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इश्क के चक्कर में

मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारों की तरह घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं्?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश को आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, क्योंकि छत की चाबी उन के पास रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब 15-20 ब्लौक छत पर लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया है. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. उसी का नतीजा यह कत्ल है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. 9 बजे तक वह घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी. लोहे के वजनी रेंच से वार किया गया था.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

काररवाई शुरू हुई. अभियोजन की तरफ से बिल्डिंग के मालिक दाऊद साहब को बुलाया गया. वकील ने 10 मिनट तक ढीलीढाली जिरह की. उस के बाद मेरा नंबर आया. मैं ने पूछा, ‘‘छत की चाबी आप के पास रहती है. घटना वाले दिन किसी ने आप से चाबी मांगी थी?’’

‘‘जी नहीं, चाबी किसी ने नहीं मांगी थी.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि 17 अप्रैल की रात को कातिल रियाज और मृतक नादिर में किसी एक के पास छत के दरवाजे की चाबी थी या दोनों के पास थी. उसी से दोनों छत पर पहुंचे थे. दाऊद साहब, आप के खयाल से नादिर की हत्या किस ने की होगी?’’

दाऊद ने रियाज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इसी ने मारा है और कौन मारेगा? इन्हीं दोनों में झगड़ा चल रहा था.’’

‘‘आप ने सरकारी वकील को बताया है कि रियाज आवारा, बदमाश और काफी झगड़ालू है. आप भी उसी बिल्डिंग में रहते हैं. आप का रियाज से कितनी बार लड़ाईझगड़ा हुआ है?’’

‘‘मुझ से तो उस से कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. झगड़ालू मैं ने उसे नादिर से बारबार झगड़ा करने की वजह से कहा था.’’

‘‘इस का मतलब आप के लिए वह अच्छा था. आप से कभी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था.’’

‘‘जी, आप ऐसा ही समझिए.’’ दाऊद ने गोलमोल जवाब दिया.

‘‘सभी को पता है कि 2 साल पहले रजिया से मिलने के लिए नादिर ने छत के दरवाजे में लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवाई थी. जब इस बात की सब को जानकारी हुई तो बड़ी बदनामी हुई. उस के बाद आप ने छत के दरवाजे का ताला तक बदल दिया था. हो सकता है, इस बार भी उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो और छत पर किसी से मिलने जाता रहा हो? इस बार लड़की कौन थी, बता सकते हैं आप?’’

‘‘इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता. हां, हो सकता है उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो. लड़की के बारे में मैं कैसे बता सकता हूं. हो सकता है, रियाज को पता हो.’’

‘‘आप रियाज का नाम क्यों ले रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि वह भी फौजिया से प्यार करता था या उसे इस प्यार की जानकारी थी.’’

मैं ने भेद उगलवाने की गरज से कहा, ‘‘दाऊद साहब, यह तो सब को पता है कि रियाज फौजिया से शादी करना चाहता था और इस के लिए उस ने रिश्ता भी भेजा था. जबकि नादिर उसे रियाज के खिलाफ भड़काता था. कहीं नादिर फौजिया के साथ ही छत पर तो नहीं था? इस का उल्टा भी हो सकता है?’’

दाऊद जिस तरह फौजिया को नादिर से जोड़ रहा था, यह उस की गंदी सोच का नतीजा थी या फिर उस के दिमाग में कोई और बात थी. उस ने पूछा, ‘‘उल्टा कैसे हो सकता है?’’

‘‘यह भी मुमकिन है कि घटना वाली रात नादिर फौजिया से मिलने बिल्डिंग की छत पर गया हो और…’’

मेरी अधूरी बात पर उस ने चौंक कर मेरी ओर देखा. इस के बाद खा जाने वाली नजरों से मेरी ओर घूरते हुए बोला, ‘‘और क्या वकील साहब?’’

‘‘…और यह कि फौजिया के अलावा कोई दूसरी लड़की भी तो हो सकती है? किसी ने फौजिया को आतेजाते देखा तो नहीं, इसलिए वहां दूसरी लड़की भी तो हो सकती थी. इस पर आप को कुछ ऐतराज है क्या?’’

हड़बड़ा कर दाऊद ने कहा, ‘‘भला मुझे क्यों ऐतराज होगा?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि वह लड़की उसी बिल्डंग की रहने वाली थी तो..?’’

‘‘…तो क्या?’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘बिल्डिंग का मालिक होने के नाते आप को उस लड़की के बारे में पता होना चाहिए. अच्छा, मैं आप को थोड़ा संकेत देता हूं. उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है और आप का उस से गहरा ताल्लुक है, जिस के इंतजार में नादिर छत पर बैठा था.’’

मैं असलियत की तह तक पहुंच चुका था. बस एक कदम आगे बढ़ना था. मैं ने कहा, ‘‘दाऊद साहब, नाम मैं बताऊं या आप खुद बताएंगे? आप को एक बार फिर बता दूं कि उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है, जिस का इश्क नादिर से चल रहा था और यह बात आप को मालूम हो चुकी थी. अब बताइए नाम?’’

दाऊद गुस्से से उबलते हुए बोला, ‘‘अगर तुम ने मेरी बेटी मनीजा का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

मैं ने जज साहब की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे अब इन से कुछ नहीं पूछना. मेरे हिसाब से नादिर का कत्ल इसी ने किया है. रियाज बेगुनाह है. इस की नादिर से 2-3 बार लड़ाई हुई थी, इस ने धमकी भी दी थी, लेकिन इस ने कत्ल नहीं किया. धमकी की वजह से उस पर कत्ल का इल्जाम लगा दिया गया. अब हकीकत सामने है सर.’’

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया, क्योंकि वह बेगुनाह था. दाऊद के व्यवहार से उसे नादिर का कातिल मान लिया गया था. जब अदालत के हुक्म पर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

नादिर एक दिलफेंक आशिकमिजाज लड़का था. जब फौजिया ने उसे घास नहीं डाली तो उस ने इश्क का चक्कर दाऊद की बेटी मनीजा से चलाया. वह उस के जाल में फंस गई. दाऊद को अपनी बेटी से नादिर के प्रेमसंबंधों का पता चल गया. नादिर के इश्कबाजी के पुराने रिकौर्ड से वह वाकिफ था.

दाऊद ने बेटी के प्रेमसंबंधों को उछालने या उसे समझाने के बजाय नादिर की जिंदगी का पत्ता साफ करने का फैसला कर लिया. वह मौके की ताक में रहने लगा. रियाज और नादिर के बीच लड़ाईझगड़े और दुश्मनी का माहौल बना तो दाऊद ने नादिर के कत्ल की योजना बना डाली.

दाऊद को पता था कि नादिर ने मनीजा की मदद से छत की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली है. घटना वाली रात को वह दबे पांव मनीजा के पहले छत पर पहुंच गया. नादिर छत पर मनीजा का इंतजार कर रहा था, तभी पीछे से अचानक पहुंच कर दाऊद ने उस की खोपड़ी पर वजनी रेंच से वार कर दिया.

एक ही वार में नादिर की खोपड़ी फट गई और वह मर गया. उस की जेब से चाबी निकाल कर दाऊद दरवाजे में ताला लगा कर नीचे आ गया.

मैं ने दाऊद से कहा कि वह बिल्डिंग का मालिक था. नादिर को वहां से निकाल सकता था. मारने की क्या जरूरत थी? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मैं उस बदमाश को छोड़ना नहीं चाहता था. घर बदलने से उस की बुरी नीयत नहीं बदलती. वह मेरी मासूम बच्ची को फिर बहका लेता या फिर किसी सीधीसादी लड़की की जिंदगी बरबाद करता.’’

इस तरह नादिर को मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कड़ी सजा मिल गई थी.

#coronavirus: मक्खी वाले VIDEO के लिए अमिताभ ने मांगी माफी, किया डिलीट

सुपर स्टार और महानायक के रूप में जाने जाने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन अपनी जागरूकता के कारण जाने जाते हैं. अमिताभ सोशल मीडिया पर सदैव एक्टिव रहते हैं.ऐसे में कोरोना महामारी के संदर्भ में वे भला कैसे चुप रह सकते थे. इसीलिए उन्होंने कल एक मक्खी वाला पोस्ट किया था, लेकिन आज उन्होंने उस पोस्ट के लिए माफी मांगी है.
गलत पोस्ट के लिए मांगी माफी…
अमिताभ बच्चन का कहना है कि वो शर्मिंदा है कि कोरोना सकंट के समय उन्होंने एक गलत खबर पोस्ट की. इसके साथ उन्होंने एक नया वीडियो भी पोस्ट किया और पुराने वीडियो डिलीट कर दिया.
क्या था मामला…
दरअसल मेडिकल मैगजीन “द लैंसट” में प्रकाशित हुआ था कि कोरोना वायरस “मक्खी” से भी फैल सकता है और जब यह तथ्य महानायक अमिताभ बच्चन की नज़र से गुज़रा तो इस स्टडी की जानकारी देते हुए अमिताभ बच्चन ने एक वीडियो अपने ट्विटर हैंडल से साझा कर दिया और प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे रिट्वीट कर दिया था.

