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Crime Story : प्यार के माथे पर सिंदूर का टीका

सौजन्य- सत्यकथा

राजवीर ने अपने फुफेरे भाई बबलू को गांव से अपने पास बहादुरगढ़ इसलिए बुला लिया था कि यहां वह उसे किसी फैक्ट्री में नौकरी पर लगवा देगा. बहादुरगढ़ आने के बाद राजवीर ने बबलू की नौकरी लगवा भी दी, लेकिन बबलू ने इस का यह सिला दिया कि उस ने राजवीर की पत्नी अंजलि से अवैध संबंध बना लिए. इस के बाद जो हुआ…

‘‘साहब, मैं सहतेपुर गांव से अजय पाल बोल रहा हूं. मेरी भाभी अंजलि ने मेरे भाई राजवीर का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया है. अंजलि भाभी को मैं ने पकड़ रखा है. आप जल्दी से हमारे गांव सहतेपुर आ जाइए.’’ अजय ने निगोही थाने में फोन करते हुए कहा. यह थाना उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के अंतर्गत आता है.निगोही थाने के इंचार्ज इंद्रजीत भदौरिया का ट्रांसफर अल्हागंज थाने में हो गया था. उस समय थाने का प्रभार एसएसआई मानबहादुर सिंह के पास था. एसएसआई के लिए यह हैरानी की बात थी कि एक औरत ने अपने पति को निर्दयता से मार डाला था.

एसएसआई ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस बल के साथ सहतेपुर गांव के लिए रवाना हो गए. कुछ ही देर में वह घटनास्थल पर पहुंच गए.मकान के एक कमरे में राजवीर की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 28 साल के करीब थी. उस की गरदन व चेहरे पर चोट के निशान थे. पास में एक डंडा, एक लौकेट और टूटी चूडि़यां पड़ी थीं.

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डंडे से यह जाहिर हो रहा था कि शायद उसी डंडे से राजवीर की हत्या की गई है. पूछने पर पता चला कि टूटा पड़ा लौकेट मृतक राजवीर का ही है. यानी राजवीर ने अपने बचाव में हत्यारे से संघर्ष भी किया था, जिस वजह से लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. टूटी चूडि़यों से यह भी पता चला कि घटना के समय कोई महिला भी वहां मौजूद थी.लाश के पास ही एक युवती गुमसुम बैठी थी. उस के पास ही एक युवक खड़ा था. वह युवक एसएसआई से बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम अजयपाल है. मैं ने ही आप को फोन किया था. यही मेरी भाभी अंजलि है. इस ने ही बबलू की मदद से मेरे भाई राजवीर की हत्या की है. बबलू तो भाग गया लेकिन इसे मैं ने भागने नहीं दिया. आप इसे गिरफ्तार कर लीजिए.’’

एसएसआई मान सिंह ने अंजलि को महिला कांस्टेबलों की सपुर्दगी में दे कर थाना निगोही भिजवा दिया. एसएसआई सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर सीओ (सदर) कुलदीप सिंह गुनावत भी आ गए. सीओ कुलदीप सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर मृतक के भाई से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर सीओ चले गए.

एसएसआई सिंह ने घटनास्थल पर पड़ा डंडा, लौकेट व टूटी चूडि़यां साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कीं और लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. इस के बाद एसएसआई मान सिंह थाने वापस लौट आए. यह 31 मई, 2020 की बात है.

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थाने में एसएसआई मान सिंह ने अंजलि से पूछताछ की तो वह फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर बाद आंसुओं का सैलाब थमा तो वह बोली, ‘‘हां साहब, मैं ने ही बबलू की मदद से अपने पति की हत्या की है. मैं अपना जुर्म कबूल करती हूं.’’‘‘यह बबलू कौन है?’’ सिंह ने पूछा.‘‘साहब, रिश्ते में बबलू मेरे पति का फुफेरा भाई है. वह निवाड़ी गांव का रहने वाला है.’’चूंकि अंजलि ने अपने पति राजवीर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था. अत: पुलिस ने अजय की तरफ से अंजलि व बबलू के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

उस के बाद सिंह ने अंजलि से विस्तृत पूछताछ की. उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम कैसी औरत हो कि अपना ही सिंदूर अपने हाथों से मिटा दिया. क्यों किया तुम ने ऐसा जघन्य अपराध?’’
अंजलि कुछ देर चुप रही, फिर वह बोली, ‘‘साहब, एक औरत रोज मरे, जलील हो तो वह क्या करेगी. मेरा पति मुझे रोज मारता था. मेरी आत्मा हर रात उस के बिस्तर पर मरती थी. बताइए, मैं कब तक सहती. जो मुझे जानवर समझता था, जिस ने मेरे साथ कभी इंसानों जैसा व्यवहार नहीं किया, जिस ने मेरी भावनाओं को कभी नहीं समझा. उस के हाथों हर रोज मरने के बदले मैं ने ही उसे मार डाला.’’

अंजलि के मन में बिलकुल ही पश्चाताप नहीं था. एक औरत, जिस की जिंदगी के मायने पति से शुरू हो कर उसी पर खत्म होते हैं, क्यों अपना सिंदूर मिटा देती है, यह जानने के लिए सिंह को अंजलि की पूरी कहानी जानना जरूरी था.

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उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव सहतेपुर है. इसी गांव में राजेंद्र पाल सपरिवार रहते थे. परिवार में उन की पत्नी लक्ष्मी देवी और 2 बेटे राजवीर और अजयपाल और 2 बेटियां क्रमश: ज्योति व रेनू थीं. राजेंद्र और लक्ष्मी का आकस्मिक देहांत हो गया तो घर की जिम्मेदारी सब से बड़े बेटे राजवीर पर आ गई. वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का खर्च उठाने लगा. उस ने अपनी मेहनत की कमाई से अपनी बड़ी बहन ज्योति का विवाह कर दिया.

इस के बाद राजवीर के विवाह के लिए भी रिश्ते आने लगे. तब उस ने करीब 4 साल पहले शाहजहांपुर की चौक कोतवाली के मोहल्ला अब्दुल्लागंज में रहने वाली युवती अंजलि से विवाह कर लिया.
अंजलि को पा कर राजवीर काफी खुश था. समय आगे बढ़ा तो राजवीर ने काम के सिलसिले में बाहर निकलने की सोची. उस के गांव के कई युवक बहादुरगढ़ (हरियाणा) में नौकरी कर रहे थे. राजवीर ने उन से बात की तो उन्होंने उसे भी बहादुरगढ़ बुला लिया.

जल्द ही वह बहादुरगढ़ की एक जूता फैक्ट्री में काम पर लग गया. काम पर लगते ही वह अंजलि को भी बहादुरगढ़ ले गया. समय बढ़ता जा रहा था लेकिन अंजलि मां नहीं बन पाई.
राजवीर फैक्ट्री से लौट कर कमरे पर आता तो वह इतना थका होता कि चारपाई पर लेटते ही नींद के आगोश में समा जाता. अंजलि चारपाई पर करवटें ही बदलती रहती.राजवीर का एक फुफेरा भाई था बबलू. वह राजवीर के गांव से कुछ ही दूरी पर निवाड़ी गांव में रहता था. राजवीर ने बबलू को भी अपने पास बहादुरगढ़ बुला लिया और उसे भी फैक्ट्री में काम पर लगवा दिया. दोनों के काम की शिफ्टें अलगअलग थीं.

बबलू राजवीर के साथ उसी के कमरे पर रहता था. बबलू की राजवीर की पत्नी अंजलि से खूब पटती थी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन के बीच हंसीमजाक होती रहती थी.

अंजलि पति की उपेक्षा का शिकार थी. पति न उस की कभी तारीफ करता था, न ही उसे देह सुख देता था, जिस से वह अभी तक मां नहीं बन पाई थी. इस कारण वह अकसर उदास रहती थी. बबलू जब भी उस से बातें करता तो मनभावन मीठीमीठी बातें ही करता था. उस के रूप की प्रशंसा भी खूब करता था. इसी कारण अंजलि धीरेधीरे बबलू की ओर आकर्षित होने लगी.एक दिन जब राजवीर फैक्ट्री में था तो बबलू कमरे पर अंजलि के साथ कमरे पर था. अंजलि का चेहरा बुझाबुझा सा क्यों रहता है, इस का कारण बबलू एक साथ रहने के कारण जान चुका था. अपनी अंजलि भाभी की आंखों में वह प्यास भी पढ़ चुका था.
बबलू ने अंजलि का मन जानने के लिए सवाल किया, ‘‘भाभी, एक बात मुझे परेशान करती रहती है. यह बताओ कि थकेहारे राजवीर भैया ड्यूटी से लौटने के बाद खाना खाते ही सो जाते हैं. वह आप का खयाल नहीं रख पाते. आप की खुिशयों का खयाल कब करते हैं.’’

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‘‘कैसी खुशियां…कैसा खयाल…’’ अंजलि के मुंह से सच निकल गया, ‘‘उन पर तो हर वक्त थकान ही हावी रहती है. घर आए और घोड़े बेच कर सो गए. उन की बला से कोई जिए या कोई मरे.’’ अंजलि ने दिल की बात कह डाली.मौके को देखते हुए बबलू ने एकदम अंजलि का हाथ थाम लिया, ‘‘भाभी, यह तो बहुत अन्याय है तुम्हारे साथ. इतनी सुंदर भाभी को कोई तड़पाए, यह मुझे मंजूर नहीं है.’’
‘‘तुम इस मामले में क्या कर सकते हो देवरजी. जिस की बीवी है, उसी को फिक्र नहीं.’’
‘‘कर तो बहुत कुछ सकता हूं भाभी,’’ कहते हुए बबलू ने अंजलि की कमर में बांहें डाल दीं, ‘‘अगर तुम कहो तो…’’‘‘चलो, मैं ने हां कह दी,’’ अंजलि ने मुसकरा कर तिरछी चितवन का तीर चलाया, ‘‘फिर क्या करोगे तुम?’’

‘‘तुम्हारी सारी तड़प मिटा दूंगा.’’ बबलू ने उसे बांहों में भींचते हुए कहा.
फिर उस ने अंजलि को चूमना शुरू किया. देवर की गर्म सांसों का अहसास हुआ तो अंजलि भी बबलू से लिपट गई. उस के बाद बबलू ने अंजलि को अपनी बांहों में वह सुख दिया, जो अंजलि ने अपने पति की बांहों में कभी नहीं पाया था. उस दिन से बबलू अंजलि के तन के साथ मन का साथी हो गया.
दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे देह संगम कर लेते. कुछ दिन तो उन का यह संबंध निर्बाध चलता रहा, फिर एक दिन पाप का भांडा फूट गया.

एक दिन राजवीर ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने अंजलि और बबलू की पिटाई की. दोनों ने राजवीर से अपने किए की माफी मांग ली. राजवीर ने फिर यह गलती न दोहराने की दोनों को सख्त हिदायत देते हुए माफ कर दिया.
अंजलि तन की शांति के लिए पतित हुई थी. राजवीर को चाहिए था कि वह बीवी की इच्छा पूरी करता, लेकिन राजवीर उन मर्दों में से था जो यह मानते हैं कि बिगड़ी हुई बीवी लातों की बात सुनती है. लिहाजा वह आए दिन अंजलि की पिटाई करने लगा.

