सौजन्य- सत्यकथा
2जुलाई, 2020 की शाम 7 बजे डीएसपी (बिल्हौर) देवेंद्र मिश्रा को सूचना मिली कि कुख्यात अपराधी विकास दुबे अपने गांव बिकरू में मौजूद है. खबर पाते ही वह सक्रिय हो गए. दरअसल विकास के पड़ोसी गांव मोहनी निवादा निवासी राहुल तिवारी ने थाना चौबेपुर में विकास दुबे के विरुद्ध मारपीट करने, बंधक बनाने, अपहरण तथा जानलेवा हमले की तहरीर दी थी.
इस पर थानाप्रभारी विनय कुमार ने 1 जुलाई, 2020 को थाना चौबेपुर में भादंवि की धारा 307 के तहत विकास दुबे व उस के गुर्गों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और इस की सूचना डीएसपी (बिल्हौर) देवेंद्र मिश्रा को दे दी. अत: उन्हें विकास के गांव में होने की सूचना मिली तो उन्होंने जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करने का फैसला कर लिया.
डीएसपी देवेंद्र मिश्रा ने अपने सर्किल के शिवराजपुर, बिठूर और चौबेपुर के थानाप्रभारियों महेश यादव, कौशलेंद्र प्रसाद सिंह और विनय कुमार को तलब किया, फिर 25000 हजार के इनामी कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को दबोचने की रूपरेखा बनाई.
इस के लिए पूरी फोर्स को थाना चौबेपुर में एकत्र किया गया. दबिश के लिए जाने वाली पुलिस पार्टी में 20 पुलिसकर्मियों को सम्मिलित किया गया. इन में तेजतर्रार चौकी इंचार्ज, दरोगा व पुलिस के सिपाही थे. एक होमगार्ड भी था.
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2 जुलाई की रात 12 बजे डीएसपी देवेंद्र मिश्रा की अगुवाई में 3 थानों शिवराजपुर, बिठूर और चौबेपुर के थानाप्रभारियों के साथ 20 पुलिसकर्मियों की टीम 2 जीपों में सवार हो कर हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने के लिए बिकरू गांव को रवाना हो गई. बिकरू गांव थाने से 40 किलोमीटर दूर है. इसलिए पुलिस पार्टी रात एक बजे बिकरू गांव पहुंची. उस समय गांव में सन्नाटा पसरा था. लोग घरों में गहरी नींद सो रहे थे.
विकास के घर के सामने जेसीबी मशीन खड़ी थी, जिस से रास्ता बंद था. अत: पुलिस पार्टी ने जीपें वहीं खड़ी कर दीं और पुलिस के जवान जीपों से उतर गए. तभी सामने के मकान की छत से फायरिंग शुरू हो गई. ताबड़तोड़ फायरिंग से पुलिसकर्मी संभल नहीं पाए और जान बचाने के लिए आसपास के घरों में जा छिपे. लेकिन कुख्यात अपराधी विकास दुबे ने कड़ी घेराबंदी कर रखी थी. इसलिए घर में दुबके जवानों को वहीं छलनी कर दिया गया.
डीएसपी देवेंद्र मिश्रा जान बचाने के लिए जिस घर में गए, वह विकास के मामा प्रेम प्रकाश पांडेय का था. वहां उस का मामा और चचेरा भाई शार्पशूटर अतुल दुबे मोर्चा संभाले थे. दोनों ने देवेंद्र मिश्रा की पिस्टल छीन ली और निर्दयता से गोलियां दाग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया.
मुठभेड़ के दौरान चौबेपुर थानाप्रभारी विनय कुमार ने पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दी कि दबिश के दौरान पुलिस पार्टी अपराधियों के जाल में फंस गई है. अपराधी ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहे हैं. जान बचाना मुश्किल हो रहा है. कई जवान घायल हो गए हैं और कई की जान चली गई है, तुरंत भारी पुलिस फोर्स भेजी जाए.
