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नया ठिकाना-भाग 2: मेनका को प्रथम पुरस्कार किसने दिया

मेनका बोली, ‘‘आप लोगों का आशीर्वाद है.’’

जब मेनका चिप्स और चैकलेट का पैसा देने लगी, तो रवि बोला, ‘‘मेरी तरफ से गिफ्ट है. हम गरीब आदमी और दे ही क्या सकते हैं?’’

मेनका भी निःशब्द हो गई और चिप्स और चैकलेट इसलिए ले लिया कि रवि के दिल को ठेस न पहुंचे.

मेनका भी रवि के विचारों से प्रभावित हो गई. मेनका रवि से एक दिन मोबाइल नंबर मांगी. रवि तो इस का इंतजार ही कर रहा था, लेकिन खुद मोबाइल नंबर मांगने में संकोच कर रहा था.

आज रवि बेहद खुश था और फोन के आने का इंतजार कर रहा था. जब भी मोबाइल रिंग करता, तो दिल धड़कने लगता. देखता तो दूसरे का फोन. मन खीज उठता. जब रवि रात में खाना खा कर करवटें बदल रहा था. नींद नहीं आ रही थी. ठीक रात 11 बजे रिंग टोन बजा. जल्दी से बटन दबाया, तो उधर से सुरीली आवाज आई, ‘‘सो गए क्या?’’

रवि बोला, ‘‘तुम ने तो हमारी नींद ही गायब कर दी. जिस दिन से डांस का तुम्हारा प्रोग्राम देखा है, उस दिन से हमारे दिमाग में वही घूमता रहता है. रात में नींद ही नहीं आती.’’

मेनका मुसकराते हुए एक गाना गाने लगी, ‘‘मुझे नींद न आए, मुझे चैन न आए, कोई जाए जरा ढूंढ के लाए, न जाने कहां दिल खो गया…’’

‘‘अरे मेनका, तुम तो गजब का गाना गाती हो. हम तो समझे थे कि सिर्फ डांस ही करती हो. कोयल से भी सुरीली आवाज है तुम्हारी. इस तरह की सुरीली आवाज विरले लोगों को ही नसीब होती है.’’

फिर दोनों इधरउधर की बहुत सी बातें करते रहे. मेनका से यह भी जानकारी मिली कि उस के पिता सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं और मां सरकारी स्कूल में टीचर. बातें करते पता ही नहीं चला और सुबह के 4 बज गए.

मेनका बोली, ‘‘अब कल रात में बात करेंगे.’’

रवि सुबहसवेरे घूमने के लिए बाहर निकल पड़ा. नहाधो कर चायनाश्ता कर के समय पर वह अपनी गुमटी पर चला गया. उस के दिमाग से अब मेनका का चेहरा उतर ही नहीं रहा था.

एक बुजुर्ग 50 ग्राम खैनी मांगता है. उसे रवि 100 ग्राम देने लगता है, तो वे बोलते हैं, ‘‘तुम्हारा दिमाग कहां है. 50 ग्राम की जगह 100 ग्राम दे रहे हो.’’

‘‘अच्छा, मैं ठीक से सुन नहीं पाया. अभी 50 ग्राम दिए देता हूं.’’

सुबह 10 बजने से पहले ही रवि मेनका का बेसब्री से इंतजार करने लगा. ठीक 10 बजे मेनका आई. मुसकराते हुए उस ने चिप्स और चैकलेट ली. आंखों से इशारा की. पैसे दी और चलती बनी.

रवि पैसा नहीं लेना चाहता था, लेकिन वहां कई लोग खड़े थे, इसलिए वह पैसे लेने से इनकार नहीं कर सका. कई लोग गुमटी पर ही इस के डांस की चर्चा करने लगे. क्या गजब का डांस किया था. रवि भी तारीफ करने लगा.

यह सिलसिला लगातार जारी रहा. मेनका हर रोज रात में फोन करती. छुट्टी का दिन छोड ़कर जब भी वह स्कूल आती. आतेजाते समय गुमटी पर अवश्य आती. चिप्स और चैकलेट के बहाने रवि को नजर भर देखती और चलते बनती.

रवि की शादी के लिए अगुआ आए थे. रवि के पिताजी बोल रहे थे. मेरी तबियत ठीक नहीं रहती. तेरी मां भी काम करतेकरते परेशान हो जाती है. जीतेजी अगर पतोहू देख लेते, तो अहोभाग्य होता.

‘‘पिताजी, इस गुमटी से 3 आदमी का ही पेट पालना मुश्किल होता है. हर चीज खरीद कर ही खानी है. किसी तरह 1-2 कमरा और बन जाते, तब शादीविवाह करते.’’

‘‘अरे बेटा, हमारे जीवन का कोई ठिकाना नहीं है. लड़की वाले भी बढ़िया हैं. तुम्हारे मामा जब शादी के लिए लड़की वाले को ले कर आए हैं, तो उन की बात भी माननी चाहिए.

‘‘बता रहे थे कि लड़की भी सुंदर और सुशील है. उस के मातापिता भी बहुत अच्छे हैं. इस तरह का परिवार हमेशा नहीं मिलेगा. लड़की भी मैट्रिक पास है. शादीविवाह में खर्च भी देने के लिए तैयार हैं. और क्या चाहिए?’’

यह सुन कर रवि उदास हो गया. अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी को क्या जवाब दे. वह असमंजस में पड़ गया. वह चुप रहा. आगे कुछ भी नहीं बोल पाया. रवि के सामने तो संकट का पहाड़ खड़ा हो गया.एक तरफ मातापिता और दूसरी तरफ दिलोजान से चाहने वाली मेनका.

