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Romantic Story : भटकाव – क्या अंजू की चाहत में नरेश भटकने से बच पाया

Romantic Story : ‘‘मैं अब और इस घर में नहीं रह सकती. रोजरोज के झगड़े भी अब बरदाश्त के बाहर हैं. मैं रक्षा को ले कर अपनी मां के पास जा रही हूं. आप ज्यादा पैसा कमाने की कोशिश करें और जब कमाने लगें, तब मुझे बुला लेना,’’ पत्नी सुनीता का यह रूप देख कर नरेश सहम गया.

नरेश बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा इस तरह से मुझे अकेले छोड़ कर जाना समस्या का हल नहीं है. तुम्हारे जाने से सबकुछ डिस्टर्ब हो जाएगा.’’

‘‘तो हो जाने दो. कम से कम आप को अक्ल तो आएगी,’’ सुनीता बोली. ‘‘मैं कोशिश कर तो रहा हूं. तुम थोड़ी हिम्मत नहीं रख सकतीं. मैं ने अपनेआप से बहुत समझौता किया है,’’ नरेश बोला.

‘‘मैं ने भी बहुत सहा है और आप के मुंह से यह सुनतेसुनते तो मेरे कान पक गए हैं. आप बस कहते रहते हैं, कुछ करतेधरते तो हैं नहीं.’’

‘‘मैं क्या कर रहा हूं, कहांकहां बात कर रहा हूं, क्या तुम्हें पता नहीं…’’

‘‘मुझे रिजल्ट चाहिए. आप यह नौकरी बदलें और जब ज्यादा तनख्वाह वाली दूसरी नौकरी करने लगें, तब हमें बुला लेना. तब तक के लिए मैं जा रही हूं,’’ यह कहते हुए सुनीता अपने सामान से भरा बैग ले कर बेटी रक्षा के साथ पैर पटकते हुए चली गई.

नरेश ठगा सा देखता रह गया. दरअसल, जब से उस ने नौकरी बदली है और उसे थोड़ी कम तनख्वाह वाली नौकरी करनी पड़ी है, तब से घर की गाड़ी ठीक से नहीं चल रही है. वह परेशान था, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा था.

घर में झगड़े की वजह से अगले दिन नरेश का दफ्तर के काम में मन नहीं लगा. उस ने सारा काम बेमन से निबटाया. छात्राओं के दाखिले का समय होने से काम यों भी बहुत ज्यादा था. यह सब सुनीता नहीं समझती थी. उस के इस नादानी भरे कदम से नरेश चिढ़ गया था.

नरेश ने भी तय कर लिया था कि अब वह सुनीता को बुलाने नहीं जाएगा. वह अपनी मरजी से गई है, अपनी मरजी से ही उसे आना होगा. रात के 10 बज रहे थे. नरेश नींद के इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. इतने में मोबाइल फोन की घंटी बजी. उसे लगा, कहीं सुनीता का तो फोन नहीं. शायद उसे गलती का एहसास हुआ हो, पर नंबर देखा तो किसी और का था.

‘‘कौन?’’ नरेश ने पूछा.

‘सौरी सर, इस समय आप को डिस्टर्ब करना पड़ रहा है,’ नरेश को फोन पर आई उस औरत की आवाज कुछ पहचानी सी लगी.

‘‘कोई बात नहीं, आप बोलें?’’ नरेश ने कहा.

‘नमस्ते, पहचाना… मैं अंजू… ट्रेनिंग में दाखिले को ले कर 1-2 बार आप से पहले भी बात हो चुकी है.’

‘‘ओह हां, अंजू. तो तुम हो. कहो, इस वक्त कैसे फोन किया तुम ने?’’

‘सर, आज दिन में जब आप को फोन किया था, तो आप ने ही कहा था कि अभी मैं बिजी हूं, शाम को बात करना.’

‘‘पर इस वक्त तो रात है.’’

‘सर, मैं कब से ट्राई कर रही हूं. नैटवर्क ही नहीं मिल रहा था. अब जा कर मिला है.’

‘‘ठीक है. कहो, क्या कहना है?’’

‘सर, उस प्रोफैशनल कोर्स के लिए मेरा दाखिला तो हो जाएगा न?’

‘‘देखो, इन्क्वायरी काफी आ रही हैं. मुश्किल तो पडे़गी.’’

‘सर, दाखिले का काम आप देख रहे हैं. आप चाहें तो मेरा एडमिशन पक्का हो सकता है. मैं 2 साल से ट्राई कर रही हूं. आप नए आए हैं, पर आप के पहले जो सर थे, वे तो कुछ सुनते ही नहीं थे,’ उस की आवाज में चिरौरी थी.

‘‘आप की परिवारिक हालत कैसी है? आप ने बताया था कि आप की माली हालत ठीक नहीं है?’’ नरेश ने कहा.

‘आप को यह बात याद रह गई. देखिए, मैं शादीशुदा हूं. मेरे पति प्राइवेट नौकरी में हैं. उन की तनख्वाह तो वैसे ही कम है, ऊपर से वे शराब भी पीते हैं. वे मुझ पर बेवजह शक करते हैं. मुझे मारतेपीटते रहते हैं. मैं ऐसे आदमी के साथ रहतेरहते तंग आ गई हूं. मेरी एक बच्ची भी है.

‘मैं हायर सैकेंडरी तक पढ़ी हूं. मेरी सहेली ने ही मुझे आप के यहां के इंस्टीट्यूट के बारे में बताया था. अगर आप की मदद से मेरा ट्रेनिंग में दाखिला हो जाएगा, तो मैं आप का बड़ा उपकार मानूंगी,’ अंजू जैसे भावनाओं में बह कर सबकुछ कह गई.

‘‘देखो, इस वक्त रात काफी हो गई है. अभी दाखिले में समय है. आप 1-2 दिन बाद मुझ से बात करें.’’

‘ठीक है. थैक्यू. गुडनाइट,’ और फोन कट गया.

अगले दिन अंजू का दिन में ही फोन आ गया. बात लंबी होती थी, सो नरेश को कहना पड़ा कि वह रात को उसी समय फोन करे, तो ठीक रहेगा. रात के 9 बजे अंजू का फोन आ गया. उस ने बताया कि उस के पति के नशे में धुत्त सोते समय ही वह बात कर सकती है. नरेश अंजू के दुख से अपने दुख की तुलना करने लगा. वह अपनी पत्नी से दुखी था, तो वह अपने पति से परेशान थी.

धीरेधीरे अंजू नरेश से खुलने लगी थी. नरेश ने भी अपने अंदर उस के प्रति लगाव को महसूस किया था. उसे लगा कि वह औरत नेक है और जरूरतमंद भी. उस की मदद करनी चाहिए.

अंजू ने फोन पर कहा, ‘आप की बदौलत अगर यह काम हो गया, तो मैं अपने शराबी पति को छोड़ दूंगी और अपनी बच्ची के साथ एक स्वाभिमानी जिंदगी जीऊंगी.’

नरेश ने उस से कहा, ‘‘जब इंटरव्यू होगा, तो मैं तुम्हें कुछ टिप्स दूंगा.’’

अब उन दोनों में तकरीबन रोजाना फोन पर बातें होने लगी थीं. एक बार जब अंजू ने नरेश से उस के परिवार के बारे में पूछा, तो वह शादी की बात छिपा गया. नरेश के अंदर एक चोर आ गया था. अनजाने में ही वह अंजू के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगा था. शायद ऐसा सुनीता की बेरुखी से भी होने लगा था. अंजू ने एक बार नरेश से पूछा था कि जब वह ट्रेनिंग के लिए उस के शहर आएगी, तो वह उसे अपने घर ले जाएगा या नहीं? शौपिंग पर ले जाएगा या नहीं?

नरेश ने उस से कहा, ‘‘पहले दाखिला तो हो जाए, फिर यह भी देख लेंगे.’’

दाखिले का समय निकट आने लगा था. नरेश ने सोचा कि अब अंजू का काम होने तक तो यहां रुकना ही पड़ेगा. रहा सवाल सुनीता का तो और रह लेने दो उसे अपने मातापिता के पास.

अंजू के फार्म वगैरह सब जमा हो गए थे. इंटरव्यू की तारीख तय हो गई थी. नरेश ने अंजू को फोन पर ही इंटरव्यू की तारीख बता दी. वह बहुत खुश हुई और बताने लगी कि फीस के पैसे का सारा इंतजाम हो गया है. कुछ उधार लेना पड़ा है. एक बार ट्रेनिंग हो जाए, फिर वह सब का उधार चुकता कर देगी.

फोन पर हुई बात लंबी चली. बीच में 3-4 ‘बीप’ की आवाज का ध्यान ही नहीं रहा. देखा तो सुनीता के मिस्ड काल थे. इतने समय बाद, वे भी अभी…

उसे फोन करने की क्या सूझी? इतने में फिर सुनीता का फोन आया. वह शक करने लगी कि वह किस से इतनी लंबी बातें कर रहा था. नरेश ने झूठ कहा कि स्कूल के जमाने का दोस्त था. सुनीता ने खबरदार किया कि वह किसी औरत के फेर में न पड़े और आजादी का गलत फायदा न उठाए, वरना उस के लिए ठीक नहीं होगा.

नरेश ने कहा, ‘‘मुझ पर इतना ही हक जमा रही हो, तो मुझे छोड़ कर गई ही क्यों?’’

सुनीता ने बात को बदलते हुए नरेश को नई नौकरी की याद दिलाई. नरेश ने भी इधरउधर की बातें कर के फोन काट दिया. अभी तक अंजू से सारी बातें फोन पर ही होती रही थीं. फार्म भरा तो उस में अंजू का फोटो था. फोटो में वह अच्छीखासी लगी थी, मानो अभी तक कुंआरी ही हो. अब जब आमनासामना होगा, तो कैसा लगेगा, यह सोच कर ही नरेश को झुरझुरी सी होने लगी थी.

जैसेजैसे दिन कम होने लगे थे, वैसेवैसे अंजू के फोन भी कम आने लगे थे. शायद नरेश को अंजू के बैलैंस की फिक्र थी कि जब मिलना हो रहा है, तो फिर फोन का फुजूल खर्च क्यों? आखिरी दिनों में अंजू ने आनेजाने और ठहरने संबंधी सभी जानकारी ले ली थी.

आखिर वह दिन आ ही गया. नरेश ने अपना घर साफसुथरा कर लिया कि वह उसे घर लाएगा. सभी प्रवेशार्थी इकट्ठा होने लगे थे. सभी की हाजिरी ली जा रही थी कि कहीं कोई बाकी तो नहीं रह गया. लेकिन यह क्या, अंजू की हाजिरी नहीं थी.

नरेश तड़प उठा. जिस का दाखिला कराने के लिए इतने जतन किए, उसी का पता नहीं. यह औरत है कि क्या है. कुछ फिक्र है कि नहीं. अगर कोई रुकावट है, तो बताना तो चाहिए था न फोन पर.

नरेश ने अंजू को फोन किया, लेकिन यह क्या फोन भी बंद था. यह तो हद हो गई. इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था. मुमकिन हो कि ट्रेन लेट हो गई हो. स्टेशन भी फोन लगा लिया, तो मालूम पड़ा कि ट्रेन तो समय पर आ गई थी. अब हो सकता है कि टिकट कंफर्म न होने से वह बस से आ रही हो.

इंटरव्यू हो गए और सभी सीटों की लिस्ट देर शाम तक लगा दी गई. अब कुछ नहीं हो सकता. अंजू तो गई काम से. अच्छाभला काम हो रहा था कि यह क्या हो गया. जरूर कोई अनहोनी हुई होगी उस के साथ, वरना वह आती.

