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काश! मैं मैडम का कुत्ता होता

सामने वाली कोठी की बालकनी में मैडम रोज सुबह नहा धो कर बाल संवारती आ खड़ी होती थीं. उनके साथ उनका प्यारा डौगी झक सफेद बालों और काली-काली आंखों वाला कभी उनकी गोद में चढ़ कर उनके गालों को चूमता तो कभी उनके कोमल मुलायम हाथों से बिस्कुट खाता नजर आता था. मैं दोनों के इस प्रणय सीन को देखने के चक्कर में सुबह छह बजे ही अपने मकान की छत पर दूरबीन लेकर चढ़ जाता था. कभी मैडम सुबह सवेरे ही नहा-धोकर बालकनी में निकल आतीं, तो कभी आने में नौ-दस भी बजा देती थीं.

मगर मैं था कि जब तक डौगी को उनका मुंह चाटते नहीं देख लेता, दिल को सुकून नहीं मिलता था. इस प्रणय दृश्य को देखकर मैं खूबसूरत कल्पनाओं से सराबोर हो जाता था. फिर भले ही देर हो जाने पर ऑफिस जाकर बड़े साहब की घुड़कियां खानी पड़ें, जो अक्सर मैं खाता ही था, आदत हो गई थी.मैं जब अपने छोटे से कस्बे से इस शहर में नौकरी की तलाश में आया था, तो चलते वक्त मां ने नसीहत की थी, बेटा कुछ भी हो जावे, सुबह नहा-धोकर पूजा करना और सूर्य भगवान को जल देना मत भूलना. मैं एक पेटी में कुछ कपड़े और एक झोले में कुछ बर्तन-भांडे लिए कई दिन इस अनजाने शहर में मकान की तलाश में भटकता रहा. किसी ने बताया कि कोई एलआईजी मकान देख लो, किराया कम होता है.

यहां कैंट एरिया खत्म होते ही सड़क के एक ओर रईसों की बड़ी-बड़ी कोठियां बनी हैं. बेहद खूबसूरत, नक्काशीदार कोठियां, दुमंजिली, तिमंजिली, बड़ी बड़ी बालकनी वाली, फूलों से सजे सुंदर गार्डन ऐसे कि निगाह ही न हटे. वहीं सड़क के दूसरी ओर एलआईजी मकानों की लम्बी कतार है. बेरंग, टूटे फूटे, गंदे और सीलन भरे कमरों वाले. इसी में से एक जर्जर बदसूरत सा मकान मैंने किराए पर ले लिया. मां की नसीहत थी सो पूजा पाठ के लिए एक कोने में रंगीन पन्नी चिपका कर भगवान जी के रहने का बंदोबस्त भी कर दिया. सूर्य भगवान को जल देने सुबह छत पर जाने लगा. एक दिन मोहतरमा अपने डौगी को गोद में लिए बालकनी में खड़ी दिखाई दीं. दूर से दृश्य बहुत साफ नहीं था, मगर निगाहें अटक गई. इतना तो दिख ही रहा था कि डौगी जी उनकी गोद में मचल मचल कर उनके गालों पर बार-बार अपना मुंह लगा रहे थे. दूसरे दिन भी कुछ ऐसा ही दृश्य. तीसरे दिन तो मैं दृश्य को स्पष्ट देखने के लिए बाजार से दूरबीन ले आया. दूरबीन आंखों पर चढ़ा कर दोनों की प्रेम लीलाओं का आनंद लेने लगा. यह मेरा रोज का काम हो गया.

एक दिन शाम को लौटते समय मैंने कोठी के दरबान को सलाम ठोंक दिया. उसका सीना साहब की तरह चौड़ा हो गया. मारे खुशी के स्टूल से उठ कर मेरे पास आया. मैंने उससे यूं ही माचिस मांग ली. दरअसल मेरी मंशा कुछ और थी. उसने माचिस दी तो मैं बोला, ‘सामने ही रहता हूं. इधर से रोजाना निकलना होता है.’ उसने सिर हिलाया. मैं आगे बढ़ गया. धीरे-धीरे मैं रोज ही किसी न किसी बहाने उसके पास रुकने लगा. फिर तो कभी-कभी वह चाय भी पिलाने लगा. दोस्ती हो गई. उसी से मुझे मैडम के कुत्ते का नाम पता चला. क्यूपिड. बड़ा क्यूट नाम था. एक दिन मैंने पूछा, ‘मैडम सारे दिन क्यूपिड के साथ रहती हैं?’ मेरा सवाल पूछना ही था कि उसने पूरा कुत्ता पुराण सुना डाला. बोला, ‘अरे भाई, वह कुत्ता नहीं, उनका सगेवाला ही समझो. एसी में रहता है. कार में घूमने जाता है. जॉनसन साबुन से नहाता है. बढ़िया चिकेन करी और ब्रेड खाता है. फुल क्रीम मिल्क पीता है. मैडम से इतना प्यार करता है कि साहब भी कभी न कर पाए. साहब का मैडम से झगड़ा भी इसी के कारण हुआ. अब साहब अलग बेडरूम में सोता है और मैडम क्यूपिड के साथ डबल बेड पर अलग बेडरूम में रहती हैं. कुत्ते पर जान देती हैं. मजाल है कोई उनके क्यूपिड को कुत्ता कह दे….’

कुत्ता पुराण सुन कर मैं हैरान रह गया. जलन के मारे सीना फुंकने लगा, कानों से धुंआ निकलने लगा और मुंह से निकला, ‘काश मैं मैडम का कुत्ता होता.’

सांझ पड़े घर आना

‘‘अब सब कुछ खत्म हो गया था. मैं ने उस पर कई झूठे इलजाम लगाए, जिन से उस का बच पाना संभव नहीं था…’’

उसकी मेरे औफिस में नईनई नियुक्ति हुई थी. हमारी कंपनी का हैड औफिस बैंगलुरु में था और मैं यहां की ब्रांच मैनेजर थी. औफिस में कोई और केबिन खाली नहीं था, इसलिए मैं ने उसे अपने कमरे के बाहर वाले केबिन में जगह दे दी. उस का नाम नीलिमा था.

क्योंकि उस का केबिन मेरे केबिन के बिलकुल बाहर था, इसलिए मैं उसे आतेजाते देख सकती थी. मैं जब भी अपने औफिस में आती, उसे हमेशा फाइलों या कंप्यूटर में उलझा पाती. उस का औफिस में सब से पहले पहुंचना और देर तक काम करते रहना मुझे और भी हैरान करने लगा.

एक दिन मेरे पूछने पर उस ने बताया कि पति और बेटा जल्दी चले जाते हैं, इसलिए वह भी जल्दी चली आती है. फिर सुबहसुबह ट्रैफिक भी ज्यादा नहीं रहता.

वह रिजर्व तो नहीं थी, पर मिलनसार भी नहीं थी. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. उस का मेकअप भी एकदम नपातुला होता. वह अधिकतर गोल गले की कुरती ही पहनती. कानों में छोटे बुंदे, मैचिंग बिंदी और नाममात्र का सिंदूर लगाती.

इधर मैं कंपनी की ब्रांच मैनेजर होने के नाते स्वयं के प्रति बहुत ही संजीदा थी. दिन में जब तक 3-4 बार वाशरूम में जा कर स्वयं को देख नहीं लेती, मुझे चैन ही नहीं पड़ता. परंतु उस की सादगी के सामने मेरा सारा वजूद कभीकभी फीका सा पड़ने लगता.

लंच ब्रेक में मैं ने अकसर उसे चाय के साथ ब्रैडबटर या और कोई हलका नाश्ता करते पाया. एक दिन मैं ने उस से पूछा तो कहने लगी, ‘‘हम लोग नाश्ता इतना हैवी कर लेते हैं कि लंच की जरूरत ही महसूस नहीं होती. पर कभीकभी मैं लंच भी करती हूं. शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा. वैसे भी मेरे पति उमेश और बेटे मयंक को तरहतरह के व्यंजन खाने पसंद हैं.’’

‘‘वाह,’’ कह कर मैं ने उसे बैठने का इशारा किया, ‘‘फिर कभी हमें भी तो खिलाइए कुछ नया.’’

इसी बीच मेरा फोन बज उठा तो मैं अपने केबिन में आ गई.

एक दिन वह सचमुच बड़ा सा टिफिन ले कर आ गई. भरवां कचौरी, आलू की सब्जी और बूंदी का रायता. न केवल मेरे लिए बल्कि सारे स्टाफ के लिए.

इतना कुछ देख कर मैं ने कहा, ‘‘लगता है कल शाम से ही इस की तैयारी में लग गई होगी.’’

वह मुसकराने लगी. फिर बोली, ‘‘मुझे खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक है. यहां तक कि हमारी कालोनी में कोई भी पार्टी होती है तो सारी डिशेज मैं ही बनाती हूं.’’

नीलिमा को हमारी कंपनी में काम करते हुए 6 महीने हो गए थे. न कभी वह लेट हुई और न जाने की जल्दी करती. घर से तरहतरह का खाना या नाश्ता लाने का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा. कई बार मैं ने उसे औफिस के बाद भी काम करते देखा. यहां तक कि वह अपने आधीन काम करने वालों की मीटिंग भी शाम 6 बजे के बाद ही करती. उस का मानना था कि औफिस के बाद मन भी थोड़ा शांत रहता है और बाहर से फोन भी नहीं आते.

एक दिन मैं ने उसे दोपहर के बाद अपने केबिन में बुलाया. मेरे लिए फुरसत से बात करने का समय दोपहर के बाद ही होता था. सुबह मैं सब को काम बांट देती थी. हमारी कंपनी बाहर से प्लास्टिक के खिलौने आयात करती और डिस्ट्रीब्यूटर्स को भेज देती थी. हमारी ब्रांच का काम और्डर ले कर हैड औफिस को भेजने तक ही सीमित था.

नीलिमा ने बड़ी शालीनता से मेरे केबिन का दरवाजा खटखटा भीतर आने की इजाजत मांगी. मैं कुछ पुरानी फाइलें देख रही थी. उसे बुलाया और सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. मैं ने फाइलें बंद कीं और चपरासी को बुला कर किसी के अंदर न आने की हिदायत दे दी.

नीलिमा आप को हमारे यहां काम करते हुए 6 महीने से ज्यादा का समय हो गया. कंपनी के नियमानुसार आप का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो चुका है. यहां आप को कोई परेशानी तो नहीं? काम तो आपने ठीक से समझ ही लिया है. स्टाफ से किसी प्रकार की कोई शिकायत हो तो बताओ.

‘‘मैम, न मुझे यहां कोई परेशानी है और न ही किसी से कोई शिकायत. यदि आप को मेरे व्यवहार में कोई कमी लगे तो बता दीजिए. मैं खुद को सुधार लूंगी… मैं आप के जितना पढ़ीलिखी तो नहीं पर इतना जरूर विश्वास दिलाती हूं कि मैं अपने काम के प्रति समर्पित रहूंगी. यदि पिछली कंपनी बंद न हुई होती तो पूरे 10 साल एक ही कंपनी में काम करते हो जाते,’’ कह कर वह खामोश हो गई. उस की बातों में बड़ा ठहराव और विनम्रता थी.

‘‘जो भी हो, तुम्हें अपने परिवार की भी सपोर्ट है. तभी तो मन लगा कर काम कर सकती हो. ऐसा सभी के साथ नहीं होता है.’’ मैं ने थोड़े रोंआसे स्वर में कहा.

वह मुझे देखती रही जैसे चेहरे के भाव पढ़ रही हो. मैं ने बात बदल कर कहा, ‘‘अच्छा मैं ने आप को यहां इसलिए बुलाया है कि अगला पूरा हफ्ता मैं छुट्टी पर रहूंगी. हो सकता है

1-2 दिन ज्यादा भी लग जाएं. मुझे उम्मीद है आप को कोई ज्यादा परेशानी नहीं होगी. मेरा मोबाइल चालू रहेगा.’’

‘‘कहीं बाहर जा रही हैं आप?’’

उस ने ऐसे पूछा जैसे मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहूंगी तो यहीं… कोर्ट की आखिरी तारीख है. शायद मेरा तलाक मंजूर हो जाए. फिर मैं कुछ दिन सुकून से रहना चाहती हूं.’’

‘‘तलाक?’’ कह जैसे वह अपनी सीट से उछली हो.

‘‘हां.’’

‘‘इस उम्र में तलाक?’’ वह कहने लगी, ‘‘सौरी मैम मुझे पूछना तो नहीं चाहिए पर…’’

‘‘तलाक की भी कोई उम्र होती है? सदियों से मैं रिश्ता ढोती आई

हूं. बेटी यूके में पढ़ने गई तो वहीं की हो कर रह गई. मेरे पति और मेरी कभी बनी ही नहीं और अब तो बात यहां तक आ गई है कि खाना भी बाहर से ही आता है. मैं थक गई यह सब निभातेनिभाते… और जब से बेटी ने वहीं रहने का निर्णय लिया है, हमारे बीच का वह पुल भी टूट गया,’’ कहतेकहते मेरी आंखों में आंसू आ गए.

वह धीरे से अपनी सीट से उठी और मेरी साड़ी के पल्लू से मेरे आंसू पोंछने लगी.

फिर सामने पड़े गिलास से मुझे पानी पिलाया और मेरी पीठ पर स्नेह भरा हाथ रख दिया.

