उत्तर प्रदेश में आयोग अपनो का लाभ पहुंचाने का जरीया रहे है. इनके पदाधिकारी पार्टी और नेताओं के करीबी लोग बनते है. ऐसे में आयोग काम की जगह केवल अपनों को उपकृत करने के काम आते है. ऐसे आयोगों की संख्या साल दर साल बढती जा रही है. इन आयोगो के जरीये करीबियों को मंत्री स्तर का दर्जा देने का काम किया जाता है.

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मजदूरों को रोजगार देने के लिये उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग का गठन किया है. सरकार ने कहा है कि इस आयोग के जरीये कोरोना संकट में रोजगार देने का काम किया जायेगा. इस आयोग का काम सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में रोजगार के नये अवसर तलाष करने है. उत्तर प्रदेष सरकार ने दावा किया है कि पूरे देष में पहली बार किसी राज्य ने कामगारों श्रमिकों के लिये ऐसे आयोग का गठन किया है. इस आयोग की घोषणा के साथ आयोग का अध्यक्ष तय नहीं किया गया है. प्रावधान के अनुसार मुख्यमंत्री या उनके द्वारा नामित किया गया व्यक्ति आयोग का अध्यक्ष होगा. इसके अलावा श्रम और सेवायोजन मंत्री इस आयोग के संयोजक होगे. आयोग के दो उपाध्यक्ष होगे. इनमें से एक औद्योगिक विकास मंत्री और दूसरा सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री होगे. आयोग में कुछ सदस्य होगे. आयोग की बैठक महीने मे एक बार होगी.

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उत्तर प्रदेष कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग के गठन को लेकर उत्साहित होने और इससे बहुत ज्यादा उम्मीद करने से पहले यह समझना जरूरी है कि आयोग में पदाधिकारी किस तरह के लोग होगे. अभी तक जितने भी आयोग बने है वह नेताओं, राजनीतिे पार्टियों के खास लोग होते है. आयोग में अलग अलग पद देकर उनको सरकारी सुविधाओं, वेतन, भत्ते, गाडी, आवास नौकर चाकर और स्टाफ का लाभ दिया जाता है. कई आयोग ऐसे है जिनके अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है. कुछ आयोग के अध्यक्षों को मंत्री स्तर का दर्जा देकर उसी स्तर की सुविधाये दी जाती है. मजेदार बात यह है कि हर सरकार एक ही तरह से काम करती है. ऐसे में उत्तर प्रदेष कामगार और श्रमिक आयोग का हाल भी दूसरे आयोगो जैसा ही होगा.

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मंत्री बनने के लिये दलबदलः

उत्तर प्रदेष में भाजपा नेता कल्याण सिंह जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में 93 मंत्री थे. देष में पहली बार किसी प्रदेष में इतना बडा मंत्रिमंडल बना था. कल्याण सरकार के जम्बो मंत्रिमंडल की वजह बहुत रोचक थी. 1996 में उत्तर प्रदेष में विधानसभा के चुनाव हुये. 425 विधानसभा सीटो में भारतीय जनता पार्टी 173, समाजवादी पार्टी 108, बहुजन समाज पार्टी 66 और कांग्रेस 33 जीत पाई. ऐसे में किसी एक दल को सरकार बनाने का बहुमत नहीं मिला था. प्रदेष में राष्ट्रपति षासन लग गया. कुछ समय के बाद भाजपा और बसपा में तालमेल हुआ और यह तय हुआ कि दोनो पार्टियां 6-6 माह अपना अपना मुख्यमंत्री बनाकर प्रदेष में सरकार चलायेगी. देष के इतिहास में अपनी तरह से पहला प्रयोग था. सबसे पहले बसपा नेता मायावती मुख्यमंत्री बनी.

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6 माह पूरे होने पर मायावती ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार को गिराने की योजना चली. ऐसे समय भाजपा सतर्क थी और बसपा के विधायकों को तोड कर कल्याण सिंह की सरकार को बचाने का काम किया. सरकार बचाने के खेल में बसपा के साथ कांग्रेस के कुछ लोग भी अपने दल को छोडकर कल्याण सरकार को समर्थन देने आ गये. दलबदल कर आये विधायकों की मांग थी कि उनको मंत्रिमंडल में जगह दी जाये. इस मांग को पूरा करने और सरकार को बचाने के लिये कल्याण मंत्रिमंडल 93 मंत्रियों वाला ‘जंबो मंत्रिमंडल’ बन गया. यह सिलसिला कमोवेष 2004 तक चलता रहा.

दलबदल का खेल:   

भाजपा ने दूसरे दलों को तोडकर जिस तरह से दलबदल का सिलसिला षुरू किया. उसके चलते विधायक मंत्री पद का लालच करने लगे. मंत्री पद पाने के लिये दलबदल करने लगे. इसके बाद देष और न्यायपालिका में चुनाव सुधार की बातें मुखर होने लगी. अदालत के फैसले चुनाव आयोग ने 2004 में तय किया कि विधायकों की संख्या के 15 प्रतिषत सदस्यों का ही मंत्रिमंडल देखा जा सकता है. चुनाव आयोग का यही वह फैसला थो जिसके बाद आयोग के अध्यक्ष को मंत्री स्तर का दर्जा देकर खुष करने का काम षुरू हो गया. 2004 के बाद उत्तर प्रदेष में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की सरकारे बनती बिगडती रही पर अपने लोगो को आयोग का अध्यक्ष बनाने का काम षुरू हो गया. जब यह फैसला आया तब उत्तर प्रदेष में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव प्रदेष के मुख्यमंत्री थे. मंत्रिमंडल की संख्या को कम करने का रास्ता निकालने का जरीय विभिन्न आयोग को बनाया गया. चुनाव सुधार के इसी दौर में सूचना आयोग का गठन हुआ. 2005 में उत्तर प्रदेष सूचना आयोग में मुलायम सिंह यादव ने अपने करीबी पत्रकारों और पार्टी नेताओं को इस आयोग में अध्यक्ष से लेकर सदस्य तक को बनाने का काम किया.

