रजनी ने थोड़ी सी अनिश्चितता की हालत में फुलवारी रैस्तरां में प्रवेश किया, उन के हाथ पसीने से भीगे हुए थे. उन्हें घबराहट हो रही थी पर फिर भी बिस्कुटी रंग की साड़ी और लाल ब्लाउज में वे बहुत ही संजीदा और गरिमामय लग रही थीं.

राजीव ने कौर्नर वाली टेबल से हाथ हिलाया तो रजनी तेज कदमों से उस दिशा में चली गईं. राजीव हंस कर बोले, ‘‘मुझे लगा था आप नहीं आएंगी, पर फिर भी एक घंटे से यहां बैठ कर चाय का आनंद ले रहा हूं.’’

रजनी ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘नहीं, आना तो था पर थोड़ी सी अनिश्चितता थी.’’

वेटर और्डर ले कर चला गया तो राजीव बोले, ‘‘रजनी, मेरे प्रस्ताव के बारे में क्या सोचा.’’

रजनी थोड़ा सा झिझकते हुए बोलीं, ‘‘बहुत दुविधा में हूं.’’

राजीव मुसकराते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में कब सोचोगी, हमारी जिंदगी हमारी अपनी है, कब तक दूसरों के बारे में सोचती रहोगी?’’

इस से पहले वे कुछ और बोलते, एक कर्कश महिला की आवाज ने उन की बातचीत को कहीं दबा दिया, ‘‘देखा तुम ने, मम्मी इस उम्र में क्या गुल खिला रही हैं?’’

यह रजनी की बहू वंदना की आवाज थी.

रजनी का पुत्र आलोक अपनी मां को आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ बोला, ‘‘मम्मी, आप को क्या हो गया है, क्यों अपना बुढ़ापा खराब कर रही हो, हमारा नहीं, तो कम से कम दीया के बारे में तो सोचा होता, कौन उस का हाथ थामेगा?’’

इस से पहले वंदना कोई और तीर चुभोती, रजनी किसी अपराधिन की तरह सिर नीचा किए जाने लगी. राजीव बरबस बोल उठे, ‘‘रुको रजनी, तुम क्यों ऐसे जा रही हो?’’

उन्होंने आलोक और वंदना से शांत स्वर में कहा, ‘‘आप दोनों शांति से बैठ कर भी तो बात कर सकते हैं?’’

वंदना फिर तेज स्वर में बोली, ‘‘आप की बहन, बेटी या मां अगर ऐसे काम करेगी तो आप को पता चलेगा.’’

राजीव अपना आपा खो बैठे, ‘‘क्या किया है रजनी ने, सिवा अपना सुखदुख बांटने के?’’

बहुत सारे लोगों की उत्सुक नजरें उन की टेबल की तरफ ही उठ रही थीं.

वंदना फिर भी डटी रही, ‘‘हां, हम तो दुश्मन हैं. आप ही हो सबकुछ. पता नहीं हम क्या जवाब देंगे अपने घरपरिवार को. तभी तो सोचूं, रोज घंटोंघंटों कौन सी वाकिंग हो रही है. सोच कर भी शर्म आती है, अनिता दीदी क्या कहेंगी अपने पति और सासससुर से कि उन की मम्मी इस उम्र में रासलीला रचा रही हैं.’’

रजनी आंखों में आंसू लिए रैस्तरां से बाहर आ गईं. राजीव ने आलोक को गुस्से से देख कर कहा, ‘‘पब्लिक में तमाशा करने से बेहतर था, हम शांति से बात करते. मेरा और रजनी का फैसला अटल है, हम दोनों कुछ ऐसा नहीं कर रहे हैं जिस से किसी को कोई शर्मिंदगी हो.’’

आलोक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘मम्मी के नाम शामली में जो जमीन है, वह किस की होगी शादी के बाद?’’

राजीव बोले, ‘‘जैसा रजनी चाहेंगी.’’

वंदना बोली, ‘‘वाह, करोड़ों की संपत्ति हम ऐसे ही नहीं रासलीला में जाने देंगे, हम कोर्ट जाएंगे.’’

