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हीरोइन : आखिर कमला ने इतनी कम उम्र में क्यों शादी की ?

लेखक : शैलेन्द्र सागर

स्थानांतरण हमारे जीवन का एक अंग बन चुका था किंतु लखनऊ स्थानांतरण के नाम पर मेरी पत्नी सदैव आतंकित रहती थी. पहले तो सरकारी मकान की दिक्कत और दूसरे, घर पर कामकाज करने वालों की किल्लत. घर के बाकी सब काम तो जैसेतैसे हो जाते थे किंतु बरतन साफ करना, झाड़ू पोंछा करना ऐसे काम थे जिन्हें सुन कर ही पत्नी का तापमान सामान्य से ऊपर पहुंच जाता था. पूरे घर का वातावरण तनावपूर्ण हो जाता था. दिन भर पत्नी मुझ पर, बच्चों पर और खुद पर भी झल्लाती रहती थी. बच्चों के दोचार थप्पड़ भी लग जाना स्वाभाविक ही था. इसलिए लगभग 5 वर्ष पूर्व जब मैं लखनऊ स्थानांतरित हो कर आया था तो इस आशंका से भयंकर रूप से त्रस्त था.

भागदौड़ कर के दारुलशफा (विधायक निवास) के चक्कर काट कर मुझे कालोनी में मकान मिल गया था. वह मेरे लिए कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था. किराए के मकानों की दशा से कौन परिचित नहीं है. खुशामद और सामर्थ्य से परे किराया और दिनप्रतिदिन की कहासुनी. तनाव का एक छोटा हिस्सा मकान मिलने से अवश्य कम हुआ था किंतु उस का अधिकांश भाग तब तक घर पर मंडराता रहा जब तक चौकाबासन करने वाली महरी की व्यवस्था नहीं हो गई.

वास्तव में पत्नी से अधिक महरी की चिंता मुझे थी. मैं ने लखनऊ आते ही पूछताछ करनी प्रारंभ कर दी थी. आसपास के घरों में सुबहशाम आतीजाती महरीनुमा औरतों पर निगाह रखना शुरू कर दिया था. 1-2 महरियां दीख पड़ीं, लेकिन उन्होंने बात करते ही ‘खाली नहीं’ की तख्ती दिखा दी. एक सप्ताह बाद पत्नी का धैर्य तेज धूप में कच्ची दीवार सा चटखने लगा. 15 दिन बीततेबीतते उस के चेहरे पर तनाव भी परिलक्षित होना स्वाभाविक ही था.

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इतनी बड़ी कालोनी में मेरे ही विभाग के अनेक अधिकारी निवास करते थे. धीरेधीरे मैं ने सभी के सामने महरी की समस्या रखी. अंतत: कमला के बारे में मुझे पता चला किंतु सहयोगी अरविंदजी ने मुझे उस की चर्चा के साथ ही सचेत करते हुए कह दिया था, ‘‘भाई, कालोनी की हीरोइन है कमला, एकदम आधुनिका. बड़ी नखरेबाज. उस की हर किसी के साथ निभ पाना संभव नहीं है.’’

मैं ने पत्नी को आ कर सब बता दिया था और कमला को बुलाने का आग्रह किया था.

कमला आई थी तो उसे देख कर मैं भी पहले दिन ही चकित रह गया था. वह देखने में 30 के आसपास थी. सांवला रंग किंतु तीखे नाकनक्श, सलीके से संवरी हुई आकृति और साफसुथरे कपड़े, अंगूठी से घिरी 2 उंगलियां, कलाई में घड़ी और साधारण एड़ी वाली चप्पलें. उसे देख कर यह विश्वास नहीं हुआ कि वह स्त्री घरों में बरतन मांजने और झाड़ू पोंछे का काम करती थी.

प्रारंभिक वार्त्ता के बाद कमला ने कार्य प्रारंभ कर दिया था. बाद में पता चला था कि वह इत्तफाक ही था कि एक अधिकारी के स्थानांतरण के फलस्वरूप कमला अभी हाल में ही खाली हुई थी. वरना उस का नियम था कि वह एक ही समय में 5 से अधिक घरों में काम नहीं करती थी.

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कमला का काम जहां एक ओर अति स्वच्छ व व्यवस्थित था वहीं दूसरी ओर उस में स्वयं एक सौम्यता व गंभीरता दीख पड़ती थी. घड़ी की सूइयों के साथ वह प्रात: सवा 8 बजे आती थी और 45 मिनट में सारे कार्यों से निवृत्त हो कर चली जाती थी. सायं ठीक सवा 5 बजे कमला घर में घुसती थी और पौने 6 बजे तक घर से निकल जाती थी. न तो वह अधिक बोलती थी और न ही उसे सुनने की कोई आदत थी.

जैसेजैसे समय बीतता गया, हम कमला के बारे में और अधिक जानते गए. उस का पति बीमा कार्यालय में चपरासी था. 3 बच्चे थे उन के. बड़ा लड़का और 2 लड़कियां. कमला को देख कर हम तो यही सोचते थे कि अभी बच्चे छोटे ही होंगे. किंतु मुझे उस दिन घोर आश्चर्य हुआ जब एक 16-17 वर्षीय लड़के ने घर आ कर पूछा था, ‘‘मां आई थीं?’’

‘‘किस की मां?’’ पत्नी ने सकपका कर पूछा था.

‘‘मेरी मां, कमलाजी.’’

‘‘कमला,’’ पत्नी हतप्रभ सी धीरे से मुसकरा दी. फिर सहजता धारण कर के बोली, ‘‘हमारे यहां तो सवा 5 बजे आती है. अभी तो देर है.’’

वह लड़का अभिवादन कर के लौट गया.

पता नहीं क्यों पत्नी के हृदय में एक कुलबुलाहट सी हुई. उस दिन कमला के आने पर पत्नी ने उस के लड़के के आने के बारे में बताते हुए बातों का सिलसिला शुरू कर दिया.

‘‘जी, बीबीजी,’’ कमला ने बताया, ‘‘घर पर अचानक कुछ मेहमान आ गए थे. जल्दी में थे. इसलिए लड़का ढूंढ़ रहा था.’’

‘‘मगर तुम्हारा लड़का और इतना बड़ा?’’ पत्नी रोक न सकी अपनी जिज्ञासा को.

कमला ने शरम से मुंह नीचे कर लिया. पहली बार उस के चेहरे पर स्मित की लहरें उभर आईं.

‘‘तुम देखने में तो इतनी बड़ी उम्र की नहीं लगती हो?’’ पत्नी ने धीरे से बात बनाई थी.

कमला हंसने लगी. फिर दबे स्वर में बोली, ‘‘बीबीजी, कुछ तो शादी ही जल्दी हो गई थी. वैसे अब 33 की तो हो ही रही हूं.’’

कमला ने आगे बताया था कि उस के पिता बरेली में एक स्कूल में अध्यापक थे. घर में पढ़नेलिखने का वातावरण भी था. कमला की 2 बहनों ने इंटर पास किया था. उन की शादी हो गई थी. छोटा भाई बी.ए. कर के कचहरी में बाबू हो गया था.

कमला जब केवल 15 वर्ष की ही थी तो पड़ोस में रह रहे नवयुवक के प्रेमजाल में फंस कर वह उस के साथ लखनऊ चली आई थी. उस समय वह 9वीं की परीक्षा दे चुकी थी. नवयुवक यानी उस के पति के मामा ने उन्हें शरण दी थी तथा कचहरी में विवाह कराया था. उस का पति हाईस्कूल पास था. मामा ने ही सिफारिश कर के उस की बीमा दफ्तर में नौकरी लगवा दी थी.

कमला के पिता और घर के अन्य सदस्य उस घटना के बाद इतने अपमानित व क्षुब्ध थे कि उन्होंने कमला से सदा के लिए अपने संबंध विच्छेद कर लिए थे. उधर पति के घर वाले भी उतने ही नाराज थे किंतु धीरेधीरे उन से संबंध सुधर गए थे.

लगभग 1 वर्ष बाद पुत्र का जन्म हुआ था और बाद में 2 लड़कियों का. अब उन में से एक 15 साल की थी और दूसरी 9 साल की.

हमें लखनऊ में आए लगभग 3 साल बीत चुके थे. अब सब व्यवस्थित हो चला था. कमला से कभीकभार खुल कर बातें भी होने लगी थीं किंतु न तो उस के नित्यक्रम में कोई अंतर आया था और न ही उस में.

कमला की कुछ और भी विशिष्टताएं थीं. वह कभी हमारे घर पर कुछ खातीपीती नहीं थी. और तो और वह कभी चाय भी नहीं लेती थी. घर से खाने का कोई सामान स्वीकार न करना और न ही तीजत्योहार पर किसी अतिरिक्त पैसे, कपड़े या वस्तु की मांग करना. प्रारंभ में हमें लगा कि संभवत: महानगर की ऐसी ही प्रथा हो, किंतु बाद में यह भ्रांति भी दूर हो गई.

उस दिन के बाद कमला का लड़का भी कभी हमारे घर नहीं आया था. पता चला था कि वह हाईस्कूल की परीक्षा में 2 बार फेल हो चुका था. अब तीसरी बार परीक्षा दी थी.

कमला की लड़कियों का हमारे घर पर आने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था.

एक दिन जब पत्नी ने कमला से उस की 2 दिन की अनुपस्थिति में किसी लड़की को काम पर भेजने को कहा था तो पहली बार कमला रोष व खीज भरे स्वर में बोली थी, ‘‘नहीं, बीबीजी, मैं अपनी लड़की को नहीं भेज सकती. जो काम मैं उन बच्चों के लिए करती हूं वह उन को करते नहीं देख सकती हूं.’’

उस वर्ष जब हाईस्कूल बोर्ड का परीक्षाफल आया और कमला का लड़का तीसरी बार अनुत्तीर्ण हुआ तो कमला क्षोभ व यंत्रणा से टूटी सी लगती थी. पत्नी के पूछने पर उस के नेत्र छलछला उठे. फिर सिसकियां ले कर रोने लगी. साथ ही भरभराए स्वर में कहने लगी, ‘‘बीबीजी, सिर्फ इन बच्चों के लिए यह काम करना शुरू किया था, जिस से वे अच्छी तरह रह सकें, अच्छा पहनेंखाएं और पढ़लिख कर लायक बन जाएं.’’

कुछ पल शांत रही कमला. फिर बताने लगी, ‘‘बाबूजी, हमारे पूरे खानदान में यह काम किसी ने नहीं किया था, लेकिन मैं ने सिर्फ बच्चों की खातिर यह धंधा अपनाया था.’’

साड़ी का पल्लू निकाल कर कमला ने आंसू पोंछे. फिर आगे बोली, ‘‘मेरा आदमी मुझ से इस धंधे के पीछे बड़ा नाराज हुआ. दुखी भी हुआ. घर के गुजारे लायक उस को पैसा मिलता था. उस के साथ के चपरासी ऐसे ही रह रहे हैं, लेकिन मैं ने जिद कर के यह काम किया. जानती थी कि उस की आमदनी में काम तो चल जाएगा. लेकिन मैं बच्चों को पढ़ालिखा नहीं सकूंगी. उन्हें ठीक तरह नहीं रख पाऊंगी.

‘‘मैं ने मुन्ना को बड़े चाव से पढ़ाना चाहा था, लेकिन वह पढ़ता ही नहीं है. उस के पापा तो पिछले साल ही पढ़ाई बंद करा रहे थे. उसे कपड़े की दुकान पर लगवा भी दिया था, लेकिन मैं ने जिद कर के वह काम छुड़वाया और पढ़ने भेजा.

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‘‘आज सुबह जब नतीजा आया तो मुन्ना को तो डांटाडपटा ही मेरे आदमी ने, मुझे भी बुराभला कहा. फिर आज ही मुन्ना काम पर चला गया उस दुकान पर.’’

कहतेकहते कमला का स्वर बोझिल हो कर टूट सा गया.

‘‘कैसी दुकान है?’’ कुछ देर शांत रह कर कुछ न सूझते हुए पत्नी ने पूछ लिया.

‘‘कपड़े की, जनपथ में है.’’

‘‘कितना देंगे?’’