वह रात का इंतजार करने लगा. सोचा कि मेनका ही कुछ उपाय निकाल सकती है.

रात 11 बजे मोबाइल की घंटी बजी. हैलोहाय होने के बाद मेनका ने पूछा, ‘‘आज गुमटी नहीं खोली.क्यों…?’’

सुशांत के फैंस के निशाने पर आई रिया चक्रवर्ती, बचने के लिए उठाया यह कदम

सुशांत सिंह राजपूत के मौत का सदमा अभी भी लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है. सुशांत सिंह राजपूत को लेकर लोग लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं. लोगों को कहना है कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं कि है लोगों ने उसे मारा है.

सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं लेकिन आखिर में सच्चाई क्या है किसी को समझ नहीं आ रही है. सभी अपनी – अपनी तरफ से अलग-अलग अनुमान लगा रहे हैं.

वहीं रिया चक्रवर्ती भी सुशांत के घेरे में आ गई है. सुशांत के फैंस का कहना है कि सुशांत सिंह राजपूत को आत्महत्या करने के लिए रिया चक्रवर्ती ने ही उकसाया था.


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वहीं रिया चक्रवर्ती अभी इस विषय पर किसी से भी खुलकर बात नहीं कि है. रिया चक्रवर्ती से कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र पुलिस ने लगातार 9 घंटे तक पूछताछ की थी. रिया ने इस बात को कबूल कर लिया था कि हम दोनों लंबे समय से एक-दूसरे को डेट कर रहे थें.

 रिया चक्रवर्ती ने इन सभी के बीच एक कदम उठाया है कि उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से लोगों को ऑनफॉलो किया है साथ ही उन्होंने अपना कमेंट सेक्शन भी बंद कर दिया है.

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सभी हंगामे को देखते हुए रिया चकवर्ती ने चुप्पी साध ली है. उन्होंने लोगों के कई सवालों का जवाब नहीं दिया. जिस बात से लोगों का शक और भी ज्यादा बढ़ते जा रहा है.

दरअसल रिया चक्रवर्ती लॉकडाउन में सुशांत सिंह के साथ ही रहती थी. इस दौरान दोनों के बीच कुछ बातों को लेकर अनबन भी हुआ था.

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तब रिया कुछ दिन से सुशांत के घर से  दूर रहने के लिए चली गई थी. लेकिन यह साफ है कि सुशांत ने मौत से पहले रिया चक्रवर्ती को कॉल किया था. लेकिन रिया ने उनका फोन नहीं उठाया था.

सुशांत के फैंस रिया को सुशांत के मौत का जिम्मेदार मान रहे हैं.

नेपोटिज्म विवाद के बाद करण जौहर ने दिया फिल्म फेस्टिवल बोर्ड से इस्तीफा

बीते कुछ दिनों से धर्मा प्रोडक्शन के मालिक करण जौहर को लगातार ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा हैं. सुशांत सिंह हत्या के बाद उनके फैंस लगातार उन पर नपोटिज्म को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं.

सोशल मीडिया पर हो रहे हंगामे के बीच करण जौहर चुप्पी साधे हुए हैं. इसी बीच करण जौहर ने सभी को चौकाने वाला फैसला किया है.

ताजा मिल रही जानकारी के अनुसार करण जौहर ने फिल्म फेस्टिवल बोर्ड से इस्तिफा दे दिया है.

कई दिनों पहले करण जौहर अपना इस्तिफा फिल्म बोर्ड की डायरेक्टर स्मृति किरण को भेज चुके हैं. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करण जौहर सोशल मीडिया पर हो रहे हंगामे से काफी नाराज है. यह कदम उन्होंने खुद को लाइमलाइट से दूर रखने के लिए उठाया है.

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करण जौहर लोगों के सपोर्ट न मिलने से बहुत दुखी है. जिस वजह से उन्होंने यह कदम उठाया है. ऐसे में दीपिका पादुकोण लगातार करण जौहर को समझाने की कोशिश कर रही हैं.

करण ने सोशल मीडिया पर अपने बहुत सारे दोस्तों को ऑनफॉलो कर दिया है. हालांकि इन सभी के बावजूद भी लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं.

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हर रोज करण जौहर को लेकर एक नया मुद्दा खड़ा हो जाता है. जिससे लोगों को संभालना थोड़ा मुश्किल हो गया है.

करण जौहर ने अपने सोशल मीडिया के कमेंट नोटिफिकेशन भी बंद कर दिया है. गौरतलब है कि सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को आत्मह्या कर ली सिर्फ 34 साल की उम्र में ही उन्होंने फांसी का फंदा अपने गले में लटका लिया.

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बॉलीवुड में होने वाले भेदभाव से परेशान थे. कुछ लोगों ने दावा किया है कि उन्हें मारा गया है. वह कम उम्र में ही ज्यादातर उंचाइयों को हासिल कर रहे थें. जिसे लोगों को रास नहीं आ रहा था. सुशांत अपने पीछे न जाने कई यादें छोड़कर चले गए.

