समय का चक्र मानो फिर से घूम गया था. अब मां व शिखा के प्रति मामामामी का रवैया बदलने लगा था. हर बात में मामी कहतीं, ‘अरे जीजी, बैठो न. आप बस हुक्म करो. बहुत काम कर लिया आप ने.’
मामी के इस रूप का शिखा खूब आनंद लेती. इस दिन के लिए वह कितना तरसी थी.
जब सरकारी बंगले में जाने की बात आई तो सब से पहले मामामामी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. मगर नानी ने जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि इस घर में नानाजी की यादें बसी हैं, वे इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी, और जो भी जाना चाहे, वह जा सकता है. मां नानी के दिल की हालत समझती थीं, उन्होंने भी जाने से मना कर दिया. सो, शिखा ने भी शिफ्ट होने का खयाल उस समय टाल दिया.
इसी बीच, एक बहुत ही सुशील और हैंडसम अफसर, जिस का नाम राहुल था, की तरफ से शिखा को शादी का प्रस्ताव आया. राहुल ने खुद आगे बढ़ कर शिखा को बताया कि वह उसे बहुत पसंद करता है व उस से शादी करना चाहता है. शिखा को भी राहुल पसंद था.
राहुल शिखा को अपने घर, अपनी मां से भी मिलाने ले गया था. राहुल ने उसे बताया कि किस प्रकार पिताजी के देहांत के बाद मां ने अपने संपूर्ण जीवन की आहुति सिर्फ और सिर्फ उस के पालनपोषण के लिए दे दी. घरघर काम कर के, रातरात भर सिलाईकढ़ाई व बुनाई कर के उस को इस लायक बनाया कि आज वह इतना बड़ा अफसर बन पाया है. उस की मां के लिए वह और उस के लिए उस की मां. उन दोनों की बस यही दुनिया थी.
राहुल का कहना था कि अब उन की इस 2 छोरों वाली दुनिया का तीसरा छोर शिखा है, जिसे बाकी दोनों छोरों का सहारा भी बनना है व उन्हें मजबूती से बांधे भी रखना है. यह सब सुन कर शिखा को महसूस हुआ था कि यह दुनिया कितनी छोटी है. वह समझती थी कि केवल एक वही दुखों की मारी है. मगर यहां तो राहुल भी कांटों पर चलतेचलते ही उस तक पहुंचा है. अब, जब वे दोनों हमसफर बन गए हैं, तो उन की राहें भी एक हैं और मंजिल भी.
राहुल की मां शिखा से मिल कर बहुत खुश हुईं. उन की होने वाली बहू इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी तथा सुशील है, यह देख कर वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. झट से उन्होंने अपने गले की सोने की चेन उतार कर शिखा के गले में पहना दी, और बड़े ही स्नेह से शिखा से बोलीं, ‘बस बेटी, अब तुम जल्दी से यहां मेरे पास आ जाओ और इस घर को घर बना दो.’
परंतु एक बार फिर शिखा के परिवार वाले उस की खुशियों के आड़े आ गए. राहुल दूसरी जाति का था और उस के यहां मीटमछली बड़े शौक से खाया जाता था. जबकि शिखा का परिवार पूरी तरह से पंडित बिरादरी का था, जिन्हें मीटमछली तो दूर, प्याजलहसुन से भी परहेज था.
घर पर सब राहुल के साथ उस की शादी के खिलाफ थे. जब शिखा की मां माला ने शिखा को इस शादी के लिए रोकना चाहा तो शिखा तड़प कर बोली, ‘मां, तुम भी. तुम भी चाहती हो कि इतिहास फिर से अपनेआप को दोहराए? फिर एक जिंदगी तिलतिल कर के इन धार्मिक आडंबरों और दुनियादारी के ढकोसलों की अग्नि में अपना जीवन स्वाहा कर दे? तुम भी मां…’ कहतेकहते शिखा रो पड़ी.
शिखा के इस तर्क के आगे मां निरुत्तर हो गईं. वे धीरे से शिखा के पास आईं और उस का सिर सहलाते हुए, रुंधी आवाज में बोलीं, ‘मुझे माफ कर देना मेरी प्यारी बेटी. बढ़ती उम्र ने नजर ही नहीं, मेरी सोचनेसमझने की शक्ति को भी धुंधला दिया था. मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़ कर और कुछ भी नहीं. हम आज ही यह घर छोड़ देंगे.’
जब मामामामी को पता लगा कि शिखा का इरादा पक्का है और माला भी उस के साथ है तो सब का आक्रोश ठंडा पड़ गया. अचानक उन्हें गुरुजी का ध्यान आया. साथ ही, गुरुजी में उन्हें आशा की अंतिम किरण भी नजर आई कि शायद उन के कहने से शिखा अपना निर्णय बदल दे.
बात गुरुजी तक पहुंची तो वे भी बिफर उठे. जैसे ही उन्होंने शिखा को कुछ समझाना चाहा, शिखा ने अपने मुंह पर उंगली रख कर उन को चुप रहने को इशारा किया और अपने गले में पड़ा उन की तसवीर वाला लौकेट उतार कर उन के सामने रख दिया. सब लोग गुस्से में कह उठे, ‘यह क्या पागलपन है शिखा?’
गुरुजी भी आश्चर्यमिश्रित रोष से उसे देखने लगे. इस पर शिखा दृढ़ स्वर में बोली, ‘बहुत कर ली आप की इज्जत और देख ली आप की शक्ति भी, जो सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखती है. मेरा सर्वस्व, अब मेरा होने वाला पति राहुल है, उस का घर ही मेरी मंजिल है, उस की सेवा मेरा धर्म और वही मेरा सबकुछ है,’ यह कह कर शिखा तेजी से उठ कर वहां से निकल गई.
शिखा के इस आत्मविश्वास के आगे सब ने समर्पण कर दिया और खूब धूमधाम से राहुल के साथ उस का विवाह हुआ.
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अचानक बादलों की गड़गड़ाहट से शिखा की आंख खुल गई. आंगन में लोगों की चहलकदमी शुरू हो गई थी. आंखें मलती हुई वह उठी और सोचने लगी, यहां दीवान पर लेटेलेटे उस की आंख क्या लगी, वह तो अपना अतीत एक बार फिर से जी आई. बाहर बादलों का एक झोंका बरस कर निकल गया था और पेड़ों की पत्तियां धुलीधुली, निखर कर मुसकराने लगी थीं.
राहुल अब किसी भी वक्त उसे लेने पहुंचने ही वाला होगा. इस खयाल से शिखा के चेहरे पर एक लजीली मुसकान बिखर गई.
सब काम निबटातेनिबटाते, भागतेदौड़ते वे स्कूल पहुंचतीं. कई बार तो शिखा को देर से स्कूल पहुंचने पर डांट भी खानी पड़ती. इसी प्रकार शाम को घर लौटने पर जब मां अपनी चाय बनातीं तो बारीबारी पूरे घर के लोग चाय के लिए आ धमकते और फिर वे रसोई से बाहर ही न आ पातीं. रात में शिखा अपनी पढ़ाई करतेकरते मां का इंतजार करती कि कब वे आएं तो वह उन से किसी सवाल या समस्या का हल, या प्रश्न का उत्तर पूछ ले. परंतु मां काम से फुरसत ही नहीं पातीं और वह कौपीकिताब लिएलिए ही सो जाती. जब मां आतीं तो बड़े प्यार से उसे उठ कर खाना खिलातीं और सुला देतीं. फिर अगले दिन सुबह उठ कर उसे पढ़ातीं.
यदि वह कभी मामा या मामी के पास कुछ हल पूछने जाती तो वे लोग हंस कर उस की खिल्ली उड़ाते और उस से कहते, ‘अरे बिटिया, क्या करना है इतना पढ़लिख कर? अफसरी तो करनी नहीं तुझे. चल, मां के साथ थोड़ा हाथ बंटा ले, काम तो यही आएगा.’
वह खीझ कर वापस आ जाती. परंतु उन की उपहासभरी बातों से उस ने हिम्मत न हारी, न ही निराशा को अपने मन में घर करने दिया, बल्कि वह और भी दृढ़ इरादों के साथ पढ़ाई में जुट जाती.
