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सही जगह से करें एमबीए

लेखक-विजय प्रकाश श्रीवास्तव 

ग्रेजुएशन के बाद अधिकतर छात्रों की ख्वाहिश होती है कि वे ऐसा प्रोफैशनल कोर्स करें जिस से उन का भविष्य ऊंचाइयां छुए. बिसनैस लाइन से जुड़े एमबीए कोर्स की भारी डिमांड रहती है. ऐसे में सभी के मन में सब से पहला उमड़ने वाला सवाल यह होता है कि यह कोर्स कहां से करें? तकरीबन 2 दशकों पहले तक हमारे देश के युवाओं में से बहुतेरों की ख्वाहिश इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की होती थी और उस में सब से अधिक मांग सूचना प्रौद्योगिकी या सौफ्टवेयर इंजीनयरिंग के पाठ्यक्रमों की थी. कारण यह था कि देश में मौजूद तमाम देशीविदेशी आईटी कंपनियां बड़े पैमाने पर ऐसे इंजीनियरों की भरती कर रही थीं. देश में इंजीनियरों की मांग अभी भी बनी हुई है,

पर इस बीच भारतीय किशोरों व युवाओं में मैनेजमैंट का कोर्स करने का क्रेज ज्यादा है. कारण चाहे जो भी हो, पर आज इंजीनयरिंग तथा विज्ञान आदि विषयों से ग्रेजुएट एमई, एमटेक या एमएससी करने के बजाय एमबीए करने को वरीयता दे रहे हैं. इस मांग को देखते हुए ढेरों नए प्रबंधन संस्थान खुल गए हैं. प्रबंधन की पढ़ाई करने के इच्छुक युवाओं की पहली पसंद आईआईएम होते हैं. आईआईएम का मतलब इंडियन इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमैंट से है. पहले देश में गिनेचुने आईआईएम हुआ करते थे, अहमदाबाद, कोलकाता, बेंगलुरु आदि. कई नए आईआईएम खुलने के बाद इन की संख्या 20 हो चुकी है. फिर भी इन में सीमित संख्या में ही लोगों को प्रवेश मिल पाता है.

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आईआईएम के बाद नामी प्रबंधन संस्थानों की एक दूसरी श्रेणी है जिन की डिग्री की कौर्पोरेट जगत में काफी सम्मान है. इन में भी कुल मिला कर सीटें मांग से कम हैं और आवेदन करने वालों में से केवल कुछ को ही प्रवेश मिल पाता है. इस के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में फैले सैकड़ों संस्थान हैं जिन में से कुछ औल इंडिया काउंसिल फौर टैक्निकल एजुकेशन, जो देश में तकनीकी शिक्षा हेतु विनियामक है, द्वारा निर्धारित शर्तों को मुश्किल से पूरा करते हैं. अपने सभी प्रयासों के बावजूद यदि आप देश के किसी शीर्ष बिजनैस स्कूल में प्रवेश नहीं पा सके हैं और तब भी प्रबंधन की पढ़ाई करना चाहते हैं तो आप को इस हेतु संस्थान के चयन में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए. एमबीए पाठ्यक्रमों में प्रवेश के नियम कड़े रहे हैं. पहले लिखित परीक्षा होती है जो अब ज्यादातर औनलाइन होने लगी है.

इस के बाद इंटरव्यू तथा गु्रप डिस्कशन होता है. तब जा कर चुने गए लोगों की सूची बनती है. लिखित परीक्षा में सब से पहला नाम कौमन ऐडमिशन टैस्ट का है जो कैट के नाम से ज्यादा प्रचलित है. कैट मुख्यतया आईआईएम में प्रवेश के लिए है पर कैट स्कोर को देश के तमाम बिजनैस स्कूल स्वीकार करते हैं. इस के अलावा कई और मैनेजमैंट प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं. उन में से कुछ केवल एक संस्था में प्रवेश के लिए होती हैं, जबकि कुछ के स्कोर विभिन्न संस्थानों द्वारा स्वीकार किए जाते हैं. आप ने मैनेजमैंट की कोई प्रवेश परीक्षा दी हो, आप को जानेअनजाने संस्थानों से प्रवेश के प्रस्ताव मिलने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए. चूंकि अब देश में प्रबंधन संस्थानों की आपूर्ति मांग से कहीं ज्यादा हो गई है, बहुत से बिजनैस स्कूल उन के यहां उपलब्ध रिक्तियों के अनुसार विद्यार्थी जुटा पाने में कठिनाई महसूस करते हैं तथा सीटें भरने के लिए अवांछनीय कदम भी उठाया करते हैं. पुणे, नोएडा, हैदराबाद में बिजनैस स्कूलों की भरमार तो है ही, प्रबंधन की शिक्षा की बढ़ती लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए ऐसे संस्थान मेरठ, लुधियाना आदि जैसी जगहों में भी खुल चुके हैं.

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सरकार द्वारा स्थापित संस्थाओं को छोड़ दें तो और जगहों पर प्रबंधन शिक्षा का खर्च काफी ज्यादा है. तमाम विद्यार्थियों को इस के लिए बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों से एजुकेशन लोन लेना पड़ता है. एमबीए करने में युवाओं को जीवन के 2 कीमती वर्ष देने होते हैं. पैसे और समय की दृष्टि से यह एक बड़ा निवेश है. इस निवेश से बड़ी उम्मीदें जुड़ी होती हैं. सो, इस निवेश को करने में आप को काफी सावधानी बरतनी चाहिए और एमबीए ऐसे बिजनैस स्कूल से करना चाहिए जो इस निवेश के लिए योग्य हो. ऐसे बिजनैस स्कूल से बचें जो आप को किसी प्रवेश परीक्षा के स्कोर के बगैर या इंटरव्यू या गु्रप डिस्कशन, जो सामान्यतया चयन प्रक्रिया के आवश्यक अंग माने जाते हैं, लिए बिना प्रवेश का आश्वासन दे रहे हों. यहां सम?ा लें कि संस्था आप पर कोई उपकार नहीं कर रही बल्कि आप को प्रवेश लेने के लिए लुभा रही है. अच्छा बिजनैस स्कूल वह भी नहीं है जो आप को मैनेजमैंट की किसी विशेष शाखा (जैसे मार्केटिंग मैनेजमैंट आदि) में प्रवेश लेने हेतु प्रभावित करे. मैनेजमैंट के विद्यार्थियों को एक स्पेशियलाइजेशन चुनना होता है. पर यह चयन आप का होना चाहिए, संस्था का नहीं. कोई संस्था आप को शुल्क में छूट की पेशकश करती है या इस में सौदेबाजी करती है तो उसे छोड़ देना ही बेहतर होगा.

जहां आप से प्रवेश देने के बदले बिल्डिंग या विस्तार योजनाओं के नाम पर डोनेशन मांगा जाए, वहां भी मना कर दें. कई बिजनैस स्कूल अपने विज्ञापनों में बड़ेबड़े दावे करते हैं. उन पर आंख मूंद कर विश्वास न करें. प्लेसमैंट के दावे बढ़ाचढ़ा कर बताना आम है. इसी प्रकार विदेशी संस्थानों से संबंद्धता अर्थात एफिलिएशन का जिक्र किया जाता है. यदि 200-300 विद्यार्थियों में से 1-2 को 18-20 लाख रुपए का सालाना पैकेज मिल जाता है तो इस का मतलब यह नहीं कि सब को ऐसी आस लगा लेनी चाहिए. प्लेसमैंट की गारंटी भी छलावा हो सकती है जिस में विद्यार्थियों को उम्मीद से काफी कम वेतन पर ऐरीगैरी कंपनियों में नियुक्ति के प्रस्ताव थमाए जाते हों.

