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कभी नहीं: भाग 1

‘‘पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों पर विश्वास है तुम्हें?’’ सूखे पत्तों को पैरों के नीचे कुचलते हुए रवि ने पूछा.

कड़ककड़क कर पत्तों का टूटना देर तक विचित्र सा लगता रहा गायत्री को. बड़ीबड़ी नीली आंखें उठा कर उस ने भावी पति को देखा, ‘‘क्या तुम्हें विश्वास है?’’

गायत्री ने सोचा, उस के प्रेम में आकंठ डूब चुका युवा प्रेमी कहेगा, ‘है क्यों नहीं, तभी तो संसार की इतनी लंबीचौड़ी भीड़ में बस तुम मिलते ही इतनी अच्छी लगीं कि तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना ही शून्य हो गई.’ चेहरे पर गुलाबी रंगत लिए वह कितना कुछ सोचती रही उत्तर की प्रतीक्षा में, परंतु जवाब न मिला.तनिक चौंकी गायत्री, चुप रवि असामान्य सा लगा उसे. सारी चुहलबाजी कहीं खो सी गई थी जैसे. हमेशा मस्त बना रहने वाला ऐसा चिंतित सा लगने लगा मानो पूरे संसार की पीड़ा उसी के मन में आ समाई हो.

उसे अपलक निहारने लगा. एकबारगी तो गायत्री शरमा गई. मन था, जो बारबार वही शब्द सुनना चाह रहा था. सोचने लगी, ‘इतनी मीठीमीठी बातों के लिए क्या रवि का तनाव उपयुक्त है? कहीं कुछ और बात तो नहीं?’ वह जानती थी रवि अपनी मां से बेहद प्यार करता है. उसी के शब्दों में, ‘उस की मां ही आज तक उस का आदर्श और सब से घनिष्ठ मित्र रही हैं. उस के उजले चरित्र के निर्माण की एकएक सीढ़ी में उस की मां का साथ रहा है.’एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया गायत्री ने रोक कर वहीं बैठने का आग्रह किया. फिर बोली, ‘‘क्या मां अभी तक वापस नहीं आईं जो मुझ से ऐसा प्रश्न पूछ रहे हो? क्या बात है?’’

रवि उस का कहना मान वहीं सूखी घास पर बैठ गया. ऐसा लगा मानो अभी रो पड़ेगा. अपनी मां के वियोग में वह अकसर इसी तरह अवश हो जाया करता है, वह इस सत्य से अपरिचित नहीं थी.

‘‘क्या मां वापस नहीं आईं?’’ उस ने फिर पूछा.

रवि चुप रहा.‘‘कब तक मां की गोद से ही चिपके रहोगे? अच्छीखासी नौकरी करने लगे हो. कल को किसी और शहर में स्थानांतरण हो गया तब क्या करोगे? क्या मां को भी साथसाथ घसीटते फिरोगे? तुम्हारे छोटे भाईबहन दोनों की जिम्मेदारी है उन पर. तुम क्या चाहते हो, पूरी की पूरी मां बस तुम्हारी ही हों? तुम्हारे पिता और उन दोनों का भी तो अधिकार है उन पर. रवि, क्या हो गया है तुम्हें?’’

‘‘ऐसा लगता है, मेरा कुछ खो गया है. जी ही नहीं लगता गायत्री.  पता नहीं, मन में क्याक्या होता रहता है.’’

‘‘तो जा कर मां को ले आओ न. उन्हें भी तो पता है, तुम उन के बिना बीमार हो जाते हो. इतने दिन फिर वे क्यों रुक गईं?’’ अनायास हंस पड़ी गायत्री. धीरे से रवि का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी, ‘‘शादी के बाद क्या करोगे? तब मेरे हिस्से का प्यार क्या मुझे मिल पाएगा? अगर मुझे ही तुम्हारी मां से जलन होने लगी तो? हर चीज की एक सीमा होती है. अधिक मीठा भी कड़वा लगने लगता है, पता है तुम्हें?’’

रवि गायत्री की बड़ीबड़ी नीली आंखों को एकटक निहारने लगा.

‘‘मां तो वे तुम्हारी हैं ही, उन से तुम्हारा स्नेह भी स्वाभाविक ही है लेकिन वक्त के साथसाथ उस स्नेह में परिपक्वता आनी चाहिए. बच्चों की तरह मां का आंचल अभी तक पकड़े रहना अच्छा नहीं लगता. अपनेआप को बदलो.’’

‘‘मैं अब चलूं?’’ एकाएक वह उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘कल मिलोगी न?’’

‘‘आज की तरह गरदन लटकाए ही मिलना है तो रहने दो. जब सचमुच मिलना चाहो, तभी मिलना वरना इस तरह मिलने का क्या अर्थ?’’ एकाएक गायत्री खीज उठी. वह कड़वा कुछ भी कहना तो नहीं चाहती थी पर व्याकुल प्रेमी की जगह उसे व्याकुल पुत्र तो नहीं चाहिए था न. हर नाते, हर रिश्ते की अपनीअपनी सीमा, अपनीअपनी मांग होती है.

‘‘नाराज क्यों हो रही हो, गायत्री? मेरी परेशानी तुम क्या समझो, अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’

‘‘क्या समझाना है मुझे, जरा बताओ? मेरी तो समझ से भी बाहर है तुम्हारा यह बचपना. सुनो, अब तभी मिलना जब मां आ जाएं. इस तरह 2 हिस्सों में बंट कर मेरे पास मत आना.’’गायत्री ने विदा ले ली. वह सोचने लगी, ‘रवि कैसा विचित्र सा हो गया है कुछ ही दिनों में. कहां उस से मिलने को हर पल व्याकुल रहता था. उस की आंखों में खो सा जाता था.’   भविष्य के सलोने सपनों में खोए भावी पति की जगह एक नादान बालक को वह कैसे सह सकती थी भला. उस की खीज और आक्रोश स्वाभाविक ही था. 2 दिन वह जानबूझ कर रवि से बचती रही. बारबार उस का फोन आता पर किसी न किसी तरह टालती रही. चाहती थी, इतना व्याकुल हो जाए कि स्वयं उस के घर चल कर आ जाए. तीसरे दिन सुबहसुबह द्वार पर रवि की मां को देख कर गायत्री हैरान रह गई. पूरा परिवार समधिन की आवभगत में जुट गया.

