लेखक-रोहित और शाहनवाज

26 जनवरी का दिन भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन है. इस दिन की अपनेआप में ऐतिहासिक भूमिका है जिसे हर वर्ष याद रखा जाता है. इस दिन की एहमियत देश के संविधान से है. 72 साल पहले यह वही दिन था जब देश में संविधान लागू किया गया. संविधान यानी देश का वह ग्रन्थ जो सर्वोपरी है, सर्वमान्य है और हर नागरिक के लिए है. नागरिक वह जो इस देश की उन्नति में किसी न किसी तरह से अपनी भूमिका अदा कर रहा है. फिर चाहे वह सीमा पर डटा जवान हो या खेतखलिहानों, फेक्टरीकारखानों में मजदूरकिसान हो. यह दिन सभी के लिए आजादी को गढ़ने और अपनी आजादी को बचाए रखने की पुनर्व्याख्या के तौर पर है.किसानों ने अपनी परेड निकाल यह साबित कर दिया कि असली गणतंत्र दिवस जनता के लिए और जनता के द्वारा किया जाने वाला समारोह है.यही कारण भी था कि किसानों ने ‘ट्रेक्टर परेड’ कर गणतंत्र के इस दिन को रिडिफाइन किया.

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इस साल 26 जनवरी कादिनअब इतिहास में लिखी जाने वाली वह परिघटना बन गई है जिस के होने के बाद अब जायज और नाजायज दोतरफा एंगल हमेशा तलाशे जाते रहेंगे. पर,किन्तु, परंतु, अगर, मगर के साथ यह दिन आगे आने वाले लम्बे समय तक याद रखा जाएगा.इस दिन की याद के केंद्र में हर साल चलने वाली सालाना राजपथ परेड नहीं होगी, ना ही हर साल आने वाले विदेशी मेहमान होंगे बल्कि वेआंदोलित किसान रहेंगेजो पिछले कुछ महीने से लगातार अपनी मांगो को ले कर हाड़ कंपाती ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर डंटे हुएथे. वे किसान जो अपने हिस्से की आजादी को बचाए रखने की जद में बैठे हुए थे कि सरकार उन की मांगे मान जाए.गणतंत्र दिवस के दिन किसानों द्वारा निकाली गई समानांतर परेड सीधासीधा सरकार को चुनौती थी कि वे अपनी मांगों को ले कर कितने अडिग हैं.

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