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आगरा में जातीय भेदभाव, समाज का आईना

शहर में ट्रेन आई, लोगों ने वाह वाही मचाई. कहा की नया दौर आया है. पुराने बंधन, दकियानूस अब ख़त्म होने को हैं. साल बीते लेकिन कहे अनुसार बदलाव नहीं दिखे. फिर काली तारकोल की सड़कें बिछीं, सड़कों के किनारे रोड लाइट लगीं, शहर जगमग हुआ. लोगों ने कहा कि विकास हुआ. फिर यह सड़कें शहर से होकर गांव में चिपकने लगी तो शहरी बोले अब दकियानूस की पुरानी व्यवस्था ढर्रा के गिर जाएगी. साल बीते फिर भी कुछ नहीं हुआ. फिर शहरों के उन्ही सड़कों के ऊपर से चीरती हुई मेट्रो बनी, किनारों में माल, सिनेमा हॉल, पिज़्ज़ा हट आया तो अब शहरी भले लोग दकियानूस और पुरानी व्यवस्था की बात करना ही छोड़ दिए. अब वे घर में बैठ कर एंड्राइड फोन के एक टिक से “सब चंगा सी” की पालिसी में दिन रात लग गए.

देश में पूंजीवाद की वाहवाही में लगे लोग गांव में अभी भी चल रही उन सामंती व्यवस्थाओं पर चुप रहने लगे है जिनसे आँख मिलाने की हिम्मत अब बची नहीं है. आँख मिलाएंगे तो कैसे, पिछले 6 साल से बने फर्जी राष्ट्रवाद का गुब्बारा फूट न जाएगा? भारत मां के हम सभी सपूत हट कर “ब्राह्मण, बनिया और राजपूत” तक ठहर न जाएगा? जो वन नेशन की बात तो करता है, लेकिन इक्वल सिटिज़न कहने से बिदकता है. इसलिए एक तरीका बना दिया है कि उन मसलों पर ध्यान ही नहीं देना जो दोगली राष्ट्रवाद के महल को तहसनहस करे.

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खैर, दिल्ली में बैठ कर सोशल मीडिया पर तैरते हुए एक वीडियो मेरे पास तक पहुंची. वीडियो में एक महिला के शव को सजी सजाए तैयार चिता से लोग हटाते दिखे. लगा भारत देश महान है तो हिन्दू संस्कृति में कोई परंपरा होगी जिसमें चिता से एक दो बार शव को हटाया या रखा जाता होगा, या यह भी हो सकता है मृत शरीर का अंतिम क्रियाक्रम करने के लिए कोई सस्ता नौसिखिया पंडित चला गया हो जिसने दिशाओं का ध्यान रखे बगैर गलत ढंग से शव को चिता में लेटाया हो और लताड़ पड़ने के बाद फिर से पोजीशन बदल रहा हो.

लेकिन नहीं, मैं गलत था. शहर में रह कर “सब चंगा सी” का भूत मेरे दिमाग पर भी चढ़ा था. थोडा खबरे टटोली तो पता चला यह शव दलित महिला का है. जो मरने के बाद भी जातीय उत्पीडन झेल रही है. मामला यह कि महिला की मौत 19 जुलाई को हुई और शव को जलाने के लिए पास के एक शमशानघाट ले गए. अब सरहदों ने जैसे देशों के बटवारे किये है वैसे ही देश में जातियों ने लोगों के बंटवारे किये हैं. और लोगों ने शमशानघाट के. यह इसी व्यवस्था में तय था कि कौन सी जाती कहां पानी पिएगा?, कहां रहेगा?, क्या खाएगा?, क्या करेगा? और फिलहाल की घटना के साथ कहां जलेगा? लेकिन इस मामले में मृत महिला का परिवार हम शहरियों के “सब चंगा सी” और 2014 के बाद वाले “हम भारत मां के सपूत” वाले भ्रम में फंस गया.

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उसे लगा 1955 एक्ट वाला जाति भेदभाव पर पाबन्दी वाला क़ानून मोदीजी के आने के बाद सामजिक तौर पर  लागू हो गया है, और जो लोग मोदीजी को वोट देते हैं वे जातीय भेदभाव को ध्वस्त कर चुके हैं. इसलिए वह अपनी पत्नी का शव गांव के पास वाले ठाकुरों के शमशानघाट ले गया. क्रियाकर्म की सब तैयारिया पूरी हो चुकी थी, मृत महिला का 4 साल का बेटा अग्नि हाथ में लिए तैयार था. चिता पर उपले और लकड़ी सज चुके थे, इतने में 250 ठाकुर वहां पहुंचे. यह ठाकुर परिवार को सांत्वना देने नहीं बल्कि परिजन को हडकाने पहुंचे थे. “खबरदार जो इसे यहां जलाया तो. जाके इसे तुम्हारे लिए बनाए शमशानघाट पर जलाओ.” इतना कहने की हिम्मत कर देना कि ऐसा शुरू से चल रहे नियमों के हिसाब से किया जा रहा है. यह कोन से समाज के नियम हैं, जो संविधान के सामानांतर बराबर चल रहे हैं.

उन ठाकुरों ने वहां से 4 किलोमीटर दूर निचली जाति के लिए तय दुसरे शमशानघाट ले जाने के लिए दबाव बनाया. मृत महिला का पति और ससुर मजबूर थे. उनका हुक्का पानी उन्ही ठाकुरों के यहां काम कर के चलता था. इसलिए यह मामला जातीय उत्पीडन का तो था लेकिन पुलिस स्टेशन में रखे कंप्लेंट रजिस्टर में दर्ज नहीं हुआ. फिर मामला गांव का भी था. हैंडपम्प से लेकर खेत में उगाई तक में गांव के उन्ही दबंगों का प्रभुत्व है. और जिस कोर्ट में मामला पहुंचेगा उससे पहले गांव में उन्ही ठाकुरों के सरपंचो से गांव निकाला दे दिया जाएगा.

मुझे दुख मृत महिला का नहीं है. जीते जी उसने जितने जातीय भेदभाव झेले होंगे मरने के बाद अब क्या फर्क पड़ता है. फर्क उसके परिजन को पड़ा होगा. जिसमें 4 साल का बच्चा मेरे लिए सबसे अहम् है. आधुनिक भारत में हम शहरी लोग रेस्टोरेंट में पिज़्ज़ा खाते हुए देश के तथाकथित बदलाव पर ख़ुशी जाहिर कर सकते हैं. किन्तु क्या हम उस 4 साल के बच्चे से आँख मिला पाएँगे जिसने इतनी छोटी उम्र में जातीवाद का इतना तीखा दंश झेला हो. वह उम्र के साथ जब बड़ा होगा तो क्या यह याद उसे हमेशा कुरेदेगी नहीं? फिर क्या वह हमसे पूछेगा नहीं कि जिस समय तुम राष्ट्रवाद के हुंकार से लबालब भरे थे उस दौरान मेरी मां की चिता को तुम्हारे सड़ेगले समाज ने जलने नहीं दिया?

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राज्य की स्वघोषित दलित नेता व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ट्वीट करती है- 

“यूपी में आगरा के पास एक दलित महिला का शव जातिवादी मानसिकता रखने वाले उच्च वर्गों के लोगों ने इसलिए चिता से हटा दिया, क्योंकि वह शमशान-घाट उच्च वर्गों का था, जो यह अति-शर्मनाक व अति-निंदनीय है.

ध्यान हो तो यह वही मायावती है जो राज्य में किसी भी हालत में मुख्यमंत्री बनने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन कर लेती है. वही भाजपा जिसकी बुनियाद इन्ही कुप्रथाओं, पाखंडों और भेदभावों का महिमामंडन करने का रहा है. जिनके लिए मनु सर्वोप्रिय हैं. फिर यह कैसी दोगली सियासत है?

इस घटना पर पुलिस का कहना है कि इस मामले में परिजनों द्वारा कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है. इसलिए लोकल टीम कोई एक्शन नहीं ले सकती. लेकिन वे खुद से तहकीकात करेंगे. पुलिस ने आगे कहा कि इलाके में शान्ति बहाल करने की कोशिश की गई है, और परिवार ने अलग शमशानघाट की मांग की है. जिसे देखा जा रहा है.

किन्तु इसपर अलग शमशामघाट मिल जाए सिर्फ उसका मसला नहीं बल्कि उसी शमशाम में जलाने के हक दिए जाने के साथ भी है. यह हकीकत है कि ग्रामीण इलाकों में बदलाव अथवा विकास सबसे पहले इलाके के ऊँची जातियों के दरवाजों को चूम कर जाती है, छनछन कर जो बचता है वह नीचे के लोगों के पास पहुँचता है, ऐसे में सड़कें, लाइट, नालियां, हैंडपम्प ऊँची जातियों के अधीन रहता है. जिसका इस्तेमाल या अधिकार लेने के लिए उन्ही की जीहुजूरी करनी पड़ती है.

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इसलिए सिर्फ शमशान घाट ही नहीं बल्कि इसके साथ साथ अपने लिए अलग कम्युनिटी सेंटर खोले जाने को लेकर भी है जहां गांव के एस/बीसी समाज के लोग अपनी समस्याओं और चिंताओं को रख सकें. जिन पर बात कर खुद से उसका हल ढूंढा जा सके. उदाहरण महाड़ सत्याग्रह से लगाया जा सकता है जब रामचंद्र बाबाजी मोरे ने स्थानीय महाड़ों के नेतृत्व देकर और आंबेडकर के साथ मिलकर तालाब से पानी लेने के अधिकार को हांसिल किया था. और लोगों का स्थानीय लोगों को सकारात्मक राजनीति की तरफ बढ़ाया.

अमिताभ की कुंठा और ट्रोल पुराण  

,मारीच , अहिरावन , महिषासुर , असुर ,

उपनाम हो तुम ,

हमारा यज्ञ प्रारंभ होते ही तुम राक्षसों की

तरह तडपोगे;

जान लो इतना कि अब तुम ही केवल

समाज की आवाज ना हो ,

चरित्रहीन , अविश्वासी , श्रद्धाहीन , लीचड़ तुम हो

जलो गलो पिघलो , बेशर्म , बेहया , निर्लज्ज

समाज कलंकी

तुम अपनी ही बैचेनी में जल जाओ …..