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थानाप्रभारी विनय कुमार की इस सूचना से पुलिस अधिकारी दंग रह गए. सूचना के एक घंटे बाद एडीजी (कानपुर जोन) जय नारायण सिंह, आईजी मोहित अग्रवाल और एसएसपी दिनेश कुमार पी. भारी पुलिस फोर्स के साथ वहां पहुंच गए और गांव को चारों तरफ से घेर कर सर्च औपरेशन शुरू कर दिया गया.
पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो सिहर उठे. क्योंकि घटनास्थल के आसपास घरों तथा सड़क पर पुलिस के जवानों की लाशें पड़ी थीं और कई घायल पड़े थे. एक घर के बाथरूम का दृश्य तो दिल दहला देने वाला था.
बाथरूम में एक के ऊपर एक 5 पुलिस जवानों की लाशें पड़ी थीं. शायद हत्या के बाद उन्हें घसीट कर वहां लाया गया था. पुलिस अधिकारियोें ने घायल पड़े पुलिस जवानों को तत्काल कानपुर के रीजेंसी अस्पताल भिजवाया और मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम हाउस लाला लाजपतराय अस्पताल भेजा गया. वहां पर भारी फोर्स तैनात करा दी.
शहीद हुए पुलिस जवानों में डीएसपी देवेंद्र मिश्रा, शिवराजपुर थानाप्रभारी महेश यादव, उपनिरीक्षक शिवराजपुर नेबू लाल, मंधना चौकी इंचार्ज अनूप कुमार सिंह, हेड कांस्टेबल सुलतान सिंह, सिपाही बबलू, राहुल कुमार और जीतेंद्र कुमार थे.
गंभीर रूप से घायल पुलिस जवान जिन्हें रीजेंसी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उन में बिठूर थानाप्रभारी कौशलेंद्र प्रताप सिंह, सबइंसपेक्टर चौबेपुर सुधाकर पांडेय, बिठूर थाने का सिपाही अजय सिंह तोमर, थाना शिवराजपुर का सिपाही अजय कश्यप, बिठूर थाने का सिपाही शिवमूरत और होमगार्ड जयराम पटेल थे.
सुबह घटना की सूचना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिली तो उन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने तत्काल डीजीपी हितेशचंद्र अवस्थी और एडीजी (ला एंड आर्डर) प्रशांत कुमार को घटनास्थल पहुंचने और ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया.
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आदेश पा कर दोनों आला अधिकारी लगभग 10 बजे बिकरू गांव पहुंच गए. वहां का खूनी मंजर देख कर वह दहल उठे. अब तक सर्च औपरेशन कर रही पुलिस टीम ने मंदिर में छिपे 2 अपराधी अतुल दुबे और प्रेम प्रकाश पांडेय को मार गिराया.
इन में अतुल दुबे कुख्यात अपराधी विकास दुबे का चचेरा भाई था और प्रेम प्रकाश पांडेय मामा था. डीजीपी हितेशचंद्र अवस्थी ने निरीक्षण के दौरान कहा कि शहीद पुलिसकर्मियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. जिस बर्बरता के साथ हत्याएं की गई हैं, उन के साथ भी वैसा ही बर्ताव किया जाएगा.
इधर पुलिसकर्मियों के शहीद होने की खबर पा कर मृतकों के घर वाले सुबह से ही पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे थे. दोपहर होतेहोते पोेस्टमार्टम हाउस में घर वालों की रोनेचीखने की आवाजें सुनाई देने लगीं. उन के रोनेचीखने की स्थिति यह थी कि सुन कर पत्थर दिल भी द्रवित हो जाते.
कई पुलिसकर्मी भी दहाड़ मार कर रो रहे थे. पोस्टमार्टम की कार्रवाई 8 डाक्टरों की टीम ने वीडियोग्राफी के साथ पूरी की. पोस्टमार्टम के बाद शवों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए फूलमाला से सजे वाहनों में रख कर पुलिस लाइन ले जाया गया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 3:30 बजे कानपुर पहुंचे. सब से पहले वह घायल पुलिस जवानों से मिलने रीजेंसी अस्पताल गए, फिर बलिदानियों को नमन करने पुलिस लाइन पहुंचे. उन के साथ उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना, कैबिनेट मंत्री कमल रानी वरूण, विधायक महेश त्रिवेदी और उच्च शिक्षा राज्यमंत्री नीलिमा कटियार भी थीं.
