बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का 'वंदे मातरम' हमारे देश की प्रज्ञा को उदबुद करता रहा है.और ओजस्विता का प्रतीक बन चुका है. यह एक लंबा गीत है बांग्ला और संस्कृत में लिखे इस गीत को राष्ट्र को समर्पित किया गया है और इसी भाव भूमि पर लिखा गया है वंदे मातरम, अर्थात भारत माता तुम्हें प्रणाम है.
विवाद आगे के पदों में हैं-जिसमें दुर्गा मां की आराधना है. और इस पर स्वाभाविक रूप से मुस्लिम समुदाय प्रारंभ से ही अपनी आपत्ति दर्ज करा चुका है. और देश के शीर्ष विवेक ने मुस्लिम समुदाय की आपत्ति को कभी भी खारिज नहीं किया. तब भी जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और कांग्रेस के अधिवेशनों में गाया जाता था. तब भी जब देश आजाद हुआ और संविधान में वंदे मातरम के सिर्फ दो पदों को रखने की सहमति बनी . फिर जब मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा वहां भी एक तरह से यही माना गया कि आप सम्मान करते हैं यही पर्याप्त है गीत गाना अनिवार्य नहीं है. हां , हिंदूवादी सोच बारंबार यह मामला उठाती है क्या सोच है क्या लक्ष्य यह सारा देश जानता है. आज वंदे मातरम के कुछ अनछुए पहलुओं पर इस आलेख मैं हम चर्चा करते हुए आपको नए तथ्य नई सोच देने का प्रयास करेंगे .
दुर्गा माता की आराधना
आनंद मठ अट्ठारह सौ बयासी में प्रकाशित हुआ .कथानक है मुस्लिम शासकों के खिलाफ संतान सैना की लड़ाई और इसी दौरान 'वंदे मातरम' का गान. मुसलमानों के प्रति इस उपन्यास में गुस्सा, जुगुप्सा, घृणा है और लेखक ने इसे खुल कर शब्दों में पिरोया है.आपको आश्चर्य होगा इस महान उपन्यास में जहां मुसलमानों के प्रति रोष है वही अंग्रेजों के प्रति अतिरिक्त श्रद्धा दिखाई देती है.
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