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5 टिप्स: स्किन के लिए चाय है एक अच्छा ब्यूटी प्रोडक्ट

रोजाना लोग चाय जरूर पीते हैं. चाहे वह काम करते समय हो या खाना खाते समय, पर क्या आपको पता है चाय जितना आपको रिलेक्स करती है उतना ही चाय की पत्ती स्किन को फायदा पहुंचाती है. चाय की पत्त‍ियां एक अच्छा ब्यूटी प्रोडक्ट हैं, जिसका इस्तेमाल न केवल स्किन को ब्यूटीफुल बनाने के लिए किया जाता है, बल्क‍ि ये बालों को हेल्दी रखने के लिए भी बहुत इफेक्टिव होता है. चाय की पत्तियों में एंटी-औक्सीडेंट पाया जाता है. इसके अलावा इसमें एंटी एजिंग जैसे गुण पाए जाते हैं. जो ब्यूटी से जुड़ी प्रौब्लम्स से छुटकारा दिलाता है.

  1. गरमी में रूखे और बेजान बालों के लिए

बालों में शाइन लाने के लिए आप ग्रीन टी या ब्लैक टी बैग्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसके लिए एक बर्तन में पानी उबालते समय कुछ टी-बैग्स भी डाल दें. 15 मिनट तक उबालने के बाद ठंडा होने के लिए रख दें. बालों में शैंपू करने के बाद चाय पत्ती के पानी को बालों में लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें. इसके बाद किसी माइल्ड शैंपू से बालों को धो लें. आपको एक वौश में ही बालों में फर्क दिखने लगेगा.

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  1. चाय की पत्ती से सनबर्न की परेशानी से बचें

अगर आपको सनबर्न दूर करने का कोई सही तरीका समझ नहीं आ रहा है तो एक बार टी-बैग्स का इस्तेमाल करके देखें. कुछ टी-बैग्स लेकर ठंडे पानी में डुबो दें और उन्हें हल्के हाथों से दबाकर चेहरे पर रखकर कुछ देर के लिए लेट जाए. इससे आपकी सनबर्न की प्रौब्लम से आपको छुटकारा मिल जाएगा.

  1. कोई कीड़ा काट ले तो चायपत्ती है इफेक्टिव

कई बार ऐसा होता है कि पार्क में जाने पर हमें कोई कीडा काट लेता है, जिससे लाल कलर के निशान पड़ जाता है. चाय की पत्त‍ियों का ये फार्मूला आप किसी भी कीट के काटने पर अपना सकते हैं. वो चाहे मच्छर ही क्यों न हो. इफेक्ट‍िव जगह पर ठंडे टी-बैग्स रखने से आपको बहुत जल्दी फायदा होता है.

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  1. डार्क सर्कल को दूर करेगी चायपत्ती

देर तक काम करने या नीद न आने की वजह से आपकी आंखों के नीचे डार्क सर्कल हो गए हैं या फिर आपकी आंखें पफी-पफी रहती हैं तो भी ठंडे टी-बैग्स का इस्तेमाल करना आपके लिए फायदेमंद रहेगा. इसमें मौजूद कैफीन आंखों के नीचे के डार्क सर्कल को दूर करने में मदद करता है.

  1. पैरों की बदबू दूर करने के लिए

रोजाना सुबह से शाम तक अगर आप जूते पहन कर रखते हैं तो आपके पैरों से बदबू आती है तो भी चाय पत्ती का इस्तेमाल करना असरदार रहेगा. चाय की पत्त‍ियों को पानी में डालकर उबाल लें. जब ये पानी ठंडा हो जाए तो इसे किसी टब में डाल दें. पैरों को कुछ देर तक इसमें डुबोकर रखें. ऐसा करने से पैरों की बदबू दूर हो जाएगी.

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खीरा खाने से पहले इसके नुकसान के बारे में जान लें

गरमी आते ही ठंडे खाद्य पदार्थों की खपत अधिक हो जाती है. लोग ऐसे फलों और सब्जियों का सेवन अधिक कर देते हैं जो पेट को ठंडक देते हैं, ऐसे ही फलों में से एक है खीरा. खीरा ना सिर्फ पेट के लिए अच्छा होता है बल्कि इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. पर ऐसा नहीं है कि खीरा खाने के केवल फायदे ही हैं, इसके बहुत से नुकसान भी हैं जिनके बारे में हम आपको बताने वाले हैं.

तो आइए शुरू करें.

जिन लोगों को साइनसाइटिस की बीमारी होती है उन्हें खीरे से परहेज की सलाह दी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि खीरे की तासीर ठंडी होती है.  ऐसे में अगर साइनसाइटिस से पीड़ित लोग इसका सेवन करेंगे तो उनकी समस्या बढ़ सकती है.

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आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को खीरा खाने की सलाह दी जाती है पर जरूरत से अधिक खीरा खाने से उन्हें बार बार टौयलेट जाना पड़ता है. किसी गर्भवती महिला के लिए बार बार टौयलेट जाना काफी असुविधा भरा काम होता है.

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अगर आप खीरे का ज़्यादा मात्रा में सेवन करते हैं तो आपका पेट भरा हुआ महसूस होता है. खीरा फाइबर का अच्छा स्रोत है लेकिन ज्यादा खाने से आपको डकारें आ सकती हैं.

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कमजोर है याददाश्त तो आज से ही ये फल खाना शुरू करें

बहुत से लोगों को भूलने की बीमारी होती है. वो छोटी छोटी चीजों को भूल जाते हैं. कई बार वो कुछ सामान कहीं रख कर भूल जाते हैं. अगर आप भी इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं तो टेंशन छोड़ दीजिए. हम आपके लिए इसका एक बेहद आसान उपाय ला रहे हैं.

याददाश्त ठीक करने के लिए लोग तरह तरह की चीजें खाने की सलाह देते हैं. इन खाने की चीजों में से एक है अंगूर. हाल ही में सामने आई एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि अंगूर का नियमित सेवन करने से याददाश्त अच्छी होती है. इस स्टडी में बताया गया है कि रोजाना अंगूर खाने से अल्जाइमर रोग से बचाव होता है. बता दें कि अल्जाइमर दरअसल मस्तिष्क से संबंधित एक बीमारी है, जिसमें याददाश्त और सीखने की क्षमता का कमजोर होती जाती है.

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अमेरिका की एक युनिवर्सिटी में हुए इस अध्ययन में शामिल एक डाक्टर के मुताबिक, अध्ययन इस बात का पता करने के लिए किया गया कि पृथक यौगिकों की तुलना में अंगूर का क्या प्रभाव पड़ता है और रोजाना आधार पर अंगूर के सेवन का प्रभाव अल्जाइमर रोग से संबंधित बीमारी पर क्या प्रभाव पड़ता है. जानकारों का मानना है कि पायलट अध्ययन इस बात का साक्ष्य प्रदान करता है कि अंगूर का सेवन मस्तिष्क व हृदय को स्वस्थ रखने में कारगर है, हालांकि अध्ययन के निष्कर्ष के लिए और अधिक अध्ययन की जरूरत है.

grapes important for healthy brain

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इस बारे में प्रकाशित एक रिपोर्ट की माने तो अंगूर चयापचय गतिविधियों में गिरावट से सुरक्षा प्रदान करता है. मस्तिष्क के खास भागों में चयापचय गतिविधियों का कम होना अल्जाइमर बीमारी की प्रारंभिक शुरुआत को दर्शाता है.

posted by Shubham

कलंक: कलाकारों की बढ़िया एक्टिंग और सुस्त रफ्तार

फिल्म रिव्यू- कलंक

एक्टर- आलिया भट्ट, वरुण धवन, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रौय कपूर, माधुरी दीक्षित, संजय दत्त

निर्देशक- अभिषेक वर्मन

रेटिंग- 3 स्टार

फिल्म ‘‘कलंक’’ की उलझी हुई प्रेम कहानी देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि में 1944 में लाहौर के पास स्थित हुसैनाबाद से शुरू होती है. फिल्म की कहानी के केंद्र में बहार बेगम (माधुरी दीक्षित), बलराज चैधरी (संजय दत्त), देव चैधरी (आदित्य रौय कपूर), सत्या चैधरी (सोनाक्षी सिन्हा) ,रूप (आलिया भट्ट) और जफर (वरूण धवन) हैं. कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे पता चलता है कि यह सभी एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं.

