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फिल्म ‘अली: द ब्लाइंड बाक्सर’ सामाजिक भेदभाव के खिलाफ एक लड़ाई है

हर इंसान का जन्म समान रूप से होता है.लेकिन इंसान के जन्म लेने के बाद समाज उसके साथ भेदभाव करते हुए बांट देता है. इंसान को जाति,धर्म से लेकर उसके शारीरिक रंग रूप व शारीरिक बनावट के आधार पर की जाती है.नेत्रहीन यानी कि आंखों की रोशनी खो चुके विकलांगों के साथ सर्वाधिक भेदभाव किया जाता है.नेत्रहीन को बाक्सर बनने की इजाजत नही है.‘बाक्सिंग फेडरेशन नेत्रहीन/दृष्टिहीन दिव्यांग को बाक्सिंग की रिंग में उतरने की इजाजत नहीं देता.

जबकि यूगांडा, इंग्लैंड जैसे देशों में दृष्टिहीन बाक्सर हैं,मगर उन्हें इसे पेशे के रूप में खेलने की इजाजत नहीं है.सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि पैरा ओलंपिक में व्हील चेअर(जिनके पैर नहीं है अथवा जो अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते) पर बैठे दिव्यांग को बाक्सिंग रिंग में उतर कर बाक्सिंग प्रतियोगिता का हिस्सा बनने का हक है,मगर दृष्टिहीन/अंधे इंसान को पैरा ओलंपिक भी बाक्सर बनने की इजाजत नहीं देता.

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इसे नेत्रहीन विकलांगों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव मानते हुए ही पुरस्कृत फिल्म सर्जक जोड़ी बिजाॅय बनर्जी और कौशिक मंडोल ने एक घंटे की फिल्म ‘ अली: द ब्लाइंड बाक्सर’बनायी है,जो कि जन्म से ही अंधे/दृष्टिहीन बालक के बाक्सर बनने की दास्तान है.यह फिल्म इस बात का भी सबूत है कि एक नेत्रहीन दिव्यांग भी बाक्सर बन सकता है और वह बाक्सिंग रिंग के अंदर आंखों से देख सकने वाले किसी भी बाक्सर के साथ प्रतियोगिता कर सकता है.यानीकि बिजाॅय बनर्जी और कौशिक मंडोल एक ज्वलंत मुद्दे पर मकसदपूर्ण फिल्म लेकर आए हैं, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कृत किया जा चुका है.

प्रस्तुत है फिल्मकार जोड़ी बिजाॅय बनर्जी और कौशिक मंडोल के बिजाॅय बनर्जी संग हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..
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अपनी पृष्ठभूमि और अब तक की यात्रा के बारे में बताएं?

-मेरा जन्म व परवरिश कलकत्ता में हुई.जाधवपुर युनिवर्सिटी से 1995 में मैने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की.फिर 1999 में मैंने दिल्ली से इंटरनेशनल बिजनेस विषय में एमबीए किया.1999 में ही मेरा कारपोरेट जगत में कैरियर शुरू हुआ.मैं कुछ वर्ष विदेश में भी रहा.कई कंपनियों में उच्च पदों पर रहा.एक कंपनी का सीईओ भी रहा.मैं यूरोप,इंग्लैंड,एशिया के कई देशों में रहा.कारपोरेट जगत में काफी व्यस्त जिंदगी रही.पर मेरे मन में फिल्म बनाने की इच्छा रही है.फिल्म के प्रति मेरा पैशन रहा है.2014 में मैने फिल्म निर्माण करने की ठान ली.इसलिए मैंने अपनी नौकरी छोड़कर इस दिशा में काम करने का मन बनाया.इसमें मेरे मित्र कौशिक मंडोल का साथ मिला.वर्ह आई आईटी खड़कपुर,इलेक्ट्रॉनिक्स से हैं और वह अभी भी इंफोसिस,पुणे में कार्यरत हैं.कहानी सुनाना हम दोनों का पैशन है.हमने ऑडियो विज्युअल माध्यम का उपयोग कर उन कहानियों को सुनाने का निर्णय लिया,जो कि समाज से निकली हों,मगर जिन्हे हम देख नही पाते हैं या हम उन्हे अनदेखा कर देते हैं.

ऐसी कहानियां कहने में ही हम दोनों की रूचि है.हम लोगो ने 2015 में बंगला भाषा में एक 20 मिनट की लघु फिल्म ‘उपहार’बनायी थी.इसमें हमने एक बच्चे के नजरिए से दिखाया है कि एक एकाकी परिवार की वजह से रिश्तों  में  किस तरह से असर पड़ता है.इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय  पुरस्कार,बाल कलाकार को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का अवार्ड भी मिला.यहां से हमारी सिनेमाई यात्रा शुरू हुई.हमने फिल्म मेकिंग का कोई कोर्स नहीं किया है.काम करते हुए ही सीखा.इसके बाद हमने एक घंटे की फिल्म ‘अली: द ब्लाइंड बाॅक्सर’बनायी.

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फिल्म‘लकी: द ब्लाइंड बाक्सर’ बनाने का ख्याल कैसे आया?
-‘उपहार’को मिली सफलता व शोहरत ने हमें कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया.तब हमने सोचना शुरू किया कि किस विषय को उठाया जाए?हमने महसूस किया कि हमारे यहां सामाजिक भेदभाव काफी हैं.यह बात मुझे व कौशिक को काफी कष्ट देती है.मेरा मानना है कि हम सभी समान स्तर पर ही पैदा होते हैं,उसके बाद समाज हम पर लेबल लगाता है.समाज हमे स्किन/चमड़ी के रंग,शारीरिक बनावट आदि के आधार पर बांटती है और यह तय करती है कि कौन हमारे समकक्ष है,कौन हसमे उंचा है और कौन हमसे नीचा है.यह बातें हमें कष्ट देती है.इसी बीच हमें यह जानकर आष्चर्य हुआ कि दृष्टिहीन/अंधे इंसान को समाज में ‘बेचारा’की दृष्टि से देखा जाता है.

इतना ही नहीं खेल जगत में एक ऐसा क्षेत्र है,जहां नेत्रहीनों को अछूत माना जाता है.और यह खेल है बाॅक्सिंग.इस बात ने हमें आश्चर्य  चकित करने के साथ ही तकलीफ पहुॅचायी और सोचने पर भी मजबूर किया.बाॅक्सिंग फेडरेशन का नियम है कि दृष्टिहीन इंसान बाॅक्सिंग का हिस्सा नहीं बन सकते और इस नियम को बदला नहीं जा सकता.पैरा ओलंपिक में जूड़ो,कराटे जैसे शरीर को छूने वाले खेल दृष्टिहीनों के लिए हैं,मगर बाॅक्सिंग नही है.अब आप खुद सोचिए कि एक इंसान व्हील चेअर पर बैठा हुआ है,उसके पैर नही है,तब भी वह बाॅक्सिंग कर सकता है,मगर दृष्टिहीन इंसान बाॅक्सिंग नहीं कर सकता.

जबकि मेरी रूचि बाक्सिंग में काफी रही है.क्योंकि बाॅॅक्सिंग सिर्फ एक खेल नही हैं,यह तो बाॅक्सिंग रिंग में तीन मिनट तक ‘मोमेंट आफ सरवाइवल’यानीकि खुद को जीवंत रखने का पल है.

हम सैलाॅन की ‘राॅकी’ सहित कई फिल्में देख चुके हैं.‘बाॅक्सिंग’के खेल में यह बात मायने नहीं रखती कि आपको कितनी बड़ी चोट लगी है, बल्कि मायने यह रखता है कि चोटिल होने के बावजूद आप कितनी जल्दी उठ खड़े होते हैं.कितनी जल्दी चोट से उबरते हैं.ऐसे में हमें लगा कि यदि समाज व खेल जगत में इतना भेदभाव है,तो क्यों हैं? क्या वास्तव में दृष्टिहीन का बाॅक्स बनना मुमकीन नही है.तब हमने इस पर शोध करना शुरू किया.

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आपने शोध में क्या पाया?

-हमने शोध में पाया कि भारत में एक भी दृष्टिहीन बाॅक्सर नही है.पूरे विश्व में तीन चार लोग हैं.मसलन, यूगांडा,आस्टे्लिया व इंग्लैंड में हैं.यह वह लोग हैं,जो कि वयस्क हैं और किसी दुर्घटना में अपनी आंखों की रोशनी खो बैठने के बाद अंधे हो गए.जब आप उम्र के किसी पड़ाव में आकर दृष्टिहीन हो जाए,तो इसका मनोवैज्ञानिक असर होता है,यह लोग फ्रस्ट्रेशन में पंचिंग करने लगे. पंचिंग करते करते यह बाॅक्सर बन गए.अमरीका के ए ले में ‘मिक्स मार्शल आर्ट’का खेल होता है.थाईलैंड व यूके में एक दृष्टिहीन लड़का है और बाॅक्सिंग करता है.यूगांडा के कम्पाला शहर में बशीर रामनाथन लंबे समय से बाॅक्सिंग फेडरेशन से मांग कर रहे हैं कि उसे लायसेंस दिया जाए,वह प्रोफेशनल बाॅक्सिंग करना चाहता है.पर बाॅक्सिंग फेडरेशन उसे लायसेंस देने को तैयार नही है,जबकि उसने बाॅक्सिंग सीखी है.फेडरेशन का कहना है कि हम तुम्हे प्रोफेशनल बाॅक्सर से लड़ने के लिए अवसर देंगे,मगर हम देख सकने वाले बाक्सर की आंख में पटी बांध देंगे,यह बात शबीर रामनाथन को मंजूर नही.वह कहता है कि मुझे सामान्य बाॅक्सर संग ही बाक्सिंग प्रतियोगिता करनी है.शबीर का मनना है कि दृष्टिहीन होते हुए भी उसने अपने तरीके से देखना सीखा है.

यदि आंखों की रोशनी वाले को उसकी आंख पर पट्टी बांधकररिंग में उतारोगे,तो यह उसके साथ अन्याय होगा.मेरे कहने का अर्थ यह है कि हर दृष्टिहीन इंसान अपने तरीके से देखता है,पर हम उसकी तारीफ नही कर पाते.हमने जितने भी ऐसे उदाहरण देखे,वह सभी किसी न किसी दुर्घटना में अंधे हो चुके है,उसके बाद उन्होने बाॅक्सिंग के बारे में सोचा.

शोध करने के बाद हमने ऐसे बालक के बारे में कहानी सोची जो कि जन्म से अंधा है और बाॅक्सर बनता है.एक बाक्सर की जरुरत के अनुसार उसके पंच में दम है, उसके अंदर जुनून है, मगर आंख में रोशनी नही है.तो क्या वह बाॅक्सर के रूप में अपनी यात्रा को आगे बढ़ा सकता है?इस तरह की कहानी के माध्यम से हम स्वयं यह जानना व परखना चाहते थे कि एक दृष्टिहीन इंसान का बाॅक्सर बनना संभव/मुमकीन है या नहीं है.

हमारे देश में कई एनजीओ है,जो कि अपने फायद के लिए कुछ गतिविधियां करते रहते हैं.अंधों के लिए फुुटबाल स्टेडियम का उद्घाटन हुआ,तो वहां कुछ अंधे बालकों को लेकर गए.दिन भर धूप में खड़ा रखा, मगर फुटबाल को पैर तक मारने नहीं दिया.सिर्फ नेता आए,इन बालको संग फोटो खिंचवायी,इसके अलावा कुछ नहीं.इस तरह के अनुभव इन दृष्टिहीन बालकों को होते रहे हैं.वह दृष्टिहीन बालक के माता पिता से उनके बच्चे को कुछ बना देने के झूठे आश्वासन देते रहते हैं.

फिल्म ‘‘अली:द ब्लाइंड बाक्सर’’ की कहानी क्या है?