उक्त भड़ासयुक्त अतुकांत कविता जैसी पोस्ट अमिताभ बच्चन की है जिससे एक बात यह भी साबित होती है कि आदमी अगर अपनी पर आ जाए तो गालियाँ देने शुद्ध हिंदी भी कम समृद्ध भाषा नहीं और किसी को सीधे कुत्ता , कमीना और ( या ) हरामी बगैरह कहने से बचने का बेहतर विकल्प उसे मारीच , अहिरावण बगैरह कह देना है . इससे धधकते कलेजे को उतनी ही ठंडक मिलती है जितनी कि उसकी माँ बहिनों से सम्बन्ध स्थापित करती हुई गलियां देने से .

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उक्त पोस्ट का संदर्भ प्रसंग जानने से पहले एक जरूरी बात दौहराना जरुरी है जिसे अमिताभ बच्चन में दिलचस्पी रखने बाले बेहतर जानते हैं कि वे अपने ज़माने के नामी कवि डाक्टर हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं जिन्होंने मधुशाला लिखकर हिंदी साहित्य में अपना एक अलग मुकाम बनाया था . बच्चन जी ने कभी विपरीत परिस्तथियों में भी इतने घटिया स्तर की श्रापनुमा भाषा शैली का इस्तेमाल नहीं किया जितना कि उनके होनहार बेटे ने तिलमिलाकर 28 जुलाई को मुंबई के नानावटी अस्पताल से ट्वीट के जरिये कर डाला .

कोरोना वायरस और लाक डाउन के मानसिक प्रभावों पर अगर कोई पीएचडी करने की सोच रहा हो तो उसे इस वाकिये का जरूर जिक्र करना चाहिए कि इस दौर में जिन अच्छे अच्छों के दिमाग अनियंत्रित हो गए थे अमिताभ बच्चन उनमें से एक थे . इस महानायक की छवि एक बुद्धिजीवी की भी है लेकिन ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि हम परदे पर जो देखते हैं वह मिथ्या और चित्रण भर होता है .  कोई नायक इतना ताकतवर नहीं होता कि 20 – 25 तो दूर की बात है 2 – 5 गुंडों की भी अकेले ठुकाई कर सके .

हाँ अमिताभ में एक खास बात जरूर है कि एक साहित्यकार का बेटा होने के नाते उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है जो उनके केरियर में भी अहम् साबित हुई खासतौर से कौन बनेगा करोडपति नाम के जुए सट्टे बाले ही सही शो में जिसने उन्हें बिकने से बचा लिया था . इस शो में उनकी नम्रता और शिष्टाचार देखते ही बनते थे जिन्होंने लोगों का दिल जीत लिया था . सामान्य ज्ञान पर आधारित इस शो से लोगों को यह ग़लतफ़हमी हो आना स्वभाविक बात थी कि अमिताभ एक इनसाइक्लोपीडिया हैं और इस नाते वे औरों से श्रेष्ठ और बुद्धिमान हैं .

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ठोक दो सा # को –

दरअसल में अमिताभ बच्चन भी आम लोगों जैसे कमजोर और बैचेन आदमी हैं जिसे अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती लेकिन उक्त पोस्ट को रचते वक्त वे कितने उद्दिग्न रहे होंगे इसका अंदाजा उनके सिवाय कोई नहीं लगा सकता . जिस वक्त में करोड़ों प्रशंसक अपने सगे बालों को छोड़कर उनकी जिन्दगी के लिए पूजा पाठ और यज्ञ हवन बगैरह जैसे पाखंड कर रहे थे तब एकाध दो सिरफिरों ने सोशल मीडिया पर कहीं लिख डाला कि ….. मैं उम्मीद करता हूँ कि आप कोविड से मर जाएँ .

बस इतना सुनना था कि आपे से बाहर होते अमिताभ भड़क गए और उन्होंने उक्त कविता लिख डाली जिसमें न कवित्व है , न तुक है और न ही विश्लेषण करने लायक कुछ है .  यह हर कभी हर कहीं दी जाने बाली एक ठेठ देसी बददुआ है लेकिन इसके पहले अमिताभ ने जो लिखा उस पर भी गौर फरमाएं – हे मिस्टर अनाम आप अपने पिता का नाम तक नहीं लिखते , क्योंकि आप नहीं जानते कि आपका पिता कौन है .

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फिर जितनी अपने पिता के दिनों में जितनी सीख ली थी उतनी फिलासफी झाड कर उन्होंने लिखा – अगर इश्वर की कृपा से ( कृपया ध्यान दें , डाक्टरों की मेहनत और कोशिश से नहीं ) मैं जीवित रहता हूँ तो आपको `स्वाइप तूफ़ान का सामना करना पड़ेगा .  न केवल मुझसे बल्कि मेरे 90 + मिलियन फालोअर्स से , मुझे उन्हें बताना अभी बाकी है  … लेकिन अगर मैं जीवित हूँ तो मैं आपको बता दूँ कि वे एक सेना हैं और वे दुनिया भर में फैले हुए हैं पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक …. और वे इस पेज पर ईऍफ़ ( एक्सटेंडेड फेमिली ) नहीं हैं बल्कि वो आपकी आखों में एक तूफानी परिवार बनकर चमकेंगे .ठोक दो सा…. को . कोष्ठक में उनकी मंशा दूसरा अक्षर ले लिखने की साफ़ दिख रही है .

अगर किसी मिस्टर अनाम ने दिमागी दिवालियापन दिखाया तो क्या प्रतिक्रिया या जबाब में अमिताभ बच्चन को भी यही सब करना चाहिए था इस सवाल का जबाब हर कोई अपने हिसाब से देने स्वतंत्र है लेकिन उनके प्रशंसकों का बुद्धिजीवी वर्ग इससे दुखी है जो यह मानता और  जानता है कि सेलिब्रेटीज के साथ ऐसा होना कोई नई या हैरत की बात नहीं है खासतौर से अमिताभ के मामले में उस वक्त जब मीडिया ने उनके संक्रमण के तिल का ताड़ बनाकर पढ़ने और देखने बालों के दिमाग की नसें फाड़ कर रख दी थीं .

बिलाशक अमिताभ बच्चन एक विशिष्ट और लोकप्रिय अभिनेता हैं और उनसे उम्मीद इसी बात की की जाती है कि वे इस बात का ध्यान रखें और लिहाज भी करें नहीं तो इसे एक थके और खीझे हुए बूढ़े की कुंठा से ज्यादा कुछ और नहीं माना जा सकता जो अपने 9 करोड़ फेंस को एक हिंसक सेना समझते धमकी दे रहा है , एक गुमनाम काल्पनिक  सिरफिरे की बल्दियत पर ऊँगली उठा रहा है . राक्षसों से उसकी तुलना कर अपना घिसापिटा पौराणिक ज्ञान बघार रहा है . नहीं यह अमिताभ बच्चन की प्रतिष्ठा और कद काठी से मेल खाती बात नहीं है .  उन्हें अपना बौद्धिक स्तर और मानसिक संतुलन कायम रखना आना चाहिए . उन्हें याद रखना चाहिए कि आलोचना ऐरे गैरे नत्थू गैरों के नहीं बल्कि कामयाब और लोकप्रिय लोगों के हिस्से में ही आती है .

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ट्रोलिंग यानी अपमान

लेकिन जो कान सिर्फ चापलूसी और जयजय कार सुनने के आदी हो गए हों उनका अपनी  आलोचना न सुन पाना कोई हैरत की बात नहीं इसलिए अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियत जो तारीफ को अपना हक़ समझने लगते हैं को पहली बार किसी को ट्रोल करने मजबूर होना पड़ा .ट्रोल का मतलब आलोचना नहीं जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है बल्कि किसी को जानबूझकर बेइज्जत करना होता है जिसके किये सोशल मीडिया से बेहतर कोई प्लेटफार्म नहीं  जिसका हर घडी बेजा इस्तेमाल हो रहा होता है .

देश क्या दुनिया ही सदियों से दो खेमों या विचारधाराओं में बंटी रही है . संक्षेप में इसे समझें तो पहली वह जो धार्मिक सत्ता को सर्वोपरि समझती है और दूसरी वह जो सभी को हर स्तर पर बराबरी का दर्जा देने की हिमायती है .

आजकल देश में राज भगवा गेंग का है जो अपने वैचारिक विरोधियों को ट्रोल करना शान और जीत की बात समझती है और इस बाबत बेहद घटिया स्तर पर उतर आती है . इस छिछोरी मानसिकता के सबसे बड़े शिकार राहुल गाँधी रहे हैं जिन्हें कभी नरेन्द्र मोदी ने पप्पू क्या कहा भक्तों में उन्हें अपरिपक्व साबित करने की होड़ मच गई  . इसकी ताज़ी मिसाल 29 – 30 जुलाई को देखने में आई जब लड़ाकू विमान राफेल फ़्रांस से भारत आए .  इस दिन भगवाधारियों ने राफेल के आने का जश्न कम मनाया राहुल गाँधी को अपमानित करने का सुख जो दरअसल में उनके प्रति कुंठा ज्यादा है का लुत्फ़ ज्यादा उठाया . कई मीम ऐसी वायरल हुईं जिनमें राहुल गाँधी को यह सोचते और कहते बताया गया है कि राफेल के टायरों में हवा कैसे भराती होगी , इसमें लगे बम छोटे क्यों हैं और इसमें इंधन कैसे डाला जाता होगा .

सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि 3- 4 करोड़ सनातनियों के दिलो दिमाग में राहुल गाँधी को लेकर कितना खौफ भरा है जो नफरत की शक्ल में आये दिन प्रदर्शित होता रहता है . इतना ही नहीं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने जब राफेल की कीमत मोदी से पूछी तो भक्त लोग राहुल गाँधी को छोड़कर उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गए .

इन्हीं राफेल विमानों का जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने फ़्रांस जाकर हल्दी कुमकुम लगाकर और उन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर पूजा पाठ किया था और उनके पहियों के नीचे नीबू रखे थे तो भगवा गेंग उनके बचाव में सक्रिय होते धर्म की दुहाई देने लगी थी कि यह तो हमारी परम्परा है यानी धर्म न हुआ दो मुंही सांप हो गया बहरहाल ऐसा इसलिए हुआ था कि दुनिया इस मूर्खता पर अचंभित रह गई थी और देश के लोगों ने भी राजनाथ सिंह का जम कर मजाक बनाया था .

यह गेंग जो दूसरों के ( असल में अपने अदृश्य आकाओं के )  दिमाग और इशारों पर नाचती है अक्सर ममता बनर्जी , प्रियंका गाँधी और मायावती को सुरसा , शूर्पनखा और मंथरा कहकर मजाक बनाती रहती है ( ताजा हालातों को देखते शायद मायावती को वे राक्षसियों की लिस्ट से हटाने की सोच रहे हों ) यानी अमिताभ बच्चन की तरह उनके दिमाग में भी रामायण और महाभारत के प्रसंग और पात्र भरे पड़े हैं जो कुंठा से भी परे एक तरह की सड़ांध है जिसका दिनोंदिन बढ़ना चिंता की बात है .