नरेश अगले 2-3 दिन लगातार फोन मिलाता रहा, पर वह बंद ही मिला. हार कर उस ने कोशिश छोड़ दी. 5वें दिन अचानक दफ्तर का समय खत्म होने से कुछ पहले अंजू का फोन आया.

‘हैलो..’ अंजू की आवाज में डर था.

नरेश उबला, ‘‘अरे अंजू, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है. यह क्या किया तुम ने? तुम को आना चाहिए था न. मैं इंटरव्यू वाले दिन से तुम्हें लगातार फोन लगा रहा हूं और तुम्हारा फोन बंद आ रहा है. आखिर बात क्या है,’’ वह एक सांस में सबकुछ कह जाना चाहता था वह.

‘मैं आप की हालत समझ सकती हूं, पर मुझे माफ कर दें…’

‘‘आखिर बात क्या हुई? कुछ तो कहो? कहीं तुम्हारा वह शराबी पति…’’

‘दरअसल, मैं आप के यहां के लिए निकलने के पहले अपनी बेटी निशा को अपनी मम्मी के यहां गांव छोड़ने जाने के लिए सवारी गाड़ी में बैठी थी. गाड़ी जरूरत से ज्यादा भर ली गई थी.

‘ड्राइवर तेज रफ्तार से गाड़ी दौड़ा रहा था. इतने में सामने से आ रहे ट्रक से बचने के लिए ड्राइवर ने कच्चे में गाड़ी उतारी और ऐसा करते समय गाड़ी पलट गई…’

‘‘ओह, फिर…’’ आगे के हालात जानने के लिए जैसे नरेश बेसब्र हो उठा था.

‘गाड़ी पलटने से सभी सवारियां एकदूसरे पर गिरने से दबने लगीं. चीखपुकार मच गई. निशा बच्ची थी. वह भी चीखने लगी. मैं निशा के ऊपर गिर गई थी.

‘तभी कुछ मददगार लोग आ गए. थोड़ी देर और हो जाती, तो कुछ भी हो सकता था. उन लोगों ने हमें बांह पकड़ कर खींचा.

‘निशा बेहोश हो गई थी और मुझे भी चोटें आई थीं. कई सारे लोग घायल हुए थे. सभी को अस्पताल पहुंचाया गया. निशा को दूसरे दिन आईसीयू में होश आया. उस की कमर की हड्डी टूट गई थी. हम दोनों के इलाज में फीस के जोड़े पैसे ही काम आ रहे थे.

‘हम अभी भी अस्पताल में ही हैं. मैं थोड़ी ठीक हुई हूं और निशा के पापा दवा लेने बाहर गए हैं, तभी आप से बात कर पा रही हूं. ‘मुझे लग रहा था कि आप नाराज हो रहे होंगे. मुझे आप की फिक्र थी. आप ने सचमुच मेरा कितना साथ दिया. मैं आप को कभी भूल नही पाऊंगी. जब सबकुछ ठीक हो रहा था, तो यह अनहोनी हो गई. सारा पैसा खत्म होने को है. अब मेरा आना न होगा कभी. मुझे अब हालात से समझौता करना पड़ेगा.

‘लेकिन, मैं एक अच्छी बात बताने से अपनेआप को रोक नहीं पा रही हूं कि निशा के पापा अस्पताल में हमारी फिक्र कर रहे हैं. उन्हें ट्रेनिंग को ले कर, फीस को ले कर मेरी कोशिश के बारे में सबकुछ मालूम हुआ, तो वे दुखी हुए.

‘रात में उन्होंने मेरे माथे पर हाथ फेर कर सुबकते हुए कहा कि बहुत हुआ, संभालो अपनेआप को. मैं नशा करना छोड़ दूंगा. अब सब ठीक हो जाएगा.

‘इन के मुंह से ऐसा सुन कर तो जैसे मैं निहाल हो गई हूं. ऐसा लगता है, जैसे वे अब सुधर जाएंगे.’ फोन पर यह सब सुन कर तो जैसे नरेश धड़ाम से गिरा. सारे सपने झटके में चूरचूर हो गए.

आखिर में अंजू ने कहा, ‘अच्छा, अब ज्यादा बातें नहीं हो पाएंगी. रखती हूं. गुडबाय’.

नरेश ने अपना सिर पकड़ लिया. क्या सोचा था, क्या हो गया. कैसेकैसे सपने अंजू को ले कर बुन डाले थे, पर आखिर वही होता है जो होना होता है. यह सब एक याद बन कर रह जाएगा.

दफ्तर का समय पूरा हो चुका था. नरेश घर की ओर बोझिल कदमों से निकल पड़ा. घर पहुंचा तो देखा कि सुनीता बैग पकड़े रक्षा का हाथ थामे दरवाजे पर खड़ी थी.

नरेश को देख कर सुनीता ने एक मुसकान फेंकी, पर उस का भावहीन चेहरा देख कर बोली, ‘‘क्या बात है, हमें देख कर आप को खुशी नहीं हुई?’’ तब तक रक्षा नरेश के नजदीक आ चुकी थी. उस ने रक्षा को प्यार से उठा कर चूमा और नीचे खड़ा कर जेब से चाबी निकाल कर बोला, ‘‘अपनी मरजी से आई हो या पिताजी ने समझाया?’’

‘‘पिताजी ने तो समझाया ही. मुझे भी लगा कि अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी के लिए आप की कोशिश में हमारे घर लौटने से ही तेजी आएगी.’’

‘‘सुनीता, रबड़ को उतना ही खींचो कि वह टूटे नहीं.’’

‘‘इसलिए तो चली आई जनाब.’’

दरवाजा खुल चुका था. तीनों अंदर आ गए.

‘‘अरे वाह, घर इतना साफसुथरा… कहीं कोई…’’ सुनीता ने आंखें तरेरीं.

‘‘सुनीता, अब बस भी करो. फुजूल के वहम ठीक नहीं हैं.’’

‘‘आप का आएदिन फोन बिजी होना शक पैदा करने लगा था. आप मर्दों का क्या…’’

‘‘बोल चुकीं? क्या हम सब तुम्हारे लौटने की खुशी मना सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं. मैं सब से पहले चाय बनाती हूं,’’ कहते हुए सुनीता रसोईघर में चली गई. रक्षा ने टैलीविजन चलाया और नरेश फै्रश होने बाथरूम में घुस गया.

सुनीता के आने से अंजू के मामले में नरेश का सिर भारी होने से बच गया. आमतौर पर नरेश शाम को नहीं नहाता था, पर न जाने क्यों आज नहाने की इच्छा हो गई और वह बाथरूम में घुस गया.

Emotional Story : सच्चाई – क्या सच सामने ला सकी मिट्ठी

Emotional Story : मां का अचानक सब को छोड़ कर चले जाने का दर्द आज भी मिट्ठी को साल रहा था. उन की मौत का सच वह सब के सामने लाना चाहती थी.

‘‘राजकुमारी, वापस आ गई वर्क फ्रौम होम से? सुना तो था कि घर पर रह कर काम करते हैं पर मैडम के तो ठाट ही अलग हैं, हिमाचल को चुना है इस काम के लिए.’’ बूआ आपे से बाहर हो गई थी मिट्ठी को अपनी आंखों के सामने देख कर.

‘‘अपनाअपना समय है, बूआ. कोई अपनी पूरी जिंदगी उसी घर में बिता देता है जहां पैदा हुआ हो और किसी को काम करने के लिए अलगअलग औफिस मिल जाते हैं, वह भी मनपसंद जगह पर,’’ मिट्ठी ने इतराते हुए बूआ के ताने का ताना मान कर ही जवाब दिया.

बूआ पहले से ही गुस्से में थी, अब तो बिफर पड़ी, ‘‘सिर पर कुछ ज्यादा चढ़ा दिया है तुझे, पर मुझे हलके में लेने की गलती मत करना. तेरी सारी पोलपट्टी खोल दूंगी भाई के सामने. नौकरी ख्वाब बन कर रह जाएगी. मुंह पर खुद ही पट्टी लग जाएगी.’’

‘‘आप से ऐसी ही उम्मीद है, बूआ. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना कि मैं मां की तरह नहीं हूं, जो तुम्हारे टौर्चर से तंग आ कर अपनी जान से चली गई.’’

बूआ मिट्ठी को मारने के लिए दौड़ी ही थी कि कुक्कू बीच में आ गया. उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर अंदर ले गया तब तक गुरु भी आ गया था. वह मिट्ठी को उस के कमरे तक छोड़ कर आया. मिट्ठी आंख बंद कर के अपनी कुरसी पर बैठ गई. जो उस ने जाना था उस से भक्ति बूआ के लिए उस की नफरत और भी बढ़ गई थी. बचपन से ही उसे बूआ से नफरत थी. वजह, उन का दोगला व्यवहार. कुक्कू और गुरु को हमेशा प्राथमिकता देती. घर का कोई भी काम हो, मिट्ठी से करवाती और हर बात में उसे ही पीछे रखती.

घर में खाना उन दोनों की पसंद का ही बनता था. मिट्ठी का कुछ मन भी होता तो उस में हजार कमियां बता कर बात को टाल दिया जाता. मिट्ठी को समझ नहीं आता था कि वह अपनी ससुराल में न रह कर उन के घर में क्यों रह रही है. सब के सामने उन का बस एक ही गाना था, ‘मां तो छोड़ कर चली गई अपने दोनों बच्चों को. वह तो मेरी ही हिम्मत है जो अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़ी हुई हूं इन की परवरिश के लिए.’

‘अब तो हम बड़े हो गए हैं, अब तो अपना घर संभालो जा कर.’ मन ही मन मिट्ठी बुदबुदाती.

घर में सबकुछ बूआ की मरजी से ही होता आ रहा था. मिट्ठी और उस का छोटा भाई कुक्कू उन की हर बात मानते आ रहे थे. बूआ का बेटा गुरु भी कुक्कू का हमउम्र था, इसलिए दोनों साथ ही रहते थे. लेकिन मिट्ठी को अब घर में रहना और बूआ के कायदेकानून से चलना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. यही कारण था कि उस ने कालेज पूरा होते ही नौकरी ढूंढ़ ली थी. पैकेज ज्यादा नहीं था. नौकरी दूसरे शहर में थी.

6 महीने होतेहोते कंपनी में उस की अच्छी साख बन गई थी. घर आने का उस का मन ही नहीं होता था. इस बार पापा से जिद कर के उस ने हिमाचल वाले फ्लैट में रहने का मन बनाया. वर्क फ्रौम होम ले लिया. कुक्कू को जैसे ही भनक लगी, तुरंत उस के पास आया, ‘‘देखो दीदी, मैं जानता हूं, तू हिमाचल क्यों जा रही है. मां के बारे में जानने का मेरा भी उतना ही मन है जितना तुम्हारा. बस, मैं कभी दिखाता नहीं हूं. मेरी भी अब छुट्टियां हैं. मैं भी वहीं पर कोई इंटर्नशिप कर लूंगा.’’

मिट्ठी को कुक्कू की बात सही लगी और उसे साथ ले जाने को तैयार हो गई. गुरु को उस के पापा ने अपने पास बुला लिया था, इसलिए दोनों भाईबहन अपनाअपना सामान ले कर रवाना हो गए. बूआ अपने बेटे गुरु को उन के साथ भेजना चाहती थी लेकिन पति को मना नहीं पाई. भौंहें तान कर मिट्ठी और कुक्कू को विदा किया.