-यह कहानी एक सोलह सत्रह वर्ष के जन्म से ही दृष्टिहीन बालक अली की है.उसके माता पिता मध्यमवर्गीय हैं और बहन है.वह स्कूल जाता है.एक सामान्य जिंदगी जी रहा है.उसके मम्मी पापा मानते हैं कि उनका बेटा दुनिया में किसी से कम नहीं है.उसके माता पिता के पास अक्सर एनजीओ के लोग आकर बड़ी बड़ी बातें करके जा चुके हैं.एक दिन एक बाक्सिंग कोच की नजर अली पर पड़ती है और वह उसे बाक्सर बनाने का निर्णय लेता है.जिसके लिए अली व उसके माता पिता भी तैयार हो जाते हैं.प्रशिक्षण हासिल करने के बाद अली बाक्सिंग रिंग में उतर कर आंखों से देख सकने वाले बाॅक्सिंग चैंम्पियन से प्रतियोगिता करता है और विजयी होता है.अंततः अली पूरे समाज के सामने दिखाता है कि वह बाक्सिंग कर सकता है.वह एक बेहतरीन बाॅक्सर है.

फिल्म ‘अली द ब्लाइंड बाक्सर’ में एक अंधे बालक को बाक्सर बनाने की बात की गयी है?

-इसी के साथ हमने इस फिल्म में दिव्यांग बच्चों का अपने माता पिता के साथ किस तरह का इक्वेषन होता है,इसे भी चित्रित किया है.एक घटना ऐसी घटित होती है कि बाॅक्सिंग कोच की नजर अली पर पड़ती है.उसे कुछ अहसास होता है और वह तय करता है कि वह अली को बाॅक्सिंग सिखाएगा.उसके बाद अली व उस कोच की यात्रा शुरू होती है.साथ में सामाजिक इनजस्टिस/ अन्याय की बातों को भी उठायी हैं.सबसे बड़ी बात यह कि हम स्वयं यह समझना चाहते थे कि क्या यह सिर्फ एक मानसिकता का मुद्दा है या तकनीकी अड़चन है.
हम मानते है कि बॉक्सिंग ताकत और चपलता का खतरनाक खेल है.गलत जगह जबड़ा टूटा या मुक्का मारा जाए,तो एक पल की देरी से जान का खतरा होता है.मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि नेत्रहीन/अंधा इंसान अपने तरीके से देख सकता है.

कलाकारों का चयन?

-पटकथा लिखने के बाद हमने सोचा कि यदि हमने किसी आंखों की रोशनी वाले कलाकार को अली के किरदार में लेकर फिल्म बनाई,तो हमारा जो मकसद है,वह तो पूरा नहीं हो सकता.इसलिए हमने अली के किरदार को निभाने के लिए सोलह सत्रह वर्ष के दृष्टिहीन बालक की तलाष षुरू की.क्योंकि हमारी फिल्म महज किसी किरदार को अंधा दिखाने के मकसद से नही बनी है.बल्कि हम एक दृष्टिहीन इंसान इंसान को दिखाना चाहते थे,जो कि आम जिंदगी जी रहा है.दूसरी बात यह हमारी खुद की यह प्रयोगात्मक यात्रा इस बात को समझने के लिए थी कि आंखों की रोषनी न होने पर भी इंसान बाॅक्सर बन सकता है या नहीं?ऐसे में अली के किरदार के लिए किसी अंधे युवक को चुनना हमारे लिए काफी कठिन रहा.पर हमने तलाष जारी रखी.काफी समय लगा.हमें अली के किरदार के लिए शब्बीर शेख नामक बालक ‘पुणे अंध विद्यालय’में मिला,जो कि दसवीं कक्षा का छात्र था.अब तो वह बारहवीं कक्षा में पहुॅच गया है.उसकी आंखों की रोशनी एक संक्रमण के चलते एक वर्ष की उम्र में ही चली गयी थी.उसके पापा बीड़ के एक गांव में किसान हैं.उसका भाई तौसिफ भी अंधा है.यदि हमें षब्बीर षेख या उसके जैसा कोई लड़का नहीं मिलता, तो हम यह फिल्म नहीं बनाते.

हम चाहते थे कि कोई भी कलाकार कैमरे के सामने अभिनय करने की बजाय स्वाभाविक ढंग से काम करे.क्योंकि हमारी फिल्म की कहानी हमारे समाज के आम इंसान की कहानी है.इसमें जो बाक्सर हैं,जिसके साथ अली को रिंग के अंदर बाक्सिंग करनी है,वह आठवें लेबल का बाक्सिंग चैंम्पियन साहिर वाघमारे है.कोच के किरदार में बाक्सिंग व फिटनेस ट्रेनर और इंटरनेशनल स्तर पर पुरस्कृत बौडीबिल्डर आकाश आहुते हैं.उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया है.अली की बहन के किरदार में राष्ट्रीय स्तर की बाॅक्सिंग चैंपियन है.मैचे के रेफरी के किरदार में वास्तविक बाक्सिंग मैच रेफरी राकेश भानु हैं.अली के पापा के किरदार में अनुज सेंगर व मां के किरदार में अर्चना पाटिल है,निजी जीवन में इनके बच्चे भी किसी अन्य रूप से विकलांग हैं,तो यह विकलांग बच्चों की मानसिकता वगैरह को समझते हैं.इसलिए इन सभी ने हमारी कहानी के अपने किरदारों को पहले से जिया हुआ था.नकुल तलवरकर हमारे साउंड रिकाॅर्डिस्ट हैं.विनय देषपांडे एडीटर और संगीतकार भी हैं.

अली के किरदार के लिए शब्बीर शेख ही क्यों?

-(बहुत अच्छा सवाल है)…. हमने जो पटकथा लिखी थी,उसमें अली की शारीरिक बनावट के बारे में विस्तार से सोचकर लिखा था कि उसके कंधे चैड़े व मजबूत होने चाहिए.उसका कद उंचा होना चाहिए.हमने यह सब सिनेमा के दृष्टिकोण से सोचा था.नेत्रहीन इंसानो की आंखे दो तरह की होती हैं.एक वह जिसकी आंखे डिफाॅम्र्ड/कुरूप हों,दूसरा वह जिसकी आंखें कुरूप नहीं होती है, मगर उसकी आंखों में रोशनी नहीं होती है.हम दोनों तरह की आंखों वाले नेत्रहीन बालक को अपनी फिल्म से जोड़ने को तैयार था.हमने यह सोचा था कि वह आत्म विष्वासी नजर आना चाहिए.उसके हाथ भी लंबे होने चाहिए.हम जब पुणे के अंध स्कूल पहुॅचे,तो वहां लड़कों की भीड़ में मैने देखा कि एक लड़का बिंदासपना के साथ चलकर आ रहा है.वह खेलों में भी रूचि रखता हैै.वह क्रिकेट में आल राउंडर है.वह अपनी क्रिकेट टीम का कैप्टन भी है और कई शील्ड जीत चुका है.वह मलखम करता है.पुणे का यह अंध विद्यालय मलखम के लिए प्रसिद्ध है.फिर हमने कुछ लड़कांे से बात भी की थी.शब्बीर से भी बात की.फिर स्कूल के प्रिंसिपल व शब्बीर के माता पिता से बात की.शब्बीर के माता पिता तुरंत तैयार हो गए,और उनका पूरा सपोर्ट मिला.

शब्बीर ने बाॅक्सिंग सीखने के लिए हामी क्यों भरी?

-उसकी सोच सिर्फ इतनी थी कि यदि कोई उससे कहे कि वह नेत्रहीन है,इसलिए यह काम नहीं कर सकता, तो वह उस काम को करके दिखाएगा.शब्बीर खुद को किसी भी सामान्य बालक से कमतर नही आंकता.वास्तव में नेत्रहीन इंसान के देखने का तरीका अलग होता है,यह बात हर इंसान को समझनी चाहिए.यही बात हम अपनी फिल्म के माध्यम से भी पूरे विष्व के लोगों, खासकर बाॅक्सिंग फेडरेशन को समझाना चाहते हैं.

शब्बीर की याददाष्त तेज है.हमने उसके लिए फिल्म की पटकथा को ब्रेल भाषा में नहीं बनाया.हमने संवाद कहे और उसे याद हो गए.सच कहूं तो हमने स्वयंउससे कुछ न कुछ सीखा.

फिर शब्बीर शेख को बाक्सिंग कैसे सिखायी?

-अली के किरदार के लिए शब्बीर शेख का चयन करने के बाद अहम सवाल था कि क्या वह बाॅक्सिंग सीखना चाहेगा और सीख सकेगा?शब्बीर ने कहा कि वह सीखना चाहता है.तब हमने उसके विद्यालय और उसके माता पिता से इस बात के लिए इजाजत लेकर उसे पूरे चार माह तक ट्रेनिंग दिलायी.उसकी ट्रेनिंग के दौरान बिना फिल्म की शूटिंग किए हम अपनी फिल्म को देख रहे थे.

हमारे सामने समस्या थी कि शब्बीर को बाॅक्सिंग की शिक्षा कैसे देंगें? क्योंकि हमारे यहां ऐसा कोई ट्रेनर नही है,जो कि दृष्टिहीन को बाॅक्सिंग सिखाता हो.और न ही कोई मैन्युअल आदि ही है.हमने कई बाल मनोवैज्ञानिक डाक्टरों से बात की.कई बाक्सरों से बात की.बाक्सिंग की ट्रेनिंग देेने वालों से बात की.हमने शोध के दौरान उन खेलों के बारे में जाना,जिन खेलों का अंधे खेल सकते हैं और यह जाना कि वहां पर उन्हें उन खेलों के ट्रेनिंग कैसे दी जाती है.और हमने खुद ही बाॅक्सिंग मैन्युअल बनाया कि किस तरह एक अंधे बालक को बाॅक्सिंग सिखायी जा सकती है.उसी आधार पर ट्रेनिंग ने शब्बीर शेख को बाॅक्सिंग की ट्रेनिंग दी.
देखिए,शोध आदि से हमारी समझ में आया कि बाॅक्सिंग टाइमिंग और स्पेस को समझने का खेल है.दृष्टिहीन व्यक्ति यह कैसे समझेगा?इसके लिए ट्रेनिंग देते समय कोच के दाहिने पैर को शब्बीर के बाएं पैर के साथ बांध दिया.इससे हुआ यह कि कोच जैसे जैसे अपना पैर आगे बढ़ा रहा था,वैसे वैसे षब्बीर भी कर रहा था.पंच वह आवाज के हिसाब से करता था.इसमें सामने वाले की साॅंस,चले आदि की आवाज को आधार बनाया.कई तरह की तकनीक अपनाकर उसे बाॅक्सर बनाया.उसने भी काफी मेहनत करके इसे सीखा.अब तो वह प्रोफेशनल बाक्सर बनने के साथ ही दृष्टिहीनों को बाॅक्सिंग सिखाना भी चाहता है.फिलहाल उसने दो लड़कों को सिखा दिया है.

फिर हमने एक वीडियो बनाया, जिसमें वह साहिल नामक युवक को बाक्सिंग सिखाता है.उसने जिस तरह से सीखा है,उसी तरह से वह दूसरे लड़के को सिखा रहा है.इससे हमें अहसास हुआ कि एक दृष्टिहीन /अंधा इंसान का बाॅक्सर बनना मुमकीन है. फिर हमने अपनी पटकथा के हर दृष्य को लेकर सभी कलाकारों के साथ वर्कषाॅप किया.क्योंकि हमारी फिल्म में अनुभवी कलाकार कोई नही है.सभी ने पहली बार कैमरे का सामना किया है, इसलिए वर्कषाॅप के दौरान इन्हे ग्रूम करना पड़ा.हाॅं!हर कलाकार निजी जिंदगी में जिस पेषे में है,उसी का किरदार उसने इस फिल्म में निभाया है.