शिकारी भी होते हैं शिकार

लेकिन ये लोग कभी खुद शिकार भी हो जाते हैं और जब होते हैं तो अपनी ही मूर्खताओं के चलते , हाल ही में केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने भाभीजी पापड़ के जरिये कोरोना के ठीक होने की बात कही तो किसी के मुंह से बोल नहीं फूटे . कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी इनके निशाने पर रहते थे .  उनके जुकाम , मफलर और बोलने के अंदाज तक का तबियत से मजाक बनाया जाता था .  मगर पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली के लोगों ने कांग्रेस के साथ साथ भाजपा की भी मिटटी कूटी तो सब के सब सकते में आ गए क्योंकि मोदी के गढ़े गए मेजिक पर अरविन्द के काम काज का जादू भारी पड़ा था तब से ये लोग उनका मजाक बनाने में डरने लगे हैं क्योंकि मजाक बनायेंगे तो अरविन्द की फ़ौज वजाय धरम करम के जबाबी हमला मोदी की डिग्री को लेकर करेगी जो पूरी भगवा गेंग की कमजोर नब्ज है . फिर मामला शिक्षित बनाम अनपढ़ हो जाता है .

इसी तरह का एक और दिलचस्प मामला भी 18 जुलाई को सामने आया था जब क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के फेंस ने दिल्ली के भाजपा सांसद और क्रिकेटर गौतम गंभीर को ट्रोल करते यह कहा था कि चुपचाप दिल्ली में राजनीति करो .हुआ सिर्फ इतना था कि गंभीर ने सौरव गांगुली को धोनी से ज्यादा मेच जिताऊ खिलाडी बता दिया था .

गंभीर की मंशा गांगुली को भगवा खेमे की तरफ आकर्षित करने की ज्यादा थी क्योंकि पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव हैं और भाजपा तमाम मशक्कत के बाद भी ममता बनर्जी की काट नहीं ढूंढ पा रही है .  गंभीर ने किसके इशारे पर यह ट्वीट किया यह तो वही जानें या अमित शाह पर इस तुलना पर उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी . एक यूजर ने ताना कसा श्रीमान गंभीर जी कृपया आप अपना ध्यान राजनीति और प्रजा कल्याण में लगायें धोनी ने क्या किया कैसे किया यह चिंता छोड़ दें .

बात दिल्ली की ही करें तो विधानसभा चुनाव के दौरान जरुरत से ज्यादा जोश और बडबोलापन दिखाते रहने बाले पूर्व भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी नतीजों के बाद खूब ट्रोल हुए थे . जून के पहले सप्ताह में अभिनेता सोनू सूद से यूजर्स ने आग्रह किया था कि भाई सोनू सूद इन्हें भी घर पहुंचा दो . गौरतलब है कि सोनू सूद ने अपने खर्च पर कई प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाकर खूब वाहवाही बटोरी थी .

लिखा जाए तो एक ट्रोल पुराण वजूद में आ सकता है लेकिन बीती 24 जून को भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा भी खिसियाकर रह गए थे जो कांग्रेसियों खासतौर से गाँधी परिवार की बुराई करने रसातल में भी उतरने तैयार रहते हैं . एक न्यूज़ चेनल पर पुरी लोकसभा चुनाव हार चुके संबित ने गलवान घाटी पर बहस में यह कह दिया था कि अगर नेहरु न होते तो ये पंगा ही न होता

. इस पर यूजर्स वजाय तालियाँ पीटने के उनपर हमलावर हो उठे थे कि नेहरु का नाम लेकर आप मौजूदा सरकार की कमियों पर पर्दा नहीं डाल सकते . एक यूजर ने लिखा कि हर काम में आपको नेहरु की ही गलती क्यों नजर आती है इससे चीन का मनोबल ही बढ़ता है .  गुलमोहर नाम के अकाउंट के एक यूजर ने तो यह तक भी कह डाला कि न नेहरु होते  न तुम आजाद होते .  नेहरु ने अपनी जिन्दगी के 9 साल जेल में निकाल दिए तुम जैसों की आजादी के लिए और आज तुम उनके होने पर ही सवाल उठाते हो .  

सभी को याद होगा कि साल की शुरुआत में जब देश में सीएए और एनआरसी को लेकर हंगामा मचा था तब अभिनेत्री दीपिका पादुकोण छात्रों का समर्थन करने जेएनयू पहुंची थीं तो भगवा गेंग ने आसमान सर पर उठा लिया था उन्हें ऐसी ऐसी घटिया और अश्लील गालियाँ ट्रोल करते दी गईं थीं जिनका यहाँ जिक्र भी औरतों का द्रोपदी और सीता सरीखा अपमान और गैरकानूनी कृत्य होगा .

ये तो कुछ उदाहरण थे लेकिन सोचने बाली अहम् बात यह भी है कि यह सब होता किसके या किनके इशारों पर है .  ट्रोल करने बाले भक्त तो दिमाग से पैदल और कठपुतली होते हैं लेकिन उन्हें नचाने बालों की डोरियाँ जिनके हाथ में हैं उन्हें जानते सब हैं पर मुंह खोलने की हिम्मत किसी की नहीं पड़ती क्योंकि लोग पिछले 6 साल में इतने डर चुके हैं कि उन्हें चुप रहने में ही अपनी भलाई नजर आती है .  इसलिए अमिताभ बच्चन किसी ज्ञात अज्ञात को सरासर जान से मारने की धमकी देने से पहले कुछ सोचते नहीं क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि मोदी राज में उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता .

 

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Sushant case: रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, खुद को बताया निर्दोष

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की जांच किसी दिशा की तरफ बढ़ती नजर नहीं आ रही. मगर 45 दिन बाद पूरी जांच नेपोटिज्म, व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता और मूवी माफिया से हटकर रिया चक्रवर्ती के खिलाफ मुड़ गयी है. सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने पटना के राजीव नगर पुलिस थाने में रिया चक्रवर्ती और उसके परिवार वालों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराकर मुंबई पुलिस की जांच को ही एक नया मोड़ दे दिया .

इसके बाद रिया चक्रवर्ती ने अपने वकीलों से सलाह मशवरा कर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस जांच को पटना से मुंबई तबादला करने की गुहार लगायी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रिया चक्रवर्ती ने अपने 46 पन्नों की याचिका में सुशांत सिंह राजपूत के परिवार, सुशांत की बहन मीतू सिंह और सुशांत सिंह राजपूत के जीजा तथा हरियाणा के एडीजी ओ.पी सिंह के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाने के साथ खुद को निर्दोष बताया है .रिया चक्रवर्ती के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के साथ ही अब यह मामला काफी सनसनीखेज हो गया है.

तो वही नेपोटिज्म  का मामला अब एकदम  तुच्छ हो गया है.अब  पूरा मसला सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती के परिवार के बीच सिमट कर रह गया है.


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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में रिया चक्रवर्ती ने निम्न बातें कहीं हैं. निम्न आरोप लगाए हैं

 

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Still struggling to face my emotions.. an irreparable numbness in my heart . You are the one who made me believe in love, the power of it . You taught me how a simple mathematical equation can decipher the meaning of life and I promise you that I learnt from you every day. I will never come to terms with you not being here anymore. I know you’re in a much more peaceful place now. The moon, the stars, the galaxies would’ve welcomed “the greatest physicist “with open arms . Full of empathy and joy, you could lighten up a shooting star – now, you are one . I will wait for you my shooting star and make a wish to bring you back to me. You were everything a beautiful person could be, the greatest wonder that the world has seen . My words are incapable of expressing the love we have and I guess you truly meant it when you said it is beyond both of us. You loved everything with an open heart, and now you’ve shown me that our love is indeed exponential. Be in peace Sushi. 30 days of losing you but a lifetime of loving you…. Eternally connected To infinity and beyond

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1.8 जून तक सुशांत के साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी .1 साल तक साथ रही. 8 जून को अपने घर चली गयी.

2.सुशांत डिप्रेशन में थे और डिप्रेशन की दवा ले रहे थे.

3.मैंने सुशांत से पैसे नहीं लिए.

4.मैंने सुशांत से किसी साजिश या फायदा उठाने के लिए रिश्ते/ दोस्ती नहीं की थी.

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  1. मैं सुशांत से प्यार करती थी. उनकी मौत से सदमे में हूं.
  2. 6. मैंने सुशांत को उनके परिवार से अलग नहीं किया.
  3. कैरियर के लिए सुशांत से दोस्ती नहीं की.
  4. मैंने खुद 16 जुलाई को 2.56 बजे अमित शाह से सीबीआई जांच कराने की मांग की थी.
  5. सुशांत के करीबी रिश्तेदार हरियाणा में एडीजी हैं और वह धमका रहे हैं .

10.सुशांत की बहन मीतू सिंह ,सुशांत के जानने वालों पर दबाव बना रही हैं कि वह लोग रिया के खिलाफ बयान दे.

  1. मो बला में सुशांत सिंह राजपूत के साथ हमारी छुट्टी मनाने के खर्चे का हिसाब  सिद्धार्थ पठानी के माध्यम से सुशांत के रिश्तेदार ने पूछा.

12.22 जुलाई को सुशांत सिंह राजपूत के जीजा ओपी सिंह ,एडीजी हरियाणा सरकार ने फोन कर जानकारी ली . 27 जुलाई को मुझे  फोन कर धमकाया.

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Still struggling to face my emotions.. an irreparable numbness in my heart . You are the one who made me believe in love, the power of it . You taught me how a simple mathematical equation can decipher the meaning of life and I promise you that I learnt from you every day. I will never come to terms with you not being here anymore. I know you’re in a much more peaceful place now. The moon, the stars, the galaxies would’ve welcomed “the greatest physicist “with open arms . Full of empathy and joy, you could lighten up a shooting star – now, you are one . I will wait for you my shooting star and make a wish to bring you back to me. You were everything a beautiful person could be, the greatest wonder that the world has seen . My words are incapable of expressing the love we have and I guess you truly meant it when you said it is beyond both of us. You loved everything with an open heart, and now you’ve shown me that our love is indeed exponential. Be in peace Sushi. 30 days of losing you but a lifetime of loving you…. Eternally connected To infinity and beyond

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13.सुशांत सिंह की मौत के बाद मुझे बलात्कार और हत्या की धमकियां मिली. यह बात मैंने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखी थी. तथा सांताक्रुज पुलिस स्टेशन में जाकर शिकायत दर्ज करायी.