 

हम पर आखिर क्यों बार-बार टूटता है आकाशीय बिजली का कहर

25 जून 2020 को यूं तो मौसम विभाग ने पहले से ही एलर्ट कर रखा था कि देश के कई हिस्सों में इस तारीख को मानसून पहुंचेगा और कुछ जगहों पर सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. लेकिन किसी को यह आशंका नहीं थी कि 25 जून को बारिश के साथ साथ आकाश से चमकती हुई बिजली का कहर भी बरसेगा. बहरहाल 25 जून की देर शाम तक अकेले बिहार और यूपी में ही 107 लोगों की मौत आसमानी बिजली से हो गई. बिहार में 83 लोग सुबह से शाम तक अलग अलग जगहों में मारे गये, जबकि उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली के कहर से मरने वालों की संख्या 24 रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार और उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली से मारे गये इन लोगों के प्रति संवेदना जतायी, राज्य सरकारों ने मरनेवालों के लिए मुआवजे की घोषणा की और मीडिया ने सुर्खियां बनायी.

मगर इस पर शायद ही किसी ने सोचा हो जब दुनिया के ज्यादातर देशों में आकाशीय बिजली से मरनेवाले लोगों की संख्या करीब करीब नगण्य हो गई है तो फिर हमारे यहां ही बिजली से इतने लोग क्यों मारे जाते हैं? पिछले साल मानसून में जुलाई के महीने के अंत तक 400 लोग बिजली गिरने से मारे गये थे, जबकि इस साल अभी जुलाई शुरु भी नहीं हुई कि देश के अलग अलग हिस्सों में 300 से ज्यादा लोग महज मई और जून में मारे जा चुके हैं. आकाश से बिजली गिरने से जितनी मौतें हमारे यहां होती हैं, दुनिया में उतनी मौतें और कहीं नहीं होतीं. जबकि बिजली हर जगह गिरती है, चाहे कोई विकसित देश हो या विकासशील देश. लेकिन हमारे यहां एक साल में जितनी मौतें बिजली गिरने से होती हैं, अमेरिका में दस साल में भी नहीं होती. सालभर में अमेरिका में कोई 25 लोग आसमान से बिजली गिरने से मारे जाते हैं, जबकि हर साल करीब डेढ़ सौ लोग झारखंड में और करीब दो सौ लोग अकेले बिहार में ही मारे जाते हैं.

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भारत में हर साल जहां आकाश से गिरने वाली बिजली से 2000 से 4000 के बीच लोग मारे जाते हैं, वहीं अमेरिका में यह प्रति दस लाख पर महज 0.3 लोगों की ही मौत आकाश से बिजली गिरने से होती है. जबकि करीब सौ साल पहले वहां हर साल 5000 से ज्यादा लोग बिजली गिरने से मारे जाते थे. आज पूरे साल में तड़ित बिजली के कहर से 20 से 25 लोग मरते हैं. यूरोप में भी यही स्थिति है, बल्कि यूरोप में तो और भी कम लोग बिजली गिरने से मारे जाते हैं. हां, कुछ अफ्रीकी देशों में जरूर हमारे यहां से भी ज्यादा लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं. लेकिन वहां जनसंख्या इतनी कम है कि उनका आंकड़ा आमतौर पर 4-5 सौ से ऊपर नहीं जाता. जबकि हमारे यहां हजारों लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं. वास्तव में कुछ अफ्रीकी देशों और हमारे यहां आकाशीय बिजली से मरने वाले लोग यूरोप और अमरीका की तुलना में औसतन 100 गुना ज्यादा होते हैं.

सवाल है कि जब दूसरे देशों में भी बिजली गिरती है तो फिर वहां मरने से, घायल होने से लोग कैसे बच जाते हैं? आखिर हमारे यहां ही इतनी ज्यादा मौतें क्यों होती हैं? इसकी एक सबसे बड़ी वजह तो यह है कि हमारे यहां आज भी इसे प्राकृतिक आपदा नहीं समझा जाता. जाहिर है इससे निपटने में मुश्किलें आती हैं. हम आमतौर पर हर पीड़ित को चार लाख का मुआवजा घोषित करके अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं. 2015 में 14वें वित्त आयोग ने राज्य सरकारों को अनुमति दी थी कि राज्य आपदा कोष से वे 10 प्रतिशत तक की राशि उन ऐसे आपदा पीड़ितों को दे सकते हैं जो गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नहीं हैं, बिहार हो उत्तर प्रदेश सरकार इसी का लाभ लेकर चार लाख प्रति पीडित और 25 हजार मवेशियों के नाम पर देने घोषणा करती हैं.

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अगर सरकारें इस कवायद के अलावा बिजली गिरने और उससे होने वाले नुकसान को गंभीरता से लें और जन जागरूकता की दिशा में गंभीरता से प्रयास करें तो आकाशीय बिजली से लोगों की जान बचाई जा सकती है, खास तौरपर अगर सही समय पर लोगों तक सूचना पहुंच जाये और उन्हें पता हो कि उस सूचना पर कैसे अमल करना है. साथ ही उस सूचना पर लोग अमल भी करें. बिजली गिरना देश की सबसे नियमित और खतरनाक प्राकृतिक आपदा होने के बावजूद अभी भी यह प्राकृतिक आपदा के रूप में शुमार नहीं है, इसे मजाक नहीं तो और क्या कहेंगे? इसके आंकड़े भी प्राकृतिक आपदा प्रबंधन बोर्ड की बजाय राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से मिलते हैं. सबसे पहले तो सरकार इसे प्राकृतिक आपदा माने. फिर उन अभियानों पर व्यापक शोध करे जिसके चलते अमेरिकी और ब्रितानी इस खतरे से उबरे हैं.