‘‘तुम से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ उस के कमरे में आ कर धीरे से मां बोलीं तो कुछ संशय सा हुआ गायत्री को.

‘‘इतने दिन से रवि घर ही नहीं आया बेटी. मैं कल रात लौटी तो पता चला. क्या वह तुम से मिला था?’’ ‘‘जी?’’ वह अवाक् रह गई, ‘‘2 दिन पहले मिले थे. तब उदास थे आप की वजह से.’’

‘‘मेरी वजह से उसे क्या उदासी थी? अगर उसे पता चल गया कि मैं उस की सौतेली मां हूं तो इस में मेरा क्या कुसूर है. लेकिन इस से क्या फर्क पड़ता है?

#coronavirus: कोरोना ने योगी से करवाया नेक काम ,पूरे उत्तर प्रदेश में गुटखा पान मसाला तम्बाकू पर बैन की घोषणा

अड़ियल, बड़बोले छोटे महाराज यानी उत्तर प्रदेश के कर्णधार योगी आदित्यनाथ भले कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोशल डिस्टेंसिंग की अपील दरकिनार करते हुए नवरात्र के प्रथम दिन अयोध्या पहुंच गए और अयोध्या में भगवान रामलला को टेंट से हटाकर उनके अस्थायी मंदिर में रखने के कार्यक्रम को सम्पूर्ण किया. परन्तु प्रदेश के युवाओं और बुज़ुर्गों के स्वास्थ को बरकरार रखने के लिए उन्होंने जो नेक पहल की है उसकी प्रशंसा होनी चाहिए. भले ये काम कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किया गया हो मगर पान मसाला, तम्बाकू और गुटका चबाने जैसे जानलेवा शौक पर पूरी तरह बैन लगाने की घोषणा से कैंसर के बढ़ते मामलों पर भी रोक अवश्य लगेगी.
योगी सरकार ने जगह जगह मसाला खा कर पीक थूकने वालों पर नकेल कसने के लिए पान मसाले गुटखे आदि पर बैन लगाने का ऐलान किया है. अपर मुख्य सचिव गृह व् सूचना अवनीश कुमार अवस्थी का कहना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण लार और थूक से होता है इसलिए इस पर रोक लगाने के लिए सरकार ने ये अहम् फैसला लिया है. उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 35 पहुंच चुकी है.

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योगी के इस फैसले से वे परिवार खुश हैं जिनके अपने अस्पतालों में पड़े कैंसर से जंग लड़ रहे हैं या जिनके बच्चे मसाले की लत के चलते जाने अनजाने कैंसर के रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं.गौरतलब है कि कैंसर रोगियों और मृत्यु दर में उत्तर प्रदेश आज सबसे आगे है. छोटे छोटे बच्चों को गुटखे की लत ने बर्बाद कर रखा है. 2011 और 2014 के बीच प्रदेश में कैंसर मरीज़ों की संख्या दस प्रतिशत बढ़ी है. 2014 में उत्तर प्रदेश में कैंसर से 44 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु हुई है. कैंसर का मुख्य कारण तम्बाकू का सेवन है.
लखनऊ मेडिकल कॉलेज के रेडिओथेरपी विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर एम.एल. भट्ट की माने तो उत्तर प्रदेश में हर साल दो लाख नए कैंसर रोगियों की पुष्टि हो रही है.

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वहीँ इस रोग से लड़ने के लिए प्रदेश में पर्याप्त साधनो की बहुत ज़्यादा कमी है. संसाधनों की बात करें तो पूरे प्रदेश में केवल तीन संस्थानों – लखनऊ मेडिकल कॉलेज, लोहिया इंस्टिट्यूट और बीएचयू में ही कैंसर रोगियों के इलाज की सुविधा है.इन तीन सेंटर्स में भी केवल पचास से साठ हज़ार मरीज़ ही हर साल इलाज के लिए पहुंच पाते हैं.इन सेंटर्स पर भी संसाधन सीमित हैं इसलिए अधिकतर कैंसर रोगी बिना इलाज के ही मौत के मुँह में समा जाते हैं. वहीँ कीमो के इंतज़ार में भी अधिकाँश रोगियों का नंबर नहीं आ पाता और वे कीमो के आभाव में दम तोड़ देते हैं.
अब जबकि योगी सरकार ने कोरोना के बहाने ही सही तम्बाकू पर रोक लगाने का फैसला किया है तो इससे मुँह, गले, पेट और फेफड़े के कैंसर मरीज़ों की संख्या में अवश्य कमी आएगी। योगी के इस नेक फैसले का बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी अनुसरण करना चाहिए. ताकि आने वाली पीढ़ी को कई भयावह रोगो की ज़द में आकर समय पहले मौत के मुँह में जाने से बचाया जा सके.

#coronavirus: लॉक डाउन में 21 दिन घर में स्वस्थ रहने के लिए लें ये 7 संकल्प

देश के प्रधानमंत्री जब अपने प्रजा से हाथ जोड़ कर बोले कि आप घर में रहिये तो हम  सभी को समझ लेना चाहिए कि समस्या गंभीर है .इस दौरान आप घर में रहे स्वास्थ्य रहे । अपने और अपने परिवार को स्वास्थ्य रखें.

खुद को और अपने परिवार को स्वस्थ रखने के लिए कई बार हम बहुत कुछ करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते। तो आइये इस 21 में नया 07 प्रण लेते है और जिसका पालन पूरी ईमानदारी से करते है , ताकि सब स्वास्थ्य रहे.

1 पोषक भोजन का सेवन करे :-   इस दौरान हम मन ही मन कुछ संकल्प लेने लगते हैं कि आने वाले साल में अपना वजन कम करेंगे, अपनी फिटनेस पर ध्यान देंगे, धूम्रपान या शराब छोड़ेंगे या अधिक पोषक भोजन का सेवन करेंगे आदि. सेवन करेंगे तो न केवल बीमारियों से बचेंगे, बल्कि स्वस्थ और ऊर्जावान भी बने रहेंगे। अपने भोजन में फल, सब्जियों, साबुत अनाज और तरल पदार्थो को उचित मात्र में शामिल करें.