मीडिया रिपोर्ट की माने तो सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में रिया ने जो कुछ  कहा है ,उसमें से काफी कुछ  पूछताछ के दौरान मुंबई पुलिस को बता चुकी हैं.उधर,अब तक बिहार पुलिस सुशांत सिंह राजपूत के मित्र व अभिनेता महेश शेट्टी, सुशांत की पूर्व प्रेमिका व अभिनेत्री अंकिता लोखंडे,सुशांत के मित्र सिद्धार्थ पठानी व उनके नौकरों से पूछताछ कर चुकी है. अब इस मसले पर’ईडी’ भी जांच करने जा रही है.ईडी मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करेगी.

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सुशांत सिंह  की बहन मीतू सिंह ने आरोप लगाया है कि रिया ने सुशांत पर काला जादू कर दिया था.

इस बीच बिहार सरकार ने भी रिया चक्रवर्ती का विरोध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दिया है और बिहार सरकार की तरफ से मुकुल रोहतगी अपना पक्ष रखेंगे.

Crime Story : घातक प्रेमी

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र   

सौजन्य-सत्य कथा

सुबह होते ही गांव में शोर मचने लगा कि छत्रपाल अपनी प्रेमिका ननकी की हत्या कर फरार हो गया है, उस की लाश

कमरे में पड़ी है. हल्ला होते ही गांव वाले ननकी के मकान की ओर दौड़ पड़े. गांव का प्रधान भी उन में शामिल था. गांव के पूर्वी छोर पर ननकी का मकान था. वहां पहुंच कर लोगों ने देखा, सचमुच ननकी की लाश कमरे में जमीन पर पड़ी थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि छत्रपाल ने ननकी की हत्या क्यों कर दी.

इसी बीच ग्राम प्रधान रामसिंह यादव ने थाना बिंदकी में फोन कर के इस हत्या की खबर दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने महिला की हत्या किए जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी फिर निरीक्षण में जुट गए. वह उस कमरे में पहुंचे जहां ननकी की लाश पड़ी थी. लाश के पास कुछ महिलाएं रोपीट रही थीं. पूछने पर पता चला कि मृतका अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ रहती थी. उस का पति अंबिका प्रसाद करीब 5 साल पहले घर से चला गया था और वापस नहीं लौटा. मृतका के 2 बच्चे भी हैं, जो अपनी ननिहाल में रहते हैं.

मृतका ननकी की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में गमछा लिपटा था. लग रहा था जैसे उसी गमछे से गला कस कर उस की हत्या की गई हो. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. साथ ही टूटी चूडि़यां भी बिखरी पड़ी थीं. इस से लग रहा था कि हत्या से पहले मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ योगेंद्र कुमार मलिक घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद मृतका के घरवालों तथा पासपड़ोस के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

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मौके पर शारदा नाम की लड़की मिली. मृतका ननकी उस की मौसी थी. शारदा ने पुलिस को बताया कि वह कल शाम छत्रपाल के साथ मौसी के घर आई थी. खाना खाने के बाद वह कमरे में जा कर लेट गई. रात में किसी बात को ले कर मौसी और छत्रपाल में झगड़ा हो रहा था.

 

सुबह 5 बजे छत्रपाल बदहवास हालत में निकला और घर के बाहर चला गया. कुछ देर बाद मैं ननकी मौसी के कमरे में गई तो कमरे में जमीन पर मौसी मृत पड़ी थी. मैं बाहर आई और शोर मचाया. मैं ने फोन द्वारा अपने मातापिता और नानानानी को खबर दी तो वह सब भी आ गए.

मृतका की मां चंदा और बड़ी बहन बड़की ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि छत्रपाल ननकी के चरित्र पर शक करता था. मायके का कोई भी युवक घर पहुंच जाता तो वह उसे शक की नजर से देखता था और फिर झगड़ा तथा मारपीट करता था. इसी शक में छत्रपाल ने ननकी को मार डाला है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

पूछताछ के बाद एएसपी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद हत्यारोपी छत्रपाल को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. इस के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मौके से सबूत अपने कब्जे में लिए और ननकी का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया. फिर थाने आ कर शारदा की तरफ से छत्रपाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने हत्यारोपी छत्रपाल की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने उस की तलाश में नातेरिश्तेदारों के घर सरसौल, बिंदकी, खागा और अमौली में छापे मारे, लेकिन छत्रपाल वहां नहीं मिला. तब उस की टोह में मुखबिर लगा दिए.

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29 मई, 2020 की शाम 5 बजे खास मुखबिर के जरीए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह को पता चला कि हत्यारोपी छत्रपाल इस समय बिंदकी बस स्टैंड पर मौजूद है. शायद वह कहीं भागने की फिराक में किसी साधन का इंतजार कर रहा है. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी आवश्यक पुलिस बल के साथ बस स्टैंड पहुंच गए.

पुलिस जीप रुकते ही बेंच पर बैठा एक युवक उठा और तेजी से सड़क की ओर भागा. शक होने पर पुलिस ने उस का पीछा किया और रामजानकी मंदिर के पास उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम छत्रपाल बताया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने जब उस से ननकी की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती बरती तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से की गई पूछताछ में ननकी की हत्या के पीछे की कहानी अवैध रिश्तों की बुनियाद पर गढ़ी हुई मिली—

 

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक व्यापारिक कस्बा है अमौली. इसी कस्बे में चंद्रभान अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटियां बड़की व ननकी और एक बेटा मोहन था. चंद्रभान कपड़े का व्यापार करता था.

इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

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अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था.

उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया.

अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता.

ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं.

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छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी.

दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था.

 

ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा. वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए.

उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

अंबिका प्रसाद ने पत्नी को सही राह पर लाने की बहुत कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुआ. एक रात तो अंबिका ने ननकी और छत्रपाल को अपने घर में ही आपत्तिजनक हालत में देख लिया. अंबिका ने इस का विरोध किया तो शर्मसार होने के बजाय ननकी और छत्रपाल उसी पर हावी हो गए. ‘‘जो आज देखा है, वह हर रात देखोगे. देख सको तो घर में रहो, न देख सको तो घर छोड़ कर कहीं चले जाओ.’’

 

ननकी की सीनाजोरी पर अंबिका प्रसाद दंग रह गया. वह घर के बाहर आ गया और माथा पकड़ कर चारपाई पर बैठ गया. इस वाकये के बाद अंबिका को पत्नी से नफरत हो गई. अंबिका आंखों के सामने पत्नी की बदचलनी के ताने भला कब तक बरदाश्त करता. अत: जनवरी 2015 में ऐसे ही एक झगड़े के बाद उस ने घर छोड़ दिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगा.

 

अंबिका प्रसाद के घर छोड़ने के बाद छत्रपाल उस के घर पर कुंडली मार कर बैठ गया. उस ने उस की जर, जोरू और जमीन पर भी कब्जा कर लिया. ननकी अभी तक उस की प्रेमिका थी किंतु अब उस ने ननकी को पत्नी का दरजा दे दिया. यद्यपि छत्रपाल ने ननकी से न तो कोर्ट मैरिज की थी और न ही प्रेम विवाह किया था.

ननकी की बेटी अब तक 10 साल की उम्र पार कर चुकी थी, जबकि बेटा 5 साल का हो गया था. दोनों बच्चे छत्रपाल की अय्याशी में बाधक बनने लगे थे. अत: वह दोनों को पीटता था. ननकी को बुरा तो लगता था, पर वह मना नहीं कर पाती थी. बच्चों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए ननकी ने दोनों बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया.

बच्चे चले गए तो ननकी और छत्रपाल के मिलन की बाधा दूर हो गई. अब वे स्वतंत्र रूप से रहने लगे. ननकी और छत्रपाल को साथसाथ रहते 4 साल बीत चुके थे.

इस बीच न तो ननकी का पति अंबिका प्रसाद वापस घर लौटा और न ही ननकी ने उस की कोई सुध ली. वह कहां है, किस परिस्थिति में है. इस की जानकारी न तो ननकी को थी और न ही किसी सगेसंबंधी को.

 

ननकी बच्चों से मिलने मायके अमौली जाती थी. फिर वहां कई दिन तक रुकती थी. इस से छत्रपाल को शक होने लगा था कि ननकी का मन उस से भर गया है और अब उस ने मायके में कोई नया यार बना लिया है. इस कारण वह मायके में डेरा जमाए रहती है.

इसे ले कर अब ननकी और छत्रपाल में झगड़ा होने लगा था. मायके का कोई भी व्यक्ति घर आता तो छत्रपाल उसे शक की नजर से देखता और उस के जाने के बाद ननकी के चरित्र पर लांछन लगाते हुए झगड़ा करता.

ननकी की बड़ी बहन बड़की खागा कस्बे में ब्याही थी. उस की बेटी का नाम शारदा था. शारदा अपनी मौसी से ज्यादा हिलीमिली थी सो उस ने ननकी से उस के घर आने की बात कही. ननकी ने शारदा की बात मान ली और उसे जल्द ही बुलाने की बात कही.

 

25 मई, 2020 की सुबह ननकी ने छत्रपाल को पैसे दे कर शारदा को बुलाने खागा भेज दिया. छत्रपाल खागा के लिए निकला तो ननकी के मायके से उस का पड़ोसी गोपाल आ गया. ननकी ने उसे घर के अंदर कर दरवाजा बंद कर लिया. ननकी का दरवाजा बंद हुआ तो पड़ोसी आपस में कानाफूसी करने लगे.

शाम 5 बजे छत्रपाल शारदा को साथ ले कर वापस आ गया. कुछ देर बाद छत्रपाल घर से निकला तो चुगलखोरों ने चुगली कर दी, ‘‘छत्रपाल तुम घर से निकले तभी कोई सजीला युवक आया. ननकी ने उसे घर के अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया था. बंद दरवाजे के पीछे क्या गुल खिला होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं.’’

छत्रपाल पहले से ही ननकी पर शक करता था, पड़ोसियों की चुगली ने आग में घी डालने जैसा काम किया. गुस्से में छत्रपाल शराब ठेका गया और शराब पी कर घर लौटा. रात में कमरे में जब उस का सामना ननकी से हुआ तो उस ने ननकी के चरित्र पर अंगुली उठाई और उसे बदचलन, बदजात और वेश्या कहा.