हालांकि वज्रपात के सटीक स्थान की घोषणा मुश्किल है. पर क्षेत्र विशेष का पूर्वानुमान और चेतावनी देना संभव है. अमेरिका में नेशनल लाइटिंग इंस्टीट्यूट यह काम करता है. यह अमेरिकी संस्था, आकाशीय बिजली गिरने के वैश्विक आंकडों का विश्लेषण और पैटर्न का अध्ययन ही नहीं करती, चेतावनी, पूर्वानुमान, भविष्यवाणी भी करती है और लोगों को जागरूक भी. वहां के लोगों का मानना है कि लगातार 15 साल तक जागरूकता का सघन कार्यक्रम चलाने की वजह से ही आज उनका आंकड़ा इस मामले में बेहतर हुआ है. अपने वहां मौसम विभाग यह काम देख सकता है. मौसम विज्ञानियों को जो आंकड़े उपग्रह से मिलते हैं उसके अनुसार वे वर्षा के साथ साथ बिजली गिरने की आशंकाओं का भी मोटा पूर्वानुमान कर सकते हैं. यह बिजली गिरने के बारे में तमाम तरह की गणना, सर्वेक्षण, लाइटिंग लोकेशन नेटवर्क का अध्ययन और लाइटिंग डिटेक्शन नेटवर्क पर निगाह रख सकते हैं जो यह बता सकती है बिजली गिरने की अगली आशंका कहां की है, वहां चेतावनी जारी करके लोगों को सावधान कर बचाया जा सकता है. वे यह अध्ययन भी कर सकते हैं कि एक ही क्षेत्र में अचानक बिजली गिरने की घटनाएं बढ क्यों जाती हैं?

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पिछले साल केंद्र सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने दामिनी ऐप बनाया था, जिसके बारे में दावा किया गया था कि यह 20 किलोमीटर के दायरे में बिजली गिरने से 30-40 मिनट पहले ही सावधान कर देगा. साथ ही किस तरह से सुरक्षा और प्राथमिक उपचार करें बतायेगा. लेकिन जिस तरह तड़ित बिजली से लोगों की मौत हो रही है, लगता है ये सारे दावे महज हवाहवाई हैं. पूरे देश में 552 ऑब्जर्वेटरी सेंटर हैं इसके अलावा पूरे देश में 675 मौसम केंद्र हैं. साथ ही 1350 जगहों पर ऑटोमेटर रेनगेज सेंटर हैं जहां डाटा सीधे मौसम विभाग पहुंचता है.  55 से ज्यादा वायुसेना स्टेशनों पर भी आकाशीय बिजली गिरने की जानकारी के यंत्र लगे हैं. यह सब है पर इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा. सरकार और उनके नुमाइंदों तथा संबंधित अधिकारियों का रुख यही होता है कि बिजली गिरने से हम कैसे रोक सकते हैं. पर उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि इसके बारे में अभियान चलाकर जनजागरूकता क्यों नहीं बढाई जा सकती? क्या ज्यादातर मरने वाले गरीब होते हैं, इसलिए ध्यान नहीं दिया जाता.

 

संसार के लगभग सभी विकसित देशों ने बकायदा अभियान चलाकर आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को बिल्कुल खत्म कर दिया है.

ओट्स से बनाएं ये 4 नई डिश, टेस्टी भी हेल्दी भी

1. उसल ओट्स

सामग्री

– 1/2 कटोरी अरहर की दाल – 1/4 कटोरी चने की दाल – 1 कटोरी ओट्स – 1/4 छोटा चम्मच हलदी – 1/2 बड़ा चम्मच सांबर पाउडर – 1/2 कप इमली का पानी – 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च – 1 बड़ा चम्मच गाजर – 1 बड़ा चम्मच शिमलामिर्च बारीक कटी – 1 बड़ा चम्मच प्याज मोटा कटा – थोड़े से करीपत्ते – 1/2 छोटा चम्मच सरसों – 5-6 दाने काजू – 1 छोटा चम्मच देशी घी – थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजाने के लिए – नमक स्वादानुसार.

विधि

दोनों दालों को धो कर आवश्यकतानुसार पानी डाल कर हलदी व नमक मिला कर कुकर में पका लें. भाप निकलने पर कुकर खोल लें. ओट्स मिला कर धीमी आंच पर कुछ देर पकाएं. पानी कम लगे तो थोड़ा सा मिला दें. एक पैन में घी गरम कर काजू तल कर निकाल लें. अब इसी घी में करीपत्ते, सरसों व साबूत लालमिर्च डाल कर चटकाएं. सारी सब्जी डाल कर मुलायम होने तक पकाएं. इस तड़के को दाल ओट्स में मिला दें. कुछ देर पकाएं. डिश खिचड़ी की तरह गाढ़ी हो जाए तो आंच से उतार लें. एक छोटे पैन में घी गरम कर लालमिर्च डाल कर तड़का बनाएं. तैयार उसल में सांबर व इमली मिलाएं और फिर लालमिर्च का तड़का लगा दें. धनियापत्ती और तले काजुओं को सजा कर परोसें.

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2 ओट्स दलिया पुडिंग

सामग्री

– 1/2 कप ओट्स द्य 2 केले

– 1 बड़ा चम्मच दलिया

– 1/2 कप मिलाजुला मेवा

– 1 लिटर दूध द्य चीनी स्वादानुसार

– 1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐसैंस.

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विधि

एक भारी पैंदे के पतीले में दूध, दलिया व ओट्स डाल कर पकाने के लिए रखें. उबाल आने पर आंच धीमी कर दें. पुडिंग के गाढ़ा होने तथा दलिया के गल जाने तक धीमी आंच पर पकाएं. केलों को मैश कर लें. जब पुडिंग तैयार हो जाए तो उस में चीनी मिला दें. आंच से उतार का मैश किया केला डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. मेवी और वैनिला ऐसैंस मिला कर मिक्स करें. पुडिंग को छोटीछोटी कटोरियों में सजाएं. मेवे से सजा कर चाहे तो ठंडा कर के या फिर सामान्य तापमान पर भी परोस सकती हैं.