हमने पहले से रिंग के अंदर के फाइटिंग दृष्यों को कैमरे के एंगल आदि के अनुसार कोरियोग्राफ नहीं किया था.बल्कि हमने साहिल से कहा कि तुम बाॅक्सिंग में चैंपियन हो और शब्बीर तुमने बाॅक्सिंग सीखी है,अब आप दोनो बाक्सिंग करो,हम अपना कैमरा उसी हिसाब से एडजस्ट कर लेंगें.इन दोनो ने बाक्सिंग रिंग के अंदर दो राउंड की वास्तविक फाइटिंग की,जिसे हमने अपने कैमरे में कैद किया.इस दौरान शब्बीर का ओंठ भी फट गया.पर शब्बीर व उसके पिता ने कहा कि कोई बात नहीं, चिंता न करें.

शब्बीर को रिंग के अंदर साहिल के संग फाइट करते देख कोच राकेष भानु ने ऐलान किया कि शब्बीर के अंदर बाक्सर है और अब वह आगे उसे मुफ्त में सिखाएंगे.

शब्बीर शेख भारत का पहला दृष्टि हीन/अंधा बाक्सर है.जिस खेल के साथ वह कभी जुड़ा हुआ नहीं था,जिसके बारे में उसने कल्पना भी नहीं की थी,उसी खेल को लेकर उसका अपना आत्मविष्वास जबरदस्त बढ़ा है.यह बात फिल्म के अंदर उसके किरदार में दिखाता है.सच कहूं तो अब फिक्षन,रियालिटी में बदल चुका है.कल्पना, हकीकत में में बदल चुकी है.

आपने 2015 में लघु फिल्म ‘उपहार’ बनायी थी.उसके बाद ‘अलीः द ब्लाइंड बाक्सर’को आने में चार पांच वर्ष का समय लग गया?

-हमें ‘अली द ब्लाइंड बाक्सर’की पटकथा लिखने में करीबन डेढ़ वर्ष का समय लग गया.क्योंकि उससे पहले हमने काफी शोध कार्य किया,कुछ बाल मनोवैज्ञानिकों व डाक्टरों से भी बातचीत की.बाल मनोवैज्ञानिकों से बात करने के पीछे मकसद यह समझना था कि एक नेत्रहीन बालक बाॅक्सिंग सीख सकता है या नहीं.अगर बिना सच को समझे हम आगे बढ़ जाते और बाद में पता चलता कि ऐसा ंसंभव नहीं है,तो हमारी मेहनत,समय व पैसा बर्बाद होता.और जिस बाल को लेगें, उसका सबसे अधिक उत्साह खत्म होगा.
फिर हमें अपने घर का किचन भी चलाना था,तो बीच बीच में उसके लिए भी कुछ काम करते रहे.उसके बाद अली के किरदार की तलाश में शब्बीर तक पहुॅचने में भी वक्त लगा.हमें खुद यह सीखना पड़ा कि बाक्सिंग के दृष्य कैसे फिल्माए जाते हैं.इसकी फोटोग्राफी भी मैने स्वयं की है.इस फिल्म के निर्माण में तेरह लोगों से थोड़ी थोड़ी सी रकम ली है,जो कि भारत के अलावा दूसरे देश के हमारे दोस्त हैं,उन सभी के नाम हमने कार्यकारी निर्माता के रूप में फिल्म में दिए हैं.

फिल्म किन फिल्म समारोहों  में दिखायी जा चुकी हैं और वहां पर किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?

-.पिछले एक वर्ष से यह फिल्म कई फिल्म समारोहों में घूम रही है.भूटान के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विकलांगता सेक्शन की फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म घोषित की गई.भूटान इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल में इसे सर्वश्रेष्ठ मोबाइल फिल्म का भी पुरस्कार दिया गया,यह क्यों दिया गया,मैं समझ नहीं पाया.कोलकाता इंटरनेशनल कल्ट फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार भी मिला.षांति निकेतन के टैगोर इंटरनेशनल फिल्म महोत्सव में ‘उत्कृष्ट उपलब्धि‘ पुरस्कार मिला.इसके अलावा कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों के लिए चयन हो चुका है.

अमरीका में कैलीफोर्निया व लास ऐंजेल्स के एक फिल्म समारोह के लिए चयन हुआ है.इस फिल्म का अफीका प्रीमियर केन्या में हो चुका है.‘केन्या इंटरनेशनल स्पोट्र्स फिल्म फेस्टिवल’होता है,यह अफ्रीका का अपना खेलों को समर्पित फिल्म समारोह है.इस फिल्म समारोह में पूरे विष्व की फिल्में शामिल हुई थी.इस फिल्म फेस्टिवल के निदेशक आसिफ करीम पहले क्रिकेट टीम के कैप्टन रहे हैं.उनका केन्या सरकार में अच्छी पहुॅच है.आसिफ करीम ने मेरी फिल्म की तारीफ की और अब वह केन्या सरकार और केन्या की पैरालाॅटिक कमेटी से बात कर रहे हैं कि फिल्म‘अली: द ब्लाइंड बाॅक्सर’ सबसे बड़ा सबूत है कि एक नेत्रहीन इंसान बाॅक्सर बन सकता है,इसलिए सरकार को चाहिए कि वह नेत्रहीनों को भी बाॅक्सिंग के क्षेत्र में आने की इजाजत दे और उन्हे प्रोत्साहित करे.

केन्या में इस फिल्म को आम जनता को दिखाया गया,बाकी फिल्मफेस्टिवल तो ‘कोविड 19’के चलते ऑन लाइन ही हुए.

हम अपनी इस फिल्म को ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’के लिए भी इस वर्ष भेजना चाहते हैं.इसके पीछे हमारा मकसद यह कि ज्यूरी में शामिल लोग देखेंगे,कि ऐसा संभव है.हम शब्बीर के माध्यम से शब्बीर जैसे नेत्रहीनों/ विकलांगो के अंदर उत्साह का सृजन करने के साथ ही इनके प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाना चाहते हैं.

भावी योजना?

-जी!हमने दूसरी फिल्म की योजना पर काम कर लिया है,यह फीचर फिल्म बांगला भाषा में होगी.यह एक दिन की कहानी है.जिसका हीरो अंधा है.हमने इसके लिए सुभाष डे को अनुबंधित किया है.जो कि जन्म से अंधे हैं और भारत के एकमात्र अंधे थिएटर निर्देशक हैं.उनका थिएटर ग्रुप है..‘‘ओनली देष’/द अदर वल्र्ड’’.इसके सभी 42 सदस्य अंधे हैं.उच्च कोटि का थिएटर करते हैं.उनकी पत्नी भी नेत्रहीन है.

लव जिहाद कानून में शुद्धि पर भी प्रतिबंध

उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे सब से बड़े भाजपाशासित राज्य मध्य प्रदेश में भी धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियों पर सरकारी लगाम लगाने के लिए मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 वजूद में आ गया है. इस अध्यादेश के मसौदे में कोई नई खास बात नहीं है बल्कि यह पुराने कई कानूनों का खिचड़ी संस्करण है जिस का इकलौता मकसद यह जताना है कि भाजपा अपने हिंदू राष्ट्र के उस एजेंडे पर कायम है जिस का बड़ा रास्ता दलितों के साथसाथ मुसलमानों और ईसाईयों को डराने से हो कर जाता है. आमतौर पर कानूनों का मकसद अपराधियों को सजा दिलाना और न्याय व्यवस्था में आम लोगों का भरोसा कायम रखना होता है. जबकि, यह नया कानून इन पैमानों पर खरा उतरने के बजाय दहशत फैलाता हुआ लगता है.

धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियां हमेशा से ही हिंदू धर्म के ठेकेदारों की बड़ी परेशानी और  सिरदर्दी रहीं है. लेकिन इन ठेकेदारों ने यह सोचने की जहमत कभी नहीं उठाई कि क्यों खासतौर से निचले तबके के हिंदू यानी दलित ही इसलाम, बौद्ध या ईसाई धर्म कुबूल कर लेते हैं और खासतौर से ही हिंदू लड़कियां शादी के लिए धर्म बदलने को आसानी से राजी हो जाती हैं.

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इस सवाल का जवाब या समस्या का हल नएनए कानूनों से नहीं मिलना क्योंकि जो हिंदू, वजह कुछ भी हो, धर्म परिवर्तित करते हैं वे, दरअसल, वर्णव्यवस्था, जातिगत भेदभाव, शोषण और प्रताड़ना से इतने आजिज आ चुके होते हैं कि उन्हें समाज में रहने में घुटन महसूस होने लगती है. दलित दूल्हे को घोड़ी पर बरात निकालने पर मारा गया, दलित को मंदिर में प्रवेश करने पर कूटा गया, दलित को कुएं से पानी नहीं भरने दिया गया, नाई ने दलित के बाल काटने से इनकार किया और सिंह सरनेम लिखने पर दलितों की हुई धुनाई जैसी कई वेरायटियों वाली खबरें रोजमर्रा की बाते हैं.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही मुरादाबाद के कोई 50 दलितों ने इसलाम अपना लिया था जिस से भगवा खेमे में सनाका खिंच गया था. 13 मई, 2017 को इन दलितों ने साफतौर पर कहा था कि योगी सरकार में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं और चूंकि भाजपा कार्यकर्ता ही कर रहे हैं, इसलिए उन का हिंदू धर्म से मोहभंग हो गया है. इन दलितों ने अपने घरों में रखी हिंदू देवीदेवताओं की मूर्तियों को नदी में बहा दिया था.

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ऐसी छिटपुट घटनाएं अकसर होती रहती हैं. लेकिन पिछले साल फरवरी के दूसरे हफ्ते में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एकसाथ 400 दलितों ने इसलाम ग्रहण कर लिया था. तब तमिल पुलीगल काची नाम के एक दलित संगठन के बैनर तले सभी दलितों ने हलफनामे के जरिए स्वेच्छा और बिना किसी दबाब या प्रलोभन के इसलाम कुबूल करने की बात कही थी. दलित से मुसलमान बने पंगुडी ने बानू नाम लेने के बाद मार्के की बात यह कही थी कि हिंदू धर्म से आजादी, जातिगत भेदभाव और छुआछूत को दूर करने का इकलौता रास्ता यही है. बाद में किस्तों में मुसलमान बने दलितों की तादाद 3 हजार तक पहुंच गई थी.

नए कानून, नई दहशत

ऐसे मामलों से हिंदुत्व के ठेकेदार कोई सबक लेते सुधरते नहीं, फिर उन से यह उम्मीद करना तो बेकार की बात है कि वे कभी इस तथ्य पर गौर करेंगे कि उन के धर्म में दूसरे धर्म के लोग क्यों शामिल नहीं होते. यहीं से उन की तिलमिलाहट शुरू होती है और अपनी कमजोरियों व खामियों को ढकने के लिए वे हिंदू राष्ट्र का राग आलापना शुरू करते गिनाने लगते हैं कि पहले अंग्रेजों और फिर मुगलों ने सोने की चिड़िया वाले उन के देश को लूटा, मंदिर तोड़े, औरतों की आबरू लूटी और हमारे महान धर्म व संस्कृति को तहसनहस कर डाला.

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गुजरे कल की आधेअधूरे सच वाली इन बातों का बदला लेने को अब भगवा गैंग अचानक हरकत में आ गया है. नया लव जिहाद कानून इस बात का सुबूत है, जिस का मकसद अल्पसंख्यकों में महज दहशत फैलाना और सवर्ण हिंदुओं को इस खुशफहमी में रखना है कि सब्र रखो, देश अब सनातन धर्म के मार्ग पर चल पड़ा है और जल्द ही सबकुछ हमारा होगा.

धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियों का हल लव जिहाद कानून के जरिए ढूंढने की कोशिश एक फुजूल बात है क्योंकि, दरअसल, समस्या कुछ और है जिस से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है. बात मध्य प्रदेश की करें, तो धार्मिक स्वंतत्रता अध्यादेश खामियों से भरा पड़ा है. इस की धारा 2(1)(क) कहती है कि, प्रलोभन से अभिप्रेत है और इस में सम्मिलित है, नकद अथवा वस्तु के रूप में कोई दान या परितोषण या भौतिक लाभ या रोजगार किसी धार्मिक निकाय द्वारा संचालित विद्यालय में शिक्षा बेहतर जीवनशैली दैवीय प्रसाद या उस का वचन या अन्यथा के रूप में किसी प्रलोभन देने का कोई कार्य.”

मुरादाबाद और कोयम्बटूर के मामलों में दलितों ने साफसाफ धर्मांतरण की वजह बताई थी कि वे क्यों मुसलमान बन रहे हैं. इस पूरे अध्यादेश में कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि अगर कोई प्रताड़ना और शोषण के चलते धर्म परिवर्तन करता है तो उस धर्म के मुखियाओं को भी  कोई सजा दी जाएगी. यहां सरकार यह भी स्पष्ट नहीं कर पाई है कि बेहतर जीवनशैली से उस का अभिप्राय क्या है और किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा से उसे क्या एतराज है और ये बातें किस लिहाज से लालच के दायरे में आती हैं.

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जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में बनाए गए इस कानून के नियम ही नहीं बनाए गए हैं जिस से यह समझ आए कि इस पर अमल कैसे होगा. लेकिन मौटेतौर पर 2 बातें लोगों को समझ आईं कि अब धर्मांतरण से पहले संबंधितों को 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी और अगर कोई शादी के मकसद से धर्म बदल रहा है तो यह अपराध होगा, यानी, अब धर्मांतरण काफी कठिन बना दिया गया है.

सब से ज्यादा दिलचस्प बात जो लोग चाहते थे वह यह है कि धर्म छिपा कर शादी करने वालों को सजा दी जाए तो उस के बारे में धारा 5 में कहा गया है कि,

“परंतु यह कि जो कोई भी उस के द्वारा माने जाने वाले धर्म से भिन्न किसी धर्म के व्यक्ति से विवाह करना चाहता है और अपना धर्म इस प्रकार छिपाता है कि अन्य व्यक्ति, जिस से वह विवाह करना चाहता है, विश्वास करता है कि उस का धर्म वास्तव में वही है जो कि उस का है, को कारावास 3 वर्ष से कम का न होगा, यह 10 वर्ष तक का भी हो सकता है तथा जुर्माने का भी दायी होगा जो 50 हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दंडित किया जाएगा.”

बोलचाल की भाषा में इस का मतलब यह है कि कोई असलम नाम का युवक अमर नाम रख कर जनेऊ धारण कर, भगवा कपड़े पहन और टीका लगा कर आशा नाम की युवती को धोखा दे कर उस से शादी करेगा तो वह अपराधी होगा. यह लव जिहाद कानून का पूरा सार है और इसीलिए यह कानून गढ़ा गया है. सोशल मीडिया पर बीते 3 सालों से इस तरह की पोस्टें प्रवाहित हो रहीं थीं या जानबूझ कर की जा रहीं थी, एक ही बात है कि मुसलिम लड़के धार्मिक पहचान बदल कर हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं और फिर उन से शादी कर उन्हें मुसलमान बनने पर मजबूर करते हैं और वे नहीं मानतीं तो उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं.

यह नई बात नहीं है. यह पहले भी अपराध था और किसी असलम को फूल माला नहीं पहनाई जा रही थी बल्कि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर सजा ही दी जा रही थी. इस में कोई शक नहीं कि ऐसा हो रहा था लेकिन यह इतना छिटपुट था कि उस के लिए अलग से कानून बनाना बेतुकी और गैरजरूरी बात है और उस पर होहल्ला मचाने का मकसद मुसलमानों को डराना भर है जिस से वे हिंदू लड़की से प्यार और शादी की बात ही न सोचें.

आजादी पर पहरा

इस कानून के जरिए शिवराज सरकार ने मुसलिम युवकों से ज्यादा हिंदू युवतियों की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश की है क्योंकि वे जागरूक होते जातपांत, रूढ़ियों और धर्म की बंदिशें तोड़ने लगी हैं. नए दौर की शिक्षित युवतियां आर्थिक और सामाजिक रूप से भी आत्मनिर्भर हो चली हैं, इसलिए खुद की जिंदगी से जुड़े अहम फैसलों के लिए, धर्म तो दूर की बात है, वे अपने अभिभावकों की भी मुहताज नहीं रह गईं हैं. भोपाल के नामी नूतन कालेज में पढ़ी एक छात्रा आरती रैकवार (आग्रह पर बदला हुआ नाम) की मानें तो कोई 5 साल पहले उस की एक ब्राम्हण सहेली ने किसी की परवा न करते हुए एक मुसलिम लड़के से शादी कर ली थी.

थोड़ा बवंडर सहेली के परिवारजनों ने मचाया पर चूंकि दोनों वयस्क और नौकरीपेशा थे, इसलिए कुछ खास हल्ला नहीं मचा. अब वह युवती एक बच्चे की मां है और पति के साथ खुशीखुशी रह रही है. इस युवती को खुशी इस बात की भी है कि उस ने अपनी मरजी से पसंद का जीवनसाथी चुना. लेकिन कुछ रुक कर आरती कहती है कि, “अब इस कानून के लागू होने के बाद युवाओं में दहशत है क्योंकि कई हिंदू लड़कियां मुसलमान लड़कों को और कई मुसलमान युवतियां हिंदू लड़कों को चाहती हैं.”

बकौल आरती, दहशत इस बात की कि हिंदू संगठन के लोगों ने हुड़दंग मचा रखा है. यह एक तरह से दोनों धर्मों के युवाओं को खुली धौंस है कि वे आपस में प्यार और शादी का ख़याल दिल से निकाल दें. ये हुड़दंगी आएदिन पार्कों, मौल्स और रैस्टोरैंट्स वगैरह में रेकी किया करते हैं कि कहीं कोई प्यार तो नहीं कर रहा. एकाध मामले में कोई हिंदू लड़की मुसलमान लड़के के साथ पकड़ी, यानी, साथ बैठी पाई गई, तो इन लोगों ने शहर सिर पर उठा लिया. मामला बीती 9 सितंबर का है जब संस्कृति बचाओ मंच के कार्यकर्ताओं ने जौहरी होटल पर धावा बोलते कुछ लड़केलड़कियों को पकड़ा था और आरोप यह लगाया था कि यहां लव जिहाद हो रहा था. अब तो न केवल भोपाल, बल्कि देशभर में यह हुड़दंग रोज की बात हो चली है. आरती दावे से कहती है कि “ये लोग इस वेलैंटाइन डे पर खूब हुड़दंग मचाएंगे.”

अभिभावक भी हैं इन के साथ 

असल में हिंदू मांबाप भी अपनी लड़कियों को ले कर इस चिंता में रहते हैं कि उन की लाड़ली  कहीं अपनी मरजी से शादी न कर ले. इसलिए कोई भी हिंदूवादी संगठनों के हुड़दंग का विरोध नहीं करता. आरती आगे कहती है, “अब तो कानून भी इन के साथ है. अब तक लव जिहाद के महज 2 मामले कथित रूप से सामने आए हैं, उन में अहम रोल इन्हीं लोगों का है. आज अगर मेरी सहेली शादी करती तो यह मुमकिन ही नहीं हो पाता क्योंकि पहले उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को खबर देनी पड़ती और आर्य समाज मंदिर, जहां से उस ने शादी की थी, के कर्ताधर्ता भी शादी कराने से इनकार कर देते.”

यानी, अब गोपनीयता की गारंटी खत्म हो गई है. कौन, कहां, किस से शादी करने वाला है, यह बात प्रशासन की तरफ से भी लीक हो सकती है और शादी कराने वाले धर्मस्थलों से भी, क्योंकि इन्हें भी नया कानून बाध्य करता है कि वे धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादी की पूर्व सूचना दें नहीं तो सजा भुगतने को तैयार रहें. अधिनियम की धारा 10(2) में निर्देश है कि, “कोई धर्माचार्य और / या कोई व्यक्ति जो धर्म संपरिवर्तन का आयोजन करना चाहता है उसे जिले के जिला मजिस्ट्रेट को, जहां ऐसा धर्म संपरिवर्तन किया जाना प्रस्तावित है, ऐसे प्रारूप में जैसे कि विहित किया जाए, 60 दिवस पूर्व सूचना देगा.”

अब डर यह भी है कि इस नए कानून को हथियार बनाते धड़ल्ले से मांबाप अपनी मरजी से शादी करने वाली बेटी के अरमानों का गला घोंटेंगे क्योंकि अधिकांश सवर्ण हिंदू तो यह भी नहीं चाहते कि उन की बेटी, मुसलमान और ईसाई तो दूर की बात है, अपने से छोटी जाति वाले लड़के से भी शादी करे. अब होगा यह कि लड़की अगर छोटी जाति वाले लड़के के साथ भागी तो वे उसे अपहरण बताते लड़के को मुसलमान बताएंगे. पकड़े जाने के बाद लड़के की जो पूजा हवालात में होगी, उस से उसे ज्ञान प्राप्त हो जाएगा कि यह इश्कविश्क बेकार की बात है. शादी बराबरी वालों यानी अपनी ही जाति में करना ठीक रहता है. खुद को बजाय असलम के अमर साबित करने में उसे पसीने छूट जाने हैं.

प्यार और आजादी पर पहरा बिठाने वाले इस कानून ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इमेज कट्टरवादी हिंदू नेता की बना दी है जिस से वे युवाओं की नजर में भी विलेन बन गए हैं. लेकिन उन की मजबूरी ऊपर से आए आदेशनिर्देश हैं कि जैसे भी हो और जितना भी हो, ऊंची जाति वाले हिंदुओं को खुश करने वाले फैसले लो. सो, वे ले रहे हैं, वरना उन्हें चलता कर देने में कोई लिहाज भगवा खेमा नहीं करेगा. इसी जल्दबाजी में शिवराज सिंह यह भूल गए कि नया अधिनियम शुद्धि को भी प्रतिबंधित करता हुआ है.

आर्य समाज बनाम आरएसएस

जिन युवाओं के अभिभावक मरजी से उन्हें शादी नहीं करने देते, आर्य समाज मंदिर उन के लिए बेहद मुफीद और सस्ते साबित होते हैं (और अब तक सुरक्षित भी थे) क्योंकि वहां कम खर्च में मान्यताप्राप्त शादी हो जाती है. भोपाल के 10 नंबर मार्केट स्थित आर्य समाज मंदिर की कर्ताधर्ता अर्चना सोनी बताती हैं कि, “अकेले भोपाल के 3 आर्य समाज मंदिरों में औसतन प्रतिदिन 5 शादियां होती हैं जिन में से 3 में युवा घर, जाति या समाज वालों से विद्रोह कर शादी कर रहे होते हैं.”

एक वरिष्ठ समाजसेवी धर्मेंद्र कौशल मानते हैं कि लव जिहाद कानून से आर्य समाज पद्धति से होने वाली शादियों की संख्या कम होगी जिस के कई दुष्परिणाम भी सामने आएंगे क्योंकि आर्य समाज के नाम पर फर्जीवाड़ा भी होने लगा है. अकेले भोपाल में ही कई आर्यसमाजियों ने शादी कराने की दुकानें खोल ली हैं. अंतर्धर्मीय शादियां कराने वाले सहूलियत के चलते इन के पास जाने को मजबूर होंगे क्योंकि ये लोग डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को अंतर्धर्मीय शादियों की सूचना न देने के पैसे भी जोड़ों से वसूलेंगे. बकौल धर्मेन्द्र, कई मुसलमान युवक हिंदू युवती से शादी करने के लिए खुद हिंदू बन जाते हैं जिन की शुद्धि आर्य समाज मंदिर में की जाती है. नए कानून में यह भी कहा गया है कि, “पैतृक धर्म में वापसी धर्मांतरण नहीं माना जाएगा, लेकिन, इस में शुद्धिकरण की बात नहीं की गई है.”