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2 नाश्ता करने की आदत बरक़रार रखे :- यह 21 दिन आपके सेहत के लिए खास है , आपको घर में रहना है इसका कतई यह मतलब नहीं है कि आप खाना खाने का तरीका भी बदल दें, नाश्ता करने की आदत जो आपकी बनी हुए है , उसे बरक़रार रखे, अपने दिन की शुरुआत करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, यह ऊर्जा आपको सुबह कि नास्ता से मिलता है. ब्रेकफास्ट आपके शरीर को सुचारु रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध कराता है। ब्रेकफास्ट को हमारे दिन का सबसे महत्वपूर्ण भोजन माना जाता है.

3 एक्सरसाइज की आदत डालें :- घर में ही आप छोटा व्यायाम रख सकते है. बाहर आपको जाना नहीं है आपको अपने घर के ही एक हिस्से में चाकर लगा कर घूमने का आदत को पूरा कर सकते है. इससे न सिर्फ शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे, बल्कि मानसिक शांति मिलेंगी.

4 नियमित दिनचर्या अपनाएं :- घर में रहना है इसका मतलब कतई  यह नहीं है कि आप सोते रहो. अपने सोने-जागने का एक नियमित चक्र बनाएं. सेहत अगर हर दिन एक निश्चित समय पर सोएंगे और जागेंगे, आप अधिक ऊर्जावान और  तरोताजा अनुभव करेंगे. इसी तरह से खाने का भी एक नियत समय बना लें, जिससे आपका शरीर उस समय तक ऊर्जा का स्तर बनाए रखने का आदी हो जाएगा.

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5 ध्यान लगाएं :-  ध्यान को मस्तिष्क की खुराक कहा जाता है. ध्यान एक साधारण, लेकिन शक्तिशाली तकनीक है, जो आपके मस्तिष्क को शांत और स्थिर रखती है.आपको सिर्फ यह करना है कि आप अपनी आंखें बंद करके बैठ जाएं और गहरा आराम अनुभव करें। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत होगी, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से आप मन को काबू में कर लेंगे. हमारी कई बीमारियां मनोवैज्ञानिक होती हैं. इनसे भी बचाव करने में ध्यान हमारी काफी सहायता करता है.

तनाव भगाएं : – यह दौर घर में रहने का अपने और अपने परिवार के लिए घर में रहना ही है , तो लाजमी है । करियर और परिवार की जिम्मेदारियां, काम का बोझ, वक्त की कमी, रिश्तों के बीच बढ़ती दूरियां, अकेलापन और महत्वाकांक्षाएं, आपको मानसिक तनाव जरूर प्रदान करेंगी लेकिन आपको इन सब से मुस्कुरा कर लड़ना है , जान है तो जहान है. किसी भी बात का तनाव न ले खुश रहे कि आप स्वास्थ्य है.आपका नकारात्मक सोच आपके  शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य तथा जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव डालता है.इसलिए जरूरी है कि इस दौरान छोटी-छोटी बातों पर तनाव नहीं पालेंगे.

तनाव के नकारात्मक प्रभाव :-  तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोनों का स्तर बढ़ जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं.इनकी वजह से दिल का तेजी से धड़कना, पाचन क्रिया का मंद पड़ जाना, रक्त का प्रवाह प्रभावित होना, नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाना और इम्यून सिस्टम कमजोर होने जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इससे आपको हर हालत में बचाना ही है .

मध्यप्रदेश: दिग्विजय, कमलनाथ और अब भाजपा वाले सिंधिया  

ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोग से कांग्रेस सरकार गिरा देने बाले शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर कामकाज भी शुरू भी कर दिया है और उधर कांग्रेसी खासतौर से दिग्विजय सिंह खिसियाए हुये सिंधिया को कोसे जा रहे हैं.

यह देखा जाये तो एक बुजुर्ग नेता का बेवजह का प्रलाप है जिस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा. प्रदेश में मीडिया के एक वर्ग द्वारा दिग्गी राजा के उपनाम से मशहूर कर दिये गए दिग्विजय सिंह देखा जाये तो इस बार खुद ही अपनी चालाकी और खुराफात का शिकार होकर रह गए हैं.

उनके किए की सजा खुद उनका गुट भी भुगत रहा है. उनके समर्थक मंत्री जो कल तक जमीन रौंदते चलते थे अब घरों में दुबके अपने इर्द गिर्द जमा 2-4 लोगों की भीड़ को अपने मंत्रित्वकाल के संस्मरण सुनकर गम गलत कर रहे हैं.

जो हुआ उसके जिम्मेदार क्या अकेले दिग्विजय हैं इस सवाल का जबाव हां में ही निकलता है. उनका बैर सिंधिया से था जिसे भुनाने उन्होंने टंगड़ी राज्यसभा चुनाव को लेकर अड़ाई थी कि प्रथम वरीयता में मैं ही जाऊंगा. अनदेखी के शिकार चल रहे सिंधिया को यह गंवारा नहीं था लिहाजा उन्होने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वॉइन कर ली और अपने समर्थक 22 विधायकों को भी भगवा खेमे के नीचे ले गए.

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अब खिसियाए होए क्या…   

अब कारवां गुजर जाने के बाद भी दिग्विजय का रोना गाना जारी है कि मंत्री पद और राज्यसभा में जाने के लालच में सिंधिया ने कांग्रेस की बुरी गत कर दी इसके लिए प्रदेश की जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी.

अब यह कौन उन्हें समझाये कि प्रदेश की जनता को न तो उनसे और न ही कांग्रेस से कोई वास्ता या लगाव है. होता तो यह नौबत ही न आती और 2018 के चुनाव में कांग्रेस को वोटर 114 के आंकड़े पर लटकाकर नहीं रखता.

तकनीकी तौर पर देखें तो जनता ने बेहद सटीक फैसला लिया था जिसके माने और मैसेज यह था कि तीन गुटों में बंटी कांग्रेस को अगर वाकई जनता का भला करना है तो वह अपनी अंदरूनी कलह को नियंत्रित करे नहीं तो भाजपा एक बेहतर विकल्प है ही जिसे 109 सीटें मिली थीं और कुल वोट भी कांग्रेस से ज्यादा मिले थे.