‘‘यही करीब 300-350 रुपए. मगर बीबीजी, मुझे पैसे का क्या करना है. मुन्ना पढ़ लेता तो जीवन की आस पूरी हो जाती. मेरा यों दरदर ठोकरें खाना सफल हो जाता,’’ कहते हुए कमला की आंखों में एक गीली परत सी जम गई.

कमला की व्यथा सुन कर मैं भी दुखित हो चला था. सचमुच एक विडंबना ही तो थी यह उस की.

उस घटना के बाद कमला दुखी व परेशान सी रहने लगी थी. ऐसा लगता था जैसे कोई दुख उस के हृदय को लगातार बरमे की तरह सालता था. मानो काले बादलों का साया उस के अंतरंग में घुटन सी पैदा कर रहा था. सब काम नियमित रूप से करते हुए भी कमला स्फूर्तिहीन व निस्पंद सी दीख पड़ती थी. कभीकभी यह आशंका होती थी कि कहीं वह काम करना ही न छोड़ दे. किंतु जब 6 माह बीत गए तो पत्नी आश्वस्त हो गई. कमला भी धीरेधीरे सामान्य हो चली थी.

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एक दिन कमला ने एक सप्ताह के अवकाश के संबंध में पत्नी से कहा तो उस का आशंकित हो उठना स्वाभाविक था, ‘‘क्या कामवाम छोड़ने का विचार है?’’ अपने संदेह व आशंका को एक धीमी मुसकान से ढांपते हुए पत्नी ने पूछा था.

‘‘नहीं, बीबीजी, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ कमला ने सहजता से उत्तर दिया, ‘‘मेरी लड़की की शादी है.’’

‘‘सचमुच?’’ पत्नी ने अचंभे से कमला को देखा.

‘‘हां, बीबीजी. 17 पूरे कर चली है. लड़का मिल गया है सो शादी पक्की कर डाली है.’’

‘‘ठीक ही तो किया तुम ने.’’

‘‘और करती भी क्या. उस को भी पढ़ाने की लाख कोशिश की, लेकिन 9वीं से आगे नहीं पढ़ सकी. मेरी ही तरह रही,’’ कह कर हंस दी वह, ‘‘मैं ने सोचा कि कुछ और न हो इस से पहले ही उस के हाथ पीले कर दूं और छुट्टी पा लूं.’’

कमला के आग्रह पर हम दोनों विवाह में सम्मिलित हुए थे. पत्नी एक बार पहले भी उस के घर जा चुकी थी. उस ने मुझे कमला के घर के रखरखाव के बारे में बताया था. टीवी, सोफा, खाने की मेजकुरसियां, ड्रेसिंग टेबल, सबकुछ उस के घर में था.

आज उस का घर देख कर मैं भी चकित रह गया था. शादी का स्तर भी मध्यवर्गीय परिवार जैसा ही था. कहीं कोई कमी नहीं दीख पड़ी. वह सब देख कर जाने क्यों मेरे हृदय में कहीं अंदर अतीव सुख व संतोष की भावना प्रवाहित हो गई थी.

लड़की के विवाह के बाद एक बार फिर हमें ऐसा लगा कि अब कमला अवश्य काम छोड़ देगी, किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ.

एक दिन पत्नी ने मुझे बताया कि कमला मुझ से कोई बात करना चाहती थी. सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ. अगले दिन मैं ने स्वयं कमला से पूछा था, ‘‘कमला, तुम्हें कुछ बात करनी थी?’’

‘‘जी, बाबूजी,’’ हाथ धो कर वह मेरे पास आ कर नीचे जमीन पर बैठ गई, ‘‘कुछ काम था.’’

‘‘बोलो?’’ आत्मीयता भरे स्वर में मैं ने इजाजत दी थी.

‘‘छोटी मुन्नी का किसी अच्छे स्कूल में दाखिला करा दीजिए.’’

‘‘किस क्लास में?’’

‘‘जी, उस ने कानवेंट से 5वीं पास की है. क्लास में दूसरे नंबर पर आई है. अब छठी में जाएगी. उस की अध्यापिका उस की बड़ी तारीफ कर रही थीं. कह रही थीं कि मैं उसे खूब पढ़ाऊं. मैं उसे किसी अच्छे अंगरेजी स्कूल या सेंट्रल स्कूल में डालना चाहती हूं. मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी. इसलिए आप से ही विनती करने आई हूं.’’

मैं स्तंभित सा सुनता रहा.

‘‘क्यों नहीं. आज ही ले आओ उसे. मैं ले कर चला जाऊंगा. दाखिला भी करवा दूंगा,’’ मैं ने कमला को आश्वासन दिया.

कमला मेरे पैरों को छूने लगी, ‘‘मुझ पर बड़ा एहसान होगा आप का. यह लड़की पढ़ लेगी तो जीवनभर आप को याद करूंगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने कभी बताया ही नहीं कि तुम्हारी लड़की कानवेंट में है और पढ़ने में इतनी अच्छी है.’’

‘‘बाबूजी, क्या बताती, मेरी तो आखिरी आशा है वह. कभी लगता है उस को दूसरों से ज्यादा मेरी ही नजर न लग जाए.’’

मैं सुन कर हंसने लगा. वातावरण की गंभीरता टूट चुकी थी. इसलिए मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘मगर तुम ने उसे दोनों बच्चों के बीच कैसे पाला?’’

‘‘बस, बाबूजी, शुरू से छोटी मुन्नी को एकदम अलग ही रखा दोनों बच्चों से. उस के लिए अध्यापक लगाए, पढ़ाने से ज्यादा उस को अलग रखने के लिए. वह जो मांगती है, उसे देती हूं,’’ कुछ क्षण रुक कर फिर धीमे से कहने लगी कमला, ‘‘उसे आज तक यह नहीं मालूम कि मैं क्या काम करती हूं. बाबूजी, हो सकता है कि वह जान कर अच्छे बच्चों में खुल कर घुलमिल न पाए.’’

कमला की आंखें डबडबा उठी थीं. मेरे दिल के तार भी जैसे झंकृत हो उठे थे.

कमला उठ कर अपने काम में लग गई.

तब से मैं भी यह मानता हूं कि कमला वास्तव में हीरोइन है. उस रूप में नहीं जिस में लोग उसे कहतेसमझते हैं बल्कि एक नए अर्थ में, एक नए संदर्भ में.

कितने रूप-भाग 1: सुलभा जगदीश से अचानक घृणा क्यों करने लगी

सुलभा का एक हाथ अधखुले किवाड़ पर था. वह उसी स्थान पर लकवा मारे मनुष्य की तरह जड़ सी हो गईर् थी. शरीर व मस्तिष्क दोनों पर ही बेहोशी सी तारी हो गईर् थी मानो. उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. क्या जो कुछ उस ने सुना वह सच है? जगदीश इस तरह की बात कर सकता है? जगदीश, उस का दीशू, जिसे वह बचपन से जानती है, जिस के विषय में उसे विश्वास था कि वह उस की नसनस से परिचित है…वह?

आगे क्या बातें हुईं वह उस के जड़ हो चुके कानों ने नहीं सुनीं. थोड़ी देर बाद जब उस के दोस्त की आवाज कान में पड़ी, ‘‘चलता हूं यार, तेरे रंग में भंग नहीं डालूंगा,’’ तो मानो उसे होश आया.

अधखुले कपाट को धीरे से बंद कर के अपनी चुन्नी से सिर और मुंह को अच्छी तरह ढक कर वह शीघ्रता से मुड़ी और लगभग दौड़ती हुई बगल में अपने घर के फाटक से अंदर प्रवेश कर के एक झाड़ी की आड़ में खड़ी हो गई.

जगदीश के दोस्त ने सड़क पार खड़ी अपनी कार का दरवाजा खोला, अंगूठा ऊपर कर घर के दरवाजे पर खड़े जगदीश को इशारा सा किया और कार स्टार्ट कर निकल गया.

जगदीश के अधिकांश मित्रों को वह पहचानती है, पर यह शायद कोईर् नया है. भाभी बता रही थीं, आजकल उस की बड़ेबड़ों से मित्रता है. इधर कंस्ट्रक्शन में काफी कमाई कर ली है उस ने.

जगदीश अपने घर के सदर दरवाजे में दोनों हाथ सीने पर बांधे सीधा तन कर खड़ा था. सुलभा कुछ क्षण उस की इस उम्र में भी सुंदर, सुगठित ऊंचीलंबी काया को देखती रही, फिर मुंह फेर लिया. आश्चर्य…? उसे जगदीश से घृणा या वितृष्णा का अनुभव नहीं हो रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि इसे निराशा कहे या विश्वास की टूटन या मन में स्थापित किसी प्रिय सुपरिचित मूर्ति का खंडित होना. वास्तव में उस के मस्तिष्क की जड़ता उसे कुछ अनुभव करने ही नहीं दे रही थी. कुछ भी सोचनेसमझने में असमर्थ वह थोड़ी देर यों ही खड़ी रही.

घर के अंदर बजती टैलीफोन की घंटी की आवाज ने उसे कुछ विचलित किया. वह समझ रही थी कि फोन जगदीश का ही होगा और उत्तर न पा कर वह कहीं खुद ही न आ धमके, घबरा कर फाटक खोल कर वह सड़क पर आ गई और बिना कुछ सोचेसमझे जगदीश के घर की विपरीत दिशा में तेजी से चलने लगी. वह इस समय जगदीश का सामना करने के मूड में बिलकुल नहीं थी. दो कदम चलते ही उसे औटो मिल गया. औटो में बैठ कर पीछे देखने पर उस ने पाया कि जगदीश अपने घर की सीढि़यां उतर चुका था. उस ने औटो वाले को तेज चलने का आदेश दिया.

उस के बचपन की सहेली सुधा उसे यों अचानक देख कर आश्चर्यचकित रह गई. वह बोली, ‘‘अरे तू, तू कब आई? तेरा तो पता ही नहीं चलता. कब मायके आती है कब जाती है. मिले हुए कितना अरसा हो गया, पता भी है? शुक्र है आज तुझे याद तो आई कि मैं भी इसी शहर में रहती हूं.’’

उस की धाराप्रवाह चलती बातों को बीच में ही रोक कर सुलभा ने तनिक हंस कर कहा, ‘‘अच्छा, बातें बाद में होंगी, पहले औटो वाले को पैसे तो दे दे, आते समय पर्र्स उठाना ही भूल गई. भैयाभाभी किसी पार्टी में गए हैं, उन्हें फोन कर दूंगी वापसी में वे मुझे लेते जाएंगे.’’

सुधा के साथ इधरउधर की बातों में सुलभा शाम की घटना को भुलाने की कोशिश करती रही. सुधा के पति दौरे पर थे, यह जानकर सुलभा को अच्छा लगा. उस के साथ ही बेमन से खाना भी खा लिया. घर पर तो शायद वह कुछ खा ही न पाती.

अकेले सांझ बिताने की बोरियत से छुटकारा पाने के उत्साह में, यों अचानक सहेली के आगमन से, सुधा का सुलभा की असमंजसता पर ध्यान ही नहीं गया. सुलभा ने चैन की सांस ली.

भैयाभाभी के साथ घर लौटते रात के 12 बज गए थे. पर सुलभा की आंखों में नींद नहीं थी. अब तक का जीवन एक फिल्म की रील की भांति उस के जेहन में घूम रहा था.

दोनों की माताएं शायद दूर की मौसेरी बहनें थीं. पर उन का परस्पर परिचय पड़ोसी होने के नाते ही हुआ था. उस दूर के रिश्ते की जानकारी भी परिचय होने के बाद ही हुई. पर विभाजन के बाद भारत आए विस्थापित परिवारों को इस नए और अजनबी परिवेश के चलते रिश्ते की इस पतली सी डोर ने भी मजबूती से बांध दिया था. कभीकभी तो इतना सौहार्द बेहद नजदीकी रिश्तों में भी नहीं हो पाता.

जगदीश और सुलभा हमउम्र थे. जहां सुलभा दोनों भाइयों में छोटी थी, वहीं जगदीश अपने मातापिता की जेठी संतान था. जो उन के ब्याह के 7-8 वर्षों बाद पैदा होने के कारण मातापिता, विशेषकर माता, का बहुत लाड़ला था और 5 वर्ष बाद दूसरे भाई के जन्म के बाद भी उस के लाड़प्यार में कमी नहीं आई थी.