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3 ओट्स डोसा

सामग्री

– 1/2 कप ओट्स पाउडर – 1/2 कप चावल का आटा – 1/2 कप गेहूं का आटा – 1/2 कप दही – पानी आवश्यकतानुसार – डोसे बनाने के लिए पर्याप्त औलिव औयल – नमक स्वादानुसार.

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विधि

तीनों आटों को एक बड़े बाउल में मिलाएं. फिर नमक डाल कर मिलाएं. अब दही डाल दें. फिर पानी डाल कर घोल बना लें. घोल पकौड़ों के घोल जैसा होना चाहिए. अब इसे 5-6 घंटे या खमीर उठने तक ढक कर रख दें. मिश्रण तैयार हो जाए तो एक बार फिर अच्छी तरह मिक्स कर लें. नौनस्टिक पैन गरम कर उस पर कलछी की सहायता से तैयार घोल फैला कर डोसे का आकार दें. औलिव आयल डालें. एक ओर से पक जाने पर पलट कर दूसरी ओर से भी सुनहरा होने तक पका लें. चाहें तो ऐसे ही सर्व करें या फिर आलू की भरावन भर कर डोसे को दोहरा कर के परोसें.

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4. ओट्स मफिन

सामग्री

– 100 ग्राम ब्राउन शुगर –

150 ग्राम गेहूं का आटा –

2 अंडे –

1/2 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा –

50 ग्राम चीनी या शहद –

50 ग्राम ओट्स –

1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर –

1 छोटा चम्मच वैनिला ऐसैंस –

100 ग्राम दही –

थोड़े से चीको चिप्स – नमक स्वादानुसार.

विधि

ओवन को 180 डिग्री पर गरम कर लें. फिर एक बड़े बरतन में सारी सामग्री 1-1 कर मिलाएं. उस के बाद 5-7 मिनट फेंट कर 1 चम्मच से मफिन टे्र में भरें. ऊपर चीको चिप्स लगाएं. गरम ओवन में 20-25 मिनट तक बेक कर लें. ठंडा होने पर सांचे से निकाल कर चाय के साथ परोसें.

आंखों की बीमारी: कई बार नहीं मिलते संकेत या लक्षण, ऐसे रखें ध्यान

लेखक- डा. महिपाल एस. सचदेव,

दृष्टि हमारी बहुमूल्य इंद्रिय है, अपने आसपास की दुनिया देखने की खिड़की है. कुछ ऐसे ही लोग सिर्फ सूर्य की रोशनी का महत्व समझ सकते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी का कुछ पल अंधेरे में गुजारा है. हमें इलाज की बेहतर सुविधाओं के जरीए अस्थायी नेत्रहीनता दूर करने पर जोर देना चाहिए, क्योंकि नेत्रहीनता से प्रभावित प्रत्येक 5 में से 4 व्यक्तियों का इलाज संभव हो सकता है.

जागरूकता बढ़ाना आज वक्त की मांग है, खासकर बुजुर्गों के बीच, क्योंकि वे अपने शरीर के चेतावनी भरे लक्षणों की अनदेखी कर देते हैं और दृष्टि की समस्या से पीड़ित लोगों में से 60 प्रतिशत लोग 50 साल से अधिक उम्र के ही होते हैं.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, विश्व में 4.50 करोड़ नेत्रहीनों में से लगभग 80 प्रतिशत लोग 50 साल से अधिक उम्र के हैं. लिहाजा, 50 या इस से अधिक की उम्र वाले प्रत्येक व्यक्ति को संपूर्ण नेत्र जांच कराने के लिए किसी आई केयर प्रोफेशनल से संपर्क करना चाहिए. नेत्र संबंधी कई रोगों में कोई पूर्ववर्ती लक्षण या संकेत नजर नहीं आते, लेकिन समग्र जांच से दृष्टिहीनता की स्थिति आने से पहले शुरुआती चरण के नेत्र रोगों का पता चल सकता है. शुरुआती जांच और इलाज से आप की दृष्टि सुरक्षित रह सकती है.

आप को यदि कोई दृष्टि संबंधी समस्या का भी अनुभव हो रहा है, तो समग्र नेत्र जांच के लिए किसी आईकेयर प्रोफेशनल से ही संपर्क करें. इसलिए हमें लोगों को शिक्षित करना होगा कि मोतियाबिंद, डायबिटीक रेटिनोपैथी, ग्लूकोमा, ड्राई आई आदि जैसी नेत्र समस्याएं हमारे देश में आंखों की खराब सेहत का एक बड़ा कारण है, लेकिन उचित देखभाल और सही समय पर किसी मेडिकल एक्सपर्ट द्वारा चिकित्सा सहायता मुहैया कराने से इन का इलाज किया जा सकता है और मरीजों को अच्छी दृष्टि व आत्मविश्वास की जिंदगी जीने का आनंद मिल सकता है.

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साथ ही, हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि टैक्नोलौजी की तरक्की की बदौलत हमें आंखों की देखभाल संबंधी सभी तरह के व्याप्त मिथकों को दूर करने की जरूरत है, क्योंकि शुरुआती जांच में जरा भी देरी हमें दृष्टि से वंचित कर सकती है. हमें अच्छे आईकेयर के महत्व और नेत्रदान के बारे में लोगों के बीच अधिकतम जागरूकता और सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है. हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि कैसे नेत्रदान से किसी की जिंदगी को रोशन किया जा सकता है.