कहानी…

फिल्म शुरू होती है अपनी दो छोटी बहनों के साथ रूप के पतंग उड़ाने से. रूप जब अपनी बहनों के साथ अपने घर पहुंचती है, तो अपने पिता के साथ सत्या चैधरी को बैठे देखकर गुस्सा होती है. डाक्टरों के अनुसार कैंसर की मरीज सत्या चैधरी की जिंदगी सिर्फ एक-दो साल की ही है. सत्या चाहती है कि रूप उनके घर में आकर रहे. सत्या चाहती है कि उसकी मौत के बाद उसके पति देव चौधरी, रूप से शादी कर लेंगे. रूप अपनी बहनों के भविष्य को देखते हुए सत्या के घर जाने के लिए मजबूर होती है, पर वह शर्त रखती है कि देव चैधरी उसके साथ शादी कर लें. देव और रूप की शादी हो जाती है. सुहागरात के वक्त देव, रूप से कहता है कि उसने सत्या के दबाव में यह शादी की है. वह सिर्फ सत्या से प्यार करते हैं, इसलिए कभी रूप से प्यार नही कर पाएंगे. मगर रूप को इज्जत मिलेगी. देव चैधरी के पिता बलराज चैधरी का पुश्तैनी अखबार ‘डेली टाइम्स’ है. लंदन में पढ़ाई कर वापस लौटे देव ने ‘डेली टाइम्स’ की बागडोर संभाल रखी है. वह देश के बंटवारे के खिलाफ अपने अखबार में लिखते रहते हैं. इससे मुस्लिम लीग के नवोदित नेता अब्दुल (कुणाल खेमू) नाराज रहता है. अब्दुल को हिंदुओं से नफरत है. अब्दुल की इस नफरत की आग को भड़काने में अहम योगदान हीरामंडी में ही पले बढ़े जफर का है जो एक लोहार है. जफर के अंदर गुस्सा और आग है. लोग उसे हरामी व नाजायज कहते हैं. एक दिन गाने की आवाज सुनकर रूप हवेली की नौकरानी सरोज से सवाल करती है, तो सरोज बताती है कि यह आवाज हीरामंडी स्थित हवेली से बहार बेगम की है, पर चौधरी परिवार के उसूलों के अनुसार रूप हीरामंडी नही जा सकती. रूप और देव को नजदीक लाने के लिए सत्या, रूप से कहती है कि उसे देव के साथ अखबार के संपादकीय विभाग में काम करना चाहिए. रूप शर्त रखती है कि ऐसा वह तभी करेगी, जब उसे बहार बेगम से संगीत सीखने को मिलेगा. मजबूरन सत्या, बलराज से आज्ञा ले लेती है. सरोज, रूप को लेकर बहार बेगम के पास जाती है. बहार बेगम, रूप की आवाज पर मोहित हो जाती है. वापसी में रूप की मुलाकात जफर से होती है. जफर लड़कियों का शौकीन है. लेकिन जफर को जल्द अहसास हो जाता है कि शादीशुदा रूप दूसरी लड़कियों की तरह नही है. फिर भी रूप और जफर की मुलाकातें होती रहती हैं. अपने अखबार ‘डेली टाइम्स’ के लिए हीरामंडी के लोगों पर कहानी लिखने के लिए रूप पहले अब्दुल (कुणाल खेमू) से मिलती है, पर अब्दुल मदद नही करता, क्योंकि अब्दुल को पता है कि वह देव चैधरी की दूसरी पत्नी है. तब जफर उसे कई कहानियां बताता है और हीरामंडी घुमाता है. धीरे-धीरे रूप को जफर से प्यार हो जाता है, मगर जफर तो चैधरी परिवार से इंतकाम लेने के लिए रूप का इस्तेमाल करता है. बहार बेगम, रूप को सावधान करती है. लेकिन बाद में पता चलता है कि जफर, बहार बेगम और बलराज चैधरी का नाजायज बेटा है. बहार बेगम को सत्रह साल की उम्र में शादीशुदा बलराज चैधरी से प्रेम हुआ था. बलराज को अपने करीब लाने के लिए ही उसने जफर को जन्म दिया था, पर बलराज ने उसे अपनी हवेली में जगह नही दी थी, तो वह जफर को सड़क पर छोड़ आयी थी, फिर भी बलराज ने उसे स्वीकार नहीं किया था. इसी बीच कुछ लोगों ने जफर को हीरामंडी में लाकर पाला. एक दिन बहार बेगम ने जफर को सच बता दिया था. तब से जफर के अंदर चौधरी परिवार से इंतकाम लेने की आग जल रही है. लेकिन जफर सचमुच रूप से प्यार करने लगता है जिसके बाद कहानी नया मोड़ लेती है.

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डायरेक्शन…

फिल्मकार अभिषेक वर्मन ने पूरी फिल्म में इसी बात को दिखाने की कोशिश की है कि सच्चा प्यार, समाज के बनाए नियमों, धर्म की बंदिशों और इंसान की बनाई गई सरहदों को नहीं मानता. इस बात को साबित करने में वो सफल रहे हैं. लेकिन फिल्म में कुछ कमियां भी हैं.

कमियां…

फिल्म की लंबाई और पटकथा की कमजोरी के चलते फिल्म कई जगह बोर करती है, कहानी की पृष्ठभूमि 1940 का दशक है, मगर फिल्म के भव्य सेट उस काल को रेखाकिंत करने में असफल रहे हैं. एडीटिंग टेबल पर यदि इस फिल्म को कसा जाता, तो यह एक कल्ट/अति बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. फिल्म से एक दो गीत कम किए जा सकते थे. अब इसे पटकथा लेखक की कमी कहें या कहानीकार की कमी. पटकथा लेखक की कमजोरी के चलते बहार बेगम और रूप के बीच गुरू-शिष्य के अलावा जो दूसरा रिश्ता है, उसकी टीस भी ठीक से उभर नहीं पाती. कहानी के मामले में भी यह फिल्म कुछ पुरानी क्लासिक फिल्मों की याद दिलाती है.

फिल्म की खूबियां…

दमदार संवादों के चलते दर्शक फिल्म को झेल जाता है. संवाद लेखक की तारीफ जरुर की जानी चाहिए. अलावा इस फिल्म की सबसे बड़ी मजबूत कड़ी इसके कलाकार हैं. फिल्म के कैमरामैन बिनोद प्रधान जरुर तारीफ के हकदार हैं. जहां तक गीत संगीत का सवाल है तो ‘घर मोरे परदेसिया’ और ‘कलंक’के अलावा दूसरे गीत प्रभावित नहीं करते.

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एक्टिंग…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो रूप के अति जटिल किरदार को आलिया भट्ट ने अपने प्रभावशाली और शानदार अभिनय से जिंदा कर दिया है. मजबूर, गुस्सा, असहाय, दुखी हर भाव आलिया भट्ट के चेहरे पर सहज ही आते हैं. जफर के किरदार में वरूण धवन ने अपनी शारीरिक बनावट के साथ ही जफर के अंदर चल रहे हर भाव को बड़ी खूबी से परदे पर उकेरा है. माधुरी दीक्षित ने साबित कर दिखाया कि आज भी अभिनय और डांस में उनका कोई सानी नही है. आदित्य रौय कपूर व कुणाल खेमू भी प्रभावित करते हैं. सोनाक्षी सिन्हा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है. संजय दत्त के हिस्से कुछ खास करने को नहीं था.

edited by-  Nisha

बिना कार्ड के ATM मशीन से ऐसे निकालें पैसा

हाल ही में स्टेट बैंक औफ इंडिया ने ग्राहकों के लिए नई सुविधा का एलान किया है. इस के तहत एसबीआई ने अपने उन ग्राहकों को विशेष सुविधा दी है, जो एसबीआई एटीएम कार्ड इस्तेमाल करते हैं.

एसबीआई ने इस नई सेवा को योनो कैश Yono cash का नाम दिया है. इस सुविधा का लाभ आप इस तरह उठा सकते हैं :

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  • मोबाइल पर योनो एप डाउनलोड करें.
  • सुविधा का लाभ उठाने के लिए 6 अंकों का योनो पिन सैट करें.
  • पैसा निकालने से पहले योनो एप के माध्यम से रिक्वैस्ट भेजें.
  • इस के बाद मोबाइल पर एक मैसेज आएगा, जिस में 6 अंकों का पिन नंबर होगा.
  • इस पिन नंबर की मदद से आप नजदीकी एटीएम से पैसा निकाल सकते हैं.
  • एक ट्रांजैक्शन के बाद पिन की वैधता खत्म हो जाएगी.
  • पिन की वैधता 30 मिनट ही है. इस के बाद यह पिन नंबर ऐक्सपायर हो जाएगी.
  • दोबारा ट्रांजैक्शन के लिए आप को फिर से यही प्रक्रिया दोहरानी होगी.
  • कैश लिमिट 10,000 रूपए है.

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ध्यान रहे, कोई भी गोपनीय जानकारी, मसलन अकाउंट नंबर, पिन नंबर, एटीएम कार्ड नंबर, ओटीपी आदि को अन्य के साथ शेयर न करें.

edited by Shubham

यामी गौतम ने जुम्बा इंस्ट्रक्टर जीना ग्रांट से क्यों मिलाया हाथ

इस बात में कोई शक नहीं कि यामी गौतम बौलीवुड में सर्वाधिक फिट अभिनेत्री हैं. उनके फिटनेस के जुनून को सोशल मीडिया पर उन्हें फौलो करने वाले लोग अच्छी तरह से परिचित हैं. इतना ही नहीं वह बौलीवुड में सबसे अधिक इथलेटिक शख्सियतों में से हैं. यामी गौतम की खासियत यह है कि वह कभी भी फिटनेस के पुराने तरीकों पर निर्भर नही रहती हैं. बल्कि खुद को फिट रखने के सदैव कुछ नया करने की कोशिश करती हैं. इसीलिए  इस बार फिटनेस के लिए  पूरे जोश के साथ जुम्बा की ओर ध्यान दिया. इसीलिए, उन्होंने जुम्बा इंस्ट्रक्टर जीना ग्रांट से हाथ मिलाया हैं. इससे पहले वह पोल डांस पर भी काफी काम कर चुकी हैं.

पापा ने बताई एक्टिंग की सबसे बड़ी कमी : वरुण धवन

खुद यामी कहती हैं-‘‘मैं फिटनेस के लिए  विश्व प्रसिद्ध जुम्बा के जरिए  खुद के साथ-साथ सभी लोगों को फायदा पहुंचाना चाहती हूं. इसी मकसद से मैंने अमेरीका व विश्व के सबसे बड़े जुम्बा इंस्ट्रक्टर  जीना ब्रांट के साथ मिलकर काम करने का फैसला लिया है. मैं जीना ग्रांट के साथ मिलकर इस उच्च स्तरीय फिटनेस वर्कआउट के क्रेज को आगे बढ़ाने का काम करने जा रही हूं. इसके लिए जीना भारत आ रही हैं. जीना ग्रांट ने अमरीका में जेसन डेलो और संगीत की दुनिया के कई सितारों के साथ काम किया है.

नोटबुक : थाई फिल्म का घटिया भारतीयकरण

राफेल पर फ्रेंच मीडिया ने बढ़ायी मोदी की मुश्किल

चुनावी मौसम में राफेल का भूत मोदी-सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा है. आए-दिन कोई न कोई खुलासा मीडिया की सुर्खियों में आ ही जाता है और प्रधानमंत्री मोदी सहित उनके कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों के पैरों तले धरती डगमगाने लगती है. राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लोकसभा चुनाव-2019 जीतने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही भाजपा अब राफेल पर कोई बात नहीं करना चाह रही है. न नरेंद्र मोदी और न ही भाजपा कोई नेता चुनाव प्रचार के दौरान मंच से दिये भाषण में राफेल का जिक्र कर रहा है, सब इस पर मिट्टी डालना चाहते हैं, मगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल को जिन्दा रखना चाहते हैं, उसकी हकीकत हर हाल में सामने लाना चाहते हैं. हालांकि इस चक्कर में वह कभी-कभी ये भूल जाते हैं कि इस मामले में मंच से बोलने की सीमा क्या होनी चाहिए और यही वजह है कि हाल ही में वह ऐसी बात बोल गये, जिससे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की तलवार उनकी गर्दन पर आन पड़ी है.

