लगभग तीन साल पहले जब चेन्नई में पहला रोबोट थीम रेस्त्रां खुला था, जहां भोजन परोसने में रोबोट मदद करता है, तो उसकी चेन्नई के बुद्धिजीवियों ने खासी आलोचना की थी। हालांकि यह आलोचना धरना प्रदर्शन जैसी तो नहीं थी लेकिन कई गोष्ठियों और सेमिनारों में चेन्नई के बुद्धिजीवियों ने इस रेस्त्रां का नाम लेकर आने वाले दिनों में इंसानों के लिए मशीनो से संकट के उदाहरण गिनाये थे।
कोरोना के डर के चलते इस रेस्त्रां में खाने गये हैं
बुद्धिजीवियों के मुताबिक मुनाफे के लिए यह इंसानी मजदूरों की, की गई आमनवीय उपेक्षा थी। लेकिन कोरोना के संकट ने एक झटके में ही न सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में रोबो सर्विस वाले रेस्टोरेंटों को रातोंरात मान्यता तो दिला ही दी है, उन्हें ज्यादा उपयोगी और पसंदीदा रेस्त्रांेज में भी बदल दिया है। यही नहीं आज की तारीख में इन रेस्त्रोंज को सामयिक उद्यमशीलता का पर्याय भी माना जाने लगा है।
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शायद यही वजह है कि पिछले एक हफ्ते में दक्षिण भारत में आधा दर्जन नये रोबो सर्विस वाले रेस्त्रोंज का ऐलान हुआ है। चेन्नई के पहले रोबोट थीम वाले रेस्त्रां के मालिक वैंकेटेश राजेंद्रन और उनके पार्टनर कार्तिक कन्नन न सिर्फ अचानक ग्राहकों से मिले इस प्रेम से खुश हैं बल्कि उनके रेस्त्रोंज का कारोबार भी कोरोना के बाद से काफी बढ़ गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अखबारों और सोशल मीडिया में उन्हें पिछले कुछ दिनों में काफी पब्लिसिटी मिली हैं। सबसे ज्यादा सोशल मीडिया में उन नये ग्राहकों की ओर से ये पब्लिसिटी की गई है, जो पहली बार कोरोना के डर के चलते इस रेस्त्रां में खाने गये हैं और भोजन परोसने वाले रोबोट्स के साथ अपनी सेल्फी लेकर उसे सोशल मीडिया में डाली है।
जहां वेटर्स के रूप में रोबोट काम कर रहे हैं
अगर वैश्विक परिदृश्य में देखें तो यही काम और बड़े पैमाने पर हुआ है। हालांकि यह कहना गलत होगा कि कोरोना वायरस के खौफ के पहले यूरोप और अमरीका में रोबोट वेटर्स वाले रेस्टोरेंटों की कमी थी या वे नहीं चल रहे थे। लेकिन यह कहना भी सही है कि कोरोना के खौफ के बाद से ऐसे रेस्टोरेंट कहीं ज्यादा ग्राहक आकर्षित कर रहे हैं, जहां वेटर्स के रूप में रोबोट काम कर रहे हैं। क्योंकि लोगों के दिलो दिमाग में यह बात बैठी हुई है कि इंसान चाहे कितनी ही सजगता क्यों न बरते, मगर वह कोरोना वायरस से रोबोट के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से संक्रमित होता है। हालांकि जो वैज्ञानिक तथ्य आये हैं, उनके मुताबिक लोहे और स्टील की सतह में भी कोरोना वायरस तीन से नौ घंटे तक जिंदा रह सकता है। यह सतह की अलग-अलग बनावट और गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
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वैसे हिंदुस्तान के पहले रोबोट थीम वाले रेस्त्रां के मालिक और उसके सहप्रबंधक ऐसा नहीं मानते कि महज कोरोना के चलते उन्हें रिकोगनेशन मिल रहा है। राजेंद्रन के मुताबिक, ‘धीरे-धीरे अब लोग रोबोट वेटर्स वाले रेस्टोरेंट के साथ सहज हो रहे हैं। यही वजह है कि पहले के मुकाबले आज कहीं ज्यादा लोग उनके रेस्त्रां आ रहे हैं।’ उनके पार्टनर कार्तिक कन्नन के मुताबिक, ‘लोग अपने परिवार के साथ बाहर जाने पर कुछ नया और रोमांचक की तलाश करते हैं। इसी वजह से सिर्फ चेन्नई में ही नहीं बल्कि कोयंबरटूर और बंग्लुरु में भी हमारे रोबो थीम वाले रेस्त्रां काफी पहले से ग्राहकों द्वारा पसंद किये जा रहे हैं।’
दुनिया की शायद ही कोई एयरलाइंस इस समय ऐसी बची हो
हो सकता है यह रोबो रेस्त्रों के मालिकों की महज कारोबारी सजगता के बयान हों। लेकिन इन बयानों के इतर यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि कोरोना वायरस ने सिर्फ लोगों के सामाजिक संबंधों को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि इसने अपने पहले तक चली आ रही अर्थव्यवस्था के ढांचे को आमूलचूल ढंग से बदल दिया है।
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अगर हम नेताओं की न भी मानें तो भी अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की सिर्फ चूल्हे ही नहीं हिलाया बल्कि उसे इतने भयानक तरीके से झकझोर दिया है कि इसके अस्थि पंजर हिल गये हैं। अकेली टूरिज्म इंडस्ट्री को ही अब तक 20 अरब डाॅलर से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। दुनिया की शायद ही कोई एयरलाइंस इस समय ऐसी बची हो, जो भारी आर्थिक संकट की तरफ न बढ़ रही हो।
सामाजिक और भावनात्मक स्वीकार्यता भी इंसानों के मुकाबले कहीं ज्यादा हो चुकी है
कोरोना वायरस हिंदुस्तान के लिए एक और नोटबंदी का सबब बनने जा रहा है। इसका इशारों में उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च 2020 की शाम को राष्ट्र के नाम किये गये अपने संबोधन में किया है। हालांकि वह तकनीकी शब्दावलियों के जरिये लोगों में यह भ्रमपूर्ण भरोसा बनाने की कोशिश कर रहे थे कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की देखरेख में एक कोविड-19 इकोनोमिक टाॅस्क फोर्स बनायी गई है, जो ऐसे तमाम संकटों से निपटने में मदद करेगी, जो महज कोरोना वायरस के चलते प्रकट हुए हैं। लेकिन हम सब जानते हैं कि ये सिर्फ ढांढस दिलाने की बात है, हकीकत यही है कि कोरोना वायरस ने एक तरफ जहां अपने खौफ से अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है, वहीं इसी झटके में उसने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट मशीनों को भी इंसानों के बीच स्थापित कर दिया है।
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यह इसलिए भी आने वाले दिनों में मजबूत चलन बनकर उभरेगा क्योंकि इंसानी कर्मचारियों के मुकाबले रोबोट बहुत सस्ता पड़ता है और अब तो इसकी सामाजिक और भावनात्मक स्वीकार्यता भी इंसानों के मुकाबले कहीं ज्यादा हो चुकी है तो निश्चित रूप से एआई के कारोबारी और अगर माना जाए कि आने वाले दिनों में इन रोबोट में इंसानों की तरह जान भी होगी तो काफी पहले ही यह कल्पना की जा सकती है कि रोबोट भी अपने को अच्छे ढंग से स्थापित करने के लिए कोरोना वायरस को धन्यवाद कर रहे होंगे।