‘‘गगन, तू ने भेज तो दिया हिमाचल पर कोई बीती बात बच्चों के सामने आ गई तो क्या होगा? उसी फ्लैट में रुकने की क्या पड़ी थी, किसी होटल में भी तो रुक सकते थे. तुम तो सबकुछ भूल गए हो.’’ बूआ ने लगभग डांटते हुए अपने भाई गगन को अपनी बात समझने की कोशिश की.

‘‘दीदी, 20 साल बीत चुके हैं उस घटना को. हम ने कोई जुर्म नहीं किया है जो छिपे रहेंगे और बच्चों को उस फ्लैट से दूर रखेंगे. वे दोनों उसी फ्लैट में पैदा हुए थे. अपनी जन्मभूमि इंसान को अपनी ओर खींच कर बुला ही लेती है. आप डरिए मत. सब ठीक होगा.’’ गगन ने अपनी बड़ी बहन को समझने की कोशिश की.

‘‘मिट्ठी अब कब तक ऐसे ही बैठी रहेगी? चल उठ, नहा कर आ जा. नाश्ता ठंडा हो गया है. हम दोनों कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं? मुझे भी सुनना है तुम लोग कैसे बिता कर आए हो मेरे बिना पूरा एक महीना.’’ गुरु मिट्ठी को बाथरूम भेज कर ही कमरे से बाहर गया.

‘‘पापा मेरी कंपनी का एक औफिस शिमला में भी है. मैं ने सोचा है वहीं पर ट्रांसफर ले लेती हूं. अपना फ्लैट तो है ही वहां पर,’’ शाम को पापा घर आए तो मिट्ठी ने प्रस्ताव रखा.

‘‘देखो बेटा, कुछ दिन वहां जा कर रहना दूसरी बात है और वहीं ठहर जाना बिलकुल अलग. तुम जहां हो, अभी वहीं पर रह कर काम करो,’’ पापा की बात स्पष्ट न थी.

‘‘पापा, आप ने भी तो सालों वहां पर नौकरी की है. अपना फ्लैट बंद पड़ा है, मैं रहूंगी तो उस का अच्छे से रखरखाव भी हो जाएगा. फिर मेरा मन है वहां जा कर रहने का. प्लीज, एक बार मेरी तरह सोच कर देखो न,’’ मिट्ठी ने डरतेडरते अपनी बात दोहराई.

‘‘तुझे सीधी तरह से कोई बात क्यों नहीं समझ आती है, लड़की? गगन वैसे ही उन बातों को याद कर के परेशान हो जाता है, तुम हो कि खुद के अलावा किसी के बारे में सोचती ही नहीं हो. जा कर अपना काम करो,’’ बूआ ने अपने लहजे में मिट्ठी को डांटा.

पापा के सामने मिट्ठी चुप रह जाती थी लेकिन आज उसे गुस्सा आ गया, ‘‘आप से कौन बात कर रहा है, बूआ? पापा को ही जवाब देने दो. हिमाचल के नाम से इतना डर क्यों जाती हो? कहीं आप के कहने से ही तो पापा वापस नहीं आए वहां से, आप को इसी घर में जो रहना था?’’ गुस्से में मिट्ठी बोलती चली गई.

गुरु और कुक्कू आ कर उसे अपने साथ ले गए. घर में क्लेश पसर गया. उस रात किसी ने भी खाना नहीं खाया. गगन का गुस्सा शांत हुआ तो बेटी पर प्यार उमड़ पड़ा और उस के कमरे में आ गए. मिट्ठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. उसे देख कर गगन जाने के लिए वापस मुड़े, तभी मिट्ठी ने आवाज लगाई, ‘‘आइए पापा, मेरा काम तो पूरा हो गया है. बस, कुछ फोटो देख रही थी हिमाचल की.’’

गगन मिट्ठी के पास दूसरी कुरसी पर बैठ कर फोटो देखने लगा, ‘‘यह फोटो तुम्हें कहां से मिली?’’ गगन, मिट्ठी, कुक्कू और नीतू की फोटो थी.

मिट्ठी ने आश्चर्य से पापा को देखा, बोली, ‘‘फ्लैट के स्टोररूम में कुछ सामान पड़ा हुआ था. यह फोटो उस सामान में ही थी.’’

मिट्ठी ने बताया तो गगन ने आगे पूछा, ‘‘बाकी सामान कहां है?’’

‘‘इस में है, पापा. आप की और मम्मी की बहुत सारी यादें. मैं अपने साथ उठा लाई. मिट्ठी ने एक थैला गगन के हाथ में थमा कर दरवाजा बंद कर दिया. उसे डर था कि पापा को उन के कमरे में नहीं पाएंगी तो भक्ति बूआ यहीं धमक पड़ेंगी. पापा जितनी देर घर में रहते हैं, उन की नजर उन्हीं पर रहती है, विशेष रूप से जब मिट्ठी आसपास हो तब.

पापा उदास हो गए थे उन फोटो को देख कर, मम्मी के छोटेमोटे सामान को देख कर, ‘‘कितना समझता था कि छोटीछोटी बातों को दिल से लगाना ठीक नहीं लेकिन उसे तो बात की तह तक जाना होता था. क्यों कही, किस ने कही, क्या जवाब देना चाहिए था, बस, इसी में घुलती रहती थी.’’

मिट्ठी को अच्छा लगा. बड़े दिनों बाद पापा ने मम्मी के बारे में खुल कर कुछ बोला था पर अचानक पापा खड़े हो गए. ‘‘बेटा, तुम अपना काम करो, मैं चलता हूं. तुम्हारी बूआ ने दूध बना कर रख दिया होगा. उस के भी सोने का टाइम हो गया है. दिनभर काम में लगी रहती है.’’ दरवाजा बंद कर के पापा मिट्ठी के कमरे से बाहर निकल गए.

बूआ के लिए पापा की चिंता नई बात न थी. उन के एहसान में दबे हुए थे, पापा.
उन के बच्चों की परवरिश कर के बूआ ने उन पर बड़ा एहसान चढ़ा दिया था.

मिट्ठी ने सामान वापस समेट कर रख दिया. किसी और को पता चल जाता तो बात का बतंगड़ बन जाता. मां के बारे में घर में कोई भी बात नहीं करता था. कुक्कू के ऊपर बूआ अपना अतिरिक्त प्यार लुटाती थी, इसलिए उसे मां की कमी बस तभी महसूस होती जब मिट्ठी को रोते हुए देखता. मिट्ठी जब भी घर में होती उसे मां की कमी हर पल महसूस होती. बचपन के दिन याद आ जाते. मां कैसे हर जगह उसे साथ रखती थीं.

‘लड़के की इतनी परवा नहीं है जितनी लड़की की है. दिनभर इसी के चोंचलों में लगी रहती है. पढ़लिख कर दिमाग खराब हो जाता है छोरियों का. आखिर वंश तो लड़के से ही चलेगा. लड़की को तो एक दिन अपने घर चली जाना है.’ बूआ के ऐसे ताने से मां आहत होती लेकिन हंस कर जवाब देतीं, ‘दीदी, आप और मैं भी तो लड़कियां ही हैं और फिर आप के घर का तो रिवाज है. आप अपनी ससुराल नहीं गईं तो मिट्ठी को भी यहीं रख लेंगे.’

मां के जवाब से बूआ आपे से बाहर हो जाती, ‘मेरी क्या रीस करनी है? मेरी तो मां बचपन में ही मर गई थी. गगन को अपने हाथों से पाला है मैं ने. कोई बूआ, चाची या ताई भी नहीं थी जो संभाल लेती. गगन ही नहीं जाने देता है. रहो अपने घर और ससुर की भी रोटी सेंको. मैं तो कल ही चली जाऊंगी अपने घर.’

मां फिर हंस पड़ती. ‘नाराज क्यों होती हो, दीदी? आप के भाई ही मुझे साथ ले कर गए हैं. मेरा तो मन भी नहीं लगता वहां. यहां छोड़ेंगे तो ससुरजी को रोटी नहीं, सब्जी भी खिलाऊंगी. रिटायर हो गए हैं, खुद ही सब काम करते हैं. मुझे अच्छा नहीं लगता है.’

बूआ बात को पकड़ कर अपने पक्ष में कर लेती. ‘तो इसीलिए तो अपना घरबार छोड़ कर पड़ी हूं यहां. तुम अपना घर संभाल लेती तो गगन क्यों मुझे रोके रखता?’ कुछ भी कर के मां के सिर पर हर बात पटक दिया करती थी, बूआ.

कई सालों बाद इस बार नाना मिट्ठी के सामने ही आए. मां के जाने के बाद हर साल नाना दोनों नातियों से मिलने बेटी की ससुराल आते थे. न कोई उन से बात करता था और न ही कोई उन के पास बैठता था. अकेले आते थे और दोनों बच्चों को उन के हिस्से का चैक दे कर चले जाते थे. नाना ने अपनी वसीयत में अपने बेटे और बेटी को बराबर का हिस्सा दिया था. सालभर की कमाई का आधा हिस्सा बेटी के दोनों बच्चों को दे जाते थे उस के जाने के बाद.

‘‘कितना फजीता किया था हमारे परिवार का इस आदमी ने. अब लाड़ बिखेरने आता है, बच्चों पर. इस की बेटी गई तो पुलिस ले कर गया था फ्लैट पर. अखबार में भी खबर दी कि मार दिया मेरी बेटी को,’’ नाना चले गए तो बूआ का बड़बड़ाना शुरू हो गया था.

‘‘वे हमारे नाना हैं, बूआ. उन के बारे में ऐसा सोचना ठीक नहीं,’’ कुक्कू ने बोला तो बूआ ऐसे शुरू हुई जैसे इंतजार ही कर रही थी.

‘‘तेरे दादा और पापा को जेल की हवा खानी पड़ती. वह तो तेरी मां की मैडिकल जांच में नहीं निकला कि उस को मारा है किसी ने.’’ मिट्ठी चाहती थी कि बूआ और भी कुछ बोल दे, ‘‘आप तो तब फ्लैट पर ही थीं बूआ. पूजा भी आप ने ही रखवाई थी और पंडित को भी आप ही ले कर गई थी. आप को तो सच पता था, फिर आप ने क्यों छिपाया यह सब.’’

बूआ आज पहली बार डर अपने चेहरे पर छिपा नहीं पाई, ‘‘तुझे किस ने बताया यह सब?’’ मिट्ठी इसी सवाल का जवाब देना चाहती थी, ‘‘आप के पंडित ने, उन सब लोगों ने जो पूजा में आए थे, पड़ोस वाले.’’

बूआ सीधे मिट्ठी के सामने आ कर खड़ी हो गई, ‘‘इसीलिए मैं नहीं चाहती थी कि तू जाए वहां पर. यही सब कर के आई है वर्क फ्रौम होम के बहाने.’’ बूआ के हर शब्द से गुस्सा टपक रहा था.

‘‘मम्मी, पापा आए हैं. थोड़ा ध्यान उन पर दो. अकेले बैठे हैं बैठक में.’’ गुरु बूआ को वहां से ले गया और मिट्ठी भी पीजी वापस जाने के लिए अपना सामान पैक करने चली गई. गुरु 2 साल से खाली घूम रहा था. छोटीमोटी नौकरी उसे समझ नहीं आती थी और बड़ी के लायक न तो उस में काबिलीयत थी और न ही उस ने कोशिश की. जैसेतैसे इंजीनियरिंग पास की थी.

‘‘मां, मुझे उसी कंपनी में नौकरी मिल गई है जिस में मामा काम करते थे.’’ गुरु ने घोषणा की तो बूआ रसोई से लड्डू का डब्बा उठा कर ले आई.