पति की मार खातेखाते अंजलि विद्रोही बन गई. बबलू से मिला सुख वह भुला नहीं पा रही थी. इसलिए अधिक दिनों तक वे दोनों अलग नहीं रह पाए. अंजलि और बबलू दोनों फिर देह के खेल में लग गए.
एक बार फिर दोनों रंगेहाथों पकड़ लिए गए. एक बार फिर अपनी बेवफा पत्नी को राजवीर ने पीटा और बबलू को वापस उस के गांव भेज दिया. बबलू को भेज देने से राजवीर निश्चिंत हो गया. लेकिन अंजलि और बबलू की फोन पर बातें होती थीं. इस बार दोनों के संबंधों की बात राजवीर के भाई और बहनों के साथसाथ बबलू के घर वालों को भी पता चल गई. बबलू के पिता सुरेंद्र ने उस की शादी के प्रयास करने शुरू कर दिए.

इस बीच कोरोना वायरस के कारण देश में लौकडाउन हुआ तो राजवीर को बहादुरगढ़ से अंजलि के साथ अपने गांव सहतेपुर लौटना पड़ा.दूसरी ओर बबलू की शादी तय हो गई. 28 मई, 2020 को उस का तिलक था. अब चूंकि बबलू शादी कर रहा था तो राजवीर को यह लगा कि अब उस के अंजलि से संबंध यहीं खत्म हो जाएंगे.

राजवीर अंजलि, भाई अजय और दोनों बहनों ज्योति और रेनू के साथ बबलू के तिलक में शामिल होने के लिए गया. तिलक के बाद बबलू ने राजवीर से बात कर के सारे गिलेशिकवे दूर कर दिए. 30 मई को राजवीर और अंजलि अपने घर आ गए, उन्हें छोड़ने के लिए साथ में बबलू भी आया. अजय, ज्योति व रेनू बबलू के घर पर ही रुक गए थे. शाम 5 बजे तक तीनों सहतेपुर गांव पहुंचे. बबलू राजवीर के घर पर ही रुक गया.
देर रात राजवीर के सो जाने पर बबलू और अंजलि एकदूसरे के पास आ गए. दोनों साथ रंगरलियां मना ही रहे थे कि राजवीर की आंखें खुल गईं. उस ने देखा तो वह दोनों से झगड़ने लगा, उन में हाथापाई होने लगी.
इस पर अंजलि को गुस्सा आया, वह पति पर पिल पड़ी और बबलू से बोली, ‘‘आओ, आज इस का काम तमाम कर ही दो. फिर हमेशा के लिए हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

यह सुन कर बबलू भी राजवीर पर टूट पड़ा. इसी हाथापाई में राजवीर का लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. अंजलि की भी चूडि़यां टूट गईं.दोनों ने राजवीर को जमीन पर गिरा लिया और उस के गले पर डंडा रख कर दबा दिया, जिस से दम घुटनेसे राजवीर की मौत हो गई. इस के बाद बबलू वहां से चला गया. सुबह 4 बजे अंजलि ने चीखना- चिल्लाना शुरू कर दिया. पड़ोस में रहने वाले राजवीर के चचेरे भाई संदीप ने अंजलि के चीखने की आवाजें सुनीं तो वह राजवीर के घर आ गया. उस ने देखा कि राजवीर जमीन पर बेसुध पड़ा था. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे.

बबलू घर में नहीं था. गांव के लोग भी वहां इकट््ठे हो गए थे. राजवीर की मौत हो चुकी है, यह जान कर संदीप ने राजवीर के भाई अजय पाल को फोन कर के सब बता दिया.बड़े भाई राजवीर की मौत की बात सुन कर अजय पाल दोनों बहनों के साथ बबलू के घर वापस लौट आया, जिस के बाद कोहराम मच गया. अजय ने निगोही थाने फोन कर के घटना के बारे में बताया. पुलिस पहुंची और अंजलि को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया.

31 मई, 2020 की रात में ही पुलिस ने बबलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया. आवश्यक पूछताछ व जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मुझे कोन डिस्ट्रोफी नामक नेत्र विकार है, इसके इलाज के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 23 साल का युवक हूं. मुझे जन्म से ही कोन डिस्ट्रोफी नामक नेत्र विकार है. यह रोग क्यों होता है और इस के इलाज के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कोई घरेलू इलाज हो तो उस के बारे में विस्तार से बताएं?

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जवाब

कोन डिस्ट्रोफी आंख के परदे में पाई जाने वाली शंकु कोशिकाओं के नष्ट होने से उत्पन्न होने वाला रोग है. शंकु कोशिकाएं आंखों की सब से नाजुक कोशिकाएं होती हैं, जिन की मदद से हम रंगों के बीच भेद कर पाते हैं. हमारी सूक्ष्म दृष्टि भी इन्हीं कोशिकाओं पर आश्रित होती है.

शंकु कोशिकाओं के नष्ट होने पर नजर कमजोर पड़ जाती है. तेज रोशनी में देखने में भी परेशानी होती है और रंग भी ठीक से पहचान में नहीं आते.

आयुर्विज्ञान में कोन डिस्ट्रोफी रोग का कोई निश्चित इलाज नहीं है. कुछ विटामिन सप्लिमैंट जैसे बीटा कैरोटिनोड, ल्यूटिन लेने से कुछ लाभ मिलने की खबरें हैं, पर आराम मिलेगा ही यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता. ओमेगा-3 फैटी ऐसिड लेने से भी स्थिति में हलकाफुलका सुधार हो सकता है.

कोन डिस्ट्रोफी आनुवंशिक नेत्र रोग है. इस से बचने की अब तक कोई प्रभावी युक्ति विकसित नहीं हो पाई है.

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सुवीरा-भाग 1: सुवीरा के जीवन में किस चीज की कमी थी?

विनोद औफिस से चहकता हुआ आया तो सुवीरा ने पूछा, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘हां, कितने दिनों से इच्छा थी आस्ट्रेलिया जाने की, कंपनी अब भेज रही है.’’

सुवीरा मुसकराई, ‘‘अच्छा, वाह, कब तक जाना है?’’

‘‘पेपर्स तो मेरे तैयार ही हैं, बस, जल्दी ही समझ लो.’’

‘‘लेकिन मेरा तो पासपोर्ट भी नहीं बना है, इतनी जल्दी बन जाएगा?’’

‘‘अभी मैं अकेला ही जा रहा हूं.’’

‘‘और मैं?’’ सुवीरा को धक्का लगा.

‘‘अभी फैमिली नहीं ले जा सकते, तुम्हारा बाद में देखेंगे.’’

‘‘मैं कैसे रहूंगी अकेले? फिर तुम्हें क्यों इतनी खुशी हो रही है?’’

‘‘यह मौका बड़ी मुश्किल से मिला है, मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘तो ठीक है, पर मुझे भी तो ले जाओ.’’

‘‘नहीं, अभी तो यह असंभव है.’’

‘‘शादी के 6 महीने बाद ही मुझे अकेला छोड़ कर जाओगे और वह भी तब जब मुझे तुम्हारी सब से ज्यादा जरूरत है.’’

‘‘सुवीरा अभी तुम प्रैग्नैंट हो, 5 महीने बाद डिलीवरी है, मैं तब तक आ ही जाऊंगा और आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

‘‘डिलीवरी के बाद ले कर जाओगे?’’

‘‘हां, अभी बहुत टाइम है, अभी तो तुम मेरे साथ खुशी मनाओ.’’ सुवीरा आंखों में आए आंसू छिपाते हुए विनोद की फैली बांहों में समा गई. विनोद भविष्य के प्रति बहुत उत्साहित था. लेकिन सुवीरा का मूड ठीक होने को नहीं आ रहा था. सुवीरा ने कई बार अपने आंसू पोंछते हुए डिनर तैयार किया और विनोद के साथ बैठ कर बहुत बेमन से खाया. विनोद तो आराम से सो गया लेकिन सुवीरा को चैन नहीं आ रहा था. पूरी रात करवटें ही बदलती रही वह.

और देखते ही देखते तेजी से दिन बीतते गए. विनोद डिलीवरी के समय वापस आने का वादा कर आस्ट्रेलिया चला गया. सुवीरा की मम्मी बीना आ चुकी थीं. हमेशा लखनऊ में ही रही बीना का मन मुंबई में नहीं लग रहा था. वे कहतीं, ‘‘यहां तो न आसपड़ोस है न कोई जानपहचान, कैसे कटेगा टाइम. मांबेटी दोनों की तबीयत ढीली रहने लगी थी. विनोद से वैबकैम के माध्यम से बात तो हो जाती लेकिन सुवीरा की बेचैनी और बढ़ जाती. 2-2 मेड होने से सुवीरा को आराम तो था लेकिन एक तो गर्भावस्था, उस पर इतना अकेलापन. एक दिन मां ने कहा, ‘‘सुवीरा, मैं यहां नहीं रह पाऊंगी ज्यादा दिन, मन बिलकुल नहीं लगता यहां, कोई कितना टीवी देखे, कितना आराम करे. ऐसा कर, तू ही लखनऊ चल.’’

‘‘नहीं मां, विनोद चाहते हैं कि मैं यहीं रहूं. डिलीवरी के बाद आप चली जाना.’’ डिलीवरी की डेट से एक हफ्ता पहले आ गया विनोद. सुवीरा खिल उठी. सुवीरा के ऐडमिट होने की सारी तैयारी शुरू हो गई. सुवीरा ने एक सुंदर, स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया. विनोद ने बेटी का नाम सिद्धि रखा. सब खुश थे. एक महीना हो चुका था. विनोद ने कोई बात नहीं छेड़ी तो एक दिन सुवीरा ने ही कहा, ‘‘अब तो ले चलोगे न हमें?’’

‘‘सिद्धि अभी छोटी है. वहां नई जगह इसे संभालने में तुम्हें दिक्कत होगी. बाद में देखते हैं.’’ मां ने पतिपत्नी की बात में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा. बस, इतना ही कहा, ‘‘मैं तो अब जाने की सोच रही हूं.’’

‘‘हां मां, आप अब चली जाओ,’’ सुवीरा ने अपने दिल पर पत्थर रखते हुए कहा. मां ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? मेरे साथ ही चलो.’’