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इस प्रश्न का उत्तर भी ढूंढ़ना होगा कि ऊपर बताए गए एफिलिएशन की वास्तविकता क्या है? तथा विद्यार्थी के रूप में आप इस से किस प्रकार लाभान्वित होंगे? कुछ पत्रिकाएं तथा वैब पोर्टल समयसमय पर बिजनैस स्कूलों की रेटिंग जारी किया करते हैं. इन रेटिंग में बिलकुल ऊपर के स्थानों पर आईआईएम के नाम होते हैं, इस से रेटिंग प्रामाणिक भले ही लगे, आप को प्रवेश का निर्णय केवल रेटिंग के आधार पर नहीं लेना चाहिए. कई बार बिजनैस स्कूल के विज्ञापनों में रेटिंग मोटे अक्षरों में दर्शाई गई होती है, पर इस रेटिंग के मिलने के मानदंड नहीं बताए गए होते. कुछ मामलों में तो रेटिंग करने वाली संस्था का नाम तक नहीं दिया गया होता. सो, किसी भी बिजनैस स्कूल में प्रवेश लेने से पूर्व रैंकिंग या रेटिंग के उस के दावों की वास्तविकता को सम?ा लें. मुफ्त कंप्यूटर या विदेशयात्रा का आकर्षण दिया जाए, तो भी आप को सम?ा लेना चाहिए कि इन की कीमत उस संस्था को आप के द्वारा दिए गए पैसों से ही वसूल की जाएगी. कई बिजनैस स्कूल पाठ्यक्रम शुल्क थोड़ा कम रखते हैं पर होस्टल व मैस के लिए भारीभरकम रकम वसूलते हैं. सो, खर्चों को पूरा जोड़ कर देखें, न कि इस के किसी एक हिस्से को. कुछ बिजनैस स्कूल शहरों से काफी दूर खोले गए हैं. हो सकता है अपनी बिल्डिंग,

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खुली जगह आदि के कारण बाहर से ये अच्छे लगते हों, पर उन में प्रवेश का निर्णय तभी लें यदि वहां शिक्षा का स्तर ऊंचा हो. बेहतर होगा कि जिस संस्था में प्रवेश लेने के बारे में आप सोच रहे हों, वहां पढ़ाई कर रहे या वहां से पढ़ाई पूरी कर चुके विद्यार्थियों से सीधे जानकारी जुटाएं. सोशल मीडिया तथा इंटरनैट पर भी विद्यार्थियों द्वारा दिए गए रिव्यू पड़े. आप को रिव्यू ध्यान से देखने होंगे क्योंकि इन में से कई वास्तविक न हो कर प्रचार के तौर पर होते हैं. यह जानना भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि कौर्पोरेट जगत तथा सरकारी नौकरियों में 2 वर्ष का पूर्णकालिक अथवा पोस्टग्रैजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमैंट ही मान्य होता है.?

क्वार्टर लाइफ क्राइसिस

बीता साल कितनी आपदाओं भरा रहा, यह किसी से छिपा नहीं है. देश के सभी नागरिक निराशा की स्थिति से गुजरे. देश के युवावर्ग की हालत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि बेरोजगारी से तो वे पहले ही तंग थे, वायरसी लौकडाउन थोपे जाने के चलते उन की हालत अब बद से बदतर हो गई है. अप्रैल 2020 में जारी सीएमआईई यानी सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी की रिपोर्ट के अनुसार, देश में बेरोजगारी दर 23.52 फीसदी थी जो अभी तक की सब से अधिक बेरोजगारी दर है. बेरोजगारी की दर में यह इजाफा बहुत ही चिंताजनक संकेत है. वहीं, यह लेबर मार्केट में मांग की कमी की ओर इशारा करती है.

बात केवल रोजगार की नहीं है. अधिकतर युवा क्वार्टर लाइफ क्राइसिस से गुजर रहे हैं. मालूम हो कि 20 से 30 साल तक की उम्र में आने वाली समस्याओं से जीने की क्षमता में कमी आने को क्वार्टर लाइफ क्राइसिस कहते हैं. युवा जब इन समस्याओं को सहन नहीं कर पाता, वह अकेलापन महसूस करता है, तब खुद को अयोग्य सम? डिप्रैशन में आने लगता है. यह समस्या एक बड़ी चुनौती है. एक शोध के मुताबिक, इस उम्र के 86 प्रतिशत युवा नौकरी, आर्थिक समस्याएं, आपसी संबंध और पारिवारिक समस्याओं से जी रहे हैं. कुल मिला कर एकतिहाई युवा क्वार्टर लाइफ क्राइसिस से जी रहे हैं जो एक बड़ा आंकड़ा है.

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युवाओं को ले कर मोदी सरकार के वादे थोथे साबित हुए. 2014 में लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान  2 करोड़ नौकरियां हर साल देने के वादे के साथ बनी भाजपा सरकार सत्ता में आते ही वादों से मुकर गई. बचीखुची जितनी नौकरियां थीं, वे नोटबंदी और जीएसटी के कारण डूबती अर्थव्यवस्था ने खत्म कर दीं.

स्थिति यह है कि 2019 आतेआते एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिघंटे एक युवा बेरोजगारी के चलते आत्महत्या करने पर मजबूर हुआ और देश 45 साल के सब से अधिक बेरोजगारी दौर से जू?ाता रहा. चिंताजनक यह भी कि बीते वर्ष 2020 में युवाओं को सिर्फ अपना फ्यूचर बनाने की चिंता ही नहीं थी बल्कि उन्हें परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की भी चिंता थी. यह चिंता नौकरियां जाने की थी, नई नौकरियां नहीं निकलने की थी और सब से बड़ी बात, कोई रास्ता न दिखने की थी. किंतु समस्या यह है कि बीते पैंडेमिक साल के बाद मौजूदा समय भी चुनौतियों से भरा है. अभी भी युवाओं के लिए रोशनी की किरण जलती दिख नहीं रही है.

वर्ष 2021 में उम्मीद कुछ अच्छा होने की कर सकते हैं लेकिन सिर्फ उम्मीद भर. आगे की बात वक्त पर छोड़ देना ही बेहतर है.

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दलितों से भेदभाद

आंकड़ेऔर हकीकत दोनों बताते हैं कि दलितों पर क्रूरता और उन से भेदभाव की घटनाओं में कमी आती नहीं दिख रही. यह बात सही है कि संविधानप्रदत्त अधिकार और कानूनी प्रावधान भी जातीय भेदभाव, उत्पीड़न और अन्याय को खत्म करने में बहुत सफल नहीं हो पाते हैं क्योंकि सत्ता राजनीति को संचालित करने वाली शक्तियां उन अधिकारों और दलित जातियों के बीच में बैरियर की तरह बनी रहती हैं. यही वजह है कि आईएएस जैसी सर्वोच्च सिविल सेवा में पहुंच जाने के बाद भी अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को ताने सहने पड़ते हैं, उच्चशिक्षा हासिल करने का सामाजिक दंश ?ोलना होता है, समाज में आर्थिक हैसियत बना लेना एक गंभीर अपराध सम?ा जाता है और उच्च जाति में प्रेम व विवाह जैसी कोशिश तो मौत के मुंह में धकेल सकती है.

हाल ही में मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के एक गांव में दबंगों ने एक जवान दलित की बरात इस वजह से रोक दी कि वह घोड़ी पर ब्याहने जा रहा था. बरात पर पथराव किया गया जिस में कुछ घायल भी हो गए. खैर, जानकारी मिलते ही पुलिस पहुंच गई, मामला शांत कराया और आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. यहां तो मामला नियंत्रण में ले लिया गया लेकिन हर जगह मसला ऐसे शांत नहीं हो पाता. शादी जैसा खुशी का काम अब तनावभरा होने लगा.

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कर्नाटक के रामनगर जिले में पुलिस ने 19 वर्षीय युवती की हत्या के चलते उस के पिता कृष्णप्पा को गिरफ्तार किया. कारण, बेटी का किसी कथित निचली जाति के युवक के साथ प्रेम संबंध चल रहा था. लड़की का किसी गैरजाति युवक से प्रेम करना पिता को पसंद नहीं आया और उस ने लड़की को मौत के घाट उतार दिया. इस से अधिक समस्या इस बात की कि समाज में जातिवाद की मानसिकता इतनी निष्ठुर है कि गांवमहल्ले के लोगों को इस मामले में सबकुछ पता होने के बावजूद हत्यारोपी परिवार के साथ वे सहमत हैं. किसी ने भी इस घटना पर पुलिस के आगे मुंह नहीं खोला. प्यार कुंडली देख कर नहीं किया है क्या?

एक और मामला सामने आया जब एक वीडियो क्लिप वायरल हुई जिस में नाई ने एक दलित युवक के बाल काटने से इनकार कर दिया. घटना बदायूं के करियामई गांव की है. वीडियो में नाई को यह कहते हुए सुना गया कि वह अपनी दुकान बंद करना पसंद करेगा न कि दलित जाति के युवाओं के बाल काटना.