खैर, राफेल डील में घोटाले की बू तो शुरू से आ रही थी, मगर अब जबकि फ्रांसीसी मीडिया भी इसकी जांच को लेकर मुखर हो रहा है, कयास लग रहे हैं कि मोदी के साथ-साथ अनिल अंबानी फ्रांस के राष्ट्रपति के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर देंगे. फ्रांसीसी अखबार ‘ला मांद’ ने राफेल पर जो खबर छापी है, उससे फ्रांस की राजनीति में भूचाल आने की पूरी सम्भावना नजर आ रही है, वहीं आम चुनाव के वक्त भारत में इस मुद्दे का इस तरह तूल पकड़ना मोदी सरकार के पांव तले जमीन हिला रहा है. राफेल विवाद में नया मोड़ उस वक्त आया जब 13 अप्रैल को फ्रांसीसी अखबार ‘ला मांद’ ने इस पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए खुलासा किया कि राफेल सौदे से पहले फ्रांस में मौजूद अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस को वर्ष 2015 में 143.7 मिलियन यूरो यानी 1100 करोड़ रुपये से ज्यादा का फायदा पहुंचाया गया है. यह फायदा अंबानी को टैक्स में छूट देकर पहुंचाया गया. अखबार ने लिखा कि अनिल अंबानी को टैक्स में यह जबरदस्त छूट भारत के प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राफेल सौदे के तहत 36 लड़ाकू विमानों को हरी झंडी दिये जाने के छह महीने बाद दी गयी. गौरतलब है कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस कंपनी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित फ्रांस के साथ भारत के राफेल जेट सौदे में एक औफसेट साझेदार है.

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फ्रांस में मौजूद अंबानी की कंपनी रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस समुद्र के भीतर केबलिंग का काम करती है. फ्रांसीसी टैक्स अधिकारियों द्वारा जब इस कंपनी की जांच की गयी थी, तो पता चला कि साल 2007 से 2010 की अवधि के लिए टैक्स के रूप में कंपनी को 60 मिलियन यूरो का भुगतान करना था. जबकि कंपनी ने इसके उलट मात्र 7.6 मिलियन यूरो का भुगतान करने की पेशकश की थी. फ्रांसीसी अधिकारियों ने अनिल अंबानी की इस पेशकश को ठुकरा कर कंपनी के खिलाफ फिर से एक और जांच शुरू कर दी. इस जांच में वर्ष 2010 से 12 तक का भी टैक्स निकाला गया, जिसमें अनिल अंबानी की कंपनी को अतिरिक्त 91 मिलियन यूरो का टैक्स देने के लिए कहा गया. कंपनी ने यह टैक्स भी जमा नहीं किया और कुल टैक्स की रकम 151 मिलियन यूरो हो गयी.

आश्चर्यजनक बात यह है कि वर्ष 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जब राफेल डील की घोषणा हुई तो उसके छह महीने बाद ही फ्रांसीसी टैक्स अधिकारियों ने रिलायंस से टैक्स विवाद के निपटारे को अंतिम रूप दे दिया. इसके तहत कंपनी से 151 मिलियन यूरो की बकाया राशि की बजाय सिर्फ 7.3 मिलियन यूरो लिये जाने पर रजामंदी हो गयी और इस तरह रिलायंस को सीधे करीब 141 मिलियन यूरो यानी 1100 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया गया. यह फायदा आखिर किसके कहने पर और क्यों अनिल अंबानी को पहुंचाया गया? यह बड़ा सवाल है, जिसे फ्रांस में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक एनजीओ ‘शेरपा’ ने उठाया है और ‘शेरपा’ के साथ ही फ्रांसीसी अखबार ‘ला मांद’ ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए कई सनसनीखेज सवाल उठाये हैं.

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भारत में भले राफेल मामले की जांच जल्दी शुरू न हो पाये, मगर फ्रांस की सरकार जांच की आशंका से जरूरी थरथरा रही है. भारत में सीबीआई को की गयी एक शिकायत को आधार बना कर फ्रांस में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले एनजीओ ‘शेरपा’ ने राफेल लड़ाकू विमानों पर फ्रांस की सरकार से इस डील पर जांच की मांग की है. यह शिकायत पूर्व मंत्री और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक वकील की ओर से की गयी है. एनजीओ ने यह जानना चाहा है कि आखिर किन नियम-कायदों के तहत भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमानों का सौदा हुआ और राफेल जेट निर्माता कंपनी डसौल्ट एविएशन की ओर से किस आधार पर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को औफसेट पार्टनर के रूप में चुना गया? एनजीओ ‘शेरपा’ के संस्थापक विलियम बोर्डन के अनुसार इस डील में जो कुछ भी हुआ, वह बेहद गम्भीर है. उन्होंने एक शिकायती पत्र नेशनल प्रॉजीक्यूटर के कार्यालय को भेजा है, जिसमें कहा गया है कि 59,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे में भ्रष्टाचार, अनुचित लाभ पहुंचाने, झूठे दावे किये जाने और काले धन को सफेद किये जाने का संदेह हैं. यह सौदा फ्रांस की सरकार, भारत सरकार और डसौल्ट कंपनी के बीच किया गया है. शिकायती पत्र में यह सवाल भी उठाया गया है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को क्यों इसमें साझीदार बनाया गया जबकि उसका इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है. विलियम बोर्डन ने अपनी शिकायत में साफ कहा है कि रिलायंस डिफेंस नाम की जिस कंपनी को इस सौदे का आफसेट पार्टनर बनाया गया है, उसे लड़ाकू जेट विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है. उस कंपनी का पंजीकरण भी सौदा होने के मात्र 12 दिन पहले किया गया. जबकि उससे पहले इसमें भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की आजमायी हुई कंपनी एचएएल को शामिल किया जाना था. बोर्डन ने कहा कि यह बेहद गम्भीर मामला है और यह जानकारी राष्ट्रीय वित्तीय अभियोजक को दे दी गयी है. उम्मीद है कि जांच जल्दी ही शुरू होगी. एनजीओ ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा है कि यह उम्मीद है कि देश (फ्रांस) का राष्ट्रीय लोक अभियोजक कार्यालय तथ्यों की गंभीरता से जांच कर सम्भावित भ्रष्टाचार और अनुचित फायदे के बारे में पता लगाएगा.

फ्रांस में अभियोजक कार्यालय बहुत शक्तिशाली माना जाता है. इसे 2014 में सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाले भ्रष्टाचार की जांच के लिए बनाया गया था. कार्यालय के मीडिया प्रभारी का कहना है कि वह जांच तभी शुरू करता है, जब मामले में कोई गंभीरता हो. अक्तूबर 2016 में इस कार्यालय ने स्कार्पियो प्रजाति की पनडुब्बी ब्राजील को बेचे जाने की जांच शुरू की थी. यह सौदा तब हुआ था जब निकोलस सरकोजी फ्रांस के राष्ट्रपति थे. इस जांच में मनी लौन्ड्रिग और टैक्स की धोखाधड़ी के आरोप में सिनेटर डसौ को दो साल की सजा हुई थी.

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फ्रांसीसी अखबार ‘ला मांद’ भी लिखता है कि अप्रैल 2015 के अंत में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 36 राफेल विमानों की खरीद से जुड़े अपने इरादे को साफ किया था. इसके कुछ दिनों बाद ही अनिल अंबानी ने अपनी कंपनी को पंजीकृत करवाया और डसौल्ट के साथ अपना संयुक्त उपक्रम बनाया. आरोप है कि अंबानी की यह नयी कंपनी पूरी तरह से एक बोगस कंपनी है और जिसे लड़ाकू विमान बनाने से सम्बन्धित कोई अनुभव नहीं है. ‘ला मांद’ ने यह सवाल उठाया है कि क्या अनुबंध पर दस्तखत होने से पहले ही अनिल अंबानी को पता था कि ऑफसेट उन्हीं के पास आएगा? ये एक साल बाद होगा? फरवरी से अक्टूबर 2015 के बीच अनिल अंबानी डसौल्ट के नये पार्टनर ठीक तभी बनते हैं जब अपने असल दावे की जगह टैक्स प्राधिकारी 151 मिलियन यूरो की जगह उनके 7.3 मिलियन यूरो के लेन-देन को स्वीकार कर लेते हैं. आखिर यह सब किसकी मिलीभगत से हो रहा था?

गौरतलब है कि राफेल सौदा यूपीए-2 सरकार में फ्रांस की कंपनी डसाल्ट के साथ तय हुआ था. जब मोदी सत्ता में आये तो उन्होंने यूपीए सरकार के समय फ्रांस की डसाल्ट कंपनी के साथ हुई राफेल डील को निरस्त कर दिया, जिसमें 126 विमान को 590 करोड़ रुपये प्रति विमान की कीमत से खरीदा जाना था. मोदी ने डसाल्ट के बजाए फ्रांस सरकार से राफेल को खरीदने की पेशकश की. अब सिर्फ 36 विमान खरीदने की बात की गयी, लेकिन लगभग तिगुनी कीमत यानी 1690 करोड़ रुपये प्रति विमान देने की पेशकश की गयी. गौर करने वाली बात यह है कि इस डील की बात सामने आने से पहले अनिल अंबानी मार्च 2015 के अंत में पेरिस में फ्रांस के रक्षा मंत्री ज्यां-यवेस लेस ड्रियन के कार्यालय में भी देखे गये थे और उसके अगले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद का ऐलान किया था.

फ्रांस के लिए यह सौदा हर हाल में अच्छा था. जाहिर है कि तिगुनी कीमत के दिये जाने के पीछे बहुत बड़े निगोशिएशन हुए होंगे. पिछले दिनों यह भी सामने आया कि राफेल डील पर मुहर लगने से पहले अंबानी की रिलायंस एंटरटेनमेंट कंपनी ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के करीबी सहयोगी जुली गायेट के साथ एक फिल्म निर्माण के लिए भी समझौता किया है.

गौरतलब है कि यूपीए-2 को सत्ता से बाहर का रास्ता इसलिए देखना पड़ा था कि उस पर भ्रष्टाचार के कई बड़े आरोप थे. 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला घोटाला, वाड्रा लैंड स्कैम को काफी उछाला गया था. इन तमाम मामलों की जांचें जारी हैं. बोफोर्स का जिन्न भी इस दौरान बाहर आया, राबर्ट वाड्रा से भी लम्बी-लम्बी पूछताछ चली, तो ऑगस्टा वेस्टलैंड मामले ने भी काफी तूल पकड़ा. वाड्रा से पूछताछ में क्या निकल कर आया, यह अभी गोपनीय है. वेस्टलैंड मामले में जांच फिलहाल काफी तेजी से चल रही है और क्रिश्चियन मिशेल को भारत लाकर भाजपा काफी उत्साहित भी है. क्रिश्चियन मिशेल से पूछताछ में भी हालांकि अभी तक कुछ खास निकल कर सामने नहीं आया है, दूसरे इटली की अदालत से उसे क्लीन चिट भी मिल गयी है, मगर जब तक चुनावी मौसम तारी है, क्रिश्चियन मिशेल प्रवर्तन निदेशालय के मेहमान तो बने ही रहेंगे. सवाल यह है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे को तूल देकर, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का आगाज़ करके जब भाजपा केन्द्र की सत्ता में आयी तो अब इतने बड़े राफेल सौदे में घोटाले का आरोप लगने के बाद वह खुद जांच से क्यों डर रही है? वह क्यों बार बार सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश में जुटी है? क्यों मीडिया के सवालों से बच रही है? कैसे उसकी गोपनीय फाइलें तक रक्षा मंत्रालय से चोरी चली जाती हैं? मोदी जी, क्या सारे नियम-कानून, जांच और सजा का प्रावधान सिर्फ विरोधी पार्टियों के लिए ही है?

