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आत्ममंथन
अब मुझे नौकरी मिल गई थी, मैं नौकरी के साथ-साथ अपने परिवार को भी सही टाइम दे पा रही थी.
भाग - 1
एक तो प्रीतम ने अपनी बीवी की नौकरी छुड़वा दी, उस पर पूरा वेतन भी उसे न देता. ऐसे में हाथ तंग रहने से वह झुंझला उठती. पर जब असलियत सामने आई तो उसे लगा कि प्रीतम सचमुच कितना अच्छा है.
भाग - 2
शशि ने ताना देते हुए कहा चलो अच्छा है तुम्हारे पति अच्छे पोस्ट पर हैं.
भाग - 3
टेबल पर प्लेट सजाते हुए लगा कि यह भी तो एक काम है. दूसरे के लिए कुछ करने में भी तो एक सुख है. यह चाय की केतली में चाय डाल कर रखना
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