मामामामी अपने बच्चों के साथ अकसर बाहर घूमने जाते और बाहर से ही खापी कर आते. मगर भूल कर भी कभी न उस से, न ही उस की मां से पूछते कि उन का भी कहीं आनेजाने का या बाहर का कुछ खाने का मन तो नहीं. और तो और, जब भी घर में कोई बहुत बढि़या, स्वादिष्ठ चीज बनती तो मामी अपने बच्चों को पहले परोसतीं और उन को भरभर के देतीं. वह एक किनारे चुपचाप अपनी प्लेट लिए, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में खड़ी रहती. सब से बाद में मामी अपनी आवाज में बनावटी मिठास भर के उस से ‘अरे, बिटिया, तुम भी आ गईं. आओ, आओ,’ कह कर बचाखुचा, कंजूसी से उस की प्लेट में डाल देतीं.
तब उस का मन बहुत कचोटता और कह उठता कि काश, आज उस के भी पापा होते, तो वे उस को कितना प्यार करते, कितने प्यार से उसे खिलाते. तब किसी की भी हिम्मत न होती जो उस का इस तरह मजाक उड़ाता या खानेपीने को तरसाता. तब वह तकिए में मुंह छिपा कर बहुत रोती, मगर फिर मां के आने से पहले ही मुंह धो कर मुसकराने का नाटक करने लगती कि कहीं मां ने उस के आंसू देख लिए तो वे बहुत दुखी हो जाएंगी और वे भी उस के साथ रोने लगेंगी, जो वह हरगिज नहीं चाहती थी.
एकाध बार उस ने गुरुजी से, परिवार से मिलने वाले इन कष्टों का जिक्र करना चाहा, परंतु गुरुजी ने हर बार किसी न किसी बहाने से उसे चुप करा दिया. वह समझ गईर् कि सारी दुनिया की तरह गुरुजी भी बलवान के साथी हैं. सो, उस ने उन के आगे हाथ जोड़ना बंद कर दिया. अब वह सिर्फ अपनेआप पर भरोसा करती थी. प्यासे कौवे की कंकड़ डालडाल कर पानी को ऊपर लाने की जो कहानी उस ने पढ़ी थी, उसी को उस ने अपना मूलमंत्र बना लिया था. उस ने तय कर लिया था कि जीवन में उसे कुछ बड़ा करना है, बड़ा बनना है, जिस के लिए मेहनत जरूरी थी. वह मेहनत से कभी डरी नहीं, फिर चाहे कितनी बार उस के अपनों ने ही उसे नीचे धकेलने की कोशिश क्यों न की हो.
जब वह छोटी थी, तब इन सब बातों से अनजान थी. मगर जैसेजैसे बड़ी होती गई, उसे सारी बातें समझ में आने लगीं. और इस सब का कुछ ऐसा असर हुआ कि वह अपनी उम्र के हिसाब से जल्दी व ज्यादा ही समझदार हो गई.
उस की मेहनत व लगन रंग लाई और एक दिन वह बहुत बड़ी सरकारी अफसर बन गई. गाड़ीबंगला, नौकरचाकर, दुनिया के ऐशोआराम अब सबकुछ उस के पास थे. उस दिन मांबेटी एकदूसरे के गले लग कर इतना रोईं, इतना रोईं कि पत्थरदिल हो चुके मामामामी की भी आंखें भर आईं. नानी भी बहुत खुश थीं और अपने पूरे कुनबे को फोन कर के उन्होंने बड़े गर्व से यह खबर सुनाई.
वे सभी लोग जो वर्षों से उस को और मां को इस परिवार पर एक बोझ समझते थे, ससुराल से निकाली गई, मायके में आ कर पड़ी रहने वाली समझ कर शकभरी निगाहों से देखते थे, और उन्हें देखते ही मुंह फेर लेते थे, आज उन दोनों की प्रशंसा करते थक नहीं रहे थे. उस को अपनी ‘बिटिया रानी’ बुला रहे थे. मामामामी भी इन से अलग नहीं थे. उन्होंने तो उस के अफसर बनने का पूरा क्रैडिट ही स्वयं को दे दिया था और गर्व से इतराते फिर रहे थे.
अगले भाग में पढ़ें- तुम भी मां…’ कहतेकहते शिखा रो पड़ी.
बैठक में बैठी शिखा, राहुल के खयालों में खोई हुई थी. मंदमंद बहती हवा, खिड़की से भीतर आ कर उस के खुले हुए लंबे बालों की लटों से अटखेलियां कर रही थी. वह नहाने के बाद तैयार हो कर सीधे यहीं आ कर बैठ गई थी. उस का रूप उगते हुए सूरज की तरह बहुत ही खूबसूरत लग रहा था. सुनहरे गोटे की किनारी वाली लाल साड़ी, हाथों में ढेर सारी लाल चूडि़यां, माथे पर बड़ी सी बिंदी और मांग में चमकता हुआ लाल सिंदूर मानो सीधेसीधे सूर्य की लाली को चुनौती दे रहे थे.
घर के सब लोग सो रहे थे मगर शिखा को रातभर नींद नहीं आई थी. शादी के बाद वह पहली बार मायके आईर् हुई थी पैर फेरने. आज राहुल यानी उस का पति उस को वापस लिवाने आने वाला था. वह बहुत प्रसन्न थी.
उस ने एक भरपूर नजर बैठक में घुमाई. उसे याद आ रहा था वह दिन जब वह बहुत छोटी सी थी और अपनी मां के पल्लू को पकड़े हुए, सहमी सी, दीवार के कोने में घुसी जा रही थी. नानाजी यहीं दीवान पर बैठे अपनी रोबदार आवाज में अपना फैसला सुना रहे थे, ‘माला अब अपनी बच्ची के साथ यहीं रहेगी, हम सब के साथ. यह घर उस का भी उतना ही है, जितना तुम सब का.’ अपने बेटेबहुओं की तरफ देखते हुए उन्होंने यह कहा था.
वे आगे बोले थे, ‘यह सही है कि मैं ने माला का विवाह उस की मरजी के खिलाफ किया था क्योंकि जिस लड़के को वह पसंद करती थी, वह हमारे जैसे उच्च कुल का नहीं था, परंतु जयराज (शिखा के पिता) के असमय गुजर जाने के बाद उस की ससुराल वालों ने उस के साथ बहुत अन्याय किया. उन्होंने जयराज के इंश्योरैंस का सारा पैसा हड़प लिया. और तो और, मेरी बेटी को नौकरानी बना कर दिनरात काम करवा कर बेचारी का जीना हराम कर दिया है.
‘मुझे पता नहीं था कि दुनिया में कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है कि अपने बेटे की आखिरी निशानी से भी इस कदर मुंह फेर ले. मैं अब और नहीं देख सकता. इस विषय में मैं ने गुरुजी से भी बात कर ली है और उन की भी यही राय है कि माला बिटिया को उन लालचियों के चंगुल से छुड़ा कर यहीं ले आया जाए.’
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एक पल ठहर कर वे फिर बोले, ‘अभी मैं जिंदा हूं और मुझ में इतनी सामर्थ्य है कि मैं अपनी बेटी और उस की इस फूल सी बच्ची की देखभाल कर सकूं. मैं तुम सब से भी यही उम्मीद करता हूं कि तुम दोनों भी अपने भाई होने का फर्ज बखूबी अदा करोगे.’
यह कहते हुए नानाजी ने बड़े प्यार से उस का हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोदी में बिठा लिया था. उस वक्त वह अपनेआप को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी. घर के सभी सदस्यों ने इस फैसले को मान लिया था और उस की मां भी घर में पहले की तरह घुलनेमिलने का प्रयत्न करने लगी थीं. मां ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली थी. इस तरह से उन्होंने किसी को यह महसूस भी नहीं होने दिया कि वे किसी पर बोझ हैं.
नानाजी व नानी के परिवार की अपने कुलगुरु में असीम आस्था थी. उन के घरपरिवार में उन गुरुजी का बहुत मानसम्मान था. सब के गले में एक लौकेट में उन गुरुजी की ही तसवीर रहती थी. कोई भी बड़ा निर्णय लेने के पहले गुरुजी की आज्ञा लेनी आवश्यक होती थी. शिखा ने बचपन से ही ऐसा माहौल देखा था, सो वह भी बिना कुछ सोचेसमझे उन को ही सबकुछ मानने लगी थी. अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद उस की मां कुछ वक्त गुरुजी की तसवीर के सामने बैठा करती थीं. कभीकभी वह भी मां के साथ बैठती. उस की ख्वाहिश थी कि वह इतनी बड़ी अफसर बन जाए कि वह अपनी मां को वे सारे सुख और आराम दे सके जिन से वे वंचित रह गई हैं.