इस पर दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े के दौरान ननकी के ब्लाउज से 5-5 सौ के 2 नोट नीचे गिर गए जो छत्रपाल ने उठा लिए थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि यह नोट अय्याशी के दौरान घर पर आए उस युवक ने दिए होंगे. शक का कीड़ा दिमाग में कुलबुलाया तो छत्रपाल का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उस ने ननकी को जमीन पर पटक दिया और फिर गमछे से गला कसने लगा. ननकी कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. हत्या करने के बाद छत्रपाल कमरे से निकला और फरार हो गया.

छत्रपाल से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने 30 मई, 2020 को छत्रपाल को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट पी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मृतका के बच्चे अपने नानानानी के पास रह रहे थे. द्य

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

 

 

कोरोना काल में कैसे अपने आप को स्वस्थ और सुरक्षित रखें

लेखक- डा. सोनाली शर्मा, शिवानी जैन

इस समय जब कोरोना का कहर हमारे देश समेत पूरी दुनिया में फैल रहा है तो यह बहुत जरूरी है कि हम अपनेआप को और अपने परिवार को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए अपनी दिनचर्या में कुछ जरूरी बदलाव करें.

इस समय जब कोविड 19 के साथ अन्य संक्रमण जैसे सर्दी, जुकाम, बुखार, मलेरिया होने का खतरा है, हमें अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने की आवश्यकता है. इस के लिए सब से अहम है कि हम नियमित रूप से संतुलित आहार ग्रहण करें.

संतुलित आहार शरीर में रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर शरीर को हजारों बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है. इस के आवश्यक तत्त्व में शामिल होते हैं : वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल, विटामिन, जल और फाइबर. ये सभी तत्त्व हमारे अंगों और ऊतकों को प्रभावी तरीके से काम करने के लिए जरूरी होते हैं.

संतुलित आहार के आवश्यक भाग

वसा : यह रोजमर्रा के मैटाबौलिक कार्यों के लिए शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. वसायुक्त भोजन जैसे  दूध, पनीर, मक्खन, क्रीम, घी, वनस्पति तेल और मछली के यकृत का तेल नियमित रूप से भोजन में शामिल करना चाहिए.

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प्रोटीन : यह हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अतिआवश्यक है. यह शरीर के विकास और शरीर के आंतरिक कार्यों में अहम भूमिका निभाता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का जरूरी हिस्सा है. प्रोटीनयुक्त भोजन में मीट, मछली, अंडा, दूध और उस से बने पदार्थं जैसे बींस, मटर आदि शामिल?हैं.

कार्बोहाइड्रेट : यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करता है. यह 2 प्रकार का होता है, अच्छा और बुरा. हमें अच्छे कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए जो दालों, कम वसा वाले दूध पदार्थ और फाइबर युक्त फल, आटे, सब्जियों में पाया जाता है.

विटामिन : यह रसायनों का एक समूह है. जो शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है. शरीर को हर विटामिन से फायदा मिलता है. इन में से कुछ हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अहम हैं.

विटामिन ए : एक मजबूत इम्यूनिटी स्तर है, जो आप के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को विनियमित करने में मदद करता है. इस की कमी से संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है.

स्रोत : हरीपीली, नारंगी सब्जियां और फल जैसे कद्दू, हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर पपीता.

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विटामिन बी : विटामिन मुख्यत: बी6 और बी12 हमारे शरीर को जीवाणुओं से लड़ने की ऊर्जा प्रदान करते हैं.

विटामिन बी6 : लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में सहायक होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर शरीर को बीमारियों से दूर रखता है. इस के मुख्य स्रोत हैं जौ, बाजरा, ज्वार, ब्राऊन राइस, मसूर दाल, उड़द दाल, केला, सहजन की पत्तियां व मेथी.

विटामिन बी12 : यह हमारी कोशिकाओं में पाए जाने वाले जीन के निर्माण और उन की मरम्मत में सहायता करता है. यह प्रतिरक्षा प्रणाली के संरचनात्मक घटक का अहम हिस्सा है. यह अंडे, दूध से बनने वाले पदार्थ जैसे मक्खन, पनीर, दही आदि में पाया जाता है.

विटामिन सी : यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त रखने में सहायक होता है. यह विटामिन हर तरह के संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक है. इस के समृद्ध स्रोत हैं खट्टे फल, अंगूर, मौसमी, स्ट्राबेरी, संतरा, नीबू और सब्जियां जैसे टमाटर, ब्रोकली, गोभी, शिमला मिर्च आदि. इन खाद्य पदार्थों को भरपूर मात्रा में अपने आहार में शामिल करना चाहिए.

विटामिन डी : हमारी हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है और कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाने में विटामिन डी अहम भूमिका निभाता है. यह हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए अतिआवश्यक है. सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का सब से अच्छा स्रोत है और यह अंडे की जर्दी, वसा युक्त मछली के अलावा सोया और दूध के पदार्थ में मिलता है.

विटामिन ई : यह एक शक्तिशाली एंटीऔक्सीडैंट है. यह औक्सीडेटिव सैलुकर डैमेज और वायरस संक्रमण को रोकता है. इस के मुख्य स्रोत बादाम, अखरोट, सूरजमुखी बीज, अलसी के बीज, मछली व अन्य वसा युक्त खाद्य पदार्थ हैं.

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मिनरल : धातु, आधु व उन के लवण के संयुक्त रूप को मिनरल कहते हैं. ये हमारे लिए कम मात्रा में पर आवश्यक रूप से जरूरी होते हैं. जिंक व सैलेनियम मुख्य तौर पर प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए महत्त्वपूर्ण हैं. जिंक प्रतिरक्षा कोशिकाओं के निर्माण व उन के कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण है. यह अनाज, सूखे मेवे, सोयाबीन, अंडा, काला तिल आदि में भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

सैलेनियम मैटाबौलिक प्रक्रिया में एक एंटीऔक्सीडैंट के रूप में कार्य करता है. यह फ्री रैडीक्ल्स से होने वाले नुकसान को कम कर के प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने में मदद करता है. साबुत अनाज, फली, चना दाल, दूध पदार्थ, अंडे आदि इस के अच्छे स्रोत हैं.

जल : शरीर की आवश्यक क्रियाओं के लिए पानी जरूरी है. यह पोषक तत्त्वों के अवशेषण में मदद करता है और शरीर के तापमान को नियमित बनाए रखता है. यह शरीर में इकट्ठा हो कर नहीं रहता और पेशाब व पसीने के जरीए निकलता रहता?है, इसलिए हमें अपने शरीर में पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए और भरपूर पानी पीना चाहिए.

फाइबर : फाइबर पौधों से प्राप्त खाद्य पदार्थों में पाया जाता है. हालांकि यह भोजन नहीं है, लेकिन संतुलित आहार का हिस्सा है और पाचन तंत्र की नियमित क्रिया के लिए जरूरी है. सलाद, सब्जियों व फलों में यह अधिक मात्रा में पाया जाता है.

इन सब आवश्यक तत्त्वों को शामिल कर के हम अपने आहार को संतुलित बना सकते हैं. अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों का नियमित सेवन करना चाहिए.

पालक : यह पोषक तत्त्वों से भरपूर है. पालक में मौजूद एंटीऔक्सीडैंट बैक्टीरिया को खत्म करने वाली श्वेत रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करते हैं. पालक के सेवन करने से इम्यून सिस्टम मजबूत करता है.

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टमाटर : टमाटर में पाया जाने वाला एंटीऔक्सीडैंट लायकोपिन शरीर फ्री रैडीकल्स से होने वाले नुकसान से बचाता है. इस के अलावा टमाटर में विटामिन सी और फाइबर भी उचित मात्रा में होता है, जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है.

लाल शिमला मिर्च : यह विटामिन सी, बीटा कैरोटिन और आहार फाइबर जैसे पोषक तत्त्वों का समृद्ध स्रोत है, जो हमारी प्रतिरक्षा को बढ़ावा देती है.

अदरक : अदरक में जिजरौल पाया जाता है, जोे संक्रमण को कम करता है. इस के एंटी वायरल, एंटीबैक्टीरियल गुण इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाते हैं.

ब्रोकली : इस में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, एंटीऔक्सीडैंट, फाइटो कैमिकल्स और फाइबर होते हैं जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं.

ग्रीन टी : ग्रीन टी एंटी औक्सीडैंट पोलीफेनौल्स के गुणों से भरपूर होती है, जो शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को खत्म कर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है.

तुलसी : तुलसी को पारंपरिक रूप से एंटीमाइक्रोबियल गुणों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह हमारे शरीर को शक्तिशाली प्रतिरक्षा प्रदान करती है.

मेवे और बीज : इन्हें पोषक तत्त्वों का पावर हाउस कहा जाता है. ये पोटैशियम, आयरन फोलिक्र, मैग्नीशियम से भरपूर होते हैं और शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ाने में सहायक होते हैं.

लहसुन : लहसुन से एलीसिन नामक तत्त्व होता है, जो शरीर को किसी भी प्रकार के संक्रमण से लड़ने की शक्ति प्रधान करता है. लहसुन को एक शक्तिशाली एंटीवायरल फूड माना जाता है.

 हलदी : हलदी में करक्सूयिन नामक तत्त्व होता है जिस में एंटीमाइक्रोविराल व एंटी इंफ्लामैंट्री गुण होते हैं जो हमारी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं.

संतुलित आहार के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए हमें स्वस्थ जीवनशैली को भी अपनाना चाहिए.

साफसफाई, व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें. खांसते या छींकते समय मुंह को ढकें. हाथों को अच्छी तरह से धोएं. अपने आसपास के वातावरण को साफसुथरा रखें.

भरपूर नींद ले. तनाव मुक्त रहें और एकरात्मक सोचें. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अच्छी नींद लेना भी बहुत जरूरी है. पूरी नींद लेने से शरीर में साइटोकोन नामक हार्मोन बनता है, जिस से इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद मिलती है. रात में 7-8 घंटे की नींद जरूर लें.

शारीरिक सक्रियता बनाए रखें नियमित व्यायाम हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है. वर्जित करने से शरीर का रक्त संचारण बढ़ता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती हैं. घर पर योग, मैडिटेशन आदि किया जा सकता है.

खाने को अच्छी तरह पकाएं अच्छी तरह से पका हुआ भोजन भी जरूरी है. सब्जियों को अच्छी तरह से धो कर उबालें और फिर खाने के लिए प्रयोग करें. प्रोसैस्ड और पैक्ड फूड से बचें और ऐसी चीजें जिन में प्रिर्जेटिव मिले हों, कम से कम काम में लें.

