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#coronavirus: लॉक डाउन में घर में स्वच्छ रहें, स्वस्थ रहें

पुरे देश में 21 दिन का लॉक डाउन का दौर शुरू हो चुका है , घर में रह कर कोरोना को हराना है. छह तरीके जिनसे आपके आसपास का वातावरण स्वच्छ रहेगा और आप खुद भी स्वस्थ रहेंगे. स्वच्छ रहना स्वस्थ रहने के लिहाज से बहुत अहम है.

1 घर के हर हिस्से को साफ करे – बाहर का खतरा अंदर न आये , इसलिए सफाई पर विशेष ध्यान दे.इस बात का विशेष ध्यान रखे कि आप दिन भर में कितनी सारी चीजों को अपने और आपके घर के लोग किन-किन चीजों को हाथ लगाते हैं.जैसे कि दरवाजे के हैंडल, खिड़की का हैंडल , किचन का सामान, बाथरूम का बोर्ड , पावर स्विच, कंप्यूटर की-बोर्ड, मोबाईल चार्जर और सबसे अधिक रिमोट कंट्रोल. इन चीजों की हमेशा ध्यानपूर्वक सफाई करते रहे , क्योंकि ऐसा करके आप घर के सदस्यों की सेहत की रक्षा करेंगे.

2 अपने हाथ बार-बार धोते रहे – आप घर पर है तो ऐसी नहीं है कि आपको हाथ नहीं धोना है , आप अपने हाथ बार-बार धोते रहे। इस दौरान इस बात का अवश्य ध्यान रखे कि साबुन के झाग में अपने हाथ को मलें, कम से कम 20 सेकंड तक तो हाथ जरूर मले. तभी सही मायने में आपका हाथ धोना स्वस्थप्रद होगा.

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3 सिंक को साथ करते रहे – क्या आपको पत्ता है , रात को गंदे बर्तनों को साफ करने के बावजूद सिंक में कितने सारे जीवाणु रह जाते हैं. जो जीवाणु आपके सिंक में पैदा होते हैं, वे आपके हाथों, बर्तन साफ करने वाले स्पंज या स्कर्ब और इससे भी बदतर आपके भोजन के संपर्क में आ सकते हैं. इसलिए दिन में एक बार अपने सिंक को ब्लीच या गर्म पानी से अच्छी तरह से धोएं और उसे सूखने दें। इससे जीवाणु भी खत्म हो जाएंगे.

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4 टूथब्रश का विशेष रख रखाव करे – दैनिक जीवन में सफाई के लिए टूथब्रश का अपना अहम् स्थान है. हर रोज इस्तेमाल के बाद अपने टूथब्रश को न सिर्फ सूखा रखने की जरूरत है.टूथ्रब्रश को रखने की सबसे बढि़या जगह है आलमारी, अगर आप बहार ही रखते है तो इसे अच्छे से ऊचे स्थान पर रखें, वहां यह सूख पाएगी और जीवाणुओं से सुरक्षित रहेगी.

5 वॉशरूम को बिल्कुल स्वच्छ रखे – परिवार के सभी लोग इस लॉक डाउन में घर पर ही होंगे , इसलिए वॉशरूम का उपयोग भी अधिक होगा , आप वॉशरूम को भी बिल्कुल स्वच्छ रखना है. यह सामान्य-सी बात लग सकती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब आप टॉयलेट को फ्लश करते हैं, तो इसके दो घंटे बाद तक पूरे वॉशरूम में जीवाणु तैरते रहते हैं आपको इसकी सफाई पर विशेष ध्यान रखना है.

6 ठहरा हुआ कही न रहने दे – गर्मियों का मौसम आने वाला है , लेकिन इस मौसम में भी आये दिनों वर्षा हो रहा है , आपको यह ध्यान रखना होगा कि घर के किसी हिस्से में वर्षा का पानी इकट्ठा न हो पाए.साथ ही घर के भीतर अनेक जगहों पर रखे फूलदानों, पालतू जानवरों के पानी रखने के बर्तनों या फिर मछलीघर के बर्तनों के पानी को सप्ताह में एक बार ज़रूर बदलना चाहिए और उन्हें अच्छी तरह से साफ करना चाहिए, ताकि रोगों की गिरफ्त में आने से बचा जा सके.

#coronavirus: सिर्फ हुकूमत नहीं ज़िम्मेदारी भी

जैसे ही लॉक-डाउन की खबर सुनी, सभी महिलाओं के मन में एक ही ख़याल आया उफ़ ! अब घर का काम कैसे होगा .काम वाली भी तो नहीं आ सकती अब .

घर का बर्तन, कपड़ा, झाड़ू, पौंछा आदि सब तो वही करती है .

अक्सर सभी वाटसैप समूहों से ऐसे ही सन्देश फॉरवर्ड होने लगे .

जैसे पति घर पर बैठे हुकुम चला रहे हैं .

एक वीडिओ आया जिसमें पत्नी रसोई में जल्दी-जल्दी काम कर रही है और पति टी.वी. के सामने बैठ कर हुकुम चला रहे हैं . ऐसे में पत्नी परेशान हो कर आयी और तौलिये से अपने पति का चेहरा सर समेत ढक देती है और नाराज़गी भी दिखाती है .

वहीं सोशल मीडिया पर कुछ पुरुष  चाहे वे रोज काम करें न करें रसोई में काम करते दिखाई दिए .अच्छी डिशेज़ बना कर सर्व करते हुए वे गर्व का अनुभव कर रहे थे .

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एक महाशय ने तो सोशल मीडिया पर चौक में पड़े झूंठे बर्तनों के साथ फोटो खिंचवा कर चंद पंक्तियाँ भी लिखीं जिसमें पत्नी के सहयोग की बात थी .

इससे साफ़ समझ आता है कि लॉक डाउन के समय घर की महिलाओं पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़ गया है

. बच्चे, पति और कहीं-कहीं तो संयुक्त परिवार जिसमें सास-ससुर, देवर-नन्द सभी हैं .घर काम में मुख्य भूमिका निभाने वाली महिलाओं का तो कचूमर ही निकल जाएगा .

जो पुरुष एवं बच्चे सुबह एक बार दफ्तर और स्कूल चले जाते हैं और महिलायें उनके जाने के बाद घर का सारा काम निबटाती हैं अब वे सब घर पर हैं .

पुरुष व बच्चों का स्वयं का कोई रूटीन नहीं, चाहे वे देर से उठें रात देर तक जाग कर फ़िल्में या स्पोर्ट्स चैनल देखें लेकिन महिलाओं के लिए तो डबल ड्यूटी हो ही गयी .

कई महिलाएं कामकाजी है जिनके घर में कुक व हाउस मेड लाइफलाइन की तरह होती हैं . उनकी तो जैसे सांस ही अटक गयी क्यूंकि कईयों को तो “वर्क फ्रॉम होम” भी दिया गया है .

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माना कि बहुत से पुरुषों के लिए भी वर्क फ्रॉम होम है पर हर हाल में घर के काम का बोझ तो महिलाओं पर ही है .

क्यूंकि अब महिलाएं घर से बाहर तो निकल नहीं सकतीं, अपने मन की भड़ास एक दूसरे को वाटसैप कॉल करके ही निकालनी पड़ी .

गृहणी भी है कामकाजी

अब क्यूंकि पति घर पर हैं पर आदतें तो पुरानी . जैसे छुट्टी का एक दिन आया करता था सप्ताह में एक बार . अच्छा खाना, साफ़-सुथरा घर, रात को देर तक फिल्म वो भी अकेले नहीं पत्नी भी साथ दे .