अतः यदि आप को आंखों के सामने सीधी रेखाएं नजर आती हैं या आप को देखने में अस्पष्टता या धुंधलापन महसूस होता है या दूर की चीज देखने में दिक्कत आती है या बारीक चीजों को देखने में दिक्कत होती है, पन्ने पर किसी अंक या चेहरे को पढ़ने में दिक्कत आती है या आंखों से लगातार पानी आता रहता है, तो आप को तुरंत किसी प्रोफेशनल की मदद लेनी चाहिए.

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अच्छी दृष्टि के लिए यहां हम आप को कुछ कारगर उपाय बता रहे हैंः-

खानपान स्वस्थ रखें

आंखों की सुरक्षा स्वस्थ संतुलित खानपान से ही शुरू होती है. ओमेगा-3, फैटी एसिड, जिंक और विटामिन सी और ई से युक्त पौष्टिक आहार मैस्कुलर डिजेनरेशन और कैटरेक्ट आदि जैसी उम्र संबंधी दृष्टि समस्याओं से नजात दिलाने में मददगार हो सकते हैं. हरी सब्जियां, साइट्रस फल, बादाम, बींस, अंडे आदि जैसे आहार का नियमित सेवन आंखों की सेहत को अच्छा बनाए रखता है.

धूम्रपान त्यागें

धूम्रपान से आप को कैटरेक्ट्स, औप्टिक नर्व डैमेज और मैस्कुलर डिजेनरेशन आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

सनग्लास का इस्तेमाल करें.

धूप और नुकसानदेह यूवी किरणों में ज्यादा देर तक रहने से आप को कैटरेक्ट्स की समस्या हो सकती है. इसलिए धूप में हमेशा बाहर निकलने से पहले सनग्लास का इस्तेमाल करें.

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हमेशा कंप्यूटर पर काम करने के दौरान बीचबीच में ब्रेक लेते रहें. बिना ब्रेक लिए लंबे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन पर चिपके रहने से नजर धुंधली, सिरदर्द और ड्राई आई जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए एहतियातन अपने कंप्यूटर स्क्रीन को आंखों के समानांतर रेखा में रखें. इस से कंप्यूटर स्क्रीन पर आप की नजर बहुत कम ही नीचे झुकी रहेगी. बैठने के लिए आरामदेह और पीठ को सपोर्ट देने वाली कुरसी ही चुनें. यदि आप की आंखें ड्राई हो जाती हैं, तो पलकों को बारबार झपकाएं. संभव हो, तो प्रत्येक 20 मिनट पर यह प्रक्रिया दोहराएं और आंखों को आराम देने के खयाल से 20 सेकंड तक 20 फुट दूर की चीजें देखने का अभ्यास दोहराते रहें. प्रत्येक दो घंटे पर कंप्यूटर के सामने से हट जाएं और 15 मिनट का ब्रेक लें. अपने आई स्पेशलिस्ट या औप्थेल्मोलौजिस्ट से मिल कर समस्या दूर करें.

कोरोना ने बदली युवाओं की सोच

कोरोना वायरस महामारी के कारण जहां विश्वभर में हालात काफी बदले हैं, वहीं युवाओं की जीवनशैली में काफी बदलाव आया है. उन के जीने का नजरिया अब बदलने लगा है.

बड़ीबड़ी कंपनियों में मासिक वेतन के अतिरिक्त अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं. इस वजह से आजकल के युवा अपने वेतन को अब तक लग्जरी जीवन जीने में खर्च कर रहे थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है.

बदल डाली शौक

एक मल्टीनैशनल कंपनी में सीईओ रही सोनाली को ब्रैंडेड कपड़ों व होटलों पर अपनी तनख्वाह खर्च करने का बेहद शौक था. लग्जरी जीवन जीना उन की प्राथमिकता थी. मगर अब वे सोचसमझ कर खर्च करती हैं. वजह है कोरोना से उपजी समस्या.

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विशाल ने 1 साल पहले अपनी स्टूडियो खोली थी. काम अच्छा चल रहा था. मगर इस से पहले कि काम को अच्छी गति मिलती उस के पहले लौकडाउन लग गया. लगभग 2 महीने तक स्टूडियो बंद रहा जबकि कर्मचारियों का वेतन भुगतान जारी था जबकि उस की तुलना में बिक्री बहुत कम थी.

आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता से  चिंता के कारण उन्हें असहज महसूस होने लगा.

विशाल बताते हैं,” मैं आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता के कारण चिंतित और असहाय महसूस कर रहा हूं. अब तो मुझे काम के अर्थ पर भी संदेह होता है.”

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2 महीने तक उन्होंने अपने यहां काम कर रहे आदमियों को वेतन दिया पर आमदनी शून्य होने के कारण उन्हें काम से हटाना पड़ा.

लग्जरी लाइफ से तोबा

वनीता को भी लग्जरी लाइफ जीने का शौक था. कामवाली के भरोसे  अकेली रहने वालों को काम चलाना सुविधाजनक लगता है.

लौकडाउन के कारण उन्हें घर पर ही रहना पड़ा. धीरेधीरे उस ने अपनी मां के साथ रसोई में काम करना शुरू किया. घर में रहने की वजह से इनोवैटिव कुकिंग शुरू कर दी, जिस से न केवल उसे खुशी हुई अपितु बचत भी खूब हुई. औफिस का काम घर से ही चल रहा था तो इस वजह से आधी तनख्वाह मिलती थी. इस से उस के अंदर सुरक्षा की भावना थी कि कुछ पैसा तो हाथ में है.

