,मारीच , अहिरावन , महिषासुर , असुर ,

उपनाम हो तुम ,

हमारा यज्ञ प्रारंभ होते ही तुम राक्षसों की

तरह तडपोगे;

जान लो इतना कि अब तुम ही केवल

समाज की आवाज ना हो ,

चरित्रहीन , अविश्वासी , श्रद्धाहीन , लीचड़ तुम हो

जलो गलो पिघलो , बेशर्म , बेहया , निर्लज्ज

समाज कलंकी

तुम अपनी ही बैचेनी में जल जाओ …..

उक्त भड़ासयुक्त अतुकांत कविता जैसी पोस्ट अमिताभ बच्चन की है जिससे एक बात यह भी साबित होती है कि आदमी अगर अपनी पर आ जाए तो गालियाँ देने शुद्ध हिंदी भी कम समृद्ध भाषा नहीं और किसी को सीधे कुत्ता , कमीना और ( या ) हरामी बगैरह कहने से बचने का बेहतर विकल्प उसे मारीच , अहिरावण बगैरह कह देना है . इससे धधकते कलेजे को उतनी ही ठंडक मिलती है जितनी कि उसकी माँ बहिनों से सम्बन्ध स्थापित करती हुई गलियां देने से .

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उक्त पोस्ट का संदर्भ प्रसंग जानने से पहले एक जरूरी बात दौहराना जरुरी है जिसे अमिताभ बच्चन में दिलचस्पी रखने बाले बेहतर जानते हैं कि वे अपने ज़माने के नामी कवि डाक्टर हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं जिन्होंने मधुशाला लिखकर हिंदी साहित्य में अपना एक अलग मुकाम बनाया था . बच्चन जी ने कभी विपरीत परिस्तथियों में भी इतने घटिया स्तर की श्रापनुमा भाषा शैली का इस्तेमाल नहीं किया जितना कि उनके होनहार बेटे ने तिलमिलाकर 28 जुलाई को मुंबई के नानावटी अस्पताल से ट्वीट के जरिये कर डाला .

कोरोना वायरस और लाक डाउन के मानसिक प्रभावों पर अगर कोई पीएचडी करने की सोच रहा हो तो उसे इस वाकिये का जरूर जिक्र करना चाहिए कि इस दौर में जिन अच्छे अच्छों के दिमाग अनियंत्रित हो गए थे अमिताभ बच्चन उनमें से एक थे . इस महानायक की छवि एक बुद्धिजीवी की भी है लेकिन ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि हम परदे पर जो देखते हैं वह मिथ्या और चित्रण भर होता है .  कोई नायक इतना ताकतवर नहीं होता कि 20 – 25 तो दूर की बात है 2 – 5 गुंडों की भी अकेले ठुकाई कर सके .

हाँ अमिताभ में एक खास बात जरूर है कि एक साहित्यकार का बेटा होने के नाते उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है जो उनके केरियर में भी अहम् साबित हुई खासतौर से कौन बनेगा करोडपति नाम के जुए सट्टे बाले ही सही शो में जिसने उन्हें बिकने से बचा लिया था . इस शो में उनकी नम्रता और शिष्टाचार देखते ही बनते थे जिन्होंने लोगों का दिल जीत लिया था . सामान्य ज्ञान पर आधारित इस शो से लोगों को यह ग़लतफ़हमी हो आना स्वभाविक बात थी कि अमिताभ एक इनसाइक्लोपीडिया हैं और इस नाते वे औरों से श्रेष्ठ और बुद्धिमान हैं .

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ठोक दो सा # को –

दरअसल में अमिताभ बच्चन भी आम लोगों जैसे कमजोर और बैचेन आदमी हैं जिसे अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती लेकिन उक्त पोस्ट को रचते वक्त वे कितने उद्दिग्न रहे होंगे इसका अंदाजा उनके सिवाय कोई नहीं लगा सकता . जिस वक्त में करोड़ों प्रशंसक अपने सगे बालों को छोड़कर उनकी जिन्दगी के लिए पूजा पाठ और यज्ञ हवन बगैरह जैसे पाखंड कर रहे थे तब एकाध दो सिरफिरों ने सोशल मीडिया पर कहीं लिख डाला कि ….. मैं उम्मीद करता हूँ कि आप कोविड से मर जाएँ .

