कोरोना संक्रमण और लौकडाउन की वजहों से इन दिनों देश व समाज में काफी कुछ बदलबदला सा है. महीनों से घर में रह रहे बच्चे अब जहां उकता चुके हैं, वहीं पेरैंट्स उन्हें संभालने की जद्दोजेहद में हैरान और परेशान हो रहे हैं.
घर में 24 घंटे बच्चों के रहने से जहां उन्हें पर्सनल स्पेस नहीं मिल पा रहा, वहीं उन की औनलाइन क्लासेज के चलते अभिभावकों की जेबों पर खर्च की दोहरी मार लग रही है.
अतिरिक्त भार
स्कूल की भारी फीस ज्यों की त्यों भरने के बाद अब उन के ऊपर इलैक्ट्रौनिक उपकरणों के खर्च का अतिरिक्त भार भी आ पड़ा है.
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2 बेटियों की मां सुचित्रा बताती हैं कि सीए कर रही बड़ी बेटी को पिछले साल ही उन्होंने लैपटौप दिलाया था. पर इस बार छोटी बेटी की औनलाइन पढ़ाई के खर्चों ने उन की आर्थिक कमर तोड़ कर रख दी है.
पहले मोबाइल में डाटा डलवा लेने पर उन का काम चल जाता था, लेकिन अब बेटी की औनलाइन स्टडी के लिए घर में वाईफाई लगवाना जरूरी हो गया है और वाईफाई के चलने में कोई दिक्कत न हो इस के लिए उन्हें आननफानन में इनवर्टर भी लगवाना पड़ गया, जिस से उन के पूरे महीने का बजट एक बार में ही गड़बड़ा गया.
10वीं की छात्रा अनुष्ठा ने कुछ दिनों तक अपनी मां के मोबाइल पर औनलाइन क्लास अटैंड की, लेकिन फिर उसे सिरदर्द व आंखों में पानी की शिकायत के चलते जब डक्टर को दिखाया गया तो उन्होंने उसे मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर ज्यादा देर तक न देखने की सलाह दी. पर पढ़ाई तो रुक नहीं सकती थी इसलिए तुरंत ही पेरैंट्स को इस के लिए ₹16,000 का एक नया टैबलेट लेना पड़ा.
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वैशाली अपार्टमैंट में पार्लर चलाने वाली किरण ने घर में और कोई अतिरिक्त जगह न होने से अपने पार्लर का सामान स्टोररूम में शिफ्ट कर उसे अपने बेटे की औनलाइन स्टडी के लिए खाली कर दिया. हालांकि लौकडाउन के चलते पार्लर में आसपास के ही कुछ कस्टमर आ रहे थे. लेकिन इस से उन की महीने की ₹10-12 हजार की परमानैंट कमाई मारी जा चुकी है.
स्वाभाविक तौर पर बच्चों की औनलाइन पढ़ाई ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पेरैंट्स के खर्चों को बढ़ा दिया है.
आइए, जानें कि वे कौनकौन से खर्चे हैं जो इन दिनों अतिरिक्त खर्च के तौर पर अभिभावकों की जेब खाली कर दे रहे हैं :
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1.वाईफाई या डेटा : औनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चों के फोन में डेटा डलवाना या घर में वाईफाई लगवाना एक जरूरी खर्च में तबदील हो गया है. वैसे एक से अधिक बच्चे होने की दशा में हर बच्चे के मोबाइल में डेटा डलवाने की बजाए वाईफाई लगवाना अधिक सुविधाजनक होता है ताकि जरूरत पड़ने पर घर के सभी सदस्य कंप्यूटर या मोबाइल पर एकसाथ उस का उपयोग कर सकें.
2.कंप्यूटर या टैबलेट खरीदना : बच्चों की हैल्थ को ध्यान में रखते हुए उन के लिए कंप्यूटर या टैबलेट खरीदना भी अब एक आवश्यक खर्च बन चुका है. कंप्यूटर की बड़ी स्क्रीन छोटे बच्चों के लिए मोबाइल की तुलना में ज्यादा सुविधाजनक होती है.
टैबलेट की स्क्रीन भी आमतौर पर 8-10 इंच की रहती है जिसे देखने में बच्चों की आंखों पर अधिक जोर नहीं पड़ता है.
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3.इनवर्टर लगवाना : अचानक बिजली कट जाने से बच्चों की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए इस के लिए इनवर्टर लगवाना भी औनलाइन स्टडी का एक जरूरी खर्च बन चुका है. इस से बिजली की कटौती के चलते इनवर्टर का खर्च भी अभिभावकों को मजबूरी में उठाना पड़ रहा है.
4.एकांत जगह की दरकार : घर में अन्य सदस्यों की बातचीत और दूसरे कामों से हो रही शोरशराबे को दूर करने के लिए उन्हें एकांत जगह की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने में अभिभावकों को बहुत मुश्किलें आ रही हैं.
5.हैडफोन : बच्चों के लिए हैडफोन खरीदना भी आज की पढ़ाई का एक आवश्यक खर्च बन चुका है ताकि बच्चे शोरगुल से दूर एकाग्रचित्त हो कर अपनी पढ़ाई कर सकें.
6.रिपेयरिंग और मैंटनैंस : इस के अलावा इन खर्चों में जो एक सब से आकस्मिक और महंगा खर्च है वह है, उपरोक्त सभी की रिपेयरिंग कौस्ट का, जोकि समय विशेष के चलते इलेक्ट्रौनिक शौप्स की दुकानों पर मनमाने भाव से वसूले जा रहे हैं.
औटो चालक रमेश ने अपने बड़े बेटे की औनलाइन पढ़ाई के लिए बड़ी मुश्किल से उसे एक नया स्मार्ट फोन दिलाया था. महीने भर में ही छोटी बहन के साथ छीनाझपटी में गिरने से मोबाइल की स्क्रीन बंद हो गई. रिपेयरिंग का खर्च दुकान वाले ने ₹5,000 बताया, जो रमेश की कूबत से बाहर की बात थी. लिहाजा, काफी दिनों तक बेटे की पढ़ाई का नुकसान हुआ और फिर बाद में जैसेतैसे कर्ज ले कर पैसों का जुगाड़ कर उस ने बेटे का मोबाइल ठीक करवाया.
औनलाइन स्टडी के चलते रोज के ऐसे तमाम खर्च मातापिता की परेशानियों का कारण बन रहे हैं.
उपरोक्त खर्चों का मोटामोटा हिसाब भी पेरैंट्स की नींदें उड़ाने के लिए काफी हैं. इन खर्चों ने अभिभावकों की जेबें फिलहाल खाली करने के साथसाथ आगे के लिए भी उन्हें चिंता में डाल रखा है.
इस तरह औनलाइन पढ़ाई, स्कूल की रैग्युलर स्टडी से कहीं ज्यादा महंगी साबित हो रही है.