मोदी की नैया

यह गनीमत ही कही जाएगी कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान से व्यर्थ का युद्ध नहीं लड़ा.

सेना को एक निरर्थक युद्ध में झोंक देना बड़ी बात न होती. पर जैसा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि युद्ध शुरू करना आसान है, युद्ध जाता कहां है, कहना कठिन है. वर्ष 1857 में मेरठ में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई ब्रिटिशों की हिंदुओं की ऊंची जमात के सैनिकों ने छेड़ी लेकिन अंत हुआ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर एकछत्र ब्रिटिश राज में, जिस में विद्रोही राजा मारे गए और बाकी कठपुतली बन कर रह गए.

आक्रमणकारी पर विजय प्राप्त  करना एक श्रेय की बात है, पर चुनाव जीतने के लिए आक्रमण करना एक महंगा सौदा है, खासतौर पर एक गरीब, मुहताज देश के लिए जो राइफलों तक के  लिए विदेशों का मुंह  ताकता है, टैंक, हवाईजहाजों, तोपों, जलपोतों, पनडुब्बियों की तो बात छोड़ ही दें.

नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव का मुद्दा उन के पिछले 5 वर्षों के काम होना चाहिए. जब उन्होंने पिछले हर प्रधानमंत्री से कई गुना अच्छा काम किया है, जैसा कि उन का दावा है, तो उन्हें चौकीदार बन कर आक्रमण करने की जरूरत ही क्या है? लोग अच्छी सरकार को तो वैसे ही वोटे देते हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बिना धार्मिक दंगे कराए चुनाव दर चुनाव जीतते आ रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दबदबा बिना सेना, बिना डंडे, बिना खूनखराबे के बना हुआ है.

नरेंद्र मोदी को खुद को मजबूत प्रधानमंत्री, मेहनती प्रधानमंत्री, हिम्मतवाला प्रधानमंत्री, चौकीदार प्रधानमंत्री, करप्शनफ्री प्रधानमंत्री कहने की जरूरत ही नहीं है, सैनिक कार्यवाही की तो बिलकुल नहीं.

रही बात पुलवामा का बदला लेने की, तो उस के बाद बालाकोट पर हमला करने के बावजूद कश्मीर में आएदिन आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं. आतंकवादी जिस मिट्टी के बने हैं, उन्हें डराना संभव नहीं है. अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक, सीरिया में प्रयोग किया हुआ है. पहले वह वियतनाम से मार खा चुका है. अमेरिका के पैर निश्चितरूप से भारत से कहीं ज्यादा मजबूत हैं चाहे जौर्ज बुश और बराक ओबामा जैसे राष्ट्रपतियों की छातियां 56 इंच की न रही हों. बराक ओबामा जैसे सरल, सौम्य व्यक्ति ने तो पाकिस्तान में एबटाबाद पर हमला कर ओसामा बिन लादेन को मार ही नहीं डाला था, उस की लाश तक ले गए थे जबकि उन्हें अगला चुनाव जीतना ही नहीं था.

नरेंद्र मोदी की पार्टी राम और कृष्ण के तर्ज पर युद्ध जीतने की मंशा रखती है पर युद्ध के  बाद राम को पहले सीता को, फिर लक्ष्मण को हटाना पड़ा था और बाद में अपने ही पुत्रों लवकुश से हारना पड़ा था. महाभारत के जीते पात्र हिमालय में जा कर मरे थे और कृष्ण अपने राज्य से निकाले जाने के बाद जंगल में एक बहेलिए के तीर से मरे थे. चुनाव को जीतने का युद्ध कोई उपाय नहीं है. जनता के लिए किया गया काम चुनाव जिताता है. भाजपा को डर क्यों है कि उसे युद्ध का बहाना भी चाहिए. नरेंद्र मोदी की सरकार तो आज तक की सरकारों में सर्वश्रेष्ठ रही ही है न!

मुल्तानी मिट्टी के इन फेस पैक से पाएं पिंपल्स से छुटकारा

क्या आप औयली स्किन और पिंपल्स से परेशान हैं? आजकल की बिजी लाइफ में आप अपनी स्किन का ख्याल नही रखते, जिससे आप अपने पिंपल और औयली स्किन के लिए भी कुछ नही कर पाते. आपके स्किन से एकस्ट्रा औयल और गंदगी को हटाने के लिए मुल्तानी मिट्टी सबसे अच्छा इलाज है. साथ ही मुंहासों और ब्लैकहेड्स को भी हटाता है. जब आप इसे दूसरी चीजों के साथ मिक्स कर के लगाते हैं, तो यह आपकी हेल्दी स्किन के लिए अच्छा होगा.

  1. मुहांसों और फुंसियों के लिए मुल्तानी मिट्टी फेस पैक

यह सिंपल फेस पैक है, जो मुंहासों और दाग फ्री स्किन पाने में मदद करता है.

हमें चाहिए…

मुल्तानी मिट्टी पाउडर

पानी

ऐसे लगाएं…

-मुल्तानी मिट्टी पाउडर में पानी मिलाकर पेस्ट बनाएं.

-इस पेस्ट को त्वचा पर लगाएं।

-कुछ मिनटों के बाद, मुंह को धो दें.

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  1. मुल्तानी मिट्टी, शहद, दही और नींबू के रस का फेस पैक

यह पैक प्रोटीन के लेवल को बैलेंस करता है और पिंपल्स खत्म करने में मदद करता है. यह डेड स्किन सेल्स को स्क्रब करता है और स्किन को जवान और हेल्दी बनाने में मदद करता है.

हमें चाहिए…

मुल्तानी मिट्टी के 2 बड़े चम्मच

1 बड़ा चम्मच शहद

1 चम्मच नींबू का रस

1 बड़ा चम्मच दही

ऐसे बनाएं…

-पेस्ट बनाने के लिए मुल्तानी मिट्टी, शहद, दही और नींबू के रस को मिलाएं.

-चेहरे पर लागू करें और इसे 10 मिनट के लिए छोड़ दें ताकि यह सूख जाए.

-पानी से अच्छी तरह फेस को धो लें.

-हफ्ते में कम से कम एक बार इस्तेमाल करें.

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  1. मुल्तानी मिट्टी और एलोवेरा फेस पैक

इसका इस्तेमाल मुंहासों को दूर करने के लिए किया जाता है.

हमें चाहिए…

मुल्तानी मिट्टी

एलोवेरा जेल

ऐसे बनाएं

-पेस्ट बनाने के लिए मुल्तानी मिट्टी को कुछ एलोवेरा जेल के साथ मिलाएं.

इसे अपने चेहरे पर लगाएं और कुछ मिनट के लिए छोड़ दें ताकि यह सूख जाए।

पानी से धोएं।

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  1. मुल्तानी मिट्टी और टमाटर का फेस पैक

टमाटर एक नेचुरल एक्सफोलिएटर के रूप में काम करता है. यह पैक स्पौट फ्री ग्लोइंग स्किन देता है.

हमें चाहिए…

2 बड़े चम्मच टमाटर का रस

मुल्तानी मिट्टी के 2 बड़े चम्मच

ऐसे बनाएं…

-टमाटर के रस के साथ मुल्तानी मिट्टी मिलाएं.

-इसे अपने चेहरे पर लगाएं और 10 मिनट के लिए छोड़ दें.

-और फिर गर्म पानी से फेस को धो लें.

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  1. मुल्तानी मिट्टी और बादाम फेस पैक

यह आपकी स्किन से मुंहासों और पिंपलों से छुटकारा पाने के लिए एक बेस्ट फेस पैक है.

हमें चाहिए…

पीसे हुए बादाम

मुल्तानी मिट्टी का पाउडर

ऐसे बनाएं…

-मुल्तानी मिट्टी और पीसे हुए बादामों के पाउडर को पानी के साथ पेस्ट बनाएं.

-इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं और सर्कुलर मोशन में स्क्रब करें.

-कुछ मिनटों के बाद, गुनगुने पानी से फेस को धो दें.

खुशियों के पल – भाग-1

लाइब्रेरी के इश्यू काउंटर पर बैठी उस सुंदर सी लड़की ने उन की तरफ मुसकरा कर देखा व बोली, ‘‘ये किताबें इश्यू करनी हैं या जमा करनी हैं.’’

वे भी मुसकरा पड़े, ‘‘इश्यू करनी हैं, प्लीज.’’

उस ने झटका दे कर अपने माथे पर आई बालों की लट को पीछे किया व किताबें अपनी तरफ खींच लीं.

3 किताबें थीं. उन्होंने अपने कार्ड तीनों किताबों के कवर के नीचे लगा दिए थे ताकि इश्यू करने में आसानी हो. लड़की ने अपने सामने पड़ा मोटा सा रजिस्टर खींच लिया व किताबों की एंट्री करने लगी. रजिस्टर व किताबों में एंट्री कर के किताबें उन की तरफ बढ़ा दीं. वे एकटक उसे देख रहे थे. उस ने किताब पर उंगली टकटकाई.

‘‘ओ यस,’’ कहते उन्होंने किताबें उठा लीं व वापस मुड़े.

‘‘अरे, टोकन तो ले लीजिए,’’ उस ने आवाज दी.

‘‘आय एम सौरी,’’ उन्होंने घूम कर उस की हथेली से टोकन उठा लिया, ‘‘मैं किसी ध्यान में था.’’

‘‘नो प्रौब्लम, यू आर औलवेज वैलकम सर,’’ तीखी मुसकान से उस लड़की ने कहा.

‘‘आप यहां नई आई हैं क्या?’’ उन से पूछे बिना न रहा गया, ‘‘मैं ने आप को पहले नहीं देखा.’’

