लेखक- अभिषेक सिंह
देश का किसान और खेतिहर मजदूर सरकार की तरफ देख रहा है. वे लोग इस बात की आस में बैठे हैं कि सरकार ग्रामीण क्षेत्र को इस वायरस के संक्रमण से भी बचाएगी, साथ ही इस की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को, जो गहरा आघात लगा है, उस से भी उबारने का काम करेगी.
देश में जब से लौकडाउन हुआ है, तभी से किसान चिंता में हैं. यदि गन्ने की फसल समय पर नहीं कटेगी, तो धान, ग्वार, मक्का, गन्ना, सोयाबीन, बाजरा, मूंगफली, तूर, मूंग जैसी फसलों की बोआई में भी दिक्कत आएगी.
दुग्ध उत्पादन, फलसब्जी और बागबानी करने वाले किसान बुरी तरह से परेशान हैं. जो सब्जियां और फल जल्दी खराब हो जाते हैं, इन को उगाने वाले किसान तो बरबादी के कगार पर हैं. बागबानी की उपज का कोई खरीदार नहीं है. इस वजह से उन की सारी फसलें खेतों में ही सड़ रही हैं.
भारत में साल 2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था, जो दुनिया के कुल दूध के उत्पादन का तकरीबन 22 फीसदी था. भारत दुग्ध उत्पादन में पूरे विश्व में नंबर 1 पर है.
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आज कोरोना वायरस के संकट की वजह दुग्ध उत्पादक किसान होटल, रैस्टोरैंट और कैटरिंग बिजनैस के बंद होने की वजह से परेशान हैं. इस के चलते पशु चिकित्सकों की कमी, दवाओं का न मिलना और सूखे और हरे चारे की खरीदफरोख्त पर रोक लगने से इस उद्योग में और भी दिक्कतें बढ़ रही हैं.
एक साल पहले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पूरे देश में लागू की गई थी. इस योजना के मुताबिक, देश में साढ़े 14 करोड़ किसान हैं, जिन के लिए सरकार ने 6,000 रुपए हर साल की राशि तय की थी.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, ग्रामीण अंचल में खेतिहर मजदूरों की तादाद
14 करोड़ 43 लाख है. एनएसओ के डाटा के मुताबिक, साल 2012 से साल 2018 के बीच देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी बढ़ी है.
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इन 6 सालों में देश में 3 करोड़ लोग और गरीबी की रेखा के नीचे चले गए हैं. बड़े राज्यों में बिहार, झारखंड और ओडिशा में गरीबों की तादाद में सब से ज्यादा बढ़ोतरी हुई. हालांकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और गुजरात में गरीबों की तादाद में कमी दर्ज की गई.
इस से साफ होता है कि खेतिहर मजदूरों की तादाद में भी बढ़ोतरी हुई होगी. अगर देश का किसान खुशहाल नहीं होगा, तो खेतिहर मजदूर भी परेशानी के हालात में रहेंगे.
सरकार को इस बात पर विचार कर के तुरंत ही एक ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिस से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की आमदनी बढ़े. साथ ही, खरीफ की फसल की बोआई भी बेहतर तरीके से हो जाए.
अगर सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए बेहतर योजना नहीं बनाई, तो शायद देश में खरीफ की फसल के उत्पादन में गिरावट दर्ज हो सकती है.
देश के कुल उपलब्ध रोजगार में से
तकरीबन 43 फीसदी रोजगार कृषि क्षेत्र से आता है, इसलिए कोविड 19 वायरस के संक्रमण के फैलने के बाद सरकार को खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना होगा. सरकार इन 7 मोरचों पर अपनी रणनीति बना कर ग्रामीण क्षेत्र को माली रूप से उभार सकती है.
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कृषि केंद्र व राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए केंद्र सरकार को तुरंत सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, को केंद्रीय कृषि मंत्री, एफसीआई, सैंट्रल वेयरहाउसिंग कौरपोरेशन और ट्रांसपोर्ट विभाग को मिला कर एक कार्ययोजना बनानी चाहिए.