हुआ वही जिसका डर था…

सवा साल में ही कांग्रेसी लड़ पड़े और सरकार चली गई. कमलनाथ ने वहैसियत मुख्यमंत्री शुरुआत तो जोरदार की थी लेकिन धीरे धीरे वे दिग्विजय के जाल में फंसते चले गए और उनके बहकावे में आकर सिंधिया के बारे में यह राय कायम कर ली कि जो आज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद चाह रहा है वो कल को सीएम की कुर्सी भी मांग सकता है. कमलनाथ और सिंधिया के बीच दिग्विजय ने मंथरा का काम तो कर डाला लेकिन एक जगह गच्चा खा गए.

यह जगह उनका यह अंदाजा था कि सिंधिया कांग्रेस में रहते अनदेखी और बेइज्जती बर्दाश्त कर लेंगे लेकिन किसी भी कीमत पर भाजपा में नहीं जाएंगे. अब नजारा यह है कि सिंधिया शिवराज के गले में हाथ डाले घूम रहे हैं और कमलनाथ दिग्विजय सोच ही रहे हैं कि प्लानिंग में कहां कमी रह गई.

सिंधिया का कद और पूछ परख भाजपा में जाने से बढ़े ही हैं, यह देख भी इन बुजुर्गों के कलेजों पर नाना प्रकार के सांप लोट रहे हैं जिसमें घी उनकी अब कुछ न कर पाने की असमर्थता डाल रही है. सिंधिया को कोस कर इन्हें आत्मिक शांति तो मिल रही है लेकिन समर्थन नहीं मिल रहा.

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सोनिया की खामोशी के माने

सोनिया गांधी इस मसले पर खामोश हैं जिसके कई अर्थ भी लगाए जा रहे हैं कि वे अपने ही बेटे राहुल की उस युवा बिग्रेड को तहस नहस कर रहीं हैं जिसने मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा से सत्ता छीन लेने का करिश्मा कर डाला था. चर्चा यह भी है कि सोनिया, प्रियंका गांधी को आगे लाने धीरे धीरे यह काम कर रहीं है क्योंकि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी को वह चुनौती और टक्कर नहीं दे पा रहे हैं जिसकी कांग्रेस को दरकार है.

बात मध्यप्रदेश की करें तो सिंधिया के भाजपा में जाने से उसे बड़ा नुकसान हुआ है लेकिन अब इसका ठीकरा उनके सर फोड़ा जाना खुद कमलनाथ खेमा भी हजम नहीं कर पा रहा है. ऐसे में यह कमलनाथ और दिग्विजय की संयुक्त ज़िम्मेदारी बनती है कि वे इस दुर्दशा की ज़िम्मेदारी भले ही घोषित तौर पर अपने ऊपर न लें.

लेकिन 22 विधानसभा सीटें जो सिंधिया समर्थकों के इस्तीफ़ों से खाली हुई हैं उन्हें जीतकर यह साबित करें कि कांग्रेस के डूबने और टूटने की वजह सिंधिया थे.

यह आसान काम नहीं है क्योंकि अधिकांश सीटें सिंधिया के प्रभाव वाली हैं और अब उन्हें भाजपा का भी साथ मिल गया है.

इसमें भी कोई शक नहीं कि सभी भाजपाई सिंधिया शिवराज के याराने से खुश नहीं हैं लेकिन उनकी नाराजगी से कांग्रेस को कोई फायदा होगा ऐसा लगता नहीं क्योंकि रूठा भाजपाई पार्टी की खिलाफत नहीं करता बस तटस्थ होकर विरोध जता लेता है .

दिग्विजय सिंह जमीनी नेता कभी नहीं रहे, साल 1993 में मुख्यमंत्री पद के दौड़ में वे कहीं नहीं थे लेकिन अपने राजनैतिक गुरु अर्जुन सिंह की कृपा से सीएम बन गए थे. 1998 का चुनाव भी अर्जुन सिंह की ही वजह से कांग्रेस जीती थी. 2003 में महज 38 सीटों पर कांग्रेस सिमटी थी तो इसकी वजह दिग्विजय सिंह का कुशासन ही था .

राहुल गांधी को यह बात समझ आ गई थी कि दिग्विजय की इमेज अब 25 सीटें जिताने काबिल भी नहीं रह गई है इसलिए उन्होने 2018 में उन्हें बेरहमी से धकिया दिया था और कमलनाथ-सिंधिया को आगे कर जीत हासिल की थी.

सार्वजनिक सभाओं में तो राहुल दिग्विजय सिंह की तरफ देखते भी नहीं थे .  दिग्विजय सिंह अपनी इस बेइज्जती को भूले नहीं और उन्होने सिंधिया और कमलनाथ के बीच की खाई को और गहरा कर अपनी खुन्नस निकाल भी ली .

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भरोसा खोते दिग्विजय –
दिग्विजय सिंह पर अब कोई भरोसा नहीं कर रहा जिनके बारे में मज़ाक में नहीं बल्कि गंभीरता से यह कहा जाने लगा है कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे दिग्विजय ने ठगा नहीं. इस कहावत में दम लाने अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह का उदाहरण खुद कुछ कांग्रेसी देते हैं कि दिग्विजय ने उन्हें ही नहीं बख्शा और अब तो खुद उनके बेटे जयवर्धन सिंह का भविष्य भी खतरे में पड़ गया है. कमलनाथ तो नए उदाहरण हैं ही.

कमलनाथ गुट के कुछ लोग दिग्विजय की फितरत को समझते उनसे दूरी बनाने लगे हैं. कमलनाथ समर्थक एक पूर्व मंत्री ने इस प्रतिनिधि से नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, अब कमलनाथ जी प्रदेश कांग्रेस की बागडोर संभालेंगे लेकिन वे सफल हों इसके लिए जरूरी है कि दिग्विजय सिंह को दूर रखा जाये बेहतर तो यह होगा कि उनके टूटते गुट का विलय हमारे गुट में हो जाये.