पता चला है कि नाई पिछले 15 वर्षों से अपनी दुकान चला रहा है और वह किसी भी दलित ग्राहक के बाल काटने से हमेशा इनकार करता रहा है. ऐसी ही कई असंख्य घटनाएं रोजमर्रा की यातनाओं में होती हैं, लेकिन वे दूरदराज के गांवों से सामने नहीं आ पातीं.

ऐसी घटनाएं साबित करती हैं कि सरकारी कागजों में भले ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को ले कर समानता के अधिकार देने के दावे किए जाते हैं और संविधान में भी समानता के अधिकार का जिक्र किया गया है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. आज भी आएदिन जातपांत के नाम पर भारी संख्या में घटनाएं सामने आ रही हैं. यही कारण है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट में ही यह बताया गया कि वर्ष 2009 से 2018 के बीच कुल दलित उत्पीड़न की घटनाओं में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. यह रिपोर्ट दिखाती है कि आज भी समाज में लोग छुआछूत व जातपांत में विश्वास रखते हैं और छोटी जाति के लोगों को अछूत सम?ाते हैं. किसी और में हों न हों, इस मामले में जरूर हम विश्वगुरु बन चुके हैं.

अहंकार के दायरे-भाग 1: नीरा ने अपने परिवार को टूटने से कैसे रोका

सुबह से ही नीरा का मन बेहद उदास था. यतीन को घर से गए हुए पूरे 2 माह बीत चुके थे. इस अवधि में कोई दिन ऐसा न था जब उस ने यतीन के घर लौट आने की बात न सोची हो, वक्त की आंधी के थपेड़ों से बिखर गए इस घर को सहेजने की न सोची हो किंतु उसे प्रतीक्षा थी सही वक्त की.

सुबह जब नीरा नाश्ते के लिए बाबूजी को बुलाने गई तो देखा, वे यतीन की फोटो के समक्ष खड़े चुपचाप उसे निहार रहे हैं. यद्यपि उसे देखते ही वे वहां से हट गए किंतु अश्रुपूर्ण नेत्रों में उतर आई व्यथा को उस से न छिपा पाए. नीरा ने एक बार गहरी दृष्टि से उन्हें देखा, फिर रसोई में चली गई.

नीरा का विवाह हुए 5 वर्ष बीत गए थे. सुहागरात को उस के पति नरेन ने कहा था, ‘बचपन में मेरी मां चल बसी थीं. बाबूजी, यतीन और मैं ने अत्यंत कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत किया है. घर में एक स्त्री का अभाव सदैव खटका है. मैं चाहता हूं, अपने स्नेह एवं अपनत्व के बल पर तुम इस अभाव की पूरक बनो. इस घर के प्रति तुम्हारी निष्ठा में कभी कमी न आए.’

नीरा ने अपना कांपता हुआ हाथ पति के हाथ पर रख कर उसे अपनी मौन स्वीकृति दी थी. अगले दिन नरेन ने हनीमून के लिए नैनीताल चलने का प्रस्ताव रखा तो नीरा ने इनकार कर दिया और कहा था,  ‘नहीं, नरेन, नए जीवन की शुरुआत के लिए स्वजनों को छोड़ कर इधरउधर भटकने की आवश्यकता नहीं. हनीमून हम अपने घर पर रह कर मनाएंगे. यतीन की परीक्षाओं के बाद हम सब इकट्ठे नैनीताल चलेंगे.’

यतीन तो बिलकुल अपनी भाभी का दीवाना था. भाभी के रूप में मानो उस ने अपनी मां को पा लिया था. छोटेबड़े हर काम में वह भाभी पर निर्भर हो गया था. यहां तक कि अकसर वह अपने नोट्स तैयार करने में भी नीरा की सहायता लेने लगा था. परीक्षाओं के बाद वे तीनों नैनीताल चले गए. वहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने उन के मन को बांध लिया था. ऐसा प्रतीत होता था मानो सारे संसार से अलगथलग यह छोटा सा शहर अपनेआप में कोई रहस्य समेटे हुए हो.ताल के किनारे बने हुए होटल में वे ठहरे थे. लगभग नित्य ही शाम को वे बोटिंग करते थे. उस समय नरेन और यतीन ताल की लहरों के साथ कोई न कोई गीत छेड़ देते. दोनों भाइयों को संगीत से बेहद लगाव था.

एक दिन वे बहुत सवेरे  स्नोव्यू और  चाइना पीक के लिए रवाना हो गए. मार्ग में चीड़ व देवदार के वृक्ष और उन से छन कर आती हुई सूर्य की किरणों का नृत्य सम्मोहित कर रहा था. बीचबीच में रुकते, हंसते, बातें करते हुए वे तीनों चाइना पीक तक पहुंच गए. वहां से समूचे नैनीताल का विहंगम दृश्य दिखाई दे रहा था. समय मानो वहां आ कर थम गया था. वातावरण में एक गहरी निस्तब्धता रचीबसी हुई थी.

कुछ देर के लिए नीरा प्राकृतिक सौंदर्य में खो गई. उस समय वह स्वयं को प्रकृति के काफी निकट महसूस कर रही थी. उसे पता नहीं चला कब नरेन पास बने हुए रेस्तरां में चाय का और्डर देने चले गए. उस समय चौंकी जब यतीन ने उस से खोईखोई आवाज में कहा, ‘कभीकभी ऐसा क्यों होता है भाभी, किसी विशेष इंसान की स्मृतिमात्र ही वातावरण में खुशियों का उजाला भर देती है?’

नीरा ने एक गहरी दृष्टि यतीन की ओर डाली, ‘आखिर कौन है वह विशेष इंसान, मैं भी तो सुनूं?’

यतीन खामोश रहा. नीरा समझ गई, वह उस से संकोच कर रहा है. तब उस ने कहा, ‘अपनी भाभी को भी नहीं बताओगे.’

यतीन कुछ पल खामोश रहा, फिर बोला, ‘उस का नाम अर्चना है. वह मेरे साथ कालेज में पढ़ती थी. बहुत अच्छी लड़की है. तुम मिलोगी, अवश्य पसंद करोगी.’

‘अच्छा, तो कब मिलवा रहे हो?’

‘जब तुम चाहो, परंतु भैया को इस विषय में तभी कुछ बताना जब तुम लड़की पसंद कर लो और मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं,’ यतीन यह बात कह ही रहा था तभी नरेन वहां आ गए और वह खामोश हो गया.

चाय पी कर वे लोग वहां से लौट पड़े. अगले दिन नैनीताल से वे वापस आ गए थे. कुछ दिन नीरा को घर व्यवस्थित करने में लगे. यतीन नौकरी के लिए जगहजगह इंटरव्यू दे रहा था. 2-3 जगह उसे आशा भी थी. दीवाली में 15 दिन शेष थे. नीरा के घर से उस के पिताजी का पत्र आया कि वे उसे दीवाली पर लेने आ रहे हैं. पत्र पढ़ने के बाद उस के ससुर ने बुला कर कहा,  ‘बेटी, अपने जाने की तैयारी कर लो. तुम्हारे पिताजी तुम्हें लेने आ रहे हैं.’

सुन कर नीरा खामोश खड़ी रही. बाबूजी ने उसे देखा और बोले,  ‘क्या बात है, बेटी, किस सोच में डूब गईं?’

‘बाबूजी, आप पिताजी को पत्र लिख दीजिए, वे दीवाली के बाद ही मुझे लेने के लिए आएं.’

‘क्यों?’ बाबूजी अचंभित रह गए.

‘बात यह कि वहां पिताजी के पास अन्य बच्चे भी हैं. मेरे न जाने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ने वाला. किंतु यहां मेरे जाने से आप लोग अकेले पड़ जाएंगे. नहीं, बाबूजी, अपने घर की रोशनी फीकी कर के मैं कहीं नहीं जाऊंगी. आप पिताजी को

अहंकार के दायरे-भाग 3: नीरा ने अपने परिवार को टूटने से कैसे रोका

नीरा सन्न रह गई. कुछ पलों के लिए तो जैसे होश ही न रहा. इतने में उसे रोटी जलने की गंध आई. उस ने फुरती से गैस बंद की और पलट कर यतीन का चेहरा देखने लगी, ‘यह तुम ने क्या किया?’

‘मैं मजबूर था, भाभी. मैं स्वयं ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता था किंतु क्या करता, अर्चना को क्या छोड़ देता? पिछले 4-5 वर्षों से उस की और मेरी मित्रता है.’

