डाक्टर आरएस सेंगर

इनसानी जाति के लिए ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा खतरा है. ग्लोबल वार्मिंग के असर को रोकने के लिए इस के प्रभाव को बदलने की जरूरत है. यह बदलाव लाने के लिए सब से अच्छा तरीका कृषि अपशिष्ट के लिए नएनए तरीकों का इस्तेमाल करना या उन्हें ढूंढ़ना है.

भारत में कटाई के बाद हर साल कचरे के रूप में तकरीबन 5 लाख टन केले के तने को बरबाद कर दिया जाता है, जबकि आधुनिक तकनीक से आसानी से केले के तनेसे फाइबर निकाल सकते हैं. इस का कपड़ा, कागज और उद्योगों में बडे़ पैमाने पर उपयोग हो सकता है. सिंथैटिक फाइबर के लिए केला फाइबर एक बहुत अच्छा प्रतिस्थापन है.

तने से फाइबर निकालना

केला फाइबर पौधे के छद्म स्टैम शीथ से निकाला जाता है. केला फाइबर निकालने के लिए मुख्य रूप से 3 तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है : मैनुअल, रासायनिक और मेकैनिकल अर्थात मशीन द्वारा.

मशीन द्वारा पर्यावरण अनुकूल तरीके से अच्छी गुणवत्ता और मात्रा दोनों के फाइबर को प्राप्त करने का सब से अच्छा तरीका है.

इस प्रक्रिया में छद्म स्टैम शीथ को एक रास्पडोर मशीन में डालने से फाइबर निकाला जाता है. रास्पडोर मशीन शीथ में मौजूद फाइबर बंडल से गैररेशेदार ऊतकों और सुसंगत सामग्री (जिसे सौक्टर के रूप में जाना जाता है) हटा देता है और आउटपुट के रूप में फाइबर देता है.

मशीन से निकालने के बाद फाइबर एक दिन के लिए छाया में सुखाया जाता है और एचडीपीई बैग में पैक किया जाता है. फिर इसे नमी और रोशनी से दूर रखा जाता है, ताकि इसे तब तक अच्छी हालत में रखा जा सके, जब तक इस का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

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