ऐसा कैसे होगा, इस सवाल पर इन मंत्री जी ने बेहद तल्ख लहजे में कहा कि इसके लिए जरूरी है कि दिग्विजय सिंह को राज्यसभा में जाने से रोका जाये.  इसके लिए भी जरूरी यह है कि कमलनाथ खेमे के कुछ विधायक जोखिम उठाते हुये प्रथम वरीयता वोट कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार फूल सिंह बरैया को करें जिन्हें दिग्विजय सिंह के कहने पर ही खड़ा किया गया है. इन मंत्री जी के मुताबिक कभी बसपा के प्रमुख रहे बरैया दलित हैं और ग्वालियर चंबल संभाग के ही हैं उनके राज्यसभा में जाने से दलित वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ेगा और सिंधिया का प्रभाव यहां कम होगा.

दिग्विजय ने बेंगलुरु जाकर सिंधिया समर्थक 22 विधायकों से मिलने की कोशिश की यह एक अच्छी बात कांग्रेस के लिहाज से थी लेकिन उन्होने इन विधायकों से किस गलती की माफी चिट्ठी लिखकर मांगी यह समझ से परे है और इससे ही कांग्रेस की साख पर बट्टा ज्यादा लगा. दूसरे दिग्विजय गुट ने बौखलाहट में सिंधिया खानदान को गद्दार कहकर चम्बल ग्वालियर इलाके के लोगों को यह सोचने का मौका दे दिया कि सियासी दुश्मनी में बाप दादों को घसीटने से क्या कुर्सी बच जाएगी.

इसी तरह दिग्विजय सिंह यह आरोप सिंधिया पर लगाते रहे थे कि उन्होंने विधायकों को अगुवा किया है, उन्हें डराया धमकाया है और लालच भी दिया है लेकिन बेंगलुरु से आने के बाद किसी विधायक के चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखी तो साबित यह भी हो गया कि कमलनाथ को भी दिग्विजय सिंह मुगालते में रखे रहे जिसकी सजा अब पूरी कांग्रेस भुगत रही है.

एक और निर्गुट कांग्रेसी विधायक के मुताबिक अब लकीर पीटने से कोई फायदा नहीं सिंधिया को कोसना उन्हें और ज्यादा प्रचार देना और लोकप्रिय बनाना है.  कमलनाथ और दिग्विजय को गंभीरता से इस बात पर विचार करते रणनीति बनानी चाहिए कि अब उनका मुक़ाबला कांग्रेस बाले सिंधिया से न होकर भाजपा वाले सिंधिया से है.

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#coronavirus: कोरोना के डर से घर में कैद हुए TV स्टार, कोई लगा रहा है झाड़ू तो कोई मार रहा है पोछा

कोरोना के कहर ने सभी को कलाकारों को अपने घर में कैद कर दिया है. ऐसे में सभी टीवी और फिल्म स्टार्स अपनी फैमली के साथ समय बीता रहे हैं. अपने घर के कामों में हाथ बटा रहे हैं. सोशल मीडिया पर आए दिन कुछ तस्वीर और वीडियो वायरल हो रही है जिनमें सितारे आम जनता की तरह काम करते नजर आ रहे है.

रुबिका ने पति से कटवाई सब्जी

रुबिका दिलाइक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर की है जिसमें वह अपने पति से सब्जी कटवाती नजर आ रही हैं. साथ ही अपने पति की क्लास लेती भी नजर आ रही हैं.

देबिना बेनर्जी ने की सफाई

देबिना बेनर्जी इन दिनों अपने घर में है वह खाली समय में अपने आलमीरा की सफाई करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर की हैं. जिसमें बहुत सारे चप्पल जूते नजर आ रहे हैं.

अभिनेत्री शरगुन मेहता अपनी घर की दीवारों पर पेंट करती नजर आई. उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है वह इस समय को काफी एंजॉय कर रही हैं.

गुरमीत चौधरी

गुरमीत चौधरी इऩ दिनों अपने डाइट को भूलकर घर पर खूब खाने के मजे ले रहे हैं. अलग-अलग तरह के पकवान की तस्वीर डाल रहे हैं.

वहीं कविता कौशिक पति के साथ मिलकर घर पर खाना बना रही हैं. दोनों इस पल को एंजॉय करते नजर आ रहे हैं.

करणवीर वोहरा ने लगाई झाडू

कामवालीवाई घर पर नहीं आ रही है. ऐसे में करणवीर वोहरा घर पर झाडू लगाते नजर आ रहे हैं. बाकी समय अपनी बेटियों के साथ बीता रहे हैं.

हिना खान भी अपने घर के कामों में हाथ बंटाती नजर आ रही हैं. उन्होंने घर में पोछा लगाते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है. जिसमें यूजर्स के अलग-अलग कमेंट आ रहे हैं.

#Hantavirus: कोरोना वायरस के बाद अब हंता वायरस का कहर, सावधान रहें

जब पूरा विश्व कोरोना के कहर से जूझ रहा है, चीन से ही फैल रहे हंता वायरस से लोगों में दहशत है. जानिए कैसे फैलता है यह वायरस और कैसे करें बचाव…

लगभग 196 देशों में फैला कोरोना वायरस हजारों की जिंदगियां लील चुका है और लाखों लोग इस की चपेट में हैं, वहीं चीन से ही फैला एक नया व खतरनाक हंता वायरस अब नई मुसीबत पैदा कर सकता है.

चीन के एक सरकारी समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक, युन्नान प्रांत के रहने वाले एक शख्स को बस में यात्रा के दौरान उल्टियां हुईं और वह बेहोश हो गया. जब उस की जांच कराई गई तो वह में हंता वायरस पोजिटिव पाया गया.
रिपोर्ट में प्रकाशित खबर के मुताबिक यह वायरस जिंदा चूहों को खाने से फैलता है.

कैसे फैलता है

खबरों के मुताबिक हंता वायरस चूहों के खाने अथवा इस के संपर्क में आने से फैलता है. अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति इस के संपर्क में आता है तो वह भी इस का शिकार हो सकता है. आमतौर पर कोई व्यक्ति अगर चूहों के मल, यूरिन आदि को छूने के बाद अपनी आंख, नाक, कान और मुंह को छूता है तो वह इस वायरस से संक्रमित हो सकता है.

क्या हैं लक्षण

हंता वायरस भी जानलेवा होता है और इस वायरस से संक्रमित होने पर इंसान को तेज बुखार, सिर में दर्द, शरीर में दर्द, पेट दर्द रहता है. वह बारबार उलटियां करने लगता है और उसे डायरिया हो जाता है. इलाज में देरी होने पर संक्रमित व्यक्ति के फेफड़े में पानी भर जाता है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. इलाज में देरी होने पर मौत भी हो सकती है.

अब सोशल मीडिया पर लोग जम कर निकाल रहे हैं भङास

कोरोना वायरस के आतंक के दौरान चीन से ही इस वायरस के फैलने के डर से सोशल मीडिया पर भी लोग जम कर भङास निकाल रहे हैं.
यूजर्स लिख रहे हैं,”चीन अब एक वायरस देश बन चुका है, जिस की सभ्यता और रहनसहन के तौरतरीकों ने इंसान को खतरे में डाल दिया है.”
एक यूजर ने लिखा,”कुदरत के साथ खिलवाङ करने का नतीजा देखो इंसान. हम ने जंगलों को उजाङे, नदियों की धाराएं मोङ दीं, बेजबानों को मार कर खाने लगे. अब नतीजे भुगतो.”

एक ने लिखा,”इंसानी अस्तित्व को बचाए रखना है तो लोगों को मांसाहार छोङ शाकाहारी बनना चाहिए. मरे हुए लाश को नोचनोच कर खाने वालो अब तो सुधर जाओ.”

आम आदमी पार्टी के पूर्वांचल शक्ति के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व वर्तमान में मैथिली भोजपुरी अकादमी के वाइस चेयरमैन नीरज पाठक ने बताया,”यह खबर मैं ने भी देखी है कि चीन में इस वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति की मौत हो गई है. मुझे लगता है कि चीन के लोगों को अब अपने खानपान की आदतों में सुधार करना होगा. इंसान खतरे में है और न सिर्फ चीन बल्कि पूरे विश्व के लोगों को अब आधुनिकता के नाम पर फूहङता और लापरवाही छोङनी होगी.”

शाकाहार अपनाओ, जीवन बचाओ

यों दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ शुरू से ही यह मानते रहे हैं कि मांसाहारी व्यक्ति शाकाहारी से कम समय जीते हैं. इतना ही नहीं मांसाहारी व्यक्ति में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें शाकाहारी लोगों की तुलना में अधिक होती हैं.
हार्ट अटैक अथवा किडनी फेल्योर होने के मामले मांसाहारी लोगों में ज्यादा रहती है.
विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि इंसानों द्वारा जानवरों को जिंदा खाया जा रहा, अधपका खाया जा रहा है, यहां तक कि जिंदा कीङेमकौङों को शराब में डूबो कर स्वाद के लिए खाया जा रहा है. यह मानव सभ्यता के लिए खतरा है, जिस से लोग अनजान हैं.

लाइफस्टाइल बदलने की जरूरत

मगर सवाल यह भी है कि जो कोरोना वायरस महामारी बन चुका है, लोगों की जिंदगियां खत्म कर रहा है, अब बहुत लोग अपने खानपान और लाइफस्टाइल बदलने की भी बात करने लगे हैं. सच भी है, आधुनिकता जरूरी है पर अच्छा हो कि विज्ञान को हथियार बनाया जाए. चांदतारों पर जाने की बात करने वाला इंसान अगर पूजापाठ के नाम पर अंधविश्वास का रास्ता चुनेंगे, बलि प्रथा से बेजबानों की बलि देंगे, तो उस से न सिर्फ इंसान और इंसानियत खतरे में आ जाएगा, चांदतारों पर जाने की बात भी बेमानी साबित हो जाएगी.

#coronavirus: शाहीन बाग में लगा पलीता तंबू उजड़ा, ढाक के तीन पात हुआ नतीजा

एक तरफ कोरोना वायरस की चपेट में ज्यादा लोग न आएं, अपने घरों में ही रहें, बाहर कम से कम निकलें, इस को ले कर केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार भी अपने कठोर फैसले में लौकडाउन से ले कर कर्फ्यू लगा रही है, वहीं शाहीन बाग में एनआरसी व सीएए के विरोध में पुरुषों व औरतों के धरने पर बैठने से पुलिस की सिरदर्दी बढ़ती जा रही थी. आखिरकार पुलिस ने 24 तारीख की सुबह तकरीबन 7 बजे जबरन शाहीन बाग में धरना वाली जगह खाली करा ली.

15 दिसंबर, 2019 से ले कर 24 मार्च, 2020 तक यानी 100 दिनों तक चला यह प्रदर्शन आखिर इस तरह खत्म होगा, किसी ने सोचा नहीं था. यहां तक कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल भी दिया. पर धरना प्रदर्शन जारी रहा.

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पुलिस की दखल से आखिरकार दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाली इस सड़क पर लगे टेंट को जबरन उखाड़ फेंका गया.

इधर तो कोरोना वायरस के चलते दिल्ली समेत पूरा भारत लॉकडाउन है, कई राज्यों ने तो 31 मार्च तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया है. इस दौरान मैट्रो पूरी तरह से बंद हैं, वहीं बसें, आटो टैक्सी, ट्रेनों तक के पहिए रुके हुए हैं. स्थिति ऐसी है कि जो जहां हैं वहीं रहे वाली है. बावजूद इस के महिलाएं धरना देने के लिए जुटने लगीं.

ऐसा देख पहले तो पुलिस ने बताया कि यहां पर धारा 144 लगी हुई है, धरना न दें और अपने घरों को जाएं.

पुलिस के समझाने पर भी प्रदर्शन करने वाले नहीं हटे तो वहां से उन्हें जबरिया हटाया और टेंट उखाड़ दिया गया. साथ ही, 10 से 12 प्रदर्शन करने वालों को हिरासत में लिया गया.

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कोरोना वायरस के दिनोंदिन बढ़ते प्रकोप के कारण लोगों से बारबार यह अपील की जा रही थी कि लोग घर पर ही रहें. भीड़ न जुटे, 4 से ज्यादा एक जगह इकट्ठा न हो, पर वहां 10 से ज्यादा लोग थे.