‘तुम कुछ समय तक प्रतीक्षा कर सकते थे. मैं और नरेन बाबूजी को मनाने का दोबारा प्रयास करते.’

‘कोई फायदा नहीं होता, भाभी. मैं जानता हूं, वे मानने वाले नहीं थे. उधर अर्चना के घर वाले विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे इसलिए विवाह में विलंब नहीं हो सकता था वरना वे लोग उस का अन्यत्र रिश्ता कर देते.’

‘अब क्या होगा, यतीन? अर्चना को तुम घर कैसे लाओगे?’ नीरा बुरी तरह घबरा रही थी.

‘मैं अर्चना को तब तक घर नहीं लाऊंगा जब तक बाबूजी उसे स्वयं नहीं बुलाएंगे. अब वह मेरी पत्नी है. उस का अपमान मैं हरगिज सहन नहीं कर सकता,’ यतीन दृढ़ स्वर में बोला.

‘फिर उसे कहां रखोगे?’

‘फिलहाल कंपनी की ओर से मुझे फ्लैट मिल गया है. मैं और अर्चना वहीं रहेंगे,’ यतीन धीमे स्वर में बोला और वहां से चला गया.

पिछले कुछ दिनों से यतीन कितना परेशान था, यह तो उस का दिल ही जानता था. भैयाभाभी और बाबूजी से अलग रहने की कल्पना उसे बेचैन कर रही थी. वह किसी को भी छोड़ना नहीं चाहता था किंतु परिस्थितियों के सम्मुख विवश था.

इस के बाद के दिनों की यादें नीरा को अंदर तक कंपा देतीं. बाबूजी को जब यतीन के विवाह के विषय में पता चला तो वे बुरी तरह से टूट गए. उन की हठधर्मी बेटे को विद्रोही बना देगी, इस का उन्हें स्वप्न में भी गुमान न था. उन्होंने बेटों को पालने में बाप की ही नहीं, मां की भूमिका भी निभाई थी. बेटों के पालनपोषण में स्वयं का जीवन होम कर डाला था. किंतु एक लड़की के प्रेम में पागल बेटे ने उन के समस्त त्याग को धूल में मिला दिया था.

अब बाबूजी थकेथके और बीमार रहने लगे थे. नीरा के आने से घर की जो खुशियां पूर्णिमा के चांद के समान बढ़ रही थीं, यतीन के जाते ही अमावस के चांद की तरह घट गईं. नीरा की दशा उस चिडि़या की तरह थी जिस के घोंसले का तिनका बिखर कर दूर जा गिरा था. वह उस तिनके को उठा लाने की उधेड़बुन में लगी रहती थी.

आज जब उस ने बाबूजी को यतीन की फोटो के समक्ष रोते देखा तो विकलता और भी बढ़ गई. अगले दिन नीरा बाजार गई हुई थी. जब लौटी, उस के साथ एक अन्य युवती भी थी. बाबूजी बाहर लौन में बैठे थे.

नीरा ने उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी सहेली पूजा है. हम दोनों एक ही साथ पढ़ती थीं. इस का इस शहर में विवाह हुआ है. आज मुझे अचानक बाजार में मिल गई तो मैं इसे घर ले आई.’’

पूजा ने आगे बढ़ कर बाबूजी के पांव छू लिए. बाबूजी ने उस के सिर पर हाथ रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ जाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो बेटी, कहां काम करते हैं तुम्हारे पति?’’

‘‘जी, एचएएल हैदराबाद में.’’

‘‘अभी पूजा यहां अकेली है, बाबूजी. जब इस के पति को वहां कोई अच्छा मकान मिल जाएगा, वे इसे ले जाएंगे,’’ नीरा ने कहा.

बाबूजी एचएएल का नाम सुन कर खामोश हो गए. यतीन भी तो यहां इसी फैक्टरी में  काम करता था. दर्द की एक परछाईं उन के चेहरे पर से आ कर गुजर गई किंतु शीघ्र ही उन्हें पूजा की उपस्थिति का भान हो गया और उन्होंने स्वयं को संभाल लिया. इस के बाद वे, पूजा और नीरा काफी देर तक बातचीत करते रहे.

जब पूजा जाने लगी तो बाबूजी ने कहा, ‘‘बेटी, अब तो तुम ने घर देख लिया है, आती रहना.’’

‘‘जी बाबूजी, अब जरूर आया करूंगी. मैं भी घर में अकेली बोर हो जाती हूं.’’

इस के बाद पूजा अकसर नीरा के घर आने लगी. धीरेधीरे वह बाबूजी से खुलने  लगी थी. वे तीनों बैठ कर विभिन्न विषयों पर बातचीत करते, हंसते, कहकहे लगाते और कभीकभी ताश खेलते.

पूजा ने अपने स्वभाव और बातचीत से बाबूजी का मन मोह लिया था. बाबूजी भी उसे बेटी के समान प्यार करने लगे थे. वह 3-4 दिनों तक न आती तो वे उस के बारे में पूछने लगते थे. पूजा नीरा को घर के कामों में भी सहयोग देने लगी थी.

कुछ दिनों बाद न जाने क्यों पूजा एक सप्ताह तक न आई. एक दिन बाबूजी नीरा से बोले, ‘‘पूजा आजकल क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मैं आप को बताना भूल गई बाबूजी, कल पूजा का फोन आया था. वह बीमार है.’’

‘‘बीमार है? और तुम मुझे बताना भूल गईं. तुम से ऐसी लापरवाही की उम्मीद न थी. जाओ, उसे देख कर आओ. उसे किसी चीज की आवश्यकता हो तो लेती जाना. आखिर हमारा भी तो उस के प्रति कुछ फर्ज बनता है.’’

बाबूजी की पूजा के प्रति इस ममता को देख कर नीरा मुसकरा उठी. पूजा ने बाबूजी के मन में अपना स्थान बना लिया था, फिर भी यतीन का अभाव उन्हें खोखला बना रहा था. नरेन, नीरा और पूजा के अथक प्रयासों के बावजूद उन का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था.

एक रात बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा. वे बेहोश हो गए. नरेन ने यतीन को भी फोन कर दिया था. वह और अर्चना तुरंत अस्पताल पहुंचे. सारी रात आंखों में ही कट गई.

यतीन की दशा सब से खराब थी. वह बारबार रो पड़ता था. नीरा ही उसे तसल्ली दे रही थी. सुबह के समय बाबूजी को होश आया. समय पर डाक्टरी चिकित्सा मिल जाने के कारण खतरा टल गया था. बाबूजी के होश में आने पर यतीन सामने से हट गया. सोचा, हो सकता है उस को देख कर उन के दिल को धक्का लगे और उन की दशा फिर से बिगड़ जाए.

10 दिनों तक बाबूजी अस्पताल में रहे. नरेन और नीरा उन की सेवा में जुटे रहे. घर का सारा काम पूजा ने संभाला. जिस दिन बाबूजी को घर आना था, पूजा ने सारा घर मोमबत्तियों से सजा दिया था. जिस समय वे कार से उतरे, उस ने आगे बढ़ कर बाबूजी के चरण स्पर्श किए. नरेन और नीरा उन्हें अंदर ले आए.

‘‘बाबूजी, पूजा ने आप की बहुत सेवा की है,’’ नीरा ने उन्हें पलंग पर बैठाते हुए कहा.

‘‘हमेशा सुखी रहो बेटी. वे लोग कितने सुखी होंगे जिन्हें तुम्हारे जैसी बहू मिली है,’’ बाबूजी एक क्षण खामोश रहे. फिर आह सी भरते हुए दुखी स्वर में बोले, ‘‘नरेन ने मेरी पसंद से विवाह किया, देखो कितना खुश है. नीरा हजारों में एक है. काश, यतीन ने भी कहा माना होता तो उस की बहू भी तुम दोनों जैसी होती.’’

नीरा को लगा, यदि अब उस ने बाबूजी से अपने मन की बात न कही तो फिर बहुत देर हो जाएगी. जीवन में अनुकूल क्षण बारबार नहीं आते. वह उन के समीप जा बैठी. उस ने आंखों ही आंखों में नरेन से अनुमति मांगी और बोली, ‘‘आप की इस बेटी से बहुत बड़ा अपराध हो गया है बाबूजी. मुझे क्षमा कर दीजिए.’’

