Divorce : मर्दों ने अपनी खुदगर्जी और सहूलियत के लिए औरतों को जो धर्म की अफीम चटा रखी है, उस के साइड इफैक्ट अब सामने आने लगे हैं. कैसे यह जानने से पहले यह एक बार फिर समझ लेना जरुरी है कि दूसरे धर्मों की तरह हिंदू या सनातन या वैदिक धर्म भी कुछ ज्यादा ही ऊंची आवाज में कहता है कि औरत पांव की जूती है, गुलाम है जिसे शूद्रों की तरह कोई हक नहीं हैं.
ऊंची जाति वाले अब पत्नियों के धर्म प्रेम जो लत में तब्दील होता जा रहा है से इतने आजिज आने लगे हैं कि उन से छुटकारा पाने तलाक के लिए अदालत की चौखट पर गुहार लगाने मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि अब वे पत्नी को पहले की तरह घर से धकिया नहीं सकते वजह संविधान और कानून हैं, जिन्होंने औरतों को मर्दों के बराबर के हक दे रखे हैं.
भोपाल के कुटुंब न्यायालय में दायर एक दिलचस्प मुकदमे में, एक पीड़ित पति ने आरोप लगाया है कि उस की पत्नी अकसर बिना बताए धार्मिक यात्राओं पर निकल जाती है. अभीअभी कुंभ में डुबकी लगाने बिना पूछे प्रयागराज हो आई, गले में रुद्राक्ष की माला लटकाए थी. इस के कुछ दिन पहले वृंदावन चली गई थी और जब लौटी थी तो माथे पर सिंदूरबिंदी की जगह चंदनटीका लगाए थी. अब वह दिन रात टोनेटोटके और पूजापाठ में लगी रहती है. उस के पहनावे और इन हरकतों से सोसाइटी में उस का मखौल उड़ने लगा है.
ऐसे दर्जनों मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं जिन में पति अपनी पूजापाठी अतिधार्मिक पत्नी से तंग आ चुके हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि अदालतें इन पतियों की हालत पर रहम खाते तलाक की डिक्री देती हैं या फिर इन लगभग मनोरोगी पत्नियों के साथ गुजर करने की ही सजा कायम रहती है.
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