कितने रूप-भाग 3 : सुलभा जगदीश से अचानक घृणा क्यों करने लगी

सुलभा हंस पड़ी थी. ‘बुरा तो रुक्मिणी को लगना चाहिए, नहीं?’

बचपन से दोनों परिवारों को उन में अभिन्नता देखते आने के कारण उन का आपसी व्यवहार स्वाभाविक ही लगता था. पर दूसरे परिवेश से आई उषा को शायद उन का व्यवहार असामान्य लगता है. सुलभा ने कई बार यह महसूस किया है, हालांकि इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचा.

पर, अपने खुले स्वभाव के कारण विकास ने कभी अन्यथा नहीं लिया जबकि सुलभा ने देखा कि मिलने पर विकास जब जगदीश की पीठ पर धौल जमा कर ‘और साले साहब, क्या हालचाल हैं’  कहते हैं, ‘नवाजिश है आप की’ कहते जगदीश मन ही मन कसमसा जाता, हालांकि ऊपर से हंसता रहता है.

भाभी नहाने गई थीं. सुलभा और जगदीश बैठे बातें कर रहे थे. एकाएक किसी बात का रिस्पौंस न पा कर सुलभा ने जगदीश की ओर देखा, लगा जैसे उस ने सुलभा की बात सुनी ही न हो. वह जाने कैसी नजरों से उसे एकटक देख रहा था.

सुलभा कुछ सकुचा कर उठने को हुई कि जगदीश ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘सुनो सुली, मेरी बात ध्यान से सुनो और प्लीज नाराज मत होना. मैं…मैं तुम्हें…तुम मेरी बात समझ रही हो न. देखो इधर मेरी आंखों में देखो सुली, क्या तुम्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता? मैं…मैं तुम्हारे लिए वर्षों से तड़प रहा हूं. क्या तुम सचमुच कुछ भी नहीं समझतीं, या…’’

सुलभा उत्तेजित हो कर कुछ कहने को हुई, तो वह उस के मुंह पर हाथ रख कर बोला, ‘‘नहीं, पहले तुम मेरी पूरी बात सुन लो, सुली, अभी कुछ मत कहो. अच्छी तरह सोच लो. मैं आज रात 8 बजे के बाद अपने घर में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा, प्लीज.’’ आंखों में आंसू भर कर उस ने हाथ जोड़ दिए. फिर बोला, ‘‘देखो, यह मेरी अंतिम इच्छा है. एक बार पूरी कर दो. इस के बाद मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगा.

‘‘देखो, मैं जानता हूं तुम और विकास एकदूसरे को बहुत प्यार करते हो, हालांकि यही बात मैं अपने और उषा के लिए नहीं कह सकता, शायद, इस के लिए मैं ही अधिक दोषी हूं. पर कभीकभी मुझे लगता है कि मुझे तुम्हारे ब्याह के समय ही विरोध करना चाहिए था. पर तब मैं अपनी भावनाएं अच्छी तरह समझ नहीं पाया था और बाद में बहुत देर हो चुकी थी.

‘‘तुम मेरी गर्लफ्रैंड्स के बारे में जानती हो, पर विश्वास मानो मैं उन सब में तुम्हें ही ढूंढ़ता रहा हूं. उषा बच्चों के साथ मायके गई हुई है और तुम्हारे भैयाभाभी को आज रात किसी पार्टी में जाना है. ऐसा अवसर फिर कभी नहीं मिलेगा. आजकल तुम यहां आती ही कितना हो. मुश्किल से 2-3 दिन या किसी विशेष अवसर पर. और अकेले तो कितने अरसे बाद आई हो. देखो, मेरा दिल मत तोड़ना सुली. तुम्हें अपने दीशू की कसम.’’ उसे कुछ कहने का मौका दिए बिना ही रूमाल से आंसू पोंछता वह जल्दीजल्दी चला गया.

सुलभा सन्न रह गई. उसे याद आया कुछ वर्षों पहले भी उस ने कुछ इसी तरह का इशारा किया था. वह लज्जा और क्रोध से लाल हो गई थी. उस का रौद्र रूप देख कर जगदीश सकपका गया था, कान पकड़ कर हंसते हुए बोला था, ‘सौरी बाबा, सौरी, मजाक कर रहा था.’

‘दिमाग ठीक है तुम्हारा? ऐसा भी मजाक होता है? बच्चे नहीं हो कि जो मुंह में आया बक दिया. आज के बाद मुझ से बात करने की भी कोशिश मत करना’, क्रोध और क्षोभ से वह उठ खड़ी हुई थी.

जगदीश एकदम घबरा गया था, ‘माफ कर दो सुली. मगर ऐसा गजब न करना, तुम्हारे पैर पड़ता हूं. माफ कर दो प्लीज.’ और उस ने सचमुच सुलभा के पैर पकड़ लिए थे.

तो क्या यह इतने वर्षों से ही यह इच्छा मन में रखे है, वह तो कब का उस बात को भूल चुकी थी. और आज इस उम्र में…सुलभा का बेटा इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में है, बेटी मैडिकल के प्रथम वर्ष में है. खुद जगदीश की बेटी इस वर्ष कालेज जौइन करेगी.

उस ने अपने मन को टटोलने का यत्न किया. पर उस के अपने मन में तो सदा जगदीश के लिए दोस्तीभाव ही रहा है. उस का प्यार तो विकास ही है. और जगदीश का आज का प्रस्ताव क्या प्यार है? क्या पुरुष की दृष्टि में नारी का एक यही रूप है? छि:, उस का सिर घूम रहा था, दिमाग मानो कुछ भी सोचनेसमझने में असमर्थ हो रहा था. भाभी के कुछ एहसास करने पर सिरदर्द का बहाना बना कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई.

शाम तक उस की यही हालत रही. पहले उस ने सोचा, भैयाभाभी के साथ पार्टी में चली जाए, पर अनजान, अपरिचित लोगों से मिलने और वार्त्तालाप करने लायक उस की मनोस्थिति नहीं थी. फिर भाभी ने साथ चलने के लिए खास अनुरोध भी नहीं किया था. पार्टी उन की सहेली की शादी की वर्षगांठ की थी और उस ने शायद चुनिंदा लोगों को ही बुलाया था.

दिनभर वह इसी ऊहापोह में रही कि क्या करे. अंधेरा होने पर जब वह जगदीश के घर की ओर चली, तब तक तय नहीं कर पाई थी कि वह क्यों जा रही है और उस से क्या कहेगी. पर वह यह भी जानती थी कि उस के न जाने पर वह खुद ही आ धमकेगा.

जगदीश के घर के सदर दरवाजे के पल्ले यों ही भिड़े थे. सुलभा ने उसे खोलने के लिए पल्ले पर हाथ रखा ही था कि एक अपरिचित स्वर सुन कर ठिठक गई, ‘‘तो आज तुम बिलकुल नहीं लोगे? मैं ने तो सोचा था कि भाभी नहीं हैं, सो, आज जरा जम कर बैठेंगे.’’

‘‘नहीं यार, आज तो बिलकुल नहीं. उसे डिं्रक से सख्त नफरत है. आज जब मेरे जीवनभर का अरमान पूरा होने जा रहा है, मैं यह रिस्क नहीं ले सकता.’’

‘‘पर यार, मेरी समझ में नहीं आ रहा. अब इतने वर्षों बाद ऐसा भी क्या है. अरे, तुझे कोई कमी है. एक से एक परी तेरे एक इशारे की प्रतीक्षा में रहती है. और तू है कि इस अधेड़ उम्र की स्त्री के लिए इतना बेचैन हो रहा है?’’

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‘‘तू नहीं समझेगा. आज तक मुझे किसी युवती ने इनकार नहीं किया जिस पर भी मैं ने हाथ रखा, सिर्फ इसी ने…मुझे अपना सारा वजूद ही झूठा लगता था, मैं ने जिंदगी में कभी किसी स्तर पर हार नहीं मानी. न खेल में, न बिजनैस में, न प्रेम में. हार मैं सहन नहीं कर सकता. किसी कीमत पर नहीं. आज, आज लगता है मैं एवरेस्ट फतह कर लूंगा.’’

सुलभा को लगा था मानो किसी ने उस के कानों में पिघलता सीसा उड़ेल दिया हो. रातभर जगदीश के शब्द उस के वजूद पर कोड़े से बरसाते रहे. उस के गुस्से की सीमा नहीं थी. बचपन से ले कर आज तक का समय उस की आंखों के सामने फिल्म की रील सा घूम गया. वह अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि बचपन से अब तक देखा, सुना और जाना हुआ सच था या आज का उस का यह रूप. मनुष्य के कितने रूप होते हैं? कब कौन सा रूप प्रकट हो जाएगा, कौन जान सकता है? क्या पुरुष का यही रूप उस का असली और सच्चा रूप है? क्या खून के रिश्तों के अलावा पुरुष की नजरों में स्त्रीपुरुष का यही एक रिश्ता है? बाकी सब गौण हैं? मित्रता भी एक दिखावा ही है? क्या वह अब किसी चीज पर विश्वास कर पाएगी?

सुबह अपना सामान संभालती वह सोच रही थी, भैयाभाभी से यों अचानक लौट जाने का कौन सा बहाना बनाएगी. वह अब कभी जगदीश का सामना पहले की तरह सहज भाव में कर पाएगी? पता नहीं. पर आज तो हरगिज नहीं कर पाएगी.

 

मैं बिजनैसमैन हूं, मेरी पत्नी और मेरे बीच इतनी तू तू मैं मैं हो गई कि वह घर छोड़ कर चली गई, जिस से मैं काफी अपसैट हूं, क्या करूं?

सवाल
मैं बिजनैसमैन हूं जिस कारण मुझे घर आने में अकसर देरी हो जाती है. मेरी पत्नी का जन्मदिन था और मैं उस दिन भी घर पर जल्दी नहीं आ पाया जिस कारण वह मुझ से नाराज हो गई है. उस दिन हम दोनों के बीच इतनी तूतू मैंमैं हो गई कि वह घर छोड़ कर चली गई, जिस से मैं काफी अपसैट हूं. क्या करूं?

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जवाब
जब आप की शादी हुई थी तब आप नौकरी करते थे या फिर स्वयं का बिजनैस था, इस बात का जिक्र आप ने नहीं किया. लेकिन फिर भी काम तो काम ही है, कुछ हद तक तो आप की पत्नी की नाराजगी सही है, क्योंकि इस स्पैशल डे को वह आप के साथ जो मनाना चाहती थी. लेकिन इतना भी क्या रूठना कि वह घर छोड़ कर ही चली जाए. आप को उस के सामने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए उसे प्यार से समझाना होगा कि अगर कमाऊंगा नहीं, तो खिलाऊंगा क्या.

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बिजनैस में उतारचढ़ाव भी चलते रहते हैं, ऐसे में बचत कर के रखना भी जरूरी है. उसे यह भी बताएं कि बिजनैस में कब जरूरी काम आ जाए, कहा नहीं जा सकता. फिर भी मैं खुद को सुधारने की कोशिश करूंगा. लेकिन उसे भी घर छोड़ने की आदत को सुधारना होगा और एकदूसरे की समस्या को समझ कर चलना होगा, तभी रिश्ते में मिठास आने के साथ हमारी गृहस्थी अच्छी तरह से चल पाएगी.

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जब पति को लगे पत्नी खटकने

प्राचीनकाल से ही भारत पुरुषप्रधान देश है. लेकिन अब समय करवट ले चुका है. महिला हो या पुरुष दोनों को ही समानता से देखा जाता है. ऐसे में यदि बात पति और पत्नी के बीच की हो तो दोनों ही आधुनिक काल में सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते दिखते हैं. पर कई बार ऐसा होता है कि पति अपनी पत्नी से यदि किसी चीज में कम है तो वह हीनभावना का शिकार होने लगता है और उसे पत्नी कांटे के समान लगने लगती है.

ऐसे में जरूरी है पतिपत्नी में आपसी तालमेल, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि पतिपत्नी में खटास नहीं होती है, लेकिन दूसरे लोग ताने कसकस कर आग में घी का काम करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि इस कठिन स्थिति से निकलने की कोशिश पतिपत्नी दोनों करें.

