भारत में पुराने जमाने से मेहंदी का इस्तेमाल प्रसाधन के रूप में होता आया है. मेहंदी का प्रयोग शादीविवाह, दीवाली, ईद, क्रिसमस औैर दूसरे तीजत्योहार वगैरह पर लड़कियां और सुहागिन औरतें करती हैं.

ऐसा माना जाता है कि मेहंदी का प्रयोग प्राचीन मिस्र के लोग भी जानते थे. यह समा जाता है कि मेहंदी का प्रयोग शीतकारक पदार्थ के रूप में शुरू हुआ.

प्राचीनकाल से ही मेहंदी की पत्तियां तेज बुखार को कम करने और लू व गरमी के असर को दूर करने में इस्तेमाल होती रही हैं.

मेहंदी का वैज्ञानिक नाम ‘लासोनिया इनर्मिस’ है, जो मोनोटाइप कुल से संबंधित है. यह पौधा आमतौर पर उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी पश्चिमी एशिया का देशज है. इसे संस्कृत में मंडिका, रक्तगर्मा, रंगागी, अरबी में हिना, अलखन्ना, हिंदी में मेहंदी, बंगाली में महेंदी, मेंदी, मराठी में मेंधी, गुजराती में मेदी, मेंदी, तेलुगु में गोरंती, तमिल में मारियांडि, मारुथानी, कन्नड़ में मलीलांची, गोरंत, मलयालम में मैलांची, पोंटलासी, उडि़या में बैंजाति, कश्मीर में मोहूज, पंजाब में मेंहदी, मुंडारी में भिंदी या बिंड के नाम से इसे जाना जाता है.

यह पौधा छोटीछोटी पत्तियों वाला बहुशाखीय और ाड़ीनुमा होता है और इस का उत्पादन पर्सिया, मेडागास्कर, पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया में होता है.

भारत में मेहंदी की खेती आमतौर पर पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है. इस के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण केंद्र हरियाणा में गुड़गांव, फरीदाबाद व गुजरात के सूरत जिले में बारदोलीर व माधी है, जहां मेहंदी की पत्तियों के कुल उत्पादन का 87 फीसदी हासिल होता है.

राजस्थान में मेहंदी का उत्पादन पाली जिले की सोजत और मारवाड़ जंक्शन तहसीलों में होता है और सोजत कसबे में मेहंदी पाउडर और पैस्ट बनाने का काम होता है. सोजत की मेहंदी देशविदेश में काफी मशहूर है. इस की खेती रंजक प्रदान करने वाली पत्तियों की वजह से ही की जाती है.

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