Download App

क्या क्या ख्वाब दिखाए

ख्वाब दिखाना तो महिलाओं का शगल होता है. मेरी पत्नी छंदा को भी सपने दिखाने का शौक है. मैं ने एक दिन छंदा से कहा, ‘‘तुम प्लीज मुझे सपने मत दिखाया करो. यह सब काम तो प्रेमिका का होता है.’’

वह गार्डन में मिलती है. मुसकराती है, जूड़े में लगे फूल को संवारती है, फिर धीरे से कहती है, ‘‘हमारी शादी हो जाएगी न हैंडसम, तब मैं डैड से कह कर दफ्तर में पीए बनवा दूंगी. कार दिलवा दूंगी फिर हम हनीमून के लिए बैंकाक, सिंगापुर जाएंगे. बड़ा मजा आएगा न.’’

प्रेमी ख्वाब के समुद्र में गोता लगाने लगता है. बाद में पता चलता है कि ऐसे ख्वाब के चक्कर उस ने कई पे्रमियों के साथ चलाए हैं. सब को पतंग समझ कर सपनों के आसमान पर जी भर कर उड़ाया है. अपनी जमीन छोड़ चुके प्रेमी हवा में उड़ते रहे और वे अब जमीन के रहे न आसमान के, त्रिशंकु बन कर अधर में लटकते रहे.

मैं ने कहा, ‘‘क्षमा करना देवी, मैं शादीशुदा हूं, घर में सपने दिखाने के लिए पत्नी है. वह रातदिन सपने दिखाती रहती है.’’

प्रेमिका ठहाका मार कर हंसते हुए बोली, ‘‘पत्नी व सपने? अच्छा मजाक कर लेते हो. सपने दिखाना प्रेमिका को ही शोभा देता है. पत्नी तो बेचारी चूल्हाचौका,  झाड़ूपोंछा, बर्तनों की सफाई में, बच्चों की चिल्लपों में उलझी रहती है. उस के पास न तो सोने की फुरसत होती है न सपने देखने का समय बचता है. एक पल पति से बात करने के लिए तरस जाती है बेचारी. घरगृहस्थी का चक्कर होता ही ऐसा है. पत्नी तो ब्लाटिंगपेपर बन कर रह जाती है जहां सारे सपने एकएक कर सोख लिए जाते हैं.’’

इस के बाद प्रेमिका की खिल- खिलाहट काफी देर तक मेरे कान में गूंजती रही. मैं मन ही मन एक फिल्मी गीत गुनगुनाने लगा, ‘‘रात ने क्याक्या ख्वाब दिखाए…’’

सात फेरों के समय पत्नी का हर फेरा किसी रंगीन ख्वाब से कम नहीं होता. पहले फेरे में छंदा ने ख्वाब का पहला फंदा डालते हुए कहा था, ‘‘डार्लिंग, मैं वचन देती हूं कि मेरी ओर से तुम्हें किसी प्रकार की शिकायत नहीं होगी.’’

मैं ने कहा था, ‘‘थैंक्स…’’

दूसरा फेरा लेते हुए वह बोली थी, ‘‘मैं तुम्हें वह सब सुख दूंगी जो हर पति चाहता है.’’

मैं ने प्रसन्न मुद्रा में कहा, ‘‘ख्वाब अच्छा है. बुनती जाओ.’’

वह तुरंत बोली, ‘‘हम अपने बच्चों को जापान पढ़ने भेजेंगे.’’

ख्वाबों के आकाश से वह तारे तोड़ने लगी. तब मेरा पति धर्म जाग गया.

मैं ने पूछा, ‘‘ठंडा पीओगी? सपने बुनने में तुम्हें राहत मिलेगी.’’

‘‘आप ऐसा कैसे बोल रहे हैं. मैं तो अपनी गृहस्थी की नींव मजबूत करने के लिए अपनी कोमल भावनाएं जाहिर कर रही थी. तुम्हारी पत्नी बन रही हूं. खाना बनाऊंगी भी और पेट भर तुम्हें खिलाऊंगी भी. तुम तो जानते ही होगे कि पत्नी अपने पति के दिल पर शासन करने के लिए उस के पेट से ही रास्ता बनाती है.’’

छंदा नारी रहस्य बताती जा रही थी.

‘‘मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जो पत्नी स्वादिष्ठ भोजन बनाना जानती है उस का पति हमेशा उस के आसपास मंडराता रहता है, फुदकता रहता है. उन के बीच सदैव प्रेम बना रहता है. प्यार कभी मुरझाता नहीं.’’

छंदा सप्तपदी की एकएक शपथ में ख्वाबों का उल्लेख करती रही, जिस में कम खर्च, सहनशीलता, आपसी सहयोग ‘…सुख मेरा ले ले मैं दुख तेरा ले लूं’ टाइप के फिल्मी गीत के मुखड़े शामिल थे.

ऐसी बातें कर जो सपने छंदा ने मुझे दिखाए तब मैं ने अपने भाग्य को सराहा था. अपने को दुनिया का सब से भाग्यशाली पति समझा था, जिसे ऐसी सुशील, दूरदर्शी पत्नी मिली थी.

गृहस्थी के विषय में मैं निश्ंिचत था. ख्वाबगाह में आराम से लेटेलेटे चैन की बांसुरी बजाता रहा. तब मुझे क्या पता था कि छंदा ने अभी तो सिर्फ मेरी उंगली पकड़ी है, वह धीरेधीरे पहुंचा पकड़ने की गुप्त तैयारी कर रही है.

छंदा ने कहा, ‘‘सुनो, मिसेज चोपड़ा ने बसंत विहार में 45 लाख का फ्लैट लिया है. क्यों न हम भी एक फ्लैट वहां बुक करा लें. आप का ख्वाब पूरा हो जाएगा.’’

मेरे कान खड़े हो गए. एक पल को मुझे लगा कि मेरा ख्वाब टूटने से कहीं मेरा ब्लडप्रेशर न बढ़ जाए. गंभीर हो कर मैं ने कहा, ‘‘प्रिय छंदा, मध्यवर्गीय परिवार के सपने भी छोटेछोटे होते हैं. बड़ेबड़े सपने देखना हमें शोभा नहीं देता. इन के टूटने पर हम डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं. ख्वाब तो शुद्ध घी की तरह होता है जिसे हर कोई पचा नहीं पाता. अपना यह छोटा सा मकान क्या बुरा है. सिर पर बस, छत होनी चाहिए. रातोंरात तुम्हारे लखपति बनने के ख्वाब ने ही हमें शेयरमार्केट के आकाश से पटक कर जमीन दिखला दी. तब तुम ने इस हादसे को सहजता से लिया था.’’

‘‘ऐसी करवटें तो शेयर बाजार का ऊंट बदलता रहता है. आज घाटे में हैं कल फिर लाभ में आ जाएंगे. सब दिन एक जैसे नहीं होते,’’ कहते हुए वह मुझे फिर से अच्छे दिन आने के ख्वाब दिखाने लगी.

मैं जानता हूं कि बीवी के ख्वाब के पीछे उस की महत्त्वाकांक्षी भावनाएं ही हैं. मैं ने विवाह के समय ली गई शपथ याद दिलाते हुए कहा, ‘‘तुम सभी सुख मुझे दोगी जो हर पति चाहता है.’’ मेरे द्विअर्थी संवाद सुन कर वह ‘धत’ कहते हुए शरमा गई.

मेरी स्थिति ‘खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है’ की तरह हो गई. मैं भी पत्नी के साथ रहतेरहते रातदिन ख्वाब देखने लगा हूं. हम शाम को साथसाथ ख्वाब बुनते हैं. ख्वाब देखना आज देश की पहली जरूरत है. ख्वाब ही तो हमें आगे बढ़ाते हैं. पहले जब मैं ख्वाब नहीं देखता था तब रक्तचाप, मधुमेह बीमारी का शिकार था. अब ख्वाब साकार करने के लिए नईनई योजनाएं बना रहे हैं. इसी अनुसार अर्थात चादर के अनुसार पैर पसार रहे हैं. आशा का संचार मन में हो रहा है. छंदा अब पत्नी के रूप में प्रेमिका नजर आने लगी है. नएनए ख्वाबों की जननी है वह, उसे मैं अब ख्वाबों की मलिका कहने लगा हूं.

बुलबुला

सिर्फ 3 महीने के अंदर राकेश की हंसीखुशी से भरी दुनिया जबरदस्त उथलपुथल का शिकार हो गई.

विश्व बाजार में आई आर्थिक मंदी से उस का तांबे का व्यापार भी प्रभावित हुआ था. अपनी पूंजी डूब जाने के साथसाथ सिर पर भारी कर्जा और हो गया था. कहीं से भी आगे कर्ज मिलने की उम्मीदें खत्म हो गई थीं. बाजार में पैसा था ही नहीं.

ऐसे कठिन समय में पत्नी सीमा भी उस का साथ छोड़ कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई. उसे दुख इस का भी था कि ऐसा करने की न तो सीमा ने उस से इजाजत ली और न उसे इस कदम को उठाने की जानकारी ही दी.

