Kaushal ji vs Kaushal : रेटिंग - डेढ़ स्टार

हर इंसान अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनी जड़ों से कटता जा रहा है, इस का असर उस के रिश्तों पर भी पड़ता है. यूं तो यह फिल्म दो पीढ़ियों के रिश्तों की बात करती है. पर सीमा देसाई के बचकानी लेखन व निर्देशन ने एक अच्छी कहानी का बंटाधार कर डाला. यदि लेखक व निर्देशक ने थोड़ी सी मेहनत की होती, रिश्तों को समझा होता तो यह फिल्म नई पीढ़ी को रिश्तों और परिवार को समझने का नजरिया दे सकती थी.

फिल्म की कहानी कन्नौज और नोएडा के बीच झूलती रहती है. 30 साल के अविवाहित युग (पावेल गुलाटी ) नोएडा की एड कंपनी में कौपी राइटर हैं. उस की कंपनी को एक मोाबइल कंपनी के लिए अच्छे विज्ञापन बनाने का ठेका मिला है. युग के पिता कौशल (आषुतोष राणा ) और मां (शीबा चड्ढा ) इत्र के लिए मशहूर शहर कन्नौज में रहते हैं. युग के पिता कौशल जी (आशुतोष राणा) एक जिम्मेदार अकाउंटेंट हैं, लेकिन उन का असली जनून कव्वाली गाना है. युग की मां (शीबा चड्ढा) एक साधारण गृहिणी होते हुए भी इत्र बनाने का सपना संजोए बैठी हैं. दोनों ने अपने सपनों को परिवार की जिम्मेदारियों के नीचे दबा दिया है. युग अपने पिता से पैसे मंगाता रहता है पर उसे कन्नौज जाना या मातापिता के फोन उठाने में समस्या है. युग की बहन रीत एक एनजीओ में काम करती है. इस बीच, छोटे से शहर कन्नौज में रहने वाले मातापिता अपने जीवन में खालीपन से निराश हो कर विचारों में अलग हो गए हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...