वीडियो में अमिताभ बच्चन कहा था,-”हमारा देश कोरोना वायरस से जूझ रहा है और आप सब को इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. क्या आप जानते हैं हाल ही में चीन के विशेषज्ञों ने पाया है कि कोरोना वायरस मानव मल में कई हफ्तों तक जिंदा रह सकता है. कोरोना वायरस का मरीज अगर पूरी तरह ठीक भी हो जाए तो उसके मल में कोरोना वायरस जिंदा रह सकता है. यदि किसी व्यक्ति के मल पर मक्खी बैठ जाए और ये मक्खी खाने के सामान पर बैठ जाए तो यह बीमारी और फैल सकती है. इसलिए ये बहुत ही आवश्यक है और महत्वपूर्ण भी कि हम सब कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जनआंदोलन बनाएं जैसे हमने प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में स्वच्छ भारत मिशन को जन आंदोलन बनाकर भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाया था.”

लक्ष्मण रेखा को हम भूल जाते हैं
यहां हम याद दिलाना चाहेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार 24 मार्च को अपने संदेश में कोरोना महामारी की गंभीरता को दिखाते   हुए कहा है कि हमें अपने घरों में रहना चाहिए और एक तरह से लक्ष्मण रेखा खींचकर घर पर ही रहें.सनद रहे की उन्होंने हाथ जोड़कर इस संदर्भ में विस्तार से जनता से विनती की है.
वहीं देश में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या  में नित्य प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है और अब तक इससे  11 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं दुनिया के देशों की बात करें तो चीन में इस वायरस का पहला मामला सामने आने के बाद 182 देशों मे कोरोना वायरस का तांडव जारी है.

coronavirus: कोरोना से जंग में कूदी ये फिल्म एक्ट्रेस, नर्स बनकर मुंबई में कर रही हैं मरीजों की सेवा

आज देश कोरोना महामारी की मार झेल रहा है.भारत भर में 14 अप्रैल तक,21 दिन की तालाबंदी (लाॅकडाउन) घोषित की गई है और बीमारी को फैलने से बचने के लिए लोगों को 21 दिनों तक घरों में ही रहने के लिए कहा गया है.इसके चलते कई सेलेब्रिटीज भी अपने अपने घरों में रहने को मजबूर हो गए हैं .बौलीवुड व टीवी जगत के कुछ सितारे अपने और अपने फैंस के टाइम पास करने के लिए नए नए कौतुक करने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करते नजर आ रहे हैं.

मगर यह सभी सेलेब्रिटी खुद को ही प्रमोट करने में लगे हुए हैं.राजकुमार राव अगर अपने फेसबुक दोस्तों से हर दिन अपनी कोई एक फिल्म ऑनलाइन शेयर कर रहे हैं.तो वहीं करीना कपूर खान अपने बेटे तैमूर व परिवार की फोटोज अपने नए नवेले इंस्टा एकाउंट पर शेयर करने में बिजी हैं. रणवीर-दीपिका अपनी रोमांटिक तस्वीरे इंस्टा पर डाल कर अपने फैंस का दिल लुभा रहे हैं.जबकि कटरीना कैफ घर पर झाड़ू लगाते व बर्तन मांजते हुए अपना वीडियो अपलोड कर तारीफें लूट रहीं हैं.कहने का अर्थ यह है कि हर कलाकार अपने तरीके से कुछ न कुछ ऐसा कर रहा है,जिससे देष भर में घर बैठे लोगों का मन लगा हुआ है…

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लेकिन‘‘रनिंग षादी’’और ‘फैन’’ जैसी फिल्मों की अदाकारा तथा सात फरवरी को पूरे देष में प्रदर्षित फिल्म‘‘काॅंचली’’की हीरोईन शिखा मल्होत्रा इन सभी कलाकारों से अलग मुंबई के जोेगेष्वरी इलाके के ‘बाला साहेब ठाकरे ट्रामा अस्पताल’से जुड़कर बतौर नर्स आम इंसानों और वह भी कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटी हुई हैं.एक फिल्म अभिनेत्री होनेे के बावजूद उन्होेने हिम्मत कर घर से बाहर निकल देश सेवा में अपना सहयोग दे रही हैं.

वास्तव में मशहूर कहानीकार विजयदान देथा की कहानी पर आधारित हिंदी फिल्म ‘‘काँचली‘‘ की हीरोईन षिखा मल्होत्रा एक प्रषिक्षित नर्स भी हैं.अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने से पहले उन्होनेे बाकायदा दिल्ली में चार साल का नर्सिंग का कोर्स करने के अलावा कुछ समय तक बतौर नर्स अस्पताल में नौकरी भी की थी.उसके बाद वह फिल्म‘‘रनिंग षादी’’से अभिनय के क्षेत्र में आ गयी थीं.

जब पूरे देश में ‘कोरोना’’ बीमारी फैली और उनकी नई फिल्म की शूटिंग बंद हो गयी,तो मुश्किल समय में उन्होने खुद ही बतौर नर्स देश की सेवा करने का मन बनाकर किसी भी अस्पताल से जुड़ कर अपनी नर्सिंग की सेवाएं देने की इच्छा जाहिर की थी और हाल ही में उन्होंने एक वीडियो जारी कर यह खबर सभी से शेयर की है कि अपने इतने दिनों के प्रयासों के बाद उन्हें मुंबई के जोगेष्वरी इलाके में स्थित ‘बालासाहेब ठाकरे ट्रॉमा अस्पताल’’ने एक वोलेंटरी नर्स के तौर पर अपने अस्पताल में अपॉइंट कर लिया है.

 

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For those who don’t know that I am a #Registered #BscHonoursNurse from Vardhaman Mahavir Medical & #SafdarjungHospital Spending my 5 years…so sharing a glance of my working hours in the hospital??‍⚕️So as you all have always appreciated my efforts my achievements this time need all of your support to #serve the #nation once again??and this time I’ve Decided to join the hospital in #mumbai for #covid19 #crisis .Always there to serve the country as a #Nurse as a #entertainer wherever however I can ?need your blessings??please be at home be safe?and support the government. Thank you so much Mumu to make me what I am today?Jai Hind?? @narendramodi @amitabhbachchan @anupampkher @who @aajtak @zeenews @ddnews_official

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शिखा मल्होत्रा ने खुशी के साथ अपने वीडियो में कहा है कि,‘‘में कृतज्ञ हॅूं कि अस्पताल संचालकों ने मुझे मेरी बीएससी ऑनर्स नर्सिंग की डिग्री और मेरी देश सेवा की भावना को देखते हुए यह मौका प्रदान किया है.मैंने 27 मार्च की सुबह से अस्पताल में काम पर लग गयी हूं.

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मेरी ड्यूटी आइसोलेशन डिपार्टमेंट में लगी है और एक ट्रेनिंग के बाद में कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में जुट जाऊंगी.’’शिखा के चाहने वाले उनके इस कदम की खूब सराहना कर रहे हैं.जबकि शिखा मल्होत्रा सभी से प्रार्थना कर रही है कि,‘आप सभी अपने घरों से ना निकलें और जो एतिहात प्रशासन ने बरतने को कहा है,उस पर अमल करें.’’

ज्ञातब्य है कि ‘‘काॅचली’’के प्रदर्षन के बाद षिखा मल्होत्रा को एक बड़े प्रोडक्शन हाउस की फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने का अवसर मिला है.मगर कोरोना वायरस के चलते लाक डाउन के बाद षूटिंग रूक गसयी.अब लाॅक डाउन खत्म होने के तुरंत बाद ही शिखा इस फिल्म की शूटिंग करती नजर आएंगी.

#coronavirus: मौसम और कोरोना के कहर से किसान लाचार

देश में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूरे भारत में लॉकडाउन का आदेश दिया गया हैं. जिस से देश के ज्यादातर इलाकों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं. लॉकडाउन के चलते किसानों के सामने भी बड़ा संकट खड़ा हो गया हैं. क्योंकि इस समय ज्यादातर फसल खेतों में तैयार होने की दिशा में है. सरसों की तैयार फसल कुछ इलाकों में मौसम की मार से बेकार हो गई हैं. कुछ खेतों में ही अधकटी पड़ी हैं. इसके आलावा गेहूं, मटर, चना, जौ आदि की फसल भी कटाई के मुहाने पर है. अगर इन फसलों को समय पर नहीं काटा गया तो देश के किसानों साथसाथ आम जनता को भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.