शुद्धिकरण के इतिहास के बारे में नई पीढ़ी तो यह बिलकुल भी नहीं जानती कि इसे आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुरू किया था और स्वामी श्रद्धानंद ने इसे एक मुहिम की शक्ल दी थी. 20वीं सदी से शुरू हुए शुद्धि आंदोलन का असल मकसद उन दलित आदिवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाना था जो मुरादाबाद और कोयम्बटूर के दलितों की तरह प्रताड़ना, छुआछूत के चलते ईसाई या मुसलमान हो गए थे. यह अभियान बड़े पैमाने पर चला था जिस का विरोध ईसाईयों और मुसलमानों के अलावा ऊंची जाति वाले हिंदुओं ने भी किया था क्योंकि उन की नजर में दक्षिणा न चढ़ा पाने वाले शूद्र पशुतुल्य हुआ करते थे.

आर्य समाज हिंदू धर्म में व्याप्त उन कुरीतियों की भी मुखालफत करता है जिन में बलि, दानदक्षिणा, मूर्तिपूजा, बालविवाह, तीर्थयात्रा, पूर्वजों की पूजा, जातिव्यवस्था आदि शामिल हैं जिन से सदियों से ब्राह्मणों की रोजीरोटी चल रही है. पंडेपुजारियों को आर्य समाजी सिद्धांत, जो मूलतया सुधारवादी थे, कभी फूटी आंख नहीं सुहाए.

अब यह टकराव नई शक्ल में देखने में आ रहा है जिसे आरएसएस बनाम आर्य समाज कहे जाने में किसी लिहाज की जरूरत नहीं. लव जिहाद कानून में शुद्धि की बात इसीलिए जानबूझ कर उड़ाई गई है क्योंकि आरएसएस वाले हिंदू शुद्धि में यकीन ही नहीं करते लेकिन हिंदुओं की घटती आबादी का रोना हर कभी रोते इसे राष्ट्रवाद के लिए खतरा जरूर बताते रहते हैं. दिक्कत तो यह है कि यह वर्ग वे सब बुराइयां नहीं छोड़ना चाहता जिन का आर्य समाज विरोध करता है.

यह श्रेष्ठि वर्ग चाहता है कि शादियां भी सनातनी रीतिरिवाजों से हों, इसलिए आर्य समाजी शादियों को लव जिहाद कानून के जरिए हतोत्साहित किया जा रहा है. लेकिन धर्मेंद्र कौशल इसे आर्य समाज और आरएसएस का टकराव नहीं मानते, क्यों?, इस सवाल का जवाब भोपाल के ही एक आर्यसमाजी आर सी श्रीवास्तव यह कहते देते हैं कि, “असल में इन दिनों हर कोई भगवा रंग में रंगा जा रहा है. तूती उन लोगों की बोल रही है जिन्होंने हिंदू धर्म का नाश करने में कोई कसर न पहले छोड़ी थी, न आज छोड़ रहे हैं. ये लोग नहीं चाहते कि जातिगत रूप से हिंदू एक हों.” बकौल आर सी श्रीवास्तव, हालत तो यह है कि संघियों ने आर्य समाज के उन कई स्थलों पर कब्जा कर रखा है जिन्हें शाखा चलाने को मित्रवत दे दिया गया था.

यह मतभेदों की शुरुआत है क्योंकि आरएसएस और भाजपा जिस एजेंडे पर चल रहे हैं वह हिंदुओं में फूट डाल कर राज करते रहना है. अब यह कब तक चलेगा और इस का हश्र क्या होगा, यह कह पाना मुश्किल है लेकिन अमेरिका में जिस तरह रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप खारिज कर दिए गए, उसे देख महसूस तो यही होता है कि लोकतंत्र में कट्टरवाद की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती. लव जिहाद जैसे कानून एक अनूठे तरीके से कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं जबकि जरूरत इस बात की है कि अंतर्धर्मीय और अंतरजातीय शादियों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन मिले.

हो इस का उलटा रहा है जो युवाओं से उन की प्राइवेसी, खुशी और हक छीन रहा है.

मंदीप पुनिया की गिरफ्तारी संदेह के घेरे में?

लेखक- रोहित और शाहनवाज

स्वतंत्र पत्रकार मंदीप पुनिया को तिहाड़ जेल मेजिस्ट्रेट ने 14 दिनों की ज्युडिशियल कस्टडी में भेजा गया है. मंदीप की ओर से एडवोकेट सरीम नवेद, अकरम खान और कामरान जावेद ने जमानत याचिका दायर की थी जिस में उन्होंने कई बिन्दुओं में मंदीप का हिरासत में लिया जाना गलत ठहराया था.

जिस में वकीलों के एफिडेविट में कहा गया था कि मंदीप पुनिया की हिरासत या संभावित गिरफ्तारी के बारे में देर रात तक उन के परिवार के सदस्यों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी. शाम 6:40 बजे हिरासत में लिए जाने के बाद उन की एफआईआर रात 1:21 बजे दर्ज की गई. पुनिया केवल अपने पत्रकार होने के कर्तव्यों को अंजाम दे रहे थे. अभियुक्त एक स्वतंत्र पत्रकार है लेकिन यह उसे गिरफ्तार करने के लिए कोई आधार नहीं हो सकता है.

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दिल्ली पुलिस ने शनिवार 30 जनवरी को सिंघू बौर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को कवर करने वाले दो पत्रकारों को हिरासत में लिया. उन में से एक मंदीप पुनिया हैं जो स्वतंत्र पत्रकार हैं व दि कारवां पत्रिका के लिए लिखते रहें हैं. इस के साथ ही मंदीप किसान भी हैं जो शुरूआती दिनों से किसान आन्दोलन को कवर कर रहे थे. दुसरे पत्रकार, धर्मेंद्र सिंह हैं जो औनलाइन न्यूज़ इंडिया (यूट्यूब चैनल) के लिए काम करते हैं.

दिल्ली पुलिस ने मनदीप को कथित तौर पर पुलिसकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करने और एक लोक सेवक के काम में बाधा डालने के चलते गिरफ्तार किया. पुलिस ने आईपीसी की धारा 186 (सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में लोक सेवक की बाधा), धारा 353 (कर्तव्य के निष्पादन में एक लोक सेवक पर हमला) और धारा 332 के तहत एक एफआईआर अलीपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज की है.

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द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बकौल पुलिस, “मंदीप प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े थे और उन के पास प्रेस आईडी कार्ड नहीं था. वह उन बैरिकेड्स के माध्यम से जाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्हें इलाके को अलग करने और सुरक्षित रखने के लिए लगाया गया था. इतने में पुलिसकर्मियों और उन के बीच एक विवाद शुरू हो गया. उन्होंने दुर्व्यवहार किया और हाथापाई भी की. उन्हें तब हिरासत में लिया गया था.”

किन्तु इस के उलट अब दिल्ली पुलिस खुद सवालों के घेरे में आ रही है. दिल्ली पुलिस पर एक आरोप अब यह लग रहा है कि पुनिया पर की गई यह कार्यवाही प्रतिक्रियात्मक है. दरअसल शुक्रवार 29 जनवरी के दिन सिंघु बौर्डर पर किसानों के विरोध स्थल पर तथाकथित स्थानीय लोगों द्वारा हिंसा भड़काने की जगह को मंदीप कवर कर रहे थे. मंदीप ने उसी दिन एक फेसबुक लाइव कर सोशल मीडिया पर यह बताया था कि हिंसा फैलाने वाले लोगों का वास्ता बीजेपी के साथ है. उन्होंने उस विडियो में यह भी बताया की मौके पर स्थित पुलिसकर्मी मूकदर्शक बनी हिंसा होते हुए देख रही थी और हिंसा करने वालों को नहीं रोक रही थी.

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विडियो में उन्होंने कहा, “50-60 लोगों की भीड़ हाथों में तिरंगा लेकर पहुंची. वे किसानों को गाली देने लगे और उन्हें सबक सिखाने की धमकी देने लगे. जल्द ही उन्होंने पथराव भी शुरू कर दिया.”

पुनिया ने कहा कि उस भीड़ में केवल 50-60 लोग ही शामिल थे और वहां मौजूद पुलिस कर्मियों की संख्या लगभग 4000-5000 थी. “2,000 पुलिस सिर्फ हिंसा भड़काने आई भीड़ को बैक-अप प्रदान कर रहे थे.” पुनिया ने अपने फेसबुक लाइव में कहा, “जब दिल्ली पुलिस ने उन्हें बैकअप मुहैया कराया तो उन्होंने (भीड़ ने) पथराव करना शुरू कर दिया. उन्होंने पेट्रोल बम फेंका और तंबू जलाने का प्रयास किया.”

पुनिया ने किसानों पर हमला करने आई भीड़ में शामिल लोगों और भाजपा के साथ संबंध स्थापित करने की तस्वीरें भी दिखाईं. जिसे आम आदमी पार्टी ने भी कुछ समय बाद प्रेस कांफ्रेंस कर सार्वजनिक किया. मंदीप ने शुक्रवार की हिंसा की सही रिपोर्टिंग नहीं करने के लिए मीडिया बिरादरी पर अपनी निराशा व्यक्त की थी. उन्होंने कहा, “जिस तरह से मीडिया ने इस (हिंसा) की खबरें दी, उस से मुझे बहुत दुख होता है. पहली बार ऐसा हुआ है कि मीडिया की रिपोर्टिंग वास्तव में हुई घटना के पूरी तरह से विपरीत है. उन में से कुछ वास्तव में अच्छे पत्रकार हैं, जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. उन्होंने भी गलत रिपोर्टिंग की है.”

इस बीच मंदीप को हिरासत में लेने वाली एक वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल होने लगी, जिस में देखा जा सकता है कि 10-12 पुलिसकर्मियों द्वारा मंदीप को घसीट कर ले कर जाया जा रहा है. जो अपनेआप में एक पत्रकार के साथ पुलिस का बर्बर रवैय्या दिखाता है. इस मसले पर जब हम ने लोकमत के पत्रकार अनुराग आनंद से बात की तो वह कहते हैं कि, “सब जानते हैं कि सिंघु बौर्डर पर जगहजगह कैमेरे लगे हुए हैं. पुलिस कह रही है कि मंदीप ने बेरिकेड फांदने और बदतमीजी करने की कोशिश की, यदि ऐसा है तो दिल्ली पुलिस को वह विडियो सार्वजानिक करनी चाहिए.”

अनुराग ने दिल्ली पुलिस की इस कार्यवाही को संदेह से देखा हैं. वे कहते हैं, “मंदीप को दिल्ली पुलिस ने पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया, यह कितनी बेतुकी बात है. यह हमेशा संभावना होती है कि जब किसी जगह पर हिंसा हो रही हो, उस समय पत्रकार कवर करने के लिए एक जगह से दूसरी जगह मोमेंट, वेसुअल्स, बाइट के लिए भागता है, अगर दिल्ली पुलिस इस पर बेरिकेड तोड़ने का आरोप लगा रही है तो पुलिस की यह दलील अस्वीकार्य है.”

