उस मातापिता के जीवन को असफल माना जाता है जो अपनी आखि‍री जिम्‍मेदारी यानी बेटी की विदाई निभाने में असफल रहे ? जिन्होंने अखबारों में वर चाहिए के विज्ञापन नहीं दिए या मेट्रीमोनियल साइट्स पर बेटी की खूबसूरती और अपनी सम्पन्नता का बखान न किया, पंडितों की जेबें न भरी या अपनी मांगलिक बेटी की शादी पेड़ों और कुत्तों से न कराई हो .

जीवन में किसी पुरुष का न होना

जीवन में आदमी की कमी को लड़की के लिए हमेशा असफलता के रूप में देखा जाता है जैसे कि लड़कियों का जन्म अपने साथी को पाने की इस अंधी दौड़ का हिस्सा बनने के लिए हुआ हो. इस से पहले कि उन का शरीर ढीला पड़ जाये ,पीरियड्स आने बंद हो जाए, माँ बनने की उम्मीद कम हो जाए और यौनेक्षा घट जाए उसे एक पुरुष के हाथों अपनी जिंदगी की डोर सौंप देनी चाहिए. भले ही वह उस के योग्य हो न हो, उसे प्यार करता हो या न करता हो.

रूढ़िवादी समाज हर तरह से उसे डराता है. कोौस्मेटिक कंपनियां यौवन की रक्षा के उपाय बताते नहीं थकती. जल्दी ऐसे मचाई जाती है जैसे उस के स्त्रीत्व और यौवन की एक्सपायरी डेट आ जाएगी तो गजब हो जाएगा, बिना पति उस का जीवन बेकार न हो जाएगा, वह अधूरी रह जायेगी.

कई महिलाओं की जिंदगी में ऐसा भी होता है जिन के पति शादी के 7-8 साल बाद उन की तरफ नजर भर कर देखना भी छोड़ चुके होते हैं. घर में रोज लड़ाईझगड़े मचे होते हैं, बच्चा अलग रोरो कर घर सर पर उठाये घूमता है, सास के ताने ख़त्म नहीं होते, शरीर कमजोरी से उठाया नहीं जाता पर यही महिलाएं अपनी अविवाहित सहेलियों को यह सलाह देने से नहीं चूकती कि यार शादी कर ले. शादी के बिना भी औरतों की भला कोई जिंदगी होती है?

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