आँख तरेरती दोपहरी, भूख, प्यास, बदहवासी और बेवसी के बीच कोरोना के डर से पटना मीठापुर बस स्टैंड लोगों से पटा रहा. दिन के डेढ़ बज रहे हैं. बस स्टैंड खाली कराया जा रहा है. सैकड़ों की संख्या में दूसरे राज्यों से आए लोगों को पुलिस खदेड़ रही है. महिला-पुरुष और बच्चे बाइपस की तरफ भाग रहे हैं. तभी एक बस आती है और कुछ ही मिनटों में खचाखच भर जाती है. बसों के ऊपर भी बैठने की जगह नहीं है. मानों कोरोना के डर के आगे, ओवर लोडेड बसों में बैठकर जाना ही बेहतर है. लोग बसों में भेड़-बकरियों की तरह ठूँसे जा रहे हैं. अपनी जान की परवाह किए बगैर लोग सिर्फ अपने घर पहुँचने की आस में भीड़ का हिस्सा बनने को मजबूर दिख रहे हैं. न तो वहाँ पीने का पानी है और न ही बैठने की जगह. कुछ लोग बसों की इंतजार में धूप से बचने के लिए पुल के नीचे, पेड़ों की छाँव में अपनी-अपनी बसों के इंतजार में खड़े हैं. क्योंकि 2 बचे आने वाली बस, सुबह नौ बजे तक नहीं आई थी.बसों से जाने वाले अधिकतर लोग उत्तर बिहार के थे.जो कोरोना के कारण काम न मिलने पर अपने-अपने गाँव लौट रहे थे.

लॉकडाउन के बाद भी एक जगह इतने लोग कैसे ?

कोरोना वायरस की चपेट में दुनिया भर में साढ़े तीन लाख से ज्यादा नागरिक आ चुके हैं. भारत सहित विश्व के कई देशों ने बड़े हिस्सों में लॉकडाउन कर दिया है. इस वजह से करोड़ो लोग अपने घरों में कैद हो गए.  बढ़ते संक्रमन को देखते हुए बिहार सरकार ने भी तत्काल प्रभाव से बिहार के सभी शहरों को 31 मार्च तक के लिए लॉकडाउन करने का ऐलान कर दिया. इस दौरान इमरजेंसी सुविधाओं को छोड़कर सभी सार्वजनिक वाहनों के परिचालन पर रोक का निर्देश दिया गया था. लेकिन लॉकडाउन के पहले दिन सियासी नेताओं और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों के आवास वाले राजधानी पटना में सरकारी निर्देश की धज्जियां उड़ती दिखी. सरकारी बसों का परिचालन तो बंद रहा लेकिन निजी बसों पर भारी संख्या में बस यात्री, दर्जनों यात्री तो बस की छतों पर बैठकर यात्रा करते नजर आएं. इतनी भीड़ की किसी का भी मन विचलित हो जाए. क्योंकि वहाँ सैकड़ों लोग खड़े थे वो भी बिना किसी सुरक्षा के. न उनके पास सैनिटाइजर की कोई व्यवस्था दिखी और न अलग-अलग खड़े रहने की जागरूकता. सब पहले की तरह ही, जैसे कुछ हुआ ही न हो. या उन्हें कुछ मालूम ही न हो.

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