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खट की आवाज के साथ शिखा की तंद्रा भंग हो गई. उस ने मुड़ कर देखा, तेज हवा के कारण एक खिड़की अपने कुंडे से निकल कर बारबार चौखट पर टकरा रही थी. उठ कर शिखा ने उस खिड़की पर वापस कुंडा लगाया. आंगन में झांका तो शांति ही थी, घड़ी में देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे. सब अभी सो ही रहे हैं, यह सोचते हुए वह भी वहीं सोफे पर अधलेटी हो गई. उस का मन फिर अतीत की ओर भागने लगा.
जब तक नानाजी जिंदा रहे, उस घर में वह राजकुमारी और मां रानी की तरह रहीं. मगर यह सुख उन दोनों की जिंदगी में बहुत अधिक दिनों के लिए नहीं लिखा था. एक वर्र्ष बीततेबीतते अचानक ही एक दिन हृदयगति रुक जाने के कारण नानाजी का देहांत हो गया. सबकुछ इतनी जल्दी घटा कि नानी को बहुत गहरा सदमा लगा. अपनी बेटी व नातिन के बारे में सोचना तो दूर, उन्हें अपनी ही सुधबुध न रही. वे पूरी तरह से अपने बेटों पर निर्भर हो गईं. हालात के इस नए समीकरण ने शिखा और उस की मां माला की जिंदगी को फिर से वापस, कभी न खत्म होने वाले दुखों के द्वार पर ला खड़ा किया.
नानाजी के असमय देहांत और नानीजी के डगमगाते मानसिक संतुलन ने जमीनजायदाद, रुपएपैसे, यहां तक कि घर के बड़े की पदवी भी मामा लोगों के हाथों में थमा दी. अब घर में जो भी निर्णय होता, वह मामामामी की मरजी के अनुसार होता. कुछ वक्त तक तो उन निर्णयों पर नानी से हां की मुहर लगवाई जाती रही. उस के बाद वह रस्म भी बंद हो गई. छोटे मामामामी बेहतर नौकरी का बहाना बना कर अपना हिस्सा ले कर विदेश जा कर बस गए. अब बस बड़े मामामामी ही घर के सर्वेसर्वा थे.
नानाजी के रहते तो मामी ही सुबहशाम रसोई का काम देखती थीं. मां, जितना संभव होता, उन का हाथ बंटातीं और फिर शिखा को ले कर स्कूल निकल जातीं. इसी प्रकार रात का खाना भी मिलजुल कर बन जाता था. परंतु नानाजी के गुजर जाने के बाद धीरेधीरे मामी का रसोई में जाना कम होता जा रहा था. समय के साथ मामामामी का रवैया भी उस के और उस की मां के प्रति बदलने लगा था. अब मां का अपनी नौकरी से बचाखुचा वक्त रसोई में बीतने लगा था. मां ही सुबह उठ कर चायनाश्ता बनातीं. उस का और अपना टिफिन बनाते वक्त कोई न कोई नाश्ते की भी फरमाइश कर देता, जिसे मां मना नहीं कर पाती थीं.
अगले भाग में पढ़ें- ‘अरे बिटिया, क्या करना है इतना पढ़लिख कर ?
इन सब तरीकों में जैविक खाद बनाने की नाडेप विधि भी खास है. जैविक कंपोस्ट बनाने की इस नापेड विधि को महाराष्ट्र के किसान नारायण देवराव पंढरी ने विकसित किया. उन्हीं के नाम पर इस कंपोस्ट का नाम नाडेप रखा गया.
नाडेप कंपोस्ट की खूबी है कि इसे बनाने के लिए कम गोबर का इस्तेमाल होता है. शेष खेती का कूड़ाकरकट, कचरा, पत्ते व मिट्टी पशुमूत्र आदि ही इसे बनाने के काम में लाया जाता है.
यह खाद 90 से 120 दिन में तैयार हो जाती है. इस कंपोस्ट में जैविक रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के अलावा अनेक सूक्ष्म पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो हमारी खेती में अच्छी पैदावार के लिए बहुत उपजाऊ होते हैं.
नाडेप कंपोस्ट बनाने के लिए औसतन 12 फुट लंबाई, 5 फुट चौड़ाई और 3 फुट गहराई का टांका यानी ईंटों से बनाया गया चारदीवारी वाला टैंक, जिस में जगहजगह हवा के आनेजाने के लिए छेद छोडे़ जाते हैं, बनाया जाता है. इस में लगभग 3 से 4 माह की अवधि में उम्दा किस्म का कंपोस्ट तैयार हो जाता है.
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नाडेप बनाने के लिए सामान
खेती का बचाखुचा कचरा, जिस में पत्तियां, घासफूस, फसल अवशेष, सागसब्जियों के छिलके वगैरह लगभग 1,500 किलोग्राम, पशु का गोबर लगभग 300-400 किलोग्राम, छनी हुई खेत की मिट्टी लगभग 10-12 टोकरे, इस के अलावा पशु का मूत्र 2-3 बालटी और जरूरत के मुताबिक पानी. अगर खेती के अवशेष गीले और हरे हैं
तो कम पानी की जरूरत होगी. सूखे अवशेष होने पर लगभग 400 से 500 लिटर पानी चाहिए.
नाडेप कंपोस्ट
बनाने का तरीका
किसी छायादार जगह का चुनाव करें और उस जगह को एकसार कर के इस के ऊपर ईंटों से तय आकार का एक आयताकार व हवादार ढांचा बनाएं. इस से खाद जल्दी पकेगी, क्योंकि जीवाणुओं को हवा से औक्सीजन भरपूर मात्रा में मिल जाती है और कई प्रकार की बेकार गैसें बाहर निकल जाती हैं.
आयताकार ढांचे के अंदरबाहर की दीवारों को गोबर से लीप कर सुखा लें. इस के बाद टांके के अंदर सतह पर सब से पहले पहली तह 6 इंच तक हरे व सूखे पदार्थों जैसे घास, पत्ती, छिलकों, डंठल, खरपतवार वगैरह की बिछाएं. अगर नीम पत्तियां उपलब्ध हों तो इस में मिलाना फायदेमंद रहता है. नीम का इस्तेमाल अनेक जैविक कीटनाशकों में होता है.
दूसरी तह में 4-5 किलोग्राम गोबर को 100 लिटर पानी व 5 लिटर गौमूत्र में घोल बना कर पहली परत के ऊपर इस तरह छिड़कें कि पूरे घासपत्ते वगैरह भीग जाएं. इस के बाद गोबर की एक इंच की परत लगाएं.
तीसरी परत 1 इंच ऊंचाई की सूखी छनी हुई मिट्टी की लगाएं, फिर उस मिट्टी को पानी छिड़क कर अच्छी तरह गीला कर दें.
इस प्रकार क्रम को दोहराते हुए आयताकार ढांचे को उस की ऊंचाई से 1-2 फुट ऊपर तक झोंपड़ीनुमा आकार की तरह भर दें. तकरीबन 7-8 परतों में यह भर जाता है. अब इसे मिट्टी व गोबर की पतली 2 इंच की तह से लीप दें.
7 से 15 दिनों में आयताकार ढांचे में डाली हुई सामग्री ठसक कर 1-1.5 फुट तक नीचे आ जाती है. तब पहली भराई के क्रम की तरह ही फिर से इसे इस की ऊंचाई से डेढ़ फुट तक भर कर गोबर व मिट्टी के घोल से लीप दें.
100-120 दिनों में हवा के छिद्रों में देखने पर अगर खाद का रंग गहरा भूरा हो जाता है तो नाडेप खाद तैयार है. इसे मोटे छेद वाली छलनी से छान कर उपयोग में लाया जा सकता है.
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लाभ : इस तरीके में कम गोबर से अच्छी जीवाणुयुक्त, पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद बनाई जा सकती है.
कम खर्च में ही उत्तम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश व दूसरे पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद बड़ी मात्रा में तैयार हो सकती है.
जगहजगह पर बिखरा हुआ कूड़ाकचरा व खरपतवार को एक जगह इकट्ठा कर के खाद में बदला जा सकता है इस से प्रदूषण भी नहीं होता है.
नाडेप खाद बनाने का यह सब से सरल तरीका है, जिसे किसान थोडे़ समय में ही अपना कर लाभ कमा सकते हैं.इस प्रकार की खाद जमीन में जीवों की तादाद में बढ़वार कर के कार्बन की मात्रा को बढ़ाती है.
इस प्रकार की खाद को ईंटों की जगह पर लकडि़यों से भी तैयार कर सकते हैं. इस से किसान रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं के जाल से बाहर निकल सकता है.
