3 दिसंबर 2018, उत्तरप्रदेश राज्य के बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या हिन्दू कट्टरवादी भीड़ ने कर दी थी. जिसमें कथित तौर पर इस घटना को अंजाम देने वाले बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद् और भाजपायुमो से सम्बंधित आरोपी थे. घटना के बाद से ही इस मामले में भाजपा विपक्ष के निशाने में थी. एक बड़ा कारण यह कि गोकशी के मामले में महज शक पर मोब लिंचिंग के मामले भाजपा कार्यकाल में लगातार बढ़ने लगे, दूसरा, यह कि आरोपियों का संबंध सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़ता दिख रहा था.

भाजपा उस दौरान खुद पर लगे आरोपों को मीडिया में आ आकर नकार रही थी. आज घटना के लगभग डेढ़ साल बाद फिर से इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या चर्चा में है. वजह, सोशल मीडिया में वायरल होती एक तस्वीर. इस तस्वीर में भाजपा के बुलंदशहर के जिले अध्यक्ष अनिल सिसोदिया की एक तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर में उनके साथ शिखर अग्रवाल सख्स नजर आ रहा है. यह शिखर अग्रवाल वही सख्स है जिस पर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या की साजिश रचने का मुख्य आरोप है.

यह तस्वीर 14 जुलाई की है. अनिल सिसोदिया ‘प्रधानमंत्री जन कल्याण योगी जागरूकता अभियान’ संगठन द्वारा आयोजित किये गए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. यह अभियान भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री के कार्यों का प्रचार प्रसार करने के लिए बनाया गया था. संभवत इसमें भाजपा के बड़े नेताओं की स्वीकार्यता रही होगी. अनिल का कहना है कि “इस पर भाजपा का कोई लेना देना नहीं है उन्हें बस मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था.”

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फोटो में दिख रहा है कि भाजपा जिलाअध्यक्ष आरोपी को सर्टिफिकेट दे रहे हैं. और जो सर्टिफिकेट दिया गया उसमें उन्हें संगठन का महासचिव बताया गया है. सर्टिफिकेट देने का मतलब किसी मानमनोहर से है. सवाल यह कि किस बात के मानमनोहर आरोपी को दिया जा रहा है? गौरतलब है कि आरोपी शिखर अग्रवाल बुलंदशहर में भापयुमो का प्रमुख सदस्य भी रह चुका है. फिलहाल सुबोध कुमार वाले मामले में वह बैल पर बाहर है.

क्या था इंस्पेक्टर सुबोध कुमार का मामला?

बुलंदशहर जिले के स्याना कोतवाली में 3 दिसंबर 2018 को कथित गौकशी को लेकर हिंसा हुई थी. सुबोध कुमार मोके पर भीड़ को नियंत्रित करने पहुंचे थे. इस दौरान स्याना थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की उग्र भीड़ ने उन्ही की पिस्तौल से हत्या कर दी गई थी. उन्हें गोली मारने से पहले उनके सर पर कुल्हाड़ी से बर्बर तरीके से हमला भी किया गया था. और उनकी उँगलियाँ भी काट दी गई थी. यह घटना पूरी योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दी गई लगती थी. पकडे गए आरोपी हिन्दू कट्टरवादी संगठन से ताल्लुक रखते थे. इसमें मोबलिंचिंग में शामिल लगभग 33 लोगों को हिरासत में लिया गया था. जिसमें से पिछले साल 7 आरोपियों को जमानत पर छोड़ा गया था.

इस पुरे मामले में ध्यान देने वाली बात यह थी कि यह वही इंस्पेक्टर सुबोध कुमार थे जो अख़लाक़ के मामले में विशेष आयक्त थे. अख़लाक़ जिसकी कथित गोमांस रखने के आरोप में उत्तरप्रदेश में दादरी मोब लिंचिंग कर दी गई थी. और इसकी हत्या के आरोपी लोकसभा के चुनाव में योगी आदित्यनाथ की रैली में स्पॉट किये गए.

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विपक्ष ने सुबोध कुमार की हत्या का लिंक उस दौरान हुए अख़लाक़ की हत्या से जोड़ा था जिसमें विपक्ष का आरोप था कि सुबोध कुमार को लेकर कट्टरपंती संगठनो के भीतर पहले से रोष था. बुलंदशहर की हिंसा से दो दिन पहले वाला एक पत्र हिंसा के दिन सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा था. यह पत्र भाजपा के नगर महामंत्री, नगर उपाध्यक्ष कपिल त्यागी, भाजपा विधानसभा संयोजक स्याना विजय कुमार लोधी, ब्लाक प्रमुख पुष्पेन्द्र के हस्ताक्षर थे. जिसमें इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को “जनता के प्रति अभद्र” बताया गया था. साथ में पशु चोरी की बढती घटनाओं, हिन्दुओ के धार्मिक आयोजनों में अड़चन का हवाला दिया गया था.