कुक्कू ने लड्डू खा कर डब्बा उन के हाथ से ले लिया, ‘‘बूआ, तुम खा लो, फिर बैठक में ले जा रहा हूं और वहां से बच कर नहीं आएंगे.’’ बूआ रोकती रह गई पर कुक्कू डब्बा उठा कर भाग गया.

मिट्ठी बिना कुछ कहे ही घर से निकल गई. बूआ ने रोकने की कोशिश नहीं की. पीजी में जाते ही बिस्तर पर लेट गई. हमेशा की तरह मां याद आ रही थी.

रोतेरोते आंखें लाल हो गई थीं उस की. बाथरूम में चली गई मुंह धोने के लिए जिस से पीजी की बाकी लड़कियों को शक न हो कि वह रो रही थी. हर बार घर से आ कर एकदो दिन इसी तरह परेशान रहती थी मिट्ठी.

चार दिनों बाद ही पापा का फोन आया, देख कर मिट्ठी सोच में पड़ गई. पहली बार में तो फोन उठाना ही भूल गई. दूसरी बार जब आया तो उठाया, ‘बेटा, तुम्हारी भक्ति बूआ एक पूजा करवाना चाहती हैं. शिमला वाला फ्लैट तुम्हारी मां के जाने के बाद से बंद ही है. अब गुरु वहीं रहेगा, इसलिए पूजा कर के उसे पवित्र करवाना चाहती हैं. अगले रविवार को तुम भी थोड़ा समय निकाल लेना.’’

‘‘पापा, आप को पता है, मां जब से गई हैं, विश्वास उठ गया है मेरा पूजापाठ से.’’ मिट्ठी ने स्पष्ट किया.

‘‘जानता हूं, बेटा. पर हो सकता है यह पूजा तुम्हारे टूटे विश्वास को जोड़ने में कामयाब हो जाए. ऐसा करते हैं, इस पूजा को तुम ही करवाओ. पंडितजी से तो मिल ही चुकी हो.’’ मिट्ठी समझ गई, वह मना नहीं कर पाएगी पापा को. तभी एक विचार उस के दिमाग में कौंधा.
‘‘ठीक है पापा, कोशिश करती हूं. फ्राइडे तक आप को बताती हूं. भक्ति बूआ को बोलना अब उन के टैंशन के दिन गए. पंडितजी से मैं खुद ही बात कर लूंगी.’’

पापा की खुशी फोन पर ही फूट पड़ी. ‘‘अब उस का एहसान चुकाने का समय आ गया है. खुद को भुला कर उस ने हमारे घर को संभाला है. तुम ने यह जिम्मेदारी ले कर मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया है.’’ पापा फोन रखने ही वाले थे कि मिट्ठी ने कहा, ‘‘पापा, मैं चाहती हूं कि इस पूजा में नाना को भी बुलाऊं. मां के जाने के बाद नानी भी चली गईं. वे भी अकेले ही हैं. दादाजी भी गांव में चले गए हैं उस के बाद. प्लीज, उन दोनों को भी बुलाने दीजिए.’’
कुछ देर तक पापा ने कुछ नहीं कहा लेकिन फोन नहीं काटा. फिर यह कहते हुए फोन रखा, ‘‘तुम कहती हो तो मना कैसे कर सकता हूं. बुला लो. भक्ति को मैं समझ लूंगा.’’
मिट्ठी ने कमरे से बाहर आ कर आसमान की ओर देखा. उसे महसूस हुआ जैसे मां वहीं से मुसकरा कर कह रही है. ‘आखिर तुम ने रास्ता निकाल ही लिया सच से परदा उठाने का.’
मिट्ठी केवल निर्देश दे रही थी और कुक्कू उस का पालन कर रहा था. पापा ने इस बार चौका लगाया था. ‘‘भक्ति दीदी, तुम इतने सालों से सब संभालती आ रही हो, अब मु?ो भी कुछ करने का अवसर दो. इस बार पूजा की पूरी जिम्मेदारी मैं संभाल लूंगा. आजकल वैसे भी सब काम मोबाइल से हो जाते हैं. लंचटाइम में औफिस में बैठ कर सब प्रबंध कर दूंगा.’’
भक्ति सकपका कर बोली, ‘‘गगन, क्या तू भी यही मानता है कि मेरी पूजा के कारण ही नीतू की जान गई?’’

गगन ने दीदी का हाथ पकड़ लिया. ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, दीदी. तुम ने मिट्ठी और कुक्कू के लिए कितना कुछ किया है. मैं भी चाहता हूं कि गुरु को नौकरी मिलने और वहां सैट होने में मदद कर पाऊं. बस, इसीलिए आप को तनाव नहीं देना चाहता हूं.’’
भक्ति का दिल भाई की बात मानने से इनकार कर रहा था लेकिन उसे मना भी नहीं कर सकती थी. ‘‘ठीक है, गगन. मुझे तो इस बात की खुशी है कि तू पूजा के लिए तैयार हो गया है. कितने साल हो गए, घर में कोई शुभ काम नहीं हुआ.’’
‘‘अब होगा दीदी और आप को परेशान भी नहीं होना पड़ेगा. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन को भी जिम्मेदारी लेना सीखना चाहिए न. बस, इस बार उन की ही सहायता लूंगा.’’
निश्चित तारीख पर सब लोग शिमला के उस फ्लैट में इकट्ठे हो गए. दादाजी और नाना को कुक्कू ने मना लिया. सब काम पूरे हो गए तो मिट्ठी भी आ गई. पूजा शुरू हुई. पंडितजी ने हवन और आरती करने के बाद जैसे ही जाने को कहा, भक्ति बूआ ने आदतन उन्हें रोक लिया. ‘‘पंडितजी, गुरु की कुंडली देख कर बताइए कि क्या सावधानियां रखनी हैं और कुछ ऊंचनीच हो जाए तो क्या उपाय होगा?’’

पंडितजी ने काफी देर तक कुंडली को देख कर कुछ गणना की, फिर बोले, ‘‘गुरु मामा की छोड़ी हुई नौकरी पकड़ रहा है. उन्हीं के घर में रहेगा तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बहूरानी की आत्मा इन से संपर्क करे.’’ भक्ति बूआ ने तुरंत गुरु की कुंडली पंडितजी के हाथ से ले ली. लेकिन उन्होंने अपनी बात जारी रखी. ‘‘आज की पूजा में ही अगर कुछ मंत्र और पढ़ लिए जाएं और सच्चे दिल से बहूरानी को याद कर के उन से माफी मांगी जाए तो बला टल सकती है.’’
सब भक्ति बूआ की ओर देख रहे थे.
‘‘तो जो सही है वह करो, मैं कौन सा मना कर रही हूं. इन बातों का कुछ मतलब थोड़े ही है.’’ बूआ उठ कर जाना चाहती थी लेकिन फूफाजी ने बिठा दिया.
‘‘पंडितजी, जो बाकी है उस को भी पूरा कीजिए. बेटे को मुश्किल से रोजगार मिला है, उस में कोई अड़चन न आए, उस का उपाय आप शुरू कीजिए.’’
पंडितजी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए. सब से पहले नानाजी बोले, ‘‘नीतू बेटा, अगर तू सुन रही है तो मुझे माफ करना. मैं समय से तुम्हारी चिट्ठी नहीं पढ़ सका. तुम बच्चों को ले कर मेरे पास आना चाहती थीं लेकिन तुम्हारा खत मुझे तुम्हारे जाने के बाद मिला.’’ अब पापा भी चुप नहीं रहे. पहली बार उन्होंने बच्चों के सामने अपनी पत्नी को ले कर कुछ कहा. ‘‘मैं भी खतावार हूं, नीतू. तुम्हारे मना करने पर भी मैं ने अपने बिजनैस के जनून के कारण नौकरी छोड़ी और तुम्हें तुम्हारे घर भी नहीं जाने दिया. मुझे डर था कि ससुराल में मेरी साख कम हो जाएगी.’’

अब पंडितजी ने बोल कर सब को चौंका दिया. ‘‘हो सके तो माफ कर देना, बहूरानी. मैं नहीं जानता था कि तुम पूरे महीने व्रत कर रही थी. मैं ने ही भक्तिजी के कहने पर यह घोषणा की थी कि तुम्हारे कुंडली दोष के कारण ही गगन की नौकरी गई है और व्यवसाय भी शुरू नहीं हो पा रहा है. मुझे पता होता तो तुम्हें लगातार 3 दिन निर्जल, निराहार व्रत का उपाय न बताता.’’ सब की नजर भक्ति की ओर थी.
फूफाजी ने उन्हें कुछ बोलने के लिए हाथ से इशारा किया. भक्ति बूआ रोते हुए बोली, ‘‘नीतू, हो सके तो मुझे भी माफ करना. पंडितजी से बात कर के मैं ने ही वह पूजा रखी थी. मेरे कहने पर ही उन्होंने कुंडली देखी थी. दूध पीते बच्चे की मां ऐसी कठिन विधि नहीं अपना पाएगी यह जानते हुए भी मैं ने तुम पर दबाव बनाया.’’

बूआ बोल ही रही थी कि मिट्ठी बीच में बोल पड़ी, ‘‘मां को 3 दिनों से उलटीदस्त हो रहे थे, फिर भी वे पूजा के काम में लगी रहीं और अपनी दवाई भी नहीं ले पाईं व्रत करने के कारण. अगर दवा लेतीं तो उन को हार्टअटैक न आता.’’ आज पहली बार भक्ति बूआ ने मिट्ठी को घूर कर नहीं देखा.

नाना उठ कर खड़े हो गए, ‘‘बस, यही जानने के लिए मैं बेचैन था. अगर सही बात पता चल जाती तो मैं पुलिस के पास कभी न जाता. मेरी बेटी अचानक चली गई, अपनी नातियों से रिश्ता क्यों तोड़ता.’’
कुक्कू ने नाना को पकड़ कर बिठा दिया और खुद भी उन के पास ही बैठ गया. फूफाजी ने भक्ति बूआ को वहां से उठा दिया और सामान ले कर चलने लगे. आज गगन ने उन्हें नहीं रोका.
बूआ खुद ही गगन के पास आई. ‘‘हो सके तो माफ कर देना, मेरे भाई. इसी एक गलती को सुधारने के लिए अपने घर नहीं गई.’’
‘‘पर मुझे तो सच बता देतीं, दीदी. जीनामरना अपने हाथ में नहीं है लेकिन मेरे विश्वास का कुछ तो मान रखतीं आप.’’
भक्ति बूआ साड़ी के पल्लू में मुंह छिपा कर रो रही थी. फूफाजी ने आ कर पापा को सांत्वना दी, ‘‘इस गलती की सजा अब मिलेगी इस को. अब यह तब तक तुम्हारे घर नहीं आएगी जब तक तुम बुलाओगे नहीं.’’
दादाजी उठने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मिट्ठी ने उन्हें रोक दिया. तब दादाजी बोले, ‘‘भक्ति को विदा कर देता हूं, बेटा. शादी के 26 साल बाद ससुराल जा रही है. अब तो तू सब संभाल लेगी. उस को जाने दो.’’
कुक्कू पंडितजी की ओर देख कर मुसकरा दिया. उन के प्रायश्चित्त पाठ ने वह कर दिखाया था जो सालों से कोई नहीं कर पाया था.

Prakriti Lamsal’s Death : डाक्टर अच्युत सामंत को शिंकजे में लेने की तैयारी

Prakriti Lamsal’s Death : है तो यह सीधीसादी कैम्पस लवस्टोरी और उस के बाद प्रेमी द्वारा प्रेमिका को ब्लैकमेल व प्रताड़ित करने की एक दुखद दास्तां जिस पर अब भगवा इबारत लिखी जा रही है.