जिस औरत ने 18 साल पहले अग्नि को साक्षी मान कर हमेशा सुखदुख में उस का साथ निभाने की सौगंध खाई थी, उस से ऐसे रूखे व कठोर व्यवहार की कतई उम्मीद राकेश को नहीं थी.

जबरदस्त तनाव से जूझ रहे राकेश का मन अकेले घर में घुसने को राजी नहीं हुआ, तो वह सीमा को मनाने के लिए अपनी ससुराल चला आया.

वहां उस की बेटी शिखा और बेटा रोहित ही उसे देख कर खुश हुए. सीमा, उस के मातापिता और भैयाभाभी शुष्क और नाराजगी भरे अंदाज में उस से मिले.

राकेश खुद को अंदर से बड़ा थका और टूटा हुआ सा महसूस कर रहा था. इस वक्त वह नींद की गोली खा कर सोना चाहता था पर मजबूरन उसे अपनी पत्नी व ससुराल वालों के साथ बहस में उलझना पड़ा.

‘‘क्या हम ने अपनी बेटी तुम्हें मारपीट कर के दुखी रखने के लिए दी थी?’’ बड़े आक्रामक अंदाज में यह सवाल पूछ कर उस के ससुर सोमनाथजी ने वार्तालाप शुरू किया.

‘‘आजकल मैं बहुत टेंशन में जी रहा हूं, पापा. कल रात मेरा गुस्से में सीमा पर जो हाथ उठा, उस के लिए मैं माफी चाहता हूं,’’ बात को आगे न बढ़ाने के इरादे से राकेश ने शांत लहजे में फौरन क्षमा मांग ली.

‘‘जीजाजी, आप ने तो पिछले कई महीनों से दीदी का जीना हराम कर रखा है. न आप से बिजनेस संभलता है और न शराब. गलतियां आप की और गालियां सुनें दीदी. नहीं, हम दीदी को आप के साथ और अत्याचार सहने के लिए नहीं भेजेंगे,’’ उस के साले समीर ने गुस्से से भरी आवाज में ये फैसला राकेश को सुना दिया.

‘‘तुम आग में घी डाल कर मेरी घरगृहस्थी को तोड़ने की कोशिश मत करो, समीर,’’ राकेश ने अपने साले को डांट दिया.

‘‘अभी घर न लौटने का फैसला मेरा है, राकेश,’’ इन शब्दों को मुंह से निकाल कर सीमा ने राकेश को चौंका दिया.

‘‘परेशानियों से भरे इस समय में क्या तुम मेरा साथ छोड़ रही हो,’’ राकेश एकदम से भावुक हो उठा,  ‘‘मुझे बच्चों से अगर दूर रहना पड़ा तो मैं पागल हो जाऊंगा, सीमा.’’

‘‘और अगर मैं तुम्हारे साथ रही तो मेरे दिमाग की नस फट जाएगी,’’ सीमा ने पलट कर क्रोधित लहजे में जवाब दिया.

‘‘बच्चों जैसी बातें मत करो. इस वक्त तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए या मेरी परेशानियां और बढ़ानी चाहिए?’’

‘‘राकेश, तुम एक बात अच्छी तरह से समझ लो,’’ सोमनाथजी बीच में बोल पड़े, ‘‘बिजनेस में हुए घाटे को पूरा करने के लिए सीमा अपने जेवर नहीं बेचेगी. उस के नाम पर जो फ्लैट है, उस को बेचने की बात भी तुम भूल जाओ.’’

‘‘इन को बेचे बिना मेरी समस्याओं का अंत नहीं होगा, पापा. इस महत्त्वपूर्ण बात को आप सब क्यों नहीं समझ रहे हैं?’’ राकेश गुस्सा हो उठा.

‘‘तुम्हारे बिजनेस में पहले ही लाखों डूब चुके हैं. ये जेवर ही भविष्य में शिखा की शादी और रोहित की पढ़ाई के काम आएंगे. कल को सिर पर सुरक्षित छत उस फ्लैट से ही मिलेगी तुम सब को. तुम जिस मकान में रह रहे हो, उसे क्यों नहीं बेच देते हो,’’ राकेश की सास सुमन ने तीखे लहजे में सवाल पूछा.

‘‘अपने इस सवाल का जवाब आप को मालूम है, मम्मी. इस मकान में मेरे दोनों छोटे भाइयों का भी हिस्सा है. ये मकान मेरे पिता ने बनाया था.’’

‘‘लेकिन इस की देखभाल पर हमेशा सिर्फ तुम ने अकेले ही खर्च किया है. तुम्हारे दोनों भाइयों को रहने के लिए इस मकान की जरूरत भी नहीं. मेरी समझ से तुम्हें इस मकान को बेचने का पूरा अधिकार है.’’

‘‘भाइयों को हिस्सा दे कर जो मुझे मिलेगा, उस से मेरा कर्ज नहीं…’’

‘‘तब तुम भाइयों को उन का हिस्सा अभी मत दो,’’ सोमनाथजी ने उसे टोकते हुए सलाह दी.

‘‘आप समस्या का समाधान ढूंढ़ने के बजाय उसे और ज्यादा न उलझाइए, पापा.’’

‘‘हम ने अपनी बात कह दी है. न जेवर बिकेंगे, न फ्लैट.’’

‘‘फिर मेरा कर्ज कैसे उतरेगा, सीमा?’’ परेशान राकेश की आंखों में अपनी पत्नी से ये सवाल पूछते हुए डर के भाव साफ पढ़े जा सकते थे.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ सीमा ने फर्श को ताकते हुए रूखे से स्वर में जवाब दे दिया.

‘‘ऐसा मत कहो, प्लीज. मेरी कमाई से ही तो जेवर और फ्लैट खरीदा गया है. आज बुरे वक्त में उन्हें बेचने की जरूरत आ पड़ी है, तो…’’

‘‘आप भूल रहे हैं कि मैं भी नौकरी करती हूं. आज हर महीने मुझे भी 20 हजार की पगार मिलती है. जो भी हमारे पास है उस को हासिल करने में मेरा भी योगदान रहा है और वह सब मैं दोनों बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के काम में ही लाऊंगी.’’

‘‘अगर मैं कर्ज नहीं चुका पाया तो मुझे जेल जाना पड़ेगा. इतना भारी अपमान मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा, सीमा.’’

‘‘तब आप उस अपमान से बचने का रास्ता ढूंढ़ो. आप की समस्या को हल करने की काबिलीयत और समझ मुझ में नहीं है. न ही ऐसा करना मेरी जिम्मेदारी है,’’ बेहद गंभीर नजर आ रही सीमा अपना फैसला सुना कर झटके से उठी और मकान के अंदर चली गई.

राकेश अपने दोनों बच्चों से 5-10 मिनट बातें कर के लुटापिटा सा अपने ससुर के घर से बाहर निकल आया.

बाहर से खाना खाए बिना वह घर पहुंच गया. उस का मन बहुत दुखी और परेशान था. आंतरिक तनाव को कम करने के लिए उस ने शराब पीनी शुरू कर दी.

इस वक्त उसे अपना आर्थिक संकट नहीं बल्कि सीमा की बेरुखी और परायापन बहुत ज्यादा कष्ट पहुंचा रहे थे.

मैं ने कौन सा सुख सीमा को नहीं दिया? उस की खुशी की खातिर मैं ने अपने घर वालों से संबंध तोड़ दिए थे. आज इसी सीमा ने मुझे डूबने को अकेला छोड़ दिया. जेवरों और फ्लैट की खातिर उस ने पति का साथ न देने का फैसला कितनी आसानी से कर लिया. हमारा रिश्ता कितना कमजोर निकला. मुझे नफरत है उस से. ऐसे विचारों से उलझा राकेश एक के बाद एक शराब के गिलास खाली किए जा रहा था.

अचानक मोबाइल की घंटी बजी तो उसे उठा कर नंबर देखने लगा. गांव से उस की मां आरती का फोन था जो गांव में अपने सब से छोटे बेटे के पास रहती थीं.

नशे से थरथराती आवाज में राकेश ने अपनी मां से बातें कीं. मां की आवाज सुन कर राकेश अचानक ही बेहद भावुक हो उठा था.

‘‘तुम सब का क्या हालचाल है?’’ मां ने यह सवाल पूछ कर अपने बड़े बेटे के दिल पर लगे जख्म को और हरा कर दिया.

‘‘तेरा यह नालायक बेटा बहुत दुखी और अकेला महसूस कर रहा है, मां. आज तो मुझे अपनी जिंदगी ही सब से बड़ा बोझ लग रही है,’’ अचानक ही राकेश की आंखों में आंसू छलक आए तो वह खुद ही हैरान हो उठा था.

‘‘ऐसी गलत बात मुंह से मत निकाल, बेटा. बहू कहां है?’’

‘‘मर गई तुम्हारी बहू, मां.’’

‘‘चुप कर. मेरी बात करा उस से.’’

‘‘वह मुझे अकेला छोड़ कर अपने बाप के घर चली गई है, मां. दोनों बच्चे भी साथ ले गई…यह अकेला घर मुझे काट खाने को आ रहा है, मां.’’