‘‘जब पहले नहीं देखा तो नई ही हूं,’’ वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘मैं पहले पब्लिक लाइब्रेरी में थी, आज ही यहां आई हूं.’’

उस की हंसी पूरे इश्यू ऐंड डिपौजिट रूम के काउंटर, फर्नीचर, खिड़कियों में भर गई.

‘‘थैंक्यू,’’ कह कर वे रूम के बाहर निकल आए. बाहर के काउंटर पर किताबें चैक करा कर व टोकन सौंप कर वे लाइब्रेरी से बाहर आ गए व साइड में पार्क की गई अपनी कार के दरवाजे को रिमोट से खोल कर सीट पर बैठते हुए अपने माथे को हाथ से दबाया, ‘लड़की वाकई बड़ी खूबसूरत व तेज है भाई.’

लड़की की उम्र मुश्किल से 23-24 वर्ष की रही होगी. रंग गोरा, गुलाबी था. नाकनक्श जरा से तीखे थे. बाल घने व सीधे थे. बड़ीबड़ी आंखों की पुतलियां एकदम काली थीं व आंखें गहरी थीं. ऊंचे काउंटर पर बैठी वह लड़की उन्हें आकर्षक लगी थी.

वे कम उम्र के नौजवान नहीं थे. उन की उम्र 60 वर्ष की हो चुकी थी. अभी पिछले वर्ष ही वे अपनी 40 वर्ष की नौकरी पूरी कर के रिटायर हुए थे. एक सरकारी विभाग में उन का ओहदा एडीशनल सैक्रेटरी के स्तर का था. हालांकि उन्होंने अपनी नौकरी क्लर्क से शुरू की थी लेकिन सफलता की सीढि़यां बड़ी तेजी से चढ़ी थीं. औफिसर ग्रेड में तो वे 30 के पहले ही आ गए थे. वे बड़े मेहनती पर मस्तमौला टाइप के आदमी थे. पढ़नेलिखने का शौक उन्हें पहले से ही रहा था. वे अपने समय में आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक रहे थे. उन का रंग गोराचिट्टा था. कद भी अच्छा था. 5 फुट 10 इंच.

बचपन में गांव में पिताजी के निर्देश पर अखाड़े में की गई मेहनत ने उन का साथ ताउम्र दिया था. अभी भी सुबह आधा घंटा व्यायाम करने के कारण जिस्म चुस्त था. वे शुरू से ही पौष्टिक भोजन ही करते रहे. जीवनचर्या अनुशासित रही. कपड़े का चयन उन का हमेशा यूनीक हुआ करता था. इसी कारण उन के दोस्त कहा करते थे, ‘यार विशाल, तुम तो एकदम देवानंद लगते हो.’

विशाल की शादी 26 वर्ष की आयु में हुई थी. उन की पत्नी माधुरी भी कम खूबसूरत नहीं थी. वह उन से 2 वर्ष छोटी थी पर अब उम्र के साथ स्थूल हो गई थी. उस को उम्रभर मीठे का शौक रहा. चौकलेट व आइसक्रीम उस की कमजोरी रही. सो, वजन बढ़ना लाजिमी था. गनीमत थी उसे ब्लडप्रैशर या शुगर जैसी कोई बीमारी नहीं हुई थी.

उन के 2 पुत्र थे. पुत्री कोई नहीं थी. दोनों पुत्र इंजीनियर थे. रिटायरमैंट से पहले ही दोनों पुत्रों के विवाह कर के वे अपनी जिम्मेदारियों से फ्री हो गए थे. दोनों लड़के व बहुएं विदेश में थे. बड़ा वाला बेटा अमेरिका में व छोटा कनाडा में.

घर पहुंचतेपहुंचते वे उस लाइब्रेरी वाली लड़की को भूल चुके थे. पर कार की पिछली सीट से किताबें उठाते हुए बड़ी तेजी से उस की याद आई, पर उन्होंने मुसकरा कर सिर झटक दिया व अंदर की तरफ बढ़ गए. सामने ड्राइंगरूम में ही माधुरी बैठी कोई मैगजीन देख रही थी.

‘‘आ गए,’’ माधुरी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कहां गए थे मटरगश्ती करने शशिकपूर.’’ वह उन्हें शुरू से ही शशिकपूर कहती थी. अभिनेता शशिकपूर उस का फेवरिट जो था.

‘‘आज तो लाइब्रेरी गया था,’’ उन्होंने कहा.

‘‘लाइब्रेरी में कहीं मटरगश्ती होती है क्या?’’

‘‘तुम को कैसे पता चल जाता है भई. आज तो सच में लाइब्रेरी में मटरगश्ती करने गया था. बड़ी खूबसूरतखूबसूरत लड़कियां होती हैं वहां. मजा आ जाता है.’’

‘‘चलो मूर्ख मत बनाओ, खाना लगा देती हूं, खा लो.’’

‘‘लाइब्रेरी के पहले सरला आंटी के यहां चला गया था. वे तो करीबकरीब बैडरिडेन हो गई हैं. अंकल परेशान थे.’’

‘‘चलो यह अच्छा किया,’’ माधुरी उठ गई, ‘‘सोचती हूं मैं भी किसी दिन उन्हें देख आऊं.’’

‘‘चलो न, अगले हफ्ते ही चलते हैं,’’ कह कर वे कमरे में कपड़े बदलने लगे.

यह मकान उन्होंने करीब 10 वर्ष पहले बनवाया था. जमीन तो पहले की ली हुई थी. 3 कमरे व हौल नीचे थे, ऊपर एक कमरा बनवाया था. उस के ऊपर खुली छत थी व सामने 15 फुट का बगीचा था. गाड़ी खड़ी करने को पोर्टिको भी था. मकान उन्होंने बड़े शौक से बनवाया था. माधुरी मकान को रखती भी बड़े सलीके से थी. उस से खुद तो ज्यादा मेहनत नहीं होती थी पर झाड़ू, डस्ंिटग के लिए कामवाली लगी थी. हौल में पड़ा सोफा व 2 बुकशैल्फ शानदार व चमकदार थीं. घर में रहने वाले वे 2 ही थे. लड़के तो बाहर ही थे. हां, 2 साल में एकबार वे साथसाथ आने का प्रोग्राम बनाते थे. तब घर में पूरी रौनक हो जाती थी.

बड़े लड़के के एक बेटी थी. छोटे बेटे के अभी कोईर् संतान नहीं थी. वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे. वे जब आते थे तो पूरे घर में तूफान सा आ जाता था. रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. रिटायरमैंट के बाद पीएफ व ग्रेच्युटी की पूरी रकम बैंक में पड़ी थी. उन की पैंशन भी अच्छीखासी थी. बेटे भी कुछ भेजते रहते थे. घर में खाना बनाने का काम माधुरी खुद ही करती थी. बाहर की मार्केटिंग व सब्जी वगैरह लाने का काम विशाल खुद करते थे. 2 ही तो लोग थे, काम ही कितना था.

वे आमतौर पर 15 दिनों में लाइब्रेरी की किताबें पढ़ लिया करते थे. दिन में भी पढ़ते थे, रात में तो पढ़े बिना उन्हें

नींद ही नहीं आती थी. करीब 15 दिनों के बाद उन्होंने लाइब्रेरी जाने का प्रोग्राम बनाया.

गरमी के दिनों में वे टीशर्ट ही पहना करते थे. आज भी उन्होंने बड़े जतन से हलके नीले रंग की टीशर्ट व गाढ़े नीले रंग का फिट पैंट पहना था. आंखों पर फोटोक्रोमिक लैंस का चश्मा भी लगा लिया था. हालांकि चश्मे का नंबर जीरो था. आराम से ड्राइविंग करते हुए वे लाइब्रेरी पहुंच गए. वे अनजाने में ही हलकेहलके सीटी बजा रहे थे. कार से उतरने के पहले हलका सैंट भी स्प्रे कर लिया था. सब से पहले उन्हें इश्यू व डिपौजिट काउंटर या रूम में ही जाना था.

उन का दिल धक से रह गया. आज वह लड़की काउंटर पर नहीं थी. उस की जगह कोई और लड़की काउंटर पर बैठी किताबें इश्यू व जमा कर रही थी. जब उन का नंबर आया तो उस ने सामान्यभाव से उन की किताबें जमा कर के उन के तीनों कार्ड उन्हें दे दिए.

क्या हो गया उस लड़की को. कहीं किसी और लाइब्रेरी में ट्रांसफर तो

नहीं हो गया. पर इतनी जल्दीजल्दी तो ट्रांसफर होता नहीं है. जरूर तबीयत खराब हो गई होगी. उन्हें तो उस का नाम भी नहीं मालूम वरना किसी से पूछ ही लेते. उन की उम्र को देखते हुए कोई कुछ सोचता भी नहीं. यही सब सोचते हुए वे एक शैल्फ से दूसरी शैल्फ  में लगी किताबें देखते रहे. आज उन से अपनी मनपसंद किताबें छांटते नहीं बन पा रहा था.

‘‘गुडमौर्निंग सर,’’ वे चौंक कर पीछे मुड़े.

वही लड़की पीछे खड़ी मुसकरा रही थी. वे एक क्षण के लिए ताज्जुब में पड़ गए. वह आज और भी सुंदर, और भी दिलकश लग रही थी. हरे रंग के सूट में उस की खूबसूरती और भी खिल रही थी. काउंटर पर बैठी हुई वह आधा ही दिखाई देती थी पर इस समय वह पूर्णरूप से उन के सामने थी. उस के पैरों में पतली मैचिंग चप्पलें थीं.

‘‘गुडमौर्निंग, बल्कि वैरी गुडमौर्निंग,’’ उन्होंने अपने को संभाल लिया. वे वाकई चौंक गए थे.

‘‘आय एम सौरी सर, मुझे पीछे से आवाज नहीं देनी चाहिए थी. आय एम रियली सौरी.’’

‘‘नहीं, कोई बात नहीं. आज आप की ड्यूटी काउंटर पर नहीं है क्या?’’

‘‘नहीं, यहां का कैटलौग बड़ा अव्यवस्थित है. वही ठीक करने के लिए कहा गया है. आप किस तरह की किताबें पढ़ते हैं सर?’’

‘‘नौरमली, मैं हर विषय पर पुस्तकें पढ़ लेता हूं. पर मेरी खास पसंद सोशल राइटिंग है.’’

‘‘आज लगता है अभी तक आप को कोई किताब पसंद नहीं आई है. क्या मैं आप की कोई मदद करूं?’’