वे दोनों भुवनेश्वर के कलिंग इंस्टिट्यूट औफ इंडस्ट्रियल टैक्नोलौजी यानी केआईआईटी में पढ़ते थे. अद्विक श्रीवास्तव लखनऊ से आया था और प्रकृति लामसाल नेपाल से आई थी. दोनों बीटैक के थर्ड ईयर के स्टूडैंट थे, उम्र वही 20-22 के बीच जो पढ़ाई के साथसाथ प्यार के लिए भी जानी जाती है. सो, दोनों एकदूसरे से प्यार कर बैठे लेकिन इसे निभा नहीं पाए. यह हर्ज की बात नहीं थी, हर्ज की बात थी अद्विक द्वारा प्रकृति को ब्लैकमेल और प्रताड़ित करना जिस की परिणति हुई प्रकृति की आत्महत्या की शक्ल में. ऐसा रोजरोज कहीं न कहीं हो रहा होता है पर इस में नई बात है प्रेमिका का नेपाली होना.

बीती 16 फरवरी की रात प्रकृति ने केआईआईटी के होस्टल में खुदकुशी कर ली थी जिस से आहत और व्यथित इस संस्थान के कोई एक हजार नेपाली छात्र लामबंद हो कर विरोध प्रदर्शन करने पर उतारू हो आए. हल्ला मचा तो नेपाल सरकार ने भी संज्ञान लिया. केआईआईटी प्रशासन ने मामले को गंभीरता से न ले कर टरकाऊ रवैया अपनाया था. उस ने नेपाली छात्रों से कहा, ‘चले जाओ नेपाल’ और उन्हें गाड़ियों में ठूंस कर 30 किलोमीटर दूर कटक रेलवे स्टेशन भेज दिया. इन छात्रों में से अधिकतर के पास टिकट को तो दूर की बात है, खानेपीने तक को पैसे न थे.

केआईआईटी प्रशासन ने आननफानन होस्टल्स खाली कराने का भी फरमान जारी कर दिया जबकि 28 फरवरी से इम्तिहान होने थे. नतीजतन, छात्रों का गुस्सा और भड़क गया. इसी बीच एक वीडियो वायरल हुआ जिस में केआईआईटी की 2 अधिकारी नेपाली छात्रों से अभद्र और अपमानजनक तरीके से यह कहती नजर आ रही हैं कि हम 40 हजार बच्चों को मुफ्त में पढ़ातेखिलाते हैं. इतना तो तुम्हारे देश का बजट भी नहीं होता. एक और वायरल हुए वीडियो में अद्विक प्रकृति से गालीगलौच कर रहा है.

बात नेपाल सरकार के बजट तक जा पहुंची तो वहां के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत सरकार से नेपाली छात्रों की सुरक्षा की मांग की और मामले में दखल देने की अपील की. अब बात प्रकृति की आत्महत्या की न रह कर नेपाली अस्मिता और राजनयिक संबंधों की भी हो गई थी, जिस के तहत नेपाल की संसद में भी मामला गूंजा और ओडिशा विधानसभा में भी उठा. हालांकि, दबाव और हल्ला बढ़ता देख केआईआईटी प्रशासन ने नेपाली छात्रों से न केवल माफी मांग ली, बल्कि दोषी स्टाफ को सस्पैंड भी कर दिया.

निशाने पर यह मसीहा

इस मामले पर ओडिशा विधानसभा में बीजद लगभग तटस्थ भूमिका में रही लेकिन कांग्रेस ने भाजपा सरकार को घेरने का मौका नहीं गंवाया. पर बिसात तब भगवा हो उठी जब एक भाजपा विधायक बाबू सिंह ने केआईआईटी और केआईएसएस के संस्थापक डाक्टर अच्युत सामंत की गिरफ्तारी की मांग कर डाली तो समझने वालों को समझ आ गया कि असल खेल तो अब शुरू हुआ है जिस के तहत भगवा फंदा डाक्टर सामंत के गले में डाले जाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं.

अच्युत सामंत एक लोकप्रिय और काबिल प्रतिभावान शिक्षाविद हैं, जिन्हें देशदुनिया से कोई 64 मानद डाक्टरेट मिल चुकी हैं. उन्होंने गरीबी और अभावों से लंबी लड़ाई जीत कर जो हासिल किया है वह उपलब्धियों की शक्ल में सामने है. केआईआईटी और केआईएसएस में 40 हजार आदिवासी छात्रों को रहनेखाने और शिक्षा की नि:शुल्क व्यवस्था किसी सुबूत की मुहताज नहीं है. उन की इमेज ओडिशा के आदिवासियों में मसीहा की है.

लेकिन विवादों से भी अचुय्त सामंत का गहरा नाता है. उन पर आदिवासी बच्चों के धर्म को ले कर आरोप अकसर लगते रहे हैं. कट्टर हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि उन के शैक्षणिक संस्थानों में भोलेभाले आदिवासी बच्चों को ईसाई बनने को उकसाया जाता है जबकि उलट आदिवासी संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि केआईआईटी और केआईएसएस में हिंदू तीजत्योहार मना कर छात्रों को हिंदू बनाने की साजिश रची जा रही है.

सच कुछ भी हो लेकिन इतना जरूर साबित हो गया कि गरीब आदिवासी बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई से दोनों धर्मों के ठेकेदार परेशान हैं क्योंकि शिक्षा उन्हें जागरूक तो बनाती है और यह गुनाह चूंकि डाक्टर सामंत कर रहे हैं इसलिए उन्हें सबक मिलना चाहिए. लेकिन यह आसान काम नहीं था क्योंकि उन की हस्ती और मसीही इमेज इस में बड़ा रोड़ा थी.

प्रकृति लामसाल की आत्महत्या के बाद कैसे सबक सिखाने का मकसद भगवा गैंग पूरा करने जा रहा है, इसे समझने से पहले अच्युत सामंत की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को समझना जरूरी है. एक वक्त में उन्हें राजनीति से कोई सरोकार नहीं था लेकिन जब आरोपों का पानी सिर से गुजरने लगा तो वे राजनीति में आ ही गए.

यों चढ़ा भगवा रंग

साल 2017 में जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने केआईएसएस जा कर 20 हजार बच्चों को संबोधित किया था तब यह मान लिया गया था कि अच्युत सामंत ने भाजपा में जाने का मन बना लिया है और इस से भाजपा को भारी फायदा होगा क्योंकि आदिवासी उसी पार्टी को वोट देंगे जिस के लिए उन का यह मसीहा कहेगा. इस से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चौंकन्ने हो गए और जैसेतैसे उन्हें बीजद में ले आए और बतौर ईनाम, 2018 में राज्यसभा भी भेज दिया. लेकिन अभी भी सामंत का मन डांवांडोल था क्योंकि आरएसएस की पकड़ आदिवासी इलाकों में मजबूत होती जा रही थी.

2018 में ही अच्युत सामंत ने विज्ञान कांग्रेस के 105वें सैशन में यह कहते अटकलों का बाजार गरम कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदर्शी और देश के सच्चे सपूत हैं. अपने 8 मिनट के भाषण में उन्होंने 7 बार मोदी का नाम लिया तो नवीन बाबू की पेशानी पर बल पड़ गए थे.

उसी दौरान 2019 के लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो नवीन पटनायक ने फुरती दिखाते अच्युत को कंधमाल लोकसभा सीट से बीजद के टिकट पर लड़ने को तैयार कर लिया. इस से भाजपा में उन के जाने की अटकलों पर विराम लग गया.

इस चुनाव में मोदी नाम की आंधी से ओडिशा अछूता रहा था. कंधमाल में अंदरूनी मुद्दा था 2008 के दंगे जिन में दलित ईसाईयों के खिलाफ खुली हिंसा हिंदू संगठनों द्वारा की गई थी. इस हिंसा की चर्चा दुनियाभर में हुई थी. कट्टर हिंदुओं द्वारा हजारों आदिवासियों को मार दिया गया था. उन की औरतों का बलात्कार किया गया था, जम कर आगजनी की गई थी. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि नजारा कितना वीभत्स रहा होगा. एक अंदाजे के मुताबिक, कोई 60 हजार आदिवासी बेघर हो गए थे. तब नवीन पटनायक चूंकि भगवा खेमे के समर्थक थे इसलिए न्याय नहीं कर पाए थे और मामला गोधरा सरीखा आयागया हो गया था.

कैसे नवीन बाबू सीएम हाउस में बैठे गीतसंगीत, चित्रकारी और साहित्य में डूबे हुए 20 साल ओडिशा पर राज करते रहे, यह कोई रहस्य की बात नहीं रह गई थी. दरअसल, सवर्ण हिंदुओं और आदिवासियों के टकराव का फायदा उन्हें बैठेबिठाए मिलता रहा था. कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही थी और भाजपा अपना प्रभाव बढ़ा रही थी. लेकिन इस का बीजद के वोटों पर असर ज्यादा नहीं पड़ रहा था क्योंकि कांग्रेस का वोटबैंक भाजपा की तरफ खिसक रहा था.

कंधमाल दंगों के बाद जब नवीन पटनायक की धर्मनिरपेक्ष इमेज कठघरे में खड़ी होने लगी तो उन्होंने तुरंत भाजपा से अपना समर्थन वापस ले लिया जिस से आदिवासी समुदाय का झुकाव, मजबूरी में ही सही, उन की तरफ बना रहा. 2019 तक बीजद को इस का फायदा मिलता रहा और वह सत्ता में बनी रही.

अच्युत सामंत ने 2019 का लोकसभा चुनाव शान से जीता. उन्हें भाजपा उम्मीदवार एरा खरबेला स्वेन के मुकाबले लगभग डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले थे. इस चुनाव में कांग्रेस 21 में से महज एक सीट ले जा पाई थी जबकि भाजपा 8 सीट जीत कर दूसरे नंबर पर आ गई थी. ठीक यही हाल विधानसभा का भी रहा था. भाजपा हालांकि 213 में से केवल 23 सीटें ही जीत पाई थी लेकिन उस का वोट शेयर 32 फीसदी हो गया था, जबकि कांग्रेस 16 फीसदी से कुछ कम वोटों के साथ 9 सीट पर सिमट पर रह गई थी.

तब किसी ने न बीजद ने और न ही कांग्रेस ने इस पर गौर किया था कि आरएसएस की नफरत की राजनीति अंदरूनी तौर पर पैठ बना रही है जो आदिवासियों को उन के हिंदू होने का एहसास कराते ईसाईयत के खिलाफ जहर उगलती रहती है.

2024 के नतीजों ने साबित कर दिया कि ओडिशा भगवा रंग में रंग चुका है और 2 दशकों से राज कर रहे नवीन पटनायक आदिवासियों की उम्मीदों पर नाकाम साबित हो गए हैं. भाजपा ने 78 सीटें जीत कर सत्ता पर कब्जा कर लिया और बीजद को 51 सीटों पर तसल्ली करना पड़ी. कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थीं. भाजपा और बीजद का वोट शेयर लगभग बराबर का 40 फीसदी के इर्दगिर्द रहा था. कांग्रेस ने 13.26 फीसदी वोट हासिल कर बीजद को नुकसान और भाजपा को फायदा ही पहुंचाया था.

लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम बेहद चौंकाने वाला रहा था. भाजपा ने 20 सीटें 45.34 फीसदी वोटों के साथ जीती थीं जबकि बीजद को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी. इस अंधड़ से कंधमाल सीट अछूती नहीं रही थी जहां से अच्युत सामंत भाजपा के सुकांत कुमार पाणिग्रही से महज 21,371 वोटों से पराजित हुए थे.

फंस गए सामंत

इस हार की असल कीमत अब उन्हें जिंदगीभर चुकानी पड़ेगी. प्रकृति की आत्महत्या अच्युत सामंत के लिए त्रासदी बनती जा रही है. इस पर बवाल अब हिंदूवादी मचा रहे हैं. 23 फरवरी को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने केआईआईटी कैंपस के बाहर जम कर हुड़दंग मचाते अच्युत सामंत के खिलाफ नारेबाजी की. ये हुड़दंगी जयश्रीराम के नारे भी लगा रहे थे. यह सब बेवजह नहीं है खासतौर से उस सूरत में जब अद्विक श्रीवास्तव गिरफ्तार किया जा चुका है और दूसरे आरोपी भी जेल में हैं. केआईआईटी का माहौल सामान्य हो चला है लेकिन हिंदूवादी चाहते हैं कि बवाल मचे जिस से अच्युत सामंत पर दबाव बनाया जा सके.

गुजरे कल में सामंत ने भाजपा को जो नुकसान पहुंचाया है और लाखों आदिवासी बच्चों को शिक्षित और जागरूक किया है उस की कीमत तो उन्हें चुकानी ही पड़ेगी. उन के शिक्षण संस्थानों पर कभी भी आईटी, ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं के चरण कमल पड़ सकते हैं. उन की जमीनों की खरीदफरोख्त में दर्जनों कानूनी नुक्स निकाल कर उन्हें राजसात किया जा सकता है.

इस हालत से बचने का एक ही रास्ता है कि वे फिर से मोदी को सच्चा सपूत कहते उन की दूरदर्शिता के कायल हो जाएं यानी भगवा गैंग जौइन कर लें, केआईआईटी और केआईएसएस में आदिवासी बच्चों को रामायण और गीता पढ़ने की व्यवस्था करें, वेदपुराणों की वाणी गुंजाएं, यज्ञहवन, पंडों को बुला कर करवाएं और आदिवासियों को बताएं कि वे दरअसल हिंदू हैं. वरना वे ओडिशा का केजरीवाल बनने को तैयार रहें.

ओडिशा सरकार ने प्रकृति की आत्महत्या के मामले की जांच के लिए एक हाईलैवल कमेटी बना दी है. अच्युत सामंत इस कमेटी के सामने पेश हो चुके हैं लेकिन इस मुलाकात का ब्योरा सामने नहीं आया है. फिलहाल तो बजरंग दल वही कर रहा है जो देशभर के हिंदू संगठन अपने विरोधियों यानी वामपंथियों को सबक सिखाने को करते रहते हैं कि बाद में सलीके से घेरने से पहले ही माहौल तैयार करना.

रही बात प्रकृति लामसाल से हमदर्दी की, तो वह किसी को नहीं है. अब तो उस की खुदकुशी पर हिंदुत्व की आंच सुलगाई जा रही है. उपद्रव मचा रहे बजरंगी दलील दे रहे हैं कि डाक्टर सामंत की वजह से भारत की इमेज बिगड़ी है और नेपाल से उस के संबंध खराब हुए हैं तो इन लोगों को पहले अमेरिका पर ऊंगली उठानी चाहिए जिस ने भारतीयों को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर भारत पहुंचाया तब किस की इमेज खराब हुई थी नरेंद्र मोदी की या अच्युत सामंत की. ये लोग और दूसरे सनातनी शायद ही सच बोल और स्वीकार पाएं कि मोदी की इमेज और साख दोनों पर बट्टा लगा है और भारत में नेपालियों की वही स्थिति व हैसियत है जो अमेरिका में भारतीयों की है कि वे सछूत शूद्र हैं, मजदूर हैं, दोयम दर्जे के हैं और जो ऊंचे पदों पर पहुंचने के बाद भी तिरस्कृत हैं.

Wedding : मैं बेटी की शादी अपने शहर से दूर नहीं करना चाहता

Wedding : मैं हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी से मैनेजर की पोस्ट से रिटायर हुआ हूं. मेरी पत्नी गृहिणी है. हमारे 2 बच्चे हैं. बड़ी बेटी एमएनसी में काम करती है (वर्क फ्रौम होम). उस की उम्र 29 वर्ष हो चली है. पहले जब उस के रिश्ते आते थे तो वह बेहद नाराज हो जाती थी और कई हफ्तों हम से बात नहीं करती थी. हम समझते थे तो वह बहस करने लगती थी.

मैं और मेरी पत्नी दोनों ही शांत स्वभाव के हैं. हम भय के कारण चुप ही रहा करते थे. खैर, बेटी से पता चला कि वह एक लड़के को पसंद करती है. दोनों ने एमबीए साथसाथ किया था. वह लड़का हमारे घर आ चुका है. पत्नी की भी उस से बातचीत होती रहती है. वह गुड़गांव में नौकरी करता है. उस का पैतृक निवास कोलकाता है. हम उत्तराखंड के रहने वाले हैं. उस का और हमारा कल्चर कहीं से मेल नहीं खाता. अब बिरादरी में लड़का ढूंढ़ना मुश्किल है. बेटी की शादी इतनी दूर नहीं करना चाहता. कशमकश में हूं. कृपया मार्गदर्शन कीजिए.

आप की चिंता समझ में आती है क्योंकि एक पिता के रूप में बच्चों की खुशी और भविष्य की चिंता स्वाभाविक है. दूसरी तरफ बेटी की पसंद को भी ध्यान में रखना जरूरी है, क्योंकि वह अपने जीवन के बारे में खुद निर्णय लेने के काबिल है.

आप की चिंता यह है कि आप के परिवार की संस्कृति और उस लड़के के परिवार की संस्कृति में फर्क हो सकता है. यह बेशक एक महत्त्वपूर्ण और विचार करने लायक बात है लेकिन रिश्ते को सिर्फ संस्कृति के आधार पर न आंकें. आजकल कई परिवारों में विभिन्न संस्कृतियों के बीच सामंजस्य बना है. यदि दोनों परिवारों में आपसी समझ और आदर हो तो यह फर्क कम हो सकता है.

अब सवाल आता है दूरी का. आप उत्तराखंड से हैं और वह लड़का कोलकाता का है तो यह सवाल आना स्वाभाविक है कि शादी के बाद दोनों परिवारों के बीच दूरी कैसे मैनेज होगी. बेटी से खुल कर बात करें कि क्या वह तैयार है इस दूरी और संस्कृति की चुनौती को स्वीकार करने के लिए.

वैसे आज के युवा अपने रिश्तों के बारे में बहुत सोचसमझ कर फैसले लेते हैं. अगर आप की बेटी उस लड़के के साथ रहने में खुश है और उस के साथ भविष्य देख रही है तो ज्यादा अहमियत यही बात रखती है. अंत में, यह भी जरूरी है कि आप बेटी से और अपने घर के अन्य सदस्यों से खुल कर बात करें ताकि एक सुलझा हुआ और सामूहिक निर्णय लिया जा सके.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Friendship : मेरी पहली सहेली को दूसरी सहेली अच्छी नहीं लगती

Friendship : कालेज टाइम से ही मेरी एक सहेली बहन की तरह है. शादी हो गई है लेकिन हमारा साथ अभी भी है. अकसर घूमनाफिरना, शौपिंग, फोन पर गप्पें चलती रहती हैं. इधर एक महीने पहले हमारी सोसाइटी में मेरी कालेज की एक और सहेली ने घर ले लिया है.

अब वह अकसर मेरे घर आ जाती है. मैं भी चली जाती हूं. कुल मिला कर मेलजोल बहुत बढ़ गया है. मेरी इन दोनों सहेलियों की आपस में नहीं बनती. कालेज में दोनों की किसी बात पर लड़ाई हो गई थी. दोनों की तब से बातचीत बंद है.

पहली सहेली मुंह से नहीं बोल रही लेकिन मुझे उस के बात करने के ढंग और ताने देने से समझ आ गया है कि उसे मेरा दूसरी सहेली से मेलजोल बिलकुल पसंद नहीं आ रहा. मैं बड़ी उलझन में पड़ गई हूं क्योंकि मेरा दोनों के साथ अच्छा रिलेशन है और मैं दोनों के साथ अपना रिश्ता बिगाड़ना नहीं चाहती. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं?

आप की स्थिति थोड़ी नाजुक है लेकिन अगर आप थोड़ा ध्यान रखें तो आप दोनों सहेलियों के साथ अच्छा संबंध बनाए रख सकती हैं, बिना किसी एक का फेवर किए. आप को दोनों सहेलियों को समान समय देना होगा. उन्हें यह एहसास न हो कि आप किसी एक के साथ ज्यादा समय बिता रही हैं. कभी एक के साथ घूमना है तो कभी दूसरी के साथ, ताकि दोनों को लगे कि आप के दिल में उन के लिए बराबर जगह है.

अगर आप को लगता है कि आप की पहली सहेली को थोड़ा बुरा लग रहा है तो आप उस से खुल कर बात कर सकती हैं कि आप दोनों को समान रूप से सम्मान देती हैं और कभीकभी दूसरी सहेली के साथ भी घूमने चली जाती हैं. समझदार होगी तो समझ जाएगी कि आप का इरादा सिर्फ दोस्ती का है, न कि किसी को नजरअंदाज करने का.

आप दोनों सहेलियों के लिए ग्रुप प्लान्स और्गनाइज कर सकती हैं जिस में दोनों को शामिल किया जाए. इस तरह से दोनों सहेलियों को एकसाथ समय बिताने का मौका मिलेगा और वे जलन नहीं महसूस करेंगी. जब आप दोनों सहेलियों के साथ घूमने जाती हैं तो हरेक को यह महसूस होना चाहिए कि आप उन के साथ खुश हैं और आप के दिल में उन के लिए जगह है. यह आप उन की बातों को सुन कर और उन के साथ क्वालिटी टाइम बिता कर दिखा सकती हैं.

आप को यह समझना होगा कि हर किसी का अपना नेचर होता है और हर दोस्ती में कभीकभी थोड़े अंतर हो सकते हैं. आप को अपने इमोशंस को कंट्रोल कर के दोनों के बीच एक हैल्दी बैलेंस बनाए रखना होगा. इस तरह से अगर आप अपनी दोनों दोस्तों के साथ समझदारी से पेश आएंगी तो दोनों को यह नहीं लगेगा कि आप किसी एक को प्रैफर कर रही हैं.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Artificial Intelligence : हलवाई नहीं खाता, अपनी बनाई मिठाई

Artificial Intelligence : समाज में यह कहावत बहुत प्रचलित है कि ‘हलवाई नहीं खाता, अपनी बनाई मिठाई’. यह कहावत अमेरिका पर पूरी तरह से फिट बैठती है. एआई यानि आर्टीफिशियल का पूरी दुनिया में बोलबाला है. पूरी दुनिया एआई के पीछे भाग रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजैंस एआई शब्द खूब प्रचलन में है. स्कूली छात्र 400 शब्दों का निबंध तक इस से लिखवा रहे हैं. भविष्य में इस की मदद से कई सारे जरूरी काम आसानी से कर पाएंगे. आर्टिफिशियल इंटेलिजैंस का इस्तेमाल डेली लाइफ में बहुत कौमन हो चुका है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए एक ऐसा कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने की कोशिश होती है जिस के आधार पर एक इंसान का दिमाग काम करता है. एआई की शुरुआत भले ही 1950 के दशक में हुई. अमेरिका के कम्प्यूटर साइंटिस्ट जौन मैकार्थी ने 1956 में इस के बारे में बताया था. इस की पहचान 1980 के दशक की शुरुआत में मिली. 1981 में जापान ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर कप्यूटर की दुनिया में क्रांति ला दी.

इस का जनक अमेरिका को माना जाता है. लेकिन वहां के लोग एआई का प्रयोग कम करते हैं. अमेरिका के 18 फीसदी लोग ही एआई के प्रयोग करते हैं. एआई का सब से अधिक 49 फीसदी प्रयोग भारत के लोग कर रहे हैं. इस के बाद 47 फीसदी नाइजीरिया, 45 फीसदी वियतनाम, 35 फीसदी चीन के लोग करते हैं. अमेरिका को एआई के प्रयोग से होने वाले नुकसान का पता है. एआई का लगातार प्रयोग करने से युवाओं में प्रतिभा की कमी हो रही है.

Social Media : मुझे डर है कि मेरी छोटी बहन साइबर बुलिंग की शिकार न हो जाए

Social Media : मैं उत्तराखंड के कोटद्वार से हूं लेकिन परिवार के साथ दिल्ली में रहता हूं. मेरी छोटी बहन कई सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर एक्टिव है. मुझे डर लगता है कि कहीं वह साइबर बुलिंग की शिकार न हो जाए. उस की उम्र केवल 14 साल है इसलिए उस से ज्यादा रोकटोक करना भी सही नहीं लगता. पर उसे जब भी फोन पर देखता हूं डरता हूं कि कहीं कल सोशल मीडिया पर उस की फोटोज वायरल नहीं हो रही हो.

सोशल मीडिया हमारी लाइफ का एक अहम हिस्सा बन गया है. युवा पीढ़ी बड़ी संख्या में फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सऐप और स्नैप चैट जैसे प्लेटफौर्म्स पर एक्टिव हैं. रील्स देखने और बनाने, मीम्स को एंजौय करने में वह घंटों अपना समय बरबाद कर रहे हैं. यह डिजिटल दुनिया जितनी फायदेमंद है, उस से कहीं ज्यादा खतरनाक भी है. खासकर जब बात साइबर बुलिंग की हो रही हो, तो चौकन्ना रहना जरूरी है. अगर आप की बहन की फ्रैंड्स है, तो उसे सब से मिलनेजुलने कहें, उसे कहें कि वह अपने दोस्तों को घर बुलाएं या उस के साथ घूमने बाहर जाएं. इस से उस का अकेलापन दूर होगा साथ ही मोबाइल से दूरी भी बढ़ेगी.

आप की बहन टीनएजर है इसलिए उस के रोकटोक करना सही नहीं रहेगा लेकिन उसे साइबर क्राइम से जुड़ी घटनाओं का उदाहरण दे कर बताएं कि वह किस तरह से बुलिंग का शिकार हो सकती है. उसे ऐसी ही घटनाओं के बारे में बताएं जिन में उस के उम्र के किशोरकिशोरियों के साथ दिक्कतें आई हों, इस से खुद ही उस के मन में चेतना पैदा होगी.

उसे बताएं कि साइबर बुलिंग क्यां है?

किसी को औनलाइन प्लेटफौर्म पर परेशान करना, धमकाना, अपमानित करना या बदनाम करने की कोशिश करना, इसे साइबर बुलिंग कहा जाता है. इस के कई प्रकार हो सकते हैं, जैसे:
औनलाइन हैरसमेंट : किसी को अनचाहे मैसेज या धमकी भरे मैसेज बारबार भेजना.
डौक्सिंग : बिना अनुमति किसी की निजी जानकारी जैसे फोन नंबर, पता और फोटो सार्वजनिक कर देना.
ट्रोलिंग : जानबूझ कर अपमानजनक अथवा भड़काऊ कमेंट्स करना.
फर्जी अफवाहें फैलाना : किसी के बारे में अफवाहें या झूठी बातें फैलाना.
कैटफिशिंग : किसी की पहचान चुरा कर नकली प्रोफाइल बनाना और गुमराह करना.

साइबर बुलिंग से बचाने के लिए जरूरी कदम के बारे में भी बहन को जागरूक करना जरूरी है ताकि किसी तरह की घटना घटने पर वह घबरा कर कोई गलत कदम न उठाएं, कई बार टीनएजर्स डर से सुसाइड कर लेते हैं.

जागरूक बनें

सब से पहले साइबर बुलिंग के बारे में आप अपनी बहन को विस्तार से बताएं. ये भी समझाएं कि औनलाइन उसे कोई परेशान करें तो इसे हल्के में न लें. साइबर बुलींग के खिलाफ खड़ा होना बहुत जरुरी है.

सोशल मीडिया सेटिंग्स सुरक्षित करें

सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर प्राइवेसी सेटिंग्स चेक करें और उन्हें सुरक्षित बनाएं. अगर अनजान लोगों के फ्रैंड रिक्वेस्ट और मैसेज आते हैं तो इसे स्वीकार करने से मना करें. इस के साथ ही जब भी अपनी कोई तस्वीर या वीडियो पोस्ट करें तो शेयरिंग औप्शन में केवल दोस्तों को चुनें. इस के साथ ही बहन को पर्सनल जानकारी जैसे फोन नंबर, फोटो, घर का पता आदि किसी अनजान व्यक्ति से शेयर न करने का सुझाव दें. वहीं यह भी सुझाव दें कि सोशल मीडिया पर सभी से सम्मानजनक व्यहार करें और किसी से भी झगड़ने से बचें.

किताबे पढ़ने की आदत डालें

सोशल मीडिया पर समय बरबाद करने के बजाय आप अपनी बहन को किताबें पढ़ने की आदत डलवाएं. महिलाओं पर आधारित मैगजीन या किताब आप अपनी बहन को पढ़ने के लिए दे सकते हैं. इस में उन से जुड़ी कई जानकारियां उन्हें मिल जाएगी. किताब पढ़ने से एकाग्रता बढ़ती और कई नई चीजें जानने को मिलती हैं. वहीं सोशल मीडिया पर पड़े फालतू कंटैंट से मानसिक संतुलन बिगड़ता है.

साइबर बुलिंग होने पर क्या करें?

अगर कोई परेशान कर रहा है तो उस व्यक्ति को सब से पहले ब्लौक करें. इस के साथ ही अपमानजनक और धमकी भरे संदेशों का स्क्रीनशौट लें और रिपोर्ट करें. इस के साथ ही अगर मामला गंभीर है तो साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराएं. अगर साइबर बुलिंग के कारण वह परेशान महसूस करे तो उसे इमोशनल सपोर्ट दें और जरूरत पड़े तो किसी काउंसलर से संपर्क करें. इस के साथ ही लोगों से साइबर बुलींग पर खुल कर बात करें और दूसरों को भी प्रेरित करें, जिस से और भी लोगों को इस से सतर्क किया जा सके.

सोशल मीडिया का सही उपयोग करना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है इस के खतरों से सतर्क रहना. अगर आप की छोटी बहन सोशल मीडिया पर सक्रिय है, तो उसे जागरूक करना और सही सुरक्षा उपाय अपनाना बेहद आवश्यक है. आप की सतर्कता और सही मार्गदर्शन से वह साइबर बुलिंग से बच सकती है और डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रह सकती है.

Divorce : ऊंची जाति, धार्मिक पत्नी और कानूनी तलाक

Divorce : मर्दों ने अपनी खुदगर्जी और सहूलियत के लिए औरतों को जो धर्म की अफीम चटा रखी है, उस के साइड इफैक्ट अब सामने आने लगे हैं. कैसे यह जानने से पहले यह एक बार फिर समझ लेना जरुरी है कि दूसरे धर्मों की तरह हिंदू या सनातन या वैदिक धर्म भी कुछ ज्यादा ही ऊंची आवाज में कहता है कि औरत पांव की जूती है, गुलाम है जिसे शूद्रों की तरह कोई हक नहीं हैं.

ऊंची जाति वाले अब पत्नियों के धर्म प्रेम जो लत में तब्दील होता जा रहा है से इतने आजिज आने लगे हैं कि उन से छुटकारा पाने तलाक के लिए अदालत की चौखट पर गुहार लगाने मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि अब वे पत्नी को पहले की तरह घर से धकिया नहीं सकते वजह संविधान और कानून हैं, जिन्होंने औरतों को मर्दों के बराबर के हक दे रखे हैं.

भोपाल के कुटुंब न्यायालय में दायर एक दिलचस्प मुकदमे में, एक पीड़ित पति ने आरोप लगाया है कि उस की पत्नी अकसर बिना बताए धार्मिक यात्राओं पर निकल जाती है. अभीअभी कुंभ में डुबकी लगाने बिना पूछे प्रयागराज हो आई, गले में रुद्राक्ष की माला लटकाए थी. इस के कुछ दिन पहले वृंदावन चली गई थी और जब लौटी थी तो माथे पर सिंदूरबिंदी की जगह चंदनटीका लगाए थी. अब वह दिन रात टोनेटोटके और पूजापाठ में लगी रहती है. उस के पहनावे और इन हरकतों से सोसाइटी में उस का मखौल उड़ने लगा है.

ऐसे दर्जनों मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं जिन में पति अपनी पूजापाठी अतिधार्मिक पत्नी से तंग आ चुके हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि अदालतें इन पतियों की हालत पर रहम खाते तलाक की डिक्री देती हैं या फिर इन लगभग मनोरोगी पत्नियों के साथ गुजर करने की ही सजा कायम रहती है.

Varna System : बिना वर्ण व्यवस्था खत्म किए सामाजिक एकता का दिवा स्वप्न

Varna System : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कोलकाता के वर्धमान के साईं ग्राउंड से एक बार फिर वही बात कही जिसे वे पिछले 4 सालों से अलगअलग तरीके से दोहराते आ रहे हैं. वह बात है हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की. बकौल भागवत, यह हिंदू समाज है जो दुनिया की विविधता को स्वीकार कर के फलताफूलता है. उन के मुताबिक वे केवल हिंदू समाज पर इसलिए ध्यान दें क्योंकि वह देश का जिम्मेदार समाज है. (यानी बाकी सारे समाज गैरजिम्मेदार हैं).

इन गैरजिम्मेदार समाजों में कौनकौन सी जातियां शामिल हैं, यह उन्होंने नहीं बताया क्योंकि इस से बात उलझ जाती और जाति पर आ कर टिक जाती. अपने भाषण के अंत तक आतेआते तो उन्होंने विविधता और एकता में फर्क ही खत्म कर डाला.

हिंदू समाज की विविधता जिसे हर कोई बचपन में ही समझ और अपना लेता है यह है कि वह चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण में बंटा हुआ है. यह वर्ण व्यवस्था जो जातियों के जन्म की जिम्मेदार है में सब से निचले पायदान पर (85 फीसदी) शुद्र हैं. इन का तिरस्कार अनदेखी और इन्हें हर स्तर पर प्रताड़ित करने के मामले में बाकी तीन वर्ण (15 फीसदी) जरूर एकजुट हैं.

अब इस कोढ़ को खत्म किए बिना ही कोई एकता और मजबूती का राग अलापे तो उसे सपना नहीं बल्कि दिवा स्वप्न कहना ज्यादा सटीक होगा. जब तक शूद्रों यानी दलित, आदिवासी और पिछड़ों और सवर्णों के बीच रोटीबेटी के संबंध स्थापित होने पर हिंदू सवर्ण समाज के ठेकेदार जोर नहीं देंगे और शादी में जन्म पत्री मिलान के अवैज्ञानिक रिवाज को खत्म करने की बात नहीं कहेंगे, तब तक वे गोलमोल बातें कर वर्ण व्यवस्था को और पुख्ता करने का ही मैसेज देते नजर आएंगे.

Hindi Story : संभावना – दोस्ती और शादी की उलझन

Hindi Story : “तुम गंभीरतापूर्वक हमारे रिलेशन के बारे में नहीं सोच रहे,” प्रतिभा ने सोहन से बड़े नाजोअंदाज से कहा.“तुम किसी बात को गंभीरतापूर्वक लेती हो क्या?” सोहन ने भी हंस कर जवाब दिया.

दोनों ने आज छुट्टी के दिन साथ बिताने का निर्णय लिया था और अभी कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. दोनों कई दिनों से दोस्त थे और बड़े अच्छे दोस्त थे.

“लेती क्यों नहीं, जो बात गंभीरतापूर्वक लेने की हो. तुम मेरे सब से प्यारे दोस्त हो, मैं तुम से प्यार करती हूं, तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूं. यह बात बिलकुल गंभीरतापूर्वक बोल रही हूं और चाहती हूं कि तुम भी गंभीर हो जाओ,” प्रतिभा ने आंखें नचाते हुए जवाब दिया.

सोहन को उस की हर अदा बड़ी प्यारी लगती थी और इस अदा ने भी उस के दिल पर जादू कर दिया. पर उस ने एक बात नोट की थी प्रतिभा के बारे में कि उस ने कई पुरुष मित्रों से मित्रता की थी, पर किसी से उस की मित्रता ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं थी.

“देखो प्रतिभा, जहां तक दोस्ती का सवाल है, तो तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो. तुम्हारे साथ समय बिताना मुझे बहुत पसंद है. इसीलिए मैं तुम से समय बिताने के लिए अनुरोध करता हूं. और जब कभी तुम साथ में समय बिताने का कार्यक्रम बनाती हो तो झट से तैयार हो जाता हूं. पर, शादी अलग चीज है. दोस्त कोई जरूरी नहीं पतिपत्नी ही बनें. मेरी कई महिलाएं दोस्त हैं. तुम्हारे भी कई पुरुष दोस्त हैं. सभी से शादी तो नहीं हो सकती. हम दोस्त ही भले हैं,” सोहन ने समझाया.

“देखो, शादी तो किसी से करनी ही है, तो क्यों न उस से करें, जिस से सब से ज्यादा विचार मिलता है. मुझे लगता है कि इस मामले में हम सब से अच्छी जोड़ी हैं,” प्रतिभा ने उत्तर दिया.

“प्रतिभा, मैं तुम्हें वर्षों से जानता हूं और यह भी जानता हूं कि कई पुरुषों से तुम्हारी दोस्ती हुई है, पर किसी के साथ तुम्हारी बहुत दिनों तक नहीं निभी. फिर मुझ से कैसे निभा पाओगी? शायद कुछ दिनों के बाद तुम्हारा दिल किसी और पर आ जाएगा. फिर तुम्हारी गंभीरता धरी की धरी रह जाएगी,” सोहन ने हंसते हुए कहा.

“ऐसा नहीं होगा. दूसरों की बात और है, तुम्हारी बात और है. मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं. अन्य लोगों से बस परिचय है, दोस्ती है,” प्रतिभा ने गंभीरतापूर्वक कहा.

“थोड़ा समय दो मुझे सोचने के लिए. और हां, तुम भी गंभीरतापूर्वक सोचो. शादी एक गंभीर मसला है और इसे गंभीरतापूर्वक ही सोचना चाहिए,” सोहन ने कौफी का अंतिम घूंट लिया और कप रखते हुए खड़ा हो गया. प्रतिभा पहले ही अपनी कौफी खत्म कर चुकी थी.

“चलो, पार्क में टहलते हैं,” सोहन ने कहा. फिर दोनों पार्क में टहलने चले गए. कुछ देर बाद दोनों अपनेअपने घर वापस आ गए.

घर आ कर सोहन प्रतिभा की बातों पर विचार करने लगा. प्रतिभा उस से शादी करना चाहती है. प्रतिभा उसे भी बहुत अच्छी लगती है, पर दोस्त की तरह. शादी की बात उस ने उस से कभी सोची ही नहीं. और वजह यही थी कि प्रतिभा बड़ी ही चंचल स्वभाव की लड़की थी. न जाने कितने पुरुष मित्रों से उस की दोस्ती हुई, घनिष्ठता हुई और फिर समाप्त भी हो गई. यद्यपि उस के साथ वह हमेशा जुड़ी रही. और अभी भी वह कहती है कि उस के साथ वह बेहद गंभीर है और कभी भी उस का साथ नहीं छोड़ेगी. पर उस के चंचल स्वभाव के कारण उस की बातों पर यकीन करना उसे गंवारा नहीं हो रहा था. अतः वह बारबार कहता रहा है कि वह प्रतिभा को सब से अच्छी दोस्त तो मानता है, पर उस के साथ शादी करने का विचार नहीं रखता है. कभीकभी प्रतिभा इस बात पर नाराज भी हो जाती थी. वह खुद को दो भागों में बंटा हुआ पाता था. उस का दिल तो कहता था कि प्रतिभा के साथ जीवन बिताए, पर दिमाग कहता था कि जो प्रतिभा किसी के साथ दोस्ती नहीं निभा सकी, वह जीवनभर का साथ कैसे निभाएगी. उस का दिल प्रतिभा की बातों पर विश्वास करने को कहता था, पर दिमाग उस के व्यवहार की ओर इशारा करता था, जो किसी के साथ अधिक दिनों तक अच्छे संबंध बनाने में सक्षम नहीं था. पर इस दुविधा में आखिर वह कब तक झूलता रहेगा. उसे कोई न कोई तो निर्णय लेना ही होगा.

उस ने अपने विचारों को एक पन्ने पर उतारना शुरू कर दिया. उसे आश्चर्य हुआ कि वह आज मोबाइल के जमाने में पत्र लिख रहा है. पर वह अपने विचार सुव्यवस्थित तरीके से प्रतिभा के सामने रखना चाहता था और इस के लिए समय चाहिए था, शब्दों का उचित चयन चाहिए था.
उस ने लिखा, “प्रतिभा, मैं तुम्हें दोस्त के रूप में देखता था, देखता हूं और देखते रहना चाहता हूं. तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो, इस में कोई दो राय नहीं. यही कारण है कि दोस्त के रूप में मैं तुम्हें खोना नहीं चाहूंगा. रोमांस या शादी के कारण हमारी दोस्ती के रिश्ते पर सदा के लिए दुष्प्रभाव पड़ सकता है. मैं ने तुम्हें कई पुरुषों के साथ मित्रता कर उन से दूर होते हुए देखा है. इस कारण कहीं न कहीं मेरे मन में यह भावना आती है कि तुम मेरे प्रति वफादार नहीं रह पाओगी.

“माफ करना, यदि मेरी बात तुम्हें बुरी लगे. पर, मैं अपनी बैस्ट फ्रैंड से अपनी बात कहने में संकोच नहीं कर सकता. सीधे बात करने के स्थान पर पत्र लिखने का कारण बस यही है कि मैं सोचविचार कर सिलसिलेवार तुम्हें अपने विचार बताना चाहता हूं. रूबरू बात करने में तो तुम मेरी बात पूरी होने के पहले ही काट दोगी. आखिर तुम मेरी सब से प्यारी दोस्त जो हो.

“हां, मैं भविष्य की संभावना पर बंदिश नहीं लगा रहा. तुम भी सोच कर देखो, क्या हम पतिपत्नी बन कर या प्रेमीप्रेमिका बन कर अपनी अच्छीखासी दोस्ती को बरबाद नहीं कर देंगे? आशा है, तुम मेरी बात पर गंभीरता से विचार कर के किसी निष्कर्ष पर पहुंचोगी.”

सोहन ने इसी संदेश को टाइप कर प्रतिभा को व्हाट्सअप कर दिया. पहले तो प्रतिभा को इसे पढ़ कर बुरा लगा. पर शांत मन से सोचने पर उसे भी अहसास हुआ कि शादी तो दोनों व्यक्तियों की सहमति से होनी चाहिए. सोहन ने पूरी ईमानदारी के साथ अपना विचार व्यक्त किया है. यदि उस के मन में मेरे प्रति विश्वास नहीं बन पा रहा, तो फिर वैसी शादी विवाद और मतभेद को ही जन्म देगी. यदि आगे चल कर सोहन को उस पर विश्वास हुआ, जिस का कि उसे पूरा विश्वास है, क्योंकि वह सोहन से लंबे समय से जुड़ी रही है, तो शादी की भी जा सकती है.

उस ने जवाब लिखा, “ठीक है, हम दोस्त ही भले हैं, तब तक जब तक कि तुम्हें मेरी वफा पर यकीन न हो जाए.”

सोहन यह जवाब सुन कर खुश हो गया. उस ने जवाब में थम्प्सअप का इमोजी पोस्ट कर दिया.

इस के बाद भी दोनों की दोस्ती जारी रही, परंतु प्रतिभा ने फिर कभी शादी की बात नहीं उठाई. कुछ ही वर्षों के बाद सोहन के मातापिता उस से शादी करने का दवाब बनाने लगे. सोहन ने अपनी ओर से कई लड़कियों के बारे में सोचा, जो उस की जिंदगी में थीं. पर कोई उसे पूरी तरह से जंचती नहीं थी. मातापिता जिन लड़कियों की शादी के लिए सिफारिश करते, उन्हें वह जानता नहीं था. अतः शादी जैसे गंभीर मामले में अनजान लड़की से जुड़ना नहीं चाहता था. फिर जिस बात के लिए वह प्रतिभा से शादी नहीं करना चाहता था, वह उसे सभी लड़कियों में नजर आई. आखिर औफिस में काम करने वाली लड़कियों का समयसमय पर किसी पुरुष सहकर्मी से करीब होना स्वाभाविक था. और फिर प्रोजैक्ट पूरा होने पर वे अपनीअपनी राह पर होते थे. सोहन को महसूस हुआ कि प्रतिभा ही उस के लिए सब से उपयुक्त लड़की है.

एक दिन मौका निकाल कर उस ने प्रतिभा से बात की. “प्रतिभा, मैं ने काफी सोचविचार कर देखा कि तुम से बेहतर जीवनसाथी कोई नहीं हो सकता. आखिर औफिस के काम के सिलसिले में मैं भी दूसरी लड़कियों के करीब आता हूं. पर इस का मतलब यह नहीं कि मैं उन के करीब हो गया और उन के साथ कोई गंभीर रिश्ता रखना चाहता हूं. अब मैं समझ सकता हूं कि तूम पर मैं ने जो आरोप लगाए कि तुम किसी के साथ वफादार नहीं रह सकती, वह गलत है. क्या तुम मुझ से अभी भी शादी करने का विचार रखती हो?”

“अगर मैं ना कहूं तो…?” प्रतिभा ने शोखी से कहा.

“तो फिर मैं क्या कर सकता हूं? मातापिता द्वारा बताई किसी अनजान लड़की से शादी करनी पड़ेगी,“ निराश स्वर में सोहन ने कहा.

“तुम ने कहा था ना कि मैं भविष्य की संभावना पर बंदिश नहीं लगा रहा,” मैं उस संभावना की प्रतीक्षा कर रही थी. और आज वह प्रतीक्षा पूरी हो गई है. यस, आई विल मैरी यू,” प्रतिभा ने कहा.

सोहन के चेहरे पर प्रसन्नता भरी मुसकान तैर गई.

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