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हम पर आखिर क्यों बार-बार टूटता है आकाशीय बिजली का कहर

25 जून 2020 को यूं तो मौसम विभाग ने पहले से ही एलर्ट कर रखा था कि देश के कई हिस्सों में इस तारीख को मानसून पहुंचेगा और कुछ जगहों पर सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. लेकिन किसी को यह आशंका नहीं थी कि 25 जून को बारिश के साथ साथ आकाश से चमकती हुई बिजली का कहर भी बरसेगा. बहरहाल 25 जून की देर शाम तक अकेले बिहार और यूपी में ही 107 लोगों की मौत आसमानी बिजली से हो गई. बिहार में 83 लोग सुबह से शाम तक अलग अलग जगहों में मारे गये, जबकि उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली के कहर से मरने वालों की संख्या 24 रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार और उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली से मारे गये इन लोगों के प्रति संवेदना जतायी, राज्य सरकारों ने मरनेवालों के लिए मुआवजे की घोषणा की और मीडिया ने सुर्खियां बनायी.

मगर इस पर शायद ही किसी ने सोचा हो जब दुनिया के ज्यादातर देशों में आकाशीय बिजली से मरनेवाले लोगों की संख्या करीब करीब नगण्य हो गई है तो फिर हमारे यहां ही बिजली से इतने लोग क्यों मारे जाते हैं? पिछले साल मानसून में जुलाई के महीने के अंत तक 400 लोग बिजली गिरने से मारे गये थे, जबकि इस साल अभी जुलाई शुरु भी नहीं हुई कि देश के अलग अलग हिस्सों में 300 से ज्यादा लोग महज मई और जून में मारे जा चुके हैं. आकाश से बिजली गिरने से जितनी मौतें हमारे यहां होती हैं, दुनिया में उतनी मौतें और कहीं नहीं होतीं. जबकि बिजली हर जगह गिरती है, चाहे कोई विकसित देश हो या विकासशील देश. लेकिन हमारे यहां एक साल में जितनी मौतें बिजली गिरने से होती हैं, अमेरिका में दस साल में भी नहीं होती. सालभर में अमेरिका में कोई 25 लोग आसमान से बिजली गिरने से मारे जाते हैं, जबकि हर साल करीब डेढ़ सौ लोग झारखंड में और करीब दो सौ लोग अकेले बिहार में ही मारे जाते हैं.

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भारत में हर साल जहां आकाश से गिरने वाली बिजली से 2000 से 4000 के बीच लोग मारे जाते हैं, वहीं अमेरिका में यह प्रति दस लाख पर महज 0.3 लोगों की ही मौत आकाश से बिजली गिरने से होती है. जबकि करीब सौ साल पहले वहां हर साल 5000 से ज्यादा लोग बिजली गिरने से मारे जाते थे. आज पूरे साल में तड़ित बिजली के कहर से 20 से 25 लोग मरते हैं. यूरोप में भी यही स्थिति है, बल्कि यूरोप में तो और भी कम लोग बिजली गिरने से मारे जाते हैं. हां, कुछ अफ्रीकी देशों में जरूर हमारे यहां से भी ज्यादा लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं. लेकिन वहां जनसंख्या इतनी कम है कि उनका आंकड़ा आमतौर पर 4-5 सौ से ऊपर नहीं जाता. जबकि हमारे यहां हजारों लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं. वास्तव में कुछ अफ्रीकी देशों और हमारे यहां आकाशीय बिजली से मरने वाले लोग यूरोप और अमरीका की तुलना में औसतन 100 गुना ज्यादा होते हैं.

सवाल है कि जब दूसरे देशों में भी बिजली गिरती है तो फिर वहां मरने से, घायल होने से लोग कैसे बच जाते हैं? आखिर हमारे यहां ही इतनी ज्यादा मौतें क्यों होती हैं? इसकी एक सबसे बड़ी वजह तो यह है कि हमारे यहां आज भी इसे प्राकृतिक आपदा नहीं समझा जाता. जाहिर है इससे निपटने में मुश्किलें आती हैं. हम आमतौर पर हर पीड़ित को चार लाख का मुआवजा घोषित करके अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं. 2015 में 14वें वित्त आयोग ने राज्य सरकारों को अनुमति दी थी कि राज्य आपदा कोष से वे 10 प्रतिशत तक की राशि उन ऐसे आपदा पीड़ितों को दे सकते हैं जो गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नहीं हैं, बिहार हो उत्तर प्रदेश सरकार इसी का लाभ लेकर चार लाख प्रति पीडित और 25 हजार मवेशियों के नाम पर देने घोषणा करती हैं.

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अगर सरकारें इस कवायद के अलावा बिजली गिरने और उससे होने वाले नुकसान को गंभीरता से लें और जन जागरूकता की दिशा में गंभीरता से प्रयास करें तो आकाशीय बिजली से लोगों की जान बचाई जा सकती है, खास तौरपर अगर सही समय पर लोगों तक सूचना पहुंच जाये और उन्हें पता हो कि उस सूचना पर कैसे अमल करना है. साथ ही उस सूचना पर लोग अमल भी करें. बिजली गिरना देश की सबसे नियमित और खतरनाक प्राकृतिक आपदा होने के बावजूद अभी भी यह प्राकृतिक आपदा के रूप में शुमार नहीं है, इसे मजाक नहीं तो और क्या कहेंगे? इसके आंकड़े भी प्राकृतिक आपदा प्रबंधन बोर्ड की बजाय राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से मिलते हैं. सबसे पहले तो सरकार इसे प्राकृतिक आपदा माने. फिर उन अभियानों पर व्यापक शोध करे जिसके चलते अमेरिकी और ब्रितानी इस खतरे से उबरे हैं.

हालांकि वज्रपात के सटीक स्थान की घोषणा मुश्किल है. पर क्षेत्र विशेष का पूर्वानुमान और चेतावनी देना संभव है. अमेरिका में नेशनल लाइटिंग इंस्टीट्यूट यह काम करता है. यह अमेरिकी संस्था, आकाशीय बिजली गिरने के वैश्विक आंकडों का विश्लेषण और पैटर्न का अध्ययन ही नहीं करती, चेतावनी, पूर्वानुमान, भविष्यवाणी भी करती है और लोगों को जागरूक भी. वहां के लोगों का मानना है कि लगातार 15 साल तक जागरूकता का सघन कार्यक्रम चलाने की वजह से ही आज उनका आंकड़ा इस मामले में बेहतर हुआ है. अपने वहां मौसम विभाग यह काम देख सकता है. मौसम विज्ञानियों को जो आंकड़े उपग्रह से मिलते हैं उसके अनुसार वे वर्षा के साथ साथ बिजली गिरने की आशंकाओं का भी मोटा पूर्वानुमान कर सकते हैं. यह बिजली गिरने के बारे में तमाम तरह की गणना, सर्वेक्षण, लाइटिंग लोकेशन नेटवर्क का अध्ययन और लाइटिंग डिटेक्शन नेटवर्क पर निगाह रख सकते हैं जो यह बता सकती है बिजली गिरने की अगली आशंका कहां की है, वहां चेतावनी जारी करके लोगों को सावधान कर बचाया जा सकता है. वे यह अध्ययन भी कर सकते हैं कि एक ही क्षेत्र में अचानक बिजली गिरने की घटनाएं बढ क्यों जाती हैं?

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पिछले साल केंद्र सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने दामिनी ऐप बनाया था, जिसके बारे में दावा किया गया था कि यह 20 किलोमीटर के दायरे में बिजली गिरने से 30-40 मिनट पहले ही सावधान कर देगा. साथ ही किस तरह से सुरक्षा और प्राथमिक उपचार करें बतायेगा. लेकिन जिस तरह तड़ित बिजली से लोगों की मौत हो रही है, लगता है ये सारे दावे महज हवाहवाई हैं. पूरे देश में 552 ऑब्जर्वेटरी सेंटर हैं इसके अलावा पूरे देश में 675 मौसम केंद्र हैं. साथ ही 1350 जगहों पर ऑटोमेटर रेनगेज सेंटर हैं जहां डाटा सीधे मौसम विभाग पहुंचता है.  55 से ज्यादा वायुसेना स्टेशनों पर भी आकाशीय बिजली गिरने की जानकारी के यंत्र लगे हैं. यह सब है पर इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा. सरकार और उनके नुमाइंदों तथा संबंधित अधिकारियों का रुख यही होता है कि बिजली गिरने से हम कैसे रोक सकते हैं. पर उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि इसके बारे में अभियान चलाकर जनजागरूकता क्यों नहीं बढाई जा सकती? क्या ज्यादातर मरने वाले गरीब होते हैं, इसलिए ध्यान नहीं दिया जाता.

 

संसार के लगभग सभी विकसित देशों ने बकायदा अभियान चलाकर आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को बिल्कुल खत्म कर दिया है.

ओट्स से बनाएं ये 4 नई डिश, टेस्टी भी हेल्दी भी

1. उसल ओट्स

सामग्री

– 1/2 कटोरी अरहर की दाल – 1/4 कटोरी चने की दाल – 1 कटोरी ओट्स – 1/4 छोटा चम्मच हलदी – 1/2 बड़ा चम्मच सांबर पाउडर – 1/2 कप इमली का पानी – 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च – 1 बड़ा चम्मच गाजर – 1 बड़ा चम्मच शिमलामिर्च बारीक कटी – 1 बड़ा चम्मच प्याज मोटा कटा – थोड़े से करीपत्ते – 1/2 छोटा चम्मच सरसों – 5-6 दाने काजू – 1 छोटा चम्मच देशी घी – थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजाने के लिए – नमक स्वादानुसार.

