत सारी चप्पलें घिसायी हैं. तब यहां तक पहुंच पायी.

चलिए, तो यह बता दें कि साढ़े सात वर्ष के कैरियर को आप किस तरह से देख रही हैं ?

मैंने पाया कि यहां पर दो तरह के लोग हैं. जब मैं इंडस्ट्री में आयी थी, तब कुछ लोग इतनी उंचाई थे, जिन्हें देखकर मुझे लगा था कि यह कभी भी लुप्त नही हो सकते, मगर वह लोग गायब हो चुके हैं. कुछ लोग जो कुछ नहीं थे, वह काफी आगे बढ़ चुके हैं, तो मुझे लगता है कि लंबी रेस वाला घोड़ा का जो वक्त है, वह मेरा अब बौलीवुड में आ गया है. मैं अपने साढ़े सात वर्ष के कैरियर को अच्छे रूप में ही देखती हूं. इस दौरान मैंने काफी उतार चढ़ाव भी देखे. मैंने कभी लीड किया, कभी सह कलाकार की भूमिका निभायी, कभी आर्ट फिल्म की, कभी व्यावसायिक फिल्म की. पर मैंने अब तक जितने भी किरदार निभाए, उनमें विविधता है. इससे मैं खुश हूं.

अब तक के कैरियर में आपका सबसे बड़ा कड़वा अनुभव क्या रहा ?

एक बार ऐसा हुआ था कि मुझे एक फिल्म से अंतिम समय में बाहर कर दिया गया था, मैंने सुना था कि निर्देशक का उस लड़की के संग अफेयर था, जिसे उन्होंने मेरी जगह पर हीरोईन लिया था, पर असली सच नही जानती. और मैं उसका नाम नहीं लेना चाहती. हर किसी के काम करने का ढंग और सोच होती है. जब मुझे फिल्म से निकाला गया था, तब मुझे दुःख हुआ था. मुझे लगा था कि यह कैसे जाहिल लोग हैं, मगर बाद में जब वह फिल्म रिलीज हुई, तो उसने बाक्स आफिस पर पानी भी नही मांगा. तो मुझे लगा कि निर्देशक का फोकश फिल्म नहीं, वह लड़की थी, तो यही हश्र होना था. वैसे तो कड़वे अनुभव आए दिन आते रहते हैं, पर अब मैं उन्हें निजी स्तर पर ज्यादा लेती नही हूं.

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आपको किस फिल्म को करने का गम है ?

सरबजीत, मुझे लगा कि सरबजीत के निर्माताओं ने मेरा उपयोग किया.उन्होंने मेरी पंजाबियत का इस्तेमाल करके बाद में मेरे किरदार पर ऐसी कैंची चला दी कि अब कुछ कहना बेकार है. मुझे बड़ी तकलीफ हुई थी.

फिल्म ‘‘सेक्शन 375’’ के रिलीज के बाद किस तरह के रिएक्शन मिले ?

-कई तरह के रिएक्शन मिले. कुछ लोगों ने कहा कि वह फिल्म के अंत से सहमत नही हैं. अजय बहल काबिल निर्देशक है. देखिए,विवाद की जो चर्चा है, वह कानून पर होनी चाहिए.

फिल्म ‘‘पंगा’’ से जुड़ने के पीछे क्या सोच रही ?

-एक दिन फिल्म की निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी मुझसे मिली और कहा कि वह नारी प्रधान फिल्म ‘पंगा’बना रही है.इसमें लड़कियों का मुद्दा है, तो मैंने हामी भर दी. मेरा लालच था कि मुझे खेल पर आधारित नारी प्रधान फिल्म करने का अवसर मिल रहा है. इस फिल्म को करने से मुझे कबड्डी का खेल सीखने को मिला. दूसरी बात मैं अपने दूसरे काम के साथ सामंजस्य बैठाकर चल रही हूं,तो अगर मैने एक फिल्म सहायक किरदार वाली कर ली,तो चल जाता है. इससे मुझे नुकसान नही होगा.

अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी ?

-फिल्म ‘‘पंगा’’में मैंने मीनू का किरदार निभाया है. स्कूल व कालेज में मीनू और जया निगम दो स्टार कबड्डी खिलाड़ी होती हैं.पर आगे चलकर जया निगम को प्रशांत श्रीवास्तव से प्यार हो जाता है और जया कबड्डी के खेल को अलविदा कहकर प्रशांत के संग शादी कर अपने पति के साथ पारिवारिक जिंदगी में व्यस्त हो जाती है. वह एक बेटे की मां बन जाती है, जबकि मीनू लगातार कबड्डी खेलते हुए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना लेती है. मीनू को भी रेलवे में नौकरी मिल जाती है. मीनू रेलवे की नौकर करने के साथ साथ कबड्डी का खेल खेलती है और कबड्डी की कोचिंग भी करती है यानीकि दूसरों को कबड्डी का खेल सिखाती है. पर जब बेटा आठ वर्ष का हो जाता है, तब जया, मीनू को देखकर अफसोस करती है कि मीनू खेल रही है और वह नहीं खेल रही है. तब मीनू,जया से कहती है कि कोई बात नहीं. बेटे की मां बनने के बावजूद तुम खेल में वापसी करना चाहती हो, तो आओ, मैं तुम्हे ट्रेंड करती हूं. फिर मीनू, जया को कबड्डी की ट्रेनिंग देती है.

फिल्म ‘‘पंगा’’ और कुछ दिन पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘सांड़ की आंख’’ में आप किस तरह का अंतर देखती हैं?

‘सांड़ की आंख’ में सामाजिक दबाव के चलते पुरूषों द्वारा दबाने का मुद्दा था. मगर ‘पंगा’ में औरत खुद ही कबड्डी से अलग होकर घर गृहस्थी में रम जाती है. तो यह फिल्म देखकर आज की औरतों को सोचने का मौका मिलेगा. जरुरी नही है कि तुम बच्चे की मां बन गयी हो, इसलिए सब छोड़कर घर पर बैठ जाओ. जिसमें फिजिकल होना पड़ता है, मसलन,स्पोर्ट्स हो या अभिनय हो, तो एक बार बात समझ में आती है.

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आपकी फिल्म ‘‘शकीला’’ भी दो वर्ष से बन रही है ?

वास्तव में हमने पिछले वर्ष इसका कलेंडर जारी कर गलती की थी. फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले ही पोस्टर जारी कर दिया था, इसलिए लोगों को लगता है कि यह फिल्म लंबे समय से बन रही है. अभी ‘शकीला’ पोस्ट प्रोडक्शन में है. डबिंग भी करनी पड़ेगी. ‘शकीला’ की यात्रा से हर औरत रिलेट करेगी.

शकीला’ को बहुत बोल्ड माना गया. आप क्या सोचती हैं ?

मुझे लगता है कि छोटी उम्र में अपने परिवार की मदद करने के लिए उसने भले ही बी ग्रेड फिल्में की, पर उसने अपने भाई बहनों को उच्च शिक्षा दिलवाकर उन्हें अच्छे मुकाम पर पहुंचाया. उन्होंने अपने भाई बहनों को अमीर बना दिया, पर वह खुद अकेली रह गयी. उनके परिवार के लोगों ने ही उनका शोषण किया. उनका उपयोग किया. मेरी राय यही है. देखिए, माइकल जैक्सन के मरने के बाद उनके चरित्र पर सवाल उठाए जा रहे हैं,जो कि सच भी हो सकता है.

पर जो इंसान इस दुनिया में नहीं है ?

-इस तरह के आरोप लगाकर यदि पीड़ित को संतुष्टि मिल रही है,तो ठीक है.उसे अपनी बात कहनी चाहिए. मुझे लगता है कि माइकल जैक्सन के पिता का प्रभाव माइकल जैक्सन पर पूरी तरह से रहा.माइकल के पिता की आदत थी मारना पीटना वगैरह..