सभी ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की. इस के बाद मुख्यमंत्री ने प्रैस वार्ता की, जिस में उन्होंने घोषणा की कि हर मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपए की आर्थिक मदद और परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाएगी.
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साथ ही असाधारण पेंशन देने की भी घोषणा की. मुख्यमंत्री ने मृतकों के स्वजनों को आश्वस्त किया कि संकट की इस घड़ी में सरकार उन के साथ है. हर गुनहगार को कठोर सजा मिलेगी. उन्होंने कहा डीजीपी को आदेश दिया गया है कि वह तब तक कानपुर में डेरा डाले रहें, जब तक गुनहगारों को पकड़ा नहीं जाए या मुठभेड़ में मारा नहीं जाए.
अपराधियों की मुठभेड़ में शहीद हुए देवेंद्र मिश्र मूल रूप से बांदा जिले के थाना गिरवां के सहेवा गांव के रहने वाले थे. उन के पिता स्व. महेश मिश्र शिक्षक थे. देवेंद्र मिश्र 3 भाइयों में सब से बड़े थे. देवेंद्र मिश्र सिपाही पद पर भर्ती हुए थे. अपनी लगन और मेहनत से वह सिपाही से दरोगा और दरोगा से डीएसपी बने थे. उन के परिवार में पत्नी शशि के अलावा 2 बेटियां हैं.
शहीद हुए शिवराजपुर थाने के प्रभारी निरीक्षक महेश यादव मूलरूप से रायबरेली जिले के वनपुरवा रामपुर कलां के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी सुमन के अलावा 2 बेटे हैं. यादव परिवार सहित थाने के सरकारी आवास में रहते थे. वह 2012 बैच के दरोगा थे. एसएसपी कानपुर के पीआरओ रहने के बाद उन्हें थाने का चार्ज मिला था.
शहीद हुए शिवराजपुर थाने के उपनिरीक्षक नेबू लाल प्रयागराज के भीटी गांव के रहने वाले थे. उन के पिता कालिका प्रसाद किसान थे. कालिका प्रसाद के 4 बेटों में नेबू लाल सब से बड़े थे. वह 1990 में पुलिस महकमे में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे.
उन्होंने 2009 में रैंकर्स परीक्षा पास की थी. 2 साल की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद साल 2013 में उन्हें कानपुर में तैनाती मिली थी. उन की पत्नी श्यामा देवी गांव में रहती हैं. उन के 4 बेटे हैं जिन में बड़ा बेटा अरविंद एमबीबीएस की तैयारी कर रहा है.
शहीद हुए मंधना चौकी इंचार्ज अनूप कुमार सिंह मूल रूप से प्रतापगढ़ जिले के थाना मानधाता क्षेत्र में आने वाले गांव वेलारी के रहने वाले थे. उन के पिता रमेश बहादुर सिंह किसान हैं. अनूप कुमार ने 2015 के बैच में ट्रेनिंग की थी.उन की पहली पोस्टिंग कानपुर हुई. उन्हें पहले बिठूर थाने की टिकरा चौकी का इंचार्ज बनाया गया. बाद में जनवरी 2020 में उन का तबादला मंधना चौकी कर दिया गया. अनूप कुमार कानपुर शहर के चर्चित समाजवादी पार्टी के नेता चंद्रेश सिंह के चचेरे भाई थे.
शहीद आरक्षी सुलतान सिंह मूलरूप से झांसी जिले के बूढ़ा भोजला के रहने वाले थे. उन की मां का निधन बचपन में ही हो गया था. उन्होंने अपनी शिक्षा मऊरानीपुर में नाना के घर पूरी की और वहीं से पुलिस में भर्ती हुए. सुलतान की बीवी बूढ़ा भोजला में रहती है. उन की 7 साल की बेटी सीमा सिंह है जिसे सुलतान डाक्टर बनाना चाहते थे.
