रैडिशन और हयात जैसे होटल समूहों में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी करने के बाद स्नेहांशु कुमार ने जब नौकरी छोङ कर मशरूम की खेती शुरू की तो लोग उन के इस निर्णय पर न सिर्फ हंसते थे, बल्कि उन का मजाक भी उङाते थे.

मातापिता को भी एकबारगी लगा कि बेटे पर इतने पैसे खर्च कर होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई के लिए अच्छे कालेज में दाखिला दिलाया, सुविधाओं में पढ़ाया पर यह कैसी सनक सवार हो गई उसे कि वह नौकरी छोङ कर खेती करने लग गया?

लोगों को यह भी आश्चर्य हुआ जब खेती के लिए स्नेहांशु ने अपने घर में ही एक कमरे को चुना. स्नेहांशु बताते हैं,”अभिभावक की चिंता जायज थी मगर मैं जानता था कि मुझे आगे क्या करना है.”

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बिहार का मुजफ्फरपुर यों लिची उगाने के लिए खासा मशहूर है. पास ही वैशाली और हाजीपुर जिले में चीनिया केले की खेती भी खूब की जाती है पर इन दिनों एक तो लौकडाउन और दूसरा सरकारी उदासीनता की वजह से ये दोनों ही खेती किसानों को खास मुनाफा नहीं दे पाईं. समाचारों में आएदिन किसानों की बेबसी को देख कर स्नेहांशु का दिल भर आता था.

वे कहते हैं,”हमारे यहां खेती काफी हद तक मौनसून पर निर्भर करती है, यह मुझे पता था इसलिए मैं ने मशरूम की खेती करनी चाही. यह कम समय में अधिक मुनाफा देने वाली खेती है.

“कई लोग तो अभी भी मशरूम के बारे में अधिक नहीं जानते. वे इस की रैसिपी या तो किसी रेस्तरां में खाते हैं या फिर किसी समारोह में.

“जब मैं ने मशरूम की खेती की शुरूआत की तो कालोनी में कई लोगों को इस की जानकारी ही नहीं थी. मैं ने उन्हें मशरूम की खासियतों से अवगत कराया. उन्हें पहले खाने को दिए. धीरेधीरे लोग मेरे पास आने लगे. उन्हें मशरूम की सब्जी बेहद पसंद आई.”

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स्नेहांशु ने पहली बार अपने घर के एक छोटे से कमरे में मशरूम की फसल उगाई. फिर धीरेधीरे 5 कमरों में खेती करने लगे. अब वे स्थानीय बाजारों के साथसाथ मशरूम को बाहर भी भेजने लगे हैं.

फायदेमंद खेती

घर के कमरे में विशेष किस्म का ‘औयस्‍टर’ मशरूम की खेती करने के लिए वे 1 टैंक में लगभग 200 लीटर पानी भर देते हैं. फिर उस में लगभग 20 किलोग्राम भूसा भिगो कर घोल देते हैं. उस के बाद 10 ग्राम वैबस्टीन पाउडर और 250 एमएल फार्मेटिन भी टैंक में डाल देते हैं.

यह सब टैंक के पानी में मिलाने के बाद वह पूरे 24 घंटे उसे फर्श पर सुखाते हैं. सूखने के बाद इस में 1400 ग्राम (लगभग डेढ़ किलोग्राम)  बीज मिला कर अलगअलग लगभग 10 पैकेट तैयार कर लेते हैं और उन सभी पैकेटों को अपने कमरे में ही रख देते हैं. यह फसल 30 से 45 दिनों में मशरूम के रूप में तैयार हो जाती है.

स्नेहांशु बताते हैं कि वह पिछले साल यानी 2019 से इस काम में लगे हैं, लेकिन अपेक्षा से अधिक आय ने उन्हें अब इसे बड़े स्तर पर आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया है.

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45 दिनों में तैयार होती है फसल

वह बताते हैं कि औइस्‍टर मशरूम की फसल तैयार करने के लिए उन्होंने कमरे का तापमान का खास खयाल रखा और तापमान 10 से 25 डिग्री सैल्सियस के बीच रखा. उन की पहली फसल 45 दिनों में तैयार हो गई.

आज उन के पास लोग अब खुद चल कर आने लगे हैं. वे बताते हैं कि उन्हें अपनी औइस्‍टर मशरूम प्रति पैकेट पर 250 तक का मुनाफा हो जा रहा है, वहीं लागत मात्र 30-35 तक ही आ रही है.