गलत मानसिकता में रचाबसा समाज समाज में यह मानसिकता हमेशा बनी रहती है कि पत्नी के बजाय पति का ओहदा हमेशा उच्च होता है. पत्नी के उच्च शिक्षित, सुंदर, मशहूर और सफल होने से पति को ईगो प्रौब्लम होने लगती है. समाज की दृष्टि से पति को पत्नी की तुलना में प्रतिभाशाली, गुणी, उच्च पदस्थ आदि होना चाहिए. लेकिन पतिपत्नी को समझना चाहिए कि यह आप की अपनी जिंदगी है. इस में छोटाबड़ा कोई माने नहीं रखता है.

यदि पत्नी ऊंचे ओहदे पर है

अकसर देखने में आता है कि पत्नी का ऊंचे ओहदे पर होना समाज में लोगों को गवारा नहीं होता. ऐसा ही कुछ शालिनी के साथ हुआ. उस की लव मैरिज थी. वह उच्च शिक्षा प्राप्त और एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर कार्य करती थी जबकि पति अरुण उस से कम पढ़ालिखा और अपनी पत्नी के मुकाबले निम्न पद पर था. अकसर उस से लोग कहते रहते थे कि तुझे इतनी शिक्षित और कमाऊ बीवी कहां से मिल गई. साथ ही, शालिनी भी उसे ताने देती रहती थी. इन सभी बातों से अरुण इतना अधिक डिप्रेशन में रहने लगा कि उस के मन में अपनी पत्नी के खिलाफ जहर घुलने लगा और फिर तलाक की नौबत आ गई.

पत्नी दे ध्यान: पत्नी के सामने यदि ऐसी स्थिति आए तो वह इस से घबराए नहीं, बल्कि डट कर सामना करे. कई बार हम सामने वालों की गलतियां गिना देते हैं, लेकिन कहीं न कहीं हम में भी खोट होता है. अकसर एक बड़े ओहदे पर होने के कारण पत्नी अपने पति को खरीखोटी सुनाती रहती है जैसे वह अपनी पढ़ाई व कमाई के नशे में चूर अपने पति की कमियों का उपहास उड़ाती रहती है कि घर का सारा खर्च तो उस की कमाई पर ही चलता है.

कई कमाऊ पत्नियां सब के सामने यह कहती पाई जाती हैं कि अरे यह कलर टीवी तो मैं लाई हूं, वरना इन के वेतन से तो ब्लैक ऐंड व्हाइट ही आता. इन सब बातों से रिश्तों में खटास बढ़ती है. ऐसी स्थिति में पत्नियों को चाहिए कि वे अपने पति को प्रोत्साहित करें कि वे भी जीवन में तरक्की करें न कि हीनभावना से ग्रस्त हो कर कौंप्लैक्स पर्सनैलिटी बन जाएं.

पति ध्यान दें: पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी से हीनभावना रखने के बजाय उसे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दे. यदि कोई बाहरी व्यक्ति कमज्यादा तनख्वाह का मुद्दा उठाए तो कहे कि हमारे घर में सब कुछ साझा है और हम दोनों पतिपत्नी मिलजुल कर घर की जिम्मेदारियां निभाते हैं.

पत्नी का खूबसूरत होना

वैसे तो हर आदमी की चाह होती है कि उस की पत्नी खूबसूरत हो, लेकिन यदि पत्नी बेहद खूबसूरत हो और पति कम स्मार्ट और सिंपल हो तो लोग यह बोलते नहीं रुकते कि अरे देखो तो लंगूर के मुंह में अंगूर या बंदर के गले में मोतियों की माला. ऐसे में पति को पत्नी बेहद खटकने लगती है. वह न चाह कर भी उसे ताने देता रहता है.

वैसे तो पत्नी की तारीफें पति को गर्व से भर देती हैं, लेकिन जब पत्नी की आकर्षक पर्सनैलिटी पति के साधारण व्यक्तित्व को और दबा देती है, तब संतुलित विचारों वाला पति और भी बौखला जाता है. नतीजतन, पति अपनी सुंदर पत्नी के साथ पार्टीसमारोह में जाने से बचने लगता है. अगर साथ ले जाना जरूरी हो तो पार्टी में पहुंच कर पत्नी से अलगथलग खड़ा रहता है. सजनेधजने तक पर भी ताने देता है.

पत्नी ध्यान दे: ऐसे में पत्नी को समझदारी से काम लेना चाहिए. यदि पत्नी को लगता है कि उस का पति उस की खूबसूरती को ले कर हीनभावना महसूस कर रहा है तो वह पति को समझाए कि पति से बढ़ कर उस के लिए दुनिया में कोई माने नहीं रखता है. साथ ही अपने पति के सामने किसी आकर्षक दिखने वाले आदमी की बात भी न करे. किसी महफिल या समारोह में पति के हाथों में हाथ डाल कर यह दिखाने की कोशिश करे कि वह पति को दिल से प्रेम करती है.

पति ध्यान दे: जिंदगी में उतारचढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन पत्नी पति का हर परिस्थितियों में साथ निभाती है. ऐसे में जरूरी है कि पति लोगों की बातों को नजरअंदाज करे, क्योंकि कुछ लोगों का काम ही होता है कि दूसरे के खुशहाल परिवार में आग लगाना. यदि पतिपत्नी दोनों एकदूसरे का साथ सही से निभाएं तो दूसरा कोई उंगली नहीं उठा सकता.

मायके के पैसे का घमंड

कई बार ऐसा होता है कि पत्नी के मायके में ससुराल के मुकाबले ज्यादा पैसा होता है. पत्नी की सहज मगर रईस जीवनशैली उस के मायके वालों का लैवल, गाडि़यां, कोठियां आदि पति को हीनता का एहसास दिलाने लगते हैं. साथ ही पत्नी भी पति के समक्ष मायके में ज्यादा पैसे होने का राग अलापती रहती है. बातबात पर अपने मायके के सुख बखान कर पति को ताने देती रहती है, जिस से पति हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है और उसे पत्नी खटकने लगती है.

पत्नी ध्यान दे: पतिपत्नी के रिश्ते में एकदूसरे का सम्मान सब से ज्यादा अहम होता है. पत्नी को चाहिए कि वह अपने मातापिता के पैसे पर इतना अभिमान न करे कि उस से दूसरे को ठेस पहुंचे. हमेशा मायके के ऐश्वर्य को अपने पति के सामने न जताए. इस से पति के अहम को ठेस पहुंचती है, साथ ही वह पत्नी को मायके जैसा सुख न देने के कारण हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है.

पति ध्यान दें: कई बार पत्नी के कुछ खरीदने पर या किसी डिमांड पर पति क्रोधित हो कर उस के मायके के ऐश्वर्य को ले कर उलटासीधा बोलने लगता है. ऐसे में जरूरी यह होता है कि आप प्रेमपूर्वक आपस में बैठ कर बात करें न कि लड़ाई ही इस विषय का समाधान है. जैसे पत्नी का बारबार अपने मायके के सुख के ताने देना पति को खराब लगता है ऐसे ही पति का पत्नी के मायके के लिए बोलना भी उसे खराब लगता है.

कितने रूप-भाग 2 : सुलभा जगदीश से अचानक घृणा क्यों करने लगी

जगदीश और सुलभा अभिन्न थे. दोनों एकसाथ स्कूल जाते, खेलते या लड़तेझगड़ते पर एकदूसरे के बिना मानो सुकून न मिलता. प्राइमरी के बाद सुलभा का दाखिला गर्ल्स स्कूल में हो गया था, तो भी कक्षा एक ही होने की वजह से दोनों की पढ़ाई अकसर एकसाथ ही होती. सुलभा पढ़ाई में अच्छी होने के कारण सदा अच्छी रैंक लाती, वहीं जगदीश जैसेतैसे पास हो जाता.

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बचपन में वे एकदूसरे को दीशू और सुली कह कर पुकारते. कालेज जौइन कर लेने के बाद सुलभा ने उसे पूरे नाम से पुकारना शुरू कर दिया था पर जगदीश कभीकभी सुली कह लेता था. वयस्क हो जाने के बाद भी दोनों का दोस्ती वाला व्यवहार और हंसीमजाक कभी किसी को नहीं खटका.

जब वे दोनों हाईस्कूल में थे, तब मौसी ने एक बार सुलभा से कहा था, ‘तू जगदीश को राखी क्यों नहीं बांधती.’ बीच में ही जल्द से बात काट कर जगदीश बोल उठा था, ‘रहने दो बीजी, राखी बांधने के लिए इतनी सारी चचेरी, फुफेरी बहनें क्या कम हैं? सुली तो मेरी दोस्त, सखी है. इसे वही रहने दो.’ दोनों की माताएं हंस पड़ी थीं.

सुलभा ने तब हंस कर कहा था, ‘हां, तुम्हारे जैसे फिसड्डी को भाई बताने में मुझे भी शर्म ही आएगी.’ जगदीश बनावटी गुस्से से उसे मारने उठा तो वह उस की मां के पीछे जा छिपी. मौसी ने उसे लाड़ से थपथपा कर कह दिया, ‘ठीक तो कह रही है, कहां हर साल अव्वल आने वाली हमारी सुलभा बेटी और कहां तुम, पास हो जाओ वही गनीमत.’ वैसे, सुलभा को भी उसे राखी बांधने का खयाल कभी नहीं आया था.

सुलभा के बीए फाइनल में पहुंचते ही उस की दादी ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए उस की शादी के लिए जल्दी करनी शुरू कर दी. उन्होंने इकलौती पोती का कन्यादान करने की ख्वाहिश जाहिर की थी.

सुलभा ने चिढ़ कर कहा था, ‘‘क्या मैं कोई गाय या बछिया हूं जो मेरा दान करेंगी बीजी?’’

‘अरे बेटी, लड़की के ब्याह के लिए यही कहा जाता है न.’

जगदीश ने छेड़ा, ‘देख ली अपनी औकात?’ वह मारने दौड़ी तो जगदीश जबान दिखाते हुए भाग गया.

बीए की परीक्षा होते ही सुलभा की शादी हो गई. हालांकि बाद में उस ने एमए और बीएड भी कर लिया था. 2 बच्चों के जन्म के बाद और पति की तबादले वाली नौकरी के कारण वह अधिक दिनों के लिए मायके न आ पाती, फिर मातापिता के न रहने पर और बच्चों की पढ़ाई के चलते मायके आना और भी कम हो गया.

हालांकि, पड़ोस होने के कारण हर बार आने पर जगदीश और उस

के परिवार से मुलाकात हो ही जाती. जगदीश किसी प्रकार एमए कर के पिता के साथ बिजनैस में लग गया था. मातापिता के न रहने पर अब वही घर का सर्वेसर्वा था. छोटा भाई इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर दूसरे शहर में नौकरी कर रहा था. इस बीच जगदीश ने भी शादी कर ली.

एक बार जगदीश की पत्नी उषा ने कहा था, ‘दीदी, आप मुझे भाभी क्यों नहीं कहतीं?’

‘क्योंकि तुम आयु में मुझ से छोटी हो और मुझे दीदी कहती हो. फिर मैं ने जगदीश को भी तो कभी भैया नहीं कहा. पर यदि तुम्हें अच्छा लगता है तो मैं तुम्हें भाभी ही कहा करूंगी, उषा भाभी,’ और मैं हंस पड़ी थी. उषा भी हंस दी पर उस का चेहरा लाल हो आया था मानो उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो. पास बैठा जगदीश बिना कुछ बोले मुंह पर गंभीरता ओढ़े उठ कर चला गया था.

फिर एक दिन उषा ने हंसीहंसी में कहा था, ‘दीदी, आप अपने सखा की गोपियों के बारे में जानती हैं?’

सुलभा जगदीश के रसिक स्वभाव से परिचित थी. अधिकांश लड़़कियां भी उस सुदर्शन युवक से परिचित होने को उत्सुक रहतीं. पर सुलभा ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया था. कुछ आश्चर्य से ही बोली, ‘हां.’

‘आप को बुरा नहीं लगा, आप तो उन की सखी हैं न, उन की राधा’, उषा ने चुटकी लेते हुए कहा.

चने की दाल के ये 6 फायदें जानकर आप भी करेंगे रोज इस्तेमाल

चना सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. इसमें प्रोटीन की प्रचूर मात्रा पाई जाती है. पर बहुत से लोग इसका उपयोग करने से बचते हैं, उनका मानना है कि चने की दाल खाने से पेट में दर्द और गैस की समस्या होती है. पर इसे खाने के कई फायदे होते हैं. इस खबर में हम आपको उन फायदों के बारे में बताएंगे.

जौंडिस में होता है असरदार

जौंडिस या कहें कि पिलिया में भी चने की दाल काफी लाभकारी होती है.

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शरीर को रखता है एनर्जेटिक

चने की दाल में जिंक, कैल्शियम, प्रोटीन जैसे जरूरी तत्व होते हैं. ये आपके शरीर के लिए बहुत लाभकारी होते हैं. शरीर की बहुत सी जरूरतों को ये पूरा करते हैं और आवश्यक जरूरी उर्जा देते हैं.

आयरन की मात्रा भरपूर होती है

चने की दाल आपके शरीर में आयरन की कमी को पूरी करता है. शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को समान्य रखने में भी ये काफी लाभकारी है.

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पेट को रखें हेल्दी

पाचनतंत्र के लिए चने की दाल काफी लाभकारी होती है. इसके नियमित सेवन से पेट की बहुत सी समस्याएं दूर रहती हैं.

डायबिटीज पर करता है नियंत्रण

ग्लूकोज के अधिक मात्रा को अवशेषित करने में काफी मददगार होती है चने की दाल. यही कारण है कि डायबिटीज में इसका सेवन करना स्वास्थ के लिए अच्छा होता है.

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कौलेस्ट्रौल को करता है कम

फाइबर की अधिक मात्रा होने के कारण चने की दाल कौलेस्ट्रौल में बेहद फायदेमंद होता है. वजन घटाने में ये बेहद लाभकारी होता है.

क्योंकि वह अमृत है: सरला और रमेश बाबू को लेकर दफ्तर में क्या बात होने लगी थी

सरला ने क्लर्क के पद पर कार्यभार ग्रहण किया और स्टाफ ने उस का भव्य स्वागत किया. स्वभाव व सुंदरता में कमी न रखने वाली युवती को देख कर लगा कि बनाने वाले ने उस की देह व उम्र के हिसाब से उसे अक्ल कम दी है.

यह तब पता चला जब मैं ने मिस सरला से कहा, ‘‘रमेश को गोली मारो और जाओ, चूहों द्वारा क्षतिग्रस्त की गई सभी फाइलों का ब्योरा तैयार करो,’’ इतना कह कर मैं कार्यालय से बाहर चला गया था.

दरअसल, 3 बच्चों के विधुर पिता रमेश वरिष्ठ क्लर्क होने के नाते कर्मचारियों के अच्छे सलाहकार हैं, सो सरला को भी गाइड करने लगे. इसीलिए वह उस के बहुत करीब थे.

अपने परिवार का इकलौता बेटा मैं सरकार के इस दफ्तर में यहां का प्रशासनिक अधिकारी हूं. रमेश बाबू का खूब आदर करता हूं, क्योंकि वह कर्मठ, समझदार, अनुशासित व ईमानदार व्यक्ति हैं. अकसर रमेश बाबू सरला के सामने बैठ कर गाइड करते या कभीकभी सरला को अपने पास बुला लेते और फाइलें उलटपलट कर देखा दिखाया करते.

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उन की इस हरकत पर लोग मजाक करने लगे, ‘‘मिस सरला, अपने को बदल डालो. जमाना बहुत ही खराब है. ऐसा- वैसा कुछ घट गया तो यह दफ्तर बदनाम हो जाएगा.’’

असल में जब भी मैं सरला से कोई फाइल मांगता, उस का उत्तर रमेशजी से ही शुरू होता. उस दिन भी मैं ने चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा मांगा तो वह सहजता से बोली, ‘‘रमेशजी से अभी तैयार करवा लूंगी.’’

हर काम के लिए रमेशजी हैं तो फिर सरला किसलिए है और मैं गुस्से में कह गया, ‘रमेश को गोली मारो.’ पता नहीं वह मेरे बारे में क्याक्या ऊलजलूल सोच रही होगी. मैं अगली सुबह कार्यालय पहुंचा तो सरला ने मुझ से मिलने में देर नहीं की.

‘‘सर, मैं कल से परेशान हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मुसकराते हुए मैं ने उसे खुश करने के लिए कहा, ‘‘फाइलों का ब्योरा तैयार नहीं हुआ? कोई बात नहीं, रमेशजी की मदद ले लो. सरला, अब तुम स्वतंत्र रूप से हर काम करने की कोशिश करो.’’

वह मुझे एक फाइल सौंपते हुए बोली, ‘‘सर, यह लीजिए, चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा, पर मेरी परेशानी कुछ और है.’’

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‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कल आप ने कहा था कि रमेशजी को गोली मारो. सर, मैं रातभर सोचती रही कि रमेशजी में क्या खराबी हो सकती है जिस की वजह से मैं उन को गोली मारूं. पहेलीनुमा सलाह या अधूरे प्रश्न से मैं बहुत बेचैन होती हूं सर,’’ वह गंभीरतापूर्वक कहती गई.

तभी मेरी मां की उम्र की एक महिला मुझ से मिलने आईं. परिचय से मैं चौंक गया. वह सरला की मां हैं. जरूर सरला से संबंधित कोई शिकायत होगी. यह सोच कर मैं ने उन्हें सादर बिठाया. उन्होंने मेरे सामने वाली कुरसी पर बैठने से पहले अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर कर उस से जाने को कहा तो वह केबिन से निकल गई.

‘‘सर, मैं एक प्रार्थना ले कर आप को परेशान करने आ गई,’’ सरला की मां बोलीं.

‘‘हां, मांजी, आप एक नहीं हजार प्रार्थनाएं कर सकती हैं,’’ मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘बताइए, मांजी.’’

वह बोलीं, ‘‘सर, मेरी सरला कुछ असामान्य हरकतें करती है. उस के सामने कोई बात अधूरी मत छोड़ा कीजिए. कल घर जा कर उस ने धरतीआसमान उठा कर जैसे सिर पर रख लिया हो. देर रात तक समझानेबुझाने के बाद वह सो पाई. बेचैनी में बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें करती है. दरअसल, मैं उसे बहुत चाहती हूं, वह मेरी जिंदगी है. मैं ने सोचा कि यह बात आप को बता दूं ताकि कार्यालय में वह ऐसावैसा न करे.’’

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मैं ने आश्चर्य व धैर्यता से कहा, ‘‘मांजी, आप की बेटी का स्वभाव बहुत कुछ मेरी समझ में आ गया है. पिछले सप्ताह से मैं उसे बराबर रीड कर रहा हूं. असहनीय बेचैनी के वक्त वह अपना सिर पटकती होगी, अपने बालों को भींच कर झकझोरती होगी, चीखतीचिल्लाती होगी. बाद में उस के हाथ में जो वस्तु होती है, उसे फेंकती होगी.’’

‘‘हां, सर,’’ मांजी ने गोलगोल आंखें ऊपर करते हुए कहा, ‘‘सबकुछ ऐसा ही करती है. इसीलिए मैं बताने आई हूं कि उसे सामान्य बनाए रखने के लिए सलाहमशविरा यहीं खत्म कर लिया करें अन्यथा वह रात को न सोएगी न सोने देगी. भय है कि कहीं कार्यालय में किसी को कुछ फेंक कर न मार दे.’’

‘‘जी, मांजी, आप की सलाह पर ध्यान दिया जाएगा. पर एक प्रार्थना है कि मैं आप को मांजी कहता हूं इसलिए आप मुझे रजनीश कहिए या बेटा, मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

उठते हुए मांजी बोलीं, ‘‘ठीक है बेटा, एक जिज्ञासा हुई कि सरला के लक्षणों को तुम कैसे समझ पाए हो? क्या पिछले दिनों भी कार्यालय में उस ने ऐसा कुछ…’’

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‘‘नहीं, अब तक तो नहीं, पर मैं कुछ मनोभावों के संवेदनों और आप द्वारा बताए जाने से यह सब समझ पाया हूं. मेरा प्रयास रहेगा कि सरला जल्दी ही सामान्य हो जाए,’’ मैं ने मांजी को उत्तर दिया तो वह धन्यवाद दे कर केबिन से बाहर निकली और फिर सरला का माथा चूम कर बाहर चली गईं.

मैं ने अपना प्रभाव जमाने के लिए उन्हें आश्वस्त किया था. संभव है कि हालात मेरे पक्ष में हों और सरला को सामान्य करने का मेरा प्रयास सफल रहे. सरला की शादी के बाद किसी एक पुरुष की जिंदगी तो बिगड़ेगी ही, क्यों न मेरी ही बिगड़े. हालांकि उसे सामान्य करने के लिए शादी ही उपचार नहीं है पर प्रथम शोधप्रयास विवाहोपचार ही सही. वैसे मेरे हाथ के तोते तो उड़ चुके थे फिर भी साहस बटोर कर सरला को बुला कर मैं बोला, ‘‘मिस सरला, मैं एक सलाह दूं, तुम उस पर विचार कर के मुझे बताना.’’

‘‘जी, सर, सलाह बताइए, मैं रमेशजी से समझ लूंगी. रही बात विचार की, सो मैं विचार के अलावा कुछ करती भी तो नहीं, सर,’’ प्रसन्नतापूर्वक सरला ने आंखें मटकाते हुए कहा.

चंचलता उस की आंखों में झलक आई थी. तथास्तु करती परियों जैसी मुसकराहट उस के होंठों पर खिल उठी.

मैं ने सरला को ही शादी की सलाह दे कर उकसाना चाहा ताकि उसे भी कुछकुछ होने लगे और जब तक उस की शादी नहीं हो जाएगी, वह बेचैन रहेगी. घर जा कर अपने मातापिता को तंग करेगी और तब शादी की बात पर गंभीरता से विचारविमर्श होगा.

मैं तो आपादमस्तक सरला के चरित्र से जुड़ गया था और मैं ने उसे सहजता से कह दिया, ‘‘देखो, सरला, अब तुम्हें अपनी शादी कर लेनी चाहिए. अपने मातापिता से तुम यह बात कहो. मैं समझता हूं कि तुम्हारे मातापिता की सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी. उन की चिंता दूर करने का तुम्हारा फर्ज बनता है, सरला.’’

‘‘ठीक है, सर, मैं रमेशजी से पूछ लेती हूं,’’ सरला ने बुद्धुओं जैसी बात कह दी, जैसे उसे पता नहीं कि उसे क्या सलाह दी गई. उस के मन में तो रमेशजी गणेशजी की तरह ऐसे आसन ले कर बैठे थे कि आउट होने का नाम ही नहीं लेते.

मैं ने अपना माथा ठोंका और संयत हो कर बोला, ‘‘सरला, तुम 22 साल की हो और तुम्हारे अच्छे रमेशजी डबल विधुर, पूरे 45 साल के यानी तुम्हारे चाचा हैं. तुम उन्हें चाचा कहा करो.’’

मैं ने सोचा कि रमेश से ही नहीं अगलबगल में भी सब का पत्ता साफ हो जाए, ‘‘और सुनो, बगल में जो रसमोहन बैठता है उसे भैयाजी और उस के भी बगल में अनुराग को मामाजी कहा करो. ये लोग ऐसे रिश्ते के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं.’’

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‘‘जी, सर,’’ कह कर सरला वापस गई और रमेश के पास बैठ कर बोली, ‘‘चाचाजी, आज मैं अपने मम्मीपापा से अपनी शादी की बात करूंगी. क्या ठीक रहेगा, चाचाजी?’’

यह सुन कर रमेशजी तो जैसे दस- मंजिली इमारत से गिर कर बेहोश होती आवाज में बोले, ‘‘ठीक ही रहेगा.’’

5 बजे थे. सरला ने अपना बैग कंधे पर टांगा और रसमोहन से ‘भैयाजी नमस्ते’, अनुराग से ‘मामाजी नमस्ते’ कहते हुए चलती बनी. सभी अपनीअपनी त्योरियां चढ़ा रहे थे और मेरी ओर उंगली उठा कर संकेत कर रहे थे कि यह षड्यंत्र रजनीश सर का ही रचा है.

मैं जानता हूं कि मेरे विभाग के सभी पुरुषकर्मी असल में जानेमाने डोरीलाल हैं. किसी पर भी डोरे डाल सकते हैं. लेकिन शर्मदार होंगे तो इस रिश्ते को निभाएंगे और तब कहीं सरला खुले दिमाग से अपना आगापीछा सोच सकेगी. उस के मातापिता भी अपनी सुकोमल, बचकानी सी बेटी के लिए दामाद का कद, शिक्षा, पद स्तर आदि देखेंगे जिस के लिए पति के रूप में मैं बिलकुल फिट हूं.

अगली सुबह बिना बुलाए सरला मेरे कमरे में आई. मुझे उस से सुन कर बेहद खुशी हुई, ‘‘सर, मैं ने कल चाचाजी, भैयाजी, मामाजी कहा तो ये सब ऐसे देख रहे थे जैसे मैं पागल हूं. आप बताइए, क्या मैं पागल लगती हूं, सर?’’

इस मानसिक रूप से कमजोर लड़की को मैं क्या कहता, सो मैं ने उस के दिमाग के आधार पर समझाया, ‘‘देखो, सरला…चाचा, भैया, मामा लोग लड़कियों को लाड़प्यार में पागल ही कहा करते हैं. तुम्हारे मम्मीपापा भी कई बार तुम्हें ‘पगली कहीं की’ कह देते होंगे.’’

उस की ‘यस सर’ सुनतेसुनते मैं उस के पास आ गया. वह भी अब तक खड़ी हो चुकी थी. अपने को अनियंत्रित होते मैं ने उसे अपने सीने से लगा लिया और वह भी मुझ से चिपक गई, जैसे हम 2 प्रेमी एक लंबे अरसे के बाद मिले हों. हरकत आगे बढ़ी तो मैं ने उस के कंधे भींच कर उस के दोनों गालों पर एक के बाद एक चुंबन की छाप छोड़ दी.

मैं ने उसे जाने को कहा. वह चली गई तो मैं जैसे बेदिल सा हो गया. दिल गया और दर्द रह गया. पहली बार मेरा रोमरोम सिहर उठा, क्योंकि प्रथम बार स्त्रीदेह के स्पर्श की चुभन को अनुभव किया था. जन्मजन्मांतर तक याद रखने लायक प्यार के चुंबनों की छाप से जैसे सारा जहां हिल गया हो. सारे जहां का हिलना मैं ने सरला की देह में होती सिहरन की तरंगों में अनुभव किया.

प्रथम बार मैं ने किसी युवती के लिए अपने दिल में प्रेमज्योति की गरमाहट अनुभव की. काश, यह ज्योति सदा के लिए जल उठे. शायद ऐसी भावनाओं को ही प्यार कहते होंगे? यदि यह सत्य है तो मैं ने इस अद्भुत प्यार को पा लिया है उन पलों में. पहली बार लगा कि मैं अब तक मुर्दा देह था और सरला ने गरम सांसें फूंक कर मुझ में जान डाल दी है.

सरला ने दफ्तर से जाने के पहले मेरी विचारतंद्रा भंग की, ‘‘सर, आज मैं खुश भी हूं और परेशान भी. वह दोपहर पूर्व की घटना मुझ से बारबार कहती है कि मैं आप के 2 चुंबनों का उधार चुका दूं वरना मैं रातभर सो नहीं सकती.’’

मैं मन ही मन बेहद खुश था. यही तो प्यार है, पर इस पगली को कौन समझाए. इसे तो चुंबनों का कर्ज चुकता करना है, नहीं तो वह सो नहीं पाएगी. बस…प्यार हमेशा उधार रखने पर ही मजा देता है पर यह नादान लड़की. बदला चुकाना प्यार नहीं हो सकता. यदि ऐसा हुआ तो मेरी बेचैनी बढ़ेगी और वह निश्ंिचत हो जाएगी अर्थात सिर्फ मेरा प्यार जीवित रहे, यह मुझे गंवारा नहीं है और न ही हालात को.

मैं सरला को निराश नहीं कर सकता था, अत: पूछा, ‘‘सरला, क्या तुम्हें मेरी जरूरत है या एक पुरुष की?’’ और उस के चेहरे पर झलकती मासूमियत को मैं ने बिना उस का उत्तर सुने परखना चाहा. उसे अपने सीने से लगा कर कस कर भींच लिया, ‘‘सरला, इस रजनीश के लिए तुम अपनेआप को समर्पित कर दो. यही प्यार की सनक है. 2 जिंदा देहों के स्पर्श की सनक.’’

और वह भिंचती गई. चुंबनों का कौन कितना कर्जदार रहा, किस ने कितने उधार किए, कुछ होश नहीं था. शायद कुछ हिसाबकिताब न रख पाना ही प्यार होता है. हां, यही सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘सरला, हम प्यार की झील में कूद पड़े हैं,’’ मैं ने फिर 2 चुंबन ले कर कहा, ‘‘देखो, अब इन चुंबनों को उधार रहने दो, चुकाने की मत सोचना, आज उधार, कल अदायगी. इसे मेरी ओर से, रजनीश की ओर से उपहार समझना और इसे स्वस्थ व जीवंत रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चली गई. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई, अब की बार उस ने ‘रमेशजी’ का नाम नहीं लिया. उस के मुड़ते ही मैं धम्म से कुरसी पर बैठ गया. लगा मेरी देह मुर्दा हो गई. सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, तभी तो कल जिंदादेह हो सकूंगा उस से मिल कर, उस से आत्मसात हो कर, अपने चुंबनों को चुकता पा कर. मैं वादा करता हूं कि अब मैं सरला की सनक के लिए फिर दोबारा मरूंगा, क्योंकि वह अमृत है.

घर से दफ्तर के लिए निकला तो मन पर कल के नशे का सुरूर बना हुआ था. मैं कब कार्यालय पहुंचा, पता ही नहीं चला. हो सकता है कि 2 देहों के आत्मसात होने में स्वभावस्वरूप पृथक हों, परंतु नतीजा तो सिर्फ ‘प्यार’ ही होता है.

आज कार्यालय में सरला नहीं आई. उस की मम्मी आईं. गंभीर समस्या का एहसास कर के मैं सहम ही नहीं गया, अंतर्मन से विक्षिप्त भी हो गया था क्योंकि इस मुर्दादेह को जिंदा करने वाली तो आई ही नहीं. पर उन की बातों से लगा कि यह दूसरा सुख था जो मेरे रोमरोम में प्रवेश कर रहा था जिसे आत्मसंतुष्टि का नाम दिया जा सके तो मैं धन्य हो जाऊं.

‘‘मेरी बेटी आज रात खूब सोई. सुबह उस में जो फुर्ती देखी है उसे देख कर मुझ से रहा नहीं गया. मुझे विवश हो कर तुम्हारे पास आना पड़ा, बेटा. आखिर कैसे-क्या हुआ? दोचार दिनों में ही उस का परिणाम दिखा. काश, वह ऐसी ही रहे, स्थायी रूप से,’’ मांजी स्थिति बता कर चुप हुईं.

‘‘हां, मांजी,’’ मैं प्रसन्नतापूर्वक बोला, ‘‘असल में मैं ने कल दुनियादारी के बारे में खुश व सामान्य रहने के गुर सरला को सिखाए और मैं चाहता हूं कि आप सरला की शादी कर दें.’’

फिर मैं ने अपने पक्ष में उन्हें सबकुछ बताया और वह खुश हुईं.

मैं ने उन की राय जाननी चाही कि वह मुझे अपने दामाद के रूप में किस तरह स्वीकारती हैं. वह हंसते हुए बोलीं, ‘‘मैं जातिवाद से दूर हूं इसलिए मुझे कोई एतराज नहीं है, बेटा. इतना जरूर है कि आप के परिवार में खासतौर से मातापिता राजी हों तो हमें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मांजी, सभी राजी होंगे तभी हम आगे बात बढ़ाएंगे,’’ मैं ने अपनी सहमति दी.

‘‘अच्छा बेटा, मन में एक बात उपजी है कि सरला दिमाग से असामान्य है, यह जान कर भी तुम उस से शादी क्यों करना चाहते हो?’’ मांजी ने अपनी दुविधा को मिटाना चाहा.

‘‘मांजी, इस का कारण तो मैं खुद भी नहीं जानता पर इतना जरूर है कि वह मुझे बेहद पसंद है. अब सवाल यह है कि शादी के बारे में वह मुझे कितना पसंद करती है.’’

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चलते वक्त मुझे व मेरे मातापिता को अगले दिन छुट्टी पर घर बुलाया. मैं जानता हूं कि मेरे मातापिता मेरी पसंद पर आपत्ति नहीं कर सकते. सो आननफानन में शादी तय हुई.

शादी के ठीक 1 सप्ताह पहले मैं और सरला अवकाश पर गए तथा निमंत्रणपत्र भी कार्यालय में सभी को बांट दिए. सब के चेहरे आश्चर्य से भरे थे. सभी खुश भी थे.

विवाह हुआ और 1 माह बाद हम ने साथसाथ कार्यभार ग्रहण किया. हमारा साथसाथ आना व जाना होने से हमें सभी आशीर्वाद देने की नजर से ही देखते.

Valentine’s Special: क्या हैं रिलेशनशिप के मायने

रिलेशनशिप, प्यार, मोहब्बत, चाहत और जाने किनकिन संज्ञाओं से हम दो प्रेमियों के अटूट बंधन को नाम देते हैं. अटूट इसलिए क्योंकि रिलेशनशिप का अर्थ ही है एकदूसरे से कभी न टूटने वाले रिश्ते की ओर कदम बढ़ाना.

हालांकि रिलेशनशिप के माने बदल रहे हैं, परंतु जिस रिलेशनशिप के विषय में हम बात कर रहे हैं वह 2 लोगों के बीच में आपसी प्रेम है जिस के वे उम्रभर साक्षी रहना चाहते हैं.

किसी के साथ रिलेशनशिप में आने का एहसास ही इतना सुहाना होता है कि इस में व्यक्ति अकसर डूबने लगते हैं और अपने जीवन का लक्ष्य ही इस रिलेशनशिप को बना लेते हैं जोकि सही नहीं है.

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जीवन में प्रेम के अलावा भी बहुत चीजें हैं जिन्हें समझना आवश्यक है. आजकल युवा रिलेशनशिप में आ तो जाते है परंतु कहीं न कहीं वे इस की गहराई को समझने में असमर्थ होते हैं. ऐसा नहीं है कि युवा प्रेम नहीं करते या उन का प्रेम गलत व झूठा है, परंतु प्रेम की परिभाषा प्रेम और प्रेमी के साथ जीना है. युवा 30-40 सालों का साथ तो चाहते हैं परंतु 3-4 साल भी साथ नहीं रह पाते.

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एक अच्छी रिलेशनशिप मानसिक सूकुन देती है. अच्छी रिलेशनशिप वह रिलेशनशिप है जिस में युवा केवल प्रेम के सागर में गोते नहीं लगाते बल्कि एकदूसरे के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं, एकदूसरे के प्रेरणास्रोत बनते हैं, एकदूसरे के हमदर्द बनते हैं. प्रेम करना और किसी का प्रेम बनना एक खास एहसास है जिस का पूरापूरा फायदा प्रेमियों को अपने रिलेशनशिप को बेहतर बनाने के लिए उठाना चाहिए.

रिलेशनशिप और साझेदारी

रिलेशनशिप सचमुच एक खुशहाल जीवन की निशानी है. एक अच्छी रिलेशनशिप एक अच्छी साझेदारी का परिणाम है. व्यक्ति रिलेशनशिप में अकसर खुश और चहकता रहता है. और छोटीमोटी तारीफों से सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. यह सब से अच्छा रिश्ता इसलिए होता है क्योंकि यह आप को बहुतकुछ सिखाता है.

अच्छे रिलेशनशिप का अर्थ ही यह है कि वह आप की रोजमर्रा की जिंदगी में ढल जाए, एकदूसरे को आगे बढ़ना सिखाए, मुश्किलों से निकाले.

युवा अकसर रिलेशनशिप को केवल शारीरिक संबंधों की दृष्टि से देखते हैं परंतु रिलेशनशिप का अर्थ सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है, बल्कि मानसिक और वैयक्तिक संबंध भी है.

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Kisan Andolan: रिहाना ट्विटर विवाद- किसका बहाना, किस पर निशाना?  

रिहाना के एक ट्वीट ने भारतीय समाज की वह छवि सामने ला दी है, जो लागातार धर्मांध और महिला विरोधियों द्वारा छुपाई जाती रही है. जो कहती है कि अगर आप एक राय अथवा ओपिनियन देने वाली महिला हैं तो आप की राय पर चर्चा से ज्यादा माहौल इस बात पर गर्म होगा कि आप ने यह कहने की हिम्मत कैसे कर दी. चर्चा का बिंदु आप की राय से अधिक आप का चरित्र होगा, जिसे लगातार तारतार किया जाएगा. फिर शुरू हो जाएगी वह सारी चारित्रिक छींटाकसी जिस के आधार पर सालोंसाल तक महिलाओं के आजाद खयाल कुतरे गए. उन्हें दासी बनाया गया, ना सिर्फ उन की आजादी को रोका गया, साथ ही भोग मात्र की वस्तु समझा गया.

पिछले ढाई महीने से दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों व विभिन्न राज्यों में किसानों का आन्दोलन लगातार चल रहा है. किसानों की मुख्य मांग उन तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के लिए है जिसे सरकार ने बिना किसानों के रायमशवरा के आननफानन में पास करा दिया. और जब किसानों ने कानूनों के खिलाफ आन्दोलन किया तो उन्हें आतंकवादी, गद्दार, खालिस्तानी, माओवादी, अराजक अब “विदेशी षडयंत्र” कहा जाने लगा है.

rihanna kisan andolan controversy

मौजूदा सरकार नेदिल्ली को ठीक राजामहाराज व मुगल स्टाइल में किलेबंद कर दिया है. 10-12 लेयर की चारों तरफ से स्थाई बेरिकेडिंग, सीमेंट कंक्रीट की मजबूत दीवार, बड़ेबड़े भारीभरकम कंटेनर, कंटीली तारें, सड़कों पर चौड़ी खाई और फिर शरीर को भेद डालने वाले लंबीलंबी कीलें गाढ़ दीहैं.शरीर को भेदने (ना कि ट्रेक्टर के टायर फाड़ने) का अर्थात स्पष्ट है कि अगर किसान बेरिकेड पार करते हैं तो वह अपनी मौत को बुलावा देते हैं.

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दिल्ली के बोर्डर अब देश के अंतरराष्ट्रीय सीमाओं सी प्रतीत होने लगे हैं. कश्मीरनुमा हालात बने दिल्ली के सरहदों में सरकार द्वारालंबे समय से इन्टरनेट ब्लोकेज कर दिया गया है. जो अपनेआप में अनडेमोक्रेटिक और अथोरिटेरीयन प्रक्रिया का हिस्सा है.इसी का जिक्र करते हुए बार्बाडियन अमेरिकन मशहूर पौप स्टार रिहाना ने 2 तारिख को अपने ट्विट्टर से एक ट्वीट किया. जिस में उन्होंने सीएनएन द्वारा धरनास्थलों पर सरकार द्वारा इन्टरनेट सेवा बंद करने को लेकर लिखे एक आर्टिकल का जिक्र करते हुए लिखा कि, “हम इस के बारे में क्यों नहीं बात कर रहे हैं?

यह ट्वीट रिहाना ने सरकार के उन कदमों की तरफ इशारा करते हुए लिखा था जिस के तहत सरकार द्वारा लोकतान्त्रिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है. इस में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि मात्र 14 घंटों के भीतर रिहाना के ट्वीट को लभगग 2,15,000 रिट्वीट मिले औरसाढ़े 5 लाख लाइक मिल गए. जिस के बाद विदेशों में नामी हस्तियों ने इस पर ट्वीट करना शुरू किया. जो लगातार बढ़ रहे हैं.

रिहाना के इस ट्वीट के बाद कई विदेशी हस्तीयों के ट्वीट व रिट्वीट भारतीय किसानों के पक्ष में आने लगे. जिस में पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थानबर्ग, व्लोगर-मोडेल अमांडा सरनी, बैरन डेविस, कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस, पूर्व एडल्ट स्टार मिया खलीफा इत्यादि थे. यहां तक कि अमेरिकी फुटबालर जूजू स्मिथ ने ट्विटर से भारतीय किसानों की मदद के लिए मेडिकल सपोर्ट के लिए 10 हजार डौलर देने का फैसला किया.

18 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट के माध्यम से कहा, “हम भारत के किसानों के आन्दोलन के समर्थन में हैं.” जिस के बाद दिल्ली पुलिस ने सेक्शन 120बी और 153-ए के तहत ग्रेटा व अन्य पर मुकदमा दर्ज किया. दिल्ली पुलिस की इस कार्यवाही के बाद ग्रेटा ने और मजबूती से किसान आन्दोलन को अपना समर्थन दिया और ट्वीट किया. वहीँ मीना हैरिस ने भी किसानों के पक्ष में एक के बाद एक कई ट्वीट लगातार किए.

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Rihanna tweet controvecry

किन्तु रिहाना के इस एक ट्वीट के बाद मानो भाजपा सरकार की चूलें हिलने लगीं, सरकार की तरफ से बिना रिहाना व अन्य नाम लिए व भाजपा के बड़ेबड़े नेताओं द्वारा सीधे तौर पर इसे देश को तोड़ने व बदनाम करने के षडयंत्र का हिस्सा बताया गया. सरकारी महकमे से मिनिस्ट्री औफ़ एक्सटर्नल अफैर्स के स्पोकपर्सन अनुराग श्रीवास्तव ने ट्वीट करते हुए एक एडवाइजरी ही जारी कर दी, फिर उस के बाद सारा कैबिनेट ट्विटरट्विटर खेलने लगा. ध्यान हो तो यह वही कैबिनेट है जिस के अड़ियल रवैये के चलते ही यह गतिरोध बना हुआ है. इस में फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण, होम मिनिस्टर अमित शाह, विदेश मंत्री जय शंकर, किरण रिजूजू सरीखे लम्बे नामों की फेहरिस्त शामिल है. भारत देश के लिएइस से बड़ी शर्मिंदगी क्या हो सकती है कि किसी विदेशी सेलेब्रिटी के एक ट्वीट को इग्नोर अथवा उस की राय को स्वीकृत करने की बजायपूरी सरकार ही उस के खिलाफट्विटर कैम्पैन चलाने लग गई.

ठीक इसी कड़ी में सरकार द्वारा प्रायोजित इस ट्विटर कैम्पैन में भारतीय सेलेब्रिटी और कुछ स्पोर्टस्टार द्वारा एक तय सेट पैटर्न से हैशटेग इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा और हैशटेग इंडिया टूगेदर नाम से ट्विटर ट्रेंड किया गया/करवाया गया. अमांडा ने भारत के इन बौलीवुड स्टार पर तीखी टिप्पणी की. उन्होंने लिखा, “इन लोगों (स्टार) को किस ने हायर किया इसे प्रोपेगेंडा कहने के लिए? ओह्.. कमओन, कम से कम ईमानदार तो बनो.”

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ध्यान देने वाली बात यह कि इन में से लगभग वह हस्तियां व नेता हैं जिन्होंने मोदी द्वारा ट्रंप के लिए किए गए चुनाव प्रचार का कभी विरोध नहीं किया. अमेरिका के चुनाव में भारतीय प्रधानमंत्री के दखल की कभी भी आलोचना नहीं की. पिछले ढाई महीनों से कड़कड़ाती ठंड में लगातार चलते आ रहे किसान आन्दोलन पर एक ट्वीट तक नहीं किया.उन के प्रति अपनी सहानुभूती तक व्यक्त नहीं की. यह वही लोग हैं जिन्होंने इस जनआन्दोलन के दौरान 100 से ऊपर किसानों के शहीद हो जाने पर एक चूं तक नहीं की. फिर एकाएक इन का यह ट्वीट किसी सरकारी मोर्चेबंदी से कम नहीं लगते.सरकार ने असल बात को बड़े चालाकी से इन सेलेब्रिटी और अंधभक्तों द्वारा घुमादिया. इसे ‘राष्ट काअपमान, ‘बाहरी षडयंत्र’ और ‘आतंरिक दखल’ कह कर पूरा मसला ही घुमा दिया, जबकी मुख्य मसला सरकार के अनडेमोक्रेटिक प्रैक्टिसको रोके जाने का है.

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समस्या यह है कि भारत जैसे अद्भुत देश में मुददे का मवाद बनने में अधिक समय नहीं लगता. ठीक यही चीजरिहाना के ट्वीट के बाद शुरू हो गया.शुरुआत सरकार और भाजपा नेताओं के गैरजरुरी और अनौखे ट्वीट से हुई, जो भक्तों तक पहुंच कर पूरी गंदगी पर उतर आई. सोशल मीडिया पर आन्तरिक मामलों पर दखल ना देने के अलावा रिहाना व अन्य विदेशी हस्तियों के खिलाफ ना सिर्फ धड़ाधड़ ट्रोलिंग शुरू हो गई बल्कि उस ट्रोलिंग में मर्दवादी अहंकार, अश्लीलता, नस्लवादी टिप्पणियां भरपूर देखी गईं.

इस का उदाहरण इसी से लगाया जा सकता है कि रिहाना के ट्वीट के कुछ घंटों बाद ही सिंगर क्रिस ब्राउन का नाम ट्रेंड किया जाने लगा.कई भारतीय उज्जड भक्तों ने अपनी डीपी चेंज की और क्रिस ब्राउन की फोटो लगा कर कहा कि “हम आप (क्रिस ब्राउन) से माफी चाहते हैं, हम ने आप को गलत समझा.” इन ट्वीट में वे ट्वीट भी हैं जिन में क्रिस ब्राउन द्वारा रिहाना को फिजिकल असौल्ट और हरैस करने के वाक्या को सही ठहराया गया. ट्वीट कर के कहा जाने लगा की, “रिहाना पर किए असौल्ट के लिए दिल से सम्मान.”, “रिस्पेक्ट क्रिस ब्राउन”, “क्रिस ब्राउन की याद आ रही है”, क्रिस ब्राउन ने कुछ गलत नहीं किया.”

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यह एक प्रकार से बेशर्मी की हद है कि जिस महिला के साथ फिजिकल असौल्ट किया गया उस का विरोध करने के लिए, उस के अपराधी व अपराध के समर्थन में ट्रेंड चलाया गया.इस मानसिकता की जड़ ठीक वहीं से पैदा हो रही है जिस ने कठुआ कांड की 8 वर्षीय रेप पीड़िता के खिलाफ अपराधियों का समर्थन किया.

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शर्मनाक बात तो यह कि रिहाना की उस फोटो को बारबार शेयर किया गया जिस में उन का चेहरा फिजिकल असौल्ट से बुरी तरह चोटिल था, इस फोटो को शेयर करते हुए कहा जाने लगा कि “यह (रिहाना) इस से बुरे सजा की हक़दार है. इस के साथ इस से बढ़ कर और होना चाहिए था.”

ध्यान देने वाली बात यह कि इन में से कई ट्रोलर्स सुनियोजित तरीके से एक ही तरह का ट्रेंड करते दिखाई दिए. कुछ ट्विटर हैंडल बिना फोटो और असत्यापित नाम के थे. जिसे देख कर कोई भी जान सकता है कि एक प्रकार से सुनियोजित हमला सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है. भाजपा आईटीसेल लगातार इस प्रक्रिया में भाजपा समर्थन के साथ उन्मुक्त हो कर इस कार्यवाही को अंजाम देता रहा.भारतीय न्यूज़चैनलों से ले कर दक्षिणपंथी वेबसाईटों में रिहाना के चरित्र पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष निशाना साधा जाने लगा.उस के पुराने ट्वीट खंगाले जाने लगे जिस में वह गालीनुमा भाषा का इस्तेमाल कर रही है. उन की अर्धनग्न तसवीरों को जानबूझ कर दिखाया जाने लगा ताकि तथाकथित भारतीय संस्कृति में चरित्रहीन दिखाई जा सके.

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दिलचस्प यह कि कई लोग रिहाना की जगह बेयोंस की फोटो लगा कर मूर्खता से ट्रोल करने लगे.रिहाना को स्टेज पर नाचने वाली ‘नचनिया’ कहा जाने लगा. सोशल मीडिया पर कहा जाने लगा कि,“रिहाना अब नाचने लायक नहीं रही.”, “रिहाना बार डांसर है.” यह ठीक उसी प्रकार के ट्वीट रहे जैसेकांग्रेस की पूर्व प्रेसिडेंट सोंनिया गांधी को बदनाम करने के लिए उन्हें ‘इटालियन बार डांसर’ कहा जाता रहा है. कुछ तरह के ट्वीट्स में उन्हें ‘नाईट गर्ल’ कहा गया.

शर्मनाक बात तो यह कि रिहाना की उस फोटो को बारबार शेयर किया गया जिस में उन का चेहरा फि

ऐसे ही एक नवीन ठाकुर जो खुद को “राष्ट्रवादी” बताते हैं, वह भाजपा नेता कपिल मिश्रा के ट्वीट के सिमिलर ट्वीट में लिखते हैं, “आन्दोलन शुरू हुआ मंडियों पे, अब खत्म होगा……पे.” ऐसे ही एक व्यक्ति आनंद पांडे हैं जो रिहाना को टेग करते हुए लिखते हैं, “मोहतरमा चमड़ी उखाड़ देंगे, अपनी गंदगी अपने साथ रखो, नहीं तो जमीन में गाढ़ देंगे. अपने कपड़े संभाल कर रखो.” वहीँ एक अन्य लिखते हैं, “बार डांसर से शुरू हुआ आंदोलन पोर्न स्टार तक जा पहुंचा है.” ऐसे हीअभिनाश मिश्रा इन हस्तियों पर अभद्र टिप्पणी कर अश्लील मीम शेयर करते हैं. यह कोई एकआध नहीं बल्कि इस तरह की ट्रोलर की फौज इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा और यूनाइटेड इंडिया के हैशटेग से लगातार चलाती रही जिस में महिलाओं के राय पर विचार से अधिक उन के शरीर, चरित्र, रंग इत्यादि पर निशाना साधा गया. खास बात यह कि इन लोगों का जुडाव नहीं न कहीं भाजपा से या उस की आईसेल से आसानी से देखा जा सकता है. कई ट्रोल तो हिन्दूवादी संगठनों द्वारा सुनियोजित तौर से किए गए. किन्तु इस फैर में भारतीय हस्तियों का फंसना दुर्भाग्यपूर्ण है.

इस से सीधासीधा समझा जा सकता है कि ना तो सरकार के पास रिहाना के ट्वीट का तार्किक जवाब था और ना ही उन हैटर्स के पास था जो लगातार अश्लील व महिला विरोधी ट्वीट कर रहे थे.

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कई ट्वीट में उन्हें ‘बेवकूफ़’शब्द से ट्वीट किया गया. यह उन के ओपिनियन कोबिना तर्क के ख़ारिज करने जैसा था.यह चीजें आमतौर पर घरपरिवारों में आसानी से देखने को मिल ही जाती हैं, जहां महिलाओं की राय को समझने, चिंतन करने की बजाय उसे पुरुष सदस्यों द्वारा सिरे से ख़ारिज कर दिया जाता है. ठीक इसी प्रकार ट्विटर पर मशहूर हस्तीयों और ट्रोलर्स द्वारा ऐसे ही एक जैसा मिलताजुलता ट्रेंड रिहाना और बाकी लोगों के लिए सरकार के समर्थन में किया गया. ध्यान देने वाली बात यह कि यही वह सेलेबस है जो अमेरिका में चल रहे ‘ब्लैक लिव्स मेटर’ पर ट्वीट करते पाए गए.हाल यह है कि अब रिहाना समेत ग्रेटा इत्यादि लोगों का पुतला और पोस्टर कट्टर हिन्दू संगठनों द्वारा जलाया जा रहा है,यह हिन्दू संगठन भाजपा द्वारा पालेपौसे गए हैं जिन का स्वरुप जातिवादी, सांप्रदायिक और महिला विरोधी मानसिकता से ओतप्रोत है.

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मसलन जरुरी यह था कि देशवासियों और खास कर सेलेब्रिटी द्वारा यह सोचा जाना चाहिए कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आई कि विदेशों से लोगों को किसान आन्दोलन में समर्थन देना पड़ा? क्यों उन्हें ट्वीट करना पड़ा? आखिर सरकार इतने महीनों से हमारे अन्नदाताओं की समस्याओं का निपटारा क्यों नहीं कर पा रही? आखिर क्यों दिल्ली को किलेबंदी में तब्दील किया गया है? आखिर क्यों देश का किसान सड़कों पर आने को मजबूर हुआ है? आखिर क्यों निर्दोष पत्रकारों को बेबुनियाद मामलों में फंसाया जा रहा है?किन्तु मौजूदा स्थिति को देख कर सच तो यह लगता है कि यहां की शहरी और वाइट कौलर तबके की रीढ़ पूरी तरह से सरकार के लिए झुक चुकी है. वे सही को सही और गलत को गलत कहने लायक नहीं रह गए हैं.

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गौरतलब है कि रिहाना ने भारत के किसानों के संदर्भ में ट्विटर पर अपनी बात रखी. भारत में रहने वाले सवर्ण लोगों को उन की यह बात हजम नहीं हुई. क्यों नहीं हुई?सीधा सा कारण यह कि स्वर्ण समाज का एक बड़ा हिस्सा हमेशा से मानता रहा है कि विदेशी या पाश्चात्य संस्कृति भारत के लिए ठीक नहीं है. वहां के विचारों, सभ्यता और रायमशवरों की भारत में कोई जगह नहीं है. ठीक भाजपा जो स्वर्ण समाज की अगुवाई करती आई है वह भी इसी तौर पर कार्यवाहियों को अंजाम देती रही है. इन का मानना है कि पश्चिमी देशों की महिलाओं को हद से ज्यादा आजादी मिली हुई है. वहां महिलाएं पुरुषों की बराबरी रखने में अग्रणी हैं. यही कारण है कि यह लोग जब  देखो भारतीय संस्कृति की दुहाई देते फिरते हैं, और यह इस मामले मने भी दिखा जहां रिहाना को बहाना बना एक सुर में पुरजोर तरीके से तमाम भाजपा पार्टी और हिंदूवादी दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा यह कैम्पैन चलाया गया.

इस कैम्पैन के माध्यम से ना सिर्फ किसान आन्दोलन को विदेशी समर्थन मिलने से रोकने का प्रयत्न किया गया बल्कि देश में उठ रही आवाजों को भी संदेश देने की कोशिश की गई. साथ ही सरकार के पास किसानों के आन्दोलन को गलत ठहराने की सारी देशी वजहें खत्म हो गई तो यह “विदेशी षडयंत्र” एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

आज देश की स्थिति यह है कि सरकारजब चाहे किसी भी चीज को कोई भी षडयंत्र कह कर देश को लगातार मुर्ख बना रही है. जबकि वह खुद किसानों के खिलाफ नए प्रकार का षडयंत्र खड़ा खड़ा कर रही हैऔर पढ़ालिखा तबका जानेअनजाने मुर्ख बन भी रहा है, और देश के लोकतंत्र के ताबूत में दिल्ली बौर्डरों के इर्दगिर्द लगाईं कीलों को गाढ रहा है. यह तबका न सिर्फ अफवाह और भ्रम में सरकार का साथ दे रहा है बल्कि समाज में ऐसे विचार का साथ भी दे रहा है जो न सिर्फ किसान विरोधी है बल्कि दलित, अल्पसंख्यक और महिला विरोधी भी है.

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कौन है रिहाना

रिहाना का जन्म फरवरी 1988 में हुआ था. रिहाना का पूरा नाम रौबिन रिहाना फेंटी है. सेंट माइकल में जन्मी व ब्रिज टाउन में पली बढ़ी रिहाना ने अपने कैरियर की शुरुआत साल 2005 में सिंगर के तौर पर की. उन्होंने शुरुआत में 2 म्यूजिक एल्बम जिन का नाम ‘म्युजिक ऑफ़ द सन’- 2005 और ‘अ गर्ल लाइक मी’- 2006 में रिलीज किया.

रिहाना को ‘अम्ब्रेला’ गाने के लिए ग्रेमी अवार्ड मिल चुका है. रिहाना को “ब्लैक मडोना” के नाम से भी जाना जाता है.रिहाना अपने यंग एज में बौब मारले के गानों से प्रभावित थी.रिहाना 24 चैरिटी और सोशल काउज फाउंडेशन को सपोर्ट करती है. जिन में मुख्य नाम यूनिसेफ, सेफ द चिल्ड्रेन, अल्जाईमर एसोसिएशन, राजिंग मलावी व अन्य है.

रिहाना की अपनी अपना भी फाउंडेशन है जिस का नाम ‘क्लारा लीओनल फाउंडेशन’ है. सीएलएफ ने 5 मिलियन विभिन्न आर्गेनाईजेशन के जरिए अलगअलग देशों में कोविड-19 से लड़ने के लिए चैरिटी की. जिन में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ‘डायरेक्ट रिलीफ पार्टनर इन हेल्थ’भी शामिल था. इस के अलावा रिहाना की होम कंट्री बार्बाडोज में कोविड-19 से लड़ने के लिए 7 लाख डॉलर की आर्थिक मदद की सिर्फ वेंटिलेटर खरीदने के लिए.

रिहाना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ट्विटर पर रिहाना के लगभग 101 मिलियन फोलोवर्स हैं और जो ट्विटर पर इस समय सब से ज्याद फोलो किये जाने वाले स्टार में से चौथे पायदान पर हैं. ध्यान देने वाली बात यह कि इस लिस्ट में मोदी लगभग 63 मिलियन के साथ 11वें पायदान पर हैं.

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  • रिहाना-क्रिस ब्राउन विवाद

8 फ़रवरी 2009 को 51वे ग्रेमी अवार्ड सेरेमनी से ठीक पहले रिहाना की परफोर्मेंस रद हो गई. कारण था उस समय उन के बौयफ्रेंड क्रिस ब्राउन (जो खुद भी एक सिंगर हैं) द्वारा उन के साथ फिजिकल असौल्ट किया गया. जिन से में रिहाना को ब्राउन के द्वारा बुरी तरह से मारपीट की गई. जिस के चलते उन के शरीर में गहरे चोटों के निशान बन गए थे.

इस खबर ने रातोंरात आग पकड़ ली.पुलिस स्टेशन से रिहाना के घायल चेहरे की तस्वीर रातोंरत वायरल हो गई थी. ‘स्टोपराजी’ नाम की संस्था ने रिहाना का फिसिकल असौल्ट का केस लड़ा. 22 जून 2009 को ब्राउन को इस फिसिकल असौल्ट के लिए दोषी घोषित किए गए. ब्राउन को सजा के तौर पर 5 साल के लिए रिहाना से 50 यार्ड की दूरी बनाए रखने की सजा मिली, इस के साथसाथ 1400 घंटों के लिए लेबर ओरिएंटेड सजा सुनाई गई.

2017 में रिलीज़ हुई एक डोक्युमेंट्री, क्रिस ब्राउन : वेलकम टू माय लाइफ, में क्रिस ब्राउन ने अपने गलती फिर से पब्लिकली स्वीकार की थी. जिस में उन्होंने खुद को उस घटना पर “मोंस्टर” बताया था.उन्होंने कहा, “मुझे याद है वो मुझे लात मारने की कोशिश कर रही थी लेकिन मैं ने बंद मुट्ठी से जोर से उस के होंट पर वार किया. जिस से उस का होंट बुरी तरह फट गया. मैं ने जब देखा तो मैं खुद हैरान रह गया. मुझे महसूस हुआ कि मैं ने ऐसा क्यों किया?”

जिस घटना को खुद क्रिस ब्राउन गिल्ट फील करते हैं उस घटना को जानबूझ कर कुरेद कर रिहाना को ट्रोलर द्वारा तंग करने की कोशिश की गई.

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