उपरोक्त बताया गया तरीका पक्का नाडेप तरीका है. ढांचा बनाने के लिए ईंटों का इस्तेमाल होता है. कम खर्च में यह काम लकडि़यों द्वारा भी किया जा सकता है.
लकड़ी से बनाया जाने वाला नाडेप
यह नाडेप जमीन पर बनाए गए पक्के नाडेप की तरह ही बनाते हैं, किंतु इस में पक्की ईंटों की जगह बांस या लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. लकड़ी से इस को बनाते समय हवा के लिए स्थान इस में अपनेआप ही रहता है, फिर इस में पक्के नाडेप की तरह घासफूस से भराई करते हैं. खाद का पूरा निर्माण काम व इस को निकालने वगैरह का काम पक्के नाडेप की तरह ही होता है. यह नाडेप से बहुत ही सस्ता बनता है.
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सावधानियां
* नाडेप खाद के लिए ढांचे को छायादार जगह पर बनाएं.
* ढांचा बनाते समय छेद जरूर रखें, क्योंकि सूक्ष्म जीवाणुओं के लिए हवा का आनाजाना जरूरी होता है और कार्बन डाई औक्साइड व दूसरी गैसों के निकलने के लिए रास्ता चाहिए.
* नमी का खास खयाल रखें. पानी का छिड़काव समयसमय पर करते रहें.
* आयताकार ढांचे के ऊपरी भाग में दरारें आने पर समयसमय पर मिट्टी या गोबर से लिपाई कर दें.
* तैयार कंपोस्ट का भंडारण छायादार जगह पर बोरियों में करें. नमी के लिए बीच में कभीकभार हलके पानी का छिड़काव कर सकते हैं.
कलर्स के शो छोटी सरदारनी में इन दिनों परम की बीमारी के चलते गिल परिवार में घर का माहौल काफी गंभीर है. सीरियल में क्यूट और मस्ती करने वाला लड़का परम असल जिंदगी में काफी टैलेंटिड और समझदार है. आइए आपको दिखाते हैं कैसे छोटी सरदारनी की कास्ट को एंटरटेन करता है परम….
को-स्टार्स संग मस्ती करता है परम
परदे के आगे शांत और क्यूट दिखने वाला परम, परदे के पीछे अपने खाली समय में अपने को-स्टार्स के साथ मस्ती करने के साथ-साथ उनकी नकल भी करता है.
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ऐसे उतारी नानी कुलवंत कौर की नकल
इस वीडियो में अपने नकल उतारने का जलवा दिखाते हुए परम ने पहले अपनी नानी कुलवंत कौर की नकल उतारी और उनका फेवरेट डायलॉग ‘वंडरफुल जी वंडरफुल’ बोला. परम का ये अंदाज आपका दिल चुरा लेगा. इतना ही नहीं ये नन्हा शैतान अपने मेहर मम्मा और पापा की भी बहुत अच्छी नकल करता है.
सेट पर साइकिल चलाता है परम
परदे के पीछे परम पढ़ाई के साथ-साथ मस्ती करना नही भूलता. सेट पर होने के कारण वह बाहर नही खेल सकता, इसीलिए वह अपने खाली टाइम में सेट पर ही साइकिल चलाता रहता है. वहीं इसमें उसका साथ परम के औनस्क्रीन पापा यानी सरब देते हैं.
मेहर के साथ ऐसे समय बिताता है परम
मस्ती हो या पढ़ाई, परम हर चीज में आगे है. परम, हर किसी की मदद करने में विश्वास रखता है. इसीलिए उसे जब भी टाइम मिलता है वह अपनी औनस्क्रीन मम्मा, मेहर के साथ गुरूद्वारे में जाकर लोगों को लंगर खिलाता है. ऐसे में वह मेहर के साथ काफी समय बिताता है.
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औफस्क्रीन तो परम की शरारत बरकरार है, पर औनस्क्रीन उसकी हालत काफी गंभीर है. वहीं मेहर को भी परम की बीमारी के बारे में पता चल चुका है. अब देखना ये है कि आखिर परम को बचाने के लिए क्या करेंगे मेहर और सरब? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.
आज आपको दाल की चटनी बनाने की विधि बताते हैं. यह टेस्टी दाल की चटनी गर्मागर्म परांठे के साथ सर्व कर सकती है. दाल की चटनी बनाना भी बेहद आसान है.
सामग्री
2 टेबल स्पून चना दाल, रोस्टेड
2 टेबल स्पून मूंग दाल
2 टेबल स्पून साबुत धनिया
2 टेबल स्पून अरहर दाल, रोस्टेड
2 टी स्पून जीरा
2-3 साबुत लाल मिर्च
1/4 टी स्पून हींग
2 टेबल स्पून उड़द दाल, रोस्टेड
1( बीज निकलें हुए) इमली
स्वादानुसार नमक
1 टेबल स्पून तेल
1 टेबल स्पून सरसों
1/2 कप प्याज, बारीक कटा हुआ
10-12 (तड़के के लिए) कढ़ीपत्ता
बनाने की विधि
मृणालिनी आज बहुत खुश थी. उसकी थोड़ी सी कोशिश ने नोरा और उसके नन्हे से एडवर्ड का जीवन सलाखों के पीछे घुट-घुट कर खत्म होने से बचा लिया था. मृणालिनी जिसने अपराध की दुनिया में रहते हुए न जाने कितनी लड़कियों का जीवन बर्बाद किया, कितनों की जिन्दगी नरक बना दी, कितनी बच्चियों को उनके मां-बाप से छीन लिया, कितनी बच्चियों को देह के दलालों के हाथों नुचवाया-बिकवाया, उस अपराधिन ने शायद जीवन में पहली बार कोई पुण्य का काम किया था.
नोरा से जुदा होते हुए मृणालिनी के आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी. कुसुम, अनीता, मीना, चांदनी, सीमा, कुसुम सभी रो रही थीं. गोद में बेटे को लिये नोरा अपने सामान का छोटा सा बंडल लिये सबसे विदा ले रही थी. हर कैदी औरत उसे गले लगा कर भविष्य के लिए दुआएं दे रही थी. नोरा के बेटे से सभी हिलीमिली थीं. वह उन सबके लिए दिल बहलाने का खिलौना था. वह हंसता तो सब हंसतीं, वह खेलता तो सब उसके साथ खेलतीं… उसका जाना सबको उदास कर रहा था. एक अनोखा सा रिश्ता बन जाता है जेल की सलाखों में कैदियों के बीच… दर्द का रिश्ता.
जेल के गेट पर नोरा के वकील कैलाश मनचंदा अपनी गाड़ी में बैठे उसका इंतजार कर रहे थे. उनका जूनियर वकील अन्दर जेल अधिकारी के साथ नोरा की रिहाई की कार्रवाई पूरी कर रहा था. कुछ ही देर बाद नोरा अपने बेटे और जूनियर वकील के साथ जेल से बाहर आती दिखायी दी. आज उसके जिस्म पर अपनी वही साड़ी थी, जो उसने गिरफ्तारी के वक्त पहन रखी थी. जेल के दरवाजे से बाहर निकल कर उसने आसमान की ओर देखा और चंद सेकेण्ड्स के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं. शायद वह मन ही मन अपने ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी.
कैलाश मनचंदा ने उसको आते देखा तो कार से नीचे उतर आये. नोरा ने पास आकर उनका अभिवादन किया. कैलाश मनचंदा ने जेब से चॉकलेट निकाल कर उसके बेटे को दी. एडबर्ट ने खुशी-खुशी हाथ बढ़ा कर चॉकलेट ले ली. मनचंदा ने नोरा को गाड़ी में बैठने का इशारा किया तो वह झिझकते हुए बैठ गयी. गाड़ी फर्राटा भरते मनचंदा के आॅफिस की ओर रवाना हो गयी.
कोई आधे घंटे में कार कैलाश मनचंदा के आॅफिस पहुंच गयी. वहां उनकी पत्नी ने नोरा का स्वागत किया. उन्हें देखकर नोरा को कुछ राहत महसूस हुई. पता चला कि वह भी वकील हैं और ‘मनचंदा एंड मनचंदा’ फर्म की डायरेक्टर हैं. यह सब जेलर मैडम की कृपा थी कि शहर के इतने बड़े वकील नोरा की मदद कर रहे थे. कैलाश मनचंदा ने अभी तक नोरा से अपनी फीस तक नहीं ली थी. बल्कि उन्होंने उसका हैदराबाद जाने का टिकट भी करवा दिया था. आज रात ही उसकी ट्रेन थी.