बहुत देर तक वह यों ही खड़ी रही. अचानक गमगीन होते माहौल को सामान्य करने के लिए मैं ने 2-3 लंबी सांसें लीं और फिर अपनी थर्मस से चाय ले कर 2 कपों में डाल दी.

उस ने चाय का घूंट भरते हुए धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘मैम, मैं तो आप से बहुत छोटी हूं. मैं आप के बारे में न कुछ जानती हूं और न ही जानना चाहती हूं. पर इतना जरूर कह सकती हूं कि कुछ गलतियां आप की भी रही होंगी… पर हमें अपनी गलती का एहसास नहीं होता. हमारा अहं जो सामने आ जाता है. हो सकता है आप को तलाक मिल भी जाए… आप स्वतंत्रता चाहती हैं, वह भी मिल जाएगी, पर फिर क्या करेंगी आप?’’

‘‘सुकून तो मिलेगा न… जिंदगी अपने ढंग से जिऊंगी.’’

‘‘अपने ढंग से जिंदगी तो आज भी जी रही हैं आप… इंडिपैंडैंट हैं अपना काम करने के लिए… एक प्रतिष्ठित कंपनी की बौस हैं… फिर…’’ कह कर वह चुप हो गई. उस की भाषा तल्ख पर शिष्ट थी. मैं एकदम सकपका गई. वह बेबाक बोलती जा रही थी.

मैं ने झल्ला कर तेज स्वर में पूछा, ‘‘मैं समझ नहीं पा रही हूं तुम मेरी वकालत कर रही हो, मुझ से तर्कवितर्क कर रही हो, मेरा हौंसला बढ़ा रही हो या पुन: नर्क में धकेल रही हो.’’

‘‘मैम,’’ वह धीरे से पुन: शिष्ट भाषा में बोली, ‘‘एक अकेली औरत के लिए, वह भी तलाकशुदा के लिए अकेले जिंदगी काटना कितना मुश्किल होता है, यह कैसे बताऊं आप को…’’ ‘‘पहले आप के पास पति से खुशियां बांटने का मकसद रहा होगा, फिर बेटी और उस की पढ़ाई का मकसद. फिर लड़ कर अलग होने का

मकसद और अब जब सब झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी तो क्या मकसद रह जाएगा? आगे एक अकेली वीरान जिंदगी रह जाएगी…’’ कह कर

वह चुप हो गई और प्रश्नसूचक निगाहों से मुझे देखती रही.

फिर बोली, ‘‘मैम, आप कल सुबह यह सोच कर उठना कि आप स्वतंत्र हो गई हैं पर आप के आसपास कोई नहीं है. न सुख बांटने को न दुख बांटने को. न कोई लड़ने के लिए न झगड़ने के लिए. फिर आप देखना सब सुखसुविधाओं के बाद भी आप अपनेआप को अकेला ही पाएंगी.’’

मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहना चाहती है. मेरे चेहरे पर कई रंग आ रहे थे, परंतु एक बात तो ठीक थी कि तलाक के बाद अगला कदम क्या होगा. यह मैं ने कभी ठीक से सोचा न था.

‘‘मैम, मैं अब चलती हूं. बाहर कई लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं… जाने से पहले एक बार फिर से सलाह दूंगी कि इस तलाक को बचा लीजिए,’’ कह वह वहां से चली गई.

उस के जाने के बाद पुन: उस की बातों ने सोचने पर मजबूर कर दिया. मेरी सोच का दायरा अभी तक केवल तलाक तक सीमित था…उस के बाद व्हाट नैक्स्ट?

उस पूरी रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. सुबहसुबह कामवाली बालकनी में चाय रख

कर चली गई. मैं ने सामने वाली कुरसी खींच

कर टांगें पसारीं और फिर भूत के गर्भ में चली गई. किसी ने ठीक ही कहा था कि या तो हम

भूत में जीते हैं या फिर भविष्य में. वर्तमान में जीने के लिए मैं तब घर वालों से लड़ती रही

और आज उस से अलग होने के लिए. पापा को मनाने के लिए इस के बारे में झूठसच का सहारा लेती रही, उस की जौब और शिक्षा के बारे में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करती रही और आज उस पर उलटेसीधे लांछन लगा कर तलाक ले रही हूं.

तब उस का तेजतर्रार स्वभाव और खुल कर बोलना मुझे प्रभावित करता था और अब वही चुभने लगा है. तब उस का साधारण कपड़े पहनना और सादगी से रहना मेरे मन को भाता था और अब वही सब मेरी सोसाइटी में मुझे नीचा दिखाने की चाल नजर आता है. तब भी उस की जौब और वेतन मुझ से कम थी और आज भी है.

‘‘ऐसा भी नहीं है कि पिछले 25 साल हमने लड़तेझगड़ते गुजारे हों. कुछ सुकून और प्यारभरे पल भी साथसाथ जरूर गुजारे होंगे. पहाड़ों, नदियों और समुद्री किनारों के बीच हम ने गृहस्थ की नींव भी रखी होगी. अपनी बेटी को बड़े होते भी देखा होगा और उस के भविष्य के सपने भी संजोए होंगे. फिर आखिर गलती हुई कहां?’’ मैं सोचती रही गई.

अपनी भूलीबिसरी यादों के अंधेरे गलियारों में मुझे इस तनाव का सिरा पकड़ में

नहीं आ रहा था. जहां तक मुझे याद आता है मैं बेटी को 12वीं कक्षा के बाद यूके भेजना चाहती थी और मेरे पति यहीं भारत में पढ़ाना चाहते थे. शायद उन की यह मंशा थी कि बेटी नजरों के सामने रहेगी. मगर मैं उस का भविष्य विदेशी धरती पर खोज रही थी? और अंतत: मैं ने उसे अपने पैसों और रुतबे के दम पर बाहर भेज दिया. बेटी का मन भी बाहर जाने का नहीं था. पर मैं जो ठान लेती करती. इस से मेरे पति को कहीं भीतर तक चोट लगी और वह और भी उग्र हो गए. फिर कई दिनों तक हमारे बीच अबोला पसर गया.

हमारे बीच की खाई फैलती गई. कभी वह देर से आता तो कभी नहीं भी आता. मैं ने कभी इस बात की परवाह नहीं की और अंत में वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था. बेटी विदेश क्या गई बस वहीं की हो गई. फिर वहीं पर एक विदेशी लड़के से शादी कर ली. कोई इजाजत नहीं बस निर्णय… मेरी तरह.

उस रात हमारा जम कर झगड़ा हुआ. उस का गुस्सा जायज था. मैं झुकना नहीं जानती थी. न जीवन में झुकी हूं और न ही झुकूंगी…वही सब मेरी बेटी ने भी सीखा और किया. नतीजा तलाक पर आ गया. मैं ने ताना दिया था कि इस घर के लिए तुम ने किया ही क्या है. तुम्हारी तनख्वाह से तो घर का किराया भी नहीं दिया जाता… तुम्हारे भरोसे रहती तो जीवन घुटघुट कर जीना पड़ता. और इतना सुनना था कि वह गुस्से में घर छोड़ कर चला गया.

अब सब कुछ खत्म हो गया था. मैं ने उस पर कई झूठे इलजाम लगाए, जिन से उस का बच पाना संभव नहीं था. मैं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी थी और अब उस का अंतिम फैसला कल आना था. उस के बाद सब कुछ खत्म. परंतु नीलिमा ने इस बीच एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया जो मेरे कलेजे में बर्फ बन कर जम गया.

पर अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था, होने वाला था. बस मेरे कोर्ट में हाजिरी लगाने भर की देरी थी. मेरे पास आज भी 2 रास्ते खुले थे. एक रास्ता कोर्ट जाता था और दूसरा उस के घर की तरफ, जहां वह मुझ से अलग हो कर चला गया था. कोर्ट जाना आसान था और उस के घर की तरफ जाने का साहस शायद मुझ में नहीं था. मैं ने कोर्ट में उसे इतना बेईज्जत किया, ऐसेऐसे लांछन लगाए कि वह शायद ही मुझे माफ करता. मैं अब भी ठीक से निर्णय नहीं ले पा रही थी.

हार कर मैं ने पुन: नीलिमा से मिलने का फैसला किया जिस ने मेरे शांत होते जीवन में पुन: उथलपुथल मचा दी थी. मैं उस दोराहे से अब निकलना चाहती थी. मैं ने कई बार उसे आज फोन किया, परंतु उस का फोन लगातार बंद मिलता रहा.

आज रविवार था. अत: सुबहसुबह वह घर पर मिल ही जाएगी, सोच मैं उसे

मिलने चली गई. मेरे पास स्टाफ के घर का पता और मोबाइल नंबर हमेशा रहता था ताकि किसी आपातकालीन समय में उन से संपर्क कर सकूं. वह एक तीनमंजिला मकान में रहती थी.

‘‘मैम, आप?’’ मुझे देखते ही वह एकदम सकपका गई? ‘‘सब ठीक तो है न?’’

‘‘सब कुछ ठीक नहीं है,’’ मैं बड़ी उदासी से बोली. वह मेरे चेहरे पर परेशानी के भाव देख रही थी.

मैं बिफर कर बोली, ‘‘तुम्हारी कल की बातों ने मुझे भीतर तक झकझोर कर रख दिया है.’’

वह हतप्रभ सी मेरे चेहरे की तरफ

देखती रही.

‘‘क्या मैं कुछ देर के लिए अंदर आ

सकती हूं?’’

‘‘हां मैम,’’ कह कर वह दरवाजे के सामने से हट गई, ‘‘आइए न.’’

‘‘सौरी, मैं तुम्हें बिना बताए आ गई. मैं क्या करती. लगातार तुम्हारा फोन ट्राई कर रही थी पर स्विचऔफ आता रहा. मुझ से रहा नहीं गया तो मैं आ गई,’’ कहतेकहते मैं बैठ गई.

ड्राइंगरूम के नाम पर केवल 4 कुरसियां और एक राउंड टेबल, कोने में अलमारी और कंप्यूटर रखा था. घर में एकदम खामोशी थी.

वह मुझे वहां बैठा कर बोली, ‘‘मैं चेंज कर के आती हूं.’’

थोड़ी देर में वह एक ट्रे में चाय और थोड़ा नमकीन रख कर ले आई और सामने की कुरसी पर बैठ गई. हम दोनों ही शांत बैठी रहीं. मुझे

बात करने का सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने कहा, ‘‘मैं ने सुबहसुबह आप लोगों को डिस्टर्ब किया. सौरी… आप का पति और बेटा कहीं बाहर गए हैं क्या? बड़ी खामोशी है.’’

वह मुझे ऐसे देखने लगी जैसे मैं ने कोई गलत बात पूछ ली हो. फिर नजरें नीची कर के बोली, ‘‘मैम, न मेरा कोई पति है न बेटा. मुझे पता नहीं था कि मेरा यह राज इतनी जल्दी खुल जाएगा,’’ कह कर वह मायूस हो गई. मैं हैरानी

से उस की तरफ देखने लगी. मेरे पास शब्द नहीं थे कि अगला सवाल क्या पूछूं. मैं तो अपनी समस्या का हल ढूंढ़ने आई थी और यहां तो… फिर भी हिम्मत कर के पूछा, तो क्या तुम्हारी शादी नहीं हुई?

‘‘हुई थी मगर 6 महीने बाद ही मेरे पति एक हादसे में गुजर गए. एक मध्यवर्गीय लड़की, जिस के भाई ने बड़ी कठिनाई से विदा किया हो और ससुराल ने निकाल दिया हो, उस का वजूद क्या हो सकता है,’’ कहतेकहते उस की आवाज टूट गई. चेहरा पीला पड़ गया मानो वही इस हालात की दोषी हो.

‘‘जवान अकेली लड़की का होना कितना कष्टदायी होता है, यह मुझ से बेहतर और कौन जान सकता है… हर समय घूरती नजरों का सामना करना पड़ता है…’’

‘‘तो फिर तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘कोशिश तो की थी पर कोई मन का नहीं मिला. अपनी जिंदगी के फैसले हम खुद नहीं करते, बल्कि बहुत सी स्थितियां करती हैं.

‘‘अकेली लड़की को न कोई घर देने को तैयार है न पेइंग गैस्ट रखना चाहता है. मेरी जिंदगी के हालात बहुत बुरे हो चुके थे. हार कर मैं ने ‘मिसेज खन्ना’ लिबास ओढ़ लिया. कोई पूछता है तो कह देती हूं पति दूसरे शहर में काम करते हैं. हर साल 2 साल में घर बदलना पड़ता है. और कभीकभी तो 6 महीने में ही, क्योंकि पति नाम की वस्तु मैं खरीद कर तो ला नहीं सकती. आप से भी मैं ने झूठ बोला था. पार्टियां, कचौरियां, बच्चे सब झूठ था. अब आप चाहे रखें चाहे निकालें…’’ कह कर वह नजरें झुकाए रोने लगी. मेरे पास कोई शब्द नहीं था.

‘‘बड़ा मुश्किल है मैडम अकेले रहना… यह इतना आसान नहीं है जितना

आप समझती हैं… भले ही आप कितनी भी सामर्थ्यवान हों, कितना भी पढ़ीलिखी हों, समाज में कैसा भी रुतबा क्यों न हो… आप दुनिया से तो लड़ सकती हैं पर अपनेआप से नहीं. तभी तो मैं ने कहा था कि आप अपनी जिंदगी से समझौता कर लीजिए.’’

