Delhi Slum Demolition : सरकारी या किसी की निजी जमीन पर बरसों तक कब्जा जमाए रखने वालों से जब जगह खाली करने को कहा जाता है तो वे तुरंत कहने लगते हैं कि जब उन्होंने वहां डेरा डाला था, खपरैल की झोंपड़ी बनाई थी, दुकान बना ली थी, वोटर कार्ड बनवाया था, राशन कार्ड बनवाया था तो तब जमीन मालिक क्यों नहीं आया, अब बसीबसाई बस्ती, गृहस्थियों को तोड़ने व उन में पुश्तों से रह रही गृहिणियों को बेघर करने की बात क्यों?
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अब बहुत से मुसलिम बहुल क्षेत्रों में अतिक्रमण के नाम पर घरों को तोड़ना शुरू कर दिया है और इस पर बहुत लोग नाराज हो रहे हैं जिन में वे हिंदू भी हैं जो भाजपा के कट्टर समर्थक रहे हैं. चूंकि भाजपा को दिल्ली में कई सालों तक चुनाव नहीं झेलना, वह उस वादे को भूल चुकी है कि झुग्गियां अगर तोड़ी भी गईं तो उसी जगह पक्के, शौचालय व किचन वाली हवादार टाइलें लगे, बहुमंजिला लिफ्ट वाले मकान उन्हें मुफ्त मिलेंगे. अब वह तोड़फोड़ करने के लिए बुलडोजरों और जेसीबियों का जम कर इस्तेमाल कर रही है.
देश के शहरों की गरीबी और अव्यवस्था की एक वजह यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग खाली पड़ी जमीन को हथियाने को अपना मौलिक हक समझता है. इस वर्ग में हर जाति व धर्म के लोग शामिल हैं. संभ्रांत कालोनियों में भी कब्जे करने से लोग बाज नहीं आते.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल में दिल्ली की डिफैंस कालोनी के रैजिडैंट्स वैलफेयर एसोसिएशन पर कई करोड़ रुपयों का जुर्माना लगाया जिस ने लोधी कालोनी के एक मकबरे में बरसों से अपना कार्यालय खोल रखा था. जब संभ्रांत कालोनी में अपनी जमीन से बाहर निकल कर कुछ न कुछ बना डालने की आदत है तो गरीब क्यों पीछे रहते? वे तो अपने लिए बस, एक छत चाह रहे थे.
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