‘तुम हैदराबाद पहुंच कर अपने घर जाकर पता करो कि वहां कौन रह रहा है? अगर वह बंद पड़ा है तो तुम उसे खुलवा कर अंदर जा सकती हो, क्योंकि वह तुम्हारा घर है. इसमें झिझकने की जरूरत नहीं है.’ कैलाश मनचंदा ने नोरा को सलाह दी.
‘जी…’ नोरा ने सिर हिला कर हामी भरी.
‘अगर वहां कोई और रह रहा हो, या उस घर को किसी को बेचा गया हो तो मुझे फोन करना… फिर मैं देखता हूं कि क्या किया जा सकता है… वहां पहुंच कर सबसे पहले अपने पति के बारे में पता लगाने की कोशिश करो… उसकी गिरफ्तारी के बगैर तुम्हारी बेगुनाही साबित नहीं हो पाएगी. जब तक केस चल रहा है तुम्हें हर महीने की पंद्रह तारीख को थाने पर आकर अपनी हाजिरी देनी होगी.’ मनचंदा ने उसको चेतावनी सी दी.
‘जी वकील साहब… आपकी फीस मैं घर पहुंचते ही भिजवा दूंगी.’ नोरा ने कहा.
‘अरे… उसकी जरूरत नहीं है… मुझे मेरी फीस मिल चुकी है….’ उन्होंने मुस्कुराते हुए नोरा को मना किया.
नोरा आश्चर्य से उनका चेहरा ताकने लगी. क्या जेलर मैडम ने पैसे दिये हैं… यह सोच कर वह जेलर मैडम के प्रति कृतज्ञता से भर उठी. उसके पास तो बस उतने ही पैसे थे जितने उसे जेल में काम करने के बाद मजदूरी के तौर पर मिले थे. हां, उसका मोबाइल फोन और कुछ गहने जरूर थे, जो उसने हैदराबाद से आने के वक्त पहन रखे थे. जेल से छूटने पर वह उसको वापस कर दिये गये थे. साथ ही कुछ दूसरा सामान भी वापस मिला था, लेकिन उसमें वह कैश नहीं था जो वह मकान का बयाना देने के लिए लेकर आयी थी.
रात ट्रेन में बैठते हुए नोरा का दिल बहुत बेचैन था. बच्चे के लिए बिस्कुट और दूध खरीद कर उसने बैग में रख लिये थे. पता नहीं हैदराबाद पहुंच कर उसको किन-किन समस्याओं का सामना अकेले करना है. काफी रात तक उसको नींद नहीं आयी. सुबह जब उसकी आंख खुली तो धूप निकल आयी थी. ट्रेन की सीट पर उसका बेटा उससे चिपका गहरी नींद में सो रहा था. देर शाम ट्रेन हैदराबाद पहुंची.
स्टेशन से बाहर कदम रखते हुए नोरा का दिल धाड़-धाड़ बज रहा था. अनेक आशंकाओं से वह घिरी हुई थी. ऑटोरिक्शा करके जब वह अपने घर के सामने पहुंची तो देखा कि फाटक पर बड़ा सा ताला पड़ा है. अंदर झांका तो बाउंड्री के भीतर लम्बी-लम्बी घास और झाड़ियां उगी हुई थीं. ऐसा लगता था जैसे सालों से वहां कोई नहीं आया. उसने आसपास नजरें दौड़ायीं. पास वाले घर का दरवाजा भी बंद था. उसने हिम्मत करके पड़ोसी घर की बेल बजायी. मिसेज शॉ आंखों पर मोटा चश्मा चढ़ाये बाहर आयीं तो दो तीन मिनट नोरा को देखकर कुछ बोल ही नहीं पायीं. फिर उन्होंने नोरा को गले से लगा लिया.
‘हम कितना इंतजार किया तुम्हारा… फ्रेडरिक बोला कि एक दिन तुम आकर अपने घर का चाबी ले जाओगी… आओ अंदर आओ… कहां गया था तुम इतने दिन के लिए….? और फ्रेडरिक भी अभी तक नहीं लौटा…?’ उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी.
नोरा आश्चर्य से उनकी बातें सुन रही थी. तो क्या उसके घर की चाबी मिसेज शॉ के पास है? अच्छा हुआ उसने उनकी घंटी बजा दी, वरना उसे पता ही नहीं चलता. चाबी उनके पास है… यानी उसका घर उसका ही है… किसी ने उस पर कब्जा नहीं किया…. वह सोचते हुए मिसेज शॉ के पीछे उनके ड्राइंग रूम में पहुंच गयी. बेटे को सोफे पर बिठा कर उसने मिसेज शॉ से पूछा, ‘क्या घर की चाबी आपके पास है? फ्रेडरिक देकर गया? फ्रेडरिक कहां का बोल कर गया? कब आने को बोला मिसेज शॉ?’
‘तुमको नहीं पता?’ उन्होंने आश्चर्य जताया.
‘मेरा एक्सीडेंट हो गया था मिसेज शॉ… मैं बहुत दिन तक हॉस्पिटल में थी…वहां से डिस्चार्ज होने के बाद मैं अपने रिलेटिव के पास चली गयी थी.’ नोरा ने झूठ बोला, ‘फ्रेडरिक ने कब आने को बोला है?’ वह जानने को उतावली थी कि फ्रेडरिक कहां गया है और कब आएगा?
मिसेज शॉ आराम से सोफे पर पसर गयीं. बोलीं, ‘फ्रेडरिक एक दिन आया और घर की चाबी तुम्हारे अंकल को देकर बोला कि वह कनाडा जा रहा है, उसके फादर का तबियत ठीक नहीं है. बोला कि तुम कहीं बाहर गयी हो, जब आओ तो वह चाबी तुम्हें दे दूं.’ मिसेज शॉ बोल कर रुक गयीं. फिर चंद सेकेंड के लिए आंखें बंद कर लीं. नोरा उत्सुकता से उनके आगे बोलने की प्रतीक्षा कर रही थी.
‘तुम्हारा अंकल रोज तुम्हारा रास्ता देखता था. मगर तुम नहीं आया, फिर एक दिन तुम्हारे अंकल को हार्ट अटेक पड़ा और चार दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद वह खुदा के पास चला गया, मगर जाने से पहले चाबी के बारे में बता कर बोला कि तुम जब आएगा तो चाबी तुमको देने का. मैं सोचता रहता कि पता नहीं तुम कब आएगा… कहीं ऐसा न हो कि तुम न आया और मैं भी मर गया तो कौन तुमको बताएगा कि चाबी किधर है.’ मिसेज शॉ बोलते-बोलते मुस्कुरा दीं.
‘थैंक यू मिसेज शॉ… आप नहीं जानतीं कि आज आपने मेरी कितनी मदद की है. मैं तो परेशान हो रही थी कि घर में कैसे जाऊंगी…’ नोरा ने मिसेज शॉ का धन्यवाद किया. वह सोच रही थी कि अच्छा हुआ कि उसने हिम्मत करके मिसेज शॉ के घर की बेल बजा दी. अगर वह यहां नहीं आती तो उसे पता ही नहीं चलता कि फ्रेडरिक देश छोड़ कर जा चुका है.
‘जब तुम गया था तब एक बार एक पुलिस वाला आया था फ्रेडरिक के बारे में पूछने… पर हम बोला कि सामने वाले घर में रहता है… लेकिन वह उसको वहां मिला नहीं… उसके एक हफ्ते बाद फ्रेडरिक कहीं से आया और तुम्हारे अंकल को चाबी देकर चला गया. तब हमने उसको बताया था कि उसको पुलिस वाला पूछ रहा था… मगर वह कुछ बोला नहीं… क्या बात थी?’ मिसेज शॉ ने पुरानी बात याद करते हुए नोरा से पूछा.
‘वो मेरा एक्सीडेंट हो गया था न आंटी… इसीलिए पुलिस आयी होगी बताने… फ्रेडरिक परेशान होगा इसलिए कुछ नहीं बोला होगा…’ नोरा ने फिर झूठ बोला.