‘‘अपने घर क्यों गई है वह? तुम में झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘मां, वह अपने स्वार्थ के खातिर मुझे छोड़ गई. मेरा बिजनेस डूब रहा है, तो वह अब क्यों रहेगी मेरे पास? पहले जैसे मेरी गरीब मां और छोटे भाई उसे बोझ लगते थे, वैसे ही अब मैं उसे बोझ लगने लगा हूं. मां…वह मुझे अकेला छोड़ कर भाग गई है.’’

‘‘तू परेशान मत हो, मैं कल आ कर उसे समझाऊंगी तो फौरन वापस घर लौट आएगी.’’

‘‘मैं अब उस की शक्ल भी नहीं देखना चाहता हूं, मां. उसे अपने पति से नहीं, सिर्फ दौलत से प्यार है. उस ने मेरी सुखशांति को नजरअंदाज कर जेवर और फ्लैट चुना. समाज में तड़कभड़क वाली जिंदगी जीने की शौकीन उस औरत को मैं इस घर में कदम नहीं रखने दूंगा.’’

‘‘अपना गुस्सा थूक दे, राकेश. अपने बच्चों की खुशियों की खातिर तुम दोनों को साथ रहना ही होगा.’’

‘‘मां, तू उस औरत की तरफदारी क्यों कर रही है जिसे तू फटी आंख कभी नहीं भाई? जिस ने तेरा मेरे घर में घुसना बंद करा दिया, तू उस की चिंता क्यों कर रही है?’’

‘‘बच्चे नादानी करें तो क्या बड़े भी नासमझी दिखा कर उन का अहित सोचने लगें, बेटा?’’

‘‘मां, मुझे अपनी अतीत की गलतियां सोचसोच कर इस वक्त रोना आ रहा है. मैं सीमा के स्वार्थी स्वभाव को कभी पहचान नहीं पाया. उस के कहे में आ कर मुझे अपनी मां और छोटे भाइयों से दूर नहीं होना चाहिए था.’’

‘‘तू कहां हम से दूर है. तेरे दोनों भाई तेरी बड़ी इज्जत करते हैं. बहू से छिपा कर तू ने कई बार उन दोनों की रुपएपैसों से सहायता नहीं की है क्या?’’

‘‘आज रुपयापैसा भी नहीं रहा है मेरे पास, मां. सारा बिजनेस चौपट हो गया है. वह स्वार्थी औरत मेरे ही रुपयों से खरीदे जेवर और फ्लैट बेचने को तैयार नहीं है. उस की नजर तो इस मकान पर लगी है, पर मैं ऐसा स्वार्थी नहीं जो अपने छोटे भाइयों का हक मार कर यह मकान हड़प लूं…मुझे मर जाना मंजूर है, पर ऐसा गलत काम मैं कभी नहीं करूंगा, मां.’’

‘‘तू ने मरने की बात अब मुंह से निकाली तो तू मेरा मरा मुंह देखेगा.’’

‘‘ऐसा मत कह, मां.’’

‘‘तो तू भी गलत मत बोल.’’

‘‘नहीं बोलूंगा, मां.’’

‘‘देख बेटा, अब और शराब मत पीना. तुझे मेरी सौगंध है.’’

‘‘तुझे वचन देता हूं मां, अब और शराब नहीं पीऊंगा.’’

‘‘फ्रिज में कुछ रखा हो तो खा कर सो जा.’’

‘‘अच्छा, मां.’’

‘‘बेकार की बातें बिलकुल मत सोच. मैं कल सुबह तुम से मिलने आऊंगी.’’

उसे अपनी मां को दिया वचन याद रहा और उस ने शराब नहीं पी. नशे में होने के बावजूद उसे जल्दी से नींद नहीं आई थी. सीमा से जुड़ी बहुत सी बीती घटनाओं को याद करते हुए वह कभी गुस्से तो कभी दुख और अफसोस के भावों से भर जाता. अपने दोनों बच्चे उसे बहुत याद आ रहे थे. अपनी जिंदगी को समाप्त कर लेने का भाव कई बार उस के मन में उठा, लेकिन बच्चों के भविष्य के प्रति अपने उत्तरदायित्व को महसूस करते हुए उस ने आत्महत्या के विचार को अपने मन में मजबूत जड़ें नहीं जमाने दी थीं.

अगले दिन सुबह अपनी मां और दोनों छोटे भाइयों के आने पर ही राकेश की नींद टूटी थी. उस की चिंता ने इन तीनों के चेहरों पर तनाव और घबराहट के भाव पैदा किए हुए थे.

मां मकान की रजिस्ट्री साथ लाई थीं. अपने दोनों छोटे बेटों उमेश और नरेश की रजामंदी से उस ने मकान बेचने के लिए वह रजिस्ट्री राकेश को सौंप दी.

‘‘बेटा, मकान तो फिर बन जाते हैं, पर मैं ने अपना बेटा खो दिया तो उसे कहां से लाऊंगी? इस शहर में तू कुछ भी ले कर नहीं आया था. फिर तू ने अपनी लगन और मेहनत से लाखों कमाए. आज बाजार में मंदी आई है तो ज्यादा दुखी मत हो. यह खराब वक्त भी जरूर बीत जाएगा. मकान बेच कर तू अपने सिर पर बना कर्जे का बोझ फौरन कम कर,’’ अपने बड़े बेटे का प्यार से माथा चूमते हुए उन की पलकें नम हो उठी थीं.

अपने दोनों छोटे भाइयों को गले लगाने के बाद राकेश एक नए उत्साह, हौसले और आत्मविश्वास के साथ आफिस जाने को घर से निकला.

‘तू इस शहर में कुछ भी तो ले कर नहीं आया था,’ अपनी मां के मुंह से निकले इस वाक्य को बारबार मन में दोहरा कर राकेश व्यापार में हुए भारी घाटे के सदमे से खुद को उबरता देख हलका महसूस कर रहा था.

उस दिन वह आफिस में बेहद व्यस्त रहा. उसे नुकसान पहुंचाने वाले कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने पड़े, पर उन्हें लेते हुए उस का न कलेजा कांपा, न मन को पीड़ा हुई.

उस दिन रात 8 बजे के करीब जब राकेश अपनी ससुराल पहुंचा तो कई हफ्तों से उस के मन पर बना चिंता और तनाव का कोहरा बहुत हद तक छंट चुका था.

राकेश के होंठों पर मुसकान और हाथों में मिठाई का डब्बा देख सीमा और उस के घर वाले असमंजस का शिकार हो गए. अपने बच्चों के साथ हंसताबोलता राकेश उन के लिए पहेली बन गया था. हैरानी के मारे वे अपने मन में उस के प्रति बसे नाराजगी और शिकायत के भावों को भुला ही बैठे.

‘‘तुम्हारे जेवर और फ्लैट अब सुरक्षित हैं, सीमा. हमारे बीच बनी झगड़े की जड़ नष्ट हो गई है. इसलिए सारा सामान समेट कर घर लौटने की तैयारी करो,’’ अपनी पत्नी को ऐसा आदेश देते हुए राकेश रहस्यमय अंदाज में मुसकरा रहा था.

‘‘मार्किट में तो कोई बदलाव आया नहीं है. फिर आप ने कैसे सारी समस्या हल की है?’’ सोमनाथजी ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘मैं ने जो किया है उसे जान कर आप सब क्या करेंगे?’’

‘‘हम यह जानकारी इसलिए चाहते हैं कि कल को तुम सीमा के साथ जेवरों व फ्लैट को ले कर फिर से झगड़ा और मारपीट न शुरू कर दो.’’

‘‘तब सुनिए, मैं ने तांबा घाटे में ही बेचने का फैसला करने के साथसाथ मकान को एक बैंक के पास गिरवी रख दिया है.’’

‘‘तुम्हारी मां और दोनों भाई मकान को गिरवी रख देने के लिए राजी हो गए हैं?’’

‘‘बिलकुल हो गए हैं. आखिर उन का मुझ से खून का रिश्ता है. मैं जेल जाऊं या आत्महत्या कर लूं, ऐसी कल्पना ही उन के दिलों को बुरी तरह से कंपा गई थी. आप सब लोग उन की भावनाओं को नहीं समझ सकेंगे,’’ राकेश के स्वर में मौजूद व्यंग्य के भावों से उस के सासससुर, साले व पत्नी तिलमिला उठे.

सीमा ने चिढ़ कर सवाल पूछा, ‘‘अपना बिजनेस चौपट कर के अब आगे क्या करने का इरादा है?’’

‘‘माई डियर, अपने कैरियर की शुरुआत मैं ने कमीशन एजेंट के काम से की थी और अब फिर से वही बन जाऊंगा. बहुत लंबाचौड़ा व्यापार फैलाया था, पर वह सारी सफलता पानी का बुलबुला साबित हुई.

‘‘वह बुलबुला बड़ा रंगीन था और अन्य लाखोंकरोड़ों लोगों की तरह मैं किसी पागल की तरह उस के पीछे दौड़ा. जब अपनी नियति के अनुरूप बुलबुला अचानक फूटा तो मैं ने अपने होशोहवास घबरा कर खो दिए थे.

‘‘लेकिन अब मेरी समझ में आ गया है कि बुलबुले तो हमेशा अचानक ही फूटते हैं. लालच के कारण जैसा बेवकूफ मैं इस बार बना हूं वैसा फिर कभी नहीं बनूंगा,’’ राकेश ने नाटकीय अंदाज में अपने कान पकड़े और फिर ठहाका मार कर हंस पड़ा.