विधि

दोनों दालों को धो कर आवश्यकतानुसार पानी डाल कर हलदी व नमक मिला कर कुकर में पका लें. भाप निकलने पर कुकर खोल लें. ओट्स मिला कर धीमी आंच पर कुछ देर पकाएं. पानी कम लगे तो थोड़ा सा मिला दें. एक पैन में घी गरम कर काजू तल कर निकाल लें. अब इसी घी में करीपत्ते, सरसों व साबूत लालमिर्च डाल कर चटकाएं. सारी सब्जी डाल कर मुलायम होने तक पकाएं. इस तड़के को दाल ओट्स में मिला दें. कुछ देर पकाएं. डिश खिचड़ी की तरह गाढ़ी हो जाए तो आंच से उतार लें. एक छोटे पैन में घी गरम कर लालमिर्च डाल कर तड़का बनाएं. तैयार उसल में सांबर व इमली मिलाएं और फिर लालमिर्च का तड़का लगा दें. धनियापत्ती और तले काजुओं को सजा कर परोसें.

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2 ओट्स दलिया पुडिंग

सामग्री

– 1/2 कप ओट्स द्य 2 केले

– 1 बड़ा चम्मच दलिया

– 1/2 कप मिलाजुला मेवा

– 1 लिटर दूध द्य चीनी स्वादानुसार

– 1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐसैंस.

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विधि

एक भारी पैंदे के पतीले में दूध, दलिया व ओट्स डाल कर पकाने के लिए रखें. उबाल आने पर आंच धीमी कर दें. पुडिंग के गाढ़ा होने तथा दलिया के गल जाने तक धीमी आंच पर पकाएं. केलों को मैश कर लें. जब पुडिंग तैयार हो जाए तो उस में चीनी मिला दें. आंच से उतार का मैश किया केला डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. मेवी और वैनिला ऐसैंस मिला कर मिक्स करें. पुडिंग को छोटीछोटी कटोरियों में सजाएं. मेवे से सजा कर चाहे तो ठंडा कर के या फिर सामान्य तापमान पर भी परोस सकती हैं.

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3 ओट्स डोसा

सामग्री

– 1/2 कप ओट्स पाउडर – 1/2 कप चावल का आटा – 1/2 कप गेहूं का आटा – 1/2 कप दही – पानी आवश्यकतानुसार – डोसे बनाने के लिए पर्याप्त औलिव औयल – नमक स्वादानुसार.

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विधि

तीनों आटों को एक बड़े बाउल में मिलाएं. फिर नमक डाल कर मिलाएं. अब दही डाल दें. फिर पानी डाल कर घोल बना लें. घोल पकौड़ों के घोल जैसा होना चाहिए. अब इसे 5-6 घंटे या खमीर उठने तक ढक कर रख दें. मिश्रण तैयार हो जाए तो एक बार फिर अच्छी तरह मिक्स कर लें. नौनस्टिक पैन गरम कर उस पर कलछी की सहायता से तैयार घोल फैला कर डोसे का आकार दें. औलिव आयल डालें. एक ओर से पक जाने पर पलट कर दूसरी ओर से भी सुनहरा होने तक पका लें. चाहें तो ऐसे ही सर्व करें या फिर आलू की भरावन भर कर डोसे को दोहरा कर के परोसें.

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4. ओट्स मफिन

सामग्री

– 100 ग्राम ब्राउन शुगर –

150 ग्राम गेहूं का आटा –

2 अंडे –

1/2 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा –

50 ग्राम चीनी या शहद –

50 ग्राम ओट्स –

1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर –

1 छोटा चम्मच वैनिला ऐसैंस –

100 ग्राम दही –

थोड़े से चीको चिप्स – नमक स्वादानुसार.

विधि

ओवन को 180 डिग्री पर गरम कर लें. फिर एक बड़े बरतन में सारी सामग्री 1-1 कर मिलाएं. उस के बाद 5-7 मिनट फेंट कर 1 चम्मच से मफिन टे्र में भरें. ऊपर चीको चिप्स लगाएं. गरम ओवन में 20-25 मिनट तक बेक कर लें. ठंडा होने पर सांचे से निकाल कर चाय के साथ परोसें.

आंखों की बीमारी: कई बार नहीं मिलते संकेत या लक्षण, ऐसे रखें ध्यान

लेखक- डा. महिपाल एस. सचदेव,

दृष्टि हमारी बहुमूल्य इंद्रिय है, अपने आसपास की दुनिया देखने की खिड़की है. कुछ ऐसे ही लोग सिर्फ सूर्य की रोशनी का महत्व समझ सकते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी का कुछ पल अंधेरे में गुजारा है. हमें इलाज की बेहतर सुविधाओं के जरीए अस्थायी नेत्रहीनता दूर करने पर जोर देना चाहिए, क्योंकि नेत्रहीनता से प्रभावित प्रत्येक 5 में से 4 व्यक्तियों का इलाज संभव हो सकता है.

जागरूकता बढ़ाना आज वक्त की मांग है, खासकर बुजुर्गों के बीच, क्योंकि वे अपने शरीर के चेतावनी भरे लक्षणों की अनदेखी कर देते हैं और दृष्टि की समस्या से पीड़ित लोगों में से 60 प्रतिशत लोग 50 साल से अधिक उम्र के ही होते हैं.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, विश्व में 4.50 करोड़ नेत्रहीनों में से लगभग 80 प्रतिशत लोग 50 साल से अधिक उम्र के हैं. लिहाजा, 50 या इस से अधिक की उम्र वाले प्रत्येक व्यक्ति को संपूर्ण नेत्र जांच कराने के लिए किसी आई केयर प्रोफेशनल से संपर्क करना चाहिए. नेत्र संबंधी कई रोगों में कोई पूर्ववर्ती लक्षण या संकेत नजर नहीं आते, लेकिन समग्र जांच से दृष्टिहीनता की स्थिति आने से पहले शुरुआती चरण के नेत्र रोगों का पता चल सकता है. शुरुआती जांच और इलाज से आप की दृष्टि सुरक्षित रह सकती है.

आप को यदि कोई दृष्टि संबंधी समस्या का भी अनुभव हो रहा है, तो समग्र नेत्र जांच के लिए किसी आईकेयर प्रोफेशनल से ही संपर्क करें. इसलिए हमें लोगों को शिक्षित करना होगा कि मोतियाबिंद, डायबिटीक रेटिनोपैथी, ग्लूकोमा, ड्राई आई आदि जैसी नेत्र समस्याएं हमारे देश में आंखों की खराब सेहत का एक बड़ा कारण है, लेकिन उचित देखभाल और सही समय पर किसी मेडिकल एक्सपर्ट द्वारा चिकित्सा सहायता मुहैया कराने से इन का इलाज किया जा सकता है और मरीजों को अच्छी दृष्टि व आत्मविश्वास की जिंदगी जीने का आनंद मिल सकता है.

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साथ ही, हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि टैक्नोलौजी की तरक्की की बदौलत हमें आंखों की देखभाल संबंधी सभी तरह के व्याप्त मिथकों को दूर करने की जरूरत है, क्योंकि शुरुआती जांच में जरा भी देरी हमें दृष्टि से वंचित कर सकती है. हमें अच्छे आईकेयर के महत्व और नेत्रदान के बारे में लोगों के बीच अधिकतम जागरूकता और सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है. हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि कैसे नेत्रदान से किसी की जिंदगी को रोशन किया जा सकता है.

अतः यदि आप को आंखों के सामने सीधी रेखाएं नजर आती हैं या आप को देखने में अस्पष्टता या धुंधलापन महसूस होता है या दूर की चीज देखने में दिक्कत आती है या बारीक चीजों को देखने में दिक्कत होती है, पन्ने पर किसी अंक या चेहरे को पढ़ने में दिक्कत आती है या आंखों से लगातार पानी आता रहता है, तो आप को तुरंत किसी प्रोफेशनल की मदद लेनी चाहिए.

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अच्छी दृष्टि के लिए यहां हम आप को कुछ कारगर उपाय बता रहे हैंः-

खानपान स्वस्थ रखें

आंखों की सुरक्षा स्वस्थ संतुलित खानपान से ही शुरू होती है. ओमेगा-3, फैटी एसिड, जिंक और विटामिन सी और ई से युक्त पौष्टिक आहार मैस्कुलर डिजेनरेशन और कैटरेक्ट आदि जैसी उम्र संबंधी दृष्टि समस्याओं से नजात दिलाने में मददगार हो सकते हैं. हरी सब्जियां, साइट्रस फल, बादाम, बींस, अंडे आदि जैसे आहार का नियमित सेवन आंखों की सेहत को अच्छा बनाए रखता है.

धूम्रपान त्यागें

धूम्रपान से आप को कैटरेक्ट्स, औप्टिक नर्व डैमेज और मैस्कुलर डिजेनरेशन आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

सनग्लास का इस्तेमाल करें.

धूप और नुकसानदेह यूवी किरणों में ज्यादा देर तक रहने से आप को कैटरेक्ट्स की समस्या हो सकती है. इसलिए धूप में हमेशा बाहर निकलने से पहले सनग्लास का इस्तेमाल करें.