मिसेज शॉ के घर कॉफी पीकर नोरा अपने घर की चाबी लेकर आ गयी. घर का दरवाजा खोलते हुए उसका दिल बड़ी जोर-जोर से धड़क रहा था. मिसेज शॉ ने जो बातें बतायी थीं उसका तो यही मतलब है कि पुलिस ने फ्रेडरिक को ढूंढने की कोई खास कोशिश नहीं की और वह बड़े आराम से देश छोड़ कर निकल गया. घर के अंदर सारी चीजें ज्यों की त्यों पड़ी थीं, जैसी वह पौने दो साल पहले छोड़ कर मेरठ गयी थी. हां, उन पर धूल और गंदगी का अम्बार लग गया था. इन पौने दो सालों में वहां परिन्दा भी नहीं फटका था. अलमारियां खुली हुई थीं, मगर उसमें सारा सामान ज्यों का त्यों रखा था. फ्रेडरिक सिर्फ अपना कुछ सामान लेकर ही गया था. नोरा की अलमारी में उसकी ज्वेलरी, पैसा, कपड़े, पासपोर्ट, सर्टिफिकेट्स, बैंक की पासबुक, चेकबुक सब वैसे ही पड़े थे.
नोरा ने वकील कैलाश मनचंदा को फोन करके सारी सिचुएशन बतायी. मनचंदा ने उसको उसके अधिकार बताते हुए कहा कि वह घर उसका है, वहां से उसे कोई बेदखल नहीं कर सकता, वह आराम से वहां रहे और फ्रेडरिक कभी लौटे तो तुरंत उन्हें सूचित करे ताकि पुलिस उसको अरेस्ट करके सारी पड़ताल कर सके और नोरा को कोर्ट में निर्दोष साबित किया जा सके.
नोरा ने उन्हें फ्रेडरिक के भाई और पिता का कनाडा का एड्रेस दिया ताकि वह मेरठ पुलिस को सूचित कर दें. हालांकि नोरा ने अपने अरेस्ट के वक्त भी फ्रेडरिक के पिता और भाई का कनाडा का एड्रेस पुलिस को दिया था, पर तब भी फ्रेडरिक को खोज निकालने की कोई खास कोशिश नहीं की गयी थी, बस उसे ही अरेस्ट करके जेल में ठूंस दिया गया था. जैसे सारा दोष उसी का था. जैसे वही ड्रग्स का धंधा करती थी.
खैर अपना घर वापस पाकर नोरा को बेइन्तहा खुशी महसूस हो रही थी. कम से कम उसके और उसके बेटे के सिर पर छत तो है. वह इसके लिए फ्रेडरिक की अहसानमंद थी कि उसने भागने से पहले यह घर किसी को बेचा नहीं. पूरा घर साफसुथरा और दुरुस्त करने में नोरा को हफ्ता भर लग गया. मजदूर बुला कर उसने बाहर उग आयी बड़ी-बड़ी झाड़ियां कटवायीं. थोड़ा रंगरोगन करवाया. इस बीच उसने कई बार कनाडा फोन भी मिलाया मगर किसी ने उठाया नहीं. उसने फ्रेडरिक के मोबाइल फोन पर भी कई बार कॉल की, मगर वह भी नहीं मिला. लगता है उन लोगों ने फोन, घर सबकुछ बदल लिया है. अगर पुलिस थोड़ी कोशिश कर लेती तो कनाडा पुलिस से सम्पर्क करके उन लोगों तक जरूर पहुंच जाती, लेकिन मेरठ पुलिस ने अपना काम ठीक से किया ही नहीं.
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खैर, नोरा अब जेल की सलाखों से आजाद थी. उसको पता था कि केस अभी लम्बा चलेगा. लेकिन कैलाश मनचंदा जैसा काबिल वकील अब उसके केस को देखेगा, तो दुबारा जेल जाने की नौबत नहीं आएगी, इस बात की उसे उम्मीद थी.
तीन साल बीत गये हैं. नोरा का बेटा अब स्कूल जाने लगा है. नोरा भी पास के एक स्कूल में नर्सरी टीचर के रूप में काम कर रही है, ताकि दोनों का खर्चा चल जाए. इसके अलावा वह घर में भी बच्चों की ट्यूशन लेती है. नोरा एक साल तक हर महीने की पंद्रह तारीख को मेरठ थाने पर हाजिरी देने जाती रही, बाद में मनचंदा ने कोर्ट से तीन महीने में एक बार का समय मुकर्रर करवा दिया. मनचंदा की कोशिश से ही पुलिस पर कोर्ट की फटकार के बाद फ्रेडरिक को ढूंढने के लिए कोशिशें कुछ तेज हुई हैं. नोरा को उम्मीद है कि पुलिस जल्दी ही फ्रेडरिक को ढूंढ निकालेगी और तब उस पर लगा दाग हटेगा. वह तब ही निर्दोष साबित हो सकेगी जब फ्रेडरिक अपना जुर्म कबूलेगा. नोरा को उम्मीद है कि अपने बच्चे का मुंह देख कर फ्रेडरिक सच कबूल लेगा… उम्मीद पर दुनिया कायम है…. नोरा भाग्यशाली है कि उसको मृणालिनी, जेलर मैडम, वकील कैलाश मनचंदा जैसे लोग मिल गये और वह सलाखों से बाहर निकल पायी, वरना ऐसे कितने ही कैदी सलाखों में सिसक रहे हैं, जिनके बाहर आने की उम्मीद दम तोड़ चुकी है.
बड़ी मैडम को खत दिये तीन दिन बीत चुके थे. अभी तक उधर से कोई संदेश नहीं आया था. पता नहीं बड़ी मैडम ने उसके खत को गम्भीरता से लिया भी या नहीं. पता नहीं पढ़ा भी या नहीं. नोरा यह सब सोच-सोच कर हताश हो रही थी. मृणालिनी भी चिन्तित थी. अगर बड़ी मैडम ने मदद न की तो फिर नोरा को जेल से बाहर निकलने में बहुत वक्त लग जाएगा. दो साल, चार साल या और भी ज्यादा. नोरा और मृणालिनी इन्हीं विचारों में गुम बैरक में बैठी थीं.
‘लगता है उन्होंने खत नहीं पढ़ा. या पढ़ कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया होगा.’ नोरा ने मृणालिनी से अपनी चिन्ता व्यक्त की.
‘बड़ी अधिकारी हैं, समय न मिला होगा, धीरज रख, कुछ न कुछ जरूर होगा.’ मृणालिनी ने नोरा को ढांढस बंधाया. ‘अगर उधर से कुछ न हुआ तो मैं उस छोटे साहब से बात करूंगी, जो हमें लेकर उस दिन के कार्यक्रम में गया था. बस उसे अपने काम के लिए थोड़ा पटाना पड़ेगा.’
नोरा और मृणालिनी बातें कर ही रही थीं कि अचानक एक सेवादार ने बैरक के बाहर से नोरा का नाम लेकर पुकारा. नोरा उठ कर बाहर गयी तो बोला, ‘चल साहब बुला रहे हैं.’
मृणालिनी नोरा के पीछे-पीछे गयी. सेवादार को ऐसा कहते सुना तो सशंकित होकर पूछ बैठी, ‘कौन साहब बुला रहे हैं इसको?’
सेवादार ने पलट कर जवाब दिया, ‘इसको जेलर साहब के ऑफिस ले जाने का हुक्म आया है. बड़े साहब गाड़ी से भेजेंगे. साथ में यहां की सेवादारनी जाएगी.’ वह कहकर चल पड़ा. नोरा ने पलट कर मृणालिनी को देखा तो मृणालिनी ने उसको जाने के लिए ठेला, ‘जा… जा… लगता है तेरा काम हो गया…’
नोरा जल्दी से बच्चे को उठाकर उस सेवादार के पीछे लपकी. सेवादार उसको लेकर जेल अधिकारी के ऑफिस में पहुंचा. वहां एक अधेड़ उम्र की सेवादारनी मौजूद थी. जेल अधिकारी ने नोरा से सेवादारनी के साथ नई जेलर साहिबा के ऑफिस में जाने का हुक्म सुनाया. बोले, ‘उस रोज तेरा गीत जेलर सर मैडम को बहुत पसन्द आया. तुझे शाबासी देने को बुला रही हैं. इसके साथ गाड़ी में चली जा.’
सेवादारनी नोरा को लेकर चल पड़ी. पूरी जेल अन्दर भी कई भागों में बंटी हुई थी. एक तरफ पुरुष कैदियों के लिए बैरक बने थे, दूसरी तरफ महिला कैदियों के लिए. दोनों भाग ऊंची-ऊंची दीवारों से अलग किये गये थे. हर भाग में तगड़ी सिक्योरिटी थी. बीच-बीच में अफसरों के आॅफिस बने थे. जगह-जगह दरवाजों पर तमिल गार्ड तैनात थे. गेट पर पहुंच कर सेवादारनी ने वहां मौजूद गार्ड को आदेश का कागज दिखाया नोरा और बच्चे की तलाशी करवा कर बाहर लायी. बाहर गाड़ी खड़ी थी. वह दोनों को लेकर जेल की गाड़ी में बैठ गयी. जेलर का ऑफिस इसी जेल के दूसरे छोर पर था. एकड़ों में बने इस जेल में एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस तक जाने के लिए गाड़ी लेनी पड़ती थी. पंद्रह मिनट बाद नोरा जेलर साहिबा के सामने खड़ी थी. सेवादारनी को बाहर भेज कर जेलर मैडम ने उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहा. वह हिचकिताती सी बच्चे को लेकर उनके सामने कुर्सी पर बैठ गयी. मेज पर उसकी अंग्रेजी में लिखी चिट्ठी पड़ी थी.