कानून को ठेंगा दिखाते हुए धरना चल रहा था. सुबहसवेरे 7 बजे यहां कार्यवाही की शुरुआत हुई. जो नहीं माने, उन्हें हिरासत में लिया गया.

फिलहाल तो पुलिस ने धरने वाली जगह खाली करा ली है. वहां से टेंट पूरी तरह हटा दिया गया है.

कोरोना महामारी से बचने के लिए दिल्ली में सख्ती से धारा 144 लागू है. एक पुलिस वाले ने बताया कि सुबह भी काफी महिलाएं धरने पर बैठी हुईं थी. हम ने उन से कहा कि धारा 144 लगाई गई है, इसलिए धरने को खत्म कर दें. लेकिन वे नहीं माने. इस के बाद पुलिस को बलपूर्वक हटाना पड़ा.

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अपनी बात मनवाने का यह तरीका न तो सरकार के गले उतरा, न ही सुप्रीम कोर्ट के दखल का. न ही वहां के लोकल लोगों को यह तरीका पसंद आया. धरना प्रदर्शन करने वाले इस तरह कब तक अपनी रोटी सेंकते, जोरजबरदस्ती कब तक चलती. मर्दों से न संभला तो महिलाओं को आगे कर दिया, पर अंत में सरकार का जबरदस्ती हटाने वाला नजरिया बहुतों को रास नहीं आया. नतीजा ढाक के तीन पात वाला रहा.

सब से बड़ा सुख: भाग 3

दिल्ली में देर रात तक टीवी देखने की आदत थी उन्हें, पर यहां तो मृदुल को स्कूल जाना था दूसरे दिन अगर वह भी उन के साथ बैठा रहा तो दूसरे दिन उठ नहीं पाएगा.

दूसरे दिन सुबहसुबह उन्हें रसोई से खटरपटर की आवाज सुनाई दी. शायद बहू होगी चौके में, सोच कर करवट बदल ली थी उन्होंने. पर नहीं, बात कुछ और ही थी. उठ कर देखा तो बिल्ली दूध का भगौना चाट रही थी. शायद बहू दूध फ्रिज में रखना भूल गई थी. अब चाय कैसे बनेगी? पति सुबह सैर को जा ही रहे थे. उन्होंने दूध की 2 थैलियां उन्हें लाने को कह दिया था.

राजेश उठा और जब उसे सारा माजरा समझ में आया तो बीबी को आड़े हाथों लिया था. उस ने न जाने कितने पुराने किस्से बीवी की लापरवाही के बखान कर दिए उन के सामने. नेहा अपमान का घूंट पी कर रह गई थी.

बरसों पुराना वह दृश्य अब तक उन के मानसपटल पर अंकित था, जब रीतेश ने अम्माजी के सामने दाल में नमक ज्यादा पड़ने पर उन्हें कैसे अपमानित किया था, और अम्मा नेता के समान खड़ी हो कर तमाशा देख रही थीं. अब अगर बीचबचाव करूं और यह आधुनिक परिवेश में पलीबढ़ी नेहा न बरदाश्त कर पाए तो उन के हस्तक्षेप का फिर क्या होगा?

चुपचाप अपने कमरे में लौट आई थीं वे और सोच रही थीं, ‘ये पुरुष हमेशा अपनी मां को देख कर शेर क्यों बन जाते हैं?’ उस दिन पितापुत्र के दफ्तर जाने के बाद उन्होंने घर की माई से पूछ कर कुछ दुकानों का पता किया और फल, सब्जी, दूध, बिस्कुट ले आई थीं. किसी भी मेहमान के घर आने पर खर्चा बढ़ता है, यह वे जानती थीं. फिर सब कुछ इन्हीं बच्चों का ही है, तो क्यों न इन्हें थोड़ा सहारा दिया जाए.

शाम को राजेश घर लौटा तो उन्होंने उस से बात नहीं की. दोएक दिन के लिए अबोला सा ठहर गया था मांबेटे में. नेहा भी मां को देख रही थी पर चुप्पी का कारण नहीं जान पा रही थी. ऐसा नहीं था कि उन्होंने बेटे की अवहेलना की हो. रसोई में जाती तो उन्हें लगता, बहू के हाथ सधे हुए नहीं हैं. बेचारी से कभी रोटी टेढ़ी हो जाती तो कभी सब्जी काटते समय हाथ कट जाता. अकेले रहते होंगे तो काम कुछ कम होता होगा. बराबर वह रसोई में उस के साथ लगी रहतीं.

राजेश मां के खाने की प्रशंसा करता तो वे उसे ऐसे घूरतीं जैसे कोई अपराध किया हो उस ने. आंखों के इशारों से उन्होंने समझाया था उसे कि पत्नी के सामने मां की प्रशंसा करने की जरूरत नहीं है. और न ही मां के सामने पत्नी का अपमान करने की. ऐसे में अनजाने ही ईर्ष्या की नागफनी फैल जाएगी गृहस्थी के इर्दगिर्द.

यहां आए उन्हें एक सप्ताह बीत गया था. इस बीच कम से कम 4 बार क्षितिजा आ चुकी थी. अगर नहीं आती तो फोन पर बात करती. उन्हें लगा, यों ननद का रोजरोज चले आना बहू को अच्छा लगे या न लगे.

फिर बेटी का अपना भी तो परिवार है. मां आ गईं तो क्या रोज चल पडे़गी मायके? फोन पर भी बेटी खोदखोद कर घर की बातें पूछती तो उन्हें लगता, उन की शिक्षा में कहीं कुछ कसर रह गई है. इसीलिए तो वह शाम को इस इमारत के लौन में नहीं जाती थीं. बड़ीबूढि़यां बहुओं के बुराई पुराण ले कर बैठतीं तो उन का दम घुटता था. परोक्ष रूप से बेटी को समझा दिया था अपना मंतव्य उन्होंने.

पूरा दिन काटे नहीं कटता था. अपने घर में तो काम होते थे उन के पास, नहीं होते तो ढूंढ़ लेती थीं. अनुशासनहीनता और अकर्मण्यता का उन के जीवन में कोई स्थान न था. कभीकभी रीतेश के साथ अपने फ्लैट पर चली जातीं, लकड़ी का काम हो रहा था वहां.

कभीकभी उन्हें लगता, यहां भी बहुत कुछ है करने को. परदे के हुक यों ही लटके पड़े थे. गमलों के पौधे सूखे हुए थे. पीतल के शोपीस काले हो रहे थे. नेहा हर काम माई से करवाती थी. खराब होता तो मियांबीवी की नोकझोंक शुरू हो जाती. बैठेबैठे उन्होंने राजेश का बिखरा घर समेट दिया था. फिर आशंका जागी थी मन में. पड़ोस की शीला की बहू इसीलिए घर छोड़ कर भाग गई थी क्योंकि शीला हर काम बहू से अधिक सलीके से करती थी. कहीं नेहा को बुरा लगा तो? शाम को राजेश ने ज्यों ही प्रशंसा के दो बोल बोलने चाहे, उन्होंने नेहा को सामने कर दिया था. मालूम नहीं, उसे कैसा लगा लेकिन उस के बाद से उसे इन कामों में दिलचस्पी सी होने लगी थी.

अब चुप रहने वाली अंतर्मुखी नेहा उन के पास आ कर बैठती थी. कभीकभी अपनी समस्याएं भी उन्हें सुनाती जिस में अधिक परेशानी आर्थिक थी, ऐसा उन्हें लगा था. राजेश जैसा स्वाभिमानी युवक मातापिता से कोई सहायता कभी नहीं लेगा, यह वे भलीभांति जानती थीं, बहू ने विश्वास में ले कर उन्हें अपनी समस्या सुनाई थी तो उन्होंने भी उसे समझाया, ‘‘नेहा, तुम पढ़ीलिखी हो. घर में बैठ कर ट्यूशन शुरू कर दो. तुम तो मृदुल को भी ट्यूशन पढ़ने भेजती हो, चार पैसे भी हाथ में आएंगे और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.’’

#coronavirus: सब्जियों फल और जरूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ी

लखनऊ  22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ के रूप में शुरू हुआ “लोक डाउन” अब पूरी तरह से कर्फ्यू में बदल गया है.पूरा उत्तर प्रदेश इसकी चपेट में आ गया है. लखनऊ, गाजियाबाद और नोएडा से शुरू हुआ लॉक डाउन पूरे उत्तर प्रदेश में फैल गया है. 25 मार्च से इसकी मियाद बढ़ा कर 27 मार्च कर दी गई हैं.जानकर लोग बताते है कि यह धीरे धीरे पूरे 14 दिन तक चलेगा.

सरकार ने कहा था कि लोक डाउन में जनता को जरूरी सामान की कमी नही होने दी जाएगी. पर सरकार का यह वादा भी अधूरा हो रहा है.अभी 3 दिन भी पूरे नही हुए है और सब्जियों और फलो के दाम तेजी से बढ़ने लगे है.इनकी आपूर्ति सुचारू पूर्वक नही चल पा रही है.

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सब्जियों की आमद मंडियों में थम गई है. 23 मार्च को लखनऊ में केवल दो ट्रक आसपास के जिलों से टमाटर आया था जो‌ बहुत मंहगा बिका कोलकाता से जो हरी मिर्च आई थो वह 500 रूपए पसेरी बिकी है, जबकि दो दिन पहले 250 रूपए पसेरी थी.

लखनऊ की सभी आढ़तों पर महाराष्ट्र, कर्नाटक से 90% सब्जी सप्लाई होती है. जबकि 10 प्रतिशत हल्द्वानी और आसपास के जिलों से आती है.

शहर की सीमाएं सील हैं और सब्जी आ नहीं पा रही है.महाराष्ट्र से लदान हो नहीं रही क्योंकि वँहा काम करने के लिए लेबर नही मिल रहे है.

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मोहल्लों, गलियों और कालोनियों में सब्जी बेचने के लिए ठेला लगाने वाले घर से निकल नही पा रहे.पुलिस उनको सड़को पर नही जाने दे रही है. ऐसे में लोगो को आने वाले दिनों में सब्जियों और फलो कि किल्लत का सामना करना पड़ेगा.

 

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, पर अब अचानक उस ने बात करना बंद कर दिया है, क्या करूं

सवाल

मैं 21 साल की हूं और 22 साल के लड़के से प्यार करती हूं, पर अब अचानक उस ने बात करना बंद कर दिया है. क्या करूं?

जवाब

किसी भी हमउम्र लड़के से थोड़ी बातचीत को नादान लड़कियां प्यार मान बैठती हैं, आप के साथ भी यही हुआ है. अगर वह आप से नहीं बोलता, तो आप भी उस से कतई न बोलें. हो सकता है कि वह आप से फायदा उठाना चाह रहा होगा, पर बात न बनने पर अलग हो गया होगा.

मेरे भाई की शादी के 20 साल बाद भी कोई औलाद नहीं हुई. भाभी ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया, तो एक लड़की पैदा हुई, पर वह 3 दिन बाद ही गुजर गई. लड़की मरने के 4 महीने बाद भाभी फिर से मेरे साथ हमबिस्तरी करना चाहती हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप ने एक बार गुनाह किया है, तो उसे दोहरा भी सकते हैं. लेकिन इस में बहुत खतरा है. पता चलने पर आप की जिंदगी बरबाद हो सकती है.

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. अपने बौयफ्रैंड के साथ 1 साल से कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं पर मुझे कभी संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई. मैं जानना चाहती हूं कि क्या मुझ में कोई कमी है और क्या मैं भविष्य में मां बन पाऊंगी या नहीं?

जवाब

सहवास के दौरान आनंदानुभूति न होने की मुख्य वजह सैक्स के प्रति आप की अनभिज्ञता ही है. जहां तक संतानोत्पत्ति का प्रश्न है तो उस का इस से कोई संबंध नहीं है. पीरियड के तुरंत बाद के कुछ दिनों में पति पत्नी समागम के बाद स्त्री गर्भ धारण कर लेती है, बशर्ते दोनों में से किसी में कोई कमी न हो. इसलिए आप कोई पूर्वाग्रह न पालें.

पर विवाह से पहले किसी से संबंध बनाना किसी भी नजरिए से उचित नहीं है. अत: इन संबंधों पर तुरंत विराम लगाएं वरना पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा.

 

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