‘‘नहींनहीं, मैं कर लूंगा. फिर तुम्हें अपना भी तो काम करना है, डिस्टर्ब होगा. माफ करना, मैं आप को तुम्हें कह गया.’’

‘‘ठीक तो है. आप को मुझे तुम ही कहना चाहिए. और मुझे क्या डिस्टर्ब होगा. कैटलौग का एक दिन का काम तो है नहीं. दसियों हजार किताबें हैं. पूरे कैटलौग को चैक करना व फिर मिसिंग को चढ़ाना एक आदमी का काम नहीं है. लाइब्रेरियन भी सिर्फ खानापूर्ति करते हैं. कहने को हो गया कि किसी को कैटलौग के काम में लगाया है.’’

उस का चेहरा थोड़ा तमतमा गया था. उस का तमतमाया चेहरा और भी अच्छा लग रहा था. वे किनारे की शैल्फ के पास खड़े हो कर बातें कर रहे थे व धीरेधीरे बोल रहे थे जिस से दूसरे लोगों को असुविधा न हो.

‘‘मैं तो कैटलौग के पास कभी गया ही नहीं. सीधे शैल्फ से ही किताबें सिलैक्ट कर लेता हूं.’’

‘‘आप क्या किसी सरकारी विभाग में हैं?’’

‘‘हां.’’

‘‘गजेटैड अफसर होंगे आप तो?’’

‘‘कह सकती हो, बात क्या है?’’

‘‘मुझे आप से एक काम है. इसीलिए आप को देखा तो आप के पास आ गई. क्या आप मेरा एक काम कर देंगे?’’ उस ने अपनी मुसकराहट बिखेरी.

‘‘बोलो, क्या काम है? जरूर कर दूंगा.’’ उन को अंदर से उतावलापन महसूस हुआ.

‘‘मुझे अपने कुछ टैस्टिमोनियल्स अटैस्ट कराने हैं. मुझे एक अच्छी जगह अप्लाई करना है. क्या आप अटैस्ट

कर देंगे.’’

‘‘और कहीं क्यों अप्लाई कर रही हो? यहां तो जौब कर ही रही हो न?’’

‘‘नहीं, मैं यहां जौब नहीं कर रही हूं. मैं यहां ट्रेनिंग कर रही हूं. मैं एमलिब कर रही हूं. हमें एक साल लाइब्रेरी में काम करना पड़ता है. तो आप अटैस्ट कर देंगे न.’’

‘‘अटैस्ट तो कर देता, पर एक प्रौब्लम है.’’

‘‘क्या प्रौब्लम है? क्या आप गजेटैड अफसर नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, गजेटैड अफसर तो था पर, पर…अच्छा तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मेरा नाम नीरजा है. नीरजा टंडन. आप का नाम क्या है?’’

‘‘तुम मुझे विशाल अंकल कह सकती हो.’’

‘‘अंकल, तो मैं कभी न कहूं आप को.’’

‘‘तो तुम विशाल कह सकती हो,’’ उन्हें अंदर से खुशी महसूस हुई.

‘‘पर प्रौब्लम क्या है, यह तो बताइए.’’

‘‘देखो नीरजा, मैं रिटायर हो चुका हूं.’’

‘‘रिटायर…आप…हो ही नहीं सकता. रिटायर तो 60 साल की उम्र में होते

हैं न? क्या आप को जल्दी रिटायर कर दिया गया?’’

‘‘नहीं, मैं समय पर ही रिटायर हुआ हूं. अभी पिछले साल ही रिटायर हुआ हूं.’’

‘‘पर आप की उम्र तो 60 की लगती ही नहीं.’’

‘‘कितनी लगती है?’’ अब वे मुसकरा पड़े. नीरजा ने उन्हें ध्यान से देखा, ऊपर से नीचे तक देखा. फिर बोली, ‘‘50, बस, इस से ज्यादा नहीं.’’

‘‘पर मैं तो समझता था कि तुम यहां नौकरी करती हो. क्या ट्रेनिंग में कुछ पैसा भी देते हैं?’’

‘‘हां, स्टाइपैंड देते हैं. पर ज्यादा नहीं. मैं तो सोच रही थी कि आप से मेरा काम हो जाएगा.’’

‘‘अरे, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’

‘‘सच कह रहे हैं,’’ उस ने धीरेधीरे अपनी निगाह ऊपर उठाई व उन के चेहरे की तरफ देखा, ‘‘क्या सच ही.’’

‘‘बिलकुल सच. मेरे कई साथी हैं. मैं किसी से भी अटैस्ट करा दूंगा. देखूं, कौन से पेपर हैं.’’

‘‘अभी लाई. मेरे बैग में औफिस में हैं. आप पूरी फाइल ही ले लीजिएगा. यहां किसी को पता नहीं चलना चाहिए.’’

वह जल्दी से औफिस की ओर चल दी. उन को अंदर से बड़ा अच्छा लग रहा था. उन्होंने जल्दी से किताबें देखीं व उसी शैल्फ  से 3 किताबें फाइनल कर लीं. तभी नीरजा वापस आ गई. उस के हाथ में एक औफिस फाइल थी.

‘‘इसी में सारे टैस्टिमोनियल्स हैं. जिन्हें अटैस्ट करना है उन में फ्लैग लगे हैं. इस में मेरी अप्लीकेशन भी है. प्लीज मेरा साइन भी वैरीफाई करा दीजिएगा.’’

‘‘ठीक है, ओरिजिनल कहां हैं.’’

‘‘ओरिजिनल तो यहां नहीं हैं. क्या नहीं हो पाएगा? ये सभी ओरिजिनल की फोटोकौपीज हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं. मैं कह दूंगा ओरिजिनल मैं ने देख लिए हैं. फिर फोटोकौपी भी तो ओरिजिनल से ही होती है न.’’

‘‘थैंक्यू सर, आप का बड़ा एहसान होगा. लगता है आप ने बुक्स फाइनल कर ली हैं. आप बैठिए, मैं बुक्स इश्यू करा लाती हूं. कार्ड भी दे दीजिए.’’

उन्होंने कार्ड व पुस्तकें उसे दे दीं. वह इश्यू कराने के लिए चली गई. वे फाइल हाथ में लिए बुकशैल्फ के पास खड़े किताबें देखते रहे. उन के मन में नीरजा का कहा गूंजता रहा. उस ने क्यों कहा कि अंकल तो मैं कभी न कहूं आप को. चलो अगर वह उसे 50 का भी मानती है तो अंकल लायक बड़ा तो उसे मानना ही चाहिए. उन्हें थोड़ा गर्व भी महसूस हुआ. ऐसे ही नहीं, उन के दोस्त पहले उन्हें देवानंद कह कर बुलाया करते थे. नीरजा ने कहा था, फाइल में उस की अप्लीकेशन भी है. उन्होंने फाइल खोल कर देखी. उन का मन खुश हो गया. अप्लीकेशन में उस का प्यारा सा फोटो लगा हुआ था.

‘‘क्या देख रहे हैं?’’

उन्होंने ध्यान नहीं दिया था, नीरजा वापस आ चुकी थी, ‘‘मेरा फोटो देख रहे हैं न. देखिए, जीभर कर देखिए. बल्कि कहिएगा तो अपना एक फोटो अलग से दे दूंगी.’’

‘‘अप्लीकेशन में छोटा फोटो लगाते हैं, तुम ने पासपोर्ट साइज लगा रखा है. वही देख रहा था.’’

‘‘पासपोर्ट साइज ही मांगा है. ये लीजिए अपनी किताबें व टोकन. तो कब आऊं, मैं आप के घर?’’

‘‘घर…वो किस…किसलिए?’’

‘‘अरे, पेपर लेने के लिए.’’ नीरजा शरारत से मुसकरा पड़ी, ‘‘आप तो घबरा गए. अप्लाई भी तो करना है. कब अटैस्ट कराएंगे?’’

‘‘अटैस्ट तो मैं आज ही करा लूंगा. पर मेरा घर तो बहुत दूर है. ऐसा है, मुझे

2-3 दिनों में इधर आना है. मैं ही ला कर दे दूंगा.’’

‘‘आप के पास कार है न. मैं ने देखी है. किसी दिन उस में मुझे भी घुमाइए न.’’

‘‘जब कहो. पर आज मैं चलता हूं. तुम तो शाम को ही निकल पाती होगी?’’

‘‘मैं ठीक 5 बजे निकल जाती हूं. आप ऐसा कीजिएगा, आप परसों 5 बजे ही आइएगा. गाड़ी सड़क पर ही पार्क कर दीजिएगा. मैं वहीं आप से पेपर ले लूंगी. परसों जरूर आइएगा.’’

‘‘पक्का,’’ कह कर उन्होंने किताबें उठा लीं व हाथ हिला कर बाहर आ गए. गाड़ी का दरवाजा खोल कर किताबें व फाइल पीछे की सीट पर रख कर ड्राइविंग सीट पर बैठे व रूमाल निकाल कर पसीना पोंछा. नीरजा एक तेज नशे की तरह उन के व्यक्तित्व पर छाती चली जा रही थी. अटैस्ट करने का क्या है, उन्होंने गाड़ी स्टार्ट करते हुए  सोचा. एडीशनल सैक्रेटरी की मुहरें घर पर पड़ी ही रहती थीं. अभी भी पड़ी हैं. मुहर लगा कर अटैस्ट कर साइन कर देंगे. बस, हो गया काम. किसी को क्या मालूम कब किया था.

घर पहुंच कर उन्होंने मुहर ढूंढ़ ली. उन के औफिस वाले बैग में ही मिल गई. अपनी स्टडी वाले छोटे रूम में आ कर उन्होंने सभी टैस्टिमोनियल्स पर मुहर लगा कर साइन भी कर दिए. ऊपर अटैस्ट भी लिख दिया. फिर पता नहीं क्या मन में आया कि उस की अप्लीकेशन स्कैन कर ली. कलर पिं्रटर व स्कैनर उन के पास था ही. अप्लीकेशन का स्कैन आ गया व नीरजा की फोटो भी बढि़या स्कैन हो गई. उन्होंने कैंची से फोटो काट ली व उलटी कर के पर्स में रख ली. अप्लीकेशन में साइन भी वैरीफाई कर दिए.

दूसरे दिन कुछ समय पहले ही लगभग साढ़े 4 बजे वे लाइब्रेरी पहुंच गए. बाहर सड़क पर ही गाड़ी पार्क कर दी. आज भी उन्होंने टीशर्ट व पैंट पहनी थी पर कलर अलग था. वे रोज सुबह नहाने से पहले दाढ़ी बनाते थे पर आज 2 बार बनाई थी. निकलने से पहले भी दाढ़ी बनाई थी.