‘तुम्हारी चिट्ठी पढ़ी. नोरा नाम है तुम्हारा? हैदराबाद की हो?’ जेलर ने सवाल किया.
‘जी…’ नोरा ने घिघियायी हुई आवाज में जवाब दिया. गोदी में चढ़ा उसका बेटा टुकुर-टुकुर जेलर को ताक रहा था.
जेलर ने अपनी मेज की ड्रॉर से एक बिस्कुट का पैकेट निकाल कर उसके बेटे को दिया. उसने हाथ बढ़ा कर खुशी-खुशी बिस्कुट का पैकेट ले लिया. नोरा जेलर की इस स्नेहमयी हरकत से थोड़ी नॉरमल हुई.
जेलर बोली, ‘घबराओ मत… मुझे पूरी बात बताओ. कितने समय से बंद हो? क्या तुम्हारे परिवार ने तुम्हारी जमानत कराने की कोशिश नहीं की?’
‘डेढ़ साल से ज्यादा हो गये हैं. मेरा कोई नहीं है. मेरे मां की डेथ हो चुकी है. फ्रेडरिक… मेरे पति ने मुझे फंसाया है… मुझे नहीं पता था कि उसने मेरे सामान में कोकीन रखा था. मैं तो ये भी नहीं जानती कि वह इस तरह का काम करता है. मैं उस वक्त दो महीने की प्रेगनेंट थी और उसके कहने पर मेरठ में मकान देखने आयी थी. मैं अभी तक इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रही हूं कि उसने मुझे यूज किया, मुझे फंसाया, मुझे गुनहगार बना दिया, अब वह गायब है, उसका कुछ पता नहीं चल रहा है. पता नहीं पुलिस उसे ढूंढ भी रही है या नहीं…’
‘हूं…’ जेलर मैडम उसकी बातें सुन कर थोड़ी चिन्तित दिखीं. ‘कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या हुआ…?’ उन्होंने सवाल किया.
‘मैडम डेढ़ साल होने को आया, मेरा केस अभी तक कोर्ट के पटल पर भी नहीं पहुंचा है… जब पुलिस ने गिरफ्तार किया था, बस तभी मुझे कोर्ट में पेश किया गया था, उसके बाद मुझे जेल भेज दिया गया और मैं तबसे यहीं हूं, मेरे मामले में कुछ भी नहीं हो रहा है…. आप प्लीज मेरी मदद कर दीजिए… मैं आपका अहसान कभी नहीं भूलूंगी… प्लीज मैडम….’ वह रो पड़ी.
जेलर अपनी कुर्सी से उठ कर उसकी ओर आयीं और स्नेह से उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, ‘तुम्हारी मदद करने के लिए ही मैंने यहां बुलाया है. तुम्हारा लेटर पढ़ कर ही मुझे काफी कुछ समझ में आ गया था. तुम इनोसेंट लगती हो. अच्छे परिवार की पढ़ीलिखी लड़की हो. मुझसे जो मदद होगी मैं करूंगी, बाकी खुद को निर्दोष साबित करना तुम्हारे ऊपर है. मेरे एक वकील दोस्त हैं, उन्हें बुलाया है, बस आते ही होंगे. उन्हें अपनी पूरी बात बताओ. वह तुम्हारा केस देखेंगे.’
‘थैंक्यू मैडम… आपका बड़ा उपकार होगा. मेरे पास अभी पैसे नहीं हैं, लेकिन अगर वह मेरी जमानत करा देंगे तो हैदराबाद जाकर मैं पैसे का इंतजाम कर लूंगी.’
‘पैसे की चिन्ता मत करो. बाद में उनको दे देना.’ जेलर ने कहा. ‘मैं जानती हूं जेलों में ऐसे हजारों गरीब कैदी हैं, जिनके मामले सालों से कोर्ट की पटल पर ही नहीं पहुंचे हैं. उनमें से बहुतेरे निर्दोष हैं. कितने तो ऐसे हैं जिनके घरवालों को ही नहीं पता कि वह यहां बरसों से बंद हैं, पर हम सबके लिए क्या कर सकते हैं? तुमने अपनी व्यथा मुझ तक चिट्ठी के जरिए जिस तरह पहुंचायी उसे पढ़कर मेरा दिल तड़प उठा. तुम वाकई अपने पति की साजिश का शिकार लगती हो. बाहर निकल कर फिर उसके झांसे में मत फंसना. मिल जाए तो तुरंत पुलिस के हवाले करना.’
‘जी मैडम…’ नोरा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया. तभी दरवाजे पर खटखट हुई. सेवादार के साथ एक सज्जन अन्दर प्रविष्ठ हुए. लम्बे रोबदार कदकाठी वाले उस व्यक्ति को देखते ही जेलर लपक कर हाथ मिलाने के लिए बढ़ीं. नोरा भी बेटे को गोद में लिये कुर्सी से खड़ी हो गयी. उसने भी आगन्तुक का अभिवादन किया. जेलर ने उनको सम्मान के साथ बिठाया और नोरा से उनका परिचय कराया.
नोरा को पता चला कि वह शहर के प्रतिष्ठित वकील हैं. बड़े और बेहद नामी वकील – कैलाश मनचंदा.
कैलाश मनचंदा ने नोरा से उसकी पूरी कहानी सुनी. उन्होंने जेलर मैडम से वादा किया कि वह नोरा की हेल्प करेंगे. उसके बाद वह एक दिन फिर जेल में आये और उन्होंने नोरा से कुछ पेपर्स पर उसके हस्ताक्षर लिये. एक महीने के अन्दर नोरा का केस कोर्ट के पटल पर आ गया. दूसरी सुनवायी के बाद नोरा को इस शर्त पर कोर्ट से जमानत मिल गयी कि वह देश छोड़ कर नहीं जाएगी और हर महीने मेरठ थाने पर आकर अपनी हाजिरी दर्ज कराएगी.
जमानत मिलने की बात सुनते ही नोरा खुशी के मारे दहाड़े मार-मार कर रोने लगी. वह मृणालिनी से लिपट कर ज़ार-ज़ार रोये जा रही थी. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जेल की सलाखों से उसे आजादी मिल रही है. मृणालिनी के दिलासा देने पर वह काफी देर बाद नॉरमल हुई. उसके दिमाग में भविष्य की योजनाएं चलने लगीं थीं. हैदराबाद का वह घर आंखों के सामने नाचने लगा था, जहां वह फ्रेडरिक के साथ रहती थी. उस घर में उसकी ज्वेलरी, कपड़े, सर्टिफिकेट्स, पैसा, सामान सब था. पता नहीं वह घर उसे मिलेगा या नहीं? उसकी चिन्ता बढ़ गयी थी. कहीं फ्रेडरिक वह घर बेच कर भाग गया हो तो वह क्या करेगी? अगर उस घर में कोई और रह रहा होगा तो वह कैसे बताएगी कि यह उसका घर है? अगर वह घर उसे नहीं मिला तो उसको अपनी मां की आंटी के घर जाना होगा. वह आंटी तो बहुत बूढ़ी हो चुकी होंगी, पता नहीं मुझे पहचानेंगी या नहीं? पता नहीं वो जीवित भी हैं या नहीं? बहुत सारे सवाल नोरा के दिमाग में आंधी की तरह चल रहे थे.
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उस रात वह काफी देर तक मृणालिनी के पास बैठी रही और अपनी चिन्ताएं बताती रही. मृणालिनी ने उसे हौंसला दिया. कहा, ‘पहले वहां जाकर देख. हो सकता है वह घर बंद ही पड़ा हो. तेरा इन्तजार ही कर रहा हो. बेकार इतनी टेंशन ले रही है. पहले यहां से तो बाहर निकल फिर रास्ते अपने आप ही दिखने लगेंगे. यहां से निकल कर सीधी रेलवे स्टेशन जाना और ट्रेन पकड़ कर हैदराबाद. मेरा दिल कहता है तुझे तेरा घर जरूर मिलेगा.’
