लेखक-राजेश अग्रवाल

सब सब से ज्यादा जल यानी पानी की जरूरत खेती में होती है. यही वजह है कि हमारे देश में जमीनी पानी का लैवल लगातार गिर रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,544 क्यूबिक मीटर है, जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से कम है. ऐसे में यह पानी की कमी के जोन में आता है. अगर इस परेशानी से उबरने के लिए जरूरी उपाय नहीं किए गए तो जल्द ही हमें जल संकट का सामना करना होगा.

पानी से पनपने वाली  फसलों की गलत जोनिंग इकोनौमिक सर्वे के अनुसार, भारत में 89 फीसदी जमीनी पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है. भारतीय किसान अकसर फसलों को जरूरत से ज्यादा पानी से सींचते हैं. ऐसे में पानी की बरबादी बहुत ज्यादा होती है.

इंडियन काउंसिल फौर रिसर्च औन इंटरनैशनल इकोनौमिक रिलेशंस द्वारा की गई एक स्टडी में पाया गया है कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब में उगने वाले गन्ने और धान की फसलों में प्रति हेक्टेयर लाखों लिटर पानी का इस्तेमाल किया जाता है.

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रोचक बात यह है कि अर्द्धशुष्क क्षेत्र होने के बावजूद महाराष्ट्र भारत में कुल गन्ने का

22 फीसदी उत्पादन करता है और पूरी तरह से सिंचाई पर निर्भर है, जबकि बारिश और नदियों वाले क्षेत्र बिहार में इस का उत्पादन मात्र 4 फीसदी होता है.

इसी तरह सब से ज्यादा धान उगाने वाला राज्य पंजाब पूरी तरह बिजली से सिंचाई पर निर्भर है, इसलिए यहां पैदा होने वाले हर किलोग्राम चावल के लिए बिहार की तुलना में 3 गुना और पश्चिम बंगाल की तुलना में दोगुना पानी का इस्तेमाल किया जाता है.

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