वैसे भी इस बार बेमौसम की बरसात, आंधी, तूफान ने किसानों की खड़ी फसल में अच्छाखासा नुकसान किया है. देश में अनेक इलाकों में तैयार फसल खेत में ही गिर गई है. जिस से फसल पैदावार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. इस समय तैयार आलू की फसल को भी बेमौसम बरसात में खासा नुकसान हुआ है. अनेक जगह खेतो में आलू की खुदाई नहीं हो पा रही है. खेतो में ही आलू सड़ रहा है. जिन किसानों के खेतों से आलू की खुदाई हो चुकी है उन का आलू खुले में पड़े रहने के कारण हरा होने लगा है या ख़राब होने लगा है.

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इस मौसम की मुख्य फसल गेहूं भी तैयार होने की हालात में है. बेमौसम आंधी बरसात के चलते बहुत से किसानों के गेहूं फसल भी गिर गई है. ऐसी फसल की कटाई भी कठिन हो जाती है. क्योकि खड़ी फसल को कटाई यंत्रों जैसे रिपर, हार्वेस्टर आदि से आसानी से काटा जाता है, लेकिन गिरी हुई फसल को काटना आसान नहीं होता. आज के समय में सबसे बड़ी समस्या फसलों को काटने की भी है. फसल काटने के लिए इस समय हार्वेस्टर या कंबाइन मशीनों की जरुरत होती है. लेकिन देश में लॉकडाउन के चलते जिलों की सीमाओं को सील कर दिया गया है. बाहर से आनेजाने पर भी रोक लगा दी गई है. ऐसे मैं फसल कटाई करने का बड़ा संकट किसानों के सामने खड़ा हो गया है. क्योंकि आज के समय में इन कटाई यंत्रों को एक से दूसरी जगह ले लिए जिला कलेक्टर से अनुमति जरुरी है. क्योंकि सीमा सील होने का कारण सभी का आना जाना रुका हुआ है.

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कृषि विभाग में अधिकारीयों व किसानों का कहना है कि पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों से बड़े कृषि यन्त्र देश के अनेक हिस्सों में फसल काटने के लिए जाते है लेकिन सीमाएं सील होने के कारण मशीनें भी कहीं नहीं आ जा पा रही हैं.

बस्ती के प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र का कहना है कि हमारे यहाँ भी इस समय पंजाब, हरियाणा से कटाई मशीनों का आना शुरू हो जाता है लेकिन वह भी नहीं आ पा रही हैं. मशीनों कि बात तो दूर ट्रेक्टर तक हम अपने खेतो तक नहीं ले जा पा रहे हैं. ऐसे मैं किसान क्या करेगा?

फसल कटाई के लिए सरकार द्वारा सुझाव:

* फसलों की कटाई ज्यादातर आधुनिक कृषि यंत्रों से कराएं. अगर हाथ से इस्तेमाल करने वाले यंत्रों से कटाई करनी है तो इन यंत्रों कि धुलाई दिन में 3 बार अच्छी तरह साबुन और पानी से करें.
* फसल कटाई के समय एकदूसरे से उचित दूरी रखें सरकारी निर्देशों के मुताबिक काम करते वक्त खाना खाते समय काम से काम 5 मीटर की दूरी जरूर रखें.
* खाने के लिए अलग अलग बर्तनो का इस्तेमाल करें. बर्तनो को अच्छी तरह साबुन से धो कर रखें.
* सभी लोग अपने अपने उपकरण जैसे दरांती (हाथ से फसल काटने का यंत्र) आदि का खुद ही इस्तेमाल करें. आपस में अदलाबदली न करें.
* बीच बीच में हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोते रहे.
* कटाई के दौरान पहने गए कपड़ों को अगले दिन न पहनें. अगले दिन दूसरे कपडे पहनें और पहले कपड़ों को धोकर सूखा लें उन्हें अगले दिन पहनें.
* सभी लोग मास्क लगाकर कटाई करें और पीने का पानी भी अलग अलग बर्तनों या बोतलों में रखें.
अगर किसी व्यक्ति को खासी, जुखाम, सरदर्द, बदन दर्द आदि कि शिकायत हो तो नजदीकी डॉक्टर से मिलें.

#Coronavirus: रश्मि देसाई ने गाया ‘गो कोरोना गो’, वायरल हुआ VIDEO

एक्स बिग बॉस कंटेस्सटें और नागिन एक्ट्रेस रश्मि देसाई की फैन फॉलोइंग काफी जबरदस्त है. फैन्स ने उनके नाम के कई इंस्टाग्राम अकाउंट्स बनाए हुए हैं. अब हाल ही में एक वीडियो सामने आया है जिसे रश्मि के फैन्स ने शेयर किया है. इस वीडियो में रश्मि गो कोरोना गो गा रही हैं. रश्मि का ये वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. फैंस को रश्मि का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.


इससे पहले मास्क पहनकर गई थी सब्जी लेने…

कुछ दिनों पहले रश्मि सड़क पर सब्ज़ी खरीदते हुए दिखी थीं. रश्मि मास्क पहनकर सब्ज़ी खरीदते हुए दिखी थीं.

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बिग बॉस को लेकर हाल ही में दिया ये बयान…

रश्मि ने बिग बॉस ख़त्म होने के बाद कुछ दिनों पहले ही शो को लेकर बात की है. रश्मि ने कहा था, इस शो ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. शो ने कई चीजों के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया. मैं एक स्ट्रॉंग महिला बन गई हूं. मैंने अब चीजों को पॉजिटिव तरीके से लेना शुरू कर दिया है. मेरा पेशन्स लैवल बढ़ गया है. इसमें कोई शक नहीं कि मैंने वहां मुश्किल दिनों का सामना किया, लेकिन इसके साथ ही मैंने वहां खूबसूरत यादें भी बनाई.’

रश्मि ने ये भी बताया था, ‘मैं वो कंटेस्टेंट हूं जो घर में सबसे मुश्किल दौर से गुजरी हूं. मेरी पर्सनल लाइफ पूरी तरह से खुलकर सामने आ गई थी. उन सिचुएशन्स को मेरे लिए संभालना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी मैंने किया.’

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बता दें कि शो में रश्मि अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर खूब सुर्खियों में रही थीं. घर से आने के बाद वह उन्होंने घर में सभी सद्स्यों के बारें में खुल बात की. बता दें कि इस बार शो में सिद्धार्थ शुक्ला ने बिग बॉस की ट्रॉफी जीती.

वहीं असीम रियाज फर्स्ट रनरअप और शहनाज गिल सेकेंड रनरअप रहीं. वहीं शो की सबसे चहेती और स्ट्रॉन्ग कंटेस्टेंट कही जाने वाली टीवी एक्ट्रेस रश्मि देसाई चौथे नंबर थीं.

#coronavirus: चीन पर गहराता शक

आज कोरोना के कारण पूरा विश्व लॉक डाउन है.भारत, अमेरिका, योरोप, श्रीलंका, चेक रिपब्लिक, इटली, ईरान सब जगह लोग अपने अपने घरों में कैद हो कर रह गए हैं मगर चीन के सभी शहर खुले हुए हैं. और अब तो आठ अप्रैल से चीन का वो शहर भी खुल जाएगा जिस जगह से तबाही का ये वायरस बाहर निकला था. जी हाँ, चीन सरकार ने आठ अप्रैल से वुहान शहर को खोलने की घोषणा कर दी है.यही नहीं चीन का मुख्य पर्यटक स्थल ग्रेट वाल ऑफ़ चीन भी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है और वहां टिकट्स की बुकिंग भी शुरू हो गई है.

उल्लेखनीय दुनियाभर में कोरोना वायरस का प्रकोप लगातार बढ़ जा रहा है.इनमें यूरोपीय देश इटली, स्पेन, ईरान, फ्रांस और जर्मनी और अमेरिकी देश शामिल है जबकि उसके उलट चीन में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में न केवल कमी आई है बल्कि संक्रमित मरीजों की रिकवरी का औसत भी दूसरे देशों की तुलना में काफी बेहतर देखने को मिला है.

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चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग की रिपोर्ट के अनुसार चीन में लगभग 89 फीसदी कोरोना वायरस मामलों में लोग ठीक होकर अस्पताल से छूट चुके हैं. पिछले साल दिसंबर में प्रकोप की शुरुआत के बाद से देश में दर्ज किए गए 81,093 मामलों में से 72,703 ठीक हो चुके हैं, जबकि इस समय अस्पतालों में केवल 5,120 मरीज अपना इलाज करा रहे हैं.

इस बीच चीन में कोरोना वायरस के कोई घरेलू मामले सामने नहीं आ रहे हैं.जबकि कोरोना संक्रमण के मामले में इटली और ईरान की दशा बेहद खराब और डरावनी हैं.आश्चर्यजनक बात है कि चीन में किसी भी नेता, किसी भी मिलिट्री लीडर या किसी भी बड़े बिजनेसमैन को कोरोना वायरस ने नहीं पकड़ा.कोरोना वायरस ने दुनिया भर के अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया, लाखों की नौकरी रोज़गार ख़तम कर दिए, हज़ारों की जान ले ली, लाखों को बीमार कर दिया, अनगिनत लोगो को उनके घरों में कैद कर दिया, तमाम देशों को लॉक डाउन की स्थिति में पहुंचा दिया, जिसमे भारत भी एक है जहाँ अर्थव्यवस्था उस स्थिति में पहुंच गई है जिसका संभल पाना आगे आने वाले कई सालों में बहुत मुश्किल होगा मगर चीन की अर्थव्यवस्था को कोई ज़्यादा नुक्सान होता नज़र नहीं आ रहा है.