मृणालिनी ने जिस विश्वास से यह बात कही थी उसने नोरा के दिल से कुछ हद तक नकारात्मक बातें निकाल दीं. वह शांति से बेटे को सीने से चिपका कर सो गयी.
मृणालिनी ने नोरा को बहुत अच्छी तरह समझा दिया था कि ग्रुप में महिला कैदियों के साथ गाना गाते-गाते उसे उठ कर लोकनृत्य के स्टेप्स करते हुए जेलर मैडम के पास जाना है और उनके गले में माला पहना कर चुपके से एक खत उनके हाथ में पकड़ा देना है. यही एक तरीका है बड़ी मैडम तक अपनी बात पहुंचाने का. वही कुछ रास्ता निकालेंगी ऐसा मृणालिनी को विश्वास था. वरना यहां के सेवादार और दूसरे अधिकारी कैदियों को कभी भी बड़े अधिकारी के सम्पर्क में नहीं आने देते हैं और गरीब कैदी सालों कोर्ट की कार्रवाई शुरू होने की बाट ही जोहते रह जाते हैं.
मृणालिनी के कहने पर नोरा ने अपनी पूरी आपबीती एक खत में लिख कर रख ली थी, साथ ही बड़ी मैडम से निवेदन किया था कि वह उसके लिए कोई अच्छा वकील कर दें, जो उसका पक्ष कोर्ट में ठीक से रख सके और उसे किसी तरह जमानत मिल सके.
दूसरे दिन जेल नम्बर चार में काफी गहमागहमी थी. नई जेलर के स्वागत का शानदान इंतजाम कैदियों और जेल अधिकारियों ने मिलजुल कर किया था. कई तख्त जोड़ कर एक बड़ा मंच बना था, जिस पर बड़े अधिकारियों के बैठने के लिए कुर्सियां डाली गयी थीं. सामने भाषण देने के लिए एक माइक भी लगा था. पूरे मंच को फूलों से सजाया गया था. मंच के आगे रंगारंग कार्यक्रम के लिए जगह बनायी गयी थी और उसके पीछे दूर तक शामियाना लगाया गया था. कैदियों के बैठने के लिए जमीन पर दरियां बिछायी गयी थीं. सब कुछ अनुशासित तरीके से हो रहा था. एक तरफ मेजों पर नाश्ते का इंतजाम था. कुछ कैदियों को वहां की ड्यूटी दी गयी थी. वे मुस्तैदी से ग्लास, प्लेटें वगैरह सजाने में लगे थे. मृणालिनी और नोरा के साथ बीस कैदी औरतें उधर से आयी थीं. बाकी अन्य बैरकों से आये कैदी थे. सभी जमीन पर कतारों में बिठाये जा रहे थे.
नोरा भी गोद में बेटे को लेकर वहां कतार में बैठ गयी. उसके पास फूलों की एक टोकरी थी. प्लानिंग के अनुसार उसे फूलों की टोकरी लेकर गीत मंडली से निकल कर डांस करते हुए मंच की तरफ जाना था और चारों ओर फूल बिखेरते हुए बड़ी मैडम के पास पहुंच कर उनको हार पहनाने के बहाने चुपके से उनके हाथ में वह खत पकड़ा देना था.
नोरा के मन में काफी घबराहट थी. मृणालिनी ने उसे खूब हिम्मत बंधायी थी. कहा था कि यही मौका है अपनी बात उच्च अधिकारी तक पहुंचाने का. वह चाहेंगी तो अच्छा वकील मिल जाएगा, वरना सरकारी वकील सालों जमानत नहीं होने देगा. नोरा इस मौके को किसी हाल में छोड़ना नहीं चाहती थी. उसे अपने बेटे के लिए यहां से मुक्ति चाहिए. वह निर्दोष है. उसे फंसाया गया है. जिन्होंने उसे फंसाया है उन्हें पुलिस आज तक ढूंढ नहीं पायी. उसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. यह तमाम बातें उसने खत में लिख डाली थीं. बस अब वह खत जेलर मैडम तक पहुंचाना था.
कुछ ही देर में कार्यक्रम शुरू हो गया. कई जेल अधिकारियों के साथ नयी जेलर मंच पर पहुंच गयीं थीं. उन्होंने सबका अभिवादन किया और कुर्सी पर विराजमान हो गयीं. नोरा और मृणालिनी पहली बार इतने बड़े अधिकारियों को अपने सामने देख रही थीं. मृणालिनी ने नोरा का हाथ दबाकर धीरे से कान में कहा, ‘वह जो नीली साड़ी में बीच में बैठी हैं, वही हैं, उन्हीं के हाथ में खत देना.’ नोरा ने सिर हिला कर हामी भरी.
एक अधिकारी ने माइक संभाला और नई जेलर मैडम का परिचय देते हुए उन्हें दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया. नई जेलर ने कैदियों को जीवन में सुधार और नये जीवन की शुरुआत पर एक बढ़िया भाषण दिया. जेल में कुछ नये कार्यक्रमों को भी शुरू करने की बात कही. उनके ओजस्वी भाषण पर बीच-बीच में कई बार तालियों की गूंज लहरायी. नोरा में थोड़ी हिम्मत आयी. उनके कार्यक्रम की बारी बस आने को थी.नोरा ने अपना बेटा पीछे बैठी एक महिला की गोद में दे दिया. वो भी कार्यक्रम को बड़ी दिलचस्पी से देख रहा था. ये सब उसके लिए आज बड़ा नया नया सा था. एक कैदी ने कई बॉलीवुड स्टार्स और नेताओं की बड़ी अच्छी मिमिक्री की. उसके बाद ग्रुप डांस हुआ. इसके बाद मृणालिनी अपनी कैदी साथियों के साथ मंच के आगे पहुंच गयी. चंद्राकार खड़ी कैदियों में बीचोंबीच नोरा कमर पर फूलों की टोकरी लिये खड़ी थी. सभी महिलाएं साफ-सुथरी साड़ियों में फूलों के गहनों से सजी हुई थीं. मंच पर माइक से संचालक ने उनके कार्यक्रम की जानकारी दी. एक लोकगीत सुमधुर स्वरों में शुरू हुआ. साथ ही साथ हाथों से लोकनृत्य की भावभंगिमा के साथ कुछ कैदी महिलाओं ने पोज भी दिये. गीत कर्णप्रिय था. गीत की थाप पर बड़ी मैडम भी ताली बजा रही थीं. आखिरी अंतरा शुरू हुआ तो नोरा डांस करते हुए चारों तरफ गुलाब की पंखुड़ियां उछालते हुए मंच की ओर बढ़ चली. कमर पर फूलों की टोकरी लिए वह बिल्कुल किसी मालिन सी लग रही थी. मंच पर पहुंच कर उसने सभी अतिथियों के ऊपर फूलों की बरसात कर दी और फिर बीच में पहुंच कर उसने बड़ी मैडम के सामने डलिया जमीन पर रख कर उसमें रखा एक खूबसूरत फूलों का हार उठाकर उनके गले में पहना दिया. हार पहनाते वक्त जब उसका हाथ नीचे आया तो उसमें दबा कर पकड़ा गया अपना खत उसने मैडम के हाथों में दे दिया. किसी की नजर उसकी इस हरकत पर नहीं पड़ी. सब तालियां बजाने में व्यस्त थे. बस बड़ी मैडम ने सवालिया नजरों से उसकी आंखों में देखा. वहां दो आंसू बस लुढक पड़ने को तैयार खड़े थे. बड़ी मैडम ने उसका खत अपनी मुट्ठी में छिपा लिया. नोरा ने झुक कर उनके पैर छुए, अपनी फूलों की टोकरी उठायी और उसी तरह डांस करती हुई वापस अपनी साथी कैदियों के पास लौट आयी.
कार्यक्रम की समाप्ति के बाद भोज हुआ. सभी अधिकारियों के खाने के बाद वहां उपस्थित कैदियों को भी भोजन परोसा गया. फिर सभा विसर्जित हो गयी. नोरा और मृणालिनी अन्य कैदियों के साथ गाड़ी में बैठ कर अपनी बैरकों में वापस आ गयीं. उस रात न नोरा को नींद आयी और न ही मृणालिनी को. दोनों रात भर यही सोचती रहीं कि उस खत को पढ़ने के बाद क्या बड़ी मैडम की ओर से कोई मदद मिलेगी, या उनका सारा प्रयास विफल जाएगा.