बिठूर थाने के शहीद सिपाही बबलू आगरा जिले के पोखर पांडे नगलां लोहिया के रहने वाले थे. उन के पिता छोटेलाल दिव्यांग हैं और घर पर रहते हैं. बबलू 4 भाइयों में तीसरे नंबर के थे. 2 बड़े भाइयों रमेश व दिनेश की शादी हो चुकी है. बबलू की शादी भी राजस्थान में तय हो चुकी थी.
शहीद सिपाही राहुल कुमार मूलरूप से औरैया जिले के रूरूकलां के रहने वाले थे. उन के पिता ओमकार दरोगा पद से रिटायर हुए थे. राहुल कुमार 3 भाइयों में मंझले थे. 2016 बैच की ट्रेनिंग के बाद उन की पहली पोस्टिंग कल्याणपुर कानपुर हुई थी. जनवरी 2020 में उन का तबादला बिठूर हो गया था. उन के परिवार में बीवी दिव्या के अलावा एक माह की बच्ची है.
वर्ष 2018 बैच के शहीद हुए सिपाही जितेंद्र कुमार सिंह मथुरा के रिफाइनरी थाने के बरारी गांव के रहने वाले थे. उन के पिता तीर्थपाल मजदूरी करते हैं. 4 भाई बहनों में वह सब से बड़े थे. वर्तमान में उन का परिवार हाइवे के गांव विरजापुर में रह रहा है. परिवार संभालने की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी.
कुख्यात अपराधी विकास दुबे और उस के गैंग के सदस्यों को पकड़ने के लिए पुलिस, पुलिस अधिकारियों और एसटीएफ ने बिकरू गांव में डेरा डाल दिया. तलाशी के दौरान पुलिस ने विकास दुबे के घर व अन्य घरों में जम कर तोड़फोड़ की. इस के अलावा उस के आसपास के जिलों के ठिकानों पर भी दबिश दी.
लखनऊ के कृष्णा नगर, इंद्रलोक कालोनी स्थित उस के मकान पर भी पुलिस ने दबिश दी, पर विकास नहीं मिला. उस की बीवी ऋचा दुबे व मां सरला घर पर थीं. मां विकास से काफी नाराज थी. उस ने कहा विकास आतंकी है, मिल जाए तो मार दो. उसे बहुत समझाया पर वह नहीं माना, ऐसा बेटा परिवार के लिए कलंक है.
इस वीभत्स घटना के बाद पुलिस ने थाना चौबेपुर में 2 रिपोर्ट दर्ज की. पहली रिपोर्ट एसपी (पश्चिम) अनिल कुमार ने दर्ज कराई. यह रिपोर्ट विकास दुबे, प्रेम प्रकाश पांडेय, अतुल दुबे सहित 30-35 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई.
इस रिपोर्ट में पुलिस ने हत्या, लूट, सरकारी कार्य में बाधा डालने, लोक सेवक को गंभीर चोट पहुंचाने, दफा 34 तथा 7 क्रिमिनल एक्ट सहित कई अन्य गंभीर धाराएं लगाई गईं. दूसरी एफआईआर पुलिस एनकाउंटर की दर्ज हुई, जिस में 2 आरोपितों की मौत दिखाई गई.
विकास दुबे कौन था. वह अपराधी कैसे बना. पुलिस की उस से क्या खुन्नस थी. उस ने 8 जाबांज पुलिस कर्मियों को कैसे और क्यों मौत के घाट उतारा. यह सब जानने के लिए उस के अतीत की ओर जाना होगा.
कानपुर जिले के चौबेपुर थाना क्षेत्र में एक ब्राह्मण बाहुल्य गांव है बिकरू. रामकुमार दुबे अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरला देवी के अलावा 3 बेटे विकास, दीप प्रकाश, अविनाश और 2 बेटियां थीं. रामकुमार किसान थे. कृषि उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. ब्राह्मण समाज के लोग उन की इज्जत करते थे.
रामकुमार दुबे का बड़ा बेटा विकास बचपन से ही तेजतर्रार और झगड़ालू प्रवृत्ति का था. उस ने जवानी की डगर पर कदम रखते ही युवा लड़कों का एक गैंग बना लिया. उस का यह गिरोह छोटेमोटे अपराध करने लगा.