‘‘नहीं मां, मैं रह लूंगी, मेड और मेरी सहेली सीमा है. वह आतीजाती रहती है. मैं मैनेज कर लूंगी.’’ बीना बेटी को बहुत सारी हिदायतें दे कर चिंतित मन से चली गईं. कुछ दिनों बाद जल्दी आने का वादा कर विनोद भी चला गया. सुवीरा ने अपनेआप को सिद्धि में रमा दिया. सीमा ने एक बहुत शरीफ और मेहनती महिला नैना को सुवीरा और सिद्धि की देखरेख के लिए ढूंढ़ लिया. नैना के दोनों बच्चे गांव में उस की मां के पास रहते थे. वह तलाकशुदा थी. उस ने बहुत उत्साह से नन्ही सिद्धि की देखभाल में सुवीरा का साथ दिया. सुवीरा विनोद के साथ रहने की आस में दिन गिनती रही. 1 साल बाद विनोद आया. आते ही उस ने सुवीरा और सिद्धि पर महंगे उपहारों की बरसात कर दी. विनोद को देख खुशी के मारे सुवीरा अकेले बिताया पूरा साल भूल सी गई. एक दिन विनोद ने कहा, ‘‘मैं वापस आने की कोशिश कर रहा हूं. बौस से बात की है. वे भी कुछ तैयार से लग रहे हैं. रहूंगा यहीं लेकिन विदेश के दौरे चलते रहेंगे. पोस्ट बढ़ी है तो काम भी बढ़ेगा ही और इस बार तो 6 महीने में ही आ जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है विनोद, इस बार आ ही जाओ तो ठीक है. अकेले रहा नहीं जाता.’’ विनोद 6 महीने में आने के लिए कह कर फिर से चला गया. उस के चैक लगातार समय पर आते रहे. नैना ने सुवीरा को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. नैना, सिद्धि, सीमा, अंजना और बाकी सहेलियों के साथ सुवीरा अपना दिन तो बिता देती लेकिन रात को जब बिस्तर पर लेटती तो विनोद की अनुपस्थिति उस का कलेजा होम कर देती. दिन में सब के सामने वह एक हिम्मती लड़की थी लेकिन उस का दिल किस अकेलेपन से भरा था, यह वही जानती थी. विनोद 6 महीने बाद सचमुच आ गया है. सुवीरा की खुशी का ठिकाना नहीं था. अब सब ठीक हो गया था. बस, बीचबीच में विनोद को टूर पर जाना था. सिद्धि 4 साल की हुई तो सुवीरा ने एक और बेटी को जन्म दिया जिस का नाम विनोद ने समृद्धि रखा. दोनों बेटियों को  सुवीरा ने कलेजे से लगा लिया. उसे इस समय अपनी मां की बहुत याद आई जिन की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी. उस के पिता लखनऊ में अकेले ही रह रहे थे.

अब वह रातदिन बेटियों की परवरिश में व्यस्त थी. विनोद को अपने काम की जिम्मेदारियों से फुरसत नहीं थी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. सिद्धि, समृद्धि बड़ी हो रही थीं पर कहीं कुछ ऐसा था जो सुवीरा को उदास कर देता था. वह जो चाहती थी, उसे मिल नहीं पा रहा था. वह चाहती थी विनोद उसे और समय दे, बैठ कर बातें करे, कुछ अपनी कहे व कुछ उस की सुने. लेकिन विनोद के पास किसी भी भावना में बहने का समय नहीं था अब. वह हर समय व्यस्त दिखता. सुवीरा उस का मुंह देखती रह जाती. वह बिलकुल प्रैक्टिकल, मशीनी इंसान हो गया था. सुवीरा दिन पर दिन अकेली होती जा रही थी. सुवीरा ने एक दिन  कहा भी, ‘‘विनोद, थोड़ा तो टाइम निकालो कभी मेरे लिए.’’

‘‘सुवीरा, यही टाइम है बढि़या लाइफस्टाइल के लिए खूब भागदौड़ करने का. कितनों के पास है मुंबई में ऐसा शानदार घर. सब सुखसुविधाएं तो हैं घर में. तुम, बस आराम से ऐश करो. फोन, इंटरनैट, कार, क्या नहीं है तुम्हारे पास.’’ सुवीरा क्या कहती, मन मार कर रह गई. वह विनोद के मशीनी जीवन से उकता चुकी थी. या तो बाहर, या घर पर फोन, लैपटौप पर व्यस्त रहना. रात को अंतरंग पलों में भी उस का रोबोटिक ढंग सुवीरा को आहत कर जाता.

एक दिन विनोद बाहर से आया तो उस के साथ में उस की हमउम्र का एक पुरुष था. विनोद ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘सुवीरा, यह महेश है. एक साथ ही पढ़े हैं. यह सीए है.’’ महेश और सुवीरा ने एकदूसरे का अभिवादन किया. महेश बहुत सादा सा इंसान लगा सुवीरा को. महेश ने विनोद के घर की खुलेदिल से तारीफ की. सुवीरा महेश के लिए कुछ लाने रसोई में गई तो विनोद भी वहीं पहुंच गया, बोला, ‘‘मेरे अच्छे दोस्तों में से एक रहा है यह. बहुत अच्छा स्वभाव है लेकिन कमाई में मुझ से बहुत पीछे रह गया. आज अचानक एक होटल के बाहर मिल गया. इस का अपना औफिस है मुलुंड में. एक कोचिंग सैंटर में अकाउंटैंसी की क्लासेज लेता है. बहुत इंटैलिजैंट है. मैं ने सोचा है, इसे यहीं ऊपर के रूम में रहने के लिए कह दूं. बच्चों की पढ़ाई भी देख लेगा, इस पर एहसान भी हो जाएगा और बच्चों को ट्यूशन के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा.’’

‘‘इस का परिवार?’’

‘‘शादी नहीं की इस ने, किसी लड़की को चाहता तो था लेकिन घरपरिवार की जिम्मेदारी, अपनी 2 बहनों

की शादी निबटातेनिबटाते खुद को भूल गया. उस लड़की ने कहीं और शादी कर ली थी किसी अमीर लड़के से. बस, दूसरों के बारे में ही सोच कर जीता रहा बेवकूफ.’’ सुवीरा को दिल ही दिल में विनोद की आखिरी कही गई बात पर तेज गुस्सा आया, लेकिन इतना ही बोली, ‘‘जैसे तुम ठीक समझो.’’ विनोद ने दिल ही दिल में पूरा हिसाबकिताब लगा कर महेश से कहा, ‘‘देख, घर होते हुए तू कहीं और नहीं रहेगा.’’

‘‘नहीं यार, मैं आराम से एक लड़के के साथ शेयर कर के एक फ्लैट में रह रहा हूं. कोई प्रौब्लम नहीं है. सुबह अपनी क्लास ले कर औफिस चला जाता हूं.  औफिस पास ही है.’’

‘‘नहीं, मैं तेरी एक नहीं सुनूंगा. अभी ड्राइवर के साथ जा और अपना सामान ले कर आ,’’ विनोद ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और ड्राइवर को बुला कर आदेश भी दे दिया  दोनों की बातचीत में सुवीरा ने कोई हिस्सा नहीं लिया था. महेश के जाने के बाद विनोद ने सिद्धि, समृद्धि से कहा, ‘‘लो भई, तुम्हारे लिए टीचर का इंतजाम घर में ही कर दिया, अब जितना चाहो, जब चाहो इस से पढ़ लेना.’’ दोनों ‘‘थैंक्यू पापा,’’ कह कर हंसते हुए पिता से लिपट गईं. सुवीरा को चुप देख कर विनोद ने पूछा, ‘‘तुम क्यों सीरियस हो? तुम पर इस का कोई काम नहीं बढ़ेगा. अरे, इसे रखना नुकसानदायक नहीं होगा.’’ सुवीरा मन ही मन विनोद के हिसाबकिताब पर झुंझला गई. कैसा है विनोद, हर बात में हिसाबकिताब, दिल में किसी के लिए कोई कोमल भावनाएं नहीं, दोस्ती में भी स्वार्थ, क्या सोच है.

महेश अपना सामान ले कर आ गया. सामान क्या, एक बौक्स में किताबें ही किताबें थीं. कपड़े कम, किताबें ज्यादा थीं. सुवीरा से झिझकते हुए कहने लगा, ‘‘मेरे आने से आप को प्रौब्लम तो होगी?’’

‘‘नहीं, प्रौब्लम कैसी. आप आराम से रहें. किसी चीज की भी जरूरत हो तो जरूर कह दें.’’ डिनर के समय विनोद ने सुवीरा से कहा, ‘‘ऐसा करते हैं, आज पहला दिन है, इसे नीचे बुला लेते हैं. कल से महेश का नाश्ता और डिनर ऊपर ही भिजवा देना. लंच टाइम में तो यह रहेगा नहीं.’’ सुवीरा ने हां में सिर हिला दिया. महेश नीचे आ गया. उस की बातों ने, आकर्षक हंसी ने सब को प्रभावित किया. सिद्धि, समृद्धि तो खाना खत्म होने तक उस से फ्री हो चुकी थीं. विनोद अपनी कंपनी टूर के बारे

में बताता रहा. डिनर के बाद महेश सब को ‘गुडनाइट’ और ‘थैंक्स’ बोल कर ऊपर चला गया. थोड़ी देर बाद विनोद और सुवीरा अपने बैडरूम में आए. सुवीरा कपड़े बदल कर लेट गई. विनोद ने पूछा, ‘‘इसे रख कर ठीक किया न?’’

‘‘अभी क्या कह सकते हैं? अभी तो एक दिन भी नहीं हुआ.’’

सुवीरा-भाग 4 : सुवीरा के जीवन में किस चीज की कमी थी?

‘‘महेश के साथ, हमेशा के लिए.’’

पेपर पटक कर विनोद दहाड़ा, ‘‘यह क्या बकवास है,’’ कहतेकहते सुवीरा को मारने के लिए हाथ उठाया तो सुवीरा ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘यह हिम्मत मत करना, विनोद, बहुत पछताओगे.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो यह?’’

‘‘मैं अब तुम्हारे साथ एक दिन भी नहीं रह सकती.’’

‘‘क्यों , क्या परेशानी है तुम्हें, सबकुछ तो है घर में, कितना पैसा देता हूं तुम्हें.’’

‘‘पैसा अगर खुशी खरीद सकता तो मैं भी खुश होती. मेरे अंदर कुछ टूटने की यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है विनोद. मुझे जो चाहिए वह नहीं है घर में.’’

‘‘वह धोखेबाज है, उसे मैं हरगिज नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘तुम्हारे पास किसी को पकड़नेछोड़ने के लिए समय है कहां,’’ व्यंग्यपूर्वक कहा सुवीरा ने, ‘‘जिस के पास पत्नी का मन समझने के लिए थोड़ी भी कोई भावना न हो, वह क्या किसी को दोष देगा?’’ विनोद उस का मुंह देखता रह गया, सुवीरा एक बैग में अपने कपड़े रखने लगी. रात हो रही थी. बच्चे सो चुके थे. विनोद पैर पटकते हुए बैडरूम से निकला. कुछ समझ नहीं आया तो सीमा को फोन पर पूरी बता बता

कर उसे फौरन आने के लिए कहा. सुवीरा ने चारों ओर एक उदास सी नजर डाली. ये सब छोड़ कर एक अनजान रास्ते पर निकल रही है. वह गलत तो नहीं कर रही है. अगर गलत होगा भी तो क्या, देखा जाएगा. महेश का साथ अगर रहेगा तो ठीक है वरना पिता के पास चली जाएगी या कहीं अकेली रह लेगी. अब भी तो वह अकेली ही जी रही है. सीमा रंजन के साथ फौरन आ गई. सुवीरा अपना बैग ले कर निकल ही रही थी, वह समझ गई विनोद ने सीमा को बुलाया है. सीमा ने उसे झ्ंिझोड़ा, ‘‘यह क्या कर रही हो, सुवीरा ऐसी क्या मजबूरी हो गई जो इतना बड़ा कदम उठाने के लिए तैयार हो गई?’’

‘‘बस, सीमा, दिमाग को तो सालों से समझा रही हूं, बस, दिल को नहीं समझा पाई. दिल से मजबूर हो गई. अब नहीं रुक पाऊंगी,’’ कह कर सुवीरा गेट के बाहर निकल गई. विनोद जड़वत खड़ा रह गया. सीमा और रंजन देखते रह गए. सुवीरा चली जा रही थी, नहीं  जानती थी कि उस ने गलत किया या सही. बस, वह उस रास्ते पर बढ़ गई जहां महेश उस का इंतजार कर रहा था.

सुवीरा-भाग 3 : सुवीरा के जीवन में किस चीज की कमी थी?