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हमेशा कंप्यूटर पर काम करने के दौरान बीचबीच में ब्रेक लेते रहें. बिना ब्रेक लिए लंबे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन पर चिपके रहने से नजर धुंधली, सिरदर्द और ड्राई आई जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए एहतियातन अपने कंप्यूटर स्क्रीन को आंखों के समानांतर रेखा में रखें. इस से कंप्यूटर स्क्रीन पर आप की नजर बहुत कम ही नीचे झुकी रहेगी. बैठने के लिए आरामदेह और पीठ को सपोर्ट देने वाली कुरसी ही चुनें. यदि आप की आंखें ड्राई हो जाती हैं, तो पलकों को बारबार झपकाएं. संभव हो, तो प्रत्येक 20 मिनट पर यह प्रक्रिया दोहराएं और आंखों को आराम देने के खयाल से 20 सेकंड तक 20 फुट दूर की चीजें देखने का अभ्यास दोहराते रहें. प्रत्येक दो घंटे पर कंप्यूटर के सामने से हट जाएं और 15 मिनट का ब्रेक लें. अपने आई स्पेशलिस्ट या औप्थेल्मोलौजिस्ट से मिल कर समस्या दूर करें.

कोरोना ने बदली युवाओं की सोच

कोरोना वायरस महामारी के कारण जहां विश्वभर में हालात काफी बदले हैं, वहीं युवाओं की जीवनशैली में काफी बदलाव आया है. उन के जीने का नजरिया अब बदलने लगा है.

बड़ीबड़ी कंपनियों में मासिक वेतन के अतिरिक्त अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं. इस वजह से आजकल के युवा अपने वेतन को अब तक लग्जरी जीवन जीने में खर्च कर रहे थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है.

बदल डाली शौक

एक मल्टीनैशनल कंपनी में सीईओ रही सोनाली को ब्रैंडेड कपड़ों व होटलों पर अपनी तनख्वाह खर्च करने का बेहद शौक था. लग्जरी जीवन जीना उन की प्राथमिकता थी. मगर अब वे सोचसमझ कर खर्च करती हैं. वजह है कोरोना से उपजी समस्या.

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विशाल ने 1 साल पहले अपनी स्टूडियो खोली थी. काम अच्छा चल रहा था. मगर इस से पहले कि काम को अच्छी गति मिलती उस के पहले लौकडाउन लग गया. लगभग 2 महीने तक स्टूडियो बंद रहा जबकि कर्मचारियों का वेतन भुगतान जारी था जबकि उस की तुलना में बिक्री बहुत कम थी.

आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता से  चिंता के कारण उन्हें असहज महसूस होने लगा.

विशाल बताते हैं,” मैं आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता के कारण चिंतित और असहाय महसूस कर रहा हूं. अब तो मुझे काम के अर्थ पर भी संदेह होता है.”

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2 महीने तक उन्होंने अपने यहां काम कर रहे आदमियों को वेतन दिया पर आमदनी शून्य होने के कारण उन्हें काम से हटाना पड़ा.

लग्जरी लाइफ से तोबा

वनीता को भी लग्जरी लाइफ जीने का शौक था. कामवाली के भरोसे  अकेली रहने वालों को काम चलाना सुविधाजनक लगता है.

लौकडाउन के कारण उन्हें घर पर ही रहना पड़ा. धीरेधीरे उस ने अपनी मां के साथ रसोई में काम करना शुरू किया. घर में रहने की वजह से इनोवैटिव कुकिंग शुरू कर दी, जिस से न केवल उसे खुशी हुई अपितु बचत भी खूब हुई. औफिस का काम घर से ही चल रहा था तो इस वजह से आधी तनख्वाह मिलती थी. इस से उस के अंदर सुरक्षा की भावना थी कि कुछ पैसा तो हाथ में है.

उधर फास्ट फूड खाने के कारण जो वजन बढ़ रहा था, घर में काम करने से कम हुआ और शरीर में स्फूर्ति भी रहने लगी.

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बदलेबदले से हैं हालात

इस कोरोना काल में भारत भी आर्थिक समस्या से जूझ रहा है.  बेरोजगारी बढ़ रही है. प्राइवेट सैक्टर में कंपनियां छंटनी कर रही हैं. मध्यवर्गीय व सभी कर्मचारियों की हालत एकजैसी हो रही है. सभी एकजैसी मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं. भारत में 90 के दशक के बाद के बच्चे भी भव्य खर्चे में आत्मसुख तलाश रहे थे और अभिव्यक्ति का लाभ उठा रहे थे, लेकिन हालात पहले जैसे नहीं रहे.

सब से बड़ा असर उन युवाओं पर पड़ा जो हाल ही में आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने वाले थे. लेकिन एक झटके में उन के हाथ से नौकरी चली गई. मानसिक स्थिरता की जगह चिंता और असंतोष का भाव उन को परेशान करने लगा.

धानी व मयंक जैसे लोग आवेगपूर्ण उपभोग करते थे. लेकिन महामारी आने के कारण उन के विवेकपूर्ण और  समझदारी से चलने की वजह ने उन्हें बचा लिया.

भविष्य को ले कर संशय

बेरोजगारी और व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए सरकार ने नीतियों में ढील तो दी है लेकिन महामारी ने युवाओं का नजरिया बदल दिया है. अब वे खुद को जोखिम से बचाने के नएनए तरीके ढूंढ़ रहे हैं. युवाओं ने नएनए तरीके का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है और औनलाइन कमाने का जरीया ढूंढ़ने में लगे हैं.

संजय ने दुकान बढ़ाने के लिए अपनी आधी जमापूंजी दुकान में लगा दी. लेकिन आमदनी बंद होने के कारण मुश्किलें बढ़ गईं. दुकान का किराया देना और पैसे की तंगी न हो इसलिए औनलाइन काम शुरू किया, लेकिन उस में भी गिरावट आ गई. ग्राहक पैसा देना नहीं चाहते. दुकानें खुली हैं लेकिन ग्राहक नहीं हैं. इसलिए कुछ ही हफ्तों के बाद उन्हें अपने इस व्यवसाय को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शीतल की नईनई नौकरी लगी थी. कंपनी ने आर्थिक स्थिति में गिरावट की वजह से लोगों को निकाल दिया. उन लोगों में वह भी शामिल थी. अपनी मानसिक स्थिति को व्यस्त रखने के लिए उस ने औनलाइन लिखना शुरू कर दिया और औनलाइन सामान बेचे. पुरानी चीजें भी बेचीं.

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औनलाइन काम करने से फिलहाल बहुत ज्यादा पैसा तो नहीं मिल रहा है लेकिन उसे आत्मसंतुष्टि जरूर मिली कि कुछ तो कमा रहे हैं. लेकिन अभी भी भविष्य को ले कर बहुत संशय है.

जमीन पर रहना अच्छा है

सोनाली व निक दोनों नौकरी कर के अच्छा कमाते थे. हाल ही में उन्होंने बड़ा सा घर लिया था. दोनों वित्तीय कर्मचारी हैं. महामारी से पहले कमीशन में प्रति वर्ष अच्छा पैसा  कमाते थे, लेकिन भुगतान हाल के महीनों में पूरी तरह से सूख गया है.उन के लिए वित्तीय तौर पर बहुत बड़ा झटका था. अपने फ्लैट का भुगतान करने के लिए उन्हें 60% कटौती करनी पड़ी.

वे कहती हैं कि मुझे कुछ योजना बनानी होगी. सौंदर्य प्रसाधन व स्वयं पर खर्च कम करने होंगे. औफिस खुलने के बाद टेकआउट मिल लेने की जगह घर का बना भोजन ले कर जा रही हूं. मेस का खाना बंद कर दिया है. धीरेधीरे बचत करनी होगी और अपने खर्चों पर विशेष ध्यान देना होगा.

वे कहती हैं,”महामारी के कारण पूरे 2 महीने तक घर पर रहना मुझे इस बात का एहसास कराता रहा कि बगैर भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादा सुकुन था. मुझे लगता है कि जमीन पर अपने पैरों के साथ रहना बहुत अच्छा है.”

साकेत ने कहा,” पहले मुझे खर्चे व फ्लैट की किस्त के लिए सोचना नहीं पड़ता था. लेकिन अब हर कार्य को करने से पहले योजना बनानी पड़ती है.”

वहीं सौरभ कहते हैं कि हालात बेहद खराब हैं. रोटी कमाने के लिए हम बाहर आए हैं. इस वेतन में परिवार के लिए क्या व कैसे करेंगे, कल का पता नहीं है.

मगर सवाल कई हैं

यों कोरोना महामारी ने लोगों की जिंदगी बदल दी है. युवाओं की सोच व निति में परिवर्तन आया है.सब से बड़ी बात है कि भले भविष्य में स्थितियां सामान्य हो जाएं लेकिन युवाओं को दोहरी मार पड़ रही है.  आने वाले आर्थिक संकट से देश के युवा कैसे उबरेंगे, यह एक चुनौती होगी.

समय का यह घाव क्या स्थितियां सामान्य कर सकेंगी? क्या भारत की अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सरकार की नीतियां काम करेंगी? सवाल कई हैं पर फिलहाल

बेरोजगारी बढ़ने से युवाओं की मानसिक स्थिति उन्हें अवसाद में धकेल सकती है. युवाओं का रुझान नए ट्रैंड स्थापित करने में हो रहा है लेकिन सफलता व रास्ते बेहद दूर हैं. अलबत्ता देश की आर्थिक स्थिति को बढाने में युवाओं का बड़ा योगदान जरूर होगा.

10 साल- भाग 1: नानी से सभी क्यों परेशान थे?