विकास पर पहला मुकदमा साल 1990 में कायम हुआ, जब उस ने पड़ोसी गांव के पिछड़ी जाति के रसूखदारों को पीटा. कथित रूप से उन लोगों ने उस के पिता को बेइज्जत किया था. इस मामले में शिवली पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया लेकिन तत्कालीन कांग्रेस विधायक नेकचंद्र पांडेय ने उसे थाने से ही छुड़वा लिया. इस राजनीतिक संरक्षण से उस का हौसला बढ़ गया.
अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद विकास दुबे ने इसी राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठा कर जमीनों की सौदेबाजी को अपना मुख्य कारोबार बना लिया. बेशकीमती जमीनों के मालिकों को धमका कर कम कीमत में खरीद लेना विकास का शगल था. जल्दी ही वह कुख्यात भूमाफिया बन बैठा. कानपुर देहात, कानपुर नगर, इटावा, औरैया आदि में उस की बादशाहत कायम हो गई.
वर्ष 2000 में रंजिश के चलते विकास दुबे ने शिवली थाना क्षेत्र के ताराचंद्र इंटर कालेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या करा दी. इस में विकास का नाम आया और वह जेल भी गया. जेल में रहते उस ने अपने गुर्गों से रामबाबू को निपटवा दिया. इस मामले में भी उस का नाम आया और रिपोर्ट दर्ज हुई. विकास को शक था कि रामबाबू मुखबिरी करता है.
लेकिन विकास वर्ष 2001 में तब सुर्खियों में आया जब उस ने 11 नवंबर, 2001 को शिवली थाने के अंदर पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में भाजपा के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी. संतोष शुक्ला से उस की जुलूस निकालने के दौरान कहासुनी हो गई थी.
इसी से खफा हो कर विकास ने उन्हें मौत की नींद सुला दिया. इस घटना के बाद वह पूरे प्रदेश में चर्चित हो गया. इस मामले में पुलिस ने अदालत में चार्जशीट दायर की लेकिन गवाहों के अभाव में विकास को सजा नहीं हुई और जेल से छूट गया.
2002 में बसपा सरकार में विकास का खूब सिक्का चला. उस ने बिकरू, शिवली, कंजती सहित 10 गांवों में अपनी दहशत कायम कर ली. इसी दहशत के चलते विकास 15 साल तक जिला पंचायत के सदस्य पद पर कायम रहा.
वह खुद तो बिकरू का प्रधान रहा ही, आरक्षित सीट होने पर अपने समर्थक रामकुमार की बीवी को निर्विरोध प्रधान बना दिया. वर्ष 2015 में विकास ने अपनी पत्नी ऋचा दुबे को घुमई से जिला पंचायत सदस्य के लिए खड़ा किया और सपा के समर्थन से जीत दिलाई. यद्यपि इस सीट पर विकास का चचेरा भाई अनुराग दुबे काबिज होना चाहता था.
विकास दुबे शातिर दिमाग था. वह जिस पार्टी की सत्ता प्रदेश में होती, उसी पार्टी का दामन थाम लेता. पार्टी के नेता उसे हाथोंहाथ लेते. सत्ता पक्ष का नेता बन कर वह पुलिस पर रौब गांठता और अवैध कारोबार करता. अपनी हनक के चलते उस ने बिकरू गांव को चमका दिया था.
गांव की हर गली पक्की थी और गांव की सड़क मुख्य मार्ग से जुड़ी थी. उस के संबंध बसपा, सपा, कांग्रेस और भाजपा नेताओं से थे, सो वह इन नेताओं की मदद से हर काम करा लेता था.
जमीन के अवैध कारोबार के अलावा विकास व्यापारी, कारोबारियों और फैक्ट्री मालिकों से जबरन वसूली भी करता था. इस अवैध कमाई से विकास ने कई शहरों में मकान बनवाए और प्लौट खरीदे. लखनऊ के कृष्णा नगर में विकास के 2 मकान हैं. जिस में एक में वह खुद बीवीबच्चों के साथ रहता था और दूसरे मकान में उस की बीमार मां सरला और भाई दीप प्रकाश बीवी बच्चों के साथ रहता था.