इस पर ऋचा का कहना है दो दिन तो चलाया कैसे भी, फिर शरीर में थकान हो गयी . रात को देर तक जागो सुबह से वही काम एवं सिफारिशों की झड़ी . सच में सर में दर्द हो गया . बच्चे भी रात को देर तक जाग रहे हैं, सुबह देर से उठते हैं . घर का कचरा लेने अब कोई आ नहीं रहा . बाहर जा कर दो तभी वेस्ट क्लीयर होगा . मैं सुबह घर साफ़ करूँ, रसोई सम्भालूँ, क्या-क्या करूँ ?

मैं ने कह दिया अब समझ आया घर में कितने काम होते हैं मैं तुम्हारे साथ बैठ कर रात को देर तक फिल्म नहीं देखूंगी तो पति नाराज़ हो गए .

कामकाजी महिला की शामत

सॉफ्टवेयर में कार्यरत हेमा कहती हैं घर का काम तो है ही अब दफ्तर का भी “वर्क फ्रॉम होम” . सप्ताह में एक छुट्टी हो तो ठीक है पर हर दिन सबकी छुट्टी और मुझे वर्क फ्रॉम होम भी तो कैसे चलेगा ? मैं ने अपने पति से कहा “देखिये हम दोनों एक ही घर में रहते हैं, कमाते भी दोनों हैं, जितना काम तुम करते हो उतना ही मेरे भी पास है” अब घर का काम भी साथ-साथ करना होगा तभी चलेगा . बच्चों को भी समझाना होगा .

कुल मिला कर घरेलू और कामकाजी महिला सभी काम के दबाव में हैं .

लेकिन जिन पुरुषों की परवरिश ऐसे माहौल में हुई है जहां पुरुष घर के काम में हाथ नहीं बंटाते वहां समस्या थोड़ी ज्यादा है .

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तो सीधी सी बात है यह लॉक-डाउन सभी के लिए है इसलिए इसका फायदा और नुकसान भी सभी उठायें . पुरुष सिर्फ घर बैठ कर टी.वी. लैपटॉप और सोशल मीडिया का आनद उठायें और महिलाएं पिसें गृहस्थी की चक्की में . तो ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है . लॉक-डाउन ब्रेक-अप में तब्दील होने में देर नहीं .

ऐसा कोई जरूरी नहीं कि ब्रेक-अप कागजों में ही होता है . ब्रेक-अप एक ही घर में रहकर मन ही मन  भी हो सकता है . एक बार यदि मन में गाँठ पड़ी तो सारी ज़िंदगी जाने वाली नहीं .

संयुक्त परिवार और तानाशाही

संयुक्त परिवार में रहने वाली संध्या कहने लगी “अब तो माँ-बेटा दोनों ही हुक्म चलाने लगे, पहले कम से कम यह तो था कि पति दफ्तर गए तो सास की सिफारिशें झेलनी पड़ती थीं . अब दोनों माँ-बेटा साथ में बैठते हैं और सिर्फ इधर-उधर की और अपने पुराने दिनों की बातें करते हैं . एक बार एक को पानी का गिलास थमाओ तो दूसरे को दूध-छाछ याद आ जाता है . इधर मिक्सी के जार धोती हूँ तो ससुर का चाय का हुकुम आ जाता है . यदि ज़रा देर हो तो पति का स्वर तेज हो जाता है कि माँ कब से बोल रही हैं तुमने इन्हें दिया क्यूँ नहीं ?

जी करता है कह दूं कि बैठ कर सारे दिन गप्पे हांकते हो तो अपने माता-पिता का ख्याल भी तुम रख लो . उन्हें चाय, दूध, छाछ तुम ही क्यूँ नहीं बना देते . ये छोटे-छोटे काम तो कर सकते हैं न वे . वो तो करते नहीं अब झींकने वाले एक से दो हो गए .

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यहाँ  सोचने वाली बात यह है महिलाओं को सहायिका की मदद तो मिल नहीं रही . लेकिन काम का बोझ बढ़ गया तो पति जो संयुक्त परिवार में माता-पिता को साथ रखते हैं उनकी जिम्मेदारी क्या सिर्फ महिला की ही है ? क्या पति की स्वयं अपने माता-पिता के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं ? आखिर उन्होंने पाल-पोस कर बेटे को बड़ा किया है, बहु को नहीं .

इसलिए ऐसे समय में बहु से उम्मीद भी कम ही रखें तो ठीक वरना संतुलन में चलती गाड़ी डगमगा भी सकती है .

मुखिया जी आगे आयें

ऊपर दिए गए उदाहरणों में आम घरों की समस्या है कि जब पति-बच्चों समेत पूरा परिवार घर पर हो और छुट्टी का सा माहौल हो तब पति आखिर क्यूँ न करे पत्नी की मदद ?

घर का मुखिया कहलाने वाला पति जब युद्ध का समय आये तो पीछे क्यूँ हट जाए ?

आप महाराज बन कर हुकुम तो हर दिन करें और युद्ध के समय पीठ दिखा कर भाग जाएँ या कलह-कलेश करें . यह तो उचित नहीं न, इस समय तो मुखिया की जिम्मेदारी ज्यादा है . कैसे अपनी गृहस्थी को कम संसाधनों में संतुलित रखना है इसमें तो मुखिया की भूमिका भी मुख्य होनी चाहिए और इसे संतुलित रखने में पत्नी की हर संभव मदद करनी चाहिए . चाहे रसोई के बर्तन , कपडे, साफ़-सफाई या कुकिंग क्यूंकि घर तो दोनों का ही है .

ऐसे में वे पुरुष धन्यवाद के पात्र हैं जो सोशल मीडिया पर खाना बनाते, रसोई साफ़ करते , जूठे बर्तन धोते और कपड़ा सुखाते नज़र आ  रहे हैं . चाहे उन्होंने मसखरी या टाइम पास  के लिए ही यह सब  किया किन्तु सन्देश भी दिया कि पुरुष भी घर की कार्यों में स्ट्रे के मदद करे .

 

Coronavirus Lockdown: बच्चों की खातिर घर लौटी एक्स वाइफ सुजैन तो ऋतिक रोशन ने लिखा ये इमोशनल पोस्ट

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर छाया हुआ है. ऐसे में सभी लोग अपने- अपने परिवार का साथ दे रहे है. एक-दूसरे का का खास ख्याल रख रहे हैं. इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ऋतिक रौशन की पूर्व पत्नी सुजैन खान उन्होंने इस मुसीबत के पल में अपने बच्चों और पूर्व पति के पास वापस लौट आई हैं. इस मुश्किल के समय में अपने बच्चों केयर कर रही हैं.

 

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. It is unimaginable for me, as a parent, to think of having to be separated from my children at a time when the country is practicing lockdowns. . It is heartwarming to see the world come together as one in this time of deep uncertainty and possibility of months of social distancing and potential lockdowns for several weeks perhaps . . While the world talks about humanity coming together, I think it represents more than just an idea especially for parents sharing custody of their kids. How to keep their kids close to them without infringing on the right of the other who also has an equal right to be with his/her children. . This is a picture of dear Sussanne (my ex wife) , who has graciously volunteered to temporarily move out of her home so that our children are not disconnected indefinitely from either one of us. . Thank you Sussanne for being so supportive and understanding in our journey of co-parenting. . Our children will tell the story we create for them. . I hope and pray that in order to safeguard the health of ourselves and our loved ones, we all find our way to express love, empathy, courage, strength with an open heart ❤️. . #beopen #bekind #bebrave #responsibility #coexist #empathy #strength #courage #oneworld #humanity #wecanfighththis #loveoverfear

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इस बात की जानकारी ऋतिक रौशन ने अपने सोशल मीडिया के जरिए दिए है. जिसमें उन्होंने अपनी पूर्व पत्नी का धन्यवाद देते हुए कहा है सुजैन आपने जो कदम उठाएं है बेहद ही सराहनीय है. हम दोनों जो कहानी अपने बच्चों को बताएंगे वहीं उन्हें वही पता चलेगा. इस वक्त हमदोनों की उन्हें बहुत जरुरत है.

