Vice President : वफादार, चाटुकार, योग्य और बड़बोले अच्छी तरह जानते हैं कि ताकतवर लोगों से जहां ईनाम मिलता है वहीं जरा सी चूक होने पर सिर काट भी दिया जाता है. इतिहास ऐसे मामलों से भरा पड़ा है कि राजाओं ने अपने सब से नजदीकी शख्स को या सरेआम या गुपचुप मरवा डाला हो. आज के शासक हत्याएं तो नहीं कराते लेकिन विरोधी की राजनीतिक हत्या करवा देते हैं.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का मामला भी ऐसा ही है. जब तक वे सिर और कमर झुकाए सत्ता के आगे पसरे रहे तब तक उन्हें सहा गया और जैसे ही उन्होंने अपनी मरजी चलाई, उपराष्ट्रपति के पद से उन्हें हटाने में देरी नहीं की गई.
जगदीप धनखड़ जरूरत से ज्यादा सरकारी पक्ष लेते रहे हैं. उन्होंने राज्यसभा को चलाने में सत्ता पक्ष का खयाल रखने में एक निष्पक्ष सभापति का काम कभी नहीं किया. अपने साथी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की तरह विपक्ष को कभी संसद या सरकार को घेरने की अनुमति नहीं दी. वे जजों की नियुक्ति, संविधान के मौलिक ढांचे के फैसलों की आलोचना करते रहे जबकि सरकार की मंशा, कि सत्ता सिर्फ 2 हाथों में रहे, के मुताबिक पूरी कोशिश करते रहे.
फिर भी उन का पद न सिर्फ अचानक छीन लिया गया बल्कि नए राष्ट्रपति प्रागंण में बने घर के कार्यालय को बंद भी शायद करा दिया गया. आज वे स्मृति ईरानी, विशंभर प्रसाद, मेनका गांधी, वरुण गांधी, मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी की श्रेणी में आ गए है जिन से पद छीन लिए गए.
ऐसा हर राजा ने किया. राजा राम ने शत्रुघ्न और लक्ष्मण के साथ भी ऐसा ही किया था कि जब उन की जरूरत नहीं रही तो उन्हें अपने निकट नहीं रखा. जो शासक इस तरह की पौराणिक कहानियों को सुनसुन कर बड़े हुए उन के लिए इसी तरह के फैसले लेना कोई कठिन नहीं है.
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