रजनी एक झील की तरह शांत 65 वर्षीय महिला थीं. जितना भी जीवन उन्हें मिला था, उसी में संतुष्ट रहती थीं. यह अलग बात है कि इस कारण कभीकभी वे खुद ही विचलित हो जाती थीं. कुछ समय पहले राजीव नामक कंकर ने उन के जीवन में उथलपुथल मचा दी थी. राजीव उन की जिंदगी की शाम को कुछ इंद्रधनुषी रंगों से सजाना चाहते थे, वे एक विशाल सागर की तरह थे.

रजनी अपने बेटे आलोक के पास आने से पहले शामली में रहती थीं जो न तो पूरी तरह कस्बा था न ही वहां पर महानगर की आजादी थी. वहां पर जब वे शादी कर के आई थीं तो 20 वर्ष की थीं. उन्हें पढ़नेलिखने का बहुत शौक था. पर घर की जिम्मेदारियों में वे कभी भी सिर नहीं उठा पाईं. पहले आलोक का जन्म हुआ, फिर अनिता का. फिर तो उन के सारे शौक बच्चों के शौक में ही ढल गए. सासससुर के साथ रहने के कारण घर पर रिश्तेदारों का आनाजाना लगा ही रहता था. पर रजनी ने कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया.

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रजनी बहुत ही सुघड़ महिला थीं. अचार, पापड़, बडि़यां सब घर पर ही बनाती थीं. रजनी के पति सुरेश वहीं पर स्थित एक गन्ना मिल में मैनेजर थे. अपना मकान था और रजनी की सुघड़ता के कारण बिना किसी दिक्कत के खर्च चल जाता था. आलोक पढ़लिख कर, शादी के बाद बेंगलुरु में बस गया. एकएक कर के सासससुर अपनी पूरी उम्र कर के चले गए. फिर दोनों मियांबीवी रह गए. फिर अचानक एक दिन सुरेश भी रजनी को रोतेबिलखते छोड़ कर चले गए. आलोक मां को वहां पर अकेले नहीं छोड़ना चाहता था. पर रजनी अपने घर को छोड़ना नहीं चाहती थीं. वहां पर उन के जीवन की खट्टीमीठी यादें बसी हुई थीं.

पासपड़ोस की बहूबेटियों और भाभियों के साथ वे अकेले हो कर भी अकेली नहीं थीं. पर फिर 3 वर्षों बाद उन को अपना घर बेचना पड़ा क्योंकि आलोक बेंगलुरु में अपना फ्लैट लेना चाहता था. घर बेच कर रजनी ने उस राशि के 3 हिस्से कर दिए, एक बेटी को, एक अपने पास रखा और एक हिस्सा आलोक को दे दिया. उस के बाद वे शामली में ही अपने लिए एक छोटा घर देखने लगीं. पर आलोक के कुछ और ही प्लान थे. वह मां को अपने साथ बेंगलुरु ले कर आ गया.

3 कमरों के फ्लैट में रजनी का दम घुटता था. उस का मन अपने शामली के घर के लिए छटपटाने लगा. सबकुछ नया और अनजाना था, या तो लोग इंग्लिश बोलते या वहीं की टूटीफूटी हिंदी, अपने यहां की खड़ी हिंदी के लिए वे तरस गईं. लिफ्ट में आनेजाने से उन को बहुत डर लगता था. वह तो दीया ही थी जिस में उन्हें अपनापन लगता था. उन की दुनिया दीया के कमरे तक सिमट गई. दीया जब तक स्कूल से न आती, वे सहमी, सकुची एक कोने में बैठी रहतीं. दीया भी 2 साल बाद 12वीं पास कर के इंजीनियरिंग के लिए पुणे चली गई. उस के कालेज की ऐडमिशन फीस का आधा खर्च रजनी ने अपनी बचत से ही दिया था.

