उड़द जायद व खरीफ की खास फसल है. वैज्ञानिक तौरतरीके अपना कर इस की अच्छी पैदावार ली जा सकती है. उड़द की खेती के लिए अच्छे पानी निकास वाले बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत ज्यादा ठीक रहते हैं. लवणीय, क्षारीय या ज्यादा अम्लीय मिट्टी उड़द के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है. सही नमी बनाए रखने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से कर के अच्छी तरह से पाटा लगा कर खेत को समतल करना चाहिए.

उन्नत किस्में : अच्छी पैदावार लेने के लिए हमेशा उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए. कुछ उन्नत किस्में इस तरह हैं:

टाइप-9 : यह किस्म 80-85 दिन में  पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म का पौधा सीधा, फूल पीला, दाना मध्यम व काले रंग का होता है और फलियों पर रोएं नहीं होते हैं.

पंत यू-19 : यह किस्म 80-85 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर खेत से 10 से 12 क्विंटल पैदावार मिलती है. इस का तना सीधा, फूल पीला, दाना मध्यम काला व भूरे रंग का होता है.

पंत यू-30 : इस किस्म के पौधे का तना सीधा व हरी पत्ती वाला होता है. फूल पीले रंग के व दाने काले रंग के मध्यम आकार के होते हैं. इस की फसल 75 से 80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर से 10 से 12 क्विंटल पैदावार मिलती है. यह किस्म पीला कोढ़ यानी यैलो मोजैक बीमारी से लड़ने की कूवत रखती है. लेकिन लीफ क्राकल, सर्कोस्पोरा लीफ स्पौट, मैक्रोफोमिना ब्लाइट व जड़ सड़न वगैरह बीमारियों के लिए आंशिक प्रतिरोधी कूवत रखती है.

पंत यू-35 : यह किस्म 75 से 80 दिनों में पकती है. इस से एक हेक्टेयर से 12 से  15 क्विंटल पैदावार मिलती है. इस का पौधा मध्यम आकार का और दाने काले व मध्यम आकार के होते हैं.

टाइप-27 व टाइप-65 : ये किस्में एकल या दूसरी फसलों के साथ मिला कर बोई जाती है. इस से 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है.

बीजोपचार : फसल को बीमारी से बचाने के लिए बोआई से पहले बीजों को उपचारित कर के बोना चाहिए. इस के लिए बीजों को 2 ग्राम थिरम व 1 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करने के बाद उड़द के राइजोबियम कल्चर व फास्फेटिक यानी पीएसबी कल्चर 200 ग्राम से प्रति 10 किलोग्राम बीज का उपचार करना चाहिए.

खरीफ की फसल के लिए एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए  12 से 15 किलोग्राम व जायद में  25-30 किलोग्राम बीज इस्तेमाल करें.

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बोआई का सही समय : जल्दी पकने वाली किस्मों की बोआई खरीफ में जुलाई के तीसरे हफ्ते से अगस्त के दूसरे हफ्ते तक कर लें. जायद में फरवरी के आखिरी हफ्ते से 10 मार्च तक बोआई करनी चाहिए. लंबी अवधि की किस्मों की बोआई 15 जुलाई तक करनी चाहिए.

उड़द की बोआई कूंड़ में हल के पीछे या सीड ड्रिल से करनी चाहिए. खरीफ में कूंड़ से कूंड़ की दूरी 40 से 50 सैंटीमीटर और जायद में 25-30 सैंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. बोआई के 20-25 दिन बाद निराई कर के पौधे से पौधे की दूरी 10 सैंटीमीटर कर दें.

खाद : अच्छी फसल लेने के लिए नाइट्रोजन 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, 20 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश, 20-25 किलोग्राम गंधक और 5 किलोग्राम जिंक की जरूरत होती है.

उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई करते समय कूंड़ में बीज से 2 से 3 सैंटीमीटर नीचे देनी चाहिए. जिप्सम का इस्तेमाल खेत की तैयारी के समय करें. जिंक सल्फेट को फास्फोरस वाले उर्वरकों में मिला कर न रखें.

सिंचाई : खरीफ में फली बनते समय बारिश की कमी के दौरान एक सिंचाई फायदेमंद रहती है. ज्यादा बारिश होने पर खेत से पानी का निकास करना जरूरी होता है. जायद में पहली सिंचाई 30 से 35 दिन पर और बाद में जरूरत के मुताबिक 10 से 15 दिन के अंतराल पर हलकी सिंचाई करें. स्प्रिंकलर सिंचाई ज्यादा फायदेमद है. उठी मेंड़ों या क्यारियों में बोआई करने से ज्यादा बारिश व पानी भराव से नुकसान नहीं होता है.