रबी फसल की बिक्री व खरीफ
फसल को बोने की तैयारी
जिस दिन किसान अपनी फसल बेचे, उसी दिन उस को उस के खाते में भुगतान मिलना चाहिए. प्रदेशों के मुख्यमंत्री को विश्वास में ले कर केंद्र सरकार को तुरंत देश के जितने भी कृषि उत्पादों का व्यापार करने वाले आढ़ती हैं, उन को इस बात के लिए स्पष्ट निर्देश जारी कर देने चाहिए कि रबी की फसल की सारी खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करनी होगी. इस से किसान बिना किसी झिझक और डर के अपनी फसल को बेच पाएगा.
रबी की फसल का निस्तारण करने के बाद किसान को तुरंत ही खरीफ की फसल बोने की तैयारी करनी होगी. इस के लिए सरकार को मौसम विज्ञानियों और कृषि विशेषज्ञों के ज्ञान व सूचनाओं का सहारा ले कर देश के किसानों को राह दिखानी होगी.
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाजारों में किन कृषि उत्पादों की मांग बढ़ सकती है, उस के अनुसार ही किसानों को खरीफ की उसी फसल को बोने के लिए उत्साहित करना होगा. साथ ही, नकदी फसल को बोने के साथसाथ खाद्य फसलों को बोने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा. आने वाले समय में देश में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य फसलों की मांग बढ़ सकती है.
डीजल के दामों में कटौती
केंद्र सरकार को तुरंत ही डीजल के दामों में कमी कर के किसानों को राहत देनी चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दामों में गिरावट आने से सरकार को राहत मिली है.
कच्चे तेल के दामों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमी आने की वजह से सरकार को चालू खाता घाटे में और बजटीय घाटे में कमी आएगी. हर किसान को उस की जरूरत के अनुसार परमिट जारी किए जा सकते हैं, जिस से कि वह किसी भी पैट्रोल/डीजल पंप से अपने लिए तेल ले सके. इस से किसान अपनी रबी की फसल को बेचने की पूरी तैयारी कर सकता है और खरीफ की फसल को बोने के लिए भी अपना काम शुरू कर सकता है.
केंद्र सरकार केंद्रीय उत्पाद शुल्क में तो कटौती करे. साथ ही, राज्यों को इस बात के लिए उत्साहित कर सकती है कि राज्यों को डीजल की बिक्री से मिलने वाले करों का एक बड़ा भाग केंद्र सरकार उठाएगी.
पलायन की समस्या
और मनरेगा
कोविड 19 के चलते देश में हुए लौकडाउन की वजह से शहरों से गांव की तरफ मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन हुआ. इस पलायन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर और भार पड़ेगा. पलायन करने वाले श्रमिकों व दूसरे लोगों को सरकार को विश्वास में लेना होगा और लौकडाउन खुलने के बाद दोबारा से उन को शहरों में, जिस रोजगार में वे थे, उस रोजगार में दोबारा लगाना होगा.
रोजगार की अनुपलब्धता की वजह से मनरेगा मजदूरों का हाल और भी बुरा है. सरकार को तुरंत ही मनरेगा मजदूरों के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान रोजाना (बिना किसी श्रम के ही) करना चाहिए. लौकडाउन खुलने के बाद ग्रामीण अंचल में विकास की योजनाओं और खेती से भी मनरेगा मजदूरों को जोड़ा जा सकता है.
स्वास्थ्य शिक्षा के
क्षेत्र में राहत
एक तरफ जहां ग्रामीण सरकारी विद्यालयों में इस लौकडाउन की वजह से मिड डे मील मिलने में भारी दिक्कत हो गई है, वहीं दूसरी तरफ परिवहन व्यवस्थाओं के चरमरा जाने की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर राशन नहीं मिल पा रहा है.
इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण बढ़ेगा और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए ग्रामीणों को अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ेगा, जिस की वजह से ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी बढ़ेगी. इस से संकट और गहरा जाएगा.