ठीक 5 बजे नीरजा लाइब्रेरी से बाहर निकलती दिखाई दी. बाहर निकल कर वह ठिठकी, चारों तरफ देखा. उन की गाड़ी देख कर सीधे उन की तरफ आई. वे गाड़ी में बैठे रहे.

‘‘मेरा काम हुआ?’’ उस ने सीधे पूछा.

‘‘हो गया, आओ बैठो,’’ उन्होंने कहा.

‘‘नहीं, आप फाइल दे दीजिए सर. मुझे देर हो रही है.’’

‘‘लोग देख रहे हैं नीरजा. यह सड़क है. फिर तुम चैक भी तो कर लो न. कहीं छूटा न हो. आओ बैठो.’’ उन्होंने पैसेंजर साइड का दरवाजा खोल दिया. नीरजा वहां 2 क्षण खड़ी रही, फिर घूम कर आ कर बैठ गई व दरवाजा बंद कर लिया. आज उस ने ऊंची एड़ी की सैंडिल पहन रखी थी. उन्होंने इंजन स्टार्ट कर दिया.

उन्हें इंजन स्टार्ट करते देख उस ने नजरें उठाईं, ‘‘कहां ले जा रहे हैं मुझे?’’

‘‘कहीं नहीं, गाड़ी खड़ी रखना ठीक नहीं लगता. अगले चौराहे पर उतर जाना.’’

‘‘मुझे भगा कर तो नहीं ले जा रहे हैं?’’ वह हंस पड़ी.

‘‘मन तो यही कर रहा है,’’ वे भी हंस पड़े, ‘‘पर ऐसा है नहीं. तुम पेपर तो चैक कर लो.’’

‘‘करती हूं,’’ उस ने फाइल खोल ली व एकएक पेपर चैक करने लगी.

‘‘ठीक हैं. बस, एक जगह अटैस्ट लिखना रह गया है. पर कोई बात नहीं है, मैं खुद लिख लूंगी. थैंक्यू सर, आप ने मेरा बड़ा काम कर दिया.’’

‘‘यह अप्लीकेशन तुम फिशरीज डिपार्टमैंट में दे रही हो न?’’

‘‘हां, उन के हैडऔफिस में काफी बड़ी लाइब्रेरी है. उसी की वैकेंसी आई है. 2 पोस्ट हैं. बहुत लोग अप्लाई कर रहे हैं. मेरे साथ के तो सभी कर रहे हैं. सैंट्रल गवर्नमैंट जौब है न. देखिए, क्या होता है.’’

‘‘फिशरीज के जौइंट सैक्रेटरी मेरे अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘अच्छा, वे तो बड़े ऊंचे अफसर हुए.’’

‘‘हां, तुम कहो तो मैं उन से कह सकता हूं.’’

वह कई क्षणों तक उन के चेहरे की तरफ देखती रही. फिर अचानक उन के घुटनों पर हाथ रख कर बोली, ‘‘मेरा यह काम तुम्हें कराना होगा. जौइंट सैक्रेटरी चाहेगा तो यह जौब मुझे जरूर मिल जाएगा. सिर्फ इंटरव्यू ही है. प्लीज, मेरा यह काम करा दो न. मुझे इस जौब की बड़ी जरूरत है.’’ फिर वह जैसे अपने इस आवेग पर झेंप कर सिकुड़ कर बैठ गई. उन के पांव ऐक्सिलरेटर पर थरथरा रहे थे.

‘‘मैं देख लूंगा, डोंट वरी. मैं ने उस के कई काम किए हैं. चौराहा आ गया. तुम्हें उतरना है या आगे चलना है.’’

‘‘चलते रहिए. आई एम सौरी सर. मैं ने आप को तुम कह दिया. माफ कर दीजिए. मैं जोश में आ गई थी.’’

‘‘कोई बात नहीं, नीरजा. अगर तुम्हें अच्छा लगे, तो कह सकती हो. इस में क्या है?’’

‘‘मुझे बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘कौफी पियोगी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं ने कहा कौफी पीने का मन है क्या. कोल्ड कौफी. आगे अंबर की कौफी शौप है. मुझे उस की कोल्ड कौफी पसंद है.’’

‘‘कोल्ड कौफी तो मुझे भी बहुत पसंद है.’’

‘‘उतरना भी नहीं पड़ेगा, लड़का गाड़ी में ही कौफी वगैरह दे देता है. तो चलते हैं कौफी पीते हैं.’’ वह चुप रही.

अंबर कैफे सड़क पर ही था. सड़क के पीछे सड़क व पटरी के बीच लोहे की रेलिंग लगी थी. उन्होंने गाड़ी लोहे की रेलिंग के साथ लगा दी व हलके से हौर्न बजाया. एक लड़का तुरंत आया.

‘‘यस सर.’’

‘‘2 कोल्ड कौफी. 2 पेस्ट्री भी लाना.’’ लड़का चला गया.

‘‘आप ने पेस्ट्री क्यों मंगवाई है, बात तो कौफी की हुई थी.’’

‘‘कोल्ड कौफी के साथ इन की पेस्ट्री का अलग मजा है.’’

‘‘मैं पेस्ट्री नहीं खाऊंगी, तुम्हीं खाना.’’

‘‘पेस्ट्री तो तुम जरूर खाओगी. पेस्ट्री तुम्हें पसंद जो है.’’

‘‘तुम्हें…आप को, कैसे पता चला?’’

‘‘मैं जानता हूं. तुम जब न कहती हो तो मतलब होता है हां.’’

‘‘इस खयाल में मत रहिएगा मिस्टर विशाल, ऐसा नहीं है.’’ वे मुसकराते रहे.

वेटर कौफी व पेस्ट्री दे गया. नीरजा ने बड़े मन से कौफी पी व पेस्ट्री खाई.

‘‘अच्छा, एक बात तो बताइए,’’ नीरजा ने पेस्ट्री खाते हुए पूछा, ‘‘आप की तो बहुत सी गर्लफ्रैंड्स रही होंगी न?’’

‘‘बहुत सी तो नहीं थीं.’’

‘‘फिर भी?’’

‘‘एकाध तो सभी की होती हैं.’’

‘‘तो हमारा अफेयर चल रहा है क्या?’’

‘‘क्या, यह क्या कह रही हो तुम?’’ वे अचकचा गए.

‘‘नहीं, ऐसे ही तो होता है न. मुलाकात हो गई, बात हो गई, बाहर भी मुलाकात हो गई, गाड़ी पर अकेले घूमवूम भी लिए. कौफीपेस्ट्री भी हो गई. ऐसे ही तो होता है न फिल्मों में.’’

‘‘फिल्मों में होता होगा. ऐसे होता नहीं है. तुम्हें देर हो रही होगी. क्या मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूं.’’

‘‘नहीं, मैं औटो पकड़ूगी.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हें औटो तक छोड़ दूं,’’ वे बाहर निकल आए. उन्होंने बिल पेमैंट किया. वे सड़क तक आ गए. तुरंत एक औटो वाला आ गया.

‘‘साहब, चलना है क्या?’’

‘‘हां, जाना है. तुम्हें कहां जाना है नीरजा.’’

‘‘मीरापट्टी रोड.’’

‘‘बैठो.’’

‘‘सर, आप को मेरा वह काम कराना ही होगा. कब बात करेंगे आप जौइंट सैक्रेटरी साहब से. कल ही कर लीजिए न.’’

‘‘अरे, इतनी जल्दी नहीं, अभी तो तुम अप्लीकेशन भेजो. 2-3 दिन तो अप्लीकेशन पहुंचने में ही लग जाएंगे. इसी हफ्ते में बात कर लूंगा.’’

‘‘आप कब लाइब्रेरी आइएगा, सर? बात करते ही आ जाइएगा न.’’

‘‘हां, ठीक है. मैं जल्दी ही आऊंगा. वैसे भी लाइब्रेरी तो आना ही है.’’

‘‘मेरी डिटेल तो आप के पास होगी नहीं, अच्छा होता मैं अप्लीकेशन की एक कौपी आप को दे देती.’’

‘‘मैं ने स्कैन कर लिया है, डिटेल है मेरे पास.’’

‘‘पर फोटो तो अच्छी नहीं आई होगी न.’’

‘‘बहुत अच्छी आई है,’’ वे बेध्यानी में कह गए. वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘कहिए तो अपनी एक फोटो दे ही दूं, मेरे बैग में ही है.’’

‘‘अरे नहीं. मैं क्या करूंगा तुम्हारी फोटो का. फिर स्क्रीन कौपी तो है ही.’’

‘‘करिएगा क्या, देखिएगा,’’ वह तेज मुसकराहट के साथ औटो में जा कर बैठ गई, ‘‘फिर आप के साथ तो ओरिजिनल मैं हूं. हां, मुझे देखिए. फोटो से क्या होगा.’’

औटो आगे बढ़ गया.

वे आ कर कार में बैठ गए. बाप रे, न सिर्फ तेज लड़की है, बल्कि वाचाल भी है. थोड़ा बचपना भी है. अल्हड़ तो है ही. उन्होंने गाड़ी घर की तरफ मोड़ दी.

जौइंट सैक्रेटरी से उन की मुलाकात तीसरे दिन ही क्लब में हो गई. वह बड़ा खुश था. उस का प्रमोशन हो गया था.

2-3 लोग और थे. पार्टी जोरशोर से चल रही थी. उन्होंने भी एक सौफ्ट डिं्रक ले लिया. वह उन से 2 साल जूनियर था. उन्हें सर कहता था. मौका देख कर उन्होंने चर्चा छेड़ी.

‘‘यार दोस्त, तुम से एक छोटा सा काम था?’’

‘‘हुक्म कीजिए, सर. आज तक तो कोई काम कहा नहीं आप ने?’’

‘‘कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. दरअसल, तुम्हारे विभाग के यानी फिशरीज के हैड औफिस में लाइब्रेरी है. उस में वैकेंसी आई है. तुम्हें पता है क्या?’’

‘‘मुझे तो लाइब्रेरी है, यह भी नहीं मालूम. बहरहाल, होगी लाइब्रेरी. आप का कोई कैंडीडेट है क्या?’’

‘‘हां, एक लड़की है. मेरे परिचित हैं, उन की लड़की है.’’

‘‘तो प्रौब्लम क्या है. जब इंटरव्यू होगा तो मुझे याद दिला दीजिएगा. डिटेल ले कर अपने पास रख लीजिए.’’