बहू के साथ रजनी की अनबन नहीं थी, पर रिश्ते में एक ठंडापन था. जब भी उन की पोती दीया अपनी छुट्टियां खत्म कर के वापस होस्टल जाती, उन्हें बहुत अकेलापन लगता था. दीया के आ जाने से उन्हें बड़ा अपनापन लगता था. वह रजनी को ले कर मौल, सिनेमाहौल और न जाने कहांकहां जाती. दोनों दादीपोती दिनदिनभर गायब रहतीं. जब दिन ढले वापस आतीं तो बहुत बार तो बहू वंदना ताना भी दे देती, ‘मांजी, आप के जोड़ों का दर्द कैसा है आजकल?’

आलोक भी कभीकभी झुंझला कर बोल देता, ‘मम्मी, अब तो आप दिन को दिन और रात को रात नहीं समझ रही हो. पर दीया के जाने के बाद यह मुझे और वंदना को बहुत भारी पड़ने वाला है.’ रजनी खूब समझती थी कि उन के बेटे के कान किस ने भरे हैं पर वे क्या करें, उन्हें तो अपने जिंदा होने का एहसास ही दीया की मौजूदगी कराती थी.

ऐसा नहीं था कि रजनी के बेटेबहू उन के साथ बुरा बरताव करते थे या उन को किसी प्रकार की समस्या थी पर रजनी उन की जिंदगी के किसी कोने में फिट नहीं बैठती थीं. रजनी को हर समय यह एहसास होता था कि वे एक फालतू सामान हैं जिन का कोई काम नहीं है. रसोई में भी ऐसेऐसे उपकरण थे जो उन्होंने अपनी कसबाई रसोई में कभी प्रयोग नहीं किए थे.

दीया ने ही पहल कर के उन्हें मोबाइल से परिचित कराया. उस छोटे से यंत्र को सीखने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा और वे रोज नियम से अपनी पोती और बेटी से बात करने लगीं. मन थोड़ा हलका हो जाता था. फिर वे धीरेधीरे लिफ्ट का भी प्रयोग करना सीख गईं. इस से उन्हें ऐसी स्वतंत्रता का आभास होता था जैसे पिंजरे में कैद पक्षी को थोड़ी देर पिंजरे से बाहर होने पर अनुभव होता है.

अब वे रोज नियम से सुबह और शाम की सैर को जाने लगीं. उन्हें अब अपने शरीर में स्फूर्ति महसूस होने लगी. दिनचर्या बनी तो वे बहू की रोकटोक के बावजूद छोटेछोटे कार्य जैसे डस्ंिटग इत्यादि करने लगीं. इस से उन की बहू को भी मदद मिल जाती और बहू की कार्यशैली में भी खलल नहीं पड़ता था.एक सुबह वे चलतेचलते थोड़ा थकान का अनुभव कर रही थीं,

तो पार्क की बैंच पर बैठ कर सुस्ताने लगीं. तभी उन्हें लगा कोई उन के बराबर में बैठ गया. उन्होंने कनखियों से देखा, एक उन की हमउम्र सज्जन बैठे हैं. रजनी को बातचीत में पहल करने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिए वे थोड़ा सा अचकचा गईं. जैसे ही वे उठने लगीं, वे सज्जन बोले, ‘अरे, आप बैठी रहें, आप को रोज सुबहशाम सैर करते हुए देखता हूं, इसलिए आप को ऐसा बैठा देख कर ठिठक गया.’

रजनी सकुचाती हुई बोली, ‘नहीं, बस यों ही थकान महसूस हो रही थी.’

वे सज्जन बोले, ‘मेरा नाम राजीव है. आप को देख कर ऐसा लगा, आप अपने ही इलाके की हैं. आप क्या मेरठ से हैं?’

रजनी बोली, ‘जी, शामली से हूं. यहां अपने बेटेबहू के साथ रहती हूं.’

राजीव बोले, ‘मैं तो अकेला रहता हूं. मेरे तो बेटा और बेटी दोनों ही विदेश में रहते हैं. आप को मैं बहुत दिनों से घूमते हुए देख रहा था पर आप इतनी खोईखोई रहती हैं कि पूछने की हिम्मत न हुई कि कहीं आप गलत न समझ बैठें.’