जब से होश संभाला था, वृद्धों को झकझक करते ही देखा था. क्या घर क्या बाहर, सब जगह यही सुनने को मिलता था, ‘ये वृद्ध तो सचमुच धरती का बोझ हैं, न जाने इन्हें मौत जल्दी क्यों नहीं आती.’ ‘हम ने इन्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया, अपनी जान की परवा तक नहीं की. आज ये कमाने लायक हुए हैं तो हमें बोझ समझने लगे हैं,’ यह वृद्धों की शिकायत होती. मेरी समझ में कुछ न आता कि दोष किस का है, वृद्धों का या जवानों का. लेकिन डर बड़ा लगता. मैं वृद्धा हो जाऊंगी तो क्या होगा? हमारे रिश्ते में एक दादी थीं. वृद्धा तो नहीं थीं, लेकिन वृद्धा बनने का ढोंग रचती थीं, इसलिए कि पूरा परिवार उन की ओर ध्यान दे. उन्हें खानेपीने का बहुत शौक था. कभी जलेबी मांगतीं, कभी कचौरी, कभी पकौड़े तो कभी हलवा. अगर बहू या बेटा खाने को दे देते तो खा कर बीमार पड़ जातीं. डाक्टर को बुलाने की नौबत आ जाती और यदि घर वाले न देते तो सौसौ गालियां देतीं.

घर वाले बेचारे बड़े परेशान रहते. करें तो मुसीबत, न करें तो मुसीबत. अगर बच्चों को कुछ खाते देख लेतीं तो उन्हें इशारों से अपने पास बुलातीं. बच्चे न आते तो जो भी पास पड़ा होता, उठा कर उन की तरफ फेंक देतीं. बच्चे खीखी कर के हंस देते और दादी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता, जहां से वे चाची के मरे हुए सभी रिश्तेदारों को एकएक कर के पृथ्वी पर घसीट लातीं और गालियां देदे कर उन का तर्पण करतीं. मुझे बड़ा बुरा लगता. हाय रे, दादी का बुढ़ापा. मैं सोचती, ‘दादी ने सारी उम्र तो खाया है, अब क्यों खानेपीने के लिए सब से झगड़ती हैं? क्यों छोटेछोटे बच्चों के मन में अपने प्रति कांटे बो रही हैं? वे क्यों नहीं अपने बच्चों का कहना मानतीं? क्या बुढ़ापा सचमुच इतना बुरा होता है?’ मैं कांप उठती, ‘अगर वृद्धावस्था ऐसा ही होती है तो मैं कभी वृद्धा नहीं होऊंगी.’

मेरी नानी को नई सनक सवार हुई थी. उन्हें अच्छेअच्छे कपड़े पहनने का शौक चर्राया था. जब वे देखतीं कि बहू लकदक करती घूम रही है, तो सोचतीं कि वे भी क्यों न सफेद और उजले कपड़े पहनें. वे सारा दिन चारपाई पर बैठी रहतीं. आतेजाते को कोई न कोई काम कहती ही रहतीं. जब भी मेरी मामी बाहर जाने को होतीं तो नानी को न जाने क्यों कलेजे में दर्द होने लगता. नतीजा यह होता कि मामी को रुकना पड़ जाता. मामी अगर भूल से कभी यह कह देतीं, ‘आप उठ कर थोड़ा घूमाफिरा भी करो, भाजी ही काट दिया करो या बच्चों को दूधनाश्ता दे दिया करो. इस तरह थोड़ाबहुत चलने और काम करने से आप के हाथपांव अकड़ने नहीं पाएंगे,’ तो घर में कयामत आ जाती.

‘हांहां, मेरी हड्डियों को भी मत छोड़ना. काम हो सकता तो तेरी मुहताज क्यों होती? मुझे क्या शौक है कि तुम से चार बातें सुनूं? तेरी मां थोड़े हूं, जो तुझे मुझ से लगाव होता.’ मामी बेचारी चुप रह जातीं. नौकरानी जब गरम पानी में कपड़े भिगोने लगती तो कराहती हुई नानी के शरीर में न जाने कहां से ताकत आ जाती. वे भाग कर वहां जा पहुंचतीं और सब से पहले अपने कपड़े धुलवातीं. यदि कोई बच्चा उन्हें प्यार करने जाता तो उसे दूर से ही दुत्कार देतीं, ‘चल हट, मुझे नहीं अच्छा लगता यह लाड़. सिर पर ही चढ़ा जा रहा है. जा, अपनी मां से लाड़ कर.’ मामी को यह सुन कर बुरा लगता. मामी और नानी दोनों में चखचख हो जाती. नानी का बेटा समझाने आता तो वे तपाक से कहतीं, ‘बड़ा आया है समझाने वाला. अभी तो मेरा आदमी जिंदा है, अगर कहीं तेरे सहारे होती तो तू बीवी का कहना मान कर मुझे दो कौड़ी का भी न रहने देता.’

ले बाबुल घर आपनो- भाग 3: सीमा अपने पापा के गले लगकर क्या कहती थी?

‘मेरा नाम ले कर झूठ मत बोलो. तुम जानते हो इस पैसे की दुनिया से मुझे कभी प्यार नहीं रहा जहां आदमी आजादी से अपनी कोई इच्छा ही पूरी न कर सके, जहां आगेपीछे नौकरों की फौज खड़ी हो. मैं खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं. प्लीज, मुझे अलग ले जाओ, ताकि मैं अपना छोटा सा संसार बना सकूं, और सोच सकूं, यह घर मेरा है, जहां सुकून हो, जहां तुम हो, हमारी बच्ची हो, और मैं होऊं,’ और मीरा रो पड़ी थी.

‘ठीक है, मीरा. मैं वचन देता हूं, हम उसी तरह रहेंगे जैसे तुम चाहती हो. मैं पिताजी से जरूर बात करूंगा,’ उन्होंने मीरा को प्यार से थपथपा दिया था.

जब मीरा ने देखा कि यह तकरार भी चिकने घड़े की बूंद बन गई है तो वह हमेशा के लिए चुप हो गई थी. शायद उस ने ‘जो है, सो ठीक है,’ समझ कर ही संतोष कर लिया था.

दूसरे बच्चे के समय मीरा की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी. डाक्टरों की भीड़ भी उसे नहीं बचा सकी थी. तब यही शंभुजी सीमा को छाती से लगा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने मन ही मन मीरा से कितनी बार माफी मांगी थी और वादा किया था, ‘तुम्हारी सीमा की मैं हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं स्वयं उस का खयाल रखूंगा, उसे मां बन कर पालूंगा.’

कितना स्नेह और ममत्व उन्होंने बेटी को दिया था. उस के उठने से ले कर सोने तक, हर बात का ध्यान वे खुद रखते थे. बाहर जाना भी कितना कम कर दिया था. लेकिन कभीकभी जब सीमा उन्हें टकटकी लगाए देखने लगती थी तो न जाने वे क्यों सिहर उठते थे. उन्हें महसूस होता था, ये निगाहें सीमा की नहीं, मीरा की हैं, जो उन से कुछ कहना चाह रही हैं, तो वे घबरा कर यह पूछ बैठते, ‘कुछ कहना है, बेटी?’

‘कुछ नहीं, पापा,’ जब सीमा कहती तो उन की सांस की गति ठीक होती.

समय के साथ सीमा बड़ी हुई. मीरा के मातापिता का साथ छूटा. सारा कारोबार फिर एक बार शंभुजी पर आ पड़ा. यह वही जिम्मेदारी थी जो किसी को दी नहीं जा सकती थी और फिर धीरेधीरे वे पहले की तरह व्यस्तता के बीच खोने लगे थे.

एक दिन जब वे काफी रात गए घर लौटे थे, तो यह देख कर हैरान हो गए थे कि जल्दी सो जाने वाली सीमा, आज बालकनी में खड़ी उन का इंतजार कर रही है. वे हैरानी से बोले थे, ‘सोई क्यों नहीं?’

‘आप जल्दी क्यों नहीं आते? अकेले मेरा मन नहीं लगता,’ सीमा गुस्से में थी.

‘मेरा बहुत काम होता है, इसी लिए देर हो जाती है. आज कोई पहली बार तो मैं देर से नहीं आया?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘इतनी रात तक किसी का काम नहीं होता. आप झूठ बोलते हैं. आप पार्टियों में जाते हैं, शराब पीते हैं, इसी लिए आप को देर हो जाती है.’

‘सीमा,’ वे नाराज हो गए थे.

‘डांटिए मत, मैं कालेज से देर से आऊंगी, तब आप को अच्छा लगेगा?’ वह भी सख्ती से बोली थी, ‘मैं कहे देती हूं, अब आप देर से आएंगे तो मैं खाना नहीं खाऊंगी.’ और वह पैर पटकती हुई चली गई थी.

वे हैरान से खड़े देखते रह गए थे. मीरा और सीमा में कितना साम्य है. वह अगर हवा का तेज झोंका थी तो यह सबकुछ हिला देने वाली तेज आंधी.

कुछ दिन तक तो वे समय पर घर पहुंचते रहे थे. लेकिन क्रम टूटते ही घर में तूफान आ जाता था. एक बार तो सीमा ने हद कर दी थी. महाराज के बारबार खाने के लिए बुलाने पर उस ने खाने की मेज ही उलट कर रख दी थी, और चिल्ला कर कहा था,

‘मैं शीला चाची के यहां जा रही हूं. डाक्टर साहब के साथ शतरंज खेलूंगी. पिताजी से कह देना, जिस समय मेरा मन होगा, मैं वापस आऊंगी. मुझे वहां लेने आने की कोई जरूरत नहीं.’ और वह दनदनाती हुई चली गई थी.

जब शंभुजी को पता चला तो वे चाह कर भी उसे लेने नहीं जा सके थे. उन्हें डर था, ‘जिद्दी लड़की है, वहीं कोई नाटक न शुरू कर दे.’

12 बजे के करीब डाक्टर साहब का बेटा दीपक उसे छोड़ने आया था तो वह बिना उन्हें देखे अपने कमरे में चली गई थी. पीछेपीछे भारी कदमों से उन्हें उस के कमरे में जाना पड़ा था, ‘खाना नहीं खाओगी, बेटी?’

‘मैं ने खा लिया है,’ वह लापरवाही से बोली थी.

‘तुम डाक्टर साहब के यहां रात को क्यों गई थी?’ उन्होंने सख्ती से पूछा था.

‘आप भी तो वहां जाते हैं. वे भी हमारे घर आते हैं,’ वह भी सख्त हो गई थी.

‘वे मेरे मित्र हैं, बेटी. तुम समझती क्यों नहीं? तुम अब बड़ी हो गई हो. रात को अकेले तुम्हें…’ आगे वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘मैं वहां जरूर जाऊंगी. दीपक मुझे घुमाने ले जाता है. मेरा खयाल रखता है. वह भी मेरा दोस्त है. जब आप को फुरसत नहीं मिलती तो मैं अकेली क्या करूं?’

इतना सुनते ही उन का सिर चकराने लग गया था. इन बातों का तो उन्हें पता ही नहीं था. वे तो अपने काम में ही इतने व्यस्त रहते थे कि बाहर क्या हो रहा है, कुछ जानते ही न थे. डाक्टर साहब जरूर उन्हें कभीकभी खींच कर पार्टियों में या क्लब में ले जाते थे.

फिर उन्हें यह भी जानकारी मिली कि, सीमा दीपक के साथ फिल्म देखने भी जाती है तो वे बड़े परेशान हो गए थे. पहले तो उन्हें सीमा पर गुस्सा आया था कि कभी मुझ से पूछती तक नहीं, लेकिन फिर वे स्वयं पर भी नाराज हो उठे थे, उन्होंने ही बेटी से कब, कुछ जानना चाहा था.

सीमा कुछ और सयानी हो गई थी. उन्होंने भी सोचा था, ‘दीपक अच्छा लड़का है. अगर सीमा उसे पसंद करती है तो वे उस की इस खुशी को जरूर पूरा करेंगे. सीमा के सिवा उन का है ही कौन? यह घर, यह कारोबार किसी को तो संभालना ही है. फिर दीपक तो बड़ा ही प्यारा लड़का है.’ और वे निश्ंिचत हो गए थे.

अब वे सीमा से हमेशा दीपक के बारे में पूछा करते थे. वे यह भी देख रहे थे, सीमा धीरेधीरे गंभीर होती जा रही है.

एक दिन बातोंबातों में सीमा ने कहा था, ‘पिताजी, आप क्यों नहीं किसी को अपने विश्वास में ले लेते? उसे सारा काम समझा दीजिए, तो आप का कुछ बोझ तो हलका हो ही जाएगा. आप को कितना काम करना पड़ता है.’

‘हां, बेटा, मैं भी कई दिनों से यही सोच रहा था. पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं, फिर कारोबार का बोझ भी अपने ऊपर से उतार फेंकूं. अब मैं भी बहुत थक गया हूं, बेटी.’

‘आप एक चैरिटेबल ट्रस्ट क्यों नहीं बना देते? उस से जितना भी लाभ हो, गरीबों की सहायता में लगा दिया जाए. गरीबों के लिए एक अस्पताल बनवा दीजिए. एक स्कूल खुलवा दीजिए. इतने पैसों का आप क्या करेंगे?’

‘बेटी, अपना हक यों बांट देना चाहती हो,’ वे हैरानी से बोले थे.

‘मैं भी इतना पैसा क्या करूंगी. आदमी की जरूरतें तो सीमित होती हैं, और उसी में उसे खुशी होती है. इतना पैसा किस काम का जो किसी दूसरे के काम न आ सके, बैकों में पड़ापड़ा सड़ता रहे. सब बांट दीजिए, पापा.’

‘कैसी बातें करती हो, मैं ने सारी जिंदगी क्या इसी लिए खूनपसीना एक किया है कि मैं कमा कर लोगों में बांटता फिरूं. तुम नहीं जानतीं. मैं ने इसी व्यापार को बढ़ाने की खातिर क्या कुछ खोया है?’

‘मुझे सब पता है, पापा. इसी लिए तो कहती हूं, आप समेटतेसमेटते फिर कुछ न खो बैठें. एक बार बांट कर तो देखिए, आप को कितना सुख मिलता है. जो खुशी दूसरों के लिए कुछ कर के हासिल होती है, वह खुद के लिए समेट कर नहीं होती.’

‘यह तुम क्या कह रही हो?’

‘डाक्टर चाचा भी तो यही कहते हैं, पापा, देखिए न, वे गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं. वे हमेशा यही कहते हैं, बस, जितने की मुझे जरूरत होती है, मैं रख लेता हूं, बाकी दूसरों को दे देता हूं, ताकि मेरे साथसाथ दूसरों का भी काम चलता रहे.’

वे बेटी का मुंह देखते रह गए थे. अच्छा हुआ सीमा ने बात खोल दी, नहीं तो वे कितनी बड़ी गलती कर बैठते. नहीं, नहीं, उन्हें तो ऐसा लड़का चाहिए जो व्यापार को संभाल सके. वे इस तरह अपनी दौलत को कभी नहीं लुटाएंगे. और उन्होंने निश्चय किया था, वे अपनी तरफ से तलाश शुरू कर देंगे. यह काम जल्दी ही करना होगा.

जल्दी काम करने का नतीजा भी सीमा की नजरों से छिपा नहीं रहा. शंभुजी के औफिस की टेबल पर उस ने जब कई लड़कों के फोटो देखे तो वह सबकुछ समझ गई थी. उसी दिन वे कोलकाता जाने वाले थे. सीमा ने सबकुछ देखने के बाद केवल इतना ही कहा था, ‘पापा, आप इतनी जल्दी न करें, तो अच्छा है.’

‘तुम्हें मेरे फैसले पर कोई आपत्ति है.’

‘मेरा अपना भी तो कोई फैसला हो सकता है,’ उस ने दृढ़ता से कहा था.

‘मुझे तुम्हारे फैसले पर आपत्ति नहीं, बेटी. दीपक मुझे भी पसंद है. लेकिन मेरी भी तो कुछ खुशियां हैं, कुछ इच्छाएं हैं. तुम जानती हो, दीपक को शादी के बाद…’

‘आप पहले कोलकाता हो आइए. इस बारे में हम फिर बात करेंगे,’ उस ने उन की बात काट दी थी.

वे निश्ंिचत हो कर चले गए थे, और आज वापस आए थे. लेकिन दरवाजे पर इंतजार करती सीमा कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वे तेजी से उस के कमरे में गए, शायद उस ने कोई मैसेज छोड़ा हो लेकिन कहीं कुछ भी नहीं था. सबकुछ व्यवस्थित था. तभी नौकर ने आ कर धीरे से कहा, ‘‘सीमा बिटिया आ गई है.’’

सीमा जब उन के सामने आ कर खड़ी हुई थी तो वे उसे अपलक देखते रह गए थे. इन 6 दिनों में सीमा को क्या हो गया है. लगता है, जैसे इतने दिनों तक सोई ही न हो, ‘‘कहां गई थी, बेटी?’’

‘‘रमेशजी के यहां, मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने बुलवा भेजा था.’’

‘‘मां…कौन मां?’’ वे हैरान थे.

‘‘रेखा चाची, यानी शरदजी की मां. शरदजी की भी तबीयत ठीक नहीं है. मैं यही बताने आई थी, कहीं आप चिंता न करने लगें. मुझे अभी फिर वापस जाना है. उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं. दोनों बीमार हैं. शायद मुझे रात को भी वहीं रहना पड़े.’’

‘‘उन का नौकर उन की…’’ वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘‘जितनी सेवा कोई अपना कर सकता है, उतनी सेवा क्या नौकर करेगा? मेरा मतलब तो आप समझ गए न, मैं ने कहा था न, पिताजी मेरा भी कोई फैसला हो सकता है.’’

‘‘और डाक्टर का बेटा दीपक?’’ वे हैरान थे.

‘‘वह तो बचपन की पगडंडियों पर लुकाछिपी खेलने वाला दोस्त था, जो जवानी के मोड़ पर आ कर आप की दौलत से भी आंखमिचौली खेलना चाहता था. मुझे जीवनसाथी की जरूरत है, पापा, दौलत पर पहरा देने वाले पहरेदार की नहीं. मैं जानती हूं, आप को मेरी बातों से दुख हो रहा है. लेकिन यह भी तो सोचिए, लड़की के जीवन में एक वह भी समय आता है जब वह बाबुल का घर छोड़ कर पति के घर जाने के लिए आतुर हो जाती है. इसी में उसे जिंदगी का सुख मिलता है. मांबाप की भी तो यही खुशी होती है कि लड़की अपने घर में सुखी रहे. आप शरद को भी बचपन से जानते हैं, आप भी अपना फैसला बदल डालिए, इसी में मेरी खुशी है और आप का सुख,’’ और वह जाने को तैयार हो गई.

‘‘रुक जाओ, बेटी, मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है. तुम ने तो एकसाथ मेरे दोदो बोझ हलके कर दिए हैं. बेटी का बोझ और धन का बोझ. इसे भी अपनी मरजी से ठिकाने लगा देना, बेटी, जिस से कइयों को खुशियां मिलती रहें,’’ कहतेकहते उन की आंखें नम हो गई थीं.

‘‘पापा,’’ वह भाग कर मुद्दत से प्यासे पापा के हृदय से लग कर रो पड़ी थी.

Crime Story: योगेश सक्सेना मर्डर

उमा ने अपने भाई के दोस्त योगेश सक्सेना से अवैध संबंध बना लिए थे. योगेश के चक्कर में वह अपने पति को भी छोड़ आई थी. कुछ दिनों बाद उमा के संबंध सुनील शर्मा से हो गए. फिर उमा ने सुनील के साथ मिल कर पहले प्रेमी योगेश को ठिकाने लगाने की ऐसी साजिश रची कि… बरेली के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के भूड़ पड़रिया मोहल्ले में रहने वाला योगेश सक्सेना उर्फ मुन्नू नाथ

मंदिर के पास रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान में सेल्समैन की नौकरी करता था.

पहली मार्च, 2020 की रात वह दुकान से घर नहीं लौटा तो परिजनों को चिंता हुई. योगेश का बड़ा भाई अंशू भी घर के बाहर था. उसे फोन कर के बताया गया तो उस ने योगेश जिस दुकान पर काम करता था, उस के मालिक जितेंद्र से पता किया तो उस ने बताया कि योगेश तबीयत खराब होने की बात कह कर जल्दी दुकान से घर जाने के लिए निकल गया था. जब वह दुकान से जल्दी निकल गया तो गया कहां, यह प्रश्न योगेश के परिजनों के सामने मुंह बाए खड़ा था. उस की काफी तलाश की लेकिन कोई पता नहीं चला.

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2 मार्च की सुबह बरेली थाना कोतवाली और कुमार टाकीज के बीच में खाली पड़े मैदान में एक पेड़ के नीचे एक अज्ञात युवक की अधजली लाश पड़ी मिली. किसी ने लाश की सूचना थाना कोतवाली को दे दी.

सूचना पा कर सीओ (प्रथम) अशोक कुमार और कोतवाली इंसपेक्टर गीतेश कपिल पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र यही कोई 30 से 35 वर्ष रही होगी.

मृतक के गले व चेहरे पर धारदार हथियार के 4 गहरे घाव दिखाई दे रहे थे. मारने के बाद उस की पहचान छिपाने के लिए उस की लाश को जलाया गया था, जो कि पूरी तरह से नहीं जल पाई  थी. पास में ही मृतक का मोबाइल भी जला हुआ बरामद हुआ.

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लाश की शिनाख्त के लिए आसपास के दुकानदारों को बुलाया गया. उन में जितेंद्र नाम का एक दुकानदार भी था. उस ने लाश देखी तो वह लाश पहचान गया. क्योंकि वह लाश उस के शोरूम के सेल्समैन योगेश सक्सेना की थी. उस ने तुरंत योगेश के भाई अंशू सक्सेना को योगेश की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पर योगेश की मां मुन्नी देवी व भाई अंशू मौके पर पहुंच गए और लाश की शिनाख्त कर दी. शिनाख्त होने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी गई. इंसपेक्टर गीतेश कपिल ने अंशू से पूछताछ की तो उस ने बताया कि योगेश अपने दोस्त की बहन उमा से फोन पर बात करता रहता था. अपनी कमाई भी उसी पर लुटाता था. कई बार उसे समझाया लेकिन वह मानता ही नहीं था.

कोतवाली आ कर इंसपेक्टर गीतेश की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

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इंसपेक्टर गीतेश ने जांच शुरू की. पुलिस ने योगेश के फोन नंबर की काल डिटेल्स की जांच की. योगेश के नंबर पर अंतिम काल जिस नंबर से की गई थी, उस नंबर से रोज योगेश की बात होने का प्रमाण मिला. घटना की रात उस नंबर से काल आने के बाद ही योगेश दुकान से निकला था. वह नंबर उस की प्रेमिका उमा शुक्ला का था जोकि योगेश के मकान से कुछ दूर भूड़ पट्टी में रहती थी.

इस के बाद 3 मार्च को इंसपेक्टर गीतेश कपिल ने उमा शुक्ला को घर से हिरासत में ले कर कोतवाली में महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में उमा ने बताया कि योगेश की हत्या उस ने अपने दूसरे प्रेमी सुनील शर्मा से कराई थी. उस के बाद सुनील शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इन दोनों से पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, कुछ इस तरह थी—

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उत्तर प्रदेश के महानगर बरेली के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के भूड़ पड़रिया मोहल्ले में अशोक सक्सेना सपरिवार रहते थे. वह एक प्राइवेट बस औपरेटर के यहां कंडक्टर थे.

परिवार में पत्नी मुन्नी देवी के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. अशोक सक्सेना ने अपनी बड़ी बेटी शालिनी का विवाह कर दिया. इस से पहले कि वह अन्य बच्चों की शादी की जिम्मेदारी से मुक्त होते, 3 साल पहले उन की मृत्यु हो गई.

बड़ा बेटा अंशू शादीबारातों में बैंड बाजा बजाने का काम करने लगा. हाईस्कूल पास योगेश नाथ मंदिर के पास स्थित रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान में सेल्समैन की नौकरी कर रहा था. वह इस दुकान पिछले 5 सालों से काम कर रहा था.

योगेश के मकान से कुछ दूरी पर भूड़ पट्टी में महेशचंद्र शुक्ला रहते थे. वह प्राइवेट जौब करते थे. परिवार में उन की पत्नी जानकी और एक बेटी उमा और बेटा अमर उर्फ गुरु था.

20 जुलाई 1990 को जन्मी उमा काफी खुबसूरत और महत्त्वाकांक्षी युवती थी. उस ने बरेली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन की थी. बरेली जैसे महानगर में पलीबढ़ी होने के कारण उस के वातावरण का असर भी उस पर पड़ा था.

उमा का भाई अमर और योगेश एक ही मार्केट में अलगअलग रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर काम करते थे. इसी वजह से योगेश और अमर में दोस्ती हो गई. दोनों एकदूसरे के घर भी आते जाते थे. इसी आने जाने में योगेश और उमा एकदूसरे को जानने लगे. दोनों का दिन में कईकई बार आमनासामना हो जाता था.

दोनों की निगाहें आपस में टकराती थीं तो उमा लजा कर अपनी निगाहें नीची कर लेती थी. योगेश की आंखों की गहराई वह ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर पाती थी. शर्म से पलकें झुक जातीं और होंठों पर हल्की मुसकान भी अपना घर बना लेती थी. उमा की इस अदा पर योगेश का दिल बेचैन हो उठता था.

 

उमा को योगेश अच्छा लगता था. वह उसे दिल ही दिल में चाहने लगी थी. उस की चाहत की तपिश योगेश तक पहुंचने लगी थी. योगेश को तो उमा पहले से ही पसंद थी. इस वजह से योगेश भी अपने कदम बढ़ने से रोक न सका. वह भी उमा को अपनी बांहों में भर कर उस की आंखों की गहराइयों में उतर जाने को आतुर हो उठा.

एक दिन योगेश उमा के कमरे से निकल कर बाहर की ओर जाने लगा कि अचानक वह फिसल गया. इस से उस के दाएं हाथ के अंगूठे में काफी चोट लग गई और अंगूठे से खून निकलने लगा. वहीं आंगन में खड़ी उमा ने देखा तो दौड़ीदौड़ी आई. खून निकलता देख कर वह तुरंत अपने रुमाल को पानी में भिगो कर उस के अंगूठे में बांधने लगी. उसके द्वारा ऐसा करते समय योगेश उस की तरफ प्यार भरी नजरों से देखता रहा.

उमा रुमाल बांधने के बाद बोली, ‘‘जरा संभल कर चला करो. अगर आप इस तरह गिरोगे तो जिंदगी की राह पर कैसे संभल कर चलोगे?’’

‘‘जिंदगी की डगर पर अगर मैं गिरा भी तो जिंदगी भर साथ देने वाले हाथ मुझे संभालने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. ये हाथ किस के होंगे और कौन जिंदगी भर साथ निभाने के लिए मेरे साथ होगा, यह तो अभी मुझे भी नहीं पता.’’ योगेश ने उमा की निगाहों में निगाहें डालते हुए कहा.

 

योगेश की इस शरारत से उस की नजरें शर्म से थोड़ी देर के लिए झुक गईं. फिर वह बोली, ‘‘छोड़ो इस बात को. आप रुमाल को थोड़ीथोड़ी देर बाद पानी से गीला जरूर कर लेना. इस से आप के अंगूठे का जख्म जल्दी ठीक हो जाएगा.’’

‘‘अंगूठे का जख्म तो ठीक हो जाएगा लेकिन दिल का जख्म…’’ इतना कह कर योगेश तेजी से दरवाजे से बाहर निकल गया.

रूहानी तौर पर एकदूसरे से बंधे होने के बावजूद खुल कर अभी तक न तो योगेश ने प्यार का इजहार किया था और न ही उमा ने. लगन की आग दोनों ओर लगी थी, बस देर थी तो आग को शब्दों की जुबां दे कर बयां करने की.

योगेश जब घर में आता तो उमा का मन अधिक से अधिक उस के पास रहने को करता था. जब भी दोनों मिलते, इधरउधर की बातें करते रहते थे. इस से धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए और उन में काफी निकटता आ गई. उमा मिलने व बात करने के उद्देश्य से योगेश के पास पहले से अधिक जाने जाने लगी. एक दिन योगेश घर में अपने कमरे में बैठा कुछ पढ़ रहा था. उमा भी उस से मिलने वहां पहुंच गई.

उमा को देख कर योगेश खुश होते हुए बोला, ‘‘आओ उमा, बहुत देर लगा दी. मैं काफी देर से तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.’’

‘‘घर का काम निपटाने में मम्मी की मदद करने लगी थी, इसीलिए देर हो गई.’’ वह बोली.

‘‘ठीक है, तुम थोड़ी देर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाता हूं.’’ कह कर योगेश चाय बनाने चला गया.

उमा वहीं मेज पर रखी पत्रिका उठा कर उस के पन्ने पलटने लगी. थोड़ी ही देर में योगेश चाय बना कर ले आया. मेज पर चाय रखते हुए योगेश बोला, ‘‘उमा, क्या पढ़ रही हो?’’

