अधिकतर भारतीय जानते ही नहीं कि संस्कृति है क्या. जिसे वे अपनी संस्कृति बता रहे हैं, क्या वह उन की है? पश्चिम की नग्नता क्या उन की संस्कृति थी? आज है, तो यही दर्शाता है कि उन्होंने अपनी जनता को कूपमंडूकता से बाहर निकाला है, जो भारतीयों को आज भी नसीब नहीं हुआ, तभी तो पश्चिम की संस्कृति को अपसंस्कृति नाम देते हैं.

संस्कृति एक व्यापक शब्द है जिस से आदमी के रहनसहन, बोलने, बात करने का तरीका, यानी हमारी पूरी दिनचर्या प्रभावित रहती है. जो लोग टीवी सीरियलों को हमारी संस्कृति के विपरीत बताते हैं, क्या उन्हें अपनी संस्कृति का पता है? शायद नहीं. क्योंकि हमारी अपनी कोई संस्कृति है ही नहीं.

हम जिसे अपनी संस्कृति मानते हैं, वह बाहर से आई है. बोलने, बात करने, पढ़नेओढ़ने, खानेपीने, यहां तक कि ‘सौरी’, ‘थैंक्यू’ जैसे शब्दों का प्रयोग करने तक की हमें तमीज नहीं थी. आज भी सड़कों पर गाड़ी से बरसाती पानी के छींटे मारने में हमें संकोच नहीं होता. लाइन तोड़ कर टिकट खरीदने में हम अपनी शान सम झते हैं. ट्रेनों में मूंगफली के छिलके फेंक कर गंदा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हम भेड़ हैं. भेड़ की कोई संस्कृति नहीं होती. गड़रिया जिधर धकेलता है, हम उधर ही भागते हैं.

पढ़ालिखा तबका, जो अपने को अंगरेज की औलाद सम झता है, वह भी सिर्फ दिखावे कि लिए ‘थैंक्यू’ या ‘सौरी’ बोलता है. जरा सोचिए, अंगरेजों के आने से पहले, क्या हम किसी को थैंक्यू बोलते थे?  क्या सौरी कहना या अपनी गलती मानना हम अपनी शान के खिलाफ नहीं सम झते थे? आज भी सौरी महज औपचारिकता है वरना अपटूडेट होने के बाद भी अंदर से हम अभद्र ही हैं.

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