रजनी हंस पड़ी और राजीव रजनी की हंसी से अपनी कुछ पुरानी यादों में खो गए. उन की एक पुरानी सहपाठी थी कालेज की जिसे वे मन ही मन बहुत पसंद करते थे. पर इस से पहले वे कुछ कह पाते, उस की शादी हो गई थी. न जाने क्यों रजनी को देख कर उन्हें उस की याद आ जाती थी, इसलिए उन से बात करने से वे खुद को नहीं रोक पाए. वे दोनों 10 मिनट तक बैठे रहे और इधरउधर की बातें करते रहे.

आज जब रजनी वापस घर आईं तो न जाने क्यों उन का मन बड़ा खुश था. ऐसा कुछ भी नहीं था पर अपने हमउम्र साथी के साथ की बात ही कुछ और होती है. फिर तो यह रोज का नियम हो गया. दोनों साथसाथ घूमते और अपनेअपने घर की ओर चल पड़ते. अब रजनी अपने रखरखाव पर पहले से ज्यादा ध्यान रखती थी. स्त्री चाहे 60 वर्ष की हो या 16 साल की, पुरुष की प्रशंसाभरी निगाहों को वह तुरंत पहचान लेती है.

एक दिन घूमते हुए राजीव ने रजनी से मजाक में कहा, ‘रजनीजी, आज मैं आप के घर चलूंगा, आप के बेटे और बहू से मिलने.’

पर रजनी के चेहरे का रंग बदल गया. यह राजीव से छिपा न रह सका, इसलिए उन्होंने दोबारा यह प्रसंग न छेड़ा. राजीव को रजनी का साथ बहुत भाता था. उन्हें वे बेहद ही सुलझी हुई लगती थीं. पर रजनी ने अपने चारों ओर उम्र, समाज और रिवाजों का दायरा बना रखा था जो राजीव पार नहीं कर पा रहे थे.

राजीव ने मेरठ शहर करीब 40 साल पहले छोड़ दिया था. वे बरसों से यहीं रह रहे थे, इसलिए उन की सोच काफी अलग थी. 4 वर्षों पहले पत्नी के देहांत के बाद वे अकेले रह गए थे. उन के बेटेबेटी विदेश में रहते थे. संतानों की इच्छा थी कि वे भी वहीं आ जाएं पर जब राजीव ने मना कर दिया तो उन्होंने राजीव से यह कहा कि दोबारा विवाह कर लें. राजीव ने इसे हंसी में उड़ा दिया, पर रजनी को देख कर उन में दोबारा से यह इच्छा जागृत हो गई.

उन के दिल में रजनी के लिए एक एहसास था जिस में वासना नहीं थी पर था एक ऐसा लगाव और खिंचाव जिस के कारण उन्हें दोबारा से जीने की ललक पैदा हो गई थी. बहुत बार उन्हें अपना ही व्यवहार अनजाना लगता पर वे चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रहे थे. उन का बहुत मन था रजनी को अपने घर लाने का, पर वे जानते थे कि रजनी कोई न कोई बहाना बना लेगी. उन्हें मालूम था, वे दोनों उस पीढ़ी के हैं जहां पर महिलाएं अपनी इच्छाओं को कभी जाहिर नहीं करतीं.

आज दूर से ही उन्होंने रजनी को देखा तो देखते ही रह गए. आज रजनी ने ग्रे और काले रंग का पजामाकुरता पहना हुआ था जो उन के गेहुएं रंग पर बहुत फब रहा था. जैसे ही रजनी करीब आईं तो बरबस उन के मुख से निकल गया, ‘आज उम्र के 10 साल कहां छोड़ आई हो?’

रजनी झेंप गई, बोली, ‘दीया ने जन्मदिन पर तोहफा दिया है, तो बच्ची का दिल रखने के लिए आज पहन लिया.’

राजीव बोले, ‘वाह, पोती आई हुई है. गुडि़या से मिलने मैं आज जरूर आऊंगा.’

इस से पहले रजनी कुछ बोल पातीं, तभी न जाने कहां से दीया आ गई और बोली, ‘जरूर अंकल, शाम को मैं दादी के लिए केक भी ला रही हूं.’