योगेश की बात सुन कर उमा ने सिर उठाया और योगेश की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘ इस पत्रिका में एक बहुत ही अच्छी कहानी छपी है, वही पढ़ने लगी थी.’’

 

यह सुन कर योगेश भी उमा के पास बैठ कर चाय पीते हुए उसी पत्रिका को पढ़ने में तल्लीन हो गया. पूरी कहानी पढ़ने के बाद ही योगेश ने पत्रिका के सामने से सिर हटाया और उमा की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘सही कहा था तुम ने. काफी दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी है. दोनों में कितना प्यार था? अच्छा उमा यह बताओ कि आज के समय में भी इतना पवित्र प्यार करने वाले लोग मिलते हैं?’’

योगेश की बात सुन कर उमा भावुक होते हुए बोली, ‘‘वे बड़ी किस्मत वाले होते हैं, जिन्हें किसी का प्यार मिलता है.’’

उमा की बात बीच में ही काटते हुए योगेश बोला, ‘‘कुछ मेरी तरह बदनसीब होते हैं. जिन्हें प्यार के नाम पर सिर्फ जमाने की ठोकरें मिलती हैं.’’ यह कह कर योगेश के आंसू छलक आए. योगेश की आंखों में आंसू देख उमा तड़प उठी.

योगेश का हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोली, ‘‘तुम ऐसा क्यों सोचते हो? तुम तो इतने अच्छे हो कि तुम्हें हर कोई प्यार करना चाहेगा. मैं तुम से कई दिनों से एक बात करना चाहती थी लेकिन इस डर से चुप रही कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम कहो तो कह दूं.’’

योगेश ने जब उस की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो वह बोली, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. दिल की बात आज जुबां पर आ ही गई.’’

उमा की बात पर योगेश को विश्वास नहीं हो रहा था. वह उमा की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘क्यों तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो. अगर मैं मान भी लूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो तो क्या समाज के ठेकेदार हम दोनों को एक होने देंगे क्योंकि हम एक जाति के नहीं हैं.’’

‘‘जब हम प्यार करते हैं, तो इस जमाने से भी टक्कर ले लेंगे. प्यार तो प्यार होता है. इसे धर्म और जाति के तराजुओं में नही तोला जा सकता है. प्यार तो दो दिलों के मिलन का नाम है.’’

 

उमा की बात सुन कर योगेश की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. फिर उस ने उमा को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया. उमा भी उस के शरीर से लिपट गई. दोनों एकदूसरे का साथ पा कर काफी खुश थे. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा.

दोनों के परिवारों को भी इस बात का पता चल गया. योगेश की बहनों और भाई ने योगेश को काफी समझाया कि वह उमा के चक्कर में न पड़े, लेकिन योगेश नहीं माना. दूसरी ओर उमा के पिता ने भी उस के लिए रिश्ता तलाशना शुरू कर दिया. जल्द ही बुलंदशहर के रमेश (परिवर्तित नाम) से उमा का रिश्ता पक्का कर दिया. उमा और योगेश कुछ न कर सके, सिर्फ हाथ मलते रह गए. प्रेमिका की शादी किसी और से तय होने पर योगेश पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह दिन रात उमा की यादों में खोया रहता और उस की कही गई बातें याद करता.

 

27 नवंबर, 2014 को उमा का विवाह रमेश से हो गया. उमा बेमन से अपनी ससुराल चली गई. लेकिन विवाह के बाद उस का पति से मनमुटाव होने लगा. फिर एक वर्ष बीततेबीतते उमा पति का घर हमेशा के लिए छोड़ कर अपने मायके आ गई. इसी बीच उमा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने सौम्या रखा.

उमा अब पति रमेश से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती थी, लिहाजा उस ने अपने तलाक का मुकदमा भी दायर कर दिया.

एक बार फिर से उमा व योगेश एकदूसरे से मिलने लगे. अब योगेश उमा को अपने से दूर जाने नहीं देना चाहता था, किस्मत ने उसे फिर से उमा का साथ पाने के लिए उसे उमा से मिला दिया था. योगेश उस पर अब अपने से विवाह करने का दबाव बनाने लगा.

उमा मायके आई तो वह अपना खर्च उठाने के लिए गंगाचरण अस्पताल के पास पास स्थित एक कैफे में काम करने लगी. इसी बीच उमा की दोस्ती भूड़ पट्टी में रहने वाले सुनील शर्मा से हो गई.

32 वर्षीय सुनील शर्मा अविवाहित था और बरेली के इज्जतनगर में स्थित इंडियन वेटिनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) में संविदा पर स्टोर कीपर के पद पर तैनात था. दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उमा और सुनील एक ही जाति के थे और सुनील अच्छी नौकरी करता था. इसलिए उमा उस से शादी करना चाहती थी. योगेश उस की जाति का भी नहीं था और सेल्समैन की छोटी सी नौकरी करता था.

उमा ने योगेश को समझाया कि वह उस से शादी नहीं कर सकती लेकिन योगेश मान ही नहीं रहा था. उमा भले ही बदल गई हो और योगेश के प्यार को भुला बैठी हो, लेकिन वह तो उमा को दिलोजान से अभी भी चाहता था. वह उमा को हर हाल में पाना चाहता था.

जब योगेश किसी तरह से मानने को तैयार नहीं हुआ तो योगेश से पीछा छुड़ाने के लिए उमा ने सुनील से बात की तो वह योगेश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने उस की हत्या की योजना बना ली.

योजनानुसार पहली मार्च को उमा अपने औफिस में थी. योजना के अनुसार, रात साढे़ 8 बजे उमा ने योगेश को मिलने के लिए कुमार टाकीज के पीछे खाली पड़े मैदान में बुलाया. योगेश उस समय दुकान पर था. वह अपने मालिक जितेंद्र से तबीयत खराब होने का बहाना बना कर दुकान से निकल आया और कुमार टाकीज के पीछे मैदान में पहुंच गया.

 

वहां सुनील शर्मा पहले से मौजूद था. योगेश नजदीक आया तो सुनील ने उस की आंखों में लाल मिर्च का पाउडर फेंक दिया, जिस से योगेश बिलबिला उठा. इस के बाद सुनील ने साथ लाए चाकू से योगेश के गले, चेहरे व शरीर पर 4 प्रहार किए, जिस से योगेश जमीन पर गिर कर तड़पने लगा.

कुछ ही पलों में उस की मौत हो गई. सुनील ने पास ही पड़े पत्थर से उस के चेहरे को कुचला. उस के बाद वह साथ लाई टीवीएस अपाचे बाइक से उमा के पास गया. उसे पूरी बात बता दी. इस के बाद उमा रात 9 बजे उस के साथ बाइक पर बैठ कर घटनास्थल पर आई.

उमा ने सुनील से कहा कि वह बाइक से पैट्रोल निकाल कर योगेश की लाश जला दे, जिस से उस की पहचान न हो सके. इस पर सुनील ने बाइक से पैट्रोल निकाल कर योगेश की लाश पर डाल दिया और आग लगा दी. इस के बाद दोनों वहां से चले गए. लेकिन पुलिस आसानी से उन दोनों तक पहुंच ही गई.

सुनील की निशानदेही पर इंसपेक्टर गीतेश कपिल ने हत्या में प्रयुक्त चाकू, लाश जलाने में प्रयुक्त माचिस की डब्बी, रक्तरंजित कपड़े और सुनील की अपाचे बाइक नंबर यूपी25सी एम3263 बरामद कर ली.

फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों को सीजेएम की कोर्ट में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

कोरोना संकट खेती को माली और सरकारी मदद की जरूरत

लेखक- अभिषेक सिंह

देश का किसान और खेतिहर मजदूर सरकार की तरफ देख रहा है. वे लोग इस बात की आस में बैठे हैं कि सरकार ग्रामीण क्षेत्र को इस वायरस के संक्रमण से भी बचाएगी, साथ ही इस की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को, जो गहरा आघात लगा है, उस से भी उबारने का काम करेगी.

देश में जब से लौकडाउन हुआ है, तभी से किसान चिंता में हैं. यदि गन्ने की फसल समय पर नहीं कटेगी, तो धान, ग्वार, मक्का, गन्ना, सोयाबीन, बाजरा, मूंगफली, तूर, मूंग जैसी फसलों की बोआई में भी दिक्कत आएगी.

दुग्ध उत्पादन, फलसब्जी और बागबानी करने वाले किसान बुरी तरह से परेशान हैं. जो सब्जियां और फल जल्दी खराब हो जाते हैं, इन को उगाने वाले किसान तो बरबादी के कगार पर हैं. बागबानी की उपज का कोई खरीदार नहीं है. इस वजह से उन की सारी फसलें खेतों में ही सड़ रही हैं.

भारत में साल 2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था, जो दुनिया के कुल दूध के उत्पादन का तकरीबन 22 फीसदी था. भारत दुग्ध उत्पादन में पूरे विश्व में नंबर 1 पर है.

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आज कोरोना वायरस के संकट की वजह दुग्ध उत्पादक किसान होटल, रैस्टोरैंट और कैटरिंग बिजनैस के बंद होने की वजह से परेशान हैं. इस के चलते पशु चिकित्सकों की कमी, दवाओं का न मिलना और सूखे और हरे चारे की खरीदफरोख्त पर रोक लगने से इस उद्योग में और भी दिक्कतें बढ़ रही हैं.

एक साल पहले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पूरे देश में लागू की गई थी. इस योजना के मुताबिक, देश में साढ़े 14 करोड़ किसान हैं, जिन के लिए सरकार ने 6,000 रुपए हर साल की राशि तय की थी.

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, ग्रामीण अंचल में खेतिहर मजदूरों की तादाद

14 करोड़ 43 लाख है. एनएसओ के डाटा के मुताबिक, साल 2012 से साल 2018 के बीच देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी बढ़ी है.