खरपतवार की रोकथाम : पहली सिंचाई के बाद या बोआई के 25 से 30 दिन की अवस्था पर निराई करने से खरपतवार की रोकथाम और जमीन में हवा का संचार अच्छा होता है, जिस से जड़ों में मौजूद बैक्टीरिया की सक्रियता बढ़ कर आबोहवा की नाइट्रोजन इकट्ठा करने का काम तेज होता है. खरपतवारों की कैमिकल दवा द्वारा रोकथाम के लिए पेंडीमिथेलीन 30 ईसी या एलाक्लोर 50 ईसी  3 से 4 लिटर 800 लिटर पानी में घोल कर बोआई के बाद और जमाव से पहले छिड़कें या फ्लूक्लोरैलिन 45 ईसी की 2.2 लिटर मात्रा 800 लिटर पानी में घोल कर बोआई से पहले छिड़काव कर खेत में मिलाएं. लाइनों में बोई गई फसल में खरपतवारों की रोकथाम के लिए वीडर मशीन का इस्तेमाल फायदेमंद है.

कीट नियंत्रण

झींगुर : ये अंकुरण के समय निकले हुए अंकुर को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. पौधे की बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है. इस कीट के नियंत्रण के लिए खेत में बोआई से पहले  25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से हैप्टाक्लोर धूल (5 फीसदी) का बुरकाव करना चाहिए.

बिहार की रोमिल सूंड़ी?: इस कीट का हमला तीव्र गति से होता?है और इन की तादाद भी तेजी से बढ़ती है. यह फसल पर शुरू से ले कर फली बनने तक हमला कर सकती है. इस की रोकथाम के लिए निम्न उपाय करने चाहिए:

* खेत में खरपतवारों को पनपने नहीं देना चाहिए, क्योंकि खरपतवार इस को आश्रय देते हैं.

* 1 लिटर मैटासिस्टौक्स 25 ईसी को 1,000 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

चैंपा : इसे एफिड कीट भी कहते?हैं. यह एक?छोटा कीट होता?है, जो पौधों के कोमल अंगों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है. इस की वजह से पौधे के भोजन बनाने के काम पर बुरा असर होता है.

इस कीट की रोकथाम करने के लिए अजादीरैक्टिन 0.03 फीसदी ईसी प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

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रोग नियंत्रण

पीला मोजैक : यह रोग विषाणु द्वारा होता?है. नई उगती हुई पत्तियों में शुरू से ही कुर्बुरता यानी पीली ऊतक वाले लक्षण दिखाई देते हैं.

जिन पत्तियों में पीली कुर्बुरता के मिलेजुले लक्षण दिखाई देते?हैं, उन के आकार छोटे रह जाते हैं. ऐसे पौधों पर बहुत कम और छोटी फलियां लगती हैं.

ऐसी फलियों में बीज सिकुड़ा हुआ, मोटा व छोटा होता?है. यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता?है. इस रोग की रोकथाम के लिए निम्न उपाय करने चाहिए:

* रोगरोधक किस्में (पंत यू 19, 26 व 30) उगानी चाहिए.

* सही फसल चक्र अपनाना चाहिए.

* सफेद मक्खी को खत्म करने के लिए मैटासिस्टौक्स के 0.5 फीसदी घोल को 10-15 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करने चाहिए.

आर्द्र विगलन : यह एक फफूंदी से होने वाला रोग है. इस रोग में अंकुरण के समय ही अंकुर गलने लगते हैं. पौध विगलन जो  फफूंद द्वारा लगता है, बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाता?है. इस रोग के नियंत्रण के लिए बताए गए उपाय अपनाने चाहिए:

* रोगरोधी किस्में जैसे?टाइप 9 उगाएं.

* पैंटाक्लोरोनाइट्रोबैंजीन (पीसीएनबी के 0.8 फीसदी) घोल से बीजोपचार करें.

पर्ण धब्बा : यह भी फफूंदी से होने वाला रोग है. इस के लक्षण पत्तियों पर?छोटेछोटे धब्बों के?रूप में देखने को मिलते हैं. पत्तियां

मुड़ कर गिर जाती हैं. इस के उपचार के लिए डाइथेन एम 45 के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

फसल की कटाई?: फरवरीमार्च महीने में बोई गई उड़द की फसल अप्रैलमई महीने में पक कर तैयार हो जाती है. फसल पकने पर फलियों का रंग काला पड़ जाता?है. कुछ किस्मों में फलियां एकसाथ नहीं पकती हैं. ऐसी किस्मों की फलियों की 3-4 बार तुड़ाई की जाती है.

जो किस्में एकसाथ पकती?हैं, उन की कटाई कर के खेतखलियानों में फसल को अच्छी तरह सुखाते हैं. बाद में बैल चला कर या डंडों से पीट कर फलियों से दाने निकाल लिए जाते?हैं. बचा हुआ भूसा पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता है.

उपज : उड़द की फसल कई बातों पर निर्भर करती है, जिन में जलवायु, जमीन की उर्वराशक्ति, उगाई जाने वाली किस्में, उगाने की विधि और फसल की सही देखभाल खास हैं.

अगर सही तरीके से उड़द की खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल उपज मिल जाती?है. दाना व भूसा बराबर अनुपात में मिलता है.

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