रजनी अजीब धर्मसंकट में थीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. लिफ्ट में उन्होंने दीया से शिकायती लहजे से बोला, ‘दीया, क्या जरूरत थी, राजीवजी को बुलाने की?’

दीया बेबाक अंदाज में बोली, ‘क्योंकि वे आप के मित्र हैं और आप मम्मीपापा की मां हो, वो आप के मम्मीपापा नहीं हैं.’

शाम को रजनी का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था यह सोचसोच कर कि आलोक और वंदना क्या सोचेंगे. दीया ने जबरदस्ती उन्हें कांजीवरम सिल्क की पिस्ता रंग की साड़ी पहनाई और मोतियों का एक सैट भी पहना दिया. वंदना ने मुसकरा कर कहा, ‘दीया, तू तो दादी को दुलहन की तरह सजा रही है.’ यह सुन कर रजनी कट कर रह गई.

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शाम को 5 बजे घंटी बजी, राजीव जी खड़े थे हाथों में सफेद फूलों का गुलदस्ता लिए हुए, साथ में था एक चौकलेट का बौक्स जो उन्होंने बड़े प्यार से दीया को थमा दिया. सभी लोग कुछ देर तक चुप बैठे रहे. फिर राजीव ने ही बातचीत की पहल की और देखते ही देखते राजीव और आलोक में कार्य संबंधी बहुत सारी बातें मिल गईं. जब राजीव रात का खाना खा कर बाहर की तरफ निकले तो सब से काफी घुलमिल चुके थे.

बहू वंदना ने आलोक से मुखातिब हो कर पूछा, ‘आलोक, तुम तो बोलते थे, मम्मी की शामली में भी कोई मित्र नहीं हैं पर मम्मी तो बेंगलुरु के रंग में बड़ी जल्दी रंग गईं.’

रजनी इस से पहले कुछ बोलती, दीया बोली, ‘मम्मी, इस में क्या गलत है?’ आलोक ने भी अपनी चुप्पी से दीया को मूक समर्थन दिया. पर वंदना की बात के बाद रजनी ने खुद ही अपने घूमने का समय बदल दिया.

एकदो दिनों तक तो राजीव ने कोई ध्यान न दिया पर तीसरे दिन उन का माथा ठनका और उन्होंने रजनी को उन के  मोबाइल पर कौल कर दिया. रजनी ने फोन उठाया तो राजीव चिंतित स्वर में बोले, ‘क्या हुआ, आप की तबीयत तो ठीक है?’

रजनी ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘जी, पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं, मेरा आप से कोई अनुबंध थोड़े ही है कि मैं और आप एकसाथ सैर करेंगे?’

राजीव ने हंस कर कहा, ‘कृपया अन्यथा न लें, एक मित्र के नाते पूछ रहा हूं.’

दीया उसी कमरे में थी जो रजनी से बोली, ‘दादी, यह गलत बात है. राजीव अंकल बहुत अच्छे हैं.’

रजनी बोली, ‘बिट्टो, समाज के कुछ नियम हैं जो हम औरतों को निभाने ही पड़ते हैं चाहे हम 16 साल के हों या 65 साल के.’

आज दीया फिर से वापस अपने कालेज जा रही थी. जाने से पहले वह बोली, ‘दादी, ये कायदे और नियमरूपी बेडि़यों में आप अपने को कैद मत करो. आप अगर खुश रहोगे तो वह ही खुशी आप हमें दोगे. मम्मी या किसी और के कहने पर अपनी जिंदगी को जीना मत छोड़ो.’ रजनी कुछ न बोली.

कुछ दिनों बाद आलोक का औफिस की तरफ से विदेश जाने का कार्यक्रम बना. औफिस पत्नी का खर्चा भी वहन कर रहा था. पर मां के कारण आलोक का मन नहीं था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस की मम्मी 2 माह तक सब कैसे अकेले संभालेगी. यह सब सुन कर वंदना का मुंह सूज गया. पर जब रजनी को इस बात का मालूम हुआ तो उन्हें बहुत दुख हुआ. सुबह नाश्ते की टेबल पर वे आलोक से बोलीं, ‘बेटे, मैं तुम दोनों को किसी प्रकार के बंधन में बांधने नहीं आई हूं. तुम जाओ और अपने साथ वंदना को भी ले जाओ.’ वंदना खुश हो गई और आलोक भी अब बिना किसी हिचक के अपनी ट्रिप की तैयारी करने लगा.