अनुराग आगे कहते हैं, “ऐसा लग ही नहीं रहा की उसे हिरासत में लिया जा रहा हो, ऐसा दिखाई दे रहा है मानो उसे किडनेप किया जा रहा हो. ऐसे समय में जब आन्दोलन को ले कर लोगों के मन में या वहां जिस क्षेत्र में वह रह रहा हो, तरहतरह की भावनाएं पैदा हो रही हैं, तब मंदीप को हिरासत में लेने के बाद उस के घर वालों को इन्फौर्म नहीं करना, किसी किडनैपर का माइंडसेट दिखाता है. और सब से बड़ी बात यह कि कोर्ट में मंदीप के पक्ष के वकील के बगैर उसे पेश कर देना, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. ”

मंदीप को इस तरह से हिरासत में लिए जाने से दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाना बेहद लाजमी है. एक तरफ मंदीप ने खुद की इन्वेस्टीगेशन के बल पर सिंघु बौर्डर पर हिंसा करने वालों को बेनकाब करने का दावा किया, जिस में खुद को तथाकथित स्थानीय बताए जाने वाले लोगों के लिंक भाजपा से जुड़ते दिखाई दिए, वहीँ पुलिस की उन लोगों के साथ संलिप्तता के संगीन आरोप भी लगाए, बजाए इस के कि मंदीप द्वारा लगाए इन आरोपों की जांच पुलिस करती, उसे ही उल्टा गिरफ्तार किया जाना हैरान करता है.

ध्यान हो तो 26 जनवरी की घटना के बाद धरनास्थलों को खाली कराए जाने को ले कर जिस प्रकार दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर हलचल शुरू हुई, गाजीपुर बौर्डर पर लौनी के भाजपा विधायक नन्दकिशोर गुज्जर का किसानों को धमकाना, तथाकथित स्थानीय लोगों का पुलिस की शह में लठ ले कर वहां पहुंचना हैरान करता है, जिस की जांच की जानी चाहिए थी, किन्तु मंदीप की फाइंडिंग्स पर जांच करने के बजाय पुलिस ने मंदीप को ही हिरासत में ले लिया.

मंदीप को हिरासत में लिए जाने पर दि मिल्लेनियम पोस्ट अखबार की 26 वर्षीय निकिता जैन कहती हैं, “ये केवल एक पत्रकार पर अटैक नहीं बल्कि ये सभी पत्रकारों पर अटैक है. पुलिस का बिना किसी सबूत के इस तरह से किसी को भी हिरासत में लिया जाना बेहद डरावना है. पत्रकारिता किसी भी समय में सेफ नहीं रहा लेकिन मंदीप के साथ जो हुआ वह बहुत ही गलत था.”

सही तथ्य उजागर करने वालों पर गिर रही गाज

सरकार का पत्रकारों पर इस तरह से सेडिशन और यूएपीए जैसे संगीन धाराओं के लगाने के विषय पर निकिता कहती हैं, “ये वौइसेस पर अटैक है. मीडिया में आधे लोग तो सरकार के माउथपीस बन चुके हैं और जो बाकि बचे हैं और सही रिपोर्टिंग करते हैं, उन पर ये सब चार्जेस लगा कर उन की आवाजों को उठने से रोकना चाहते हैं, बंद करना चाहते हैं. ताकि वो सही रिपोर्टिंग न करें और सही तथ्य छिप जाएं.”

अनुराग का कहना है, “एक सिटिजन जर्नालिस्ज्म का भी कांसेप्ट होता है. अगर उस के पास किसी संसथान का आईकार्ड नहीं तो एक नागरिक होने के नाते वह वीडिओ बना सकता है. उस का पूरा हक है. पुलिस जब किसी पत्रकार पर इस तरह से एक्शन लेती है सभी पत्रकारों को एक पंक्ति में खड़ा हो कर इस का विरोध करना चाहिए. लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहले जब किसी नौजवान पत्रकारों पर इस तरह के एक्शन होते थे तब इस के खिलाफ पत्रकार समूहों से आवाज उठती रहती थीं, लकिन मंदीप पुनिया के इस घटना पर पत्रकार संस्थाओं का खुल कर विरोध न करना दुखद है. ऐसे में यह जरुरी है कि नौजवान पत्रकार और फ्रीलांस पत्रकारों का भी एक संगठन बने जिस से इस तरह के मामलों से निपटा जाए.”

तिहाड़ जेल मेजिस्ट्रेट के द्वारा मंदीप को 14 दिनों के ज्युडीसिअल कस्टडी में भेजे जाने के बाद 2 फरवरी को रोहिणी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के द्वारा 25,000 रूपए के मुचलके पर उन्हें जमानत दे दी गई है. इस के साथ कोर्ट ने मंदीप को कुछ शर्तों पर जमानत दी है. जिस में पहली शर्त यह कि वह बिना बताए देश के बाहर नहीं जा सकते, एसएचओ को उन्हें अपना मोबाइल नंबर और एड्रेस देना होगा और जांच के लिए जब भी पुलिस को उन की जरुरत होगी तो उन्हें सहयोग करना होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि क्योंकि मंदीप के खिलाफ एफआईआर खुद पुलिस की तरफ से दर्ज करवाई गई थी इसीलिए मंदीप सबूतों और गवाहों को प्रभावित नहीं कर सकते जिस के लिए उन्हें जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है. मंदीप ने पुलिस हिरासत में रहते हुए भी अपने पत्रकारिता के धर्म को नहीं छोड़ा. रिहाई के बाद जब मंदीप तिहाड़ से बाहर निकले और एनडीटीवी से बात कि तो उन्होंने बताया कि वो जेल में भी वहां मौजूद किसानों को बात की और जल्द ही एक रिपोर्ट वो पब्लिश करने वाले हैं.

बिग बॉस 14: क्या घरवालों से नफरत करने लगे हैं सलमान खान?

बॉलीवुड दबंग स्टार और बिग बॉस शो के होस्ट सलमान खान का इन दिनों गुस्सा सातवें आसमान पर है. सलमान खान हर वीकेंड के वार में शो के सदस्यों को उनकी हकीकत दिखाते हैं,लेकिन इस बार वीकेंड के वार में उनका विकराल रूप देखऩे को मिला.

फैंस का मानना है कि बिग बॉस 14 में जो चीजे चल रही हैं उससे सलमान खान नाराज चल रहे हैं. वह अपने कंटेस्टेंट का मुंह नहीं देखना चाहते हैं. सलमान खान के गुस्से का शिकार इन दिनों कोई भी हो सकता है.

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कुछ दिनों पहले राखी सावंत की अश्लील हरकत को देखने के बावजूद भी सलमान खान ने राखी की बजाय अभिनव शुक्ला और रुबीना दिलाइक की क्लास लगाई थी. सलमान खान नहीं चाहते हैं कि बिग बॉस फ्लॉप होने की जिम्मेगारी उन पर डाली जाए.

तभी तो हर वीकेंड के वार में सलमान खान बिना वजह घरवालों की क्लास लगा देते हैं. जिससे घर वाले भी सलमान से नाराज रहते हैं लेकिन उस वक्त वह कुछ कह नहीं पाते हैं.

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सलमान खान ने निक्की तम्बोली और राहुल वैद्या पर जमकर निशाना साधा है. यहीं नहीं सलमान खान के निशाने पर रुबीना दिलाइक और अभिनव शुक्ला भी हैं. सलमान खान मौका मिलते ही उन्हें डांट लगाने लगा देते हैं.

वहीं सलमान खान ने अर्शी खान को भी कभी नहीं सराहा है. इसलिए सलमान खआन के गुस्से से इन दिनों हर कोई बच के रहना चाहता है.

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कुछ वक्त पहले बिग बॉस शो के मेकर्स इस शो कि टीआरपी को लेकर बहुत ज्यादा परेशान थें. खैर अब शो की टीआरपी अच्छी हो गई है लेकिन फिर भी सभी को इस

एक साल चलेगा चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि सामूहिकता की जिस शक्ति ने गुलामी की बेड़ियां को तोड़ा वही भारत को दुनिया की बड़ी ताकत बनाएगी. सामूहिकता की यह शक्ति, आत्मनिर्भर भारत की ताकत है. देश को आत्मनिर्भर बनाने में सामूहिक भागीदारी बढ़ाने का संकल्प लेने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि देश की एकता और सम्मान सबसे बड़ा है. इसी भावना से प्रत्येक देशवासी को साथ लेकर आगे बढ़ना है. उन्होंने विश्वास जताया कि देश के विकास की यात्रा एक नये भारत के निर्माण के साथ पूर्ण होगी.

प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव का शुभारम्भ किया. उन्होंने इस अवसर पर चौरी चौरा की घटना पर केन्द्रित एक डाक टिकट भी जारी किया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर स्थित चौरी चौरा स्मारक स्थल से इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए. प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम के साथ जुड़ने के पश्चात संगीत नाटक एकेडमी द्वारा चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव का थीम सॉन्ग ‘चौरी चौरा के वीरों ने रचा नया इतिहास’ प्रस्तुत किया गया.

कार्यक्रम के दौरान प्रदेश के सूचना विभाग द्वारा चौरी चौरा की घटना के सम्बन्ध में तैयार की गयी डॉक्यूमेण्ट्री भी प्रदर्शित की गयी. इस अवसर पर विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनी/स्टॉल भी लगाये गये.

प्रधानमंत्री ने कहा कि 100 वर्ष पहले चौरी चौरा की घटना का संदेश बहुत बड़ा और व्यापक था. अनेक कारणों से पहले जब इस घटना की बात हुई, इसे आगजनी के रूप में देखा गया. आगजनी किन परिस्थितियों में हुई, वह महत्वपूर्ण है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी व उनकी टीम को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि चौरी चौरा के इतिहास को आज जो स्थान दिया जा रहा है, वह प्रशंसनीय है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के शुभारम्भ के साथ ही, पूरे वर्ष विभिन्न कार्यक्रम होंगे. देश की आजादी के 75 वें वर्ष में प्रवेश के समय यह कार्यक्रम अत्यन्त प्रासंगिक हैं. चौरी चौरा की घटना आम मानवी का स्वतःस्फूर्त संग्राम था. इस संग्राम के शहीदों का बलिदान प्रेरणादायी है. बाबा राघवदास, महामना पं0 मदन मोहन मालवीय का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी कम घटनाएं होंगी, जिसमें 19 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गयी हो. अंग्रेज सरकार अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देना चाहती थी, किन्तु बाबा राघवदास, महामना पं0 मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से 150 से अधिक लोगों को फांसी से बचा लिया गया.

प्रधानमंत्री जी ने कार्यक्रम से युवाओं को जोड़े जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे उन्हें इतिहास के अनकहे लोगों की जानकारी मिलेगी. भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय युवाओं को स्वतंत्रता सेनानियों एवं स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं पर किताबें व शोध पत्र लिखने के लिए कार्यक्रम चला रहा है. इससे चौरी चौरा की घटना के सेनानियों का व्यक्तित्व और कृतित्व सामने लाया जा सकता है. चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के कार्यक्रमों को लोककला और संस्कृति से जोड़े जाने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री जी व उनकी टीम की सराहना की.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि चौरी चौरा के संग्राम में किसानों की भरपूर भूमिका थी. वर्तमान सरकार ने विगत 06 वर्षाें में किसान को आगे बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किया है. कोरोना काल में भी कृषि में वृद्धि हुई तथा रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हुआ. केन्द्रीय बजट में किसान कल्याण के लिए कई प्राविधान हैं. 1000 मण्डियों को ई-नाम से जोड़ा जाएगा. इससे किसानों को मण्डी में अपनी फसल को बेचने में आसानी होगी. ग्रामीण क्षेत्र के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर फण्ड को बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. इससे किसान लाभान्वित और आत्मनिर्भर तथा कृषि लाभकारी होगी.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का कार्य तेजी से संचालित है. यह योजना ग्रामीण विकास में सहायक है. इसके अन्तर्गत ग्रामीणों को उनके घर, जमीन के मालिकाना हक का अभिलेख उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे ग्रामीण जमीन का मूल्य बढ़ेगा. कर्ज लेने में आसानी होगी.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार के प्रयास से किस तरह देश व प्रदेश की तस्वीर बदल रही है, गोरखपुर इसका उदाहरण है. यहां खाद कारखाना फिर से शुरु हो रहा है. इससे किसानों को लाभ होगा व युवाओं को रोजगार मिलेगा.