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ऋतिक रौशन एक्स वाइफ के आने के बाद बेहद खुश नजर आ रहे हैं. वहीं ऋतिक ने इंस्टा पर एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है- लॉकडाउन के समय में बच्चों को अपने माता- पिता के साथ न रहने के बारे में सोचना भी पाप है. ऐसे में हमें अपने बच्चों के साथ समय बीताना सबसे खूबसूरत होता है.

 

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. Couldn’t ask for a better view. . Or a more suited book . . #Coexist #doglovers

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आगे उन्होंने ने कहा सुजैन ने यह फैसला  इसलिए लिया है ताकि हमारे बच्चे हमसे डिस्कनेंट न रहें.

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यह समय देश के लिए बेहद ही संवेदनशील है. घर के अंदर बंद रहना ही सबसे अच्छा उपाय है. इसलिए आप अपने परिवार के साथ घर के अंदर ही लॉकडाउन रहे. उम्मीद है यह मुश्किल का समय जल्द ही खत्म हो जाएगा. फिर हम अपने पुराने दिनचर्या में वापस आ जाएंगे.

#coronavirus: Lockdown के दौरान सांसद नुसरत जहां ने किया ऐसा काम, लोगों ने कहा शुक्रिया

एक्ट्रेस और सांसद नुसरत जहां कोरोना से बचाव के लिए गरीबों के बीच मास्क बांट रही हैं. नुसरत जहां ने अपनी तस्वीर को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया है. जिसमें वह एक गरीब महिला को मास्क देती नजर आ रही हैं.

बाजार में मास्क बांटते समय नुसरत जहां ने गरीबों को कोरोना से बचने के उपाय भी बताया है कि इस खतरनाक वायरस से कैसे बचा जा सकता है.

नुसरत जहां जिस बाजार में मास्क बांट रही थी वहां लोग संयम बनाए लाइन में खड़े थे. नुसरत एक-एक कर सभी लोगों को मास्क दे रही थीं.

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वह खुद भी बचाव के सभी नियमों का पालन करती दिखीं, बाजार में मास्क लगाए हुए लोगों के बीच में नजर आई.नुसरत ने मुंह में मास्क के साथ-साथ हाथ में ग्लब्स भी पहनी हुई थीं. ताकी यह बीमारी किसी और की तरफ ट्रांसफर न हो.

 

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Keep Calm & Add Dum to your Biriyani ♥️ #quarantining

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नुसरत  जिन गरीबों को मास्क दे रही थीं सभी उन्हें दुआ दे रहे थें. नुसरत की इस पहल के बाद लोग उनकी सोशल मीडिया पर जमकर तारीफ कर रहे हैं.

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इस मुश्किल के समय में वह गरीबों की मदद कर रही हैं इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है. नुसरत इस काम को करते हुए काफी खुश भी नजर आ रही थी.

मास्क बांटते समय नुसरत ने बहुत ही साधारण कपड़े पहने थे. ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने अपने काम को देखते हुए कपड़ें का चुनाव किया था.

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इससे पहले भी नुसरत कई दफा अपने क्षेत्र के लोगों को मुश्किल समय में मदद करते देखा गया हैं. पिछले साल नुसरत शादी के बंधन में बंधी हैं. बता दें वह मुस्लिम परिवार से होने के बावजूद हिंदू लड़के से शादी किया है. इस पर कई तरह के विवाद भी हुए हैं.

बिहार में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते लोग

आँख तरेरती दोपहरी, भूख, प्यास, बदहवासी और बेवसी के बीच कोरोना के डर से पटना मीठापुर बस स्टैंड लोगों से पटा रहा. दिन के डेढ़ बज रहे हैं. बस स्टैंड खाली कराया जा रहा है. सैकड़ों की संख्या में दूसरे राज्यों से आए लोगों को पुलिस खदेड़ रही है. महिला-पुरुष और बच्चे बाइपस की तरफ भाग रहे हैं. तभी एक बस आती है और कुछ ही मिनटों में खचाखच भर जाती है. बसों के ऊपर भी बैठने की जगह नहीं है. मानों कोरोना के डर के आगे, ओवर लोडेड बसों में बैठकर जाना ही बेहतर है. लोग बसों में भेड़-बकरियों की तरह ठूँसे जा रहे हैं. अपनी जान की परवाह किए बगैर लोग सिर्फ अपने घर पहुँचने की आस में भीड़ का हिस्सा बनने को मजबूर दिख रहे हैं. न तो वहाँ पीने का पानी है और न ही बैठने की जगह. कुछ लोग बसों की इंतजार में धूप से बचने के लिए पुल के नीचे, पेड़ों की छाँव में अपनी-अपनी बसों के इंतजार में खड़े हैं. क्योंकि 2 बचे आने वाली बस, सुबह नौ बजे तक नहीं आई थी.बसों से जाने वाले अधिकतर लोग उत्तर बिहार के थे.जो कोरोना के कारण काम न मिलने पर अपने-अपने गाँव लौट रहे थे.

लॉकडाउन के बाद भी एक जगह इतने लोग कैसे ?

कोरोना वायरस की चपेट में दुनिया भर में साढ़े तीन लाख से ज्यादा नागरिक आ चुके हैं. भारत सहित विश्व के कई देशों ने बड़े हिस्सों में लॉकडाउन कर दिया है. इस वजह से करोड़ो लोग अपने घरों में कैद हो गए.  बढ़ते संक्रमन को देखते हुए बिहार सरकार ने भी तत्काल प्रभाव से बिहार के सभी शहरों को 31 मार्च तक के लिए लॉकडाउन करने का ऐलान कर दिया. इस दौरान इमरजेंसी सुविधाओं को छोड़कर सभी सार्वजनिक वाहनों के परिचालन पर रोक का निर्देश दिया गया था. लेकिन लॉकडाउन के पहले दिन सियासी नेताओं और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों के आवास वाले राजधानी पटना में सरकारी निर्देश की धज्जियां उड़ती दिखी. सरकारी बसों का परिचालन तो बंद रहा लेकिन निजी बसों पर भारी संख्या में बस यात्री, दर्जनों यात्री तो बस की छतों पर बैठकर यात्रा करते नजर आएं. इतनी भीड़ की किसी का भी मन विचलित हो जाए. क्योंकि वहाँ सैकड़ों लोग खड़े थे वो भी बिना किसी सुरक्षा के. न उनके पास सैनिटाइजर की कोई व्यवस्था दिखी और न अलग-अलग खड़े रहने की जागरूकता. सब पहले की तरह ही, जैसे कुछ हुआ ही न हो. या उन्हें कुछ मालूम ही न हो.

लॉकडाउन के बावजूद सड़कों पर भारी भीड़

  • ऑटो व अन्य वाहनों का होता रहा परिचालक—-

हालांकि, बिहार के कुछ राज्यों में निजी बसों का परिचालन नहीं हुआ. लेकिन पटना के अलावा भी कुछ जिलों में, जैसे पूर्णिया, मुज्जफ़रपुर में निजी  बसें धड़ल्ले से चल रही है.  यहाँ तक की लॉकडाउन के पहले ही दिन किराना दुकानों पर भी राशन के लिए लोगों की काफी भीड़ दिखी. इस दौरान ऑटो और अन्य निजी वाहनें भी सामान्य दिनों की तरह चल रही है.  कई जगह पुलिस की तैनाती में भी निजी वाहनें चलती रही.