बस इतना सुनना था कि आपे से बाहर होते अमिताभ भड़क गए और उन्होंने उक्त कविता लिख डाली जिसमें न कवित्व है , न तुक है और न ही विश्लेषण करने लायक कुछ है .  यह हर कभी हर कहीं दी जाने बाली एक ठेठ देसी बददुआ है लेकिन इसके पहले अमिताभ ने जो लिखा उस पर भी गौर फरमाएं – हे मिस्टर अनाम आप अपने पिता का नाम तक नहीं लिखते , क्योंकि आप नहीं जानते कि आपका पिता कौन है .

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फिर जितनी अपने पिता के दिनों में जितनी सीख ली थी उतनी फिलासफी झाड कर उन्होंने लिखा – अगर इश्वर की कृपा से ( कृपया ध्यान दें , डाक्टरों की मेहनत और कोशिश से नहीं ) मैं जीवित रहता हूँ तो आपको `स्वाइप तूफ़ान का सामना करना पड़ेगा .  न केवल मुझसे बल्कि मेरे 90 + मिलियन फालोअर्स से , मुझे उन्हें बताना अभी बाकी है  … लेकिन अगर मैं जीवित हूँ तो मैं आपको बता दूँ कि वे एक सेना हैं और वे दुनिया भर में फैले हुए हैं पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक …. और वे इस पेज पर ईऍफ़ ( एक्सटेंडेड फेमिली ) नहीं हैं बल्कि वो आपकी आखों में एक तूफानी परिवार बनकर चमकेंगे .ठोक दो सा…. को . कोष्ठक में उनकी मंशा दूसरा अक्षर ले लिखने की साफ़ दिख रही है .

अगर किसी मिस्टर अनाम ने दिमागी दिवालियापन दिखाया तो क्या प्रतिक्रिया या जबाब में अमिताभ बच्चन को भी यही सब करना चाहिए था इस सवाल का जबाब हर कोई अपने हिसाब से देने स्वतंत्र है लेकिन उनके प्रशंसकों का बुद्धिजीवी वर्ग इससे दुखी है जो यह मानता और  जानता है कि सेलिब्रेटीज के साथ ऐसा होना कोई नई या हैरत की बात नहीं है खासतौर से अमिताभ के मामले में उस वक्त जब मीडिया ने उनके संक्रमण के तिल का ताड़ बनाकर पढ़ने और देखने बालों के दिमाग की नसें फाड़ कर रख दी थीं .

बिलाशक अमिताभ बच्चन एक विशिष्ट और लोकप्रिय अभिनेता हैं और उनसे उम्मीद इसी बात की की जाती है कि वे इस बात का ध्यान रखें और लिहाज भी करें नहीं तो इसे एक थके और खीझे हुए बूढ़े की कुंठा से ज्यादा कुछ और नहीं माना जा सकता जो अपने 9 करोड़ फेंस को एक हिंसक सेना समझते धमकी दे रहा है , एक गुमनाम काल्पनिक  सिरफिरे की बल्दियत पर ऊँगली उठा रहा है . राक्षसों से उसकी तुलना कर अपना घिसापिटा पौराणिक ज्ञान बघार रहा है . नहीं यह अमिताभ बच्चन की प्रतिष्ठा और कद काठी से मेल खाती बात नहीं है .  उन्हें अपना बौद्धिक स्तर और मानसिक संतुलन कायम रखना आना चाहिए . उन्हें याद रखना चाहिए कि आलोचना ऐरे गैरे नत्थू गैरों के नहीं बल्कि कामयाब और लोकप्रिय लोगों के हिस्से में ही आती है .

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ट्रोलिंग यानी अपमान

लेकिन जो कान सिर्फ चापलूसी और जयजय कार सुनने के आदी हो गए हों उनका अपनी  आलोचना न सुन पाना कोई हैरत की बात नहीं इसलिए अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियत जो तारीफ को अपना हक़ समझने लगते हैं को पहली बार किसी को ट्रोल करने मजबूर होना पड़ा .ट्रोल का मतलब आलोचना नहीं जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है बल्कि किसी को जानबूझकर बेइज्जत करना होता है जिसके किये सोशल मीडिया से बेहतर कोई प्लेटफार्म नहीं  जिसका हर घडी बेजा इस्तेमाल हो रहा होता है .

