Bihar Elections : बिहार में चुनाव सिर पर हैं मगर एनडीए पूरी तरह से अस्तव्यस्त नजर आ रही है. कहने को सीएम का चेहरा फिलहाल नीतीश जरूर हैं पर चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ने की तैयारी चल रही है. कमजोर नेतृत्व और अलग अलग समाज के प्रतिनिधित्व की कमी एनडीए की उम्मीद को लेकर कई सवाल खड़े करती हैं.
बिहार की राजनीति इन दिनों उफान मार रही है. आने वाले समय में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं और बिहार का भविष्य तय होना है. यहां की राजनीति के साथ गंगा भी उफान पर है. बिहार इन दिनों बाढ़ से ग्रस्त है और आम जनता ही त्राहित्राहि कर रही है. बिहार में कितना विकास हुआ है इसकी पोल इस बाढ़ ने खोल कर रख दिए. मुख्यमंत्री नीतीश बाबू अपनी छवि सुधारने के लिए आनन फानन में सिर्फ चार स्टेशनों के लिए पटना मेट्रो का उद्घाटन करने जा रहे हैं.
बिहार की राजनीति देश की अन्य राज्यों से बिल्कुल अलग है, अन्य राज्यों में वोट शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई और विकास के नाम पर पड़ते हैं वहीं बिहार एकमात्र ऐसा प्रदेश है जहां आज भी वोट जाति के नाम पर पड़ते हैं. बिहार की राजनीति में जाति एक ऐसा सत्य है जो चाहे अनचाहे हर चुनावी राजनीति में हावी रहती है. दलित वर्ग इस राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है लेकिन आज भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से यह सबसे अधिक वंचित वर्ग में गिने जाते हैं. वर्षों से यह वर्ग सत्ता परिवर्तन का निर्णायक वर्ग रहा है लेकिन अब तक सत्ता में इस वर्ग को वास्तविक भागीदारी नहीं मिली.
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