सुबोध की हत्या के आरोपियों को हीरो बनाया गया

यह ध्यान दिए जाने वाली बात कि हिंसा के दौरान सुमित नाम का व्यक्ति भी मारा गया था. जिस पर हिंसा भड़काने और सुबोध कुमार की हत्या में शामिल होने का आरोप भी लगा था. मसलन सुमित के परिवार वालों ने योगी सरकार से कुछ मांगे रखी. जिसमें मुख्य सरकारी नौकरी, 50 लाख का मुआवजा और शहीद का दर्जा था. यहां तक कि परिवारजन ने आरोपी की मूर्ति गांव में स्थापित की. यह बात समझने की है कि इन मांगो के न पूरा होने पर उन्होंने परिवार समेत धर्म परिवर्तन कराने की धमकी दी. यानी परिवार वाले खुद इस मसले को धर्म से जुड़ा मान रहे थे. और सुमित के किये काम को धार्मिक बलिदान समझे हुए थे. जिसकी धमकी वे मुख्यमंत्री योगी को दे रहे थे.

24 अगस्त को हिंसा के मुख्य आरोपी में से 6 को अलाहबाद हाई कोर्ट ने जमानत पर छोड़ा था. जिसमें से एक शिखर अग्रवाल भी था. उस दौरान छोड़े गए आरोपियों का फूलमालाओं से स्वागत किया गया था. इसकी वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुई जिसमें साफ़ देखा गया कि इंस्पेक्टर की हत्या के आरोपियों का स्वागत करते हुए “जय श्री राम” और “वन्दे मातरम” के नारे लगाए जा रहे थे.

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इसे लेकर भाजपा पर सवाल भी उठे थे. उस दौरान प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि “राज्य सरकार और भाजपा का इस मसले से कोई लेना देना नहीं है.” साथ ही “अगर जेल से छूटे हुए व्यक्ति के समर्थक या रिश्तेदार का कोई स्वागत करता है तो उससे भाजपा और सरकार का कोई लेना देना नहीं.”

उस दौरान इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के परिवार वालों ने आरोपियों को वापस जेल भेजने की अपील सरकार से की थी. उनके बेटे श्रे प्रताप सिंह ने कहा “इस तरह के अपराधिक तत्व जेल के अन्दर होने चाहिए बाहर नहीं. मैं मुख्यमंत्री योगी से अपील करता हूँ कि समाज की भलाई के लिए इन अपराधियों को जेल के भीतर होना चाहिए.” इतने संदिग्ध अपराध में आरोपियों को खुल्ला छोड़ा गया जिस पर सरकार ने बयान दिया तो वों भी अपने बचाव के लिए. जबकि उसी राज्य में कथित गौ तस्करी के मामले में सरकार ने लोगों पर एनएसए जैसे कड़े कानून लगाए गए हैं.

यह रिश्ता क्या कहलाता है?

भाजपा के साथ इन आरोपियों का लिंक बार बार दिखता रहा है. शिकार अग्रवाल जो कि पहले ही भाजपा के युवा मोर्चा के सदस्य रहे. जब उनका नाम हिंसा में सामने आया तो उसे लेकर बताया गया कि अब इसका भाजपा से कोई लेना देना नहीं. 14 जुलाई को स्थानीय भाजपा जिलाध्यक्ष के साथ मंच साझा करते हुए और मानसम्मान लेते हुए यह फोटों यूँही कमरे के लेन्स में फिट तो नहीं हो गई होगी.

सवाल यह कि जिन आरोपों में भाजपा शामिल पाई गई आखिर इसके तार जुड़ते ही क्यों दिखाई देते हैं? क्या वहां के जिलाध्यक्ष को नहीं पता था कि शेखर अग्रवाल का माले में मुकदमा चल रहा है? यह यूँ ही तो नहीं हो जाता.

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अभी कुछ दिन हुए हैं विकास दुबे वाले प्रकरण के, विकास दुबे जिसने 8 पुलिसवालो को बर्बर तरीके से मारा था. उस समय लगभग यूपी, बिहार समेत 6 राज्यों को अपराधी को पकड़ने के लिए हाई अलर्ट पर कर दिया गया. विकास के सर पर प्रशाशन द्वारा 5 लाख रूपए का इनाम घोषित किया गया. जब विकास पकड़ा गया तब “कार पलटा” कर विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया. क्या इतनी तत्परता सुबोध कुमार के प्रकरण में भी दिखाई गई? यहां भी तो अपराधियों ने सीधे सरकार के महकमें को धमकाया था. यहाँ भी तो अपराधियों ने बर्बर तरीके से इंस्पेक्टर की हत्या की थी. क्या पुलिस की मौतों में भी अंतर करती है सरकार?

यह ख़बरों में पहले ही दर्ज है कि बुलंदशहर हिंसा में पकड़े गए लगभग मुख्य आरोपी हिन्दू कट्टरपंथी संगठन से ताल्लुक रखते थे. किसी का संबंध बजरंग दल तो किसी का विश्व हिन्दू परिषद् से संबंध था. यह संगठन आरएसएस से उसी प्रकार तालुक रखते है जिस प्रकार भाजपा पार्टी आरएसएस से तालुक रखती है. यह देखा जाना जरुरी है कि यह आरोपी भाजपा पार्टी के इर्दगिर्द महसूस किये जाते रहे हैं. इसका ज्वलंत उदाहरण शेखर अग्रवाल के मामले से समझा जा सकता है.

 

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