यों आमतौर पर मशरूम की 3 मुख्य  प्रजातियां हैं, जो भारतीय वातावरण में उपयुक्त हैं-

  1. बटन मशरूम
  2. ओइस्टर मशरूम (सीप मशरूम)
  3. पैडीस्ट्रा मशरूम (धान पुआल मशरूम)

स्नेहांशु बताते हैं कि भारत में बटन मशरूम उगाने का उपयुक्त समय अक्तूबर से मार्च महीने का रहता है. इस दौरान के तापमान में बटन मशरूम की खेती बिना किसी परेशानी के की जा सकती है.

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वहीं धान पुआल मशरूम के लिए मई से सितंबर तक का महीना अधिक उपयुक्त रहता है. इस समय तापमान भी आमतौर पर 25 से 38 डिग्री के आसपास रहता है और चूंकि यह खेती घर के अंदर भी की जा सकती है इसलिए अगर बाहर तापमान 40-42 डिग्री भी हो तो अंदर का तापमान इस से नीचे ही रहता है.

ऐसे बनाएं खाद

मशरूम की खेती के लिए सब से पहले खाद बना लें. खाद कितना बनाएं यह खेती पर निर्भर करता है. अगर 1 कमरे में खेती करने की योजना बना रहे हैं तो इस के लिए 1500 लिटर पानी की आवश्यकता होगी. आप इस के लिए एक टंकी रख लें, जिस में पानी जमा यानी स्टोर रहे. फिर इस में डेढ़ किलोग्राम फौर्मलिन व 150 ग्राम बेवस्टीम मिला कर लगभग 50 किलोग्राम भूसा मिला कर भिगो दें.

इसे भूसा का शुद्धिकरण कहते हैं. यह जितना शुद्ध होगा खेती उतनी ही अच्छी होगी.

बीज की बोआई

अब बीज बोआई करने की तैयारी कर लें. पहले भिगो कर रखे गए भूसे को हवा में सूखा लें फिर उसे बैग (बोरे या कट्टे) में भर लें. बैग की साइज 16×18 उपयुक्त है.

बैग में भूसा डाल कर बीज डाल दें फिर ऊपर से भूसा डाल दें. यह प्रक्रिया आप को लगभग 3-4 बार करनी होगी.

बैग में पानी न रहे इस के लिए उस के कोनों में 1-2 छेद कर दें, जिस से पानी बाहर निकल आए.

अब इन बैग्स को ऐसी जगह रखें जहां बाहरी हवा का प्रवेश न हो.

लगभग 15 दिनों के लिए कमरे की खिड़कियां व दरवाजे बंद कर दें.

15 दिनों के बाद हवा की जरूरत होगी.

इस के लिए कमरे की खिड़कियां व दरवाजे खोल दें व पंखा चला दें. आप को इस दिन तक मशरूम के सफेद रंग दिखने शुरू हो जाएंगे.

उचित रखरखाव

मशरूम के बैग्स का उचित रखरखाव जरूरी है. इन की जितनी देखभाल करेंगे, फसल उतनी ही अच्छी होगी.

40-45 दिनों के बाद मशरूम की फसल तैयार हो जाती है और आप इन्हें बैग्स से निकाल कर एक जगह इकट्ठा कर सकते हैं.

मशरूम को आकर्षक थैलियों में पैक कर सकते हैं. मांग के हिसाब से पैकिंग करें. आप इन्हें 100 ग्राम, 200 ग्राम, 250 ग्राम, आधा किलोग्राम और 1 किलोग्राम के आकर्षक थैलियों में पैक कर बाजार में सप्लाई कर सकते हैं.

मशरूम के 5 प्रमुख फायदे

मशरूम न सिर्फ खाने में स्वादिष्ठ होता है, शरीर के लिए फायदेमंद भी है. अधिकतर लोग मशरूम की सब्जी खाते हैं, लेकिन इस से मिठाईयां भी बनती हैं जो स्वाद और सेहत दोनों के लिए बेजोड़ रहता है.

  • इस में मौजूद फाइबर्स, पोटैशियम विटामिन सी से ब्लड प्रैशर नियंत्रित रहता है.
  • मशरूम में भरपूर मात्रा में कैल्सियम, विटामिन डी और फास्फोरस रहता है. इस से शरीर की हड्डियां मजबूत रहती हैं.
  • कैंसर जैसे असाध्य रोगों से लङने में सहायक है.
  • रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है यानी यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है.
  • शरीर को अंदरूनी ताकत देता है और सैक्स पावर को बढ़ाता है.
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