उधर फास्ट फूड खाने के कारण जो वजन बढ़ रहा था, घर में काम करने से कम हुआ और शरीर में स्फूर्ति भी रहने लगी.

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बदलेबदले से हैं हालात

इस कोरोना काल में भारत भी आर्थिक समस्या से जूझ रहा है.  बेरोजगारी बढ़ रही है. प्राइवेट सैक्टर में कंपनियां छंटनी कर रही हैं. मध्यवर्गीय व सभी कर्मचारियों की हालत एकजैसी हो रही है. सभी एकजैसी मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं. भारत में 90 के दशक के बाद के बच्चे भी भव्य खर्चे में आत्मसुख तलाश रहे थे और अभिव्यक्ति का लाभ उठा रहे थे, लेकिन हालात पहले जैसे नहीं रहे.

सब से बड़ा असर उन युवाओं पर पड़ा जो हाल ही में आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने वाले थे. लेकिन एक झटके में उन के हाथ से नौकरी चली गई. मानसिक स्थिरता की जगह चिंता और असंतोष का भाव उन को परेशान करने लगा.

धानी व मयंक जैसे लोग आवेगपूर्ण उपभोग करते थे. लेकिन महामारी आने के कारण उन के विवेकपूर्ण और  समझदारी से चलने की वजह ने उन्हें बचा लिया.

भविष्य को ले कर संशय

बेरोजगारी और व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए सरकार ने नीतियों में ढील तो दी है लेकिन महामारी ने युवाओं का नजरिया बदल दिया है. अब वे खुद को जोखिम से बचाने के नएनए तरीके ढूंढ़ रहे हैं. युवाओं ने नएनए तरीके का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है और औनलाइन कमाने का जरीया ढूंढ़ने में लगे हैं.

संजय ने दुकान बढ़ाने के लिए अपनी आधी जमापूंजी दुकान में लगा दी. लेकिन आमदनी बंद होने के कारण मुश्किलें बढ़ गईं. दुकान का किराया देना और पैसे की तंगी न हो इसलिए औनलाइन काम शुरू किया, लेकिन उस में भी गिरावट आ गई. ग्राहक पैसा देना नहीं चाहते. दुकानें खुली हैं लेकिन ग्राहक नहीं हैं. इसलिए कुछ ही हफ्तों के बाद उन्हें अपने इस व्यवसाय को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शीतल की नईनई नौकरी लगी थी. कंपनी ने आर्थिक स्थिति में गिरावट की वजह से लोगों को निकाल दिया. उन लोगों में वह भी शामिल थी. अपनी मानसिक स्थिति को व्यस्त रखने के लिए उस ने औनलाइन लिखना शुरू कर दिया और औनलाइन सामान बेचे. पुरानी चीजें भी बेचीं.

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औनलाइन काम करने से फिलहाल बहुत ज्यादा पैसा तो नहीं मिल रहा है लेकिन उसे आत्मसंतुष्टि जरूर मिली कि कुछ तो कमा रहे हैं. लेकिन अभी भी भविष्य को ले कर बहुत संशय है.

जमीन पर रहना अच्छा है

सोनाली व निक दोनों नौकरी कर के अच्छा कमाते थे. हाल ही में उन्होंने बड़ा सा घर लिया था. दोनों वित्तीय कर्मचारी हैं. महामारी से पहले कमीशन में प्रति वर्ष अच्छा पैसा  कमाते थे, लेकिन भुगतान हाल के महीनों में पूरी तरह से सूख गया है.उन के लिए वित्तीय तौर पर बहुत बड़ा झटका था. अपने फ्लैट का भुगतान करने के लिए उन्हें 60% कटौती करनी पड़ी.

वे कहती हैं कि मुझे कुछ योजना बनानी होगी. सौंदर्य प्रसाधन व स्वयं पर खर्च कम करने होंगे. औफिस खुलने के बाद टेकआउट मिल लेने की जगह घर का बना भोजन ले कर जा रही हूं. मेस का खाना बंद कर दिया है. धीरेधीरे बचत करनी होगी और अपने खर्चों पर विशेष ध्यान देना होगा.

वे कहती हैं,”महामारी के कारण पूरे 2 महीने तक घर पर रहना मुझे इस बात का एहसास कराता रहा कि बगैर भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादा सुकुन था. मुझे लगता है कि जमीन पर अपने पैरों के साथ रहना बहुत अच्छा है.”

साकेत ने कहा,” पहले मुझे खर्चे व फ्लैट की किस्त के लिए सोचना नहीं पड़ता था. लेकिन अब हर कार्य को करने से पहले योजना बनानी पड़ती है.”

वहीं सौरभ कहते हैं कि हालात बेहद खराब हैं. रोटी कमाने के लिए हम बाहर आए हैं. इस वेतन में परिवार के लिए क्या व कैसे करेंगे, कल का पता नहीं है.

मगर सवाल कई हैं

यों कोरोना महामारी ने लोगों की जिंदगी बदल दी है. युवाओं की सोच व निति में परिवर्तन आया है.सब से बड़ी बात है कि भले भविष्य में स्थितियां सामान्य हो जाएं लेकिन युवाओं को दोहरी मार पड़ रही है.  आने वाले आर्थिक संकट से देश के युवा कैसे उबरेंगे, यह एक चुनौती होगी.