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बिहार राज्य के कुछ जिलों में लॉकडाउन के बाद भी चाय-पान की दुकानों व चौराहों पर बेवजह समूह में खड़े लोग अपनी-अपनी नसीहतें दे रहे थे. वहीं कुछ जगहों पर गृह निर्माण कार्य, प्रशासन ने बंद करवा दिया जिससे मजदूर बेकार हो गए.

  • काला बाजारी के डर से, जमकर हुई ख़रीदारी——

जानकारी के अनुसार, पटना में लॉकडाउन का कोई खास असर नहीं दिखा. किराना और सब्जी-भाजी की दुकान पर भी लोग ख़रीदारी करते ऐसे दिखें,  जैसे अब कल से कोई सामान मिलेगा ही नहीं. कहीं न कहीं  लोगों में यह डर समा गया है कि कोरोना वायरस के चलते दुकानों में सामान मिलना बंद हो जाएगा, इसलिए लोग भारी मात्र में ख़रीदारी करते दिखें. इस दौरान कई छोटे-मोटे किराना दुकानदारों ने तय कीमत से ज्यादा पर सामानों की बिक्री भी की. ऐसी स्थिति में अब लगता है की आने वाले एक-दो दिनों में कालाबाजारी शुरू ही जाएगी.

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बिहार में कोरोना से भले ही एक की मौत हुई. लेकिन बिहार सरकार ने भी वायरस संक्रमन को रोकने के लिए सभी एहतियाती कदम उठा रही है. बिहार सरकार ने सभी मॉल, शॉपिंग, पार्क, रेस्तरां, स्कूल, कॉलेज को बंद करावा दिये. लोगों की आवाजाही कम हो, लोग किसी संक्रमन का शिकार न हो जाएँ,  इस कारण भारतीय रेलवे प्रशासन भी अलर्ट हो गया. 20 मार्च से 31 मार्च तक भारतीय रेलवे ने 168 ट्रेनें रद्द कर दी. लोगों को ट्रेन से यात्रा करने से बचने की सलाह दी गई .

लेकिन इसका सबसे बड़ा प्रभाव उन गरीबों पर पड़ा जो दिहाड़ी मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट पलाते हैं.

  • बिहार के नालंदा जिले के गिरियक थाना क्षेत्र के दुर्गानगर गाँव का रहने वाला मोहन दिहाड़ी मजदूर का काम करने पटना आया था, लेकिन अब काम नहीं मिलने के कारण अपने गाँव लौट रहा है. उसका कहना है कि होली के दौरान काम मंदा ही था और अब कोरोना वायरस के कारण सभी काम बंद है. पटना में करीब सभी कार्य बंद हैं . मजदूर रोज के काम की तलाश में इलाके के चौक पर जाते हैं, लेकिन कोई काम देने वाला नहीं आ रहा है.
  • पटना, कंकड़बाग की सड़कों पर काम की तलाश में निकले राजमिस्त्री विशम्भर कहते हैं कि वे काफी दोनों से पटना में रह रहे हैं. लेकिन बेरोजगारी की ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी थी. लोग घर में चल रहे कामों को बंद करवा रहे हैं.
  • सामना ढोने वाले ठेला चालकों की भी स्थिति कमोबेश ऐसी है . पटना राजा बाजार के ठेला चालक रमेश कुमार कहते हैं कि सभी शॉपिंग मॉल बंद हैं. कुछ छोटी दुकानें खुली है, लेकिन उनके पास काम नहीं है.
  • पालीगंज के रहने वाले यदुनाथ सिंह पटना में रिक्शा चलाते हैं. उन्हें सवारी नहीं मिल रही है. वे कहते हैं कि ‘रिक्शा मालिक को प्रतिदिन के हिसाब से 250 रुपये देना है और कमा रहे हैं मुश्किल से 100 रुपये, तो बाकी पैसे कहाँ से लाए. हम लोग बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं.
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कोरोना वायरस को लेकर सरकार की एडवयाजरी के कारण लोग बाहर कहीं निकल नहीं पा रहे हैं. जो जहां हैं वहीं ठहरे हुए हैं. लेकिन उन गरीबों का क्या जो रोज की कमाते है और खाते हैं ?

पटना रेलवे स्टेशन के आसपास काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की हालत तो और खराब है. इन मजदूरों का रोजगार यात्रियों पर ही निर्भर रहता है. लेकिन कोरोना के कारण टट्रेनें बंद हो गई हैं या कम चल रही है जिससे यात्रियों की संख्या में कमी आ गई है, जिससे स्थानीय दिहाड़ी मजदूरों के सामने भी रोजगार की समस्या आन पड़ी है.

स्टेशन के बाहर कुली का काम करने वाला प्र्फ़ुल कहता है कि बहुत सी ट्रेनें बंद हो गई हैं. रेलवे खुद कह रहा है कि लोग इन दिनों अपनी यात्रा टाल रहे हैं. उनका कहना है कि यात्री आते थे तो वह रोजाना 1200 से 1300 सौ तक कमा लेते थे. लेकिन आजकल 100 रुपये ही मिल जाए तो भी बड़ी बात है.

मजदूरों पर कोरोना कहर बन कर टूट पड़ा है. सबसे अधिक मार प्रवासी मजदूरों को उठानी पड़ रही है. होली के बाद मजदूरी करने पहुंचे लोग अब अपने-अपने घर लौटने लगे हैं.

बिहार के धनबाद के सुदूर गाँवों से आने वाले मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. उसके घरों की स्थिति यह हो गई है कि बच्चों को खाना खिलाने के लिए पैसे नहीं है. सोमवर को बरटांड़ में आधा दर्जन से अधिक मजदूर दिन भर काम की तलाश में भटकते रहें. शाम में भी जब काम नहीं मिला तो थक-हार कर घर लौट आएं. कहते हैं टुंडी से मजदूरों का यह जत्था काम की तलाश में शहर आया था. दिहाड़ी मजदूरी का काम करने टुंडी से आए हेमलाल हांसदा कहते हैं कि यह लॉकडाउन क्या होता है उन्हें नहीं पता. लेकिन घर में खाना बनाने के लिए उनका हर दिन काम करना जरूरी है.

पिछले चार दिनों से वे लोग शहर में घूम-घूम कर काम ढूंढ रहे हैं लेकिन कहीं कोई काम नहीं मिल रहा है. अगले एक हफ्ते क्या खाएँगे इसका जवाब भी उनके पास नहीं है. अब रोजगार मिला नहीं तो 32 किलोमीटर पैदल ही अपने गाँव  निकल पड़े.

कोरोना की वजह से काम न मिलने के कारण मजदूर बसों में किसी तरह लटक-फटक कर अपने गाँव लौटने को मजबूर हैं, क्योंकि यहाँ रहने का अब कोई फायदा नहीं. लेकिन सरकार को यह नहीं चाहिए था कि ट्रेन बंद करने से पहले एक बार सोचें ?महामारी पहले भी आई, हजारों लोगों की जान पहले भी गई, पर ऐसी स्थिति शायद ही पहले आई हो. और क्या सरकार को यह बात पहले से नहीं पता थी कि देश में यह स्थिति आने वाली है ? फिर क्यों नहीं उन्होंने पहले से ही लोगों को इसके लिए सतर्क किया ?

लॉकडाउन सकारात्मक कदम है, लेकिन इसमें मारे तो जा रहे हैं गरीब तबके के लोग ही ज्यादा.

प्रधानमंत्री ने बताया कि इस आपदा की स्थिति में कैसे लोगों को गरीबों की मदद करनी चाहिए, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वह क्या सोच रहे हैं.

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कल रात 12 बजे से मोदी जी पूरे 21 दिन का लॉकडाउन का फैसला सुना दिया है. लेकिन मोदी जी को बताना चाहिए था कि उन्होंने कोरोना वायरस की महामारी से स्वास्थयकर्मी की सुरक्षा जैसे होगी ? रोजी-रोटी के महासंकट का क्या हल होगा ? गरीब, मजदूर, किसान, दिहाड़ीदार के 21 दी कैसे कटेंगे ? गरीबों के घर चूल्हा कैसे जलेगा ?,मजदूर बच्चों का पेट कैसे भरेगा ? आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई कैसे होगी ? इसका कोई रोडमैप या खाका देश के सामने नहीं रखा. इसके ललवा मोदी जी ने यह भी नहीं बताया कि उनकी सरकार गरीबों , मजदूरों के चूल्हे की आंच के लिए क्या कदम उठा रही है. क्या गरीबों, मजदूरों, दिहाड़ी कमाई करने वालों, ठेलों-खोमचों लगाने वालों को कोई आर्थिक मदद दी जाएगी ? आखिर इस वर्ग के लोगों की भूख कैसे शांत होगी ?

राहुल गांधी ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए सरकार की तैयारियों पर सवाल खड़ा किया. उनका कहना है कि इस वायरस के खतरे से पहले गंभीरता से क्यों नहीं लिया ? मुझे दुख हो रहा है कि इस स्थिति से बचा जा सकत था.  हमारे पास तैयारी का समय था.  हमें इस खतरे को ज्यादा गंभीरता से लेना चाहिए थे और बेहतर तैयारी होनी  चाहिए थी। ताली-थाली तो बाजवा दी मोदी जी ने जनता से, पर अब देश के रखावलों की रखबाली कैसे होगी ?

देश में इतिहास में पहला मौका है जब इस तरह आपदा आई है और उसके वजह से रेल यात्रा पर पाबंदी लगाई गई है . जहां मुंबई लोकल के एक दिन बंद होने से रेल प्रशासन हिल जाता हो, जिस कोलकाता में मेट्रो के बंद होने का मतलब कोलकाता बंद होना मान लिया जाता हो, वहाँ इतना बड़ा फैसला आखिर कब तक जारी रखा जा सकेगा ?

क्या केंद्र सरकार के इस फैसले से कोरोना के फैलने की रफ्तार पर लगाम लगाई जा सकती है ? अब लोगों के मन में यही सवाल उठ रहे हैं.सरकार ने जनता के लिए  क्या सोचा, इस बात की उन्होंने कोई जिक्र नहीं की.

#coronavirus: माननीय नेताओं का दोहरा चेहरा

दुनिया के लगभग सभी देशों में कोरोना की प्रतिछाया के दुष्परिणाम सामने हैं. आज दुनिया पर महामारी का प्रकोप है .कोरोना जिसका इलाज अभी वैज्ञानिकों के पास नहीं है,ऐसे में यह तो होना ही था की हमारी सरकार जनता कर्फ्यू, लाॅक डाउन और कर्फ्यू के रास्ते पर चल पड़े. मगर इस सब के बीच जो सार तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं उसके आधार पर यह कहना समीचीन होगा की जो अनुशासन, समझदारी और सौहार्द, मानवता दिखाई देना चाहिए वह समाज में दिखाई नहीं दे रही.

सरकार का जो दायित्व होता है उसे निभाने में कोताही दिखाई दे रही है. जनवरी 2020 में ही कोरोना की दस्तक सुनाई दी थी, मगर इसके बावजूद “सरकार” ने वही गलतियां की जो आम आदमी करता है. जिस सूझबूझ तत्परता की दरकार सरकार से थी उसमें केंद्र और राज्य सरकारों ने चूक की, ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम हो या वेंटिलेटर, चिकित्सा व्यवस्था में कसावट का मामला, सरकार हर जगह फ्लाप हुई है. अगरचे यही गलतियां कोई और करता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे कभी मुआफ नहीं करते और सारा देश सर पर उठा लेते, ऐसे में कोरोना संदर्भ में विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका सराहनीय है.

मंत्री, नेता घरों में क्यूं है 

चाहे वे मंत्री हों या जनसेवा का चोला, व्रत धारण करने वाले हमारे नेता.आज “कोरोना वायरस” अटैक के दरम्यान घरों में कैद हो गए हैं. घर से बाईट, स्टेट मेंट जारी हो रहे है .हम तो यही कहेंगे अगर आप नेता हैं, मंत्री हैं तो आपने जनता जनार्दन की सेवा का व्रत लिया है, जनता ने आप को वोट दिया है. ऐसे में नेता, मंत्री गण का कर्तव्य है की सर्व-सुरक्षा के साथ जनता के बीच पहुंचे और उनकी समस्याओं को हल करने का दायित्व निर्वाहन करें.

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प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री!! आपका कर्तव्य यह नहीं है की कर्फ्यू, लाॅक डाउन करके आप चैन की बांसुरी बजाते रहे. चौराहे पर पुलिस लोगों को कंट्रोल करें, डंडे बरसाये. इससे समस्या का हल नहीं होगा.आवश्यकता, संवेदनशीलता के साथ लोगों को “अपना परिवार” मानते हुए इस भीषण विकट स्थिति में लोगों की मदद करना. मदद की उदात्त भावना नेता, मंत्रीगण, प्रशासन में दिखाई देनी चाहिए न ही किसी बैरी, शत्रु का भाव दिखाई पड़ता रहे .और यह भावना सद्सयता के दिखाई देनी चाहिए मगर दुर्भाग्य यह हममें नहीं है. मेडिकल स्टाफ डॉक्टर, नर्स जब इस पेशे में आते हैं तो यह भावना सेवा, समर्पण की होनी चाहिए नेता, मंत्री को ही देखिए मगर क्या आपको ऐसा दिखाई दे रहा है ? यह बेहद दुखद स्थितियां हैं .
पैसों से तोल रहे मंत्रीगण 

कोरोना महामारी के इस भीषण काल में कोई मंत्री एक महीने की तनख्वाह दे रहा है, तो कोई तीन महीने की. एक-एक लाख रुपये, तो कोई दस लाख रुपए. ठीक है पैसे की अहमियत है, पैसा बहुत कुछ है मगर यह मंत्रीगण, नेता जी भूल गए हैं की आप जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं आप घरों से निकलकर जनता के पास पहुंचे और उनके आंसू पोछो, लाखों दिहाड़ी कमाने वालों को क्या दो जून की रोटी नसीब हो रही है, क्या गरीब आम आदमी ने खाना खाया है. यह देखना भी आपका परम कर्तव्य है. अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप सच्चे अर्थ में जनप्रतिनिधि या मंत्री नहीं है. अब चुनाव के समय आप कैसे घर घर जाते हैं,करोड़ों रुपये खर्चते हैं, शराब मुर्गा बांटते हैं. हाथ जोड़ते हैं… सच्चे अर्थ में हाथ जोड़ने गले लगाने का वक्त आज है.

‘ लूट ‘ को रोकना आपका दायित्व है

कोरोना महामारी की घबराहट फैलते ही बाजार बंद करा दिए गए, कर्फ्यू लागू है. अब चारों तरफ आवश्यक वस्तुओं में मानो लूट सी मच गई है. टमाटर 50 रुपए आलू 40 रुपए बिकने लगा है हर जरूरी सामान महंगा हो गया.यह अनायास महंगाई लूट का दूसरा स्वरूप है जिसे रोकने मे सरकार असहाय है. मास्क, सैनिटाइजर जरूरी सामान की कालाबाजारी शुरू हो गई, क्योंकि लोगों को यह लगता है की लूट सके तो लूट.