मेरा तो सारा वजूद ही डगमगाने लगा. मुझे जहां से जिंदगी शुरू करनी थी, वह सच तो मेरे सामने खड़ा था. अब इस के बाद मेरे लिए निर्णय लेना और भी आसान हो गया. मेरे लिए यहां बैठने का अब कोई औचित्य भी नहीं था. जब आगे का रास्ता मालूम न हो तो पीछे लौटना ही पड़ता है.

मैं भरे मन से उठ कर जाने लगी तो नीलिमा ने पूछा, ‘‘मैम, आप ने बताया नहीं आप क्यों

आई थीं.’’

‘‘नहीं बस यों ही,’’ मैं ने डबडबाती आंखों से उसे देखा

वह बुझे मन से पूछने लगी, ‘‘आप ने बताया नहीं मैं कल से काम पर आऊं या…’’ और हाथ जोड़ दिए.

पता नहीं उस एक लमहे में क्या हुआ कि

मैं उस की सादगी और मजबूरी पर बुरी तरह रो पड़ी. न मेरे पास कोई शब्द सहानुभूति का था और न ही सांत्वना का. इन शब्दों से ऊपर भी शब्द होते तो आज कम पड़ जाते. एक क्षण के लिए काठ की मूर्ति की तरह मेरे कदम जड़ हो गए.

मैं अपने घर आ कर बहुत रोई. पता नहीं उस के लिए या अपने अहं के लिए… और कितनी बार रोई. शाम होतेहोते मैं ने बेहद विनम्रता से अपने पति को फोन किया और साथ रहने की प्रार्थना की. बहुत अनुनयविनय की. शायद मेरे ऐसे व्यवहार पर पति को तरस आ गया और वह मान गए.

और हां, जिस ने मुझे तबाही से बचा

लिया, उसे मैं ने एक अलग फ्लैट ले कर दे

दिया. अब वह ‘मिसेज खन्ना’ का लिबास नहीं ओढ़ती. नीलिमा और सिर्फ नीलिमा. उस के मुझ पर बहुत एहसान हैं. चुका तो सकती नहीं पर भूलूंगी भी नहीं.

मेरे औफिस का कलीग मेरे साथ सैक्स करने की जिद कर रहा है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं दिल्ली के द्वार्का इलाके की रहने वाली हूं और मेरी उम्र 30 साल है. करीब 2 साल पहले ही मेरी शादी हुई है. मेरे पति का खुद का बिजनेस है और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती हूं. मेरे पति काम की वजह से अक्सर रात को देरी से घर आते हैं और औफिस जाने के कारण मैं भी थक कर जल्दी सो जाती हूं तो ऐसे में मेरे पति और मेरे बीच काफी कम ही बातचीत हो पाती है. हाल ही में मेरे औफिस में एक लड़के ने ज्वाइन किया है जो दिखने में बहुत हैंडसम और फिट है. वे मुझसे उम्र में 3 साल छोटा है लेकिन उसकी फिजीक कमाल की है. मैं उसे मन ही मन पसंद करने लगी थी और शायद वो भी मुझसे कुछ चाह रहा था. देखते ही देखते हम दोनों ने एक दूसरे को अपना नंबर दिया और मैसेज पर रोजाना बात होने लगी. कुछ दिनों से वे लड़का मेरे साथ सैक्स करने की जिद कर रहा है और मुझे अपने साथ होटल चलने को कह रहा है. सच कहूं तो उसके साथ सैक्स करने का मेरा भी बहुत मन है लेकिन मुझे डर है कि अगर मेरे पति को इस बारे में पता चल गया तो वे कहीं मुझसे तलाक ना ले लें. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

पति-पत्नी के रिश्ते की डोर बहुत नाजुक होती है और यह डोर सिर्फ विश्वास पर टिकी होती है. जब रिश्ते में विश्वास खत्म हो जाता है तो फिर उस रिश्ते के कोई मायने नहीं रहते. आप जो कर रही हैं या जो सोच रही हैं वे बिल्कुल गलत है. आपके पति काम में बिजी रहते हैं क्यूंकि उनके ऊपर घर चलाने की जिम्मेदारी है और ऐसे में अगर आप किसी दूसरे लड़के के साथ संबंध बना लेंगी तो सोचिए उनके दिल पर क्या बीतेगी ?

अगर आपको अपने पति से कोई शिकायत है तो आप उनके साथ शेयर करें और उन्हें बताएं कि आप उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहती हैं तो उनको अपने काम का साथ साथ आपको भी समय देना चाहिए. आप अपने पति से कहिए कि वे अपने काम से कुछ दिनों की छुट्टी ले लें और आप दोनों एक साथ किसी ट्रिप पर चले जाइए जिससे कि आप दोनों एक दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिता पाएं जो आपने काफी समय से नहीं बिताया है.

आपको अपने औफिस वाले लड़के के साथ सारे संबंधों को खत्म कर देना चाहिए क्यूंकि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आपका बसा बसाया घर सिर्फ एक गलती की वजह से तहस नहस हो सकता है. एक बार जो घर उजड़ जाते हैं उन्हें बसाने में लोगों की जिंदगी बीत जाती है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

कहीं दोस्त ही बन न जाए जान का दुश्मन

वैसे तो आपने दोस्ती पर बहुत से गाने सुने होंगे लेकिन हमारे इस लेख के लिए यह गाना बिल्कुल सटीक है “दोस्त दोस्त न रहा”. जी हां जिस दोस्ती की लोग आपस में कसमे खाते हैं जो खून का रिश्ता नहीं भी हो कर गहरा हो जाता है उसी रिश्ते को कुछ लोग दागदाग कर देते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि किस पर विश्वास करें. जो हमारी दोस्ती के लायक हो.

हाल ही में एक प्रौपर्टी डीलर का कत्ल उसी के अपने दो दोस्तों ने कर दिया. महज सोने की चेन, ब्रेसलेट और 6,400 रुपए के लिए.

प्रौपर्टी डीलर संजय यादव गाज़ियाबाद का रहने वाला था. जिस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. साजिश के तहत दोस्त ने संजय को थाना मधुबन बापूधाम के अक्षय एंक्लेव की जैन बिल्डिंग स्थित घर बुलाया. वहां साथ तीनों ने बियर पी. नशे में धुत होने के बाद संजय के गले में में कुत्ते के पट्टा दबा कर मार डाला गया और शव को संजय की फार्च्यूनर कार में रख कर जला दिया.

पुलिस ने बताया कि शव की पहचान होने के बाद संजय यादव के भाई ने विशाल और जीत पर हत्या करने का शक जताया. दोनों आरोपियों ने कबूला कि पैसे और गहने हड़पने के लिए वारदात को अंजाम दिया था.

तो आज का समय सतर्क होने का है. दोस्ती करने से पहले जरूरी है कि आप को व्यक्ति की पहचान करनी आती हो.

ऐसे करें सच्चे दोस्त की पहचान

* कभी भी ऐसे व्यक्ति को अपना मित्र ना बनाएं जो पीठ पीछे आप की बुराई करता हो और सामने आप की तारीफ. ऐसे में इन लोगों से दूर रहना ही भला है.

*भरोसा करो लेकिन आंख मुंद कर नहीं क्योंकि कई बार वहीं भरोसा तोड़ते हैं जिन पर हम अत्यधिक विश्वास करते हैं. कभी रिश्तों में अनबन हो जाए तो वही मित्र उन सभी राज को खोल सकता है जो आपने उस पर भरोसा कर के उसे बताए हैं.

*दोस्ती हमेशा हम उम्र के लोगों से करनी चाहिए. क्योंकि कई बार उम्र का फर्क होने के कारण रिश्तों में दरार आने की संभावना ज्यादा रहती है. और आजकल दोस्ती सामने वाले का पैसा व रुतबा देख कर करने का चलन है. ऐसे में किसी से भी दोस्ती करते समय इन बातों का खास ख्याल रखें.

*आप से विपतीत सोच रखने वालों से दोस्ती कतई न करें. क्योंकि आप के विचारों में मतभेद ही दोस्ती में खटास डाल सकते हैं.

*दोस्त का चयन करते समय खूब सोचविचार कर व सामने वाले की नियत जानने की कोशिश करें.

आरएसएस से मुकाबला, कांग्रेस दिखाए बड़ा दिल

देश की राजनीति में कांग्रेसी नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जरूरत इस लिए नहीं है कि वह बड़े राजनीतिक घराने से आते हैं. कांग्रेस इसलिए जरूरी है क्योंकि आरएसएस के मुकाबले वह ही सब से बड़ा संगठन है. आरएसएस समाज के लोगों से नहीं मंदिरों के जरिए चलती है. कांग्रेस कभी भी लोगों के निजी जीवन में दखल नहीं देती है. आरएसएस का दखल मंदिरों के जरिए लोगों के निजी जीवन तक होता है. मंदिर में बैठा पुजारी तय करने लगा है कि लोग किस दिन कौन सा त्यौहार मनाएं. किस तरह का खाना किस दिन खाएं और कौन सा कपड़ा कब पहने? आरएसएस की सोच का मुकाबला कांग्रेस ही कर सकती है इसलिए कांग्रेस जरूरी है.

कांग्रेस के लिए जरूरी यह है कि वह अपने सहयोगी दलों का साथ दे. समाजवादी पार्टी, नैशनल कांफ्रेंस, आम आदमी पार्टी, टीएमसी और दूसरे सहयोगी दल तब इंडिया गठबंधन में अपने लिए अलग राज्यों में सीटें मांगते हैं तो उन का उद्देश्य यह होता है कि वह खुद को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल कर सके. दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने गुजरात के विधानसभा चुनाव में लड़ने से आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है. शरद पवार की नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कम्युनिस्ट पार्टी औफ इंडिया (सीपीआई) का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया.

कैसे मिलता है राष्ट्रीय दल का दर्जा

केंद्रीय चुनाव आयोग का नियम 1968 कहता है कि किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करने के लिए चार या उस से ज्यादा राज्यों में लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव लड़ना होता है. इस के साथ ही इन चुनावों में उस पार्टी को कम से कम 6 प्रतिशत वोट हासिल करने होते हैं. इस के अलावा उस पार्टी के कम से कम 4 उम्मीदवार किसी राज्य या राज्यों से सांसद चुने जाएं. वह पार्टी कम से कम 4 राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी होने का दर्जा हासिल कर ले. इस के साथ ही साथ वह पार्टी लोकसभा की कुल सीटों में से कम से कम दो प्रतिशत सीटें जीत जाए. वह जीते हुए उम्मीदवार 3 राज्यों से होने चाहिए. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद राजनीतिक दलों को कई लाभ और अधिकार मिल जाते हैं.

राष्ट्रीय पार्टी को पूरे देश में एक चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने का मौका मिलता है. वह चुनाव चिन्ह किसी भी दूसरे दल को नहीं दिया जाता. अगर किसी राज्य में राष्ट्रीय पार्टी चुनाव लड़ रही है और वहां कोई क्षेत्रीय दल उसी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय पार्टी को वरीयता दी जाती है. उदाहरण के लिए समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल है. वहीं आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम पार्टी का चुनाव चिन्ह भी साइकिल है. ऐसे में अगर दोनों दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलता है, तो उस पार्टी को वरीयता मिलेगी जिसे पहले राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला हो.

चुनाव के वक्त राष्ट्रीय पार्टियों को दूरदर्शन के टीवी चैनल पर मुफ्त में चुनाव प्रचार करने का समय दिया जाता है. अलगअलग पार्टियों को अलगअलग समय दिया जाता है. स्टेट पार्टियों को भी चुनाव प्रचार का समय दिया जाता है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टियों को इस में वरीयता मिलती है. चुनाव आयोग की तरफ से चुनाव में खर्च की एक सीमा तय की जाती है. सभी उम्मीदवारों को अपने खर्चो की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है. सभी पार्टियों में चुनाव प्रचार के लिए कुछ स्टार प्रचारक भी होते हैं. जब वो किसी क्षेत्र में प्रचार के लिए जाते हैं तो वहां का चुनावी खर्च निश्चितरूप से बढ़ जाता है. ऐसे में इस बढ़े हुए खर्च को राष्ट्रीय पार्टी चुनावी खर्च से अलग कर सकती है.

हर राष्ट्रीय पार्टी 40 स्टार प्रचारक तय कर सकती है. इस के साथ ही राष्ट्रीय पार्टियों को सरकार की तरफ से दफ्तर बनाने के लिए जमीन मुहैया करवाई जाती है. देश की राष्ट्रीय पार्टियों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया सीपीएम, नैशनल पीपल्स पार्टी एनपीपी और आम आदमी पार्टी प्रमुख हैं. आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है. देश में 6 राष्ट्रीय पार्टियां और 56 स्टेट पार्टियां हैं.

सपा कांग्रेस के बीच षह मात का खेल

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी कापी प्रयासरत है. 2023 के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय वह कांग्रेस के साथ समझौता कर के चुनाव लड़ना चाहती थी. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश ही नहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी समाजवादी पार्टी को अपने गठबंधन में नहीं जोड़ा. कांग्रेस का मानना था कि इंडिया ब्लौक लोकसभा चुनाव के लिए है विधानसभा चुनाव के लिए नहीं. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी ने अपनी हिस्सेदारी मांगी. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को कोई टिकट नहीं दिया.