जैसे कि हमारे देश की परंपरा है, हम बुजर्गों को आदरणीय समझते हैं. पर उन में कुछ भावनाएं हैं, यह हम नहीं मान सकते. रजनी भी यही मानती थीं, इसलिए अब तक राजीव रजनी के मन की थाह नहीं ले पा रहे थे.

एक दिन सुबहसुबह राजीव के पास

दीया का फोन आया. वह रोंआसी,

हो ?कर बोली, ‘‘अंकल, मैं सुबह से मोबाइल मिला रही हूं, दादी फोन नहीं उठा रही हैं, वे ऐसा कभी नहीं करतीं.’’

राजीव बोले, ‘कल ही तो हम मिले थे, तुम चिंता मत करो, मैं अभी जाता हूं.’

चिंतित राजीव फौरन रजनी के फ्लैट पर पहुंच गए. बहुत देर तक घंटी बजाने के बाद भी जब कोई आहट नहीं मिली तो उन्होंने सोसाइटी के गार्ड की मदद से अंदर से दरवाजा खुलवाया. किसी अनहोनी की आशंका से उन्होंने एक झटके से दरवाजा खोला.

कमरे में बैड पर लेटी बुखार से तपती रजनी बुरी तरह से कंपकंपा रही थीं. राजीव ने बिना कुछ कहे उन्हें उठाया और गार्ड की मदद से अपनी कार में बैठाया. हौस्पिटल पहुंच कर उन्होंने उन्हें दाखिल कराया और फिर दीया को फोन पर सारी स्थिति से अवगत कराया. उन्होंने दीया से कहा कि वह चिंता न करे, अपनी परीक्षा पर पूरा ध्यान लगाए. साथ ही यह ताकीद भी की कि वह अपने मम्मीपापा को इस बात से अवगत न कराए.

पूरे हफ्ते दिन को दिन और रात को रात न मान कर राजीव ने रजनी की सेवा की. अब रजनी पहले से काफी स्वस्थ थीं और कल उन्हें वापस घर जाना था. आलोक के आने में अभी 25 दिन शेष थे. राजीव अब रजनी को अकेले नहीं छोड़ना चाहते थे. हौस्पिटल के बाद वे रजनी को अपने फ्लैट पर ले आए.

रजनी हाथ जोड़ कर बोलीं, ‘आप ने मेरे लिए बहुतकुछ किया है. यह जीवन आप की ही देन है. पर कृपया मुझे मेरे घर पर छोड़ दीजिए. वैसे, आप खुद भी समझदार हैं.’

राजीव संयत स्वर में बोले, ‘आप मुझे बेहद पसंद हो, मैं आप के साथ अपनी जीवन की सांझ बांटना चाहता हूं. पर आप के लिए मैं जो कुछ भी कर रहा हूं या करूंगा, इस में मेरा स्वार्थ निहित नहीं है. यह, बस, इंसानियत के नाते कर रहा हूं. मैं एक मित्र और हितैषी होने के नाते आप को अकेला नहीं छोड़ूंगा.’

तभी घंटी बजी और दीया ने खिलखिलाते हुए प्रवेश किया और रजनी के गले लग कर फफक कर रो पड़ी. राजीव ने उन दोनों के लिए खाना लगाया और खाने के बाद उन्हें सोने के लिए कमरा दिया. शाम को दोनों दादीपोती को राजीव ने उन के फ्लैट पर छोड़ दिया.

दीया पूरे एक हफ्ते रही और इन दिनों में वह राजीव के बहुत करीब आ गई थी. अब वह कालेज के लिए निकली, तो राजीव और रजनी का रिश्ता दोबारा से पुरानी लीक पर चलने लगा. न राजीव ने कभी अपनी बात दोबारा दोहराई, न रजनी अब पहले की तरह हिचकिचाईं.