आश्चर्य की बात तो यह है कि वुहान जहाँ से इस खतरनाक वायरस की उत्पत्ति हुई उसी वुहान से सटी चीन की राजधानी बीजिंग और चीन की आर्थिक राजधानी शंघाई तक ये वायरस अपनी ख़ास पहुंच नहीं बना पाया? इन दोनों शहरों में नाममात्र के केस ही सामने आये हैं. बीजिंग में तो मात्र दो आम नागरिकों के मरने की सूचना भर है.

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आज सारी दुनिया बंद है। पेरिस बंद है, न्यूयोर्क बंद है, बर्लिन, रोम, दिल्ली, मुंबई, टोक्यो सब बंद हैं.दुनिया के प्रमुख आर्थिक और राजनितिक केंद्र बंद हैं मगर चीन के बीजिंग और शंघाई खुले हुए हैं. वह उस दौरान भी खुले हुए थे जब कोरोना वहां तबाही के चरम पर था.कोरोना का कोई ख़ास असर शंघाई और बीजिंग में दिखाई नहीं देता है.गौरतलब है कि बीजिंग वो शहर है जहाँ चीन के टॉप मोस्ट नेता, आर्मी कमांडर, मिलिट्री लीडर और चीन की सत्ता सँभालने वाले पावरफुल लोग रहते हैं.

इस बीजिंग में कोरोना का कोई असर नहीं है इसलिए वहां कोई लॉक डाउन नहीं है.दूसरी तरफ शंघाई वो शहर है जो चीन की अर्थव्यवस्था को चलाता है, शंघाई चीन की आर्थिक राजधानी है, यहाँ चीन के सबसे अमीर लोग बसते हैं. यहाँ पूंजीपति, कारोबारी, उद्योगपति रहते हैं.शंघाई में भी कोरोना का कोई असर नहीं है और ना ही यहाँ कोई लॉक डाउन है.तो क्या इस बात का शक नहीं उठता कि कोरोना चीन का ईजाद किया और पाला हुआ वायरस है जिससे कहा गया है कि तुम सारी दुनिया में तबाही मचाओ, चीन में भी माध्यम और गरीब तबके की जानें लो मगर बीजिंग और शंघाई के अमीरों से दूर रहो. आखिर क्या वजह है कि जब दुनिया के तमाम ताकतवर और विकसित देश कोरोना को नहीं रोक सके तो बीजिंग और शंघाई इसकी चपेट में आने से बच गए जो वुहान से बिलकुल सटे हुए हैं? आखिर कोरोना बीजिंग और शंघाई तक क्यों नहीं पहुंचा?

आज पूरा भारत लॉक डाउन में है. हमारी अर्थव्यवस्था ठप्प हो चुकी है.गरीबों मजदूरों के पास अगले चार दिन बाद शायद खाने तक का जुगाड़ नहीं होगा.शहर के शहर बंद हो गए हैं. मगर चीन के सभी प्रमुख शहर खुले हुए हैं.चीन में अब कोरोना वायरस से पीड़ित नए केस भी सामने नहीं आ रहे हैं.गौर करने वाली बात ये है कि दुनिया भर का शेयर मार्किट लगभग आधा गिर चुका है.भारत में भी निफ्टी बारह हज़ार से सात हज़ार पर पहुंच गया है पर चीन का शेयर मार्किट तीन हज़ार पर था और अभी भी 2700 पर है. उसमे कोई ज़्याद गिरावट दर्ज नहीं की गई है। हैरानी की बात है की दुनिया भर को कोरोना का वायरस देने वाले चीन की अर्थव्यवस्था पर कोरोना का कहर तारी नहीं हुआ.

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यह तमाम बाते क्या इस बात की ओर इशारा नहीं करतीं की कोरोना चीन का बनाया हुआ एक जैविक हथियार है जिसने दुनिया भर में तबाही मचा दी और दुनिया भर की इकॉनमी को ठप्प कर दिया. चीन ने इस जैविक हथियार से अपने यहाँ भी लोगों को मरवाया मगर मरने वालों मे कोई पावरफुल आदमी नहीं था. कोई राजनितिक जान का नुक्सान चीन को नहीं हुआ. और अब चीन ने इस वायरस पर कण्ट्रोल भी कर लिया है. हो सकता है इस वायरस का वैक्सीन उसके पास हो या इसकी दवा उसके पास हो जिसे उसने बाकी दुनिया से शेयर नहीं किया.

दुनिया के अनेक देशों में कोरोना ने बड़ी बड़ी हस्तियों को अपनी चपेट में लिया है. हॉलीवुड स्टार, ऑस्ट्रेलिया के गृहमंत्री, ब्रिटेन के स्वास्थ मंत्री, स्पेन के प्रधानमंत्री की पत्नी और अब तो ब्रिटेन के शाही घराने के प्रिंस चार्ल्स को भी कोरोना ने जकड लिया है पर चीन के किसी नेता, किसी मिलिट्री अफसर को कोरोना ने छुआ तक नहीं ? क्या ये आश्चर्य की बात नहीं है ?

खबरदार जो पैर छुए

प्यारे बंधुओ, वर्षों से पैर छूने की कला में पारंगत अपने सांसद सदमे में आ गए हैं. प्रधानमंत्रीजी ने सार्वजनिक रूप से नसीहत देते हुए कह दिया है कि कोई भी उन के न तो पैर छुए और न ही चापलूसी करे. प्रधानमंत्रीजी ने अपने भाषण के दौरान कहा, ‘‘जब कोई मेरे पैर छूता है तो मुझे गुस्सा आता है. मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आया हूं. संघ के सरसंघचालक गुरुजी कहते थे कि एक बार पैर छूने पर उन की उम्र एक दिन घट जाती है.’’

प्रधानमंत्रीजी ने यह भी कहा, ‘‘सभी सांसद जनता से सीधे संवाद करें. सदन में ज्यादा से ज्यादा मौजूद रहें. प्रवक्ता की तरह न बोलें. बहस में ज्यादा हिस्सा लें. संसदीय क्षेत्र की बात करें. क्षेत्र के विकास की चिंता करें. मुद्दे उठाने का होमवर्क करें, किसी भी सीनियर नेता के पांव न छुएं, संसद के सभी सत्रों में मौजूद रहें और सदन में बोलने से पहले पूरी तैयारी कर के आएं. प्रत्येक सांसद अपना काम पूरी ईमानदारी और लगन से करे. यही उन का सच्चे तौर पर पैर छूना समझा जाएगा.’’ जी हां, प्रधानमंत्रीजी ने सच ही तो कहा है, भला इस में बुरा भी क्या है? आप यदि बुरा न मानें तो मैं यहां पर पूरी तरह से अपने प्रधानमंत्रीजी के साथ हूं और मैं भी अपने भारतवासियों से कहना चाहूंगा कि अपने भारत के सभी नागरिक यदि उन की इन बातों पर अमल करें तो भावी पीढ़ी पैर छूने का सच्चा अर्थ भूल कर बस अपना काम से काम रखना सीख जाएगी. परिणामस्वरूप वह बातबात पर केवल अपना उल्लू ही सीधा करती हुई नजर आएगी.

मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों मुझे दिल्ली के रजिस्ट्रार कार्यालय में अपने एक 75 वर्षीय सेवानिवृत्त आला अधिकारी के फ्लैट की रजिस्ट्री के लिए उन के गवाह के रूप में पेश होना पड़ा. तो उन से मिलने पर जैसे ही मैं पूरे सम्मान के साथ उन के पैर छूने हेतु झुका, उन्होंने तुरंत मेरे कंधों को स्नेह से पकड़ कर मुझे उठा लिया और बोले, ‘‘अरे सक्सेना साहब, यह क्या कर रहे हैं? आज आप का वक्त है, आप हमारे काम के लिए अपने कीमती सरकारी समय में से समय निकाल कर यहां आए हैं. इसलिए आज हम आप के आभारी हुए, आप नहीं. आज मैं आप का साहब नहीं, आप हमारे साहब हैं. वैसे भी तो अब मैं रिटायर हो चुका हूं. पैर छू कर आप ने तो मुझे भावुक कर दिया. मुद्दत हो गई किसी ने पैर नहीं छुए. शासन में था तो रोजाना ही कोई न कोई पैर छुए बिना मानता ही नहीं था. अब तो अपना सगा बेटा भी पैर नहीं छूता है. हैलो, हाय, डैड कह कर काम चलाता है. धन्य हैं आप के संस्कार जो आप ने निसंकोच हो कर पैर छूने के आचरण को अभी तक अपने जीवन में बनाए रखा.’’