हरियाणा में सामजवादी पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा. जम्मू कश्मीर में समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ी. हरियाणा में जब कांग्रेस हारी तो समाजवादी पार्टी ने तंज कसा कि यह हार कांग्रेस के अति आत्मविश्वास की हार है. हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव के बाद महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश में उपचुनाव हैं. उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा के उपचुनाव है. इन में कांग्रेस 4 से 5 सीट चाहती थी. समाजवादी पार्टी ने 2 सीटें दी, जबकि महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी 8 से 10 सीटें कांग्रेस से मांग रही थी.

कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी पर दबाव डालने के लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने से मना कर दिया. जिस से उसे महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी को सीटें न देनी पड़े. समाजवादी पार्टी को अपने संगठन और विस्तार के बारे में पता है. उत्तर प्रदेश के बाहर उसका वजूद नहीं है. ऐसे में वह चाहती है कि कांग्रेस उसे उत्तर प्रदेश के बाहर संगठन को मजबूत कराने के लिए मौका दे. बदले में सपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जगह देगी. कांग्रेस का प्रयास रहता है कि वह सहयोगी दलों को ज्यादा पांव पसारने का दर्जा न दे.

कांग्रेस को अगर लंबी लड़ाई लड़नी है तो उसे सहयोगी दलों की जरूरत है. ऐसे में उसे छोटे दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में मदद करनी चाहिए. क्योंकि आरएसएस से लड़ने लायक ताकत कांग्रेस के पास नहीं है. आरएसएस और कांग्रेस के बीच मंदिर और समाज का फासला है. आरएसएस की ताकत समाज नहीं मंदिर है. कांग्रेस के पास मंदिर की ताकत नहीं है. मंदिरों के बहाने आरएसएस घरघर तक के फैसलों को प्रभावित करने का काम करती है. वैसे तो आरएसएस लोगों के निजी जीवन को प्रभावित करने का काम देश की आजादी के पहले से कर रही है. जब वह सत्ता में होती है तो उस की ताकत कई गुना बढ़ जाती है.

सत्ता में आने के बाद आरएसएस यह तय करने का काम करती है कि कौन किस दिन क्या खाएगा ? किस दिन मांसाहार नहीं होगा? किस रंग के कपड़े पहने जाएंगे? मंदिरों का काम बढ़ जाता है. तमाम तरह के धार्मिक आयोजन होने लगते हैं. सरकार इन में हिस्सा लेने के लिए छुट्टी कर देती है. दुर्गापूजा मूलरूप से पष्चिम बंगाल का त्यौहार है. उस के उपलक्ष्य में स्कूल और सरकारी विभागों को उत्तर प्रदेश में एक दिन का सावर्जनिक अवकाश दे दिया गया.

आरएसएस, मंदिर और धर्म के गठजोड़ वाली उत्तर प्रदेश सरकार की बुलडोजर धर्म विशेष पर खासतौर पर चलता है. दुकानों पर नाम लिखे जाने का मुद्दा भी इसी उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू किया. इस की सब से बड़ी वजह आरएसएस है. अब सत्ता में भाजपा भले ही आए उस का रिमोट आरएसएस के हाथ होता है. आरएसएस को सत्ता में आने से कांग्रेस ही रोक सकती है. उस के लिए कांग्रेस को पूरे विपक्ष का साथ चहिए. कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने सहयोगी दलों को साथ दें. उन को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में मदद करें.

प्रशासन तो कोई भी दल चला सकता है. भाजपा के सत्ता में आने के बाद आरएसएस लोगों के निजी जीवन को संभालने का जिम्मा उठा लेती है. यह लोगों को समझ नहीं आता. यह देश की जनता के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन है. इस के मुकाबले के लिए कांग्रेस को सहयोगी दलों को स्थान देना पड़ेगा क्योंकि यह राजनीतिक दल अपनेअपने राज्यों में ताकतवर है और आरएसएस का मुकबला कर रहे हैं. जबकि जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा मुकाबले में हैं वहां कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल नहीं होती है.

कांग्रेस का महत्व इसलिए है क्योंकि वह आरएसएस से लड़ने की क्षमता है. राहुल गांधी भले ही चुनाव न जीत पाएं लेकिन उन की बात का महत्व देश और देश के बाहर भी होता है. यही वजह है कि राहुल गांधी जब भी देश के बाहर बोलते हैं मिर्ची आरएसएस को लगती है. आरएसएस कांग्रेस और राहुल गांधी से डरती है. इस डर को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस विपक्ष का एक गठबंधन ले कर चलने लायक माहौल और प्रबंध कर लें. इस में उसे अपना सब से पुरानी और ताकतवर पार्टी होने का ईगो दरकिनार रख कर चलना होगा.

सिंघम अगेन : धर्म को बेचना भी फिल्म को न बचा सका

एक स्टार

कटु सत्य यही है कि बौलीवुड का फिल्मकार अजेंडे वाला सिनेमा नहीं बना सकता. हिंदी सिनेमा के फिल्मकार जब अजेंडे वाला सिनेमा बनाते हैं, तो वह खुद के साथ ही दूसरों को भी डुबाने का प्रण ले लेते हैं. यही बात ‘सर्कस’ और ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ की असफलता का दंश झेल रहे फिल्मकार रोहित शेट्टी पर भी लागू होती है. अपने निर्देशन कैरियर को बुरी तरह डूबते देख रोहित शेट्टी ने सोचा कि क्यों न राष्ट्रवादियों व अंध भक्तों को खुश करने वाली फिल्म बनाई जाए लेकिन रोहित शेट्टी ने दर्शकों को मनोरंजन परोसने के साथ एक अच्छी कहानी सुनाने की दिशा में काम करने की बनिस्बत ‘सिंघम अगेन’ के नाम पर सीधे ऐसा अजेंडे वाला सिनेमा ले कर आ गए, जिसे देख दर्शक अपना माथा पीट रहा है और कसमें खा रहा है कि वह दूसरों को उन का सिरदर्द करवाने से बचाएगा.

एक नवंबर को दिवाली के अवसर पर सिनेमाघरों में प्रदर्शित बड़े बजट की फिल्म ‘सिंघम अगेन’ पूरी तरह से सरकार परस्त सिनेमा है. जिस में कहानी तो है ही नहीं. कुछ लोग इसे डाक्यूमेंट्री की भी संज्ञा दे सकते हैं. गुटके का विज्ञापन करने वाले दो स्टार कलाकार इस में ‘ड्रग्स’ बेचने वाले रैकेट को पकड़़ने की बात करते हैं. है न हास्यास्पद बात.

रोहित शेट्टी ने अपनी इस फिल्म में देशभक्ति, ‘नए भारत का नया कश्मीर’, निजी बदले के लिए किसी भी हद तक गुजर जाने के साथ ही देश की संस्कृति के नाम पर धर्म, रामायण, श्रीराम व राष्ट्रवाद को बेचते हुए बारबार ‘श्री राम’ के नारे लगवाने से भी बाज नहीं आए. ‘राम’, ‘रामायण’, ‘हनुमान’ आदि को ले कर फिल्म की शुरूआत में ही ‘अस्वीकरण’ किया गया है कि इस के पात्रों को पूजनीय रूप में न देखा जाए.

आश्चर्य की बात यह है कि देश में राम मंदिर बनवाने से ले कर सनातन धर्म की रक्षा व हिंदुत्व की बात करने वाली सरकार की मौजूदगी में ‘रामायण’ पर ‘आदिपुरूष’ जैसी फिल्म बन जाती है और अब रोहित शेट्टी ने ‘रामायण’ पर ही ‘सिंघम अगेन’ जैसी फिल्म ले कर आए हैं, जिस में अजय देवगन व अक्षय कुमार भी हैं. हनुमान चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र, एक श्लोकी रामायण का ‘सिंघम अगेन’ में जिस तरह से खंडखंड उपयोग किया गया है, उस से 9 सदस्यीय लेखक दल व निर्देशक के दिमागी दिवालिएपन का अहसास हो जाता है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है कश्मीर से, जहां एक टीवी चैनल की रिपोर्टर एनएसजी कमांडो के एसएसपी बन कर कश्मीर पहुंचे बाजीराव सिंघम (अजय देवगन ) से उन के जांबाज कारनामों को ले कर इंटरव्यू कर रही है. तो दूसरी तरफ भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय में सेवा रत सिंघम की पत्नी अवनी ( करीना कपूर खान ) ‘रामायण’ से नई पीढ़ी को परिचित कराने के लिए बड़े स्तर पर ‘रामलीला’ का कार्यक्रम करवा रही है. अवनी का मानना है कि आज की पीढ़ी तो ‘रामायण’ को आउट डेटेड मानती है. कश्मीर में ही अचानक एक दिन आतंकवादी मुठभेड़ में सकुशल बचने के बाद बाजीराव सिंघम, कुख्यात आतंकवादी उमर हाफिज ( जैकी श्राफ) को पकड़ने में कामयाब हो जाते हैं.

उमर हाफिज जो अपने बेटों, रियाज और रजा की योजनाओं को विफल करने के बाद पाकिस्तान से श्रीलंका भाग गया और ड्रग्स बेचना शुरू कर दिया था. अब श्रीलंका में उन का पेाता जुबेर हाफिज कुख्यात सरगनाप बन चुका है. उमर हाफिज अपने पोते जुबेर के माध्यम से अपने बेटों की हत्या के लिए संग्राम उर्फ सिम्बा भालेराव और वीर सूर्यवंशी से बदला लेना चाहता है. मंत्री (रवि किशन) खुश हैं कि आखिर सिंघम ने उमर हाफिज को गिरफतार कर लिया. फिर सिंघम मंत्री से मिल कर उन्हें भारत में हो रहे ड्रग के अवैध कारोबार के बारे में बताता है. गृह मंत्री एक नया दस्ता गठित करते हैं, शिवा दस्ता जिस में सिंघम प्रमुख होता है और उस के सहयोगी दया (दयानंद शेट्टी) और देविका (स्वेता तिवारी) उस के साथ शामिल होते हैं. तभी उमर हाफिज जेल के अंदर सिंघम को चेतावनी देता है कि जल्द ही उन की नींव हिलाने के लिए उन्होंने एक तूफान को तैयार कर दिया है.

सिंघम की टीम श्रीलंका से तमिलनाडु की ओर जाने वाले एक जहाज को पकड़ती है और कंटेनरों में ड्रग्स पाता है और 4 लोगों को गिरफ्तार करता है, जिन्हें डेंजर लंका ने भेजा था और उस के 3 मुख्य गुर्गे मदुरै में रह रहे थे. सिंघम मदुरै से डीसीपी शक्ति शेट्टी (दीपिका पादुकोण) से कहता है कि इन्हें गिरफ्तार कर मुंबई ले कर आओ. उसी रात, डेंजर लंका (अर्जुन कपूर) पुलिस स्टेशन के सभी अधिकारियों जिंदा जला अपने लोगों को साथ ले जाता है.

इस के बाद कहानी ‘रामायण’ की तर्ज पर चलने लगती है. अवनी की रामायण’ पर आधारित रामलीला में जो दृष्य आते हैं, उसी के अनुरूप सिंघम के साथ घटनाएं घटित होती है.

एक दिन सिंघम की पत्नी अवनी बताती हैं कि ‘कल हमारी रामलीला में राम 14 साल के लिए वनवास जाएंगे.’ इस पर उन का बेटा शौर्य सवाल करता है ‘क्या आप को सीरियसली लगता है कि भगवान राम सीता मां को लेने 3 हजार किलोमीटर दूर श्रीलंका गए थे. अवनी इसे सच बताती है, तब शौर्य अपने पिता सिंघम से सवाल करता है कि यदि मां को कोई वहां किसी ले जाए तो क्या आप मां को वहां से लाने जाएंगे?

इस पर अजय देवगन कहते हैं, ‘‘गूगल कर ले बाजीराव सिंघम को ले कर…’उधर सिंघम का बेटा शौर्य लंदन जाने की तैयारी कर रहा है, उस की एक गर्ल फ्रैंड भी है, जिसे शौर्य ‘गर्लफ्रैंड’ की बजाय सिचुएशन’ की संज्ञा देता है.

अवनि अपनी सहकर्मी मृग्या के साथ ‘रामलीला’ के शो लिए कुछ फुटेज शूट करने के लिए रामेश्वरम जाती है, उन के साथ जटायू रूपी दया भी है. जिस दिन ‘रामलीला’ में रावण, सीता का अपहरण करता है, उसी दिन जिस तरह रामायण में रावण ने जटायू की हत्या की थी. उसी तरह डेंजर लंका उर्फ रावण, दया की हत्या कर अवनी का अपहरण कर लेता है. तब पता चलता है कि मृगया तो वास्तव में उमर हाफिज के मृत भतीजे की पत्नी है.

‘रामायण’ में राम ने हनुमान को सीता का पता लगाने भेजा था, यहां हनुमान यानी कि सिंबा यानी कि रणवीर सिंह जाते हैं. अवनि और जुबैर से मिलते हैं इसी बीच, सिंघम गुप्त रूप से श्रीलंका पहुंचता है. साथ में जुबेर के कहने पर सिंघम, सिंबा( रणवीर सिंह ), सूर्यवंशी (अक्षय कुमार), सत्या (टाइगर श्राफ), शक्ति शेट्टी (दीपिका पादुकोण) के साथ श्रीलंका पहुंचते हैं. फिर राम की ही तरह सिंघम भी अवनी को ले कर भारत लौटते हैं.

‘सर्कस’ और ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ में बुरी तरह से मात खा चुके रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ की कहानी व पटकथा का लेखन अन्य 8 लेखकों के साथ मिल कर किया है. फिल्म की कहानी व पटकथा में कोई दम नहीं है. इंटरवल से पहले फिल्म बहुत ही ज्यादा यातना वाली है. इंटरवल के रणवीर सिंह कुछ हास्य के क्षण पैदा करने का असफल प्रयास करते हैं. राम के 14 साल के वनवास व पंचवटी से ले कर श्रीलंका में सीता मंदिर तक की कहानियां ‘सिंघम अगेन’ की कलयुगी ‘रामलीला’ का हिस्सा हैं, जो कि जबरन रची होने का अहसास कराती है. यह फिल्म की कहानी में अवरोध ही पैदा करती हैं.

धर्म व ‘रामायण’ को बेचने के चक्कर में रोहित शेट्टी और उन की लेखकीय टीम फिल्म के किसी भी किरदार का सही चरित्र विकास नहीं कर पाए. एक तरफ ‘सिंघम अगेन’ भारतीय संस्कृति व संस्कारों की बात करती है, तो वहीं दूसरी तरफ ‘सिचुएशन रिलेशन ’की बात करती है, जिस रिश्ते में लड़की या लड़के किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती. अब यह लेखकों व निर्देशकों की दुविधा है या दीमागी दिवालियापन.

फिल्म के संवाद स्तरहीन व चोरी के हैं. एक दृश्य में करीना कपूर खान, दया शेट्टी से कहती हैं, ‘‘दया दरवाजा तोड़’’. यह संवाद सीरियल ‘सीआईडी’ में कई साल तक लगभग हर एपीसोड में सुनाई देता रहा है. एक दृश्य में अर्जुन कपूर से अजय देवगन कहते हैं, ‘‘तेरे सामने जो खड़ा है वह महात्मा गांधी का आदर करता है, मगर पूजा छत्रपति शिवाजी महाराज की करता है.’’

वाह क्या कहने. इस तरह के संवाद विवादों को जन्म देते हैं. मगर सेंसर बोर्ड ने इन्हे हरी झंडी दे दी. पूरी फिल्म देख कर अहसास होता है कि ‘रामायण’ के अलगअलग पात्रों व उन के साथ के अनसार अपनी फिल्म के किरदारों के साथ अलगअलग लोकेशन पर एक्शन सीन फिल्माकर फिल्म एडिटर को दे दिया गया कि इसे ‘जिस अंदाज’ में रामायण की कहानी चलती है उसी अंदाज में जोड़ दो. एडिटर ने शब्दशः वैसा ही किया होगा यह सारे दृश्य एक फिल्म की लय में नहीं चलते.

हम आप को बता दें कि रोहित शेट्टी ने किन किरदारों को किस रूप में पेश किया है. तो ‘सिंघम अगेन’ में सिंघम हैं राम, अवनी हैं सीता, जटायु बने हैं दया, खिलाड़ी उर्फ अक्षय कुमार बने हैं गरूण, हनुमान बने हैं रणवीर सिहं, लक्ष्मण बने हैं सत्या उर्फ टाइगर श्राफ. कहने का अर्थ यह कि राष्ट्रवाद व धर्म को बेचने की फिराक में रोहित शेट्टी ‘फिल्म मेकिंग की कला’ भी भूल गए. इस फिल्म को देख कर अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक वही रोहित शेट्टी हैं, जिन्हें एक्शन दृश्यों में महारत हासिल है और अतीत में वह ‘सिंघम’ सहित कई सफलतम व बेहतरीन एक्षन फिल्में दे चुके हैं.

‘सिंघम अगेन’ के एक्शन दृश्य बहुत ही कमजोर हैं. तो वहीँ सिंबा उर्फ हनुमान उर्फ रण्वीर सिंह के माध्यम से जो हास्य परोसने का प्रयास है, वह तो फिल्म की सफलता में कील ठोंकने वाला कृत्य ही है. सिनेमाघर में मेरे बगल में बैठे हुए युवा दर्शकों का झुंड तो इन दृश्यों व रणवीर सिंह की हंसी उड़ा रहा था.

इस फिल्म में बाजीराव सिंघम पहली बार समाज या देश के लिए नहीं बल्कि अपनी निजी वजह यानी कि अपनी पत्नी को छुड़ाने के लिए देश के सभी जांबाज व ‘शिवा स्कवाड’ के अफसरों की जान जोखिम में डाल देता है. आखिर इस तरह की कहानी के माध्यम से  रोहित शेट्टी क्या संदेश देना चाहते हैं. क्या यही उन का राष्ट्रवाद है. क्या देश के किसी एनएसजी कमांडो को अपने निजी दुशमन से लड़ने के लिए सभी कमांडो की सेवाएं लेने का हक है.

कैमरामैन को यदि नजरंदाज कर दें तो फिल्म के सभी तकनीशियनों ने बेमन ही काम किया है. फिल्म का पार्श्व संगीत कानफोड़ू व अति लाउड है. जहां जरुरत नहीं है, वहां भी पार्श्व संगीत इतना लाउड है कि दर्शक संगीतकार व साउंड इंजीनियर दोनों के गाली देने लगता है. कश्मीर की वादियों में ‘शिव तांडव स्तोत्र’ बजता है, रावण यानी जुबेर हाफिज के संहार से पहले ही ‘एक श्लोकी रामायण’ बैकग्राउंड में बजा देते हैं. ‘हनुमान चालीसा’ को भी खंडखंड में काफी बजाया गया.

अफसोस की बात यह है कि ‘सिंघम अगेन’ में किसी भी कलाकार का अभिनय प्रभावशाली नहीं है. ‘सिघम अगेन’ की सब से बड़ी कमजोरी खुद बाजीराव सिंघम के किरदार में अजय देवगन ही हैं. वह सिर्फ अपनेआप को दोहराते हुए नजर आए हैं. उन की संवाद अदायगी भी निराश करती है. नायक के बाद सब से बड़ी कमजोर कड़ी खलनायक यानी कि रावण रूपी जुबेर हाफिज के किरदार में अर्जुन कपूर हैं. अर्जुन अपने अभिनय से डराते नहीं हैं. तो वहीँ लक्ष्मण रूपी सत्या के किरदार में टाइगर श्राफ बिलकुल नहीं जमे. बल्कि यह तो लक्ष्मण का अपमान ही है.

लक्ष्मण इतने कमजोर नहीं थे, जितना कि सत्या कमजोर है. इतना ही नहीं टाइगर श्राफ के किरदार को स्थापित करने या यूं कहें कि टाइगर श्राफ के डूब चुके अभिनय कैरियर को नई सांस देने के प्रयास में फिल्म इतनी लंबी खींची गई है कि दर्शक बोर हो जाता है और उसे लगता है कि फिल्मकार उन्हें मानसिक यातना दे रहा है.

परदे पर उछलकूद करना ही एक्शन व अभिनय नहीं है. हकीकत तो यही है कि सत्या के किरदार में टाइगर श्राफ का चयन ही गलत है. गरूण उर्फ खिलाड़ी के किरदार में अक्षय कुमार दर्शकों से सिर्फ अपना मजाक उड़ावाते ही नजर आते हैं. उन्होंने ‘सिंघम अगेन’ क्यों की यह समझ से परे है. उन के हिस्से करने को कुछ खास आया नहीं और जो आया, उसे भी वह ठीक से नहीं कर पाए. हनुमान उर्फ सिंबा के किरदार में रणवीर सिंह ने जो कौमेडी की है, उसे कौमेडी वही कह सकते हैं.

इस फिल्म में घटिया अभिनय कर रणवीर सिंह ने खुद ही अपने कैरियर के खात्मे की घंटी बजा दी है. उधर उन की निजी जीवन की पत्नी दीपिका पादुकोण भी पुलिस इंस्पेक्टर शक्ति शेट्टी के किरदार में है, जबकि वह कहीं से भी पुलिस अफसर नजर ही नहीं आती. खुद को ‘लेडी सिंघम’ कहने वाली शक्ति सिंह ऐसी पुलिस अफसर हैं, जिन के कार्यक्षेत्र में आने वाले थाने के 14 सिपाहियों को डैंजर लंका उर्फ जुबेर हाफिज जिंदा जला देता है. सीता उर्फ अवनी के किरदार में करीना कपूर का अभिनय काफी कमजोर है. ऐसा लगता है जैसे कि वह नौटंकी कर रही हैं.

फिल्म में एक संवाद है, ‘जंग में सब जायज है.’’ लगतार दोदो असफलताएं झेल चुके रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ को सफल सिद्ध करने को ‘जंग’ की तरह ले कर अपनी फिल्म के संवाद की ही तर्ज पर ‘सिंघम अगेन’ के ट्रेलर लांच के दिन से ही अब तक घटिया हरकतें व शतरंजी चालें ही चलते आए हैं. फिल्म देख कर समझ में आया कि रोहित शेट्टी ने वितरक के माध्यम स ‘सिंघम को ज्यादा से ज्यादा स्क्रीन्स पर क्यों रिलीज करवाया और क्यों टिकटों की कीमतें बढ़वा कर आम जनता को लूटा. शायद वह पहले दिन जम कर पैसा बटोर लेना चाहते थे, उन्हें अहसास था कि उन की फिल्म देख कर निकलने वाले दर्शक को उन की फिल्म पसंद नहीं आएगी.

साइबर अरेस्ट: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विवशता उजागर होती चली गई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल जब कुछ कहते हैं तो आम आदमी सोचने लगता है और खिलखिला कर हंसने लगता है. ताजा उदाहरण है 27 अक्तूबर को मन की बात का. देश भर में विभिन्न माध्यमों से इस का प्रसारण हमेशा की तरह किया गया. लोगों ने सुना और आश्चर्य वक्त एकदूसरे की तरफ देखते और हंसने लगे थे. इस का सब से बड़ा उदाहरण यह है कि नरेंद्र मोदी ने कहा, “कोई सरकारी एजेंसी कभी भी पैसे नहीं मांगती…!”

 

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यह तो दुनिया के आठवें अजूबे जैसी बात हो गई कि भारत में एक पटवारी से ले कर के ऊपर तक लेनदेन होती है, भ्रष्टाचार है, यह सारा देश जानता है और प्रधानमंत्री कहते हैं कि कोई सरकारी एजेंसी का कर्मचारी, अधिकारी पैसे नहीं मांगता. भला इसे कौन मानेगा. और इसीलिए जब प्रधानमंत्री के मुंह से ऐसी बात निकलती है तो लोग हंसने पर मजबूर हो जाते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए इस से बचने के लिए देशवासियों से ‘रूको, सोचो और एक्शन लो’ का मंत्र साझा किया और इस बारे में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने का आव्हान किया. सब से बड़ी बात प्रधानमंत्री ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े एक फरेबी और पीड़ित के बीच बातचीत का वीडियो भी साझा किया और कहा कि कोई भी एजेंसी न तो धमकी देती है, न ही वीडियो काल पर पूछताछ करती है और न ही पैसों की मांग करती है.

अब प्रधानमंत्री की इस बात को बच्चाबच्चा नहीं मानेगा. क्या कोई भी एजेंसी हाथ जोड़ कर बात करती है? क्या रिश्वत नहीं लेती? इसे सारा देश जानता है मगर शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे इस बात को नहीं मानेंगे और जैसे ही पद से हट जाएंगे तो बातों को ले कर मुद्दा भी बना सकते हैं.

दरअसल, आकाशवाणी के मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 150 वीं ऐतिहासिक कड़ी में प्रधानमंत्री ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े एक फरेबी और पीड़ित के बीच बातचीत का वीडियो साझा किया. मजे की बात तब होती जब उसे खरीदी को गिरफ्तार कर के कानून सजा देता मगर उस का वीडियो साझा करने से तो यही संदेश जाता है कि ऐसे लोग आज सरकार के सर पर बैठ कर नाच रहे हैं.

आज दुनिया भर में इंटरनेट के तेजी से बढ़ते उपयोग के बीच ‘डिजिटल अरेस्ट फरेब का एक बड़ा माध्यम बनता जा रहा है. इस में किसी शख्स को आनलाइन माध्यम से डराया जाता है कि वह सरकारी एजेंसी के माध्यम से “अरेस्ट” ही गया है और उसे जुर्माना देना होगा. कई लोग ऐसे मामलों में ठगी का शिकार हो रहे हैं.

मोदी सरकार विवश और मजबूर यह आश्चर्य की बात है कि 56 इंच की बात करने वाले, ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा लगाने वाले साइबर क्राइम के मामले में असहाय और विवश दिखाई देते हैं. देश भर में लगातार इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं मगर कानून असहाय है और अपराध करने वाले अपना काम करते चले जा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने जो बातें कही हैं उस का निचोड़ यह है कि आप को खुद जागरूक बनना पड़ेगा. आप को अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ेगी सरकार इस में कुछ नहीं कर सकती. नरेंद्र मोदी के मन की बात का संपूर्ण निचोड़ यही है.
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के दर्शकों को विस्तार से बताया, इस प्रकार के फरेब करने वाले गिरोह कैसे काम करते हैं और कैसे “खतरनाक” खेल खेलते हैं.
उन्होंने कहा, “डिजिटल अरेस्ट’ के शिकार होने वालों में हर वर्ग और हर उम्र के लोग हैं और वे डर की वजह से अपनी मेहनत से कमाए हुए लाखों रुपए गंवा देते हैं.” उन्होंने कहा, इस तरह का कोई फोन काल आए तो आप को डरना नहीं है. कुल मिला कर देश में किस तरह की खराब स्थितियां है और कानून असहाय है सरकार विवश है यह बता दिया.

प्रधानमंत्री ने एक बार फिर वही कहा जो हर बार दोहराया जाता है ऐसे मामलों में राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन 1930 पर डायल करने और साइबर क्राइम डाट जीओजी डाट इन पर रिपोर्ट करने के अलावा परिवार और पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. इस की जगह अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में कुछ ऐसा बताते की सरकार आप की सुरक्षा के लिए पूरी तरह मुस्तैद हो चुकी है, अब आज के बाद देश में एक भी साइबर ठगी नहीं होगी तो लोग तालियां बजाते मुक्त कंठ से प्रशंसा करते और ठगे हुए लोगों के दिल में ठंडक पहुंचती.

नहले पे दहला : आखिर क्यूं वह युवक पालकी के पीछे चलने लगा

एक घटना जो दिल्ली शहर में 1657 ई. में घटी…

वह युवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का अपना निवासस्थान था. दासदासियां थीं. काफी संपत्ति भी थी. मातापिता काफी अरसा पहले गुजर गए थे. भाईबहन नहीं थे. उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था. उस के चाहने वालों की कमी नहीं थी, किंतु वह किसी को भी प्रश्रय नहीं देती थी. इधर कुछ दिनों से जब भी वह बाहर निकलती, एक युवक उस के आगेपीछे चक्कर मारता. उस के चेहरे पर कामना के भाव पढ़ने में उसे कोई असुविधा नहीं हुई. अपने चाहने वालों में एक की बढ़ोतरी होने से कोई परेशानी नहीं हुई थी.

एक दिन वह किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी. लौटते वक्त वह युवक उस की पालकी के साथसाथ चलने लगा. मौका पा कर उस ने प्रणय निवेदन भी कर दिया. युवती ने युवक की तरफ देखा भी नहीं. युवक उस की इस उपेक्षा से मर्माहत हुआ था. युवक का प्यार एकतरफा था. प्रणय निवेदन में असफल हो उस ने युवती को उपहार भेजने शुरू किए. किंतु वे उस के पास वैसे ही लौट आते. युवती ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. इस से युवक ने बेइज्जती महसूस की तथा युवती के गर्व को कुचलने के लिए योजना बना एक षड्यंत्र रच डाला.

युवती की एक वृद्धा बांदी थी. वह उसे गुसल कराती. उस के केश संवारती. युवक ने इस वृद्धा बांदी के घर जाना शुरू किया तथा थोड़े समय में उसे अपने वश में कर लिया. बांदी को रिश्वत दे कर उस ने युवती के बारे में गोपनीय खबरें एकत्र कर लीं. युवक ने योजनानुसार षड्यंत्र को मूर्तरूप देने के लिए दिल्ली के काजी की अदालत में मामला दायर कर दिया. युवक की नालिश के अनुसार, युवती उस के साथ बहुत सी रातें गुजारने के बाद अब शादी करने से मुकर रही है. युवती ने व्यभिचार किया है. इसलिए काजी इस का उचित फैसला करें.

युवक की नालिश के अनुसार, काजी ने युवती को अपनी अदालत में तलब किया. काजी के पूछने पर युवती ने आश्चर्य व्यक्त कर युवक को झूठा ठहराया. उस ने बताया कि उलटे युवक ही कुछ दिनों से उस के पीछे चक्कर लगाता हुआ उसे परेशान कर रहा है. उस ने उपहार भेजे, जिन्हें उस ने लौटा दिया. युवक के साथ विवाह करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.

काजी ने इस बार युवक की तरफ देखा. युवक ने युवती की तरफ आग्नेय नेत्रों से देख कर कहा, ‘‘हुजूर, यह झूठ कह रही है.’’

‘‘तुम सत्य कह रहे हो, इस का प्रमाण क्या है?’’

‘‘हुजूर, प्रमाण है.’’

‘‘तो पेश करो.’’

‘‘हुजूर, पहले ये बताएं कि इन्होंने कभी मुझ से एकांत में भेंट की है या नहीं?’’

युवती ने घृणा से युवक की तरफ देख कर कहा, ‘‘प्रश्न ही नहीं उठता है.’’

‘‘हुजूर, मैं इन के ढके शरीर के कुछ गोपन चिह्न इन्हें बता सकता हूं. जब ये कभी मुझ से एकांत में मिली ही नहीं तो मैं इस की जानकारी कहां से पाऊंगा?’’

काजी सोच में पड़ गया. उस ने युवक को अपने पास बुलाया. युवक ने युवती के कुछ गोपन चिह्नों के बारे में काजी को बताया.

युवती काजी और युवक के वार्त्तालाप को सुन नहीं पा रही थी, किंतु वह अंदाजा ठीक ही लगा रही थी. फिर भी वह निश्चिंत थी. युवक से उस ने एकांत में कभी मुलाकात ही नहीं की तो वह उस के शरीर के गोपन चिह्नों की खबर कैसे पा जाएगा. युवक ने काजी को पसोपेश में डाल दिया. अंत में काजी ने निर्णय लिया कि युवक के दावे के सचझूठ की परीक्षा कर ली जाए. उस ने एक खोजा और एक बांदी को युवती के शरीर पर उन निशानों को देख कर परीक्षा करने के लिए भेज दिया. कुछ देर बाद बांदी काजी की अदालत में हाजिर हुई तथा सिर झुका कर युवक के समर्थन में सिर हिला दिया. सत्य ही युवती के शरीर पर वे चिह्न पाए गए थे. काजी की दृष्टि में अब युवक सच्चा था तथा युवती व्यभिचारिणी. उस ने युवती को फैसला सुना आदेश दिया, ‘‘तुम्हें इस युवक से विवाह करना होगा.’’

युवती काजी के फैसले से आई विपत्ति को अच्छी तरह अनुभव कर रही थी. युवक ने किसी तरह उस के शरीर के गोपनीय चिह्नों को जान उसे मात दी थी. उस ने भी नहले का उत्तर दहले से देने का निश्चय कर तुरंत प्रकृतिस्थ हो काजी से अनुनय भरे स्वर में कहा, ‘‘हुजूर का हुक्म सिरआंखों पर, किंतु विवाह की तैयारियों के लिए मुझे कुछ महीनों की मुहलत देनी होगी. मेरे रिश्तेदार दूर रहते हैं, उन्हें खबर देनी होगी. विवाह की तैयारियों में वैसे भी देर होती ही है.’’

युवक अपने षड्यंत्र में सफल हो जाने पर फूला नहीं समा रहा था. युवती उस से विवाह करने को रजामंद हो गई थी, वह भी काजी के सामने. इसलिए कुछ महीने इंतजार कर लेने में हर्ज ही क्या है. वह इंतजार करने को खुशीखुशी राजी हो गया.

युवकयुवती के राजी हो जाने पर काजी क्यों अपनी टांग अड़ाता. उस ने भी युवती को सहर्ष कुछ महीनों की मुहलत दे दी. युवती काजी की अदालत से अपने घर वापस आ कर अपनी दासियों से जिरह करने लगी. तब वृद्धा दासी ने घबरा कर सत्य को कुबूल कर लिया. उस ने ही सोने की कुछ मुहरों के लालच में युवक को उन गोपनीय चिह्नों की जानकारी दी थी. जब युवती ने वृद्धा दासी को धमकाया तो वह युवती के कहे अनुसार काजी की अदालत में उचित समय आने पर सही बातें बताने को राजी हो गई.

धीरेधीरे 8 महीने गुजर गए. एक दिन युवती 2 शक्तिशाली दासों तथा एक पालकी व उस के वाहकों को ले कर युवक के घर पहुंची. युवक अपने घर में अकेला रहता था तथा कुछ महीनों से बीमार था. उस का शरीर अब एक जीर्ण काया में बदल गया था. युवती ने युवक के घर में प्रवेश कर अपने दोनों दासों को संकेत किया. दासों ने उस युवक को जबरदस्ती उठा कर पालकी में लिटा दिया. शीघ्र ही पालकी शहर काजी की अदालत की ओर चल पड़ी.

युवती ने उस युवक को अपने दोनों दासों की सहायता से काजी के समक्ष उपस्थित कर कहा, ‘‘हुजूर, कल मैं और यह युवक जब एकांत में मिले थे तो यह मेरे बहुमूल्य स्वर्णहार को चोरी कर भाग गया. हुजूर, इंसाफ कर मेरे हार को वापस दिलवाएं.’’

युवक ने कराहते हुए कहा, ‘‘हुजूर, मैं तो महीनों से बीमार हूं. मुझ से तो ठीक से चला भी नहीं जाता. यह औरत मुझे जबरदस्ती इन दोनों व्यक्तियों के सहारे पकड़ कर लाई है.’’

‘‘हुजूर, यह व्यक्ति मक्कार तथा झूठ गढ़ने में माहिर है.’’

‘‘हुजूर, यह औरत ही झूठी है. इसे तो मैं ने कभी देखा भी नहीं है.’’

‘‘क्यों, कल क्या तुम मेरे घर में नहीं थे?’’

‘‘हुजूर, इस औरत को आज से पहले मैं ने कभी देखा नहीं है.’’

काजी को लगा कि युवक सही कह रहा है. उस ने औरत से पूछा, ‘‘तुम्हारा कोई गवाह है?’’

औरत ने समर्थन में सिर हिलाया तो युवक ने चीखते हुए कहा, ‘‘हुजूर, यह झूठ कह रही है. इस का कोई भी गवाह नहीं है.’’

‘‘हुजूर, मेरा गवाह यह युवक ही है.’’

काजी ने विस्फारित नेत्रों से युवती की तरफ देखा. उसे लग रहा था कि उस ने युवती को कहीं देखा है. किंतु वह स्मरण नहीं कर पा रहा था. इस पर युवती ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘हुजूर ने मुझे पहचाना नहीं?’’

काजी ने अपनी स्मरणशक्ति पर जोर दिया, किंतु वह उस औरत को पहचानने में विफल रहा. इस पर उस युवती ने कहा, ‘‘हुजूर, 8 महीने पहले इस युवक ने आप की अदालत में मेरे विरुद्ध नालिश की थी. हुजूर ने भी मुझे व्यभिचारिणी मान मुझे इस से विवाह करने का हुक्मनामा सुनाया था.

‘‘मैं ने हुजूर से कुछ महीने की मुहलत मांगी थी. आज यह युवक मुझे पहचानने से इनकार कर रहा है. मेरे शरीर के गोपनीय चिह्नों को स्मरण रखने वाला मेरे चेहरे को इतनी जल्दी कैसे भूल गया? हुजूर, उस बांदी तथा खोजा से इस की शिनाख्त करें, जिन्होंने इस की नालिश पर हुजूर के हुक्म से मेरे शरीर की परीक्षा की थी.’’

काजी ने बांदी और खोजा को बुलवा कर उन से पूछा तो उन्होंने युवती और युवक को पहचान युवती के कथन का समर्थन किया.

इस पर लज्जित हो काजी ने कहा, ‘‘मुझे प्रतिदिन सैकड़ों मामलों पर फैसला सुनाना पड़ता है. फिर मैं वृद्ध भी हो चला हूं. अत: तुम्हें पहचानने की मेरी भूल स्वाभाविक है. किंतु मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इस व्यक्ति ने तुम्हारे शरीर के गोपन चिह्नों के बारे में कैसे जान लिया?’’

इस पर उस युवती ने अपनी वृद्धा दासी की सोने की कुछ मुहरों के लालच में गद्दारी किए जाने की घटना को कह सुनाया. काजी ने दासी को उसी समय सिपाही भेज अदालत में बुलवाया तो उस ने डरतेडरते सभी कुछ स्वीकार कर लिया. काजी ने अब क्रोधित हो युवक की तरफ देखा. वह थरथर कांप रहा था. काजी ने दांत भींचते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो जिंदा गाड़ कर कुत्तों से नुचवा देना चाहिए. किंतु मैं स्वयं को भी लज्जित महसूस कर रहा हूं. तुम्हारी चिकनीचुपड़ी बातों में आ मैं ने इस शरीफजादी के साथ बेइंसाफी की है. अब तुम्हारे साथ इंसाफ शहंशाह ही करेंगे.’’

काजी ने पूरे मामले को मुगल बादशाह शाहजहां के पास फैसले के लिए भेज दिया. दोनों की मुगल दरबार में पेशी हुई. युवती ने सारी घटना का वर्णन कर बादशाह से इंसाफ करने की प्रार्थना की. बादशाह ने वृद्धा दासी से पूछताछ की तो उस ने डरतेडरते सही घटना बता दी शाहजहां ने युवक से प्रश्न किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि वह उस औरत के प्रेम में पड़ गया था. पर उस की उपेक्षा से वह उसे किसी भी तरह हासिल करने को कटिबद्ध हो गया था. उस ने उस वृद्धा बांदी को लालच दे उस से उस युवती के शरीर के गुप्त चिह्नों की जानकारी पा काजी को बहका कर अपने पक्ष में फैसला करवा लिया था. वह युवती 8 महीने बाद अपना केश विन्यास बदल तथा दूसरे किस्म के कपड़े पहन अपने दोनों दासों की सहायता से उसे जबरदस्ती काजी की अदालत में ले गई. फिर उस ने चोरी के मामले में उसे अभियुक्त ठहराना चाहा तो वह उस के बदले भेस के चलते उसे पहचान नहीं पाया.

वह अपने किए पर लज्जित था तथा बादशाह से माफ कर देने की आरजू कर रहा था. बादशाह ने गंभीर हो कहा, ‘‘एक शरीफ औरत को बदनामी के साथसाथ मानसिक कष्ट भी हुआ. उस की क्षतिपूर्ति तो मैं स्वयं भी नहीं कर सकता. किंतु इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो, अत: युवक और वृद्धा बांदी को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए.’’

बादशाह ने युवती की बुद्धि की तारीफ कर उसे पुरस्कृत किया. उसी दिन बादशाह के आदेश से दिल्ली के राजपथ पर उस युवक और उस की सहयोगिनी वृद्धा बांदी को कमर तक मिट्टी में गाड़ दिया गया. फिर तीर मार कर दोनों की हत्या कर दी गई. दोनों की मृत देह 24 घंटे तक रास्ते पर पड़ी रही, जिस से कि राहगीर उन्हें देख कर शिक्षा ग्रहण करें. युवती द्वारा नहले पर दहला मारने की घटना भी दिल्ली में काफी दिनों तक चर्चित रही.

अफसोस: उसकी बचपन की आदत से पिता जी क्यों खफा रहते थे

मैं औफिस में काफी रंगीनतबीयत माना जाता था और खुशमिजाज भी. हर रोज किसी को सुनाने के लिए मेरे पास नया व मौलिक लतीफा तैयार रहता था. मैं हाजिरजवाब भी गजब का था. कोई गंदा सा जोक अपने साथियों को सुना कर मैं इतनी बेशर्मी से आंख मारता और सारी बात इतनी गंभीरता से कहता कि हर कोई सच में मेरी बात मान लेता था.

वैसे तो मेरी कहानी सब लोगों के सामने एक खुली किताब रही है. मैं ने जिंदगी में जीभर कर ऐश की है. घर अच्छा था. मेरी बीवी भी कमाती थी. मैं ने सबकुछ खायापीया, घूमाफिरा. इतनी सारी औरतों से यारी की, रोमांस भी किया. वह मजेदार जिंदगी जी कर मजा आ गया.

मगर जनाब, असली बात तो यह है कि मैं ने गफलतभरी जिंदगी जी है. कोई ऐसा काम नहीं किया कि जिसे याद कर के दिल को कोई सुकून मिले. किसी ने मेरे अंदर की बात को कभी संजीदगी से नहीं लिया.

सभी सोचते रहे कि यह आदमी कितना मिलनसार और खुशमिजाज है. चलो, इस के पास चलते हैं. कुछ घड़ी बैठ कर गपें मारते हैं. मैं उन्हें ऐसी बातें बताता जो असल में सच नहीं थीं. कोरी कल्पनाएं थीं, वे सुन कर खुश हो जाते, ठहाके मार कर हंसते.

उन के जाने के बाद मैं उदास हो जाता. एक बलात्कार की सी स्थिति थी मेरे साथ. लगता था मानो इस बलात्कार को मैं ने खुद ही अरेंज करवाया है. रोजरोज मैं अपने अंतर्मन के साथ बलात ढोंग करता.

यह आदत मुझे बचपन से ही थी. लोग बताते हैं कि मेरे पिताजी को भी यही सनक थी, हरेक बात को बढ़ाचढ़ा कर बताना. अगर उन के पास हजार रुपए होते तो वे लोगों को बताते कि उन के पास 10 हजार रुपए हैं. मुझ में यह शेखी एक सनक की हद तक विकसित हो चुकी थी. अगर मैं कभी सच बोलता भी तो लोगों को यकीन न होता.

इस से बहुत नुकसान उठाए हैं, साहब, मैं ने. कई अधेड़ स्त्रियां तो मेरी अच्छी दोस्त बनीं मगर मेरी हमउम्र जवान औरतें मुझ से परहेज करतीं. कालेज में मुझे अपनी उम्र से बड़ी स्त्रियां भाती थीं जिन्हें हम दोस्त लोग आंटीज कह कर मजे लेते थे. एकदो तो मेरी चिकनी, हंसोड़ बातों में आ भी गई थीं. उन की गहरी जिस्मानी अंतरंगता भी मिली मुझे. वे मेरी शेखी भरी बातें सुन कर प्रभावित हो जाती थीं.

मगर ज्योंज्यों मेरी शादी पुरानी हुई, मुझे कच्ची उम्र की जवान, शोख लड़कियां अच्छी लगने लगीं. मगर मेरी बढ़ती हुई उम्र, आगे निकलती हुई तोंद और पकते जा रहे बालों ने उन्हें हमेशा मुझ से दूर ही रखा.

ऐसे में एक बार मुझे लगा कि मैं जिंदगी के सही अर्थ पा गया हूं. बात उन दिनों की है जब मैं अपने औफिस के स्टाफ टे्रनिंग कालेज में प्रशिक्षण अधिकारी था. एक बैच में एक लड़की थी जो मेरी हंसोड़, लच्छेदार तथा चुटीली बातों में आ गई थी. वह थोड़ी सांवली थी मगर हम हिंदुस्तानी लोग गोरे रंग पर टूट कर पड़ते हैं. अब मैं सोचता हूं कि मुझे उस का दिल दुखाना नहीं चाहिए था.

हां, तो जनाब, विजया, यही नाम था उस का. प्रशिक्षण पीरियड खत्म होने के बाद वह मुझ से मिलने मेरे सैक्शन में आई. वह 21 बरस की जवान लड़की थी और मैं 38 बरस का था. इतना अधेड़ तो न था मगर बाल जरूर पकने लगे थे मेरे और शरीर भी फूलने लगा था.

सारा सैक्शन हैरान नजरों से उसे देख रहा था. विजया को मैं ने साथ पड़ी कुरसी पर बिठाया. औपचारिकतावश चाय मंगवाई. हमारे बीच उम्र का बहुत बड़ा फासला था. वह कमसिन थी, जवानी की दहलीज पर अभी उस ने कदम रखा था मगर मैं उम्र की सीढि़यां उतर रहा था.

वह उस दिन मजाक के मूड में थी. मेरी नेमप्लेट देख कर बोली, ‘सर, आप का नाम तो लड़कियों जैसा है.’ मैं असंयत हो गया, जवाब में कुछ नहीं सूझा. मैं ने बस यही कहा, ‘तुम्हारा नाम भी तो लड़कों जैसा है.’

वह हंस पड़ी. अपने सैक्शन वालों के सामने मुझे पहली बार बेहद झिझक महसूस हुई. इसलिए नहीं कि वह लड़की थी बल्कि इसलिए कि वह उम्र में मुझ से बहुत छोटी थी. मेरी बगल वाली सीट पर हमेशा एक औरत बैठी रहती थी क्योंकि मैं इस बातकी कम ही परवा करता था कि लोग क्या कहेंगे.

लोग मुझे ठरकी कहते थे. यह बात मुझे पता थी. मेरी बगल में बैठने वाली तमाम औरतें लगभग संवेदनशून्य थीं, जो चाहे घटिया बात उन्हें कह लो, हाथवाथ लगा लो, कुछ बुरा नहीं मानती थीं. कुछ तो कोई न कोई बहाना लगा कर मेरी बगल वाली सीट पर विराजमान होने के लिए लालायित रहती थीं.

हां, तो विजया दूसरी बार आई, वह भी एक सप्ताह के अंदर. सैक्शन की बाकी औरतों को बहुत झुंझलाहट हुई. मन ही मन मैं खुश तो था मगर घबरा रहा था, डर रहा था. विजया की गलती यही थी कि जब वह मुझ से मिली थी तो मैं काफी उम्र जी चुका था. मैं 40 की तरफ जा रहा था और वह 20 पार कर रही थी. उस की बातें बेहद दिलचस्प होती थीं. मैं साफ देख रहा था कि यह लड़की मेरे प्रति कितना गहरा मोह पाले बैठी है.

एक जवान लड़की का साथ पाने की एक प्रकार की मेरी दिली इच्छा पूरी होने जा रही थी मगर मैं बेहद डर गया था, बुरी तरह हांफ रहा था, घबरा रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए या लोग क्या सोचेंगे.

विजया सांवली थी, उस का शरीर गोलमटोल और गुदाज था. आंखें छोटी मगर बेहद कटीली और नशीली थीं. चुस्त, आधुनिक कपड़े पहनती थी. विचारों से वह काफी बोल्ड और साहसी थी. एमए इंगलिश कर रही थी. साहित्य में काफी शौक रखती थी. मैं ने भी बी ए औनर्स अंगरेजी साहित्य के साथ किया था. इसलिए लारैंस, कीट्स, बैकन और हक्सले की बहुत सी बातें मुझे अभी तक याद थीं.

सो, काफी देर तक हमारा वार्त्तालाप चलता. विजया के साथ मेरी कैफियत उस बच्चे के समान थी जो नंगे हाथों से दहकता हुआ गरम अंगारा उठा ले. विजया ने मेरे विश्वासों, मेरी मान्यताओं और मेरे विचारों को उलटपलट कर रख दिया था जैसे बरसात के बाद गलियों में बहने वाले पानी का पहला रेला अपने साथ तमाम बिखरे कागज, तिनके आदि बहा ले जाता है.

वह एक पहाड़ी नदी की तरह पगली थी, आतुर थी. उसे बह निकलने की बहुत जल्दी थी. उसे कई रास्ते, कई मोड़ पार करने थे. मैं एक सपाट मैदानी नाला था. मैं ने काफीकुछ देखा था.

इसी झिझक के मारे मैं ने कभी उस के सामने बाहर घूमने का प्रस्ताव नहीं रखा. विजया ने कई बार कहा, ‘सर, चलिए, कहीं चलते हैं, शिमला या मनाली, हिल स्टेशन पर मस्ती मारते हैं. चलो, बाहर नहीं तो यहीं अपने शहर के लेक व रौक गार्डन पर तो चलो.’ मगर मैं कोई न कोई बहाना लगा कर उसे टालता रहता.

3-4 बार मैं उस के साथ शहर के आसपास गया भी मगर कहीं उस से इत्मीनान से बात करने के लिए सुरक्षित जगह नजर नहीं आई. हर जगह मुझे कोई न कोई परिचित खड़ा नजर आया.

उस के साथ चल कर मुझे लगा कि मैं फिर से जवान हो गया हूं. मेरी उम्र कम हो गई है. फिर विजया की उम्र देख कर मुझे यह बोध होता कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूं. अपराधबोध के बिना सच्चा प्यार क्यों नहीं होता. प्यार तो समाज की धारा के खिलाफ चल कर ही किया जा सकता है.

मैं डर गया था लोगों से, समाज से, अपनेआप से. कहीं फंस गया तो? हालांकि मैं विजया के प्यार में फंसना चाहता था मगर इतना गहरा फंसने का मेरा इरादा नहीं था.

मैं तो बस उसे छू कर, महसूस कर के देखना चाहता था. मगर विजया तो दीवानगी की हद तक पागल थी. मैं उस की कमसिन उम्र से डर कर अजीब परस्परविरोधी फैसले करता था. कभी सोचता था कि आगे बढ़ूं तो कभी बिलकुल पीछे हट जाने की ठान लेता था. उसे कहीं मिलने का समय दे कर उस से मिलने नहीं जाता था.

फिर मैं ने विजया के साथ एक रात किसी होटल में गुजारने की सोची. मगर उस से पहले मैं उस के प्यार की परीक्षा लेना चाहता था कि क्या वह मेरे सामने समर्पण करेगी या वैसे ही कोरी भावुकता में बह कर वह ऐसी बातें करती है. अपने औफिस की कई औरतों के साथ मुझे उन के घर पर ही उन के साथ अंतरंग संबंध बना लेने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई. मगर विजया के केस में मुझे 1 साल लग गया यह सब सोचने में कि शुरुआत कहां से करूं.

सच बात तो यह थी कि मैं उस के साथ सिर्फ प्यार का खेल ही खेलना चाहता था मगर वह दीवानी लड़की अपनी जवानी के आवेगों को रोक नहीं पा रही थी. हर रोज मुझे यही लगता कि वह मेरे सम्मुख समर्पण करने के लिए बेकरार है.

एक दिन जी कड़ा कर के मैं ने शिमला के ग्रैंड होटल में 2 लोगों के लिए एक कमरे की बुकिंग करवा ही दी. वोल्वो बस से शिमला जाने का प्लान बन गया मगर उस सुबह जिस दिन मुझे विजया के साथ निकलना था उस दिन मेरे मन में पता नहीं कैसे नैतिकता की ओछी सनक सवार हो गई कि इस तरह तो मैं उस का भविष्य खराब कर दूंगा. विजया बस स्टैंड से मोबाइल पर रिंग करती रही मगर मैं मोबाइल बंद कर के अपने रूम में सिरदर्द का बहाना कर के पड़ा रहा.

अब मेरी बात बहुत लंबी हो चली है. मैं अपनी बात यहीं खत्म करता हूं कि एक मौका जब मैं सच में किसी को दिल की गहराइयों से प्रेम करने लगा था, मैं ने जानबूझ कर गंवा दिया.

विजया को अपमानित किया, उसे बुला कर मिलने नहीं गया. वह मेरे पास आई तो मैं अधेड़ उम्र की सुरक्षित किस्म की खांटी व अधेड़ औरतों से बतियाने में मशगूल रहा. मैं ने विजया को भूल जाना चाहा. वह बारबार मेरे पास आई तो मैं ने जी कड़ाकर के उस की उपेक्षा की, अपनेआप को ऐसा दिखाया कि मैं औफिस के काम में बुरी तरह मसरूफ हूं.

आखिरकार, मैं ने अपनेआप को एक खोल में बंद कर लिया जैसे गृहिणियां अचार या मुरब्बे को एअरटाइट कंटेनरों में भर कर कस कर बंद कर देती हैं. अब मेरी कैफियत ऐसी थी कि जैसे मैं विजया के काबिल नहीं हूं और यह कि उस के साथ और कुछ दिन चला तो फिर संभलना मुश्किल था. मैं यह खेल बस इसी खूबसूरत मोड़ पर ला कर बंद कर देना चाहता था. उस के साथ जिस्मानी दलदल में धंसने का मेरा कोई इरादा न था.

इस तरह विजया धीरेधीरे मुझ से दूर होती गई. मगर अब इस उम्र में जब मैं 55 के काफी करीब जा रहा हूं, मुझे उन मधुर क्षणों की याद आती है कि जब मुझ में और विजया में जबरदस्त दीवानगी थी तो मैं बेहद मायूस हो जाता हूं. मैं सोचता हूं कि मैं ने कभी किसी से प्यार नहीं किया और एक प्यारभरा दिल तोड़ दिया. सचमुच सिर्फ एक लड़की जिस से मैं ने पहली और आखिरी बार मन की गहराइयों से प्यार किया था, उस का प्यार गंवा दिया, उस से निष्ठुरता दिखा कर बहुत बड़ा अपराध किया था.

फेसबुक: मीनाजी के मन में मोहित को लेकर क्या ख्याल आ रहे थे

जब से मीनाजी ने कंप्यूटर सीखा उन की दिनचर्या ही बदल गई है. अब तो सारा दिन वे कंप्यूटर के सामने ही बैठी रहती हैं. पहले सुबहशाम सैर पर जाती थीं. घंटा, आधा घंटा घर पर ही व्यायाम करती थीं. अब छत पर ही 15 मिनट टहल लेती हैं. व्यायाम तो मानो भूल ही गई हैं. 70 वर्षीया मीनाजी या तो ‘फेसबुक’ पर रहती हैं या ‘फूड गाइड’ पर. ‘चेन्नई फूड गाइड’ की तो वे मैंबर बन गई हैं. वे बहुत अच्छी कुक हैं और अब उन्होंने अपनी रैसिपीज इंटरनैट पर डालनी शुरू कर दी है. उन के हाथ में एक बहुत अच्छा मोबाइल आ गया, उस से अपनी बनाई सब रेसिपीज की वे फोटो खींचतीं और नैट पर डाल देतीं. आधे घंटे के अंदर ही 20-30 ‘लाइक’ पर टिक हो जाता और 2-4 कमैंट भी आ जाते. उन की ‘फ्रैंड रिक्वैस्ट’ की लिस्ट लंबी होती जा रही थी. उन के नैट फ्रैंड हजारों में हो गए.

मीनाजी की पोती नीता पढ़ने के लिए अमेरिका गई हुई थी. जब वह चेन्नई में थी तो दादीपोती की खूब जमती थी.

नीता जो बात मां को न बता पाती, वह बात बड़ी आसानी से दादी से शेयर करती थी. उस के अमेरिका जाने के बाद फोन पर ही बात होती थी.

बहू सीता कभीकभी स्काइप पर नीता को दिखा भी देती और बात भी करवा देती थी. इधर, 2 महीने में जब से वे ‘कंप्यूटर सेवी’ बनी हैं, नीता उन की फ्रैंड लिस्ट में शामिल हो चुकी है. अपनी फेसबुक पर अब वे दोनों हर बात शेयर करती हैं. किसी भी नई रेसिपी की फोटो को देखते ही नीता का कमैंट आता, ‘‘दादीमां, गे्रट, आप तो दुनिया की सब से बढि़या कुक और फोटोग्राफर बन गई हैं. जब मैं वापस आऊंगी तो मुझे सब खाना बना कर खिलाना होगा.’’

आज भी दोनों फेसबुक पर चैट कर रही थीं. नीता दादी की रेसीपी की तारीफ कर रही थी और मीनाजी खुश होहो कर रिप्लाई कर रही थीं.

‘‘जरूर, मैं तुझे सिखा भी दूंगी. शादी कर के घर बसाने की उम्र है, फिर खाना भी तो बनाना है.’’

‘‘मैं आप को अपने साथ ले चलूंगी. मुझे दहेज में आप चाहिए.’’

‘‘मुझे कितने दिन रखेगी अपने पास? मैं तो इंतजार में हूं कि कब इस दुनिया से कूच करूं.’’

‘‘बस, चुप. आप ऐसी बातें मत करिए. मैं अब कालेज जा रही हूं, वापस आ कर कल मिलती हूं,’’ और नीता की स्क्रीन कनवर्सेशन बंद हो गई.

मीनाजी नीता को याद कर के मुसकरा दीं. फिर उन की उंगलियां चलने लगीं और वे अपने नैट फ्रैंड्स के प्रोफाइल देखने में व्यस्त हो गईं. तभी उन की नजर एक फ्रैंड के प्रोफाइल पर रुक गई.

उस प्रोफाइल में नीता की भी फोटो थी. उत्सुकतावश वे उस प्रोफाइल को पढ़ने लगीं. उस में एक बहुत ही सुंदर लड़के का फोटो देखा. उस के बारे में पढ़ा भी. नाम था मोहित और क्वालिफिकेशन थी पीएचडी. भारतीय मूल का था वह और सिंगल था यानी कि अविवाहित. जाने क्यों वे कल्पना करने लगीं कि नीता और मोहित की शादी हो जाए तो बहुत सुंदर जोड़ी लगेगी. अब तो उन का मन योजना बनाने लगा कि किस तरह से दोनों को मिलाया जाए. उन्होंने अपनी उस नैट फ्रैंड से मोहित के बारे में पूरी जानकारी ले ली.

मोहित उत्तरभारतीय था और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था. पिछले 8 साल से अमेरिका में ही था. उस के मातापिता दिल्ली में रहते थे. दोनों परिवारों का स्तर मिलताजुलता था. उन्होंने सोचा कि वे बहू सीता को मना लेंगी.

अगले दिन मीनाजी नीता से औनलाइन मिलीं तो सीधेसीधे उस से पूछ बैठीं, ‘‘कोई बौयफ्रैंड है क्या?’’

‘‘दादी, आज बड़े अच्छे मूड में लग रही हो. क्या सवाल पूछा है.’’

‘‘हां, कल से ही अच्छे मूड में हूं. जब से मोहित की फोटो देखी है तब से मन रंगीन सपने देख रहा है.’’

‘‘अच्छा दादी, दोबारा शादी करने का इरादा है क्या?’’

‘‘रुक शैतान, मैं तेरी शादी के सपने देख रही हूं.’’

‘‘मैचमेकिंग की आप की पुरानी आदत है. पर मेरे को माफ करो, मैं शादी करने के मूड में नहीं हूं, समझीं क्या?’’

‘‘एक बार मोहित की फोटो तो देख ले.’’

‘‘देखी है. कल्पना मेरी भी तो फ्रैंड है. उसी के फेसबुक पर तो आप ने मोहित की फोटो देखी है.’’

‘‘तुझे कैसा लगा?’’

‘‘अच्छा है. पर मुझे क्या लेनादेना. अच्छा, यह बताओ, आज क्या पकाया? आज नैट पर कोई भी फोटो नहीं डाली.’’

‘‘नहीं, आज कुछ भी नहीं पकाया. आज मेरे 2 फेसबुक फ्रैंड घर आए थे और मुझे ‘इडली विला’ ले गए थे. वहां 30 तरह की इडलियां और 20 तरह के परांठे मिलते हैं. मुझे खूब मजा आया. कल हौर्लिक्स परांठा मैं भी बना कर देखूंगी.’’

‘‘हौर्लिक्स परांठा? वह कैसा होता है? मैं ने तो पहली बार नाम सुना है. चेन्नई बड़ा चिकप्लेस होता जा रहा है.’’

‘‘कल मेरी फेसबुक पर हौर्लिक्स परांठा की रैसिपी भी पढ़ लेना और फोटो भी देख लेना.’’

‘‘गुड नाइट, दादीमां, मैं सोने चली.’’

और नीता स्क्रीन से गायब हो गई. मीनाजी के कल्पना के घोड़े फिर से दौड़ने लगे.

उन्होंने मोहित को ही फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी और उस के उत्तर का इंतजार करने लगी. 2 दिन में ही उन की रिक्वैस्ट मोहित ने मान ली और वे मोहित की नैट फ्रैंड बन गईं. अब वे जबतब उस से भी चैट करने लगीं. धीरेधीरे उन्हें पता चला कि मोहित को भी खाना बनाने और खाने का शौक है. वह भी उन की तरह ‘फूडी’ है. अब तो रोज नईनई रेसिपीज की बातें होतीं और मीनाजी उस की गाइड बन गईं. बातोंबातों में पता चला कि मोहित की मां भी केरल प्रदेश से हैं.

मोहित के पिता नेवी में थे. जब वे कोचीन में पोस्टेड थे तब उन की मुलाकात लता से हुई और दोनों की दोस्ती हो गई, फिर दोनों की शादी हो गई. मोहित को केरल के व्यंजन भी बहुत पसंद थे. उपमा, नारियल की चटनी और पुट उसे बहुत अच्छे लगते थे.

कुछ समय के बाद मीनाजी ने मोहित और नीता की मुलाकात भी नैट पर करवा दी. दोनों की एकदम से मित्रता हो

गई. दोनों की रुचियां भी आपस में मिलतीजुलती थीं. दोनों की मित्रता करवा कर वे बीच से हट गईं. जबतब नीता से पूछतीं, ‘‘कहां तक बात पहुंची?’’

‘‘आप सपने देखने छोड़ दो. हम बस अच्छे दोस्त हैं.’’

कभी वे मोहित से पूछतीं, ‘‘आज क्या पकाया? कुछ नया बताऊं क्या?’’

‘‘आज रवा-इडली बनाई, मेरे दोस्तों को अच्छी लगती है. वे इसे ‘सफेद केक’ कहते हैं.’’

‘‘उन्हें एक बार रवा-उपमा बना कर खिलाओ. मैं रेसिपी बता दूंगी.’’

‘‘अगले रविवार को बनाऊंगा और फिर रिपोर्ट दूंगा. तब तक के लिए बाय.’’

समय यों ही गुजरता गया. एक दिन मीनाजी ने मोहित की फेसबुक पर नीता और मोहित की साथसाथ एक फोटो देखी. उस फोटो को देखते ही मीनाजी खुश हो गईं. अब उन्होंने फेसबुक पर दोनों के लिए संदेश छोड़ दिया, ‘मुझे पूरी रिपोर्ट दो.’

मोहित ने संदेश लिखा, ‘‘स्मार्ट दादी की पोती अच्छी लगी.’’

नीता ने लिखा, ‘‘मैचमेकर दादीमां की पसंद अच्छी लगी.’’

मीनाजी की तो जैसे लौटरी निकल आई. अब मुख्य काम था अपनी बहू सीता को मनाना, उसे जाति से बाहर शादी करना पसंद नहीं था.

उन्होंने नीता की ही ड्यूटी लगाई कि वह ही मां को बताए और मनाए. नीता ने जब मां को बताया कि मोहित की मां केरल से हैं तो वे जल्दी ही मान गईं. उन्होंने अपनी सासूमां से कहा, ‘‘मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी.’’ मोहित के मातापिता भी नीता के बारे में जान कर खुश हो गए. उन्हें नीता की फोटो पसंद आई. उन्हें मद्रासन बहू आने से कोई आपत्ति नहीं थी.

सीता से अब जब लोग पूछते कि नीता के लिए लड़का कैसे ढूंढ़ा तो वह बोलती, ‘‘अपनी सासूमां को कंप्यूटर सिखा कर मैं ने अपना ही भला कर लिया. दामाद ढूंढ़ने की कठिनाई से बच गई. वे कंप्यूटर पर इतना व्यस्त रहती हैं कि मेरी ओर उन का ध्यान ही नहीं जाता. इतने अधिक लोग उन की फेसबुक पर हैं कि वे बहू का फेस भी भूल गई हैं. मेरा तो बस अब यही नारा है, फेसबुक जिंदाबाद…’’

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