तंबाकू, शराब और अन्य किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन न करें. ये हमारे इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं, हमारे शरीर में पाए जाने वाले स्वस्थ और अस्वास्थ्यकर बैक्टीरिया के बीच के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं, जिस से हमारे शरीर में संक्रमणों से लड़ने की क्षमता कम होने लगती है.

उड़ान- भाग 2 : दीपा को बुढ़ापे मेें क्या याद आ रहा था?

सौरभ भी पढ़ाई की पुस्तकों से समय पाता तो वाकमैन से गाने सुनने लगता. अब कोई भला उसे कैसे पुकारे? वाकमैन उतरा नहीं कि ‘वीडियो गेम’ के आंकड़ों से उलझने लगता.

अकेलेपन से उकता कर दीपा पास जा बैठती भी तो हर बात का उत्तर बस, ‘हां, हूं’ में मिलता.

‘अरे मां, करवा दी न तुम ने सारी गड़बड़. इधर तुम से बात करने लगा, उधर मेरा निशाना ही चूक गया. बस, 5 मिनट, मेरी अच्छी मां, बस, यह गेम खत्म होने दो, फिर मैं तुम्हें सबकुछ बताता हूं.’ पर कहां? 5 मिनट? 5 मिनट तो कभी खत्म होने को ही नहीं आते. कभी टीवी चल जाता, तो कभी दोस्त पहुंच जाते. दीपा यों ही रह जाती अकेली की अकेली. क्या करे अब दीपा? पासपड़ोस की गपगोष्ठियों में भाग ले?

अकारण भटकना, अनर्गल वार्त्तालाप, अनापशनाप खरीदफरोख्त, यह सब न उसे आता था न ही भाता था. उस के मन की खुशियां तो बस घर की सीमाओं में ही सीमित थीं. अपना परिवार ही उसे परमप्रिय था. क्या वह स्वार्थी और अदूरदर्शी है? ममता के असमंजस का अंत न था. गृहिणी की ऊहापोह भी अनंत थी. ऐसा भी न था कि घरपरिवार के अतिरिक्त दीपा की अपनी रुचियां ही न हों.

हिंदी साहित्य एवं सुगमशास्त्रीय संगीत से उसे गहरा लगाव था. संगीत की तो उस ने विधिवत शिक्षा भी ली थी. कभी सितार बजाना भी उसे खूब भाता था. नयानया ब्याह, रजत की छोटी सी नौकरी, आर्थिक असुविधाएं, संतान का आगमन, इन सब से तालमेल बैठातेबैठाते दीपा कब अपनी रुचियों से कट गई, उसे पता भी न चला था. फिर भी कभीकभी मन मचल ही उठता था सरगमी तारों पर हाथ फेरने को, प्रेमचंद और निराला की रचनाओं में डूबनेउतरने को. पर कहां? कभी समय का अभाव तो कभी सुविधा की कमी. फिर धीरेधीरे, पिया की प्रीत में, ममता के अनुराग में वह अपना सबकुछ भूलती चली गई थी.

किंतु अब, कालचक्र के चलते स्थितियां कैसे विपरीत हो गई थीं. अपार आर्थिक सुविधाएं, समय ही समय, सुस्ती से सरकने वाला समय. मन…मन फिर भी उदास और क्लांत.

रजत उसे चाह कर भी समय न दे पाता और बच्चे तो अब उसे समय देना ही नहीं चाहते थे. कहां कमी रह गई थी उस की स्नेहिल शुश्रूषा में? ठंडे ठहराव भरी मानसिकता में रजत के लखनऊ तबादले का समाचार सुन दीपा के मुख पर अकस्मात मधुर मुसकान बिखर गई कि नई जगह नए सिरे से रचनाबसना, कुछ दिनों के लिए ही सही, यह एकरसता अब तो टूटेगी.

‘‘हे नारी, सच ही तुम सृष्टि की सब से रहस्यमय कृति, मायामोहिनी, अबूझ पहेली हो.’’

जरा सी मुसकान की ऐसी प्रतिक्रिया कि दीपा और भी खिलखिला उठी. ‘‘कहां तो मैं सोच रहा था कि तबादले की सुन कर तुम खीजोगी, झल्लाओगी पर तुम तो मुसकरा और खिलखिला रही हो, आखिर इस का राज क्या है मेरी रहस्यमयी रमणी?’’

अब दीपा क्या कह कर अपनी बात समझाती. ऊहापोह और अंतर्द्वंद्व को शब्द देना उसे बड़ा कठिन कार्य लगता. यों एकदो बार उस ने अपनी समस्या रजत को सुनाई भी थी, पर स्वभावानुसार वह सब हंसी में टाल जाता, ‘सृष्टि सृजन का सुख उठाओ मैडम, संतान को संवारो, संभालो, बस. अपेक्षाओं को पास न पड़ने दो, कुंठा खुद ही तुम से दूर रहेगी.’ ‘संतान से स्नेह, साथ की आशा रखना भी जैसे कोई बड़ी भारी अपेक्षा हो, हुंह,’ दीपा को रजत की भाषणबाजी जरा न भाती.

दीपा की संभावना सही सिद्ध हुई. नई जगह के लिए दायित्व, नई व्यस्तताएं. नया स्कूल, नया कालेज. संगीसाथियों के अभाव में बच्चे भी आश्रित से आसपास, साथसाथ बने रहते. दीपा को पुराने दिनों की छायाएं लौटती प्रतीत होतीं. सबकुछ बड़ा भलाभला सा लगता. किंतु यह व्यवस्था, यह सुख भी अस्थायी ही निकला. व्यवस्थित होते ही बच्चे फिर अपनी पढ़ाई और नए पाए संगसाथ में मगन हो गए. रजत तो पहले से भी अधिक व्यस्त हो गया. दीपा के अकेलेपन का अंत न था. अवांछना, अस्थिरता एवं असुरक्षा के मकड़जाल फिर उस के मनमस्तिष्क को कसने लगे. दीवाली के बाद लखनऊ के मौसम ने रंग बदलना शुरू कर दिया. कहां मुंबई का सदाबहार मौसम, कहां यह कड़कती, सरसराती सर्दी. जल्दीजल्दी काम निबटा कर दीपा दिनभर बरामदे की धूप का पीछा किया करती. वहीं कुरसी डाल कर पुस्तक, पत्रिका ले कर बैठ जाती. बैठेबैठे थकती तो धूप से तपे फर्श पर चटाई डाल कर लेट जाती.

उस दिन, रविवार को उसे सुबह से ही कुछ हरारत सी हो रही थी. ‘छुट्टी वाले दिन भी रजत की अनुपस्थिति और व्यस्तता का अवसाद होगा,’ यह सोच कर वह सुस्ती को झटक ज्योंत्यों काम में जुटी रही. ‘इतनी बड़ी हो गई है रुचि, पर जरा खयाल नहीं कि छुट्टी वाले दिन ही मां की थोड़ी सी मदद कर दे. पढ़ाई… पढ़ाई…पढ़ाई. हरदम पढ़ाई का बहाना. हुंह.’

आज सर्दी कुछ ज्यादा ही कड़क है शायद. झुरझुरी जब ज्यादा सही न गई तो हाथ का काम आधे में ही छोड़ वह बाहर बरामदे की धूप सेंकने लगी. पर धूप भी कैसी, धुंधलाईधुंधलाई सी, एकदम प्रभावहीन और बेदम. बगिया के फूल भी कुम्हलाएकुम्हलाए से थे. सर्दी के प्रकोप से सब परेशान प्रतीत हो रहे थे. दीपा ने शौल को कस कर चारों ओर लपेट लिया और वहीं गुड़ीमुड़ी बन कर लेट गई. अंतस की थरथराहट थी कि थमने क ा नाम ही नहीं ले रही थी. सिर भारी और आंखें जलती सी लगीं. ‘रुचि को आवाज दूं? बुलाने से जैसे वह बड़ा आ ही जाएगी.’ कंपकंपाती, थरथराती वह यों ही लेटी रही, मौन, चुपचाप.

‘‘हाय मां, अंदर तो बड़ी सर्दी है और तुम यहां मजे से अकेलेअकेले धूप सेंक रही हो,’’ रुचि ने कहा. दीपा ने आंखें खोलने का यत्न किया, पर पलकों पर तो मानो मनभर का बोझा पड़ा हो.

‘‘मां, मां, देखो तो, धूप कैसी चटकचमकीली है.’’

‘‘चटकचमकीली?’’ दीपा ने आंखें खोलने का प्रयत्न किया, पर आंखें फिर भी नहीं खुलीं.

रुचि हैरान हो गई. बोली, ‘‘मां, तुम इस समय सो क्यों रही हो?’’ उस ने उस के हाथों को झकझोरा तो चौंक गई, ‘‘मां, तुम्हें तो बुखार है. इतना तेज बुखार. बताया क्यों नहीं? सौरभ, सौरभ, मां को तो देख.’’ 4-5 आवाजें यों ही अनसुनी करने वाला सौरभ आज बहन की पहली ही पुकार पर दौड़ा चला आया, ‘‘क्या हुआ, बुखार? बताया क्यों नहीं?’’

दोनों ने सहारा दे कर उसे अंदर बिस्तर पर लिटा कर मोटी रजाई ओढ़ा दी, पर कंपकंपी थी कि कम ही नहीं हो रही थी. ‘‘सौरभ, जा जल्दी से सामने वाली आंटी से उन के डाक्टर का फोन नंबर, नहींनहीं, फोन नहीं, पता ही ले ले और खुद जा कर डाक्टर को अपने साथ ले आ. मैं यहां मां के पास रहती हूं, जा, जा, जल्दी.’’

‘नई जगह, नए लोग, अकेला सौरभ भला कहां से…’ पर तंद्रा ऐसी भारी हो रही थी कि दीपा से कुछ बोलते भी न बना. सौरभ डाक्टर के पास दौड़ा तो रुचि भाग कर अदरक वाली चाय बना लाई. कमरे में हीटर लगा दिया. फिर हाथपैरों को जोरजोर से मलने लगी.