‘‘यों हंस कर अपना सबकुछ बरबाद होने की खुशी जाहिर कर रहे हो क्या? समाज में अब कितनी बेइज्जती के साथ जीना पड़ेगा, जरा इस पर भी कुछ सोचविचार करो,’’ सीमा का चेहरा एकाएक ही गुस्से से लाल हो उठा.

राकेश ने किसी दार्शनिक के अंदाज में जवाब दिया, ‘‘सीमा, बाजार की भारी उथलपुथल ने लाखों लोगों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है. ऐसे संकट का सामना इनसान अलगअलग ढंग से करता है. जो लोग समाज की नजरों में चमकदमक की जिंदगी जीना महत्त्वपूर्ण मानते हैं वे ऐसे कठिन समय में टूट कर बिखर जाते हैं. उन्हें हार्टअटैक पड़ते हैं, वे आत्महत्या करते हैं.

‘‘दूसरी तरह के लोग बदली परिस्थितियों का सामना हौसले और आत्मविश्वास के साथ करते हैं. वे अपनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के महत्त्व को समझते हैं. अपनों का सहारा और प्रेम उन की ताकत होता है. देखो, मेरी मां और भाइयों ने मेरा साथ दे कर मुझे संकट से निकाल ही लिया है न. जीवन की खुशियां और सुखशांति ऐसे रिश्तों से बनती हैं न कि धनदौलत के अंबार से…पर यह बात शायद तुम नहीं समझोगी.’’

सीमा से कोई जवाब देते नहीं बना. अचानक गहरी उदासी ने उसे घेर लिया और वह गरदन झुकाए लौटने की तैयारी करने कमरे में चली गई.

संघर्ष से सब को गुजरना पड़ता है : अक्षय कुमार

जिस रफ्तार से खिलाडि़यों के खिलाड़ी अक्षय कुमार सफलता की सीढि़यां चढ़ रहे हैं, उन्हें हिट मशीन भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी.

90 के दशक में हिट और ऐक्शन फिल्म देने वाले अभिनेता अक्षय कुमार आज ऐसे मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि हर निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना चाहता है. कभी ऐसा वक्त था जब अक्षय कुमार को काम के लिए प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाने पड़ते थे. ‘खिलाड़ी शृंखला’ ने उन के जीवन को एक अलग दिशा दी और आज वे हिंदी सिनेमाजगत में ऐक्शन हीरो के नाम से मशहूर हैं. उन्होंने केवल एक्शन ही नहीं, हर तरह की फिल्मों जैसे रोमकौम, कौमेडी, थ्रिलर आदि में काम किया है.

मार्शल आर्ट के ऐक्सपर्ट अक्षय कुमार 29 साल से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं. वे अपनी अनुशासित दिनचर्या के लिए भी जाने जाते हैं.

ये भी पढ़ेयामी गौतम ने जुम्बा इंस्ट्रक्टर जीना ग्रांट से क्यों मिलाया हाथ

जीवन में संघर्ष के बारे में अक्षय कहते हैं, ‘‘संघर्ष से सब को गुजरना पड़ता है और मेरे लिए भी है. रोज सुबह उठ कर अच्छा काम करने की चाहत और न मिलने पर हताश होना, ये सारी बातें संघर्ष की ही पहचान हैं.’’

ये भी पढ़े- नो फादर्स इन कश्मीरः प्यार, धोखा, उम्मीद और क्षमा की मार्मिक कहानी

आप स्टंट हमेशा खुद करते हैं, इसे देख कर आज की युवा पीढ़ी भी कोशिश करती है, उन के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे, इस पर वे अपनी राय रखते हुए कहते हैं, ‘‘कोई भी स्टंट ऐसे ही नहीं होता, इस के लिए एक बड़ी टीम होती है जो हर बात की निगरानी करती है. ऐसे में किसी को भी स्टंट खुद करने की जरूरत नहीं है. बिना सावधानी के करने पर ये जानलेवा भी हो सकते हैं.

‘‘मैं ने बचपन से स्टंट किए हैं और मुझे कोई खतरा नहीं लगता, लेकिन हमेशा मैं यह कहता आया हूं कि घर पर कभी भी खुद कोशिश न करें,क्योंकि ये संभल कर, सावधानी के साथ किए जाते हैं. मेरे मातापिता ने हमेशा मेरे हर काम पर सहयोग दिया है. मैं पहले एक स्टंटमैन हूं, बाद में अभिनेता बना. फिल्म ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ के स्टंट के बाद ही मुझे काम मिला था. वरना यहां कोई मेरा गौडफादर नहीं था जिस की वजह से मुझे काम मिला हो. मैं स्टंटमैन बन कर ही आज यहां पर आया हूं.’’

आप की और ट्विंकल की बौंडिंग सालों से अच्छी चल रही है, जबकि आज रिश्तों के माने बदल चुके हैं. आप दोनों की इस गहरी बौंडिंग के पीछे का राज क्या है और अपने टीनेज बच्चों की देखभाल कैसे करते हैं?

ये भी पढ़े-मुझे रियल सिनेमा बनाने में मजा आता है : रौबी ग्रेवाल

इस सवाल के जवाब में अक्षय बताते हैं, ‘‘हम एकदूसरे के प्रोफैशन में कभी दखलंदाजी नहीं करते, एकदूसरे का सम्मान करते हैं, स्पेस देते हैं आदि. इस से हमारा रिश्ता गहरा रहता है. आज के बच्चे काफी होशियार हैं. वे गलत व सही को समझ सकते हैं. मेरे पिता ने भी मुझे वह आजादी दी थी और किसी भी गलत बात को छिप कर करने से मना किया था.’’

नेताओं के बिगड़े बोल कह दी गंदी बात

“क्या वह राहुल गांधी को इस बात का सुबूत दे पाएंगी कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी उन के पिता हैं?”

यह सवाल अकसर विवादित बयान देने भाजपा नेता विनय कटियार ने संप्रग अध्यक्ष से एक रैली में की.

इस से पहले कटियार ने प्रियंका गांधी पर भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.

“नरेंद्र मोदी ने पैंट और पैजामा पहनना भी नहीं सीखा था तब पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने देश की फौज, नौसेना और वायुसेना बनाई थी…”

यह कहना है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ का.

छींटाकशी का दौर शुरू

नेताओं के बिगड़े बोलों और बेतुके बयानों के लगातार मीडिया में सुर्खियां बनने पर लोगों को एकबारगी फिर यह एहसास हो गया कि चुनावी मौसम आ गया है और इस मौसम में गालियां, एकदूसरे को नीचा दिखाना और छींटाकशी का दौर शुरू होना नेताओं की फितरत है.

वैसे, हमारे देश के कुछ नेता चुनावी मौसम में जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और उन की जबान करेले की तरह कड़वी हो जाती है.

चुनावी समय में कोई धर्म के नाम पर वोट मांगता है तो कोई जाति के नाम पर. इस दौरान सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का माहौल भी खूब बनाया जाता है.

ये भी पढ़ें : चुनावी जंग में क्यों भाजपा से पिछड़ रही कांग्रेस?

सिद्धू भी पीछे नहीं

क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू ने पिछले दिनों चुनावी रैली में बोलते हुए कहा,”अल्पसंख्यको, समय आ गया है कि आप वोट की ताकत दिखाओ और उन्हें हराओ जो आप का दुश्मन है. इस जगह आप की आबादी ज्यादा है, इसलिए यह आप के हाथ में है कि किसे बहुमत से जीता सकते हो…”

यह क्या बोल गए आजम खान सपा नेता आजम खान के कथित बोल ने तो मर्यादा की सारी हदें ही लांघ दीं.

आजम खान के ‘अंडरवियर’ वाले विवादित बयान के बाद देश में खासा बवाल मच गया.

हालांकि इस शर्मनाक बयान के बाद निर्वाचन आयोग ने भी कुछ समय के लिए उन के चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी, तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी आजम खान को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है, बावजूद खान को अपने बयान पर कोई खेद नहीं है.

घटनाक्रम पर आजम खान के बेटे ने अपने पिता का बचाव करते हुए मीडिया से बातचीत में कहा,”आजम खान पर इसलिए काररवाई की गई क्योंकि वह एक मुसलमान हैं.”

उधर आजम खान ने कहा,”मेरे बयान को तोङमरोङ कर पेश किया गया. मैं ने अपने बयान में किसी का नाम नहीं लिया.”

देर से जागा आयोग

आजम खान के अलावा चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और बसपा सुप्रीमो व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के विवादित बयानों को ले कर भी उन पर कुछ समय के लिए उन के चुनाव प्रचार करने पर प्रतिबंध की घोषणा की.मगर आश्चर्य तो यह है कि इन में से किसी ने भी अपने विवादित बोलों पर न तो खेद जताया और न ही माफी मांगी.

डर्टी पौलिटिक्स पर शीर्ष अदालत ने भी संज्ञान लिया और आयोग की काररवाई को उचित ठहराया.

जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा,”हम कह सकते हैं कि चुनाव आयोग ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया. उस ने आचार संहिता तोड़ने वालों पर काररवाई की. लगता है आयोग हमारे आदेश के बाद जाग गया है…”

ये भी पढ़ें : राफेल पर फ्रेंच मीडिया ने बढ़ायी मोदी की मुश्किल

ये भी कम नहीं

योगी से मुख्यमंत्री बने आदित्यनाथ भी कङवी बोलों के लिए बदनाम रहे हैं. हिन्दुत्व पर तीखी बयानबाजी और बेतुके बोलों का एक नजारा कुछ दिनों पहले तब दिखा जब योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को ही दलित बता कर खासा विवाद खङा कर दिया था, जिसे न तो उन्होंने कभी देखा होगा न जाना होगा.

अच्छा होता अगर योगी आदित्यनाथ आधुनिकता की बात करते, रोजगार, स्वास्थ्य व शिक्षा की बात करते.

भाजपा नेता पीएस श्रीधरन पिल्लई की एक रैली में एक विवादित बयान से तो सनसनी फैल गई. पिल्लई ने कहा, “मुसलिमों की पहचान उन के कपड़े खोलने से हो जाएगी.”

हालांकि सोशल मीडिया पर यह वीडियो मौजूद होने के बावजूद पिल्लई ने इस प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार किया है.

उधर केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे भी कहां पीछे रहने वाले थे. बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को उन्होंने राजनीति छोङ घूंघट में रहने की नसीहत दे डाली.

इस बयान की भी कङी निंदा की गई और उन्हें पुरूषवादी सोच का कहा गया, बावजूद अश्विनी चौबे को भी अपने इस बोल पर अफसोस नहीं है.

सोशल मीडिया बन रहा हथियार

सोशल मीडिया में राहुल गांधी को ले कर जितना मजाक उड़ाया जाता है वह भी तथाकथित विपक्ष के नेताओं की सोचीसमझी साजिश का हिस्सा हो सकता है.  कुछ कांग्रेसी नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी पर भी व्यक्तिगत हमले किए. मोदी की पत्नी यशोदाबेन तक को चुनावी रैलियों में टारगेट किया गया.

बौलीवुड हीरोइन से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लङ रहीं उर्मिला मातोंडकर के राजनीति में प्रवेश के बाद से उन्हें निशाना बना कर लैंगिक हमले किए गए. उन पर जानलेवा हमला भी किया गया जिस के बाद उन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग तक कर डाली.

ये भी पढ़ें : जयाप्रदा के साथ नहीं हैं भाजपाई

बयान के पीछे मंशा क्या

दरअसल, इस तरह के बयान अकसर रणनीति का हिस्सा होते हैं ताकि मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके. इस को हवा देते हैं आज का सोशल मीडिया, जिस पर तथ्यों को और भी तोङमरोङ कर पेश किया जाता है.

चुनावी रणनीतिकार मानते हैं, “दो विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा नेताओं के कङवे बोल चुनाव प्रचार का ही एक हथकंडा हो सकता है जिस में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हामी होती है. जाहिर है, इस से एक माहौल बनता है और वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है.”

नैतिक पतन

मगर सवाल यह भी है कि क्या भारतीय राजनीति इतनी दूषित हो गई  है कि वोट की खातिर या फिर वोटों के ध्रुवीकरण के लिए नैतिक मूल्यों को भी ताक पर रख दिया जाए?

देश की राजनीति अगर इतनी गंदी हो गई तो लोकतंत्र की बात करने वाले सफेदपोश नेताओं को व्यक्तिगत कमैंट्स करने की आजादी किस ने दे दी?

इस के लिए जिम्मेदार कौन हो सकता है- क्या नेता, जो बेशर्मी की हद पार कर जाते हैं या फिर जनता, जो अब तक ऐसे नेताओं को वोट की चोट से राजनीति से ही बाहर नहीं कर पा रही?

क्या यह डर्टी पौलिटिक्स नहीं है?

हर चीज निराली है इन ऊंचे मकानों में

क़िस्मत की लक़ीरों ने क्या क्या न सितम ढाया
शीशे का जिगर लेकर, पत्थर का सनम पाया
उसको गुरूर खुद पर होना तो लाजिमी है
सोने का महल उसने चांदी का बदन पाया
हर चीज़ निराली है इन ऊंचे मक़ानों में
काग़ज़ के फूल देखे, कांटों का चमन पाया
दुनिया-ए-अमीरा में मुफ़लिस की लाश देखो
दो गज़ ज़मी तो छोड़ो, दो गज़ न कफ़न पाया

शब्दार्थ :
दुनिया-ए-अमीरा  :  अमीरों की दुनिया
मुफ़लिस : ग़रीब

डिनर में बनाएं ये टेस्टी सब्जी

बेसन शिमला मिर्च बनाने की विधि

शिमला मिर्च की सब्जी तरह-तरह से तरीकों से बनाई जाती है. और ये सब्जी बहुत टेस्टी होती है. सबसे खास बात ये है कि शिमला मिर्च की सब्जी बनाने में भी बेहद आसान है. तो आपको झटपट बेसन शिमला मिर्च सब्जी की रेसिपी बताते हैं. आप इस लजिज रेसिपी की विधि जरूर ट्राई करें.

सामग्री :

रिफाइंड तेल ( 01 चम्मच)

हल्दी पाउडर ( 01 छोटा चम्मच)

जीरा पाउडर ( 1/2 छोटा चम्मच)

लाल मिर्च पाउडर ( 1/4 छोटा चम्मच)

काली मिर्च पाउडर ( 01 चुटकी)

नमक ( स्वादानुसार)

शिमला मिर्च( 250 ग्राम)

बेसन ( 02 बड़े चम्मच)

प्याज (1 नग)

दही ( 03 बड़े चम्मच)

वेजिटेबल नमकीन पैन केक बनाने का सबसे आसान विधि

बनाने की विधि :

सबसे पहले शिमला मिर्च को धोकर उसके डंठल निकाल दें.

इसके बाद उसे छोटे-छोटे कयूब्स मे काट लें.

प्याज को छीलकर लम्बाई में काट लें.

बेसन और दही को आपस में मिलाकर अच्छी तरह से फेंट लें.

बेसन को फेंटते समय इस बात का ध्यान रहे कि उसमें कोई गांठ न रहे.

अब गैस पर नॉन स्टिक पैन गर्म करें और बर्तन गर्म हो जाने पर उसमें रिफाइंड तेल डालें.

तेल गर्म होने पर उसमें शिमला मिर्च डालें और चलाते हुए भूनें.

जब शिमला मिर्च थोडा भुन जाए, पैन में प्याज डाल दें और इसके बाद पैन में नमक और हल्दी पाउडर उालें और चलाते हुए अच्छी तरह से भूनें.

इसके बाद दही और बेसन का घोल पैन में डालें कर चलाने के बाद ढ़क कर 3-4 मिनट तक पकाएं.

बीच-बीच में सब्जी को चलाते भी रहें, नहीं तो बेसन तली में चिपकने लगेगा.

जब बेसन गाढ़ा हो जाए, तो पैन में लाल मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर और काली मिर्च पाउडर डालें और चलाते हुए 2 मिनट तक पकाएं और उसके बाद गैस बंद कर दें.

लीजिए आपकी बेसन शिमला मिर्च बनाने की रेसिपी पूरी हुई.

घर पर बनायें स्वादिष्ट ‘चिकन काठी रोल’

edited by saloni

पिंपल से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं ये 4 घरेलू टिप्स

पिंपल्स से आपके चेहरे की खूबसूरती बेजान नजर आती हैं. ऐसे तो कई सारी क्रीम बाजार में उपलब्ध है, जो पिंपल्स मिटाने का दावा करते हैं. पर इनकी वजह से त्वचा पर अक्सर रिएक्शन हो जाता है. ऐसे में कोशिश करनी चाहिए कि हम जो भी क्रिम इस्तेमाल करें वह पूरी तरह सुरक्षित हो.

आज आपको कुछ ऐसे घरेलू नुस्खें बताने जा रहे हैं जो कुछ समय में आपके पिंपल्स को मिटाएंगे. और कुछ दिन तक इनको लगातार करते रहने से न केवल आपके पिंपल्स कम हो जाएंगे बल्कि उनके दाग भी हल्के होंगे. तो आइए जानते हैं.

pimples

ये भी पढ़ेगरमी के मौसम में ऐसे रखें अपने पैरों का ख्याल

  1. हल्दी

एक चम्मच हल्दी पाउडर को दूध और गुलाबजल के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें और सीधे पिंपल पर लगाएं. इस उपाय को लगातार कुछ दिनों तक करने से पिंपल्स की समस्या खत्म हो जाती है.

2. टमाटर

एक छोटी कटोरी में दो चम्मच टमाटर का रस लें. इसमें एक चम्मच शहद व आधा चम्मच बेकिंग सोडा डालकर एक पेस्ट बना लें और पिंपल्स पर लगाएं. 10 मिनट तक के बाद ठंडे दूध से चेहरे की मसाज करें और साफ पानी से चेहरा धो लें.

pimples

3. नींबू

नींबू को काटकर उसका रस एक छोटी कटोरी में नि‍चोड़ लें. इसमें थोड़ा नमक व शहद मिलाकर मिश्रण बना लें और प्रभावित जगह पर लगाएं. 15 मिनट के लिए सूखने दें और फिर त्वचा को गुनगुने पानी से साफ कर लें.