उन की स्नेहिल बातें सुन कर मैं मन ही मन गौरवान्वित और धन्य महसूस करने लगा और सोचने लगा कि यहां आ कर हम ने इन पर भला कौन सा एहसान कर दिया? कौन सा हम पैदल चल कर यहां आए हैं? अपने निदेशालय के वर्तमान कार्यरत आला अधिकारी से पहली बार सम्मान के साथ इजाजत और सरकारी वाहन पर सवार हो कर शान से इन के काम के लिए निकले हैं. वैसे भी हमें तो आला अधिकारियों के कामकाज के लिए अपने सरकारी समय में से समय चुराने की पुरानी आदत है. इस परमसुख कार्य का हमें बहुत अभ्यास भी है. इसलिए दिक्कत नहीं आती है. इस बार फर्क सिर्फ इतना था कि अब की बार जिन सेवानिवृत्त आला अधिकारी की मदद करने हेतु हम अपने सरकारी कार्यालय से बाहर निकले थे वे हमारे वर्तमान कार्यरत आला अधिकारी के समकक्ष आला अधिकारी थे.

एक आला अधिकारी दूसरे आला अधिकारी की मदद न करे, यह तो हो ही नहीं सकता. वह आला अधिकारी ही क्या जो अपने और अपने सगेसंबंधियों व परिचितों के निजी कामकाज के लिए अपने अधीनस्थों का जम कर प्रयोग ही न कर पाए. भला भाईचारा भी कोई चीज होती है. वे भी भूतपूर्व आला अधिकारी थे इसलिए वर्तमान आला अधिकारी ने हमें अपने सरकारी समय में ही उन का जरूरी निजी कामकाज निबटा देने हेतु बिना नाकभौं सिकोड़े हुए अपनी सहमति के साथसाथ हमारे जाने और आने हेतु ससम्मान अपनी सरकारी गाड़ी भी प्रदान करा दी थी. सरकारी कार्यालय के सरकारी समय में कार्यालय में रहते हुए फाइलों पर कामकाज करो या आला अधिकारियों के निजी कामकाज हेतु कार्यालय से बाहर निकल जाओ, ये दोनों ही कार्य दफ्तरी संस्कृति में सरकारी कार्यकुशलता के दायरे में आते हैं. इन दोनों कार्यों में पारंगत होने वाला सरकारी अधिकारी हो या कर्मचारी या फिर चपरासी, तीनों ही उत्कृष्टता का खिताब पाते हैं.

बंधु, आप ने यह भी सुना ही होगा कि अब आजकल पैर न छुए जाने की नई कला की बदौलत अपना इंडिया ‘स्कैम इंडिया’ नहीं, बल्कि ‘स्किल इंडिया’ बनने जा रहा है. सरकारी दफ्तरी संस्कृति में आला अधिकारियों के पैर छूना चमचागीरी का परिचायक माना जाता है, तो वहीं यह बात अलग है कि अपने से बड़ों के पैर छूना हमारी परंपरा भी है, जो व्यक्तिगत सम्मानसूचक है.खैर, फिलहाल लगता है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए पैर छूने की वर्षों पुरानी परंपरागत कला के दिन अब खत्म होने वाले हैं. जल्दी ही यह कला विलुप्त हो जाएगी. वैसे भी, वर्तमान में आधुनिक युवा पैर कम, थोड़ा सा झुक कर घुटने छू ने में ज्यादा विश्वास रखते हैं. अपने देश के कुछेक सांसदों को छोड़ कर, युवाओं को तो पैर छूना फजीहत का काम ही लगता है. वे तो मौकापरस्ती का फायदा उठाने के लिए ही पैर छूने में विश्वास रखते हैं, इस से अधिक कुछ नहीं.

अरेअरे बंधु, यह सब पढ़ कर आप किस सोच में पड़ गए? क्या आप को लगता है कि भविष्य में पैर छूना भी घोटालों यानी कि स्कैम में शामिल कर लिया जाएगा? या फिर भविष्य में यदि कोई भी सांसद पैर छूता हुआ दिखाई दे गया या फिर गुप्तरूप में प्रयास भी करता हुआ पाया गया तो उस को 2 साल की जेल या फिर 1 लाख रुपए जुर्मानारूपी सजा हो सकती है? नहींनहीं, ऐसा कुछ भी नहीं होगा परंतु यदि यही हाल रहा तो मेरा विश्वास है कि अपने देश में अब एक नया पैर न छुओ नियंत्रण बोर्ड अवश्य बन सकता है. इस के लिए ट्रैफिक नियंत्रण इंस्पैक्टर और अधिकारियों की तरह पैर नियंत्रण इंस्पैक्टरों व अधिकारियों की भरती की जाएगी. इन इंस्पैक्टरों और अधिकारियों पर नियंत्रण रखने के लिए पैर नियंत्रण महानिदेशालय खोला जाएगा. इन इंस्पैक्टरों और अधिकारियों की पोस्ंिटग संसद भवन और संसदीय कार्यालयों में की जाएगी.

पैर नियंत्रण महानिदेशालय ऐसे बेरोजगार शिक्षित युवाओं की भरती पर विशेष ध्यान देगा जिन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान एक भी अध्यापक व प्रवक्ता के कभी भी पैर न छुए हों. इस बात की पुख्ता पहचान के लिए कोई विशेष सर्टिफिकेट तो अभी तक नहीं बना है मगर भरती हेतु चयनित हुए युवाओं को नंगा कर के उन्हें साष्टांग दंडवत होने हेतु कहा जाएगा जो जितनी जल्दी साष्टांग दंडवत हो जाएगा, बस, वह पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर के टैस्ट में फेल कर दिया जाएगा अर्थात स्पष्ट शब्दों में कहूं तो इस परीक्षा में फेल हो जाने के बाद में लाख बार पैर पकड़ने पर भी उस का देश के इस नए पद यानी पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर हेतु चयन नहीं होगा.

पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर के बाद आप की इस संबंध में अगली आवश्यक जानकारी के लिए बता दूं कि पैर नियंत्रण अधिकारी हेतु नए पदों की भरती की निस्वार्थ चयन प्रक्रिया में 2 टैस्ट होंगे.

पहला, सामान्य प्रयोगात्मक टैस्ट व दूसरा मैडिकल द्वारा रीढ़ की हड्डी और दोनों हाथों की कोहनियों व पंजों की जांच. पहले सामान्य प्रयोगात्मक टैस्ट में केवल साष्टांग दंडवत प्रणाम प्रदर्शन द्वारा जांच कर ली जाएगी कि किस अभ्यार्थी का पैर छूने का किस प्रकार का अभ्यास है और अभ्यास है भी या नहीं. दूसरे टैस्ट में सीटी स्कैन और एमआरआई के द्वारा उस की रीढ़ की हड्डी और दोनों हाथों की कोहनियों व पंजों के बारबार मुड़ने की कोणीय टैंडेंसी तथा सैंसिटिविटी को परखा जाएगा. यहां भरती होने के चक्कर में भी यदि किसी युवा ने एक भी बार किसी वरिष्ठ चिकित्सक या फिर परीक्षाभवन में उपस्थित पर्यवेक्षक के पैर छूने की कोशिश की या छूता हुआ दिखाई दिया तो वह अगले ही पल अपने पैरों को सिर पर रख कर भागता हुआ ही नजर आएगा क्योंकि परीक्षा भवन और आसपास गैलरी आदि में लगे हुए खुफिया कैमरे उस पर अपनी पारखी नजर बनाए रखेंगे.

कैमरा नियंत्रण कक्ष में उपस्थित सीनियर अफसर ऐसे अभ्यर्थी को परीक्षा में बैठने से वंचित करार दे कर परीक्षा भवन से बाहर कर देने का धक्कारूपी अधिकार रख कर भगा भी सकते हैं. किसी के भी पैर छूना या फिर परीक्षा भवन या कक्ष में अपने पैरों के आसपास मंडराते मच्छर, मक्खियों को हटाने हेतु भी झुकने पर उसे पैर छूने का अभ्यासकर्म मान कर परीक्षा नियमों का उल्लंघन ही माना जाएगा. जो युवा अपनी परीक्षा देने भवन में अंदर जाते समय भी यदि बाहर खड़े अपने पिताजी, चाचाजी, ताऊजी इत्यादि बड़े बुजुर्गों के पैर छूते हुए दिखाई दिए तो उन के भी भरती न होने के प्रतिशत की दर बढ़ सकती है.