‘‘तुम भी मां कुछ बताती नहीं हो,’’ आतुर उत्तेजना में बारबार रुचि अपनी शिकायत दोहराती जा रही थी. देखते ही देखते डाक्टर भी पहुंच गया. आननफानन दवा भी आ गई. बच्चे, जिन्हें अब तक दीपा सुस्त ही समझती थी, बड़े ही चतुर, चौकस निकले. उन की तत्परता और तन्मयता भी देखते ही बनती थी. बच्चे, जिन्हें दीपा आत्मकेंद्रित ही समझती थी, आज साये की भांति उस के आगेपीछे डोल रहे थे. उन का यह स्नेह, यह सेवा देख कर दीपा के सारे भ्रम दूर हो गए थे. इस बीमारी ने उस की आंखें खोल दी थीं. रसोईघर से दूरदूर भागने वाली, भूलेभटके भी अंदर न झांकने वाली रुचि, चायनाश्ते के साथसाथ दालचावल भी बना रही थी तो दलिया, खिचड़ी भी पका रही थी. दीपा हैरान कि छिपेरुस्तम होते हैं आजकल के बच्चे. सौरभ को स्कूल भेज वह मुस्तैदी से मोरचे पर डटी रहती. दीपा के पथ्य को भी ध्यान रखती, घर की भी देखरेख करती. उस के कार्यों में अनुभवहीनता की छाप अवश्य थी, पर अकर्मण्यता की छवि कदापि नहीं.

उड़ान- भाग 3 : दीपा को बुढ़ापे मेें क्या याद आ रहा था?

चौथे दिन बुखार टूटा. दीपा को कुछकुछ अच्छा भी लग रहा था. दोपहर को रुचि ने बाहर धूप में बैठा दिया था. ‘‘तेरी पढ़ाई का तो बहुत नुकसान हो रहा है, रुचि.’’

‘‘कुछ नहीं होता मां, मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘एकसाथ कितना सब जमा हो जाएगा, बड़ी मुश्किल होगी.’’

‘‘कोई मुश्किलवुश्किल नहीं होगी. वैसे भी कालेज कभीकभी गोल करना चाहिए.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है.’’

‘‘तुम तो बेकार ही चिंता करती हो, मां. कल पिताजी आ जाएंगे. कल से वे छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ बैठेंगे, मैं कालेज चली जाऊंगी,’’ रुचि ने पीछे से गलबांही डाल कर सिर को हौले से उस के कंधे पर रख दिया. ‘कितनी बड़ीबड़ी बातें करने लगी है उस की नन्ही सी गुडि़या,’ मन ही मन सोच दीपा ने स्नेह से बेटी को अंक में भींच लिया. ‘‘मां, मां, तुम अच्छी हो गईं,’’ स्कूल से लौटा सौरभ गेट से ही चिल्लाया और दौड़ कर आ कर मां की गोद में सिर रख दिया.

‘‘अरे बेटा, क्या कर रहे हो, पीठ पर मनभर का बस्ता लादेलादे घुस गया मां की गोद में जैसे कोई नन्हा सा मुन्ना हो,’’ रुचि ने झिड़का. ‘‘मां, देखो न दीदी को, जब से तुम बीमार पड़ी हो, हर समय मुझे डांटती रहती है,’’ सिर गोद में छिपाएछिपाए ही सौरभ ने बहन की शिकायत की. प्रत्युत्तर के लिए रुचि ने मुंह खोला ही था कि दीपा ने उसे चुप रहने का संकेत किया. फिर स्वयं दोनों को सहलाती रही, चुपचाप. बच्चे बदले कहां थे? वे तो बस बड़े हो रहे थे. किशोरावस्था की ऊहापोह से जूझते अपने अस्तित्व को खोज रहे थे. ऊंची उड़ान को आतुर उन के नन्हेनन्हे पर आत्मशक्ति को टटोल रहे थे. मां के आंचल की ओट से उबरना, उम्र मां की भी थी तो समय की आवश्यकता भी. फिर जननी को यह असमंजस कैसा?

‘‘मां, मां, याद है बचपन में हम कैसा खेल खेलते थे,’’ रुचि भी बीते दिनों की बातों, यादों को दोहरा रही थी, ‘‘जो मां को पहले छुएगा, मां उस की. हाय मां, कितने बुद्धू हुआ करते थे हम दोनों.’’ ‘‘अब तो जैसे बड़ी समझदार हो गई हो. मां, पता है दीदी ने कल खिचड़ी में नमक ही नहीं डाला था और, और बताऊं, रोटी ऐसी बनाती है जैसे आस्ट्रेलिया का नक्शा हो,’’ गोद से सिर उठा कर सौरभ बहन को चिढ़ाने लगा था. ‘‘ठीक है बच्चू, आगे से तेरे को घी चुपड़ी गोल रोटी नहीं, मक्खन चुपड़ी चौकोर डबलरोटी मिलेगी. हुंह, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद. पहले अंदर चल कर अपना बोरियाबिस्तर उतार और हाथमुंह धो.’’

बस्ता उतरवा, जूतेमोजे खुलवा रुचि ने सौरभ को बाथरूम में धकेल दिया और खुद रसोईघर में चली गई. ‘‘चलो मां, शुरू हो जाओ,’’ रुचि ने सब का खाना बाहर चटाई पर ही सजा दिया था. ‘‘मुझे तो बिलकुल भूख नहीं, बेटा.’’

‘‘अरे वाह, भूख कैसे नहीं है. जल्दीजल्दी खाना खा लो. फिर दवाई का भी समय हो रहा है,’’ रुचि ने आदेश दिया.‘‘आज तुम ने अभी तक जूस भी नहीं पिया?’’ खाने पर झपटते हुए सौरभ ने कहा.

सा रे ग म पा…

सा रे ग म पा…

एकाएक दीपा के अंतस में संगीत स्वरलहरी झनझना उठी, ‘हाय, कितने बरस हो गए सितार को हाथ तक नहीं लगाया.’ सूरज सोना बरसा रहा था. बगिया में बसंत बिखरा पड़ा था. अपार अंतराल के बाद, आकंठ आत्मसंतुष्टि में डूबा दीपा का मस्तिष्क गीत गुनगुना रहा था.

खेती में जल प्रबंधन जरूरी

लेखक-राजेश अग्रवाल

सब सब से ज्यादा जल यानी पानी की जरूरत खेती में होती है. यही वजह है कि हमारे देश में जमीनी पानी का लैवल लगातार गिर रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,544 क्यूबिक मीटर है, जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से कम है. ऐसे में यह पानी की कमी के जोन में आता है. अगर इस परेशानी से उबरने के लिए जरूरी उपाय नहीं किए गए तो जल्द ही हमें जल संकट का सामना करना होगा.

पानी से पनपने वाली  फसलों की गलत जोनिंग इकोनौमिक सर्वे के अनुसार, भारत में 89 फीसदी जमीनी पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है. भारतीय किसान अकसर फसलों को जरूरत से ज्यादा पानी से सींचते हैं. ऐसे में पानी की बरबादी बहुत ज्यादा होती है.

इंडियन काउंसिल फौर रिसर्च औन इंटरनैशनल इकोनौमिक रिलेशंस द्वारा की गई एक स्टडी में पाया गया है कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब में उगने वाले गन्ने और धान की फसलों में प्रति हेक्टेयर लाखों लिटर पानी का इस्तेमाल किया जाता है.

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रोचक बात यह है कि अर्द्धशुष्क क्षेत्र होने के बावजूद महाराष्ट्र भारत में कुल गन्ने का

22 फीसदी उत्पादन करता है और पूरी तरह से सिंचाई पर निर्भर है, जबकि बारिश और नदियों वाले क्षेत्र बिहार में इस का उत्पादन मात्र 4 फीसदी होता है.

इसी तरह सब से ज्यादा धान उगाने वाला राज्य पंजाब पूरी तरह बिजली से सिंचाई पर निर्भर है, इसलिए यहां पैदा होने वाले हर किलोग्राम चावल के लिए बिहार की तुलना में 3 गुना और पश्चिम बंगाल की तुलना में दोगुना पानी का इस्तेमाल किया जाता है.

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जल प्रबंधन समय की मांग

खेती के लिए सिंचाई हेतु नहरों और जमीनी पानी पर निर्भर रहने के बजाय भारतीय किसानों को जल प्रबंधन के असरदार तौरतरीके अपनाने चाहिए, ताकि जमीनी पानी के लैवल को सुरक्षित रखा जा सके.

इस मामले में भारत इजरायल से सीख सकता है. इजरायल ने रीसाइक्लिंग की शुरुआत की और इस पानी का उपयोग खेती में किया जाने लगा. अब इस देश में खेती में इस्तेमाल होने वाला 80 फीसदी पानी इसी स्रोत से किया जाता है.

खेती के लिए रिसाइकिल किए गए पानी से सिंचाई के अलावा भारत को खेती में सिंचाई के लिए पाइप सप्लाई व ड्रिप इरिगेशन  को अपनाना चाहिए. दोनों ही तरीकों में सिंचाई में काम आने वाले तीनचौथाई पानी को बचाया जा सकता है. ड्रिप इरिगेशन से पानी और उर्वरक दोनों की खपत को कम किया जा सकता है.

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अगर भारत के साथ घरेलू पानी को रिसाइकिल कर खेती में इस्तेमाल करें तो

300 शहरों को 40,000 मिलियन लिटर पानी रोजाना पहुंचाया जा सकता है. गंदे पानी को साफ करने की लागत भी कम होती है. इस से किसान को मानसून पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. इस से हर तरह के मौसम में सिंचाई के लिए किसान आत्मनिर्भर हो जा पाएगा.

लेखक इंसैक्टिसाइड्स (इंडिया) लिमिटेड में मैनेजिंग डायरैक्टर हैं.

 

आलोचना के खिलाफ FIR ताकत का गलत इस्तेमाल है- सूर्य प्रताप सिंह, रिटायर IAS

सूर्य प्रताप सिह कोई राजनीतिक शख्सियत नहीं है. वह जनता की परेशनियों को लेकर जब सोशल मीडिया पर अपनी बात लिखते है तो सरकार घबडा जाती है. सूर्य प्रताप सिंह के खिलाफ पुलिस थाने में मुकदमा हो जाता है. बात केवल योगी सरकार तक सीमित नहीं है. अखिलेंश सरकार में भी सरकारी नौकरी करते हुये सूर्य प्रताप सिंह ने जब सरकार की आलोचना शुरू की तो 2 बार मुकदमें हुये. उनके घर पर हमला भी हुआ. चैकाने वाली बात यह है कि उस समय भारतीय जनता पार्टी के बडे नेता सूर्य प्रताप सिंह की मुखर आवाज का समथर्न करते थे. सत्ता बदली प्रदेष में भाजपा की योगी सरकार बनी. सूर्य प्रताप सिंह का व्यवस्था पर चोट करना बंद नहीं हुआ. अब योगी सरकार के कार्यकाल में बिजली के चीनी और कोरोना टेस्ट के मुददे को उठाने के लिये सूर्य प्रताप सिंह पर 2 मुकदमें हो गये.