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अगरचे, हमारे प्रमुख नेता सदशयता दिखाये, स्वयं आगे आकर लोगों से मिले,कोरोना का भय त्याग कर समस्या देखें, हॉस्पिटल के हालात देखें, व्यवस्था करें तो कितना अच्छा हो .यह काम जिलाधीश, अफसरों पर छोड़ना आप कितना जायज मानते है.

कभी नहीं: भाग 2

‘‘वह मेरा बच्चा है. इस में संशय कैसा? मैं ने उसे अपने बच्चों से बढ़ कर समझा है. मैं उस की मां नहीं तो क्या हुआ, पाला तो मां बन कर है न?’’ ऐसा लगा, जैसे बहुत विशाल भवन भरभरा कर गिर गया हो. न जाने मां कितना कुछ कहती रहीं और रोती रहीं, सारी कथा गायत्री ने समझ ली. कांच की तरह सारी कहानी कानों में चुभने लगी. इस का मतलब है कि इसी वजह से परेशान था रवि और वह कुछ और ही समझ कर भाषणबाजी करती रही.

‘‘उसे समझा कर घर ले आ, बेटी. सूना घर उस के बिना काटने को दौड़ता है मुझे. उसे समझाना,’’ मां आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘जी,’’ रो पड़ी गायत्री स्वयं भी, सोचने लगी, कहां खोजेगी उसे अब? बेचारा बारबार बुलाता रहा. शायद इस सत्य की पीड़ा को उसे सुना कर कम करना चाहता होगा और वह अपनी ही जिद में उसे अनसुना करती रही.

मां आगे बोलीं, ‘‘मैं ने उसे जन्म नहीं दिया तो क्या मैं उस की मां नहीं हूं? 2 महीने का था तब, रातों को जागजाग कर उसे सुलाती रही हूं. कम मेहनत तो नहीं की. अब क्या वह घर ही छोड़ देगा? मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘वे आप से बहुत प्यार करते हैं मांजी. उन्हें यह बताया ही किस ने? क्या जरूरत थी यह सच कहने की?’’

‘‘पुरानी तसवीरें सामने पड़ गईं बेटी. पिता के साथ अपनी मां की तसवीरें दिखीं तो उस ने पिता से पूछ लिया, ‘आप के साथ यह औरत कौन है?’ वे बात संभाल नहीं पाए, झट से बोल पड़े, ‘तुम्हारी मां हैं.’

‘‘बहुत रोया तब. ये बता रहे थे. बारबार यही कहता रहा, ‘आप ने बताया क्यों? यही कह देते कि आप की पहली पत्नी थी. यह क्यों कहा कि मेरी मां भी थी.’

‘‘अब जो हो गया सो हो गया बेटी, इस तरह घर क्यों छोड़ दिया उस ने? जरा सोचो, पूछो उस से?’’

किसी तरह भावी सास को विदा तो कर दिया गायत्री ने परंतु मन में भीतर कहीं दूर तक अपराधबोध सालने लगा, कैसी पागल है वह और स्वार्थी भी, जो अपना प्रेमी तलाशती रही उस इंसान में जो अपना विश्वास टूट जाने पर उस के पास आया था.उसे महसूस हो रहा होगा कि उस की मां कहीं खो गई है. तभी तो पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों में विश्वास का विषय शुरू किया होगा. कुछ राहत चाही होगी उस से और उस ने उलटा जलीकटी सुना कर भेज दिया. मातापिता और दोनों छोटे भाई समीप सिमट आए. चंद शब्दों में गायत्री ने उन्हें सारी कहानी सुना दी.

‘‘तो इस में घर छोड़ देने वाली क्या बात है? अभी फोन आएगा तो उसे घर ही बुला लेना. हम सब मिल कर समझाएंगे उसे. यही तो दोष है आज की पीढ़ी में. जोश से काम लेंगे और होश का पता ही नहीं,’’ पिताजी गायत्री को समझाने लगे.

फिर आगे बोले, ‘‘कैसा कठोर है यह लड़का. अरे, जब मां ही बन कर पाला है तो नाराजगी कैसी? उसे भूखाप्यासा नहीं रखा न. उसे पढ़ायालिखाया है, अपने बच्चों जैसा ही प्यार दिया है. और देखो न, कैसे उसे ढूंढ़ती हुई यहां भी चली आईं. अरे भई, अपनी मां क्या करती है, यही सब न. अब और क्या करें वे बेचारी?

‘‘यह तो सरासर नाइंसाफी है रवि की. अरे भई, उस के कार्यालय का फोन नंबर है क्या? उस से बात करनी होगी,’’ पिता दफ्तर जाने तक बड़बड़ाते रहे.

छोटा भाई कालेज जाने से पहले धीरे से पूछने लगा, ‘‘क्या मैं रवि भैया के दफ्तर से होता जाऊं? रास्ते में ही तो पड़ता है. उन को घर आने को कह दूंगा.’’

गायत्री की चुप का भाई ने पता नहीं क्या अर्थ लिया होगा, वह दोपहर तक सोचती रही. क्या कहती वह भाई से? इतना आसान होगा क्या अब रवि को मनाना. कितनी बार तो वह उस से मिलने के लिए फोन करता रहा था और वह फोन पटकती रही थी. शाम को पता चला रवि इतने दिनों से अपने कार्यालय भी नहीं गया.

‘क्या हो गया उसे?’ गायत्री का सर्वांग कांप उठा.

मां और पिताजी भी रवि के घर चले गए पूरा हालचाल जानने. भावी दामाद गायब था, चिंता स्वाभाविक थी. बाद में भाई बोला, ‘‘वे अपने किसी दोस्त के पास रहते हैं आजकल, यहीं पास ही गांधीनगर में. तुम कहो तो पता करूं. मैं ने पहले बताया नहीं. मुझे शक है, तुम उन से नाराज हो. अगर तुम उन्हें पसंद नहीं करतीं तो मैं क्यों ढूंढ़ने जाऊं. मैं ने तुम्हें कई बार फोन पटकते देखा है.’’

‘‘ऐसा नहीं है, अजय,’’ हठात निकल गया होंठों से, ‘‘तुम उन्हें घर ले आओ, जाओ.’’

बहन के शब्दों पर भाई हैरान रह गया. फिर हंस पड़ा, ‘‘3-4 दिन से मैं तुम्हारा फोन पटकना देख रहा हूं. वह सब क्या था? अब उन की इतनी चिंता क्यों होने लगी? पहले समझाओ मुझे. देखो गायत्री, मैं तुम्हें समझौता नहीं करने दूंगा. ऐसा क्या था जिस वजह से तुम दोनों में अबोला हो गया?’’

‘‘नहीं अजय, उन में कोई दोष नहीं है.’’

‘‘तो फिर वह सब?’’

‘‘वह सब मेरी ही भूल थी. मुझे ही ऐसा नहीं करना चाहिए था. तुम पता कर के उन्हें घर ले आओ,’’ रो पड़ी गायत्री भाई के सामने अनुनयविनय करते हुए.

‘‘मगर बात क्या हुई थी, यह तो बताओ?’’

‘‘मैं ने कहा न, कुछ भी बात नहीं थी.’’ अजय भौचक्का रह गया.

‘‘अच्छा, तो मैं पता कर के आता हूं,’’ बहन को उस ने बहला दिया.

मगर लौटा खाली हाथ ही क्योंकि उसे रवि वहां भी नहीं मिला था. बोला, ‘‘पता चला कि सुबह ही वहां से चले गए रवि भैया. उन के पिता उन्हें आ कर साथ ले गए.’’

‘‘अच्छा,’’ गायत्री को तनिक संतोष हो गया.