ये भी पढ़ेआपकी खूबसूरती को बढ़ाएंगे ये 5 ग्रीन टी प्रौडक्ट्स

4. शहद

पिंपल्स की समस्या से छुटकारा पाने के लिए शहद भी बहुत मददगार है. शहद को पिंपल्स पर लगा कर छोड़ दें. कुछ देर के बाद ठंडे दूध से चेहरे की मसाज करते हुए इसे हटा लें. 15 मिनट के इस उपाय को लगातार करने से पिंपल्स खत्म हो जाएंगे.

posted by- saloni

भैंस और बहस की मारामारी

मैं आज तक नहीं समझ पाया हूं कि ‘अक्ल बड़ी या…’ में बाद का सही शब्द क्या है. भैंस या बहस? और अक्ल से बड़ी कौन है, बहस या भैंस? अनिर्णीत विवाद है यह. लेकिन इस का हल मेरे पास है. इतना तो साफ है कि इस विवाद में अक्ल कौमन है, लेकिन समस्या भैंस और बहस को ले कर होती है. भैंस वाले डंडा ले कर अपनी हांकते हैं तो बहस वाले शब्दबाण चलाते हैं. उदाहरण पर उदाहरण दागे जाते हैं. अक्ल का पक्ष लेने वालों की दलील है कि सही शब्द ‘बहस’ ही है जो बहतेबहते ‘भैंस’ हो गया है. इसके पहले कि मैं अपना हल बताऊं, विद्वानों को सम्मान देते हुए पहले उन का पक्ष देखें.

तो चलिए पहले लेते हैं बहस. एक बहस वह जो टीवी पर आती है. बड़ी मनोरंजक होती है. बहसिये केकड़ेजैसे एकदूसरे पर चढ़े आते हैं. किसी को बोलने नहीं देते. यदि सचमुच आमनेसामने हों तो हाथापाई हो जाए. इस से आगे भी जा सकते हैं. कुछ कह नहीं सकते. बहस इसीलिए की जाती है कि नतीजा कुछ भी न निकले. जनता का पैसा और टाइम बरबाद करने पर शिकायत की है किसी ने? नहीं न. जनता के पास फालतू टाइम है. बहसियों के पास इस नौटंकी से तो पैसा आता है. जनता बड़े मजे लेले कर देखती है. और बहसबाज टीवी कैमरे के सामने अपनी मुंडी दिखाने के लिए बेताब रहते हैं.

मल्टीप्लैक्स में मनोरंजन महंगा है. फिर वहां घुसने के पहले कड़ी जांच होती है जैसे हर आदमी टिकट नहीं, बल्कि बम लिए हुए आया हो. इसलिए आज की तारीख में सब से सस्ता मनोरंजन टीवी बहस है. लेकिन याद रखिए, बहस संसद में भी होती है. हम वह भी देखते हैं टीवी पर. इस बहस का क्लाइमैक्स मारामारी है. तब सांसद अपनी निजी ताकत दिखाते हैं.

फिल्मों की तरह डुप्लिकेट से काम नहीं लेते. देखने वालों को लगता है कि पैसा वसूल हो गया. सांसद भी जैसे कहते हों कि देखो वोटर भाइयो, हम ने आप का पैसा वसूल करवा दिया. आप के दुखी क्षणों में सुख घोल दिया. यह सब आप ही के लिए कर रहे हैं. और प्लीज नोट, इस बहस का समाज की भलाई या बुराई से कोई सरोकार नहीं है. यह शुद्ध मनोरंजन का कार्यक्रम है. इसे उसी भावना से लीजिए.

मैं तो मानता हूं कि भैंस ही बड़ी होती है. आप मुझ पर हंसेंगे. मैं साबित कर दूंगा कि भैंस अक्ल से बड़ी होती है. इस अंतहीन बहस का मैं अंत करना चाहूंगा. भैंस जन सहयोग से बनी सीमेंट की सड़क पर सशरीर नजर तो आती है. इस मोटे पशु को तीखी अक्ल वाले पालते हैं. गाय के दूध के मुकाबले इस का दूध गाढ़ा होता है. इसलिए इस के दूध में गाय के दूध के मुकाबले ज्यादा पानी मिलाया जाता है.

प्रौफिट मार्जिन ज्यादा है. घी, मावा और मिठाइयों की मिलावट की दुनिया में उस का महत्त्वपूर्ण योगदान नकारा नहीं जा सकता.

अब देखिए, उसे हम देख सकते हैं, कालीकाली, बहुत बड़ी है. छू सकते हैं, ये मोटी. उस की मार खा सकते हैं. भैंस पालने का एक फायदा और भी है. दुहो और खुला छोड़ दो सड़क पर. नगरनिगम वाले यदि अपनी फर्जअदायगी की नौटंकी दिखाएं तो उन्हें पसीना आ जाए. एक तो उसे घेरना मुश्किल. वह कोई गाय तो है नहीं जो आसानी से पकड़ में आए. गाय तो बेचारी दुबलीपतली, मरियल, कुपोषित होती है.

भैंस खाएपिए घर की लगती है. यों वह आरामजीवी है. किसी को परेशान नहीं करती. लेकिन जब उसे गुस्सा आए तो अपनी खोपड़ी पकड़ने वाले को ठोक कर उस की खोपड़ी तोड़ दे. चलो, मान लो उसे सीमेंट की सड़कों की तरह जनसहयोग से पकड़ भी लिया, तो पिंजरे में ठूंसना मुश्किल. इतनी वजनदार होती है कि नगरनिगम के चपरासी से लगा कर महापौर भी मिलजुल कर नहीं पकड़ पाएं. इसलिए नगरनिगम भैंसमाता को पकड़ने का पाप नहीं करता.

भारत महाद्वीप के अलावा दुनिया में कहीं भैंस होती है, इस की जानकारी मुझे नहीं है. भैंसमाता वोट नहीं दिलाती जैसा कि कभी गौमाता दिलवाया करती थी. फिर भी भैंस के ठाट अलग ही हैं. उस का चलने का अंदाज देखो. हाथी के बाद उसी की चाल मस्तानी लगती है. अपनी ही धुन में चलती है. किसी की परवा नहीं करती. चाहे जितनी बीन बजाइए, फूंकफूंक कर मर जाइए, वह अपनी मरजी से ही हटती है.

पालतू और दुधारू जानवर होने के बावजूद उसे गाय की तरह पवित्र नहीं माना जाता. गौमूत्र को पवित्र मान कर उस का सेवन किया जाता है. उसे कई रोगों की औषधि भी माना जाता है. लेकिन बेचारी भैंस के पल्ले यह सम्मान नहीं है. मिस्टर गाय यानी बैल के रंभाने को संगीत में ‘रे’ कहा गया है. गाय की दूर की चचेरी की चचेरी बहन भैंस के रंभाने को कोई स्वर अलौट नहीं किया गया है. फिर भी वह किसी से शिकायत नहीं करती. मानव की तरह आरक्षण की मांग नहीं करती.

भैंस का पुल्ंिलग भैंसा बड़ा खतरनाक होता है. मैं जब भी भैंसा देखता हूं, तो उस के ऊपर बैठा यमराज ढूंढ़ता हूं. वैसे इन दिनों यमराज की सवारी मौडर्न हो गई है. वह बाइक या ट्रक या ट्रैक्टर या टैंकर पर सवार हो कर आता है. टारगेट जल्दी पूरा होता है. जब धार्मिक कार्यक्रम में मोटेबासे लोग धर्मगुरु के आदेश पर नाचने लगते हैं, तो भैंसा डांस देखने को मिलता है. अगर आज भैंस को संत ज्ञानेश्वर मिल जाएं तो कहना ही क्या. ऐसा गा सकती है कि वह बौलीवुड का बैस्ट सिंगर का अवार्ड भी जीत ले. वैसे भी आजकल बौलीवुड में भैंसा राग ही तो चल रहा है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसे मानवजाति गा रही है.

इस विश्लेषण के बाद अब तो आप भी मानेंगे कि भैंस न सिर्फ बहस पर भारी है, बल्कि अक्ल से भी बड़ी है. अक्ल तो उस की दासी है. कौन कहता है कि भैंस का दूध पीने वाले की अक्ल मोटी हो जाती है? देखा नहीं, अक्ल किस तरह यूपी की राजकीय मेहमान भैसों की सेवा में लगी हुई थी. इक्कीस तोपों की सलामी ही बाकी रह जाती है.

एक और बात. हिंदी की ‘जिस की लाठी उस की भैंस’ वाली कहावत भी हटा दीजिए. कहिए, ‘जिस की भैंस उस की लाठी.’ कम से कम यूपी में तो यही चलता है. अब तो अक्ल बड़ी या भैंस वाली पहेली उतार फेंकिए. मैं ने हल कर दी है. तो आप भी मेरे साथ कहिए, भैंस अक्ल से बड़ी होती है. बहुत ही बड़ी.

500 टुकड़ो में बंटा दोस्त

मुंबई के विरार (पश्चिम) में स्थित है ग्लोबल सिटी. यहीं पर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट बने हुए हैं. जिन में सैकड़ों लोग रहते हैं.