1982 बैच के आईएएस सूर्य प्रताप सिंह उत्तर प्रदेष के बुलन्दषहर के रहने वाले है. खांटी गंवई माहौल में ही उनकी पढाई लिखाई हुई. सामान्य गांव के लडके ही तरह वह भी साइकिल से पैजामा पहन कर स्कूल कालेज जाते थे. इसका जिक्र वह अपनी बायोग्राफी ‘फटा पैजामा‘ में लिख भी रहे है. बुलन्दषहर, मेरठ और दिल्ली में उनकी पढाई पूरी हुई. दिल्ली में पढाई के दौरान ही उन्होने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में ट्रेनीज के रूप अरूण शौरी के साथ काम करने का मौका मिला. व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने का दम यही से स्वभाव में आ गया. सूर्य प्रताप सिंह की हिंदी अंग्रेजी और बाकी विषयों पर अच्छी पकड थी. जिससे बैंक में पीओ और आईएफएस के कंपटीशन में अपनी जगह बनाई. सूर्य प्रताप अपने मातापिता और घर परिवार के प्रति बेहद संवेदनशील थे. इस लिये नौकरी करके पहले रोजीरोटी का प्रबंध किया.

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नौकरी में रहते हुये व्यवस्था के खिलाफ बोलने की आदत ने सूर्य प्रताप सिंह को अफसरो की अलग श्रेणी मे लाकर खडा कर दिया था. इसका प्रभाव यह रहा कि 25 साल की नौकरी में 54 बार ट्रांसफर किया गया. जबकि 9 साल वह अमेरिका में एमबीए और वल्र्ड बैंक की फेलोशिप पर पीएचडी करने में समय व्यतीत किया. इस दौरान उनके बच्चे बडी बेटी और छोटा बेटा अमेरिका में ही रहने लगे. सूर्य प्रताप सिंह ने भी यही सोचा कि अब नौकरी से त्यागपत्र देकर अमेरिका में बस जाये. इस बीच सूर्य प्रताप सिंह की मां का भावनात्मक दबाव बना कि वह लखनऊ वापस आ जाये. दूसरी तरफ उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेष यादव ने भी उनको उत्तर प्रदेष आने को कहा. दिसम्बर 2014 में सूर्य प्रताप सिंह वापस उत्तर प्रदेष आ गये.

सवाल 

अखिलेश  सरकार में आपकी वापसी हुई इसके बाद भी आप की सरकार से ठन गई ?

जवाब

मेरी लडाई कभी भी किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं रही. मैं व्यवस्था के खिलाफ ही रहा हॅू. अखिलेष सरकार में मैं उत्तर प्रदेष में वापस आ गया. यहां भी या तो व्यवस्था मुझे नहीं समझ पाई या मैं व्यवस्था को नहीं समझ पाया. 1 साल में मेरा 5 बार ट्रांसफर किया गया. जब तक मैं किसी विभाग को समझता ट्रांसफर हो जाता. मैं जब षिक्षा विभाग में था तो नकल के खिलाफ एक बडा अभियान चलाया. इसी दौरान मेरा इलाहाबाद जाना हुआ. मेरी युवाओं के साथ अच्छी बातचीत होती थी. इलाहाबाद में उत्तर प्रदेष लोकसेवा आयोग को लेकर छात्र धरना प्रदर्षन कर रहे थे. मुझे बुलाया तो मैं चला गया. मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई का था. हमारे सर्विस रूल में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की कोई मनाही नहीं है. ऐसे में छात्रों ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ कैंडल मार्च निकाला तो उनके बुलावे पर मैं भी उसमें षामिल हो गया. यह बात अखिलेष सरकार को पंसद नहीं आई. मुझसे पूछा गया. मैने सरकार को जवाब तो दे दिया पर यह सोच लिया कि अब नौकरी करने का कोई मकसद नहीं रह गया. तब मैने वालेटरी रिटायरमेंट के लिये प्रार्थना पत्र दे दिया.

सवाल 

आपको कोई बडा पद नहीं मिला इसलिये सरकार का मुखर विरोध करने लगे ?

जवाब

पद, सुविधा और वैभव की चाहत होती तो अमेरिका से वापस ही नहीं आता. मेरी सोच यह थी कि सक्रिय जीवन के 10-12 साल देष और समाज को दे सके. सिस्टम में छटपटा कर रह गये. हम यह जानते है कि आलोचना समाधान नहीं है. पर एक आवाज तो है जो समाधान की तरफ जाने का रास्ता दिखा सकती है. हमारे संपर्क में बडी संख्या में छात्र है. जो अलग अलग षहरो के है. उन सबने वहां पर तमाम वाटसएप ग्रुप बना रखे है. इनमें मेरे विचार और बातें षेयर की जाती है. जो युवाओं के कैरियर निर्माण से जुडी होती है. मैं युवाओं को कहता हॅू कि राजनीति करने से पहले रोजीरोटी का प्रबंध करो. नौकरी से अधिक स्वरोजगार की पहल करो. इसी दौरान मैने व्यवस्था के खिलाफ फेसबुक पेज पर छोटीछोटी स्टोरी लिखनी षुरू की. जिनको मीडिया में जगह मिलने लगी. मैं लिखता तो व्यवस्था के खिलाफ था पर मीडिया उसको कभी अखिलेष के विरोध से कभी योगी के विरोध से जोडने लगी. सच्चाई यह है कि अखिलेष योगी से मेरा कोई विरोध नहीं. व्यवस्था से विरोध है. जो कुर्सी पर होता है उसका नाम जुड जाता है. जो बातें विरोधी दल और मीडिया कहती है उसी को मैं अपने स्तर से सबूत देखकर दोहराता हॅू. मेरे खिलाफ मुकदमा हो जाता है. खबर के सोर्स पर कोई कदम नहीं उठाता.

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सवाल

योगी सरकार के विरोध पर ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद थी आपको ?

जवाब

जनता को प्रष्न पूछने का अधिकार है. मेरा यह मानना है कि लोकतंत्र को बचाये रखने के लिये प्रष्न करना जरूरी है. कोराना की टेस्टिग और चाइनीज बिजली के मीटर पर मेरे सवाल सरकार को इतने चुभ गये कि मुझ पर मुकदमें हो गया. मेरा कहना था कि वोट के लिये चाइनीज मीटर को बदलने से जनता के पैसे का दुरूपयोग होगा. अब सरकार ने मेरे खिलाफ मुकदमा लिखाते समय कहा कि इस संदेष से विस्फोटक स्थित बन गई इस लिये मुकदमा जरूरी था. मेरा सवाल है कि यह बात तो सोषल मीडिया पर तमाम लोग कहते है. असल में मुझ सत्ता के विरोध की आवाज के रूप में मान लिया गया है. इसलिये मेरी हर पोस्ट पर मुकदमें किये जा सकते है. ‘यूपी में राष्ट्रपति षासन’ वाली टिवीटर पोस्ट को सवा लाख से अधिक लोगो ने ट्रेंड किया जो किसी एक आदमी के लिये सरल नहीं होता है. मेरा मानना है कि आलोचना के खिलाफ एफआईआर षक्ति का दुरूपयोग है.

सवाल

आज की मीडिया को कैसे देख रहे है ?

जवाब

इस बात से इंकार नहीं किया जाता कि आज मीडिया की व्यवसायिक जरूरतें बदल गई है. यही वजह है कि मीडिया की ताकत कमजोर हुई है. हमने मीडिया का वह दौर देखा है जब एकएक रिपोर्ट पर सरकारें हिल जाती थी. इसके अपने तमाम कारण है. मेरा मानना है कि व्यवसाय और समाज की आवाज के बीच तालमेल करते हुये मीडिया को चलना चाहिये. एकतरफा दबाव में आना समाज के लिये घातक है. समझदार लोग आज भी इस दबाव के बाद भी आलोचना भी कर रहे और खुद को बचाये रखने में भी सफल है.

सवाल

सरकार से टकराने के दौरान आपको जेल जाने से डर नहीं लगता ?

जवाब

मै जेल जाने जैसा काम नहीं करता. मेरी आवाज का दबाने के लिये अगर ऐसा किया जाता है तो मुझे कोई डर नहीं. मेरी पत्नी तो मजाक में ही कहती है कि आपका बैगपैक तैयार कर दे.

सवाल

आप अखिलेष और योगी दोनो के खिलाफ मुखर रहे दोनो में कुछ अंतर देखते है ?

जवाब

विरोध करने वालों के खिलाफ दोनो के व्यवहार में बहुत अंतर नहीं दिखता. क्योकि इनमें समर्थक और मषीनरी काम करने लगती है. मुकदमें दोनो ही जगहो पर हुये. कई बार अखिलेष सरकार इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दिखाती थी जैसे आज की सरकार दिखा रही है. अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाली इस सरकार का रवैया देखकर काफी हैरान हॅू. सरकार की कार्यप्रणाली अंसतोषजनक है. यह लोकतंत्र के लिये बेहद खतरनाक है. ना केवल मेरे मसले में बाकी जहां भी विरोध की आवाज उठती है उसके साथ भी दमनात्मक रवैया होता है.

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सूर्य प्रताप सिंह के योगी सरकार से पंगे:

  • सत्ता का बलात्कार करता विधायक सेंगर: उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर के मामले में सूर्य प्रताप सिंह ने अपने फेसबुक पर इस मसले पर लिखा. इसमें योगी सरकार की आलोचना की.
  • काले कपडों में कुंभ स्नान विषेष साधना है क्या?: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी की काले कपडो में कुंभ स्नान की अलग अलग फोटो को एक ही कोलाज में लगा कर सवाल पूछा.
  • भाजपा का सुुपर सींएम सुनील बंसल: उत्तर प्रदेष भाजपा संगठन मंत्री सुनील बंसल पर सवाल
  • उत्तर प्रदेश के दागी मंत्री दोनो हाथों से लूट ‘अस्थि कलष‘ में वोट यात्रा: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की अस्थि कलष यात्रा के समय सवाल.
  • नो टेस्ट नो करोना: उत्तर प्रदेष सरकार की नौकरषाही पर टिप्पणी. जिसमें अफसर ने डीएम को कहा कि करोना टेस्ट कराकर क्या पदक लेना चाहते हो.
  • चाइनीज बिजली मीटर: चीन से तनाव के समय में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में चाइनीज बिजली के मीटर हटाने का आदेष दिया तो सूर्य प्रताप सिंह ने सवाल किया कि ज बवह मीटर सही से काम कर रहे है तो उनको हटाया क्या जा रहा है ? केवल वोट के लिये जनता के पैसो को बरबाद क्यों किया जा रहा.
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