जैसे ही लॉक-डाउन की खबर सुनी, सभी महिलाओं के मन में एक ही ख़याल आया उफ़ ! अब घर का काम कैसे होगा .काम वाली भी तो नहीं आ सकती अब .

घर का बर्तन, कपड़ा, झाड़ू, पौंछा आदि सब तो वही करती है .

अक्सर सभी वाटसैप समूहों से ऐसे ही सन्देश फॉरवर्ड होने लगे .

जैसे पति घर पर बैठे हुकुम चला रहे हैं .

एक वीडिओ आया जिसमें पत्नी रसोई में जल्दी-जल्दी काम कर रही है और पति टी.वी. के सामने बैठ कर हुकुम चला रहे हैं . ऐसे में पत्नी परेशान हो कर आयी और तौलिये से अपने पति का चेहरा सर समेत ढक देती है और नाराज़गी भी दिखाती है .

वहीं सोशल मीडिया पर कुछ पुरुष  चाहे वे रोज काम करें न करें रसोई में काम करते दिखाई दिए .अच्छी डिशेज़ बना कर सर्व करते हुए वे गर्व का अनुभव कर रहे थे .

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एक महाशय ने तो सोशल मीडिया पर चौक में पड़े झूंठे बर्तनों के साथ फोटो खिंचवा कर चंद पंक्तियाँ भी लिखीं जिसमें पत्नी के सहयोग की बात थी .

इससे साफ़ समझ आता है कि लॉक डाउन के समय घर की महिलाओं पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़ गया है

. बच्चे, पति और कहीं-कहीं तो संयुक्त परिवार जिसमें सास-ससुर, देवर-नन्द सभी हैं .घर काम में मुख्य भूमिका निभाने वाली महिलाओं का तो कचूमर ही निकल जाएगा .

जो पुरुष एवं बच्चे सुबह एक बार दफ्तर और स्कूल चले जाते हैं और महिलायें उनके जाने के बाद घर का सारा काम निबटाती हैं अब वे सब घर पर हैं .

पुरुष व बच्चों का स्वयं का कोई रूटीन नहीं, चाहे वे देर से उठें रात देर तक जाग कर फ़िल्में या स्पोर्ट्स चैनल देखें लेकिन महिलाओं के लिए तो डबल ड्यूटी हो ही गयी .

कई महिलाएं कामकाजी है जिनके घर में कुक व हाउस मेड लाइफलाइन की तरह होती हैं . उनकी तो जैसे सांस ही अटक गयी क्यूंकि कईयों को तो “वर्क फ्रॉम होम” भी दिया गया है .

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माना कि बहुत से पुरुषों के लिए भी वर्क फ्रॉम होम है पर हर हाल में घर के काम का बोझ तो महिलाओं पर ही है .

क्यूंकि अब महिलाएं घर से बाहर तो निकल नहीं सकतीं, अपने मन की भड़ास एक दूसरे को वाटसैप कॉल करके ही निकालनी पड़ी .

गृहणी भी है कामकाजी

अब क्यूंकि पति घर पर हैं पर आदतें तो पुरानी . जैसे छुट्टी का एक दिन आया करता था सप्ताह में एक बार . अच्छा खाना, साफ़-सुथरा घर, रात को देर तक फिल्म वो भी अकेले नहीं पत्नी भी साथ दे .

इस पर ऋचा का कहना है दो दिन तो चलाया कैसे भी, फिर शरीर में थकान हो गयी . रात को देर तक जागो सुबह से वही काम एवं सिफारिशों की झड़ी . सच में सर में दर्द हो गया . बच्चे भी रात को देर तक जाग रहे हैं, सुबह देर से उठते हैं . घर का कचरा लेने अब कोई आ नहीं रहा . बाहर जा कर दो तभी वेस्ट क्लीयर होगा . मैं सुबह घर साफ़ करूँ, रसोई सम्भालूँ, क्या-क्या करूँ ?

मैं ने कह दिया अब समझ आया घर में कितने काम होते हैं मैं तुम्हारे साथ बैठ कर रात को देर तक फिल्म नहीं देखूंगी तो पति नाराज़ हो गए .

कामकाजी महिला की शामत

सॉफ्टवेयर में कार्यरत हेमा कहती हैं घर का काम तो है ही अब दफ्तर का भी “वर्क फ्रॉम होम” . सप्ताह में एक छुट्टी हो तो ठीक है पर हर दिन सबकी छुट्टी और मुझे वर्क फ्रॉम होम भी तो कैसे चलेगा ? मैं ने अपने पति से कहा “देखिये हम दोनों एक ही घर में रहते हैं, कमाते भी दोनों हैं, जितना काम तुम करते हो उतना ही मेरे भी पास है” अब घर का काम भी साथ-साथ करना होगा तभी चलेगा . बच्चों को भी समझाना होगा .