को इस सोसाइटी में रहने वाले लोग जब नीचे आ जा रहे थे, तभी उन्हें तेज बदबू आती महसूस हुई. वैसे तो यह बदबू पिछले 2 दिनों से महसूस हो रही लेकिन उस दिन बदबू असहनीय थी.

कई दिन से बदबू की वजह से लोग नाक बंद कर चले जाते थे. उन्हें यह पता नहीं लग रहा था कि आखिर दुर्गंध आ कहां से रही है. सोसाइटी के गार्डों ने भी इधरउधर देखा कि कहीं कोई बिल्ली या कुत्ता तो नहीं मर गया, पर ऐसा कुछ नहीं मिला.

20 जनवरी को अपराह्न 11 बजे के करीब सोसाइटी के लोग इकट्ठा हुए और यह पता लगाने में जुट गए कि आखिर बदबू आ कहां से रही है. थोड़ी देर की कोशिश के बाद उन्हें पता चल गया कि बदबू और कहीं से नहीं बल्कि सेप्टिक टैंक के चैंबर से आ रही है. किस फ्लैट की टायलेट का पाइप बंद है, यह पता लगाने और उसे खुलवाने के लिए सोसाइटी के लोगों ने 2 सफाईकर्मियों को बुलवाया.

सफाई कर्मचारियों ने चैक करने के बाद पता लगा लिया कि सोसाइटी की सी विंग के फ्लैटों का जो पाइप सैप्टिक टैंक में आ रहा था, वह बंद है. सी विंग में 7 फ्लैट थे, उन्हीं का पाइप नीचे से बंद हो गया था. पाइप बंद होना आम बात होती है जो आए दिन फ्लैटों में देखने को मिलती रहती है.

सफाई कर्मियों ने जब वह पाइप खोलना शुरू किया तो उस में मांस के टुकड़े मिले. पाइप में मांस के टुकड़े फंसे हुए थे, जिन की सड़ांध वहां फैल रही थी.

सोसाइटी के लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि किसी ने मांस डस्टबिन में फेंकने के बजाए फ्लैट में क्यों डाला. जब पाइप में मांस ज्यादा मात्रा में निकलने लगा तो सफाईकर्मियों के अलावा सोसाइटी के लोगों को भी आश्चर्य हुआ. शक होने पर सोसाइटी के एक पदाधिकारी ने पुलिस को फोन कर इस की जानकारी दे दी.

सूचना मिलने पर अर्नाला थाने के इंसपेक्टर सुनील माने पैराडाइज सोसाइटी पहुंच गए. पाइप में फंसा मांस देख कर उन्हें भी आश्चर्य हुआ. उसी दौरान उन्हें उस मांस में इंसान के हाथ की 3 उंगलियां दिखीं.

उंगलियां देखते ही उन्हें माजरा समझते देर नहीं लगी. वह समझ गए कि किसी ने कत्ल कर के, लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के इस तरह ठिकाने लगाने की कोशिश की है. जल्दी ही यह बात पूरी सोसाइटी में फैल गई, जिस के चलते आदमियों के अलावा तमाम महिलाएं भी वहां जुटने लगीं.

मामला सनसनीखेज था इसलिए इंसपेक्टर माने ने फोन द्वारा इस की सूचना पालघर के एसपी गौरव सिंह और डीवाईएसपी जयंत बजबले के अलावा अपने थाने के सीनियर इंसपेक्टर घनश्याम आढाव को दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम में यह सूचना प्रसारित होने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मांस के समस्त टुकड़े अपने कब्जे में लिए. पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जिस की हत्या की गई है, वह इसी सोसाइटी का रहने वाला था या फिर कहीं बाहर का.

जिस पाइप में मांस के टुकड़े फंसे मिले थे वह पाइप सी विंग के फ्लैटों का था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि कत्ल इस विंग के ही किसी फ्लैट में किया गया है. सी विंग में 7 फ्लैट थे. पुलिस ने उन फ्लैटों को चारों ओर से घेर लिया ताकि कोई भी वहां से पुलिस की मरजी के बिना कहीं न जा सके. फोरेंसिक एक्सपर्ट की टीम भी बुला ली गई थी.

रहस्य फ्लैट नंबर 602 का

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने उन सभी फ्लैटों की तलाशी शुरू कर दी. तलाशी के लिए पुलिस फ्लैट नंबर 602 में पहुंची. वह फ्लैट बाहर से बंद था. लोगों ने बताया कि वैसे तो इस फ्लैट की मालिक पूनम टपरिया हैं लेकिन कुछ दिनों पहले उन्होंने यह फ्लैट किशन शर्मा उर्फ पिंटू नाम के एक आदमी को किराए पर दे दिया था. वही इस में रहता है.

किशन शर्मा उस समय वहां नहीं था इसलिए सोसाइटी के लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने उस फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां इंसान की कुछ हड्डियां मिलीं. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि कत्ल इसी फ्लैट में किया गया था. कत्ल किस का किया गया था यह जानकारी किशन शर्मा से पूछताछ के बाद ही मिल सकती थी. बहरहाल, पुलिस ने मांस के टुकड़े, हड्डियां आदि अपने कब्जे में ली.

थोड़ी कोशिश कर के पुलिस को किशन शर्मा उर्फ पिंटू का फोन नंबर भी मिल गया था. वह कहीं फरार न हो जाए इसलिए पुलिस ने बड़े रेलवे स्टेशनों, बस अड्डे व हवाई अड्डे पर भी पुलिस टीमें भेज दीं.

इस के अलावा सीनियर पुलिस इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने किशन शर्मा का मोबाइल नंबर मिलाया. इत्तेफाक से उस का नंबर मिल गया. उन्होंने अपनी पहचान छिपाते हुए किसी बहाने से उसे एक जगह मिलने के लिए बुलाया. उस ने आने के लिए हां कर दी तो वहां पुलिस टीम भेज दी गई. वह आया तो सादा लिबास में मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे दबोच लिया.

40 वर्षीय किशन शर्मा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. एसपी गौरव सिंह की मौजूदगी में जब उस से उस के फ्लैट नंबर- 602 में मिली मानव हड्डियों और मांस के बारे में पूछताछ की गई तो थोड़ी सी सख्ती के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने 58 वर्षीय लंगोटिया यार गणेश विट्ठल कोलटकर की हत्या की थी.

पुलिस ने मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों के बारे में पूछा तो किशन ने बताया कि उस ने गणेश की लाश के करीब 500 टुकड़े किए थे. कुछ टुकड़े टायलेट में फ्लश कर दिए और कुछ टुकड़े टे्रन से सफर के दौरान फेंक दिए थे. किशन के अनुसार, उस ने सिर तथा हड्डियां भायंदर की खाड़ी में फेंकी थीं.

गणेश विट्ठल किशन शर्मा का घनिष्ठ दोस्त था तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों के बीच दुश्मनी हो गई. दुश्मनी भी ऐसी कि किशन शर्मा ने उस की हत्या कर लाश का कीमा बना डाला. इस बारे में पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ की तो इस हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई—

किशन शर्मा मुंबई के सांताक्रुज इलाके की राजपूत चाल के कमरा नंबर 4/13 में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था. उस ने मुंबई विश्वविद्यालय से मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान में सर्टिफिकेट कोर्स किया था.

लेकिन अपने कोर्स के मुताबिक उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो वह शेयर मार्केट में काम करने लगा. करीब 8 महीने पहले उस की मुलाकात थाणे जिले के मीरा रोड की आविष्कार सोसाइटी में रहने वाले गणेश विट्ठल कोलटकर से हुई जो बाद में गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई थी. गणेश की अपनी छोटी सी प्रिंटिंग प्रैस थी.

एक दिन गणेश ने किशन शर्मा से कहा कि अगर वह प्रिंटिंग प्रैस के काम में एक लाख रुपए लगा दे तो पार्टनरशिप में प्रिंटिंग प्रैस का धंधा किया जा सकता है. किशन इस बात पर राजी हो गया और उस ने एक लाख रुपए अपने दोस्त गणेश को दे दिए. इस के बाद दोनों दोस्त मिल कर धंधा करने लगे. किशन मार्केट का काम देखता था.

कुछ दिनों तक तो दोनों की साझेदारी ईमानदारी से चलती रही पर जल्द ही गणेश के मन में लालच आ गया. वह हिसाब में हेराफेरी करने लगा. किशन को इस बात का आभास हुआ तो उस ने साझेदारी में काम करने से मना करते हुए गणेश से अपने एक लाख रुपए वापस मांगे. काफी कहने के बाद गणेश ने उस के 40 हजार रुपए तो वापस दे दिए लेकिन 60 हजार रुपए वह लौटाने का नाम नहीं ले रहा था.

किशन जब भी बाकी पैसे मांगता तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. वह उसे लगातार टालता रहा. इसी दौरान किशन को सूचना मिली कि गणेश 56 साल की उम्र में शादी करने वाला है. इस बारे में किशन ने उस से बात की तो गणेश ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. पहले वह शादी करेगा. इस के बाद पैसों की व्यवस्था हो जाएगी तो दे देगा.