रजनी को राजीव का साथ पहले भी भाता था पर कुछ दिनों पहले तक वे जिस परिधि में अपने को बांध कर रख रही थीं, उस घटना के बाद उन्होंने अपने को उस कैद से आजाद कर लिया था. उन्हें समझ आ गया था कि जीवनसाथी की सब से ज्यादा जरूरत सांझ की बेला में ही होती है.

आज सवेरे की फ्लाइट से आलोक और वंदना आ गए थे. रजनी ने पिछले दिनों में अपना मन स्थिर कर के एक फैसला ले लिया था, एक ऐसा फैसला शायद जो अपने 65 साल की जिंदगी में उन्होंने पहली बार अपनी खुशी के लिए लिया था और अब वे खुलेदिल से अपनी जिंदगी की शाम को राजीव के साथ बांटना चाहती थीं.

आज रात खाने पर उन्होंने राजीव को बुलाया था और राजीव के सामने ही उन्होंने अपने परिवार को अपने निर्णय से अवगत कराया. आलोक थोड़ा अनमना हो गया और सब से पहले उस ने अपनी बहन को सूचित किया. अनिता, जो अपनी मम्मी के हौस्पिटल में ऐडमिट होने पर अपनी ससुराल की जिम्मेदारियों के कारण बड़ी सफाई से कन्नी काट गई थी, आज अपनी मां के आगे ससुराल वालों की दुहाई दे रही थी. उधर आलोक को भी सबकुछ बहुत अजीब लग रहा था. पर वंदना को सब से ज्यादा चिंता अपनी सास के अकाउंट में जमा धनराशि की हो रही थी. दीया ही इस बात से सब से ज्यादा खुश थी.

रात को खाने की मेज पर तनावभरा माहौल था, खुल कर कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था. अनिता ने ही पहल कर के कहा, ‘मम्मी, आप के इस फैसले से मेरी जिंदगी पर असर पड़ेगा और आप अकेली कहां हो, मैं और आलोक भैया हैं न. अगर आप के आगेपीछे कोई न होता तो बात कुछ और थी.’

रजनी बोली, ‘अनिता बेटा, मेरा फैसला अब नहीं बदलेगा. यह मैं ने बहुत सोचसमझ कर लिया है. अगर तुम्हें इतनी शर्म आ रही है तो मैं खुद दामादजी से बात कर लूंगी.’ उस के बाद अनिता पैर पटकते हुए अपने घर वापस चली गई.

वंदना अब हर समय रजनी को शकभरी नजरों से देखती रहती और जैसे ही वे बाहर जाने के लिए कदम उठातीं, एक व्यंग्यबाण जरूर छोड़ती.

रजनी ने सोचा भी कि क्यों वे राजीव के साथ के लिए इतनी आतुर हो रही हैं और इसलिए जब आज राजीव का फोन आया कि वे शादी की तारीख तय करने के लिए रैस्तरां में बात करना चाहते हैं तो उन्होंने यह सोच कर हां कर दी कि वे मना कर देंगी पर रैस्तरां में तो वे इस से पहले कि अपनी बात कर पातीं, यह तमाशा हो गया था. रजनी को मालूम था कि उन के फैसले में उन के साथ कोई नहीं होगा सिवा दीया के. पर उन की बहू ऐसी बातें कहेगी, ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था.

राजीव भी गुस्से और दुख में अपने फ्लैट की तरफ चल दिए. तभी मोबाइल की घंटी बजी. दूसरी तरफ से उन की बेटी थी कौल पर, ‘‘पापा, आप लिवइन क्यों कर रहे हो, आप शादी कर लो न रजनी आंटी से.’’

राजीव को समझ आ गया कि किसी हितैषी ने उन के बच्चों तक खबर पहुंचा दी है. उन्होंने बिना कुछ जवाब दिए फोन काट दिया.

फिर अगले दिन उन के बेटे और बहू की वीडियोकौल थी. उन दोनों को भी यह ही शक था और जब उन्होंने शांति से यह कहा, ‘‘तुम ने जैसे भी अपनी जिंदगी गुजारी, मैं ने उस में हमेशा तुम्हारा साथ दिया. अब मैं लिवइन करूं या शादी, तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.’’