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2009 में जब बसपा की सरकार बनी और मायावती प्रदेष की मुख्यमंत्री बनी तो उनके करीबी सतीष चन्द्र मिश्रा की बहन आभ अग्निहोत्री को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था. सतीष चन्द्र मिश्रा की चचेरी बहन दिव्या मिश्रा को महिला कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया. आभा अग्निहोत्री और दिव्या मिश्रा को केवल सतीष चन्द्र मिश्रा की रिष्तेदार होने के कारण यह पद दिये गये थे. 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और अखिलेष यादव प्रदेष के मुख्यमंत्री बने तब भी इन आयोगो में करीबी लोगांे को ही जगह दी गई. महिला आयोग में जरीना उस्मानी और बाल आयोग मंें जूही सिंह जैसे नामों की लिस्ट लंबी हो गई. 2017 में जब उत्तर प्रदेष में भाजपा की पूर्णबहुमत वाली सरकार बनी तो भी यही सिलसिला चलता रहा.

योगी राज में भी आयोग बने सहारा:

भारतीय जनता पार्टी सरकार में भी आयोग अपने को लाभ पहुंचाने का जरीया बने रहे. यहां पर केवल भाजपा ही नहीं आरएसएस और उसके दूसरे संगठनों के लोगों को भी आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य बनाया गया. प्रदेष में आयोगों की लिस्ट भी इसके साथ लंबी होती चली गई. इन आयोगो में गौ सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम, फिल्म विकास परिषद तथा उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम जैसे प्रमुख आयोग है. उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अरविन्द राजभर को उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लिमिटेड का अध्यक्ष और राकेश गर्ग को उपाध्यक्ष नियुक्त किया. राजभर उस समय प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर के बेटे थे. ओमप्रकाष राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भाजपा का सहयोगी दल के था. बाद में वह भाजपा से अलग हो गये. तब अरविंद राजभर को अपने पद को छोडना पडा.

हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव को फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया गया.  गौ-सेवा आयोग में प्रोफेसर श्याम नन्दन को अध्यक्ष तथा जसवंत सिंह उर्फ अतुल सिंह को उपाध्यक्ष नामित किया गया. प्रोफेसर श्याम नन्दन आरएसएस के करीबी माने जाते है. उत्तर प्रदेश स्टेट एग्रो इण्डस्ट्रियल कारपोरेशन में जगदीश मिश्रा उर्फ बाल्टी बाबा को अध्यक्ष बनाया गया.  उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, प्रयागराज में डॉक्टर किशन वीर सिंह शाक्य तथा सेवानिवृत्त शिक्षा निदेशक डॉक्टर अवध नरेश शर्मा को सदस्य बनाया गया. उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉक्टर आर.एन. त्रिपाठी सदस्य नामित किये गये हैं.

उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद में सुदामा राजभर एवं अजय प्रताप सिंह को सदस्य बनाया गया. इसके अलावा उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड में महेश प्रजापति और ओम प्रकाश कटियार को सदस्य के तौर पर नामित किया गया. जयेन्द्र प्रताप सिंह राठौर को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अंशकालिक अध्यक्ष बनाया गया है. यह भाजपा के संगठनमंत्री भ है. राज्य सफाई कर्मचारी आयोग में सुरेन्द्र नाथ वाल्मीकि को अध्यक्ष तथा मुन्ना सिंह धानुक और लाल बाबू बाल्मीकि को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया. राज्य सरकार ने इसके अलावा हिन्दुस्तानी अकादमी, राज्य एकीकरण परिषद, प्रदेश राज्य युवा कल्याण परिषद, उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद, प्रदेश बीज विकास निगम, लाल बहादुर शास्त्री गन्ना किसान संस्थान, उत्तर प्रदेश होम्योपैथिक मेडिसिन बोर्ड, पूर्वांचल विकास बोर्ड, मत्स्य विकास निगम, उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद तथा राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था मंे भी अपने करीबी लोगो का जगह दी.

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भाजपा ने महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में विधायक बिमला बाथम को सीट पर बैठाया है. बिमला बाथम महिलाओं के किसी भी मुददे पर कोई ऐसा काम नहीं कर सकी है जिससे उनकी पहचान बन सके. बहुत सारे ऐसे आयोग भी है जिनमें किसी की नियुक्ति नहीं की गई है. क्योकि यह आयोग किसी भी काम के नहीं है. इनमें जब किसी नेता या अफसर को अध्यक्ष पद देना होता है तो उनकी नियुक्ति कर दी जाती है जिससे उनको उपकृत किया जा सके. कई आयोग ऐेसे है जिनके बजट का बडा हिस्सा अध्यक्ष के गाडी, बंगला और षानषौकत भर का होता है. उत्तर प्रदेष कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट है ऐसे में यहां अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारियों को विषेष सुविधायें दी जायेगी. इससे मजदूरों को रोजगार मिलेगा यह केवल दिखावे की बात है. उत्तर प्रदेश में आयोग सफेद हाथी की तरह है जो केवल दिखावे के लिये है काम के लिये नहीं

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