Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने एक गलत और अफसोस भरे निर्णय में इंश्योरैंस कंपनियों को भारी मुनाफा कमाने का मौका दिया है. जुलाई में अपने एक निर्णय में कोर्ट ने कहा कि मोटर ऐक्सिडैंट में यदि चालक स्टंट दिखाते हुए दुर्घटनाग्रस्त हुआ और मर गया तो इंश्योरैंस कंपनी उस के करीबी दावेदार को क्लेम देने को बाध्य नहीं है.

जिस मामले में यह निर्णय दिया गया उस में मृत ड्राइवर ने क्या किया, यह छोड़िए, यह निर्णय इंश्यारैंस कंपनियों को सुनहरी तश्तरी में क्लेम न देने का अवसर दे देगा जहां मृत्यु इंश्योर्ड ड्राइवर की हुई हो. इंश्योरैंस कंपनी हर उस मामले में क्लेम को चुनौती देगी जिस में मृत व्यक्ति ड्राइव कर रहा था. इस का मतलब है कि लगभग सभी ऐसे मामलों में पहला बहाना क्लेम रिजैक्ट करने का होगा कि मृतक तो गलत ढंग से गाड़ी चला रहा था.

अब यह मृतक के रिश्तेदारों पर निर्भर करता है कि वे हजारों नहीं बल्कि लाखों रुपए खर्च कर के अपीलें करते रहें. उन्हें पैसों की जरूरत तो उसी समय होती है जब मृत्यु हुई हो. यदि यह शर्त लगा दी गई कि पहले वे यह साबित करें कि मृत्यु तो किसी और की गलती से हुई थी, मृतक तो सावधानी से नियमानुसार ही गाड़ी चला रहा था तो इस में वर्षों लग जाएंगे.

यह मामला, जिस में क्लेम रिजैक्ट किया गया, 2014 का है. मृतक का परिवार वैसे ही मृतक के संरक्षण व साथ को खो चुका था, फिर उसे कर्नाटक हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा जहां उस का 80 लाख रुपए के मुआवजे का क्लेम रिजैक्ट कर दिया गया. पुलिस से यह रिपोर्ट लिखाना कि दुर्घटना चालक की गलती से हुई थी, इंश्योरैंस कंपनियों के लिए यह बाएं हाथ का खेल है. वे अपना धंधा इसी बलबूते पर करती हैं कि पहले सब्जबाग दिखा कर, फोन पर तरहतरह के वादे कर के ग्राहक को फांसो और फिर बहानों से इंश्योरैंस क्लेम को रिजैक्ट कर दो.

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