विनोद दिल्ली से लौटा तो इस बार सुवीरा उसे देख कर खुश नहीं, उदास ही हुई. अब महेश से मिलने में बाधा रहेगी. खैर, देखा जाएगा. विनोद ने रात को पत्नी का अनमना रवैया भी महसूस नहीं किया. सुवीरा आहत हुई. वह इतना आत्मकेंद्रित है कि उसे पत्नी की बांहों का ढीलापन भी महसूस नहीं हो रहा है. पत्नी की बेदिली पर भी उस का ध्यान नहीं जा रहा है. वह मन ही मन महेश और विनोद की तुलना करती रही. अब वह पूरी तरह बदल गई थी. उस का एक हिस्सा विनोद के पास था, दूसरा महेश के पास. विनोद जैसे एक जरूरी काम खत्म कर करवट बदल कर सो गया. वह सोचती रही, वह हमेशा कैसे रहेगी विनोद के साथ. उसे सुखसुविधाएं, पैसा, गाड़ी बड़ा घर कुछ नहीं चाहिए, उसे बस प्यार चाहिए. ऐसा साथी चाहिए जो उसे समझे, उस की भावनाओं की कद्र करे. रातभर महेश का चेहरा उस की आंखों के आगे आता रहा.

सुबह नाश्ते के समय विनोद ने पूछा, ‘‘महेश कैसा है? बच्चों को पढ़ाता है न?’’

‘‘हां.’’

‘‘नाश्ता भिजवा दिया उसे?’’

‘‘नहीं, नीचे ही बुला लिया है.’’

‘‘अच्छा? वाह,’’ थोड़ा चौंका विनोद. महेश आया विनोद से हायहैलो हुई. सुवीरा महेश को देखते ही खिल उठी. विनोद ने पूछा, ‘‘और तुम्हारा औफिस, कोचिंग कैसी चल रही है?’’

‘‘अच्छी चल रही है.’’

‘‘भई, टीचर के तो मजे होते हैं, पढ़ाया और घर आ गए, यहां देखो, रातदिन फुरसत नहीं है.’’

‘‘तो क्यों इतनी भागदौड़ करते हो? कभी तो चैन से बैठो?’’

‘‘अरे यार, चैन से बैठ कर थोड़े ही यह सब मिलता है,’’ गर्व से कह कर विनोद नाश्ता करता रहा. महेश ने बिना किसी झिझक के सुवीरा से पूछा, ‘‘आप का नाश्ता कहां है?’’

विनोद थोड़ा चौंक कर बोला, ‘‘अरे, सुवीरा तुम भी तो करो.’’ सुवीरा बैठ गई, अपना भी चाय का कप लिया. विनोद नाश्ता खत्म कर जल्दी उठ गया. सिद्धि, समृद्धि भी जाने के लिए तैयार थीं. सुवीरा महेश एकदूसरे के प्यार में डूबे नाश्ता करते रहे. महेश ने कहा, ‘‘मैं भी चलता हूं.’’ बच्चे भी निकल गए तो सुवीरा ने कहा, ‘‘रुकोगे नहीं?’’

‘‘बहुत जरूरी क्लास है. फ्री होते ही आ जाऊंगा. औफिस में भी एक जरूरी क्लाइंट आने वाला है, जल्दी आ जाऊंगा, सब निबटा कर.’’

‘‘लेकिन तब तक तो बच्चे भी आ जाएंगे.’’

‘‘इतनी बेताबी?’’

सुवीरा हंस पड़ी. सुवीरा को अपने सीने से लगा कर प्यार कर महेश चला गया. सुवीरा उस के पास से आती खुशबू में बहुत देर खोई रही. अब उसे किसी बात की न चिंता थी न डर. वह अपनी ही हिम्मत पर हैरान थी, क्या प्यार ऐसा होता है, क्या प्रेमीपुरुष का साथ एक औरत को इतनी हिम्मत से भर देता है. तो वह जो 15 साल से विनोद के साथ रह रही है, वह क्या है. विनोद के लिए उस का दिल वह सब क्यों महसूस नहीं करता जो महेश के लिए करता है. विनोद का स्पर्श उस के अंदर वह उमंग, वह उत्साह क्यों नहीं भरता जो महेश का स्पर्श भरता है. अब रातदिन एक बार भी विनोद का ध्यान क्यों नहीं आता. महेश ही उस के दिलोदिमाग पर क्यों छाया रहता है. एक उत्साह उमंग सी भरी रहने लगी थी उस के रोमरोम में. वह कई बार सोचती, घर में सक्षम, संपन्न पति के रहने के बावजूद वह पराए पुरुष के स्पर्श के लिए कैसे उत्सुक रहने लगी है. कहां गए वो सालों पुराने संस्कार जिन्हें खून में संचारित करते हुए इतने सालों में किसी पुरुष के प्रति कोई आकर्षण तक न जागा था. आंखें बंद कर वह महसूस करती कि यह कोई अपरिचित पुरुष नहीं है बल्कि उस का स्वप्नपुरुष है, स्त्रियों के चरित्र और चरित्रहीनता का मामला सिर्फ शारीरिक घटनाओं से क्यों तय किया जाता है. कितना विचित्र नियम है यह.

फिर कई दिन बीत गए. दोनों के संबंध दिन पर दिन पक्के होते जा रहे थे. मौका मिलते ही दोनों काफी समय साथ बिताते. सुवीरा अपनी सब सहेलियों को जैसे भूल गई थी. सब उस से न मिलने की शिकायत करतीं पर वह बच्चों की पढ़ाई की व्यस्तता का बहाना बना सब को बहला देती. सुवीरा विनोद की अनुपस्थिति में अकसर महेश की बाइक पर बैठ कर बाहर घूमतीफिरती. दोनों शौपिंग करते, मूवी देखते, और घर आ कर एकदूसरे की बांहों में खो जाते. सीमा ने दोनों को बाइक पर आतेजाते कई बार देखा था. कुछ था जो उसे खटक रहा था लेकिन किस से कहती और क्या कहती. कितनी भी अच्छी सहेली थी लेकिन यह बात छेड़ना भी उसे उचित नहीं लग रहा था. सुवीरा को अब यह चिंता लगी थी कि इस संबंध का भविष्य क्या होगा. वह तो अब महेश के बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. एक दिन अकेले में सुवीरा को उदास देख कर महेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? उदास क्यों हो?’’

‘‘महेश, क्या होगा हमारा? मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगी.’’

‘‘तो मैं भी कहां रह पाऊंगा अब. मैं ने तो कभी यह सोचा ही नहीं था कि तुम भी मुझ से इतना प्यार करोगी क्योंकि समाज के इस ढांचे को तोड़ना आसान नहीं होता. इतना तो जानता हूं मैं.’’

‘‘लेकिन एक न एक दिन विनोद को पता चल ही जाएगा.’’

‘‘तब देख लेंगे, क्या करना है.’’

‘‘नहीं महेश, कोई भी अप्रिय स्थिति आने से पहले सोचना होगा.’’

‘‘तो बताओ फिर, क्या चाहती हो? मुझे तुम्हारा हर फैसला मंजूर है.’’

‘‘तो हम दोनों कहीं और जा कर रहें?’’

‘‘क्या?’’ करंट सा लगा महेश को, बोला,‘‘विनोद? बच्चे?’’

‘‘विनोद को तो पत्नी का मतलब ही नहीं पता, बेटियों को वह वैसे भी बहुत जल्दी एक मशहूर होस्टल में डालने वाला है. और वैसे भी, मेरी बेटियां शायद पिता के ही पदचिह्नों पर चलने वाली हैं. वही पैसे का घमंड, वही अकड़, जब घर में किसी को मेरी जरूरत ही नहीं है तो क्या मैं अपने बारे में नहीं सोच सकती,’’ कहते हुए सुवीरा का स्वर भर्रा गया. महेश ने उसे सीने से लगा लिया. उस के बाद सहलाते हुए बोला, ‘‘लेकिन मैं शायद तुम्हें इतनी सुखसुविधाएं न दे पाऊं, सुवीरा.’’

‘‘जो तुम ने मुझे दिया है उस के आगे ये सब बहुत फीका है. महेश, हम जल्दी से जल्दी यहां से चले जाएंगे. अपने मन को मारतेमारते मैं थक चुकी हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं रहने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘और तुम पैसे की चिंता मत करना. मुझे कोई ऐशोआराम नहीं चाहिए, सादा सा जीवन और तुम्हारा साथ, बस.’’

‘‘पर तुम देख लो, रह पाओगी अपने परिवार के बिना?’’

‘‘हां, मैं ने सबकुछ सोच लिया है. तुम से मिले एक साल हो रहा है और मैं ने इतने समय में बहुत कुछ सोचा है.’’ महेश उस के दृढ़ स्वर की गंभीरता को महसूस करता रहा. सुवीरा ने कहा, ‘‘मैं विनोद को बहुत जल्दी बता दूंगी कि मैं अब उस के साथ नहीं रह सकती.’’ दोनों आगे की योजना बनाते रहे. सिद्धि, समृद्धि आ गईं तो महेश ऊपर चला गया. सुवीरा ने पूछा, ‘‘बड़ी देर लगा दी पार्टी में?’’

‘‘हां मम्मी, फ्रैंड्स के साथ टाइम का पता ही नहीं चलता.’’ सुवीरा अपनी बेटियों का मुंह देखती रही, छोड़ पाएगी इन्हें. वह मां है,  क्या करने जा रही है. इतने में समृद्धि ने कहा,

‘‘मम्मी, रिंकी की मम्मी को देखा है आप ने?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अरे, आप देखो उन्हें. क्या लगती हैं. क्या इंजौय करती हैं लाइफ. और आप कितनी चुपचुप सी रहती हैं.’’

‘‘तो क्या करूं, तुम दोनों तो अपने स्कूल फ्रैंड्स में बिजी रहती हो, मैं अकेली क्या खुश होती घूमूं?’’

सिद्धि शुरू हो गई, ‘‘ओह मम्मी, क्या नहीं है हमारे पास. डैड को देखो, कितने सक्सैसफुल हैं.’’ सुवीरा ने मन में कहा, जैसा बाप वैसी बेटियां. कुछ बोली नहीं, सब को छोड़ कर जाने का इरादा और पक्का हो गया उस का. आगे के तय प्रोग्राम के हिसाब से महेश विनोद के घर से यह कह कर चला गया कि उसे कहीं अच्छा जौब मिल गया है, जहां का आनाजाना यहां से दूर पड़ेगा. विनोद ने बस ‘एज यू विश’ कह कर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी. अब सुवीरा और महेश मोबाइल पर ही बात कर रहे थे. 3 दिनों बाद सुवीरा का 37वां बर्थडे था. विनोद ने औफिस से आते ही कहा, ‘‘सुवीरा, मैं परसों जरमनी जा रहा हूं, एक मीटिंग है.’’

वहीं बैठी सिद्धि ने कहा, ‘‘मम्मी का बर्थडे?’’

‘‘हां, तो वहां से महंगा गिफ्ट ले कर आऊंगा तुम्हारी मम्मी के लिए और क्या चाहिए बर्थडे पर.’’ सिद्धि अपने कमरे में चली गई. डिनर के बाद विनोद बैडरूम में अपनी अलमारी में कुछ पेपर्स देख रहा था. वह काफी व्यस्त दिख रहा था. सुवीरा ने बहुत गंभीर स्वर में कहा, ‘‘विनोद, कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘अभी नहीं, बहुत बिजी हूं.’’