‘‘कौन सा अपराध?’’ बाबूजी हैरान हो उठे.

नीरा ने उन के घुटनों पर सिर रख दिया और डरतेडरते बोली, ‘‘पूजा जिस घर की बहू है, वह घर यही है, बाबूजी. यह पूजा नहीं, आप की दूसरी बेटी अर्चना है.’’

‘‘अर्चना यानी यतीन की पत्नी? इतने दिनों तक तुम मुझ से…’’

‘‘बाबूजी, मैं ने यह अपराध आप को धोखा देने या दुख पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किया. मैं और नरेन चाहते हैं, हम सब आप की छत्रछाया में रहें. यह घर एक घोंसले के समान है, बाबूजी. इस के तिनके को बिखरने मत दीजिए, इन्हें समेट लीजिए,’’ कहतेकहते नीरा रोने लगी.

बाबूजी की आंखों में भी आंसू आ गए. कुछ तो नीरा की निष्ठा और कुछ अर्चना का सरल स्वभाव व सेवाभावना उन्हें कमजोर बना रही थी. साथ ही, हालात ने उन के और यतीन के बीच जो दूरी पैदा कर दी थी उस ने उन की हठधर्मिता को कमजोर बना डाला था. उन्होंने स्नेहपूर्वक नीरा को उठाया फिर अर्चना को अपने पास बैठा लिया और अर्चना की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, जीवन में यदि किसी को अपना आदर्श बनाना तो नीरा को ही बनाना. इस के प्रयत्नों के फलस्वरूप इस घर की खुशियां वापस आई हैं,’’ फिर उन्होंने नरेन को यतीन को बुलाने भेज दिया.

वास्तव में व्यक्ति अपने झूठे अहंकार के दायरे में कैद रह कर स्वयं ही अपने जीवन में दुखों का समावेश कर लेता है. बाबूजी ने सोचा, यदि वे अपने इस अहं के दायरे से बाहर आ कर भावनाओं के साथसाथ विवेक से भी काम लेते तो उन बीते दिनों को भी आनंदमय बना सकते थे जो उन्होंने और उन के परिवार ने दुखी रह कर गुजारे थे. उन्होंने खिड़की में से देखा, यतीन नरेन के साथ कार से उतर रहा है. बाहर मोमबत्तियों की झिलमिलाती लौ भविष्य को अपने प्रकाश से आलोकित कर रही थी.

अहंकार के दायरे-भाग 2: नीरा ने अपने परिवार को टूटने से कैसे रोका

दीवाली के बाद आने के लिए लिख दें,’ इतना कह कर नीरा चली गई.

दीवाली से 2 दिन पहले यतीन का नियुक्तिपत्र आ गया तो दीवाली की खुशी दोगुनी हो गई. उसे एचएएल में बहुत अच्छी नौकरी मिली थी.

एक दिन दोपहर के समय नीरा घर पर अकेली थी. सब अपनेअपने काम पर गए हुए थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा सामने एक लड़की खड़ी थी. उस के हाथ में एक ब्रीफकेस था. वह नीरा से बोली, ‘नमस्ते दीदी. मैं एक साबुन कंपनी की तरफ से आई हूं. आप अपने घर में कौन सा साबुन इस्तेमाल करती हैं?’

नीरा उस समय गाजर का हलवा बना रही थी. वह बोर सी होती हुई बोली, ‘देखो, फिर कभी आना. इस समय मैं बहुत व्यस्त हूं. वैसे भी हमारे घर में साबुन और अन्य वस्तुएं कैंटीन से आती हैं.’

‘मैं आप का अधिक समय नहीं लूंगी. आप बस एक नजर देख लीजिए.’

‘नहींनहीं, अभी तो बिलकुल समय नहीं है,’ कह कर नीरा अंदर जाने को मुड़ी कि तभी न जाने कहां से यतीन प्रकट हो गया. वह हंसते हुए नीरा की बांह पकड़ कर बोला, ‘2 मिनट तो ठहरो भाभी, ऐसी भी क्या जल्दी है. साबुन न भी देखो, अर्चना को तो देख लो.’

‘अरे, यह अर्चना है?’ नीरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए प्रसन्न हो उठी, ‘तुम दोनों ने मिल कर मुझे बेवकूफ बनाया. आओ अर्चना,’ नीरा ने उसे प्यार से अपने पास बैठा लिया, ‘कहां से घूम कर आ रहे हो तुम दोनों?’

‘भाभी, आज मैं औफिस से जल्दी आ गया था. अर्चना को तुम से मिलवाने लाना था न.’

‘यह तुम ने बहुत अच्छा किया, यतीन. मैं तो स्वयं ही तुम से कहने वाली थी.’

अर्चना करीब 2 घंटे वहां बैठी रही. नीरा ने उस से बहुत सी बातें कीं. जब यतीन उसे छोड़ कर वापस आया तो नीरा ने कहा, ‘लड़की मुझे पसंद है. अपने लिए मुझे ऐसी ही देवरानी चाहिए.’

‘सच, भाभी,’ प्रसन्नता के अतिरेक में यतीन चहक उठा, ‘बस फिर तो भाभी, बाबूजी और भैया को ऐसी पट्टी पढ़ाओ कि वे लोग तैयार हो जाएं.’

‘परंतु अर्चना राजपूत है और हम लोग ब्राह्मण. मुझे डर है, बाबूजी इस रिश्ते के लिए कहीं इनकार न कर दें.’

‘सबकुछ तुम्हारे हाथ में है, भाभी. तुम कहोगी तो बाबूजी मान जाएंगे.’

किंतु बाबूजी सहमत न हुए. नरेन को तो नीरा ने तुरंत राजी कर लिया था मगर बाबूजी के समक्ष उस की एक न चली. एक दिन रात को नरेन और नीरा ने जब इस विषय को छेड़ा तो बाबूजी ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘तुम लोगों ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं इस रिश्ते के लिए सहमत हो जाऊंगा. यतीन के लिए मेरे पास एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे हैं.’

‘वह भी बहुत अच्छी लड़की है, बाबूजी. आप एक बार उस से मिल कर तो देखिए. सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छे संस्कारों वाली लड़की है.’

‘किंतु है तो राजपूत.’

‘जातिपांति सब व्यर्थ की बातें हैं, बाबूजी, हमारे ही बनाए हुए ढकोसले. अगर लड़के और लड़की के विचार मेल खाते हों, दोनों एकदूसरे को पसंद करते हों तो मेरे विचार में आप को आपत्ति नहीं होनी चाहिए,’ नरेन पिताजी को समझाते हुए बोले.

‘लड़के और लड़की की पसंद ही सबकुछ नहीं होती. कभी सोचा है, लोग क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या सोचेंगे? आखिर रहना तो हमें समाज में ही है न. आज तक इस खानदान में दूसरी जाति की बहू नहीं आई है.’

‘रिश्तेदारों की वजह से क्या आप अपने बेटे की खुशियां छीन लेंगे?’

‘मुझ से बहस मत करो, नरेन. मैं किसी की खुशियां नहीं छीन रहा. तुम मुझे नहीं यतीन को समझाओ. यह प्रेम का चक्कर छोड़ कर जहां मैं कहूं वहां विवाह करे. उस के लिए अर्चना से भी अच्छी लड़की ढूंढ़ना मेरा काम है. व्यर्थ की भावुकता में कुछ नहीं रखा.’

बाबूजी उठ कर बाहर चले गए. इस का मतलब था, अब वे इस विषय पर और बात नहीं करना चाहते थे.

नीरा परेशान रहने लगी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या को कैसे सुलझाए. एक ओर बाबूजी का हठी स्वभाव, दूसरी ओर यतीन की कोमल भावनाएं. दोनों में सामंजस्य किस प्रकार स्थापित करे.

जब से यतीन को बाबूजी के इनकार के विषय में बताया था, वह खामोश रहने लगा था. उस का अधिकांश समय घर से बाहर व्यतीत होता था. नीरा को भय था कि कहीं यह खामोशी आने वाले तूफान की सूचक न हो.

एक दिन नीरा रसोई में खाना बना रही थी. यतीन वहीं आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘भाभी, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’ नीरा का हृदय जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने यतीन क्या कहने वाला है. उस ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उस की ओर देखा.

‘मैं ने अर्चना से विवाह कर लिया है,’ यतीन नीरा से नजरें चुराते हुए बोला.