समय का यह घाव क्या स्थितियां सामान्य कर सकेंगी? क्या भारत की अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सरकार की नीतियां काम करेंगी? सवाल कई हैं पर फिलहाल

बेरोजगारी बढ़ने से युवाओं की मानसिक स्थिति उन्हें अवसाद में धकेल सकती है. युवाओं का रुझान नए ट्रैंड स्थापित करने में हो रहा है लेकिन सफलता व रास्ते बेहद दूर हैं. अलबत्ता देश की आर्थिक स्थिति को बढाने में युवाओं का बड़ा योगदान जरूर होगा.

10 साल- भाग 1: नानी से सभी क्यों परेशान थे?

जब से होश संभाला था, वृद्धों को झकझक करते ही देखा था. क्या घर क्या बाहर, सब जगह यही सुनने को मिलता था, ‘ये वृद्ध तो सचमुच धरती का बोझ हैं, न जाने इन्हें मौत जल्दी क्यों नहीं आती.’ ‘हम ने इन्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया, अपनी जान की परवा तक नहीं की. आज ये कमाने लायक हुए हैं तो हमें बोझ समझने लगे हैं,’ यह वृद्धों की शिकायत होती. मेरी समझ में कुछ न आता कि दोष किस का है, वृद्धों का या जवानों का. लेकिन डर बड़ा लगता. मैं वृद्धा हो जाऊंगी तो क्या होगा? हमारे रिश्ते में एक दादी थीं. वृद्धा तो नहीं थीं, लेकिन वृद्धा बनने का ढोंग रचती थीं, इसलिए कि पूरा परिवार उन की ओर ध्यान दे. उन्हें खानेपीने का बहुत शौक था. कभी जलेबी मांगतीं, कभी कचौरी, कभी पकौड़े तो कभी हलवा. अगर बहू या बेटा खाने को दे देते तो खा कर बीमार पड़ जातीं. डाक्टर को बुलाने की नौबत आ जाती और यदि घर वाले न देते तो सौसौ गालियां देतीं.

घर वाले बेचारे बड़े परेशान रहते. करें तो मुसीबत, न करें तो मुसीबत. अगर बच्चों को कुछ खाते देख लेतीं तो उन्हें इशारों से अपने पास बुलातीं. बच्चे न आते तो जो भी पास पड़ा होता, उठा कर उन की तरफ फेंक देतीं. बच्चे खीखी कर के हंस देते और दादी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता, जहां से वे चाची के मरे हुए सभी रिश्तेदारों को एकएक कर के पृथ्वी पर घसीट लातीं और गालियां देदे कर उन का तर्पण करतीं. मुझे बड़ा बुरा लगता. हाय रे, दादी का बुढ़ापा. मैं सोचती, ‘दादी ने सारी उम्र तो खाया है, अब क्यों खानेपीने के लिए सब से झगड़ती हैं? क्यों छोटेछोटे बच्चों के मन में अपने प्रति कांटे बो रही हैं? वे क्यों नहीं अपने बच्चों का कहना मानतीं? क्या बुढ़ापा सचमुच इतना बुरा होता है?’ मैं कांप उठती, ‘अगर वृद्धावस्था ऐसा ही होती है तो मैं कभी वृद्धा नहीं होऊंगी.’

मेरी नानी को नई सनक सवार हुई थी. उन्हें अच्छेअच्छे कपड़े पहनने का शौक चर्राया था. जब वे देखतीं कि बहू लकदक करती घूम रही है, तो सोचतीं कि वे भी क्यों न सफेद और उजले कपड़े पहनें. वे सारा दिन चारपाई पर बैठी रहतीं. आतेजाते को कोई न कोई काम कहती ही रहतीं. जब भी मेरी मामी बाहर जाने को होतीं तो नानी को न जाने क्यों कलेजे में दर्द होने लगता. नतीजा यह होता कि मामी को रुकना पड़ जाता. मामी अगर भूल से कभी यह कह देतीं, ‘आप उठ कर थोड़ा घूमाफिरा भी करो, भाजी ही काट दिया करो या बच्चों को दूधनाश्ता दे दिया करो. इस तरह थोड़ाबहुत चलने और काम करने से आप के हाथपांव अकड़ने नहीं पाएंगे,’ तो घर में कयामत आ जाती.

‘हांहां, मेरी हड्डियों को भी मत छोड़ना. काम हो सकता तो तेरी मुहताज क्यों होती? मुझे क्या शौक है कि तुम से चार बातें सुनूं? तेरी मां थोड़े हूं, जो तुझे मुझ से लगाव होता.’ मामी बेचारी चुप रह जातीं. नौकरानी जब गरम पानी में कपड़े भिगोने लगती तो कराहती हुई नानी के शरीर में न जाने कहां से ताकत आ जाती. वे भाग कर वहां जा पहुंचतीं और सब से पहले अपने कपड़े धुलवातीं. यदि कोई बच्चा उन्हें प्यार करने जाता तो उसे दूर से ही दुत्कार देतीं, ‘चल हट, मुझे नहीं अच्छा लगता यह लाड़. सिर पर ही चढ़ा जा रहा है. जा, अपनी मां से लाड़ कर.’ मामी को यह सुन कर बुरा लगता. मामी और नानी दोनों में चखचख हो जाती. नानी का बेटा समझाने आता तो वे तपाक से कहतीं, ‘बड़ा आया है समझाने वाला. अभी तो मेरा आदमी जिंदा है, अगर कहीं तेरे सहारे होती तो तू बीवी का कहना मान कर मुझे दो कौड़ी का भी न रहने देता.’

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