‘‘नहीं, अभी करनी है.’’

‘‘जल्दी क्या है, लौट कर करता हूं.’’

‘‘तब नहीं हो पाएगी.’’

‘‘क्यों डिस्टर्ब कर रही हो इतना?’’

‘‘विनोद, मैं जा रही हूं.’’

पेपर्स से नजरें हटाए बिना ही विनोद ने पूछा, ‘‘कहां?’’

 

आर्थिक हालत ठीक नहीं

लौकडाउन लगभग समाप्त हो जाने के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर चलती नजर नहीं आ रही है. आयातनिर्यात इस का एक पैमाना है. जून माह में आयात लगभग 49 प्रतिशत कम हुआ और निर्यात 120 प्रतिशत कम हुआ. वहींदेश में कोरोना के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इस का मतलब है कि पहले सरकारी हुक्म की वजह से कामधाम बंद हुए थेलेकिन अब लोग खुद काम कम ही कर रहे हैं और आयातनिर्यात का जोखिम नहीं ले रहे क्योंकि आज और्डर दें या लें तो वह 3 माह बाद पूरा होता है.

कोरोना की वजह से मालूम नहीं कि कब कौन सा शहरकौन सा राज्यकौन सा व्यापारिक इलाका बंद हो जाए. कोरोना के कारण बंद हुआ बाजार जब खुलता है तो भी ग्राहक नहीं लौट रहेयह आयातनिर्यात के आंकड़ों से साफ है.

इस का कारण सिर्फ कोरोना ही नहीं है. सरकार के पहले की और कोरोना के बाद की नीतियां ही जिम्मेदार हैं. कोरोना से पहले ही अर्थव्यवस्था मरने सी लगी थी. भवन निर्माण और औटो सैक्टर मंदी के कारण बंद होने लगे थे. दूसरे बहुत से सैक्टर्स भी छटपटा रहे थे. अगर कोरोना के चलते लौकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद देशभर के मजदूर घर लौटने लगे थेतो इसलिए कि उन्हें एहसास हो गया था कि अब सरकार से देश संभल नहीं रहा है. उन्होंने गांव में जा कर मरने को ज्यादा अच्छा समझा. करोड़ों मजदूरों को वह एहसास हो गया जो देश के भक्त व्यापारियों को नहीं हुआ और वे आस लगाए रहे कि सबकुछ ठीक हो जाएगा.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लौकडाउन की घोषणा वाले भाषण में विश्वास दिलाया था कि सबकुछ 21 दिनों में ठीक हो जाएगा. लोगों का धार्मिक अंधविश्वास बनाए रखने के लिए उन्होंने 17 दिनों के महाभारत के युद्ध की याद दिलाई थी. न महाभारत काम आईन वह वादा. आज 3 माह बाद देश पर छाए बादल और भी काले हो गए हैं.

पर उम्मीद की किरणें नहीं हैंऐसा नहीं है. सरकार का तो भरोसा नहींपर देश के किसानों को अपने पर भरोसा है. देश के खेत भरपूर फसल दे रहे हैं. बढ़ती डीजल की कीमतों के बाद भी किसानों ने खेतों में पानी देना बंद नहीं कियाफसल काटना बंद नहीं किया. आज मुफ्त खाना बांटने के बाद भी भरपूर अनाज है.

इस देश की जनता कर्मठ है. दिक्कत हैं समाजकर्म और सरकार के नियम. अपनी वसूली करने के लिए सरकारों ने तरहतरह के अंकुश लगा रखे हैं. इस के बावजूददेश में काम चलता है. जब भी कभी देश में ऐसी सरकार आई जो लोगों के काम में कम दखल देगी और समाज या धर्म के नाम पर किसी को दखल करने भी न देगीतो यह देश कुलांचें भरेगा.

देश किस ओर

सरकार आज मुगलों के जमाने की नहींपौराणिक जमाने की सोच वाली बनती जा रही है जिस में समाज को सबक सिखाने के लिए बिना अपराध किए ही किसी को दंड देना जरूरी था. शंबूक का गला राम ने काटा क्योंकि यदि शूद्र वेद पढ़ने लगे तो अनर्थ हो जाएगा. जबकिशंबूक ने कोई अपराध नहीं किया था. द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा मांगा इसलिए नहीं कि उस ने कोई अपराध कियाबल्कि इसलिए कि अर्जुन से अच्छा कोई धनुर्धारी न होने पाए और एकलव्य की जाति के लोग धनुर्विद्या न सीखें.

दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने फिरोज खान नाम के एक ट्रक ड्राइवर का मामला जमानत के लिए आया जिस में वह फरवरी 2020 में उत्तरपूर्व दिल्ली में हुए दंगों में जुटी भीड़ का एक हिस्सा मात्र था और गिरफ्तार कर लिया गया था. सरकारी पक्ष के पास कोई सुबूत नहीं था कि उस ने कोई अपराध किया था. सरकारी वकीलबसबेधड़क यह कहे जा रहे थे कि जमानत देना समाज को गलत संदेश देना होगा. दूसरों को सबक सिखाने के लिए जरूरी है कि फिरोज खान जैसे निरपराधी जेल में रहें.

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इस तरह के तर्क आज सारे देश में दिए जा रहे हैं और निचली अदालतों में तो पक्केतौर पर उन्हें सुन भी लिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट भी आमतौर पर सरकारी पक्ष की बात ब्रह्मवाक्य मान कर स्वीकार कर रही हैहांकुछ उच्च न्यायालयों के कुछ न्यायाधीश आज भी सरकारी नाराजगी की चिंता किए बिना ऐसी दलीलों को ठुकरा रहे हैं.

यह देश आज संविधान पर चल रहा हैपौराणिक सोचविचार पर नहीं. ऐसे में निर्णय हिंदूमुसलिमब्राह्मणदलितपुरुषस्त्रीसमाजसंस्कृतिसंस्कार पर नहींबल्कि स्वतंत्रताओंनैतिकतातर्कन्यायिकता पर लिए जाने चाहिएवह चाहे सरकार लेसंसद ले या न्यायपालिका ले. पुरातनपंथी सोच देश और समाज को फिर से काले गहरे गड्ढे में धकेल देगी. यहां भी वैसी ही अराजकता पैदा हो जाएगी जो अमेरिका में काले जौर्ज फ्लौयड की मिनियापोलिस में गोरे पुलिस वाले द्वारा हत्या किए जाने के कारण पैदा हो गई है.

देश संविधान के निर्देशों पर चलेकिसी मंत्री के व्यक्तिगत अंधविश्वासों पर नहींयह देश की पहली आवश्यकता है. आर्थिक विकास बिना सामाजिक सुधारों के हो ही नहीं सकता. ध्यान रखेंजिस के मसल्स मजबूत न होंचाहे छाती 56 इंच की हो पर पैरों में छाले जैसे पड़े होंवह न रेस जीत सकता हैन कुश्ती.      

बंगला विहीन प्रियंका

राजधानी दिल्ली में ही नहींदेश के राज्यों की राजधानियों में भी स्थित सरकारी बंगलों में रहने की ख्वाहिश पाले रसूखदारों की कमी नहीं रहती. विधायकोंसांसदोंअफसरोंजजोंआयोगों के अध्यक्षों आदि को मिलने वाले ये बंगले आमतौर पर काफी बड़ेशहर के बीच मेंबडे़ लौन वाले होते हैं. इन की शैली चाहे पुरानी होपर उन में रहना एक शान होती है. पद प्राप्त करने में यदि कुछ करोड़ रुपए खर्च किए गए होंतो इस के लिए बंगला मिलने पर वह बराबर हो जाता है.

प्रियंका गांधी को दिल्ली के काफी शांत व हरेभरे इलाके में बंगला मिला हुआ था क्योंकि उन्हें विशेष सुरक्षा मिली थी. भाजपा सरकार ने उन के पर काटने के लिए सुरक्षा भी छीन ली है और बंगला भी.

अपनेआप में यह फैसला गलत नहीं है. पद न होने पर सरकारी निवास नहीं मिलना चाहिएयह सही है. कांग्रेस ने इस पर ज्यादा होहल्ला नहीं मचाया क्योंकि शायद वह इस के लिए पहले से तैयार है कि ये छूटें तो सत्ता हाथ से निकलने के बाद जाएंगी ही. देश एक परिवार को केवल इसीलिए पाले कि उस के पूर्वजों ने कभी देश के लिए कुछ किया थाठीक बात भी नहीं.

चाहे कोई राजनीति में हो या सामाजिक सेवा मेंउसे अपने रहने का पक्का स्थान बना लेना चाहिएवह दुनिया में चाहे कहीं हो. वह छोटा हो या बड़ाहोना अवश्य चाहिए. प्रियंका गांधी के मामले ने साफ किया है कि अपना एक दूसरा बंगला हमेशा रहने लायक बना रहे चाहे वर्षों काम न आए. राजनीतिक व सामाजिक जीवन में कभी भी भरोसा नहीं होता कि जमीन कब खिसक जाए. रहने के लिए अपना मकान एक आश्वासन देता हैएक स्थिरता देता है.

व्यापारी और व्यवसायी तो पहले ही इस बात को जानते हैं. हर समझदार इंसान एक से ज्यादा मकान रखता है चाहे दूसरा पर्यटन स्थल पर क्यों न हो. राजनीति में लगे लोगों को विशाल बंगलों की जो चाहत हो जाती हैवह खराब है. यह विशाल बंगला जीवनशैली के कुछ सुखों की आदत डाल देता है जो हाथ से छिनने पर कष्ट देता है. महात्मा गांधी को शायद इस बात का एहसास था और उन्होंने अंत तक छोटे मकानों व बड़े महलों दोनों में अपनी जीवनशैली एकजैसी रखी थी.

इस गांधी परिवार को छोटे मकानों की चाहत है या नहींयह पक्का नहीं. पिछले 70 सालों से तो इन्हें विशाल मकान ही मिलते रहे हैं. आज भी भाजपा पर गांधी परिवार का खौफ पूरी तरह छाया हुआ है और वह टुच्ची हरकतें करती रहती है.

रामदेव का कोरोना झूठ

रामदेव की संस्था पतंजलि ने बड़े ढोलनगाड़ों के साथ कोरोना की दवा ढूंढ़ लेने और उस के बाजार में पहुंचाने की घोषणा की थी. अंधभक्तों की इस देश में कमी नहीं है जो इस बात का इंतजार कर ही रहे थे कि कब आयुर्वेद पश्चिमी दवा निर्माताओं पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेगा. उन्हें मन में विश्वास था कि जगद्गुरु भारत का ज्ञान दुनिया में किसी और के ज्ञान से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ है और रामदेव ने उन के इस मानसिक अंधकार का पूरा फायदा उठाने की कोशिश की थी.

23 जून को पतंजलि आयुर्वेद ने कोरोनिल टेबलेट रामदेव व बालकृष्ण की मौजूदगी में लौंच की थी और दावा किया था कि 280 मरीजों पर इस का परीक्षण किया जा चुका है जो पूरी तरह निरोगी हो गए. इस दवा को लेने से रोगी के एक सप्ताह में ठीक हो जाने का विश्वास दिलाया गया था.

जैसा कि रामदेव को विश्वास थाअंधभक्ति का प्रचार कर रहे कई टीवी चैनलों व भारतीय भाषाओं के सैकड़ों समाचारपत्रों ने इस दावे को प्रमुखता से प्रकाशित व प्रचारित किया और भक्तों को आस बन गई कि आखिर पश्चिम पर विजय पा ही ली गई है.

23 जून को रामदेव और बालकृष्ण ने हरिद्वार में प्रैस कौन्फ्रैंस कर दावा किया था कि जिस क्षण की प्रतीक्षा पूरा देश कर रहा था वह आयुर्वेद ने कोरोना महामारी से विश्व को बचाने के लिए कोरोनिल टेबलेट बना कर ला दिया है. उन्होंने यह तो नहीं कहा कि वे हर शासकीय नियम का पालन कर चुके हैं पर यह जरूर कहा कि दवा बनाने में विज्ञान के सारे नियमों का पालन किया गया है. दवा में अश्वगंधागिलोयतुलसीश्वसारि रस व अणु तेल होने का दावा किया गया था. अमेरिका के बायोमैडिसिन फार्मा के थेरैपी इंटरनैशनल जर्नल में इस शोध के प्रकाशित होने का दावा भी किया गया.

लेकिनउत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग को इस प्रचार से डर लग गया और कुछ ही घंटों में उस ने यह स्पष्टीकरण जारी कर दिया कि पतंजलि को लाइसैंस इम्यूनिटी बढ़ाने वाली किट तैयार करने के लिए दिया गया हैकोरोना के इलाज की दवाई बनाने के लिए नहीं.

5 दिनों में ही हर तरफ इस दवाई

की पोल खुल गई थी. रामदेव और बालकृष्ण ने सधेसधाए शब्दों में झूठ कह दिया कि उन्होंने कभी दावा किया ही नहीं था कि यह दवा कोरोना को ठीक करती है. औषधि के लेबल पर तो केवल कोरोना से लड़ने के लिए इम्यूनिटी बूस्टर का काम करने वाली बताया गया है.

इस घोषणा के बाद ट्विटर और फेसबुक पर रामदेव ऐंड कंपनी की  धुआंधार छीछालेदार हो गई थी और करोड़ों रुपयों के पतंजलि के विज्ञापन प्रचारित करने वाले टीवी और प्रिंट माध्यमों के बावजूद ऐसे आंख खोले लोगों की कमी नहीं दिखी जिन्होंने इस दवा को नकार दिया. रामदेव और भाजपाई सरकार का बस चलतातो इन सब को राष्ट्रद्रोही साबित कर देते. लेकिनइस बार भक्तों का मुंह भी बंद हो गया.

धार्मिक प्रचारतंत्र दिखने में चाहे कितना बड़ा लगेपर अंदर सेदरअसलयह खोखला हैवैसा ही जैसा भाजपा सरकार कोरोनाअर्थव्यवस्था और चीन के बारे में कर रही है. सत्य सब के सामने है. आंकड़े एकएक कर के सिद्ध कर रहे हैं कि देश में कोरोना की रामदेव की औषधि की तरह कुछ भी ठीक नहीं है.   

सुवीरा-भाग 2: सुवीरा के जीवन में किस चीज की कमी थी?

‘‘अरे, मेरा हिसाब कभी गलत नहीं होता. जीएम की पोस्ट तक ऐसे ही नहीं पहुंचा मैं.’’

‘‘तुम्हारी लाइफ में हिसाबकिताब लगाने या अपनी पोस्ट के रोब में रहने के अलावा भी कुछ बचा है क्या?’’

‘‘हां, बचा है न,’’ यह कहते हुए विनोद सुवीरा के चेहरे की ओर झुकता चला गया. एक हफ्ते बाद विनोद 15 दिन के लिए आस्ट्रेलिया चला गया. महेश सुबह 10 बजे जा कर शाम 6 बजे आता. सुवीरा उसे चाय, फिर डिनर ऊपर भिजवा देती. सिद्धि, समृद्धि को जब भी कुछ पूछना होता, वे उसे नीचे से ही आवाज देतीं, ‘‘अंकल, कुछ पूछना है, नीचे आइए न.’’ महेश मुसकराता हुआ आता और वहीं ड्राइंगरूम में उन्हें पढ़ाने लगता. सुवीरा को महेश का सरल स्वभाव अच्छा लगता. न बड़ीबड़ी बातें, न दूसरों को छोटा समझने वाली सोच. एक सरल, सहज, आकर्षक पुरुष. बराबर वाला घर सीमा का ही था. सीमा, उस का पति रंजन और उन का 14 वर्षीय बेटा विपुल भी महेश से मिल चुके थे. विपुल भी अकसर शाम को महेश से मैथ्स पढ़ने चला आता था. इतवार को भी महेश कोचिंग इंस्टिट्यूट जाता था. उस दिन उस की क्लास ज्यादा लंबी चलती थी. एक इतवार को सिद्धि, समृद्धि किसी बर्थडे पार्टी में गई हुई थीं. सुवीरा डिनर करने बैठी ही थी, इतने में बाइक रुकने की आवाज आई. महेश आया, पूछा, ‘‘सिद्धि,समृद्धि कहां है? बड़ा सन्नाटा है.’’

‘‘बर्थडे पार्टी में गई हैं.’’

‘‘आप अच्छे समय पर आए, मैं बस खाना खाने बैठी ही थी, आप का खाना भी लगा देती हूं.’’

‘‘महेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप अकेली हैं, आप को डिनर में कंपनी दूं?’’

‘‘अरे, आइए न, बैठिए.’’

‘‘अभी फ्रैश हो कर आता हूं.’’

दोनों ने खाना शुरू किया. कहां तो पलभर पहले सुवीरा सोच रही थी कि महेश से वह क्या बात करेगी और कहां अब बातें थीं कि खत्म ही नहीं हो रही थीं. एक नए अनोखे एहसास से भर उठी वह. ध्यान से महेश को देखा, पुरुषोचित सौंदर्य, आकर्षक मुसकराहट, बेहद सरल स्वभाव. महेश ने खंखारा, ‘‘बोर हो गईं क्या?’’

हंस पड़ी सुवीरा, बोली, ‘‘नहींनहीं, ’’ ऐसी बात नहीं. सुवीरा हंसी तो महेश उसे देखता ही रह गया. 2 बेटियों की मां, इतनी खूबसूरत हंसी, इतना आकर्षक चेहरा, बोला, ‘‘इस तरह हंसते हुए आप को आज देखा है मैं ने, आप इतनी सीरियस क्यों रहती हैं?’’ सुवीरा ने दिल में कहा, किस से हंसे, किस से बातें करे, उस की बात सुनने वाला इस घर में है कौन, बेटियां स्कूल, फोन, नैट, दोस्तों में व्यस्त हैं, विनोद की बात करना ही बेकार है. महेश ने उसे विचारों में खोया देख टोका, ‘‘सौरी, मैं ने आप को सीरियस कर दिया?’’

‘‘नो, इट्स ओके,’’ कह कर सुवीरा ने मुसकराने की कोशिश की लेकिन आंखों की उदासी महेश से छिपी न रही.

महेश ने कहा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं तन से और मन से भी.’’ उस की आंखों में प्रशंसा थी और वह प्रशंसा उस के शरीर को जितना पिघलाने लगी उस का मन उतना ही घबराने लगा. सुवीरा हैरान थी, कोई उस के बारे में भी इतनी देर बात कर सकता है. महेश ने अपनी प्लेट उठा कर रसोई में रखी. सुवीरा के मना करने पर भी टेबल साफ करवाने में उस का हाथ बंटाया. फिर गुडनाइट कह कर ऊपर चला गया. इस मुलाकात के बाद औपचारिकताएं खत्म सी हो गई थीं. धीरेधीरे सुवीरा के दिल में एक खाली कोने को महेश के साथ ने भर दिया. अब उसे महेश का इंतजार सा रहने लगा. वह लाख दिल को समझाती कि अब किसी और का खयाल गुनाह है मगर दिल क्या बातें समझ लेता है? उस में जो समा जाए वह जरा मुश्किल से ही निकलता है. विनोद आ गया, घर की हवा में उसे कुछ बदलाव सा लगा. लेकिन बदले माहौल पर ध्यान देने का कुछ खास समय भी नहीं था उस के पास. विनोद के औफिस जाने का रुटीन शुरू हो गया. वह कार से 8 बजे दादर के लिए निकल जाता था. आने का कोई टाइम नहीं था. सुवीरा ने अब कुछ कहना छोड़ दिया था.

एक दिन विनोद ने हंसीमुसकराती सुवीरा से कहा, ‘‘अब तुम समझदार हो गई हो. अब तुम ने मेरी व्यस्तता के हिसाब से खुद को समझा ही लिया.’’ सुवीरा बस उसे देखती रही थी. बोली कुछ नहीं. क्या कहती, एक पराए पुरुष ने उसे बदल दिया है, एक पराए पुरुष की ओर उस का मन खिंचता चला जा रहा है. महेश के शालीन व्यवहार और अपनेपन के आगे वह दीवानी होती जा रही थी. 15 दिन रह कर विनोद एक हफ्ते के लिए दिल्ली चला गया. अब तक सुवीरा और महेश दोनों ही एकदूसरे के प्रति अपना लगाव महसूस कर चुके थे. एक दिन सिद्धि, सम़ृद्धि स्कूल जा चुकी थीं. सुवीरा को अपनी तबीयत कुछ ढीली सी लगी, वह अपने बैडरूम में जा कर आराम करने लगी. महेश को देखने का उस का मन था लेकिन उस से उठा नहीं गया.

महेश को भी जब वह दिखाई नहीं दी तो वह उसे ढूंढ़ता हुआ दरवाजे पर दस्तक दे कर अंदर आ गया. वह संकोच से भर उठी. कोई परपुरुष पहली बार उस के बैडरूम में आया था. उस ने उठने की कोशिश की लेकिन महेश ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे लिटा दिया. महेश के स्पर्श ने उसे एक अजीब सी अनुभूति से भर दिया. उस के गाल लाल हो गए. महेश ने पूछा,‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही.’’

महेश ने उस के माथे को छू कर कहा, ‘‘बुखार तो नहीं है, सिरदर्द है?’’ सुवीरा ने ‘हां’ में गरदन हिलाई तो महेश वहीं बैड पर बैठ कर अपने हाथ से उस का सिर दबाने लगा. सुवीरा ने मना करने के लिए मुंह खोला तो महेश ने दूसरा हाथ उस के होंठों पर रख कर उसे कुछ बोलने से रोक दिया. सुवीरा तो जैसे किसी और दुनिया में खोने लगी. कोई उसे ऐसे प्यार से सहेजे, संभाले कि छूते ही तनमन की तकलीफ कम होती लगे. उसे तो याद ही नहीं आया कि विनोद के स्पर्श से ऐसा कभी हुआ हो. इस स्पर्श में कितना रस कितना सुख, कितना रोमांच कितनी मादकता थी. उस के हलके गरम माथे पर महेश के हाथ की ठंडक देती छुअन. सुवीरा की आंखें बंद हो गईं. महेश का हाथ अब माथे से सरक कर उस के गाल सहला रहा था, सुवीरा ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. महेश उसे अपलक देखता रहा. फिर खुद को रोक नहीं पाया और उस के माथे पर पहला चुंबन अंकित कर दिया. सुवीरा यह सब रोक देना चाहती थी. लेकिन वह आंख बंद किए लेटी रही. महेश धीरेधीरे उस के करीब आता गया. जब महेश उस की तरफ झुका तो सुवीरा ने अचानक अपनी आंखें खोलीं तो दोनों की नजरें मिलते ही बिना बोले बहुतकुछ कहासुना गया. वह कसमसा उठी. शरीर का अपना संगीत, अपना राग होता है.

महेश ने जब उस के शरीर को छुआ तो उस के अंदर एक झंकार सी पैदा हुई और वह उस की बांहों में खोती चली गई. महेश ने उस के होंठों को चूमा तो मिश्री की तरह कुछ मीठामीठा, उस के होंठों तक आया. उस स्पर्श में कुछ तो था. वह ‘नहीं’ कर ही नहीं पाई. दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. कुछ देर बाद अपने अस्तव्यस्त कपड़े संभाल कर महेश ने प्यार से पूछा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’ सुवीरा ने शरमा कर ‘न’ में गरदन हिला दी. महेश ने कहा, ‘‘मैं अभी जाऊं? मेरी क्लास है.’’ सुवीरा के गाल पर किस कर के महेश चला गया. सुवीरा फिर लेट गई. पूरा शरीर एक अलग ही एहसास से भरा था. कहां विनोद के मशीनी तौरतरीके, कहां महेश का इतना प्यार व भावनाओं से भरा स्पर्श, हर स्पर्श में चाहत ही चाहत. वह हैरान थी, उसे अपराधबोध क्यों नहीं हो रहा है. क्या वह इतने सालों से विनोद के अतिव्यावहारिक स्वभाव, अतिव्यस्त दिनचर्या से सचमुच थक चुकी है, क्या विनोद कभी उस के दिल तक पहुंचा ही नहीं था. वह, बस, अब अपने लिए सोचेगी. वह एक पत्नी है, मां है तो क्या हुआ, वह एक औरत भी तो है.

अगले दिन सिद्धि, समृद्धि स्कूल चली गईं. महेश तैयार हो कर नीचे आया. सुवीरा ने उसे प्यार से देखा, कहा कुछ नहीं. महेश ने उस का हाथ खींच कर उसे अपने सीने से लगा लिया. दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप खड़े रहे. फिर महेश ने उसे होंठों पर किस कर के उसे बांहों में उठा लिया और बैडरूम की तरफ चल दिया. सुवीरा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. सुवीरा को लगा, उस का मन सूखे पड़े जीवन के लिए मांग रहा था थोड़ा पानी और अचानक बिना मांगे ही सुख की मूसलाधार बारिश मिल गई. महेश के साथ बने संबंधों ने जैसे सुवीरा को नया जीवन दे दिया. उस का रोमरोम पुलकित हो उठा.  फोन पर तो विनोद दिन में एक बार सुवीरा और बच्चों के हालचाल लेता था. वह भी ऐसे नपेतुले सवालजवाब होते, कैसी हो? ठीक, तुम कैसे हो? ठीक, बच्चे कैसे हैं? ठीक, चलो, फिर बात करता हूं ठीक है, बाय. इतनी ही बातचीत अकसर होती थी. सुवीरा को लगता कि उन के पास बात करने के लिए क्या कुछ नहीं बचा? लेकिन महेश, वह कैसे बातें करता है, उस की सुनता है. विनोद को तो जब भी वह किसी के बारे में बताने लगती है, वह कह देता है, अरे छोड़ो, किसी की बात क्या सुनूं. उसे तो किसी की बात न कहनी होती है न सुननी होती है. वह बस अपने में जीता है. पैसा हाथ पर रख देने से ही तो पति का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता.

Raksha Bandhan Special: अनमोल रिश्ता-रंजना को संजय से क्या दिक्कत थी?

फेसबुक पर फाइंड फ्रैंड में नाम डालडाल कर कई बार सर्च किया, लेकिन संजय का कोई पता न चला. ‘पता नहीं फेसबुक पर उस का अकाउंट है भी कि नहीं,’ यह सोच कर मैं ने लौगआउट किया ही था कि स्मार्टफोन पर व्हाट्सऐप की मैसेज ट्यून सुनाई दी. फोन की स्क्रीन पर देखा तो जानापहचाना चेहरा लगा. डबल क्लिक कर फोटो को बड़ा किया तो चेहरा देख दंग रह गई. फिर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. ‘बिलकुल वैसा ही लगता है संजय जैसा पहले था.’

मैं अपने मातापिता की एकलौती संतान थी और 12वीं में पढ़ती थी. पिताजी रेलवे में टीटीई के पद पर कार्यरत थे. इस कारण अकसर बाहर ही रहते. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण हम ने डिसाइड किया कि घर का एक कमरा किराए पर दे दिया जाए. बहुत सोचविचार कर पापा ने 2 स्टूडैंट्स जो ग्रैजुएशन करने के बाद आईएएस की तैयारी करने केरल से दिल्ली आए हुए थे, को कमरा किराए पर दे दिया. जब वे हमारे यहां रहने आए तो आपसी परिचय के बाद उन्होंने मुझे कहा, ‘पढ़ाई के सिलसिले में कभी जरूरत हो तो कहिएगा.’

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उन में से एक, जिस का नाम संजय था अकसर मुझ से बातचीत करने को उत्सुक रहता. कभी 10वीं की एनसीईआरटी की किताब मांगता तो कभी मेरे कोर्स की. मुझे उस का इस तरह किताबें मांगना बात करने का बहाना लगता. एक दिन जब वह किताब मांगने आया तो मैं ने उसे बुरी तरह डांट दिया, ‘क्या करोगे 10वीं की किताब का. मुझे सब पता है, यह सब बहाने हैं लड़कियों से बात करने के. मुझ से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश न करो. आगे से मत आना किताब मांगने.’ उस ने अपने पक्ष में बहुत दलीलें दीं लेकिन मैं ने नकारते हुए सब खारिज कर दीं. उस दिन मुझे स्कूल से ही अपनी फ्रैंड के घर जाना था. मैं मम्मी को बता भी गई थी, लेकिन जब घर आई तो जैसे सभी मुझे शक की निगाह से देखने लगे.

बस्ता रखा ही था कि मम्मी पूछने लगीं, ‘आज तुम रमेश के साथ क्या कर रही थीं?’

‘रमेश,’ मैं समझ गई कि यह आग संजय की लगाई हुई है. मैं ने जैसेतैसे मम्मी को समझाया, लेकिन संजय से बदला लेने उसी के रूम में चली गई. ‘तुम होते कौन हो मेरे मामले में टांग अड़ाने वाले. मैं चाहे किसी के साथ जाऊं, घूमूंफिरूं तुम्हें क्या. तुम किराएदार हो, किराया दो और चुपचाप रहो. आइंदा मेरे बारे में मां से बात करने की कोई जरूरत नहीं, समझे,’ मैं संजय को कह कर बाहर निकल गई. दरअसल, रमेश मेरी कक्षा में पढ़ता था. अच्छी पर्सनैलिटी होने के कारण सभी लड़कियां उस से दोस्ती करना चाहती थीं. मेरे दिल में भी उस के लिए प्यार था और मैं उसे चाहती थी. सो फ्रैंड के घर जाते समय उसी ने मुझे ड्रौप किया था, लेकिन संजय ने मुझे उस के साथ जाते हुए देख लिया था.

थोड़ी देर बाहर घूम कर आई तो संजय मम्मी के पास बैठा दिखा. मुझे उसे देखते ही गुस्सा आ गया, लेकिन मेरे आते ही वह उठ कर चला गया. बाद में मम्मी ने मुझे समझाया,  ‘संजय ने मुझे उस लड़के के बारे में बताया है. वह लड़कियों से फ्लर्ट करता है. उस का तुम्हारे स्कूल की 11वीं में पढ़ने वाली रंजना से भी संबंध है. तुम उस से ज्यादा दोस्ती न ही बढ़ाओ तो ठीक है.’ ‘ठीक है मां,’ मैं ने उन्हें कह दिया, लेकिन संजय पर बिफर पड़ी, ‘अब तुम मेरी जासूसी भी करने लगे. मैं किस से मिलती हूं, कहां जाती हूं इस से तुम्हें क्या?’

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इस पर वह चुप ही रहा. शाम को मुझे मैथ्स का एक सवाल समझ नहीं आ रहा था तो मैं ने संजय से ही पूछा. उस ने भी बिना हिचक मुझे समझा दिया, लेकिन ज्यों ही वह सुबह की बात छेड़ने लगा मैं ने फिर डांट दिया, ‘मेरी जासूसी करने की जरूरत नहीं. रमेश को मैं जानती हूं वह अच्छा लड़का है और बड़ी बात है कि मैं उसे चाहती हूं. तुम अपने काम से काम रखो.’ कुछ दिन बाद मैं स्कूल पहुंची तो हैरान रह गई. स्कूल में पुलिस आई हुई थी. पता चला कि रमेश और रंजना घर से भाग गए हैं. अभी तक उन का कुछ पता नहीं चला. पुलिस ने पूछताछ वाले लोगोें में मेरा नाम भी लिख लिया व मुझे थाने आने को कहा. पापा दौरे पर गए हुए थे सो मम्मी ने और कोई सहारा न देख संजय से बात की. फिर न चाहते हुए भी मैं संजय के साथ थाने गई. वहां इंस्पैक्टर ने जो पूछा बता दिया. संजय ने इंस्पैक्टर से मेरी तारीफ की. रमेश से सिर्फ क्लासफैलो होने का नाता बताया और ऐसे बात की जैसे मेरा बड़ा भाई मुझे बचा रहा हो. उस की बातचीत से इंप्रैस हो इंस्पैक्टर ने उस केस से मेरा नाम भी हटा दिया. घर आए तो संजय ने मुझे समझाया, ‘ऐसे लड़कों से दूर ही रहो तो अच्छा है. वैसे भी अभी तुम्हारी उम्र पढ़ने की है. पढ़लिख कर कुछ बन जाओ तब बनाना ऐसे रिश्ते. तब तुम्हें इन की समझ भी होगी,’ साथ ही उस ने मुझे दलील भी दी, ‘‘मैं तुम्हारे भाई जैसा हूं तुम्हारे भले के लिए ही कहूंगा.’’

दरअसल, गुस्सा तो मुझे खुद पर था कि मैं रमेश को समझ न पाई और मुझे प्यार में धोखा हुआ, लेकिन खीज संजय पर निकल गई. मेरी इस बात का संजय पर गहरा असर हुआ. राखी का त्योहार नजदीक था सो शाम को आते समय संजय राखी ले आया और मम्मी के सामने मुझ से रमेश के बारे में बताने व समझाने के लिए क्षमा मांगता हुआ राखी बांध कर भाई बनाने की पेशकश कर खुद को सही साबित करने लगा. मैं कहां मानने वाली थी. मैं पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. उस ने राखी वहीं टेबल पर रख दी. पापा अगले दिन जम्मू से लौटने वाले थे. मैं और मम्मी घर में अकेली थीं. रात के लगभग 12 बजे थे कि अचानक मुझे आवाज मारती हुई मम्मी उठ बैठीं.