अब आप सोच रहे होंगे कि पैर छूना तो भारतीय परंपरा का हिस्सा है. अपने यहां तो भारतीय परंपरा में हर मौके पर ही पैर छुए जाते हैं. अपने देश में स्त्री के आंसू और पुरुष का पैरों पड़ना कठिन से कठिन काम भी आसान बना देता है. दरअसल, अपने देश में बिना मौके आंसू निकालना और पैर पड़ना दोनों ही सामाजिक कला के पारंपरिक उत्कृष्ट नमूने हैं. इन उत्कृष्ट कलाओं में पारंगत होने वाले को ही अब तक अपने देश में महान पद हासिल हुआ करते थे, जो शायद अब आसानी से नहीं मिलेंगे. अपने यहां एक कहावत है कि ‘अफसर के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं आना चाहिए.’ तो बंधु, यहां भी कला आड़े आ गई और प्रधानमंत्रीजी के आगे भरी सभा में पैरी पौना हुए सांसद वर्षों की पारंपरिक कला का उपयोग करने से वंचित हो गए. उन्हें आशीर्वाद का वह लड्डू नहीं मिल पाया जिस की उन्होंने तमन्ना की थी. उन का पैर छूने का संपूर्ण हुनरमंद फार्मूला, आत्मविश्वास व अभ्यासकर्म इस बार पहली बार सब फेल हो गया.

आप भी यदि अपने बड़े होते हुए, राजनीति में हुनरमंद बच्चों को सांसद बनाना चाहते हैं तो आप को उन की बेहतरीन सफलता के लिए चुनाव के दौरान ही जम कर प्रशिक्षण देना होगा कि वे आप के और अपने महल्ले के समस्त बड़ेबुजुर्गों के पैर छूना तुरंत बंद कर दें. यदि उन्हें भारतीय परंपरा के अंतर्गत पैर छूने की लत लगी हुई हो तो उन्हें किसी पहलवान के अखाडे़ में भेज कर शारीरिक मल्लयुद्ध का अभ्यास करवाएं ताकि वे तमाम बार परास्त हो कर भी अपनी जीत और आशीर्वाद के लिए कभी भी किसी के पैर न छुएं. बातबात पर पैर छूना उन के भविष्य के राजनीतिक कैरियर को समाप्त कर सकता है. सो, पैर छूने से बचें. पैर से जा लगना, पैर पर सिर रखना, पैरा हुआ होना, पैरों में पर लगना, पैरों में बेडि़यां डालना, पैरों में मेहंदी लगा कर बैठना, पैरों चलना आदि के वास्तविक मूल अर्थ को भुला कर अब अपना इंडिया स्कैम नहीं स्किल इंडिया बनने जा रहा है. जहां पर प्रधानमंत्रीजी और सीनियरों के पैर छूना मना है. आप भी अपना संयम बनाए रख कर, देश की तरक्की में अपना योगदान दें और यदि आप पैर छूने का विकल्प ढूंढ़ रहे हों तो आप की जानकारी के लिए मैं ने आप के लिए अपना शोधकार्य पहले ही पूरा कर लिया है.

मेरे शोधकार्य का निष्कर्ष जनहित में जारी किया जा रहा है, ‘‘भाइयो, जहां पर पैर छूना मना हो वहां अपने चेहरे की बनावटी हंसी व गरदन हिलाने यानी हिनहिनाने के अभ्यासोपरांत आसानी से काम चलाया जा सकता है.’’ इसलिए पैर छूने के चक्कर में न पड़ कर आज से ही अपने चेहरे पर बनावटी हंसी व गरदन हिलाने का अभ्यास शुरू कर दें. इस अभ्यास से भविष्य में अवश्य लाभ होगा. तो बंधु, अब टैंशन किस बात की है, जो पैरों में अपनी आंखें गड़ाए बैठे हो. उठिए और मुसकराइए. बेझिझक हो कर विश्वास के साथ आगे बढ़ जाइए. मेरा विश्वास है कि आप को पैर छू कर मिलने वाले लाभ से ज्यादा स्नेहिल और मनचाही सफलता अवश्य हाथ लगेगी. आखिर अपने प्रधानमंत्रीजी द्वारा मिली नई जानकारी के तहत एक बार पैर छूने पर पैर पूजे जाने वाले की उम्र 1 दिन घट जाती है. आप को इस बात का खयाल भी तो अवश्य रखना ही होगा ना. तभी तो आप को उन के पैरों पर पड़ने की जगह, उन के सीने से लगने का लंबा मौका मिलेगा.                   

#coronavirus: कोरोना के बंद ने खोल दिए मन के बंद द्वार

आज पूरा विश्व एक महामारी की गिरफ्त में हैं , सबकी शिकायत भरी नजर चीन पर उठ रही है, यूँ तो मानव स्वभाव है शिकायत करना. शिकायत तो सभी की होती है एक दूसरे से, पत्नी को शिकायत पति से ;घर पर समय नहीं देते , पति को शिकायत दफ्तर के काम से मुक्ति नहीं मिलती, बच्चों को शिकायत कालेज, कोचिंग के बीच खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पा रहे .किसने सोचा था कोरोना जैसा गम्भीर, असाध्य रोग इन शिकायतों का हल बनेगा. जी हाँ ! आज कोरोना से पूरी दुनिया थम गई है.‘जो जहाँ है, जिस हाल में है …बस वहीं रहे’ घोषणा हर तरफ सुनाई दे रही है . टेलीविजन पर माननीय प्रधानमन्त्री के भाषण के बाद तो मेट को छुट्टी देना हमारा नागरिक कर्तव्य हो गया था, चिंता में थी कैसे होगा …सफाई , कपड़े, खाना … उस पर सभी की फुल टाइम घर में मौजूदगी .

श्रीमान जी ने मन की बात भाप ली, बोले नो टेंशन, उन्होंने भी प्रधानमन्त्री की तर्ज पर अपने रियासत में एलान कर दिया,

“मौसम है ख़राब  घर से बाहर न निकला जाय  घर पर रहकर ही  माँ के काम में  हाथ बटाया जाय ” फार्मूला काम कर गया. सबसे बड़ी बात ‘बेटे के एमबीए फाइनल का एक्जाम कर्फ्यू के दो दिन पहले ही समाप्त हुआ था . उसे जॉब के लिए पन्द्रह दिन बाद ही निकलना था, सो फरमाइश थी, ‘माँ  मुझे कुछ रसोई का काम सिखला दो ताकि जहाँ रहूँ कम से कम भूखा तो न रहूँ .तो सबसे पहले तो मैंने किचन की कार्यशाला लगाईं . जिसमे सभी की हिस्सेदारी रही .सब्जी काटने ,छोंका लगाने, आटा, कुकर लगाने, रोटियाँ बेलने का काम बारी-बारी सबके हिस्से आया सुखद यह था कि सभी ने अपना काम ईमानदारी से निभाया.उस पर प्याज काटते हुए जब बेटे के मुख से यह वाक्य निकले ,

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‘माँ  कैसे काटती हैं आप प्याज़ , उफ़ ! कितना लगता है आँखों को ” वहीं रोटियाँ बेलते हुए पतिदेव को हैरान , परेशान हो यह कहते सुना ,

“सुमि ! कैसे बेल लेती हो तुम गोल-गोल रोटियाँ …यहाँ तो कभी चीन ,कभी जापान का नक्शा ही बनकर रह जाता है .” सच क्या कहूँ ये वाक्य किसी मन्त्र से सुकून दे रहे थे , मन आसमान की ऊंचाइयाँ छू गया .बहरहाल प्रतिस्पर्धा सी हो गई आज किसने अपना काम कौशल के साथ किया, अच्छा ऐसा …! मैं कल इससे अच्छा कर दिखाऊंगा.

अक्सर बेटे से शिकायत करती थी , ‘

‘कालेज जाते हो या धूल में लौटकर आते हो …! कपड़े ही इतने गंदे रहते है.” बड़ी आसानी से जवाब देता , “मशीन है ना माँ..फिर क्या चिंता ” अब उसे कौन समझाये मशीन के बाद भी मेहनत लगती है .अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे  बेटे के हिस्से आये जब कपडे,

“आप सच कहती हैं माँ, मेरे कपडे कुछ ज्यादा ही धूल से दोस्ती कर लेते हैं ना …देखिये कोशिश तो की है मगर आपकी तरह नहीं हो पाया न ” मुग्ध हो गई, लगा जीत गई मेरे भीतर की औरत, मगर एक माँ दिल हार गई ,

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“चल रहने दे मैं कर देती हूँ ”“ओके, तब तक मैं आप सबको बढ़िया अदरक वाली चाय बनाकर पिलाता हूँ ” लगा अंतिम पलों में किसी ने स्वर्ग की सैर करा दी.क्या कहूँ अब तक तो सुबह जल्द उठने के बाद भी कभी बच्चों के टिफिन, चाय ,नाश्ते, फिर श्रीमान के दफ्तर के लिए टिफिन …यानि सुबह से जो दौड़ शुरू होती फिर नहाकर ,कपड़े पूजा करने के बाद बमुश्किल नाश्ते के लिए समय मिलता था.