कोरोना ने बढ़ाया‘बर्ड फ्लू‘ का डर

वैसे तो बर्ड फ्लू पहले भी फैल चुका है. इस बार कोरोना वायरस के डर से बर्ड फ्लू तेजी से लोगों में डर की वजह बन गया. कोराना वायरस और बर्ड फ्लू के वायरस के लक्षण काफी मिलते जुलते है. बर्ड फ्लू का असर सबसे अधिक खानेपीने की दुकानों पर पडा. जहां ‘चिकन और अंडे‘ और उससे तैयार खाने की व्यंजन मिलते है. बर्ड फ्लू का असर पोल्ट्री फार्म के बिजनेस पर भी पडा. उत्तर प्रदेश में मुर्गी पालने वालों की संख्या 1 हजार से अधिक है. एक कारोबारी 25 से 30 लाख लगाकर बिजनेस शुरू  करता है. पोल्ट्री फार्म में दो तरह का कारोबार होता है. पहला ब्रायलर यानि खाने वाला मुर्गा और दूसरा लेयर यानि अंडे देने वाली मुर्गी हो होता है. बर्ड फ्लू के कारण यह कारोबार 60 फीसदी घट गया.

खाने के लिये एक किलो मुर्गा तैयार करने में कम से कम 1 सौ रूपये की लागत आती है. यह अपने दाम पर ही नही बिकने रहा है. मीट खाने के शौकीनों  में ज्यादातर लोग चिकन और अंडे की जगह मटन खाने लगे है. ‘नवाब एंड निजाम‘ नाम से लखनऊ और हैदराबाद के व्यंजनों को रेस्त्रां चला रही हिना शिराज कहती है ‘कोरोना के कारण होटल और रेस्ट्रा  पहले से ही प्रभावित थे. कोरोना का डर लोगों में खत्म ही हो रहा था कि बर्ड फ्लू ने दस्तक दे दी. इससे होटल में मीट खाने वालों की संख्या पर असर पडा है.’
अंडे का कारोबार कर रहे जफर बताते है ‘हम लोग पंजाब और हैदराबाद से अंडे मंगाते थे. अब मंगाना बंद कर दिया है. हमारा थोडा बहुत जो काम है वह यहां के अंडो से ही चल रहा है. ‘चिक एंड चिन‘ रेस्ंत्रा चला रहे फुजैल अब्दुला बताते है ‘बर्ड फ्लू का डर खाने वालों में दिख रहा है. अब लोग इससे मिलते जुलते खाने की तरफ जा रहे है.’

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पोल्ट्री फार्म का बिजनेस करने वाले मोहम्मद शोएब कहते है ‘मीट के रेस्ंत्रा चलाने वालों पर उतना असर नहीं हुआ. वह चिकन और अंडे की जगह मटन, मछली से काम चला लेगे. लेकिन पोल्ट्री फार्म का बिजनेस करने वालों पर अधिक असर पडा. बर्ड फ्लू से इन कारोबारियों का नुकसान तो हो ही रहा है प्रशासन भी नियम कानून की आड में परेशान भी किया जा रहा है.

देश भर में बर्ड फ्लू का असर: बर्ड फ्लू उत्तर प्रदेश को मिलाकर देश के 11 राज्यों तक फैल चुका है. छत्तीसगढ़ के बालोद में बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद गिधाली के पोल्ट्री फार्म की 10 हजार मुर्गियों को दफनाया गया. संक्रमित पोल्ट्री फॉर्म को सील कर दिया गया है. इसके संचालक और वहां काम करने वाले 2 कर्मचारियों समेत 15 लोगों को होम आइसोलेशन में रहने के लिये कहा गया. इसी फार्म हाउस में इससे पहले लगभग 1200 मुर्गियों को दफनाया गया था. खतरे को देखते हुये 10 किलोमीटर के इलाके में हाईएलर्ट किया गया.

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पंजाब के जालंधर में बर्ड फ्लू के मिले हैं. जिन 11 राज्यों में बर्ड फ्लू का सकंट गहरा उनमें केरल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ प्रमुख रहे. केवल मुर्गे ही इसके असर में नहीं आये. कौवे और दूसरे पक्षी भी बर्ड फ्लू के असर में आये. कई जगहों से इनके मरने की जानकारी मिली. बर्ड फ्लू के असर को रोकने के लिये चिडियाघरों में बंद पक्षियों को भी दर्शको से दूर रखा जाने लगा. उनको बाडों में कैद करके रखा गया.

बर्ड फ्लू का असर अलग अलग राज्यों में अलग तरह से दिखा. प्रवासी पक्षियों में भी इसका असर देखने मिला. हिमाचल प्रदेश में 4874 विदेशी पक्षियों की मौत हुई. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि बर्ड फ्लू से घबराने की जरूरत नहीं है.  प्रदेश में केवल पौंग बांध में ही वायरस से पक्षियों की मौत हुई है. सावधानी बस प्रदेश में बाहर से आ रही पोल्ट्री की सप्लाई रोक दी गई.

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मध्य प्रदेश के 27 जिलों में बर्ड फ्लू का असर दिखाई दिया. इनमें हरदा, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, डिंडोरी, मंडला, सागर, धार और सतना शामिल हैं. हरदा के रहटगांव में मुर्गी में वायरस मिला. यहां एक किलोमीटर के दायरे में मुर्गियों को मारा गया राजस्थान के जयपुर में चिडियाघर में इसका असर दिखा. राजस्थान के 16 जिलों में इसका असर फैला. जयपुर के चिडियाघर मंे कॉमन डक समेत 22 प्रजातियों के करीब 370 पक्षी हैं. इनमें से 10 कॉमन डक, 1 ब्लैक स्टार्क और 2 पैलिकन संक्रमित पाई गई. कुछ कॉमन डक, एक ब्लैक स्टार्क और एक पैलिकन की मृत्यु के बाद चिडियाघर बंद किया गया. राजस्थान में पक्षियों की मौत का आंकड़ा अब 5 हजार के करीब पहुंच चुका है. इनमें से 3495 कौवे, 261 मोर, 367 कबूतर और 792 अन्य पक्षी शामिल है.

खतरनाक है बर्ड फ्लू वायरस: बर्ड फ्लू को ‘एवियन इनफ्लुएंजा वायरस’ भी कहते हैं. बर्ड फ्लू के सबसे कॉमन ‘एच5एन1’ वायरस है. यह एक खतरनाक वायरस है जो चिड़ियों के साथ इंसान और दूसरे जानवरों को भी संक्रमित कर सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ‘एच5एन1’ को 1997 में खोजा गया था. इस वायरस से संक्रमित होने पर 60 फीसदी मामलों में मौत हो जाती है. बर्ड फ्लू का संक्रमण  के मामले में वायरस का असर शरीर में लम्बे समय तक रहता है. पक्षियों में संक्रमण होने पर वायरस उसमें 10 दिन तक रहता है. यह मल और लार के रूप से बाहर निकलता रहता है. इसे छूने या सम्पर्क में आने पर संक्रमण हो सकता है.

बर्ड फ्लू इनफ्लुएंजा एक जूनोटिक बीमारी है अर्थात जानवरों में बहुतायत में पाई जाती है. कभी-कभी इसका संक्रमण इंसानों में भी देखने को मिलता है. यह इनफ्लुएंजा वायरस का एक प्रकार है जो पक्षियों में एक से दूसरे में हवा के जरिए फैलता है. संक्रमण की वजह से प्रभावित पक्षियों की नाक, गले और सांस नली में सूजन आ जाती है. सूजन की वजह से उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है और इससे उनकी मौत हो जाती है. कौआ और मुर्गी जैसे पक्षी इस रोग से ज्यादा प्रभावित होते हैं.