गणेश की यह बात किशन को बहुत बुरी लगी. वह समझ गया कि गणेश के पास पैसे तो हैं लेकिन वह देना नहीं चाहता. लिहाजा उस ने दोस्त को सबक सिखाने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह गणेश को ठिकाने लगाएगा.

योजना बनाने के बाद उस ने विरार क्षेत्र की पैराडाइज सोसाइटी में फ्लैट नंबर 602 किराए पर ले लिया. वह फ्लैट पूनम टपरिया नाम की महिला का था. किशन कभीकभी अकेला ही उस फ्लैट में सोने के लिए चला आता था.

योजना के अनुसार 16 जनवरी, 2019 को किशन शर्मा अपने दोस्त गणेश विट्ठल कोलटकर को ले कर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट में गया. फ्लैट में घुसते ही किशन ने उस से अपने 60 हजार रुपए मांगे. इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया. झगड़े के दौरान किशन ने कमरे में रखा डंडा गणेश के सिर पर मारा. एक ही प्रहार में गणेश फर्श पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

गणेश की मौत हो जाने के बाद किशन के सामने सब से बड़ी समस्या उस की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर अश्वनि बिदरे गोरे की हत्या से संबंधित जानकारियां इकट्ठा कीं, ताकि पुलिस को आसानी से गुमराह किया जा सके. उस ने यूट्यूब पर भी डैड बौडी को ठिकाने लगाने के वीडियो देखे. उन में से उसे एक वीडियो पसंद आया जिस में लाश को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उन्हें ठिकाने लगाने का तरीका बताया गया था.

यह तरीका उसे आसान भी लगा. क्योंकि वह मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान की पढ़ाई कर चुका था. इस के लिए तेजधार के चाकू की जरूरत थी. किशन शर्मा सांताकु्रज इलाके की एक दुकान से बड़ा सा चाकू और चाकू को तेज करने वाला पत्थर खरीद लाया.

खरीद लाया मौत का सामान फ्लैट पर पहुंच कर किशन शर्मा ने सब से पहले गणेश विट्ठल कोलटकर की लाश का सिर धड़ से अलग कर उसे एक पालीथीन में रख लिया. इस के बाद उस ने लाश के 500 से अधिक टुकड़े कर दिए. शरीर की हड्डियों और पसलियों को उस ने तोड़ कर अलग कर लिया था.

वह मांस के टुकड़ों को टायलेट की फ्लश में डालता रहा. सिर और हड्डियां उस ने भायंदर की खाड़ी में फेंक दीं. कुछ हड्डियां उस ने पालीथिन की थैली में भर कर ट्रेन से सफर के दौरान रास्ते में फेंक दी थी. उस का फोन भी उस ने तोड़ कर फेंक दिया था.

उधर गणेश विट्ठल कई दिनों से घर नहीं पहुंचा तो उस की बहन अनधा गोखले परेशान हो गई. उस ने भाई को फोन कर के बात करने की कोशिश की लेकिन उस का फोन बंद मिला. फिर वह 20 जनवरी को मीरा रोड के नया नगर थाने पहुंची और पिछले 4 दिनों से लापता चल रहे भाई गणेश विट्ठल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ के बाद गणेश विट्ठल का सिर बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला. अंतत: जरूरी सबूत जुटाने के बाद हत्यारोपी किशन शर्मा को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

10 टिप्स: जब पहली बार मिले गर्लफ्रेंड के माता-पिता से…

कई प्रेमी हैं, जो अपनी प्रेमिका के पेरैंट्स का सामना नहीं कर पाते. यही कारण है कि वे उन से मिलना टालते रहते हैं या इस से बचना चाहते हैं. वे अपनी प्रेमिका के पिता से मिलने के बजाय उस के साथ भाग कर शादी करना चाहते हैं, लेकिन प्रेमिका अपने पेरैंट्स की रजामंदी से शादी करना चाहती है. यदि आप अपनी प्रेमिका के पिता से उन की बेटी का हाथ मांगने जा रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखें ताकि पहली मुलाकात में ही आप का अच्छा प्रभाव उन पर पड़े और वे आप के जवाब से संतुष्ट हो जाएं…

  1. पहली मुलाकात में ही लुभाएं…

आप की हरसंभव कोशिश होनी चाहिए कि पहली ही मुलाकात में उन्हें अपने पक्ष में कर पाएं. अपनी प्रेमिका के पिता से मुलाकात से पहले उन के स्वभाव या मिजाज के बारे में उस से पूछताछ कर लें. उन्हें किस तरह के लोग पसंद हैं, यह भी पूछ लें. आप उसी के अनुरूप अपना आचरण और व्यवहार रखें. इसी प्रकार उन की पसंद-नापसंद की भी जानकारी लें. वे किन मुद्दों पर बातचीत करना पसंद करते हैं. यदि यह सब आप को पहले से ही पता हो तो उन से बात करना आसान हो जाएगा और बातचीत रुचिकर भी होगी.

ये भी पढ़ें- जानें बड़ी उम्र के लड़के के साथ डेटिंग करने के फायदे

2. मोबाइल को करे साइलेंट…

जब आप प्रेमिका के पेरैंट्स से पहली बार मिलने जाएं तो अपने मोबाइल को साइलैंट मोड पर डाल दें. बातचीत के दौरान बारबार मोबाइल की घंटी बजना बातचीत में व्यवधान पैदा करता है.

3. पहली मुलाकात में ही बड़बोले न बनें…

पहली मुलाकात में ही बड़बोले न बनें. न अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने की कोशिश करें. अपनी हैसियत बढ़ाचढ़ा कर पेश न करें. हकीकत में जो है, वही बताएं. यदि आप की आमदनी कम है, तो उसे बढ़ाने के लिए आप के दिमाग में क्या योजना है, उन्हें बताएं. यदि वर्तमान में आप बेरोजगार हैं, तो शादी के बाद परिवार कैसे चलाएंगे, इस बारे में भी उन्हें संतोषजनक जवाब दें ताकि उन्हें अपनी बेटी का हाथ आप के हाथ में देने में कोई परेशानी न हो.

ये भी पढ़ें- टिप्स: टूटे हुए रिश्ते में दोबारा कैसे बनाए विश्वास

4. फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन

अंगरेजी में एक कहावत है, फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन. यदि पहला प्रभाव ही खराब हो गया तो बात आगे बढ़ने के बजाय वहीं खत्म हो जाएगी क्योंकि वे फिर आसानी से मानने वाले नहीं हैं. चूंकि वे एक पिता हैं, इस नाते उन्हें यह अधिकार है कि वे लड़के के बारे में पूर्ण तसल्ली और संतोष कर लें ताकि उन की बेटी को बाद में पछताना न पड़े.

5. टाइम पर पहुंचे

जब भी पहली मुलाकात फिक्स हो, नियत समय पर पहुंचने की कोशिश करें. लड़के या लड़की के पेरैंट्स को इंतजार कराना ठीक नहीं. अन्यथा यह संदेश जाएगा कि आप वक्त के पाबंद नहीं हैं. आप को उन के समय की कीमत समझनी चाहिए. यदि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से आप को पहुंचने में विलंब हो रहा हो, तो इस बारे में उन्हें अवश्य सूचित करें.

ये भी पढ़ें- कहीं आप भी तो नहीं है टौक्सिक रिलेशनशिप का शिकार, ऐसे लगाए पता

6. पहली मीटिंग में ओवरस्मार्ट न बनें…

पहली मीटिंग में ओवरस्मार्ट बनने की कोशिश न करें और न ही दब्बू नजर आएं. उन्हें अपनी बेटी के लिए स्मार्ट लड़का चाहिए जो आधुनिक विचारों वाला हो और महिलाओं की इज्जत करता हो. आजकल लड़कियां भी जौब करना चाहती हैं, हो सकता है कि उस के पिता इस संबंध में आप के विचार जानना चाहें कि शादी के बाद आप उसे नौकरी करने देंगे या नहीं. इस बात का उत्तर स्पष्ट व सकारात्मक ही देना चाहिए.

7. पहनावे पर दें ध्यान…

आप को अपने पहनावे पर भी खास ध्यान देना चाहिए. पोशाक सौम्य होनी चाहिए, भड़कीली नहीं. मौसम के अनुकूल पोशाक हो तो बेहतर अन्यथा आप असहज ही रहेंगे.

ये भी पढ़ें- आखिर क्यों नहीं करना चाहिए बेस्ट फ्रेंड से प्यार, जानें 4 कारण

8. साफ-साफ करें बात

बातचीत करते समय यह ध्यान रहे कि आप को उन की बात सुननी है और उन के प्रश्नों के उत्तर देने हैं. प्रश्नों के जवाब सीधे और सपाट होने चाहिएं. घुमाफिरा कर जवाब देने की प्रवृत्ति ठीक नहीं.

9. रखे हर चीज की जानकारी

आप को धर्म, राजनीति, आध्यात्म, योग आदि के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि पहली बार की मीटिंग में इन्हीं सब बातों पर भी चर्चा हो सकती है. आप की बातों से आप का आत्मविश्वास झलकना चाहिए. यदि किसी मुद्दे पर विवाद होता दिखाई दे तो बात बदल देनी चाहिए.

(Edited By- Nisha Rai)

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें