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किसान आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट

लेखक-रोहित और शाहनवाज

लगभग सात हफ़्तों से अधिक समय से चले आ रहे किसान आन्दोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने 11-12 जनवरी को हस्तक्षेप किया. कोर्ट के इस आदेश से जहां लोगों को यह लग रहा है कि किसान अब इस मसले पर गदगद हो गए होंगे और जीत की खुशियां मना रहे होंगे. वहीँ जमीन पर ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है. इस आदेश के आने के बाद किसान अब और भी असंतुष्ट और असहाय महसूस कर रहे हैं. और यह बात जाहिर तब हुई जब ठीक अगले दिन यानि 13 जनवरी को किसानों ने लोहड़ी की खुशियां मनाने के बजाय, विवादित कृषि कानूनों को जलाते हुए नाराजगी दिखा कर न्यायपालिका और सरकार को अपना फैसला फिर से जाहिर किया. साथ में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन कृषि कानूनों को ले कर उन की शुरुआत से चलती आ रही मांग क्या है.

सुप्रीम कोर्ट के आए इस आदेश को ले कर जब हम सीधा ग्राउंड पर किसान नेताओं से बात करने गए तो उन के भीतर एक स्पष्टता दिख रही थी कि यह कानून बिना वापस कराए वे यहां से जाने को बिलकुल भी तैयार नहीं है व सुप्रीम कोर्ट के जारी किए आदेश से वे संतुष्ट नहीं हैं. ऐसे में सवाल बनता है कि आखिर क्या कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप करने के बावजूद भी किसान इस कहर बरपाती ठंड में जमे हुए हैं? आखिर वह क्या आदेश हैं जिस पर गहमागहमी चल रही है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को किसानों के बीच शक के दायरे में खड़ा करती है?

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कोर्ट में सुनवाई

11 जनवरी के दिन देश की सर्वोच्च न्यायलय के द्वारा विवादित कृषि कानूनों को ले कर सुनवाई हुई. यह सुनवाई 3 याचिकाओं पर हुई. सुनवाई 3 न्यायधीशों की बेंच की अगुवाई में की गई, जिस में चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अगुवाई में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमनियम शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कृषि कानूनों को ले कर किसानों के विरोध से निपटने के तरीके पर केंद्र सरकार पर नाराजगी जताई और कहा कि, किसानों के साथ उन के बातचीत के तरीके निराशाजनक है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से कहा कि कानून के अमल पर स्टे करेंगे और स्टे तब तक होगी जब तक कमिटी बात करेगी ताकि बातचीत की सहूलियत पैदा हो. कोर्ट ने वैकल्पिक जगह पर प्रदर्शन के बारे में भी किसानों को सोचने के लिए कहा. साथ ही महिलाओं और बुजुर्गों को अपने गांव वापिस चले जाने को ले कर टिप्पणी भी की. हालांकि किसान संगठनों ने उसी दिन प्रेस कांफ्रेंस कर यह बात साफ कर दी कि वह इस कानूनी प्रक्रिया अथवा कमिटी का हिस्सा नहीं बनेंगे. बल्कि सीधा सरकार से बात करेंगे.

केंद्र की ओर से अटोर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता और किसान संगठनों की ओर से एके सिंह, दुष्यंत दवे, एचएस फुल्का, प्रशांत भूषण, कोलिन गंजाल्वेस,  इत्यादि पेश हुए. वही बिल का समर्थन करने वाले राज्य से हरीश साल्वे पेश हुए.

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अगले दिन 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों को स्टे पर रखने का आदेश दिया. आन्दोलन कर रहे किसान संगठनों को आश्चर्य तब हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने 4 सदस्यीय कमिटी का गठन किया. जिस में अशोक गुलाटी, डाक्टर प्रमोद जोशी, अनिल घनवत, भूपिंदर सिंह मान शामिल थे. हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है की इस 4 सदस्यों की कमिटी बनाए जाने के 1 दिन बाद ही भूपिंदर सिंह मान अपना नाम वापस ले चुके हैं. इस से पहले भी आरएम लोढ़ा इस कमिटी की अध्यक्षता का प्रस्ताव ठुकरा चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “हमें समिति बनाने का अधिकार है जो वास्तव में हल चाहतें हैं वे समिति के पास जा सकते हैं. ये समिति हम अपने लिए बना रहे हैं.” जिस के बाद विवाद इस कमिटी के सदस्यों के अपोइन्ट किए जाने को ले कर गरमा गया है. जिस ने सुप्रीम कोर्ट को ले कर कई शंकाओं के बीज आंदोलित किसानों के भीतर बो दिए हैं.

किसानों का एतराज

सुप्रीम कोर्ट और किसानों के बीच बने इस नए गतिरोध को ले कर जब हम ने किसान संगठनों के नेताओं से इस पुरे प्रकरण के संबंध में बात की, तो उन्होंने बताया कि उन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में किसी प्रकार की याचिका दायर ही नहीं की गई. पंजाब किसान यूनियन के नेता सुखदर्शन नत ने कहा, “कोर्ट ने 8 किसान नेताओं को समन भेजा था कि आप आएं और अपना पक्ष रखें. क्योंकि कोर्ट का सम्मान हर कोई करता है और हम भी करते हैं तो यहां से कुछ वकीलों को भेजा गया था, कि वहां (कोर्ट) में जाएं और जा कर यह कह दें कि हम इस में पार्टी नहीं होंगे.”

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सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं को ले कर जब भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रेसिडेंट गुरनाम सिंह चढूनी से बात की गई तो वे कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट में हम नहीं गए हैं. हमें लगता है कि यह सरकार का एक षड़यंत्र था. सरकार ने पहले ही यह विकल्प खोजा की अगर सरकार से कुछ नहीं होता तो कोर्ट के माध्यम से इस मामले को टाल दिया जाए. इस का अंदेशा हमें पहले दिन से ही था कि यह मामला कोर्ट में जाएगा, कोर्ट इस पर स्टे लगाएगा और इस मामले पर कमिटी का गठन करेगा. लेकिन हमें ये उम्मीद नहीं थी की कमिटी के सदस्य वे उन को बनाएंगे जो पहले से ही सरकार और इन कानूनों के पक्ष में हैं.”

कमिटी से नाराजगी

जाहिर है सुप्रीम कोर्ट ने जिन 4 सदस्यों की कमिटी बनाई थी, उस पर काफी विवाद होता हुआ दिखाई दे रहा है. इन चार सदस्यों की राय अलगअलग माध्यमों से सरकार और नए कृषि कानूनों को ले कर जाहिर होती रही है. ऐसे में दोआबा किसान यूनियन के प्रेसिडेंट कुलदीप सिंह दोआबा कहते हैं, “कमिटी से हम पहले दिन से इनकार करते आए हैं. कमिटी का मतलब होगा मामले को सुलझाना नहीं बल्कि डिले करना. जो नाम सुप्रीम कोर्ट ने दिए भी हैं, वे कभी किसानों के पक्ष में नहीं हो सकते. चारों सदस्य वे हैं जो पहले ही इन कानूनों के फेवर में हैं. ये लोग वही भाषा बोलते हैं जो सरकार कहती है, ऐसे में निष्पक्ष बातविचार का सवाल ही नहीं उठता.”

गौरतलब है की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए कमिटी के नामों से कोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठता है. चारों सदस्यों के कृषि कानूनों के समर्थन में पब्लिक डोमेन में आकर अपने विचार स्पष्ट कर चुके हैं. इस लिस्ट में मौजूद नामों में से पहले सदस्य, अशोक गुलाटी हैं. अशोक गुलाटी भारत में महत्वपूर्ण कृषि अर्थशास्त्रियों में से एक माने जाते है. यह वही अशोक गुलाटी हैं जो मई 2020 में कृषि कानूनों में किए जाने वाले बदलावों को ले कर मोदी सरकार की प्रशंसा कर चुके हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में अपने एक लेख में कहा था कि, “मोदी सरकार देश की कृषि सेक्टर में सुधारों को शुरू करने के लिए बधाई के पात्र हैं.” यानि अशोक गुलाटी पहले ही सरकार और इन कानूनों के पक्ष में अपनी दलील दे चुके हैं.

इस लिस्ट के दुसरे सदस्य अनिल घनवत हैं. घनवत महाराष्ट्र स्थित किसान यूनियन शेतकारी संगठन के प्रेसिडेंट हैं. इस संगठन के फाउंडर शरद जोशी के संबंध में भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी बताते हैं कि, 20 साल पहले जब वाजपयी की सरकार थी उस समय डब्लूटीओ लागु हुआ था. ये लोग डब्लूटीओ के तब से समर्थक थे. हिन्दुस्तान की मार्किट में विकसित देशों के दखल के अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र में इन लोगों ने भूमिका निभाई थी. ये तो अमेरिका का एजेंट है. मुझे जब इस बारे में पता चला तो मैंने बगावत कर दी. और आज वही लोग इस कमिटी में हैं.”

देखने वाली बात यह है कि यह वही संगठन है जिस ने अक्टूबर में, कृषि कानूनों के समर्थन में प्रदर्शन किया था. दिसम्बर में हिन्दू बिजनेसलाइन अखबार से बात करते हुए घनवत ने कहा था कि, “इन कानूनों को वापस लेने की आवश्यकता नहीं है, जिन्होंने किसानों के लिए अवसरों को खोल दिया है.”

लिस्ट के तीसरे सदस्य प्रमोद कुमार जोशी हैं. वे कृषि नीति विशेषज्ञ और दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक रह चुके हैं. सितम्बर 2020 में इजरायली एग्री-बिजनेस कंसल्टिंग फर्म एग्रीविजन द्वारा आयोजित एक पैनल डिस्कशन में जोशी ने अपनी बात रखी थी. जिस में उन्होंने कृषि कानूनों की वकालत करते हुए यह कहा था कि, “खेती को लाभदायक बनाने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बनाने में ये कानून सहायक होंगे.” यही नहीं एमएसपी के संबंध में जोशी ने यह भी कहा है कि “कानून द्वारा एमएसपी को अनिवार्य करना बहुत कठिन है. एमएसपी का कानून का मतलब एमएसपी पर अधिकार होगा. जिन्हें एमएसपी नहीं मिलेगी वे कोर्ट जा सकेंगे और एमएसपी नहीं देने वालों को दंडित किया जाएगा.” यानि प्रमोद कुमार जोशी भी पूरी तरह से सरकार और कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं.

कमिटी से अपना नाम वापस लेने वाले भूपिंदर सिंह मान भी इन कृषि कानूनों के पक्ष में दिखाई देते रहे हैं. मान राजसभा के पूर्व सांसद रह चुके हैं और भारतीय किसान यूनियन (मान) के प्रेसिडेंट हैं. मान ने हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसान संगठनों के साथ मिल कर सरकार को इन तीनों कानूनों में कुछ संशोधनों के साथ लागु किए जाने की मांग को ले कर मेमोरेंडम सौप चुके हैं.

भारतीय किसान यूनियन (पंजाब) के जनरल सेक्रेटरी बलवंत सिंह बहरामके का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पॉलिटिकली मोटीवेटेड रहा है. वह कहते हैं, “हम यह पहले भी कह चुके हैं और अब आप के माध्यम से भी कह रहे हैं की देश के प्रधानमंत्री और माननीय सुप्रीम कोर्ट हम किसानों के लिए उलटे फैसले लेंगे तो हम यह सड़कें तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक यह वापस नहीं ले लिए जाते. क्योंकि यह कानून हमारे पुरे किसान परिवारों के लिए डेथ वारंट हैं.”

महिलाओं और बुजुर्गों पर टिप्पणी अनावश्यक

किसान आंदोलन में एक बड़ी संख्या महिलाओं और बुजुर्गों की है. खासकर इन में महिलाएं अधिक मजबूती के साथ आंदोलन में डटी हुई हैं. ये महिलाएं न सिर्फ इस आंदोलन का स्तम्भ बनी हुई हैं बल्कि वे अपने किसान वजूद के होने का भी एहसास करा रही हैं. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि, “हम नहीं समझ पा रहे की महिलाएं वहां क्यों आईं हैं. मैं चाहता हूं कि आप उन्हें यह बता दें की सीजेआई उन्हें वापस चले जाने के लिए कह रहे हैं.” हालांकि इस टिप्पणी पर जवाब देते हुए दुष्यंत दवे ने कहा कि महिलाओं और बुजुर्गों को कोई वहां ले कर नहीं आया बल्कि वे खुद यहां आएं हैं. यह उन के अस्तित्व का भी सवाल है. इस टिप्पणी को ले कर जब हम ने वहां मौजूद महिला आन्दोलनकारियों से बात करने की कोशिश की तो महिलाओं ने साफ कहा कि वह वापस जाने वाले नहीं हैं. वह यहां अपने परिजनों के साथ न केवल डटी रहेंगी बल्कि ट्रैक्टर यात्रा में भी उन के साथ रहेंगी. सरकार और सुप्रीम कोर्ट को यदि उन की इतनी चिंता है तो तीनों कृषि कानून वापस ले ले और वे वापस चले जाएंगी.

पंजाब किसान यूनियन की नेता जसबीर कौर नत ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस सुझाव को ले कर कहा कि, “कृषि कोई ऐसा काम नहीं है जो सिर्फ मर्दों के साथ जुडी हुई है. खेती का काम ऐसा है जिस में पूरा परिवार मिल कर मेहनत करता है जिस में महिलाएं भी शामिल हैं. यही कारण है की वे इस एजिटेशन में भी शामिल हैं. उन्हें कृषि से न तो अलग देखने की जरुरत है और न ही कमजोर समझने की.” जसबीर कहती हैं, “भारत में कृषि क्षेत्र में लगभग 75% योगदान महिलाओं का होता है. जिस में महिलाओं के अधीन सिर्फ 12% ही जमीन है. यह कंसर्न सरकार और कोर्ट के अधीन होना चाहिए.”

वह आगे कहती है, “महिलाओं और बुजुर्गों को वापस भेज कर क्या सरकार यहां यह चाहती है की नौजवान यहां रहे और वे उन पर फोर्स इस्तेमाल कर उन्हें भड़काएं. फिर उन्हें इस एजिटेशन को हिंसक कहने का बहाना मिल जाए. महिलाओं और बुजुर्गों का इस एजिटेशन में होना ही इस बात की गारंटी है की हम किसी प्रकार की कोई हिंसा नहीं चाहते.”

असमंजस और असंतुष्टि

पिछले 50 दिनों से लगातार यह आंदोलन दिल्ली के बौर्डेरों पर बना हुआ है. ऐसे में किसानों का खूब पैसा भी खर्च हो रहा है. वहां आए किसान अपना शत प्रतिशत योगदान देने के मकसद से वहां संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में हर प्रकार से वे अपना योगदान दे रहे हैं. यह बहुत आसानी से देखा जा सकता है किसान अपना काम छोड़ कर वहां आने पर मजबूर हुए हैं. बहुत लोग अपना पेशेगत काम को छोड़ कर वहां निःशुल्क सेवा भाव से अपना योगदान दे रहे है. ऐसे में वह घर की संपत्ति और अपनी बचत को आन्दोलन में झोंक रहे हैं. कोई मुफ्त खाना बांट रहा है, कोई मुफ्त जूते सिल रहा हैं तो कोई मुफ्त बाल काट रहा है. कोई अपनी खेती किसानी छोड़ कर वहां आया हुआ है.

कोई भी व्यक्ति यह जोखिम तभी लेता है जब उसे बड़े नुक्सान के होने का डर हो. आज वहां पर किसान इसी डर और अपना भविष्य बचाने के चलते दिन रात वहां बैठे हुए हैं. ऐसे में किसानों को इस कानून के स्टे में जाने से ज्यादा डर बना हुआ है. भारतीय किसान यूनियन (कादिआं) के स्पोक्सपर्सन रवनीत बरार का कहना है की, “हमारी बात उन से है जिन्होंने ये कानून बनाए हैं. अब इस का सोल्यूशन तो सरकार ही देगी. इसे वापस तो सरकार को ही करना पड़ेगा ना. अब यह स्टे में है तो सरकार भी अपना पल्ला झाड़ेगी की मामला सुप्रीम कोर्ट के अधीन है.” वह आगे कहते है, “स्टे में डालने का मतलब रिपील करना नहीं है. बल्कि आन्दोलन को खत्म करने का नैतिक दबाव डालना है. और हम यहां पर कानूनों को रिपील करवाने आएं हैं. आप ही बताइए कि अगर हम यहां से उठ जाते हैं और कल को सरकार दोबारा इन कानूनों को लागू करती है तो हमारे पास क्या चारा बच पाएगा. हमारा मोमेंटम तो टूट जाएगा. यह तो ऐसा लग रहा है जैसे सरकार ने हमारे और अपने बीच में सुप्रीम कोर्ट की एक नई दीवार खड़ी कर दी हो.”

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून को होल्ड कर देने से किसानों के बीच असमंजस और असंतुष्टि भी पैदा हुई है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करने, जिन में इन विवादित कृषि कानूनों को असंवैधानिक बताया गया था, पर किसानों को हैरान करता है. इसलिए जिस आदेश से देश के बड़े हिस्से को यह लग रहा हो कि वह किसानों के पक्ष में है, किन्तु किसानों की समझ से यह एक प्रकार से सरकार की इच्छा को किसानों पर थोपने जैसा है.

बिग बॉस 14: अभिनव शुक्ला को देखकर फैंस को आई सुशांत सिंह राजपूत की याद, ट्विट कर बताया हीरो

बिग बॉस 14 की शुरुआत से दर्शक अभिनव शुक्ला को मजबूत प्रतियोगी नहीं समझ रहे थें. रुबीना दिलाइक की वजह से उन्हें कमजोर माना जा रहा था. दर्शकों का मानना था कि अभिनव शुक्ला अपनी बीवी के पीछे छिपे रहते हैं. लेकिन समय के साथ साथ यही उनकी यूएसपी बन गई और लोग उन्हें बिग बॉस 14 के टॉप 5 कंटेस्टेंट में देखने लगे.

फैंस का कहना है कि अभिनव शो के एक दमदार प्रतियोगी है. जो बिना लड़े- झगड़े दर्शकों का दिल जीत लेते हैं. इसका सबूत अचानक लोगों को ट्विटर पर देखने को मिला जिसमें लोग अचानक #bb14heroabhinaw करके ट्रेंड करन लगे. ऐसा इंसान मिलना आज के समय में मुश्किल है.

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वहीं कुछ फैंस ऐसे हैंं जिन्हें अभइनव शुक्ला को देखकर सुशांत सिंह राजपूत की याद आने लगी है. जिससे लोग और भी ज्यादा अभिनव शुक्ला को ट्रेंड करने लगे हैं.

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वो अपना गेम भी खेलता है और पत्नी के लिए लड़ता भी है. तो वहीं दूसरे प्रतियोगी ने कहा कि एभिनव शुक्ला एक ऐसा प्रतियोगी है कि जो फैंस का दिल जीत लेता है.

इस खबर के बाद से लगातार अभिनव शुक्ला सुर्खियों में छाएं हुए हैं. अभिनव के फैंस के लिए ये बड़ी खबर है. अभिनव को लोग अब बिग बॉस के विनर के रूप में देखऩे लगे हैं. जिससे अभिनव अपने फैंस का दिल लगातार जितते हुए नजर आ रहे हैं.

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बस कुछ दिन और बचें हैं जिसके बाद बिग बॉस केघर का विनर कौन होगा उसका फैसला आ जाएगा थोड़े वक्त और इंतजार करने की जरुरत है.

वहीं कुछ लोग रुबीना दिलाइक को भी बिग बॉस के विनर के रूप में देखते हैं.

बिग बॉस 14: एजाज खान इस वीकेंड के वार में घर से हो सकते हैं बाहर ! जानें क्या है वजह

बिग बॉस 14 के मेकर्स शो को दिलचस्प बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. इस हफ्ते जैस्मिन भसीन को शो से बाहर निकालकर फैंस को बहुत बड़ा झटका दिया है. लोगों को यकिन करना मुश्किल हो रहा है कि जैस्मिन भसीन अब बिग बॉस के घर से बाहर है.

इसके बाद एक और सरप्राइज देने का शो के मेकर्स ने प्लान बना लिया है. जिसे जानने के बाद आप भी चौक जाएंगे, दरअसल इस वीकेंड के वार में घर से बाहर होंगे एजाज खान अभी से उनकी शूटिंग रोक दी गई है. इस बार एलिमिनेशन लिस्ट में सोनाली फोगाट ,एजाज खान, राहुल वैद्या औऱ निक्की तम्बोली रहेंगे.

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रिपोट्स कि मानी जाए तो इस बार एजाज खान को जमकर वोट्स मिले हैं लेकिन इसके बावजूद भी एजाज खान को घर से बाहर निकाल दिया जाएगा.

बिग बॉस 14 में आने से पहले एजाज खान ने एक फिल्म शाइन कि थी जिसकी शूटिंग रोक दी गई है. अब लगता है कि घर से बाहर जाने के बाद एजाज खान अपनी फिल्म की शूटिंग  फिर से शुरू कर पाएंगे.

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बिग बॉस 14 का फिनाले जनवरी में होना था लेकिन यह शो अब डेढ़ महीना के लिए एक्सटेंड कर दिया गया है. फिलहाल बिग बॉस 14 के घर में काफी ज्यादा खिलाड़ी बाकी है. अपने पुराने कमिटमेंट की वजह से एजाज खान को इस शो को बीच में छोड़कर जाना पड़ा जो सही दर्शकों को सही नहीं लगा.

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एजाज खान फैंस के फेवरेट कंटेस्टेंट बन चुके थें. अब उनका जाना फैंस को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है फैंस ने एजाज खान को बिग बॉस के विनर के रूप में देखने लगे थें. अब देखना ये हैं कि एजाज खआन के बाद कौन होगा शो का विनर

अंतर्व्यथा-भाग 1: रंजनी जी के पति का देहांत कैसे हुआ

बंद अंधेरे कमरे में आंखें मूंदे लेटी हुई मैं परिस्थितियों से भागने का असफल प्रयास कर रही थी. शाम के कार्यक्रम में तो जाने से बिलकुल ही मना कर दिया, ‘‘नहीं, अभी मैं तन से, मन से उतनी स्वस्थ नहीं हुई हूं कि वहां जा पाऊं. तुम लोग जाओ,’’ शरद के सिर पर हाथ फेरते हुए मैं ने कहा, ‘‘मेरा आशीर्वाद तो तुम्हारे साथ है ही और हमेशा रहेगा.’’ सचमुच मेरा आशीर्वाद तो था ही उस के साथ वरना सोच कर ही मेरा सर्वांग सिहर उठा. शाम हो गई थी. नर्स ने आ कर कहा, ‘‘माताजी, साहब को जो इनाम मिलेगा न, उसे टीवी पर दिखलाया जा रहा है. मैडम ने कहा है कि आप के कमरे का टीवी औन कर दूं,’’ और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए वह टीवी औन कर के चली गई. शहर के लोकल टीवी चैनल पर शरद के पुरस्कार समारोह का सीधा प्रसारण हो रहा था.

मंच पर शरद शहर के गण्यमान्य लोगों के बीच हंसताखिलखिलाता बैठा था. सुंदर तो वह था ही, पूरी तरह यूनिफौर्म में लैस उस का व्यक्तित्व पद की गरिमा और कर्तव्यपरायणता के तेज से दिपदिप कर रहा था. मंच के पीछे एक बड़े से पोस्टर पर शरद के साथसाथ मेरी भी तसवीर थी. मंच के नीचे पहली पंक्ति में रंजनजी, बहू, बच्चे सब खुशी से चहक रहे थे. लेकिन चाह कर भी मैं वर्तमान के इस सुखद वातावरण का रसास्वादन नहीं कर पा रही थी. मेरी चेतना ने जबरन खींच कर मुझे 35 साल पीछे पीहर के आंगन में पटक दिया. चारों तरफ गहमागहमी, सजता हुआ मंडप, गीत गाती महिलाएं, पीली धोती में इधरउधर भागते बाबूजी, चिल्लातेचिल्लाते बैठे गले से भाभी को हिदायतें देतीं मां और कमरे में सहेलियों के गूंजते ठहाके के बीच मुसकराती अपनेआप पर इठलाती सजीसंवरी मैं. अंतिम बेटी की शादी थी घर की, फिर विनयजी तो मेरी सुंदरता पर रीझ, अपने भैयाभाभी के विरुद्ध जा कर, बिना दानदहेज के यह शादी कर रहे थे. इसी कारण बाबूजी लेनदेन में, स्वागतसत्कार में कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते थे.

शादी के बाद 2-4 दिन ससुराल में रह कर मैं विनयजी के साथ ही जबलपुर आ गई. शीघ्र ही घर में नए मेहमान के आने की खबर मायके पहुंच गई. भाभी छेड़तीं भी, ‘बबुनी, कुछ दिन तो मौजमस्ती करती, कितनी हड़बड़ी है मेहमानजी को.’ सचमुच विनयजी को हड़बड़ी ही थी. हमेशा की तरह उस दिन भी सुबह सैर करने निकले, बारिश का मौसम था. बिजली का एक तार खुला गिरा था सड़क पर, पैर पड़ा और क्षणभर में सबकुछ खत्म. मातापिता जिस बेटी को विदा कर के उऋण ही हुए थे उसी बेटी का भार एक अजन्मे शिशु के साथ फिर उन्हीं के सिर पर आ पड़ा. ससुराल में सासससुर थे नहीं. जेठजेठानी वैसे भी इस शादी के खिलाफ थे. क्रियाकर्म के बाद एक तरह से जबरन ही मैं वहां जाने को मजबूर थी. ‘सुंदरता नहीं काल है. यह एक को ग्रस गई, पता नहीं अब किस पर कहर बरसाएगी,’ हर रोज उन की बातों के तीक्ष्ण बाण मेरे क्षतविक्षत हृदय को और विदीर्ण करते. मन तो टूट ही चुका था, शरीर भी एक जीव का भार वहन करने से चुक गया.

7वें महीने ही सवा किलो के अजय का जन्म हुआ. जेठ साफ मुकर गए. 7वें महीने ही बेटा जना है. पता नहीं विनय का है भी या नहीं. एक भाई था वह गया, अब और किसी से मेरा कोई संबंध नहीं. सब यह समझ रहे थे कि हिस्सा न देने का यह एक बहाना है. कोर्टकचहरी करने का न तो किसी को साहस था न ही कोई मुझे अपने कुम्हलाए से सतमासे बच्चे के साथ वहां घृणा के माहौल में भेजना चाहता था. 1 साल तो अजय को स्वस्थ करने में लग गया. फिर मैं ने अपनी पढ़ाई की डिगरियों को खोजखाज कर निकाला. पहले प्राइमरी, बाद में मिडल स्कूल में पढ़ाने लगी. मायका आर्थिक रूप से इतना सुदृढ़ नहीं था कि हम 2 जान बेहिचक आश्रय पा सकें. महीने की पूरी कमाई पिताजी को सौंप देती. वे भी जानबूझ कर पैसा भाइयों के सामने लेते ताकि बेटे यह न समझें कि बेटी भार बन गई है. अपने जेबखर्च के लिए घर पर ही ट्यूशन पढ़ाती. मां की सेवा का असर था कि अजय अब डोलडोल कर चलने लगा था. इसी बीच, मेरे स्कूल के प्राध्यापक थे जिन के बड़े भाई प्यार में धोखा खा कर आजीवन कुंवारे रहने का निश्चय कर जीवन व्यतीत कर रहे थे. छत्तीसगढ़ में एक अच्छे पद पर कार्यरत थे. उन्हें सहयोगी ने मेरी कहानी सुनाई. वे इस कहानी से द्रवित हुए या मेरी सुंदरता पर मोहित हुए, पता नहीं लेकिन आजीवन कुंवारे रहने की उन की तपस्या टूट गई. वे शादी करने को तैयार थे लेकिन अजय को अपनाना नहीं चाहते थे. मैं शादी के लिए ही तैयार नहीं थी, अजय को छोड़ना तो बहुत बड़ी बात थी. मांबाबूजी थक रहे थे. वे असमंजस में थे. वे लोग मेरा भविष्य सुनिश्चित करना चाहते थे.

भाइयों के भरोसे बेटी को नहीं रखना चाहते थे. बहुत सोचसमझ कर उन्होंने मेरी शादी का निर्णय लिया. अजय को उन्होंने कानूनन अपना तीसरा बेटा बनाने का आश्वासन दिया. रंजनजी ने भी मिलनेमिलाने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. इस प्रकार मेरे काफी प्रतिरोध, रोनेचिल्लाने के बावजूद मेरा विवाह रंजनजी के साथ हो गया. मैं ने अपने सारे गहने, विनयजी की मृत्यु के बाद मिले रुपए अजय के नाम कर अपनी ममता का मोल लगाना चाहा. एक आशा थी कि बेटा मांपिताजी के पास है जब चाहूंगी मिलती रहूंगी लेकिन जो चाहो, वह होता कहां है. शुरूशुरू में तो आतीजाती रही 8-10 दिन में ही. चाहती अजय को 8 जन्मों का प्यार दे डालूं. उसे गोद में ले कर दुलारती, रोतीबिलखती, खिलौनों से, उपहारों से उस को लाद देती. वह मासूम भी इस प्यारदुलार से अभिभूत, संबंधों के दांवपेंच से अनजान खुश होता.

रोडरेज की समस्या

बढ़ते सड़क हादसों के साथ रोडरेज यानी रास्ते चलते झगड़ा, गालीगलौज और मारपीट करने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. रोड पर लोग छोटीछोटी बातों पर भी हिंसक होने लगे हैं. आखिर ऐसा क्यों? दि?ल्ली के मानसरोवर पार्क इलाके के रहने वाले एक युवक की प्रीत विहार इलाके में रोडरेज के चलते गोली मार कर हत्या कर दी गई.

सोमेश छाबड़ा नाम का शख्स अपने दोस्तों के साथ कार से कनाट प्लेस घूमने आया था. वहां से वह प्रीत विहार की ओर जा रहा था कि तभी एक बाइक पर सवार 2 लड़के उस की कार के पीछे हौर्न बजाने लगे. इन के साइड न देने पर कुछ आगे जा कर उन बाइक सवार लड़कों ने फायरिंग की, जिस से ड्राइव कर रहे सोमेश के सीने पर गोली लग गई और उस की मौत हो गई. आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देख कर फायरिंग करने वालों की तलाश की गई. दिल्ली के ही वसंत कुंज इलाके में देररात रोडरेज की घटना में एक महिला की कुछ लड़कों ने सरेआम पिटाई कर दी.

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उस महिला ने बताया कि वह अपनी किसी जानकार के साथ किशनगंज से वसंत कुंज के लिए निकली थी. इसी दौरान चर्च रोड पर महिला की गाड़ी में उन लड़कों की गाड़ी ने मामूली टक्कर मार दी. टक्कर के बाद महिला को गुस्सा आ गया तो उस ने उस गाड़ी पर पत्थर फेंक दिया, जिस से कार का शीशा टूट गया. इस के बाद महिला और लड़कों के बीच गालीगलौज शुरू हो गई. फिर लड़कों ने उसे पीटा और फरार हो गए. एक और मामला दिल्ली का ही, कार चलाते समय धूम्रपान करने वाले एक व्यक्ति पर 2 लोगों ने आपत्ति जताई. उन्होंने उन से सिगरेट छोड़ने का अनुरोध किया तो वह इंसान इतना भड़क गया और उस ने अपनी कार उन की बाइक में घुसा दी, जिस से उन में से एक की मौत हो गई. दिल्ली की सड़कों पर भागमभाग के बीच मामूली बात पर वाहन चालकों से मारपीट की घटनाएं पिछले कुछ सालों से सुर्खियां बन रही हैं. ऐसे हादसों से यातायात नियमों का पालन करने वाले अनुशासनप्रिय चालकों में खौफ तो है ही, मनोरोग विशेषज्ञ भी इसे गंभीरता से ले रहे हैं.

किसी को ठीक से गाड़ी चलाने की नसीहत देना मुसीबत को न्योता देना है. राजधानी में जब एक महिला ने एक मिनी बस वाले को ध्यान से गाड़ी चलाने को कहा तो उस ड्राइवर ने डंडे से न केवल उस की पिटाई की, बल्कि उसे बचाने आए उस के पति को भी जख्मी कर दिया. ये कुछ उदाहरण हैं. इस तरह के कई अन्य रोडरेज मामले हर दिन शहर में होते रहते हैं. बीच चौराहे पर होने वाली रोडरेज की घटनाएं, दरअसल, लोगों की मानसिकता और उन की असंवेदनशीलता को दर्शाती हैं. सड़क पर गाड़ी को ओवरटेक करने के लिए जगह न देने पर 2 गाडि़यों का हलके से छू जाने पर गालीगलौज और फिर एकदूसरे पर हथियारों से हमला करना जैसी घटनाएं आजकल आम होती जा रही हैं. राजधानी की सड़कों पर गाडि़यों की रफ्तार जिस तरह से बढ़ती जा रही है उसी हिसाब से उन्हें चलाने वालों का गुस्सा भी बढ़ रहा है.

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आज सभी को समय से अपनी जगह पहुंचना होता है जिस के कारण सड़कों पर भागमभाग मची होती है कि हम पहले तो हम पहले. वाहन चलाने वाला सोचता है कि सामने वाले भी उसी अनुसार गाड़ी चलाएं या उसे आगे जाने का रास्ता दें. जब ऐसा नहीं हो पाता तो लड़ाईझगड़ा और यहां तक कि हाथापाई शुरू हो जाती है. केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि इस तरह की रोडरेज घटनाएं देश के किसी भी कोने में आम बात होती जा रही हैं. देश में जिस तरह से महंगाई की दर बढ़ रही है, लगभग उसी तरह से रोडरेज की घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं. इलाहाबाद में ऐसी ही एक रोडरेज की घटना वायरल हुई. उस में दिखाया गया कि एक कार में धक्का लग जाने की वजह से बाइकसवार युवकों की जम कर धुनाई कर दी गई. बाद में आक्रोशित भीड़ ने कारसवार युवक की भी जम कर पिटाई कर दी.

वहीं, बिहार में रोडरेज के विवाद में कुछ नशेडि़यों ने कारसवार एक थानेदार राजीव कुमार की जम कर पिटाई कर दी, जिस से वह जख्मी हो गए. कारण, उन की कार से ईरिक्शा को हलकी ठोकर लग गई जिस से बौखलाए उस में बैठे लोग निकल कर उसे पीटने लगे. आज से 20-25 साल पहले सड़क पर गाड़ी चलाते समय व्यक्तियों में सहनशीलता और सौहार्द का भाव व यातायात नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती थी और वे रोडरेज जैसे शब्दों से अनजान थे. लेकिन आज छोटीछोटी बातों पर लोग बीच चौराहे पर लड़ने व गालीगलौज पर उतर आते हैं. गाड़ी को साइड न देने पर, मामूली सी टक्कर लगने पर, सड़क पर जाम लगे होने के कारण आगे वाले द्वारा गाड़ी को जल्दी नहीं निकालने, गाड़ी कैसे चल रही है, हौर्न कैसे बजा दिया, औफिस या घर जल्दी पहुंचने का तनाव और ऐसे छोटेछोटे कारणों के चलते आज लोगों, खासकर युवाओं, पर गुस्सा इस कदर हावी हो जाता है कि छोटीछोटी बात पर गालीगलौज, मारपीट, लड़ाईझगड़ा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि गुस्से में आ कर हाथापाई करने और जानलेवा हमला करने तक बढ़ने लगा है. कौन होते हैं ये लोग कम पढ़ेलिखों से ले कर शिक्षित लोग भी हो सकते हैं.

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कई बार बडे़ घरों की बिगड़ी औलादें भी ऐसी हरकतें करते पाए जाते हैं. ऐसा ही एक मामला बिहार में हुआ था जब ओवरटेक करने पर एक जेडीयू नेता के बेटे ने 12वीं के एक छात्र पर गोली चला दी थी. उस की मौत हो गई थी. रोडरेज की अधिकतर घटनाओं में युवा शामिल होते हैं. आज के युवा छोटीछोटी बातों पर भड़क जाते हैं और लड़ाईझगड़े पर उतर आते हैं. लड़तेझगड़ते वाहन चालकों का अपनाअपना गुस्सा निकालने के बाद भले ही वहां खड़े लोग उन्हें समझाबुझा कर रवाना कर देते हैं पर जातेजाते वे एकदूसरे को ‘देख लेंगे’ की धमकी देना नहीं भूलते. ड्राइविंग करते वक्त युवाओं को तीनगुना ज्यादा गुस्सा आता है. इस का पता 2014 में दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल और एम्स के संयुक्त शोध से चला है.

देश में होने वाले कुल सड़क हादसों में 60 फीसदी मौतें रोडरेज के कारण होती हैं. द्य 42 फीसदी मामलों में 2 वाहनों के चालक छोटी सी बात पर आपस में भिड़ जाते हैं. द्य 33 फीसदी मामलों में कारचालक दुपहियाचालक से लड़ने पर आमादा हो जाते हैं. द्य 70 फीसदी रोडरेज के मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं. द्य 38 फीसदी रोडरेज के मामले तेज गति से गाड़ी चलाने या ओवरटेक के कारण होते हैं. द्य 13 प्रतिशत झगड़े लाइट जंप के कारण होते हैं. द्य 4 प्रतिशत मामले पीछे से बेवजह हौर्न बजाने के कारण होते हैं. झुंझलाहट के कारण ये भी : द्य सड़कों पर भारी जाम और गाडि़यों का शोर. द्य दूसरों द्वारा नियमों का पालन न करने पर. द्य बिना ट्रैफिक के लालबत्ती पर रुकना. द्य बिना सूचना सड़कों को बंद करने पर. द्य सड़क के बीच गलत तरीके से गाड़ी खड़ी होने पर.

सिर्फ भारत देश में ही नहीं, बल्कि देशविदेश के हर कोने में रोडरेज की घटनाएं हो रही हैं. 1980 के दशक में यूएसए से लास एंजिल्स व कैलिफोर्निया के टीवी समाचार वाचकों ने सब से पहले इस शब्द का प्रयोग शुरू किया था. रोडरेज का सीधा अर्थ है, गाड़ी को असामान्य तरीके से चलाना, एकाएक ब्रेक लगाना, दूसरी गाड़ी के पीछे झटके से गाड़ी को रोकना, असामान्य तरीके से हौर्न बजाना, अनावश्यक रूप से आगे जाने की होड़, दूसरे की गाड़ी को टच करना, तेज रोशनी कर गाड़ी चलाना, सड़क पर स्टंट करना या इसी तरह की गतिविधियां करते हुए सामने वाले से लड़ने को तत्पर रहना रोडरेज की श्रेणी में आता है. 2014 में दिल्ली के एम्स व लेडी हार्डिंग अस्पताल द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि वाहन चलाते समय युवाओं में गुस्से की मात्रा अधिक हो जाती है.

यही नहीं, सड़क पर यातायात जाम होने, बेतरतीब यातायात, गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बातें करना, खराब सड़कें, तेज हौर्न, गलत तरीके से पार्किंग, काम का दबाव, समय पर पहुंचने का दबाव आदि रोडरेज का कारण बन जाते हैं. वहीं, पैसा और सत्ता का मद भी ऐसा है जो युवाओं को रोडरेज के लिए उकसाता है. रोडरेज को ले कर कानून तो बने हैं पर लोगों में कानून का डर नहीं है. लोग अपनी सत्ता के दम पर पैसे लेदे कर मामले को रफादफा करा लेते हैं. और नहीं तो यातायात उल्लंघन पर जुर्माना दे कर मामले को वहीं खत्म कर देते हैं. देश में बढ़ते सड़क हादसों के साथ रोडरेज यानी रास्ता चलते संघर्ष व मारपीट की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. भारत में ऐसी घटनाओं में रोजाना औसतन 3 लोगों की मौत हो रही है. समस्या की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अब इस से निबटने के लिए ठोस कानून की मांग उठ रही है. सरकारी आंकड़े केंद्रीय गृहमंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2015 के दौरान देश में रोडरेज के 3,782 मामले दर्ज किए गए. इन में से 4,702 लोग घायल हुए थे और 1,388 लोग मारे गए थे. बीते साल रोडरेज के सब से ज्यादा मामले ओडिशा में दर्ज किए गए थे.

इस के अलावा केरल के 4 शहरों और दिल्ली में ऐसे सब से ज्यादा मामले सामने आए थे. और भी कई राज्य हैं जहां रोडरेज के मामले आए थे. तथ्यों के अनुसार, सड़कों पर सहयात्रियों के साथ मारपीट के मामले महज वयस्कों तक ही सीमित नहीं हैं. नैशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में रोडरेज के सिलसिले में 1,538 किशोरों के खिलाफ भी मामले दर्ज हुए थे. इन में से लगभग 250 किशोरों की उम्र तो 12 से 16 वर्ष के बीच थी. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी आकड़ों के मुताबिक, रोडरेज की घटनाओं की तादाद के मामले में तमिलनाडु, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश, केरल और उत्तर प्रदेश शीर्ष 5 राज्यों में शुमार हैं. राजधानी दिल्ली में तो ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

रोडरेज की घटनाओं के कारण परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से बढ़ती आबादी, गांवों से शहरों में होने वाले विस्थापन, वाहनों की तादाद में वृद्धि, सड़कों के आधारभूत ढांचे का अभाव व ड्राइवर में बढ़ती असहिष्णुता ऐसे मामले बढ़ने की प्रमुख वजहें हैं. कई सड़क हादसे ड्राइवरों की लापरवाही या ड्राइविंग के दौरान मोबाइल पर बात करने की वजह से होते हैं. असहिष्णुता तो इतनी कि गाड़ी में जरा सी टक्कर लगने में लोग मारधाड़ पर उतारू हो जाते हैं. आज लोगों में सहनशीलता खत्म होती जा रही है, जिस का नतीजा है रोडरेज. रोडरेज का कारण सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादाद तो है ही, ट्रैफिक उल्लंघन पर कड़ी सजा का प्रावधान नहीं होना और शराब पी कर वाहन चलाना भी इस की प्रमुख वजह है.

कोलकाता के एक निजी बैंक में काम करने वाली शालिनी सिंह रोजाना लगभग 30 किलोमीटर का सफर तय कर के अपने दफ्तर पहुंचती हैं. उन का कहना है कि यहां ड्राइवर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर आसानी से बच निकलते हैं. मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना तो आम बात है. कई बार ट्रैफिक पुलिस वाले भी नियमों का उल्लंघन करते देख कर अनदेखी कर देते हैं. उन्हें लगता है कि दोषी वाहन चालक को रोकने की स्थिति में ट्रैफिक जाम हो सकता है. इस से दोषियों का कुछ नहीं बिगड़ता. वे आगे बताती हैं कि जरूरत के मुकाबले पुलिस वालों की तादाद कम होना और नियमों के उल्लंघन के लिए कड़ी सजा का प्रावधान नहीं होना ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की सब से बड़ी वजह है. रोडरेज की ज्यादातर घटनाएं इन नियमों के उल्लंघन से जुड़ी हैं.

समस्या को कैसे रोका जाए विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या बहुआयामी है. इसलिए इस पर अंकुश लगाने का एक उपाय पूरी तरह से कारगर नहीं हो सकता. लेकिन ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सजा व जुर्माने के प्रावधानों को पहले के मुकाबले कठोर बना कर ऐसे मामलों पर कुछ हद तक काबू जरूर पाया जा सकता है. इस के साथ ही, ड्राइवरों में जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है. देश में सड़कों की लंबाई के मुकाबले वाहनों की बढ़ती तादाद ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है. इस वजह से लोगों को सड़कों पर पहले के मुकाबले ज्यादा देर तक रहना पड़ता है.

इस से उन में नाराजगी, झुंझलाहट और हताशा बढ़ती है. ऐसे में अकसर मामूली कहासुनी भी हिंसक झगड़ों में बदल जाती है. समाजविज्ञानी मनोहर माइति कहते हैं, ‘‘लोगों के पास अब पैसा तो बहुत आ गया है, लेकिन सहिष्णुता तेजी से कम हो रही है. ऐसे में सड़क पर अपनी नई कार पर हलकी खरोंच लगते ही लोग दोषी ड्राइवर के साथ झगड़े व मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.’’ यह सिर्फ रोडरेज ही नहीं, बल्कि असहनशीलता का भी मामला है. लोगों में ऐसी असहनशीलता क्यों बढ़ रही है और इस से कैसे निबटा जाए, यहां जानते हैं. साइकोलौजिस्ट अमित आर्या कहते हैं कि युवा किसी भी घटना पर जल्दी रिऐक्ट करते हैं या फिर वे लोग किसी तरह की पावर से जुड़े होते हैं. यह काफी हद तक उन के सर्कल, आसपास के वातावरण पर भी निर्भर करता है.

अगर इंसान के आसपास के लोग और पेरैंट्स बहुत एग्रेसिव हैं तो देखा गया है कि वह शख्स भी जल्दी रिऐक्ट करता है. और आवेश में आ कर किसी भी घटना को अंजाम दे देता है. केजीएमयू के सायकैट्री डिपार्टमैंट के हैड प्रो. पी के दलाल कहते हैं, ‘‘अकसर लोग रोड पर साइड न देने या जाम लगने, तेज हौर्न बजाने और कई बार पार्किंग के स्पेस को ले कर झगड़ बैठते हैं. इस तरह की परिस्थिति में उलझने से बेहतर है कि आप उन्हें अवौयड करें. किसी दूसरे की गलती ठहराने के बजाय मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की कोशिश करें. अगर गलती आप की है तो माफी मांग लें. जिस पर आप गुस्सा कर रहे हैं, एक बार उस इंसान की जगह पर रह कर देखेंगे तो सिचुएशन बेहतर ढंग से समझ पाएंगे. गुस्सा होने या अपनी ताकत दिखाने से चीजें सुधरने के बजाय और बिगड़ जाती हैं.

अनजान जगह पर रिऐक्ट करने से बचें. आजकल हमारी सोसायटी तेजी से बदल रही है. मोरैलिटी पीछे छूटती जा रही है. हम अंजाम की परवा किए बिना हर चीज पर रिऐक्ट करने के आदी होते जा रहे हैं. द्य ऐसे अवौयड करें द्य अगर आप को ट्रैफिक समस्या से रोज जूझना पड़ता है तो दूसरों पर गुस्सा निकालने के बजाय घर से 5-10 मिनट पहले निकलने की आदत डाल लें. द्य अगर रोड पर आप को साइड नहीं दे रहे हैं तो इंतजार करें. बारबार हौर्न बजा कर दूसरे को इरिटेट न करें. द्य किसी भी घटना पर रिऐक्ट करने से बचें. द्य खुद को दूसरे की जगह पर रख कर सोचें कि अगर आप वहां होते तो क्या करते. द्य अगर बहस बढ़ रही है तो समझदारी इसी में है कि माफी मांग कर वहां से निकल जाएं.

फ्रैंड जोन : कार्तिक पहली बार घर छोड़कर जा रहे थे तो क्या महसूस हुआ

‘‘नौकरी के साथसाथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखना बेटा, अच्छा?’’ कार्तिक को ट्रेन में विदा करते समय मातापिता ने अपना प्यार उड़ेलने के साथ यह कह डाला.

कार्तिक पहली बार घर से दूर जा रहा था. आज तक तो मां ने ही उस का पूरा ध्यान रखा था, पर अब उसे स्वयं यह जिम्मेदारी उठानी थी. इंजीनियरिंग कर कालेज से ही कैंपस प्लेसमैंट से उस की नौकरी लग गई थी, और वह भी उस शहर में जहां उस के मौसामौसी रहते थे. सो अब किसी प्रकार की चिंता की कोई बात नहीं थी. मौसी के घर पहुंच कर कार्तिक ने मां द्वारा दी गई चीजें देनी आरंभ कर दीं.

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‘‘ओ हो, क्याक्या भेज दिया जीजी ने,’’ मौसी सामान रखने में व्यस्त हो गईं और मौसाजी कार्तिक से उस की नई नौकरी के बारे में पूछने लगे. उन्हें नौकरी अच्छी लग रही थी, कार्यभार से भी और तनख्वाह से भी.

अगले दिन कार्तिककी जौइनिंग थी. उसे अपना दफ्तर काफी पसंद आया. पूरा दिन जौइनिंग प्रोसैस में ही बीत गया. उसे उस की मेज, उस का लैपटौप व डाटाकार्ड और दफ्तर में प्रवेश पाने के लिए स्मार्टकार्ड मिल गया था. शाम को घर लौट कर मौसाजी ने दिनभर का ब्योरा लिया तो कार्तिक ने बताया, ‘‘कंपनी अच्छी लग रही है, मौसाजी. तकनीकी दृष्टि से वहां नएनए सौफ्टवेयर हैं, आधुनिक मशीनें हैं और साथ ही मेरे जैसा यंगक्राउड भी है. वीकैंड्स पर पार्टियों का आयोजन भी होता रहता है.’’

‘‘ओ हो, यंगक्राउड और पार्टियां, तो यहां मामला जम सकता है,’’ मौसाजी ने उस की खिंचाई की तो कार्तिक शरमा गया. कार्तिक थोड़ा शर्मीला किस्म का लड़का था. इसी कारण आज तक उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं बन पाई थी.

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‘‘क्यों छेड़ रहे हो बच्चे को,’’ मौसी बीच में बोल पड़ीं तब भी मौसाजी चुप नहीं रहे, ‘‘तो क्या यों ही सारी जवानी निकाल देगा ये बुद्धूराम.’’

कार्तिक काम में चपल था. दफ्तर का काम चल पड़ा. कुछ ही दिनों में अपने मैनेजमैंट को उस ने लुभा लिया था. लेकिन उस को भी किसी ने लुभा लिया था, वह थी मान्या. वह दूसरे विभाग में कार्यरत थी, लेकिन उस का भी काम में काफी नाम था और साथ ही, वह काफी मिलनसार भी थी. खुले विचारों की, सब से हंस कर दोस्ती करने वाली, हर पार्टी की जान थी मान्या.

वह कार्तिक को पसंद अवश्य थी, लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के चलते उस से कुछ कहने की हिम्मत तो दूर, कार्तिक आंखों से भी कुछ बयान करने की हिम्मत नहीं कर सकता था. मान्या हर पार्टी में जाती, खूब हंसतीनाचती, सब से घुलमिल कर बातें करती. कार्तिक बस उसे दूर से निहारा ही करता. पास आते ही इधरउधर देखने लगता. 2 महीने बीततेबीतते मान्या ने खुद ही कार्तिक से दूसरे सहकर्मियों की तरह दोस्ती कर ली. अब वह कार्तिक को अपने दोस्तों के साथ रखने लगी थी.

‘‘आज शाम को पार्टी में आओगे न, कार्तिक? पता है न आज का थीम रेट्रो,’’ मान्या के कहने पर कार्तिक ने 70 के दशक वाले कपड़े पहने. मान्या चमकीली सी ड्रैस पहने, माथे पर एक चमकीली डोरी बांधे बहुत ही सुंदर लग रही थी.

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‘‘क्या गजब ढा रही हो, जानेमन,’’ कहते हुए इसी टोली के एक सदस्य, नितिन ने मान्या की कमर में हाथ डाल दिया, ‘‘चलो, थोड़ा डांस हो जाए.’’

‘‘डांस से मुझे परहेज नहीं है पर इस से जरूर है,’’ कमर में नितिन के हाथ की तरफ इशारा करते हुए मान्या ने आराम से उस का हाथ हटा दिया. जब काफी देर दोनों नाच लिए तो मान्या ने कार्तिक से कहा, ‘‘गला सूख रहा है, थोड़ा कोल्डड्रिंक ला दो न, प्लीज.’’

कार्तिक की यही भूमिका रहती थी अकसर पार्टियों में. वह नाचता तो नहीं था, बस मान्या के लिए ठंडापेय लाता रहता था. लेकिन आज की घटना ने उसे कुछ उदास कर दिया था. नितिन का यों मान्या की कमर में आसानी से अपनी बांह डालना उसे जरा भी नहीं भाया था. हालांकि मान्या ने ऐतराज जता कर उस का हाथ हटा दिया था. मगर नितिन की इस हरकत का सीधा तात्पर्य यह था कि मान्या को सब लड़के अकेली जान कर अवेलेबल समझ रहे थे. जिस का दांव लग गया, मान्या उस की. तो क्या कार्तिक का महत्त्व मान्या के जीवन में बस खानेपीने की सामग्री लाने के लिए था?

इन्हीं सब विचारों में उलझा कार्तिक घर वापस आ गया. कमरे में अनमना सा, सोच में डूबे हुए उस को यह भी नहीं पता चला कि मौसाजी कब कमरे में आ कर बत्ती जला चुके थे. बत्ती की रोशनी ने कमरे की दीवारों को तो उज्ज्वलित कर दिया पर कार्तिक के भीतर चिंतन के जिस अंधेरे ने मजबूती से पैर जमाए थे, उसे डिगाने के लिए मौसाजी को पुकारना पड़ा, ‘‘अरे यार कार्तिक, आज क्या हो गया जो इतने गुमसुम हुए बैठे हो? किस की मजाल कि मेरे भांजे को इतना परेशान कर रखा है, बताओ मुझे उस का नाम.’’

‘‘मौसाजी, आप? आइए… आइए… कुछ नहीं, कोई भी तो नहीं,’’ सकपकाते हुए कार्तिक के मुंह से कुछ अस्फुटित शब्द निकले.

‘‘बच्चू, हम से ही होशियारी? हम ने भी कांच की गोटियां नहीं खेलीं, बता भी दे कौन है?’’ कार्तिक के कंधे पर हाथ रखते हुए मौसाजी वहीं विराजमान हो गए. उन के हावभाव स्पष्ट कर रहे थे कि आज वे बिना बात जाने जाएंगे नहीं. मौसी से कह कर खाना भी वहीं लगवा लिया गया. जब खाना लगा कर मौसी जाने को हुईं तो मौसाजी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए मौसी को हिदायत दी, ‘‘आज हम दोनों की मैन टु मैन टौक है, प्लीज डौंट डिस्टर्ब,’’ मौसी हंसती हुई वापस रसोई में चली गईं तो मौसाजी फिर शुरू हो गए, ‘‘हां, यार, तो बता…’’

कार्तिक ने हथियार डालते हुए सब उगल दिया.

‘‘हम्म, तो अभी यही नहीं पता कि बात एकतरफा है या आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है’’, मौसाजी का स्वभाव एक दोस्त जैसा था. उन्होंने सदा से कार्तिक को सही सलाह दी थी और आज भी उन्हें अपनी वही परंपरा निभानी थी.

‘‘देख यार, पहली बात तो यह कि यदि तुम किसी लड़की को पसंद करते हो, तो उस के फ्रैंड जोन से फौरन बाहर निकलो. मान्या के लिए तू कोई वेटर नहीं है. सब से पहले किसी भी पार्टी में जा कर उस के लिए खानापीना लाना बंद कर. लड़कियों को आकर्षित करना हो तो 3 बातों का ध्यान रख, पहली, उन्हें बराबरी का दर्जा दो और खुद को भी उन के बराबर रखो. अगली पार्टी कब है? मान्या को अपना यह नया रूप तुझे उसी पार्टी में दिखाना है. जब तू इस इम्तिहान में पास हो जाएगा, तो अगला स्टैप फौलो करेंगे.’’

हालांकि कार्तिक तीनों बातें जानने को उत्सुक था, मौसाजी ने एकएक कदम चलना ही ठीक समझा. जल्द ही अगली पार्टी आ गई. पूरी हिम्मत जुटा कर, अपने नए रूप को ध्यान में रखते हुए कार्तिक वहां पहुंचा. इस बार नाचने के बाद जब मान्या ने कार्तिक की ओर देखा तो पाया कि वह अन्य लोगों से बातचीत में मगन है. कार्तिक को अचंभा हुआ जब उस ने यह देखा कि मान्या न सिर्फ अपने लिए, बल्कि उस के लिए भी ठंडेपेय का गिलास पकड़े उस की ओर आ रही है.

‘‘लो, आज मैं तुम्हें कोल्डड्रिंक सर्व करती हूं,’’ हंसते हुए मान्या ने कहा. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाई, ‘‘मुझे अच्छा लगा यह देख कर कि तुम भी सोशलाइज हो.’’

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मौसाजी की बात सही निकली. मान्या पर उस के इस नए रूप का सार्थक असर पड़ा था. घर लौट कर कार्तिक खुश था. कारण स्पष्ट था. मौसाजी ने आज मैन टु मैन टौक का दूसरा स्टैप बताया. ‘‘इस सीढ़ी के बाद अब तुझे और भी हिम्मत जुटा कर अगली पारी खेलनी है. फ्रैंड जोन से बाहर आने के लिए तुझे उस के आसपास से परे देखना होगा. एक औरत के लिए यह झेलना मुश्किल है कि जो अब तक उस के इर्दगिर्द घूमता था, अब वह किसी और की तरफ आकर्षित हो रहा है. और इस से हमें यह भी पता चल जाएगा कि वह तुझे किस नजर से देखती है. उस से तुलनात्मक तरीके से उस की सहेली की, उस की प्रतिद्वंद्वी की, यहां तक कि उस की मां की तारीफ कर. इस का परिणाम मुझे बताना, फिर हम आखिरी स्टैप की बात करेंगे.’’

अगले दिन से ही कार्तिक ने अपने मौसाजी की बात पर अमल करना शुरू कर दिया. ‘‘कितनी अच्छी प्रैजेंटेशन बनाई आज रवीना ने. इस से अच्छी प्रैजेंटेशन मैं ने आज तक इस दफ्तर में नहीं देखी’’, कार्तिक के यह कहने पर मान्या से रहा नहीं गया, ‘‘क्यों मेरी प्रैजेंटेशन नहीं देखी थी तुम ने पिछले हफ्ते? मेरे हिसाब से इस से बेहतर थी.’’

लंच के दौरान सभी साथ खाना खा रहे थे. एकदूसरे के घर का खाना बांट कर खाते हुए कार्तिक बोला, ‘‘वाह  मान्या, तुम्हारी

मम्मी कितना स्वादिप्ठ भोजन पकाती हैं. तुम भी कुछ सीखती हो उन से, या नहीं?’’

‘‘हां, हां, सीखती हूं न,’’ मान्या स्तब्ध थी कि अचानक कार्तिक उस से कितने अलगअलग विषयों पर बात करने लगा था. अगले कुछ दिन यही क्रम चला. मान्या अकसर कार्तिक को कभी कोई सफाई दे रही होती या कभी अपना पक्ष रख रही होती. कार्तिक कभी मान्या की किसी से तुलना करता तो वह चिढ़ जाती और फौरन खुद को बेहतर सिद्ध करने लग जाती. फिर मौसाजी द्वारा राह दिखाने पर कार्तिक ने एक और बदलाव किया. उस ने अपने दफ्तर में मान्या की क्लोजफ्रैंड शीतल को समय देना शुरू कर दिया. शीतल खुश थी क्योंकि कार्तिक के साथ काम कर के उसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था. मान्या थोड़ी हैरान थी क्योंकि आजकल कार्तिक उस के बजाय शीतल के साथ लंच करने लगा था, कभी किसी दूसरे दफ्तर जाना होता तब भी वह शीतल को ही संग ले जाता.

‘‘क्या बात है, कार्तिक, आजकल तुम शीतल को ही अपने साथ हर प्रोजैक्ट में रखते हो? किसी बात पर मुझ से नाराज हो क्या?’’, आखिर मान्या एक दिन पूछ ही बैठी.

‘‘नहीं मान्या, ऐसी कोई बात नहीं है. वह तो शीतल ही चाह रही थी कि वह मेरे साथ एकदो प्रोजैक्ट कर ले तो मैं ने भी हामी भर दी,’’ कह कर कार्तिक ने बात टाल दी. लेकिन घर लौटते ही मौसाजी से सारी बातें शेयर की.

‘‘अब समय आ गया है हमारी मैन टु मैन टौक के आखिरी स्टैप का, अब तुम्हारा रिश्ता इतना तैयार है कि जो मैं तुम से कहलवाना चाहता हूं वह तुम कह सकते हो. अब तुम में एक आत्मविश्वास है और मान्या के मन में तुम्हारे प्रति एक ललक. लोहा गरम है तो मार दे हथोड़ा,’’ कहते हुए मौसाजी ने कार्तिक को आखिरी स्टैप की राह दिखा दी.

अगले दिन कार्तिक ने मान्या को शाम की कौफी पीने के लिए आमंत्रित किया. मान्या फौरन तैयार हो गई. दफ्तर के बाद दोनों एक कौफी शौप पर पहुंचे. ‘‘मान्या, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ कार्तिक के कहने के साथ ही मान्या भी बोली, ‘‘कार्तिक, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

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‘‘तो कहो, लेडीज फर्स्ट,’’ कार्तिक के कहने पर मान्या ने अपनी बात पहले रखी. पर जो मान्या ने कहा वह सुनने के बाद कार्तिक को अपनी बात कहने की आवश्यकता ही नहीं रही.

‘‘कार्तिक, मैं बाद में पछताना नहीं चाहती कि मैं ने अपने दिल की बात दिल में ही रहने दी और समय मेरे हाथ से निकल गया. मैं… मैं… तुम से प्यार करने लगी हूं. मुझे नहीं पता कि तुम्हारे मन में क्या है, लेकिन मैं अपने मन की बात तुम से कह कर निश्चिंत हो चुकी हूं.’’

अंधा क्या चाहे, दो आंखें, कार्तिक सुन कर झूम उठा, उस ने तत्काल मान्या को प्रपोज कर दिया, ‘‘मान्या, मैं न जाने कब से तुम्हारी आस मन में लिए था. आज तुम से भी वही बात सुन कर मेरे दिल को सुकून मिल गया. लेकिन सब से पहले मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहता हूं. अपने गुरु से,’’ और

कार्तिक मान्या को ले कर सीधा अपने मौसाजी के पास घर की ओर चल दिया.

मशरूम की खेती से मिली नई राह

परंपरागत तरीके से खेती करना अब मुनाफे की गारंटी नहीं है. खेती में नवाचारों के माध्यम से किसान चाहें तो आमदनी बढ़ा सकते हैं. नोटबंदी की मार से बेरोजगारी बढ़ रही है और युवाओं को नौकरी का भरोसा नहीं रह गया है. ऐसे में पढ़ेलिखे नौजवानों का रु  झान खेती की तरफ ज्यादा हुआ है. खेतीकिसानी के कामों को प्रयोगधर्मी किसान नएनए तरीके से कर के छोटेछोटे रकबों में ही अच्छाखासा मुनाफा कमा रहे हैं.मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक गांव सिंहपुर बड़ा के युवा किसान वैभव शर्मा ने परंपरागत खेती की जगह मशरूम की खेती कर के एक मिसाल कायम की है.

वैभव को हार्टीकल्चर से बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ऐजूकेशनल टूर के दौरान हिमाचल प्रदेश के एक मशरूम ट्रेनिंग सैंटर को करीब से देखने का मौका मिला. वहां पर मशरूम की खेती से संबंधित आइडिया ने उन्हें काफी प्रभावित किया. गांव लौट कर उन्होंने मशरूम की खेती की शुरुआत की और 3 साल की मेहनत ने उन्हें नरसिंहपुर जिले का पहला मशरूम उत्पादक किसान बना दिया. अपने नवाचारी प्रयोग की बदौलत वैभव आज सीमित जमीन में ही मशरूम का उत्पादन कर लाखों रुपए कमा रहे हैं. पिछले 3 सालों में मशरूम की खेती कर के हर पहलू से वाकिफ होने के बाद उन्होंने व्यावसायिक तौर पर मशरूम की खेती के लिए अपने प्रयासों को बल देना शुरू कर दिया.

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आने वाले दिनों में वैभव आधुनिक मशीनरी की मदद से मशरूम की खेती के लिए प्लेटफार्म तैयार करने में जुटे हुए हैं.जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर की दूर ग्राम सिंहपुर बड़ा के 26 साला युवा किसान वैभव शर्मा ने बताया कि शुरुआत में तो रायपुर से मशरूम के बीज ला कर खेती शुरू की, लेकिन बाद में खुद भी मशरूम के बीज तैयार करना सीख लिया. इस प्रोजैक्ट पर काम करते हुए उन्हें जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों का काफी मागर्दशन  और  आर्थिक मदद भी मिली. वैभव के बताए अनुसार उन्होंने पहले ‘आयसर’ किस्म की मशरूम का उत्पादन शुरू किया. इस के बाद इंडिया मार्ट के माध्यम से इस का विक्रय शुरू किया.

वैभव ने बताया कि पहले एक हजार वर्गफुट की जगह में उन्हें अधिकतम 15-20 किलोग्राम मशरूम प्रतिदिन मिलता है, जिस में उन्हें लगभग 40 रुपए प्रति किलोग्राम की लागत आती है. मशरूम को वे ताजा और सूखे दोनों रूपों में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि ताजा मशरूम का दाम 120 रुपए प्रति किलोग्राम और सूखे मशरूम के दाम 500 से 1,200 रुपए प्रति किलोग्राम तक मिल जाते हैं. ताजा मशरूम वे मुंबई भेजते थे, लौकडाउन में ट्रेनों के बंद होने से अब मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में प्रोसैसिंग यूनिट को भेजते हैं. उन्होंने आगे बताया कि मशरूम की इस खेती से पिछले 3 सालों में उन का टर्नओवर इस साल लगभग 7 से 8 लाख रुपए तक पहुंच गया है.

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मशरूम उत्पादन के लिए 45 से 60 दिन की अवधि पर्याप्त होती है, इसलिए एक साल में 3 बार मशरूम का उत्पादन उन्हें मिल जाता है. अपनी कामयाबी से उत्साहित युवा किसान वैभव बताते हैं कि उन्होंने इसे अब व्यावसायिक तौर पर शुरू करने का फैसला लिया है और इस के लिए वे इस साल कुछ मशीनरी भी लगा रहे हैं, जिस से उन्हें मशरूम की खेती के लिए समुचित वातावरण तैयार करने में काफी मदद मिलेगी और गांव के कुछ लोगों को रोजगार भी मिलेगा.मशरूम के अलावा अचार, पापड़ वैभव ने बताया कि जब ताजा मशरूम बिकने के बाद बच जाता है, तो उसे सुखा लिया जाता है और इस सूखे हुए मशरूम से बड़ी, पापड़, मशरूम, अचार और मशरूम पाउडर भी तैयार कर लिया जाता है.

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इस के अलावा आने वाले दिनों में वे गांव में ही प्रोसैसिंग यूनिट लगाने की तैयारी भी कर रहे हैं.वैभव मशरूम को इंडिया मार्ट के माध्यम से भी बेच कर आमदनी हासिल कर रहे हैं. वैभव द्वारा आसपास के गांवों के कुछ किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग भी दी जा  रही है, जिस से कुछ किसान उन से प्रेरणा ले कर मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं. इस से दूसरे किसानों को भी अतिरिक्त आमदनी हो जाती है.छोटे से गांव में मशरूम की सफल खेती करने वाले वैभव शर्मा से उन के मोबाइल नंबर  7999478585 पर बातचीत कर के जानकारी हासिल कर सकते हैं.

अंतर्व्यथा-भाग 3: रंजनी जी के पति का देहांत कैसे हुआ

‘मां, बड़े शहर के लोगों का दिल छोटा होता है, न शुद्ध हवा, न पानी, न खाना. यहां तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. इसी वातावरण में तो बड़ा हुआ हूं. मुझे क्यों दिक्कत होगी.’ सचमुच 1 साल के भीतर उस की ख्याति फैल गई. आत्मसमर्पण किए नक्सलियों के लिए ‘अपनालय’ का शुभारंभ किया जिस में मैडिटेशन सैंटर, गोशाला, फलों का बगीचा सबकुछ था उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए. खुद मुख्यमंत्री ने इस का उद्घाटन किया था. प्रदेश में हजारों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, पकड़े भी गए. शरद का यही सुप्रयास उस की जान का दुश्मन बन गया. उस दिन सुबह 6 बजे ही घर के हर फोन की घंटियां घनघनाने लगीं. फोन उठाते ही रंजनजी चौंक उठे और उन्हें चौंका देख मैं घबरा गई. ‘क्या? कब? कैसे? जंगल में वह क्या करने गया था.’ हर प्रश्न हृदय पर हथौड़े सा प्रहार कर रहा था. ‘क्या हुआ था उस के साथ?’ मेरी आवाज लड़खड़ा गई. ‘तुम्हारी आह लग गई. शरद का अपहरण हो गया,’ वे फूटफूट कर रो रहे थे. बरसों पहले कही बात उन के मन में धंस गई थी. शायद अपनी करनी से वे भयाकांत भी थे.

इसी कारण उन के मुंह से यह बात निकली. लेकिन मेरा? मेरा क्या? मेरा तो हर तरफ से छिन गया. लग रहा था छाती के अंदर, जो रस या खून से भराभरा रहता है, उस को किसी ने बाहर निकाल कर स्पंज की तरह निचोड़ दिया हो. टीवी के हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज में यह खबर प्रसारित हो रही थी. दूसरे दिन अपहरणकर्ता का संभावित स्कैच जारी किया गया. दाढ़ी भरे उस दुबलेपतले चेहरे में भी चमकती उन 2 आंखों को पहचानने में मेरी आंखें धोखा नहीं खा पाईं. मैं ने अनुज को फोन लगाया, उस ने मेरे शक को यकीन में बदला. रहीसही कसर उस के नाम से पूरी हुई- ‘अज्जू भैया’. मैं शरद के मुंह से कई बार यह नाम सुन चुकी थी. ‘बहुत खतरनाक खूंखार इंसान है, इस को किसी तरह पकड़ लिया तो समझो नक्सलियों का खेल खत्म.’ उस ने ही बारूदी सुरंग बिछा कर पैट्रोलिंग पर गए शरद को बंदी बनाया. 2 कौंस्टेबल, 1 ड्राइवर शहीद हुए थे. अनुज आ गया था. नक्सलियों से 2 बार बातचीत असफल रही थी. मुख्यमंत्री की अपील का भी कोई असर नहीं था. अनुज के साथ मिल कर बहुत हिम्मत कर के मैं ने यह निर्णय लिया. मैं ने कलैक्टर साहब से बात की, ‘मुझे वार्त्ता के लिए भेजा जाए,’ पहले तो उन्होंने साफ मना कर दिया, ‘आप? वह भी इस उम्र में, एक खूंखार नक्सली से मिलने जंगल जाएंगी? पता भी है कितनी जानें ले चुका है?

बातचीत में, व्यवहार में, जरा सी चूक से जान जा सकती है.’ मैं फफक पड़ी, ‘ममता की कोई उम्र नहीं होती, सर. भले ही वह खूंखार हो, है तो किसी का बेटा ही, एक मां के आगे जरूर झुकेगा.’ मैं ने रंजनजी को भी जाने से सख्ती से मना कर दिया. अनुज मेरे साथ था. घने सरई, सागवान, पलाश के पेड़ों, बरगद की विशाल लटों से उलझते हुए हमें एक खुली जगह ले जाया गया. आंखें बंधी थीं. अंदाज से समझ में आया कि गंतव्य आ गया है. फुसफुसाहट हो रही थी. रास्ते में 5-6 जगह हमारी जांच की गई थी. यहां फिर जांच हुई और पट्टी खोल दी गई. साफसुथरी जगह में एक झोंपड़ीनुमा घर था. उसी के सामने खटिया पर अजय बैठा था. मामा को देखते ही परिचय की कौंध सी चमकी जो मुझे देखते ही विलुप्त हो गई. कितनी घृणा, कितना आक्रोश था उन नजरों में. कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने साथियों को आंखों से जाने का इशारा किया. अब सिर्फ हम 3 थे. वह हमारी तरफ मुखातिब हुआ, ‘ओह, तो वह पुलिस वाला आप का बेटा है, कहिए, क्यों आई हैं? रिश्ते का कौन सा जख्म बचा है जिसे और खरोंचने आई हैं? आप क्या सोचती हैं, मैं उसे छोड़ दूंगा, कभी नहीं. अब तो और नहीं. मुझे जन्म दे कर आप ने जो पाप किया है उस की सजा तो आप को भुगतनी ही होगी.’ अनुज कुछ कहने को आतुर हुआ, उस के पहले ही मैं उस के पैरों पर गिर पड़ी, ‘मुझे सजा दो, गोलियों से भून दो, आजीवन बेडि़यों से जकड़ कर अपने पास रखो लेकिन उसे छोड़ दो, उसे मेरी गलती की सजा मत दो. मैं पापिन हूं, तुम को अधिकार है, तुम अपने सारे कष्टों का, दुखों का बदला मुझ से ले लो. ‘मैं लाचार थी. तुम ने एक गाय देखी है रस्सी में बंधी, जिसे उस का मालिक दूसरे के हाथों में थमा देता है, वह चुपचाप चल देती है दूसरे खूंटे से बंधने.’ ‘नहीं, गाय से मत कीजिए तुलना,’ वह चिल्लाया, ‘गाय तो अपने बच्चे के लिए खूंटा उखाड़ कर भाग आती है. आप तो वह भी नहीं कर पाईं.

एक मासूम को तिलतिल कर जलते देखती रहीं. आप ने एक पाप किया मुझे जन्म दे कर, दूसरा पाप किया मुझे पालपोस कर जिंदा रखने का. यह जिंदगी ही मेरे लिए नरक बन गई. जिस जिंदगी को आप संवार नहीं सकती थीं उस में जान फूंकने का आप को कोई हक नहीं था,’ उस का एकएक शब्द घृणा और तिरस्कार में लिपटा था. मैं गिड़गिड़ाने लगी, ‘मैं कमजोर थी, सचमुच गाय से भी कमजोर. अजय, मेरे बेटे, मैं माफी के भी काबिल नहीं. मैं मरना चाहती हूं, वह भी तुम्हारे हाथों, तभी मुझे शांति मिलेगी. बेटा, मुझे बंधक बना लो लेकिन उसे छोड़ दो, वह तुम्हारा भाई है.’ ‘खबरदार, भाई मत कहना, अगर यह वास्ता दोगी तो अभी जा कर उसे गोलियों से भून दूंगा,’ वह चिल्लाया, पहली बार उस के मुंह से मेरे लिए अनादर सूचक संबोधन निकले थे, ‘वह तुम्हारा बेटा है बस, इतना ही जानता हूं. जानते हैं मामा,’ वह अनुज की तरफ मुड़ कर कह रहा था, ‘नानाजी ने पता नहीं क्या सोच कर 15वीं सालगिरह पर दिनकर की रश्मिरथि मुझे उपहार में दी थी. अकसर मैं जब बहुत उदास होता, उसे खोल कर बैठ जाता. न जाने कितनी रातों की उदासी को मैं ने अपने आंसुओं से धोया है उसे पढ़ते हुए, कुंती-कर्ण संवाद तो मुझे कंठस्थ थे- दुनिया तो उस से सदा सभी कुछ लेगी पर क्या माता भी उसे नहीं कुछ देगी. लेकिन मामा, मैं कर्ण नहीं हूं, मैं कर्ण नहीं बनूंगा.’

लोगों की नजरों में एक क्रूर, हत्यारा अज्जू भैया अभी निर्विरोध मेरे सीने से लग कर फूटफूट कर रो रहा था. रात बीतने को थी, अचानक वह उठा, झोपड़ी के अंदर गया और कोई चीज अनुज को थमाई, फिर थोड़ी देर उसे कुछ समझाता रहा. अनुज पीछे की तरफ पहाड़ी की ओर चला गया. मैं ने निर्णय ले लिया था कि अब अजय को छोड़ कर नहीं जाऊंगी. मुझे किसी की चिंता नहीं थी, किसी का डर नहीं था लेकिन अजय ने मेरी बात सुन कर फिर उसी घृणित भाव से कहा, ‘अब बहुत देर हो गई, यहां किस के साथ किस के भरोसे रहेंगी, शेर, चीता और भालू के भरोसे? क्या आप जानती हैं एसपी को छोड़ने के बाद मेरे साथी मुझे जिंदा छोड़ेंगे? कभी नहीं. उन के हाथों मरने से तो अच्छा है खुद ही…’ बात अचानक बीच में ही छोड़ कर उस ने मेरी आंखों पर पट्टी बांधी और एक जगह ला कर छोड़ दिया फिर बोला, ‘भागिए.’ मैं असमंजस में थी. आगे शरद और अनुज दौड़ रहे थे. मैं भी उन के पीछे हांफते हुए दौड़ने लगी. अनुज ने रुक कर मुझे अपने आगे कर लिया. तभी पीछे से 3-4 राउंड गोली चलने की आवाज आई.

अनुज चिल्लाया, ‘शरद, गोली चलाओ, वे लोग हमारा पीछा कर रहे हैं,’ शरद के पास बंदूक कहां होगी? मैं सोच ही रही थी कि सचमुच शरद पीछे मुड़ कर गोलियां दागने लगा. घबरा कर मैं बेहोश हो गई. सुबह जब मेरी आंखें खुलीं, मैं अस्पताल में थी. तालियों की गड़गड़ाहट सुन कर मैं वर्तमान में लौटी. मेयर साहब शरद को मैडल पहना रहे थे. शरद की इस बड़ी उपलब्धि का सारा खोखलापन नजर आ रहा था. भीतर ही भीतर यह खोखलापन मुझे ही खोखला करता जा रहा था. अजय का अनुज को कुछ दे कर समझाना. शरद के पास बंदूक का होना. अनुज का शरद को गोली चलाने के लिए उकसाना. अचानक मेरे सामने से सारे रहस्य पर से परदा उठ गया. मैं स्तब्ध थी. प्रायश्चित्त का गहरा बवंडर घुमड़ रहा था जो मुझे निगलता जा रहा था. मेरा दम घुटने लगा. सामने टीवी पर अजय की फोटो दिखाई दी. नीचे लिखा था, ‘आतंक का अंत’. फिर मेरी बड़ी सी सुंदर तसवीर दिखाई जाने लगी और शीर्षक था ‘ममता की विजय’. मेरे पुत्रप्रेम और हिम्मत के कसीदे पढ़े जा रहे थे लेकिन मुझे मेरा चेहरा धीरेधीरे विकृत, फिर भयानक होता नजर आया. घबरा कर मैं ने पास रखे पेपरवेट को उठा कर टीवी पर जोर से फेंका और दूसरी ओर लुढ़क गई

अंतर्व्यथा-भाग 2: रंजनी जी के पति का देहांत कैसे हुआ

बड़े भैया के बच्चों के साथसाथ मुझे बूआ पुकारता. धीरेधीरे मायके आनाजाना कम होता गया. शरद के होने के बाद तो रंजनजी कुछ ज्यादा कठोर हो गए. सख्त हिदायत थी कि अजय के विषय में कभी भी उसे कुछ नहीं बतलाया जाए. मायके में भी मेरे साथ शरद को कभी नहीं छोड़ते. मेरा मायके जाना भी लगभग बंद हो गया था. शायद वह अपने पुत्र को मेरा खंडित वात्सल्य नहीं देना चाहते थे. फोन का जमाना नहीं था. महीने दो महीने में चिट्ठी आती. मां बीमार रहने लगी थीं. मेरे बड़े भैया मुंबई चले गए. छोटे भाई अनुज की भी शादी हो गई और जैसी उम्मीद थी उस की पत्नी सविता को 2 बड़ेबूढ़े और 1 बच्चे का भार कष्ट देने लगा. अंत में अजय को 11 साल की उम्र में ही रांची के बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. फासले बढ़ते जा रहे थे और संबंध छीजते जा रहे थे. एकएक कर के पापामां दोनों का देहांत हो गया. मां के श्राद्ध में अजय आया था. लंबा, दुबलापतला विनयजी की प्रतिमूर्ति. जी चाहता खींच कर उसे सीने से लगा लूं, खूब प्यार करूं लेकिन अब उसे रिश्तों का तानाबाना समझ में आ चुका था.

वह गुमसुम, उदास और खिंचाखिंचा रहता. पापा के देहांत के बाद उस के प्यारदुलारस्नेह का एकमात्र स्रोत नानी ही थीं, वह सोता भी अब सूख चुका था. अब उसे मेरी जरूरत थी. मैं भी अजय के साथ कुछ दिन रहना चाहती थी. अपने स्नेह, अपनी ममता से उस के जख्म को सहलाना चाहती थी लेकिन रंजनजी के गुस्सैल स्वभाव व जिद के आगे मैं फिर हार गई. शरद को पड़ोस में छोड़ कर आई थी. उस की परीक्षा चल रही थी. जाना भी जरूरी था लेकिन वापस लौट कर एक दर्द की टीस संग लाई थी. इस दर्द का साझेदार भी किसी को बना नहीं पाती. जब शरद को दुलारती अजय का चेहरा दिखता. शरद को हंसता देखती तो अजय का उदास सूखा सा चेहरा आंखों पर आंसुओं की परत बिछा जाता. उस के बाद अजय का आना बहुत कम हो गया. छुट्टियों में भी वह घर नहीं आता.

महीने दो महीने में अनुज, मेरा छोटा भाई ही उस से भेंट कर आता. वह कहता, ‘दीदी, मुझे उस की बातों में एक अजीब सा आक्रोश महसूस होता है, कभी सरकार के विरुद्ध, कभी परिवार के विरुद्ध और कभी समाज के विरुद्ध. ‘इस महीने जब उस से मिलने गया था, वह कह रहा था, मामा, जिस समाज को आप सभ्य कहते हैं न वह एक निहायत ही सड़ी हुई व्यवस्था है. यहां हर इंसान दोगला है. बाहर से अच्छाई का आवरण ओढ़ कर भीतर ही भीतर किसी का हक, किसी की जायदाद, किसी की इज्जत हथियाने में लगा रहता है. मैं इन सब को बेनकाब कर दूंगा. ‘ये आदिवासी लोग भोलेभाले हैं. यही भारत के मूल निवासी हैं और यही सब से ज्यादा उपेक्षित हैं. मैं उन्हें जाग्रत कर रहा हूं अपने अधिकारों के प्रति. अगर मिलता नहीं है तो छीन लो. यह समाज कुछ देने वाला नहीं है. ‘प्रगति के उत्थान के नाम पर भी इन का दोहन ही हो रहा है. इन के साथसाथ जंगल, जो इन का आश्रयदाता है, जिस पर ये लोग आर्थिक रूप से भी निर्भर हैं, उस का व उस में पाई जाने वाली औषधियों, वनोपाज सब का दोहन हो रहा है.

अगर यही हाल रहा तो ये जनजाति ही विलुप्त हो जाएगी. मैं ऐसा होने नहीं दूंगा.’ अचानक एक दिन खबर आई कि अजय लापता है. अनुज ने उसे ढूंढ़ने में जीजान लगा दी. मैं भी एक सप्ताह तक रांची में उस के कमरे में डटी रही. उस के कपड़े, किताबें सहेजती, उस के अंतस की थाह तलाशती रही. दोस्तों ने बतलाया कि उस के लिए घर से जो भी पैसा आता उसे वह गांव वालों में बांट देता. उन्हें पढ़ाता, उन का इलाज करवाता, उन के बच्चों के लिए किताबें, कपड़े, दवा, खिलौने ले कर जाता. उन के साथ गिल्लीडंडा, हौकी खेलता. अपने परिवार से मिली उपेक्षा, मातापिता के प्यार की प्यास ने ही उसे उन आदिवासियों की तरफ आकृष्ट किया. उन भोलेभाले लोगों का निश्छल प्रेम उस के अंदर अपनों के प्रति धधक रहे आक्रोश को शांत करता और इसी कारण उन लोगों के प्रति एक कर्तव्यभावना जाग्रत हुई जो धीरेधीरे नक्सलवाद की तरफ बढ़ती चली गई. अजय का कुछ पता नहीं चला. वहां से लौटने पर पहली बार रंजनजी से जम कर लड़ी थी, ‘आप के कारण मेरा बेटा चला गया. आप को मैं कभी माफ नहीं करूंगी.

क्या मैं सौतेली मां थी कि आप को लगा, अपने दोनों बेटों में भेदभाव करती. रही बात उस के खर्च की तो उस के पास पैसों की कभी कमी नहीं थी. उसे केवल प्यार की दरकार थी, ममता की छांव चाहिए थी, वह भी मैं नहीं दे पाई. मेरा आंचल इतना छोटा नहीं था जिस में केवल एक ही पुत्र का सिर समा सकता था. एक मां का आंचल तो इतना विशाल होता है कि एक या दो क्या, धरती का हर पुत्र आश्रय पा सकता है. आप को आप के किए की सजा अवश्य मिलेगी.’ पता नहीं मेरे भीतर उस वक्त कौन सा शैतान घुस गया था कि मैं अपने पुत्र के लिए अपने ही पति को श्राप दिए जा रही थी. रंजनजी को भी अपनी गलती का पछतावा था. शायद इसी कारण वे मेरी बातें चुपचाप सह गए. दिन, महीने, साल बीत गए, अजय का कुछ पता नहीं चला. इधर, शरद अपनी बुद्धि और पिता के कुशल मार्गदर्शन में कामयाबी की सीढि़यां चढ़ता हुआ आईपीएस में चयनित हो गया. शादी हुई, 2 प्यारे बच्चे हुए. अभी उस की पोस्टिंग बस्तर के इलाके में हुई थी. मैं और रंजनजी दोनों ने विरोध किया, ‘लेदे कर कहीं दूसरी जगह तबादला करवा लो.’ लेकिन उस ने भी उस चैलेंज को स्वीकार किया.

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