विकास दुबे अब तक कुख्यात हिस्ट्रीशीटर बन चुका था. चौबेपुर थाने में उस की हिस्ट्रीशीट फाइल नं 152 ए में दर्ज थी. उस पर हत्या, हत्या का प्रयास, बलवा, अपहरण, वसूली आदि के 60 मुकदमे दर्ज थे. बिकरू गांव और आसपास के दर्जनों गांवों में उस का खौफ था. वह गांव वालों से कहता था कि उस के गांव में पुलिस नहीं सेना ही प्रवेश कर सकती है. वह अपने घर पर दरबार लगाता था. अंतिम निर्णय उसी का होता था.
बिकरू गांव में विकास ने 2 हजार वर्ग फीट में आलीशान मकान बनाया था. सुरक्षा की दृष्टि से मकान के चारों ओर बाउंड्रीवाल थी, जिस पर कंटीले तार लगे थे. मकान के सामने बड़ा फाटक और 3 अन्य गेट थे. सीसीटीवी कैमरा भी लगाया गया था. इस मकान में उस के अपाहिज पिता रामकुमार व 2 सेवादार कल्लू व उस की बीवी राखी रहती थी.
विकास दुबे की पिछले कुछ समय से राहुल तिवारी से खुन्नस चल रही थी. दरअसल राहुल के ससुर शिवली कस्बा निवासी लल्लन बाजपेई की जमीन का विकास ने जबरन दानपात्र में बैनामा करा लिया था. इसे ले कर राहुल ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया. इसी खुन्नस में विकास दुबे व उस के गुर्गों ने राहुल तिवारी को बंधक बना कर पीटा और मुकदमा वापस लेने की बात कही.
बात न मानने पर जान से मारने का प्रयास किया. राहुल ने इस संबंध में 1 जुलाई को धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था. डीएसपी देवेंद्र मिश्र ने इसी मुकदमे में विकास दुबे व उस के गुर्गों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई थी और 20 पुलिसकर्मियों के साथ दबिश के लिए बिकरू गांव पहुंचे थे.
लेकिन किसी पुलिस वाले ने पुलिस पार्टी की दबिश की खबर विकास दुबे को पहले ही दे दी थी. इस पर विकास ने अपने गुर्गों को आग्नेय अस्त्रों के साथ छतों पर खड़ा कर दिया और जेसीबी मशीन लगा कर रास्ता अवरुद्ध कर दिया.
रात 1 बजे पुलिस पार्टी जैसे ही आई, विकास और उस के गुर्गों ने फायरिंग शुरू कर दी और 8 पुलिसकर्मियों को भून डाला और उन के आधुनिक हथियार छीन लिए. कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए और कुछ जान बचा कर भागे. जिन्होंने आलाअधिकारियों को सूचना दी. उस के बाद बिकरू गांव छावनी में तब्दील हो गया. पुलिस ने 2 अपराधियों को मार गिराया.
एसटीएफ क्राइम ब्रांच व पुलिस की टीमें कुख्यात अपराधी विकास दुबे व उस के गुर्गों को पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रही हैं लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका.
पुलिस जहां उसे जिंदामुर्दा पकड़ना चाहती है, वहीं शातिर विकास दुबे अदालत में सरेंडर की फिराक में है. क्योंकि उसे डर है कि पुलिस के हाथ लगा तो एनकाउंटर हो जाएगा. कथा संकलन तक प्रशासन ने हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का बिकरू गांव स्थित मकान को जेसीबी द्वारा जमींदोज कर दिया था.
पुलिस के साथ जो होना था, हो गया. बात तो तब है जब किसी भी दबाव को नकार कर पुलिस विकास दुबे और उस के साथियों के साथ भी ऐसा ही कर के दिखाए. साथ ही पुलिस के उस खबरी को भी ऐसा सबक सिखाए कि उस की आखिरी सांस भी उधार की हो. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित