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Love Story : जानपहचान – हिमांशु से मिलने को क्यों बेकरार थी सीमा

Love Story : जुलाई की एक शाम थी. कुछ देर पहले ही बरसात हुई थी. मौसम में अभी भी नमी बनी हुई थी. गीली मिट्टी की सौंधी सुगंध चारों ओर फैली हुई थी. सीमा को 2 घंटे हो गए थे. वह अपने कपड़े फाइनल नहीं कर पा रही थी, ‘क्या पहनूं? बरसात भी बंद हो गई है’. समय देखने के लिए उस ने घड़ी पर नजर डाली, ‘साढ़े 5 बज गए. लगता है मुझे देर हो जाएगी.’ उस ने जल्दी से कपड़े चेंज कर मां को आवाज लगाई, ‘‘मां, मैं जा रही हूं, मुझे आने में शायद देर हो जाएगी,’’ सीमा लगभग भागती हुई रैस्टोरैंट पहुंची. लतिका मैम ने उसे देखते ही कहा, ‘‘कम, लतिका.’’

‘‘यस, मैम,’’ यह कहते ही सीमा उस लेडी के पीछे हो ली. लतिका नए हेयरकट में बेहद सुंदर लग रही थी. साथ ही टाइट जींस और टाइट टीशर्ट, गले में बीड्स की माला और पैरों में सफेद रंग की हाई हील. उस के हेयरकट के साथ उस की सुंदरता को और बढ़ा रहे थे. कालेज में हमेशा लतिका मैडम को साड़ी और सूटसलवार में ही देखा था. उसे थोड़ा अटपटा जरूर लगा, लेकिन ठीक है उसे क्या लेनादेना, वह तो सिर्फ अपने काम के लिए आई है. ‘‘रैस्टोरेंट ढूंढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई,’’ लतिका मैडम ने उस के कपड़ों पर नजर डालते हुए पूछा.

सीमा लौंग स्कर्ट और ढीला सा कुरता पहन कर आई थी और बालों की पोनी बना कर उन्हें बांधा था. ‘‘नहीं मैडम, ज्यादा परेशानी नहीं हुई.’’

‘‘अच्छा है, अभी हिमांशुजी आ रहे हैं. तुम अपने सारे सर्टिफिकेट तो लाई हो न.’’ ‘‘जी मैडम,’’ उस ने अपने आसपास देखा और बोली, ‘‘वैसे मुझे लगा था कि देर हो गई है.’’

लतिका के साथ बैठा रोनी हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हें अगर देर हो जाती तो यह रोल किसी और को मिल जाता. वैसे भी बड़े लोग जल्दी कहां आते हैं.’’

लतिका मैडम ने उसे घूरा और बोली, ‘‘रोनी, तुम कब सीरियस होगे,’’ फिर सीमा की तरफ देख कर बोली, ‘‘इसे तो तुम जानती हो न, यह रोनी है.’’ ‘‘यस, मैडम.’’

तभी 2 और लड़कों ने रैस्टोरैंट में प्रवेश किया. वे तेजी से चलते हुए लतिका मैडम की तरफ आ रहे थे. ‘‘आज तो गरमी ने हद कर दी है,’’ उस में से एक ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और पसीना पोंछने लगा.

‘‘इतनी देर कहां कर दी, सुमेर.’’ ‘‘मैडम बरसात हो रही थी इसलिए थोड़ी देर हो गई.’’

‘‘यह तो अच्छा है कि अभी तक हिमांशुजी नहीं आए हैं वरना…’’ ‘‘कितनी उमस है आज,’’ फिर लतिका मैडम की तरफ देख कर बोला, ‘‘मैडम, हिमांशुजी आएंगे भी या नहीं या आज फिर खाली हाथ लौटना होगा.’’

‘‘मेरी उन से फोन पर बात हुई थी, वे थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले हैं,’’ वेटर को और्डर दे कर वह सीमा का सब से परिचय कराने लगी, ‘‘सीमा, यह सुमेर है और यह अर्जुन.’’ ‘‘मैडम, नम्रता और दीपाली नहीं आईं.’’

‘‘वे आज नहीं आएंगी क्योंकि उन का घर बहुत दूर है. इस बारिश ने सबकुछ गड़बड़ कर दिया.’’ वे सब आपस में बातें करने लगे. सीमा आसपास मौजूद एकएक वस्तु का मुआयना करने लगी. वह सोच रही थी, ‘कैसे होंगे हिमांशुजी जिन का सब इंतजार कर रहे हैं.’

उस ने अपने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, साथ वाली टेबल पर अधेड़ उम्र के 2 आदमी बैठे थे. ‘‘अरे यार, फिर से बीवी का फोन है, जरा सा मजा भी नहीं लेने देती.’’

‘‘सुन ले न,’’ दूसरा आदमी बोला. ‘‘हां, तू विस्की और्डर कर मैं फोन सुन कर आता हूं.’’

कुछ देर बाद दोनों शराब की चुसकियों के साथ पता नहीं किस के खयालों में खो गए. ‘‘ये आजकल के लड़कों ने अच्छी रीत बना रखी है, डेट पर जाने की.’’

‘‘सीमा, लो न, कहां खो गई हो,’’ उस ने देखा उस के सामने बियर की बोतलें पड़ी हैं.

‘‘नहीं मैडम, मैं नहीं पीती.’’ ‘‘अरे लो न, आज से तुम हमारी मंडली में शामिल हो रही हो तो हम जैसा तो बनना ही पड़ेगा.’’

‘‘नहीं मैडम, प्लीज, आप मेरे लिए कौफी मंगवा दें.’’ ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी. आज पहला दिन है इसलिए आज तुम्हें छोड़ देते हैं, लेकिन आगे से नहीं,’’ लतिका मैडम ने यह कह कर वेटर को आवाज लगाई.

2 टेबल छोड़ कर एक नवविवाहित जोड़ा बैठा हुआ था. सीमा ने देखा कि उस नवविवाहिता ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी और बहुत मेकअप किया हुआ था. उस की साड़ी का पल्लू बारबार गिर जाता था. पता नहीं वह अपने पति को आकर्षित कर रही थी या फिर हौल में बैठे लोगों को. पति उस के मुंह में चम्मच से आइसक्रीम डाल रहा था और वह अदाओं से उस की तरफ देख रही थी. बीचबीच में वह अपने आसपास भी देख लेती थी.

‘‘क्या आइटम है,’’ तभी उस के कानों में आवाज आई, सुमेर उस नवविवाहिता के लिए कह रहा था. ‘‘छोड़ो न उसे, तुम इधर ध्यान दो,’’ लतिका मैडम ने उसे डांट लगाते हुए कहा.

‘‘स्क्रिप्ट क्या है मैडम?’’ ‘‘अभी मुझे कुछ नहीं पता, हिमांशुजी के आने पर ही सब फाइनल होगा.’’

‘‘वैसे प्ले का नाम क्या है?’’ ‘‘एक मुट्ठी आसमान.’’

‘‘और हीरोइन कौन है?’’ ‘‘तुम्हारे सामने तो बैठी है.’’

‘‘क्या?’’ सब ने आश्चर्य से सीमा को देखा, जैसे कोई अनोखी लड़की देख ली हो.

‘‘अरे, अभी नाम फाइनल नहीं हुआ है. वैसे मैं ने सीमा को कालेज के प्ले में परफौर्म करते देखा है. क्या कमाल की अदाकारा है.’’ ‘‘लेकिन क्या यह हिमांशुजी को…’’ अर्जुन कहतेकहते रुक गया.

‘‘हां, क्यों नहीं.’’ सीमा अपनेआप में सिकुड़ रही थी. भले ही उस के प्ले ने कालेज में धूम मचाई थी, पर प्रोफैशनली वह पहली बार किसी से मिलने आई थी, ऐसी अजीबोगरीब जगह पर.

‘‘आप कुछ बोलती भी हैं या सिर्फ प्ले में ही अपनी जबान खोलती हैं,’’ रोनी उस का मजाक उड़ाते हुए बोला तो सब

हंस पड़े. ‘‘अभी नई है न, फिर देखना,’’ लतिका मैडम ने उस का बचाव किया.

‘‘अच्छा, कौफी तो लो.’’ ‘‘हां,’’ ऐसा कह कर सीमा ने हलकेहलके सिप लेने शुरू किए और बाकी सब बियर की बोतलें खाली करने लगे.

सीमा को ये सब अजीब लग रहा था. लतिका मैडम की आजादी, उस की तरफ उन का झुकाव, क्यों कर रही हैं वे उस के लिए, क्यों उसे ही मिलने के लिए बुलाया है, इसी उधेड़बुन में डूबी सीमा ने फिर सोचा, ‘बस, एक बार काम मिल जाए तो अपनी प्रतिभा दिखा दूंगी और फिर सब बातों से पीछा छूट जाएगा.’ तभी अर्जुन ने अपनी घड़ी देखी, ‘‘मैडम, लगता है आज भी हिमांशुजी से मुलाकात नहीं होगी. बहुत देर हो गई है मुझे, इसलिए जाना पड़ेगा.’’

‘‘फिर तो मुझे भी तेरे साथ जाना पड़ेगा क्योंकि मैं तेरे साथ बाइक पर आया था. वरना 200 रुपए खर्च कर के वापस जाना पड़ेगा,’’ सुमेर कहते हुए खड़ा हो गया. ‘‘मैडम, मैं भी चलती हूं. बहुत देर हो गई है. इतनी रात तक मैं अकेली कभी

भी घर से बाहर नहीं रही,’’ सीमा भी खड़ी हो गई. ‘‘लेकिन तुम नहीं जा सकती सीमा क्योंकि ये दोनों तो पहले भी हिमांशुजी से मिल चुके हैं और इन के रोल फाइनल हैं, लेकिन यह तुम्हारी पहली मुलाकात है, फिर बड़े आदमी तो हमेशा देर से ही आते हैं. अगर तुम्हारे जाने के बाद हिमांशुजी आए तो तुम्हें न पा कर बुरा मान जाएंगे और यह न तो तुम्हारे लिए सही होगा और न ही मेरे लिए,’’ लतिका मैडम एक सांस में इतना कुछ बोल गई.

कुछ देर बाद रोनी भी बहाना बना कर चलता बना. ‘‘बहुत देर से तलब लग रही थी, अब मौका मिला है,’’ सब के जाने के बाद लतिका ने सिगरेट जला ली. सीमा को उस का धुआं बरदाश्त नहीं हो रहा था. चारों तरफ शराब और सिगरेट की गंध फैली हुई थी. सीमा का मन कर रहा था कि वह वहां से उठ कर भाग जाए पर हिमांशुजी से मिलना भी जरूरी था.

‘‘तुम्हें पता है, इस रोल के लिए कितनी लड़कियां मेरे पास आई थीं, पर मुझे सब से ज्यादा प्रतिभा तुम में दिखाई दी और इसलिए मैं ने तुम्हें हिमांशुजी से मिलवाने का फैसला किया है.’’ तभी लतिका मैडम बोली, ‘‘वह देखो, हिमांशुजी आ गए हैं.’’

सीमा ने देखा, एक अधेड़ उम्र का गंजा आदमी उस की ओर चला आ रहा है. उस ने महंगे कपड़े पहने हुए हैं. उस के साथ 2 और आदमी हैं पर हिमांशुजी ने उन्हें वहीं रुकने का इशारा किया. ‘‘अरे, बैठोबैठो, मुझे बहुत ज्यादा देर तो नहीं हो गई लतिका,’’ कहते हुए वे सीमा के पास वाली कुरसी पर बैठ गए.

‘‘अरे, नहीं सर.’’ सीमा हैरानी से उन्हें देखे जा रही थी.

‘‘सर, यह है सीमा. मैं ने आप से इस के बारे में बात की थी.’’ उस ने सीमा को ऐसे देखा जैसे हलाल करने से पहले कसाई अपने बकरे को देखता है. सीमा ने डर कर अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘ओह, तो आप हैं सीमाजी.’’ ‘‘यह बहुत प्रतिभावान है सर, आप इस के सर्टिफिकेट्स देखिए.’’

‘‘हांहां, जरूर देखेंगे इन के सर्टिफिकेट्स,’’ उन की नजर अभी भी सीमा के चेहरे पर गड़ी हुई थी. ‘‘सीमा दिखाओ, इन्हें अपने सर्टिफिकेट्स.’’

‘‘जी, मैडम.’’ ‘‘बहुत बढि़या,’’ उन्होंने एक उड़ती हुई नजर उन सर्टिफिकेट्स पर डाली, ‘‘वैसे तुम ने इन्हें सब समझा दिया है न,’’ उन्होंने अपना एक हाथ सीमा के कंधे पर रख दिया.

‘‘समझाना क्या है सर, आजकल की लड़कियां तो वैसे भी बहुत समझदार होती हैं,’’ और उस ने अपनी एक आंख झपका कर इशारा किया. ‘‘लगता है आप वैजिटेरियन हैं,’’ हिमांशुजी ने उस के आगे पड़े हुए कौफी के कप को देख कर कहा.

‘‘जी, मैं समझी नहीं.’’ ‘‘आप कौफी पी रही हैं.’’

कौफी और वैजिटेरियन का संबंध सीमा को समझ नहीं आया. ‘‘हां, तो सीमा हमारी शर्तें क्याक्या होंगी, वह तुम्हें लतिका समझा देगी,’’ उन का हाथ धीरेधीरे सीमा की पीठ पर सरकने लगा था.

‘‘जी, सर,’’ सीमा की सोचनेसमझने की शक्ति खत्म होती जा रही थी. ‘‘रिहर्सल कब से शुरू होगी वह भी तुम्हें लतिका ही समझा देगी,’’ कहते हुए इस बार उन का हाथ सीमा की जांघ पर आ गया. सीमा को लगा जैसे हजार चींटियां उस के बदन पर रेंग रही हैं.

सीमा झटके से खड़ी हो गई, ‘’मैडम मुझे अब चलना चाहिए.‘’ ‘’लेकिन अभी तो जानपहचान नहीं हुई है,‘’ लतिका बोली.

सीमा का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था. अपना पर्स उठाते हुए तेजी से उस ने कहा ‘’इतनी जानपहचान मेरे लिए काफी है.‘’ वह भाग कर बाहर आ गई और घर

की ओर बढ़ने लगी. पूरा घटनाक्रम उस के दिमाग में चल रहा था. हिमांशु का उसे देखना, छूना सर्टिफिकेट तो मात्र बहाना था. यह सब लतिका की एक चाल थी. फिल्म दिलवाने के नाम पर वह उसे किसी और ही काम में फंसा रही थी. यह सब सोचते हुए उसे लगा मानो दिमाग की नसें फट जाएगी. वह जोरजोर से सांस लेने लगी. बाहर अभी भी बहुत उमस थी पर उसे वह उमस अंदर की ठंडी हवा से कहीं ज्यादा अच्छी लग रही थी. वह एक मुट्ठी आसमान के लिए अपना सारा जहां कुरबान नहीं कर सकती थी.

Romantic Story : आधा सच – करण की किस बात से परेशान हो गई थी रश्मि?

Romantic Story : बहुत दिनों से सोच रही हूं. आज भी जब हवा का एक हलका सा झोंका बदन को छू कर निकलता है तो उस खुशबू का एहसास करा देता है, पर यह खुशबू तो लगातार आ रही है. कुछ देर बैठे रहने के बाद भी उस खुशबू का एहसास रहा. रश्मि ने आसपास झांका, फिर अपने कमरे की खिड़की से झांक कर देखा.

नीचे वाले घर में नए किराएदार अपना सामान रख रहे थे. कुछ मजदूर बाहर खड़े ट्रक से सामान अंदर ला रहे थे. उस ट्रक के पास एक सजीला नौजवान सफेद कमीज और काली पैंट पहने मजदूरों को सामान यथास्थान रखने का निर्देश दे रहा था. ‘इस का मतलब मेरे सपनों का राजकुमार हमारे नीचे वाले घर में किराएदार के रूप में रहने आया है,’ यह सोचते हुए रश्मि के मन में गुदगुदी होने लगी और वह वापस अपने पलंग पर आ गई.

कालेज जाते समय जब रश्मि रास्ता पार कर रही थी तब उस ने उस नौजवान को पहली बार देखा था. उसे देखते ही रश्मि का दिल जोर से धड़कने लगा. फिर तो पिछले 15 दिन में उस ने 3-4 बार उसे अपनी सोसायटी में देखा. जब भी वह आसपास होता तो एक भीनीभीनी सी खुशबू का झोंका रश्मि के मन को सराबोर कर देता.

2-3 दिन से ज्वर के कारण रश्मि कालेज नहीं जा पाई थी, तो उस का हालचाल जानने उस की सहेली कमल उस से मिलने आ गई. रश्मि ने जब कमल को उस युवक के बारे में बताया तो वह भी उसे छेड़ने लगी कि अब तो रोज ऊपरनीचे करते समय सपनों के राजकुमार के दर्शन होते होंगे. बातों ही बातों में कमल ने बताया कि कालेज में अंगरेजी की नई प्रोफैसर आई हैं. इतने में मां जूस के 2 गिलास ले कर आईं और बोलीं, ‘‘इसे पी कर तैयार हो जाओ. दोपहर का खाना हम लोग बाहर खाएंगे, क्योंकि रसोइए ने 3-4 दिन की छुट्टी ली है.’’

सुनते ही रश्मि के होश उड़ गए कि अब तो खाना बाहर खाना पड़ेगा, उसे खुद ही चायनाश्ता अपने व मां के लिए बनाना पड़ेगा, क्योंकि उस की आधुनिक मां को किचन के काम से ऐलर्जी थी. वे तो एक भी बार चाय नहीं बनाती थीं. किचन में काम करना उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं था. किचन में काम करना उन्हें गुलामी जैसा लगता था.

मम्मीपापा और रश्मि तैयार हो कर नीचे आए तो देखा कि एक 25-26 साल की महिला साड़ी का पल्लू कमर में खोंसे बालों का बेतरतीब ढंग से जूड़ा बांधे सामान इधर से उधर रख रही है, पर वह युवक कहीं नजर नहीं आ रहा है. उस महिला की नजर जैसे ही रश्मि के परिवार पर पड़ी तो उस ने बड़ी शालीनता से नमस्ते किया.

तभी पापा ने हमारा परिचय कराते हुए कहा कि यह मिसेज किरण सूरज हैं. सूरज व किरण हमारे नए किराएदार हैं. मिसेज शब्द रश्मि के दिमाग पर हथौड़े की तरह बजने लगा यानी उस के सपनों का राजकुमार सूरज शादीशुदा है, उस का दिल बैठ गया. हालात पर काबू पाने के लिए वह जल्दीजल्दी कार में जा कर बैठ गई. घर वापस आते ही वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर के लेट गई. काफी देर सोचने के बाद वह सो गई. जब सो कर उठी तो अपनेआप को उस ने समझा लिया था कि चलो, बात आगे बढ़ने से पहले ही खत्म हो गई.

शाम को उस ने मुंह धोया फिर अपने तथा मम्मी के लिए चाय बनाई. चाय पी कर मम्मी ने कहा, ‘‘थोड़ा नीचे जा कर नए किराएदारों से मिल लो, मैं तो नहीं जा सकती, क्योंकि मेरे सिर में दर्द है. आ कर फिर रात का खाना भी बाहर से और्डर कर देना.’’

मन न होते हुए भी रश्मि नीचे आई तो देखा कि किरण अभी भी उसी साड़ी में वैसे ही सामान कमरे में सजा रही है और उस के रसोईघर से बहुत अच्छी खुशबू आ रही है. खुशबू से रश्मि की भूख जाग गई. उस से दोपहर को भी खाना सही से नहीं खाया गया था.

रश्मि को देखते ही किरण ने दौड़ कर उस का स्वागत किया और उसे ड्राइंगरूम में बैठाया. कुछ ही देर में किरण ने ड्राइंगरूम को बहुत अच्छे ढंग से सजा दिया था. रश्मि को बैठा कर किरण रसोईघर से उस के लिए चाय व नाश्ता ले आई. प्लेट में तले हुए पकौड़े देख कर रश्मि ने मुंह सिकोड़ लिया.

रश्मि नाश्ते के लिए मना करने वाली थी कि किरण ने प्लेट से एक पकौड़ा उठा कर रश्मि के मुंह में यह कह कर डाल दिया कि आप हमारे घर पहली बार आई हैं, कुछ तो खाना ही पड़ेगा.

पकौड़े इतने स्वादिष्ठ थे कि पहला पकौड़ा खाने के बाद रश्मि अपनेआप को रोक नहीं पाई और 5 मिनट में ही उस ने प्लेट खाली कर दी. अपनी व्यस्तता देख कर उसे खुद पर ग्लानि होने लगी. फिर उस ने किरण से कहा कि अगर आप लोगों को किसी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा. जल्दीजल्दी सीढ़ी चढ़ कर वह अपने कमरे में आ गई.

शाम को रसोइए के न आने के कारण डिनर का प्रोग्राम बाहर ही था. रेस्तरां में मम्मीपापा के साथ खाना खाते हुए उस ने देखा कि सामने वाली टेबल पर वही युवक यानी सूरज एक स्मार्ट युवती के साथ बैठ कर डिनर कर रहा है.

अपनी तरफ पीठ होने के कारण रश्मि उस युवती का चेहरा तो नहीं देख पाई, लेकिन उस के बालों का जूड़ा बांधने का ढंग तथा उस का स्टाइल देख कर साफ पता चल रहा था कि यह महिला एक आधुनिका है.

अपनी टेबल पर अंधेरा होने के कारण सूरज उस के मम्मीपापा को नहीं देख पाया. अचानक उसे किरण पर बहुत दया आने लगी. रात को वह सूरज के चरित्र के बारे में सोचने लगी. उसे लगा कि उस ने तो अपनेआप को सही समय पर संभाल लिया लेकिन बेचारी किरण का क्या होगा, उसे तो पता भी नहीं कि उस का पति बाहर किस के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है.

अगले दिन रश्मि कालेज जाने के लिए सीढि़यां उतर रही थी तो उस ने देखा कि किरण अपने पति के लिए किचन में नाश्ता व खाना तैयार कर रही है. उस ने सीढि़यों से ही किरण को सुप्रभात कहा और तेजी से कालेज के लिए निकल गई.

कालेज जा कर पता चला कि अंगरेजी की जो नई टीचर आने वाली थीं, वे 2 दिन बाद जौइन करेंगी. क्लास खाली देख कर सभी दोस्तों ने मिल कर शाहरुख खान की नई पिक्चर देखने का प्रोग्राम बनाया.

फिल्म समाप्त होने के बाद जैसे ही रश्मि व उस की सहेलियां बाहर निकलीं तो उस ने देखा कि सूरज भी अपनी उस आधुनिका के साथ फिल्म देखने आया है. हाईहील पहने उस आधुनिका का चेहरा भीड़ के कारण रश्मि नहीं देख पाई, लेकिन इस बार उस ने अपने दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं डाला.

घर आ कर उस ने देखा कि नीचे ताला लगा हुआ है. ‘लगता है किरण कहीं बाहर गई है,’ सोचते हुए रश्मि अपने कमरे में आ गई. किरण से अब उस को सहानुभूति हो गई थी. बेचारी अपने पति के लिए कितना काम करती है. अच्छा खाना पकाती है, लेकिन उस का पति किसी आधुनिका के साथ बाहर घूमता रहता है.

आज रसोइया आ गया था, इसलिए उन्हें खाना खाने बाहर नहीं जाना पड़ा. अगले दिन रश्मि तबीयत खराब होने के कारण कालेज नहीं जा पाई. किरण ने जब उस की तबीयत के बारे में सुना तो वह उस के लिए टमाटर का स्वादिष्ठ सूप बना कर उस का हालचाल पूछने घर आई.

सूप पी कर रश्मि को बहुत अच्छा लगा. साथ ही रश्मि ने सोचा कि वह किरण को सूरज की असलियत बता दे ताकि वह किचन की चारदीवारी से बाहर निकल कर खुद को सजाएसंवारे तथा कुछ पढ़लिख ले ताकि सूरज उस आधुनिका के बजाय किरण को साथ ले कर घूमे.

अगले दिन सवेरेसवेरे खटरपटर की आवाज से रश्मि की आंख खुल गई. ‘शायद किरण किचन में अपने पति के लिए खाना बना रही है,’ रश्मि ने सोचा. अब वह स्वस्थ थी. उठ कर वह भी कालेज के लिए तैयार हो गई.

जब वह कालेज के लिए निकली तो देखा कि मां अभी सो कर उठी हैं. उस ने मां को बाय किया और कालेज के लिए निकल गई. नीचे देखा तो ताला लगा हुआ था. सोचा कालेज से आ कर वह किरण से बात करेगी.

आज कालेज में अंगरेजी की नई लैक्चरर की क्लास थी. रश्मि की सीट खिड़की के पास थी, जो कोरिडोर में खुलती थी. खिड़की से उस ने देखा कि मैडम आ रही हैं, ‘‘अरे, यह तो वही हाईहील, जूड़ा बांधने का वही ढंग, वही स्टाइल. अरे, यह तो सूरज की गर्लफ्रैंड है यानी कि हमारी अंगरेजी की नई टीचर.’’

उसे बड़ा गुस्सा आया. उस ने सोचा, ‘चलो, आज इस का चेहरा भी देख लेते हैं,’ लेकिन जैसे ही मैडम ने कक्षा में प्रवेश किया और रश्मि की नजर उस के चेहरे पर पड़ी तो उस के होश उड़ गए… ‘अरे, यह तो किरण है,’ वही आधुनिका जिसे उस ने कई बार सूरज के साथ घूमते देखा, लेकिन उस का चेहरा नहीं देख पाई. फिर उसे ध्यान आया कि किचन में खाना बनाते हुए किरण का चेहरा जो हाथ धो कर अपने पल्लू से पोंछती है, आज वही किरण उस के सामने खड़ी लगातार अंगरेजी में लैक्चर दे रही है. उस के शब्द रश्मि के सिर के ऊपर से निकलते जा रहे थे, लेकिन कानों ने सुनना बंद कर दिया था.

Family Story : ब्यूटी क्वीन – सोहा अपनी सफलता का श्रेय किसे दे रही थी?

Family Story : पूरा हौल दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था. तालियों की गड़गड़ाहट हौल को गुंजायमान कर रही थी. सभी दर्शकों की नजरें स्टेज पर मिस इंडिया का क्राउन पहनी सोहा पर टिकी हुई थीं. सोहा मुंह पर हाथ रखे खुशी के आंसू बहा रही थी और उन्हीं पनीली आंखों से अपने भाई सिरीश को औडियंस में ढूंढ़ रही थी. मिस इंडिया कौंटैस्ट के प्रश्नोत्तरी राउंड में पूछे गए सवालों का कितना सही जवाब दिया था उस ने. प्रश्न था, ‘‘आज आप इस मुकाम पर हैं, ऐसी क्या खूबी है आप में?’’ और सोहा का जवाब था, ‘‘आई बिलीव इन माईसैल्फ. आज मेरे पास जो कुछ है मैं उसी में ही खुशियां ढूंढ़ने की कोशिश करती हूं.’’

खूबसूरत तो वह थी ही, लेकिन उस के इस जवाब ने जजेज को काफी प्रभावित किया और उसे मिस इंडिया के खिताब से नवाजा गया. खैर, अब तो उस के पास बधाई देने वालों का तांता लग गया था. उस के मातापिता खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. वह खुद भी कह रही थी, ‘‘ऐसा लग रहा है कि मैं कोई ख्वाब तो नहीं देख रही हूं?’’

उस का भाई सिरीश अपनी छोटी बहन को इस मुकाम पर देख कर बहुत खुश था और सोहा अपनी इस सफलता का सारा श्रेय अपने भाई सिरीश को देते हुए कह रही थी, ‘‘थैंक यू भैया, यह सब आप ही के सहयोग से संभव हुआ है, मम्मीपापा तो पुराने विचारों के हैं, उन्हें भी तो आप ही ने मनाया और आप ही ने मिस इंडिया कौंटैस्ट की सारी जानकारी इकट्ठा कर मुझे इस के लिए तैयारी करने को कहा. आप ही मेरा सुरक्षा कवच बने, मेरे साथ घूमते रहे. कभी औडिशन के लिए तो कभी टैलेंट राउंड के लिए जाना होता था तो आप ही मेरे साथ थे वरना मम्मीपापा तो कितने डरते थे इस मौडलिंग के क्षेत्र से और उन का डरना वाजिब भी था, क्योंकि आजकल टीवी और अखबारों में आएदिन न जाने कितनी बुरीबुरी खबरें पढ़नेसुनने को मिलती हैं.’’ ठीक ही तो कह रही थी सोहा. इन 4 वर्षों में सिरीश ने सोहा को इस मुकाम तक पहुंचाने में कितनी मेहनत की थी. उस ने सोहा को अच्छे ब्यूटी कौंटैस्ट के ट्रेनिंग प्रोग्राम में दाखिला दिलवाया, जिस में उस ने पब्लिक स्पीकिंग, वौइस मौड्यूलेशन आदि की ट्रेनिंग ली.

प्रश्नोत्तरी राउंड के लिए अपनेआप को तैयार किया. ईवनिंग गाउन राउंड के लिए खुद को दर्शकों के सामने कैसे प्रैजेंट करना है, इस की ट्रेनिंग ली. 60 सैकंड के इंटरव्यू राउंड जिस पर जजेज का पूरा फैसला निर्भर होता है, को पास करना कोई आसान काम न था. सोहा ने भी इस कौंटैस्ट में भाग लेने के लिए मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. जहां कालेज की सारी सहेलियां कैंटीन से पिज्जा, बर्गर ले कर खातीं, वहीं सोहा अपनी मां के हाथ का बना खाना ले कर जाती. रोज सुबह उठ कर सोहा योगा और ध्यान साधना करती. नाश्ते में अंकुरित अनाज खाती और रात के खाने में सलाद और हरी सब्जियां खाती. इस के अलावा रोज पौना घंटा खुली हवा में सैर कर के आती. मात्र 18 वर्ष की उम्र से अपने मन पर इतना नियंत्रण रखना कोई मामूली बात नहीं और शायद इसीलिए सोहा का सपना आज पूरा हो गया था. तभी अचानक उस के मोबाइल पर फोन आया. दूसरी तरफ आकाश था, उस के पिताजी के दोस्त का बेटा और सोहा का प्यार. न चाहते हुए भी सोहा ने फोन उठाया और दूसरी तरफ से आकाश की आवाज सुनाई दी.

आकाश ने सोहा को बधाई देते हुए कहा, ‘‘बधाई हो सोहा, हर तरफ तुम ही तुम छाई हो, कितनी सुंदर लग रही हो तुम मिस इडिया का क्राउन पहन कर.’’

सोहा ने आकाश की बात काटते हुए कहा, ‘‘थैंक्स आकाश.’’

आकाश कहने लगा, ‘‘सोहा, मैं तुम से मिलना चाहता हूं. आज रात को मम्मीपापा तुम्हारे घर आ रहे हैं और मैं भी उन के साथ आ रहा हूं.’’

‘‘ओके,’’ सोहा ने कहा.

शाम को आकाश सोहा के घर पर था. आकाश की मां ने सोहा को गले लगाते हुए कहा, ‘‘जितनी सुंदर उतनी ही गुणी है हमारी सोहा,’’ और वे तीनों मिल कर सोहा की तारीफ के पुल बांधने लगे. थोड़ी देर औपचारिक बातें करने के बाद आकाश सिरीश से बोला, ‘‘सिरीश, मैं सोहा से अकेले में कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ सिरीश ने कहा और उसे टैरेस पर जाने को कह सिरीश ने सोहा को भी कहा कि आकाश तुम से कुछ बात करना चाहता है तुम भी टैरेस पर जाओ.’’

सोहा जैसे ही टैरेस पर पहुंची आकाश ने कहा, ‘‘रात के अंधियारे में चांद की चमकती दूधिया रोशनी में तुम किसी कमलिनी के समान खिल रही हो और सोहा आज तो चांद भी तुम पर फिदा है, फिर मेरे दिल का हाल न पूछो क्या है?’’

सोहा ने उस की बात टालते हुए कहा, ‘‘आकाश, तुम ने मुझे यहां क्यों बुलाया?’’

‘‘सोहा, मैं अपनी भूल के लिए माफी चाहता हूं,’’ आकाश ने कहा.

‘‘इस में माफी जैसी क्या बात है आकाश, हर इंसान के अपने विचार होते हैं, अपनी सोच होती है.’’

‘‘नहीं सोहा, ऐसा न कहो. मम्मीपापा भी कह रहे थे आज तुम्हारे पापा से सदा के लिए तुम्हें मांग लेंगे मेरे लिए.’’

सोहा तो आकाश की बात सुन कर जैसे पत्थर की मूरत बन गई थी. उस के मुंह से एक भी शब्द न निकला, लेकिन उस की सीप सी आंखों से आंसू की धारा बह निकली थी, जो सोहा के दिल का दर्द बयां कर रही थी. बस, उसी धारा के साथ वह 4 साल पीछे बह चली थी. जब उसे पहला मौडलिंग का औफर मिला था. टीवी पर एक शैंपू का ऐड किया था उस ने, जिस में उसे शौवर लेते दिखाया गया था. वह ऐड जब आकाश ने देखा तो आगबबूला हो उठा था और उस ने सोहा को फोन पर जोरदार डांट लगाई थी और उसी वक्त मिलने को कहा था.

सोहा हमेशा की तरह उस से कालेज के पास वाले रैस्टोरैंट में मिली तो वह बहुत गुस्से में था. उस ने कहा था, ‘सोहा, मुझे तुम्हारा मौडलिंग का शौक बिलकुल पसंद नहीं है. अच्छा लगता है तुम्हें नहाते हुए टीवी पर दिखना? तुम्हारी तसवीरें किताबों में छपें और लोग उन्हें चूमें.’

उस दिन सोहा आकाश का यह रूप देख कर समझ ही नहीं पाई थी कि वह एक अच्छाखासा पढ़ालिखा मौडर्न खयालों का इंसान है, लेकिन उस की सोच ऐसी?

आखिर वह भी कहां चुप रही थी आकाश की बात सुन कर. उस ने भी जवाब में कहा था, ‘आकाश, तुम क्या कह रहे हो सोचसमझ कर बोलो. मौडलिंग करना क्या हर किसी के बस की बात है? क्या ऐसे मौके सभी लड़कियों को मिलते हैं? और यदि मेरी तसवीरें किताबों में देख कर लोग चूमते हैं तो उस में मेरा क्या दोष? मैं तो अपना काम करती हूं बस. ‘क्या तुम खुद दूसरी मौडल्स को देखना पसंद नहीं करते? क्या तुम उन की खूबसूरती पर नहीं रीझते? और रही बात नहाते हुए ऐड करने की तो उस में मुझे सिर्फ कंधों के ऊपर बाल धोते हुए दिखाया गया है. इस सब में क्या गलत कर दिया मैं ने? अगर तुम ऐसी सोच रखोगे तो दूसरों से क्या उम्मीद रखूं मैं आकाश?

लेकिन उस दिन तो आकाश उस की कोई बात सुनने को तैयार नहीं था. आकाश के मातापिता ने भी तो सोहा के मातापिता से दोटूक शब्दों में कह दिया था, ‘हम सोहा को अपनी बहू बना कर बहुत खुश होंगे, लेकिन हमारे घर में यह खुलापन नहीं चलने वाला, आप को सोहा को रोकना होगा. उसे मौडलिंग छोड़नी होगी.’

जब सोहा के पिता ने उन्हें समझाया कि वह मौडलिंग नहीं छोड़ सकती. उन्होंने आकाश के मातापिता को बताया कि मैं ने सोहा से मौडलिंग छोड़ने के लिए कहा था, लेकिन उस ने कहा, ‘पापा, मेरा सपना है यह, इस के लिए मैं ने बचपन से मेहनत की है, मेरे इस सपने को आईने की तरह मत तोडि़ए. कांच की किरिचों की तरह बिखर जाऊंगी मैं, और किरिचें भी कभी टूट कर वापस नहीं जुड़तीं. फिर कभी नहीं बन पाएगा वह आईना.’ जब यह बात सिरीश को मालूम हुई तो उस ने आकाश को समझाने की कितनी कोशिश की, लेकिन आकाश अपने फैसले से टस से मस नहीं हुआ था. सोहा के सामने एक तरफ अपना प्यार था तो दूसरी तरफ रातों को जागजाग कर देखा गया ब्यूटी क्वीन बनने का सपना.

उस ने आकाश को कहा था, ‘आकाश, मैं ने प्यार किया है तुम से और तुम ने भी मुझ से, फिर उस में यह शर्त कैसी? तुम अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ और मुझे मेरे हिसाब से रहने दो. मौडलिंग को मैं बुरा प्रोफैशन नहीं मानती,’ लेकिन आकाश को तो मौडलिंग में खुलापन, लोगों द्वारा कसी गई फबतियां और शौवर लेता जिस्म ही नजर आया. उस में उसे कला, मेहनत नजर नहीं आई. सो उस ने साफ शब्दों में कह दिया था, ‘देखो सोहा, मैं ने अपना फैसला तुम्हें सुना दिया है और तुम भी सोचसमझ कर अपना फैसला मुझे सुना दो. मैं तुम्हें कल सुबह तक का समय देता हूं.’

सोहा की सारी रात इसी उधेड़बुन में निकल गई कि किसे निभाए अपने प्यार को या सपने को? और जब यह बात सिरीश को पता चली तो उसे भी काफी बुरा लगा था.

सिरीश और आकाश हमउम्र ही तो थे और एक ही कालेज से पढ़े थे. फिर भी दोनों की सोच में जमीनआसमान का अंतर था और उस समय उसी ने सोहा को हिम्मत दी थी. सिरीश ने कहा था, ‘मैं तुम्हारे साथ हूं सोहा, तुम चाहे जो फैसला लो, बस, तुम हिम्मत न हारना.’

सोहा जब अगले दिन आकाश से मिली तो आकाश ने कहा, ‘थैंक यू सोहा, मुझे मालूम था तुम अपनी मौडलिंग छोड़ कर मेरे पास ही आओगी,’ बदले में सोहा ने कहा था, ‘मैं मौडलिंग नहीं तुम्हें छोड़ रही हूं आकाश, सदा के लिए, मैं अपना सपना जरूर पूरा करूंगी आकाश,’ और इतना कह कर सोहा उलटे कदमों अपने घर लौट आई थी. उस के बाद सोहा और आकाश आज ही मिले थे.

सोहा के दिल पर इन 4 वर्षों में क्याक्या बीती वह उस में खो गई थी. तभी आकाश की आवाज से उस की तंद्रा टूटी. आकाश कह रहा था, ‘‘सोहा, कहां खो गई, बोलो न चुप क्यों हो? आई लव यू सोहा,’’ और इतना कह कर उस ने सोहा का हाथ अपने हाथ में ले लिया था.

सोहा ने आकाश से हाथ छुड़ाते हुए कहा था, ‘‘आकाश, हमारे रास्ते 4 साल पहले ही अलग हो चुके हैं और मैं आज भी वहीं हूं. आज भी मेरी तसवीरें अखबारों में छपती हैं, आज भी न जाने कितने लोग मेरी तसवीरों को चूमते होंगे और इस क्राउन के लिए तो मैं ने स्विमिंग सूट राउंड में दर्शकों के सामने चल कर भी दिखाया, पर तुम्हें तो पसंद नहीं न ये सब,’’ इतना कह कर सोहा टैरेस से नीचे आ गई.

घर में आते ही आकाश की मां बोलीं, ‘‘चलिए, मुंह मीठा कीजिए सभी. दोनों ने फैसला कर लिया है शादी करने का,’’ सोहा के पिताजी ने सोहा की तरफ देखा तो उस ने गरदन हिला कर साफ मना कर दिया. उस के इशारे को सोहा के पिता समझ गए थे. उन्होंने हाथ जोड़ते हुए आकाश के पिताजी से कहा, ‘‘माफ कीजिए भाई साहब, सोहा इस रिश्ते के लिए राजी नहीं है.’’

उस के बाद आकाश और उस का परिवार अपना सा मुंह ले कर चला गया. इतने वर्षों की घुटन में दबी सोहा ने आज चैन की गहरी सांस ली थी और अपने भैया से लिपट कर खूब रोई थी.

Online Hindi Story : हुनर की कीमत

Online Hindi Story : डा. रमेश शहर के एक नामीगिरामी और्थोपैडिक सर्जन थे. शहर में उन का खूब नाम था. उन के द्वारा किए गए औपरेशनों की चर्चा हर जगह होती थी. कैसा भी फ्रैक्चर हो वे टूटी हुई हड्डियों को बढि़या से जोड़ देते थे, लेकिन आज एक टूटे हुए नल ने उन्हें गहन चिंतन में डाल दिया था. उन के सारे दांवपेंच फेल हो गए थे, उन के सारे प्रयत्न नाकामयाब हुए थे. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन को कभी मुंह की खानी पड़ सकती है. हुआ यों कि उन के घर के फ्लश के टैंक का नल खराब हो गया. रमेश की पत्नी उमा ने बताया कि टैंक का वौल खराब हो गया है और पानी रुक नहीं रहा है, तो उन्होंने सोचा कि यह तो उन के बाएं हाथ का खेल है. उन्होंने उसे बंद करने के कई उपाय किए, लेकिन पानी था कि बहता ही चला जा रहा था.

फिर उन्होंने सोचा कि मेन नल के कनैक्शन को जहां से पानी उस में आता है, बंद कर दिया जाए पर उसे बंद करने की भी जब कोशिश की गई तो वह भी टस से मस न हुआ, बुरी तरह जाम हुआ पड़ा था वह. लिहाजा, प्लंबर को बुलाया गया.

कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘जी, मैं मुकुंद हूं, प्लंबर,’’ दरवाजे पर एक दुबलापतला, लाल रंग की शर्ट और नीली जींस पहने किशोर खड़ा था. उस की पैंट में कई सारी पौकेट थीं. हर पौकेट में से कोई न कोई औजार बाहर झांक रहा था.

डा. रमेश की घूरती नजरों से बिन घबराए वह बोला, ‘‘मेरे औजार,’’ फिर उन की आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए प्रश्नवाचक नजरों से पूछा, ‘‘बाथरूम कहां है?’’ मानो कह रहा हो पेशैंट कहां है?

डा. रमेश ने उसे बाथरूम का दरवाजा दिखा दिया. उस के बाथरूम में घुसते ही सब लोग उस के साथ ही बाथरूम में घुस गए मानो नल को ठीक होते देखना और सीखना, दोनों एकसाथ चाहते हों.

मुकुंद ने टैंक का ढक्कन खोला, अंदर तरहतरह की पट्टियों से नल बंधा पड़ा था, लेकिन पानी फिर भी बह रहा था.

‘‘देखिए न, कब से पानी बहे जा रहा है, कितनी कोशिश की पर रुक ही नहीं रहा,’’ रमेश की पत्नी उमा दरवाजे के बाहर से ही बोलीं, उन्हें अंदर जाने की जगह ही नहीं मिल पाई थी.

‘‘सब से पहले तो आप लोग बाहर निकलिए, मुझे जरा नल का मुआयना करने दीजिए,’’ मुकुंद ने एक डाक्टर की तरह सभी को वार्ड से बाहर यानी बाथरूम से बाहर खदेड़ दिया. फिर मुकुंद ने नल को हिलाडुला कर देखा, दाएं से देखा, बाएं से देखा, ऊपर से देखा, नीचे से देखा. फिर बाहर आ कर बोला, ‘‘वायसर खराब हो चुका है उसे बदलना होगा, टैंक में बहुत कचरा जमा हो गया है, एसिड से उस की सफाई करनी होगी और जो मुख्य नल है. जहां से पानी आता है वह जाम हो गया है. उसे भी बदलना होगा. कुल खर्च 500 रुपए आएगा.’’

‘‘500 रुपए?’’ डा. रमेश हैरानी से बोले, ‘‘अरे, इतना खर्च कैसे? बताओ तो जरा कितने का आएगा वायसर और नल?’’

मुकुंद ने अपना जवाब तैयार कर रखा था बोला, ‘‘वायसर 20 रुपए का आएगा, एसिड की बोतल 30 रुपए तक की, कुल 50 रुपए. 200 रुपए का नल और 250 रुपए मेरी मजदूरी.’’

‘‘हैं?’’ डाक्टर साहब की आंखें फटी की फटी रह गईं, ‘‘इतने से काम के 250 रुपए?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘लूट मचा रखी है, इतने से काम के इतने पैसे? मुझे नहीं कराना काम,’’ डाक्टर रमेश बोले. लेकिन तभी उमाजी बोल पड़ीं, ‘‘कराना तो पड़ेगा, नहीं तो टंकी का पानी रातभर में खाली हो जाएगा और सुबह पानी का टैंकर बुलाना पड़ेगा.’’

डा. रमेश ने घूर कर प्लंबर को देखा. वह उन को ही एकटक देख रहा था.

‘‘यह नल जो तुम लगाओगे वह कितने दिन चलेगा?’’

‘‘यह तो नहीं कह सकता कि कितने दिन चलेगा, लेकिन साहब, खूब चलेगा.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. यह जो लगा हुआ है देखने में तो एकदम नया है. फिर खराब क्यों हुआ?’’

प्लंबर मुसकराया और बोला, ‘‘इस के लिए आप का गणित ही आप को समझाना पड़ेगा सर.’’

‘‘सो कैसे?’’

‘‘देखिए, आप ही कहते हैं न कि शरीर को ठीक रखने के लिए रोज कसरत जरूरी है. यदि कसरत नहीं करेंगे तो शरीर बेकार होता चला जाएगा. पिछले महीने मेरे बड़े भैया का आप ने इलाज किया था, उन को फ्रोजन शोल्डर बताया था आप ने. कहा था कि कंधों की बराबर ऐक्सरसाइज न करने से कंधे जाम होने लगते हैं, कभी घुटने भी ऐसे ही जाम हो जाते हैं. बस, इसी तरह से यह नल है. अब इस को दोचार दिन में घुमाया जाए तो इस में मौजूद पानी में कैल्शियम जमा होने लगता है जो धीरेधीरे इसे जाम कर देता है. यदि हम दिन में कम से कम एक बार ही इसे खोलते बंद करते रहें तो यह कभी भी जाम नहीं होगा.’’

डा. साहब हतप्रभ से प्लंबर को देख रहे थे. बहुत बड़ी बात कह गया था वह बातोंबातों में. वह फिर बोला, ‘‘अब देखिए, आप कहते हैं कि मैं ज्यादा पैसे मांग रहा हूं, लूट रहा हूं, तो बताइए जरा आप एक औपरेशन में कितने वसूलते हैं? हजारों में लेते हैं आप और मैं तो सिर्फ 250 रुपए मांग रहा हूं. सवाल समय का नहीं है बल्कि हुनर का है साहब. आप का हुनर यदि हुनर है तो मेरा भी हुनर, हुनर ही है. आप शरीर का दर्द दूर करते हैं, तो मैं बहते हुए पानी को रोकूंगा, उस के जोड़ों को खोलूंगा, उस की सफाई करूंगा और नया नल लगाऊंगा.’’

डा. रमेश चुप रहे, उन के मौन को उन की स्वीकृति मान मुकुंद ने बिना समय गंवाए अपना थैला नीचे रखा, पैंट की जेब से औजार निकाले और जुट गया नल ठीक करने में. उसे पूरा एक घंटा लगा. काम पूरा कर के उस ने बाथरूम की सफाई की और बोला, ‘‘आइए, चैक कर लीजिए.’’

इस बार रमेश की पत्नी उमा अंदर गईं, डा. साहब बाहर सोफे पर ही बैठे रहे. संतुष्ट हो कर वह बाहर आईं और बोलीं, ‘‘तुम्हारा काम बहुत अच्छा है मुकुंद, नल एकदम ठीक हो गया है. और हां, सुनो अभी जाना नहीं. बैठो, चाय पी कर जाना,’’ कह कर वह किचन में चली गईं.

मुसकराता हुआ मुकुंद बाहर सीढ़ी पर बैठ गया.

डा. साहब चुपचाप उठे और बाथरूम में चल दिए, आज एक प्लंबर ने उन्हें जिंदगी का नया पाठ पढ़ाया था.

Best Hindi Story : दिल तो बच्चा है जी

Best Hindi Story : दुकानदार एक के बाद एक साडि़यां खोलखोल कर दिखा रहा था पर वैशाली की नजर लाल साड़ी पर अटक गई थी. लाल रंग की जमीन पर सुनहरी जरी से बेलबूटे का काम हो रखा था. कपड़ा इतना हलका जैसे कुछ पहना ही न हो. तभी छोटी बेटी कायरा बोली, ‘‘अरे भैया, यह क्या डार्क कलर दिखा रहे हो, मम्मी की शादी की गोल्डन जुबली है. कुछ सोबर और एलिगेंट दिखाएं.’’

बहू माही बोली, ‘‘मम्मी को तो ग्रे, क्रीम शेड बेहद पसंद हैं. ऐसा ही कुछ दिखाएं.’’

वैशाली बोलना चाहती थी कि वह अपने सारे शौक इस वर्षगांठ पर पूरे करना चाहती है. तब वैशाली और पराग की 50 साल पहले शादी हुई थी तब तो उन के पास न इतने पैसे थे और न ही इतनी सुविधा थी. वैशाली ने शादी में चटक रानी रंग का आर्टिफिशियल सिल्क का लहंगा पहना था. उस लहंगे का रंग और काम उसे बिलकुल नहीं सुहाया था. एक लोकल से पार्लर ने उस का मेकअप किया था जिस कारण उस की ठीकठाक शक्ल भी हास्यपद लग रही थी.

आज जब वैशाली किसी की शादी देखती तो उस के मन के सोए अरमान जाग जाते थे. तब वैशाली 70 वर्ष की नहीं बस 20 वर्ष की तरह ही सोचने लगती थी. दोनों बच्चों की शादी में वैशाली की इतनी भागमभाग रही कि वह ठीक से तैयार भी नहीं हो पाई थी.

10 दिन बाद वैशाली और पराग की गोल्डन जुबली है. दोनों बच्चे अब अच्छे से सैटल हैं और यह बच्चों का ही आइडिया था कि गोल्डन जुबली को धूमधाम से मनाया जाए. यह सुनते ही वैशाली के अंदर दबी इच्छाओं को मानो पंख लग गए हों. हर बार उस की इच्छाओं के पंख उम्र के तले दबा दिए जाते थे.

वैशाली के सामने दुकानदार ने क्रीम, वाइट, ग्रे, पीच रंग की साडि़यों का अंबार लगा दिया था पर वैशाली को तो एक भी साड़ी जंच नहीं रही थी. उस का पूरा मूड चौपट हो गया था. न जाने क्यों माही और कायरा बरबस उसे उस की उम्र का एहसास दिलाने पर तुली हुई हैं. हां वे हैं 70 वर्ष की पर इस दिल का क्या करें जो फिर से एक 20 वर्ष की दुलहन की तरह सजना चाहता है.

दुकान से बाहर निकलते हुए वैशाली के कानों में बेटी कायरा के शब्द पड़ गए थे, ‘‘मम्मी को तो न जाने क्या चाहिए, अरे इस उम्र में कौन इतना चूजी होता है.’’

मेरी सास भी इस उम्र में बालों की रिबौंडिंग, फैशन कलर और न जाने क्याक्या करवाती रहती हैं.

तभी माही की आवाज आई, ‘‘शुड ऐज ग्रेसफुल्ली.’’

दोनों को पता ही नहीं चला कि वैशाली को उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

वैशाली का मन खट्टा हो गया था. मतलब अब उन के बच्चों को उन का हेयर कलर करना भी खलता है. बच्चे क्या चाहते हैं कि वे 70 वर्ष की हो गई हैं तो पहननाओढ़ना छोड़ दें. माही और कायरा भी 40 वर्ष से ऊपर की ही हैं पर उन्होंने तो कभी उन के  झबलेनुमा कपड़े देख कर व्यंग्य नहीं कसा.

वहां से कार पार्लर की तरफ चल पड़ी. माही बोली, ‘‘मम्मी, आप को क्याक्या सर्विस लेनी हैं, आप बता दो.’’

कायरा बोली, ‘‘भाभी, मम्मी क्या इस उम्र में प्रीब्राइडल पैकेज लेंगी?’’

‘‘क्यों मम्मी?’’

‘‘एक फेशियल ले लेंगी और आयब्रो करवा लेंगी.’’

‘‘मैं खुद ही देख लूंगी, मम्मी को

क्या पता?’’

दोनों ननदभाभी ने अपने लिए अच्छाखासा पैकेज लिया मानो एनिवर्सरी उन की ही हो और वैशाली के लिए एक साधारण सा पैक बुक कर दिया था.

जब पार्लर वाली लड़की ने कहा, ‘‘अरे मैम की एनिवर्सरी है, उन के लिए स्पैशल पैक लीजिए.

‘‘अपनी गोल्डन जुबली पर उन्हें एकदम दुलहन की तरह ग्लो करना चाहिए.’’

माही बोली, ‘‘अरे मम्मी को ये सब पसंद नहीं है और इन सब चौचलों से क्या उम्र छिप सकती है?’’

वैशाली मन ही मन सोच रही थी क्या यह बात उन दोनों पर लागू नहीं होती है.

जब शाम को वे लोग घर पहुंचे तो पराग बाहर लौन में पौधों को पानी दे रहा था. उन के हाथ में पैकेट्स देख कर बोला, ‘‘लगता है पूरी मार्केट उठा कर ले आए हो.’’

कायरा छूटते ही बोली, ‘‘बस मम्मी के कपड़ों के अलावा.

‘‘न जाने इस उम्र में भी उन्हें

क्या चाहिए?’’

रात को जब पराग कमरे में आया तो वैशाली से पूछा, ‘‘तुम्हारे चेहरे पर 12 क्यों बज रहे हैं?’’

‘‘औरतें तो बहू और बेटी के आने पर खुश होती हैं और तुम बु झ गई हो.’’

वैशाली के सब्र का बांध टूट गया, रोंआसी सी बोली, ‘‘तुम ही बता दो, मु झे इस उम्र में कैसे व्यवहार करना चाहिए. तुम्हारी बेटी और बहू ने तो कोई कमी नहीं छोड़ी थी.’’

पराग को वैशाली के गुस्से का कारण सम झ नहीं आ रहा था.

चिढ़ते हुए बोले, ‘‘अरे अब किस बात पर नाराज हो, जितने पैसे तुम ने कहा उतने दिए और चाहिए तो और ले लो पर ये ताने मत दो.’’

‘‘कल कायरा की सास भी आ जाएगी. उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि तुम उन के आने से खुश नहीं हो.’’

वैशाली का मूड और अधिक खराब हो गया था. कायरा की सास उसे फूटी आंख नहीं भाती थी. कायरा की सास ऊषा बेहद दबंग महिला थी. पति के गुजरने के बाद भी वह खूब सजसंवर कर रहती थी. कायरा के साथसाथ वैशाली को भी ऊषा का इस तरह से सजना, ऊंची आवाज में होहो कर के हंसना, हमेशा पराग के साथ गप्पें लड़ाना बिलकुल पसंद नहीं था. पता नहीं क्यों वे ऐसा बच्चों जैसा व्यवहार करती हैं. अगर बेटी की सास न होती तो वैशाली ऊषा को घर में घुसने भी न देती पर क्या करे, रिश्ते से मजबूर हैं.

अगले दिन सुबह की फ्लाइट से ऊषा आ गई थी. नीली पैंट और लाल रंग की कुरती, लाल रंग की ही लिपस्टिक, केराटिन कराए हुए बाल, सलीके से किए हुए मेकअप के कारण ऊषा अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थी.

वैशाली उसे देख कर मन ही मन जलभुन गई थी.

कायरा यह उम्र के प्रवचन अपनी सास को क्यों नहीं सुनाती? कौन कहेगा कि यह विधवा हैं. पता नहीं उसे अपने पति के मरने का दुख है भी या नहीं.

ऊषा को देखते ही माही बोली, ‘‘आंटी, यू आर लुकिंग सो यंग एंड फ्रैश.’’

ऊषा बोली, ‘‘भई हमारे समधीसमधन की गोल्डन एनिवर्सरी है तो कुछ तो हमारा भी हक बनता है.’’

शाम को ऊषा ने अपने लाए हुए उपहार सब को दिखाए.

फिर एक पैकेट में से दो साडि़यां निकालते हुए बोली, ‘‘वैशाली आप कोई भी एक साड़ी पसंद कर लो, दूसरी साड़ी माही ले लेगी क्योंकि एनीवर्सरी आप की है तो पहला हक भी आप का है.’’

वैशाली ने अनमने ढंग से पैकेट खोला तो एक हरे रंग की और एक लाल रंग की साड़ी थी.

इस से पहले वैशाली कुछ चुनती, कायरा बोली, ‘‘भाभी को यह लाल रंग की साड़ी दे देते हैं. मम्मी कहां इस उम्र में लाल रंग पहनेंगी?’’

ऊषा डपटते हुए बोली, ‘‘क्यों मम्मी इंसान नहीं है या उम्र के साथ लोग जीना छोड़ देते हैं? वैसे यह लाल रंग वैशाली के गोरे रंग पर खूब फबेगा. बाकी वैशाली तुम्हारी मरजी.’’

वैशाली  िझ झकते हुए बोली, ‘‘इस उम्र

में कोई यह तो नहीं कहेगा, बूढ़ी घोड़ी

लाल लगाम.’’

ऊषा बोली, ‘‘अरे बोलने दो, अब लोग मेरे बारे में न जाने क्याक्या बोलते हैं पर क्या मैं जीना छोड़ दूं. चलो, अब तुम यह बताओ, तुम ने उस रात के लिए क्या ड्रैस ली है?’’

वैशाली बोली, ‘‘अभी कुछ नहीं लिया है.’’

ऊषा हंसते हुए बोली, ‘‘और बहू और बेटी ने सब तैयारी कर ली है. कल सुबह तुम और मैं चलेंगे, माही और कायरा घर देखेंगी.’’

माही बोली, ‘‘पर मम्मी के बिना हम घर कैसे संभालेंगे.’’

ऊषा बोली, ‘‘सम झ लो अब वह सास नहीं, होने वाली दुलहन है. उसे कुछ दिनों के लिए घर की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दो.

‘‘वैसे, अब तुम दोनों के बच्चे भी जवान हो गए हैं, कब तक तुम दोनों बच्ची बनी रहोगी?’’

माही और कायरा ऊषा के इस तंज पर चिढ़ गई थीं पर क्या कर सकती थीं.

वैशाली को न जाने क्यों इस बार ऊषा बड़ी अपनी सी लगी थी.

अगले दिन ऊषा और वैशाली ने खूब सारी शौपिंग की. आज वैशाली को कोई उस की उम्र की याद दिलाने वाला नहीं था. वैशाली ने वही लाल साड़ी खरीदी और फिर ऊषा के कहने पर मैचिंग ज्वैलरी भी ली.

पार्लर जा कर ऊषा ने अपना और वैशाली का ब्यूटी पैकेज लिया. फिर दोनों ने बौडी स्पा लिया, बाहर लंच किया और फिर ऊषा के कहने पर वैशाली ने अपने बाल भी कटवा लिए थे.

जब शाम को ऊषा और वैशाली पहुंचीं तो वैशाली का बदला रूप देख कर माही और कायरा हक्कीबक्की रह गई थीं पर सामने से कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी थी पर उन के चेहरे पर दबीदबी हंसी वैशाली से छिपी नहीं रही थी.

वैशाली ऊषा से बोली, ‘‘बच्चे मन ही मन मु झ पर हंस रहे हैं.’’

ऊषा बोली, ‘‘पहले मांबाप के हिसाब से जिंदगी बिताई, फिर पति और अब बच्चों के अनुसार जिंदगी बिताई.’’

वैशाली बोली, ‘‘लेकिन उम्र का भी तो सोचना पड़ता है. अब बच्चे भी बच्चों वाले हो गए हैं.’’

ऊषा हंसते हुए बोली, ‘‘पर दिल तो बच्चा है जी. क्या आज आप को अच्छा नहीं लगा.’’

वैशाली बोली, ‘‘बहुत अच्छा लगा.’’

रात में पराग बोला, ‘‘वैशाली, तुम आज सच में बहुत अच्छी लग रही हो. कटे हुए बाल बहुत सूट कर रहे हैं तुम पर.’’

अगले दिन फिर से वैशाली और ऊषा शौपिंग के लिए निकल पड़ीं. वैशाली ने कभी भी ऊषा को करीब से नहीं देखा था. अब जितना वह ऊषा को सम झती उतना ही उस के लिए सम्मान बढ़ रहा था.

आखिकार वैशाली ने बोल ही दिया,

‘‘ऊषाजी, मैं आप को बहुत गलत सम झती थी.’’

ऊषा बोली, ‘‘जानती हूं सब यह ही सोचते हैं कि एक विधवा हो कर क्यों इतना सजतीसंवरती है. क्यों इस उम्र में भी एक्सपैरिमैंट करती रहती है.

‘‘पर वैशालीजी, क्या दिल कभी उम्र की सुनता है? अगर पति नहीं हैं, मेरे बच्चे बड़े हैं तो क्या मैं जीना छोड़ दूं? मेरा दिल तो हमेशा से ही बच्चा था और रहेगा भी.’’

वैशाली को भी ऊषा के उत्साह की छूत लग गई थी. अब वैशाली ने भी कायरा और माही की दबी मुसकान पर ध्यान देना छोड़ दिया था.

आज वैशाली की शादी की गोल्डन एनिवर्सरी थी. लाल साड़ी, कटे बालों में वह एक अलग ही अवतार में नजर आ रही थी.

वैशाली को इतने कंप्लीमैंट्स मिले जितने उसे अपनी शादी पर भी नहीं मिले थे.

डिनर के बाद कपल डांस का प्रोग्राम था. बच्चों के डांस करने के बाद जब वैशाली और पराग डांसफ्लोर पर आए तो उन्होंने भी पुराने गानों पर जीभर कर डांस किया. ऊषा ने भी महफिल को जमाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी.

अगले दिन सुबह लगभग सभी मेहमान विदा हो गए थे. अब ऊषाजी ने अपना सामान पैक कर लिया और जब वे विदा होने के लिए चल रही थीं तो वैशाली ने ऊषा को गले लगा कर कहा, ‘‘आप को हमेशा मैं ने गलत ही सम झा था पर इस बार आप से मैं ने बहुतकुछ सीखा है. अगर हम अपनी उम्र को खुद पर हावी होने देंगे तो सच में समय से पहले ही बूढ़े हो जाएंगे.’’

ऊषा ने हंसते हुए कहा, ‘‘यह बात हमेशा याद रखना कि दिल तो बच्चा है जी. भूल कर भी अपने अंदर के बच्चे को मत मारना, यह ही तो हमारे जिंदा रहने की वजह है.’’

Trending Debate : उर्दू से नफरत क्यों ?

Trending Debate : किसी भाषा को पैदा होने, बढ़ने और समृद्ध होने में सदियों का समय लगता है. और किसी भाषा को मिटा कर कोई समाज या कोई देश कभी समृद्ध नहीं हुआ. भाषा को औजार बना कर दो संप्रदायों के बीच नफरत पैदा करने वालों को कोई बताए कि कठमुल्लापन उर्दू की देन नहीं, बल्कि घटिया शिक्षा नीतियों की देन है, जो देश के बच्चों को एक समान बेसिक शिक्षा तक उपलब्ध कराने में नाकाम है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस वक्त दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी का बड़ी गर्मजोशी से गले लग कर जोरदार स्वागत कर रहे थे, जिस समय वे अरब देशों के साथ अपने रिश्तों के नए दौर का संदेश पूरे भारत को दे रहे थे, जिस समय वे मुस्लिम देशों के साथ अपने गहरे संबंधों का प्रदर्शन कर रहे थे और यह दिखाना चाह रहे थे कि इन रिश्तों में गर्माहट उन के निजी प्रयासों से आई है, ठीक उसी समय कुछ लोग उर्दू को कठमुल्लापन बनाने की भाषा से जोड़ रहे थे. उर्दू को हथियार बना कर मुसलमानों पर प्रहार कर रहे थे.

उत्तर प्रदेश के स्पीकर सतीश महाना ने कहा था कि सदन की कार्यवाही अंग्रेजी के अलावा चार अन्य भाषाओं में ट्रांसलेट की जाएगी. इस के बाद नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे ने अंग्रेजी में अनुवाद कराने पर आपत्ति जताते हुए उर्दू में भी अनुवाद करने की मांग की. क्योंकि उर्दू एक भारतीय जुबान है और अधिकांश लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है. इस पर उन्हें मौलाना होने की गाली सी दे दी गई.

भाषा को जन्मने में सदियां लग जाती हैं

किसी भाषा को जन्मने, समृद्ध होने और फैलने में सदियां लग जाती हैं. भाषा को सीखने और आत्मसात करने में लोगों की उम्र निकल जाती है. भाषा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को एक विरासत की तरह सौंपी जाती है. जितने अधिक लोग उस भाषा को बोलने, समझने और लिखने वाले होते हैं वह भाषा उतनी ही मजबूत और स्थायी होती चली जाती है. उर्दू को मुसलमान, मुल्ला और कठमुल्ला से जोड़ने वालों को शायद नहीं मालूम कि उर्दू सौ फीसदी भारतीय जुबान है. उर्दू भारत में मेरठ के आसपास के इलाकों में जन्मी और भारत में पलीबढ़ी व समृद्ध हुई सब से मीठी जुबान है. इस भारतीय भाषा का अपमान भारत का अपमान है. इस का न अरबी से कोई मतलब है न फारसी से.

12वीं शताब्दी में उत्तर-पश्चिमी भारत में हुई उर्दू भाषा की उत्पत्ति

जानकार बताते हैं कि उर्दू भाषा की उत्पत्ति 12वीं शताब्दी में उत्तर-पश्चिमी भारत में हुई थी. यह हिन्दी की तरह, हिंदुस्तानी भाषा का एक रूप है. उर्दू भाषा की जड़ें संस्कृत में हैं. उर्दू और हिंदी का एक ही समान व्याकरण है. उर्दू जम्मू और कश्मीर की मुख्य प्रशासनिक भाषा भी है. साथ ही तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त शासकीय भाषा है. आज भी पुलिस महकमों के तमाम लिखित कार्यों में उर्दू के शब्दों का बहुतायत से प्रयोग होता है. हिंदी सिनेमा का काम तो उर्दू के बिना चल ही नहीं सकता. उन की स्क्रिप्ट, गीत, डायलौग सब में उर्दू के शब्दों का प्रयोग होता है, इस के बिना तो भावनात्मक बातों को बयान ही नहीं किया जा सकता है. गीत गजलों में उर्दू का प्रयोग ही उन्हें सरस और मधुर बनाता है. उर्दू भावनाओं को बयान करने वाली भाषा है.

उर्दू भाषा को पहले हिन्दवी या पुरानी हिंदी के नाम से जाना जाता था. इस के अन्य नाम – जबान-ए-हिन्द, हिन्दी, ज़बान-ए-देहली, रेख़ता, गुजरी, दक्कनी आदि हैं. उर्दू भाषा के विकास में अमीर खुसरो का अहम योगदान रहा. उन्हें अक्सर उर्दू साहित्य के पिता’ के रूप में जाना जाता है.

कई विश्वविद्यालयों में हैं उर्दू विभाग

उर्दू जैसी मीठी भाषा कोई अन्य नहीं है. कर्कशता इसके नजदीक से भी नहीं गुजरती है. यही वजह है कि लेखकों, समाजशास्त्रियों, इतिहासकारों, न्यायविदों और कानून का पालन करवाने वालों तक ने इस भाषा में अपनी बात कही, लिखी और आगे बढ़ाई. साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद अगर अपनी कहानियों और लेखों में उर्दू का इस्तेमाल करते थे तो क्या वे कठमुल्ला थे? अनेक विश्वविद्यालयों में उर्दू विभाग हैं जिनमें उर्दू के प्रोफेसर हैं तो क्या वहां उर्दू पढ़ने वाले बच्चे कठमुल्ला हैं या उन्हें पढ़ाने वाले प्रोफेसर कठमुल्ला हैं?

जिस उर्दू की मुहब्बत में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ हो गए, जिस उर्दू की मुहब्बत में रघुपति सहाय ‘फिराक़ गोरखपुरी’ हो गए. उस उर्दू जुबान को कठमुल्लापन से जोड़ना सिर्फ एक भाषा की तौहीन है बल्कि सत्ता की चाशनी में डूबे रहने के लालच में ध्रुवीकरण की नीति पर चलते हुए हिन्दुस्तान में जन्मी इस लोकप्रिय भाषा के प्रति नफरत उपजाने का काम है.

लेखकों ने उर्दू में रखे उपनाम

बड़ेबड़े नामी लेखकों ने उर्दू में अपने उपनाम रखे. प्रसिद्ध तथा सम्मानित कश्मीरी परिवार से आने वाले कवि और साहित्यकार बृज नारायण ‘चकबस्त’ हो गए , पंडित हरिचंद ‘अख़्तर’ हो गये, सम्पूर्ण सिंह कालरा ‘गुलज़ार’ हो गए. वही गुलजार जिन के शेरों पर दुनिया मरती है. वही गुलजार जिन्होंने लिखा –
उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने, औरों में नुक्स निकालते-निकालते
इतना खुद को तराशा होता, तो फरिश्ते बन जाते.

उर्दू में ख़त लिखा करते थे भगत सिंह

जिस उर्दू में भगत सिंह ख़त लिखा करते थे, जिस उर्दू को ख़ुद गांधी जी हिंदुस्तानी भाषा कहते हैं, जिस भाषा से नेहरू और पटेल ने प्यार किया. जिस भाषा ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया, जिस भाषा ने जय हिंद का नारा दिया, जिस भाषा में मुहब्बत और बगावत के गीत गाए गए, आज एक सूबे का मुखिया उस भाषा को कठमुल्ला की भाषा कह रहा है, यह अति निंदनीय है. कोई उन्हें बताये कि उर्दू ‘कठमुल्ला’ की नहीं बल्कि आनंद नारायण ‘मुल्ला’ की जुबान है. उर्दू वह भाषा है जो हिंदुस्तान की मिट्टी से पैदा हुई और इसकी महक पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान तक उड़ी. इन तमाम देशों के लोग जिस जिस भाषा में बातचीत करते हैं उन में उर्दू के शब्द ऐसे समाए हुए हैं कि किसी छन्नी से उन्हें छान कर निकाल पाना असंभव है.

हालांकि मोदी की मुस्लिम देशों से बढ़ती मोहब्बत और एक कट्टरपंथी वर्ग द्वारा उर्दू के अपमान के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है, मगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो इस्लामिक देशों के साथ निजी रिश्ते बनाने के मोदी के प्रयासों पर उर्दू और मुसलमानों के प्रति नफरत का भाव और हीनभावना रखना बड़ा ग्रहण लगा सकता है. वे अगर किसी शेख से गले लगते हैं तो इसे वे अपनी विदेश नीति में गिनते हैं. ऐसे में उर्दू की आड़ में मुसलमानों को अपमानित करते हुए उन्हें कठमुल्ला बताने की कोशिश की है वह मोदी की विदेश नीति पर पानी फेरने वाला है.

उर्दू की देन नहीं है कठमुल्लापन

कठमुल्लापन उर्दू की देन नहीं है. उर्दू पढ़ने से कोई मौलवी और कठमुल्ला नहीं बनता. उसी तरह जिस तरह संस्कृत पढ़ने से कोई पुरोहित नहीं बन जाता. दोनों ही भाषाएं बहुत समृद्ध हैं और इन भाषाओं को कठमुल्ला और पुरोहितवाद तक सीमित करने की राजनीति का संबंध सिर्फ दो चीजों से है – मूर्खता से और साम्प्रदायिकता से. साम्प्रदायिक सोच हिंदी या उर्दू के कारण पैदा नहीं होती, बल्कि हिंदू और मुस्लिम साम्प्रदायिकता ने हिंदू और उर्दू भाषा को अपना औजार बना रखा है और उस का इस्तेमाल करके नेता दो धर्मों के बीच नफरत पैदा कर अपनी राजनीति चमकाते हैं.

उर्दू संबंधी बहस पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा – दूसरों पर भाषागत प्रहार करके समाज में भेद उत्पन्न करने वालों में यदि क्षमता हो तो यूपी में ऐसे वर्ल्ड क्लास स्कूल विकसित करके दिखाएं कि लोग बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर न भेजें. लेकिन इस के लिए वैश्विक दृष्टिकोण विकसित करना होगा.

Waqf Board : अब वक्फ संपत्तियों पर गिद्ध नजर

Waqf Board : मुसलिम समाज के पास कितनी वक्फ संपत्ति है और उसे किस तरह उस से छीना जाए, मसजिदों पर पंडोंपुजारियों को कैसे बिठाया जाए, इस को ले कर लंबे समय से कवायद जारी है. इस के लिए एक्ट में संशोधन के बहाने भाजपा नेता जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में जौइंट पार्लियामैंट्री कमेटी का गठन किया गया, जिस में दिखाने के लिए कुछ मुसलिम नेता तो शामिल किए गए लेकिन उन के सुझावों या आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

वक्फ संपत्तियों को ले कर मोदी सरकार की नीयत पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. जिस तरह देशभर में मसजिदों के नीचे मंदिर तलाशे जा रहे हैं और मसजिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, दरगाहों की जमीनों से मुसलिम समुदाय को खदेड़ने की कोशिशें की जा रही हैं, वह एक लोकतांत्रिक देश के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसी घटनाओं का संज्ञान ले कर समयसमय पर सरकार को फटकार न लगाए, कान न उमेठे और बुलडोजर की तालाबंदी न करे तो ध्रुवीकरण की बदौलत सत्ता की चाशनी चाटने वाली संघ और भाजपा की सरकारें (केंद्र और राज्य) देश में गृहयुद्ध की स्थितियां पैदा कर दें.

मुसलिम समाज के पास कितनी वक्फ संपत्ति है, उसे किस तरह उन से छीना जा सकता है, उसे किस तरह सरकार अपने हाथों में ले सकती है, मसजिदों की जगहें पंडेपुजारियों को कैसे सौंपी जाएं, इस को ले कर लंबे समय से कवायद जारी है.

इस के लिए बाकायदा भाजपा नेता जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में जौइंट पार्लियामैंट्री कमेटी (जेपीसी) का गठन किया गया, जिस में दिखाने के लिए मुसलिम नेता शामिल किए गए जबकि उन के सुझावों या आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. उलटे, हंगामा करने और काम में बाधा बनने के आरोप लगा कर उन को कभी निष्कासित किया गया, कभी अध्यक्ष की मनमानी देख कर वे खुद वाकआउट कर गए.

मगर इस सारी उठापटक के बीच भी जगदम्बिका पाल ने दिल्ली चुनाव से पूर्व संशोधित बिल का मसौदा स्पीकर ओम बिरला के हाथों में सौंप ही दिया. कहा जा रहा है कि संशोधनों पर 16 सदस्यों ने पक्ष में वोट डाला तो 11 ने विरोध किया. विपक्षी सांसदों के विरोध के बावजूद समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल और सदस्य संजय जायसवाल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को रिपोर्ट सौंप दी. जिस में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के 14 प्रस्ताव पारित कर दिए गए जबकि विपक्ष की तरफ से रखे सभी 44 प्रस्ताव खारिज कर दिए गए हैं. इस में वक्फ बोर्ड से प्रस्तावित 2 गैरमुसलिम सदस्यों को हटाने के सुझाव प्रमुख थे, जिन्हें नामित करने को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव है. विपक्ष ने इस प्रक्रिया को वक्फ बोर्डों को नष्ट करने का प्रयास करार दिया है.

संशोधित एक्ट को जल्दी से जल्दी टेबल पर लाने की जरूरत भाजपा को इसलिए थी क्योंकि 5 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव होने थे. भाजपा यह सोच कर वक्फ संशोधन विधेयक पर रिपोर्ट को शीघ्र स्वीकार करने पर जोर दे रही थी कि एक बार फिर ध्रुवीकरण के जरिए चुनाव में बाजी मार ली जाए. 3 फरवरी को यह रिपोर्ट संसद में रखना तय भी हो गया था पर फिलहाल किन्हीं कारणों से इस को टालना पड़ गया. अब इसे 13 फरवरी को संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है.

भारत में लगभग 30 वक्फ बोर्ड हैं. ये 30 वक्फ बोर्ड 9 लाख एकड़ से अधिक भूमि पर फैली संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं. इस का अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपए है. भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश में सब से ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है. विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अगस्त में पहली बैठक हुई थी जिस में कई विपक्षी सदस्यों ने दावा किया था कि विधेयक के प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के कानूनों का उल्लंघन करते हैं. विपक्षी सदस्यों ने विधेयक में उल्लिखित विभिन्न धाराओं पर सवाल उठाए थे, जिन में विशेष रूप से जिला कलैक्टरों को विवादित संपत्ति के स्वामित्व पर निर्णय लेने का अधिकार देने के प्रस्ताव के साथसाथ गैरमुसलिमों को वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव पर सवाल उठाया गया था.

कमेटी पर आरोप

कांग्रेस सांसद और जेपीसी सदस्य सैयद नसीर हुसैन ने कमेटी पर गंभीर आरोप लगाए थे. नसीर हुसैन ने कहा कि, ‘मैं ने रिपोर्ट में जिन बातों पर असहमति जताई थी, उन्हें बिना अनुमति एडिट कर दिया गया. आखिर हमें चुप कराने की कोशिश क्यों हो रही है? यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक है.’

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि, ‘वक्फ एक्ट में संशोधन वक्फ संपत्तियों को छीनने के इरादे से किया जा रहा है. यह संविधान में दिए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रहार है. आरएसएस की शुरू से ही वक्फ संपत्तियों को छीनने की मंशा रही है.’

औल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का कहना है कि, ‘हमारे पूर्वजों ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया इसे इसलामी कानून के तहत वक्फ कहा गया. जहां तक वक्फ कानून का सवाल है, यह जरूरी है कि संपत्तियों का उपयोग सिर्फ उन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए जिन के लिए इन्हें हमारे पूर्वजों ने दान किया था.

‘यह कानून है कि एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ बन जाती है तो उसे न तो बेचा जा सकता है और न ही ट्रांसफर किया जा सकता है. जहां तक संपत्तियों के प्रबंधन का सवाल है, हमारे पास पहले से ही वक्फ अधिनियम 1995 है और फिर 2013 में कुछ संशोधन किए गए थे और वर्तमान में हमें नहीं लगता कि इस वक्फ अधिनियम में किसी भी प्रकार के संशोधन की जरूरत है.

‘यदि सरकार को लगता है कि संशोधन की कोई जरूरत है तो पहले हितधारकों से सलाहमशविरा करना चाहिए और उन की राय लेनी चाहिए. सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि वक्फ संपत्तियों का लगभग 60 से 70 फीसदी हिस्सा मसजिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों के रूप में है.’

इतिहासकार और मुसलिम विद्वान एस इरफान हबीब कहते हैं कि ‘सवाल सरकार की नीयत पर है कि कहीं वह वक्फ की जमीनों को हड़पना तो नहीं चाहती. अगर कोई कानून आ रहा है तो अच्छे के लिए आना चाहिए.’

कश्मीर के धार्मिक प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक का भी कहना है कि ‘वक्फ का मुद्दा बहुत गंभीर मामला है, खासकर जम्मूकश्मीर के लोगों के लिए क्योंकि यह एक मुसलिम बहुल राज्य है. कई लोगों को इस बारे में चिंताएं हैं और हम इन चिंताओं के बिंदुवार समाधान के लिए एक विस्तृत ज्ञापन तैयार कर बातचीत करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सरकार वक्फ मामलों में हस्तक्षेप करने से बचे. ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिस से जम्मूकश्मीर में माहौल खराब हो.’

बिल में अहम बदलाव

1. जेपीसी ने सलाह दी है कि संशोधित वक्फ एक्ट के क्लौज 3(9) में एक नया क्लौज और जोड़ा जाए कि अगर कोई प्रौपर्टी वक्फ संशोधन एक्ट के लागू होने से पहले वक्फ संपत्ति घोषित है तो वह वक्फ बाय यूजर वक्फ संपत्ति ही रहेगी सिवा ऐसी संपत्तियां, जिन पर या तो पहले से ही विवाद है या फिर सरकारी संपत्तियां हैं. वक्फ पर बनी जेपीसी को एएसआई, डीडीए, एल एंड डीओ जैसी सरकारी संस्थाओं ने बताया था कि उन की कई संपत्तियों पर वक्फ का दावा है, जिस से उन्हें समस्याएं आ रही हैं.

2. संशोधित वक्फ एक्ट में जहां कलैक्टर के पास किसी भी सरकारी संपत्ति को गलत तरीके से वक्फ घोषित करने की जांच करने का अधिकार था तो जेपीसी ने सलाह दी है कि एक्ट के सैक्शन 3सी (1),(2),(3) और (4) में संशोधन करने के लिए जांच का अधिकार कलैक्टर रैंक से ऊपर के किसी अधिकारी को दिया जाए, जिसे राज्य सरकार नामित करे.

3. जहां वक्फ संशोधन एक्ट में वक्फ संपत्तियों को एक्ट के लागू होने के बाद 6 महीने में पोर्टल पर दर्ज करवाने की समय सीमा लागू की गई थी तो जेपीसी ने सलाह दी है कि इस 6 महीने की समय सीमा में छूट मिलनी चाहिए और संशोधित सलाह के मुताबिक एक्ट में प्रावधान करना चाहिए कि मुतवल्ली के आवेदन पर वक्फ ट्रिब्यूनल इस 6 महीने की समय सीमा की मियाद को वाजिब कारण होने पर अपने अनुसार बढ़ा सकता है.

4. जहां केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन बिल में सैक्शन 5 के सब सैक्शन 2 में नियम बनाया गया था कि राज्य सरकार की ओर से औकाफ की सूची नोटिफाई करने के 15 दिनों के भीतर इस सूची को पोर्टल पर अपलोड करना होगा, इस पर जेपीसी ने सलाह दी है कि सैक्शन 5 के सब सैक्शन 2(ए) जोड़ा जाए और इस समय सीमा को बढ़ा कर 15 दिन की जगह 90 दिन किया जाए.

5. केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन एक्ट में कानून रखा था कि संशोधित एक्ट के लागू होने के बाद और औकाफ संपत्तियों की सूची नोटिफिकेशन द्वारा जारी होने के 2 साल के भीतर ही कोई व्यक्ति इसे ट्रिब्यूनल में चैलेंज कर सकता था, लेकिन जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि क्लौज 7(ए) (आईवी) में संशोधन कर के इस समय सीमा को बढ़ाने का अधिकार ट्रिब्यूनल को दिया जाए. यानी कोई व्यक्ति अगर 2 साल के बाद भी ट्रिब्यूनल जाता है चैलेंज करने और ट्रिब्यूनल को अगर संतुष्ट करता है कि वह 2 साल तक इस वजह से नहीं आया तो ट्रिब्यूनल उसे स्वीकार कर सकता है.

6. केंद्र सरकार की ओर से संशोधित वक्फ एक्ट में नियम रखा गया था कि सैंट्रल वक्फ काउंसिल में कुल 8 से 11 सदस्य होंगे और इस का प्रमुख अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री एक्स औफिशियो होगा. साथ ही, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय या फिर विभाग का एक जौइंट सेक्रेटरी या फिर एडिशनल सेक्रेटरी लैवल का अधिकारी भी एक्स औफिशियो सदस्य होगा, लेकिन जेपीसी ने इस वक्फ संशोधित एक्ट के क्लौज 9 में संशोधन की सलाह दी है कि सैंट्रल वक्फ काउंसिल में एक्स औफिशियो सदस्यों के अलावा 2 गैरमुसलिम सदस्य होने चाहिए.

उदाहरण: सरकार के संशोधित बिल में अगर सैंट्रल वक्फ काउंसिल में अध्यक्ष यानी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय या विभाग का अधिकारी गैरमुसलिम होंगे तो 2 गैरमुसलिमों की नियमतया गिनती पूरी हो जाएगी, लेकिन जेपीसी ने सलाह दी है कि एक्स औफिशियो के अलावा 2 गैरमुसलिम होने चाहिए, यानी अगर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय या विभाग का अधिकारी गैरमुसलिम है तो भी 2 और गैरमुसलिम सदस्य हो सकते हैं.

7. जेपीसी ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वक्फ एक्ट से ख्वाजा चिश्ती को बाहर रखा गया था. ऐसे में दाऊदी बोहरा समाज भी अलग तरह से अल दाई अल मुतलक सिस्टम से चलता है. ऐसे में मूल एक्ट में संशोधन किया जाए कि यह कानून किसी भी ऐसे ट्रस्ट पर लागू नहीं होगा जिसे किसी मुसलिम व्यक्ति द्वारा वक्फ जैसे उद्देश्यों के लिए बनाया गया हो चाहे वह ट्रस्ट इस कानून के लागू होने से पहले या बाद में बनाया गया हो या पहले से ही किसी अन्य कानून के तहत नियंत्रित हो. उस पर इस कानून का कोई असर नहीं पड़ेगा भले ही किसी अदालत ने कोई फैसला दिया हो.

8. केंद्र सरकार के संशोधित एक्ट में प्रावधान था कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के वक्फ बोर्ड में कुल 2 ही गैरमुसलिम सदस्य हो सकते हैं तो यहां भी जेपीसी ने सलाह दी कि संशोधित एक्ट में बदलाव किया जाए कि राज्य या यूटी का जौइंट सेक्रेटरी या उस के ऊपर का अधिकारी एक्स औफिशियो सदस्य होगा और उस के अलावा राज्य के वक्फ बोर्ड में 2 गैरमुसलिम सदस्य हो सकते हैं.

9. वक्फ एक्ट के क्लौज 16 (ए) में प्रावधान था कि किसी व्यक्ति को वक्फ बोर्ड से हटाया जा सकता है, अगर वह मुसलिम न हो और 21 साल से कम उम्र का हो. जेपीसी ने सुझाव दिया है कि यह क्लौज संशोधित एक्ट के नियमों के खिलाफ है. ऐसे में मुसलिम न होने पर बोर्ड से हटाने वाले नियम को हटाया जाए और सिर्फ 21 साल की उम्र की ही सीमा रखी जाए.

10. केंद्र सरकार ने प्रावधान रखा था कि वक्फ संशोधन एक्ट के लागू होने के 6 महीने के भीतर ही कोई व्यक्ति वक्फ की ओर से किसी ऐसी संपत्ति पर वक्फ से जुड़े अधिकार लागू करने के लिए लिए कानूनी कार्यवाही कर सकता है. अगर वह संपत्ति वक्फ के रूप में दर्ज नहीं है. जेपीसी ने अपने सुझाव में इस समयसीमा को कोर्ट पर छोड़ने का सुझाव दिया है और संशोधित सुझाव दिया है कि यदि कोई व्यक्ति कोर्ट में यह साबित कर सके कि वह उचित कारणों से 6 महीने की समयसीमा के भीतर आवेदन दाखिल नहीं कर सका तो न्यायालय इस समयसीमा के बाद भी उस का आवेदन स्वीकार कर सकता है.

11. जहां पुराने वक्फ एक्ट में प्रावधान था कि वक्फ संपत्ति की देखभाल को ले कर वक्फ बोर्ड का आदेश आखिरी होगा और कोई व्यक्ति 60 दिन में ट्रिब्यूनल जा कर अपील कर सकता है, लेकिन ट्रिब्यूनल सुनवाई के दौरान बोर्ड के आदेश पर रोक नहीं लगा सकता है. नए वक्फ संशोधन एक्ट में बोर्ड का आदेश से आखिरी शब्द हटाया गया और 60 दिन तक अपील की समयसीमा ही रखी थी, साथ ही, आदेश पर रोक का नियम भी हटा दिया गया था. जेपीसी ने सुझाव दिया है कि अपील की समयसीमा 60 से 90 दिन की जाए.

12. जहां पुराने एक्ट में प्रावधान था कि वक्फ की संपत्ति, जिसे कम से कम 5 हजार रुपए सालाना किराए या अन्य कदम से आ रहे हैं, वहां का मुतवल्ली कम से कम 5 प्रतिशत रकम वक्फ को कार्य के लिए वापस दान देगा. केंद्र सरकार ने इसे संशोधित एक्ट में 7 प्रतिशत किया था, जिसे जेपीसी ने फिर से 5 प्रतिशत करने का सुझाव दिया है.

13. जहां पुराने वक्फ कानून के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल के 3 सदस्य होंगे, जिन में एक जिला जज या उस से ऊपर का अधिकारी, एक एडीएम या उस से ऊपर का अधिकारी और तीसरा मुसलिम कानून का जानकार. केंद्र सरकार ने संशोधित कानून में मुसलिम कानून के जानकार को हटा कर सिर्फ 2 सदस्यी ट्रिब्यूनल को रखा था, लेकिन जेपीसी ने देशभर में 19 हजार से ज्यादा मामले वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित होने के कारण सलाह दी है कि वक्फ संशोधित एक्ट में पहले के जैसे 3 सदस्य ट्रिब्यूनल में रहें जिन में तीसरा सदस्य इसलामिक कानून का जानकार हो.

14. जहां पुराने वक्फ कानून में ट्रिब्यूनल की ओर से किसी केस पर फैसला देने की समयसीमा नहीं निर्धारित थी तो नए वक्फ संशोधन एक्ट में केंद्र सरकार ने प्रावधान किया था कि 6 महीने में वक्फ ट्रिब्यूनल को केस पर फैसला देना है और अगर नहीं दिया तो समय 6 महीने और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन ट्रिब्यूनल को पक्षों को लिखित में देना होगा कि क्यों 6 महीने में वह फैसला नहीं दे पाया. यानी, संशोधित कानून में सरकार ने कुल 12 महीने की अधिकतम सीमा रखी थी, जिस में ट्रिब्यूनल को फैसला देना ही था, लेकिन जेपीसी ने अपने सुझाव में इस समयसीमा को हटाने की सिफारिश की है.

15. जहां पुराने वक्फ एक्ट में नियम था कि अगर वक्फ की कोई जमीन भूमि अधिग्रहण नियम के तहत ली जाएगी तो कलैक्टर को वक्फ बोर्ड को सूचना देनी होगी और बोर्ड के पास कलैक्टर के सामने पेश हो कर अपना पक्ष रखने के लिए 3 महीने का अधिकतम समय होगा, लेकिन नए कानून में केंद्र ने यह समयसीमा घटा कर 1 महीने कर दी थी, जिसे जेपीसी ने बढ़ा कर 3 महीने करने की सिफारिश की है.

16. पुराने वक्फ कानून के तहत वक्फ की संपत्ति लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत नहीं आती थी, यानी वक्फ बोर्ड जब चाहे तब अपनी किसी भी संपत्ति को हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता था और उसे यह अधिकार पुराने वक्फ कानून की धारा 107,108,108ए के तहत मिला था, जिसे केंद्र सरकार ने संशोधित वक्फ एक्ट से हटा दिया था. जेपीसी ने सलाह दी है कि संशोधित वक्फ एक्ट में सैक्शन 40 (ए) जोड़ा जाए और नियम बनाया जाए कि जिस दिन से वक्फ संशोधन एक्ट 2025 लागू होगा उस दिन से इस पर लिमिटेशन एक्ट भी लागू होगा.

उदाहरण: एएसआई, रेलवे समेत कई संपत्तियों पर वक्फ का दावा है, जो कई वर्षों से वक्फ के पास नहीं हैं. तमिलनाडु के जिस गांव पर वक्फ ने दावा किया था वो भी इस का उदाहरण है, लेकिन क्योंकि वक्फ संपत्ति पर लिमिटेशन एक्ट 1963 नहीं लागू था तो वह वक्फ जब चाहे तब कब्जा वापस लेने की मांग और कानूनी दावपेंच शुरू कर सकता था, 100 साल, हजारों साल बाद भी. लेकिन लिमिटेशन एक्ट 1963 लागू होने के बाद वक्फ दूसरे के कब्जे में अपनी कथित संपत्ति पर दावा सिर्फ कब्जे के 30 साल के अंतराल में ही कर सकता है.

आगे का अंश बौक्‍स के बाद 

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वक्फ क्या है

वक्फ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘कारावास और निषेध’ या किसी चीज को रोकना या स्थिर रखना. इसलामी कानून के अनुसार, एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ के रूप में दान कर दी जाती है तो उसे बेचा, हस्तांतरित या उपहार के रूप में नहीं दिया जा सकता है. वक्फ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा किसी चल या अचल संपत्ति को मुसलिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से समर्पित करना.

संबंधित व्यक्ति की मौत के बाद वक्फ की गई संपत्ति का इस्तेमाल उस का परिवार नहीं कर सकता. उस संपत्ति को वक्फ का संचालन करने वाली संस्था सामाजिक काम में इस्तेमाल करेगी. वक्फ की संपत्ति का कोई मालिक नहीं होता. वक्फ की संपत्ति का मालिक खुदा को माना जाता है.

वक्फ पर विवाद क्यों

वक्फ अधिनियम के सैक्शन 40 पर बहस छिड़ी है. बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वह खुद से जांच कर सकता है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है. अगर उस संपत्ति में कोई रह रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है. ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. मगर यह प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है.

दरअसल, अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा ही वक्फ रहती है. इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं. सरकार का कहना है कि ऐसे विवादों से बचने की खातिर संशोधन विधेयक ले कर आई है. इस से मुसलिम महिलाओं को भी बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा.
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आगे पढ़ें…

क्या है वक्फ एक्ट 1954

वक्फ एक्ट मुसलिम समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन और नियमन के लिए बनाया गया कानून है. इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का उचित संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करना है ताकि धार्मिक और चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए इन संपत्तियों का उपयोग हो सके. देश में सब से पहली बार 1954 में वक्फ एक्ट बना. इसी के तहत वक्फ बोर्ड का जन्म हुआ.

इस कानून का मकसद वक्फ से जुड़े कामकाज को आसान बनाना था. एक्ट में वक्फ की संपत्ति पर दावे और रखरखाव तक के प्रावधान हैं. 1955 में पहला संशोधन किया गया. 1995 में एक नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना. इस के तहत हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई. बाद में साल 2013 में इस में संशोधन किया गया था.

सरकार और विपक्ष का तर्क

सरकार का तर्क है कि 1995 में वक्फ अधिनियम से जुड़ा मौजूदा विधेयक है. इस में वक्फ बोर्ड को अधिक अधिकार मिले. 2013 में संशोधन कर के बोर्ड को असीमित स्वायत्तता प्रदान की गई. सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफियाओं का कब्जा है. सरकार का कहना है कि संशोधन से संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है. इस से मुसलिम महिलाओं और बच्चों का कल्याण होगा.

इसलामिक देशों में वक्फ संपत्ति

सभी इसलामिक देशों में वक्फ संपत्तियां नहीं हैं. तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जौर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे इसलामिक देशों में वक्फ नहीं है. हालांकि भारत में न केवल वक्फ बोर्ड सब से बड़ा शहरी भूस्वामी है, बल्कि उस के पास कानूनी रूप से उन की सुरक्षा करने वाला एक अधिनियम भी है.

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लूट सको तो लूट लो

हिंदू धर्म के इतिहास की नींव ही जमीनों की लड़ाई पर पड़ी है. वर्तमान में देशभर की छोटीबड़ी अदालतों में कोई 68 फीसदी मुकदमे जमीनी विवाद के चल रहे हैं. महाभारत की लड़ाई जिस में लाखों बेगुनाह मारे गए और खरबों की बरबादी हुई, सिर्फ जमीन के लिए हुई थी. कौरव कहते थे एक बीता भी नहीं देंगे.

कहानी के मुताबिक, पांडव तो इस के लिए तैयार थे लेकिन शांतिदूत बन कर कृष्ण ने धर्म और कर्म के नाम पर जो संहार करवाया वह सनातनियों की रगों में रक्त संस्कार बन कर दौड़ रहा है. एक पुरानी कहावत है, ‘झगड़े की जड़ तीन, जर जोरू और जमीन’. इन में से जोरू को अब ले कर झगड़े कम होते हैं क्योंकि वह अब हजारपांच सौ रुपए में किसी भी बदनाम इलाके में, टैम्परेरी ही सही, मिल जाती है. वैसे भी, कोई गले में ढोल लटका कर कानूनी, सामाजिक और पारिवारिक झंझंट मोल नहीं लेना चाहता.

कीमती होने के चलते जमीनें सब को प्रिय होती हैं और दूसरों की तो कुछ ज्यादा ही भाती हैं. अपनों की जमीन दबाने और कब्जाने का तो मजा ही कुछ और है. भाईभाई लड़ रहे हैं, पड़ोसीपड़ोसी लड़ रहे हैं, चाचाभतीजा एकदूसरे का सिर फोड़ रहे हैं और अब तो पतिपत्नी और भाईबहन भी लड़ने लगे हैं. यह सब महज इसलिए कि हिंदू धर्म सिखाता है कि जैसे भी हो, हड़प लो, छीन लो और सामने वाला कमजोर हो तो लाठी के दम पर कब्जा लो. यानी, वीर भोग्या वसुंधरा की तर्ज पर चलो.

मुसलमान अब हिंदू राज के चलते बेहद कमजोर हो चले हैं, इसलिए वक्फ कानून लाया जा रहा है जिस से उन की जमीनजायदाद कानूनी तौर पर हथियाई जा सकें. सरकार की मंशा वक्फ की आड़ में हिंदुओं का दिल खुश करने की है कि देखो, हम भी इन की कमर आर्थिक तौर पर तोड़ रहे हैं, तुम लोग उन का आर्थिक बहिष्कार करते रहो. अब्दुल से पंचर मत जुड़वाओ, सलीम से सब्जी मत खरीदो तो यह कौम खुदबखुद खत्म हो जाएगी और दलित-आदिवासियों जैसी असहाय हो जाएगी. फिर तुम सहूलियत और इत्मीनान से इन्हें खदेड़ कर जमीनें अपने कब्जे में लेते रहना और वक्त आने पर हम वक्फ की जमीनों को अपने हिसाब से इस्तेमाल करते रहेंगे.

दलितोंपिछड़ों और आदिवासियों की अधिकतर जमीनें दबंगों ने कब्जा रखी हैं. ये लोग अपनी ही जमीनों पर दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं. एवज में पेट भरने के लिए मेहनताना मिल जाता है. यही हाल अब मुसलमानों का हो तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, फिर वे तो विधर्मी हैं, उन्हें कोई हक नहीं कि वे जमीनों के मालिक बनें. जमीनें हिंदुओं की हैं जो मुसलमानों के पास मुगल हुकूमत के दौरान आई हों या उन्होंने खरीदी हों इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. देश सवर्ण हिंदुओं का है. दौर उन्हीं का है. हुकुमत उन्हीं की है. इसलिए संविधान का छद्म लिहाज करते उन्हें भूमिधारी बनाना सरकार का फर्ज है, इसलिए वह वक्फ कानून ला रही है.

वक्फ की जमीनें राष्ट्रहित में नहीं बल्कि धर्म की रक्षा के लिए छीनी जाएंगी. वैसे भी राष्ट्र और धर्म में फर्क कर पाना अब मुश्किल काम नहीं रह गया है. धर्म ही राष्ट्र है जिस में मुसलमान भी दलित-आदिवासियों की तरह गुलाम बन कर रहें, यही उन के लिए बेहतर है. मुगलों की कथित लूट का बदला मोदी सरकार ले रही है. इस से लोकतंत्र हो न हो, धर्मतंत्र जरूर मजबूत हो रहा है जिस के लिए सरकार को चुना गया है. ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….

New Webseries : ‘उप्पस ! अब क्या ?’ – सैक्स न करने वाली लड़की हुई गर्भवती..

New Webseries : ‘उप्पस ! अब क्या ?’

रेटिंगः दो स्टार

2002 में अमेरिका व स्पेन में एक शो ‘जेन द वर्जिन’ (स्पेनिश शीर्षक- जुआना ला विर्जेन) प्रसारित हुआ था, इसे 2002 का वेनेजुएला टेलीनोवेला भी कहा जाता है, जिसे पेरला फरियास ने लिखा और आरसीटीवी ने इस का निर्माण किया था. इसे आरसीटीवी इंटरनेशनल द्वारा दुनियाभर में वितरित किया गया था. इसी पर भारत में 2005 से 2007 तक एक टीवी सीरियल ‘एक लड़की अनजानी’ सी बनी थी. फिर वेनेजुएला टेलीनोवेला का अमरीका में रीमेक कर 2014 से 2019 के बीच ‘जेन एंड वर्जिन’ के नाम से प्रसारित हुआ था.

इसी का हिंदी रीमेक वेब सीरीज ‘उप्स! अब क्या’ ले कर निर्देशक प्रेम मिस्त्री और देबात्मा मंडल आए हैं, जो कि 20 फरवरी से ‘जियो स्टार’ पर स्ट्रीम हो रही है. मूल वेनेजुएला शो और इस का अमेरिकी रीमेक उन संस्कृतियों पर आधारित थे, जिन में गर्भपात और गर्भनिरोधक विवादास्पद मामले थे.

कहानी

इस सीरीज की कहानी रूही जानी (श्वेता बसु प्रसाद) से शुरू होती है. 27 साल की रूही जानी एक पांच सितारा होटल में ड्यूटी मैनेजर है और अपनी नानी सुभद्रा (अपरा मेहता) से किए वादे के कारण अभी भी कुंवारी है, अभी तक सैक्स नही किया है. जबकि वह पिछले तीन साल से पुलिस अफसर ओमकार के साथ प्रेम संबंध में है. रूही का प्रेमी ओमकार (अभय महाजन) रूही के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध है और आधिकारिक तौर पर शादी होने तक इंतजार करने के लिए सहमत है.
सुभद्रा ने रुही से यह आश्वासन इसलिए लिया था, क्योंकि उन की बेटी और रूही की मां, पाखी (सोनाली कुलकर्णी) किशोरावस्था में गर्भवती हुई थी और उस के प्रेमी ने गर्भपात न कराने पर पाखी से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर दिए थे और यह तथ्य एक रूढ़िवादी समाज में सामाजिक शर्मिंदगी का कारण बना था. लेकिन अब रूही, पाखी और सुभद्रा तीनों एक घनिष्ठ परिवार की तरह रहते हैं, और हर शाम एक साथ अपने पसंदीदा टेलीविजन धारावाहिक देखते हैं.

लेकिन कभी सैक्स न करने वाली रूही डाक्टर रोशनी की गलती के चलते गर्भवती हो जाती है. डाक्टर रोशनी अपने सौतेले भाई और रूही के बौस होटल के मालिक समर (आशिम गुलाटी) के शुक्राणु को गलती से रूही के गर्भाशय में इंजैक्ट कर देती है. समर प्रताप उस का सात साल पुराना पूर्व क्रश भी है. उस के बाद रूही (श्वेता बसु प्रसाद) जबरन मातृत्व के साथसाथ अपने परिवार, प्रेमी और उस जोड़े की प्रतिक्रियाओं से निबटती है जिन के लिए उस का कोई इरादा नहीं था.

इस के बाद रूही की व्यक्तिगत नैतिकता, आधुनिक प्रेम, धैर्यवान प्रेमी, परंपरा और पसंद की जटिल परस्पर क्रिया के बीच एक रस्साकशी शुरू हो जाती है. सच जानने के बाद रूही गर्भपात कराना चाहती है, पर फिर वह उस बच्चे को समर व उस की पत्नी अलीशा को दे देने के लिए जन्म देने का फैसला करती है. अलीशा के इस बच्चे की मां बनना स्वीकार करने के पीछे उस की धन पिपासा की कुत्सित चाल है.

समर और उस की पत्नी अलीशा (एमी ऐला) को अपने बच्चे के लिए उपयुक्त मातापिता के रूप में आंकने की रूही की कोशिश कहानी में हास्य और मार्मिकता दोनों जोड़ती है, जबकि उस के लंबे समय से खोए हुए पिता से जुड़ा एक समानांतर उपकथा पीढ़ीगत विमर्श में एक और परत जोड़ता है. कहानी में ड्रग्स तस्कर से ले कर प्लास्टिक सर्जरी भी है.

समीक्षा

कहानी में भावनात्मक उतारचढ़ाव, नाटकीयता और कौमेडी का मिश्रण होते हुए भी बोर करती है. सैक्स न करने और नानी की सलाह पर अमल करने के बावजूद रूही के गलत ढंग से गर्भवती हो जाने पर उस की मानसिक हालत व उस की मन की व्यथा को ठीक से चित्रित नही किया गया. सब कुछ मजाक बना दिया गया.

इस के अलावा कथावाचक यानी कि सूत्रधार द्वारा की गई अतिव्याख्या सीरीज के आकर्षण पर कुठाराघाट करती है. चुटकुले महज हवा में ही रह जाते हैं. लेकिन यह सीरीज अपने विचित्र, अराजक माहौल पर कायम रहते हुए सामाजिक मानदंडों और पाखंडों पर प्रहार भी करती है. फिल्म में रूही के प्रेमी ओमकार को रूही के सामने जितना लाचार और उस की हर सही या गलत बात को मानते हुए दिखाया गया है, वह बहुत अजीब सा लगता है. प्रत्येक एपिसोड के 40 मिनट में भी कई दृश्य जबरन ठूंसे गए हैं.

गति अत्यंत धीमी है, जो पतली कथा को खींचती है. लेखक और निर्देशक कहानी को खींचते व फैलाते चले गए, पर उसे कैसे समेटा जाए, यह समझ में नही आया, तो आठवें एपिसोड में बेतरतीब तरीके से लपेट दिया. छठवें एपिसोड में तो कुछ सीन एकता कपूर के लगभग पंद्रह साल पुराने पौपुलर सीरियल ‘‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से चुराए गए हैं. पर निर्देशक ने इस बात की ओर सफलतापूर्वक इशारा किया है कि परिवार और जीवन में आने वाले अप्रत्याशित मोड़ों की कल्पना कोई नहीं कर सकता. कई दृश्य ऐसे हैं जिन्हें देख कर लगता है कि आखिर यह हो क्या रहा है?

अभिनय

भ्रमित नानी की इच्छा के चलते कौमार्य को भंग होने से बचाने वाली जटिल लड़की रूही के किरदार में श्वेता बसु प्रसाद ने जान डाल दी है, मगर उन्हें पटकथा से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. सुभद्रा के किरदार में अपरा मेहता के हिस्से कुछ खास दृश्य नही आए. पाखी के किरदार में सोनाली कुलकर्णी का अभिनय शानदार है. वराज के किरदार में जावेद जाफरी निराश करते हैं, वैसे लेखकों ने उन के किरदार को सही ढंग से लिखा भी नहीं है. ओमकार ने अपने किरदार को बहुत संजीदा ढंग से निभाया है. पटकथा का सहयोग न मिलने पर भी उन की मेहनत नजर आती है. समर के किरदार में आशिम गुलाटी निराश करते हैं.

Party Tips : मेलजोल के अवसर, बुफे पार्टी

Buffet Party : बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.

पति के औफिस में एक सहकर्मी की बेटी की शादी थी. औफिस से घर आ कर पति ने मुझे कार्ड दिखाया. मैं ने उन्हें कहा कि वे अकेले जा कर शादी अटैंड कर आएं. शादियों का सीजन था और बहुत सारे कार्ड घर में आए थे. अपनी व्यस्त दिनचर्या के साथ सब जगह जाना संभव भी नहीं हो पाता. हां, कोशिश जरूर रहती है कि थोड़ी देर के लिए जा कर सब से मेलमुलाकात व शगुन दे कर वापस आ जाऊं. हमारी यह बातचीत चल ही रही थी कि पति के मोबाइल पर घंटी बजी.

‘सोमेश का फोन है,’ उन्होंने बताया. वही सोमेशजी जिन की बेटी की शादी का कार्ड आज मिला था. फोन उठाने पर सोमेशजी ने मुझ से भी बात करने की इच्छा जाहिर की. दरअसल मेरे पति उन के सीनियर थे और स्वभाव से भी सज्जन, इसलिए स्टाफ के सभी लोग उन से बहुत ही अदब से पेश आते थे. पति ने मेरी तरफ फोन बढ़ाते हुए कहा, ‘लो, बात करो.’

मैं ने सोमेशजी को बिटिया की शादी की बधाई दी और उन्होंने मुझ से जरूर आने का आग्रह किया. उन के आग्रह में इतनी आत्मीयता थी कि मैं मना नहीं कर पाई. ‘हम दोनों जरूर आएंगे, भाईसाहब,’ कह कर मैं ने फोन रख दिया. तय तिथि को हम दोनों पतिपत्नी विवाह समारोह में शामिल होने के लिए निकल गए. बैंक्वेट हौल में पहुंच कर जैसे ही कार पार्क कर रहे थे तो सोमेशजी वहीं दिख गए. बहुत ही आदर के साथ वे हम दोनों को लौन में ले गए. वहां पर कुछ और मित्रों से मुलाकातें हुईं.

यकीनन इस तरह के आयोजन में जाने का मेरा मकसद यही रहता है कि अपने पुराने परिचितों से मुलाकात हो जाए और कुछ नए लोगों से भी परिचय हो जाए. समाज में इस तरह का मेलजोल बहुत जरूरी है खासकर आज के समय में जब एक मोबाइल में सारी दुनिया कैद हुई जा रही है. मानो, किसी को किसी की जरूरत ही नहीं है. एक घर में 4 लोग हैं लेकिन सब अपनेअपने मोबाइल में सिर दे कर बैठे रहते हैं. ऐसे में ये समारोह अवसादग्रस्त मन के लिए दवा का काम करते हैं.

लौन में चारों तरफ ढेर सारे स्टौल लगे हुए थे. हम से कुछ लेने का आग्रह करने के बाद सोमेशजी अपने काम में व्यस्त हो गए. मुझे प्यास लगी थी. पानी पीने के इरादे से उस तरफ बढ़ी. बरात अभी तक आई नहीं थी लेकिन हम ने देखा कि लोग खाने में मस्त थे. जबकि एक समय था जब बरातियों के सम्मान में घराती यानी लड़की की तरफ से आने वाले मेहमान सब से आखिर में खाना खाते थे. चलिए, आज बराबरी का जमाना है, कह कर इस बात को यहीं पर विराम दे देते हैं लेकिन शादी के आयोजन में, खासकर खाने के मैदान में ऐसे बहुत सारे शूरवीर उदाहरण बन कर मिल जाते हैं जो या तो हास्यास्पद लगते हैं या जिन्हें देख कर तरस आता है.

सामाजिक मेलजोल के अवसर

सामाजिक मेलजोल होने की वजह से बड़ी संख्या में निमंत्रणपत्र मिलते रहते हैं. तरहतरह के लोग, उन की तरहतरह की आदतें नजर से बच नहीं पातीं. कुछ उदाहरण इसे आसान बना देंगे. मेरे एक करीबी रिश्तेदार की शादी थी. शहर के एक प्रसिद्ध डाक्टर, जो शायद उन के अच्छे परिचित रहे हों, को मैं ने कोटपैंट पहने हुए आते हुए देखा. मैं भी कई बार उन के क्लीनिक में गई थी और परिचय भी था, इसलिए मेरे मन में विचार आया कि उन से बातचीत जरूर करूंगी. ऐसे मौके पर अकसर भोजन के समय परिचितों से मुलाकात हो जाती है.

मैं भी इसी अवसर की तलाश कर रही थी. तभी मैं ने देखा कि डाक्टर लड़की की मां यानी मेरी चाचीजी के पास गए और उन्हें मुसकराते हुए एक लिफाफा थमाया. चाचाजी के कुछ कहने पर उन्होंने सिर हिलाया. मैं ने अंदाजा लगा लिया कि ‘खाना खाए बिना मत जाना’ कहा होगा क्योंकि मेजबान को अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच भी इस बात का ध्यान रखना ही होता है कि कोई भी मेहमान बिना खाना खाए न जाने पाए.

मेरी नजर डाक्टर साहब पर ही थी. बहुत ही कुशल चिकित्सक होने के साथसाथ वे बड़े सज्जन इंसान भी थे. मैं ने उन्हें खाने के स्टौल की तरफ जाते देखा पर यह क्या, उन्होंने खाने की प्लेट नहीं उठाई बल्कि एक छोटी सी बाउल में कुछ स्वीट ले कर उसे खा कर तुरंत भागते हुए वहां से निकल गए.

खैर, ये तो डाक्टर थे. हम कह सकते हैं कि हैल्थ कौन्शस होंगे. मैं ने बहुत सारे ऐसे लोग देखे हैं जो विवाह के अवसर पर ‘लिफाफे के बदले खाना जरूरी ही है’ इस बात से इत्तफाक नहीं रखते. सब से पहला उदाहरण अपनी मां का देना चाहूंगी जिन की उम्र आज 80 साल है. हमारे बचपन में निकट रिश्तेदारी में बुलावा आने पर वे हमें जरूर ले जाती थीं लेकिन हर किसी निमंत्रण में हमें साथ नहीं ले जाती थीं.

मैं ने उन्हें आज तक कभी भी किसी शादी में खाना खाते हुए नहीं देखा. अपने घर की सादी रोटीसब्जी खा कर वे आज भी इस उम्र में एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रही हैं. न शुगर, न हाई ब्लडप्रैशर और न कोई दूसरी परेशानी. यह सब संतुलित आहार और नियमित दिनचर्या का नतीजा है. याद रखें कि जो भोजन जीभ को आनंद देता है वह पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाता है. शादी में जब भी लोग जाते हैं तो उन की कोशिश रहती है कि लिफाफे में धनराशि तो कम से कम दी जाए लेकिन भोजन भरपेट खा लिया जाए जबकि सचाई यह है कि इस तरह के अवसर मेलजोल का बहाना ले कर आते हैं.

एक जमाना था जब शादीब्याह के कार्यक्रम आपसी मेलजोल के अवसर होते थे. कई नए रिश्ते बन जाते थे. लोग अपने बच्चों के लिए जीवनसाथी भी इन्हीं मुलाकातों के दौरान पसंद कर लेते थे. आज के समय में ये आयोजन घर से बाहर बैंक्वेट हौल में होने लगे हैं. मेहमान भी घर से बाहर होटल में ही ठहरते हैं. कौन आयागया, पता ही नहीं चलता.

खानापीना और मौजमस्ती

बीते दिनों एक नारा बहुत प्रचलित हुआ था, ‘उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में.’ लेकिन अधिकतर लोग इस बात का बिलकुल भी ध्यान नहीं रखते. अभी कुछ दिनों पहले मैं पढ़ रही थी कि भारतीय लोग पढ़ाई से ज्यादा खर्च शादी में करते हैं. यह बात सच है क्योंकि हमें अपना सामाजिक स्तर बनाए रखना होता है और अगर लड़की की शादी है तो बरातियों को खुश करना भी लड़की वालों की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है. एक पिता बच्चों की शादी में अपनी उम्रभर की कमाई लगा देता है.

शुभ अवसरों की बात अगर छोड़ दें तो आजकल किसी आदमी की मृत्यु होने पर भी बारहवेंतेरहवें दिन जो भोज लोगों को कराया जाता है वह किसी पार्टी से कम नहीं होता. बीच में कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने इस का विरोध भी किया था लेकिन चूंकि व्यक्तिगत मामला है तो आप ज्यादा दखल नहीं दे सकते. शादी के अलावा आजकल जन्मदिन, एनिवर्सरी, सगाई जैसे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिन में खानापीना और मौजमस्ती ही होती है.

साथ ही, इस तरह के आयोजनों में बहुत ज्यादा स्टौलों को रखने से कोई फायदा नहीं है. इस से अन्न की बरबादी तो होती ही है, साथ ही, इस में दिखावा भी साफ झलकता है. समर्थ व्यक्ति तो कहीं भी कुछ भी खा लेता है. इस पैसे का इस्तेमाल असमर्थ लोगों को भोजन करा कर किया जा सकता है. यह मेरा व्यक्तिगत विचार है. दरअसल ये सामाजिक आयोजन मात्र खानपान की व्यवस्था ही नहीं बल्कि सामाजिक मेलजोल के महत्त्वपूर्ण कारक होते हैं.

आज अकेलेपन की वजह से इंसान अवसाद में रहता है. एक परिवार के 4 सदस्य भी अपनेअपने गैजेट्स के साथ अलगअलग कमरों में बंद रहते हैं. न जाने आधुनिकता की ऐसी क्या बयार चली कि आज इंसान अकेला होता जा रहा है. दो खौफनाक साल, जो कोरोना के साथ बीते, वे भी इंसान को एकाकी बनाने के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. कोरोना ने इंसान की मनोदशा ही बदल दी थी.

दूर करता है तनाव

आज समाज में एक खोखलापन देखने को मिल रहा है. ऐसा भी नहीं कि इंसान को किसी की जरूरत ही न हो. कुछ समय सोशल मीडिया खा जाता है, थोड़ा हिचक और संकोच और थोड़ा पहल न करने की जिद और यहां पर यह बात दीगर है कि महिलाएं बेहतर सामाजिक संबंध पुरुषों की तुलना में आसानी से बना लेती हैं.

एक समय था जब उन के घर से बाहर निकलने में पाबंदी थी या वे खुद ही घर के कामों में उलझ रहती थीं लेकिन आज वे अपने व्यक्तित्व को संवारने की पूरी कोशिश कर रही हैं. वे नौकरी करें या न करें लेकिन किसी न किसी सामाजिक सेवा के बहाने या किटी पार्टी के बहाने घर से बाहर निकलती हैं और अपनी साथी महिलाओं से मेलजोल बढ़ाती हैं. शायद इसीलिए वे पुरुषों के मुकाबले में कम तनाव रहित रहती हैं.

शादीब्याह, बर्थडे पार्टीज, मैरिज एनिवर्सरी जैसे फंक्शन पारिवारिक फंक्शन हैं जो महिलाओं के साथसाथ पुरुषों व बच्चों को भी सामाजिक जीवन जीने की वजह देते हैं. अधिकतर पुरुष अपने कामकाज में इतने व्यस्त रहते हैं कि दोस्तों और नातेदारों के लिए उन के पास समय ही नहीं रहता और धीरेधीरे समाज से कट जाते हैं.

पुरुष ही क्या, कई महिलाएं भी अपनी व्यस्त जीवनशैली की वजह से समाज से कट जाती हैं. रीना का ही उदाहरण लें. एक समय था जब वह अपनी नौकरी और उस के अतिरिक्त पार्टटाइम जौब में इतना व्यस्त थी कि पैसा तो बेशुमार आ रहा था लेकिन सामाजिक जिंदगी खत्म होती जा रही थी. समय रहते ही उसे इस बात का आभास हुआ और उस ने पार्टटाइम जौब का लालच छोड़ कर सखियोंसहेलियों व दोस्तों को समय देना शुरू किया. कुछ सामाजिक संगठनों से भी वह जुड़ गई. इस तरह उस ने अपनेआप में एक बहुत बड़ा बदलाव महसूस किया जो दिनभर व्यस्त जिंदगी में कभी भी हासिल न हुआ.

लेकिन सभी लोग रीना की तरह नहीं होते. अपनी युवावस्था और जवानीभर आदमी नौकरी करता है और अपने परिवार के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है. धीरेधीरे बच्चे पढ़लिख कर घर से दूर चले जाते हैं और रिटायरमैंट की बेला नजदीक आ जाती है. ऐसे में फिर इंसान को अकेलापन काटने को आता है. ऐसे वक्त में इंसान को समाज और पुराने दोस्त ही संभालते हैं.

सामाजिक मेलजोल का एक सुंदर उदाहरण देखें, दूसरे शहर में रहने वाली मेरी सहेली की बेटी के पीजी में कुछ काम चल रहा था, इसलिए कुछ दिनों के लिए वह मेरे पास रह कर पढ़ाई कर रही थी. वह स्थानीय शौर्ट फिल्मों में काम करने के अलावा मौडलिंग भी करने लगी थी. इसी दौरान हमें एक विवाह समारोह में जाना था लेकिन उसे रात को घर में अकेला कैसे छोड़ें, यह सोच कर उसे भी साथ चलने को कहा.

सहेली की बिटिया सौंदर्य के आधुनिक प्रतिमानों को पूरा करने वाली एक बहुत ही मृदुभाषी और खूबसूरत युवती है. समारोह में पहुंचे, एक फिल्म डायरैक्टर की निगाह उस पर पड़ी और वे बातचीत के लिए हमारे पास आए. बिटिया ने कुछ दिन सोचविचार कर सहमति देने की बात कही और आज उसे काफी काम मिल रहा है.

जरूरत पर आते हैं काम

इसी तरह शादीविवाह के दौरान कई भावी शादियों की बुनियाद भी खड़ी हो जाती है. ये आयोजन मेलमुलाकात के सुंदर माध्यम होते हैं. हम बहुत सारे लोगों से मिलते हैं लेकिन वे सब याद नहीं रहते लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो न जाने क्यों अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उन से बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है. थोड़ी घनिष्ठता बढ़ने पर फोन नंबर का आदानप्रदान और घर पर आमंत्रित करने का प्रस्ताव. यह सब एक नई दोस्ती, नई पहचान को जन्म देता है और यकीनन, मन को बहुत सुकून देता है.

जहां सोशल साइट्स पर की गई दोस्ती में कई बार धोखे की संभावना होती है वहां इस तरह की समझ में किसी भी तरह की धोखाधड़ी की आशंका नहीं रहती क्योंकि अधिकतर लोग अपने ही शहर के होते हैं और दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के जानपहचान वाले होते हैं.

मैं ने अपने जानने वाले कुछ ऐसे लोगों को देखा है जो कहीं भी, कभी भी अनजान लोगों से मिलने पर बातचीत का सिरा पकड़ कर मेलजोल बढ़ा लेते हैं. ऐसे लोग काफी खुशमिजाज और आजादखयाल होते हैं. सामाजिक मेलजोल बढ़ाने का एक सब से बड़ा फायदा यह है कि किसी भी तरह की परेशानी के वक्त पूरा समाज इंसान के साथ खड़ा रहता है.

Kaushal ji vs Kaushal : गलत लेखन ले डूबा अच्छा विषय

Kaushal ji vs Kaushal : रेटिंग – डेढ़ स्टार

हर इंसान अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनी जड़ों से कटता जा रहा है, इस का असर उस के रिश्तों पर भी पड़ता है. यूं तो यह फिल्म दो पीढ़ियों के रिश्तों की बात करती है. पर सीमा देसाई के बचकानी लेखन व निर्देशन ने एक अच्छी कहानी का बंटाधार कर डाला. यदि लेखक व निर्देशक ने थोड़ी सी मेहनत की होती, रिश्तों को समझा होता तो यह फिल्म नई पीढ़ी को रिश्तों और परिवार को समझने का नजरिया दे सकती थी.

फिल्म की कहानी कन्नौज और नोएडा के बीच झूलती रहती है. 30 साल के अविवाहित युग (पावेल गुलाटी ) नोएडा की एड कंपनी में कौपी राइटर हैं. उस की कंपनी को एक मोाबइल कंपनी के लिए अच्छे विज्ञापन बनाने का ठेका मिला है. युग के पिता कौशल (आषुतोष राणा ) और मां (शीबा चड्ढा ) इत्र के लिए मशहूर शहर कन्नौज में रहते हैं. युग के पिता कौशल जी (आशुतोष राणा) एक जिम्मेदार अकाउंटेंट हैं, लेकिन उन का असली जनून कव्वाली गाना है. युग की मां (शीबा चड्ढा) एक साधारण गृहिणी होते हुए भी इत्र बनाने का सपना संजोए बैठी हैं. दोनों ने अपने सपनों को परिवार की जिम्मेदारियों के नीचे दबा दिया है. युग अपने पिता से पैसे मंगाता रहता है पर उसे कन्नौज जाना या मातापिता के फोन उठाने में समस्या है. युग की बहन रीत एक एनजीओ में काम करती है. इस बीच, छोटे से शहर कन्नौज में रहने वाले मातापिता अपने जीवन में खालीपन से निराश हो कर विचारों में अलग हो गए हैं.

युग को न्यूयोर्क से भारत आई लड़की ( ईशा तलवार ) से प्यार हो जाता है, जो अपने विचारों में बहुत अधिक भारतीय है, और वह अपने जीवन में केवल एक ही चीज़ चाहती है, ‘एक कप अदरक वाली चाय और एक साथी जो बीच सफर छोड़ के न जाए.’ उसे एक ऐसा परिवार चाहिए जो प्यार और अपनापन महसूस कराए. कैरियर में कुछ खास न हो पाने के चलते युग पूरी तरह से भ्रमित है. जब वह होली के अवसर पर कन्नौज आता है, तो वह अपने मातापिता के बीच नियमित झगड़े को बर्दाश्त करने की बजाय उन्हें ‘ज्ञान’ देते हुए कहता है कि उस की पीढ़ी बेहतर है क्योंकि वह जानते हैं कि विषाक्त विवाह में रहने की बनिस्बत कैसे आगे बढ़ना है. हालांकि, युग इसे एक परिपक्व वयस्क की तरह संभाल नहीं पाता, जब उस के मातापिता तलाक लेने का फैसला लेते हैं. इस पर युग उन से कहता है, ‘‘मम्मीपापा 50 साल की सालगिरह मनाते हैं, तलाक नहीं लेते हैं.’’ युग अपनी होने वाली शादी को बचाने के लिए अपने मातापिता का तलाक रूकवाने के प्रयास में लग जाता है. अब कहानी क्या मोड़ लेती है,यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

फिल्म की कहानी आधार बहुत सही है. इस तरह के मुद्दों पर फिल्में बननी चाहिए लेकिन घटिया पटकथा लेखन पूरी फिल्म को ले डूबा. फिल्म की गति काफी धीमी है. जब आप परिवार की बात करते हैं, तो जरुरी था कि कन्नौज शहर के रहनसहन पर रोशनी डाली जाती. मगर फिल्मकार ने महज एक होली का प्रकरण व गीत से इतिश्री समझ ली, इसे तो देश के किसी भी कोने में फिल्माया जा सकता है. फिल्म में नायिका,हीरो से कहती है, ‘‘परफेक्ट तो कुछ नहीं होता. पता नहीं हम लोगों से परफेक्शन की उम्मीद क्यों लगाते है…’’ शायद लेखक व निर्देशक यह बात फिल्म के दर्शकों से कह रही हैं.

फिल्मकार दो अलगअलग पीढ़ियों के रिश्तों की पड़ताल करते हुए सपने पूरा करने के लिए युवा पीढ़ी के जड़ से दूर जाने के मूल मुद्दे को ही भूल गईं. जबकि युग के मातापिता नई पीढ़ी के बहकावे में आ कर जड़ से कटते ही तलाक का फैसला लेते हैं. फिल्मकार को भी याद होना चाहिए कि कोई भी इंसानी रिश्ता जहरीला नहीं होता, इंसान की बदली सोच ही उसे सही या गलत बनाती है. इसे समझने के लिए रिश्तों में जीना पड़ता है. लेखक व निर्देशक की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उन्होने इंसानी भावनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में पेश किया है. फिल्म का लहजा हल्काफुल्का कौमेडी है, मगर उपदेशात्मक भाषणबाजी भी है. कव्वाली गायन के शौकीन पर पेशे से एकाउंटेंट साहिल कौशलजी के किरदार में आषुतोष राणा का अभिनय इस फिल्म की जान है. साहिल की पत्नी, इत्र बनाने की शौकीन व पराठे बनाने में माहिर संगीता कौशल के किरदार में शीबा चड्ढा अपनी छाप छोड़ जाती हैं. युग के किरदार में रूप में पावेल गुलाटी प्रभावित नही कर पाते. कियारा के किरदार में ईशा तलवार ठीकठाक हैं, मगर प्रेमी व प्रेमिका के बीच जो केमिस्ट्री होनी चाहिए, उस का पावेल गुलाटी और ईषा तलवार के बीच उस केमिस्ट्री का अभाव नजर आता है. ब्रिजेंद्र काला, दीक्षा जोशी ठीकठाक हैं.

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