जबकि मेट झाड़ू पोंछा कर जाती थी, किन्तु अब तो सभी फ्री हैं सो सुबह भी देर से होती है . सभी लोग साथ बैठ चाय नाश्ते का आनन्द लेते हैं. फिर बिना कहे सभी अपने-अपने मोर्चे पर तैनात हो जाते हैं. अपने हाथ के टेस्ट से बोर हो गई थी , अब अपनों के हाथों का बना चखती हूँ एक अलग अनुभूति हो रही है. समय ही समय है पास; सो सदुपयोग तो होना ही है. अमूमन बच्चों की अंग्रेजी फ़िल्में मैं नहीं देखती मगर आज जब उन्होंने जिद की तो उनकी पसंद की फिल्म वायरस देखी.लगा हमें देखनी चाहिए इस तरह की फ़िल्में ..काफी ज्ञानवर्धक लगी. बच्चों की पसंद पर फक्र हुआ तो बच्चों ने भी मेरा मन रखने के लिए मेरी मनपसन्द फिल्म माँग भरो सजना लगाईं.  रात में फ्री होकर अब हर रोज कोई न कोई फिल्म देखते , दिन में कभी तम्बोला, कभी अन्त्याक्षरी ,तो कभी कोई माइंड  गेम. दिमाग फ्री था , काम का भूत जो जाने – अनजाने कहीं मन में गया था , हवा हो गया. साथ ही कोरोना का खौंफ हमारे ठहाकों के बीच दबगया , सो खूब मन लगा.

इस बीच चावल और साबूदाने के पापड़ , मंगोड़ी भी मेरी आजकल पर टल रही थी, क्योंकि सबको विदा करते करते आधा दिन जा चुका होता; सोचती अब क्या कल करूंगी …वह कल अब आया.खाना बनाने से मुझे मुक्त दे पतिदेव ने कहा तुम अपना वह काम कर लो , बच्चे भी मेरे संग छत पर आ गए उनमें चावल के पापड़ गोल-गोल बनाने की होड़ लगी और मेरा काम आसान हुआ साथ ही मेरी रसोई का संग्रहण भी हो गया. अब से पहले रविवार का दिन मेरे लिए और भी तनाव भरा रहता था .एक दिन पहले प्लानिंग जो करनी पड़ती थी, कल सुबह नाश्ते में क्या , खाने में स्पेशल क्या बनाऊँ वरना यही सुनाने को मिलेगा एक दिन तो घर रहते हैं.फिर शाम का नाश्ता …मगर अब इस तनाव से हमेशा -हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई. सबको यूट्यूब पर रिसिपी का चस्का लगा दिया , एक्सपेरिमेंट जारी है.फुर्सत के पलों में कुछ बच्चों के शौक जाने/समझे , कुछ अपने कहे , उन्हीं में एक शौक जो कहीं दब  सा गया था पेंटिंग का , बच्चों को सुनकर आश्चर्य हुआ मेरे भीतर एक कलाकार भी है ,

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“जीवन की आपाधापी में / कब वक्त मिला कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं तुझमें भी हुनर है किसी से कह सकूं ”

अब तक मैं एक रसोइया के रूप में जो देखी गई .बस फिर क्या था बेटे की रिजेक्ट ड्राइंग शीट और पेन्सिल आ गई मेरे सामने  मेरी कला को सराहना ही नहीं मिली भविष्य में इस शौक को प्रचारित –प्रसारित करने का वादा भी मिला.

कोरोना का यह कर्फ्यू मन में बरसों के बंद द्वार खोल गया . सच हम कभी -कभी अपने को स्वयं वक्त नहीं देकर अपने भीतर के भावों को कुचल देते हैं और जाने-अनजाने किसी कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं. जो परिवार को हानि पहुंचाता है.यूँ एक दूसरे के करीब आकर एक दूसरे को जानने के अवसरों से हम वंचित रह जाते हैं. कोरोना के 21 दिनों के इस सुखद वनवास ने मेरी अयोध्या को गुलजार कर दिया.

 

#coronavirus: दिल में लगा न कर्फ्यू

दुनिया भर में तहलका मचा था .कोरोना नाम की महामारी की वजह  से दुनिया का हर शहर, हर गली , हर घर लौक डाउन हो रहा था .

टीवी लगातार चल रहा था, मासूम निकहत की मां लगातार न्यूज पर नजर गड़ाए थी .जैसे कि न्यूज देखने से उनकी मुसीबत कुछ कम हो जाय .

निकहत पांचवीं में थी. स्कूल बंद था. अब्बा पुलिस में थे तो ‘वर्क फ्रॉम होम ‘ का सवाल ही नहीं था , जैसा कि अन्य विभागों में सरकार की ओर से लागू किया गया था . आसपास के सारे माहौल पर बंद का सन्नाटा छाया था. निकहत की मां बीच बीच में अपना फोन चेक कर रही थी , और कुछेक घंटों में कहीं कौल कर रही थी.

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एक क़ौल आया , निकहत की मां ने दौड़कर फोन उठाया. शायद वह इस फोन के इन्तजार में थी.

“क्या हुआ भैया ? कुछ इंतजाम हुआ ?चार दिन से लगातार कोशिश कर रही हूं कि कहीं से ब्लड मिल जाय ,लेकिन कहीं कोई राह नहीं .ब्लड कहीं उपलब्ध ही नहीं है ,कोई डोनर नहीं मिला क्या भैया ?”अनिश्चित आशंका से आखरी शब्द गले में ही लड़खड़ा गए थे निकहत की अम्मी के.

“दीदी हमने भी बहुतों से पूछने की कोशिश की , कई परिचितों से तो संपर्क ही नहीं हो पा रहा है. अपने ही शहर में अकेले ऐसे बच्चों के ही केस डेढ़ सौ से ऊपर हैं ,और आप तो जानती हैं उन्हें कितनी खून की जरूरत पड़ती है.”

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‘भैया पिछली ही बार मैंने अपने पति को अपना ब्लड दिया था जब वे सरकारी काम में भीड़ के साथ मुठभेड़ में जख्मी हुए थे. मुझमे अभी प्लेटलेट्स और हीमोग्लोबिन की कमी है ,मेरा खून अभी काम न आ सकेगा ,कोई उपाय देखो भैया .” उसके करुण स्वर ने उस तरफ के व्यक्ति को भी आद्र कर दिया.

“देखता हूं दीदी  कर्फ्यू और कोरोना के डर से तो कोई किसी काम में हाथ डालने को तैयार नहीं .कोशिश करता हूं.” बातचीत खत्म होने पर निकहत की अम्मी पहले से ज्यादा परेशान हो गई.

निकहत जब छोटी सी थी अचानक एक बार बुखार आया था.फिर तो वह ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी.टेस्ट पर टेस्ट के बाद आखिर जब पता चला तो नन्ही निकहत को लेकर सारे घरवाले परेशान हो गए.

छोटी सी उसकी जान को थैलेसीमिया था यानी ब्लड कैंसर .हर पंद्रह दिन में उसके शरीर का रक्त कण शेष हो जाता है. कैंसर की वजह से इन बच्चों में खून बनाने की क्षमता नहीं होती .

प्राणों में अथाह जीने की इच्छा और अपनों की स्नेह सिंचित व्यथा भी उन्हें बचा नहीं सकती अगर पंद्रह दिन में उन्हें स्वस्थ खून न मिले.

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निकहत की अम्मी का यह अंतहीन सिलसिला शुरू हो चुका था.और ऐसे में आया था यह कोरोना का कह.

शहरों की तालाबंदी से रोजमर्रा की जिंदगी जहां बाधित होने लगी है, जहां जीने की होड़ में लोग मृत्यु से रोजाना भिड़ रहे हैं, वहां पहले से ही जीवन पर काल बनी बीमारियों का सामना कैसे करें. जिनके घर के बच्चे पहले से ही असाध्य बीमारियों से जूझ रहे ,उनका उपाय इस लौक डाउन शहर की कानी गूंगी गलियों में कैसे होगा?

जब देश में अचानक फैली इस महामारी से लड़कर जीतने के लिए न तो पर्याप्त मेडिकल स्टाफ हैं, न वेंटिलेटर, न हाइजीन के लिए पर्याप्त सामान और न इस रोग की जांच के लिए अधिक हौस्पिटल .

रक्त की बीमारी से जूझते बच्चों की तो ऐसे भी इम्यून शक्ति खराब होती है.कैसे बचाए प्यारी सी निकहत को उसकी अम्मी.

अचानक पड़ोस के कल्याण ने निकहत के घर का दरवाजा खटखटाया.