देश क्या दुनिया ही सदियों से दो खेमों या विचारधाराओं में बंटी रही है . संक्षेप में इसे समझें तो पहली वह जो धार्मिक सत्ता को सर्वोपरि समझती है और दूसरी वह जो सभी को हर स्तर पर बराबरी का दर्जा देने की हिमायती है .

आजकल देश में राज भगवा गेंग का है जो अपने वैचारिक विरोधियों को ट्रोल करना शान और जीत की बात समझती है और इस बाबत बेहद घटिया स्तर पर उतर आती है . इस छिछोरी मानसिकता के सबसे बड़े शिकार राहुल गाँधी रहे हैं जिन्हें कभी नरेन्द्र मोदी ने पप्पू क्या कहा भक्तों में उन्हें अपरिपक्व साबित करने की होड़ मच गई  . इसकी ताज़ी मिसाल 29 – 30 जुलाई को देखने में आई जब लड़ाकू विमान राफेल फ़्रांस से भारत आए .  इस दिन भगवाधारियों ने राफेल के आने का जश्न कम मनाया राहुल गाँधी को अपमानित करने का सुख जो दरअसल में उनके प्रति कुंठा ज्यादा है का लुत्फ़ ज्यादा उठाया . कई मीम ऐसी वायरल हुईं जिनमें राहुल गाँधी को यह सोचते और कहते बताया गया है कि राफेल के टायरों में हवा कैसे भराती होगी , इसमें लगे बम छोटे क्यों हैं और इसमें इंधन कैसे डाला जाता होगा .

सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि 3- 4 करोड़ सनातनियों के दिलो दिमाग में राहुल गाँधी को लेकर कितना खौफ भरा है जो नफरत की शक्ल में आये दिन प्रदर्शित होता रहता है . इतना ही नहीं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने जब राफेल की कीमत मोदी से पूछी तो भक्त लोग राहुल गाँधी को छोड़कर उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गए .

इन्हीं राफेल विमानों का जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने फ़्रांस जाकर हल्दी कुमकुम लगाकर और उन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर पूजा पाठ किया था और उनके पहियों के नीचे नीबू रखे थे तो भगवा गेंग उनके बचाव में सक्रिय होते धर्म की दुहाई देने लगी थी कि यह तो हमारी परम्परा है यानी धर्म न हुआ दो मुंही सांप हो गया बहरहाल ऐसा इसलिए हुआ था कि दुनिया इस मूर्खता पर अचंभित रह गई थी और देश के लोगों ने भी राजनाथ सिंह का जम कर मजाक बनाया था .

यह गेंग जो दूसरों के ( असल में अपने अदृश्य आकाओं के )  दिमाग और इशारों पर नाचती है अक्सर ममता बनर्जी , प्रियंका गाँधी और मायावती को सुरसा , शूर्पनखा और मंथरा कहकर मजाक बनाती रहती है ( ताजा हालातों को देखते शायद मायावती को वे राक्षसियों की लिस्ट से हटाने की सोच रहे हों ) यानी अमिताभ बच्चन की तरह उनके दिमाग में भी रामायण और महाभारत के प्रसंग और पात्र भरे पड़े हैं जो कुंठा से भी परे एक तरह की सड़ांध है जिसका दिनोंदिन बढ़ना चिंता की बात है .

शिकारी भी होते हैं शिकार

लेकिन ये लोग कभी खुद शिकार भी हो जाते हैं और जब होते हैं तो अपनी ही मूर्खताओं के चलते , हाल ही में केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने भाभीजी पापड़ के जरिये कोरोना के ठीक होने की बात कही तो किसी के मुंह से बोल नहीं फूटे . कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी इनके निशाने पर रहते थे .  उनके जुकाम , मफलर और बोलने के अंदाज तक का तबियत से मजाक बनाया जाता था .  मगर पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली के लोगों ने कांग्रेस के साथ साथ भाजपा की भी मिटटी कूटी तो सब के सब सकते में आ गए क्योंकि मोदी के गढ़े गए मेजिक पर अरविन्द के काम काज का जादू भारी पड़ा था तब से ये लोग उनका मजाक बनाने में डरने लगे हैं क्योंकि मजाक बनायेंगे तो अरविन्द की फ़ौज वजाय धरम करम के जबाबी हमला मोदी की डिग्री को लेकर करेगी जो पूरी भगवा गेंग की कमजोर नब्ज है . फिर मामला शिक्षित बनाम अनपढ़ हो जाता है .

इसी तरह का एक और दिलचस्प मामला भी 18 जुलाई को सामने आया था जब क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के फेंस ने दिल्ली के भाजपा सांसद और क्रिकेटर गौतम गंभीर को ट्रोल करते यह कहा था कि चुपचाप दिल्ली में राजनीति करो .हुआ सिर्फ इतना था कि गंभीर ने सौरव गांगुली को धोनी से ज्यादा मेच जिताऊ खिलाडी बता दिया था .

गंभीर की मंशा गांगुली को भगवा खेमे की तरफ आकर्षित करने की ज्यादा थी क्योंकि पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव हैं और भाजपा तमाम मशक्कत के बाद भी ममता बनर्जी की काट नहीं ढूंढ पा रही है .  गंभीर ने किसके इशारे पर यह ट्वीट किया यह तो वही जानें या अमित शाह पर इस तुलना पर उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी . एक यूजर ने ताना कसा श्रीमान गंभीर जी कृपया आप अपना ध्यान राजनीति और प्रजा कल्याण में लगायें धोनी ने क्या किया कैसे किया यह चिंता छोड़ दें .

बात दिल्ली की ही करें तो विधानसभा चुनाव के दौरान जरुरत से ज्यादा जोश और बडबोलापन दिखाते रहने बाले पूर्व भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी नतीजों के बाद खूब ट्रोल हुए थे . जून के पहले सप्ताह में अभिनेता सोनू सूद से यूजर्स ने आग्रह किया था कि भाई सोनू सूद इन्हें भी घर पहुंचा दो . गौरतलब है कि सोनू सूद ने अपने खर्च पर कई प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाकर खूब वाहवाही बटोरी थी .

लिखा जाए तो एक ट्रोल पुराण वजूद में आ सकता है लेकिन बीती 24 जून को भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा भी खिसियाकर रह गए थे जो कांग्रेसियों खासतौर से गाँधी परिवार की बुराई करने रसातल में भी उतरने तैयार रहते हैं . एक न्यूज़ चेनल पर पुरी लोकसभा चुनाव हार चुके संबित ने गलवान घाटी पर बहस में यह कह दिया था कि अगर नेहरु न होते तो ये पंगा ही न होता

. इस पर यूजर्स वजाय तालियाँ पीटने के उनपर हमलावर हो उठे थे कि नेहरु का नाम लेकर आप मौजूदा सरकार की कमियों पर पर्दा नहीं डाल सकते . एक यूजर ने लिखा कि हर काम में आपको नेहरु की ही गलती क्यों नजर आती है इससे चीन का मनोबल ही बढ़ता है .  गुलमोहर नाम के अकाउंट के एक यूजर ने तो यह तक भी कह डाला कि न नेहरु होते  न तुम आजाद होते .  नेहरु ने अपनी जिन्दगी के 9 साल जेल में निकाल दिए तुम जैसों की आजादी के लिए और आज तुम उनके होने पर ही सवाल उठाते हो .  

सभी को याद होगा कि साल की शुरुआत में जब देश में सीएए और एनआरसी को लेकर हंगामा मचा था तब अभिनेत्री दीपिका पादुकोण छात्रों का समर्थन करने जेएनयू पहुंची थीं तो भगवा गेंग ने आसमान सर पर उठा लिया था उन्हें ऐसी ऐसी घटिया और अश्लील गालियाँ ट्रोल करते दी गईं थीं जिनका यहाँ जिक्र भी औरतों का द्रोपदी और सीता सरीखा अपमान और गैरकानूनी कृत्य होगा .

ये तो कुछ उदाहरण थे लेकिन सोचने बाली अहम् बात यह भी है कि यह सब होता किसके या किनके इशारों पर है .  ट्रोल करने बाले भक्त तो दिमाग से पैदल और कठपुतली होते हैं लेकिन उन्हें नचाने बालों की डोरियाँ जिनके हाथ में हैं उन्हें जानते सब हैं पर मुंह खोलने की हिम्मत किसी की नहीं पड़ती क्योंकि लोग पिछले 6 साल में इतने डर चुके हैं कि उन्हें चुप रहने में ही अपनी भलाई नजर आती है .  इसलिए अमिताभ बच्चन किसी ज्ञात अज्ञात को सरासर जान से मारने की धमकी देने से पहले कुछ सोचते नहीं क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि मोदी राज में उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता .

 

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