सरकार को तुरंत ही देश में जितने भी निजी अस्पताल हैं, उन को इस बात के लिए निर्देशित करना होगा कि ग्रामीण अंचल में रहने वाले सभी नागरिकों का इलाज चाहे वह कोविड 19 से संक्रमित हो या अन्य किसी बीमारी से, आगामी एक साल तक आयुष्मान भारत योजना के तहत बिलकुल मुफ्त होगा. इस बीमा राशि के प्रीमियम का भुगतान सरकार को तुरंत करना चाहिए.
ग्रामीण अंचल की वोटर लिस्ट, पटवारी का रिकौर्ड, सौयल हैल्थ कार्ड और राजस्व अभिलेखों की जांच कर के सभी ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य सुविधा के लिए कार्ड बना देना चाहिए.
शिक्षा के क्षेत्र में सरकार को मिड डे मील योजना को बेहतर बना कर, जिस में पोषक तत्त्वों पर जोर, निजी खाद्य निर्माता कंपनियों के द्वारा ब्लौक स्तर पर गांवों को गोद लेने की व्यवस्था, जिस से उन के द्वारा निर्मित खाद्य सामग्री वंचित वर्ग के बच्चों को भी मिल पाए और इस योजना में खेतिहर मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दे कर भागीदारी कराई जाए. इस भागीदारी से गांव में लोगों को रोजगार भी मिलेगा और व्यवस्था भी बेहतर होगी.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली
भारतीय खाद्य निगम अपने गोदामों में 2.14 करोड़ टन का बफर स्टौक हमेशा रखता है. देश में खाद्यान्न संकट के समय इस स्टौक का इस्तेमाल किया जाता है.
मार्च माह में भारतीय खाद्य निगम के अनुसार, इस वक्त उस के गोदामों में 7.76 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडारण है. साथ ही, नैफेड के अनुसार उस के गोदामों में 22.5 लाख टन दालों का भंडार है. रबी की फसल के बाजार में आने के बाद इस स्टौक में और बढ़ोतरी होगी. सरकार को ग्रामीण अंचल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बफर स्टौक से ज्यादा अनाज को पूरे देश में बांटना चाहिए.
कृषि गण और ब्याज की
मार से मुक्ति
क्रेडिट सुईस रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने पिछले 5 साल में देश के उद्योगपतियों के 7 लाख, 77 हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए हैं. मानसून के मिजाज और लौकडाउन की वजह से कृषि क्षेत्र की स्थिति ठीक वैसे ही है, जैसे कोढ़ में खाज.
कृषि गण की वसूली सरकार को कम से कम 6 माह के लिए रोक देनी चाहिए और उस पर किसी प्रकार का कोई ब्याज नहीं लगाना चाहिए. साथ ही, खरीफ की फसल के लिए किसान जो भी गण लेना चाहे, उस गण पर किसी प्रकार का कोई ब्याज न हो तो बेहतर है.
कृषि जिंसों का निर्यात
कोरोना संकट की वजह से पूरे विश्व में विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप और चीन में चाय, मांस, मसाले, चावल और समुद्री खाद्य पदार्थों की मांग में कमी आई है. इस की वजह से देश का खेती की जिंसों का निर्यात प्रभावित हो रहा है. निर्यात न होने की वजह से आम और अंगूर के दामों में भी भारी कमी आई है.
खेती की जिंसों का निर्यात करने वाली सभी कंपनियों को स्थानीय बाजार में अपना माल बेचने की भी छूट होनी चाहिए. केंद्र और राज्यों की सरकारों को तुरंत ही ग्रामीण क्षेत्र को संकट से बचाने के लिए आगे आना चाहिए.
सरकारों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसान के खेत से उपज के उठने से ले कर अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने तक किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न आए.
यदि सभी सरकारें मिल कर देश के ग्रामीण क्षेत्र को इस संकट से उबार कर ले गईं, तो भारत निश्चित ही खुशहाल होगा. देश के किसान को इस वक्त भावनात्मक, आर्थिक और वैज्ञानिक सहारे की जरूरत है.