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इन 6 सालों में देश में 3 करोड़ लोग और गरीबी की रेखा के नीचे चले गए हैं. बड़े राज्यों में बिहार, झारखंड और ओडिशा में गरीबों की तादाद में सब से ज्यादा बढ़ोतरी हुई. हालांकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और गुजरात में गरीबों की तादाद में कमी दर्ज की गई.

इस से साफ होता है कि खेतिहर मजदूरों की तादाद में भी बढ़ोतरी हुई होगी. अगर देश का किसान खुशहाल नहीं होगा, तो खेतिहर मजदूर भी परेशानी के हालात में रहेंगे.

सरकार को इस बात पर विचार कर के तुरंत ही एक ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिस से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की आमदनी बढ़े. साथ ही, खरीफ की फसल की बोआई भी बेहतर तरीके से हो जाए.

अगर सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए बेहतर योजना नहीं बनाई, तो शायद देश में खरीफ की फसल के उत्पादन में गिरावट दर्ज हो सकती है.

देश के कुल उपलब्ध रोजगार में से

तकरीबन 43 फीसदी रोजगार कृषि क्षेत्र से आता है, इसलिए कोविड 19 वायरस के संक्रमण के फैलने के बाद सरकार को खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना होगा. सरकार इन 7 मोरचों पर अपनी रणनीति बना कर ग्रामीण क्षेत्र को माली रूप से उभार सकती है.

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कृषि केंद्र व राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए केंद्र सरकार को तुरंत सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, को केंद्रीय कृषि मंत्री, एफसीआई, सैंट्रल वेयरहाउसिंग कौरपोरेशन और ट्रांसपोर्ट विभाग को मिला कर एक कार्ययोजना बनानी चाहिए.

रबी फसल की बिक्री व खरीफ

फसल को बोने की तैयारी

जिस दिन किसान अपनी फसल बेचे, उसी दिन उस को उस के खाते में भुगतान मिलना चाहिए. प्रदेशों के मुख्यमंत्री को विश्वास में ले कर केंद्र सरकार को तुरंत देश के जितने भी कृषि उत्पादों का व्यापार करने वाले आढ़ती हैं, उन को इस बात के लिए स्पष्ट निर्देश जारी कर देने चाहिए कि रबी की फसल की सारी खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करनी होगी. इस से किसान बिना किसी झिझक और डर के अपनी फसल को बेच पाएगा.

रबी की फसल का निस्तारण करने के बाद किसान को तुरंत ही खरीफ की फसल बोने की तैयारी करनी होगी. इस के लिए सरकार को मौसम विज्ञानियों और कृषि विशेषज्ञों के ज्ञान व सूचनाओं का सहारा ले कर देश के किसानों को राह दिखानी होगी.

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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाजारों में किन कृषि उत्पादों की मांग बढ़ सकती है, उस के अनुसार ही किसानों को खरीफ की उसी फसल को बोने के लिए उत्साहित करना होगा. साथ ही, नकदी फसल को बोने के साथसाथ खाद्य फसलों को बोने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा. आने वाले समय में देश में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य फसलों की मांग बढ़ सकती है.

डीजल के दामों में कटौती

केंद्र सरकार को तुरंत ही डीजल के दामों में कमी कर के किसानों को राहत देनी चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दामों में गिरावट आने से सरकार को राहत मिली है.

कच्चे तेल के दामों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमी आने की वजह से सरकार को चालू खाता घाटे में और बजटीय घाटे में कमी आएगी. हर किसान को उस की जरूरत के अनुसार परमिट जारी किए जा सकते हैं, जिस से कि वह किसी भी पैट्रोल/डीजल पंप से अपने लिए तेल ले सके. इस से किसान अपनी रबी की फसल को बेचने की पूरी तैयारी कर सकता है और खरीफ की फसल को बोने के लिए भी अपना काम शुरू कर सकता है.

केंद्र सरकार केंद्रीय उत्पाद शुल्क में तो कटौती करे. साथ ही, राज्यों को इस बात के लिए उत्साहित कर सकती है कि राज्यों को डीजल की बिक्री से मिलने वाले करों का एक बड़ा भाग केंद्र सरकार उठाएगी.

पलायन की समस्या

और मनरेगा

कोविड 19 के चलते देश में हुए लौकडाउन की वजह से शहरों से गांव की तरफ मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन हुआ. इस पलायन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर और भार पड़ेगा. पलायन करने वाले श्रमिकों व दूसरे लोगों को सरकार को विश्वास में लेना होगा और लौकडाउन खुलने के बाद दोबारा से उन को शहरों में, जिस रोजगार में वे थे, उस रोजगार में दोबारा लगाना होगा.

रोजगार की अनुपलब्धता की वजह से मनरेगा मजदूरों का हाल और भी बुरा है. सरकार को तुरंत ही मनरेगा मजदूरों के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान रोजाना (बिना किसी श्रम के ही) करना चाहिए. लौकडाउन खुलने के बाद ग्रामीण अंचल में विकास की योजनाओं और खेती से भी मनरेगा मजदूरों को जोड़ा जा सकता है.

स्वास्थ्य शिक्षा के

क्षेत्र में राहत

एक तरफ जहां ग्रामीण सरकारी विद्यालयों में इस लौकडाउन की वजह से मिड डे मील मिलने में भारी दिक्कत हो गई है, वहीं दूसरी तरफ परिवहन व्यवस्थाओं के चरमरा जाने की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर राशन नहीं मिल पा रहा है.

इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण बढ़ेगा और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए ग्रामीणों को अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ेगा, जिस की वजह से ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी बढ़ेगी. इस से संकट और गहरा जाएगा.

सरकार को तुरंत ही देश में जितने भी निजी अस्पताल हैं, उन को इस बात के लिए निर्देशित करना होगा कि ग्रामीण अंचल में रहने वाले सभी नागरिकों का इलाज चाहे वह कोविड 19 से संक्रमित हो या अन्य किसी बीमारी से, आगामी एक साल तक आयुष्मान भारत योजना के तहत बिलकुल मुफ्त होगा. इस बीमा राशि के प्रीमियम का भुगतान सरकार को तुरंत करना चाहिए.

ग्रामीण अंचल की वोटर लिस्ट, पटवारी का रिकौर्ड, सौयल हैल्थ कार्ड और राजस्व अभिलेखों की जांच कर के सभी ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य सुविधा के लिए कार्ड बना देना चाहिए.

शिक्षा के क्षेत्र में सरकार को मिड डे मील योजना को बेहतर बना कर, जिस में पोषक तत्त्वों पर जोर, निजी खाद्य निर्माता कंपनियों के द्वारा ब्लौक स्तर पर गांवों को गोद लेने की व्यवस्था, जिस से उन के द्वारा निर्मित खाद्य सामग्री वंचित वर्ग के बच्चों को भी मिल पाए और इस योजना में खेतिहर मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दे कर भागीदारी कराई जाए. इस भागीदारी से गांव में लोगों को रोजगार भी मिलेगा और व्यवस्था भी बेहतर होगी.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

भारतीय खाद्य निगम अपने गोदामों में 2.14 करोड़ टन का बफर स्टौक हमेशा रखता है. देश में खाद्यान्न संकट के समय इस स्टौक का इस्तेमाल किया जाता है.

मार्च माह में भारतीय खाद्य निगम के अनुसार, इस वक्त उस के गोदामों में 7.76 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडारण है. साथ ही, नैफेड के अनुसार उस के गोदामों में 22.5 लाख टन दालों का भंडार है. रबी की फसल के बाजार में आने के बाद इस स्टौक में और बढ़ोतरी होगी. सरकार को ग्रामीण अंचल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बफर स्टौक से ज्यादा अनाज को पूरे देश में बांटना चाहिए.

कृषि गण और ब्याज की

मार से मुक्ति

क्रेडिट सुईस रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने पिछले 5 साल में देश के उद्योगपतियों के 7 लाख, 77 हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए हैं. मानसून के मिजाज और लौकडाउन की वजह से कृषि क्षेत्र की स्थिति ठीक वैसे ही है, जैसे कोढ़ में खाज.

कृषि गण की वसूली सरकार को कम से कम 6 माह के लिए रोक देनी चाहिए और उस पर किसी प्रकार का कोई ब्याज नहीं लगाना चाहिए. साथ ही, खरीफ की फसल के लिए किसान जो भी गण लेना चाहे, उस गण पर किसी प्रकार का कोई ब्याज न हो तो बेहतर है.

कृषि जिंसों का निर्यात

कोरोना संकट की वजह से पूरे विश्व में विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप और चीन में चाय, मांस, मसाले, चावल और समुद्री खाद्य पदार्थों की मांग में कमी आई है. इस की वजह से देश का खेती की जिंसों का निर्यात प्रभावित हो रहा है. निर्यात न होने की वजह से आम और अंगूर के दामों में भी भारी कमी आई है.

खेती की जिंसों का निर्यात करने वाली सभी कंपनियों को स्थानीय बाजार में अपना माल बेचने की भी छूट होनी चाहिए. केंद्र और राज्यों की सरकारों को तुरंत ही ग्रामीण क्षेत्र को संकट से बचाने के लिए आगे आना चाहिए.

सरकारों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसान के खेत से उपज के उठने से ले कर अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने तक किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न आए.

यदि सभी सरकारें मिल कर देश के ग्रामीण क्षेत्र को इस संकट से उबार कर ले गईं, तो भारत निश्चित ही खुशहाल होगा. देश के किसान को इस वक्त भावनात्मक, आर्थिक और वैज्ञानिक सहारे की जरूरत है.

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