कुल मिला कर घरेलू और कामकाजी महिला सभी काम के दबाव में हैं .

लेकिन जिन पुरुषों की परवरिश ऐसे माहौल में हुई है जहां पुरुष घर के काम में हाथ नहीं बंटाते वहां समस्या थोड़ी ज्यादा है .

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तो सीधी सी बात है यह लॉक-डाउन सभी के लिए है इसलिए इसका फायदा और नुकसान भी सभी उठायें . पुरुष सिर्फ घर बैठ कर टी.वी. लैपटॉप और सोशल मीडिया का आनद उठायें और महिलाएं पिसें गृहस्थी की चक्की में . तो ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है . लॉक-डाउन ब्रेक-अप में तब्दील होने में देर नहीं .

ऐसा कोई जरूरी नहीं कि ब्रेक-अप कागजों में ही होता है . ब्रेक-अप एक ही घर में रहकर मन ही मन  भी हो सकता है . एक बार यदि मन में गाँठ पड़ी तो सारी ज़िंदगी जाने वाली नहीं .

संयुक्त परिवार और तानाशाही

संयुक्त परिवार में रहने वाली संध्या कहने लगी “अब तो माँ-बेटा दोनों ही हुक्म चलाने लगे, पहले कम से कम यह तो था कि पति दफ्तर गए तो सास की सिफारिशें झेलनी पड़ती थीं . अब दोनों माँ-बेटा साथ में बैठते हैं और सिर्फ इधर-उधर की और अपने पुराने दिनों की बातें करते हैं . एक बार एक को पानी का गिलास थमाओ तो दूसरे को दूध-छाछ याद आ जाता है . इधर मिक्सी के जार धोती हूँ तो ससुर का चाय का हुकुम आ जाता है . यदि ज़रा देर हो तो पति का स्वर तेज हो जाता है कि माँ कब से बोल रही हैं तुमने इन्हें दिया क्यूँ नहीं ?

जी करता है कह दूं कि बैठ कर सारे दिन गप्पे हांकते हो तो अपने माता-पिता का ख्याल भी तुम रख लो . उन्हें चाय, दूध, छाछ तुम ही क्यूँ नहीं बना देते . ये छोटे-छोटे काम तो कर सकते हैं न वे . वो तो करते नहीं अब झींकने वाले एक से दो हो गए .

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यहाँ  सोचने वाली बात यह है महिलाओं को सहायिका की मदद तो मिल नहीं रही . लेकिन काम का बोझ बढ़ गया तो पति जो संयुक्त परिवार में माता-पिता को साथ रखते हैं उनकी जिम्मेदारी क्या सिर्फ महिला की ही है ? क्या पति की स्वयं अपने माता-पिता के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं ? आखिर उन्होंने पाल-पोस कर बेटे को बड़ा किया है, बहु को नहीं .

इसलिए ऐसे समय में बहु से उम्मीद भी कम ही रखें तो ठीक वरना संतुलन में चलती गाड़ी डगमगा भी सकती है .

मुखिया जी आगे आयें

ऊपर दिए गए उदाहरणों में आम घरों की समस्या है कि जब पति-बच्चों समेत पूरा परिवार घर पर हो और छुट्टी का सा माहौल हो तब पति आखिर क्यूँ न करे पत्नी की मदद ?

घर का मुखिया कहलाने वाला पति जब युद्ध का समय आये तो पीछे क्यूँ हट जाए ?

आप महाराज बन कर हुकुम तो हर दिन करें और युद्ध के समय पीठ दिखा कर भाग जाएँ या कलह-कलेश करें . यह तो उचित नहीं न, इस समय तो मुखिया की जिम्मेदारी ज्यादा है . कैसे अपनी गृहस्थी को कम संसाधनों में संतुलित रखना है इसमें तो मुखिया की भूमिका भी मुख्य होनी चाहिए और इसे संतुलित रखने में पत्नी की हर संभव मदद करनी चाहिए . चाहे रसोई के बर्तन , कपडे, साफ़-सफाई या कुकिंग क्यूंकि घर तो दोनों का ही है .

ऐसे में वे पुरुष धन्यवाद के पात्र हैं जो सोशल मीडिया पर खाना बनाते, रसोई साफ़ करते , जूठे बर्तन धोते और कपड़ा सुखाते नज़र आ  रहे हैं . चाहे उन्होंने मसखरी या टाइम पास  के लिए ही यह सब  किया किन्तु सन्देश भी दिया कि पुरुष भी घर की कार्यों में स्ट्रे के मदद करे .

 

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