कोरोना वायरस की वजह से बढ गया डर: इनफ्लुएंजा वायरस की सबसे बड़ी विकृति है कि इसमें दो तरह के परिवर्तन लगातार होते रहते हैं. एक एंटीजनिक शिफ्ट, जिसके तहत एंटीजन की प्रकृति में बड़ा परिवर्तन होता है और दूसरा एंटीजनिक डिफ्ट, जिसमें छोटे-छोटे प्रकार के म्यूटेशन (जीन में बदलाव) वायरस में लगातार होते रहते हैं. यही कारण है कि इनफ्लुएंजा में कोई भी वैक्सीन लंबे समय तक कारगर नहीं होती है. जब कोई पक्षी या पक्षियों का समूह एवियन इनफ्लुएंजा वायरस के संक्रमण से ग्रस्त होता है तो उनके संपर्क में आने वाले इंसान तक यह वायरस पहुंच सकता है और उन्हें भी बीमार कर सकता है. वायरस में म्यूटेशन की वजह से कभी-कभार ऐसा भी हो सकता है कि पक्षियों में फैलने वाले वायरस में इंसानों में फैलने की क्षमता विकसित हो जाए. बीमारी जितनी तेजी से पक्षियों में फैलती है, वायरस में म्यूटेशन भी उतनी ही तेजी से होता है. बर्ड फ्लू का संक्रमण फैलने पर इंसानों को भी अलर्ट कर दिया जाता है जिससे यह बीमारी इंसानों में न फैले.

ऐसे में सावधान रहने की जरूरत होती है. किसी तरह से पक्षियों के संपर्क में आने पर यदि सर्दी, खांसी, बुखार, गले में दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो तो डॉक्टर को दिखाएं. डाक्टर की सलाह के बिना कोई दवा नहीं खानी चाहिए. यदि संक्रमण है तो पूरी तरह से चिकित्सकीय दिशा निर्देशों को अपनाएं. बचाव के लिये जरूरी है कि जिस जगह पर पक्षी मरे मिले हों वहां सेनेटाइजेशन किया जाना चाहिए. शहर और गांव के लोगों को इस तरह से जागरूक किया जाना चाहिए कि वह पूरी सतर्कता बरतें.

इतना भी संवेदनशील होना ठीक नहीं कि दिमागी हालत खराब हो जाए

सदियों से माना जा रहा है कि महिलाओं का हृदय कोमल होता है. पर कोई महिला पुरुष की अपेक्षा कठोर भी हो सकती है और कोई पुरुष भी महिला की अपेक्षा संवेदनशील हो सकता है. कुछ भी हो, पर यह खूबी मानसिक तनाव देने वाली होती है. महिलाएं बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैं, इसलिए वे जल्दी ही हर्ट भी होती हैं. वे कुछ भी गलत सहन नहीं कर सकतीं.
संवेदना यानी कि समवेदना यानी कि किसी की वेदना उसी की तरह अनुभव करने वाली भावना. यह भावना रखने वाला अदमी संवेदनशील माना जाता है. इस मामले में महिलाओं को अधिक संवेदनशील कहा गया है. कुछ हद तक यह सच भी है. अब तो ट्रैजडी वाली फिल्में ज्यादा आती नहीं हैं. ढ़ाईतीन दशकों पहले हर फिल्म में इस तरह की घटनाएं जरूर दिखाई जाती थीं और उस समय सिनेमाघर में सिसकने की आवाजें निश्चित सुनाई देती थीं और सिसकने की वे आवाजें महिलाओं की होती थीं.

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इस का मतलब यह हुआ कि संवेदनशील महिलाएं दूसरे की भावना को बहुत गहराई से अनुभव करती हैं. जो दूसरे की भावना को गहराई से अनुभव करती हो, वह अपने प्रति कितना संवेदनशील होगी? ऐसी महिला को अगर कोई मजाक में भी कोई बुरी बात कह देता है तो कई दिनों तक उस की नींद हराम रहती है. उसे खाना भी नहीं अच्छा लगता. उस की भावनाओं पर हुए इस आघात का सीधा असर पहले मैंटल हैल्थ पर और फिर उस के बाद फिजिकल हैल्थ पर पड़ता है.

बहुत जल्दी विश्वास करना : महिलाएं बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैं. इसीलिए वे तेजी से हर्ट भी होती हैं. वे कुछ भी गलत नहीं सहन कर सकतीं. वे अपने खतरे पर दूसरे की हैल्प करने को तत्पर रहती हैं. अगर उन्हें हर्ट करने वाला माफी मांग लेता है तो वे सरलता से दूसरे की गलती को माफ कर देती हैं. यह गुण बेशक अच्छा है, परंतु महिलाओं के इस अच्छे गुण का पौजिटिव परिणाम क्या सचमुच उन के घर-परिवार-आफिस-समाज पर पड़ता है? यह जानने के लिए कुछ उदाहरण देखते हैं-

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12-13 साल की संवेदनशील बेटी जब देखती है कि उस के पैरेंट्स उस के भाई को ओवर पेंपरिंग कर रहे हैं और उस के प्रति अन्याय कर रहे हैं तो उस की संवेदनशीलता पर नकारात्मक असर पड़ता है. युवा होने पर जब दर्जनों लड़के शादी के लिए रिजैक्ट कर देते हैं तो उन की संवेदनशीलता घायल होती है, क्योंकि उन के सपने जो धराशायी होते हैं. यह बात सच है कि महिलाए अधिक संवेदनशील होती हैं. परंतु सभी महिलाओ में यह बात एकसामान नहीं होती. कालेज में भेदभाव सहना पड़ता है तो अधिक संवेदनशील लड़कियां मन से घायल होती हैं. कम संवेदना रखने वाली महिलाएं ‘यह सब तो जिंदगी में चलता रहता है’ मन को यह आश्वासन दे कर शांत हो जाती हैं. हमारे समाज में सभी व्यक्ति सभी कामों में आसपास के सभी लोगों की संवेदना का ख़याल नहीं रख सकते. परिणामस्वरूप हर मौके और हर स्थान पर अधिक संवेनशील महिलाओं का हृदय घायल होता रहता है. सो, वे बातबात में हताशा, निराशा और आघात से पीड़ित होती रहती हैं. आसपास के लोग उन की इस अधिक संवेदनशीलता के बारे में व्यंग्य भी मारते रहते हैं. परंतु वे अपनी संवेदना की धार गोठिल नहीं होने देतीं.

प्रैक्टिकल महिला :संवेदना तर्क के म्यान में रहती हो, ऐसी महिलाएं नहीं अच्छी लगतीं. पीड़ा देने वाली बातों की वास्तविकता को ध्यान में रख कर वे आगे बढ़ती हैं. अन्याय की सोच को खंगाल कर खुद को स्वस्थ करती हैं. ऐसी महिला को समाज में प्रैक्टिकल महिला कहा जाता है. अगर इसे तर्क के रूप में सोचें तो महिलाओं को प्रैक्टिकल होना ही चाहिए. पर प्रकृति ने सभी का भावनात्मक तंत्र पहले ही बना दिया है, इसलिए संवेदनशील महिलाएं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकतीं. उदाहरण के लिए, एक संवेदनशील महिला का पति सब के सामने कहता है कि ‘तुम्हारे पास अक्ल नाम की कोई चीज नहीं है.’ यह कहने वाले पति को पता पहीं कि उस की इस बात से पत्नी का दिल टूट जाएगा और वह कमरे में जा कर अकेले में रोएगी और कई दिनों तक इसी बात को बिसूरती रहेगी. इस से उस के चेहरे की हंसी और आंखों की नींद गायब हो जाएगी. इस बीच वह अपने काम भूल जाएगी और छोटीछोटी बातों पर दूसरे पर गुस्सा करेगी. इस का असर उस के अपने मन के साथ तन पर भी पड़ेगा. जबकि उस की जगह कोई प्रैक्टिकल महिला होगी तो वह पति को तार्किक जवाब दे कर खुश होगी अथवा पति का स्वभाव ही ऐसा है, यह सोच कर इस बात पर वहीं पूर्णविराम लगा देगी.

संवेदनाओं को घायल करना : हमारे परिवारों में महिलाओं की संवेदनाओं को अनेक तरह से घायल किया जाता है. उस के मायके वालों को ताना मार कर उसे चोट पहुंचाई जाती है. घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय से उसे बाहर रखा जाता है. उस की स्वतंत्रता और इच्छाओें का गला घोंटा जाता है. मैरिटल रेप होता है. बच्चों से ले कर परिवार के किसी भी सदस्य की जिंदगी में कुछ गलत होता है, तो उस का दोष महिलाओं के सिर मढ़ दिया जाता है. अगर वह कुछ कहना चाहती है तो ‘तुम्हें इस बारे में क्या पता’ यह कह कर उस का अपमान किया जाता है. तर्क की लगाम से संवेदना को लगाम में रखने वाली महिलाओं पर इस सब का कोई असर नहीं होता. कुछ जो लड़ाकू स्वभाव की महिलाएं होती हैं, वे लड़झगड़ कर अपना अधिकार पाने की कोशिश करती हैं. जबकि, संवेदनशील महिलाएं अगर इस तरह का कोई अन्याय होता है तो सिर्फ रोती हैं, दुखी होती हैं, खुद को सब से अलग कर लेती हैं. अपने ऊपर हुए अन्याय के लिए खुद को जिम्मेदार मानती हैं. हमेशा गिल्टी फील करती हैं.इस सब का क्या परिणाम होता है? उन की तबीयत खराब होती है. शरीर में तरहतरह की गड़बड़ियां होती हैं. बीमारियां लगती हैं. खुद को व्यर्थ और असहाय समझती हैं. अतिशय विचार, अतिशय गिल्टी और अतिशय भावनात्मकता मन पर हमेशा नकारात्मक असर करती है.