मैं भी हड़बड़ा कर उठी और देखा कि मम्मी की नाक से खून बह रहा था. मैं कुछ समझ न पाई, बस जल्दी से दराज से रूई निकाल कर नाक में ठूंस दी और खून बंद करने की कोशिश करने लगी. इधरउधर देखा, कुछ समझ न आया कि क्या करूं. लेकिन अचानक संजय के कमरे की बत्ती जलती देखी. कल उन का ऐग्जाम होने के कारण वे दोनों काफी देर तक पढ़ रहे थे. तभी मम्मी बेसुध हो कर गिर पड़ीं. मैं ने उन्हें गिरते देखा तो मेरी चीख निकल गई, ‘मम्मी…’ मेरी चीख सुनते ही संजय के कमरे का दरवाजा खुला. सारी स्थिति भांपते हुए संजय बोला, ‘आप घबराइए नहीं, हम देखते हैं,’ फिर अपने दोस्त कार्तिक से बोला कि औटो ले कर आए. इन्हें अस्पताल ले जाना होगा.

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औटो ला कर उन दोनों ने मिल कर मम्मी को उठाया और मुझे चिंता न करने की हिदायत दे कर मम्मी को औल इंडिया मैडिकल हौस्पिटल की इमरजैंसी में ले गए. वहां उन्हें डाक्टर ने बताया कि हाइपरटैंशन के कारण इन के नाक से खून बह रहा है. आप सही वक्त पर ले आए ज्यादा देर होने पर कुछ भी हो सकता था. फिर उन्हें 2 इंजैक्शन दिए गए और अधिक खून बहने के कारण खून चढ़वाने को कहा गया. संजय ने ब्लड बैंक जा कर रक्तदान किया तब जा कर मम्मी के लिए उन के ग्रुप का खून मिला. कार्तिक ने ब्लड बैंक से खून ला कर मम्मी को चढ़वाया. सुबह करीब 6 बजे वे दोनों मम्मी को वापस ले कर आए तो मेरी भी जान में जान आई. अब मम्मी ठीक लग रही थीं. संजय ने बताया कि घबराने की बात नहीं है आप आराम से सो जाएं. हम हफ्ते की दवाएं भी ले आए हैं. आज हमारा पेपर है लेकिन रातभर जगे हैं अत: हम भी थोड़ा आराम कर लेते हैं. मम्मी को सलामत पा मैं बहुत खुश थी. मेरे इतना भलाबुरा कहने के बावजूद संजय ने मुझ पर जो उपकार किया उस ने मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया था. मैं इन्हीं विचारों में खोई बिस्तर पर लेटी थी कि कब सुबह के 8 बज गए पता ही न चला. मैं ने देखा संजय के कमरे का दरवाजा खुला था और वे दोनों घोड़े बेच कर सोए थे.

अचानक मुझे याद आया कि आज तो इन का पेपर है. अत: मैं तेजी से उन के कमरे में गई और उन्हें उठा कर कहा, ‘पेपर देने नहीं जाना क्या?’ हड़बड़ा कर उठते हुए संजय ने घड़ी देखी तो उन की नींद काफूर हो गई. दोनों फटाफट तैयार हो कर बिना खाएपीए ही पेपर देने चल दिए. मैं ने पीछे से आवाज दे कर उन्हें रोका, ‘भैया रुको,’ भैया शब्द सुन कर संजय अजीब नजरों से मुझे देखने लगा. लेकिन मैं ने बिना समय गंवाए उस की कलाई पर वही राखी बांध दी जो वह सुबह लाया था. फिर मैं ने कहा, ‘जल्दी जाओ, कहीं पेपर में देर न हो जाए.’ शाम को जब पापा आए और उन्हें सारी बात पता चली तो उन्होंने जा कर उन्हें धन्यवाद दिया. मैं ने भी पूछा, ‘पेपर कैसा हुआ?’ तो संजय ने हंस कर कहा, ‘‘अच्छा कैसे नहीं होता. बहन की शुभकामनाएं जो साथ थीं.’

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अब मैं और संजय अनमोल रिश्ते में बंध गए थे. जहां बिगर दुरावछिपाव के एकदूसरे के लिए कुछ करने की तमन्ना थी. मेरा अपना तो कोई भाई नहीं था सो मैं संजय को ही भाई मानती. स्कूल से आती तो सीधा उस के पास जाती और बेझिझक उस से कठिन विषयों के बारे में पूछती. कुछ ही दिन में संजय के तरीके से पढ़ने पर मुझे वे विषय भी आसान लगने लगे जो अब तक कठिन लगते थे. घर का कोई सामान लाना हो या अपनी जरूरत का मैं संजय को ही कहती. कभी किसी काम से बाहर जाती तो संजय को साथ ले लेती. वह जैसे मेरा सुरक्षा कवच भी बन गया था. कभीकभी लोग बातें बनाते तो संजय उन को भी बड़े तरीके से हैंडिल करता.

एक बार एक अंकल ने कुछ कह दिया तो संजय बेझिझक उन के पास गया और बताया, ‘यह मेरी मुंहबोली बहन है, गलत न समझें. अगर आप की लड़की अपने भाई के साथ जाती दिखे और लोग गलत समझें तो आप क्या करेंगे.’ उन की बोलती बंद हो गई लेकिन फायदा हमें हुआ, अब गली के लोग हमें सही नजरों से देखने लगे. कुछ दिन बाद मेरा जन्मदिन था. मैं काफी समय से पापा से मोबाइल लेने की जिद कर रही थी, लेकिन हाथ तंग होने के कारण वे नहीं खरीद पा रहे थे. मेरे केक काटते ही संजय ने मुझे केक खिलाया और मेरे हाथ में मेरा मनपसंद तोहफा यानी मोबाइल रख दिया तो मैं इसे पा कर फूली नहीं समाई. उस समय नएनए मोबाइल चले थे. मैं खुश थी कि मैं कालेज जाऊंगी तो मोबाइल के साथ. कुछ दिन बाद उन की प्रतियोगी परीक्षा समाप्त हुई तो पता चला कि वे वापस जाने वाले हैं, यह जान कर मुझे दुख हुआ लेकिन मेरी भी मति मारी गई थी कि मैं ने उन का पता, फोन नंबर कुछ न पूछा. बस यही कहा, ‘भूलना मत इस अनमोल रिश्ते को.’

जिस दिन उन्होंने जाना था उसी दिन मेरी सहेली का बर्थडे था. मैं उस के घर गई हुई थी और पीछे से संजय ने कमरा खाली किया और दोनों केरल रवाना हो गए. वापस आने पर मैं ने पापा से पूछा तो पता चला कि उन्होंने भी उस का पताठिकाना नहीं पूछा था. इस पर मैं पापा से नाराज भी हुई. मैं संजय द्वारा बताए गए परीक्षा के टिप्स अपना कर 12वीं में अव्वल दर्जे से पास हुई और कालेज मोबाइल के साथ गई, जिस में हमारे अनमोल रिश्ते के क्षण छिपे थे. फिर कालेज के साथसाथ जब प्रतियोगी परीक्षाएं देने लगी तो मुझे ज्ञात हुआ कि एनसीईआरटी की किताबें इन में कितनी सहायक होती हैं. तब मुझे अपनी नादानी भरी भूल का भी एहसास हुआ. अब मैं हर साल राखी के सीजन में संजय को मिस करती. जब बाजार में राखियां सजने लगतीं तो मुझे अनबोला भाई याद आ जाता. समय के साथ मोबाइल तकनीक में भी तेजी से बदलाव आया और फोन के टचस्क्रीन और स्मार्टफोन तक के सफर में न जाने कितने ऐप्स भी जुड़े, लेकिन मैं ने अपना नंबर वही रखा जो संजय ने ला कर दिया था, भले मोबाइल बदल लिए. मैं हर बार फेसबुक पर फ्रैंड सर्च में संजय का नाम डालती, लेकिन नतीजा सिफर रहता. कुछ पता चलता तो राखी जरूर भेजती. इस बीच संजय ने भी कोई फोन नहीं किया था. लेकिन अचानक व्हाट्सऐप पर मैसेज देख दंग रह गई. तभी व्हाट्सऐप के मैसेज की टोन बजी और मेरी तंद्रा भंग हुई. संजय ने चैट करते हुए लिखा था, ‘‘नया स्मार्टफोन खरीदा तो पुरानी डायरी में नंबर देख सेव करते हुए जब तुम्हारा नंबर भी सेव किया तो व्हाट्सऐप में तुम्हारा फोटो सहित नंबर सेव हुआ देख मन खुश हो गया.

‘‘फिर फटाफट व्हाट्सऐप पर अपना परिचय दिया. तुम्हें मैं याद हूं न या भूल गई.’’ संजय के शब्दों से मेरी आंखें भर आईं. तुम्हें कैसे भूल सकती हूं निस्वार्थ रिश्ता. अगर तुम न होते तो शायद उस दिन पता नहीं मम्मी के साथ क्या होता. मेरे किशोरावस्था में भटके पांव कौन रोकता. मैं ने फट से मैसेज टाइप किया, ‘‘राखी भेजनी है भैया, फटाफट अपना पता व्हाट्सऐप करो.’’ मिनटों में व्हाट्सऐप पर ही पता भी आ गया और साथ ही  पेटीएम के जरिए राखी का शगुन भी, साथ ही लिखा था, ‘‘इस अनमोल रिश्ते को जिंदगी भर बनाए रखना.’’ मैं ने पढ़ा और अश्रुपूरित नेत्रों से बाजार में राखी पसंद करने चल दी अपने मुंहबोले भाई के लिए.

नागिन के प्रोमों में नजर आई हिना खान अब खुलेंगे कई नए राज

एकता कपूर का सुपर नेचुरल शो नागिन 5 का सभी फैंस को बेसब्री से इंतजार है. इसकी खास वजह है हिना खान. हिना खान को इस शो में देखने के लिए सभी फैंस बेताब हैं. वैसे तो नागिन के कई सीरीज आ चुके हैं. लेकिन इस सीरीज की बात ही कुछ और है.

वहीं शो के मेकर्स ने इस शो का ऑफिशियल ट्रेलर कलर्स के इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर कर दिया है. इस प्रोमो को देखकर फैंस बेहद खुश नजर आ रहे है. हिना का नया अवतार सभी को खूब पसंद आ रहा है. इससे यह भी पता चल रहा है कि कलर्स के फ्रेचाइजी का इस बार बहुत बड़ा राज खुलने वाला है.

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Khulenge barso puraane raaz aur saamne aayega sabse balshaali Naagin ka chehera! #Naagin5 jald hi, sirf #Colors par. @realhinakhan

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खबर ये भी है कि हिना खान इस शो में कुछ ही दिन के लिए नजर आने वाली हैं. लेकिन इनका किरदार बहुत बड़ा होगा. कुछ ही समय के रोल में हिना खान हमेशा की तरह अपने फैंस के दिलों पर राज करने वाली हैं.

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वहीं हिना इससे पहले भी एकता कपूर को शो कसौटी जिंदगी 2 में काम कर चुकी हैं. इस सीरियल में कोमोनिका का किरदार निभा कर सभी फैंस के दिल में अपनी खास जगह बना चुकी हैं. हिना खान ने अपने करियर की शुरुआत सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है से किया था.

 

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Hina’s first self6 in Naagin look ????? #Naagin5 #hinakhan PS:- Please reveal Hina’s character name @ektarkapoor

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इस सीरियल में लोगों ने हिना खान के रोल को खूब पसंद किया था. हिना खान इस सीरियल में एक संस्कारी बेटी और बहू का किरदार निभाया था.

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इस सीरियल के बाद से हिना सभी के दिलों पर राज करने लगी थी. हिना खान इसके बाद कई रियलिटी शो में भी नजर आई हैं. हिना खान बिगबॉस सीजन 13 में भी नजर आ चुकी हैं.

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