‘‘देख लेना भाई जरा. बड़ी नीडी लड़की है. वैसे, डिजर्विंग भी है. एमलिब कर रही है.’’

‘‘देखना क्या है, वैसे तो सुपरिटैंडैंट लेवल के लोग ऐसा इंटरव्यू लेते हैं पर मैं कह दूंगा. समझ लीजिए, हो गया सर. और अगर लड़की ज्यादा खूबसूरत हो तो कहिएगा मुझ से मिल लेगी,’’ जौइंट सैक्रेटरी अभिमन्यू ने बाईं आंख दबाई.

‘‘अरे नहीं यार, मेरे बड़े खास हैं. बड़ी सोबर फैमिली है. पर एक बात बताओ, तुम इतनी गर्लफ्रैंड्स मेनटेन कैसे कर लेते हो?’’

‘‘बस हो जाता है सब. हैल्थ सप्लीमैंट्स जिंदाबाद. सप्लीमैंट्स में बड़ी ताकत होती है. आप को मेरी किसी सलाह की जरूरत हो तो निसंकोच बताइएगा,’’ अभिमन्यू मुसकरा रहा था. फिर धीरे से बोला, ‘‘होटलवोटल की जरूरत हो, तो वह भी बताइगा. मेरे बहुत परिचित हैं.’’

‘‘क्या बात करते हो यार. मैं ग्रैंड फादर बन चुका हूं.’’

‘‘इस से क्या होता है सर. वैसे तो मैं भी बाबानाना बन चुका हूं.’’

‘‘अच्छा याद दिलाया. पंकज कहां है आजकल?’’

‘‘अलीगढ़ में डीएम है. और सावित्री सीनियर पैथोलौजिस्ट बन चुकी है.’’

‘‘बढि़या, बहुत बढि़या भाई अभिमन्यू.’’

चलते को समय भी उन्होंने अभिमन्यू को रिमाइंड करा दिया. इस बार वे 10 दिनों बाद लाइब्रेरी गए. काउंटर पर नीरजा ही बैठी थी. उस समय काउंटर पर मात्र एक लड़का ही किताब इश्यू करा रहा था. वह जब चला गया तो उन्होंने कहा, ‘‘बधाई हो नीरजा. तुम्हारा काम हो गया.’’

‘‘क्या…’’ उस का चेहरा चमक गया, ‘‘आप की बात हो गई क्या?’’

‘‘और क्या, तुम ने मुझे समझ क्या रखा है.’’

‘‘आप किताबें देखिए, तब तक मैं एकाध घंटे की छुट्टी ले लेती हूं. बाहर चलते हैं, वहीं ठीक से बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है. ये लो, किताबें जमा कर लो.’’

उसे किताबें दे कर वे वापस हौल में आ गए व इश्यू कराने के लिए किताबें देखने लगे. नीरजा के चेहरे पर वैसी ही खुशी व चमक आई थी जैसी वे देखना चाहते थे. जल्द ही उन्होंने किताबें देख लीं.

‘‘आइए सर, लाइए आप की किताबें, मैं इश्यू करा दूं.’’

नीरजा आ गईर् थी. काउंटर पर दूसरी लड़की बैठ गई थी. नीरजा ने किताबें इश्यू कराईं व उन के साथ ही बाहर आ गई. उन्होंने गाड़ी का दरवाजा खोला व वह अपनी साइड का दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गई.

‘‘चलिए, कोल्ड कौफी पीते हुए बताइगा क्या बात हुई है?’’

‘‘कोल्ड कौफी नहीं. आज तो मैं तुम्हें हौट कौफी के साथ प्याज के पकौड़े खिलाऊंगा. तुम्हें पसंद हैं.’’

‘‘प्याज के पकौड़े तो मुझे बेहद पसंद हैं. बिलकुल चलेगा.’’

वे फिर अंबर कैफे पर आ गए. उन्होंने गाड़ी वहीं पर लगाई. हौर्न के जवाब में तुरंत लड़का आ गया.

‘‘2 कौफी और 2 प्लेट पकौड़े प्याज के. पर एकदम गरम.’’

‘‘बिलकुल सर, अभी लाया,’’ लड़का चला गया.

‘‘जौइंट सैक्रेटरी कहां मिले आप को. क्या आप को उन के घर जाना पड़ा?’’

‘‘अरे नहीं, वह अभी 3-4 दिन पहले क्लब में ही मिल गया था. बस, मैं ने उस से कह दिया.’’

‘‘आप क्लब जाते हैं, क्या होता है वहां?’’

‘‘कुछ नहीं. लोग अपना टाइम पास करते हैं. थोड़ा रिलैक्स होते हैं. कुछ लोग बिलियर्ड्स, कार्ड या चैस खेलते हैं. आउटडोर में बैडमिंटन या टेबिल टैनिस खेलते हैं. बैठते हैं, खातेपीते हैं व फिर घर चले जाते हैं.’’

‘‘लोग पीते भी हैं क्या?’’

‘‘पीने वाले पीते भी हैं. वहां इंतजाम तो रहता ही है.’’

‘‘आप भी पीते हैं वहां?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं पीता,’’ उन्होंने झूठ बोला.

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘फिर…फिर क्या. जौइंट सैक्रेटरी अभिमन्यू ने मुझे देखा तो मेरे पास चला आया. उस पर मेरा बड़ा एहसान है. समझो, एकदम मेरा चेला है. कहने लगा, इतने दिनों से मिला क्यों नहीं. वाइफ के बारे में पूछा. दोनों लड़कों के बारे में पूछा. फिर मैं ने तुम्हारे काम का जिक्र कर दिया.’’

‘‘क्या कहा उन से आप ने? ठीक से बताइए न.’’

‘‘मैं ने कहा एक सुंदर सी लड़की है. उस के बाल व उस की आंखें दुनिया में सब से सुंदर हैं. उस हिरनी जैसी आंखों वाली लड़की ने मछली वाले विभाग में लाइब्रेरियन की पोस्ट के लिए अप्लाई किया है.’’

‘‘आप मजाक कर रहे हैं न.’’ उस की बड़ीबड़ी आंखें उन के चेहरे पर टिकी हुई थीं, ‘‘आप ने यह सब नहीं कहा न?’’

‘‘हां, मैं मजाक कर रहा था. यह सब कोई कहने वाली बातें हैं क्या. मैं ने उसे बताया कि फिशरीज में वैकेंसी है. उस में मेरी एक करीबी लड़की ने अप्लाई किया है. मैं ने उसे इंटरव्यू में देख लेने को कहा. उस ने मुझे निश्ंिचत किया है कि वह देख लेगा. उस के लिए यह कोई बड़ा काम नहीं है.’’

‘‘मैं आप की करीबी वाली लड़की हूं?’’ उस ने गुस्से से आंखें चढ़ाईं.

‘‘अरे भाई, कुछ तो कहना पड़ता है न. फिर इतनी करीब तो बैठी हो आज भी. करीबी वाली हुई कि नहीं.’’

‘‘जाइए. ऐसे होता है क्या. करीब बैठने का मतलब करीबी लड़की नहीं होता है. पर अब तो मैं आप की करीबी लड़की हूं ही. कहिए तो एक बार मैं भी उन से मिल लूं?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने जोर से कहा व उत्तेजनावश उस का हाथ जोर से पकड़ लिया, ‘‘तुम उस से बिलकुल नहीं मिलोगी.’’

‘‘नहीं मिलूंगी बाबा.’’ उस ने अपना हाथ न छुड़ाया, ‘‘पर इस में ऐसा क्या हुआ जो आप इतना गुस्सा हो गए?’’

‘‘तुम अभिमन्यू जैसे लोगों को जानती नहीं हो. जहां कोई सुंदर लड़की देखी नहीं, कि डोरे डालने लगते हैं. वह तुम्हें फंसाने की कोशिश करेगा. वह कुछ भी कर सकता है,’’ उन्होंने खुद ही उस का हाथ छोड़ दिया.

‘‘डोरे तो आप भी डाल रहे हैं मिस्टर विशाल. आप भी तो फंसाने की कोशिश ही कर रहे हैं न?’’ उस के चेहरे पर गाढ़ी मुसकान थी, ‘‘क्यों? सही है न?’’

‘‘एकदम गलत है. मैं तो सिर्फ तुम्हारी मदद कर रहा हूं.’’

‘‘क्यों कर रहे हैं मेरी मदद?’’

‘‘इंसानियत के नाते. तुम तो वकील की तरह जिरह कर रही हो.’’

‘‘ठीक है. करिए मदद इंसानियत के नाते. मुझे अच्छा लगता है. अब कब कहिएगा उस अभिमन्यू, उस बदमाश से?’’

‘‘इंटरव्यू से 1-2 दिन पहले कह दूंगा उस से. वह करा देगा. तुम बेफिक्र रहो. तुम्हारा सेलैक्शन हो जाएगा.’’

‘‘इंटरव्यू तो डेढ़दो महीने बाद ही होगा. तब तक तो वे भूल भी जाएंगे?’’

‘‘भूल तो जाएंगे ही. पर मैं याद जो दिला दूंगा.’’

‘‘आप ने मेरे लिए बड़ी तकलीफ की है,’’ अब उस ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘थैक्यू सर.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ उन्होंने उस का हाथ दबा दिया, ‘‘इंसानियत के नाते.’’ दोनों जोर से हंस पड़े.

‘‘अब मैं चलूं सर,’’ उस ने हाथ खींच लिया.

‘‘हां चलो,’’ उन्होंने वेटर को इशारा किया, ‘‘तुम ने अपने मातापिता के बारे में नहीं बताया?’’

‘‘मेरे फादर नहीं हैं. 2 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में वे नहीं रहे. मां व छोटा भाई हैं. मां बीमार रहती हैं. उन्हें गठिया है. छोटा भाई हाईस्कूल में है. रुपएपैसे पिताजी ठीकठाक छोड़ गए हैं. पर हम पूंजी ही खा रहे हैं. मकान अपना नहीं है, किराए पर हैं. मेरी नौकरी लग जाती, तो अच्छा रहता,’’ नीरजा ने बताया.

‘‘नौकरी तो अब लग ही जाएगी. पिताजी के बारे में जान कर दुख हुआ. आई एम सौरी, नीरजा.’’

वह कुछ न बोली. वेटर बिल के रुपए व बरतन उठा कर ले गया. उन्होंने गाड़ी रिवर्स की व नीरजा को लाइब्रेरी के थोड़ा पहले उतार दिया.     -क्रमश:

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