इधर शकीला गरीब रह गयी. उनके अपने कमाए हुए पैसे भी उनके मां बाप ने उनसे छीन लिए. तो यदि मां बाप सही न हों, तो उसका प्रभाव बच्चे पर किस तरह से पड़ता है, उसका उदाहरण हैं शकीला और माइकल जैक्सन.

फिल्म ‘‘घूमकेतु’’ भी फंस गयी ?

-यह मेरी फिल्म नही है. यह तो नवाजुद्दीन सिद्दिकी की फिल्म है. इसमें मेरा सिर्फ दो दिन का ही काम है.

इसके बाद क्या कर रही हैं ?

फिलहाल तो कई फिल्में तैयार हैं, वही अब आएंगी. ‘अभी तो पार्टी बाकी है, ‘शकीला’ और एक फिल्म की है,  जिसका नाम फिलहाल बताने की स्थिति में नहीं हूं. उसकी निर्माता की तरफ से घोषणा नहीं हुई है.

पर ‘पार्टी अभी शुरू हुई है’भी लंबे समय से बन रही थी ?

हां! फिल्म पूरी होने के बाद अनुभव सर को लगा कि इसमें कुछ बदलाव होना चाहिए, तो नए सिरे से कुछ दृश्य फिल्माए जाने हैं.

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-अभी अधूरी पड़ी है. अब मैं सोच रही हूं कि मैं राइटिंग का कोर्स कर लूं. मेरे अंदर लिखने की आदत इंस्टिंट है, पर मुझे प्रैक्टिस की जरुरत है. सीखने की जरुरत है.

किताब लिख रही थी?

वह भी चल रहा है.

आप एक लघु फिल्म बना चुकी हैं तो फिल्म कब निर्देशित करने वाली हैं ?

मैंने पंजाबी में एक लघु फिल्म का सिर्फ निर्माण किया था. आगे चलकर शायद अपनी लिखी पटकथा पर फिल्म का निर्माण कर लूं पर निर्देशन नही करुंगी. निर्देशन बहुत बड़ा सरदर्द है. फिल्म का निर्माण जरुर कर सकती हूं. पर एक लघु फिल्म का निर्देशन कर सकती हूं. यदि सामाजिक व्यवस्था इसी तरह की रहेगी, तो जरुर कोई न कोई लघु फिल्म बनानी पड़ेगी. उसके बाद मुझे भी गालियां पड़ेंगी.

पिछले दिनों ट्वीटर पर अशोक पंडित से आपकी अनबन हुई ?

-अशोक पंडित ने मुझ पर अर्बन नक्सलवादी होने का आरोप लगाया था,तो मुझे उन्हे जवाब देना पड़ा.मैं खुद को गांधीवादी मानती हूं. मुझे न्याय में विश्वास है, तो मैं उस पर कायम रहती हूं. पर कई बार खुद को बचाने के लिए जवाब देना ही पड़ता है.

आपको नहीं लगता कि सोशल मीडिया आपसी वैमनस्य फैलाने का काम कर रहा है ?

जी हां! मैं इस बात से सहमत हूं. यह बहुत डैंजरस हो गया है. अगर सरकार ‘हैशटैग’ देखकर चलने लगेंगी, तो आम इंसान क्या करेगा. आम इंसान के पास न बिजली है, न मोबाइल फोन है और न ही इंटरनेट की सुविधा है कि बेचारा वह उसी में लगा रहे. हिंदुस्तान तो सबका है. जो किसान हर दिन आत्महत्या कर रहा है, वह तो सुरक्षित नहीं है.सैलीब्रिटी की बात सुनकर या पायल रोहतगी की बात सुनकर किसान जिंदा नहीं रह सकता.

क्या सिनेमा में ओमन इम्पावरमेंट की बात सही ढंग से हो रही है?

हो रही है, मगर थोड़ी सी. पूरी नहीं. सिनेमा भी समाज का हिस्सा है,जब तक समाज में बदलाव नहीं आएगा, समाज में लोग औरतों को लेकर बकवास करते रहेंगे, विवादित टिप्प्पणी देते रहेंगे, तो बदलाव कैसे आएगा.

झारखंड में भाजपा की हार

झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के अंदाजे पहले से ही लग रहे थे. देश में नए बनाए गए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान इस हार का परिणाम आया. ऐसा लगा है मानो देश की जनता ने पौराणिक परंपरा को थोपने वाली सरकार को फिलहाल सबक सिखाने का मन बना लिया है. हालांकि  झारखंड के मतदान कई चरणों में हुए और नागरिकता संशोधन कानून लाए जाने से पहले से ही मतदान हो रहा था पर आज दोनों को मिला कर ही देखा जाएगा.

झारखंड में हालांकि पहले की तरह भाजपा को खासे वोट मिले पर कांग्रेस और  झारखंड मुक्ति मोरचा के बीच सम झौता होने के कारण दोनों को 81 में से 47 सीटें मिल गईं. भारतीय जनता पार्टी 25 पर सिमट गई. भाजपा के मुख्यमंत्री रघुवर दास भी अपनी सीट नहीं बचा पाए.

महाराष्ट्र में मिले धक्के के बाद  झारखंड में हुई हार से भाजपा का एकछत्र राज करने का सपना टूट रहा है. इस के पीछे कारण वही है जो उस की जीत के पीछे था – धर्म पर आधारित राजनीति. भाजपा, दरअसल, अपने शासन की नीतियां नहीं परोस रही, वह कोरे धर्मराज की स्थापना को परोस रही है और वह धर्म भी ऐसा जैसा पुराणों में वर्णित है, जिस में ज्यादा से ज्यादा लोग पूजापाठ, अर्चना में लगे रहें, सेवा करते रहें और कुछ मौज करते रहें.

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इस देश के कर्मठ लोगों और यहां की उपजाऊ जमीन की देन है कि धर्म के पाखंड पर पैसा और समय देने की गुंजाइश बहुत रहती है. धर्म के नाम पर सदियों से यहां विशाल मंदिर, पगपग पर ऋषियोंमुनियों के आश्रम बनते रहे हैं. लोग अंधश्रद्धा के गुलाम बने हुए हैं. इस अंधश्रद्धा को बढ़ाने व भुनाने के लिए एक खास वर्ग सदियों से मुफ्त की खाता रहा है और असल में शासन भी वही करता रहा है. भारतीय जनता पार्टी उसे ही दोहराना चाह रही थी.

देश के सामने अब आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक समस्याओं का अंबार है. लेकिन सरकार को किसी भी समस्या को सुल झाने की फुरसत नहीं है. वह राममंदिर पर सुप्रीम कोर्ट को मनवाने, कश्मीर से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 370 पर, बंगलादेश से आए गरीब मुसलमानों, मजदूरों को भगाने के बहाने सभी मुसलमानों को कठघरों में खड़ा करने, बैकडोर से आरक्षण खत्म करने में लगी हुई है.

झारखंड में ही नहीं, हरियाणा व महाराष्ट्र और बहुत से उपचुनावों में यह साफ हुआ है कि सरकार की टैक्स नीतियां भी अमान्य हैं, शासकीय भी. फिर भी भारतीय जनता पार्टी को लग रहा था कि नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि व अमित शाह की कूटनीति से वह जनता को बहकावे में रखने में कामयाब रहेगी.

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पौराणिक सोच वालों ने रामायण और महाभारत के युद्धों में जीत के प्रसंग तो बहुत पढ़े हैं पर दोनों महाकाव्यों के नायकों का बाद में क्या हुआ, यह कम ही लोगों को मालूम है. और जनता अब यही बिना पुराण पढ़े सम झने लगी है.

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