पूर्वांचल में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया गया है. 04 लेन व 06 लेन की सड़कें बन रही हैं. गोरखपुर से 08 शहरों हेतु हवाई यात्रा सुविधा उपलब्ध हो गयी है. कुशीनगर में इण्टरनेशनल एयरपोर्ट की स्थापना से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. यह सभी विकास कार्य स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि हैं.

कार्यक्रम स्थल चौरी चौरा, गोरखपुर में उपस्थित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने अपने स्वागत सम्बोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी का कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए आभार प्रकट करते हुए कहा कि चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव भारत माता के अमर बलिदानी सपूतों के प्रति श्रद्धा व सम्मान व्यक्त करने का अवसर है. चौरी चौरा की घटना 04 फरवरी, 1922 को इसी स्थान पर हुई थी. प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा व मार्गदर्शन में राज्य सरकार ने चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के आयोजन का निर्णय लिया.

मुख्यमंत्री ने कहा कि चौरी चौरा में आमजन और पुलिस की गोली से तीन लोग शहीद हुए. ब्रिटिश सरकार द्वारा 228 स्वतंत्रता सेनानियों पर मुकदमा चलाया गया. 225 स्वतंत्रता सेनानियों को सजा हुई. इनमें से 19 को मृत्यु दण्ड, 14 को आजीवन कारावास, 19 को आठ वर्ष का कारावास, 57 को पांच वर्ष का कारावास, 20 को तीन वर्ष का कारावास तथा 03 को दो वर्ष के कारावास की सजा दी गयी. इस घटना को ध्यान में रखकर वर्ष 1857 से वर्ष 1947 के मध्य के सभी शहीद स्मारकों एवं आजादी के बाद विभिन्न युद्धों में शहीद अमर बलिदानियों के शहीद स्थलों पर राज्य सरकार द्वारा वर्ष भर चलने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला प्रारम्भ की जा रही है. उन्होंने कहा कि चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव का ‘लोगो’ ‘स्वरक्तैः स्वराष्ट्रं रक्षेत्’ अर्थात ‘हम अपने रक्त से अपने राष्ट्र की रक्षा करते हैं’, स्वतंत्रता आन्दोलन के शहीदों के जीवन आदर्शाें से ओतप्रोत है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सायंकालीन सत्र में सभी शहीद स्मारकों व शहीद स्थलों पर पुलिस बैण्ड द्वारा राष्ट्रभक्ति के गीतों का कार्यक्रम, कवि गोष्ठी का आयोजन तथा दीपोत्सव का कार्यक्रम होगा. स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी तिथियों पर अमर स्वाधीनता सेनानियों, उनसे जुड़े स्मारकों और शहीद स्थलों पर, उन तिथियों पर मुख्य आयोजन के साथ ही, प्रदेश में समस्त शहीद स्मारकों व शहीद स्थलों पर कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे. विद्यालयों में लेखन, पेंटिंग, वाद-विवाद प्रतियोगिता, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित साहित्य की प्रदर्शनी आयोजित की जाएगी. स्वतंत्रता सेनानियों एवं घटनाओं के सम्बन्ध में विशिष्ट शोध को बढ़ावा देने का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हो रहा है.

कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री जी ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों को शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया. इनमें श्री रामनवल, श्री ओमप्रकाश, श्री लाल किशुन, श्री गुलाब, सुश्री सावित्री, श्री वीरेन्द्र, श्री रामआशीष, श्री मानसिंह यादव, श्री हरिलाल, श्री सौदागर अली, श्री लल्लन, श्री रामराज, श्री मैनुद्दीन, श्री सत्याचरण, श्री दशरथ और श्री राम नारायण त्रिपाठी सम्मिलित हैं. इसके अतिरिक्त उन्होंने 100 दिव्यांगजन को मोटराइज्ड ट्राईसाइकिल का वितरण किया तथा हरी झण्डी दिखाकर उन्हें रवाना किया. इससे पूर्व, मुख्यमंत्री जी ने शहीद स्मारक, चौरी चौरा पर शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की. उन्होंने संग्रहालय का भ्रमण कर कराये जा रहे सौन्दर्यीकरण कार्याें का निरीक्षण किया तथा राष्ट्र गीत वन्दे मातरम के समवेतिक गान में प्रतिभाग किया.

कार्यक्रम के अन्त में पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ0 नीलकंठ तिवारी ने अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम को सांसद श्री कमलेश पासवान, विधायक श्रीमती संगीता यादव ने भी सम्बोधित किया.

इस अवसर पर समाज कल्याण मंत्री श्री रमापति शास्त्री सहित जनप्रतिनिधिगण व अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे.

बिग बॉस 14: देबोलीना भट्टाचार्जी को हुआ अपनी गलती का एहसास , शहनाज गिल से मांगी माफी

बिग बॉस 14 के घर में आज देबोलीना भट्टाचार्जी जबरदस्त हंगामा मचाने वाली हैं.  देबोलीना भट्टाचार्जी ने अर्शी खान पर अपना गुस्सा बरसाया है. देबोलीना आज जमकर घर में तोड़फोड़ करने वाली हैं.

देबोलीना भट्टाचार्जी का यह विकराल रूप देखकर फैंस परेशान हो जाएंगे , आखिर क्यों इतनी ज्यादा बिगड़ गई है देबोलीना भट्टाचार्जी. वहीं खबर है कि बिग बॉस 14 में  देबोलीना  अपनी जानी दुश्मन शहनाज गिल से मांफी मांगी है.

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आने वाले एपिसोड में आप भी देबोलीना भट्टाचार्जी जी की बातें सुनकर हैरान हो जाएंगी. वहीं देबोलीना के मांफी मांगने के बाद रुबीना दिलाइक और राहुल वैद्या एक-दूसरे से बातचीत करते नजर आएं.

देबोलीना  ने सरेआम ये बात कही है कि राखी सावंत कि तरह शहनाज गिल भी लोगों के सामने अपनी बातों को रखती थी लेकिन उनकी कोई सुनता नहीं था. आगे उन्होंने कहा कि मुझे अब समझ आ रहा है कि शहनाज गिल के साथ कितना बुरा हुआ था.

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बात करते हुए राहुल वैद्या, रुबीना दिलाइक रश्मि देसाई का जिक्र कर रहे थें. बता दें कि बिग बॉस 13 में देबोलीना भट्टाचार्जी और रश्मि देसाई एक -दूसरे के साथ अच्छी दोस्ती के लिए जानी जाती हैं.

वहीं शहनाज गिल के दोस्त सिद्धार्थ शुक्ला को आए दिन रश्मि देसाई सपोर्ट करती नजर आ रही थी. लेकिन देबोलीना भट्टाचार्जी और शहनाज गिल कभी अच्छे दोस्त नहीं बन पाई थी.

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खैर देखते हैं देबोलीना भट्टाचार्जी और शहनाज गिल के बीच अच्छी दोस्ती हो पाएगी या नहीं . खैर फैंस को भी इस चीज का इंतजार है कि क्या होगा शहनाज का अगला रिएक्शन.

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आत्ममंथन-भाग 1

‘‘तुम भी खा लेतीं,’’ गुस्सा छोड़ते हुए प्रीतम ने कहा.

‘‘नहीं, अभी नहीं. अभी तो मुझे बरतन मांजने हैं’’, मैं ने कहा.

‘‘क्यों, कामवाली नहीं आई क्या?’’

‘‘नहीं, कल उस की तबीयत खराब थी. कह रही थी शायद आज नहीं आ सकेगी.’’

‘‘फिर तुम ने पहले ही क्यों नहीं बता दिया? कम से कम मैं अपने अंडरगारमैंट्स धो कर सुखाने के लिए डाल देता.’’

‘‘मैं अपने कपड़ों के साथ धो डालूंगी. वैसे भी काम ही क्या रहता है सारा दिन. तुम दफ्तर चले जाते हो और रोहन स्कूल, तो मैं सारा दिन बेकार बैठी रहती हूं.’’

‘‘सच, कभीकभी लगता है कि मैं ने तुम से नौकरी छुड़वा कर कोई बड़ी गलती कर डाली है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं कहते. सच मानो तो मैं बहुत खुश हूं घर पर रह कर, वरना पहले तो बस दो कौर ठूंस लिए और दौड़ पड़े दफ्तर को बस पकड़ने के लिए. फिर सारा दिन फाइलों से सिर फोड़ना. अब तो आराम ही आराम है. न देर होने की चिंता, न बस छूट जाने की फिक्र’’, मैं ने बड़े ही नाटकीय ढंग से कहा. फिर भी लगा कि प्रीतम को विश्वास नहीं आ रहा है. वह पूछ बैठा, ‘‘सच कह रही हो?’’

‘‘तो क्या झूठ कह रही हूं?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

प्रीतम आश्वस्त हो कर उठा. वाशबेसिन से हाथ धो कर आया और टौवल से हाथ पोंछते हुए बोला, ‘‘अब तुम भी जल्दी से स्नान कर के खाना खा लो.’’

‘‘पहले घर की सफाई तो कर लूं.’’

प्रीतम ने मोजेजूते पहने और मैं ने औफिस बैग थमाया. वह उठ कर जाने लगा तो मैं ने उसे स्नेहसिक्त दृष्टि से देख कर कहा, ‘‘शाम को जल्दी आ जाना.’’

‘‘जरूर.’’

प्रीतम मेरा दायां गाल थपथपा कर बाहर निकल गया. उस ने आंगन में खड़ी बाइक स्टार्ट की और फिर फ्लाइंग किस करता हुआ फाटक से बाहर निकल गया.

मैं चौखट से उसे ओझल होने तक देखती रही. फिर मुड़ पड़ी. घर खालीखाली और चुपचुप सा लगा. अंदर जाते ही एक प्रकार की घुटन सी महसूस हुई. मुझे बचपन से ही न अकेले रहने की आदत है, न चुप रहने की. प्रीतम के जाने के बाद कामवाली से बतियाने लगती हूं. उस का सारा काम हो जाए तो भी उसे बातों में उलझाए रखती हूं. लेकिन आज तो कामवाली भी नहीं आई थी. अब तो सिर्फ दीवारों से ही बात कर सकती थी.

मैं ने झूठे बरतन उठाए और सिंक में रख दिए. मेज पोंछ कर उस पर लगे शीशे में अपना चेहरा देखा. उस में मुझे अपना अक्स धुंधलाधुंधला सा दिखाई दिया. सोचा, कहीं मैं अपनेआप को झुठला तो नहीं रही हूं. कभीकभी मेरे मुंह से मेरे मन की बात निकलतेनिकलते क्यों रह जाती है? आज प्रीतम से जो कुछ कहा वह क्या सच है? फिर यह घुटन कैसी? ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि मैं किसी खूंटे से बंध गई हूं, बस, एक ही दायरे में घूमती हुई.

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सवेरे मैं ने बहुत जरूरी बरतन ही मांजे थे. बाकी के यों ही पड़े थे. मैं उठ कर रसोई में गई और बरतन मांजने

शुरू कर दिए. बरतन ज्यादा नहीं थे. 3 आदमियों के बरतन होते ही कितने हैं?