‘‘उन की मां की तबीयत अच्छी नहीं थी, इसीलिए चले गए. पता चला, वे अस्पताल में हैं.’’चुप रही गायत्री. मां और पिताजी का इंतजार करने लगी. घर में इतनी आजादी और आधुनिकता नहीं थी कि खुल कर भावी पति के विषय में बातें करती रहे. और छोटे भाई से तो कदापि नहीं. जानती थी, भाई उस की परेशानी से अवगत होगा और सचमुच वह बारबार उस से कह भी रहा था, ‘‘उन के घर फोन कर के देखूं? तुम्हारी सास का हालचाल…’’

‘‘रहने दो. अभी मां आएंगी तो पता चल जाएगा.’’

‘‘तुम भी तो रवि भैया के विषय में पूछ लो न.’’

 

#coronavirus: कोरोना से परेशान आलू किसान

लखनऊ , उत्तर प्रदेश में लगातार मौसम खराब रहने से आलू की फसल प्रभावित हुई है. तैयार फसल को कोल्डस्टोरेज में रखने के लिए किसान परेशान है.यह समय आलू की खुदाई, धुलाई एवं भंडारण का है.कॅरोना संकट के कारण किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या लेबर एवं आलू की ढुलाई की है.

गांवों में आलू उत्पादकों के खेतों में मजदूरों को पुलिस इस समय भगा रही है. आलू से लदे ट्रक ट्रैक्टर को रास्ते में रोक लिया जाता है. इस कारण आलू का संकट भी खड़ा हो सकता है.

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इसी प्रकार राजकीय फार्म के आलू बीज भी कोल्डस्टोरेज मेरठ और लखनऊ पहुंचने में कठिनाई हो रही है.प्रदेश सरकार एवं भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन परिवहन एवं भंडारण लॉकडाउन से मुक्त है.आलू आवश्यक वस्तु के अंतर्गत आती है यदि एक सप्ताह में कोल्डस्टोरेज में नहीं गया तो खेत में ही सड़ जाएगा.

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प्रदेश में सर्वाधिक आलू उत्पादन होता है. अभी तक कोल्डस्टोरेज में मात्र 40% आलू ही पहुंचा है .यदि यह बाहर रह गया तो आगे बड़ी समस्या आएगी. इस समय किसानों विशेष रूप से आलू किसानों की मदद की आवश्यकता है.

फेसबुक

रागिनी ने अपने पति सोमेश के हाथ में एक पैकेट सा देखा तो पूछ बैठी, ‘‘कोरियर वाला क्या दे कर गया है?’’

सोमेश थोड़ा सा मुसकराते हुए बोेले, ‘‘सुंदरम की शादी का कार्ड है.’’

रागिनी ने झट से लगभग लपकते हुए कार्ड ले लिया सोमेश के हाथों से और देखने लगी. कार्ड के ऊपर लिखा था, ‘सुंदरम वैड्स आंचल.’ रागिनी खिल सी पड़ी और बोली, ‘‘अरे, आंचल से शादी हो रही है उस की, चलो प्यार पा ही लिया उस ने अपना आखिरकार.’’

तभी फोन की घंटी घनघना उठी. दूसरी ओर सुंदरम बोल रहा था, ‘‘हे रागिनी, तुम शादी में जरूर आना. आई एम वेटिंग फौर यू ऐंड योर फैमिली.’’

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रागिनी हंस पड़ी और वादा किया कि वे सभी शादी में जरूर आएंगे.

सोमेश हंसते हुए बोले, ‘‘हां भई, अब तुम्हारा मित्र है तो जाना ही पड़ेगा.’’

रागिनी 53 साल की है और सुंदरम 28 वर्षीय. 53 वर्षीया रागिनी की 28 वर्षीय सुंदरम से मित्रता कैसे हो सकती है. लेकिन यह जो फेसबुक है, यहां पर यह संभव हो सकता है. फेसबुक कैसे अनजान लोगों को मिला कर उन को करीब ले आता है जैसे उन की बरसों से पहचान हो या कोई पुराने बिछड़े हुए मिले हों. लेकिन रागिनी तो बहुत सोचसमझ कर मित्रता करने वालों में से थी. सुंदरम से मित्रता कैसे हुई यह भी कम रोचक नहीं था. पति अपने बिजनैस में व्यस्त, छोटा बेटा अपनी पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर में और बड़ी बेटी भी पढ़ाई के बाद अपना बुटीक सैट करने में व्यस्त हो गई तो रागिनी अपना समय फेसबुक पर बिताने में व्यस्त हो गई.

एक दिन ऐसे ही फ्रैंड्स सर्च कर रही थी तो वह देख कर हैरान रह गई कि बहुत ही भद्दे और अश्लील नामों व चित्रों वाले लोग भी हैं जिन्होंने अपनी आईडी बना रखी है. फिर उस ने 1-2 नाम क्लिक किए और उन का प्रोफाइल्स खोल कर देखा तो सन्न रह गई. बहुत ही गंदे अंतरंग दृश्यों व घटिया वीडियो थे वहां पर. रागिनी का तो दिमाग ही घूम गया कि यह क्या है. एक बार तो उस ने सोचा कि इन को फ्रैंड्स रिक्वैस्ट भेजी जाए पर अगले ही पल वह घबरा गई कि यह तो बहुत गलत होगा यदि उन में से कोई उसे ही ऐसे फोटो भेज देगा तो उस की इज्जत क्या रह जाएगी.

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वह बहुत बेचैन रही कई दिन तक और सोचती रही कि फेसबुक की कोई काली दुनिया भी है, यह तो उस ने सोचा ही नहीं. उसे तो अभी तक सब अच्छा ही दिखा था, फिर एक दिन जब घर में कोई नहीं था, उस ने एक नकली नाम और शहर से अपनी कम उम्र लिखते हुए आईडी बना डाली और अपने जमाने की एक ग्लैमरस हीरोइन की फोटो भी लगा दी. फिर ऐसे टेढे़मेढ़े नाम वालों को रिक्वैस्ट भी भेज दी और सभी रागिनी के मित्र भी बन गए.

ऐसे ही एक अश्लील नाम वाले ने रागिनी से चैट शुरू की, ‘हे सैक्सी…’ और रागिनी के दिल की धड़कन बढ़ गई, ‘हा…इस उम्र में ये शब्द, उफ्फ.’ अगले ही पल वह धड़ाम से नीचे गिरी.

तभी फेसबुक पर उभरा, ‘‘हे आशिका डार्लिंग, हाउ आर यू?’’

रागिनी को धीरे से हंसी आ गई. ये शब्द 53 साल की रागिनी के लिए नहीं थे बल्कि ये तो 35 वर्षीया आशिका के लिए थे. अब थोड़ी सी संयत हुई और लिखा, ‘‘मुझे बहुत जोर से हंसी आ रही है. तुम्हारा यह नाम किस ने रखा है, तुम्हारे पापा ने या मम्मी ने?’’

दूसरी तरफ से लिखा हुआ आया, ‘‘यह उस का असली नाम नहीं, उस का नाम तो राजेश है.’’

‘‘तो फिर ऐसा नाम रखने का मतलब?’’ रागिनी ने फिर से टोका और कई बार उस की मां के बारे में भी कुछ बातें कीं तो शायद राजेश नाराज हो गया और बोला, ‘‘देखो आशिका, तुम्हें अगर मुझ से बात करने में कोई रुचि नहीं है तो मत करो पर बारबार मेरी मां का नाम लेने की जरूरत नहीं है. उस ने मुझे और मेरी बहन को बहुत मुश्किल से पाला है. मेरे पिता तो बहुत पहले इस दुनिया से जा चुके हैं.’’