दीया ने राजीव अंकल और रजनी के फैसले का पूरा समर्थन किया. बस, वही थी जो अडिग चट्टान की तरह उन के साथ खड़ी रही थी.

रजनी पर अब आलोक और वंदना की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता था. उन्हें समझ आ गया था कि उन से ज्यादा आलोक, अनिता और वंदना को उस धनराशि व जमीन की चिंता थी जो उन के नाम थी. अब माह में एक बार गाहेबगाहे फोन करने वाले राजीव के बच्चे भी हर तीसरे दिन उन को फोन करते. दोनों के बच्चों को अब यह लग रहा था, अगर यह शादी हो गई तो उन के मातापिता के नाम पर जो जमीनजायदाद है वह किस को मिलेगी?

यह बात सब से पहले राजीव को समझ आई. फिर राजीव और रजनी ने एक अनोखा फैसला लिया. 10 दिनों बाद एक सादे समारोह में रजनी और राजीव ने पहले फेरे लिए और फिर कोर्ट में जा कर उन्होंने अपने विवाह को रजिस्टर्ड करवा लिया. रजनी को एक अलग सी खुशी थी, खुशी अपनी मरजी से एक फैसला अपने लिए लेने की. पर दुख भी था क्योंकि उन के परिवार से कोई नहीं था सिवा दीया के.

राजीव ने शानदार रिसैप्शन दिया और उस में अपने और रजनी के परिवार को भी बुलाया था. उन्हें बुलाने के लिए उन्होंने वसीयत का जाल बिछाया था.

वसीयत जानने को बेताब और उत्सुक उन के बच्चे आए थे और जब वकील ने वसीयत पढ़ कर सुनाई, तो वे सब, बस, बैठे ही रह गए.

वसीयत के अनुसार, रजनी और राजीव ने अपनी 50 प्रतिशत जमापूंजी एक वृद्धाश्रम में दान कर दी थी. वहीं पर वे दोनों अपनी जिंदगी की सांझ बिताएंगे. बाकी की जमापूंजी उन्होंने अपने नाम पर ही रखी थी और उन के मरने के बाद अगर कुछ धनराशि बचती है, तो वह एक अनाथ आश्रम में दान दी जाएगी. कल रात की फ्लाइट से वे दोनों पहले पेरिस और फिर स्विट्जरलैंड जा रहे थे.

दोनों के बच्चे एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे कि उन के मातापिता ने एकदूसरे के बहकावे में आ कर यह वसीयत लिखवाई है.

वंदना बहुत तीखे स्वर में बोल रही थी, ‘‘अब हनीमून मन रहा है, यह भी नहीं सोचा मम्मी ने कि दीया की पढ़ाई और शादी के लिए कुछ नाम कर देतीं.’’

‘‘अरे, हम से दुश्मनी थी पर अपने नातीपोतों से भी कुछ लगाव नहीं था,’’ अनिता बोल रही थी.

दीया ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, मैं आप और पापा की जिम्मेदारी हूं, दादी की नहीं.’’

वहीं, आलोक को लगा उस का अपनी मम्मी को बेंगलुरु लाने का प्लान फेल हो गया है.

राजीव के बच्चे हालांकि नाखुश थे पर कुछ कह न पाए. बस, राजीव की बेटी चलते हुए यह बोली, ‘‘पापा, उम्मीद करते हैं कि आप की नई पत्नी आप का पूरा खयाल रखेंगी. आप को विदेश में आ कर स्वास्थ्य लाभ की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

संकेतों से ही सही, रजनी और राजीव को यह बता दिया गया था कि अब उन के बच्चे उन के लिए कुछ भी नहीं करेंगे, आगे के जीवन में वे ही एकदूसरे के साथ हैं.

नीचे राजीव अपनी कार लिए खड़े थे. रजनी ने अपना सूटकेस कार में रखा. आंखों के कोनों से खुशी की नमी को पोंछा और दोनों चल पड़े जिंदगी की खुशनुमा शाम की शुरुआत करने. शायद फिर से जीवनसंध्या में गुनगुनी धूप ने दस्तक दी थी.

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