शादी के बाद प्रीतम के साथ मैं यहां चली आई. यहां बड़ौदा में न मेरा कोई ससुराल वाला रहता था, न कोई मायके वाला. मायका था बेंगलुरु में और ससुराल मुंबई में. मांबाप का रिश्ता तो शादी के बाद टूट सा ही जाता है, लेकिन सास भी नहीं आई थीं मेरे साथ. उन्हें ससुर और मेरे देवरननदों की चिंता थी. प्रीतम शादी से पहले कभीकभार घर पर ही पका कर खा लेते थे. इसलिए उन्होंने गैस चूल्हा, सिलैंडर और कुछेक बरतन खरीद लिए थे. यहां आते वक्त मेरी मां और सास ने कुछ बरतन दे दिए थे और मेरी घरगृहस्थी अच्छी तरह बस गई थी.

सहेलियों से सुन रखा था कि अकेले रहने वाले व्यक्ति से शादी करने पर खूब मौज रहती है. लेकिन मैं यहां प्रीतम के साथ अकेले रहने पर भी उदास रहती हूं. घर जैसे खाने को दौड़ता है. शादी से पहले कभी इस तरह घंटों घर पर रहने की नौबत नहीं आई थी. कालेज की पढ़ाई के बाद नौकरी कर ली और छुट्टियों के दिनों में भी घर पर रही तो दोचार आदमियों से घिरी हुई.

मैं ने बरतन सजा कर रख दिए और झाड़ू लगाने लगी. घर बड़ा नहीं है. एक बैडरूम, एक ड्राइंगरूम, किचन और बाथरूम. झाड़ू लगा कर मैं गुसलखाने में गई और कपड़े धोने लगी. फिर स्नान कर के कपड़े सुखाने के लिए स्टैंड पर डाल दिए.

खाना खा कर मैं सोफे पर लेट गई और मुझे नींद सी आने लगी. सहसा दरवाजे की घंटी की आवाज सुन कर मैं हड़बड़ा कर उठी. जा कर देखा तो शशि थी.

अगले भाग में पढ़िए शशि से मिलकर क्यों नौकरी के लिए बैचेन हो गई वो… 

आत्ममंथन-भाग 3

आसमान पर काले बादल छाने लगे थे. अचानक अंधेरा सा फैल गया. लोग इस आशंका से भागदौड़ करने लगे कि कहीं घर पहुंचने से पहले ही बारिश न होने लगे.

आज फिर सामने के चबूतरे पर कुछेक लड़के जमा हो कर जुआ खेल रहे हैं. पिछले महीने ही तो सूरज को पुलिस पकड़ कर ले गई थी. उस की मां की मृत्यु हो चुकी थी और उस का बाप दूसरा ब्याह इसलिए नहीं कर रहा था चूंकि उसे डर था कि कहीं सौतेली मां आ कर सूरज के साथ बुरा सुलूक न करे. जब तक उस का बाप नहीं आ जाता तब तक सूरज सारा दिन आवारागर्दी करता रहता है.

अरे, यह तो सुमित है. यह वहां क्यों बैठा है? क्या वह भी जुआ खेल रहा है? क्या स्कूल में छुट्टी हो गई? तब तो रोहन को भी आ जाना चाहिए था. मैं ने सुमित को आवाज दे कर बुलाना चाहा लेकिन वह मुझे चोर निगाहों से देख कर वहां से खिसक गया.

दो घर छोड़ कर अनुपमा को भी जनून सा सवार हो गया है. कार है, बंगला है फिर भी वह नौकरी पर जाती है. और उस के बच्चे? पूछो मत. सुमित को तो खैर आज ही देख रही हूं गली के इन लड़कों के साथ. लेकिन उस की जवान बेटियां अपने रसोइए के साथ हर समय हंसीठिठोली करती रहती हैं और वह भी सैंडोकट बनियान पहन कर उन लड़कियों से अजीबअजीब हरकतें किया करता है. कभी टांग अड़ा कर राह रोक लेता है तो कभी बांह दबा कर पीठ थपथपा देता है. एकाध बार अनुपमा को समझाया भी है लेकिन वह तो अपनी ही झोंक में कह देती है, ‘अब अगर नौकरी करनी है तो इन सब बातों को भुलाना ही पड़ेगा, वरना घरगृहस्थी कैसे चलेगी?’

भाड़ में जाए ऐसी नौकरी. पहले तो बालबच्चे हैं, घरगृहस्थी है. फिर दूसरे काम. रहा समय काटने का सवाल, तो किताबें पढ़ लो. मैं ने मैगजीन उठा ली और पढ़ने लगी. अचानक मेरी दृष्टि नए व्यंजनों के स्तंभ पर चली गई. शाही  टोस्ट बनाने का तरीका पढ़ कर लगा कि यह तो चुटकियों में बनाया जा सकता है. मैं ने झट चाशनी के लिए गैस चूल्हे पर पानी चढ़ा दिया और ब्रैड के टुकड़े करने लगी.

टेबल पर प्लेट सजाते हुए लगा कि यह भी तो एक काम है. दूसरे के लिए कुछ करने में भी तो एक सुख है. यह चाय की केतली में चाय डाल कर रखना, प्रीतम और रोहन के लिए हलका सा नाश्ता बना कर रखना, फिर उन का इंतजार करना, यह क्या काम नहीं? मैं बेकार कैसे हूं? मैं भी तो काम कर रही हूं.

फटफट की आवाज सुन कर मैं ने बाहर झांक कर देखा, प्रीतम और रोहन दोनों खड़े थे.

‘‘अरे, यह तुम्हें कहां मिल गया?’’

‘‘मुझे उस तरफ थोड़ा काम था. इसलिए सोचा क्यों न लौटते वक्त इसे भी लेता जाऊं.’’

‘‘मां, बहुत भूख लगी है?’’

‘‘हां, बेटा, आज तो मैं ने तुम्हारे लिए शाही टोस्ट बनाया है.’’

‘‘ओह मम्मी, तुम कितनी अच्छी हो.’’

रोहन मुझ से लिपट गया और मेरे दाएं गाल पर एक चुंबन जड़ दिया. ऐसा लगा जैसे मुझे पारिश्रमिक मिल गया हो.

प्रीतम हाथमुंह धो कर मेज पर आ कर बैठ गया, बोला, ‘‘सुनो, एक बैंक खुल रहा है, जिस में सिर्फ महिलाएं ही काम करेंगी. क्यों न तुम भी अप्लाई कर दो?’’

‘‘अरे, मुझे घर के कामों से फुरसत ही कहां मिलती है जो मैं नौकरी करने जाऊंगी?’’

‘‘समय निकालोगी तो फुरसत भी मिल जाएगी,’’ प्रीतम बोले.

‘‘लेकिन, मैं ऐसे ही ठीक तो हूं.’’

‘‘मैं चाहता हूं तुम बाहर निकलो, नौकरी करो और फिर घरखर्च में भी तो मदद हो जाएगी.’’

प्रीतम की बातें सुन कर पहले तो मैं अवाक रह गई, फिर मन में विचार कौंधा कि यह वही तो है जो मैं चाहती थी. अब जब मुझे मौका मिल ही रहा है तो मैं इनकार क्यों कर रही हूं? नहीं, मुझे मना नहीं करना चाहिए. मेरी कुंठा का समाधान आखिर यह ही तो है.

मैं ने नौकरी के लिए हामी भर दी. मैं ने अगले दिन अप्लाई भी कर दिया. एक हफ्ते बाद इंटरव्यू भी दे आई और नौकरी पक्की भी हो गई. यह मेरे लिए एक स्वप्नभर था. आज भी है. जिस आत्मग्लानि से मैं अंदर ही अंदर घुट रही थी वह कितनी आसानी से खत्म हो गई. रोहन को समय देना आज भी मेरी पहली प्राथमिकता है लेकिन नौकरी के साथसाथ जिस खुशी से मैं भर जाती हूं वह सारी खुशी, सारा प्यार रोहन पर लुटा देती हूं.

आज मुझे नौकरी करते हुए 2 साल बीत गए हैं पर लगता है जैसे कल ही की तो बात है.

‘टिंगटोंग…’ दरवाजे की घंटी सुन कर मेरी तंद्रा भंग हुई.

‘‘अरे, प्रीतम आप, आज इतनी जल्दी कैसे?’’

‘‘यों ही, सोचा तुम्हें सरप्राइज दिया जाए.’’

‘‘कैसा सरप्राइज?’’ मैं ने उत्साहित भाव से पूछा.

‘‘यह लो,’’ कह कर प्रीतम ने एक लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया.

‘‘यह तो किसी फ्लैट का अलौटमैंट लैटर है, पर किस का फ्लैट और कैसा फ्लैट?’’ मैं ने प्रीतम के समक्ष सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘हमारा फ्लैट है. हमें फ्लैट अलौट हुआ है.’’

‘‘कितने में?’’

‘‘50 लाख रुपए में. 10 लाख रुपए मैं ने अग्रिम भर दिए हैं और बाकी रुपए बैंक से लोन ले कर हम दोनों हर महीने ईएमआई में जितने रुपए आएंगे दे दिया करेंगे.’’

‘‘10 लाख? पर तुम्हारे पास कहां से आए?’’

‘‘जब से तुम्हारी नौकरी लगी है घरखर्च तो तुम्हीं उठा रही हो, तो बस, मैं बाकी खर्चे निकाल कर बचतखाते में जमा करता गया. और वैसे भी, तुम और मैं क्या अलग हैं? दोनों का होगा वह फ्लैट, तो दोनों ही खुशी से जीवन निर्वाह करेंगे हक और अधिकार से.’’

‘‘ओह, तुम कितने अच्छे हो,’’ कह कर मैं प्रीतम से लिपट गई.

मैं शादीशुदा महिला हूं, यह मेरी दूसरी शादी है, मेरी सास मेरे साथ कलह करती हैं, कभी लगता है कि दूसरी शादी कर के मैं ने भूल की, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल
मैं शादीशुदा महिला हूं. शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं. यह मेरी दूसरी शादी है. पहले पति से तलाक होने के बाद मैं बहुत दुखी रहती थी. कारण, मायके में कोई नहीं था जो मुझे सहारा देता. ऐसे में मेरे पति ने दोस्त बन कर मुझे संभाला. हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला. फिर इन्होंने अपने परिवार वालों से बात कर के मुझ से निकाह कर लिया.

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पहले विवाह से मेरे 2 बेटे हैं, जिन्हें पति ने तलाक के बाद अपने पास रख लिया था. मुझे बेटों की बहुत याद आती है. पति से इस बारे में बात नहीं कर सकती. हर समय परेशान रहती हूं. कभी लगता है कि दूसरी शादी कर के मैं ने भूल की. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब
आप ने बताया नहीं कि पहले पति से आप का तलाक क्यों हुआ वह भी तब जबकि आप 2-2 बेटों की मां बन चुकी थीं. अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला करने से पहले आप को अपने बच्चों के बारे में सोचना चाहिए था. पर आप ने अपने स्वार्थ में उन के बारे में तनिक भी विचार नहीं किया. आप को समझना चाहिए था कि संबंध विच्छेद का सब से अधिक खमियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है.

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फिर पति कोई वस्तु नहीं कि पसंद नहीं आया तो बदल लो. विवाह एक समझौता है, जिस में पतिपत्नी दोनों को ही अपनेअपने अहं को छोड़ कर तालमेल बैठाना पड़ता है. खासकर तब जब आप पर बच्चों की जिम्मेदारी होती है. आप की परिस्थिति से लगता है कि आप ने आवेश में आ कर जल्दबाजी में इतना बड़ा कदम उठा लिया और विडंबना देखिए कि दूसरे रिश्ते से भी आप असंतुष्ट हैं.

इस का सीधासीधा अर्थ है कि कमी आप के अपने स्वभाव में है. बेहतर होगा कि रिश्तों को निभाना सीखें. जहां तक अपने बेटों के लिए आप की छटपटाहट है तो वह बेमानी है. उस के लिए आप को पहले सोचना चाहिए था. अब तो संभवतया आप के बच्चे भी आप से मिलना नहीं चाहेंगे और आप के पति और उन के परिवार को भी आप की यह हिमाकत नागवार गुजरेगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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