अब कोई भी घटना निकहत की अम्मी को अच्छी नहीं लग रही है. खास कर लोगों से बोलना बतियाना.तीस साल की उम्र में ही उसने अपने मन को बांध कर रखना सीख लिया है. और अभी तो निकहत को लेकर उसका मन बहुत ही आशंकित है! बाहर आकर देखा बाजू में रहने वाला कल्याण है,एमटेक का स्टूडेंट. वह और भी घबरा गई. अभी अभी इसका इसके पिता से जोरदार कहा सुनी हो रही थी,पता नहीं क्या हुआ था!और अब यह यहां! निकहत में खून की जबरदस्त कमी हो रही है, उसका किसी बाहरी से मिलना जुलना ठीक नहीं.कोरोना वाइरस की वजह से चेतावनी है कि लोग दूसरे के घरों में न जाएं! सभी ओर कर्फ्यू तो इसी वजह लगा है, फिर यह यहां क्यों?

परेशान सी निकहत की अम्मी ने कल्याण पर प्रश्नसुचक निगाहें डाली.

भाभी ! अभी न्यूज पेपर में पढ़ा थैलेसीमिया के बच्चों को समय पर खून नहीं मिल पा रहा है, इससे उनकी जिंदगी पर खतरा बढ़ गया है. लौक डाउन की वजह से कोई खून देने वाला नहीं मिल पा रहा है, उपर से रक्त की कालाबाजारी भी तो होने लगती है,ऐसी आपदा में! क्या निकहत का इंतजाम हो गया है?”

नहीं भाई! शुक्रिया तुम्हे याद रहा निकहत का!”

“तो आप राजी हो तो चलिए मेरे साथ निकहत को लेकर,कालोनी के बाहर जो ब्लड बैंक है वहां मैंने फोन से पूछ रखा है ,वे चढ़ा देंगे मेरा खून निकहत को.”

निकहत की अम्मी को लगा जैसे कल्याण को वह दौड़कर गले लगा ले.तेईस वर्ष का यह नौजवान कितना संवेदनशील और समझदार है.

बात तो सभी कर लेते हैं,लेकिन विपत्ति में पूछने वाले मिल जाएं तो दूर रहकर भी साथ यह दुख झेला जा सकता है.

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“भाई बड़े मुसीबत में थी,इसके अब्बू ड्यूटी में हैं,कौन इंतजाम करे.इस करम का शुक्रिया अदा कर दूं,इतनी औकात नहीं मेरी, हां दुआ करती हूं परवरदिगार तुम्हे हजार नियामत बख्शे.भाई बुरा न मानो ,एक बात पूछना चाहती हूं, अभी कुछ देर पहले तुम्हारे घर से तुम्हारे पिताजी के चीखने की आवाजें आ रहीं थीं, सब खैरियत तो है? ”

“अरे बाबूजी को डर था कि खून देने गया तो मुझे भी कोरोना हो जाएगा. बिना समझे न डरें वही बता रहा था. जब पूरे हाइजीन का ख्याल रखा जाएगा,तो यह क्यों होगा.और बच्चों की जिंदगी भी तो बचानी है.”

निकहत की मां कल्याण के साथ ब्लड बैंक जाती है,और औपचारिकताएं पूरी कर ब्लड दी जाती है.

खून के कतरों के साथ प्यार,विश्वास,और कोरोना नहीं, करुणा की धार स्थानांतरित होती रही बच्ची में.

निकहत की अम्मी सोच रही थी,-शहर में कितने ही कर्फ्यू लगे हो, दिल में न लगे कर्फ्यू तो विपत्ति की घड़ी निकल ही जाती है.

#coronavirus: कोरोना संकट- मुश्किल की घड़ी में समझदारी

कोरोना महामारी के कारण बंद की स्थिति में बहुत सी जटिल समस्याएं जन्म ले रही है. जिंदगी जटिल होने लगी है, संकट से उबरने के लिए घर में बंद रहना बहुत जरूरी है लेकिन पेट का क्या है, भूख कभी समय देख कर नही आती है. जनता कर्फ्यू के बाद से ही लोगों ने जमाखोरी शुरू कर दी थी. लेकिन लाक डाउन होते ही समस्या गंभीर होने लगी . लोगों बाहर जाकर ज्यादा सामान भरना शुरू कर दिया . जिससे आम आदमी के लिए परेशानियाँ उत्पन्न हो रही हैं, एेसे में दुकानदार सामानों के दाम भी मनमाफिक ले रहें है.

मेरे घर में खाने का कुछ जरूरी सामान लाना जरूरी था यही सोच के साथ हम बाहर गए लेकिन बाजार में सामान लेने गए तो देखा भीड उमड रही थी . सामान दुकानों पर खत्म हो रहा गया . पहले दिन तो वापिस अा गए, घर में आटा नही था , अगले दिन सोचा जाकर लेकर आएगें . लेकिन भीड आज भी वही थी. जितनी भीड़ बड़ेगी उतनी महामारी बढेगी. जमाखोरी के कारण बाजार में सामान बाजार में कम आ रहा है . मुश्किल से थोड़ा उपयोग करने का सामान बिस्किट ही लेकर हम वापस आ गए कि जब जरूरी होगा तब ही बाहर जायेगें. जागरूक नागरिक होने की जिम्मेदारी निभाना भी जरूरी है . लेकिन जीवन का क्या है . जीवन में भूख समय देखकर नही आती है. खाने पीने का सामान धीरे-धीरे घर में कम हो रहा है .

आजकल एटीएम के जमाने में घर में पैसे रखने की आदत लोगों में कम हो गई थी . पहले दिन किसी तरह एटीएम से जाकर पैसा तो लेकर आए . कुछ विशेष वर्ग द्वारा अनाज तेजी से भरा रहा है . कही ऐसी हालत ना हो जाय कि जेब में पैसा तो है पर बाजार में सामान ना मिले . पहले के जमाने में बहुत बचत से लोग सामान का उपयोग करते थे यह सीखने वाली बात है . बेहतर है कि हमारे पास जो सामान है उसी में अच्छी तरह बचत करके यदि घर चलाया जाए तब समस्या नहीं होगी गरीबों के लिए व अन्य लोगों के लिए बाजार में सामान उपलब्ध होगा. कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो समस्या का निदान हो सकता है

अमीरों के घर में जमाखोरी हो सकती है लेकिन मध्यमवर्गीय आम आदमी के जीवन में मुश्किलें दोहरा संकट लेकर आती है एेसी स्थिति से निपटने के लिए हम कुछ उपाय कर सकते हैं .

1 नाश्ता व लंच दोनों की जगह ब्रंच लिया जा सकता है , यानि एक बार में पेट भर कर खाअो
2 पूरी थाली की जगह छोटी प्लेट में भी खाना खा सकते हैं, कहतें है ना प्लेट जैसी होगी भूख भी वैसी होगी . जरूरी नहीं है कि दो सब्जियां ,दाल ,चावल ,रोटी सलाद सभी चीजें अधिक मात्रा में हों. दो की जगह एक सब्जी बना लें .

3 सूखे अनाजों को भीगा कर , उगा कर खाने से शरीर को पौष्टिकता भी मिलेगी व पेट भरेगा.

4 घर सामान के अनुसार अपना साप्ताहिक चार्ट बना लें कि किस दिन हमें क्या बनाना है और कितना सामान शेष है . इसका भी अंदाजा आपको हो जाएगा. वस्तु के अनुसार अपना मेनू तैयार करें कि कब क्या बनाना है, अकारण ज्यादा भोजन ना पकाया जाए जिससे वह बर्बाद हो.

5 मन को शांत रखकर रूपरेखा तैयार की जाए. पहले भी लोग पिज्जा या फास्ट फूड की जगह सादा भौजन करते थे. इससे बच्चे भी सब खाना सीख जायेगें

6 पैसे की कमी ना हो इसलिए घर में थोड़ा पैसा इमरजेंसी के लिए बचा कर रखें, वह कब हमें काम आयेगा कह नही सकते इसिलिए जब तक अति जरूरी ना हो हाथ ना लगाएं.

7 पानी पीते रहे जिससे शरीर में पानी की कमी नही होगी. भोजन में फाइबर की मात्रा के उपयोग करने से पेट अच्छे से भरता है व भूख कम लगती है .

8 फाइबर व प्रोटीन खाने से सेहत अच्छी रहेगी . घर में सूखे चने, मूंग ,सूखे अनाज जिन्हें रात भर पानी में भिगोकर उगाया जाता है और यह चीजें जल्दी खराब नहीं होती हैं .इसका उपयोग करने से शरीर को ना केवल पौष्टिकता प्राप्त होती है अपितु यह चीजें एेसे वक्त में खूब काम आती है.

9 केवल चावल खाने से भूख जल्दी लगती है, इसिलिए सब चीजें भले कम खाए पर खाए जरूर . जब शरीर में हाइड्रेट रहेगा तब भूख कम लगेगी.

छोटी छोटी-छोटी बचत हमारे मुश्किल भरे समय नहीं हमारे बहुत काम आती है. ऐसे कठिन समय में घबराए नहीं अपितु खूब संयम से काम ले, मुश्किल वक्त निकल जाएगा. जान है तो जहान है.

 

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