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यह मालूम होने पर रागिनी को बहुत दुख पहुंचा और वह उसे डांटने लगी, ‘‘अच्छा, तो तुम अपनी मां की तपस्या का यह फल चुका रहे हो, बहुत अच्छे, शाबाश बेटे..’’ और भी बहुत कुछ लिख दिया उस ने.

बेटा सुनने के बाद शायद उस को बहुत शर्म महसूस हुई होगी और बोला, ‘‘प्लीज मैम, अब आगे कुछ मत बोलिए,’’ और राजेश ने उस को आउट कर दिया, शायद ब्लौक कर दिया, क्योंकि उस के बाद वह उस को नजर नहीं आया.

यह सोच कर रागिनी को अच्छा लगा कि उस की डांट का राजेश पर असर हुआ पर एक दिन उस ने अपनी असली आईडी से उसे देखा तो वह वहीं मौजूद था. रागिनी उस रात देर तक सो नहीं पाई और सोचती रही कि फेसबुक का नशा चढ़ जाता है पर ऐसा भी होता है. यह तो उस ने सोचा ही नहीं. फिर वह कांप उठी यह सोच कर कि क्या मालूम उस के बेटे ने भी ऐसी कोई प्रोफाइल बना रखी हो. और भी न जाने कितने ही बुरे खयालों में डूबतीउतराती रही वह.

सुबह बेटी की आवाज से ही आंख खुली, वह पुकार रही थी, ‘‘मम्मा, चाय… आप को भी फेसबुक की लत पूरी तरह चपेट में ले रही है. अगली बार से आप भी पापा के साथ जाया करो.’’

‘‘तुम्हारी शादी हो जाए फिर निश्ंिचत हो कर जाया करूंगी, और मुझे इस की कोई लत नहीं है. वह तो रात को नींद ही नहीं आई इसलिए उठ नहीं पाई,’’ रागिनी बेटी को आखिर क्या बताती.

दिन में वह काम तो करती रही पर मन बेचैन ही रहा कि हमारी नई पीढ़ी कहां जा रही है और पता ही नहीं चलता, कौन यहां लड़का है कौन लड़की. और क्या पता असली है या नकली? फिर उस ने सोचा मुझे क्या है, सभी की अपनीअपनी जिंदगी है, सब का अपना ढंग है. और तय किया कि वह उस आईडी को बंद कर देगी. रात को फेसबुक को खोलते ही उस का दिमाग चकरा गया. अरे, इतनी सारी फ्रैंडरिक्वेस्ट्स और घटिया मैसेज भरे पड़े थे. अब तो रागिनी को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई कि क्या वह ऐसी घटिया है.

तभी उस की सोच को विराम लग गया क्योंकि मैसेज बौक्स में एक मैसेज उछल कर आया, ‘‘हे आशिका, हाउ आर यू डियर?’’

रागिनी का मन बहुत वितृष्णा से भरा हुआ था और लिख दिया, ‘‘नमस्ते.’’

‘‘हाहा, नमस्ते…आई ऐम हैंडसम, मीन, माय नेम इज हैंडसम. डू यू लाइक टू चैट मी. मुझे हिंदी थोड़ाथोड़ा ही आता है.’’

‘‘ओके, यस. बट, आर यू गर्ल और बौय?’’ रागिनी ने थोड़ा अनमने ढंग से बात की.

‘‘आय एम 28…बौय,’’ दूसरी तरफ से जवाब था, ‘‘और तुम?’’

अब तक रागिनी ने भी सब झूठ ही कहा क्योंकि यहां पर जो था सब झूठ की बुनियाद पर ही था. फिर बातें करते हुए रागिनी ने उस से उस का असली नाम पूछा और कहा कि तुम ये सब क्यों करते हो? तो उस ने अपना नाम सुंदरम बताया और कहा कि मेरी असली आई डी कोई और ही है. ये तो सब मुझे कुछ देर की राहत दिलाता है. उस ने रागिनी से भी पूछा कि वह तो शादीशुदा है फिर वह क्यों यहां है?

तो रागिनी से भी रहा नहीं गया और कहा, ‘‘मैं यहां देखने आई हूं, फेसबुक की काली दुनिया का रहस्य क्या है, लोग ऐसे क्यों कर रहे हैं?’’

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वह हंस पड़ा और बोला, ‘‘वह एक लड़की से प्यार करता है और वह उत्तर भारतीय है. उस ने तो अपने मांबाप को मना लिया है पर लड़की वाले नहीं मानते. इस वजह से वह लड़की तैयार नहीं है शादी के लिए. जब वह उसे बहुत मिस करता है तो वह यहां फेसबुक पर चला आता है. अभी उस की नौकरी भी नहीं. 2 महीने बाद ही जौइन करेगा. तब तक उसे यहां आना बहुत अच्छा लगता है.’’ रागिनी को अब लगने लगा था, वह ये सब क्या कर रही है, उसे क्या गरज है किसी को सुधारने की. मन ही मन वह बहुत अनमनी सी रहने लगी. क्या कोई भी नहीं है जो इस की शिकायत करे. इन फोटो और अश्लील वीडियो पर रोक लगाने वाला कोई नहीं है. हमारी नई पीढ़ी कहां जा रही है, जिस को देखो इंटरनैट पर, चाहे मोबाइल हो या कंप्यूटर या कोई अन्य साधन, हर समय व्यस्त नजर आता है. उसे लगा सारी दुनिया ही पागल हुई जा रही है.

जब सोमेश लौटे तो उस ने सबकुछ बताया तो वे भी नाराज से हुए और कहा, ‘‘तुम से भी रहा नहीं जाता. फिर से शुरू हो गईं समाज को सुधारने के लिए. तुम्हारे करने से क्या होगा?’’ पर रागिनी को सुंदरम की बातें बहुत प्रभावित करती थीं और उस को समझाने की कोशिश की कि वह कुछ और बातों व चीजों में ध्यान लगा सकता है.

ऐसे ही एक दिन बातें करते हुए उस ने सुंदरम को अपने बारे में सच बता दिया और कहा, ‘‘सुंदरम, मैं यह गलत और नकली आईडी बंद करने जा रही हूं और तुम भी यह बंद कर दो.’’ सुंदरम ने अपनी असली आईडी का लिंक देते हुए उस को बाय कहा कि अब असली पहचान के साथ ही मुलाकात होगी. फिर रागिनी के साथसाथ सोमेश ने भी राहत की सांस ली क्योंकि बहुत दिनों बाद रागिनी के चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे और वह मुसकरा भी रही थी.

एक दिन सुंदरम ने कहा, ‘‘मेरे घर वाले मेरे लिए लड़की देख रहे हैं और मैं तो तुम जैसी लड़की से शादी करना चाहता हूं पर तुम्हारी उम्र की से नहीं.’’

इस पर रागिनी को बहुत हंसी आई और बहुत लाड़ से कहा, ‘‘देखो सुंदरम, तुम मुझे मेरे बेटे जैसे ही लगते हो.’’

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वह भी सुन कर बहुत खुश हुआ पर बोला कि वह उसे रागिनी ही बोलेगा क्योंकि रागिनी उस की सब से अच्छी मित्र थी और उसी के कारण वह एक गंदी दुनिया व मानसिकता से बाहर निकला था.

फिर एक दिन उस ने कहा कि उस की शादी की बात आंचल से ही हो रही है और शायद बात बन जाए. उस का खड़ूस बाप मान ही जाए क्या मालूम.

और आज शादी का कार्ड सामने था. 15 दिन बाद शादी थी पर तैयारी तो अभी से शुरू करनी थी सो रागिनी बहुत उत्साह से जुट गई.

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