ज्यादा संवेदनशील व्यक्ति ही मानसिक रोग का शिकार बनते हैं. उदासी, डर, आत्मविश्वास का अभाव, हमेशा तनाव, सैल्फ रिस्पेक्ट की कमी, अपराधबोध, चिड़चिड़ापन, हमेशा रोना आना और जीवन से रुचि का खत्म हो जाना जैसे कई मानसिक सवाल पैदा होते हैं. ये उसे तनमन से असमय बूढ़ा बना देते हैं.

तरहतरह के लांछन : जो महिला अधिक संवेदनशील और रो कर संतोष कर लेने वाले स्वभाव की होती है, उसे लोग और दुखी करते हैं. परंतु दुख की बात यह है कि हमारे यहां न तो महिला की संवेदनशीलता का न तो उस के मानसिक सवालों को जितनी चाहिए उतनी मात्रा में गंभीरता से महत्त्व नहीं दिया जाता. महिला बारबार रोती है तो उसे नाटक मान लिया जाता है. उदास रहती है तो कहा जाता है कि यह है ही ऐसी, जब देखो तब मुंह लटकाए रहती है. तनाव का अनुभव करती है तो आरोप लगता है कि यह काम बिगाड़ने वाली है. महिलाओं के इन मानसिक सवालों के लिए खुद महिलाएं ही नहीं, अगलबगल के लोग या वातावरण भी जिम्मेदार हो सकता है, इस बात पर भी सोचना चाहिए.

यहां बात संवेदनहीन बनने की नहीं है. सही बात तो यह है कि संवेदनशील होना गर्व की बात है. संवेदना जीवंतता की निशानी है और अपने आसपास जड़ लोगों का साम्राज्य हो तो हमें जीवतंता पर मोटी चमड़ी का थोड़ा आवरण चढ़ाना पड़ता है. जिन लोगों को हमारे आंसुओं की कद्र न हो, उन के लिए क्यों रोना? अपना लगाव, भावना, अनुकंपा, सहानुभूति या संवेदना एकदम कुपात्रें को दान नहीं की जा सकती.

हमारी संवेदनशीलता हमारे ही सुख में रुकावट पैदा करने लगे, तो वह हमारे लिए खराब बन जाती है. मानसिक समस्याएं बुरे या निर्लज्ज लोगों को समझ में नहीं आतीं क्योंकि वे तनाव लेने में नहीं, तनाव देने में विश्वास करते हैं, जो सरासर गलत है. उन के सामने अधिक संवेदनशील बनना खुद पर अत्याचार करना है. इतना भी संवेदनशील नहीं होना चाहिए कि जिस से जीवन में बहुत ज्यादा ऊबड़खाबड़  दिखार्द दे, हमेशा पीड़ा ही होती रहे.

हर दुखी या गलत व्यक्ति अपने कर्म के हिसाब से भोगता है. अपवादस्वरूप मामलों के सिवा अब  खुद के जलने का समय नहीं रहा. संवेदना की इस भावना को इस तरह व्यक्त करो कि मानसिक समस्याओं का तूफान आप की खुशियों और जीवन के उत्साह को तबाह न कर सके. बी सैंसिटिव बट बी केयरफुल…

बिग बॉस 14: राखी सावंत ने किया शादी का झूठा नाटक! जानें क्या है सच

बॉलीवुड अभिनेत्री और अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर अदाकारा राखी सावंत को हर कोई पसंद करता है. राखी इन दिनों बिग बॉस 14 के घर में हैं जहां पर वह अपने टॉस्क को लेकर काफी ज्यादा पॉपुलर होती नजर आ रही हैं.

राखी सावंत अपने पति को लेकर पिछले कुछ महीनों से चर्चा में बनी हुई हैं. ऐसे में जब राखी सावंत से उनके पति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने हमेशा एक रितेश नाम के शख्स का नाम लिया लेकिन वह आज तक मीडिया के सामने खुलकर आया नहीं . राखी ने हमेशा अपने पति के बारे में एक बात कह कि वह बहुत ज्यादा निजी हैं इसलिए कैमरा फेस नहीं करना चाहतें.

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हालांकि अभी एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जिस होटल का नाम राखी सावंत लेती थी वहां उनकी शादी रितेश नाम के एक व्यक्ति से हुई है . जब उस होटल का रिकॉर्ड चेक किया गया तो वहां ऐसी कोई शादी नहीं हुई थी. जिसके बाद राखी सावंत का झूठ एक बार फिर से सभी के सामने आ गया है कि राखी सावंत ने किसी से शादी नहीं रचाई है. वह अपने फैंस को झूठ बोलती हैं.

 

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अब लोगों का ये कहना है कि राखी सावंत एक ऐसी अभिनेत्री है जो अपने शादी कि तस्वीर अपने पति के साथ इंटरनेट पर जरुर शेयर करती.

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तो अब आपको भी लगा होगा राखी सावंत के इस बात से झटका तो परेशान न हो यहीं सच्चाई है. अब सभी फैंस और बिग बॉस देखने वाले दर्शकों को लगने लगा है कि राखी सावंत एक नाटक कर रही थी. राखी की कोई शादी नहीं हुई है. यह सब दिखावा है. सिर्फ अपनी तरफ लोगों का ध्यान केंद्रित करने के लिए. तो इसी के साथ राखी सावंत ने एक बार फिर अपने चाहने वालों का दिल तोड़ दिया है.

‘पवित्र रिश्ता’ एक्टर करणवीर मेहरा जल्द करेंगे शादी , फैंस को दी जानकारी

टीवी एक्टर करण वीर मेहरा की जिंदगी में एक ऐसा समय आया था जब उन्हें लगता था कि वह अपने फेल्ड मैरेज से बाहर नहीं आ पाएंगे. लेकिन समय बदला और उनकी जिंदगी में एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दिया है.

जी हां करणवीर मेहरा अपने पुराने जख्मों को भूलकर अपने जीवन में आगे बढ़ने के बारे में सोचा है. वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ शादी करने वाले हैं. करण वीर मेहरा अपनी को स्टार निधि सेठ को दिल दे बैठे हैं.

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अब ये दोनों 24 जनवरी को शादी करने जा रहे हैं. दिल्ली के गुरु द्वारे में शादी के सात फेरे लेंगे. जहां उनके परिवार के साथ- साथ उनके करीबी दोस्त भी मौजूद होंगे.

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एक रिपोर्ट से बातचीत के दौरान करणवीर मेहरा ने बताया कि इनकी शादी में सिर्फ 30 लोग शामिल होंगे. वहीं कुछ खास दोस्तों के लिए मुंबई में रिसेप्शन रखा जाएगा. आगे उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि हम दोनों अपने जिंदगी में 2020 नहीं लाना चाहते थे इसलिए हमने शादी करने का फैसला साल 2021 में किया.

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करण ने कहा कि हम दोनों की पहली मुलाकात साल 2008 में हुई थी जहां हम सिर्फ काम के लिए मिले उसके बाद कभी भी टच में नहीं रहें. फिर तीन साल पहले हमदोनों एक जिम में मिले जिसके बाद हमारे बीच बात चीत करने का सिलसिला आगे बढ़ा उसके बाद हम एक अच्छे दोस्त बन गए , ये दोस्ती हमारी हमदोनों के लिए कब इतनी ज्यादा क्लोज हो गई हमें पता नहीं चला और हमारा रिश्ता प्यार में बदल गया . अब हमदोनों अपने रिश्ते को एक नाम देने के बारे में सोचा है. इसलिए हम दोनों अपने परिवार वालों की मर्जी से शादी करने का यह अहम फैसला लिया है.

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